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कसाय पाहुड सुन्त
[ १ पेज्जदोसविहती
३८. भावदोसो ठवणिजो । ३९. कसाओ ताव णिक्खिवियन्वो णामकसाओ ठवणकसाओ दव्वकसाओ पच्चयकसाओ समुप्पत्तियकसाओ आदेसकसाओ रसकसाओ भावकसाओ चेदि । ४०. गमो सव्वे कमाए इच्छदि । ४१. संगह-ववहारा समुप्पत्तियकसायमा देसकसायं च अवर्णेति ।
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विनाश, इत्यादि होता है । अतएव अग्निदाह, मृषकभक्षण, टिड्डीपात, छत्रभंग आदिको तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यरूप उपघातद्वेप कहा है ।
चूर्णि सू० - भावद्वेषको स्थापन करना चाहिए | क्योकि, उसका वक्तव्य विषय अधिक है । अतएव पहले अल्प वक्तव्योंका निरूपण करके पीछे भावद्वेषका प्रतिपादन किया जायगा ||३८||
उक्त प्रकारसे प्रय और द्वेप, इन दोनोका निक्षेप करके अब कषायके भी निक्षेपके लिए उत्तरसूत्र कहते हैं --
चूर्णि सू० -अब कपायोका निक्षेप करना चाहिए - ( वह कपायनिक्षेप आठ प्रकारका होता है — ) नामकषाय, स्थापनाकपाय, द्रव्यकपाय, प्रत्ययकपाय, समुत्पत्तिकषाय, आदेशकषाय, रसकषाय और भावकषायनिक्षेप || ३९ ||
यतः कपायोके स्वामिभूत - नयोको बतलाये विना कपायनिक्षेपोका अर्थ भलीभाँति समझ में नहीं आ सकता, अतएव अब चूर्णिसूत्रकार उक्त कपायनिक्षेपोके अर्थको छोड़ करके कषायनिक्षेपोके स्वाभिस्वरूप नयोके निरूपण करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं
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चूर्णि सू 01 - नैगमनय ऊपर बतलाये गये सभी आठो प्रकारके - कपायनिक्षेपोको स्वीकार करता है । इसका कारण यह है कि नैगमनय भेद और अभेद, अथवा संग्रहके द्वारा सर्व -
लोकवर्त्ती पदार्थोंको विषय करता है, अर्थात् समस्त लोकव्यवहार नैगमनयके आश्रित ही
चलता हैं, इसलिए उसमे सभी कपायनिक्षेपोका विपय होना संभव है ॥ ४० ॥
चूर्णि सू० - - संग्रहनय और व्यवहारनय समुत्पत्तिककषाय और आदेशकपायको विषय नही करते है ॥४१॥
विशेषार्थ - संग्रहनय और व्यवहारनय, समुत्पत्तिककपाय और आदेशकषायको विषय नहीं करते हैं, किन्तु शेष छह प्रकारके कपायनिक्षेपोको विषय करते है । इसका कारण यह है कि समुत्पत्तिककपायका प्रत्ययकपायमे अन्तर्भाव हो जाता है । क्योंकि, प्रत्यय दो प्रकारका होता है— आभ्यन्तर और बाह्य । अनन्तानन्त कर्मपरमाणुओके समागम से समुत्पन्न, जीवप्रदेशो के साथ एकताको प्राप्त, प्रकृति, स्थिति और अनुभाग के भेदस्वरूप क्रोधादि द्रव्यकर्मस्कन्धको आभ्यन्तर प्रत्यय कहते हैं । क्रोधादिभाव कपायोकी उत्पत्ति के कारणभूत जीवाजीवादि बाहरी द्रव्योको बाह्य प्रत्यय कहते हैं । इसलिए कपायोत्पत्ति के कारण-की अपेक्षा कोई भेद न होनेसे समुत्पत्तिककषायका प्रत्ययकपायमे अन्तर्भाव हो जाता है । इसी प्रकार आदेशकषाय भी स्थापनाकपायमे प्रविष्ट हो जाती है, क्योकि, आदेश पाय