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अंगसुत्ताणि
आयारो.सूयगडो. ठाणं . समवाओ
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चल
वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी
संपादक मुनि नथमल
For Private & Personal use only
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भगवान् महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में
निग्गंथं पावयणं
अंग सुत्ताणि
१
आयारो • सूयगडो • ठाणं • समवाओ
वाचना प्रमुख
आचार्य तुलसी
संपादक मुनि नथमल
प्रकाशक
जैन विश्व भारती लाडनूं ( राजस्थान )
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प्रबंध सम्पादक: श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती)
आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल)
प्रकाशन तिथि : विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस)
पृष्ठांक । ११००
मूल्य : ८५/
मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६
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ANGA SUTTĀNI
AYĀRO SŪYAGADO. THANAM •
SAMAWAO.
(Original text Critically edited)
Vāćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI
EDITOR MUNI NATHAMAL
Publisher
JAIN VISWA BHARATI
LADNUN (Rajasthan)
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Managing Editor Shreechand Rampuria. Director : Agama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN
Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal)
V.S. 2031 Kārtic Krishnā 13 2500th Nirvaņa Day
Pages 1100
Rs. 85
Printers : S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6
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पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्लो, आणा पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे
विलोडियं
लद्धं सुल
आगमबुद्धमेव वणीयमच्छं ।
सज्झाय सज्झाण रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स
पवरासयस्स,
भिक्खुस्स तस्स पणिहाण पुव्वं ॥
समर्पण
धारा,
पवाहिया जेण सुपरस गणे समत्थे मम माणसे वि। जो हेडभूओ कालुस्स
प्पणिहाणपुव्वं ॥
स्स पवायणस्स, व्यणिहाणपुध्वं ॥
तस्स
जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम प्रधान
था ।
सत्य योग में प्रवर चित्त था,
उसी भिक्षु को विमल भाव से ।
जिसने
आगम- दोहन कर कर, प्रवर प्रचुर नवनीत श्रुत - सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से ।
पाया
जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत में, सम्पादन कालुगणी को विमल भाव से ।
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अन्तस्तोष
अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम- निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का
अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुधमी क्षण उसमें लगे संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है
1
संपादक :
पाठ-संशोधन :
सहयोगी
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मुनि नथमल
मुनि दुलहराज
मुनि सुदर्शन
संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने ।
आचार्य तुलसी
मुनि मधुकर
मुनि हीरालाल
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१. प्रकाशकीय
२. सम्पादकीय (हिन्दी)
३. भूमिका (हिन्दी)
४. सम्पादकीय (अंग्रेजी )
५. भूमिका (अंग्रेजी)
६. विषयानुक्रम
७. संकेत निर्देशिका
८. आयारो
६. आधारचूला १०. सूयगड ११. ठाणं
१२. समवाओ
ग्रन्थानुक्रम
परिशिष्ट
१. संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल
२. आलोच्य पाठ तथा वाचनान्तर ३. शुद्धिपत्रम्
१
८१
२५१
४८७
८२५
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प्रकाशकीय
सन १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुँचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है। 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे। सुझाव पर विचार हुआ। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गईं और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से श्री गोपीचन्दजी चोपड़ा और में तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादलालजी आच्छा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दुगडजी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' को प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया। 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया। सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े।
आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे। आचार्यश्री ने बीच में पर थामे और मुझ से बोले “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कसा सुन्दर शान्त वातावरण है।"
जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे। प्रतिक्रमण के बाद का समय था। पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिखर पर कांच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे। मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है. तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा। उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और
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मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडन (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है।
आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया। कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हुए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ । आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही
१. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का
प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम,
सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण ।
महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में-(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहज्भयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर बे प्रकाशित नहीं हो पाए।
दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया।
तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ।
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चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ।
पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख.१) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)।
उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा। अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गूंज रहे हैं"धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा।
कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया।
आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसूत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है :
प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय-ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है।
तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं।
इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रंथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है।
ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा।
केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है, जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है।
दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन मूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है।
'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है।
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मुद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकत्ता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है।
इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है।
'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा।
इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है।
सन् १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चूना गया । तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे । दिल्ली में मुद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हआ तभी यह कार्य द्रतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं।
ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है । मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सुन्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है।
४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली
श्रीचन्द रामपुरिया
निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन
जैन विश्व-भार ती
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सम्पादकीय
आयारो
आचारांग का जो पाठ हमने स्वीकार किया है, उसका आधार कोई एक आदर्श नहीं है। हमने पाठ का स्वीकार प्रयुक्त आदर्शों, चूर्णि और वृत्ति के संदर्भ में समीक्षापूर्वक किया है। 'आयारो' के प्रथम अध्ययन के दूसरे उद्देशक के तीन सूत्र (२७-२६) शेष पांच उद्देशकों में भी प्राप्त होते हैं। पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों तथा आचारांग वृत्ति में यह प्राप्त नहीं है। आचारांग चणि में 'लज्जमाणा पुढो पास' (आयारो, १।४०) सूत्र से लेकर 'अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए' (आयारो, ११५३) तक ध्रुवकण्डिका (एक समान पाठ) मानी गई है।
चूणि में प्राप्त संकेत के आधार पर हमने द्वितीय उद्देशक में प्राप्त तीन सूत्र (२७-२६) शेष पांचों उद्देशकों में स्वीकृत किए हैं।
आठवें अध्ययन के दूसरे उद्देशक (सू० २१) की चूणि' में 'कुंभारायतणंसि वा' के स्थान पर अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जैसे-'उवट्टणगिहे वा, गामदेउलिए वा, कम्मगारसालाए वा, तंतुवायगसालाए वा, लोहगारसालाए वा ।' चूर्णिकार ने आगे लिखा है-'जचियाओ साला सव्वाओ भाणियव्वाओ।'
यहां प्रतीत होता है कि 'कुंभारायतणंसि वा' शब्द अन्य अनेक शाला या गृहवाची शब्दों से यक्त था, किन्तु लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द छूट गए। चूणि के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहीं था इसलिए उसे मूलपाठ में स्वीकृत नहीं किया गया ।
हमने संक्षिप्त पाठ की पूर्ति भी की है। पाठ-संक्षेप की परम्परा श्रुत को कंठाग्र करने की पद्धति और लिपि की सुविधा के कारण प्रचलित हुई। पं० बेचरदास दोशी ने ८-१२-६६ को आचार्यश्री तुलसी के पास एक लेख भेजा था। उसमें इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने
१. देखें-आयारो, पृ० ७ पादटिप्पण ७; पु०६ पादटिप्पण ३०;
पृ० १० पादटिप्पण १; पृ०११ पादटिप्पण ६; पृ० १२ पादटिप्पण १; पृ० १३ पादटिप्पण ५;
..१४ पादटिप्पण ८, पृ० १५ पादटिप्पण १; २. भाचारांग चूणि, पृ० २६०-२६१ । ३. वही, पृ० २६१।
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लिखा है-'प्राचीन जैन-श्रमण लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति को आरंभ-रूप समझते थे, फिर भी शास्त्रों की रक्षा के लिए उन्होंने लिखने-लिखाने के आरंभ-रूप मार्ग को भी अपवाद समझकर स्वीकार किया। पर जितना कम लिखना पड़े, उतना अच्छा, ऐसा समझकर उन्होंने शास्त्र की रक्षा के लिए ही, हो सके वहां तक कम आरंभ करना पड़े, ऐसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया। इस रास्ते की शोध से 'वण्णओ' और 'जाव' दो नए शब्द उनको मिले । इन दो शब्दों की सहायता से हजारों श्लोक व सैकड़ों वाक्य कम लिखने से उनका आरंभ कम हो गया और शास्त्र के आशय में भी किसी प्रकार की न्यूनता नहीं हुई।'
श्रुत को कंठस्थ करने की पद्धति, लिपि की सुविधा और कम लिखने की मनोवृत्ति-पाठसक्षेप के ये तीनों कारण संभाव्य हैं। इनसे भले ही आशय की न्यूनता न हुई हो, किन्तु ग्रंथ-सौन्दर्य अवश्य न्यून हुआ है। पाठक की कठिनाइयां भी बढ़ी हैं। जिन मुनियों के समग्र आगम-साहित्य कण्ठस्थ था, वे 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ का अनुसंधान कर पूर्वापर की सम्बन्ध-योजना कर सकते हैं। किन्तु प्रतिलिपियों के आधार पर पढ़ने वाला मुनि-वर्ग ऐसा नहीं कर सकता। उसके लिए 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ बहुत लाभदायी सिद्ध नहीं हुआ है। इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। इसी कठिनाई तथा ग्रन्थ-सौंदर्य की दृष्टि से हमारे वाचना-प्रमुख आचार्यश्री तुलसी ने चाहा कि संक्षेपीकृत पाठ की पुनः पूर्ति की जाए। हमने अधिकांश स्थलों में संक्षिप्त पाठ की पूर्ति की है। उसकी सूचना के लिए बिन्दु-संकेत दिया गया है । आयारो तथा आयार-चूला के पूर्ति-स्थलों के निर्देश की सूचना प्रथम परिशिष्ट में दी गई है।
पं० बेचरदास दोशी के अनुसार पाठ संक्षेपीकरण देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने किया था। उन्होंने लिखा है-'देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने आगमों को ग्रंथ-बद्ध करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखीं । जहां-जहां शास्त्रों में समान पाठ आए वहां-वहां उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेष ग्रन्थ अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे-'जहा उववाइए' 'जहा पण्णवणाए' इत्यादि । एक ही ग्रन्थ में वही बात बार-बार आने पर उसे पुनः पुनः न लिखते हुए 'जाव' शब्द का प्रयोग करते हए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया। जैसे--'णागकूमारा जाव विहरन्ति', 'तेण कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि।
इस परम्परा का प्रारंभ भले ही देवद्धिगणि ने किया हो, किन्तु इसका विकास उनके उत्तरवर्ती काल में भी होता रहा है। वर्तमान में उपलब्ध आदर्शों में संक्षेपीकृत पाठ की एकरूपता नहीं है। एक आदर्श में कोई सूत्र संक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है। टीकाकारों ने स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र में "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई वा" तथा 'अयबंधणाणि वा जाव अण्णयराइं वा'-ये दो पाठांश मिलते हैं। वत्तिकार के सामने जो मुख्य आदर्श थे, उनमें ये दोनों संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदों में ये
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ०८१।
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समग्र रूप में भी प्राप्त थे । वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता अनेक स्थलों में अपनी सुविधानुसार पूर्वागत पाठ को दूसरी बार नहीं लिखते और उत्तरवर्ती आदर्शों में उनका. अनुसरण होता चला जाता । उदाहरण स्वरूप-रायपसेणइय सूत्र में 'सव्विड्ढीय अकालपरिहीणा' (स्वीकृत पाठ-हीणं) ऐसा पाठ मिलता है। इस पाठ में अपूर्णता-सूचक संकेत भी नहीं है। 'सव्विड्डीए'
और 'अकालपरिहीणं' के मध्यवर्ती पाठ की पूर्ति करने पर समग्र पाठ इस प्रकार बनता है'सव्विड्डीए सव्वजुत्तीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूइए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकरेणं सव्वदिव्वतुडियसद्दसन्निवाएणं महया इड्ढीए महया जुइए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमयपडुप्पवाइयरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरिखरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुभि-निग्घोस-नाइयरवेणं णियग परिवाल सद्धि संपरिवुडा साइं-साइं जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहीणं ।'
आयार-चूला ५।१४ में ‘महद्धणमोल्लाई' तथा १५१६ में 'महव्वए' के आगे भी अपूर्णता सूचक संकेत नहीं हैं।
प्रमादवश कहीं-कहीं अपूर्णता सूचक 'जाव' का विपर्यय भी हुआ है, यथाफासूयं.........."लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा । (आयारचूला १११०१) बहकंटगं............""लाभे संते जाव णो.......... । (आयारचूला १११३४)
समर्पण-सूत्र
संक्षिप्त पद्धति के अनुसार आयारचूला में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैंजाव–अकिरियं जाव अभूतोवघाइयं (४।११) तहेव - अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य
(७।१६-२०)
अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव (७।३४,३५) एवं-एवं णायव्वं जहा सद्दपडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रुवपडियाए वि (१२।२-१७) जहा--पाणाई जहा पिंडेसणाए (५।५) संख्या--थूणसि वा (४) (७।११)
असणं वा (४) (१।१२) से भिक्खू वा २।
१. औपपातिक वृत्ति, पन १७७ :
पुस्तकान्तरे समग्रमिदं सूत्रद्वयमस्त्येवेति । २. देखे-पं० बेचरदास दोशी द्वारा संपादित 'रायपसेणइयं,
पृष्ठ ७३ ।
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तं चेव-तं चेव भाणियव्वं णवरं च उत्याए णाणतं (१३१४६-१५४)
सेसं तं चेव एवं ससरक्खे (१।६५) हेट्ठिमो--एवं हेट्ठिमो गमो पायादि भाणियव्वो (१३।४०-७५) आचारांग का वाचना-भेद
समवायांग में आचारांग की अनेक वाचनाओं का उल्लेख मिलता है। वाचना का अर्थ है-अध्यापन या सूत्र और अर्थ का प्रदान । संक्षिप्त वाचना-भेद अनेक मिलते हैं, किन्तु वर्तमान में मुख्य दो वाचनाएं प्राप्त हैं-एक प्रस्तुत-वाचना और दूसरी नागार्जुनीय-वाचना। चूणि और टीका में नागार्जुनीय वाचना-सम्मत्त पाठों का उल्लेख किया गया है। देखें-'आयारो' पृष्ठ २० पादटिप्पण संख्यांक १०, पृष्ठ २१ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३० पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ३१ पादटिप्पण संख्यांक ७, पृष्ठ ३५ पादटिप्पण संख्यांक ५, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ४० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५० पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ५२ पादटिप्पण संख्यांक ६ और ८, पृष्ठ ५४ पादटिप्पण संख्यांक ६, पृष्ठ ५५ पादटिप्पण संख्यांक ८, पृष्ठ ६६ पादटिप्पण संख्यांक २, पृष्ठ ७३ पादटिप्पण संख्यांक १, पृष्ठ ७५ पादटिप्पण संख्यांक ४ । आचारांग के उद्धृत पाठ--
उत्तरवर्ती अनेक ग्रंथों में आचारांग के पाठ उद्धृत किए गए हैं। अपराजितसूरि ने मूलाराधना की टीका में आचारांग के कुछ पाठ उद्धृत किए हैं।
शोध करने पर ऐसा ज्ञात हुआ है कि कई पाठ आचारांग में नहीं हैं, कई पाठ शब्द-भेद से और कई पाठ आंशिक रूप में मिलते हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से दोनों के पाठ नीचे दिए जा रहे हैं
आचारांग
मूलाराधना तथा चोक्तमाचाराङ्ग:सुदं मे आउस्सन्तो भगवदा एव मक्खादं । इह खलु संयमाभिमुखा दुविहा इत्थी पुरिसा जादा भवंति । तं जहा-सव्व समण्णा गदे णो सव्व समागदे चेव । तत्थ जे सव्व समण्णागदे थिराग हत्थ पाणि पादे सव्विदिय समण्णागदे तस्स णं णो कप्पदि एगमवि वत्थं धारिउं
१. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १३६ । २. मूलाराधना ४।४२१, टीका पत्र ६१२।
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एवं परिहि एवं अण्णत्थ एगेण पडिलेहगेण ।
अह पुण एवं जाणिज्जा-उपातिकते हेमंते गिम्हे सुपडिवण्णे से अथ पडिजुण्णमुवधि पदिटावेज्ज।
-४१४२१ टीका, पत्र ६११
अह पुण एवं जाणेज्जा--उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापरिजुन्नाई वत्थाइ परिढुवेज्जा।
आयारी ८।५०, ६६, ७२ ।
पडिलेहणं, पादपंछणं, उग्गहं कडासणं अण्णदरं उवधिं पावेज्ज ।
--४।४२१ टीका, पत्र ६११
वत्थं पडिग्गहं कंबल, पायपुंछणं उग्गह च कडासणं एतेसु चेव जाणेज्जा।
आयारो २।११२ ।
तथावत्थेसणाए-वृत्तं तत्थ एसे हिरिमणे सेगं वत्थं वा धारेज्ज पडिलेहणगं विदियं, तत्थ एसे जुग्गिदे देसे दुवे वत्थाणि धारिज्ज पडिलेहणगं तदियं तत्थ एसे परिसाइं अणधिहासस्स तओ वत्थाणि धारेज्ज पडिलेहणं चउत्थं ।
--४।४२१ टीका, पत्र ६११
जे णिग्गंथे तरुणे जगवं बलवं अप्पायके थिरसंघयणे से एगं वत्थं धारेज्जा णो बितियं ।
आयारचूला ५२।
से भिक्खू वा भिवखुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए।
तथा पाएसणाए कथितं - हिरिमणे वा जुग्गिदे चाविअण्णगे वा तस्स ण कप्पदि वत्थादिकं पुनश्चोक्तं तत्रैव-पादचरित्तए। आलावू पत्तं वा दारुग पत्तं वा मट्रिगपत्तं वा, अप्पाणं अप्पबीजं अप्पसरिदं तथा अप्पकारं पत्तलाभे सति पडिग्गहिस्सामि ।
४।४२१ टीका, पत्र ६११
तं जहा-अलाउपायं वा दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पगारं पायं।-- (आयारचूला ६।१) फासुथं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।
आयारचला ६.२२
भावनायां चोक्तंचरिमं चीवरधारी तेण परम चेलके तु जिणे।
४।४२१ टीका, पत्र ६११
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प्रति परिचय (अ.) आचारांग (दोनों श्रुतस्कंध) यह प्रति जैन-भवन, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-७ की श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र १८५ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १-२७ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४०-४५ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर वत्ति लिखी हुई है। प्रति सुन्दर व कलात्मक है। संवत् आदि नहीं है।
(क.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध यह प्रति गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से श्री मदनचन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ६७ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। पंक्तियां १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में ५०-५२ तक अक्षर हैं । प्रति के अंत में लिखा हैं--
संवत् १६७६ वर्षे आषाढ सुदि द्वितीय ४ भौम । श्री मालान्वये राक्याणगोत्रे सं० जटमल पुत्र सं० वेणीदास पुस्तक प्रदत्तं श्री मद्नागपुरीय तपागच्छ सं० श्रीमानकीर्तिसूरि शिष्य माधव ज्योतिविद् ।
अंत के अक्षर किसी अन्य व्यक्ति के मालूम होते हैं। प्रति के बीच में बावड़ी तथा तीन बड़े-बड़े लाल टीके हैं।
(ख.) आचारांग टब्बा (प्रथम श्रु तस्कन्ध) यह प्रति गधैया पुस्तकालय से गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ४६ पत्र हैं। पंक्तियां पाठ की ७ तथा टब्बे की १४ हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक पाठ के अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त है-- संवत् १७३२ वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे पंचमी तिथौ गुरु वासरे। लिखितं पूज्य ऋषिश्री ५ अमराजी तशिष्येण लिपिकृतं मूनिविकी आत्मार्थो शुभं भवतु कल्याणमस्तु । सेहुरीया ग्रामे संपूर्ण मस्ति । (ग.) आचारांग (प्रथमश्रु तस्कन्ध) पंच पाठी (बालावबोध) यह प्रति गधैया पुस्तकालय से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है। इसके ६० पत्र हैं। प्रथम ३ तथा छठा पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४। इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ५ से १० तक हैं। अक्षर ३० से ३३ तक हैं। अन्तिम प्रशस्ति नहीं है। (घ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध (जीर्ण)
यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद से श्री गोठी जी द्वारा प्राप्त है।
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इसके ३७ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १३।। इंच लम्बा, ५ इंच चौड़ा है। पक्तियां १७ तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैशुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥छ।। संवत् १५७३ वर्षे १० मंगलवार समत्तं ॥छ। ॥छ।। श्री॥छ।। प्रति के दीमक लगने से अनेक स्थानों पर छिद्र होगए हैं।
(च.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध, यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ७८ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४७ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। बीच में बावड़ी है।
(छ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से गोठीजी द्वारा प्राप्त है । इसके २६० पत्र हैं। प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है मूलपाठ की पंक्तियां १ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैं
संवत् १८६६ वर्षे श्रावणशुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथौ श्रीविक्रमपुरमध्ये लिपिकृतं ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभं भूयादिति ।। (ब.) आचारांग द्वितीय श्रु तस्कन्ध टब्बा (पंचपाठी)
यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ८४ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा १०३ इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ४ से १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में २८ से ३३ तक अक्षर हैं। बीच-बीच में बावड़ियां हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैसंवत् १७५२ वर्षे भादपदमासे पंचम्यां तिथौ ओरसगच्छे भट्टारक श्रीकक्चसूरि तत्पट्टे वर्तमान भट्टारकदेवगुप्तसूरिभिहीता नागोरी तपागच्छीय पं० श्री दयालदास पार्वात् पंचचत्वारिंशत् ४५ वर्षोत्तरात् महतोद्यमेन । (व), (वृपा) मुद्रित, प्रकाशिका-श्रीसिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति विक्रम संवत् १६६१। (चू), (चूपा) मुद्रित-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी, रतलाम, वि १६६८ ।
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सूयगडो
हमने सूत्रकृत का पाठ किसी एक आदर्श को मान्य कर स्वीकार नहीं किया है। उसका स्वीकार पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों, चूणि तथा वृत्ति के पाठों के तुलनात्मक अध्ययन तथा समीक्षापूर्वक किया गया है। . प्राचीनकाल में लिखने की पद्धति बहुत कम थी। प्रायः सभी ग्रन्थ कंठस्थ परम्परा में सुरक्षित रहते थे। इसीलिए घोषशुद्धि (उच्चारणशुद्धि) को बहुत महत्व दिया जाता था। शिष्यों की घोषशुद्धि करना आचार्य का एक कर्तव्य था। दशाथ तस्कन्ध सूत्र में लिखा है'-'घोषशुद्धि कारक होना आचार्य की एक संपदा है।' पाठ और अर्थ के मौलिक रूप की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था थी। छेदसूत्रों से उसकी पूर्ण जानकारी मिलती है।
ज्ञानाचार के आठ प्रकार बतलाए गए हैं। उनमें तीन आचारों का उक्त व्यवस्था से सम्बन्ध है। वे ये हैं--
१. व्यंजन--सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु और शब्दों को यथावत् बनाए रखना। २. अर्थ--सूत्र के आशय को यथावत् बनाए रखना। ३. व्यंजन-अर्थ--सूत्र और अर्थ-दोनों को मौलिक रूप में सुरक्षित रखना।
चूर्णिकार ने उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है'--'धम्मो मंगलमूक्किट्ठं'--यह प्राकृत भाषा है। इसका 'धर्मो मंगलमुत्कृष्टम्' इस प्रकार संस्कृत में पाठ करना भाषागत व्यंजनातिचार हैं।
'सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि'--इसकी मात्रा बदलकर जैसे--'सब्वे सावज्जे जोगे पच्चक्खामि', उच्चारण करना मात्रागत व्यंजनातिचार है। णमो अरहताणं' का 'णमो अरहंताण' इस प्रकार प्राप्त बिन्दु को छोड़कर उच्चारण करना, 'णमो अरहताणं' इस प्रकार 'र' के साथ अप्राप्त बिन्दु का उच्चारण करना--यह बिन्दुगत ब्यंजनातिचार है।
१. दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ४। २. निशीथभाष्य, गाथा ८, भाग-१, पृ०६ :
काले विणये बहुमाने, उवधाने तहा अणिण्हवणे ।
वंजणअत्थतदुभए, अट्ठविधो णाणमायारो॥ ३. वही, गाथा १७, भाग १, पृ०१२।।
सक्कयमत्ताबिंदू, अण्णाभिधाणेण वा वि तं प्रत्यं ।
वंजेति जेण अत्यं, वंजण मिति भण्णते सुत्तं ॥ ४. निशीथभाष्य चूणि, भाग १, पृ० १२ ।
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'धम्मो मंगल मुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो।' इनके मौलिक शब्दों को हटाकर वहां उनके पर्यायवाची शब्दों की योजना करना, जैसे--पुण्णं कल्लाणमुक्कोसं, दयासंवरणिज्जरा। यह अन्याभिधान नामक व्यंजनातिचार है।
सूत्र के अक्षर-पदों का हीन या अतिरिक्त उच्चारण करना अथवा उनका अन्यथा उच्चारण करना भी व्यंजनातिचार है ।
इस सारे विवरण का निष्कर्ष यह है कि सूत्रपाठ की भाषा, मात्रा, बिन्दु, शब्द, शब्दसंख्या और पाठ्य-क्रम मौलिकता सुरक्षित रहनी चाहिए । इस व्यवस्था के अतिक्रमण के लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई। भाषा, मात्रा, बिन्दु आदि का परिवर्तन करने पर लघूमासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है। सूत्रपाठ को अन्यथा करने पर लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
चूर्णिकार ने विषय के उपसंहार में लिखा है--सूत्रभेद से अर्थभेद, अर्थभेद से चरणभेद, चरणभेद से मोक्ष असंभव हो जाता है। वैसा होने पर दीक्षा आदि कर्म प्रयोजन-शून्य हो जाते है। इसलिए व्यंजन-भेद नहीं करना चाहिए।
इसी प्रकार अर्थभेद भी नहीं करना चाहिए। जो अर्थ अनुक्त और अघटित हो, वह नहीं करना चाहिए। अर्थ का परिवर्तन करने पर गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
सूत्र और अर्थ दोनों का एक साथ परिवर्तन करने पर पूर्वोक्त दोनों प्रायश्चित्त प्राप्त होते हैं।
सूत्र और अर्थ के मौलिक स्वरूप के सुरक्षित रखने की दिशा में आगमों के रचना-काल में चिन्तन प्रारंभ हो गया था। प्रस्तुत सूत्र में इसका स्पष्ट निर्देश है। ग्रन्थाध्ययन में मनि को सावधान किया गया है कि वह सूत्र और अर्थ की अन्यरूप में योजना न करे। अथवा
१. निशीथभाष्य, गाथा १८, चूणि भाग १, पृ०१२। २. निशीथभाष्य, गाथा १८, चूणि भाग १, पृ० १२:
सुत्तभेया प्रत्थभेओ । प्रत्य भेया चरणभेो । चरणभेया अमोक्खो मोक्खाभावा दिक्खादयो किरियाभेदा
अफला भवन्ति । तम्हा वंजणभेदो ण कायन्यो । ३. निशीथभाष्य चूणि, भाग १, पृ० १३ । ४. वही;
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२२
उसका अन्यथा प्रतिपादन न करें। इसकी व्याख्या में चूर्णिकार ने लिखा है--सूत्र को सर्वथा ही अन्यथा न करे। अर्थ वही करे जो स्वसिद्धान्त से अविरुद्ध है। वृत्तिकार ने लिखा है--सूत्र में स्वमति से न जोड़े अथवा सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे ।
उक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सूत्र अर्थ के मौलिक स्वरूप की सुरक्षा का तीव्र प्रयत्न किया गया था। फलतः एक सीमा तक उसकी सुरक्षा भी हुई है। फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि उसमें परिवर्तन नहीं हुआ है । वह उसके कारण भी प्राप्त हैं । जैसे-- १. विस्मृति, २. लिपिपरिवर्तन, ३. व्याख्या का मूल में प्रवेश, ४. देश-काल का व्यवधान । ___ शीलांकसूरि सूत्रकृतांग की वृत्ति लिख रहे थे तब उनके सामने उसके आदर्श और प्राचीन टीका--दोनों विद्यमान थे। दूसरे श्रु तस्कन्ध के दूसरे अध्ययन के एक स्थल में आदर्शों में एक जैसा पाठ नहीं था और टीका में जो पाठ व्याख्यात था उसका संवादी पाठ किसी भी आदर्श में नहीं था। इसलिए उन्होंने एक आदर्श को मान्य कर चचित अंश की व्याख्या की।
कुछ स्थानों पर हमने चुणि के पाठ स्वीकृत किए हैं। आदर्शों और वृत्ति की अपेक्षा से वे अधिक संगत प्रतीत होते हैं।
२।६।४५ में 'णिहो णिसं' पाठ है । वह वृत्ति में 'णिवो णिसं' इस प्रकार व्याख्यात है। वहां हमने चूणि का पाठ स्वीकृत किया है।"
पादटिप्पणों में हमने पाठ-परिवर्तन व उनके कारणों की चर्चा की है । वैदिक परम्परा में भी वेदों के मौलिक पाठ की सुरक्षा के लिए तीव्र प्रयत्न किए थे। किन्तु उनके पाठों में भी कालजनित अतिक्रमण हुए हैं। डा० विश्वबन्धु ने लिखा है --"यह सर्वमान्य तथ्य है
१. सूगयडो, १।१४।२६ :
णो सुत्तमत्थं च करेज्ज अण्णं । २. सूत्रकृतांगचूणि, पृ० २६६ :
न सूत्रमन्यत् प्रद्वेषण करोत्यन्यथा वा, जहा रण्णो भत्तंसिणो उज्ज्वलप्रश्नो नामार्थः तमपि नान्यथा कुर्यात्, जहा 'आवंती के प्रावंती-एके यावंती तं लोगो विप्परामसंति' सूत्रं सर्वथैवान्यथा न कर्त्तव्यं, अर्थविकल्पस्तु
स्वसिद्धान्ताविरुद्धो अविरुद्धः स्यात् । ३. सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्न २५८ :
न च सूत्रमन्यत् स्वमतिविकल्पनत: स्वपरत्नायी कुर्वीतान्यथा
वा सूत्रं तदर्थं वा संसारात्तायीनाणशीलो जन्तूनां न विदधीत । ४. वही, पत्न ७६ ।
इह च प्रायः सूत्रादर्श नानाभिधानि सूत्राणि दृश्यन्ते, न च टीकासंवाद्यकोप्यस्माभिरादर्शः समुपलब्धोऽत
एकमादर्शमंगीकृत्यास्माभिविवरणं क्रियते । ५. देखें-२।६।४५ का पादटिप्पण । ६. अखिल भारतीय प्राच्य-विद्या-सम्मेलन, चौबीसवाँ अधिवेशन, वाराणसी १९६८, मुख्याध्यक्षीय भाषण.
