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सूत्रस्थान अ० २...
(२७) • अनारके रससे खट्टी कीहुई और अतीस तथा सोंठसे सिद्ध की हुई पेया आमातिसारमें देना चाहिये । गोखरू और कटेलीसे सिद्ध कीहुई पेयामें फाणित मिलाकर मूत्रकृच्छकी शांतिके लिये देवे ॥ २० ॥
विडङ्गपिप्पलीमलाशयभिमरिचेनच ।
तक्रसिद्धायवागूःस्याक्रिमिनीससुवचिका.॥ २१॥ बायविडंग, पीपलामूल, मुहांजना, काली मिर्च, और तक इनसे सिद्ध कीहुई पेयाम सञ्चर नमक मिलाकर पीनेसे पेटके कृमि नष्ट होते हैं ॥ २१॥ . मृद्वीकाशारिवालाजपिप्पलीमधुनागरैः।
पिपासानाविषनीचसोमराजीविपाचिता ॥२२॥ मुनक्का, सारिवा, धानोंकी सील, पीपल, सोंठ इनसे सिद्ध कहुिई पेया शहद मिलाकर पीनेसे प्यासको शांत करती है। बावर्चासे सिद्ध कीहुई पेया विषविकारको शांत करती है ॥ २२ ॥
सिद्धावराहनियंहेयवागूqहणीमता ।
गवेधुकानांमृष्टानांकर्षणीयासमाक्षिका ॥ २३ ॥ ' वाराहीकन्दसे सिद्ध कीहुई पेया देहको पुष्ट करती है । गवेधुका (ऋषि योंका अन्न ) को भूनकर उसकी पेयाको ठंढाकर शहद मिलाकर पीनेसे स्थूलता नष्ट होती है ॥ २३ ॥
सर्पिष्मतीवहुतिलास्नेहनीलवणान्विता। . कुशामलकनियुहेश्यामाकानांविरूक्षणी ॥ २४ ॥ घृत और बहुतसे तिलोंकी सिद्ध कीहुई पेया लवण युक्त कर पीनेसे शरीर चिकना होता है । कुशा और आमलोंसे सिद्ध कीहुई श्यामाकके चावलोंकी पेया शरीरको रूखा करती है ॥ २४ ॥
दशमूलीशृताकासहिकाश्वासकफापहा ।
यमकेमदिरासिद्धापकाशयरुजापहा ॥ २५॥ दशमूलसे सिद्ध कीहुई यवागू-खांसी, हिचकी, श्वास, और कफको नाश करती है । घृत, तेल, मद्य इनके साथ सिद्ध कीहुई यवागू पक्कांशयके सब रोगोंको. नष्ट करती है ॥ २५ ॥