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अधिकार-गाथा - निरूपण
पेज-दोसविहत्ती द्विदि अणुभागे च बंधगे चेव । तिण्दा गाहाओ पंचसु अत्थेसु णादव्वा ||३||
गा० ३ ]
विशेषार्थ - इस गाथाके द्वारा गुणधराचार्यने तीन प्रतिज्ञाओकी सूचना की है । जो कसायपाहुड गौतम गणवर ने सोलह हजार पदोके द्वारा कहा है, उसे मैं एक सौ अस्सी गाथाओके द्वारा ही कहता हूँ, यह प्रथम प्रतिज्ञा है । गौतम गणधर से रचित कसा पाहुड में अनेक अर्थाधिकार है, उन्हें मैं पन्द्रह अर्थाधिकारोसे ही निरूपण करता हूँ, यह द्वितीय प्रतिज्ञा है । तथा, एक एक अर्थाधिकारमे इतनी इतनी गाथाएँ है, यह तृतीय प्रतिज्ञा है । इसीके अनुसार आगे विभिन्न अधिकारोमे गाथाओकी संख्या बतलाई गई है ।
प्रेयोद्वेषविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, बन्धक अर्थात् बन्ध और संक्रम, इन पाँच अर्थाधिकारोंमें 'पेज्जं वा दोसं वा' इत्यादि प्रथम गाथा, 'पयडी मोहणिज्जा' इत्यादि द्वितीय गाथा, 'कदि पयडीओ बंधदि' इत्यादि तृतीय गाथा, ये तीन गाथाएँ निबद्ध हैं, ऐसा जानना चाहिए || ३ ||
विशेषार्थ — गाथा-पठित 'पेज्ज दोस' इस पदके निर्देशसे 'पेज्जं वा दोसं वा' इत्यादि प्रथम गाथाकी सूचना की गई है । 'विहत्ती द्विदि अणुभागे च' इस पदके द्वारा 'पडी य मोहणिज्जा' इत्यादि द्वितीय गाथा सूचित की गई है । 'बंधगे चेव' इस पद के द्वारा 'कदि पयडीओ बंधदि' इत्यादि तृतीय गाथाका निर्देश किया गया है । उक्त तीनो गाथाएँ जिन पॉच अर्थाधिकारोने निबद्ध हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं- १ प्रोद्वेपविभक्ति २ स्थितिविभक्ति ३ अनुभागविभक्ति ४ अकर्मबंधक (बंध ) और ५ कर्मबंधक ( संक्रम ) । इन पाँच अधिकारोमें प्रकृतिविभक्ति और प्रदेशविभक्तिको पृथक् नहीं कहा गया है, इसका कारण यह है कि ये दोनो विभक्तियाँ स्थितिविभक्ति और अनुभागविभक्ति, इन दोनोमे ही प्रविष्ट है, क्योकि, प्रकृति और प्रदेशविभक्तिके बिना स्थिति और अनुभागविभक्ति हो ही नही सकती है । इसी प्रकार क्षीणाक्षीणप्रदेश और स्थित्यन्तिकप्रदेश, ये दोनो अधिकार भी उनमे ही प्रविष्ट समझना चाहिए, क्योकि, स्थितिविभक्ति और अनुभागविभक्ति इन दोनोके विना क्षीणाक्षीणप्रदेश और स्थित्यन्तिक वन नहीं सकते हैं । अथवा, प्रोद्वेषविभक्तिमे प्रकृतिविभक्ति प्रविष्ट है, क्योकि, द्रव्य और भावस्वरूप प्र योद्वेपके अतिरिक्त प्रकृतिविभक्तिका अभाव है । प्रदेशविभक्ति, क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक, ये तीनो अधिकार प्रयोद्वेप, स्थिति और अनुभागविभक्तियोमे प्रविष्ट है, क्योकि, ये तीनो विभक्तियाँ प्रदेश -विभक्ति आदिकी अविनाभावी है । अथवा, 'अणुभागे चेदि' इस चरण मे पठित 'च' शब्दसे सूचित प्रदेशविभक्ति, स्थित्यन्तिक और क्षीणाक्षीण इन तीनोको मिलाकर एक चौथा अधिकार हो जाता है । बंध और संक्रम, इन दोनोको लेकरके पॉचवॉ अर्थाधिकार होता है । इन पॉच अर्थाधिकारोमे पूर्वोक्त तीन गाथाऍ निवद्ध हैं ।
विभक्ति नाम विभागका है । कर्मोंके स्वभाव - सम्वन्धी विभागको प्रकृतिविभक्ति कहते