पृष्ठ ८,६।
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कि लगभग ५ हजार वर्षों से इस देश में वैदिक ग्रन्थों के प्राचीन पाठों को उनके मौलिक शुद्ध रूप में सुरक्षित रखने के लिए उन्हें परम सावधानी और उत्कृष्ट श्रद्धा के साथ कण्ठस्थ करने का इतना घोर प्रयत्न होता रहा है कि जिसका किसी भी दूसरे देश के साहित्यिक इतिहास में उदाहरण नहीं है। किन्तु ऐसा होने पर भी, जैसा कि इस वैदिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कार्य करने वाले हमारे पूर्ववर्ती विद्वानों को देखने में संयोगवश कुछ-कुछ और गत चालीस वर्षों के सतत शोध कार्य के मध्य में हमारे देखने में, विस्तृत रूप में आया है कि ये ग्रन्थ भी कालकृत विध्वंस और मानवकृत संक्रमण की अपूर्णता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । यदि ऐसा बहुधा होता तो सचमुच यह एक अविश्वसनीय चमत्कार ही होता।"
कण्ठस्थ-परंपरा से चलने वाले तथा प्रलंब अवधि में लिपि-परिवर्तन के युग में संक्रमण करने वाले प्रत्येक ग्रन्थ के कुछ स्थल मौलिकता से इतस्ततः हुए हैं।
प्रतिपरिचय
(क) सूत्रकृतांग मूलपाठ
पढ़ प्रति 'धेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसकी पत्र संख्या ६४ व पष्ठ संख्या १८८ है। प्रत्येक पत्र मे ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३७ तक अक्षर
प्रति की लम्बाई ११॥ इंच व चौड़ाई ४।। इंच है । प्रति शुद्ध व बड़े अक्षरों में स्पष्ट लिखी हुई है। यह प्रति संवत् १५८१ में लिखी हुई है। इसके अन्त में निम्न प्रशस्ति है।
संवत् १५८१ वर्षे पत्तन नगरे श्री खरतरगच्छे श्री जिनवर्द्धनसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि । श्री जिनसागरसूरि । श्री जिनसुन्दरसूरि पट्ट पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनहर्षसूरिपट्टे श्री जिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन ऊकेशवंशे साधुशाखायां । सो० जीवाभार्या श्रावारुपुत्ररत्न मो० महिवाल सो० गांगाख्यो सा० तंत्र सो गांगा भार्या श्रा० धीरुपुत्र सो० पदमसी सो० हरिचंदविद्यमानपूत्र सो० शिवचन्द सो० देवचंद्राभ्या श्री एकादशांगी सत्राणि अलेखिषत तत्रेदं श्री सूत्रकृतांगसूत्रं । सम्पूर्णः ॥श्री रस्तु।। (ख) सूत्रकृतांग बालावबोध प्रथमश्रुतस्कन्ध (त्रिपाठी)
यह प्रति 'गधैया पुस्तकालय' सरदाशहर की है । मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। इसके पत्र ४३ व पृष्ठ ८६ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ५-६ करीब हैं व प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ६०-६२ करीब हैं। प्रति की लम्बाई १०३ इच व चौडाई ४१ इंच है। अनुमानतः यह प्रति १७वीं शताब्दि की लगती है। प्रति के अन्त में प्रशस्ति नहीं है।
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(ग) सूत्रकृतांग द्वितीय बालावबोध (त्रिपाठी)
यह प्रति 'घेवर पुस्तकालय' सुजानगढ़ की है। इसके पत्र ६५ व पृष्ठ १३० है । मध्य में पाठ व दोनों तरफ वार्तिका लिखी हुई है। प्रत्येक पत्र में पाठ की पंक्तियां ४ से १२ तक हैं व प्रत्येक में ४५ से ५० तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १० इच व चौड़ाई ४१ इंच करीब है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है-~
मलपाठ प्रशस्ति--सूयगडस्स बीयं खंधो सम्मत्ते। श्री सूगडांग द्वितीय श्र तस्कन्धः सूत्र संपूर्ण समाप्तः ।। सुभं भवतु, कल्याणमस्तु। श्री रस्तुः ।। ब ।। ब ॥ पंड्या भवान सूत मेधज्जी लक्षतं ।। बालावबोध प्रशस्ति--सूत्रकृतं आदितः सर्वमध्ययनं ।२३। श्री साधुरत्तशिष्येण पाशचन्द्रेण वृत्तितः बालावबोधार्थं द्वितीयांगस्यवात्तिकं सम्पूर्णः ॥ ब॥ सूभ भवतुः । कल्याणमस्तु: श्रीरस्तु ॥ संवत् ॥ १६६३ वर्षे फागुणवदि ८ बुधे प्रति सूगडांगनी पूरी कीधी प्रति ठीक है। (क्व) सूत्रकृतांग बालावबोध पंचपाठी
यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से प्राप्त, पत्र संख्या ६८ व पष्ठ १३६ । पाठ की पंक्तियां एक से १३ तक व प्रत्येक पंक्ति में ३४ से ३७ करीब अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच व चौड़ाई ४३ इंच करीब है । संवत् व प्रशस्ति नहीं है। आनुमानिक सं० १७वीं शदी। (क्व) सूत्रकृतांग (मूलपाठ) नियुक्ति सहित
यह प्रति 'गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ४२ व पृष्ठ संख्या ८४ है। प्रत्येक पत्र में १६ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५२ से ६३ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ४१ इंच है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति हैसूयगडस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता । पद्मोपमं पत्रपरं परान्वितं, वर्णोज्जलसूक्तमरदं सून्दरं मुमुक्षभृगप्रकरस्यवल्लभं, जीयाच्चिरं सूत्रकृदंग पुस्तकं ॥ संवत १५१२ वर्षे आसोज वदि दीपा ।
ऊएसगच्छे भट्टारक श्रीकक्कसूरीणां ॥ विक्रमपुरे ॥ (वृ) सूत्रकृतांग वृत्ति (हस्तलिखित)
यह प्रति 'गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर की है। इसके पत्र ६० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६७ के करीब अक्षर है। इसकी लम्बाई १०३ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रति सुन्दर व सूक्ष्म अक्षरों में लिखी हई है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है
शुभं भवतु संवत् १५२५ वर्षे श्री यवनपुर नगरे। श्रीखरतरगच्छे। श्रीजिनभद्रसरिपद्रालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये । श्री कमल संयमे । महोपाध्यायः स्ववाचनार्थ ग्रंथोयं लेखितः
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॥श्रीः॥ ब ॥श्रीः॥ श्री पदुमकी[पाठकेभ्यः पं० महिमसारगणिना प्रतिरियं प्रदत्ता स्वपुण्यार्थं ॥ (वृ०) सूत्रकृतांग वृत्ति मुद्रित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन देरासर पेढी । (च०) सूत्रकृतांग चूणि मुद्रित श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्वर संस्था रतलाम ।
ठाणं
प्राकृत में एक शब्द के अनेक रूप बनते हैं। आगमों में वे अनेक रूप प्रयुक्त भी हैं। आगम का संपादन करने वाले कुछ विद्वानों का यह आग्रह रहा है कि पाठ-संपादन में विभिन्न रूपों में एकरूपता लानी चाहिए। हमने पाठ-संपादन की इस पद्धति को मान्य नहीं किया है। यद्यपि प्रस्तुत सूत्र में 'नकार' और 'णकार' की एकता स्वीकार कर सर्वत्र ‘णकार' का ही प्रयोग किया है; पर रूप-भेदों में एकता लाने के सिद्धान्त का सर्वत्र उपयोग नहीं किया है। ३।३७३ में 'सुगती' और 'सुग्गती'—ये दो रूप मिलते हैं । ३।३७५ में 'सोगता', 'सुगता' और 'सुग्गता'-ये तीन रूप मिलते हैं । हमने उन्हें यथावत् रखा है। ग्रंयकार प्रयोग करने में स्वतन्त्र हैं। वे एकरूपता के नियम से बंधे हए नहीं हैं, फिर संपादन कार्य में एकरूपता का प्रयत्न अपेक्षित नहीं लगता।
आगमों में अनेक भाषाओं और वर्णादेशों के विविध प्रयोग मिलते हैं। उनमें एकरूपता लाने पर विविधता की विस्मृति की संभावना हो सकती है। 'वाएणं', 'कायसा' ये दोनों रूप प्रयुक्त होते हैं । 'अंडजा' के 'अंडया' और 'अंडगा' तथा 'कर्मभूमिजा' के 'कम्मभूमिया' और 'कम्मभूमिगा'—ये दोनों रूप बनते हैं। जिस स्थल में जो रूप प्राप्त हो उस स्थल में उसे रखना संपादन की त्रुटि नहीं है।
प्रति परिचय (क) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित )
गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र ७४ तथा पृष्ठ १४८ हैं। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां, प्रत्येक पंक्ति में ६० के करीब अक्षर हैं। यह प्रति १०॥ इंच लम्बी ४॥ इंच चौड़ी है । प्रति प्रायः शुद्ध है । लिपि संवत् १५६५ । प्रशस्ति में लिखा है
शुभं भवतु ॥छ।। श्री खरतरगच्छे श्री सागरचन्द्राचार्यान्वये वा० दयासागरगणिभिः स्वशिष्य वा० ज्ञानमन्दिरगणिवाचनार्थं ग्रंथोऽयं लेखयांचक्र ॥ संवत् १५६५ वर्षे जिनश्रीवर्धमानसंवत् २०३५ वर्षे चैत्रप्रथमाष्टम्यां श्री वोहिथिरागोत्रे मंत्रीश्वरवच्छराज नंदन प्रधान शिरोमणि मं० वरसिंहगेहिन्या मंत्रिणी वीऊलदेवी श्री विकया पुत्र मं० मेघराज मं० भोजराज मं० नगराज मं० हरिराज मं० अमरसिंह मं० डूंगरसिंह पुत्रिका वीराई
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प्रभृति पौत्रादि परिवारपरिवृतया सुपुण्यार्थं श्री ज्ञानभक्ति निमित्तं श्री स्थानांग सूत्रवृत्तिसहित लेखयित्वा विहारितं श्रीखरतरगच्छे वृहतिश्रीवीकानयरे श्रीजिनहंससूरि विजयिराज्ये वा० महिमराजगणीद्राणां शिष्य वा० दयासागगणीवराणां शिष्य वा० ज्ञानमन्दिरगणिदेवतिलकादिपरिवृतानां वाच्यमानं चिरं नंदतु। शुभं वोभोतु श्री चतुर्विध श्री संघाय ॥छ॥ श्री रस्तु॥ (ख) ठाणांग मूलपाठ (हस्तलिखित)
घेवर पुस्तकालय सुजानगढ़ से प्राप्त । इसके पत्र १०८ और पृष्ठ २१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां । प्रत्येक पंक्ति में ४५ करीब अक्षर हैं। यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है। प्रति प्रायः शुद्ध तथा स्पष्ट है। लिपि संवत् १६८५ है।
गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त (वृत्ति की प्रति)। इसके पत्र २८३ और पृष्ठ ५६६ हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच है तथा चौड़ाई ४३ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५८ से ६० तक अक्षर हैं। (घ) ठाणांग (मूलपाठ)
यह प्रति लालभाई भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर (अहमदाबाद) की है। इसके पत्र ६६ तथा पृष्ठ १३२ हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। पत्रों के दोनों ओर कलात्मक वापिका है। अन्त में लिखा हैसंवत् १५१७ वर्षे ठाणांग सूत्रं लेखयित्वा तेषामेव गुरुणामुपकारिता। साधुजनैर्वा चिरं नंदतात् ॥छ। ॥०॥
समवाओ
प्रस्तुत सूत्र का पाठ-संशोधन तीन आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। कुल स्थलों में पाठ-संशोधन के लिए अन्य ग्रन्थों का भी उपयोग किया गया है। प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३४) में प्रयुक्त आदर्शों में 'अस्ससेणे' पाठ नहीं है। यह चतुर्थ चक्रवर्ती के पिता का नाम है। इसके बिना अगले नामों की व्यवस्था विसंगत हो जाती है। उल्लिखित सूत्र की संग्रह गाथाओं में पद्मोत्तर नाम अतिरिक्त है । इसे पाठान्तर रूप में स्वीकार किया गया है। आवश्यक नियुक्ति (३६६) में 'अस्ससेणे' पाठ उपलब्ध है। उसके आधार पर 'अस्ससेणे' मूल-पाठ के रूप में स्वीकृत किया गया है।
प्रकीर्ण समवाय (सूत्र २३०) की संग्रह गाथा में बलदेव वासुदेव के पिता के नाम है। उक्त गाथा में स्थानांग (६।१६) तथा आवश्यक नियुक्ति (४११)के आधार पर संशोधन
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२७
किया गया है। तीसरे बलदेव - वासुदेव के पिता का नाम रुद्द है, किन्तु समवायांग की हस्तलिखित वृत्ति में 'रुद्द ' के स्थान में 'सोम' है । वस्तुतः 'सोम' के बाद रुद्द ' होना चाहिए' ।
समवाय ३० (सूत्र १, गाथा २६ ) में सभी सभी आदर्शों में 'सज्झायवायं' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने भी उसकी स्वाध्यायवाद - इस रूप में व्याख्या की है । अर्थ की दृष्टि से यह संगत नहीं है । दशाश्रु तस्कन्ध ( सूत्र २६ ) में उक्त गाथा उपलब्ध है । उसमें 'सज्झायवाय' के स्थान पर 'सम्भाववाय' पाठ है । दशाश्र तस्कन्ध के वृत्तिकार ने इसका संस्कृत रूप 'सद्भाववाद' किया है । अर्थ-मीमांसा करने पर यह पाठ संगत प्रतीत होता है । '
प्राचीन लिपि में संयुक्त 'झकार' और संयुक्त 'भकार' एक जैसे लिखे जाते थे । प्रकार के लिपिक पाठ-परिवर्तन अनेक स्थानों में प्राप्त होते हैं ।
प्रति परिचय
(क) समवायांग मूलपाठ
यह प्रति जैसलमेर भंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मदनचन्दजी गोठी, सरदारशहर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ६४ तथा पृष्ठ १२८ हैं किन्तु २४ वां पत्र नहीं है । प्रत्येक पृष्ठ में ४ या ५ पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ११० अक्षर हैं। लिपि सं० १४०१ ।
(ख) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी)
यह प्रतिधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । बीच में मूलपाठ एवं चारों ओर वृत्ति लिखी हुई है । इसके पत्र १०६ तथा पृष्ठ २१२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ में 8 पंक्तियां तथा प्रत्येक पक्ति में ३०, ३२ अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४३ इंच चौड़ी है । इसके अन्त में संवत् दिया हुआ नहीं है । किन्तु पत्रों की जीर्णता व लिपि के आधार पर यह पन्द्रहवीं -सोलहवीं शताब्दी के लगभग की है। प्रति के अन्त में निम्न प्रशस्ति है— ||छ । समवाउ चउत्थमंगं || छ । अंकतोपि ग्रंथाग्र १६६७ ||छ ||
(ग) समवायांग मूलपाठ (पंचपाठी)
यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है। बीच में मूलपाठ एवं चारों तरफ वृत्ति लिखी हुई है । इसके पत्र ८१ तथा पृष्ठ १६२ हैं । प्रत्येक पृष्ठ में ५ से १२ पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ४७ तक अक्षर हैं । यह प्रति १० इंच लम्बी तथा ४१ इंच चौड़ी है । लिपि संवत् १३४५ लिखा है; पर संवत् की लिखावट से कुछ संदिग्ध सा लगता है। फिर भी प्राचीन है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है
१. देखें, समवाश्रो, पइण्णगसमवाश्रो सू० २३० का पाद-टिप्पण ।
२. देखें, समवाप्रो, समवाय ३०, सू० १, गाथा २६ का दूसरा पाद-टिप्पण |
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२८
॥छ।। समवाउ चउत्थमंग संमत्तं ॥छ॥ ग्रंथान १६६७ ॥छ।। इस प्रति में पाठ बहुत संक्षिप्त है । अनेक स्थानों पर केवल प्रथम अक्षर ही लिखे गए हैं । श्रीमदभयदेवसूरिवृत्तिः (मुद्रित)प्रकाशक-श्रेष्ठी माणिकलाल चुन्नीलाल, कान्तिलाल, चुन्नीलाल-अहमदाबाद ।
संपादक-मास्टर नगीनदास, नेमचन्द । सहयोगानुभूति
जैन परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज ये १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहत ही अव्यवस्थित हो गए हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टि समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप-सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगमवाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ।
हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवत्ति में अध्यापनकर्म के अनेक अंग हैं--पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि । इन सभी प्रवृत्तियों में हमें आचार्यश्री का सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है।
मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के पाठ संपादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है । म नि शुभकरणजी इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रतिशोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल जी (आमेट) ने तैयार किया है।
कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हुए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता।
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आगम के प्रबंध-संपादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ये कृत-संकल्प और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगमसेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है।
जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी से ठिया, जैन विश्व भारती के कार्यालय तथा आदर्श साहित्य संघ के कार्यालय के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्नी के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। __ एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार-पूर्ति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है।
मुनि नथमल
अणुव्रत-विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस
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भूमिका १. आगमों का वर्गीकरण
जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायांग मे आगम के दो रूप प्राप्त होते हैंद्वादशांग गणिपिटक' और चतुर्दश पूर्व। नन्दी में श्रुत-ज्ञान (आगम) के दो विभाग मिलते हैं-- अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य। आगम-साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पूर्वो से संबंधित हैं । जैसे--
१. सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने वाले---'सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, प्रथम वर्ग) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जई' (अंतगड, अष्टम वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त है ।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, षष्ठ वर्ग १५वां अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त है।
२. बारह अंगों को पढ़ने वाले--'बारसंगी' (अंतगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त है।
३. चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले--चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ (अंतगड, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ' (अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त है।
१, समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ८५। २, वही, समवाय १४, सू० २ । ३. नन्दी, सू०४३।
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भगवान् पार्श्व के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे । भगवान् महावीर के तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे ।
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यह
समवायांग और अनुयोगद्वार में अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य का विभाग नहीं है । सर्व प्रथम विभाग नन्दी में मिलता है । अंग बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरों ने की है। नंदी की रचना से पूर्व अनेक अंग बाह्य ग्रन्थ रचे जा चुके थे और वे चतुर्दश-पूर्वी या दस-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचे गये थे । इस लिए उन्हें आगम की कोटि में रखा गया। उसके फलस्वरूप आगम के दो विभाग किए गए - - अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य । यह विभाग अनुयोगद्वार (वीर - निर्वाण छठी शताब्दी) तक नहीं हुआ था । यह सबसे पहले नंदी (वीर- निर्वाण दसवीं शताब्दी) में हुआ है ।
नंदी की रचना तक आगम के तीन वर्गीकरण हो जाते हैं -- पूर्व, अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य । आज 'अंग - प्रविष्ट' और 'अंग बाह्य' उपलब्ध होते हैं, किन्तु पूर्व उपलब्ध नहीं हैं। उनकी अनुपलब्धि ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है ।
२. पूर्व
जैन परम्परा के अनुसार श्रुत ज्ञान ( शब्द- ज्ञान ) का अक्षयकोष 'पूर्व' है। इसके अर्थ और रचना के विषय में सब एक मत नहीं हैं। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार 'पूर्व' द्वादशांगी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम 'पूर्व' रखा गया' । आधुनिक विद्वानों का अभिमत यह है कि 'पूर्व' भगवान् पार्श्व की परम्परा की श्रुत राशि है । यह भगवान् महावीर से पूर्ववर्ती है, इसलिए इसे 'पूर्व ' कहा गया है। दोनों अभिमतों में से किसी को भी मान्य किया जाए, किन्तु इस फलित में कोई अन्तर नहीं आता कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले हुई थी या द्वादशांगी पूर्वो की उत्तरकालीन रचना है ।
वर्तमान में जो द्वादशांगी का रूप प्राप्त है, उसमें 'पूर्व' समाए हुए हैं । बारहवां अंग दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग है -- पूर्वगत | चौदह पूर्व इसी 'पूर्वगत' के अन्तर्गत हैं । भगवान् महावीर ने प्रारंभ में पूर्वगत श्रुत की रचना की थी। इस अभिमत से यह फलित होता है कि चौदह पूर्व और बारहवां अंग - ये दोनों भिन्न नहीं हैं । पूर्वगत श्रुत बहुत गहन था । सर्वसाधारण के लिए वह
१. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० १४ ।
२. वही, सू० १२ ।
३. समवायांग वृत्ति, पत्र १०१ ।
प्रथनं पूर्वं तस्य सर्व प्रवचनात् पूर्वं क्रियमाणत्वात् ।
४. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० :
अन्ये तु व्याचक्षते पूर्वं पूर्वंगत सूत्रार्थमर्हन् भाषते, गणधरा अपि पूर्व पूर्वगतसूत्रं विरचयन्ति, षश्चादाचारा
दिकम् ।
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३२
जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने
।
सुलभ नहीं था । अंगों की रचना अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए की गई। बताया है कि 'दृष्टिवाद में समस्त शब्द- ज्ञान का अवतार हो जाता है फिर भी ग्यारह अंगों की रचना अल्पमेधा पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए की गई । ग्यारह अंगों को वे ही साधु पढ़ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रखर नहीं होती थी । प्रतिभा सम्पन्न मुनि पूर्वो का अध्ययन करते थे । आगम-विच्छेद के क्रम से भी यही फलित होता है कि ग्यारह अंग दृष्टिवाद या पूर्वों से सरल या भिन्न क्रम में रहे हैं । दिगम्बर परम्परा के अनुसार वीर- निर्वाण बासठ वर्ष बाद केवली नहीं रहे। उनके बाद सौ वर्ष तक श्रुत-केवली (चतुर्दश-पूर्वी ) रहे । उनके पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष तक दशपूर्वी रहे। उनके पश्चात् दो सौ बीस वर्ष तक ग्यारह अंगधर रहे।
उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जब तक आचार आदि अंगों की रचना नहीं हुई थी, तब तक महावीर की श्रुत - राशि 'चौदह पूर्व' या 'दृष्टिवाद' के नाम से अभिहित होती थी और जब आचार आदि ग्यारह अंगों की रचना हो गई, तब दृष्टिवाद को बारहवें अंग के रूप में स्थापित किया गया ।
यद्यपि बारह अंगों को पढ़ने वाले और चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले -- ये भिन्न-भिन्न उल्लेख मिलते हैं, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि चौदह पूर्वो के अध्येता बारह अंगों के अध्येता नहीं थे और बारह अंगों के अध्येता चतुर्दश-पूर्वी नहीं थे । गौतम स्वामी को 'द्वादशांग वित्' कहा गया है। वे चतुर्दश-पूर्वी और अंगधर दोनों थे। यह कहने का प्रकार-भेद रहा है कि श्रुतकेवली को कहीं 'द्वादशांगवित्' और कहीं 'चतुर्दश-पूर्वी' कहा गया है ।
ग्यारह अंग पूर्वो से उद्धृत या संकलित हैं। इसलिए जो चतुर्दश-पूर्वी होता है, वह स्वाभा विक रूप से द्वादशांगवित् होता है । बारहवें अंग में चौदह पूर्व समाविष्ट हैं। इसलिए जो द्वादशांगवित होता है, वह स्वभावतः चतुर्दश-पूर्व होता है । अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आगम के प्राचीन वर्गीकरण दो ही हैं--चौदह पूर्व और ग्यारह अंग । द्वादशांगी का स्वतन्त्र स्थान नहीं है । यह पूर्वी और अंगों का संयुक्त नाम है ।
कुछ आधुनिक विद्वानों ने पूर्वो को भगवान् पार्श्वकालीन और अंगों को भगवान् महावीरअरिष्टनेमि कालीन माना है, पर यह अभिमत संगत नहीं है। पूर्वो और अंगों की परम्परा भगवान् और भगवान् पार्श्व के युग में भी रही है । अंग अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए रचे गए, यह पहले बताया जा चुका है । भगवान् पार्श्व के युग में सब मुनियों का प्रतिभा स्तर समान था, यह कैसे
१. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ५५४ :
जइवि य भूतावाए, सव्वस्स वओगयस्स श्रोयारो । निज्जूणा तहावि हु, दुम्मेहे पप्प इत्थी य ॥
२. जयधवला, प्रस्तावना पृष्ठ ४६ ।
३. देखिए — भूमिका का प्रारम्भिक भाग ।
४. उत्तराध्ययन, २३।७ ।
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माना जा सकता है ? प्रतिभा का तारतम्य अपने - अपने युग में सदा रहा है। मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक दृष्टि से विचार करने पर भी हम इसी बिन्दु पर पहुंचते हैं कि अंगो की अपेक्षा भगवान् पार्श्व के शासन में भी रही है, इसलिए इस अभिमत की पुष्टि में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है कि भगवान् पार्श्व के युग में केवल पूर्व ही थे, अंग नहीं सामान्य ज्ञान से यही तथ्य निष्पन्न होता है। कि भगवान् महावीर के शासन में पूर्वो और अंगों का युग की भाव, भाषा, शैजी और अपेक्षा के अनुसार नवीनीकरण हुआ। 'पूर्व' पार्श्व की परम्परा से लिए गए और 'अंग' महावीर की परम्परा में रचे गए, इस अभिमत के समर्थन में सम्भवतः कल्पता ही प्रधान रही है।
३. अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य
भगवान् महावीर के अस्तित्व काल में गौतम आदि गणवरों ने पूर्वी और अंगों की रचना की, यह सर्व विश्रुत है । क्या अन्य मुनियों ने आगम ग्रन्थों की रचना नहीं की । यह प्रश्न सहज ही उठता है । भगवान् महावीर के चौदह हजार शिष्य थे । उनमें सात सौ केवली थे, चार सौ वादी थे । उन्होंने ग्रन्थों की रचना नही की, ऐसा सम्भव नहीं लगता । नंदी में बताया गया है कि भगवान् महावीर के शिष्यों ने चौदह हजार प्रकीर्णक बनाए थे। ये पूर्वो और अंगो से अतिरिक्त ये। उस समय अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य ऐसा वर्गीकरण हुआ, यह प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं है । भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् अर्वाचीन आचार्यों ने ग्रंथ रचे तब संभव है उन्हें आगम की कोटि में रखने या न रखने की चर्चा चली और उनके प्रामाण्य और अप्रामाण्य का प्रश्न भी उठा। चर्चा के बाद चतुर्दश-पूर्वी और दश-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगम की कोटि में रखने का निर्णय हुआ किन्तु उन्हें स्वतः प्रमाण नहीं माना गया। उनका प्रामाण्य परतः था । वे द्वादशांगी में अविरुद्ध है, इस कसौटी से कसकर उन्हें आगम की संज्ञा दी गई। उनका पातः प्रामाण्य था, इसीलिए उन्हें अंग-प्रविष्ट की कोटि से भिन्न रखने की आवश्यकता प्रतीत हुई । इस स्थिति के सन्दर्भ में आगम की अंग बाह्य कोटि का उद्भव हुआ ।
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अंग-प्रविष्ट और जंग बाह्य के भेद निरूपण में तीन हेतु प्रस्तुत किए हैं-
१. जो गणवर कृत होता है,
२. जो गणधर द्वारा प्रश्न किए जाने पर तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है.
१. समवाओ, समवाय १४, सू० ४ ।
२. नन्दी, सू० ७८ :
चोटसपल सहस्वाणि भगवो वद्धमाणस्स ।
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३. जो ध्रुव - शाश्वत सत्यों से सम्बन्धित होता है, सुदीर्घकालीन होता है - वही श्रुत अंग-प्रविष्ट होता है' ।
इसके विपरीत।
१. जो स्थविर-कृत होता है,
२. जो प्रश्न पूछे बिना तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होता है,
३. जो चल होता है, तात्कालिक या सामयिक होता है— उस श्रुत का नाम अंग बाह्य है ।
अंग-प्रविष्ट और अंग बाह्य में भेद करने का मुख्य हेतु वक्ता का भेद है'। जिस आगम के वक्ता भगवान् महावीर हैं और जिसके संकलयिता गणधर हैं, वह श्रुत-पुरुष के मूल अंगों के रूप में स्वीकृत होता है इसलिए उसे अंग-प्रविष्ट कहा गया है । सर्वार्थसिद्धि के अनुसार वक्ता तीन प्रकार के होते हैं - १. तीर्थंकर २ त केवली (चतुर्दश-पूर्वी) और ३. आरातीय' आरातीय आचार्यों के द्वारा रचित आगम ही अंग बाह्य माने गए हैं। आचार्य अकलंक के शब्दों में आरातीय आचार्य कृत आगम अंग-प्रतिपादित अर्थ से प्रतिबिम्बित होते हैं इसीलिए वे अंग बाह्य कहलाते हैं । अंग बाह्य आगम श्रुत-पुरुष के प्रत्यंग या उपांग-स्थानीय है।
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४. अंग
द्वादशागी में संगर्भित बारह आगमों को अंग कहा गया है । अंग शब्द संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के साहित्य में प्राप्त होता है। वैदिक साहित्य में वेदाध्ययन के सहायक ग्रन्थों को अंग कहा गया है। उनकी संख्या छह है
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१. शिक्षा-शब्दों के उच्चारण-विधान का प्रतिपादक ग्रन्थ ।
२. कल्पवेद विहित कर्मों का क्रमपूर्वक व्यवस्थित प्रतिपादन करने बलाघा
३. व्याकरण-पद-स्वरूप और पदार्थ निश्चय का निमित्त शास्त्र ।
४. निरुक्त-पदों की व्युत्पत्ति का निरूपण करने वाला शास्त्र ।
५. छन्द मन्त्रोच्चारण के लिए स्वर-विज्ञान का प्रतिपादक शास्त्र ।
६. ज्योतिष --- यज्ञ-याग आदि कार्यों के लिए समय-शुद्धि का प्रतिपादक शास्त्र ।
१. विशेषावश्यकभाष्य गाथा ५५२
गणहर-थेरकथं वा, आएसा मुक्क- वागरणश्रो वा ।
धुव चल विसेसो वा अंगाणंगेसु नाणत्तं ॥
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२. स्वार्थभाष्य १२०
वक्तु - विशेषाद् द्वैविध्यम् ।
३. सर्वार्थसिद्धि, १२० :
नयो वक्तारः - सर्वज्ञस्तीर्थंकरः, इतरो वा श्रुतकेवली आरातीयश्चेति ।
४. तत्वार्थ राजवार्तिक, १२० :
आरातीयाचार्यकृतांगाचं प्रत्यासन्नरूपमंगबाह्यम्
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वैदिक साहित्य में वेद-पुरुष की कल्पना की गयी है । उसके अनुसार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्प हाथ, व्याकरण मुख, निरुक्त श्रोत्र, छन्द पैर और ज्योतिष नेत्र है। इसीलिए ये वेदशरीर के अंग कहलाते हैं।
___ पालि-साहित्य में भी, 'अंग' शब्द का उपयोग किया गया है । एक स्थान में बुद्धवचनों को नवांग और दूसरे स्थान में द्वादशांग कहा गया है। नवांग--
१. सुत्त-भगवान् बुद्ध के गद्यमय उपदेश । २. गेय्य-गद्य-पद्य मिश्रित अंश । ३. वैय्याकरण-व्याख्यापरक ग्रन्थ । ४. गाथा-पद्य में रचित ग्रन्थ । ५. उदान-बुद्ध के मुख से निकले हुए भावमय प्रीति-उद्गार। ६. इतिवृत्तक- छोटे-छोटे व्याख्यान, जिनका प्रारम्भ 'बुद्ध ने ऐसा कहा' से होता है। ७. जातक-बुद्ध की पूर्व-जन्म-सम्बन्धी कथाए। ८. अब्भुतधम्म' - अद्भुत वस्तुओं या योगज-विभूतियों का निरूपण करने वाले ग्रन्थ । है. वेदल्ल-वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली में लिखे गए हैं।
द्वादशांग
१. सूत्र, २. गेय, ३. व्याकरण, ४. गाथा, ५. उदान, ६. अवदान ७. इतिवृत्तक, ८. निदान, 8. वैपुल्य, १०. जातक, ११. उपदेश-धर्म और १२. अद्भुत-धर्म' ।
जैनागम बारह अंगो में विभक्त हैं-१. आचार, २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपासकदशा, ८. अन्तकृतदशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद।
'अंग' शब्द का प्रयोग भारतीय दर्शन की तीनों प्रमुख धाराओं में हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में मुख्य ग्रन्थ वेद और पिटक हैं। उनके साथ 'अंग' शब्द का कोई योग नहीं है। जैन साहित्य में मुख्य ग्रन्थों का वर्गीकरण गणिपिटक है। उसके साथ 'अंग' शब्द का योग हुआ है । गणिपिटक के बारह अंग हैं-'दुवालसंगे गणिपिडगे" ।
१. पाणिनीयशिक्षा, ४१।१२ । २. सद्धर्मपुडरीक सूत्र, पृ० ३४ ३. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ 'अभिसमयालंकार' की टीका' पृ० ३५ :
सूत्रं गेयं व्याकरणं, गाथोदानावदानकम् । इतिवृत्तकं निदानं, वैपुल्यं च सजातकम् ।
उपदेशाद्भुतौ धर्मो, द्वादशांगमिदं वचः ।। ४. समवाओ पइण्णगसमवाओ, सूत्र ८८ ।
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जैन-परम्परा में श्रुत-पुरुष की कल्पना भी प्राप्त होती है। आचार आदि बारह आगम श्रुत-पुरुष के अंगस्थानीय हैं। संभवतः इसीलिए उन्हें बारह अंग कहा गया। इस प्रकार द्वादशांग 'गणिपिटक' और 'श्रुत-पुरुष'-दोनों का विशेषण बनता है।
आयारो
नाम-बोध--
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का पहला अंग है। इसमें आचार का वर्णन है, इसलिए इसका नाम 'आयारो' (आचार) है । इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं-आयरो और आयारचूला।
विषय-वस्तु
समवायांग और नन्दी में आचारांग का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके अनुसार प्रस्तुत सूत्र आचार, गोचर, विनय, वैनयिक (विनय-फल), स्थान (उत्थितासन, निषण्णासन,
और शयितासन), गमन, चंक्रमण, भोजन आदि की मात्रा, स्वाध्याय आदि में योग-नियंजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त-पान, उद्गम-उत्थान, एषणा आदि की विशुद्धि, शुद्धाशुद्ध-ग्रहण का विवेक, व्रत, नियम, तप, उपधान आदि का प्रतिपादक है।
आचार्य उमास्वाति ने आचारांग के प्रत्येक अध्ययन का विषय संक्षेप में प्रतिपादित किया है। वह क्रमशः इस प्रकार है
१. षड्जीवकाय यतना। २. लौकिक संतान का गौरव-त्याग : ३. शीत-ऊष्ण आदि परीषहों पर विजय । ४. अप्रकम्पनीय सम्यक्त्व । ५. संसार से उद्वेग। ६. कर्मों को क्षीण करने का उपाय । ७. वैयावृत्य का उद्योग। ८. तपस्या की विधि। ६. स्त्री-संग-त्याग ।
१. मूलाराधना, ४१५६६ विजयोदया :
श्रुतं पुरुषः मुखचरणाद्यंगस्थानीयत्वादंगशब्देनोच्यते । २. (क) समवाओ, पइण्णग समवानो, सू० ८६ ।
(ख) नदी, सू०८०। ३. प्रशमरति प्रकरण, ११४-११७ ।
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१०. विधि-पूर्वक भिक्षा का ग्रहण। ११. स्त्री, पशु, क्लीव आदि से रहित शय्या। १२. गति-शुद्धि । १३. भाषा-शुद्धि। १४. वस्त्र की एषणा-पद्धति । १५. पात्र की एषणा-पद्धति । १६. अवग्रह-शुद्धि । १७. स्थान-शुद्धि । १८. निषद्या-शुद्धि । १६. व्युत्सर्ग-शुद्धि । २०. शब्दासक्ति-परित्याग । २१. रूपासक्ति-परित्याग । २२. परक्रिया-वर्जन। २३. अन्योन्यक्रिया-वर्जन । २४. पंच महाव्रतों की दृढ़ता। २५. सर्वसंगों से विमुक्तता।
निर्यक्तिकार ने नव ब्रह्मचर्य अध्ययनों के विषय इस प्रकार बतलाए हैं---
१. सत्थपरिणा-जीव संयम । २. लोगविजय-बंध और मुक्ति का प्रबोध । ३. सीओसणिज्ज-सुख-दुःख-तितिक्षा। ४. सम्मत्त-सम्यक्-दृष्टिकोण । ५. लोगसार–असार का परित्याग और लोक में सारभूत रत्नत्रयी की आराधना। ६. धुय--अनासक्ति। ७. महापरिण्णा ---मोह से उत्पन्न परीषहों और उपसर्गों का सम्यक् सहन । ८. विमोक्ख-निर्याण (अंतक्रिया) की सम्यक -आराधना। ६. उ वहाणसुय- भगवान् महावीर द्वारा आचरित आचार का प्रतिपादन'।
१. आचारांग नियुक्ति, गाथा ३३, ३४ :
जिअसंजमी अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहियव्वं । सुहदुक्खतितिक्खाबिय, सम्मत्तं लोगसारो य॥ निस्संगया य छठे मोहसमुत्था परीसहुवसम्गा । निज्जाणं अठ्ठमए नवमे य जिणेण एवंति ।।
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आचार्य अकलंक के अनुसार आचारांग का समग्र विषय चर्या-विधान' तथा अपराजित सूरि के अनुसार रत्नत्रयी के आचरण का प्रतिपादत है।
जैन-परम्परा में 'आचार' शब्द व्यापक अर्थ में व्यवहृत होता है । आचारांग की व्याख्या के प्रसंग में आचार के पांच प्रकार बतलाए गए हैं-१. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चरित्राचार, ४. तपाचार और ५. वीर्याचार' । प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों आचारों का निरूपण है
सूयगडो
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दूसरा अंग है। इसका नाम 'सूयगडो' है। समवाय, नंदी और अनुयोग द्वार-तीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है । नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने प्रस्तुत आगम के गुण-निष्पन्न नाम तीन बतलाए हैं
१. सूतगड-सूतकृत २. सूत्तकड-सूत्रकृत ३. सूयगड-सूचाकृत
प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रन्थरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है ।
इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' है। इसमें स्व और पर समय की सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है।
वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकार भेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है।
१. तत्बार्थ राजवार्तिक, १२०:
आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमितित्रिगुप्तिविकल्पं कथ्यते । २. मूलाराधना, आश्वास २, श्लोक १३०, विजयोदयाः
रत्नत्रयाचरणनिरूपणपरतया प्रथमभंगमाचारशब्देनोच्यते । ३. समवाओ, पइण्णग समवाओ, सू० ८९:
से समासमो पंचविहे पं० तं--णाणायारे दसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे । ४. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ८८
(ख) नंदी, सू०८०।
(ग) अणुप्रोगदाराई, सू०५० । ५. सूत्रकृतॉगनियुक्ति, गाथा २ :
सूतगडं सुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाई।
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३४
सभी अंग मौलिक रूप में भगवान महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं। फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही सूत्रकृत नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है। क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूत्रता के सन्दर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है-'सूयगडे णं ससमयासूइज्जंति परसमया सूइज्जति ससमय-परसमया सूइज्जति' ।
जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है।
सूत्रकृत के नाम के सम्बन्ध में एक अनुमान और किया जा सकता है। वह वास्तविकता के निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं—परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयो।, पूर्वगत और चूलिका।
आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है। प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई इसलिए इसका सूत्रकृत नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। सूत्तगड' और बौद्धों के 'सूत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है।
अंग और अनुयोग
द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं - १. चरणकरणानुयोग, २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग। ४. द्रव्यानुयोग।
चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है' । शीलांकसूरि ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्य शास्त्र) की कोटि में रखा है। उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सूत्रकृतांग प्रधानतया द्रव्यानुयोग है।
१. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०६०।
(ख) नंदी, सू० ८२ । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३४ । ३. सूत्रकृतांगचूणि पृ०५।
इह चरणाणुयोगेण अधिकारी। ४. सूत्रकृतॉग वुत्ति, पत्र १
तत्राचाराङ्ग चरणकरणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्पेयसूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग व्याख्यातुमारभ्यते ।
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समवाय तथा नन्दी में द्वादशांगी का विवरण दिया हआ है। वहां सभी अंगों के विवरण के अंत में एवं चरणकरणपरूवणता' पाठ मिलता है । अभयदेवसूरी ने 'चरण' का अर्थ श्रमण धर्म और 'करण' का अर्थ पिण्डविशुद्धि, समिति आदि किया है।
चूर्णिकार ने कालिकश्रुत को चरणकरणानुयोग तथा दृष्टिवादको द्रव्यानुयोग माना है।'
द्वादशांगी में मुख्यतः द्रव्यशास्त्र दृष्टिवाद है। शेष अंगों में द्रव्य का प्रतिपादन गौण है। द्रव्यशास्त्र में भी गौणरूप में आचार का प्रतिपादन हुआ है । चूर्णिकार ने मुख्यता की दृष्टि से प्रस्तुत आगम को आचार शास्त्र माना है और वह उचित भी है। वृत्तिकार ने इसमें प्राप्त द्रव्य विषयक प्रतिपादन को मुख्य मानकर इसे द्रव्यशास्त्र कहा है। इन दोनों वर्गीकरणों में सापेक्ष दष्टिभेद है।
ठाणं
नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का तीसरा अंग है। इसमें संख्या-क्रम से जीव, पूदगल आदि की स्थापना की गई है इसलिए इसका नाम ठाणं है।
विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम में 'स्वसमय' (अर्हत् का दर्शन), 'परसमय' तथा स्वसमय और परसमयदोनों की स्थापना की गई है । जीव और अजीव, लोक और अलोक की स्थापना की गई है।' इसमें संग्रह नय की दृष्टि से जीव की एकता और व्यवहार नय की दृष्टि से उसकी भिन्नता प्रतिपादित है। संग्रह नय के अनुसार चैतन्य की दृष्टि से जीव एक है। व्यवहार नय के दष्टिकोण से प्रत्येक जीव विभक्त होता है, जैसे---ज्ञान और दर्शन की दष्टि से वह दो भागों में विभक्त है। कर्मचेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना की दृष्टि से अथवा ध्रौव्य, उत्पाद और
१. समवायांग वृत्ति, पत्र १०२ :
चरणम्-ब्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधम् ।
करणम्--पिण्डविशुद्धिसमित्याद्यनेकविधम् । २. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ०५।
कालियसुयं चरणकरणाणुयोगो, इसिभासिओत्तरायणाणि धम्माणुयोगो, सूरपण्णत्तादि गणितानुयोगो, दिल वातो दव्वाणुजोगोत्ति । ३. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ६१॥
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विनाश की दृष्टि से वह तीन भागों में विभक्त है । गति-चतुष्टय में परिभ्रमण करने के कारण वह चार भागों में विभक्त है। पारिणामिकआदि पांच भावों की दष्टि से वह पांच भागों में विभक्त है भवान्तर में संकमण के समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उर्ध्व और अध:-इन छह दिशाओं में गमन करने के कारण वह छह भागों में विभक्त है। स्यादस्ति, स्याद्नास्ति की सप्तभंगी की दृष्टि से वह सात भागों में विभक्त है । आठ कर्मों की दृष्टि से वह आठ भार्गों में विभक्त है । नौ पदार्थों में परिणमन करने के कारण वह नौ भागों में विभक्त है। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति और पंचेन्द्रियजाति की दृष्टि से वह दस भागों में विभक्त है।' इसी प्रकार प्रस्तुत आगम पुद्गल आदि के एकत्व तथा दो से दस तक के पर्यायों का वर्णन करता है। पर्यायों की दृष्टि से एक तत्त्व अनन्त भागों में विभक्त हो जाता है और द्रव्य की दृष्टि से वे अनन्त भाग एक तत्त्व में परिणत हो जाते हैं । प्रस्तुत आगम में इस अभेद और भेद की व्याख्या उपलब्ध है।
समवाओ नाम-बोध
प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का चौथा अंग है। इसका नाम समवाओ है। इसमें जीव-अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समवतार है, इसलिए इसका नाम समवाओ है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्य-सामान्य के द्वारा निर्णय किया गया है। इसलिए इसका नाम समवाओ है।
समवाओ में द्वादशांगी का वर्णन है । यह द्वादशांगी का चौथा अंग है; इसलिए इसमें इसका विवरण भी प्राप्त है।
द्वादशांगी का क्रम-प्राप्त विवेचन नन्दी सूत्र में है। उसके अनुसार समवाओ की विषयसूची इस प्रकार है
१. जीव-अजीव, लोक-अलोक और स्वसमय-परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास ।
१. कसायपाहुड भाग पृ० १२३ २. समवायांग वृत्ति, पन १:
समिति-सम्यक प्रवेत्याधिक्येन अयनमय:-परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसार्थस्य यस्मिन्नसौ समवायः, समवयन्ति वा-समवसरन्ति संमिलन्ति नानाविधा आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसौ
समवाय इति । ३. गोमटसार, जीवकाण्ड, जीवप्रबोधिनी टीका, गाथा ३५६ :
"सं-संग्रहेण सादृश्यसामान्येन अवेयंते ज्ञायन्ते जीवादिपदार्था द्रव्यकालभावनाश्रित्य अस्मिन्निति समवायाङ्गम् ।"
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३. द्वादशांग गणिपिटक का वर्णन' ।
समवायांग के अनुसार समवाओ की विषय सूची इस प्रकार है१. जीव - अजीव, लोक- अलोक और स्वसमय परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास ।
३. द्वादशांग-गणिपिटक का वर्णन ।
४. आहार
५. उच्छ् वास
६. लेश्या
७. आवास
८. उपपात
६. च्यवन
१०. अवगाह ११. वेदना
१२. विधान
१३. उपयोग
१४. योग
१५. इन्द्रिय
१६. कथाय
१७. योनि
१८. कुलकर
१९. तीर्थकर
२०. गणधर
२१. चक्रवर्ती २२. बलदेव वासुदेव ।
दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समवायांग की नदि - त, विषय-सूची संक्षिप्त है जौर समवाओ गत विषय-सूची विस्तृत । विषय-सूची के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का आकार भी छोटा और बड़ा हो जाता है ।
दोनों विवरणों में 'सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है' इसका उल्लेख है । अनेकोत्तरिका वृद्धि का दोनों में उल्लेख नहीं है । नन्दीचूर्णी, हारिभद्रीयावृत्ति तथा मलयगिरीयावृत्ति - इन तीनों में अनेकोत्तरिका वृद्धि का कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अनेकोतरिका वृद्धि की चर्चा की है। उनके अनुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती हैं और उसके पश्चात् अनेकोत्तरिका वृद्धि होती है।
वृत्तिकार का यह उल्लेख समवायांग के विवरण के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध पाठ के आधार पर है ऐसा प्रतीत होता है।
१. नन्दी, सू० ८३ :
से कि तं समवाए ? समाए गं जौवा समासिज्जति, भजीवा समासिवनंति जीवाजीवा समासिज्यंति। ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय परसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, श्रलोए समाजिद, लोपालोए समासिव समाएवं एमाइयाणं एगुतरियाणं ठाणसयं निवाणं भावाणं पवणा विदुवालसहित य गणिपिनस्वयम् समासिवजइ ।
२. समवायो, पण माओ०१२ ।
,
३. समवायांग, वृत्ति, पत्र १०५ :
'च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोत्तरिका अनेकोत्तरिका च तत्र शतं यावदेकोत्तरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति ।'
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दोनों विवरणों की समीक्षा करने पर दो प्रश्न उपस्थित होते हैं
१. नन्दी में समवायांग का जो विवरण है, उससे उपलब्ध समवायांग क्या भिन्न नहीं है ?
