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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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उपसर्ग है जिसका विस्तार सम्पूर्ण देह की संयोजक ऊतियों में होता है पर चूंकि इसका अत्यधिक प्रभाव हृदय पर होता है इसलिए यहाँ पर ही इसका विशेष ध्यान दिया गया है । अण्वीक्ष में देखने पर अस्काफ ग्रन्थि में एक या दो अन्तश्छदीय प्रकार के विशाल कोशा होते हैं जिनके चारों ओर छोटे गोल कोशा तथा कुछ एक कोशीय प्रोतिकोशा (monocyte histiocytes) घिरे रहते हैं । परिणाह पर नवतन्तुकोशा बनने लगते हैं। इस ग्रन्थिका के केन्द्र में मृत पदार्थ का एक छोटा सा पुंज रहता है ।
स्पेशी तथा अन्य गम्भीर स्थलों पर ये ग्रन्थिकाएँ क्षुद्र धमनियों के साथ सम्बद्ध होती हैं और ये पारधमनिक ( pararterial ) कहलाती हैं। धमनियों की संयोजक ऊति में वे प्रोतिकोशाओं के रूप में मिलती हैं । हृद्रोहिणी ( coronary vessels ) में जो अन्तर्पेशी पट ( intermuscular septa ) में मिलती हैं वहां से वे पेशी में चली जाती हैं पेशीधातु को भक्षण करके वहाँ तन्तुमय व्रणवस्तु का निर्माण करती हैं ।
हृत्कपाटों में ये अस्काफ ग्रन्थियाँ कपाट पल्लवों ( valve flaps ) के हृदन्तश्छद में मिलती हैं । द्विपत्रक कपाट इसके लिए बहुत प्रसिद्ध है महाधमनिक कपाट दलों { cusps of the aortic valves ) में भी ये मिलती हैं हृदय के दक्षिण भागस्थ कपाटों में भी इनकी उपस्थिति मिलती तो है परन्तु बहुत कम । वामालिन्द के हृदन्तश्छद के नीचे, पचपार्श्व प्राचीर में त्रिकोणाकार क्षेत्र में, जिसका आधार भाग द्विपत्रक sure के पश्चदल से बनता है, ये ग्रन्थियाँ बहुत बड़ी संख्या में मिलती हैं । कपाटों के आधारों पर, कपाटवलयों (valve rings), हृदज्जुओं (chordae tendineae ) हृत्पेशी के अन्तर्पेशीय पट ( intramuscular septum of myocardium ) तथा उपपरिहृत्संयोजक ऊति में ये ग्रन्थिकाएँ बिखरी पड़ी होती हैं। हृदय का कोई भी ऐसा भाग बचा हुआ नहीं दिखाई देता जहाँ ये न हों इसी कारण शास्त्रकारों ने आमवात जनित हृदन्तश्छदीय पाक की अपेक्षा सम्पूर्ण हत्पाक का वर्णन करना अधिक युक्तियुक्त ठहराया है।
पार्टी का कार्य खुलना और बन्द होना है ताकि रक्तसंवहन का कार्य यथावत् चलता रहे। जब कपाों की अन्तश्छद के नीचे अस्काफ ग्रन्थियां उत्पन्न हो जाती हैं तो वहाँ की अन्तश्छद में सूजन आ जाती है वह ऊँची नीची हो जाती है । उसको जब लगातार खुलना और बन्द होना पड़ता है तो वह वहाँ से हट जाती तथा नष्ट हो जाती है । रक्तवहसंस्थान में यदि कहीं पर अन्तश्छद विदीर्ण हो जाती है तो वहां तत्काल रक्त बिम्बाणु ( blood platelets ) चिपकने लगते हैं और स्वल्प मात्रा में भी उत्पन्न हो जाती है इस प्रकार अस्काफ ग्रन्थि के ऊपर बिम्बाणु घनास्त्र की एक रेखा बन जाती है । इन बिम्बाणुओं पर आगे चलकर और बिम्बाणु चिपक चिपक कर इसका एक बड़ा रूप कर देते हैं । इन घनात्रों के आधार भाग में समङ्गीकरण क्रिया चलती रहती तथा तन्तूत्कर्ष बढ़ता रहता है, अनेक रक्त केशाल उनकी जड़ों को रक्तप्रदान करती हैं जिससे आपद्मवर्ण के ( pink ) क्षुद्र चर्मकीलवर्धनों ( warty
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