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• कसाय पाहुड सुस्त
[१ पैजदोसविहतः । ८. तं जहा-पेजदोसे (१) । ६. विहत्ती द्विदि अणुभागे च (२) । १०. बंधगेत्ति, बंधो च (३), संकमो च (४) । ११. वेदए त्ति उदओ च (५), उदीरणा च (६) । १२. उवजोगे च (७)। १३ चउठाणे व (८)। १४. वंजणे च (९)। १५. सम्मत्तेत्ति दंसणमोहणीयस्स उवसामणा च (१०), दंसणमोहणीयक्खवणा च (११) ।१६. देसविरदी च (१२) । १७ संजमे उवसामणा च खवणा च चरित्तमोहणीयस्स उवसामणा च (१३), खवणा च (१४) । १८. दंसणचरित्तमोहेत्ति पदपरिवूरणं । १९. अद्धापरिमाणणिद्देसो त्ति (१५) । २०. एसो अत्थाहियारो पण्णारसविहो । पन्द्रह अर्थाधिकारीको बतलाते हुए भी गुणधराचार्य विराधक नहीं हैं, क्योकि, वे उनके बतलाए हुए अर्थाधिकारोका निषेध नहीं कर रहे हैं । किन्तु, अभिप्रायान्तरकी अपेक्षा पन्द्रह अर्थाधिकारोकी एक नवीन दिशा दिखला रहे हैं।
चूर्णिसू०-वे पन्द्रह अर्थाधिकार इस प्रकार हैं-१ प्रयोद्वेप अर्थाधिकार, २ स्थिति-अनुभागविभक्ति अर्थाधिकार, ३ बंधक अर्थाधिकार, ४ संक्रम अर्थाधिकार, ५ वेदक या उदय-अर्थाधिकार, ६ उदीरणा अर्थाधिकार, ७ उपयोग अर्थाधिकार, ८ चतुःस्थान अर्थाधिकार, ९ व्यंजन अर्थाधिकार, १० सम्यक्त्व अधिकारके अन्तर्गत दर्शनमोहनीय-उपशामना अर्थाधिकार, ११ दर्शनमोहनीय-क्षपणा अर्थाधिकार, १२ देशविरति अर्थाधिकार, १३ संयम अर्थाधिकारके अन्तर्गत चारित्रमोहनीय-उपशामना अधिकार, १४ चारित्रमोहनीयक्षपणा अर्थाधिकार और १५ अद्धापरिमाण अधिकार । यह पन्द्रह प्रकारका अर्थाधिकार है । गाथामे 'दसणचरित्तमोहे' यह पद पादकी पूर्तिके लिए दिया गया है ।।८-२०॥
विशेपार्थ-स्थिति-अनुभागविभक्ति नामक दूसरे अर्थाधिकारमे प्रकृतिविभक्ति, क्षीणाक्षीण-प्रदेश और स्थित्यन्तिक-प्रदेश अर्थाधिकारोंका भी ग्रहण किया गया है, क्योकि प्रकृतिविभक्ति आदिके विना स्थिति और अनुभागविभक्ति नहीं बन सकती है। यहां यह आशंका की जा सकती है कि यह कैसे जाना कि यतिवृषभाचार्यने ये उपयुक्त ही पन्द्रह अर्थाधिकार माने हैं ? इसका समाधान यह है कि इन प्रत्येक अर्थाधिकारोके नाम-निर्देशक पश्चात् यतिवृषभाचार्य-द्वारा स्थापित १,२ आदिसे लेकर १५ तकके अंक पाये जाते हैं। दूसरे, आगे चलकर इसी क्रमसे चूर्णि-सूत्रोके द्वारा उक्त अर्थाधिकारीका प्रतिपादन किया गया है, इससे जाना जाता है कि यतिवृपभाचार्यने ये उपयुक्त ही पन्द्रह अर्थाधिकार माने हैं। जयधवलाकारने अन्य प्रकारसे भी कसायपाहुडके पन्द्रह अर्थाधिकार कहे हैं --१ प्रयोद्वेष अर्थाधिकार, २ प्रकृतिविभक्ति अर्थाधिकार, ३ स्थिविविभक्ति अर्थाधिकार, ४ अनुभागविभक्ति अर्थाधिकार, ५ प्रदेशविभक्ति, क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक अर्थाधिकार, ६ वन्धक अर्थाधिकार, ७ वेदक अर्थाधिकार, ८ उपयोग अर्थाधिकार, ९ चतुःस्थान अर्थाधिकार, १० व्यञ्जन अर्थाधिकार, ११ सम्यक्त्व अर्थाधिकार, १२ देश-विरति अर्थाधिकार, १३ संयम अर्थाधिकार, १४ चारित्रमोह-उपशामना अर्थाधिकार, और १५ चारित्रमोह