२. क्या उपलब्ध समवायांग देवधिगणी की वाचना का है? यदि है तो समवायांग के दोनों विवरणों में इतना अन्तर क्यों ?
प्रथम प्रश्न के समाधान में यह कहा जा सकता है कि नन्दीगत समवायांग विवरण के अनुसार समवायांग सूत्र का अन्तिमवि षय द्वादशांगी के आगे अनेक विषय प्रतिपादित हैं। इससे ज्ञात होता है कि समवायांग का वर्तमान आकार नन्दीगत समवायांग विवरण से भिन्न है।
दूसरे प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना कठिन हैं, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि आगमों की अनेक वाचनाएं रही हैं। इसीलिए प्रत्येक अंग के विवरण में अनेक वाचनाओं (परिता वाणा) का उल्लेख किया गया है । अभयदेवसूरि ने समवायांग की वृहद् वाचना का उल्लेख किया है' । इससे अनुमान किया जा सकता है कि नन्दी में लघु वाचना वाले समवायांग का विवरण है ।
अभयदेवसूरि को प्रस्तुत सूत्र के वाचनान्तर प्राप्त थे, ऐसा उनकी वृत्ति से ज्ञात होता है । समवायांग परिवर्धित आकार के विषय में दो अनुमान किये जा सकते हैं
१. प्रस्तुत सूत्र देवर्षिगणी की वाचना से भिन्न वाचना का है ।
२. अथवा द्वादशांगी के उत्तरवर्ती अंश देवगणी के पश्चात् इसमें जोड़े गए हैं।
यदि प्रस्तुत सूत्र भिन्न वाचना का होता तो इस विषय में कोई अनुभूति मिल जाती। ज्योतिकरण्ड माथुरी वाचना का है -- यह अनुश्रुति वराबर चलती आ रही है । उपलब्ध समवायांग भी यदि माथुरी वाचना का होता तो उस विषय की कोई अनुश्रुति मिल जाती ।
प्रथम अनुमान की पुष्टि की संभावना कम होने पर दूसरे अनुमान की संभावना बढ़ जाती बढ़ है। किन्तु भगवती तथा स्थानांग से दूसरे अनुमान का भी निरसन हो जाता है। भगवती में कुलकर तीर्थंकर आदि के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है । इसी प्रकार स्थानांग में भी बलदेव- वासुदेव के पूरे विवरण के लिए समवायांग के अन्तिम भाग को देखने की सूचना दी गई है। इससे ज्ञात होता है कि परिशिष्ट-भाग देवगिणी के समय में ही जोड़ा गया था ।
१ (क) समवायांग वृत्ति पत्र ५० हवाचनापामनन्तरोक्तमविचद्वयं नाधीयते। (ख) वही पत्र ५८ वृहद्वाचनायामिदमन्यदतिशपमधीयते।
२. समवायांग वृत्ति, पत्र १४४: वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम ३. भगवई शतक ५, उद्देशक ५ ।
४. ठाणं ६।१६,२० ।
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एक आगम के लिए एक संकलनकार के द्वारा दो प्रकार के विवरण (समवायांग तथा नंदी में) दिए गए—यह विचित्र बात है।
माधूरी और वल्लभी--ये दो मुख्य वाचनाएं थीं। गौण वाचनाए अनेक थीं। इसीलिए अनेक वाचनान्तर मिलते हैं। ये वाचनान्तर संभवतः व्याख्यांश या परिशिष्ट जोड़ने से हो जाते। समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती भाग उसका परिशिष्ट भाग है -ऐसी कल्पना की जा सकती है। परिशिष्ट का विवरण समवायांग के विवरण में परिवर्धित किया गया, इसलिए उसकी विषयसूची नन्दीगत समवायांग की विषय-सूची से लम्बी हो गई। परिशिष्ट भाग में प्रज्ञापना के ग्यारह पदों का संक्षेप है, ये किस हेतु से यहां जोड़े गए, यह अन्वेषण का विषय है।
कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो ।
इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनकी कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है।
मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधु-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा।
भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है।
अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस
आचार्य तुलसी
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Editorial
Ayaro
The text of the Āćárānga, adopted by us, does not depend on one specimen only. We have adopted it on the review with reference to the specimens in use, the Ćūrņi and the Vșitti. The three sūtras (27-29) in the second 'Uddeśaka' of the first Adhyayana of the 'Āyāro' are found in all the other five Uddeśakas also. In the specimens used in the redemption of the text as well as in the Ācārānga Vșitti they are not found. In the Āćārānga Čurni, commencing from the Sūtrā 'lajjamāņā pudhopasa' (Āyāro, Sû. 16, page 4) to the Sūtra 'Appege Sampamārae, Appege Uddawae' (Ayāro, Sū. 29, page 6), it is considered as 'Dhruvakandikā' (the one and the same text).
On the basis of the indications found in the Curņi, we have adopted the three Sūtras in the second Uddeśaka in the rest five Uddeśakas.
In place of 'Kumbhārāyataṇamsi wā, in the Cūrņiof the second Uddesaka (Sū. 21) of the eighth Adhyayana, many a word is found, e.g. 'uwattanagihe wā, gāmdeulie wā, kammagārasālāe wā, tantuwāyagasālāe wā, lohagārasālāe wā'. The Čūrnikāra further writes-'Jaćiyão Sālā Sawwao māniyaw
wāo'.
Here it appears that the word 'Kumbhārāyataṇamsi wā' was added with many other words meaning 'Sälā' or house but, in the course of time due to the faulty scribing, all the other words were left out. It is not possible to decide the text-system on the basis of the Cūrni only. This is why it has not been included in the text.
1. See-Ayaro, page 8, footnote no 2, page 11 ; footnote no. 2, page 14 ; footnote
no 1, page 16; footnote no. 3, page 19; footnote no. 4. 2. Acaranga Curni, page 260-261 3. Acaranga Curni, page 261.
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We have completed the abridged text, too. The tradition to abridge the text was in vouge due to learning of the śruta by heart and making the scribing easy. Pandit Bećar Das Joshi had written to Āćarya Tulsi, throwing light on this topic in an article, on 8th December 1966. He observes, "The traditional Jain Sramaņas considered the tendency to write and get written as sinful activities. They, nevertheless, adopted this path as an acception to safe-guard the scriptures. The less writing, the better. Taking this they, surely, tried to search out the way to reduce the sinful activity to the least for the safeguard of the scriptures. In the search of this path they found two novel words as 'Wannao' and 'Jāwa'. With the help of these two words, they could abridge thousands of Slokas and hundreds of sentences and their beginning was shortened as well as to deficiency occured in understanding the meaning of the scripture."
Three reasons--the system to learn the Śruta by heart, convenience by the script and the intention to write briefly, are probable to cause the abridgement of the text. It has undoubtly, caused no deficiency in the meaning, but it has marred the charm of the text. The difficulties of the reader have also increased. The Munis, having the whole Āgama literature learnt by heart, can make out the antecedents and precedents referred to by the words "Jāwa' and 'Wannaga' but the class of Munis learning with the help of the manuscripts cannot do so. The text, having the references of Jāwa' and 'Wannaga', has not proved to be much beneficial to them. We, too have been experiencing this difficulty apparently. To solve this difficulty and bring back the beauty of the text Ācārya Tulsi, our Vāćanā-head, desired that the abridged text be recompleted. We have accordingly, completed the abridged text in most places. To indicate that 'dot-marks' have been given. In the first and the second appendices, the tables to point out the places of completion in the 'Āyāro' and the 'Āyara. čūla' have been added.
According to Bećara Das Joshi, the text-abridgement was done by Devardhigani Kśamāśramana. He writes--"Devardhigaņi Kśamāśramaņa, while reducing the Āgamas in writing, kept some important points in mind. Where ever he found similar readings he avoided the later one by using the words e.g. 'Jahā Uwawāie', 'Jahā Pannawaņae' etc. to denote the omitted text. When some statement occured again and again in a work, he used the word Jāwa' and wrote the last word of it refraining from the repetition, e. g. Nāga Kumārā Jāwa wiharanti', 'Teņa Kāleņa Jāwa Parisā Niggaya' etc."
1. Jain Sahitya ka Vrihat Itihas, page 81.
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The process of abridgement might have been started by Devar dhigani, but it developed in later period. In the specimens, available at present, the abridged text is not uniformal. A Sūtra has been abridged in one specimen but written in its full version in the other. The commentators have also mentioned it in many places. In the Āupapatik Sūtra, for example, these two passages, "Ayapāyāņi wā Jāwa Aņņayarāin wā” and 'Ayabandhaņaņi wā Jāwa Aņņayarāin wā' are found. They were in the abridged form in the main specimens the Vpittikāra had, but their ful version too, was found in other specimens. The commentator himself has noted it! Many a time, the scribes, according to their own convenience did not write the preceding text again others followed them in the later specimens.
SŪYAGADO
We have adopted the text of the Sūtra Ksita depending not on one specimen only. It has been redeemed after the comparative study, based on the specimens used in the text-redemption, the Cūrņi and the readings of the Vritti, and their critical review as well.
The system to write was little popular in ancient times. Almost all the scriptures were maintained traditionally learnt by heart. This is why the 'Ghosa-Suddhi' (correctness of pronounciation) was much stressed upon. This was a pious duty of the Ācārya to correct the seat of utterence of the disciples. The Daśāśrutaskandha Sūtra says-to become 'Ghosa-Sudhi-Kārka' is one of the virtues of an Ācārya. Special arrangement was there to maintain the text and the meaning in the original form. The Chedasūtras throws full light on it.
Eight kinds of the Jānāćāra have been enumerated. Of them, the three Ācāras are concerned with the said arrangement. They are
1, (a) Aupapatika Vritti, patra 177.
(b) Pustakantare Samagramidam Sutradwayamastyeveti. 2. Dasasrutaskandha, Dasa 4. 3. Nisithabhasya, Gatha 8, part 1, page 6:
Kale vinaye bahumane, uwadhane taha aninhawane,
wanjana-atthatadubhac, atthawidho nanamayaro. 4. Ibid, gatha 17, part 1, page 12:
Sakkayamattabindu Annabhidhanena wa witam Attham, Wanjeti Jena Attham, wanjanamiti bhannate suttam.
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1. Vyanjana-To maintain the language, vowel-marks, nasal points and words of the text of Sūtra, as it is.
2. Artha --To maintain the purport (meaning) of the sutra as it is.
3. Vyanjana as well as artha-To maintain the Sūtra and its meaning both in the original form,
The Curņikära makes it clear with examples', 'Dhammoma ng alam mukkiţtham' is expressed in Präksit language. To render this reading in Sansksit “Dharmo Mangalamutkțistam' as such is a dialectical sin of Vyanjana.
In the same way, to utter 'Sawwam sāwwajjam Jogam paśćakkhāami’ as 'Sawwesāwajje joge paćčakkhami' by changing its vowels is a diacritical sin of Vyanjana.
likewise, to utter ‘Namo arahantāṇani' as 'Namo arahantāṇa' omitting the therepotent point of nasal sound and also to pronounce 'Namo aramhantāṇam' adding the point of nasal sound with ‘ra' when it is not there, is a nasal-point-change sin of Vyanjana.
To bring in the synonyms, in place of the original words of 'Dhammo mangalam mukkittham', such as 'Puņım Kallāņa mukk osam' is also a different-word-sin of Vyanjana.
The conclusion of all this account is to stress upon that the originality of language, vowel mark, point of nasal sound, word, word-number, and textorder must be maintained in all respects. Rules were laid down to expiate the sin against this arrangement. On changing the language, the vowelmark or the point of nasal sound one has to undergo the specified atonenient. On doing the Sūtra-Pātha otherwise an expiation of four months followed.2
In the conclusion of the topic, the Cūrnikāra writes3-A change of Sūtra causes a change of meaning, a change of meaning causes a change of
1. Nisithabhasya curni, Part I, page 12. 2. Ibid. 3. Nisithbhasya, Gatha 18, Curnibhasya 1, page 12.
Suttabheya atthabheo, atthabheya caranabheyo, caranabheya amokkho. Mokkhabhawat dikkhadayo Kiriyabheda aphala bhawanti. Taha vanjanabhedo na kayawwo.
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conduct and the change of conduct makes the salvation impossible. In that case all the rites, such as Dikśā etc. become futile. A change of Vyanjana, therefore, be not done.
Likewise, a change of meaning also be not made. The meaning that is uncouth and not applicable be not carried out. On changing the meaning, an expiation for four months follows?.
Similarly, on changing the Sūtra and its meaning together, both the aforesaid expiations fall on
A deep thinking had taken place to maintain the originality of the Sūtras and their meaning even in the period of composition of the Āgamas. In the present Sūtra, it is clearly stated. A muni studying the work has been alerted that he in no way is set up a Sūtra and its meaning differently or expound it otherwise. The Ćūrņikāra annotates it thusa. In no way a Sūtra be done otherwise. The meaning and that meaning only be carried out which is consistant with its own principle. The Vţittikara writes5-A Sūtra be not added to intentionally or a Sūtra or its meaning be not done otherwise.
From the aforesaid account it is learnt that it was keenly endeavoured to maintain the Sūtra and its meaning in its original form. As a result, it has been maintained also to some extent. We can, nevertheless, not say that it has not been changed. It has been done and the reasons for it are also there, e.g.
1. Forgetfulness
1. Nisithbhasya Curni, part 1, page 13. 2. Ibid. 3. Sutrakrita 1/14/26.
No Suttamattha cakarejja annam. 4. Sutrakrita Curni, page 296.
Na Sutramanyat praddhesena karotyanyathawa. Jaha ranno bhattansino ujjawalaprasno namarthas tamapi nanyatha kuryat; Jaha Awantike Awantieke Yawanti tamtogo wipparmsanti'. Sutram sarwathaiwanyatha na Kartawyam,
arthavikalpastu swasiddhantavinuddho aviruddah syat. 5, Suttrarkitavrtti, page 258.
Na ca Sutramanyat Swamativikalpanatah swarparatrayi Kuritanyatha wa suttram todartha wa sansarattrayitrana sito jantunam na vidadhita,
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2. Change of script.
3. Assimilation of the commentary with the text.
4. Intervention of time and place.
When Silänkarsuri wrote his Vritti on the 'Sutrakṛita', he had its specimens and ancient commentary (Tika) both. In one place of the second. Addhyayna of the second Śrutäskandha, the reading was not similar to that of the specimens, and the reading, that was commented on, was not found consistant with that of any specimen. He, therefore, commented on the said passage honouring only one specimen."
We have adopted the readings of the Ćurni in some places. In comparision to that of the specimens and the Vritti they appear more relevant.
In 2/6/45 the reading is 'niho nisam'. It has been commented on in the Vritti as 'piwo nisam'. We have adopted the reading of the Cürni there".
We have discussed the changes in the text and their causes under the footnotes. It was keenly endeavoured in the Vedic tradition also to maintain the originality of the text of the Vedas. But in their texts, too, there have been timely violations. Dr. Viswabandhu writes"-"It is a fact accepted by all that great pains, which know no parallel in the world. history of literature, were taken in this country to maintain the texts of the Vedic literature in their original and correct form by learning them by heart with great care and utmost reverence during the past five thousand years. Nevertheless, as the scholars, preceding to us, inicidently found here. and there as we have largely seen during our incessant research work for the past forty years, these works, too, could not be saved from the effects of time bound damages and insufficient human hurlings. Had it been mostly the other way, truly, it would be an incredible miracle,"
Continuing with the tradition of cramming and passing from one to the other age of script-change in the prolonged period. Some places of every work have deviated from their originality.
1. Suttrakritavritti, page 79:
Iha ca prayah suttradarsesu nanabhidhani Suttrani drisyante, na ca tika sambadhekapyasmabhiradarsah samuphabdhot
ekamadarsamangikrityasmabhi
viwaranam kriyate.
2. See, Footnote on 2/6/45.
3. Akhilabharatiya praciya-vidya Sammelan, Twentifourth gathering, Varanasi 1968, Mukhyadyaksiya speech, page, 8-9,
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THĀNAM
A word has different forms in Prākṣit, and these different forms are used, too, in the Āgamas. Some scholars, engaged in the editing work of the Āgamas, have stressed upon that the uniformity in the form of words should be brought up. We have not adopted this method of editing. Although accepting the sameness of the sound 'na' and 'na', only 'ņa' has been used in all the places, the principle to bring up uniformity in different forms everywhere has not been observed. In 3/373 two forms 'Sugati' and 'Suggati' are found; in 3/375 'Sogata', 'Sugata' and 'Suggata', three forms are found. We have adopted them as they are. The authors are free in their usages. As they are not the bondsmen of the rule of uniformity, to try to bring uniformity in the editing-work does not seem desirable.
The Āgamas contain the usages of different languages and syllable changes. In bringing up uniformity in them, the probability to forget the multiformity may arise. 'Wayeņam' as well as 'Kamasā' both the forms are used. "Andaya' as well as 'Andagā' for 'Andajāh' and 'Kammabhumivas as well as 'Kammabhūmigā' for 'Karmabhumijāh' both the forms are formed. To keep up the form as found in a particular place is not a fault of editing.
SAMAWÃO
The text redemption of this Sūtra is based on three specimens and the Vritti as well. In some places other works, too, have been used to redeem the text. In the specimens of the 'Prakīrṇa Samawāya' (Sutra 234) the reading Assasene' is not found. This is the name of the father of fourth Cakrawarti. In the absence of it, the arrangement of further names becomes inconsistent. In the Sangraha Gathas of the said Sūtra, the name 'Padmottara' is in excess. It has been taken as a recension. The reading "Assasene' is found in the Āwaśyaka Niryukti (399). Basing on it 'Assasene' has been adopted as the text-reading.
In the Sangraha Gatha of the Prakirņa Samawaya (Sūtra 230) BaldevaVasudeva's father's name are given. Basing on the Sthānānga (9/19) and the Awaśvaka Niryukti the amendment has been carried out. The name of the third Baladeva-Vasudeva's father is 'Rudda', but the manuscript of the Vritti of Samawāyānga mentions it as 'Soma' instead of 'Rudda'. In fact, 'Rudda' should follow Soma'.
1. See, Samawao, painnagasamawao, Sutra, 230, the first footnote.
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In all the specimens of the Samawāya 30 (Sūtra 1, gatha 26) it reads 'Sajjhayawāyam'. The vrittikāra, too, explains it as 'Swādhyāyawādam'. But it is not relevent as far as the meaning is concerned. The said 'gāthā' is found in the Daśāşrutaskandha (Sutra 26) where the reading is 'Sabbhāwawāyam' instead of 'Sajjhayawāyam'. The Vțittikära of 'Daśāsrutaskandha' has given its Sanskrit form as 'Sadbhāwa wādam'. On reviewing the meaning critically, this reading appears to be relevent.
1, See, Samawao, Samawaya 30, Sutra, 1, the second footnote of Sutra 230,
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Forward
The Classification of the Agamas
The most ancient part of the Jain literature is the Āgama. The Samawāyānga mentions two forms of the Āgama, such as, 1. Dwadasanga gaņipitakaļ and 2. Caturadaśapūrwa?, In the Nandi, two divisions of the Śruta-Jyāña (Agama) have been given. 1. Anga Pravişta and Angavāhya. The accounts, found regarding the Adhyayanas of the Sādhus and Sadhwis (monks and nuns), pertain to the Angas and purwas, as
1. The readers of the eleven Angas beginning from the Sāmayika
Sāmāiyamāiyāin ekkarasa-angāin ahijajai (Antagada, Prathama Varga). This statement is found regarding Gautama, the disciple of lord Aristanemi.
Sāmāiyamāiyain ekkarasa angāin Ahijajai (Antāgada, Panćam Varga, Prathama Adhyayana). This statement relates to Padmavati, the disciple of lord Ariştānemi.
Sāmāiyamāyāin ckkarasa-angāin (Antagada, Aştama Varga, Prathama Adhyayana). This statement pertains to Kāli, the disciple of lord Mahavira.
Sāmāiyamāiyāin ekkarasa-angāin Ahijajai (Antagada Sașța Varga, 15th Adhyayana). This statement has been given regarding Atimuktakumara, the disciple of lord Mahavira,
2. The readers of the twelve Angas
The statement regarding Jālīkumāra, the disciple of lord Ariştanemi, is given as such Bārasangi (Antagada, Caturtha Varga, Prathama Adhyayana).
1. Samawayanga, Prakirnaka, Samawaya, Sutra. 88. 2. Ibid, Samawaya 14, Sutra. 2. 3. The Nandi, Sutra. 43.
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3. The readers of the fourteen Purwas
Čauddasapuwwäin ahijjai (Antagada, tpitiya Varga, Navama Adhyayana). This is the statement found regarding Sumukhakumära the disciple of lord Aristanemi.
Sâmāiyamāiyāin Čauddasapuwwāin ahijjai (Antagada, třitīya Varga, Prathama Adhyayana). This statement is found regarding Aņiyasakumāra, the disciple of lord Aristanemi.
There were three hundred and fifty caturdaśa-pürwi munis of lord Pārswa.
There were three hundred ćaturdașa- pūrwi munis of lord Mahavirā.?
The division, Anga-Pravişta and Anga-Váhya, have not been given in the Samawāyānga and Anuyogadwāra. This division first have been made in the Nandi. The later sthaviras composed the Anga-Vāhya. Many angavāhyas had been composed before the composition of the Nandi and they were done by the ćaturdaśa-pūrwi or daśa-pūrwi sthaviras. They were, therefore, taken as solemn as the Agama and two divisions were made of it such as, 1. Anga-pravişta and 2. Anga-Vāhya. This division is not found in the Anuyogdwära (sixth century of the Vira-Nirwana). This was first done in the Nandi (tenth century of the Vira-Nirwana)
When the Nandi was composed, the Agama was classified threefold, 1. Purwa, 2. Anga-Pravişta and 3. Anga-Vahya. What we have today is only 'Anga-Pravista and 'Anga-vahya'. The 'purwas' are extinct. Their extinction is a subject of delibration from the historical point of view,
PURWA
According to the Jaina tradition, the Pūrwa is the Aksaya-Kosa (in exhaustible lexicon) of the Śruta-Jyana (word knowledge). All do not hold one and the same view about the meaning of the title and their composition. The ancient Ācāryas hold that as they were composed before the Dwadaśāngi' they were given the title 'Purwa But the modern, scholars
1. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra. 14. 2. Ibid, Sutra. 12. 3. Samawayanga vritti, Patra 101:
Prathamam Purwam tasya Sarwa pravac nat purwam Kriyamanatwat.
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view that the 'Pūrwa' was the Sruta-Rāśi of the tradition of lord Pärswa and preceding to Lord Mahāvīra, it was, therefore called “Purwa'. Whatever view of the two is accepted, the conclusion is the same that the "Pūrwas’ were composed before the 'Dwadaśāngi' or the 'Dwādaśangi' is a later composition than the 'Pūrwas'.
In the form the 'Dwādaśāngi' is now found, the 'Purwas' are assimilated, The twelfth Anga is 'Dristiwāda'. One of its divisions is 'Purwagata'. The fourteen 'Purwas' are included in it. The opinion that lord Mahāvira first composed the 'Pūrwagata 'Sruta’, leads us to the conclusion that the forteen 'Purwas' and the twelfth Anga are one and the same. The 'Purwaśruta was very difficult to understand. The common people could not follow it. The Angas were composed for the benefit of less intelligent persons. Jinabhadra-gani Kśamāśramaņa says "The Driştiwāda contains all the word-knowledge (śabda-Jyaña). The eleven Angas, nevertheless, have been composed for the good of less intelligent people. The eleven Angas were studied only by those monks (Sadhus) who were not very intelligent. The intelligent munis studied the 'Pūrwas'. From the order of classification of the Agama, it is concluded that the eleven Angas are easier than Dțiștiwāda or Pūrwas or have been in a different order from theirs.
According to the Digambara tradition the Kewalis became extinct after 62 years of Vira-nirwāņa'. After that, for a hundred years only SrutaKewalis (Caturdaśa-Pürwis) were found. Beyond that for one hundred and eightythree years only Daśapūrvīs were found. And, later to them for a period of two hundred and twenty years only the eleven-Angadharas were found.
The discussion, given above, makes it quite clear that so long as the Āćara etc. Angas were not composed, the Sruta-Raśī of lord Mahavira was called 'Caudaha Purwaś or 'Dțiștiwäda'. When the eleven Ācāra
1. Nandi, Malayagiri vritti, Patra 240.
Anye tu wyacaksate purwam purwagatasutrarthamarhan bhaste, Ganadhara api purwam purwagata Sutram Vira cayanti, Pascadaearadikam. Visesawasyaka Bhasya, Gatha 554. Ja-i-wi ya Bhutawa-e sawwassa waogaya ssa Nijjuhana Tahawi hu, dummehe
pappa itthi oyaro ya. 3. Jayadhawala, Prastawana, Page 49.
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etc. Angas were composed, the Dțistiwāda was given in the form of the twelfth Anga.
Though the two different accounts, such as, 'readers of the twelve Angas' and 'readers of the fourteen Purwas' are found, it cannot be said that the scholars in the fourteen Purwas were not scholars in the twelve Angas and vice-versa. Gautama Swami was called Dwādaśängavit. He was a *ćaturdaśa-purvī' as well as "Angadhara'. A 'śruta-kewali' was somewhere called 'Dwādaśāngavit' and sometimes ‘ćaturdaśa-pürvi' as well.
As the eleven Angas are taken from or a collection of the Pūrwas, a 'caturdasa-purvi' is, of course, a 'Dwādaśangi' also. As the fourteen Purwas are incorporated in the twelfth Anga, a 'Dwādaśāngavit too. We, therefore, reach this conclusion that the Āgama had only two ancient classifications 1. the Fourteen Purwas and 2. the eleven Angas. The 'Dwādasangi' had no independent standing. This is the title given to the Purwas and the Angas jointly.
Some modern scholars hold the Pūrwas, to be of the period of lord PārŚwa and the Angas of lord Mahāvira. But this view is not correct. The tradition of the Purwas and the Angas was prevelent at the time of lord Ariştanemi and lord PārŚwa too. That the Angas were composed for the use of less intelligent people has been told before. That the intelligence quotient of all the Munis at the time of lord PārŚwa was equal is incredible. The intelligence quotients have always differed in each and every age. Considering from the psychological and practical view, we reach the conclusion that the necessity of the Angas prevailed in the order of lord PārŚwa too. To support this view that at the time of lord PārŚwa only the Purwas and not the Angas existed, no evidence is, therefore, found. By common sense this fact is estabilished that the Pūrwas and the Angas were renovated according to the purport, language, style and necessity of the age in the order of lord Mahāvīra. Fancy has, perhaps, played a main role to support the view that the Pūrwas were received traditionally from lord Pārswa and the Angas were composed in the tradition of Lord Mahävīra. 3. Anga-Pravişta and Anga-Vāhya
It is heard by all that the gañadharas Gautama etc., composed the Pūrwas and the Angas at the time of lord Mahāvīra. A simple question
1. See the beginning of the preface.
ITttaradhyavana 2317
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arises if other Munis did not compose the Agama works. There had been fourteen thousand desciples of lord Mahävira1. Of them seven hundred were 'Kewalis' and four hundred 'Wādīs'. That they did not take part in the composition of the Agamas does not seem credible. The Nandi says that the disciples of Lord Mahavira composed fourteen thousand 'Prakirnakas" besides the aforesaid 'Purwas' and 'Angas'. Nothing proves that the classi fication, such as, 'Anga-Pravista' and 'Anga-Vahya' was done at that time. When the later Acaryas compiled the works after the 'Nirwana' of lord Mahavira, the discussion was, perhaps, held to classify them under the Angamas or not and the question of their authenticity, too, arose. After the discussion it was decided to classify the works, composed by the 'éaturdasa-pūrvi' and the 'Dasa-pūrvi' sthaviras, under the Agama but they were not considered authentic by themselves. Their authenticity depended on on others. That they are consistent with the 'Dwadasangi' was the touch-stone to give them the title of the Agama. As their authenticity was dependent, the necessity was felt to keep them out of the class of the 'Anga Pravişta' and, in this content only, the 'AngaVahya' class of the Agama took place.
Jinabhadragani Kşmaşramaņa ascertains the kinds of 'Anga-Pravista and 'Anga-Vahya' on three grounds, such as
1. That which is composed by a ganadhara.
2. That which is expounded by a Tirthankara on the query of a ganadhara.
3. That which is pertaining to the firm-eternal truths, and is perpetual and permanent; and that Sruta only is entitled as 'Anga-Pravista".
Contrary to this 1. that Śruta which is composed by a Sthavira, temporary or suited to the times only is entitled as 'Anga-Vähya".
The main ground to differenciate the Anga-Pravista from the Anga
1. Samawayanga, Samawaya 14, Sutra 4.
2. Nandi, Sutra. 78.
Coddaspa-i-nnagasasahassani Bhagwa-O Baddhamanassa.
3. Visesavasyakabhasya, Gatha 552.
Ganahara-therakatham wa, Aesa. Mukka-wagarana-O wa. Dhuva-cala visesa-O wa, Anganamgesu Nanattam.
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vähya is based on the difference of the person who has spoken it'. The Āgama delivered by Lord Mahavira and compiled by the gañadharas, is accepted as the basic Angas of the Śruta-Purușa. It is, therefore called the *Anga-Pravišta. According to Sarvārthsiddhi the speakers are of three kinds, 1. the Tirthankara, 2. the Śruta-Kewali and 3. the Ārātiya. The Āgamas Composed by the Ārātiya Aćāryas are regarded as 'Anga-Vāhya'. According to Ācārya Akalanka, the Āgamas composed by the ĀrātiyaĀćārya reflect the meaning supported by the Angas. They are, therefore, called the 'Anga-Vähyas." The Anga-Vähya Agamas are as good as the Pratyanga or Upānga of the Śruta-purusa.
ANGA The twelve Āgamas incorporated in the Dwādaśāngi are called Angas. The word 'Anga' is found in the literature of Sanskrit and Prakrit both. In the Vedic literature the works assisting the study of Vedas are given the title of 'Anga' They are six
1. Siksa - The work that expounds the rules of utterence of the words. 2. Kalpa-The scripture that expounds the vedic rites and rituals in an
order and agreement. 3. Vyakarana-The scripture that expounds the theories of morphology
and meaning of the words. 4. Nirukta---The scripture that expounds etamology of the words. 5. Chandas -The scripture that expounds the theories of morpheme to
recite the Mantras. 6. Jyotis--The scripture that expounds the theories to find correct
time for the rites of Yajna-Yāga etc. The Vedas have been personified in the Vedic literature. Accordingly the "Sikşā' has been regarded as nose, the kalpa' as hands, the 'Vyakarana' as mouth. the 'Nirukta' as ears, the Chandas as feet and the Jyotis as eyes of the Veda-person. They are therefore, called the parts of the body of Vedas In the Pali-literature, too, the word 'ånga' has beenu sed. At one place the Buddha-Vaćanas' have been called 'Nawānga' and 'Dwādasănga' at the other.
1. Tatwartha-bhasya, 1/20.
Waktri-visesad dwaividhyam. 2. Sarvarthasiddhi, 1/20
Trayo waktarah - Sarvajna Tirthapkarah, itaro wa Srutakewali Aratiyasceti. 3. Tattwartha - Rajavarttika, 1/20.
Aratiayacarya Kritangarthapratyasannarupamangavahyam. 4. Papiniyasiksa, 41, 12.
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Nawanga
1. Sutta-The sermons of lord Buddha in prose. 2. Geyya - The mixed portion of prose and verse. 3. Vaiyyakarana - The works containing explanation. 4. Gatha-The works composed in verse. 5. Udana-The gistful and affectionate expressions deliver d from the
mouth of lord Buddha. 6. Itibuttaka-Small lectures beginning with the words, ‘Lord Buddha
said thus'. 7. Jataka--The stories of the former births of lord Buddha. 8. Abbbutadhamma-The work that explains the mysterious things or
the superhuman powers born of the "Yoga'. 9. Vedalla—Those sermons which have written in the form of
dialogues.. Dwadasanga
1. The Sutra, 2. the Geyya, 3. the Vyakarane, 4. the Gatha, 5. the Udana, 6. the Awadana, 7. The Itivșittāka, 8. The Niduna, 9. the Vaipālya 10. The Jataka, 11. the Upadeśa-dharma and, 12. the Adbhuta-dharma.
The Jaināgama has been divided into twelve Angas
1. The Aćara 2. The Sūtraksita 3. The Sthāna 4. The Samawāya 5. The Bhagawati 6. The Jynātā Dharmekatha 7. the Upāsakadaśa 8. the Antaksita 9. the Anuttaropapātika 10. the Praśna-Vyākaraņa 11. the Vipāka and 12. the Dțiștiwāda.
The word "Anga' has been used in the three chief Indian philosophical schools. The main works of the Vedic and Buddhist literature are the Vedas and the Pitakas respectively. Nowhere the word 'Anga' has been added to them. The main works in the Jain literature have been classified as the Ganipitaka. The Ganipitaka has the twelve Angas-Duwālasange ganipitage.
1. Saddharma Pundakrika Sutra, page 34. 2. Buddha Sanskrit Grantha Achisamayalankar' Ki tika, Page, 35.
Sutram Geyam Vyakaranam, Gathoanavada Dakam. Itibrittakam Nidanam, Vaipulayam ca Sajatakam.
Upadesadbhutau dharman, Dwadasangamidam vacah. 3. Samawayanga, Prakirnaka Samawaya, Sutra 88.
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The personification of Sruta-Puruşa' too, is found in the Jain-tradition. The twelve Āgamas, Āćara etc., are like the parts of the 'Sruta Puruşa'. They are, therefore, called the twelve Angas'. So the Dwādaśānga becomes the adjective of the Gaņipitaka and the Śruta-Puruşa' both.
AYĀRO
The title
This Āgama is the first Anga of the 'Dwādaśängi'. As it contains the account of the conduct (Āćāra), the title 'ĀYĀRO'. It has two Srutaskandhas-1. ĀYĀRO, 2. ĀYĀRAČULA
The Contents
The Samawāyānga and the Nandi give an account of the Alaränga According to that the present Sūtra explains the Acara, Goćar. Vinava Vainavika (fruit of vinaya), (Utthitāsana, Nişaņāsana and Sayitāsana). Gamana, camkramaņa. Dose of food etc., application of Yoga in self study ste language, Samiti, Gupti, Sayya, Upadhi, Bhakta-Pāna (edibles and drinks), Udgama-Utthana, the purity of 'eşņā (motives) etc. the discernma of taking Suddhāśuddha, Vșita, Niyama, Tapas, Updhan etc.
Ādārya Umāswāti has expounded the topics of every Adhyayana in the Aläränga in brief That is given in the order as under :3
1. Sadajīvakāya Yātnā. 2. Renunciating the glory of the wordly off-springs. 3. Winning over of the Parișahas, such as cold-hot etc. 4. Undaunted Samyaktwa. 5. Udvegas of the world. 6. The means of nullifying the ‘Karmas' (deeds). 7. The endeavour to `Vaiyavritya'. 8. The way to penance.
1. Mularadhna 4/599, Vijayodaya :
Srutam Purusah Mukhcarabadyangasthaniyatwadangasabdenocyate. 2. (a) SamaWayanga, Prakirnaka SamaWaya, Sutra. 89.
(6) Nandi, Sutra. 80, 3. Prasamarati Prakarana,114-117,
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9. Renunciation of passion for woman.
10. Rules to receive the alms.
11. Bed without woman, Creature, eunuch etc.
12. Purity in movement.
13. Purity of language.
14. Method of begging cloth.
15. Method of begging bowls.
16. Purity of habit (Avagraha). 17. Purity of Place (Sthana).
18. Purity of 'Visadya".
19. Purity of "Vyutsarga".
20
Renunciation of attachment to sound
21. Renunciation of attachment to form.
22. Giving up 'Parakriya'.
23. Giving up 'Anyonya-kriya".
24. Steadfastness to the Five Mahävitas.
25. Libration from 'Sarvasangas' (all associations).
The Niryuktikåra has enumerated the topics of the nine Adhyayanas of Brahmacarya as under:
1. Satya Parinna-Jiva Samyama.
2. Loga Vijaya-Knowledge of bondage and libration.
3. Siosanijja-Equanimity of pleasure and pain.
4. Sammatta-Right vision.
5. Loga-Sara-Renunciation of worthless and adoration of the Ratnatrayi, worthy in the world.
1. Acaranga Niryukti, Gatha 33-34:
Jiyasamjamo a logo jaha bajjhai jaha ya am pajahiyav vam, Suhadukkhatitikkhaviya sammattam logasaro ya.
Nissangaya ya chatthe mohasamuttha parisahuwasagga,
Nijjanam atthamae nawame ya jinena evamti.
2, Tatwartha Rajavarttika, 1/20.
Acare carya-vidhanam sudhyastaka panlasamiti-triguptivikalpam kathyate.
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6. Dhuya--non-attachment. 7. Mahaparinna--Enduring properly the Parișahas and Upsargas born
of 'Moha'. 8. Vimokkha - Proper observanes of 'Niravaņā' (the final state). 9. Uvahanasuya-Explanation of the conduct observed by lord Mahā
vira'.
Ācārya Akalanka holds that the total matter of the Aćārānga is concerning the 'Čarya-Vidhana' (mode of behaviour and conduct). While Aparājit Suri opines that it is the ascertainment of the conduct of the Ratna-trayi'?
SŪYAGADO
The Title
This Āgāma, the second part of the Dwādasāngi, is given the title as Süyagado'. The Samawāya, the Nandi and the Anuyogadwār, all the three Āgāmas have this title only for it. Bhadrawāhu-Swami, the Niryuktikāra has given three titles of this Agama according to its tributes.
1. Sūtagada-Sütaksita 2. Suttakada--Sūtrakrita 3. Sūyagada--Sūćākrita
Originally this Agama is 'Sūta' (hails from) by lord Mahavira and was given the form of a work by ganadhara. This is, therefore, entitle as 'Sutakrita'.
As the truth in it has been ascertained according to the 'Sütrā', it is "Sutraksita'.
As the 'Sućanä' of 'Swa' and 'Para' Samaya has been given in it, it is called 'Sūćā-krita.'
