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गा० १]
उपक्रमादि-निरूपण
३. णामं छव्विहं । ४. पमाणं सत्तविहं ।
कर जिस किसी भी क्रम से गिनती करनेको यथातथानुपूर्वी कहते है । जैसे -- वासुपूज्य, सुपार्श्वनाथ, शान्तिनाथ इत्यादि यद्वा तद्वा क्रम से उन्हीं तीर्थंकरोकी गिनती करना । प्रकृत यह कसायपाहुड पाँच ज्ञानोमेसे पूर्वानुपूर्वीकी अपेक्षा दूसरे से, पश्चादानुपूर्वीकी अपेक्षा चौथेसे, और यथातथानुपूर्वीकी अपेक्षा प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ या पंचम स्थानीय श्रुतज्ञानसे निकला है । इसी प्रकार अंगबाह्य और अंग-प्रविष्टके भेद-प्रभेदोमे भी तीनो आनुपूर्वी लगाकर कसायपाहुडकी उत्पत्तिको समझ लेना चाहिए ।
चूर्णिसू० – नाम - उपक्रमके छह भेद होते है ॥ ३ ॥
विशेषार्थ - गौण्यपद, नोगौण्यपद, आदानपद, प्रतिपक्षपद, उपचयपद और अपचयपदके भेदसे नाम-उपक्रम के छह भेद है । गुणोसे निष्पन्न हुए सार्थक नामोको गौण्यपद कहते है । जैसे—समस्त तत्त्वके ज्ञाताको सर्वज्ञ कहना, राग-द्वेषादिसे रहित पुरुपको वीतराग कहना, इत्यादि । जो नाम गुणोसे उत्पन्न नही होते है - अर्थशून्य होते हैं - उन्हे नोगो - ण्यपद कहते है । जैसे- दरिद्र पुरुषको भूपाल, निर्बलको सहस्रमल्ल और आँखोके अन्धेको नयनसुख आदि कहना । किसी वस्तुके संयोगसे जो नाम होते है, उन्हें आदानपद कहते है । जैसे- दंडेवालेको दंडी, छत्रधारीको छत्री आदि कहना । प्रतिपक्ष के निमित्तसे होनेवाले नामो को प्रतिपक्षपद कहते है । जैसे - विधवा, रंडुआ आदि । किसी अंगविशेषके बढ़ जानेसे रखे गए नामोको उपचयपद कहते है । जैसे --मोटे पैरवालेको गजपद, लम्बे कानवालेको लम्ब कर्ण, इत्यादि कहना । किसी अंगविशेषके छिन्न हो जाने से कहे जानेवाले नामोको अपचयपद कहते है । जैसे -- कटे हुए कानवालेको छिन्नकर्ण और कटी हुई नाकवालेको नकटा कहना । प्रकृतमे कसायपाहुड और पेज्जदोसपाहुड ये नाम गौण्यपदनाम है, क्योकि, द्वेषरूप क्रोधादि कपायोंका और प्रयरूप लोभादि कपायोका, तथा उनके बन्ध, उदय, उदीरणा, सत्ता आदि भेदोका नाना अधिकारोसे इस ग्रन्थमे वर्णन किया गया है ।
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चूर्णिसू० – प्रमाण - उपक्रम सात प्रकारका है ॥४॥
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विशेषार्थ -- जिसके द्वारा पदार्थोंका निर्णय किया जावे, उसे प्रमाण कहते है नाम, स्थापना, संख्या, द्रव्य, क्षेत्र, काल और ज्ञान -प्रमाण के भेदसे प्रमाण उपक्रम सात भेद होते हैं' । 'प्रमाण' यह शब्द नामप्रमाण है । काष्ठ, शिला आदिमे विवक्षित वस्तु के न्यासको स्थापनाप्रमाण कहते है । अथवा मति, श्रुत आदि ज्ञानोका तदाकार या अतढ़ाकार रूपसे निक्षेप करना स्थापनाप्रमाण है । द्रव्य या गुणो की शत, सहस्र, लक्ष आदि संख्याको संख्याप्रमाण कहते है । पल, तुला, कुडव आदि को द्रव्यप्रमाण कहते है । अंगुल, हस्त, धनुप, योजन आदिको क्षेत्रप्रमाण कहते हैं । समय, आवली, मुहूर्त, पक्ष, मास आदिको कालप्रमाण कहते है । मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञानके भेदसे ज्ञानप्रमाण पाँच प्रकारका है । प्रकृतमे नाम, संख्या और श्रुतज्ञान, ये तीन प्रमाण ही विवक्षित है, क्योकि, यहाँ पर अन्य