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विकृतिविज्ञान ____५. व्रणशोथ परिहृत् से हृत्पेशी के बाह्यभाग में भी चला जाता है जिसके कारण हृदय की क्रियाशक्ति कम हो जाती है आगे जब तन्स्वि का समङ्गीकरण होता है और अभिलाग उत्पन्न होते हैं तो कार्य मन्द हो जाता है।
६. जब सम्पूर्ण परिहृत् के दोनों पर्दे हृदय पर चिपक जाते हैं तो हृदय की कार्यशक्ति अत्यन्त घट जाने से उसके सब प्रकोष्ठों का परमचय (hypertrophy) होने लगता है। हृदय एकरूपतया ( uniformly ) सब ओर परमपुष्ट होकर बृहदाकृतिक बन जाता है जो अन्त में विस्फारित होता फेल होता और मृत्यु का कारण बनता है । इन अवसरों पर फुफ्फुसान्तरालपाक ( mediastinitis) भी हो जाता है जिसके कारण हृदय परिहत् तथा फुफ्फुसान्तरालीय ऊतियाँ जम कर तन्तूत्कर्ष के कारण एक ठोस पुञ्ज ( solid mass ) में परिणत हो जाती हैं।
७. परिहृत् के बाह्यधरातल पर प्रायः बहुत से दूधिया धब्बे (milk patches) पाये जाते हैं। धब्बों के स्थानों पर परिहत् मोटी, श्वेततर एवं पारान्ध हो जाती है । इन धब्बों का कारण परिहृत् का बाहर से पीडित होना है जिसके कारण उसके दोनों पर्दो में घर्षण के कारण वे उत्पन्न होते हैं।।
अभी ऊपर हमने साधारण परिहृत्पाक का वर्णन किया है। सपूय परिहृत्पाक (Suppurative Pericarditis) फुफ्फुसपाक, सपूय अस्थिमज्जापाक तथा पूयरक्तता में से किसी के भी कारण हो सकता है । इसमें परिहृत् के दोनों पर्दो के बीच में तन्त्वि तथा पूय भर जाता है । यह अवस्था अत्यन्त शोचनीय होती है।
___ आमवातजहृच्छोथ
(Rheumatic Carditis ) निर्धन अपुष्ट बालकों तथा तरुणों को जो आई जलवायु में रहते हैं आमवात का उपसर्ग लग जाता है। इस रोग के प्रारम्भ होने से पूर्व उत्तुण्डिका पाक (tonsillitis) का इतिहास शत-प्रतिशत मिलता है। आमवात के मुख्य लक्षण-ज्वर, आमवातज हृच्छोथ, सन्धिपाक, उपचर्म क्षेत्र में दृढ ग्रन्थिकाओं की उपस्थिति तथा ताण्डव ज्वर ( chorea) पाये जाते हैं। आजकल आमवात की तीव्रावस्था घटती जारही पर है अनुतीवावस्था ज्यों की त्यों है तथा इसमें हृदय की होने वाली क्षति किसी भी दशा में कम नहीं होती।
यह ज्ञान कि यह रोगी आमवात से व्यथित है जानने का साधन अस्काफग्रन्थि होती है। यह एक कणिकाभ ग्रन्थिका (granulomatous nodule ) होती है जो कपाट तथा प्राचीर दोनों की हृदन्तश्छद (endocardium) हृत्पेशी की संयोजक ऊतियों, फफ्फसच्छद तथा परिहृच्छद की लसीकलाओं, सन्धियों की परिसन्धायी ऊति तथा श्लेष्मधरकला कण्डराओं, उपचर्म आदि स्थानों में देखी जाती है। महाधमनी के कपाटों तथा अन्य धमनियों की ऊतियों और आवरणों में ये मिल सकती हैं। इससे यह ज्ञान और पुष्ट हो जाता है कि आमवात नामक व्याधि एक सार्वदैहिक
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