1. Mularadhna, Aswasa 2, Sloka 130, vijayodaya :
Ratnatrayacarana nirupanaparataya prathamabhangamacare sabdenocyate. 2. (a) Samawao, Paissagamawao, Sutra. 88.
(b) Nandi, Sutra. 80.
(c) Anuogadwarain, Sutra. 50. 3. Sutrakritanga-niryukti, Gatha 2:
Sutagadam, suttakadam, suyagadam cewa gonna-in,
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Sūta", "Sutta' and 'Süya' are as a matter of fact, the Prakrit forms of 'Sütra' only. These different formations led to the imagination of the three attributive titles.
Originally, all the Angas were delivered by lord Mahāvīra and brought into a composed form by Ganadhara. Then, how can this Agama only be called "Sūtrakṣita'? Similarly, the second title, too, is common to all the Angas. The third is the significant basis of the title of this "Āgama'. As the conduct has been ascertained in the context of a comparative preception (Sütrnā) in this Agama, it is concerned with 'Sućana'. The Samawāya and the Nandi clearly state this -
Sūyagade ņam sasamayāsühajjanti, Parasamaya Sühajjanti sasamayaparasamayā suhajjanti. What is preceptive is called a "Sutra'. The background of this Agama mainly consists of preceptive element. Its title is, therefore, "Sūtrakṣita'.
Another thought, which seems to touch the 'reality more closely, can be put forth regarding the title 'Sutrakṣita'. The Driştiwāda is five fold
1. Parikarma 2. Sutra 3. Pūrwānuyoga 4. Pūrwāgata 5. Cūlikā
According to Acarya Virasena the Sūtra has an account of other philosophers. As this Agama was composed on that basis only, it was given the title "Sūtrakrita.' This meaning seems to be more logical than the other etomological meanings of the word 'Sutraksita'. The 'Suttagada' and the "Suttanipāta' of the Budhists seem to be identical in their titles.
Anga and Anuyoga
This Agama has the second place in the Dwādāśāngi. There are four kinds of Anuyoga---
1. Čaranakaranānuooga. 2. Dharmakathānuyoga. 3. Ganitānuyoga. 4. Drawyānuyoga.
1. (a) Samawao, paissagasamawao, Sutra 90.
(b) Nandi, Sutra. 82. 2. Kasayapa huda, Part 1, page 134.
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The Ćurņikāra holds that this Āgama is 'caraṇakaraṇānuyoga (treatise on conduct). Silänkasūri has classified it under "Drawyānuyoga' (treatise on substances). According to him the Ācārānga is primarily a caraṇakaranayoga while 'Sūtrakṣitānga' is primarily a 'Drawyānuyoga'.
The Samawāya and the Nandi give an account of the 'Dwādaśāngi.' At the end of the account of the Angas, the lines read 'ewam carņakaranaparuwaņayā'. Abhayadeva Sūri connotes the meaning of 'caraṇa' as 'Sramana-dharma' and of 'Karana' as 'Pinda-visuddhi, Samiti etc.
The cūrņikara has regarded the Kālikasruta as a 'caraṇakaranayoga' and the 'Driştiwāda' as a 'drawyanuyoga'. 4
The Dwādaśāngi primarily expounds the Driştiwāda, treatise on substances and secondarily the code of conduct. The Curņikara legimately regards this Āgama primarily as a treatise on the code of conduct while the Vrittikāra lying stress upon its ascertainment of Dravya (substance), calls it DravyaŚaśtra (a treatise on substance). Both of these classifications have a dialectical variation.
THANAM The title
This Agama is the third part of the Dwādaśāngi. It sets up the Jiva, Pudgala etc., in number-order. Hence the title , Thanam'. The Contents
Swa-samaya (Arhat-philosophy), Para-Samaya as well as swa-samaya and Para-samaya both have been set up in this Agama. The Jiva and the Ajīva, the Loka and the Aloka have been founded here.5
One-ness of the Jiva and its sevarality, according to the views of the 'Sangraha Naya' and the "Vyavahāra Naya,' have been expounded
1. Sutrakritainga Curni, page 5.
iha carananu-o-gena adhikaro. 2. Srtrakritangaritti, page, 1.
Tatracaranga carnakaranam pradhanyena Vyakhyatam, adhuna awasarayatam
drawya pradhanyena sutrakritakhyam dwitiyamangam Vyakhyatumarabhyate. 3. Samawayangavritti, Patra 102.
Caranam - Vratasramanadharma Samyamadyanekavidham. Karanam-Pindavisuddhi Samityadyaneka vidham.
Sutrakritanga Curni4. Kaiyasuyam caranakarananuyogo isibhsiottar ajjhayanani dhammanuyogo,
Surpannattadi ganitanuyogo; ditthiwado dawwanujogotti. 5. Samawao, painnagasamawao, Sutra. 92
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in it.
According to the Sangraha Naya, the Jiva is one and the same. far as the soul is concerned. From the view point of the 'vyavahara-naya' each and every Jiva is parted with, i.e. it is divided into two parts according to the knowledge and appaerance, into three parts according to the 'Karma-ćetna' or 'Phrowge-utpada' and 'Vināśa', into four parts because of its wandering in the four-fold motion; into five parts from the view point of 'Pariņāmikadi' five states; into six parts due to the accession to the six directions, such as the East. West, North, South, up-ward and down-ward at the time of transgression to other birth; into seven parts according to the seven kinds of 'Syadasti-Syādnāsti'; into eight parts according to the eight Karmas'; into nine parts as it changes into the nine substances; and into ten parts from the view point of the 'Prithivi-Käyika', 'Jala Käyika', 'Agni-Käyika', 'Wayu-Kayika', 'Pratyeka Vanaspati-Käyika', 'Sädhärana Vanaspati-Käyika' species having two organs, species having three organs, species having four organs, and species having five organs.1 Likewise, this Agama gives an account of one-ness of 'Pudgala' etc. and their various 'Paryayas' (modifications) counting from two to ten. From the viiew of 'Paryayas', one and the same element parts with into innumerable and unlimited parts, and, from the view point of the matter (Dravya), these innumerable parts conform into one and the same element. This exposition of conformity and deformity is well found in this Agama.
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Samawão
The title
The Agama is the fourth part of the 'Dwadasangi' having the title 'Samawão'. The substances, Jiva-Ajiva etc., have been put into divisions. or brought down properly in this Agama, therefore, the title 'Samawão"," According to the Digamber literature, this Agama speaks of similarity of the Jivadi substances therfore, called the 'Samawão'. The 'Samawão'
1. Kasayapahuda, part 1, page 123.
2. Samawao-Vrithi, patra 1,
Samit-Samyaka avetyadhikyena ayanamayah Paticchedo Jivajivadi-vividhapadartha Sarthasya yasaminnasan Samawayah
Samawayanti wa, Samawasaranti Sammilanti nanawidha Atmadayo Bhawa Bhawa abhidheya.aya Yasminnasan Samawaya iti.
3. Gommatasata Jivakanda Jivaprabodhni Tika, gatha 356. "Sam-Sangrahena Sadrisya-Samanyena Avayante dravya kalabhavan a sritya asmitnniti 'Samawayangam. Nandi, Sutra. 83
jnayante jivadipadartha
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gives an aocount of the 'Dwādaśangi'. And, as it is the fourth part of the 'Dwādaśangi', it narrates the 'Samawāo', too.
The Nandi-Sutra discusses the 'Dwadaśangi in order. The table of contents of the 'Samawão' has been given in it as under:
1. The description of the Jiva-Ajiva, Loka-Aloka and Swa-Samaya as the well as Para-samaya.
2. The evolution of the number beginning from one to hundred. 3. The account of the Dwadaśanga ganipitaka.
According to the 'Samawāyānga’ the table of contents of the 'Samawā-o' is as follows:
1. The description of Jiva-Ajīva, Loka-Aloka and swa-samaya as well as Para-samaya,
2. The evolution of the number beginning from one to hundred 3. The account of the 'Dwādaśānga-gani- pitaka'. 4. Ahāra 5. Ućchwāsa 6. Leśyā 7. Āwasa 8. Upapāta 9. Čyawana 10. Awagāha 11. Vedanā 12. Vidhana 13. Upayoga 14. Yoga 15. Indriya (organs) 16. Kaşāya 17. Yoni 18. Kulakara
1. Se kim tam samawac nam jiva samasijjanti, ajiva samaanjsa jti jivajiva samasij
janti. Sasamae samasijjai, para-samaye Samasijjai, Sasamaya para sama-e samasijja-i. Loe sa masijjai, aloe samasijjai, lo-a-loe samasijjai, samaWaenam ega-i-yanam eguttariyanam thanasaya-niwaddhiyanam bhawanam paruwana adhhawijja-i duwalasa vihassa ya ganipidagssa pallawagge samasiija-i.
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19. Tīrathankara 20. Gañadhara 21. Cakrawarti 22. Baladeva-Vasudeval.
A comparative study of both the tables of contents makes it clear that the table of contents given in the Nandi is a brief one, and that of the 'Samawa-o' large. The volume of the Sūtra, too, becomes short and long according to the tables of contents.
That the 'ekottarika Vriddhi' (Increasing one by one) takes place upto hundred is mentioned in both the accounts. In either of them, there is no mention of the 'Anekottarika Vriddhi'. The Anekottarika Vriddhi has not at all been mentioned in the Nandi Čūrni, Haribhadrīyā Vritti and the Malaya Giriyavritti, all the three Abhayadeva Sūri has discuss the Anekottarikā Vșiddhi in his Vțitti of Samawāyānga. According to him, the Ekottarika Vșiddhi takes place upto hundred and beyond that the Anekottarikā Vșiddhi.2
It appears that the Vșittikāra has discussed it not on the account given in the 'Samawāyānga' but on the text then available to him.
On reviewing both the accounts, two questions arise
1. Is not the present Samawāyānga different from the account of the Samawāyānga given in the Nandi ?
2. Is the present Samawāyanga is of the Vaćna by Devardhigani ? Jf so, why then such a variation in both the accounts of the 'Sama wāyānga'?
In reply to the first question, it can be said that 'Dwādasānngi' is the final content of the Samawāyānga-Sutra according to the account, relating to the Samawāyānga, given in the Nandi. Many a content has been expounded beyond the 'Dwadaśängi' in the present Samawāyānga. It is therefore, established that the present volume of the 'Samawāyanga' is different from that of the account of the Samawāyānga given in the Nandi.
1. Samawa-o, pa-i-nnagasamawo, Sutra. 92. 2. Samawa-o Vritti, patra 105.
ca sabdasya canyatra sambandhatakottarika anekottarika ca, tatra satam yawa lekottarika parato gnekottariketi,
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Difficult it is to give an assertive answer to the second question. So much, nevertheless, can be said that there had been various Vāćanās of the Āgamas. This is why a mention of various Väćanās (Parittä Vāyaņā) has been made while giving the account of each and every 'Anga'. Abhayadeva Sūri gives a mention of the large (Brihat) Vāćană of the Samawāyānga!. From it, this may be inferred that the Nandi gives an account of the Samawāyānga relating to the short “Vāćanā.'
It is established from the Vțitti written by him, that Abhayadeva Súri had with him various Vãćanās of this Sūtra,
There can be two likelihoods regarding the enlarged edition of the 'Samawāyānga.'
1. That this Sūtra is based upon the Vāćanā different from that of the Vāćanā of Dewardhigani,' or 2. That the portions beyond the 'Dwadasāngi' have been added to it after 'Devardhigani. Had this Sūtra depended on some different 'Vāćanā,' there would have been some tradition mentioned. This agelong traditional mention has been coming down that the Jyotis-Kanda is based upon the 'Māthuri Väćanā'. Had the present Samawäyānga, too, been based on the Māthuri Vāćanā, there would have been some traditional mention of it.
The first likelihood lacking the probablity of its support, the second likelihood gains the ground. But it too, is refuted by the Bhagwati, and the Sthānānga, The Bhagwati refers to the final part of the Samawāyānga for the full account of Kulakar, Tirath ankar etc. Likewise, the final part of the Samawāyānga has been referred to for the full account of the BaldevaVasudeva by the Sthānānga also“. It is, therefore, obvious that the appendix
1. (a) Samawao Vritti, Patra 58 : Brihadvacanayamanantaroktamatisayadwayam
cradhi yate. (b) Ibid, Patra 69:
Brihadvacanayamidamanyadatisayadwayamadhiyate. 2. Samawao Vritti, Patra 144 : Vacanantaretu paryasana Kalpo tasramentyabhi
hitam. 3. Bhagwati Satara 5; Uddesaka 5. 4. Sthananga, 9/19-20.
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was added in the time of Devardhigani only.
It is strange that one and the same editor gave two different accounts (in the Samawayanga and the Nandi) of one and the same Agama.
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There were two main Vacanās, the Mathuri and the Vallabhi. There were many other secondary Vaćanäs also. This is why there are many different readings. These different readings, probabily occured on adding the explanation or appendix portions. This can well be inferred that the later. part of the Dwadasangi in the Samawäyänga is its appendix. The account of the appendix was added to the account of the Samawayanga with the result that its table of contents swelled more than the table of the Samawayanga found in the Nandi. There is a summary of eleven stenzas of the 'Prajñāpna' in the appendix. It is a matter of investigation why they were added here ?
Accomplishment of the work
In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed.
For the editing of this Agama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Agamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever. increasing satisfaction.
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I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples.
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On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord.
Anuvrata Vihar Delhi
Acharya Tulasi
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विसयाणुक्कम
आयारो
पढमं अज्झयणं सू०१-१७७ .
पृ० १-१६ अप्पणो अत्थित्त-पदं १, आस्सव-पदं ६, संवर-पदं ७, आस्सव-परिणाम-पदं ८, कम्म-सोय-पदं ६, संवर-साहणा-पद ११, अण्णाण-पदं १३, पुढवि-काइयाहिंसा-पदं १५, पूढविकाइयाणं जीवत्तवेदनाबोध-पदं २८, हिंसाविवेग-पदं पद-३१, समप्पण-पदं ३५, आउकाइयाणं अत्थित्तअभयदाण-पदं ३८, आउकाइयहिंसा-पदं ४०, आउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ५१, हिंसाविवेग-पदं ५४, तेउकाइयाणं अत्थित्त-पदं ६६, तेउकाइयहिंसा-पदं ६६, तेउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ८२, हिंसाविवेग-पदं ८५, गिहचाइणो वि गिहवास-पदं ३, वणस्सइकाइयहिंसा-पदं १६, वणस्सइकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं १९०, वणस्सइजीवाणं माणुस्सेण तुलणा-पदं ११३, हिंसाविवेग-पदं ११४, संसार-पदं ११८, तसकाइयहिंसा-पदं १२३, तसकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं १३७, हिंसाविवेग पदं १४०, अत्ततुला-पदं १४५, वाउकाइयहिंसा-पदं १५०, वाउकाइयाणं जीवत्त-वेदणावोध-पदं १६१, हिंसाविवेग-पदं १६४, मुणि-संबोध-पदं १६६, हिंसाविवेग-पदं १७६ ।
बीयं अज्झयणं सू० १-१८६
पृ० १७-२७ आसत्ति-पदं १, असरणाणपेहापूव्वं अप्पमाद-पदं ४, अरति-निवत्तण-पदं २७, अणगार-पदं ३६, दंड-समादाण-पदं ४०, हिंसाविवेग-पदं ४६, अणासत्ति-पदं ४७, समत्त-पदं ४६, परिग्गह-तद्दोस-पदं ५७, भोग-भोगि-दोस-पदं ७५, आहारस्स अणासत्ति-पदं १०४, कामअणासत्ति-पदं १२१, तिगिच्छा-पदं १४०, परिग्गह-परिच्चाय-पदं १४८, अणासत्तस्स ववहारपदं १६०, बंध-मोक्ख-पदं १७१, धम्मकहा-पदं १७४ ।
तइयं अज्झयणं सू० १-८७
पृ० २८-३३ सुत्त-जागर-पदं १, परमबोध-पदं २६, अणेगचित्त-पदं-४२, संजमाचरण-पदं ४४, अज्झत्थपदं ५१, कसायविरइ-पदं ७१।
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चउत्थं अज्झयणं
सू०१-५३
पृ० ३४-३८ सम्मावाए अहिंसा-पदं १, सम्मानाण अहिंसापरिक्खा-पद १२, सम्मातव-पदं २७, कसायविवेग-पदं ३४, सम्माचरित्त-पदं ४०।
पंचमं अज्झयणं सू० १-१४०
पृ० ३६-४७ काम-पदं १, अप्पमादमग्ग-पदं १६, परिग्गह-पदं ३१, अपरिग्गह-कामनिव्वेयण-पदं ३६. अवियत्तस्स एगल्लविहार-पदं ६२, इरिया-पदं ६६, कम्मणो बंध-विवेग-पदं ७१, बंभचेर-पदं ७५, आयरिय-पदं ८६, सद्धा-पदं ६३, मज्झत्थ-पदं ६६, अहिंसा-पदं ६६, आय-पदं १०४
मग्गदसण-पदं १०७, सच्चस्स अणसीलण-पद ११६, परमप्प-पदं १२३ । छठं अज्झयणं
सू० १-११३
पृ०४८-५६ नाणस्स निरूवण-पदं १, अणतपण्णाणं अवसाद-पदं ५, पाणि-किलेस-पदं १२, तिगिच्छापसंगे अहिंसा-पदं १५, सयणपरिच्चायधुत-पदं २४, कम्मपरिच्चायधुत-पदं ३०, उवगरणपरिच्चायधुत-पदं ५६, सरीरलाघवधुत-पदं ६६, संजमधुत-पदं ७०, विणयधुत-पदं ७४, गोरवपरिच्चायधुत-पदं ७६, तितिक्खाधुत-पदं ६६, धम्मोवदेसधुत-पदं १००, कसायपरिच्चायधतपद १०६।
अट्ठमं अज्झयणं सू०१-१३० श्लोक १-२५
पृ० ५७-७१ असमणुण्णविमोक्ख-पदं १, असम्मायार-पदं ३, विवेग-पदं ६, अहिंसा-पदं १७, अणाचरणीयविमोक्ख-पदं २१, पव्वज्जा-पदं ३०, अपरिग्गह-पद ३२, आहारहेउ-पदं ३४, अगणि-असेवणपदं ४१, उवगरण-विमोक्ख-पदं ४३, शरीर-विमोक्ख-पदं ५७, उवगरण-विमोक्ख-पदं ६२, गिलाणस्स भत्तपरिणा-पदं ७५, वेयावच्चपकप्प-पदं ७६, उवगरण-विमोक्ख-पदं ८५, एगत्तभावणा-पदं ६७, अणासाय-लाघव-पदं १०१, संलेहणा-पदं १०५, इंगिणिमरण-पदं १०६, उवगरण-विमोक्ख-पदं १११, वेयावच्चपकप्प-पदं ११६, पाओवगमण-पदं १२५, अणसण-पदं श्लो० १, भत्तपच्चक्खाण-पदं श्लो० २, इंगिणिमरण-पदं श्लो० १२, पाओवगमण
पदं श्लो० १६ । नवमं अज्झयणं
श्लोक ७०
पृ०७२-७६ पढमो उद्देसो-भगवओ चरिया-पदं श्लोक १-२३, बीओ उद्देसो--भगवओ सेज्जा-पदं श्लोक १-१६, तइओ उद्देसो-भगवओ परीसह-उवसग्ग-पदं श्लोक १-१४, चउत्थो उद्देसोभगवओ अतिगिच्छा-पदं श्लोक १-३, भगवओ आहार-चरिया-पदं श्लोक ४-१७ ।
पढमं अज्झयणं
सचित्त-संसत्त-असणादि-पदं १,
आयारचूला सू० १-१५६
पृ०८३-११६ ओसहि-आदि-पदं ४, अण्णउत्थिय-गारत्थिय-सद्धि-पदं ८,
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अस्सिपडियाए-पदं १२, समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-पद १६, कुल-पदं १६, अमी-आदि-पवपदं २१, कुल-पदं २३, महामह-पदं २४, संखडि-पदं २६, विचिगिच्छा-समावण्ण-पदं ३६ सव्वभंडगमायाए-पदं ३७, कुल-पदं.४१, संखडि-पदं ४२, खीरिणी-गावी-पदं ४४ म पदं ४६, विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५०, वियाल-परक्कम-पदं ५२, विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५३. कंटक-बोंदिय-पदं ५४, अणावायमसलोय-चिट्ठण-पदं ५५, परिभायण-संभुजण-पदं ५७, ख्वपविद्रसमणादि-उवाइक्कमण-पदं ५८, भत्तट्ठ-समुदितपाणाणं उज्जुगमण-पदं ६१, गाहावडकलपविस्स अकरणिज्ज-पदं ६२, पुरेकम्म-आदि-पदं ६३, पिहुय-आदि-कोट्टण-पदं ८२. लोण. पदं ८३. अगणि-णिक्खित्त-पदं ८४, मालोहड-पदं ८७, मट्टिओलित्त-पदं ०. पदविका पइट्ठिय-पदं ६२, आउकाय-पइट्ठिय-पदं ६३, अगणिकाय-पइट्ठिय-पदं ६४, अच्चुसिग-बीयणपदं ९६, वणस्सइकाय-पइट्ठिय-पदं १७, तसकाय-पइट्ठिय-पदं ६८, पाणग-जाय-पदं हर गंध-आघायण-पदं १०५, सालूय-आदि-पदं १०६, पिप्पलि-आदि-पदं १०७, पलंब-जाय १०८, पवाल-जाय-पदं १०६, सरडुय-जाय-पदं ११०, मथु जाय-पदं १११, आमडाग-आदिपदं ११२, उच्छु-मेरग-आदि-पदं ११३, उप्पल-आदि-पदं ११४, अग्गबीय-आदि-पदं ११५. उच्छु-पदं ११६, लसुण-पदं ११७, अस्थिय-आदि-पदं ११८, कण-आदि-पदं ११६, पच्छाकम्मपदं १२१, पुरापच्छासंथुय-कुल-पदं १२२, गिलाण पदं १२४, माइट्ठाण-पदं १२५, बहियानीहड. पदं १२८, माइट्ठाण-पदं १३०, बहुउज्झिय-धम्मिय-पदं १३३, अजाणया-लोण-दाण-पदं १३६. माइट्ठाण-पदं १३८, मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३६, सत्त पिंडेसणा सत्त पाणेसणा-पदं १४०।।
बीयं अज्झयणं
सू० १-७७
पृ० १२०-१३८ उवस्सयएसणा-पदं १, अस्सिपडियाए उवस्सय-पदं ३, समण-माहणाइ-समुहिस्स-उवस्सयपदं ७, परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०, बहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४, अंतलिक्ख-जायउवस्सय-पदं १८, सागारिय-उवस्सय-पदं २०, तण-पलालाच्छाइय-उवस्सय-पदं ३१, वज्जियन्व-उवस्सय-पदं ३३, कालाइक्कंत-किरिया-पदं ३४, उवट्ठाण-किरिया-पदं ३५, अभिक्कतकिरिया-पदं ३६, अणभिक्कंत-किरिया-पदं ३७, वज्ज-किरिया-पदं ३८, महावज्ज-किरियापदं ३६, सावज्ज-किरिया-पदं ४०, महासावज्ज-किरिया-पदं ४१, अप्पसावज्ज-किरिया-पदं ४२, उवस्सय-छलण-पदं ४४, उवस्सय-जयण-पदं ४५, उवस्सय-जायणा-पदं ४७, सेज्जायरनाम-गोय-जायणा-पदं ४८, उवस्सय-विसुद्धि-पदं ४६, संथारग-पदं ५७, संथारग-पडिमापदं ६२, संथारग-पच्चप्पण-पदं ६८, उच्चारपासवण-भूमि-पदं ७०, सयण-विहि-पदं ७२।.
तइयं अज्झयणं
सू०१-६२
पृ० १३६-१५२ वासावास-पदं १, गामाणुगाम-विहार-पदं ४, नावा विहार-पदं १४, नावा-विहार-पदं २४, जंघासंतारिम-उदग-पदं ३४, विसमद्राण-परक्कम-पदं ४१, अभिणिचारिय-पदं ४४, पडिपहिय-पदं ४५, अंगचेदापुव्वं निझाण-पदं ४७, आयरिय-उवज्झाय-सद्धि विहार-पदं ५०, आहारातिणिय-सद्धि-विहार-पदं ५२, पाडिपहिय-पदं ५४, वियाल-पदं ५६, आमोसगपदं ६०।
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चउत्थं अज्झयणं
सू० १-३६
पृ० १५३-१६० वइ-अणायार-पदं १, सोडस-वयण-पदं ३, अणुवीइ-णिट्ठाभासि-पदं ५, भासज्जात-पदं ६, सावज्ज-भासा-पदं १०, असावज्ज-भासा-पदं ११, आमंतणी-भासा-पदं १२, विधि-निसिद्धभासा-पदं १६, कक्कस-भासा-पदं १६, अकक्कस-भासा-पदं २०, सावज्ज-असावज्ज-भासा-पद
२१, अणुवीइ-णिट्ठाभासि-पदं ३८ । पंचमं अज्झयणं
सू०१-५१
पृ० १६१-१७२ वत्थजाय-पदं १, अद्धजोयण-मेरा-पदं ४, अस्सि पडियाए वत्थ-पद ५, समण-माहणाइसमुद्दिस्स-वत्थ-पदं ६, भिक्खु-पडियाए-कीयमाइ-वत्थ-पदं १२, महद्धणमुल्लव-पदं १४, अजिणवत्थ-पदं १५, वत्थपडिमा-पदं १६, संगार-बयणपुव्वं वत्थ-पदं २२, वत्थ-आघसण पदं २३, वत्थ-उच्छोलण-पदं २४, वत्थ-विसोहण-पदं २५, वत्थ-पडिलेहण-पदं २६, सअंडाइवत्थ-पदं २८, अप्पंडाइ-वत्थ-पदं २६, वत्थ-परिकम्म-पदं ३१, वत्थ-आयावण-पदं ३५, णो धोएज्जा रएज्जा-पदं ४१, सव्वचीवरमायाए-पदं ४२, पाडिहारिय-वत्थ-पदं ४६, वत्थविक्किया-पदं ४८, आमोसग-पदं ४६। ।
छठें अज्झयणं
सू०१-५६
पृ० १७३-१८४ पायजाय-पदं १, एगपाय-पदं २, अद्धजोयण-मेरा-पदं ३, अस्सिपडियाए पाय-पदं ४, समणमाहणाइ समुद्दिस्स पाय-पदं ८, भिक्खु-पडियाए कीयमाइ-पदं ११, महद्धणमुल्लपाय-पदं १३, पाय-बंधण-पदं १४, पाय-पडिमा-पदं १५, संगार-वयणपूव्वं पाय-पदं २१, पाय अब्भंगणपद २२, पाय-आघसण-पद २३, पाय-उच्छोलण-पदं २४, पाय-विसोहण-पदं २५, सपाणभोयण-पडिग्गह-पदं २६, पडिग्गह-पडिलेहण-पदं २७, सअंडाइ-पाय-पदं २६, अप्पंडाइ-पायपद ३०, पाय-परिकम्म-पदं ३२, पाय-आयावण-पदं ३८, पडिग्गह-पेहा-पदं ४४, सीओदगादिसंजुत्तपाय-पदं ४६, सपडिग्गहमायाए-पदं ५०, पाडिहारिय-पडिग्गह-पदं ५४, पायविक्कियापदं ५६, आमोसग-पदं ५७ ।
सत्तमं अज्झयणं
सू०१-५८
पृ० १८५-१९४ अदिन्नादाण-पच्चक्खाण-पदं १, ओग्गह-पद ३, अंबओग्गह-पदं २५, उच्छ्रओग्गह-पदं ३२,
लसुण-ओग्गह-पदं ३६, ओग्गह-पदं ४६, ओग्गह-पडिमा-पदं ४८, पंचविह-ओग्गह-पदं ५७ ।। अट्ठमं अज्झयणं
सू० १-३१
पृ० १६५-१६६ ठाण एसणा-पदं १, अस्सिपडियाए ठाण-पदं ३, समण-माहणाइ समुद्दिस्स-ठाण-पदं ७, परिकम्मिय-ठाण-पदं १०, बहियता-निस्सारिय ठाण-पदं १४, ठाण-पडिमा-पदं १६, संथारगपच्चप्पण-पदं २२, उच्चारपासवणभूमि-पदं २४, ठाण-विहि-पद २६ ।
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नवमं अज्झयणं सू० १-१७
पृ० २००-२०३ णिसीहिया-एसणा-पदं १. अस्सिपडियाए णिसीहिया-पदं ३, समण-माहणाइ-समुद्दिस्स णिसीहिया-पदं ७. परिकम्मिय-णिसीहिया-पदं १०, बहिया निस्सारिय-णिसीहिया-पदं १४।।
पृ० २०४-२०८
दसमं अज्झयणं
सू० १-२६ पाय-पुंछण-पदं १, थंडिल-पदं २।
एक्कारसमं अज्झयणं
सू० १-२०
पृ० २०९-२१२ वितत-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं १, तत-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं २, ताल-सह-कण्णसोयपडिया-पदं ३, झसिर-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं ४, विविह-सह-कण्णसोय-पडिया-पदं ५. सद्दासत्ति-पदं १६ ।
