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अाज्ञातातम्मिपन्नम्मितश्यमिमकालमिणकन्नसोहतगणंतरालम्मि कम्यहमयपयणियविदार मि ससिर्विवरविविधधध्यारमिशवसपिणासपिणासंपवेसम्मिापसारपसारसहारियर
गासम्मिामायामहामोवंधण लुचविसारा पतराईसमाश्संचविसोलहवितवलावणा उपहावेविगणामियतिलयरणामसमझेवि इंदियानिदिय णिछिपाईजिविसतासजा लमिदिममाणाउनुजेवि जर्मतराबद्दमुद्धिन पदावण दिमदारनाहारसियवसवण्या साहमासम्मिकिमिवायमिनासंपन्नएउतरामा
दरिकमि सबलसिहाविमाणानुसारइपरमेश यना
ऐजणणिगवमिसबसण्यामशमिरुलंद मन सयवक्षिणापनपतामडिवधायसुरा। गज्ञवासंणमसेविसंगयारामदेवीपसंसेवित २३
सरपंसिय
तैंतीस सागर आयु भोगने के लिए जन्मान्तर में बाँधे गये पुण्य के प्रभाव से, हिम-हार और नीहार के समान तब वहीं, उस काल के आने पर कि जब आकाश का अन्तराल नक्षत्रों से शोभित था, कल्पवृक्षों के सफेद बैल के रूप में आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की द्वितीया को उत्तराषाढ़ नक्षत्र में, सर्वार्थसिद्धि विमान से नष्ट हो जाने से जनता में असन्तोष बढ़ रहा था, सूर्य और चन्द्र के बिम्ब अन्धकार नष्ट करने लगे थे, अवतरित होकर परमेश्वर जिन ने माता के गर्भ में उसी प्रकार प्रवेश किया जिसप्रकार सुन्दर चन्द्रबिम्ब शरद् अवसर्पिणीकाल रूपी नागिन प्रवेश कर चुकी थी, मनुष्य के भोगों और प्रचुर सुखों को काल अपने ग्रास मेघों के बीच तथा जलबिन्दु कमलिनी पत्र के बीच प्रवेश करता है । देवता आये और गर्भवास को नमस्कार में भर चुका था, तब माया-महामोह के बन्धन तोड़ने, श्रेष्ठ प्रचुर पुण्यों का संचय करने, सोलह तप-भावनाओं तथा राजदेवी की प्रशंसा करके चले गये। की प्रभावना, विश्व के द्वारा नमित तीर्थकर नाम के समार्जन, निघृण और निन्दनीय इन्द्रियों को नष्ट करने,
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