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विकृतिविज्ञान vegetations ) की एक रेखा बन जाती है जो हृत्कपाटों से इतनी दृढ़ता से चिपकी रहती है कि उसके टूट कर अन्तःशल्य बनने का बहुत ही कम अवसर आता है।
एक बार आमवात के कारण हृत्प्रदेश में कोई विक्षत बन जाने के बाद चाहे फिर रोग का आक्रमण धीमा पड़ जाय या पुनः पुनः बढ़े वह विक्षत बढ़ता चला जाता है। यदि रोग के लक्षण कुछ समय के लिए चले भी जाय तब भी पुनः उपसर्ग से आक्रान्त होने की पूरी पूरी संभावना रहती है। ___ जब कपाट के ऊपर आमवातज ग्रन्थियाँ बन गई और उनमें तन्तूत्कर्ष होने लगा तो उसका पहला परिणाम कपाट के सिकुड़ने में होता है जिसके कारण उसका मुख विवर टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। सिकुड़ने पर महाधमनी के कपाटों के दल (cusps ) महाधमनी प्राचीर की ओर खींचते हैं जिससे कपाट स्वकार्य करने के अयोग्य हो जाते हैं और महाधामनिक प्रतिप्रवाहण ( aortic regurgitation ) होने लगता है। कभी कभी परन्तु बहुत ही कम ऐसा देखा जाता है कि ये दल एक दूसरे से मिल जाते (fused ) हैं, उस दशा में महाधामनिक सन्निरोधोत्कर्ष (aortic stenosis) हो जाता है । द्विपत्रक कपाटों के दोनों ओर के पल्लव ( flaps ) एक दूसरे से द्विपत्रकीय विवर पर चिपक जाते हैं जिससे द्विपत्रकीय सन्निरोधोत्कर्ष (mitral stenosis) हो जाता है । बालकों में इस सन्निरोधोत्कर्ष का स्वरूप एक निवाप ( funnel ) जैसा होता है परन्तु वयस्कों में वह दरी सदृश (slit like ) होने से उसका नाम कुड्मछिद्र सन्निरोधोत्कर्ष ( button hole stenosis ) पड़ जाता है । यह आगे चलकर चूर्णायित हो जाती है। द्विपत्रकीय कपाट में लगी हृद्रजओं में तन्तूस्कर्ष होने से वे मोटी तथा छोटी हो जाने से इस कपाट में एक जीर्ण स्वरूप की व्याधि बन जाती है। द्विपत्रकीय सन्निरोधोत्कर्ष हो जाने के कारण वामालिन्द के रक्त को वामनिलय में जाने के लिए छिद्र अत्यधिक संकुचित हो जाने से बड़ी कठिनाई पड़ती है उसे दूर करने के लिए वामालिन्द बलपूर्वक रक्त को धकेलता है जिसके परिणामस्वरूप वामालिन्द की प्राचीर परमपुष्ट ( hypertrophic ) हो जाती है। जब इससे भी कार्य नहीं चलता तो परमपुष्टि का स्थान प्रकोष्ठ विस्फार ( dilatation of the chambers) ले लेता है। इस विस्फार के कारण रक्त का द्विपत्रकद्वार से जाना असम्भव हो जाता है और रक्त वामालिन्द से फुफ्फुसों की ओर उलटा जाने लगता है जिसके कारण शनैः शनैः जीर्ण निश्चेष्ट अधिरक्तता (chronic passive congestion) उत्पन्न हो जाती है। वामनिलय में रक्त की कमी होने से इसकी प्राचीर अपुष्ट हो जाती है। शेष तीनों प्रकोष्ठों की प्राचीरें अतिपुष्ट हो जाती हैं । वामालिन्द में रक्त के ठहरने से कन्दुकघनास्त्र ( ball-thrombi ) बनते हैं और जब वे फूटते हैं तो अनेक अंगों में ऋणास्रोत्पादन करते हैं। इन घनास्रों के निर्माण में अलिन्दीय पेशीतन्तुकम्प (auricular fibrillation ) विशेष भाग लेता है जो जीर्ण द्विपत्रकीय सन्निरोधोस्कर्ष में एक सर्व सामान्य उपद्रव देखा जाता है।
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