बारसमं अज्झयणं
विविह-रूव-चक्खूदंसण-पडिया-पदं १. रूवासत्ति-पदं १६ ।
पृ० २१३-२१५
तेरसमं अज्झयणं सू० १-८०
पृ० २१३-२२३ किरिया-पदं १, पाद-परिकम्म-पदं २, काय-परिकम्म-पदं १२, वण-परिकम्म-पदं १९, गंड-परिकम्म-पदं २८, मल-णीहरण-पदं ३५, वाल-रोम-पदं ३७, लिक्ख-जूया-पदं ३८, पादपरिकम्म-पदं ३६, काय-परिकम्म-पदं ४६, वण-परिकम्म-पदं ५६, गंड-परिकम्म-पदं ६५, मल-णीहरण पदं ७२, वाल-रोम-पदं ७४, लिक्ख-जूया-पदं ७५, आभरण-आबिंधण-पदं ७६, पाद-परिकम्म-पदं ७७, तिगिच्छा-पदं ७८ ।
चउद्दसमं अज्झयणं सू०१-८०
पृ० २२४-२३० किरिया-पदं १, पाद-परिकम्म-पदं २, काय-परिकम्म पदं १२, वण-परिकम्म-पदं १६, गंडपरिकम्म-पदं २८, मल-णीहरण-पदं ३५, बाल-रोम-पदं ३७, लिक्ख-जूया-पदं ३८. पादपरिकम्म पदं ३६, काय-परिकम्म-पदं ४६, वण-परिकम्म-पदं ५६, गंड-परिकम्म-पदं ६५, मल-णीहरण-पदं ७२, बाल-रोम-पदं ७४, लिक्ख-जूया-पदं ७५, आभरण-आबिंधण-पदं ७६, पाद-परिकम्म-पदं ७७, तिगिच्छा-पदं ७८ ।
पनरसमं अज्झयणं
सू० १-७८
पृ०२३१-२४८ भगवओ-चवणादि-णक्खत्त-पदं १, गब्भ-पदं ३, चवण-पदं ४, गब्भसाहरण-पदं ५, जम्मपदं ८, नामकरण-पदं १२, बाल-पदं १४, विवाह-पदं १५, नाम-पदं १६, परिवार-पदं १७, माउ-पिउ-काल-पदं २५, अभिणिक्खमणाभिप्पाय-पदं २६, देवागमण-पदं २७, अलंकरण-सिविया करण-पदं २८, अभिणिक्खमण-पदं २६, लोय-पदं ३०, सामाइयचरित्त-गहण-पदं ३२, मणपज्जवनाण-लद्धि-पदं ३३, अभिग्गह-पदं ३४, विहार-पदं ३५,
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७६
केवलनाण-लद्धि-पदं ३८, देवागमण - पदं ४०, धम्मोवदेस - पदं ४१, अहिंसा महव्वय-पदं ४३, अहिंसामहव्वयस्स भावणा-पदं ४४, सच्च महव्वय-पदं ५०, सच्च महव्वयस्स भावणा-पदं ५१, अतेणगमहव्वय-पदं ५७, अतेणगमहव्वयस्स भावणा- पदं ५८, बंभचेर महव्वय-पदं ६४, बंभचेरमहव्वय-स्वभावणा-पदं ६५, अपरिग्गहम हव्वय-पदं ७१, अपरिग्गहमहव्वयस्स भावणा-पदं ७२ ।
सूयगडो श्लो० १-८८
पढमं अज्झयणं
पृ० २५३-२६३ बंध - मोक्ख पदं १, पंचमहब्भूत पदं ७, एगप्प - वाद-पदं ६, तज्जीव- तच्छरीर-वाद-पदं ११, अकारक-वाद-पदं १३, आयच्छट्ट-वाद-पदं १५, बुद्धाणं पंचक्बंध-चतुधातु-वाद-पदं १७, णिस्सारता - निदंसण-पदं १६, णियति-वाद-पदं २८, अण्णाणिय-वाद-पदं ४१, सोगताणं कम्मोवचय-चिंता - पदं ५१, सुत्तकारस्स उत्तर-पदं ५६, पूइकम्म- आहार-दोस-पदं ६०, कयवाद-पदं ६४, अवतार-वाद-पदं ७०, अत्त-पवाद-पसंसा पदं ७२, सिद्ध-वाद-पदं ७४, उवसंहार-पदं ७५, जावणा पदं ७६, लोग- वाय-पदं ८०, अहिंसा -पदं ८३, भिक्खुचरिया - पदं ८६ |
ati अभयणं
इलो० १-७६
पृ० २६४-२७५ संबोधि - पदं १, अणिच्च भावणा-पदं ५, कम्म - विवाग - पदं ७, कसाय परिणाम- पदं ६, सिक्खापदं १०, वीर - पदं १२, कम्म - विधूणण - पदं १३, अणुलोम-परीसह - पदं १६, माणविवज्जण-पदं २३, समता - धम्म- पदं ३८, सामण्णस्स माहप्प-पदं ३२, सुहुम सल्ल-पदं ३३, एगचारि-पदं ३४, राय-संसग्ग विवज्जण पदं ४०, अहिगरण - विवज्जण पदं ४१, गिहि भायण-पदं ४२ उत्तम धम्म- गहण - पदं ४३, बंभचेर-पदं ४७, मुणीणं विवेग-पदं ५०, आयहित पदं ५२, सामाइय-पदं ५३, कम्मावचय-पदं ५५, काम- पुच्छा पदं ५६, आरंभपरिणाम - पदं ६३, परलोग - संदेह - पदं ६४, परलोग सद्दहणा - पदं ६५, आयतुला-पदं ६६, अगारवासे- धम्म-पदं ६७, सच्चोवकम्म-पदं ६८, असरण - भावणा-पदं ७०, बोहि- दुल्लहपदं ७३, धम्मस्स तेकालियत्त-पदं ७४ ।
इयं अज्झणं
इलो० १-८२
पृ० २७६-२८६ ओघ - उवसग्ग- पदं १, सीत- परीसह पदं ४, गिम्ह-परीसह पदं ५, जायणा - परीसह - पदं ६, वध - परीसह - पदं ८, अक्कोस - परीसह - पदं &, फास - परीसह पदं १२, केसलोय-बंभचेर-परीसहपदं १३, वध-बंध- परीसह पदं १४, उक्खेव पदं १७, अणुकूल परीसह पदं १८, भोगनिमंतण-पदं ३२, अज्झत्थ-विसीदण-पदं ४०, परवाद - वयण-पदं ४७, अणुस्सुत - विसीदणपदं ६१, सातं सातेण विज्जई - पदं ६६, अबंभचेर-समत्थण- तण्णिरसण-पदं ६६ ।
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चउत्थं अज्झयणं
श्लो० १-५३ इत्थिसंसग्ग-विवज्जण-पदं १, इत्थि-आसत्तस्स विडंबणा-पदं ३ ।
पृ० २८७-२६३
पंचमं अज्झयणं
णरग-वेदणा-पदं १ ।
श्लो० १-५२
पृ० २६४-३००
छ8 अज्झयणं श्लो० १-२६
पृ० ३०१-३०४ महावीर-माहप्प-वण्णग-पदं १ । सत्तमं अज्झयणं श्लो० १-३०
पृ० ३०५-३०६ ओघतो कुसील-पदं १, पासंड-कुसील-पदं ५, कुसील-विवाग-पदं १०, कुसील-दसण-पदं १२, कुसील-उवालंभ-पदं १६, सलिंग-कुसील-पदं २१, सुसील-पदं २२, कुसील-पदं २३,
सुसील-पदं २७ । अट्टमं अज्झयणं श्लो० १-२७
पृ० ३१०-३१३ वीरिय-पदं १, बाल-वीरिय-पदं ४, पंडित-वीरिय-पदं १०, अबुद्ध-परक्कंत-पदं २३, बुद्धपरक्कंत-पदं २४ ।
नवमं अज्झयणं
श्लो० १-३६
पृ० ३१४-३१८ धम्म-पद १, मूलगुण-पदं ८, उत्तरगण-पदं ११, भासा-विवेग-पदं २५, ससंग्गि-वज्जण-पदं २८, सामण्ण-चरिया-पदं २६ ।
दसमं अज्झयणं श्लो० १-२४
पृ० ३१६-३२२ समाधि-पदं १, चरित्त-समाधि-पदं ४, असमाधि-पदं १६, मूलगुण-समाहि-पदं २०' उत्तरगुणसमाहि-पदं २३ ।
एगारसमं अज्झयणं
इलो० १-३८
पृ० ३२३-३२७ मग्ग-सार-पदं १, अहिंसा-पदं ७, एसणा-पदं १३, भासा-समिति-पदं १६, धम्म-दीव-पदं २२, बोद्धदिदी-समीक्खा-पदं २५, मग्ग-संधाण-पदं ३२ ।
बारसमं अज्झयणं
श्लो० १-२२
पृ० ३२८-३३१ समोसरण-चउक्क-पदं १, अण्णाण-वादि-पदं २, वेणइयवादि-पदं ४, अकिरिय-वादि-पदं ५ किरिय-वादि-पदं ११ ।
तेरसमं अज्झयणं
श्लो० १-२३
पृ० ३३२-३३५ उक्खेव-पदं १, सिस्स-दोस-गुण-पदं २, मद-परिहार-पदं १०, अणाणुगिद्ध-पदं १७, धम्मवागरण-विवेग-पदं १८, निक्खेव-पदं २३ ।
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७८
चउद्दसमं अज्झयणं
श्लो० १-२७
पृ० ३३६-३३६ बंभचेरवासे गंथसिक्खा-पदं १, बंभचेरवासे अणुसिद्वि-सहण-पदं ७, बंभचेरवास-फल-पदं १२, बंभचेरवासे लद्धगंथस्स कायव्व-पदं १८ ।
पणरसमं अज्झयणं
अणेलिस-पदं १।
श्लो० १-२
पृ० ३४०-३४२
सोलसमं अज्झयणं
स०१-६
पृ० ३४३-३४४ उक्खेव-पदं १, माहण-पदं ३, समण-पदं ४, भिक्खू-पद ५, निग्गंथ-पद६ ।
बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं
सू० १-७२
पृ० ३४५-३६७ पउमवरपोंडरीय-पदं १, पढम-पुरिसजात-पदं ६, दोच्च-पुरिसजात-पदं ७, तच्च-पुरिसजातपदं ८, चउत्थ-पुरिसजात-पदं ६, भिक्खु-पदं १०, पुव्वुत्त-णातस्स अट्ठ-पदं ११, तज्जीवतस्सरीर-वादि-पदं १३, पंच महब्भूतवादि-पदं २३, ईसरकारणिय-पदं ३२, णियतिवादिपदं ३६, भिक्खूणो भिक्खायरिया-समुद्राण-पदं ४६, भिक्खुणो लोगनिस्सा विहार-पदं ५३. अहिंसा-धम्म-पदं ५६, भिक्खुचरिया-पदं ५६, धम्म-देसणा-पदं ६६, भिक्खु-वयणिज्जपदं ७१।
बीयं अज्झयणं
सू० १-८१
पृ० ३६८-४०२ उक्खेव-पदं १, अधम्मपक्खे किरिया-पदं २, अट्ठादंड-पदं ३, अणट्ठादंड-पदं ४, हिंसादंड-पदं ५, अकस्मादंड-पद ६, दिदिविपरियासियादंड-पदं ७, मोसवत्तिय-पदं ८, अदिण्णादाणवत्तियपदं है, अज्झत्थिय-पदं १०, माणवत्तिय-पदं ११, मित्तदोसवत्तिय-पदं १२, मायावत्तिय-पदं १३, लोभवत्तिय-पदं १४, इरियावहिय-पदं १६, पावसुयज्झयण-पदं १८, चउद्दसविहकूरकम्मकरण-पदं १६, सप्पओयणं कूरकम्मकरण-पदं २०, सद्दादि विसएहिं विरुद्धस्स कूरकम्मकरणं-पदं २१, संपदायलित्तस्स असव्ववहारकरण-पदं २५, वीमंसरहियस्स करकम्मकरण-पदं २६, धम्मपक्खे भिक्खुणो भिक्खायरियासमुट्ठाण-पदं ३३, भिक्खुणो लोगनिस्सा विहार-पदं ३७, अहिंसाधम्म-पदं ४०, भिक्खुचरिया-पदं ४३, धम्मदेसणा-पदं ५१, मीसगपक्ख-पदं ५६, अधम्म-पक्ख-पदं ५८, धम्म-पक्ख-पदं ६३, मीसग-पक्ख-पदं ७१, तिपद
समोयार-पदं ७५, दुपद-समोयार-पदं ७६, अहिंसा-पदं ७७, उवसंहार-पदं ८०। तइयं अज्झयणं
सू०१-१०२
प०४०३-४४८ उक्खेव-पदं १, पुढविजोणियरुक्खस्स आहार-पदं २, अज्झारोहरुक्खस्स आहार-पदं ६, पुढविजोणियतणस्स आहार-पदं १०, पुढविजोणियओसहिस्स-आहार-पदं १४, पुढविजोणियहरियस्स आहार-पदं १८, पुढविजोणियकुहणस्स आहार-पदं २२, उदगजोणियरुक्खस्स आहार-पदं २३, अज्झारोहरुक्खस्स आहार-पदं २७, उदगजोणियतणस्स आहार-पदं ३१ ।
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७६
उदगजोणियओसहिस्स आहार - पदं ३५, उदगजोणिय हरियस्स आहार - पदं ३६, उदगजोणिय-सेवालादिस्स आहार -पदं ४३, रुक्खजोणियतसपाणस्स आहार पदं ४४, अज्झारोहजोणिय तसपाणस्स आहारपदं ४७, तणजोणिय-तसपाणस्स आ हार-पदं ५०, ओस हिजोणिय - तसपाणस्स आहार- पदं ५३, हरियजेरणिय-तपाणस्स आहार- पदं ५६, कुहणजोणिय-तस पाणस्स आहार- पदं ५६, रुक्खजोणिय तसपाणस्स आहार-पदं ६०, अज्झारोह जोणिय-तसपाणस्स आहार - पदं ६३, तणजोणिय-तसपाणस्स आहार- पदं ६६, ओसहिजो णिय-तस पाणस्स आहार- पदं ६६, हरियजोणिय तसपाणस्स आहार - पदं ७२, सेवालादिजोनियतसपाणस्स आहार -पदं ७५, मणुस्सस्स आहार पदं ७६, जलचरस्स आहार पदं ७७, चउप्पय थलचरस्स आहार-पदं ७८, उरपरिसप्पथलचरस्स आहार- पदं ७६, भुयपरिसप्पथलचरस्स आहार - पदं ८०, खचरस्स आहार - पदं ८१, विगलिदियस्स आहार पदं ८२, आउकायस्स आहार पदं ८५, अगणिकायस्स आहार -पदं ८६, वाउकायस्स आहार- पदं ६३, पुढविकायस्स आहार - पदं ६७, निक्खेवपदं १०१ ।
चत्थं अभयणं
सू० १-२५
पृ० ४४६-४५७
पणा-पदं १, चोयगस्स अक्खेव पदं २, हेउ-पदं ३, दिट्ठत-पदं ४, उवणय-पदं ५, णिगमणपदं ६, चोयगस्स अक्खेव पदं ७, सण्णि असण दिट्ठत पदं ८, सण्णि-असण्णि-दिट्ठतस्स परिसेस पदं १८, संजय - पदं २१ ।
पंचमं अज्झयणं
श्लोक १-३३ पृ० ४५८-४६० सासय- असासय पदं १, सरिस असरिस - पदं ६, अहाकम्मपदं 5 सरीरवीरिय-पदं १०, लोगादी अत्थित्त - सण्णा-पदं १२, वड- विवेग-पदं ३० । छट्ठ अज्झणं
श्लोक १-५५
पृ० ४६०-४६७
गोसालस्स अक्खेव-पदं १, अद्दगस्स उत्तर-पदं ४, गोसालस्स अक्खेव पद ७, अद्दगस्स उत्तर-पदं ८, गोसालस्स अक्खेव पदं ११ अगस्स उत्तर-पदं १२, गोसालस्स अक्खेव पदं १५, अद्गस्स उत्तर-पद १७, गोसालस्स अक्खेव पदं १६, अद्दगस्स उत्तर-पदं २०, बुद्ध भिक्खुणं साभिप्पाय - निरूवण-पदं २६, अद्दगस्स उत्तर - पदं ३०, वेय-वाईणं साभिप्पाय - निरूवण-पदं ४३, अद्दगस्स उत्तर-पदं ४४, संख - परिवायगाणं साभिप्पाय - निरूवण-पदं ४६, अगस्स उत्तर-पदं ४८, हत्थितवसाणं साभिप्पाय - निरूवण - पदं ५२, अगस्स उत्तर-पदं ५३ ।
सत्तमं अज्झयणं
सू० १-३८
पृ० ४६८-४८६
उक्खेव- पदं १, लेव-गाहावइ-पदं ३, उदगपेढालपुत्तस्स पण्हाणुमइ पदं ८ उदगपेढालपुत्तस्स पह-पदं १०, भगवओ गोयमस्स उत्तर-पदं ११, उदगपेढालपुत्तस्स पडिपण्ह - पदं १२, भगवओ गोयमस्स पच्चुत्तर - पदं १३, उदगपेढालपुत्तस्स सपक्ख ठावणा-पदं १५, भगवओ गोयमस्स पच्चुत्तर पद १६, समणदित पद १७, पच्चक्खाणस्स विसय उवदंसण-पदं २०, णवभंगेहिं पच्चक्खाणस्स विसय उवदंसण - पदं २६, तस - थावर - पाणाणं अथवोच्छित्ति पदं ३०, उवसंहार - पदं ३१ ।
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ठाणं
पढमं ठाणं सू० १-२५६
पृ०:४८९-४६६ अस्थिवाय-पदं २, पइण्णग-पदं १७, पोग्गल-पदं ५५, अटारसपाव-पदं ११, अट्रारसपाववेरमण-पदं १०६, ओस प्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं १२७, चउवीसदंडग-पदं १४१, भव-अभवसिद्धि-पदं १६५, दिदि-पदं १७०, कण्ह-सुक्क पक्खिय-पदं १८६, लेसा-पदं १६१, सिद्ध-पदं २१४, पोग्गल-पदं २३०, जंबुद्दीव-पदं २४८, महावीर-णिव्वाण-पदं २४६, देव-पदं २५०, णक्खत्त-पदं २५१, पोग्गल-पदं २५४ ।
बीअं ठाणं
सू० १-४६५
पृ० ५००-५३६ दुपओआर-पदं १, किरिया-पदं २, गरहा-पदं ३८, पच्चक्खाण-पदं ३६, विज्जा-चरणपदं ४०, आरंभ-परिग्गह-पदं ४१, सोच्चा-अभिसमेच्च-पदं ६३, कालचक्क-पदं ७४, उम्मायं-पदं ७५, दंड-पदं ७६, सण-पदं ७६, णाण-पदं ८६, धम्म-पदं १०७, संजम-पदं ११०, जीव-णिकाय-पदं १२३, दव्व-पदं १३८, जीव-णिकाय-पदं १३६, दव्व-पदं १४४, जीव-णिकाय-पदं १४५, दव्व-पदं १५०, सरीर-पदं १५३, काय-पदं १६४, दिसाद्गे करणिज्ज-पदं १६७, वेदणा-पदं १७०, गति-आगति-पदं १७३, दंडगमग्गणा-पदं १७७, आहोहि-णाण-दसण-पदं १६३, देसेण सव्वेण पदं २०१, सरोरपदं २०६, सह-पदं २१२, पोग्गल- पदं २२१, इंदिय-विसय-पदं २३४, आयार-पदं २३६, पडिमा-पदं २४३, सामाइय-पदं २४६, जम्म-मरण-पदं २५०, गब्भत्थ-पदं २५४, ठिति-पदं २५६, आउय-पदं २६२, कम्म-पदं २६५, खेत्त-पदं २६८, पव्वय-पदं २७२, गुहा-पदं २७६, कूड-पदं २८१, महादह-पदं २८७, महाणदी-पदं २६०, पवाय-दह-पदं २६४, महाणदी-पदं ३०१, कालचक्क-पदं ३०३, सलागापरिस-वंस-पदं ३०६, सलागा-पूरिस-पदं ३१२, कालाण भव-पदं ३१६, चंद-सर-पदं ३२१, णक्खत्त-पदं ३२३, णक्खत्तदेव-पदं ३२४, महग्गह-पदं ३२५, जंबुद्दीव-वेइआपदं ३२६, लवण-समुद्द-पदं ३२७, धायइसंड-पदं ३२६, पुक्खरवर-पदं ३४७, वेदिकापदं ३५१, इंद-पदं ३५३, विमाण-पदं ३८५, देव-पदं ३८६, जीवाजीव-पदं ३८७, कम्म-पदं ३६३, अत्त-णिज्जाण-पदं ३९८, खय-उवसम-पदं ४०३, ओवमिय-काल-पदं ४०५, पाव-पदं ४०६, जीव-पदं ४०८, मरण-पदं ४११, लोग-पदं ४१७, बोधि-पदं ४२०, मोह-पदं ४२२, कम्म-पदं ४२४, मुच्छा-पदं ४३२, आराहणा-पदं ४३५, तित्थगर-वण्ण-पदं ४३८, पूव्व-वत्थु-पदं ४४२, णक्खत्त-पदं ४४३, समुद्द-पदं ४४७, चक्कवट्टि-पदं ४४८, देवपदं ४४६, पावकम्म-पदं ४६१, पोग्गल-पदं ४६३ ।
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तइयं ठाणं
सू०१-५४२
पृ० ५४०-५६३ इंद-पदं १, विकुब्वणा-पदं ४, संचित-पदं ७, परियारणा-पदं ६, मेहण-पदं १०, जोग-पद १३, करण-पदं १५, आउय-पगरण-पदं १७, गुत्ति-अ गुत्ति-पदं २१, दंड-पदं २४, गरहा-पदं २६, पच्चक्खाण-पदं २७, उपकार-पदं २८, पुरिसजात-पदं २६, मच्छ-पदं ३६, पक्खि-पदं ३६, परिसप्प-पदं ४२, इत्थी-पदं ४८, पुरिस-पदं ५१, णपुंसग-पदं ५४, तिरिक्रूजोणियपदं ५७, लेसा-पदं ५८, तारारूव-चलण-पदं ६६, देवविक्किया-पदं ७०, अंधयार-उज्जोयाइपदं ७२, दुप्पडियार-पदं ८७, संसार-वीईवयण-पदं ८८, कालचक्क-पदं ८६, अच्छिन्नपोग्गल-चलण-पदं ६३, उवधि-पदं ६४, परिग्गह-पदं ६५, पणिहाण-पदं ६६, जोणि-पदं १००, तणवणस्सइ-पदं १०४, तित्थ-पदं १०५, कालचक्क-पदं १०६, सलागा-पुरिस-वंसपदं ११७, सलागा-पुरिस-पदं ११६, आउय-पदं १२१, जोणि-ठिइ-पदं १२५, णरय-पदं १२६. सम-पदं १३१, समुह पदं १३३, उववाय-पदं १३५, विमाण-पद १३७. देव-पदं १३८, पण्णत्ति-पदं १३६ । लोग-पदं १४०, परिसा-पदं १४३, जाम-पदं १६१, वय-पदं १७३, बोधि-पदं १७६, मोह-पदं १७८, पव्वज्जा-पदं १८०, णियंठ-पदं १८४, सेहभूमि-पदं १८६, थेरभूमि-पदं १८७, गंताअगंता-पदं १८८, आगंता-अणागंता-पदं १६५, चिट्ठित्ता-अचिट्ठित्ता-पदं २०१, णिसिइत्ताअणिसिइत्ता-पदं २०७, हंता-अहंता-पदं २१३, छिदित्ता-अछिदित्ता-पदं २१६, बूइत्ता-अबुइत्तापदं २२५, भासित्ता-अभासित्ता-पदं २३१, दच्चा-अदच्चा-पदं २३७, भुंजित्ता-अभंजित्ता-पदं २४३, लभित्ता-अलभित्ता-पदं २४६, पिबित्ता-अपिबित्ता-पदं २५५, सुइत्ता-असुइत्ता-पदं २६१, जूज्जित्ता-अजुज्जित्ता-पद २६७, जइत्ता-अजइत्ता-पदं २७३, पराजिणित्ता-अपराजिणित्ता-पदं २७६, सूर्ण ता-असूणेत्ता-पदं २८५, पासित्ता-अपासित्ता-पदं २६१, अग्घाइत्ता-अणग्याइत्ता-पदं २६७, आसाइत्ता-अणासाइत्ता-पदं ३०३, फासेत्ता-अफासेत्ता-पदं ३०६, गरहिय-पदं ३१५. पसत्थ-पदं ३१६, जीव-पदं ३१७, लोगठिता-पदं ३१६, दिसा-पदं ३२०, तस-थावर-पदं ३२६ अच्छेज्जादि-पदं ३२८, दुक्ख-पदं ३३६, आलोयणा-पदं ३३८, सुयधर-पदं ३४४, उपधि-पदं ३४५, आयरक्ख-पदं ३४८, वियडदत्ति-पदं ३४६, विसंभोग-पदं ३५०, अणण्णादिपदं ३५१, वयण-पदं ३५५, मण-पदं ३५७, वुट्टि-पदं ३५६, अहणोववण्ण-देवपदं ३६१, देवस्स मणदिइ-पद ३६३, विमाण-पदं ३६७, दिदि-पदं ३७०. दग्गति-सगति-पदं ३७२, तव-पाणग-पदं ३७६, पिडेसणा-पदं ३७६, ओमोयरियापदं ३८१. निग्गंथ-चरिया-पदं ३८३, सल्ल-पदं ३८५, तेउलेस्सा -पदं ३ भिक्खूपडिमा-पदं ३८७, कम्मभूमी-पदं ३६०, सण-पदं ३९२, पओग-पदं ३६४, ववसाय-पदं ३६५. अ थजोणी-पदं ४००, पोग्गल-पदं ४०१, नरग-पदं ४०२, मिच्छत्त-पदं ४०३, धम्मपदं ४१०, उवक्कम-पदं ४११, तिवग्ग-पदं ४१६, पडिमा-पदं ४१६, काल-पदं ४२५, वयणपदं ४२६, णाणादीणं पण्णवणा-सम्म-पदं ४३०, उवघात-विसोहि-पदं ४३२, आराहणा-पद ४३४, संकिलेस-असं किलेस-पदं ४३८, अइक्कम-आदि पदं ४४०, पायच्छित्त-पदं ४४. अकम्मभूमि-पदं ४४६, वास-पद ४५१, वासहरपब्वय-पद ४५३, महादह-पदं ४५५, नदी-प
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४५७, धाइयसंड-पुक्खरवर-पदं ४६३, भूकंप-पदं ४६४, देवकिदिवसिय-पदं ४६६, देवठिति-पदं ४६७, पायच्छित्त-पदं ४७०, पव्वज्जादि-अजोग्ग-पदं ४७४, अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं ४७६ दुसण्णप्प-सुसण्णप्प-पदं ४७८, मंडलिय-पव्वय-पदं ४८०, महतीमहालय-पदं ४८१, कप्पठितिपदं ४८२, सरीर-पदं ४८३, पडिणीय-पदं ४८८, अंग-पदं ४६४, मणोहर-पदं ४६६, पोग्गलपडिघात-पदं ४६८, चक्खु-पदं ४६६, अभिसमागम-पदं ५००, इड्डि-पदं ५०१, गारव-पदं ५०५, करण-पदं ५०६, सुयक्खायधम्म-पदं ५०७, जाणु-अजाणु-पदं ५०८, अंत-पदं ५११, जिण-पदं ५१२, लेसा-पदं ५१५, मरण-पदं ५१६, असदहंतस्स पराभव-पदं ५२३, सद्दहंतस्स विजयपदं ५२४, पुढवी-वलय-पदं ५२५, विग्गह-गइ-पदं ५२६, खीणमोह-पदं ५२७, णक्खत्त-पदं ५२८, तित्थकर-पदं ५३०, गेविज्ज-विमाण-पदं ५३६, पावकम्म-पदं ५४०, पोग्गल-पदं ५४१,.
चउत्थं ठाणं
पृ०५६४-६८० अंतकिरिया-पदं १, उन्नत-पणत-पदं २, उज्जू-वंक-पदं १२, भासा-पदं २२, सुद्ध-असूद्ध-पदं २४, सुत-पदं ३४, सच्च-असच्च-पदं ३५, सुचि-असूचि-पदं ४५, कोरव-पदं ५५, भिक्खागपदं ५६, तणवणस्सइ-पदं ५७, अहणोववण्ण-णेरइय-पदं ५८, संधाडि-पदं ५६, झाण-पदं ६०, देवाणं पदमेरा-पदं ७३, संवास-पदं ७४, कसाय-पदं ७५, कम्मपगडि-पदं १२, पडिमा-पदं ६६, अत्थिकाय-पदं हह, आम-पक्क-पदं १०१, सच्च-मोस-पदं १०२, पणिधाण-पदं १०४, आवातसंवास-पदं १०७, वज्ज-पदं १०८, लोगोपचार-विणय-पद १११, सज्झाय-पदं ११६, लोगपालपदं १२१, देव-पदं १२३, पमाण-पदं १२५, महत्तरिया-पदं १२६, देवठिति-पदं १२८, संसारपदं १३०, दिदिवाय-पदं १३१, पायच्छित्त-पदं १३२, काल-पदं १३४, पोग्गल-परिणाम-पदं १३५, चाउज्जाम-पदं १३६, दुग्गति-सुगति-पदं १३८, कम्मंस-पदं १४२, हासूप्पत्ति-पदं १४५, अन्तर-पदं १४६, भयग पदं १४७, पडिसेवी-पदं १४८, अग्गमहिसि-पदं १४६, विगति-पदं १८३, गुत्त-अगत्त-पदं १८६, ओगाहणा-पदं १८८, पण्णत्ति-पदं १८६, पडिसलीण-अपडिसंलीण-पदं १९०, दीण-अदीण-पदं १६४, अज्ज-अणज्ज-पदं २११, जाति-पदं २२६, कल-पदं २३३, बल-पदं २३५, हत्थि-पदं २३६, विकहा-पदं २४१, कहा-पदं २४६, किसदढ-पदं २५१, अतिसेस-नाण-दसण-पदं २५०, सज्भाय-पदं २५६, लोगठिति-पदं २५६, पूरिस-भेद-पदं २६०, आय-पर-पदं २६१, गरहा-पदं २६४, अलमथु-पदं २६५, उज्जु-वंक-पदं २६६, खेम-अखेम-पदं २६७, वाम-दाहिण-पदं २६६, णिग्गंथ-णिग्गंथी-पदं २७४, तमुक्कायपदं २७५, दोस-पदं २७६, जय-पराजय-पदं २८०, माया-पदं २८२, माण-पदं २८३, लोभपदं २८४, संसार-पदं २८५, आहार-पदं २८८, कम्मावत्था-पदं २६०, संखा-पदं ३००, कूडपदं ३०३, काल-चक्क-पदं ३०४, अकम्मभूमि-पदं ३०७, महाविदेह-पदं ३०८, पव्वय-पदं ३०६, सलागा-पुरिस-पदं ३१५, मंदर-पव्वय-पद ३१६, धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ३१६, दारपदं ३२०, अंतरदीव-पदं ३२१, महापायाल-पदं ३२६, आवास-पव्वय-पदं ३३०, जोइस-पदं ३३२, दार-पदं ३३५, धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ३३६, णंदीसरवरदीव-पदं ३३८, सच्च-पदं ३४६, आजीविय-तव-पदं ३५०, कोह-पदं ३५४, भाव-पदं ३५५, रुत-रूव-पदं ३५६,
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पत्तिय- अपत्तिय-पदं ३५७ उपकार - पदं ३६१, आसास-पदं ३६२, उदित - अत्थमित-पदं ३६३, जुम्म-पदं ३६४, सूर-पदं ३६७, उच्चणीय-पदं ३६८, लेसा - पदं ३६६, जुत्त- अजुत्त-पदं. ३७१, सारहि पदं ३७६, जुत्त- अजुत्त-पद ३८०, पंथ उप्पह- पदं ३८८, रूव-सील - पदं ३८६, जातिपदं ३६०, कुल-पदं ३६६, बल-पदं ४०१, रूव-पदं ४०५, सुय-पदं ४०८, सील - पदं ४१०, आयरिय-पदं ४११, वेयावच्च पदं ४१२, अट्ट-माण-पदं ४१४, धम्मपदं ४१६, आयरिय-पदं ४२२, अंतेवासि - पदं ४२४, महाकम्म अप्पकम्म- निग्गंथ-पदं ४२६, महाकम्म अप्पकम्मनिग्गंथी - पदं ४२७, महाकम्म- अप्पकम्म-समणोवासग पदं ४२८, महाकम्म- अप्पकम्म-समणोवासिथा-पदं ४२६, समणोवासग - पदं ४३०, अहुणोववण्ण-देव- पदं ४३३, अंधयार - उज्जोया - पदं ४३५, दुहसेज्जा-पदं ४५०, सुहसेज्जा - पदं ४५१, अवायणिज्ज- वायणिज्ज -पदं ४५२, आयपर-पदं ४५४, दुग्गत- सुग्गत-पदं ४५५, तम- जोति - पदं ४६०, परिण्णात अपरिण्णात-पदं ४६३. इहत्थ-परत्थ-पदं ४६६, हाणि वुड्ढि पदं ४६७, आइण्ण- खलु क- पदं ४६८, जातिपदं ४७०, कुल पदं ४७४, बल-पदं ४७७, रूव- पदं ४७६, सीह - सियाल - पदं ४८०, सम-पदं ४८१, बिसरीर-पदं ४८३, सत्त-पदं ४८६, पडिमा - पदं ४८७, सरीर - पदं ४९१, फुड- पदं ४६३, तुल्ल-पदं ४६५, णो सुपस्स-पदं ४९६, इंदियत्थ - पदं ४६७, अलोग - अगमण - पदं ४६८, णात पदं ४६६, उ-पदं ५०४, संखाण-पदं ५०५, अंधगार उज्जोय पदं ५०६, पसप्पग-पदं ५०६, आहार -पदं ५१०, आसीविस - पदं ५१४, वाहि-तिमिच्छा-पदं ५१५, वणकर - पदं ५१८ अंतबाह - पदं ५२१, सेयंस- पावस- पदं ५२३, आघवण-पदं ५२७, रुक्खविगुव्वणा-पदं ५२६, वादि- समोसरण-पदं ५३०, मेह-पदं ५३३, अम्म- पियर - पदं ५३८, राय-पद ५३६, मेह-पदं ५४०, आयरिय-पदं ५४१, भिक्खाग- पदं ५४४, गोल - पदं ५४५, पत्त पदं ५४८, कड-पदं ५४६, तिरिय-पदं ५५०, भिक्खाग - पदं ५५३, णिक्कट्ठे - अणिक्कट्ठे - पदं ५५४, बुध- अबुध-पदं ५५६, अणुकंपग पदं ५५८, संवास - पदं ५५६, अवद्धंस-पदं ५६६, पव्वज्जा - पदं ५७१, सण्णा-पदं ५७८, काम-पदं ५८३, उत्ताण- गंभीर-पदं ५८४, तरग- पदं ५८८, पुण्ण- तुच्छ-पदं ५०, चरित्त पदं ५६५, महु-विस पदं ५६६, उवसग्ग- पदं ५६७, कम्म पदं ६०२, संघ-पदं ६०५, बुद्धि-पदं ६०६, मइ-पदं ६०७, जीव- पदं ६०८, मित्त- अमित्त पदं ६१०, मुत्त- अमुत्तपदं ६१२, गति-आगति - पदं ६१४, संजम - असंजम पदं ६१६, किरियापदं ६१८, गुण-पदं ६२१, सरीर-पदं ६२३, धम्मं दार पदं ६२७, आउ-बंध-पदं ६२८, वज्ज-नट्टआइ-पदं ६३२, विमाण-पदं ६३८, देव- पदं ६३६, गब्भ- पदं ६४०, पुव्ववत्थ-पदं ६४३, कव्व-पदं ६४४, समुग्धात - पदं ६४५, चोदसपुव्वि - पदं ६४७, वादि- पदं ६४८, कप्प - पदं ६४६, समुद्द-पदं पोग्गल - पदं ६५६ | ६५२, कसाय-पदं ६५३, नक्खत्त-पदं ६५४, पाव - कम्म पदं ६५७, पंचमं ठाणं सू० १-२४० महव्वय- अणुव्वय-पदं १, इंदिय - विसय-पदं ३, आसव-संवर- पदं १६, पडिमा पदं १८, थावर- कायपदं १६, अइसेस-नाण-दंसण-पदं २१, सरीर-पदं २३, तित्थभेद-पदं ३२, अब्भणुष्णात-पदं ३४, महानिज्जर-पदं ४४, विसंभोग - पदं ४६, पारचित पदं ४७, वुग्गहट्टाण-पदं ४८, अवुग्गहवाण
पृ० ६८१-७१६
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पदं ४६, णिसिज्जा-पदं ५०, अज्जवटाण-पदं ५१, जोइसिय-पदं ५२, देव-पदं ५३, परिचारणापदं ५४, अग्गमहिसी-पदं ५५, अणिय-अणियाहिवइ-पदं ५७, देवठिति-पदं ६८, पडिहा-पदं ७०, आजीव-पदं ७१, राय-चिंघ-पदं ७२, उदिन्न-परिस्स होवसग्ग-पदं ७३, हेउ-पदं ७५, अहेउ-पदं ७६, अणुत्तर-पदं ८३, पंच-कल्लाण-पदं ८४, महाणदी-उत्तरण-पदं ६८, पढमपाउसपदं ६६, वासावास-पदं १००, अणुग्धातिय-पदं १०१, रायंतेउर पवेस-पदं १०२, गब्भधरणपदं १०३, णि गंय-णिग्गंथी-एगओवास-पदं १०७, आसव-संवर-पदं १०६, दंड-पदं १११, किरिया-पदं ११२, परिणा-पदं १२३, ववहार-पदं १२४, सुत्त-जागर-पदं १२५, रयादाणवमण-पदं १२८, दत्ति-पदं १३०, उवघात-विसोहि-पदं १३१, दुल्लभ-सुलभबोहि-पदं १३३, पडिसलीण-अपडिसंलीण-पदं १३५, संवर-असंवर-पदं १३७, संजम-असंजम-पदं १३६, तणवणसइ-पदं १४६, आयारपद १४७, आयारपकप्प-पद १०८, आरोवणा-पदं १४६, वक्खारपव्वय-पदं १५०, महादह-पदं १५४, वक्खारपव्वय-पदं १५६, धायइसंड-पुक्खरवर-पदं १५७, समयक्खेत्त-पदं-१५८, ओगाहणा-पदं १५६, विबोध-पदं १६४, निग्गंथी-अवलंबण-पदं १६५, आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं १६६, आयरिय-उवझाय-गणावक्कमण-पदं १६७, इड्रिमंत-पद १६८, अत्थिकाय-पदं १६६, गइ-पदं १७५, इदियत्थ-पदं १७६, मुंड-पदं १७७, बायर-पदं १७८, अचित्त-वाउकाय-पदं १८३, णियंठ-पदं १८४, उपधि-पदं १६०, णिस्साट्ठाण-पदं १६२, णिहि-पदं १६३, सोच-पदं १६४, छउमत्थ-केवलि-पदं १६५, महाणिरय-पदं १६६, महा विमाणपदं १६७, सत्त-पदं १६८, भिक्खाग-पदं १६६, वणीमग-पदं २००, अचेल-पदं २०१, उक्कल-पदं २०२, समिती-पदं २०३, जीव-पदं २०४, गति-आगति-पदं २०५, जीव-पदं २०८, जोणि-ठिइ-पदं २०६, संवच्छर-पदं २१०, जीवस्स णिज्जाणमग्ग-पदं २१४, छेयण-पदं २१५, आणंतरिय-पदं २१६, अणंत-पदं २१७, णाण-पदं २१८, पच्चवखाण-पदं २२१, पडिक्कमण-पदं २२२, सुत्त-पदं २२३, कप्प-पदं २२५, बंध-पदं २२८, महाणदी-पदं २३०, तित्थगर-पदं २३४, सभा-पदं २३५, णखत-पदं २३७, पाव-कम्म-पदं २३८, पोग्गलपदं २३६।
छटुं ठाणं सू० १-१३२
पृ० ७१७-७३२ गण-धारण-पदं १, निग्गंथी-अवलंबण-पदं २, साहम्मियस्स अंतकम्म-पदं ३, छउमत्थ-केवलिपदं ४, असंभव-पदं ५, जीव-पदं ६, गति-आगति-पदं ६, जीव-पदं ११, तणवणस्सइ-पदं १२, णो-सुलभ-पदं १३, इदियत्थ-पदं १४, संवर-असंवर-पदं १५, सात-असात-पदं १७, पायच्छित्त-पदं १६, मणुस्स-पदं २०, कालचक्क-पदं २३, संघयण-पदं ३०, संठाण-पदं ३१, अणत्तव-अत्तव-पदं ३२, आरिय-पदं ३४, लोगट्ठिति-पदं ३६, दिसा-पदं ३७, आहार-पदं ४१, उम्माय-पदं-४३, पमाय-पदं ४४, पडिलेहणा-पदं ४५, लेसा-पदं ४७, अग्गमहिसीपदं ५०, देवठिति-पदं ५२, महत्तरिया-पदं ५३, अग्गमहिसी-पदं ५५, सामाणिय-पदं ५६, मइ-पदं ६१, तव-पदं ६५, विवाद-पदं ६७, खुडूपाण-पदं ६८, गोयरचरिया-पद६६ महाणिरय-पदं ७०, विमाण-पत्थड-पदं ७२, नवखत्त-पदं ७३, इतिहास-पदं ७६, संजम
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असंजम-पदं ८१, खेत्त-पव्वय-पदं ८३, महादह-पदं ८८, णदी-पदं ८६, धायइसंड-पुक्खरवरपदं ६३, उउ-पदं ६५, ओमरत्त-पदं ६६, अतिरत्त-पदं ९७, अत्थोग्गह पदं १८, ओहिणाणपदं ६, अवयण-पदं १००, कप्पस्स-पत्थार-पदं १०१, पलिमंथू-पदं १०२, कप्पठिति-पदं १०३, महावीरस्स-छट्रभक्त-पदं १०४, विमाण-पदं १०७, देव-पदं १०८, भोयण-परिणामपदं १०६, विसपरिणाम-पदं ११०, पट्ट-पदं १११, विरहिय-पदं ११२, आउयबंध-पदं ११६, परभवियाउय-पदं ११६, भाव-पदं १२४, पडिक्कमण-पदं १२५, नक्खत्त-पदं १२६, पावकम्म-पदं १२८, पोग्गल-पदं १२६ ।
सत्तमं ठाणं सू० १-१५५
