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इतिलाय सिशिदामेणविजादिपुरिस हरि पावश्पविहररडे जंदिनपश्मयला तंदो सम्मुनजणमणदणु जंप्रविपला ” खरकिरण तमोईधार विणा सयल सहयणपलिण वर्णदिवसय साथ लें हो हा सुख पिदिं ऊंचेहिंविसरअहिरायविदि क मलायर सायेर हिदिहिंदि गुणवाहि अर्हति दिवि सिंहासणेणपंचमि। जगणं पविसदसइम दिहहिति यसपाहिं घुरेहिं सेव वनदेव दिविसद रिद्धि र पोजिण संपत्त्रिफल मिटुदश्ड आसे कम्पमत्वा। सिविण्यफला ॐ पिरुणिरवज्ञ कदंमिनरकमियलुभ जगलग्रणवस धम्मारा दो सशदपुत्र
लक्ष्मी देखने से त्रिभुवन की लक्ष्मी धारण करेगा, पुष्पमाला देखने से उसे पुरुषश्रेष्ठ समझो, और जो तुमने चन्द्रमा देखा है उससे वह इन्द्र के द्वारा की गयी अर्चा प्राप्त करेगा, जो तुमने सूर्य देखा है उससे तुम्हारा पुत्र जन-मनों के लिए सुन्दर, मोहान्धकार का विनाश करनेवाला और भव्यजनरूपी कमलवन के लिए दिवाकर होगा; मीनयुग्म देखने से सुखनिधि होगा, और घड़ों को देखने से देवता उसका अभिषेक करेंगे। दोनों समुद्र और सरोवर देखने से वह त्रिभुवन में गुणवान् और गम्भीर होगा सिंहासन देखने से दर्शन से विशुद्धमति
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ना तिराज गइ मरु फलपू
वह पाँचवीं गति (मोक्ष) प्राप्त करेगा। देवों और नागों के घरों को देखने से देव और नाग उसकी सेवा करेंगे। रत्नों का समूह देखने से वह जिन सम्पत्ति का फल प्राप्त करेगा, और (तप की आग में कर्ममल को जलायेगा। छत्ता - आज मैं निर्दोष कर्मफल कहता हूँ, कुछ की गुह्य नहीं रखता। तुम्हारा पुत्र जग का आधारस्तम्भ और धर्म का आरम्भ करनेवाला होगा ॥ ६ ॥
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