________________
कसाय पाहुड सुत्त
[ १ पेजदोस विहती
I
इस गाथा से लेकर 'वेदगकालो किट्टी य' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'कदिसु गढ़ीसु भवेसु अ' इस चौथी मूलगाथाकी तीन भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'दोसु गदीसु अभाणि' इस गाथासे लेकर 'उकस्से अणुभागे दिदि उक्कस्साणि' इस गाथा तक जानना चाहिए | 'पज्जत्तापज्जत्त ेण तथा' इस पॉचवी मूलगाथाकी चार भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'पज्जत्तापज्जत्ते मिच्छत्ते' इस गाथासे लेकर 'कम्माणि अभज्जाणि दु' इस गाथा तक जानना । 'किंलेस्साए वद्धाणि' इस छठी मूलगाथाकी दो भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'लेस्सा साद असादे च' इस गाथासे लेकर 'दाणि पुव्ववद्धाणि' इस गाथा तक जानना । ' एगसमय पवद्धा पुण अच्छुद्धा ' इस सातवी मूलगाथाकी चार भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'छण्हं आवलियाणं अच्छुद्धा' इस गाथासे लेकर 'एढ़े समयपवद्धा' इस गाथा तक जानना । ' एगसमयपवद्धाणं सेसाणि' इस आठवी मूलगाथाकी चार भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'एक्कम्मि ट्ठिदिविसेसे' इस गाथासे लेकर 'एढ़ेण अंतरेण दु' इस गाथा तक जानना । 'किट्टीकदम्मि कम्मे' इस नवी मूलगाथाकी दो भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'किट्टीकदम्मि कम्मे णामागोदाणि' इस गाथासे लेकर 'किट्टीकदम्मि कम्मे सादं सुहणाममुच्चगोदं च' इस गाथा तक जानना । 'किट्टीकदम्मि कम्मे के वंधदि ' इस दशवीं मूलगाथाकी पॉच भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'दससु च वस्सस्संतो वंधदि' इस गाथासे लेकर ‘जसणाममुच्चगोदं वेदयदे' इस गाथा तक जानना । 'किट्टीकदम्मि कम्मे के वीचारा दु मोहणीयस्स' इस ग्यारहवी मूलगाथाकी कोई भाप्यगाथा नहीं है, क्योकि, वह सुगम है । इस प्रकार कृष्टि सम्बन्धी ग्यारह मूलगाथाओकी भाष्यगाथाएँ कही गई । कृष्टी क्षपणामे चार मूलगाथाएँ प्रतिवद्ध हैं । उनमेसे 'किं वेदेंतो किट्टि खवेदि' यह पहली मूलगाथा है । इसकी 'पढमं विदियं तदियं वेदेतो' यह एक भाष्यगाथा है । 'जं वेदेतो किट्टि खवेदि' इस दूसरी मूलगाथाकी 'जं चावि संछुहंतो खवेदि किट्टि ' यह एक भाष्यगाथा है । 'जं जं खवेदि किट्टिं' इस तीसरी मूलगाथाकी दश भाष्यगाथाएँ हैं । वे 'बंधो व संकमो वा णियमा सव्वेसु ठिदिविसेसेसु' इस गाथासे लेकर 'पच्छिम आवलियाए समयूणा' इस गाथा तक जानना । 'किट्टीदो किट्टि पुण संकमदि' इस चौथी मूलगाथाकी दो भाष्यगाथाएँ है । वे 'किट्टी किंहिं पुण संकमदे णियमसा' इस गाथासे लेकर 'समयूणाच विट्ठा आवलिया' इस गाथा तक जानना । इस प्रकार कृष्टियोकी क्षपणा सम्बन्धी चारो मूलगाथाओकी भाष्यगाथाएँ कही गई ।
१२
उक्त दो गाथाओ से कही गई समस्त भाष्यगाथाओकी संख्याका योग ध्यासी ( 9+′3⁄4+R+&'+8+3+3+8+8+3+2+′4+?+&’+3+8+2+8+ ४+२+५+१+१+१०+२=८६ ) होता है । इन छयासी गाथाओमे पूर्वोक्त अट्ठाईस मूलगाथाओके मिला देनेपर चारित्रमोहनीयके क्षपणा नामक पन्द्रहवे अर्थाधिकारमें निवद्ध गाथाओकी संख्या एक सौ चौदह होती है । इनमें प्रारम्भिक चौदह अर्थाधिकारोकी चौसठ गाथाओके मिला देनेपर समस्त गाथाओकी संख्या एक सौ अठहत्तर हो जाती है ।