पृ० ७३३-७५५ गणावक्कमण-पदं १, विभंगणाण-पदं २, जोणिसंगह-पदं ३, गति-आगति-पदं ४, संगहट्ठाणपद ६, असंगहवाण-पदं ७, पडिमा-पदं ८, आयारचूला-पदं ११, पडिमा-पदं १३, अहेलोगट्ठिति-पदं १४, बायरवाउकाइय-पदं २५, संठाण-पदं २६, भयठाणं-पदं २७, छउमत्थ-पदं २८, केवलि-पदं २६, गोत्त-पदं ३०, णय-पदं ३८, सरमंडल-पदं ३६, कायकिलेसपदं ४६, खेत्त-पव्वय-नदी-पदं ५०, कूलगर-पदं ६१, चक्कवरियण-पदं ६७, दुस्समालक्खण-पदं ६६, सुसमा-लक्खण-पदं ७०, जीव-पदं ७१, आउभेद-पदं ७२, जीव-पदं ७३, बंभदत्त-पदं ७४, मल्लीपव्वज्जा-पदं ७५, दंसण-पदं ७६, छउमत्थ-केवलि-पदं ७७, महावीर-पदं ७६, विकहा-पदं ८०, आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं ८१, संजम-असंजमपदं ८२, आरंभ-पदं ८४, जोणि-ठिइ-पदं ६०, ठिति-पदं ६१, अग्गमहिसी-पदं १४, देव-पदं १७, णंदीसरवर-पदं ११०, सेढी-पदं ११२, अणिय-अणियाहिवइ-पदं ११३, वयणविकप्पपदं १२६, विणय-पदं १३०, समुग्घात-पदं १३८, पवयणनिण्हग-पदं १४०, अणुभावपदं १४३, णकखत्त-पदं १४५, कूड पदं १५०, कुलकोडि-पदं १५२, पावकम्म-पदं १५३, पोग्गल-पदं १५४ ।
अट्ठमं ठाणं
सू०१-१२८
पृ० ७५६-७७६ एगल्लविहार-पडिया-पदं १, जोणिसगह-पदं २, गति-आगति-पदं ३, कम्म-बंध-पदं ५, आलोयणा-पदं ६, संवर-असंवर-पदं ११, फास-पदं १३, लोगट्ठिति-पदं १४, गणिसंपया-पदं १५, महाणि हि-पदं १६, समिति-पदं १७, आलोयणा-पदं १८, पायच्छित्त-पदं २०, मदट्राण-पदं २१, अकिरियावादि-पदं २२, महाणिमित्त-पदं २३, वयणविभत्ति-पदं २४, छउमत्थ-केवलिपदं २५, आउवेद-पद'२६, अग्गमहिसी-पदं २७, महग्गह-पदं ३१, तणवणस्सइ-पदं ३२, संजमअसंजम-पदं ३३, सुहुम-पदं ३५, भरहचक्कवट्टि-पदं ३६, पास-गण-पदं ३८, सण-पदं ३८, ओवमिय-पदं ३६, अरिट्टनेमि-पदं ४०, महावीर-पदं ४१, आहार-पदं ४२, कण्हराइपदं ४३, मज्झपदेस-पदं ४८, महापउम-पदं ५२, कण्ह-अग्गमहिसी-पदं ५३, पूव-वत्थू-पदं ५४, गति-पदं ५५, दीवसमुद्द-पदं ५६, काकणिरयण-पदं ६१, मागध-जोयण-पदं ६२, जंबूदीव-पदं ६३, धायइसंड-पदं ८६, पुक्खरवर-पदं ८६, कूड-पदं ११, जगति-पदं ६२, कूड-पदं
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६३ महत्तरिया-पदं १६, कप्प-पदं १०१, पडिमा-पदं १०४, जीव-पदं १०५, संजम-पदं १०७, पुढवि-पदं १०८, अब्भुटुंतव्व-पदं १११, विमाण-पदं ११२, वादि-पदं ११३, केवलिसमुग्घातपदं ११४, अणुत्तरोववाइय-पदं ११५, वाणमंतर-पदं ११६, जोइस-पदं ११८, दार-पदं १२०, बंधठिति-पदं १२२, कुलकोडि-पदं १२५, पावकम्म-पदं १२६, पोग्गल-पदं १२७ ।
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नवमं ठाणं सू१-७३
पृ०७७७-७६४ विसंभोग-पदं १, बंभचेरअज्झयण-पदं २, बंभचेरगत्ति-पदं ३, बंभचेरअगत्ति-पदं ४, तित्थगरपदं ५, सब्भावपयत्य-पदं ६, जीव-पदं ७, गति-आगति-पदं ८, जीव-पदं १०, ओगाहणापदं ११, संसार-पदं १२, रोगप्पति-पदं १३, दरिसणावरणिज्ज-पदं १४, जोइस-पदं १५, मच्छ-पदं १८, बलदेव-वासुदेव-पदं १६, महाणिहि-पदं २१, विगति-पदं २३, बोंदि-पदं २४, पुण्ण-पदं २५, पावायतण-पदं २६, पावासुयपसग-पदं २७, उणिय-पदं २८, मण-पदं २६, भिक्खा-पदं ३०, देव-पदं ३१, आउपरिणाम-पदं ४०, पडिमा-पदं ४१, पायच्छित्त-पदं ४२. कुड-पदं ४३, पास-पदं ५६, तित्थगरणामनिव्वत्तण-पदं ६०, भावितित्थगर-पदं ६१. महापउम-पदं ६२, णक्खत्त-पदं ६३, विमाण-पदं ६४ कुलगर-पदं ६५, तित्थगर-पदं ६६ दीव-पदं ६७, महग्गह-पदं ६८, कम्म-पदं ६६, कुलकोडि-पदं ७०, पावकम्म-पदं ७२. पोग्गल-पदं ७३।
दसमं ठाणं सू० १-१७८
पृ०७९५-८२३ लोगदिति-पदं १, इंदियत्थ-पदं २, अच्छिन्न-पोग्गल-चलण-पदं ६, कोधुप्पत्ति-पदं ७, संजमअसंजम-पदं ८, संवर-असंवर-पदं १०, अहमंत-पदं १२, समाधि-असमाधि-पदं १३, पव्वज्जा-पदं १५, समणधम्म-पदं १६, वेयावच्च-पदं १७, परिणाम-पदं १८, असज्झाइयपदं २०, संजम-असंजम-पदं २२, सुहम-पदं २४, महाणदी-पदं २५, रायहाणि-पदं २७. राय-पदं २८, मंदर-पदं २६, दिसा-पदं ३०, लवणसमुद्द-पदं ३२, पायाल-पदं ३४, पव्वयपदं ३६, खेत्त-पदं ३६, पव्वय-पदं ४०, दवियाणुओग-पदं ४६, उप्पातपव्वय-पदं ४७, ओगाहणा-पदं ६२, तित्थगर-पदं ६५, अणंत-पदं ६६, पुव्ववत्थु-पदं ६७, पडिसेवणा-पदं ६६, आलोयणा-पदं ७०, पायच्छित-पदं ७३, मिच्छत ७४, तित्थगर-पदं ७५, वासुदेव-पदं ७८, तित्थगर-पदं ७६, वासुदेव-पदं ८०, भवणवीस-पदं ८१, सोक्ख-पदं ८३, उवघात-विसोहिपदं ८४, संकिलेस-असंकिलेस-पदं ८६, बल-पदं ८८, भासा-पदं ८६. दिदिवाय-पदं १२. सत्थ-पदं ६३, दोस-पदं ६४, विसेस-पदं ९५, सुद्धवायाणुओग-पदं ६६, दाण ६७, गति-पदं १८, मुंड-पदं ६६, संखाण-पदं १००, सामायारी-पदं १०२, महावीर सुमिण-पदं १०३. रुचिपदं १०४, सण्णा-पदं १०५, वेयणा-पदं १०८, छउमत्थ-केवलि-पदं १०६, दसा-पदं ११०, कालचक्क-पदं १२१, अणंतर-परंपर-उववण्णादि-पदं १२३, णरय-पदं १२४, ठिति-पदं १२५, भाविभइत्त-पदं १३३, आसंसप्पओग-पदं १३४, धम्म-पदं १३५, थेर-पदं १३६, पत्तपदं १३७, अणुत्तर-पदं १३८, कुरा-पदं १३६, दुस्समा-लक्खण-पदं १४०, सुसमा-लक्खण-पदं
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१४१, रुक्ख-पदं १४२, कुलगर-पदं १४३, वक्खार-पव्वय-पदं १४५, कप्प-पदं १४८, पडिमा-पदं १५१, जीव-पदं १५२, सताउय-दसा-पदं १५४, तणवणस्सइ-पदं १५५, सेढि-पदं १५६, गेविज्जग-पदं १५८, तेयसा-भासकरण-पदं १५६, अच्छेरग-पदं १६०, कंड-पदं १६१, उव्वेह-पढं १६४, णक्खत्त-पदं १६८, णाणविद्धिकर-पदं १७०, कुलकोडि-पदं १७१, पावकम्म-पद १७३, पोग्गल-पदं १७४ ।
समवायो पढमो समवाओ
सू०१-४६
पृ०८२७-८२६ उक्खेव-पदं १, आय-आदि-पदं ४, जम्बुद्दीव-पदं २२, नरय-पदं २३, जाणविमाण-पदं २४, सव्वदसिद्धमहाविमाण-पदं २५, नक्खत्त-पदं २६, ठिइ-पदं ३०, आणपाण-पदं ४४, आहारट्ठ-पदं ४५, सिद्धि-पदं ४६ ।
बीओ समवाओ
सू० १-२३
पृ०८२६-८३० दंड-पदं १, रासि-पदं २, बंध-पदं ३, नक्खत्त-पदं ४, ठिइ-पदं८, आणपाण-पदं २१, आहारट्ठ-पदं २२, सिद्धि-पदं २३ ।
तइओ समवाओ
सू० १-२४
पृ० ८३०-८३१ दंड-पदं १, गुत्ति-पदं २, सल्ल-पदं ३, गारव-पदं ४, विराहणा-पदं ५, नक्खत्त-पदं ६, ठिइ-पदं १३, आणपाण-पदं २२, आहारटु-पदं २३, सिद्धि-पदं २४ ।
चउत्थो समवाओ
सू० १-१८
पृ० ८३२ कसाय-पदं १, झाण-पदं २, विगहा-पदं ३, सण्णा-पदं ४, बंध-पदं ५, जोयण-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारट्टपदं १७, सिद्धि-पदं १८। ।
पंचमो समवाओ
सू० १-२२
पृ० ८३३-८३४ किरिया-पदं १, महव्वय-पदं २, कामगुण-पदं ३, आसवदार-पदं ४, संवरदार-पदं ५, निज्जरठाण-पदं ६, समिइ-पदं ७, अत्थिकाय-पदं ८, नक्खत्त-पदं ६, ठिइ-पदं १४, आणपाण-पदं २०, आहारटु-पदं २१, सिद्धि-पदं २२ ।
छट्ठो समवाओ
सू० १-१७
पृ० ८३४-८३५ लेसा-पदं १, जीवनिकाय-पदं २, तवोकम्म-पदं ३, समुग्घाय-पदं ५, अत्यूग्गह-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १५, आहारटु-पदं १६, सिद्धि-पदं १७ ।
सत्तमो समवाओ
सू० १-२३
पृ० ८३५-८३६ भयद्राण-पदं १, समूग्घाय-पदं २. महावीर-पदं ३, वासहरपव्वय-पदं ४, वास-पद ५,
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कम्म-पदं ६, नक्खत्त-पदं ७, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं २१, आहार टू-पदं २२, सिद्धि-पदं २३ ।
अट्ठमो समवाओ
सू० १-१८
पृ० ८३७-८३८ मयट्ठाण-पदं १, पबयणमाया-पदं २, चेइयरुक्ख-पदं ३, जंबू-पदं ४, कूडसाम लि-पदं ५, जंबुद्दीव-पदं ६, समग्धाय-पदं ७, गण-गणहर-पदं ८, नवखत्त-पदं ६ ठिइ-पदं.१०, आणपाणपदं १६, आहारट्ट-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ ।
नवमो समवाओ ___ सू० १-२०
पृ० ८३८-८४० बंभचेर-गुत्ति-पदं १, बभचेर-अगुत्ति-पद २, बंभचेर-पद ३, पास-पद ४, नवखत्त-पद ५, तारा-पदं ७. मच्छ-पदं ८, भोम-पदं ६, सुधम्मसभा-पदं १०, कम्म-पदं ११, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं १८, आहारटू-पदं १६, सिद्धि-पदं २० ।
दसमो समवाओ
सू०१-२५
पृ० ८४०-८४२ समण-धम्म-पदं १, चित्तसमाहि-टाण-पदं २, मंदरपव्वय-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, वासुदेवबलदेव-पदं ५, नक्खत्त-पदं ७, रुक्ख-पदं ८, ठिइ-पदं , आणपाण-पदं २३, आहारटू-पदं २४, सिद्धि-पदं २५ ।
एक्कारसमो समवाओ
पृ० ८४२-८४३ उवासगपडिमा-पदं १, जोइसंत-पदं २, जोइस-पदं ३, गणहर-पदं ४, नक्खत्त-पदं ५, विमाण-पदं ६, मंदर-व्वय-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १४, आहारटू-पदं १५, सिद्धि-पदं १६ ।
बारसमो समवाओ
पृ०८४३-८४५ भिक्खूपडिमा-पदं १, संभोग-पदं २, कितिकम्म-पदं ३, विजयरायहाणी-पदं ४, बलदेव-पदं ५, मंदरपव्वय-पदं ६, जंबूदीव-वेइया-पदं ७, राइ-पदं ८, दिवस-पदं ६, ईसिपब्भार-पदं १०, ठिइ-पदं १२, आणपाण-पदं १८, आहारट्र-पदं १९, सिद्धि-पदं २० ।
तेरसमो समवाओ __सू० १-१७
पृ० ८४५-८४६ किरियाठाण-पदं १, विमाणपत्थड-पदं २, विमाण-पदं ३, जाइकूलकोडी-पदं ५, पुव्व-पदं ६, पओग-पदं ७, सूरमंडल-पदं ८, ठिइ-पदं ६. आणपाण-पदं १५, आहारट्ठ-पदं १६, सिद्धिपद१७।
चउद्दसमो समवाओ
सू०१-१८
पृ० ८४६-८४८ भूअग्गाम-पदं १, पुव्व पदं २, महावीर-पदं ४, जीवट्ठाण-पदं ५, भरहेरवय-पदं ६, रयण-पदं ७, महानई-पदं ८, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १६, आहारट्र-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ ।
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ह
पण्णरसमो समवाओ
पृ० ८४८-८४६ परमाहम्मिय-पदं १, णमि-पदं २, धुवराह-पदं ३, नवखत्त-पदं ५, दिवस-पदं ६, राइ-पद्नं ७, पूव-पदं ८, पओग-पदं , ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारटू-पदं १७, सिद्धिपदं १८ ।
सोलसमो समवाओ
सू०१-१६
पृ० ८५०-८५१ गाहा सोलसग-पदं १, कसाय-पदं २, मंदर-पव्वय-पदं ३, पास-पदं ४, पुव्व- पदं ५, चरम-लिपदं ६, उस्सेहपरिवुढि-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १४, आहारट्ठ-पदं १५, सिद्धिपदं १६ ।
सत्तरसमो समवाओ
सू० १-२१
पृ०८५१-८५३ असंजमं-पदं १, संजम-पदं २, माणुसुत्तर-पव्वय-पदं ३, आवास पव्वय-पदं ४, लवणसमुद्दपदं ५, चारण-पदं ६, उप्पाय-पव्वय-पदं ७, मरण-पदं , कम्म-पदं १०, ठिइ-पदं ११,
आणपाण-पदं १६, आहारट्ठ-पदं २०, सिद्धि-पदं २१ । अट्ठारसमो समवाओ
सू०१-१८
पृ० ८५३-८५४ बंभ-पदं १, तित्थयर-पदं २, अट्ठारस-ठाण-पदं ३, आयार-पदं ४, लिवि-पदं ५, पुव्व-पदं ६, धूमप्पभा-पदं ७, दिवस-राइ-पदं ८, ठिइ-पदं , आणपाण-पदं १६, आहारटु-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ ।
एगूणवीसइमो समवाओ
सू०१-१५
पृ० ८५५-८५६ णायज्झयण-पदं १, सूरिय-पदं २, सुक्क-पदं ३, जंबुद्दीव-कला-पदं ४, तित्थयर-पदं ५, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १३, आहारट्र-पदं १४, सिद्धि-पदं १५ ।
वीसइमो समवाओ
सू० १-१७
पृ० ८५६-८५७ असमाहिट्ठाण-पदं १, तित्थयर-पदं २, घणोदहि-पदं ३, देव-पदं ४, कम्म-बंध-ठिइ-पदं ५, पुव्व-पदं ६, ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं ७, ठिइ-पदं ८, आणपाण-पदं १५, आहारट्र-पदं १६, सिद्धि-पदं १७।
एक्कवीसइमो समवाओ
सू०१-१४
पृ० ८५७-८५८ सबल-पदं १, कम्म-पदं २, ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं ३, ठिइ-पद ५, आणपाण-पदं १२, आहारट्ठ-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ ।
बावीसइमो समवाओ
पृ० ८५६-८६० परीसह-पदं १, दिट्रिवाय-पदं २, पोग्गलपरिणाम-पदं ३, ठिइ-पदं ४, आणपाण-पदं १२, आहारटु-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ ।
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१०
तेवीइसमो समवाओ
सू० १-१३
पृ० ८६०-८६१ सूयगडज्झयण-पदं १, जिण-पदं २, तित्थकर-पुत्वभव पदं ३, ठिइ-पदं ५, आणपाण-पदं ११, आहारटु-पदं १२, सिद्धि-पदं १३ ।
चउव्वीसइमो समवाओ
सू० १-१५
पृ० ८६१-८६२ देवाहिदेव-पदं १, चुल्लहिमवंत-पदं २, सइंद-देवाण-पदं ३, सूरिय-पदं ४, महाणदी-पदं ५, ठिइ-पदं ७, आणपाण-पदं १३, आहारटू-पदं १४, सिद्धि-पदं १५ ।
पणवीसहमो समवाओ
पृ०८६२-८६४ भावणा-पदं १, तित्थयर-पदं २, दीहवेयड्ढ़-पदं ३, आवास-पदं ४, आयार-पदं ५, कम्मबंधपदं ६, महाणदी-पदं ७, पुव्व-पदं ६, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं १६, आहारट्र-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ ।
छव्वीसइमो समवाओ
सू० १-११
पृ०८६४-८६५ आगम-पदं १, कम्म-पदं २, ठिइ-पदं ३, आणपाण-पदं ६, आहारट्ठ-पदं १०, सिद्धि-पदं ११ । सत्तावीसइमो समवाओ
सू० १-१५
पृ० ८६५-८६६ अणगारगुण-पद १, नक्खत्त-पदं २, नक्खत्तमास-पदं ३, देवलोयपदं ४, कम्म-पदं ५, सूरियपदं ६. ठिइ-पदं ७, आणपाण-पदं १३, आहारटू-पदं १४, सिद्धि-पदं १५ ।
अट्ठावीसइमो समवाओ
स०१-१५
पृ० ८६७-८६६ आयारपकप्प-पदं १, कम्म-पदं २, णाण-पदं ३, आवास-पदं ४, कम्म-पदं ५, ठिइ-पद ७, आणपाण-पदं १३, आहारटु-पदं १४, सिद्धि-पदं १५ ॥
एगूणतीसइमो समवाओ
सू०१-१८
पृ०८६६-८७० पावसयपसंग-पदं १, मास-पदं २, चंददिण-पदं ८, कम्म-पदं ६, ठिइ-पदं १०, आणपाण-पदं
१६, आहारट्ठ-पदं १७, सिद्धि-पदं १८ । तीसइमो समवाओ
सू०१-१६
पृ० ८७०-८७४ मोहणीयठाण-पदं १, गणहर-पदं २, अहोरत्त-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, ईद-पदं ५, पास-पदं महावीर-पदं ७, आवास-पदं ८, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १४, आहार?-पदं १५, सिद्धिपदं १६।
एकतीसइमो समवाओ
सू० १-१४
पृ० ८७४-८७५ सिद्धाइगुण-पदं १, मंदर-पब्वय-पदं २, सूरिय-पदं ३, अभिवढिय-मास-पदं ४, आइच्चमास-पदं ५, ठिइ-पदं ६, आणपाण-पदं १२, आहारट्ट-पदं १३, सिद्धि-पदं १४।
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बत्तीसइमो समवाओ सू० १-१४
पृ०८७५-८७६ जोगसंगह-पदं १, देविंद-पदं २, तित्थयर-पदं ३, आवास-पदं ४, नक्खत्त-पदं ५, नट-पदं ६, ठिइ-पदं ७, आणपाण-पदं १२, आहारट्र-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ ।
तेत्तीसइमो समवाओ सू० १-१४
पृ० ८७७-८७६ आसायणा-पदं १, भोम-पदं २, महाविदेह-पदं ३, सूरिय-पदं ४, ठिइ-पदं ५, आणपाण-पद
१२, आहारट्ठ-पदं १३, सिद्धि-पदं १४ । चोत्तीसइमो समवाओ
पृ०८७६-८८१ बुद्धाइसेस-पदं १, चक्कवट्टिविजय-पदं २, दीहवेयड्ढ-पदं ३, तित्थयर-पदं ४, आवास-पदं ५ ।
पणतीसइमो समवाओ
सू० १-६
पृ० ८८१-८८२ सच्चवयणाइसेस-पदं १, तित्थयर-पदं २, वासुदेव-बलदेव-पदं ३, जिण-सकहा-पदं ५, आवास-पदं ६ ।
छत्तीसइमो सणवाओ
सू० १-४ उत्तरज्झयण-पदं १, सुहम्मसभा-पदं २, महावीर-पदं ३, सूरिय-पद४।
पृ० ८८२
सत्ततीसइमो समवाओ
सू०१-५
पृ० ८८२-८८३ गणहर-पद १, जीवा-पद २, देवलोय-पद ३, आगम-पद ४, सूरिय-पद ५।
अठ्ठत्तीसइमो समवाओ
सू० १-४ पास-पद१, जीवा-धणपद-पद २, अत्थपव्वय-पद३, आगम-पद ४ ।
पृ० ८८३
एगूणचत्तालीसइमो समवाओ सू० १-८
तित्थयर-पद १, कुलपव्वय-पद २, आवास-पद३, कम्म-पद ४ ।
पृ० ८८३-८८४
चत्तालीसइमो समवाओ
सू० १-८
पृ० ८८३-८८४ तित्थयर-पद १, मंदरचूलिया-पद २, तित्थयर-पद ३, आवास-पद ४, आगम-पद ५,
सूरिय-पद६, आवास-पद ८ । एक्कचत्तालीसइमो समवाओ सू० १-३
पृ० ८८४ तित्थयर-पद १, आवास-पद २, आगम-पद३।
बायालीसइमो समवाओ
सू०१-१०
पृ० ८८४-८८५ महावीर-पदं १, अंतर-पदं २, चंद-सूरिय-पदं ४, ठिइ-पदं ५, कम्म-पदं ६, लवणसमुद्द-पदं ७, आगम-पदं ८, ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं है।
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तेयालीसइमो समवाओ
सू० १-५ कम्मविवागझयण-पदं १, आवास-पदं २, अंतर-पदं ३, आगम-पदं ।।
पृ० ८८५
चोयालीसइमो समवाओ
सू० १-४ इसिभासिय-पदं १, तित्थयर-पदं २, आवास-पदं ३, आगम-पदं ४ ।
पृ० ८८५
पणयालीसइमो समवाओ
सू० १-८
पृ० ८८५.८८६ समयखेत्त-पदं १, सीमंत-नरय-पदं २, उडुविमाण-पदं ३, ईसिपब्भारपुढवी-पदं ४, तित्थयरपदं ५, अंतर-पदं ६, नक्खत्त-पदं , आगम-पदं ८ ।
पृ० ८८६
छायालीसइमो समवाओ
सू० १-३ दिदिवाय-पदं १, बंभी-लिवि-पदं २, आवास-पदं ३।
पृ० ८८६
सत्तचालीसइयो समवाओ
सू० १,२ सूरिय-पदं १, गणहर-पदं २ । अडयालीसइमो समवाओ
सू० १-३ चक्कवट्टि-पदं १, गण-गणहर-पदं २, सूरमंडल-पदं ३ ।
पृ० ८८६
एगणपण्णासइमो समवाओ
सू० १-३
पृ० ८८७ भिक्खुपडिमा-पदं १, देवकुरु- उत्तरकुरु-पदं २, ठिइ-पदं ३ । पण्णास इमो समवाओ
पृ० ८८७ तित्थयर-पदं १, वासुदेव-पदं ३, दीहवेयड्ढ-पदं ४, आवास-पदं ५, गुहा-पदं ६, कंचणगपव्वय-पदं ७।
पृ० ८८७
एगपण्णासइमो समवाओ
सू० १-५ आगम-पदं १, सुहम्मसभा-पदं २, बलदेव-पदं ४, कम्म-पदं ५।
बावण्णइमो समवाओ
सू० १-५ कम्म-पदं १, अंतर-पदं २, कम्म-पदं ४, आवास-पदं ५ ।
पृ० ८८८
तेवण्णइमो समबाओ
सू०१-४ जीवा-पदं १, महावीर-पदं ३, ठिइ-पदं ४।।
पृ० ८८८
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चवण्णइमो समवाओ
सू० १-४
उत्तमपुर-पदं १, तित्थयर-पदं २, महावीर-पदं ३, गण- गणहर-पदं ४ |
पणपणइमो समवाओ
सू० १-६
तित्थयर- पदं १, अंतर - पदं २, महावीर -पदं ४, आवास- पदं ५, कम्म पद ६ ।
सू० १-२
छप्पणो समवाओ
नक्खत्त-पद १, गण- गणहर - पद २ ।
सत्तावण्णइमो समवाओ
६३
सू० १-५
गणिपिडग-पद १, अंतर- पद २, तित्थगर-पदं ४, जीवाधणुपट्ट- पदं ५ |
अट्ठावण्णइमो सवाओ
आवास पद १, कम्म पद २, अंतर- पदं ३ |
पणसमोसमवाओ
सू० १-४
सू० १-३
गुणस इमो समवाओ
चंद संच्छर-पद १, तित्थगर -पद २ । समोसमवाओ
सू० १-६
सूरिय-पद १, लवणसमुद्द-पद २, तित्थयर-पद ३, इद-पद ४, आवास-पद ६ । समोसमवाओ
सू० १-४
रिदुमास पद १, मंदर - पव्वय-पद २, चंदमंडल - पद ३, सूरमंडल - पदं ४ । बाम समवाओ
सू० १-३
सूरमंडल - पदं १, गणहर-पदं २, भोम-पदं ३ |
पृ० ८८६
पृ० ८८६
प०८५६
•
पृ० ८०
पृ० ८६०
सू० १-५ पृ० ८६१ पंचसवच्छ रिय-पद १, गण- गणहर-पद २, चंद-पद ३, विमाण-पद ४, विमाणपत्थड - पद ५ । मोसमवाओ सू० १-४ पृ० ८१, ८६२ तित्थयर-पद १, हरिवास - रम्मयवास - पद २, निसह-पव्वय-पद ३, नीलवंत पव्वय-पद ४ । चउसट्ठिमो समवाओ सू० १-६ पृ० ८६२ भिक्खुपडिमा पदं १, आवास- पदं २, चमर-पदं ३, दधिमुह - पव्वय-पदं ४, विमाणावासपदं ५, चक्कवट्टि पदं ६ ।
पृ० ८६०
पृ० ८६१
·
पृ० ८६१
पृ० ८६२
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छावट्ठिमो समवाओ
सू० १-४
पृ० ८६२,८६३ चंद-सूरिय-पदं १, गण-गणहर-पदं ३, ठिइ-पदं ४ । सत्तसट्ठिमो समवाओ
सू०१-४
पृ०८६३ नक्खत्तमास-पदं १, हेमवत-हेरण्णवत-पदं २, अंतर-पद ३, नक्खत्त-पदं ४ । अट्ठसट्ठिमो समवाओ
सू० १-७
पृ० ८६३ धायइपंड-पदं १, पुक्खरवर-दीवड्ड-पदं ४, तित्थयर-पदं ७ । एगूणसत्तरिमो समवाओ
सू० १-३
पृ० ८६४ वासधर-पव्वय-पदं १, अंतर-पदं २, कम्म-पदं ३ । सत्तरिमो समवाओ
सू० १-५
पृ० ८६४ महावीर-पदं १, पास पदं २, तित्थयर-पदं ३, कम्म-पदं ४, ईद-पदं ५ । एक्कसत्तरिमो समवाओ
सू०१-४
प० ८६४ सूरिय-पदं १, पुव्व-पदं २, तित्थयर-पदं ३, चक्कवट्टि-पदं ४ । बावत्तरिमो समवाओ
सू० १-८
पृ० ८६५,८६६ देव-पदं १, लवणतमद्द-पदं २, गहावीर-पदं ३, मणहर-पदं ४, चंद-सूरिय-पदं ५, चक्कवट्रि
पदं ६, कला-पदं ७, ठिइ-पदं ८ । तेवत्तरिमो समवाओ
सू० १-२
पृ० ८६६ हरिवास-रम्मयवास-पदं १, बलदेव-पदं २ । चोवत्तरिमो समवाओ
पृ० ८६६ गणहर-पदं १, महाणई-पदं २, आवास-पदं ४ । पण्णत्तरिमो समवाओ
सू० १-३
पृ०८६६ तित्थयर-पदं १। छावत्तरिमो समवाओ
सू० १-२
पृ० ८६७ देव-पदं १। सत्तत्तरिमो समवाओ
सू० १-४
प० ८६७ चक्कवट्टि-पदं १, अंगवंसराय-पदं २, देव-पदं ३, काल-पदं ४ ।
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८९७
अट्ठसत्तरिमो समवाओ
सू० १-४ इद-पदं १, गणहर-पदं २, सूरिय-पदं ३। । एगूणासीइमो समवाओ
सू० १-४
पृ० ८६८ अंतर-पदं १ । असीइइमो समवाओ
पृ० ८६८ तित्थयर-पदं १, वासुदेव-बलदेव-पदं २, कंड-पदं ५, इंद-पदं ६, सूरिय-पदं ७।। एक्कासीइमो समवाओ
सू०१-३
पृ० ८६८ भिक्खुपडिमा-पदं १, तित्थयर-पदं २, आगम-पदं ३ । बासीतिइमो समवाओ
सू० १-४
पृ० ८६८ सूरिय-पदं १, महावीर-पदं २, अंतर-पदं ३, तेयासीइमो समवाओ
सू० १-५
पृ० ८६६ महावीर-पदं १, तित्थयर-पदं २, गणहर-पदं ३, तित्थयर-पदं ४,चक्कवट्टि-पदं ५। . चउरासीइमो समवाओ
सू० १-१८ पृ० ८६६-६०० आवास-पदं १, तित्थयर-पद २, भरह-आदि-पद ३, तित्थयर-पद ४, वासुदेव-पद ५, इद-पद ६, मंदर-पद ७, अंजणग-पन्वय-पद ८, हरिवास-पद ६, अंतर-पद १०, आगमपद ११, देव-पद १२, पइण्णग-पद १३, जोणिप्पमुह-पद १४, गुणकार-पद १५, तित्थयर. पद १६, आवास-पद १८ ।
पृ० ६००
पृ० ६००
पंचासीइइमो समवाओ
सू० १-४ आगम-पदं १, धायइसंडपदं २, मंडलिय-पव्वय-पदं ३, अंतर-पदं ४ । छलसीइइमो समवाओ
सू० १-३ गण-गणहर-पदं १, तित्थयर-पदं २, अंतर-पदं ३ । सत्तासिइइमो समवाओ
सू० १-७ अंतर पदं १, कम्म-पदं ५, अंतर-पदं ६ । अट्ठासीइइमो समवाओ
सू० १-८ चंदसूरिय-पदं १, दिट्ठिवाय-पदं २, अंतर-पद ३, सूरिय-पदं ७ ।
पृ० ६००-६०१
पृ० ६०१-६०२
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पृ० ६०२
पृ० ६०२-६०३
पृ० ६०३
एगणणउइइमो समवाओ
सू०१-४ तित्थयर-पदं १, महावीर-पदं २, चक्रवट्टि पदं ३, तित्थयर-पदं ४ । णउइइमो समवाओ
सू० १-५ तित्थियर पद १, गण-गणहर-पद २, वासूदेव-पद ४, अंतर-पद ५। एक्क णउइइमो समवाओ
पडिमा-पद १, कालोय-समुद्द-पद २, तित्थयर-पद ३, कम्म-पद" ४ । बाणउइइमो समवाओ
सू० १-४ पडिमा-पद १, गणहर-पद २, अंतर-पद३। तेणउइमो समवाओ
सू० १-३ गण-गणहर पदं १, तित्थयर-पदं २, सूरिय-पदं ३ । चउणइइमो समवाओ
सू० १-२ जीवा-पदं १, तित्थयर-पद ।
पृ०६०३
पृ०६०३
पृ०६०३
पंचाणउइइमो समवाओ
सू०१-५
पृ०६०४ गण-गणहर पदं १, महापायाल-पद २, लवणसमुद्द-पदं ३, तित्थयर-पद ४, गणहर-पद ५। छणउइइमो समवाओ
सू० १-६
पृ० ६०४ चकरुवट्टि-पद १, आवास-पद २, ववहारिय-दंड-आदि-पद ३, आतिमुहत्त-पद । . सत्ताणउइइमो समवाओ
सू०१-४
पृ०६०४,६०५ अंतर-पद १, कम्म-पद ३, चक्कवट्टि-पद ४ । अट्ठाणउइइमो समवाओ
स० १-७
पृ०६०५ अंतर-पद १, धणुपट्ट-पद ४, सूरिय-पद ५, नक्खत्त-पद ७ । णवणउइइमो समवाओ
सू०१-७
पृ० १०५-६०६ मंदर-पव्वय-पद १, अंतर-पद २, सूरियमंडल-पद ४, अंतर-पद ७ । सततमो समवाओ
सू०१८
पृ० १०६ भिक्खुपडिमा-पद १, नक्खत्त-पद २, तित्थयर-पद ३, पास-पद ४, गणहर-पद ५, दीहवेयड्ढ-पद६, चूल्ल हिमवंत-पद ७, कंचणग-पव्वय-पद ।
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६७
पइण्णगसम्मवाओ
सू० १-२६१ पृ० ६०४-६५४ तित्थयर पद १, देवलोय-पद २, तित्थयर - पदं ४, वासहर - पव्वय-पद ५, कंचन-पव्वयपद ६, तित्थर पद ७, देव पद ८, तित्थयर पद ६, देव पद ११, महावीर - पद १२, जीवप्प - देसोगाहणा-पद १३, पास-पद १४, तित्थयर पद १५, वासहर - पव्वय-पद १७, वक्खार-पव्वय-पद ं १८, देवलोय पद १६, महावीर - पद २०, तित्थयर पद २१, चक्कवट्टि - पद २२, वक्खार-पव्वय-पद २३, वासहरकूड- पद २४, तित्थयर पद २५, चक्कवट्टि - पद २६, वक्खार-पव्वय-पद २७, वक्खार-पव्वयकूड पद २८, नंदणकूड पद २६, विमाण-पदं ३०, अंतर-पदं ३२, पास पदं ३४, कुलगर-पदं ३५, तित्थयर पद ३६, विमाण पदं ३७, महावीर - पदं ३८, तित्थयर-पदं ४०, अंतर- पदं ४१, विमाण- पदं ४३, भोमेज्ज - विहार- पदं ४४, महावीर - पदं ४५, सूरिय-पदं ४६, तित्थयर- पदं ४७, विमाण-पदं ४८, अंतर- पदं ४६, कुलगर-पदं ५१, तारारूव-पदं ५२, अंतर- पदं ५३, विमाण- पदं ५५, जमगपव्वय-पदं ५६, चित्त-विचत्तकूड- पदं ५७, वट्टवेयढ-पव्वय-पदं ५८, हरि-हरिस्सह कूड - पदं ५६, बलकूड- पदं ६०, तित्थयर - पदं ६१, पास-पदं ६२, दह-पदं ६४, विमाण- पदं ६५, पास-पदं ६६, दह-पदं ६७, अंतर- पदं ६८, दह-पदं ६६, मंदर - पव्वय-पदं ७०, आवास-पदं ७१, अंतर-पद्-७२, हरिवास-रम्मयवास-पदं ७३, जीवा-पदं ७४, मंदर पव्वय-पदं ७५, जंबुद्द वपदं ७६, लवणसमुद्द-पदं ७७, पास पदं ७८, धायइसंड-पदं ७६, अंतर-पदं ८०, चक्कवट्टि पदं ८१, अंतर- पदं ८२, आवास-पदं ८३, तित्थयर-पदं ८४ वासुदेव-पदं ८५, महावीर - पदं ८६, उसभ-महावीर-पदं ८७, दुवालसंग - पदं ८८, रासि - पद १३५, पज्जत्तापज्जत्त-पद १४०, आवास-पद ं १४१, ठिइ-पद १५३, सरीर - पद १५८, ओहि पद १७२, वेयणा- पद १७३, लेसा-पद १७४, आहार- पद १७५, आउगबंध-पद १७६, उववाय - उवट्टणा-विरह-पद १७६, आगरिस - पद १८४, संघयण-पद १८६, संठाण-पद १६६, वेय-पद २०६, समवसरण-पद ं २१५, कुलगर - पद २१६, तित्थयर पद २२०, चक्कवट्टि पद २३४, बलदेववासुदेव-पद २३८, एरवय - तित्थगर पद २४८, भावि कुलगर- पदं २४६, भावि. तित्थगर - पद २५१, भावि चक्कवट्टि - पद २५४, भावि बलदेव वासुदेव पद २५६, एरवयभावि-तित्थगर-पद २५८, एरवय भावि चक्कवट्टि -बलदेव - वासुदेव-पद २५६, निक्खेव - पद २६१ ।
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संकेत-निर्देशिका • ० ये दोनों बिन्दु पूर्त-पाठ के द्योतक हैं। पूर्त-पाठ के प्रारंभ में भरा बिन्दु [.] और उसके
समापन में रिक्त विन्दु [ ° ] रखा गया है । देखें-पृष्ठ १४ सू० १४० । [?] कोष्ठकवर्ती पाठ के आगे प्रश्न [?] आदर्शों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का
सूचक है । देखें-पृ० ४०४ सू० २। यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखेंपृ०६ सू०२६। क्रास [x] पाठ न होने का सूचक है। देखें--पृ० ४ सू०४। पाठ के पूर्व या अन्त में खाली बिन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें-पृ० ४ टिप्पणी १२, २। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्तिस्थल का निर्देश है। देखें--पृ० ४६६ टिप्पण ३ तथा पृ० ४६५ टिप्पण ४ । 'एव', 'जहा' 'तहेव' आदि के टिप्पण में उनकी पूर्तिस्थल का निर्देश है। देखें--पु. ४१६. सू० १६०, १८४ तथा
अ. क, ख, ग, घ, च, छ ब। देखें-संपादकीय में 'प्रतिपरिचय' शीर्षक स्थल । क्व क्वचित् प्रयुक्तादर्श। सं०पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है । देखें-पृ० ४ टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें--पृ० ४ टिप्पण ५। वृपा वृत्ति सम्मत पाठान्तर। देखें--पृ० ४ टिप्पण १० । दी० दीपिका सम्मत पाठान्तर । देखें--पृ० २५६ टिप्पण हैं । व्या०वि० व्याकरण विमर्श । देखें--प० २६० टिप्पण ३ । पू० पूर्ण पाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें--पृ० ५५४ टिप्पण ६ । चू० चूणि का सूचक है । देखें--पृ० ४० टिप्पण ५ । चू०पी० चूर्णि सम्मत पाठान्तर । देखें-प० ४ टिप्पण १० ।
पद, विशेष गाथा तथा विशेष सूक्तियों को गहरे टाइप में दिया गया है । देखें--आयारो। अ० अणओगदाराणि ओ० ओववाइयं चंद चंदपण्णत्ती
जंबूद्वीवपण्णत्ती ठा० ठाणं दसा० दसासुयक्खंधो नि० निसीहज्झयणं प० पइण्णगसमवाओ पण्ण० पण्णवणा
भगवई राय० रायपसेणइयं स० समवाओ सू० सूयगडो
जं
भ०
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आयारो
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पढमं अज्झयणं सत्थपरिणा पढमो उद्देसो
अप्पणो अत्थित्त-पदं १. सूयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं'-इहमेगेसिं नो सण्णा भवइ, तं जहा
पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ। आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ । आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, 'अहे वा दिसाओ२ आगओ अहमसि, 'अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा
आगओ अहमंसि, २. एवमेगेसि णो णातं भवति-अत्थि मे आया ओववाइए', णत्थि मे आया __ ओववाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुओ' इह पेच्चा भविस्सामि ?
