Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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४२ / गो. सा. जीवकाण्ड
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तीनों संख्याओं को जोड़ने से (३+५६० ) ६६ प्राप्त होते हैं । अतः 'घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत मानी राजकथालापी निद्रालु और स्नेहवान्' यह ६८ व आलाप है। द्वितीय उदाहरण इस प्रकार है---
'चक्षुइन्द्रिय के वशीभूत लोभी स्त्रीकथालापी निद्रालु स्नेहवान्' इस आलाप की संख्या ज्ञात करनी है । चक्षु इन्द्रिय पर संख्या चार, लोभकषाय पर संख्या पन्द्रह और स्त्रीकथा पर शून्य है । इन तीनों को जोड़ने से ( ४ / १५ + ० ) १६ प्राप्त होते हैं। अतः 'चक्षु इन्द्रिय के वशीभूत लोभी स्त्रीकालापी निद्रालु स्नेहवान्' यह १६ व आलाप है। इसी प्रकार अन्य भी नष्ट-उद्दिष्ट ज्ञात कर लेने चाहिए ।
द्वितीय प्रस्तार की अपेक्षा नष्ट व उद्दिष्ट ज्ञात करने का यंत्र
इगि बि-ति-च-य-च-उ-वारं ख- सोल-राग- ट्ठदाल-चउसट्ठि । संठविय पमदठाणे, गठ्ठद्दट्ठे च जारा तिट्ठा ||४४ ||
गाथार्थ - प्रथम पंक्ति में एक, दो, तीन व चार: द्वितीय पंक्ति में शून्य, चार, आठ, बारह् और तृतीय पंक्ति में शून्य, सालहू, बत्तीस, अड़तालीस व चौंसठ स्थापित करने ( लिखने) चाहिए । इन तीन स्थानों के द्वारा प्रमाद सम्बन्धी नष्ट व उद्दिष्ट जानने चाहिए || ४४ ॥ ॥
विशेषार्थ
द्वितीय प्रस्तार की अपेक्षा प्रभाव सम्बन्धी नष्ट व उद्दिष्ट ज्ञात करने का यंत्र -
विकथा प्रभाव
स्त्री
भोजन २ राष्ट्र ३
कषाय प्रमाद
क्रोध
मान ४ माया
इन्द्रिय प्रमाद स्पर्शन रसना १६ धारण ३२
१
の
J
गाथा ४४
म
राज ४
लोभ १२
चक्षु ४५
श्रोत्र ६४
जिन श्रों को या शून्य को परस्पर जोड़ने में विवक्षित संख्या प्राप्त हो, उन ग्रङ्कों को ज्ञात कर उन अकों पर या शुन्य पर प्रमाद का जो-जो भेद हो, वही प्रमाद का आलाप है । इतनी विशेषता है कि उसके आगे निद्रालु व स्नेहवान् भी लगा लेना चाहिए ।
इस यंत्र को स्पष्ट करते हुए नष्ट ज्ञात करने के लिए प्रथम उदाहरण देते हैं- प्रतीसवाँ आलाप ज्ञात करना है। बत्तीस, चार व दो को परस्पर (३२+४+२= ) जोड़ने से ३८ प्राप्त होते हैं । दो के प्र पर भोजनकथा, चार के श्र पर मानकषाय और बत्तीस पर घ्राणेन्द्रिय है | अतः अड़तीसवां बालाप - 'भोजनकथालापी मानी घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत निद्रालु व स्नेहवान्' होगा ।
नष्ट ज्ञान करने के लिए दूसरा उदाहरण इस प्रकार है-सोलहवाँ श्रालाप ज्ञात करना है । चार, बारह और शुन्य इन तीनों को जोड़ने से ( ४+१२+०) १६ होते हैं। चार के प्रङ्क पर राजकथा, बारह अङ्क पर लोभकषाय और शून्य पर स्पर्शनेन्द्रिय है | अतः १६वा आलाप-राजकथालागी लोभी स्पर्शनेन्द्रिय के वशीभूत निद्रालु व स्नेहवान् " है ।