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कसाय पाहुड सुत्त [१ पेजदोसविहत्ती ५. वत्तव्बदा तिविहा । ६. अत्थाहियारो पण्णारसविहो । गाहासदे असीदे अत्थे पण्णरसधा विहत्तम्मि ।
वोच्छामि सुत्तगाहा जयि गाहा जम्मि अथम्मि ॥२॥ की विवक्षा नहीं है । 'कसायपाहुड' इस नामकी अपेक्षा नामप्रमाण, अपने अवान्तर अधिकारोकी या ग्रन्थके पदोकी अपेक्षा संख्याप्रमाण और ज्ञानप्रवाद नामक पंचम पूर्वसे उत्पन्न होनेके कारण श्रुतज्ञानप्रमाणकी प्रकृतमे विवक्षा की गई है।
चूर्णिसू०-वक्तव्यता-उपक्रम तीन प्रकारका है ॥५॥
विशेषार्थ-स्वसमयवक्तव्यता, .परसमयवक्तव्यता और तदुभयवक्तव्यताके भेदसे वक्तव्यता-उपक्रमके तीन भेद होते है। जिसमे स्वसमयका-अपने सिद्धान्तका-विवेचन किया जाय, उसे स्वसमयवक्तव्यता कहते है । जिसमे परसमयका--अन्य मतमतान्तरोका-- प्रतिपादन किया जाय, उसे परसमयवक्तव्यता कहते है। जिसमे स्व और पर, इन दोनो प्रकारके समयोका (सिद्धान्तोका) निरूपण किया जाय, उसे तदुभयवक्तव्यता कहते हैं । इनमेंसे इस कसायपाहुडमे स्वसमयवक्तव्यताका ही ग्रहण है । क्योकि, इसमे केवल स्वसमयप्रतिपादित राग-द्वेप या कषायो का ही वर्णन किया गया है। -
चूर्णिसू०-अर्थाधिकार पन्द्रह प्रकारका है ॥६॥
विशेषार्थ-ज्ञानके पाँच अर्थाधिकार है। उनमेसे श्रुतज्ञानके दो अधिकार है-- अंगवाह्य और अंगप्रविष्ट । अंगवाह्यके सामयिक, चतुर्विंशतिस्तव आदि चौदह अर्थाधिकार हैं। अंगप्रविष्ट के आचारांग, सूत्रकृतांग आदि वारह अधिकार है । इनमेसे दृष्टिवाद नामक वारहवे अर्थाधिकारके भी परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका, ये पाँच अर्थाधिकार है । इनमेसे पूर्वगतके चौदह अर्थाधिकार है—१ उत्पादपूर्व, २ आग्रायणीपूर्व, ३ वीर्यानुप्रवाद, ४ अस्तिनास्तिप्रवाद, ५ ज्ञानप्रवाद, ६ सत्यप्रवाद, ७ आत्मप्रवाद, ८ कर्मप्र. वाद, ९ प्रत्याख्यानप्रवाद, १० विद्यानुवाद, ११ कल्याणवाद, १२ प्राणावायप्रवाद, १३ क्रियाविशाल और १४ लोकविन्दुसार। इनमेसे ज्ञानप्रवाद नामक पाँचवे अर्थाधिकारके वस्तु नामक बारह अर्थाधिकार है । जिनमेसे दसवे वस्तु अधिकारके अन्तर्गत तृतीय प्राभृतसे इस ग्रन्थकी उत्पत्ति हुई है। प्रकृत ग्रन्थके पन्द्रह अर्थाधिकार हैं, जो कि आगे कहे जानेवाले हैं, यह बतलानेके लिए इस चूर्णिसूत्रका अवतार हुआ है ।
___अव इन पन्द्रह अर्थाधिकारोके नामनिर्देशके साथ एक-एक अधिकारमे कितनी कितनी गाथाएँ निबद्ध है, इस वातको वतलाते हुए गुणधराचार्य प्रतिनासूत्र कहते हैं--
इस कसायपाहुडमें एक सौ अस्सी गाथासूत्र हैं। वे गाथासूत्र पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें विभक्त हैं। उनमेंसे जिस अर्थाधिकारमें जितनी जितनी सूत्रगाथाएँ प्रतिवद्ध हैं, उन्हें मैं ( गुणधराचार्य ) कहूँगा ॥२॥