१. मखायं (ख)।
दिसाओ वा (घ); अण्णतराए दिसाओ वा २. अहे दिसाओ वा (क, ख, ग, घ, च) अहो अणुदिसाओ वा (च)। दिसाओ वा (छ)।
४. भवति, तं जहा (चू)। ३. अण्णयरीओ वा दिसाओ वा अणुदिसानो ५. ओववातिते (क); उववादिए (च)।
(क, ग, छ); अण्णयरीओ दिसाओ वा अणु- ६. चुते (घ)।
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आयारो
अहे
३. सेज्जं पुण जाणेज्जा-सहसम्मुइयाए', परवागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा तं जहा
पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, 'दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि,
वा दिसाओ आगओ अहमंसि°, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा
आगओ अहमंसि, ४. एवमेगेसि जंणातं भवइ-अस्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ 'दिसाओ
अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ', सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ 'जो
आगओ अणुसंचरइ, सोहं ॥ ५. से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई ।। आस्सव-पदं
६. अकरिस्सं चहं, कारवेसुं चहं, करओ यावि समणुण्णे भविस्सामि ॥ संवर-पदं
७. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्वा भवंति ॥ आस्सव-परिणाम-पदं ८. अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसानो वा
अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ सहेति, अणेगरूवाओ जोणीओ संधेई", विरूवरूवे फासे य" पडिसंवेदेइ ।।
१. संमदियाए (क); सहसंमुइयाओ (घ); ७. X (क, ख, ग, च)। __ सहस्समुइए (च)।
८. काराविस्सं (क, ख, ग); कारावेस्सं (घ); २. पुरित्थि° (ख, च)।
कारावेस्सु (च)। ३. सं० पा०-अहमंसि जाव अण्णयरी। ६. कम्मा (क, घ)। ४. णाणं (ख); णायं (घ)।
१०. संधावती (चू); संधेइ (चूपा); संधावइ ५. दिसाओ वा अणुदिसाओ (ख, छ); दिसाओ (वृपा)। __ वा अणुदिसाम्रो य (चू, वृ)। ११. ४ (ख, ग, घ, च)। ६. अणुसंसरइ; अणुसंभरति (चूपा); अणुसंसरइ १२. ° संवेतेइ (क); ° संवेदयइ (घ, च)।
(वृपा)।
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पढम अज्झयणं (सत्थपरिण्णा—बीओ उद्देसो) कम्म-सोय-पदं
६. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । १०. इमस्स चेव' जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए',
दुक्खपडिघायहे। संवर-साहणा-पदं ११. एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्वा भवंति ॥ १२. जस्सेते लोगंसि कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे ।
--त्ति बेमि ॥
बीओ उद्देसो अण्णाण-पदं १३. अट्टे लोए परिजुण्णे, दुस्संबोहे अविजाणए । १४. अस्सिं लोए पव्वहिए। पुढविकाइयहिंसा-पदं १५. तत्थ तत्थ पुढो पास', आतुरा परितार्वेति ॥ १६. संति पाणा पुढो सिया ॥ १७. लज्जमाणा पुढो पास ॥ १८. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ॥ १६. जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। २०. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया ॥ २१. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए,
दुक्खपडिघायहेउं ॥ २२. से सयमेव पुढवि-सत्थं समारंभइ, अण्णेहि वा पुढवि-सत्थं समारंभावेइ, अण्णे
वा पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ । २३. तं से अहियाए, तं से अबोहीए ॥ २४. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए॥
१. ° भोयणाए (चू, वृपा)। २. पच्चविए (च)। ३. पासे (क, घ)। ४. आतुरा अस्सि (वृ)।
५. संभारंभमाणा (ख, ग, छ)। ६. अणेग ° (घ, च)। ७. समारंभमाणे (घ)।
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आयारो
२५. सोच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा' अंतिए इहमेगेसि णातं भवति-एस खलु
गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए॥ २६. इच्चत्थं गढिए लोए ॥ २७. जमिणं 'विरूवरूवेहिं सत्थेहि" पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिसइ। पुढविकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं २८. से बेमि-अप्पेगे अंधमब्भे', अप्पेगे अंधमच्छे । २६. अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे 'गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे,
अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे अप्पेगे जाणमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे, अप्पेगे णाभिमब्भे, अप्पेगे णाभिमच्छे, अप्पेगे उयरमब्भे, अप्पेगे उयरमच्छे, अप्पेगे पासमन्भे, अप्पेगे पासमच्छे, अप्पेगे पिट्ठमब्भे', अप्पेगे पिटुमच्छे, अप्पेगे उरमब्भे, अप्पेगे उरमच्छे, अप्पेगे हिययमब्भे, अप्पेगे हिययमच्छे, अप्पेगे थणमब्भे, अप्पेगे थणमच्छे, अप्पेगे खंधमब्भे, अप्पेगे खंधमच्छे, अप्पेगे बाहुमब्भे, अप्पेगे बाहुमच्छे, अप्पेगे हत्थमन्भे, अप्पेगे हत्थमच्छे, अप्पेगे अंगुलिमब्भे, अप्पेगे अंगुलिमच्छे, अप्पेगे णहमन्भे, अप्पेगे णहमच्छे, अप्पेगे गीवमब्भे, अप्पेगे गीवमच्छे, अप्पेगे हणुयमब्भे अप्पेगे हण्यमच्छे, अप्पेगे हो?मब्भे", अप्पेगे हो?मच्छे, अप्पेगे दंतमब्भे, अप्पेगे दंतमच्छे, अप्पेगे जिब्भमब्भे, अप्पेगे जिब्भमच्छे, अप्पेगे तालुमब्भे, अप्पेगे तालुमच्छे, अप्पेगे गलमब्भे, अप्पेगे गलमच्छे, अप्पेगे गंडमब्भे, अप्पेगे गंडमच्छे, अप्पेगे कण्णमब्भे, अप्पेगे कण्णमच्छे, अप्पेगे णासमन्भे", अप्पेगे णासमच्छे, अप्पेगे अच्छिमब्भे, अप्पेगे अच्छिमच्छे, अप्पेगे भमुहमब्भे, अप्पेगे भमुहमच्छे,
अप्पेगेणिडालमब्भे, अप्पेगे णिडालमच्छे, अप्पेगे सीसमन्भे, अप्पेगे सीसमच्छे । ३०. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए ।
१. ४ (घ)।
जाणुमब्भे (च)। २. निरए (क, ख, घ, च)।
८. पुट्ठि° (क); पिट्ठि° (ख, ग, च); पट्टि ३. °रूवेसु सत्थेसु (क, च, छ)। ४. समारंभमाणे (क, ख, ग, च, छ)। ६. हणुम ° (क, घ, च, छ)। ५. अत्त° (च)।
१०. उट्ठ ° (घ)। ६. ° मच्चे (घ)।
११. नक्क° (घ, च)। ७. पुप्फमब्भे अप्पेगे एवं जंघापुप्फगमन्भे अप्पेगे १२. सिर° (च)।
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पढमं अभय (सत्यपरिण्णा - तइओ उद्देसो)
हिंसा विवेग-पदं
३१. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति ॥ ३२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति ॥ ३३. तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्यं समारंभेज्जा, नेवण्णेहिं पढवि-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवणे पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा ॥
३४. जस्से ते पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी परिण्णात-कम्मे । -त्ति बेमि ॥
तइओ उद्देस
समपण-पदं
३५. से बेमि - से जहावि अणगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, अमायं कुव्वमाणे वियाहिए ||
३६. जाए सद्धाए णिक्खतो, तमेवअणुपालिया' । 'विजहित्तु विसोत्तियं" ॥ ३७. पणया वीरा महावीहि ।
आउकाइयाणं अत्थित्त-अभयदान-पदं
३८. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा' अकुतोभयं ॥
३६. से बेमिव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा । जे लो अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ ।
जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोयं अब्भाइक्खइ ॥
आउकाइहंसा-पदं
४०. लज्जमाणा पुढो पास ॥
४१. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ।।
४२. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय कम्म-समारंभेणं उदय - सत्यं समारंभमाणे
अण्णे वणेगरूवे' पाणे विहिंसति ।।
१. ० का ० (च) ।
२. X ( क, छ) ।
३. निकाय ° ( चू, वृपा ) ।
o
४. तामेव° (घ, च); ० अणुपालेज्जा (वृ) | ५. विजहित्ता ( ख, ग, घ, च); तिन्नोहुसि विसोत्तियं (चू); विजहित्ता पुव्वसंजोगं ( वृपा) ।
७
६.
० समिच्चा (ख, घ) ।
७. अट्टे लोए परिजुण्णे, दुस्संबोहे अविजाणए, अस्सि लोए पव्वहिए, तत्थ तत्थ पुढो पास, आरा परतावेंति । एस आढत्तं पुढविक्काइयउद्देस्यगमेणं धुवगंडिया सुत्तत्थतो भाणियव्वा अप्पेगे अंधमब्भे (चू) | ८. अणेग ० ( ग, घ ) ।
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आयारो ४३. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता । ४४. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए,
दुक्खपडिघायहेउं ॥ ४५. से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अण्णेहि वा उदय-सत्थं समारंभावेति,
अण्णे वा' उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति ॥ ४६. तं से अहियाए, तं से अबोहीए॥ ४७. से तं संबज्झमाणे. आयाणीयं समद्राए॥ ४८. सोच्चा खलु' भगवओ अणगाराणं वा' अंतिए इहमेगेसिं णायं भवति - एस
खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए॥ ४६. इच्चत्थं गढिए लोए॥ ५०. जमिणं 'विरूवरूवेहिं सत्थेहिं" उदय-कम्म-समारंभेणं उदयसत्थं समारंभमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।।
आउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं
५१. से बेमि–'अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे ।। ५२. अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे ।। ५३. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए॥ हिंसाविवेग-पदं ५४. से बेमि-संति पाणा उदय-निस्सिया जीवा अणेगा। ५५. इहं च खलु भो ! अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया ॥ ५६. सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा॥ ५७. 'पुढो सत्थं पवेइयं ॥ ५८. अदुवा अदिण्णादाणं॥ ५६. कप्पइ णे", कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए ।
१. ४ (ख, ग)
निर्देशेन गृहीतानि सन्ति । पूर्णपाठार्थ २. X (घ, च)।
द्रष्टव्यम्-११२८-३० । ३. x (क, ख, ग)।
७. इह (छ)। ४. ° रूवेसु सत्थेसु (च)।
८. चेत्थं (क, ख, छ)। ५. अणेग° (घ, च)।
६. पास (घ, च)। ६. x (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ); एतानि १०. पुढोऽपासं (वृपा)।
त्रीणि सूत्राणि वृत्ती न व्याख्यातानि प्रतिष्वपि ११. णो (घ)। नोपलभ्यन्ते, केवलं चूर्णावेव ध्रवकण्डिका
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पढमं अज्झयणं (सत्थपरिणा-चउत्थो उद्देसो) ६०. पुढो सत्थेहिं विउद॒ति ।। ६१. एत्थवि तेसिं णो णिकरणाए। ६२. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ॥ ६३. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ।। ६४. तं परिणाय मेहावी णेव सयं उदय-सत्थं समारंभेज्जा, वन्नेहिं उदय-सत्थं
समारंभावेज्जा, उदय-सत्थं समारंभंतेवि अण्णे ण समणुजाणेज्जा। ६५. जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णात-कम्मे ।
-त्ति बेमि ।।
चउत्थो उद्देसो तेउकाइयाणं अत्थित्त-पदं ६६. 'से बेमि''—णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा॥
जे लोगं अब्भाइक्खइ. से अत्ताणं अब्भाइक्खड।
जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ ।। ६७. जे दी हलोग-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे ।
जे असत्थस्स खेयण्णे, से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे ॥ ६८. वीरेहिं एवं अभिभूय दिळं, संजतेहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहि ॥ तेउकाइयहिंसा-पदं ६९. जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति ॥ ७०. तं परिण्णाय मेहावी इयाणि णो जमहं पुव्वमकासी पमाएणं ॥ ७१. लज्जमाणा पुढो पास ॥ ७२. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा॥ ७३. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे,
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। ७४. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । ७५. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए,
दुक्खपडिघायहेउं । ७६. से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अण्णे
वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ॥
१. सेयं मिणं (च)। २. गुणट्ठी (क, वृ); गुणट्ठीए (ख, ग)।
३. धुवगंडियं भणिऊणं जाव से बेमि (च)। ४. x (च)।
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आयारो
७७. तं से अहियाए, तं से अबोहीए॥ ७८. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए ॥ ७९. सौच्चा खलु भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं णायं भवति-एस खलु
गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए ।
इच्चत्थं गढिए लोए॥ ८१. जमिणं विरूबरूवेहिं सत्थेहि अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। तेउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं ८२. से बेमि-अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे ।। ८३. अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे ॥ ८४. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । हिंसाविवेग-पदं ८५. से बेमि-संति पाणा पुढवि-णिस्सिया, तण-णिस्सिया, पत्त-णिस्सिया, कट्टणिस्सिया, गोमय-णिस्सिया, कयवर-णिस्सिया।
संति संपातिमा पाणा, आहच्च संपयंति य'।
अणि च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जति ॥ जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जति'।
जे तत्थ परियावज्जति, ते तत्थ उद्दायति ।। ८६. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चे आरंभा अपरिणाया भवंति ।। ८७. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवंति ।। ८५. तं परिणाय मेहावी नेव सयं अगणि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवण्णेहि अगणि-सत्थं
समारंभावेज्जा, अगणि-सत्थं समारंभमाणे अण्णे न समणुजाणेज्जा ॥ ८९. जस्सेते अगणि-कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे।
-त्ति बेमि॥
१. द्रष्टव्यम्-११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. X (क, ख, ग, च)।
३. • विज्जति (क, ख, छ)।
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पढम अज्झयणं (सत्थपरिण्णा-पंचमो उद्देसो)
पंचमो उद्देसो अणगार-पदं ६०. तं' णो करिस्सामि समुहाए ॥ ६१. मंता' मइमं अभयं विदित्ता॥
६२. तं जे णो करए एसोवरए, एत्थोवरए एस अणगारेत्ति पवुच्चइ । गिहचाइणो वि गिहवास-पदं ६३. जे गुणे से आवटे, जे आवट्टे से गुणे ॥ १४. उड्ढं अहं तिरियं पाईणं 'पासमाणे रूवाइं पासति", 'सुणमाणे सद्दाइं सुणेति॥ ६५. उड्ढं अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु आवि ।। ६६. एस लोए वियाहिए। ६७. एत्थ अगुत्ते अणाणाए । ६८. पुणो-पुणो गुणासाए, वंकसमायारे, पमत्ते गारमावसे ॥ वणस्सइकाइय हिंसा-पदं
६६. लज्जमाणा पुढो पास। १००. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा॥ १०१. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभ
__माणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। १०२. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता॥ १०३. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए,
दुक्खपडिघायहेउं ॥ १०४. से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वणस्सइ-सत्थं समारंभावेइ,
अण्णे वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ।। १०५. तं से अहियाए, तं से अबोहीए । १०६. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए । १०७. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि णायं भवति-एस खलु गंथे,
एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए । १. ते (च)।
५. सुणिमाणि सुणेति (चू); सुणमाणो सद्दाई २. मत्ता (क, घ, च)।
सुणेति । एवं गंधरसफासेहि वि भाणियवं ३. अवं (वृ); अहे य (ख)।
(चूपा)। ४. पासियाई दरिसेति (चू); पस्समाणो रूवाइं ६. धुवगंडिया (चू)। पासइ (चूपा)।
७. अणेग° (ख, ग, च)।
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१२
१०८. इच्चत्थं गढिए लोए । १०६. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं समारंभेमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥
auraइकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं
११०. से बेमि - अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे || १११. अप्पे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे'॥
११२. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दव ॥
वणस्स जीवाणं माणुस्सेण तुलणा-पदं
बुधम्
११३. से बेमि – इमपि जाइधम्मयं एयंपि जाइधम्मयं । इमपि बुद्धिधम्मयं एयंपि । इमं चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं । इमपि छिन्नं मिलाति, एपि छिन्नं मिलति । इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं । इमंपि अणिच्चयं, एपि अणिच्चयं । इमंपि असासयं, एयंपि असासयं । इमंपि चयावचइयं, एपि चयावचयं । इमंपि विपरिणामधम्मयं एयंपि विपरिणामधम्मयं ॥
हिंसाविवेग-पदं
११४. एत्थ सत्यं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ॥ ११५. एत्थ सत्यं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ॥
११६. तं परिणाय मेहावी - णेव सयं वणस्सइ- सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं वणस्स - सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे वणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा | ११७. जस्सेते वणस्सइ सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिणाय - कम्मे । - त्ति बेमि ॥
१. द्रष्टव्यम् - ११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. चओवचइयं (क, घ, च, छ, चू); चयावचयं
आयारो
छट्टो उद्देसो
संसार - पदं
११८. से बेमि - संतिमे तसा पाणा, तं जहा - अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उभिया ओववाइया ।। ११६. एस संसारेति पवुच्चति ॥
वणस्सइ-सत्थं
( ख, ग ) ।
३. संसारित्ति (क, ख ) ।
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पढमं अज्झणं (सत्यपरिण्णा -छट्टो उद्देसो)
१२०. मंदस अवियाणओ ॥
१२१. णिज्भाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं ॥
१२२. सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अस्साय'
परिणामभयं दुक्खं ति बेमि ॥
तसकाइसा-पदं
१२३. तसं ति पाणा पदिसोदिसासु य ॥
१२४. तत्थ तत्थ पुढो पास, आउरा परितार्वेति' ॥
१२५. संति पाणा पुढो सिया ||
१२६. लज्जमाणा पुढो पास ॥
१२७. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ||
१२८. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय - समारंभेणं तसकाय सत्थं समारंभमाणे अणे वगरूवे पाणे विहिंसति ॥
१२६. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया ॥
१३०. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण - माणण- पूयणाए, जाई- मरण-मोयणाए, दुखपडिघाय
||
१३१. से सयमेव तसकाय - सत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा तसकाय - सत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा तसकाय - सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ ॥
१३२. तं से अहियाए, तं से अबोहीए ॥
१३३. सेतं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्टाए ||
१३४. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं 'वा अंतिए " इहमेगेसि णायं भवइ - एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए ॥
१३५. इच्चत्थं गढ़िए लोए ॥
१३६. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहि तसकाय -समारंभेणं तसकाय - सत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥
तसकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं
१३७. से बेमि - अप्पेगे अंघमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे ॥ १३८. अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे' ॥
१३६. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दव ॥
१. आसयं ( क्व ) । २. अट्टा 'ते जाव परितावेंति' धुवगंडिया (चू) । ३. वि (घ) ।
१३
४. X ( क ) । सर्वत्र नास्ति ।
५. द्रष्टव्यम् - १।५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
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१४
हिंसाविवेग-पद
१४०. से बेमि - अप्पेगे अच्चाए वहति अप्पे अजिणाए वहंति, ' अप्पेगे मंसाए वहति अप्पेगे सोणियाए वहति अप्पेगे हिययाए वहंति अप्पेगे पित्ताए वहंति अप्पे वसाए वहंति अप्पेगे पिच्छाए वहति अप्पेगे पुच्छाए वहति, अप्पे बालाए वहंति अप्पेगे सिंगाए वहंति अप्पेगे विसाणाए वहति, अप्पे दंताए वहति अप्पे दाढाए वहति अप्पेगे नहाए वहति अप्पेगे हारुणीए वहंति अप्पे अट्ठीए वहंति अप्पेगे अट्ठिमिजाए वहति अप्पे अट्ठाए वहति, अप्पेगे अणट्टाए ° वहति अप्पेगे 'हिंसिसु मेत्ति वा" वहति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति अप्पे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति ॥
o
१४१. एत्थ सत्यं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ॥ १४२. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ॥
१४३ तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं तसकाय सत्थं समारंभेज्जा, ठेवण्णेहिं तसकाय - सत्थं समारंभावेज्जा, ठेवण्णे तसकाय - सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा ॥ १४४. जस्सेते तसकाय - सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णाय कम्मे ।
-त्ति बेमि ॥
आयारो
सत्तम उद्देस
अत्ततुला-पदं
१४५. ' पहू एजस्स" दुगंछणाए ॥
१४६. आयंकदंसी अहियं ति नच्चा ॥
१४७. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ । जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ || १४८. एयं तुलमसि ॥
१४६. इह संतिगया दविया, णावकंखति वीजिउं ॥
वाकार्याहिंसा-पदं
१५० लज्जमाणा' पुढो पास ॥
१. हणंति (च) ; वर्धति ( क ); हिंसंति (घ ) । २. सं० पा० एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छा पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दाढा नहाए हारुणीए अट्टीए अट्टि - fare अट्टाए अट्ठाए ।
३. हितयाए ( क च ) 1 ४. हिंसिसु इति वा ( ख, ग ) । ५. पहू य एगस्स (वृ); पभु एयस्स ( क ) ।
६. इति ( चुपा ) ।
७. जीवियं (क, छ); जीविउं ( ख, ग, घ, च, वृ); मूलपाठ: चूर्याधारेण स्वीकृतोस्ति । 'दसवे आलिय' सूत्रस्य ( ६ । ३७) श्लोकेनास्य पुष्टिर्जायते ।
८. अट्टा परिजुण्णा आकंपिता जाव आतुरा परितात्रिता धुवगंडिया (चू) ।
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पढमं अज्झयणं (सत्थपरिणा-सत्तमो उद्देसो) १५१. अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा ।। १५२. जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ॥ १५३. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । १५४. इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए,
दुक्खपडिघायहेउं । १५५. से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा वाउ-सत्थं समारंभावेति, अण्णे
वा वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ॥ १५६. तं से अहियाए, तं से अबोहीए॥ १५७. से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुठ्ठाए । १५८. सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ-एस खलु गंथे,
एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए । १५६. इच्चत्थं गढिए लोए॥ १६०. जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहिं वाउकम्म-समारंभेणं वाउ-सत्थं समारंभमाणे
अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।। वाउकाइयाणं जीवत्त-वेदणाबोध-पदं १६१. से बेमि-अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे । १६२. अप्पेगे पायमन्भे, अप्पेगे पायमच्छे ।। १६३. अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए । हिंसाविवेग-पदं १६४. से बेमि–संति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयंति य ॥
फरिसं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति ॥ जे तत्थ संघायमावज्जति, ते तत्थ परियावज्जति,
जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायति ॥ १६५. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति ।। १६६. एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ।। १६७. तं परिणाय मेहावी णेव सयं वाउ-सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं वाउ-सत्थ
समारंभावेज्जा, णेवण्णे वाउ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। १६८. जस्सेते वाउ-सत्थ-समारंभा परिणाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे
त्ति बेमि ।।
१. द्रष्टव्यम्-११५३ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
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आयारो
मुणि-संबोध-पदं १६९. एत्थं पि जाणे उवादीयमाणा॥ १७०. जे आयारेन रमंति ॥ १७१. आरंभमाणा विणयं वियंति ॥ १७२. छंदोवणोया अज्झोववण्णा ॥ १७३. 'आरंभसत्ता पकरेंति संग" ॥ १७४. से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणणं अकरणिज्जं पावं कम्मं ॥ १७५. तं' णो अण्णेसि ॥ हिंसाविवेग-पदं १७६. तं परिणाय मेहावी णेव सयं छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं
छज्जीव-णिकाय-सत्थं समारंभावेज्जा, णेवण्णे छज्जीवणिकाय-सत्थं समारंभंते
समणुजाणेज्जा। १७७. जस्सेते छज्जीव-णिकाय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णाय-कम्मे।
-त्ति बेमि ॥
१. 'आरंभसत्ता पकरेंति संगं', अस्य पाठस्यानन्तरं वणीता, तत्थेव अज्झोववण्णा आरंभे असत्ता
चूां निम्नः पाठ उपलभ्यते-'एत्थ विणो पगरेंति संग' । जाण अणुवाइयमाणा, जे आयारे रमंति, २.४ (ख, ग, छ)। अणारंभमाणा विणयं वदंति, पसत्थछंदो
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ati अभयणं लोगविजओ
पढमो उद्देस
आसत्ति-पदं
१. जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे ॥
२. इति से गुणट्ठी महता परियावेणं' वसे पत्ते - माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि सयण-संगंथ संथया मे, विवित्तोवगरण - परियदृण-भोयण- अच्छायणं मे, इच्चत्थं' गढिए लोए-वसे पत्ते ॥
३. अहो य राओ य परितप्यमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुपे सहसका, विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो- पुणो ॥
असरणाणुपेहापुव्वं अप्पमाद-पदं
४. अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं" माणवाणं, तं जहा -सोय- परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं चक्खु - परिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, घाण - परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहि, रस- परिणाणेहिं परिहायमाणेहिं, फास-परिण्णाणेहिं परिहायमाणेहिं ||
१. ० वेणं पुणो पुणो (छ); चूर्णो वृत्तौ च
नैतत् पदं व्याख्यातमस्ति ।
२. पत्ते, तं जहा (क, ख, ग, घ, च) ।
३. मे, सहाया मे (घ) ।
४. विचित्तो ० ( ख, च ) ।
५. च्छायणं ( क ) ; अच्छादयणं (चु) ।
इच्चत्थं एत्थ से (च) ।
७.
X ( क, ख, ग, घ ) ।
८. सहसाकारे (क, ख, ग, छ ) ; सहस्सकारे (च ) । ९. ० चिट्ठे (चू, वृच ) ।
१०. सत्ते ( चू, वृपा); सत्थे ( चूपा ) । ११. इधम्मेसि चि (च) ।
६. इच्चत्थं से (क); इच्चत्थं इत्थं से ( ग ); १२. ० पण्णाणेणं ( चूक ) ।
१७
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आयारो
५. अभिक्कंत' च खलु वयं संपेहाए । ६. तओ से एगया मूढभावं जणयंति' ।। ७. जेहिं वा सद्धि संवसति' 'ते वा णं एगया णियगा तं पुट्वि परिवयंति, सो वा
ते णियगे पच्छा परिवएज्जा ।। ८. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा।
तुम पि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा ॥ ६. से ण हस्साए', ण किड्डाए, ण रतीए, ण विभूसाए । १०. इच्चेवं समुट्ठिए अहोविहाराए॥ ११. अंतरं च खलु इमं संपेहाए-धीरे मुहुत्तमवि' णो पमायए । १२. वयो अच्चेइ जोव्वणं व ॥ १३. जीविए इह जे पमत्ता ॥ १४. से हंता छेत्ता भेत्ता लुपित्ता विलुपित्ता उद्दवित्ता उत्तासइत्ता ।। १५. अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे । १६. जेहिं वा सद्धि संवसति 'ते वा णं" एगया णियगा तं पुव्विं पोसेंति, सो वा ते
नियगे पच्छा पोसेज्जा । १७. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा ।।
तमंपि तेसिं नालं ताणाए वा. सरणाए वा ॥ १८. उवाइय-सेसेण" वा सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ१२, इहमेगेसिं असंजयाणं - भोयणाए॥ १६. तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जति ।। २०. जेहिं वा सद्धि संवसति ते वा णं एगया णियगा तं" पुवि परिहरंति, सो वा ते
णियगे पच्छा परिहरेज्जा । २१. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा ॥
तुमंपि तेसिं नालं ताणाए वा, सरणाए वा ॥ १. अहिक्कतं (क); अहिकंतं (घ); अतिकतं ७. सपेहाए (क, ख, च); वृत्तिकृता पचमसूत्रे (च)।
स प्रेक्ष्य इति व्याख्यातम्, अत्र च संप्रेक्ष्य । २. सपेहाए (क, घ, छ); वत्ती 'स पेहाए' इति ८. वओ (क,ख,ग)।
पदद्वयं पृथग व्याख्यातम्-प्रेक्ष्य पर्यालोच्य ६. त एव वा णं (व); ते व णं (ख)। से इति प्राणी (व)।
१०. उवादीत (क, च)। ३. जणयति (व); जणयंति (पा)। ११. सेसं तेण (क, ख, घ, च, छ)। ४. सवसंति (घ,च,छ)।
१२. किज्जइ (ख, ग, छ)। ५ ते वणं (क,छ); ते विणं (घ); त एव णं (वृ)। १३. माणवाणं (च)। ६ हासाए (क,ख,ग,छ)।
१४. X (क, ख, ग, घ)।
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बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-बीओ उद्देसो) २२. जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥ २३. अणभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए । २४. खणं जाणाहि पंडिए! २५. जाव सोय-पण्णाणा अपरिहीणा,"
जाव णेत्त-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव घाण-पण्णाणा अपरिहीणा, जाव जीह-पण्णाणा अपरिहीणा,
जाव फास-पण्णाणा अपरिहीणा ।। २६. इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहीणेहि आयटुं सम्म समणुवासिज्जासि ।
-त्ति बेमि॥
बीओ उद्दसो अरति-निव्वत्तण-पदं २७. अरइं आउट्टे से मेहावी ॥ २८. खणंसि मुक्के ॥ २६. अणाणाए पुट्ठा 'वि एगेणियद॒ति । ३०. मंदा मोहेण पाउडा ॥ ३१. "अपरिग्गहा भविस्सामो” समुट्ठाए, लद्धे कामेहिगाहंति ।। ३२. अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति ॥ ३३. एत्थ मोहे पुणो पुणो सण्णा ॥ ३४. णो हव्वाए णो पाराए ॥ ३५. विमुक्का हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो॥ अणगार-पदं ३६. लोभं अलोभेण दुगंछमाणे, लद्धे कामे नाभिगाहई॥ ३७. विणइत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति-पासति ॥
१. पत्तेय (क, ख, ग, घ, च)।
६. x (चू)। २. अणतिक्कत (क)।
७. अभिग्गाहति (क); ० अभिग्गहति (ख,छ); ३. सपेहाए (क, ख, ग, घ, च)।
अभिगाहति (ग)। ४. परिणाणेहि अपरिहायमाणेहिं (क,ख,ग,घ,छ) ८. विमुत्ता (क,ख,ग,घ,छ)। सर्वत्र।
8. णोभिगाहइ (क, च)। ५. अपरिहीयमाणेहिं (क,ख,ग,ध,छ,वृ)। १०. विणावि (क, ग, छ, वृ) ।
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२०
३८. पडिलेहाए णावकंखति ॥ ३६. एस अणगारेति पवुच्चति ॥
दंड-समादाण-पदं
४०. अहो य राओ य' परितप्यमाणे, कालाकालसमुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आपे सहसक्का, विणिविट्ठचित्ते, एत्थ सत्थे पुणो- पुणो ॥
४१. से आय-बले, से गाइ-बले, सेमित्त बले, से पेच्च - बले, से देव - बले, से राय-बले, से चोर बले, से अतिहि बले, से किवण - बले, से समण - बले ।
४२. इच्चेतेहिं विरूवरूवेहिं कज्जेहिं 'दंड - समायाणं ॥
४३. सपेहाए भया कज्जति ॥
४४. पाव - मोक्खोत्ति मण्णमाणे ||
४५. अदुवा आसंसाए ||
हिंसाविवेग-पदं
४६. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं एएहि कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, जेवण एएहि कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, 'णेवण्णं एएहि कज्जेहि दंडं समारंभंत समाज्जा" ||
अणासप्ति-पदं
४७. एस मग्गे आरिएहि पवेइए ||
४८. जहेत्थ कुसले गोवलिंपिज्जासि ।
आयारो
१. X ( क, ख ) :
२. सहसाकारे ( क, ख, ग ) ।
३. बले, से सयण - बले ( क, ख, ग, घ, च) 1
तइओ उद्देस
समत्त पर्द
४६. 'से असई उच्चागोए असई णीयागोए । णो हीणे, णो अइरित्ते, णो पीहए" ॥
४. किविण ( क, ख, ग ) ।
५. संपेहाए (क, ख, ग, घ, च, छ); 'संप्रेक्षया' पर्यालोचनया एवं संप्रेक्ष्य वा (वृ) ।
६. दंडं समारभति (चू); दंड- समायाणं... कज्जइ ( चुपा) ।
-त्ति बेमि ॥
७. व अन्नेहिं (छ) ।
८. एएहिं कज्जेहि दंडं समारंभंते वि अण्णे ण समजाणिज्जा (क, ख, ग, घ, च) । C. आयरिएहिं (क, ख, घ) ।
१०. नागार्जुनीया - एगमेगे खलु जीवे अईअद्धाए असई उच्चागोए असई णीयागोए कंडगट्टयाए ण होणे नो अइरिते (चू, वृ) ।
११. पीहेइ ( ख, ग ) ।
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बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-तइओ उद्देसो)
५०. इति' संखाय के गोयावादी ? के माणावादी ? कंसि वा एगे गिज्झे ? ५१. तम्हा पंडिए णो हरिसे, णो कुज्झे ।। ५२. भूएहिं जाण पडिलेह सातं ॥ ५३. समिते एयाणुपस्सी॥ ५४. तं जहा- अंधत्तं बहिरत्तं मूयत्तं काणत्तं कुंटत्तं खुज्जत्तं वडभत्तं सामत्तं
सबलत्तं ॥ ५५. सहपमाएणं अणेगरूवाओ जोणीओ संधाति', विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ । ५६. से अबुज्झमाणे 'हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे ।। परिग्गह-तद्दोस-पदं ५७. जीवियं पुढो पियं इहमेगेसि माणवाणं, खेत्त-वत्थु ममायमाणाणं । ५८. आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता ।। ५६. ण एत्थ तवो वा, दमो वा, णियमो वा दिस्सति ॥ ६०. संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ॥ ६१. इणमेव णावकंखंति, जे जणा धुवचारिणो।
जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ।। ६२. णत्थि कालस्स णागमो।। ६३. सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो
जीविउकामा । ६४. सवेसि जीवियं पियं ।। ६५. तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से
तत्थ मत्ता भवइ-अप्पा वा बहुगा वा ॥ ६६. से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए । ६७. तओ से एगया विपरिसिटुं संभूयं महोवगरणं भवइ ।
१. एवं (चू)।
३. संधाएति (ख, ग, च)। २. नागार्जुनीया :-पुरिसेणं खलु दुक्खविवाग- ४. परि° (घ, ७)।
गवेसएणं पुटिव ताव जीवाभिगमे कायव्वे, ५. हतोवहते विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्ते पुणो पुणो जाइं च इच्छिताणिच्छे, तं सातासातं विया- (च)। णिया हिंसोवरती कायव्वा (चू)।
६. विप्परियासमुवेइ (ख, ग, घ, छ)। नागार्जुनीया :-पुरिसे णं खलु दुक्खुव्वय- ७. पियायया (वृपा)। सुहेसए (वृ)।
८. विविहं परिसिटुं (क, ख, ग, घ, च)।
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२२
आयारो
६८. तंपि से एगया दायाया विभयंति, प्रदत्तहारो' वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपति, सतिवा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से उज्झइ || ६९. इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्रावे ॥
७०. मुणिणा हु एयं पवेइयं ॥
७१. अणोहंतरा एते, नो य ओहं तरित्तए । अतीरंगमा एते, नो य तीरं गमित्तए । अपारंगमा एते, नो य पारं गमित्तए ।
७२. आयाणिज्जं च आयाय, तम्मि ठाणे ण चिट्ठइ ।
वितहं पप्पखेयण्णे', तम्मि ठाणम्मि चिट्ठइ ॥
७३. उद्देसो पासगस्स णत्थि ॥
७४. बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवट्टं अणुपरिट्ट |
- त्ति बेमि ॥
भोग- भोगि-दोस-पदं
७५. तओ से एगया रोग समुप्पाया समुप्पज्जंति ॥
७६. जेहिं वा सद्धि संवसति ते वा णं एगया णियया पुव्वि परिवयंति, सोवा ते
णियगे पच्छा परिवएज्जा ।।
७७. नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा ।
तुमपि तेसि नालं ताणाए वा, सरणाए वा ॥
७८. जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥
७६. भोगामेव प्रणुसोयंति ॥
८०. इहमेगेसिं माणवाणं ॥
उद्देस
८१. तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ - अप्पा वा बहुगा वा ॥
८२. से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए ।
८३. ततो से एगया विपरिसि संभूयं महोवगरणं भवति ॥
१. अदताहारा ( ख, ग ) ।
२. अवहरति ( ख, ग ) ।
३. संमूढे (क, घ) ।
४. विप्परियासमुवेति ( ख, ग, घ, च, छ) । ५. अखेतण्णो (चू) ।
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बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-चउत्थो उद्देसो) ८४. तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति', रायाणो वा से
विलुपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ । ८५. इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेणं दुक्खेण मूढे
विप्परियासुवेइ ॥ ८६. आसं च छंदं च विगिच धीरे ॥ ८७. तुमं चेव तं सल्लमाहटु ।। ८८. जेण सिया तेण णो सिया ॥ ८६. इणमेव णावबुज्झंति, जे जणा मोहपाउडा । ६०. थीभि लोए पवहिए॥ ११. ते भो वयंति--एयाइं आयतणाई।। ६२. से दुक्खाए मोहाए माराए णरगाए णरग-तिरिक्खाए । ६३. सततं मूढे धम्म णाभिजाणइ॥ ६४. उदाहु वीरे-अप्पमादो महामोहे ॥ ६५. अलं कुसलस्स पमाएणं ।। ६६. संति-मरणं संपेहाए', भेउरधम्म संपेहाए । ६७. णालं पास ॥ १८. अलं ते एएहि ।। ६६. एयं पास मुणी ! महब्भयं ।। १००. णाइवाएज्ज कंचणं ॥ १०१. एस वीरे पसंसिए', जे ण णिविज्जति आदाणाए । १०२. “ण मे देति" ण कुप्पिज्जा,थोवं लधुं न खिसए।
'पडिसेहिओ परिणमिज्जा" । १०३. एयं मोणं समणुवासेज्जासि ।
-त्ति बेमि॥
१. हरति (क, छ)। २. संमूढे (क, घ, च)। ३. विविच्च (क)। ४. तिरियाए (घ)। ५. न जानाति (वृ)।
६. सपेहाए (क, च)। ७. नमंसिते (चूपा)। ८. पडिलाभिओ (वृपा)। है. पडिलाभितो परिणमे, णवोवासं चेव कूज्जा
(चूपा)।
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२४
आयारो
०
०
पंचमो उद्देसो आहारस्स अणासत्ति-पदं १०४. जमिणं विरूवरूवेहिं 'सत्थेहि लोगस्स कम्म-समारंभा" कज्जति, तं जहा
अप्पणो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं णातीणं धातीणं राईणं दासाणं दासीणं कम्म
कराणं कम्मकरीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए। १०५. सन्निहि-सन्निचओ कज्जइ इहमेगेसि माणवाणं भोयणाए॥ १०६. समुट्ठिए अणगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी 'अयं संधीति अदक्खु ॥ १०७. से णाइए, णाइआवए, ण समणुजाणइ ॥ १०८. सव्वामगंध परिण्णाय, णिरामगंधो परिव्वए । १०६. अदिस्समाणे कय-विक्कएसु । से ण किणे, ण किणावए, किणंतं ण समणुजाणइ ।। ११०. से भिक्खू कालण्णे बलण्णे' मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे' विणयण्णे समयण्णे'
भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाई, अपडिण्णे ॥ १११. दुहओ छेत्ता नियाइ॥ ११२. वत्थं पडिग्गह, कंबलं पायपुछणं, उग्गहं च कडासणं ।
एतेसु चेव जाएज्जा ॥ ११३. लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं । ११४. लाभो त्ति न मज्जेज्जा ॥ ११५. अलाभो त्ति ण सोयए॥ ११६. बहुं पि लळू ण णिहे ।। ११७. परिग्गहारो अप्पाणं अवसक्केज्जा ॥ ११८. 'अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा" । ११६. एस मग्गे आरिएहि पवेइए। १२०. जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि ।। काम-अणासति-पदं १२१. कामा दुरतिक्कमा ॥ १. सत्थेहि विरूवरूवाणं अट्ठाए (चूपा)। ६. समयण्णे परसमयण्णे (घ, च); ससमयण्णे २. अयं संधिमदक्खु (वृपा); ° अदक्खु (क, ख, परसमयण्णे (छ)। ___ग, छ)।
७. जाणेज्जा (क, ख, ग, घ, च, वृ)। ३. गंधे, (घ, च)।
८. सोएज्जा (ख, ग, च, छ)। ४. बालण्णे (क, घ, च, वृ)।
६. अण्णतरेण पासाएण परिहरिज्जा (चूपा)। ५. खणण्णो (चू)।
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बीअं अज्झयणं (लोगविजओ--पंचमो उद्देसो) १२२. जीवियं दुप्प डिवूहणं'। १२३. कामकामी खलु अयं पुरिसे ।। १२४. से सोयति जूरति तिप्पति पिड्डुति' परितप्पति ॥ १२५. आयतचक्ख लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ,
तिरियं भागं जाणइ॥ १२६. गढिए अणुपरियट्टमाणे ।। १२७. संधि विदित्ता इह मच्चिएहिं ।। १२८. एस वीरे पसंसिए, जे बद्ध पडिमोयए। १२६. जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो॥ १३०. अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताई ॥ १३१. पंडिए पडिलेहाए । १३२. से मइमं परिण्णाय, मा य हु लालं पच्चासी॥ १३३. मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए । १३४. कासंकसे' खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोभं । १३५. वेरं वड्ढेति अप्पणो॥ १३६. जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए । १३७. अमरायइ महासड्नी ।। १३८. अट्टमेतं पेहाए॥ १३६. अपरिण्णाए कंदति ॥ तिगिच्छा-पदं १४०. 'से तं जाणह जमहं बेमि" ।। १४१. 'तेइच्छं पंडिते° पवयमाणे ॥ १४२. से" हंता 'छेत्ता भेत्ता 'लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता ॥
१. वहगं (घ. चू)।
८. उपेहाए (चू); तु पेहाए (क, घ, च, छ)। २. तप्पति (चू)।
है. से एव मायाणह जं बेमि (चू); से एव ३. पिट्टइ (क, ख, ग); X (च, चू)।
मायाणह जमहं बेमि (क, ख, ग)। ४. गढिए लोए (ख, ग, घ)।।
१०. तेइच्छपंडितो (चू)। ५. कासंकसे य (घ); कासंकासे (वृ); इमं अज्ज ११. x (च)।
करेमि इमं हिज्जो काहामि (चू)। १२. भेत्ता छेत्ता (ख, ग, घ, च, छ)। ६. पडिहणट्ठाए (वृ, छ)।
१३. लुपित्ता विलुपित्ता (ख, ग, च, छ)। ७. अमराइ (घ, च)।
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आयारो
२६ १४३. अकडं करिस्सामित्ति मण्णमाणे ॥ १४४ जस्स वि य णं करेइ ॥ १४५. अलं बालस्स संगेणं॥ १४६. जे वा से कारेइ बाले ॥ १४७. 'ण एवं अणगारस्स जायति ।
-त्ति बेमि ॥ छट्ठो उद्देसो परिग्गह-परिच्चाय-पदं १४८. से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए । १४६. तम्हा पानं कम्म, णे व कुज्जा न कारवे ॥ १५०. सिया से एगयरं विप्परामुसइ', छसु अण्णयरंसि कप्पति ॥ १५१. सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमवेति ॥ १५२. सएण विप्पमाएण, पुढो वयं पकुव्वति ॥ १५३. जंसिमे पाणा पव्वहिया । पडिलेहाए णो णिकरणाए । १५४. एस परिण्णा पवुच्चइ ।। १५५. कम्मोवसंती॥ १५६. जे ममाइय-मति जहाति, से जहाति ममाइयं ॥ १५७. से हु दिठ्ठपहे' मुणी, जस्स णत्थि ममाइयं ॥ १५८. तं परिणाय मेहावी ॥ १५९. विदित्ता लोग, वंता लोगसण्णं, से मतिमं" परक्कमेज्जासित्ति बेमि॥ अणासत्तस्स ववहार-पदं १६०. णाति सहते वीरे, वीरे णो सहते रति ।
जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे ण रज्जति॥ १६१. सद्दे य फासे अहियासमाणे॥ १६२. णिविद दि इह जीवियस्स ॥
१. ण हु एवं (चू)। २. तत्थ (क, ख, ग, घ, छ, वृ)। ३. विपरामुसति (क)। ४. णिकरणयाए (ख, ग)। ५. चयइ (क, ख, ग, च)।
६. दिट्ठभये (घ, च, चूपा, वृपा)। ७. स मइमं (ख); स इति मुनिः (वृ)। ८. परक्कमेज्जा (क, ख, ग, घ, च, छ) । ६. णो रई (क, च)। १०. ४ (ख, ग, च, छ)।
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२७
बीअं अज्झयणं (लोगविजओ-छट्ठो उद्देसो) १६३. मुणी मोणं समादाय, धुणे कम्म-सरीरगं॥ १६४. पंतं लई सेवंति. वीरा समत्तटसिणो॥ १६५. एस ओघंतरे मुणी, तिण्णे मुत्ते विरते, वियाहिते ति बेमि ॥ १६६. दुव्वसु मुणी अणाणाए । १६७. तुच्छए गिलाइ वत्तए । १६८. एस वीरे पसंसिए॥ १६६. अच्चेइ लोयसंजोयं ॥ १७०. एस णाए पवुच्चइ ॥ बंध-मोक्ख-पदं १७१. जं दुक्खं पवेदितं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति ॥ १७२. इति कम्म परिण्णाय सव्वसो।। १७३. जे अणण्णदंसी, से अणण्णारामे,
जे अणण्णारामे, से अणण्णदंसी। धम्मकहा-पदं १७४. जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ ।
जहा तुच्छस्स कत्थइ, तहा पुण्णस्स कत्थइ। १७५. अवि य हणे अणादियमाणे ॥ १७६. एत्थंपि जाण, सेयंति णत्थि । १७७. के यं पुरिसे? कं च गए? १७८. एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए॥ १७६. उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, से सव्वतो सव्वपरिणचारी॥ १८०. ण लिप्पई छणपएण वीरे। १८१. से मेहावी अणुग्घायणस्स खेयण्णे, जे य बंधप्पमोक्खमण्णेसी ॥ १८२. कुसले पुण णो बद्धे, णो मुक्के ॥ १८३. से जं च आरभे, जं च णारभे, अणारद्धं च णारभे॥ १८४. छणं छणं परिण्णाय, लोगसण्णं च सव्वसो॥ १८५. उद्देसो पासगस्स णत्थि ॥ १८६. बाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवटुं अणुपरियट्टइ।
-त्ति बेमि॥ १. धूण (चू)।
४. पतिण्ण ° (छ)। २. सम्मत्त ° (वृपा, चू)।
५. x (चू)। ३. स वच्चड (घ)।
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सुत्त-जागर-पदं
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
तइयं अभयणं सीओसणिज्जं पढमो उद्देसो
सुत्ता अमुणी सया, मुणिणो सया' जागरंति ॥
लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं ॥
समयं लोगस्स जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए ||
सिमे सहाय ख्वा य गंधा य रसाय फासा य अभिसमन्नागया भवंति से
' आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बंभवं ॥
पणाणेहिं परियाणइ लोयं, 'मुणीति वच्चे", धम्मविउत्ति अंजू ॥
आव सोए संगमभिजाणति ॥
सीओ सच्चाई से निग्गंथे अरइ-रइ सहे फरुसियं णो वेदेति ॥ जागर - वेरोवरए वीरे ॥
एवं दुक्खा पमोक्खसि ' ॥
८.
