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प्रियराणातव एसजीकरण
असगरपरिणामो गलिमकवालमठेलालहोरणाणतगेज्ञावलिसद्दाकरितमालालरियेगा क
मचारविणिचारियलिंगो मापनोमदमतोलालायतों वडविता कतिपसादियाममिवादितिदक्षेसरस्य वज्ञापनपत्रसुखतस्यान पावतानथारथपा उमर दहातमिहमले चटिटसोहम्प्रासासिग्ही सबछकिया। यन्त्रखण सहछविचामरसम्म सक्छविगयणाणार जाणं सबछविधावतविमाणं सहविपसरिखमखावा समविजयईडहिराव सबलविसरगवरसाल सबलदि महाश्यमाल तत्पववियंपिवादवलादी सादरसुख, रपायामलग। चगवतपुरमच दाव जिण
सवहारसुवहति तरुघलपाणि गाववाणिसा वनडरसर्वति। रामदियहिमसहि त्रासहितासहि हसहिमोरहि करहिंकारहि सहेटिंकरदर्डिी २४
जो झरते हुए गण्डस्थल के मदजल से गीला था, जो रुनझुन बजती हुई घण्टियों से ध्वनित था, जो वरत्रारूपी मिठास थी। सर्वत्र उठी हुई मालाएँ थीं। तरुओं से पल्लवित और कल्पवृक्षों से व्याप्त आकाश सर्वत्र सोह नक्षत्रमाला से स्फुरित शरीरवाला था, जो कानों के चामरों से भ्रमरावलि को उड़ा रहा था, जो मन्दरांचल रहा था। के समान था, आ पहुँचा। लीलाओं से पूर्ण बहुविध दाँतोंवाला, उसके प्रत्येक दाँत पर, अपनी कान्ति से घत्ता-धरती, जिनेन्द्र भगवान् के जन्म पर हर्ष धारण करती हुई अपना नव तृणांकुरों का ऊँचा रोमांच आकाश के सूर्यों को आलोकित करनेवाले सरोवर के कमल थे। पत्र-पत्र पर स्थूल स्तनोंवाली देवनारियाँ दिखाती है, और अनेक रसभावों से युक्त, वृक्षों के चलदलवाले हाथोंवाली वह भाव से नृत्य करती है ॥९॥ नृत्य कर रही थीं। इस प्रकार अलंघनीय उस ऐरावत को देखकर सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र उस पर शीघ्र चढ़ गया। सर्वत्र ध्वज छत्रों से सुन्दर था, सर्वत्र चमरों से आच्छादित था। सर्वत्र नाना यान जा रहे थे, सर्वत्र विमान
१० दौड़ रहे थे, सर्वत्र मण्डप फैले हुए थे, सर्वत्र जयदुन्दुभि का शब्द हो रहा था, सर्वत्र स्वर और गीतों की महिषों, मेषों, अश्वों, उलूकों, हंसों, मोरों, कुररों, कीरों, शरभों, करभों,
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