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अशुद्ध
शुद्ध
३३ ८ मानकषायका उत्कृष्टकाल विशेष अधिक है मानकपायका उत्कृष्ट काल दुगुरणा है
३७
एक जीव लव्ध्यपर्याप्तक मनुष्य
श्रविभक्तिका
२४ एक अजीव
५१
६ सामायिक छेदोपस्थापना
५२
२० विभक्तिका
५२
२६ अनाहा
५३ १४ उत्कृष्ट काल
५३
१६ उत्कृष्टकाल
सभीका उत्कृप्ट काल
५४ १८ श्रदारिकमिश्र काययोगी, कामरणकाययोगी श्रदारिक मिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाय रोगी -
हारक -ग्राहारकमिश्र काययोगी, कार्मरणकाययोगी
५४ २२ और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य २४ छव्वीस, तेईस
५७
१८ पुद्गल परिवर्तन
૬ कभी कभी होने वाले भव्योके वन्चको
=
६८
८४
८४
१२ स्थितिवन्ध
TE
४ है । मोहनीय
६४ २२ संख्यात भाग
& E २६ क्षपण
१०३
११०
१११ ७
१० उत्कृष्ट काल और अन्तर्मुहूर्त
११ ग्रावलीके
22
एमा द्विदित्ति
३१ होता है ।। १४४
११२ २२ उत्कृष्ट ११६ १६ प्रकृतिवन्धका १४५ २४ क्रोधसज्वलन १४५ २५ है । लोभ
शुद्धि-पत्र
६ वह दो
१४७ १५४ ११ है । जघन्य
१५५ ६ उसने
१६७ २० अनेक विभक्ति
१६७ २१ अनेक विभक्तिजीव विभक्ति
१७७ ३ पदेसवित्तीय
१८० १ सादि, अनादि
२००
४ होते हैं
आहा
X
सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धिचतुष्कका जघन्य छब्बीस, चौवीस, तेईस
श्रर्धपुद्गलपरिवर्तन
भव्यके क्षयको प्राप्त होने वाले बन्दको स्थितिविभक्ति
है । अनुत्कृष्टका अन्तर नही है । मोहनीय
संख्यात बहु भाग
X
उत्कृष्टकाल प्रन्तर्मुहूर्त
प्रगुल के
एग हिदित्ति । वरि चरिमुव्वेल्लए कंडय चरिमफालीए ऊणा ।
प्रमाण वाला होता है । किन्तु चरमउद्वे लनाकाडकको अतिम फालीसे न्यून है, इतना विशेष जानना चाहिये || १४४ ||
अनुत्कृष्ट
प्रकृतिका
मायासज्वलन
है । मायासज्वलनके
स्थितिसत्कर्मस्थानसे लोभ
संज्वलन के स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । लोभ
दो
है । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले जीवोने सर्व लोक स्पृष्ट किया है । जघन्य
उतने
अनेक उत्कृष्ट विभक्ति
अनेक उत्कृष्ट विभक्तिजीव उत्कृष्ट विभक्तिपदेस वित्ती
श्रनादि
नही होते हैं