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गा० ९-१२] - अधिकार-गाथा-निरूपण उसके वर्णनमे चार मूल गाथाएँ हैं । उनमेसे 'संकामणपट्ठवगस किंडिदियाणि पुव्ववद्धाणि' यह प्रथम मूल सूत्र-गाथा है। इसके अर्थका व्याख्यान करनेवाली पाँच भाष्य-गाथाएँ है । जो कि 'संकामणपट्ठवगस्स' इस गाथासे लेकर 'संकंतम्मि च णियमा' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'संकामणपट्ठवगो' इस संक्रमण-सम्बन्धी दूसरी गाथाके तीन अर्थ है । उनमेसे 'संकामणपट्ठवओ के बंधदि' इस प्रथम अर्थमे तीन भाष्य-गाथाएँ हैं। जो कि 'वस्ससदसहस्साई' इस गाथासे लेकर 'सव्वावरणीयाणं जेसि' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'के च वेदयदि अंसे' इस दूसरे अर्थमे दो भाष्य-गाथाएँ प्रतिबद्ध हैं। जिनमे पहली 'णिद्दा य णीचगोदं' और दूसरी 'वेदे च वेदणीए' इत्यादि गाथा है । 'संकामेदि य के के' इस तीसरे अर्थमे छह भाष्य गाथाएँ हैं। जो कि 'सव्वस्स मोहणीयस्स' इस गाथासे लेकर 'संकामयपछ्वगो माणकसायस्स' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'बंधो व संकमो वा' इस तीसरी मूलगाथाकी चार भाष्य-गाथाएँ हैं। जो कि 'बंधेण होदि उदओ अहिओ' इस गाथासे लेकर 'गुणसेढि अणंतगुणेणूणाए' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'बंधो व संकमो वा उदओ वा' इस चौथी मूलगाथाकी तीन भाष्य गाथाएँ हैं। जो कि 'बंधोदएहिं णियमा' इस गाथासे लेकर 'गुणदो अणंतहीणं वेदयदि' इस गाथा तक होती हैं। इस प्रकार 'संकामए वि चत्तारि' इस गाथाखंडकी २३ भाष्य-गाथाएँ कही गई। अपवर्तना-सम्बन्धी तीन मूलगाथाएँ हैं। उनमेसे 'किं अंतरं करेंतो' इस पहली मूलगाथाकी तीन भाष्य गाथाएँ है। जो कि !ओवट्टणा जहण्णा आवलिया' अणिया तिभागेण' इस गाथासे लेकर 'ओकट्टदि जे अंसे' इस गाथा तक हैं। 'एकं च हिदिविसेसं' इस दूसरी मूलगाथाकी ‘एकं च छिदिविसेसं तु असंखेज्जेसु' यह एक भाप्यगाथा है। 'छिदिअणुभागे अंसे' इस तीसरी मूलगाथाकी चार भाष्य-गाथाएँ हैं । जो कि 'ओवट्टेदि छिदि पुण' इस गाथासे लेकर 'ओवट्टणमुव्वट्टण किट्टीवज्जेसु' इस गाथा तक जानना चाहिए। इस प्रकार अपवर्तनासम्बन्धी तीनो मूलगाथाओकी भाष्यगाथाएँ कही गई। कृष्टि-सम्बन्धी ग्यारह मूलगाथाएँ हैं। उनमें 'केवडिया किट्टीओ' यह पहली मूलगाथा है। इसके अर्थका व्याख्यान करनेवाली तीन भाष्यगाथाएँ हैं, जो कि 'बारह णव छ तिण्णि य किट्टीओ होति' इस गाथासे लेकर 'गुणसेढी अणंतगुणा लोभादी' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'कदिसु च अणुभागेसु च' इस दूसरी मूलगाथाकी दो भाष्यगाथाएँ हैं, जो कि 'किट्टी च हिदिविसेसेसु' इस गाथासे लेकर 'सव्वाओ किट्टीओ विदियट्टिदीए' इस गाथा तक जानना चाहिए । 'किट्टी च पदेसग्गेणाणुभागग्गेण' इस तीसरी मूलगाथाके तीन अर्थ हैं। उनमेसे 'किट्टी च पदेसग्गेण' इस प्रथम अर्थमे पाँच भाष्यगाथाएँ हैं। जो कि 'विदियादो पुण पढमा' इस गाथासे लेकर 'एसो कमो च कोहे' इस गाथा तक जानना चाहिए। 'अणुभागग्गेण' इस दूसरे अर्थमे 'पढमा च अणंतगुणा विदियादो' यह एक ही भाष्यगाथा है । 'का च कालेण' इस तीसरे अर्थमे छह भाष्यगाथाएँ हैं, जो कि 'पढमसमय-किट्टीणं कालो'