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वासरावदेवादिवाणायजकिंदणापालिजमाणायजरुणमाणिकवहीकयातामासहिलिहि होणसंबछरोजाभाधिताउियरलुअबाल वहश्याइतपकिरणश्यरतिमरुदविटेवे रणगाव । देणवरधिटरनिगतिमासमिवश्परकेकसणाअमियरवारिपाडुनवमिदिणे उत्तरत्रा। साढारिकवरजोटीमिवसवकसायर ब्रितियसालावणादिंझुणि मरुदेविणदणुसंजणि डाउतनदिततवणीयविस्खदिसायवालबिनविषासुरणीयसिदिनदण्कालिनधर पाएणिर्दिण्जावसहाउसिहयदाणअनुमहाकश्कयकहर पंअमथलवेदिजिनिम्मविन गुणगापुडेणिपतविर जगणरएपडतरणसहिना नामोच्चरिसहरादिलाता जपातमणि सायालायायायुकित्तिवनिवाडमयमलपहुवलय उज्जजिवाहिवचनुाणाण | तिषणापिएपणिन्ने लकपवंजणववियरशिनिपाणाडेहददाजानन्दस्यासणकयो कापस ससहावणाया घटाटकाएसजाया दहियाणणासियादिणाया जाश्सवासेसाहनिमाया वितरण वावासबएवं गजातपडहाविपरसुं संखखासावणसवणेससिपमाखादामुअणेसं गाठणाणणनि। प्यावाहमालायहूयंदेव उवोचितधामापदाचलिसकोसकोदो हादीपरावयणामो वेनति
उस दिन राक्षसेन्द्रों और नागेन्द्रों द्वारा मान्य इन्द्रराज की आज्ञा से कुबेर ने रत्नों की वर्षा की तब तक कि सका तो इसलिए मानो धर्म ने पुरुष-रूप ग्रहण कर लिया हो। जब वर्ष में ३ माह कम थे, (अर्थात् ९ माह)।
धत्ता-जनों के तम का नाशक, लोक को प्रकाशित करनेवाला, कीर्तिरूपी बेल का अंकुर, मृगलांछन घत्ता-उदर के भीतर स्वामी बिना किसी बाधा के बढ़ने लगे। उनके शरीर की किरणें मरुदेवी की देह से रहित कुमुदों के लिए इष्ट जिनराजरूपी चन्द्र उदित हुआ है॥८॥ पर इस प्रकार प्रसरित होने लगीं, मानो सूर्य की किरणें नवमेघ पर प्रसरित हो रही हों ।।७।।
निश्चय ही अपने तीन ज्ञानों, लक्षणों (शंख, कुलिश आदि) तथा व्यंजनों (तिलक, मसा आदि) से युक्त चैत्र माह के कृष्णपक्ष में रविवार को स्पष्ट नवमी के दिन, उत्तराषाढ़ नक्षत्र में बहुमुखद ब्रह्मयोग में शरीर के साथ जिननाथ के जन्म लेने पर इन्द्र का आहतदर्प आसन काँप उठा। कल्पवासियों ने अपने स्वभाव देवों के आलापों में ध्वनित (प्रशंसित) पुत्र को मरुदेवी ने जन्म दिया। तपाये हुए सोने के समान वर्णवाले से जान लिया। घण्टों की टंकार-ध्वनि होने लगी। ज्योतिषदेवों के भवनों में दिग्गजों को नष्ट कर देनेवाले वह ऐसे लगते थे मानो पूर्वदिशा में बालरवि हो, मानो अरणियों (लकड़ी विशेष, जिसके घर्षण से अग्नि निनाद हुए, व्यन्तरदेवों के आवासों और शिविरों में पटह गरज उठे। भवनवासी देवों के विमानों में शंखध्वनि पैदा होती हैं) से ज्वाला निकल रही हो, मानो धरती ने अपनी निधि दिखायी हो, मानो सिद्ध श्रेणी ने जीव होने लगी, विश्व में क्षोभ फैल गया। ज्ञान से इन्द्र ने जान लिया कि भूलोक में निष्पाप देव का जन्म हुआ का स्वभाव दिखाया हो, मानो महाकवि द्वारा रचित कथा ने अपना अर्थ दिखाया हो, मानो वह अमृत-कणों है। उसके चित्त में धर्मानन्द बढ़ गया। इन्द्र चला, सूर्य चला और चन्द्र चला। तब ऐरावत नाम का मतवाला से निर्मित हो, मानों गुणगण को इकट्ठा करके रख दिया गया हो, जब नरक में गिरता हुआ विश्व नहीं सध हाथी, जो बैंक्रियिक शरीर के परिमाणवाला था,
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