Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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माषा ४३
गुणस्थान/४१
में श्रोत्रेन्द्रिय अन्तिम भेद है अत: अनङ्कित का अभाव है । इसीलिए गुणनफल १५ में से घटाने योग्य संख्या का भी प्रभाव होने से यहाँ घटाया नहीं है । इस प्रकार 'स्नेहवान्, निद्रालु श्रोत्रेन्द्रिय के वशी
भूत मायावी स्त्रीकथालापी' इस पालाप की संख्या १५ प्राप्त हुई अर्थात् उक्त भङ्ग १५वा है। उक्त । विधान से अन्य भी पालापों की संख्या प्राप्त करनी चाहिए।
प्रथम प्रस्सार की अपेक्षा नष्ट व उद्दिष्ट सम्बन्धी यंत्र का कथन इगि-बि-ति-घ-परण ख-परण वस-पपरपरसं ख-बीस-ताल-सट्ठी य । संठविय
पमदठाणे पछुद्दिट्ट च जारण तिट्ठाणे ॥४३॥ गायार्थ-प्रथम पंक्ति में एक, दो, तीन, चार व पाँच स्थापन करने (लिखने) चाहिए। उसके नीचे द्वितीय पंक्ति में शून्य, पाँच, दस व १५ स्थापन करने चाहिए। उसके नीचे तृतीय पंक्ति में शून्य । बीस, चालीस और साठ स्थापन करने चाहिए । इन स्थानों के द्वारा प्रमाद सम्बन्धी नष्ट व उद्दिष्ट । प्राप्त कर लेना चाहिए ।।४३॥
विशेषार्थ---
प्रथम प्रस्तार की अपेक्षा प्रमाद सम्बन्धी नष्ट-उद्दिष्ट निकालने का यंत्र
wom
। इन्द्रिय प्रमाद | स्पर्शन १ | रसना
२ . घारण
३ वक्षु ४ | थोत्र ५
। ऋषाय प्रमाद | क्रोध ० | मान
५ . माया १० लोभ १५
। विकथा प्रमाद | स्त्री ० | भोजन २० ! राष्ट्र ४० राज ६० ।
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जिन अङ्गों या शून्य को परस्पर जोड़ने से विवक्षित संख्या प्राप्त हो, उन अङ्कों को ज्ञात कर उन प्रङ्गों पर या शून्य पर प्रमाद का नो-जो भेद हो वही प्रमाद का पालाप है। इतनी विशेपता है कि उसके पागे निद्रालु व स्नेहवान् भी लगा लेना चाहिए 1 उपयुक्त यंत्र को दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट करते हैं-प्रथम उदाहरण मान लो छत्तीसवाँ पालाप ज्ञात करना है- बीस, पन्द्रह और एक को परस्पर जोड़ने से (२०+१५.१-३६ प्राप्त होता है। वीस पर भोजनकथा. पन्द्रह पर लोभकषाय और एक पर स्पर्शनेन्द्रिय अत: छत्तीसवाँ भङ्ग (आलाप) भोजन कथालापी लोभी स्पर्शनेन्द्रिय के वशीभूत निद्रालू, स्नेहवान् ।
द्वितीय उदाहरण—इकतालीसा पालाप ज्ञात करना है-चालीस, शून्य और एक को परस्पर जोड़ने से (४० 4.0+१-४१ संख्या प्राप्त होती है। चालीस पर राष्ट्रकथा, शून्य पर क्रोधकषाय और एक पर स्पर्शन इन्द्रिय । अतः इकतालीसवाँ पालाप राष्ट्रकथालापी क्रोधी स्पर्शन इन्द्रिय के वशीभूत निद्रालु स्नेहवान् । ये दोनों उदाहरण नष्ट को ज्ञात करने के लिए हैं। उद्दिष्ट निकालने हेतु प्रथम उदाहरण
प्राणेन्द्रिय के वशीभूत, मानी, राजकथालापी, निद्रालु और स्नेहवान् पालाप की संख्या ज्ञात करनी है। प्राणेन्द्रिय पर संख्या तीन, मानकषाय पर संख्या पाँच, राजकथा पर संख्या साठ; इन