ε.
१०. जरामच्चुवसोवणीए गरे, सययं मूढे धम्मं णाभिजाणति । ११. पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए ॥
१. X (चु, च) ।
२. सततमनवरतम् (वृ) ।
३. आतवि वेदवि धम्मवि बंभवि (चू); आतवं • ( चुपा ); आयवी णाणवी वेदवी धम्मवी बंभवी (वृपा) ।
४. मुणी वच्चे (वृ, छ) ।
५. उजू (क, च, छ)।
६. फरुसयं (चू)।
७. धीरे (छ) ।
८. पमुच्चसि ( क, ख, ग, घ, छ) । ६. आतुरे मो (चू) ।
२८
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तइयं अज्झयणं (सीओसणिज्जं-बीओ उद्देसो)
२६
१२. मंता एवं मइमं ! पास ॥ १३. आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा ।। १४. माई पमाई पुणरेइ गम्भं ॥ १५. उवेहमाणो सह-रूसु अंजू, माराभिसंकी' मरणा पमुच्चति ॥ १६. अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहि, वीरे आयगुत्ते 'जे खेयण्णे"। १७. जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे,
जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे ।। १८. अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ । १६. कम्मुणा' उवाही जायइ ।। २०. कम्मं च पडिलेहाए । २१. 'कम्ममूलं च जं छणं ।। २२. पडिलेहिय सव्वं समायाय ॥ २३. दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे ।। २४. तं परिण्णाय मेहावी ॥ २५. विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं से मइम परक्कमेज्जासि ।
-त्ति बेमि॥
बीओ उद्देसो परमबोध-पदं २६. जाति च वुड्ढि च इहज्ज ! पासे ।। २७. भूतेहिं जाणे पडिलेह सातं । २८. तम्हा तिविज्जों परमंति णच्चा, समत्तदंसी ण करेंति पावं ।। २६. उम्मुंच पासं इह मच्चिएहिं ।। ३०. आरंभजीवी 'उ भयाणुपस्सी ॥
१. पमाया (घ)।
गाथाचतुष्कमङ्कितमस्ति । २. मारावसक्की (चूपा)।
६. चूर्णी एतत् पदं द्विधा व्याख्यातमस्ति३ x (चू०)।
विज्जत्ति हे विद्वन् ! अहवा अतिविज्जू । ४. कम्मणा (क, ख, ग)।
वृत्तौ केवलं 'अतिविज्ज' पदं व्याख्यात५. उवही (चू)।
मस्ति-अतीव विद्या-तत्त्वपरिच्छेत्री ६. कम्ममाहूय (चूपा, वृपा)।
यस्यासावतिविद्यः । ७. मेहावी (ख, ग, च)।
१०. सम्मत्त° (क, वृपा)। ८. आदर्शेषु २६ सूत्रादारभ्य ३५ सूत्रपर्यन्तं ११. उभयाणुपस्सी (वृ) ।
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३०
३१. कामेसु गिद्धा णिचयं करेंति, संसिच्चमाणा पुणरेंति गब्भं || ३२. अवि से हासमासज्ज, हंता गंदीति मन्नति ।
अलं बालस्स संगेण, वेरं वड्ढे ति अप्पणो ॥
३३. तम्हा तिविज्जो परमंति णच्चा, आयंकदंसी ण करेति पावं ॥ ३४. 'अग्गं च मूलं च विगिच धीरे " ॥
३५. पलिच्छिंदिया णं णिक्कम्मदंसी ॥
३६. एस मरणा पमुच्चइ ॥ ३७. से हु दिट्ठपहे मुणी ॥
३८. लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवो उवसंते,
समित सहिते सयाजए कालकंखी परिव्वए |
३६. बहुं च खलु पावकम्मं पगडं ||
४०. सच्चंसि धितिं कुष्वह ॥
४१. एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावकम्मं झोसेति ॥
अग चित्त-पदं
४२. अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे से केयणं अरिहए पूरइत्तए ।
४३. से अण्णा अण्णपरियावाए अण्णपरिग्गहाए, जणवयवहाए" जणवयपरियावाए' जणवयपरिग्गहाए ||
संजमाचरण-पदं
४४. आसेवित्ता एतमट्ठ, इच्चेवेगे समुट्ठिया, तम्हा तं बिइयं नो सेवए" ॥ ४५. णिस्सारं पासिय णाणी, उववायं चवणं" णच्चा । अणण्णं चर माहणे ! ४६. से ण छणे ण छणावए, छणतं णाणुजाणइ ॥ ४७. निव्विद मंदि अरते पयासु ॥
४८. अणोमदंसी 'णिसन्ने पावेहिं कम्मेहिं ॥
१. वड्ढति (क, ख, ग ) ।
२. ० वीरे (क, ग, च, चू); मूलं च अग्गं च विइत्तु वीरो (चूपा ) | नागार्जुनीया: – मूलं च अग्गं च विएत्तु वीरे, कम्मासवं चेइ विमोक्खणं च (च्) ।
Page (पा) ।
४. समिते अप्पमाई (ती) (घ, छ) । ५. सोसेइ (घ) ।
६.
० परियावणाए ( च, छ); परियावए (क, ख, ग ) ।
८.
९. बीयं ( ख, ग, घ, च) ।
३. दिदुभए (क, ख, ग, घ, च, छ, चूपा, वृ); १०. सेवे (क, ख, ग, घ ) ।
११. चयणं (क, ख, ग, घ, चू) ।
१२. णाणुमोद (चू) ।
१३. तेसु कम्मेसु पावं ( चूपा ) |
७. जाणवय °
o
आयारो
( ख, ग, च) ।
परिवाया (क, ख, ग, च, वृ) ।
o
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तइयं अज्झयणं (सीओसणिज्ज-तइओ उद्देसो)
४६. कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे णिरयं महंतं ।।
तम्हा हि' वीरे विरते वहाओ, "छिदेज्ज सोयं लहुभूयगामी ॥ ५०. गंथं परिण्णाय इहज्जेव वीरे', सोयं परिण्णाय चरेज्ज दंते। उम्मग्ग लधु इह माणहि, णो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि ।
-त्ति बेमि॥ तइओ उद्देसो अज्झत्थ-पदं ५१. संधि लोगस्स जाणित्ता ॥ ५२. आयओ बहिया पास ॥ ५३. तम्हा ण हंता ण विधायए॥ ५४. जमिणं अण्णमण्णवितिगिच्छाए पडिलेहाए ण करेइ पावं कम्मं, कि तत्थ मुणो
कारणं सिया ? ५५. समयं तत्थुवेहाए, अप्पाणं विप्पसायए ॥ ५६. अणण्णपरमं नाणी, णो पमाए कयाइ वि।
आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाए जावए । ५७. 'विरागं रूवेहि गच्छेज्जा, महया खुड्डएहि वा ॥ ५८. आगति गति परिण्णाय, दोहिं वि अंतेहिं अदिस्समाणे ।
से ण छिज्जइ ण भिज्जइ ण डज्झइ, ण हम्मइ कंचणं सव्वलोए॥ ५६. 'अवरेण पुां ण सरंति एगे, किमस्सतीतं ? किं वागमिस्सं?
भासंति एगे इह माणवा उ, जमस्सतीतं आगमिस्सं॥ ६०. णातीतम8" ण य आगमिस्सं, अळं नियच्छति तहागया उ।
विधूत-कप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता ‘खवगे महेसी ॥
१. य (ख, ग, घ)।
८. अदिस्समाणेहि (क, ख, ग, घ, च, छ, व)। २. छिदिज्ज सोतं न हु भूतगाम (चूपा)। ६. तीतं त (ख); ° तीतं किं (घ)। ३. धीरे (क, ख, ग, घ, छ)।
१०. अवरेण पुव्वं किह से अईयं, ४. उम्मुज्ज (क, ख, ग); उम्मुग (घ, छ)।
किह आगमिस्सं न सरंति एगे। ५. रूवेसु (क, ख, ग)।
भासंति एगे इह माणवा उ, ६. य (ख, ग, घ, च)।
जह से अईयं तह आगमिस्सं ॥ ७. नागार्जुनीयाः-विसयपंचगम्मि वि, दुवि
(चूपा, वृपा)। हम्मि तियं तियं । भावओ सुट्ठ जाणित्ता, ११. ° मद्धं (च)। से न लिप्पइ दोसु वि (चू); नागार्जुनीयाः- १२. X (क, घ, च)। विसयंमि (वृ)।
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३२
आयारो
६१. का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे' चरे।
सव्वं हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुतो परिव्वए । ६२. पुरिसा! तुममेव तुम मित्त, किं बहिया मित्तमिच्छसि ? ६३. जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेज्जा दूरालइयं ।
जं जाणेज्जा दूरालइयं, तं जाणेज्जा उच्चालइयं ॥ ६४. पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ॥ ६५. पुरिसा ! सच्चमेव समभिजाणाहि ॥ ६६. सच्चस्स आणाए ‘उवट्ठिए से" मेहावी मारं तरति ॥ ६७. सहिए धम्ममादाय, सेयं समणुपस्सति ॥ ६८. दुहओ जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जंसि एगे पमादेति । ६६. 'सहिए दुक्खमत्ताए" पुट्ठो णो झंझाए॥ ७०. पासिमं दविए' लोयालोय-पवंचाओ मुच्चइ ।
-त्ति बेमि ।।
चउत्थो उद्देसो कसायविरइ-पदं ७१. से वंता कोहं च, माणं च, मायं च, लोभं च ।। ७२. एयं पासगस्स दंसणं 'उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स' । ७३. आयाणं [णिसिद्धा ? ] सगडब्भि ॥ ७४. जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ ।। ७५. सव्वतो पमत्तस्स भयं, सव्वतो अप्पमत्तस्स नत्थि भयं ।। ७६. 'जे एगं नामे, से बहुं नामे, जे बहुं नामे, से एगं नामे ।। ७७. दुक्खं लोयस्स जाणित्ता॥ ७८. वंता लोगस्स संजोगं, जंति वोरा महाजाणं ।
परेण परं जंति, नावखंति जीवियं ॥
१. अगरहे (चू)। २. °जाणहि (क); ° जाणेहि (च)। ३. से उवट्ठिए से (क, ख, ग); से समुट्ठिए (घ);
से उवट्ठिए (च)। ४. सहित धम्ममादाय (च); सहिते दुक्खमत्ताते
(चूपा); ० मेत्ताते (क); माताते (च)। ५. दविए लोए (छ)। ६. ° कडस्स (क)।
७. द्रष्टव्यम् सू० ८६ । ८. X (चू)। ६. जे एगनामे, से बहुनामे, जे बहुनामे, से एगनामे (क); द्वादशारनयचक्रवृत्तौ ‘एगणामे बहुणामे' इति पाठो विवृतोस्ति-यद् एकस्य भावः तत् सर्वस्यापि, यत् सर्वस्य तद्
एकस्यापि (पृ० ३७५)। १०. धीरा (क)।
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इयं अज्झणं (सीओसणिज्जं -- चउत्थो उद्देसो)
७६. एगं विगिंचमाणे पुढो विगिचइ, पुढो विगिचमाणे एगं विचिइ || सढी आणाए मेहावी ॥
८०.
८१. लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं ॥
८२. अस्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण परं ॥
८३.
जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी । जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी । जे पेज्जदंसी से दोससी, जे दोसदंसी से मोहदंसी । जे मोहदंसी से गम्भदसी, जे गब्भवंसी से जम्मदंसी ।
जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी ।
जे निरयसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी ॥
८४. से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा' कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च,
मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च दुक्खं च ॥
८५. एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंत करस्स || ८६. आयाणं 'णिसिद्धा सगडब्भि ||
८७. किमत्थि उवाही' पासगस्स ण विज्जइ" ? णत्थि ।
१. ० निव्वट्टेज्जा (क, घ, छ) । २. मरणं ( ख, ग ) ।
३. उवही (धी) (क, घ, छ) । ४, × (चू)।
३३
-त्ति बेमि ॥
५. चतुर्थाध्ययनस्य ५३ सूत्रस्य 'ग्रह णत्थि ' ० ' णत्थि वा' ० इति पाठान्तरद्वयं लभ्यते । तदाधारेण 'पासगस्स' इति पदानन्तरं 'अह' इति पदं अध्याहार्यम् ।
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चउत्थं अज्झयणं
सम्मत्त
पढमो उद्देसो सम्मावाए अहिंसा-पदं १. से बेमि-जे' अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता' भगवंतो ते
सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा,
ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा ॥ २. एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खयणेहि पवेइए॥ ३. तं जहा-उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा । उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा । उवरय
दंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु
वा, असंजोगरएसु वा ॥ ४. तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सि चेयं पवुच्चइ ।। ५. तं आइइत्तु'ण णिहे ण णिक्खिवे, जाणित्तु धम्म जहा तहा ॥ ६. दिडेहिं णिव्वेयं गच्छेज्जा ॥ ७. णो लोगस्सेसणं चरे॥ ८. जस्स णस्थि इमा णाई, अण्णा तस्स कओ सिया ? ६. दिटुं सुयं मयं विण्णायं, जमेयं परिकहिज्जइ ।।
१. जे य (ख, ग, घ, छ)। २. अरिहंता (ख, घ)। ३. भगवंता (घ, च)। ४. सुद्धे धुवे (घ)। ५. खेत्तन्नेहिं (च)।
६. आइत्तु (ख, ग, च, छ, वृ)। ७. अहा (घ)। ८. कुतो (च)। ६. जं लोए (चू)।
३४
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चउत्थं अज्झयणं (सम्मत्तं-बीओ उद्देसो) १०. समेमाणा पलेमाणा', पुणो-पुणो जाति पकप्पेति ॥ ११. अहो य राओ य' 'जयमाणे, वीरे" सया आगयपण्णाणे। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परक्कमेज्जासि ।
–त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो सम्मानाणे अहिंसापरिक्खा-पदं १२. जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा,
जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा–एए पए संबुज्झमाणे,
लोयं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो पवेइयं ।। १३. आघाइ" णाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं । १४. अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता॥ १५. अहासच्चमिणं ति बेमि ॥ १६. नाणागमो मच्चुमुहस्स अस्थि, इच्छापणीया वंकाणिकया।
___ कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, 'पुढो-पुढो जाई पकप्पयंति॥ १७. 'इहमेगेसि तत्थ-तत्थ संथवो भवति । अहोववाइए फासे पडिसंवेदयंति ।। १८. चिठें कूरेहि कहि चिट्ठ परिचिट्ठति ।।
अचिट्ठ कूरेहि कम्मेहि, णो चिट्ठ परिचिट्ठति ॥ १६. एगे वयंति अदुवा वि गाणी, पाणी वयंति अदुवा वि एगे॥
१. पालेमाणा (क, च); चलेमाणा (शु)। ° पकप्पेंति (क); ° पकप्पन्ति (ख, ग, च;) २. X (ख, ग, छ)।
° पकुप्पंति (छ)। ३. धीरे (ख, ग, घ, वृ)।
'पुढो पुढो जाइं पकप्पयन्ति' पंक्तिस्थाने ४. जताहि एवं वीरे (चू)।
शुबिग संपादिते पुस्तके एतादृश पाठान्तरम्५. अक्खाइ (घ); नागार्जुनीयाः आघाइ धम्म एत्थ मोहे पुणो पुणो, इहमेगेसिं तत्थ तत्थ
खलु से जीवाणं, तंजहा-संसारपडिवन्नाणं संथवो भवइ, अहोववाइए फासे पडिसंवेयमणुस्सभवत्थाणं आरंभविणईणंदु दुक्खुव्वे- यन्ति; असुहेसगाणं धम्मसवणगवेसगाणं निक्खित्त- चित्तं कूरेहि कम्मेहि, चित्तं परिविचिट्ठइ, सत्थाण सुस्सूसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं अचित्तं कुरेहिं कम्मेहि, नो चित्तं परिविविन्नाणपत्ताणं (चू, वृ)।
चिट्ठइ। ६. अत्रकपदे दीर्घत्वम्, वक्रक =वंका। ८. परिविचिट्ठई (क, चू)। ७. पुढो पुढो जाइं पकरेंति (चू); एत्थ मोहे ६. परिविचिट्ठई (क)।
पुणो पुणो, पुढो पुढो जाइं पगप्पेंति (चूपा); १०. X (शु)।
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३६
आयारो
२०. आवंति के आवंति लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति - से दिट्ठे च णे, सुयं चणे, मयं चणे, विण्णायं च णे, उड्ढ अहं' तिरियं दिसासु सव्वतो पडिले चणे - "सव्वे पाणा 'सव्वे भूया सव्वे जीवा" सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयव्वा ।
* वि जाणह णत्थित्थ दोसो ॥"
२१. अणारियवयणमेयं ॥
२२. तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी -- से दुद्दिट्ठे च भ, दुस्सुयं च भ, दुम्मयं च भे, दुव्विण्णा च भे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहियं च भे, जणं तुभे एवम इक्खह, एवं भासह, एवं 'परूवेह, एवं पण्णवेह " - "सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयव्वा ।
एत्थ वि जाणह ' णत्थित्थ दोसो" ।।”
२३.
वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं परूवेमो, एवं पण्णवेमो - "सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परियावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा ।
एत्थ वि जाणह णत्थित्थ दोसो ॥"
२४. आरियवयणमेयं ॥
२५. पुव्वं निकाय समयं पत्तेयं पुच्छिस्सामो - हंभो पावादुया' ! किं भे सायं दुक्खं उदा असायं ?
२६. समिया पडिवन्ने' यावि एवं बूया - सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं । तइओ उद्देसो
सम्मातव-पदं
२७. उवेह एवं बहिया य लोयं, से सव्वलोगंसि जे केइ विष्णू । अणुवीs" पास णिक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति ॥ २८. नरा" मुयच्चा धम्मविदु त्ति अंजू
॥
१. अयं ( क ) ।
२. सव्वे जीवा सव्वे भूया (वृ, क, घ, छ) । ३. परियावेयव्वा किलामेयत्वा ( क, ख, ग ) । ४. एत्थं पि ( ख, ग, घ ) ।
५. पन्नवेह, एवं परूवेह ( चू, क) ।
६. नत्थित्थ दोसो | अणारियवयणमेयं ( क, ख, १२. जहंति ( चू, छ) ।
ग, घ, च, छ ।
७, पत्तेयं - पत्तेयं ( ख, ग, च, छ) ।
८. पवादिया (छ); समणा माहणा (चू) । ९. पडिवणे (चू) ।
१०. उवेहणं (क, घ); उवेहेणं ( ख, ग ); उब्वेहे (च, छ) ।
११. अणुवितिय (क, च); अणुचितिय (छ) ।
१३. नरे (क, ख, ग, घ, च) ।
भूयाणं सव्वेसि
-त्ति बेमि ॥
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चउत्थं अज्झयणं (सम्मत्तं-चउत्थो उद्देसो) २६. आरंभजं दुक्खमिणंति णच्चा, एवमाहु समत्तदंसिणो ॥ ३०. ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति ॥ ३१. इति कम्म परिणाय सव्वसो।। ३२. इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं,' कसेहि' अप्पाणं,
जरेहि अप्पाणं ॥ ३३. जहा जुण्णाई कट्ठाई, हव्ववाहो पमत्थति, एवं अत्तसमाहिए अणिहे ॥ कसाय-विवेग-पदं ३४. विगिच कोहं अविकंपमाणे, इमं णिरुद्धाउयं संपेहाए । ३५. दुक्खं च जाण' अदुवागमेस्सं ॥ ३६. पुढो फासाइं च फासे ॥ ३७. लोयं च पास विष्फंदमाणं ॥ ३८. जे णिव्वुडा पावेहि कम्मेहि, अणिदाणा ते वियाहिया ॥ ३६. तम्हा तिविज्जो' णो पडिसंजलिज्जासि।
-त्ति बेमि ॥ चउत्थो उद्देसो सम्माचरित्त-पदं ४०. आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं ॥ ४१. तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए॥ ४२. दुरणुचरो मग्गो वीराणं अणियट्टगामीणं ॥ ४३. विगिच मंस-सोणियं ॥ ४४. एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए।
जे धुणाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥ ४५. णेत्तहि पलिछिन्नेहि, आयाणसोय-गढिए बाले।
अव्वोच्छिन्नबंधणे, अणभिक्कंतसंजोए।
तमंसि अविजाणओ आणाए लंभो णत्थि त्ति बेमि ।। ४६. जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया ? ४७. से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए ।
१. सम्मत्त° (क, वृपा)। २. सरीरगं (वृ)। ३. किसेहि (चू); कम्मेहिं जरेहिं (ख)। ४. हव्ववाहू (घ, च, छ)। ५. बहु (क)।
६. फासए (क, छ)।। ७. द्रष्टव्यम्-३।२८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ८. निप्फीलए (क, घ)। ६. अंधस्स तमस्स (चू); तमंसि (चूपा)। १०. कुओ (क, च, छ)।
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३८
आयारो
४८. सम्ममेयंति पासह ॥ ४६. जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं ॥ ५०. पलिछिदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहि ॥ ५१. 'कम्मुणा सफलं" दटुं, तओ णिज्जाइ वेयवी॥ ५२. जे खलु भो ! वीरा समिता सहिता सदा जया संघडदंसिणो' आतोवरया
अहा-तहा' लोगमुवेहमाणा, पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति सच्चंसि परिचिट्ठिसु, साहिस्सामो' णाणं वीराणं समिताणं सहिताणं सदा जयाणं संघडदंसिणं
आतोवरयाणं अहा-तहा लोगमुवेहमाणाणं ॥ ५३. किमत्थि उवाधी पासगस्स ‘ण विज्जति ? णत्थि ॥
त्ति बेमि ॥
१. कम्माण सफलत्तं (वृ)। २. सत्थड° (च); संथड ° (चू)। ३. तहं (क)। ४. परिविचिदिसु (क, ख, ग, च, छ); विपरिचिट्ठिसु (चू)।
५. अग्घातिस्सामो (च)। ६. उवही (क, घ, च, छ)। ७. अह णत्थि ? ण विज्जति (चू); णस्थि वाण
विज्जति (छ)।
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पंचमं अभयणं लोगसारो पढमो उद्देसो
काम - पदं
१. 'आवंती के आवंति लोयंसि विप्परामुसंति, अट्ठाए अणट्टाए वा ",
विप्रासंति ॥
२. गुरू से कामा ॥
३. तओ से मारस्स अंतो, जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे ॥ ४. णेव से अंतो, णेव से दूरे ॥
५. से पासति फुसियमिव, कुसग्गे पणुन्नं णिवतितं वातेरितं ।
एवं बालस्स जीवियं,
मंदस्स अविजाणओ ॥
६. कूराणि कम्माणि बाले पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ' || ७. मोहेण गब्भं 'मरणाति एति ॥ ८. एत्थ मोहे पुणो- पुणो ॥
६. संसयं परिजाणतो, संसारे परिण्णाते भवति,
संसयं अपरिजाणतो, संसारे अपरिण्णाते भवति ॥
१०. जे छेए से सागारियं ण सेवए ॥
१. X ( ख, ग, घ, च, छ); नागार्जुनीया जावंति केइ लोए छक्कायवहं समारभंति अट्ठा अट्टाए वा (वृ) ।
२. बाहिं (चू) ।
३६
एएस चेव
३. विप्परियासमुवेति (क, ख, ग, छ); • समेति ( च, चू) ।
४. मरणादुवेति ( चुपा ) ।
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आयारो
११. 'कटु एवं अविजाणओ" बितिया मंदस्स बालया। १२. लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणयाए-त्ति बेमि। १३. पासह एगे रूवेसु गिद्धे परिणिज्जमाणे ॥ १४. 'एत्थ फासे" पुणो-पुणो॥ १५. आवंती केआवंती लोयंसि आरंभजीवी, एएसु चेव आरंभजीवी॥ १६. एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमति पावेहि कम्मेहि, 'असरणे सरणं' ति
मण्णमाणे ॥ १७. इहमेगेसि एगचरिया भवति-से बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहे बहुरए
बहुनडे बहुसढे बहुसंकप्पे, आसवसक्की पलिउच्छन्ने, उठ्ठियवायं पवयमाणे “मा मे केइ अदक्खू"
अण्णाण-पमाय-दोसेणं, सययं मूढे धम्म णाभिजाणइ । १८. अट्टा पया माणव ! कम्मकोविया' जे अणुवरया, अविज्जाए पलिमोक्खमाहु, आवर्ल्ड' अणुपरियटुंति ।
-त्ति बेमि॥ बीओ उद्देसो अप्पमादमग्ग-पदं १६. आवंती केआवंती लोयंसि अणारंभजीवी, एतेसु चेव मणारंभजीवी ॥ २०. एत्थोवरए तं झोसमाणे 'अयं संधी' ति अदक्खु ॥ २१. जे 'इमस्स विग्गहस्स अयं खणे त्ति मन्नेसी ।। २२. एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते ॥ २३. उठ्ठिए णो पमायए॥ २४. जाणित्त दुक्खं 'पत्त यं सायं ॥
२५. पुढोछंदा इह माणवा, पुढो दुक्खं पवेदितं ॥ १. ° अवयाणतो (चू); ° अवियाणतो (चूपा); ४. चूर्णिकृता 'बहुसढे' इति न व्याख्यातम् । नागार्जुनीयाः--जे खलु विसए सेवई ५. कम्मअकोविता (चू) । से वित्ता वा णालोएइ, परेण वा पुटो निण्हवइ ६. आवट्टमेव (ख, ग, च)। अहवा तं परं सएण वा दोसेण उवलिंपिज्जा
८. अणारंभ ° (ग, च)। २. एत्थ मोहे (चू, वृपा); तत्थ फासे (चूपा)। ६. अन्नेसि (ख, ग, च)। ३. परिवच्चमाणे (च); परितप्पमाणे (छ,चू,वृ); १०. पत्तेय-सायं (क, च, छ)।
परिपच्चमाणे (चूपा, वृपा)।
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पंचमं अज्झयणं (लोगसारो-तइओ उद्देसो) २६. से अविहिंसमाणे अणवयमाणे, पुट्ठो' फासे विप्पणोल्लए॥ २७. एस समिया-परियाए वियाहिते ॥ २८. जे असत्ता पावेहि कम्मेहिं, उदाहु ते आयंका फुसंति ।।
इति उदाहु वीरे 'ते फासे पुट्ठो हियासए'॥ २६. से पुव्वं पेयं पच्छा पयं भेउर-धम्म, विद्धसण-धम्म, अधुवं, अणितियं, असासयं,
चयावचइयं', विपरिणाम-धम्म, पासह एवं 'रूवं ॥ ३०. संधि" समुप्पेहमाणस्स एगायतण'-रयस्स इह विप्पमुक्कस्स, णत्थि मग्गे विरयस्स
त्ति बेमि ॥ परिग्गह-पदं ३१. आवंती केआवंती लोगंसि परिग्गहावंती-से अप्पं वा, बहु वा, अणं वा, थलं
वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंत वा, एतेसु चेव परिग्गहावंती। ३२. एतदेवेगेसि महब्भयं भवति, लोगवित्तं च णं उवेहाए । ३३. एए संगे अविजाणतो॥ ३४. से 'सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति णच्चा, पुरिसा ! परमचक्खू ! विपरक्कमा ।। ३५. एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि ॥ ३६. से सुयं च मे अज्झत्थियं" च मे, “बंध-पमोक्खो तुझ२ अज्झत्थेव" ॥ ३७. एत्थ विरते अणगारे, दीहरायं तितिक्खए।
पमत्त बहिया पास, 'अप्पमत्तो परिव्वए'१२॥ ३८. एयं मोणं सम्म अणुवासिज्जासि।
-त्ति बेमि॥
M
तइओ उद्देसो अपरिग्गह-कामनिव्वेयण-पदं
३६. आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती॥ १. पुढो (ख, ग, घ) (अशुद्धम्) । ६. सुपडिबद्धं ° (क, घ, छ, वृ); सुतं अणु२. धीरे (क, ख, ग, छ, चू)।
विचितेति णच्चा (चूपा)। ३. चयो (क, ख, ग, घ, च, छ)। १०. विपरक्कम (ख, ग, च)। ४. रूव-संधि (क, च, छ, वृ, चू)।
११. अज्झत्थं (क, ख, ग, घ, च); अज्झत्थयं ५. एगायण (घ)।
(क्व)। ६. बहुयं (क, घ, च, छ)।
१२. X (ख, ग, घ, छ)। ७. एयमेगेसिं (ख, ग); एयमेवेगेसिं (घ)। १३. अप्पमाय सुसिक्खेज्जा (चू)। ८. लोगं वित्तं (ख, ग, छ)।
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४२
आयारो
४०. सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया।
समियाए' धम्मे, आरिएहिं पवेदिते ॥ ४१. जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि
___णो णिहेज्ज वीरियं ॥ ४२. जे पुवुट्ठाई, णो पच्छा-णिवाई।
जे पुवुट्ठाई, पच्छा-णिवाई।
जे णो पुवुढाई, णो पच्छा-णिवाई ॥ ४३. सेवि तारिसए सिया', जे परिण्णाय लोगमणुस्सिओ' ॥ ४४. एयं णियाय मुणिणा पवेदितं-इह आणाकंखी पंडिए अणिहे,
पुवावररायं जयमाणे, सया सीलं संपेहाए,
सुणिया भवे अकामे अझंझे॥ ४५. इमेणं चेव जुज्झाहि, किं ते जुझण बझओ ? ४६. 'जुद्धारिहं खलु दुल्लहं॥ ४७. जहेत्थ कुसलेहि परिण्णा-विवेगे भासिए ॥ ४८. चुए हु बाले गब्भाइसु रज्जइ । ४६. अस्सि चेयं पव्वुच्चति, रूवंसि वा छणंसि वा ।। ५०. से हु एगे संविद्धपहे मुणी, अण्णहा लोगमुवेहमाणे ।। ५१. इति कम्मं परिण्णाय, सध्वसो से ण हिंसति । संजमति णो पगब्भति ॥ ५२. उवेहमाणो पत्तेयं सायं ॥ ५३. वण्णाएसी णारभे कंचणं सव्वलोए ।। ५४. एगप्पमुहे विदिसप्पइण्णे, निम्विन्नचा अरए पयासु ॥ ५५. से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पाव कम्मं ॥ ५६. तं णो अन्नेसिं॥ ५७. जं सम्मं ति पासहा", तं मोणं ति पासहा।
जं मोणं ति पासहा, तं सम्मं ति पासहा ॥
१. वति (क, ख, ग); वातं (छ) ।
६. जुद्धारियं च दुल्लह (वृपा) । २. समया (घ, च)।
७. रिज्जइ (वृ, चूपा)। ३. णिहणिज्ज (ख, ग); निण्हवेज्ज (शु)। ८. संविद्धभए (चू, वृपा); संविद्धपहे (चूपा) । ४. चेव (चू)।
६. X(चू, घ, च)। ५. ° मण्णेसति (चू, क); ° मण्णु सिया (ख, ग, १०. अन्नेसी (क, ख, ग, घ, च)।
छ); ° मण्णेसिति (च); °मणु स्सिते ११. पासह (ख, ग) (सर्वत्र) । (चूपा)।
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पंचमं अज्झयणं (लोगसारो - चउत्थो उद्देसो)
४३
५८. ण इमं सक्कं सिढिले हि अद्दिज्जमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहि ॥
५६. मुणी मोणं समायाए, धुणे कम्म सरीरगं ॥
६०. पंतं लूहं सेवंति, वीरा समत्तदसिणो ॥
६१. एस ओहंतरे मुणी, तिष्णे मुत्त विरए वियाहिए ।
उत्थो उद्देसो
अवियत्तस्स एगल्ल विहार- पदं
६२. गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्कतं भवति अवियत्तस्स भिक्खणो ॥ ६३. वयसा वि एगे बुइया कुप्पंति माणवा ॥
६४. उन्नयमाणे य णरे, महता मोहेण मुज्झति ॥
६५. संबाहा बहवे भुज्जो - भुज्जो दुरतिक्कमा अजाणतो अपासतो ||
६६. एयं ते मा होउ ॥
६७. एयं कुसलस्स दंसणं ॥
६८. तद्दिट्ठीए तम्मोत्तीए' तप्पुरवकारे, तस्सण्णी तन्निवेसणे ॥
इरिया - पदं
६६. जयंविहारी चित्तणिवाती पंथणिज्भाती पलीवाहरे,' पासिय पाणे गच्छेज्जा ॥ ७०. से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे " ॥
-त्ति बेमि ॥
कम्मणो गंध-विवेग-पदं
७१. एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति ॥ ७२. इहलोग-वेयण वेज्जावडियं ॥
७३. जं 'आउट्टिकयं कम्मं", तं परिण्णाए" विवेगमेति ॥
७४. एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी ॥
१, आदिज्ज० (क); अदिज्ज ० ( ख, ग, घ, च,
छ) ।
२. 'कम्म' नास्ति (क, घ, च, छ) । ३. सम्मत्त (क, वृपा, चू) ।
४. अव्वत्तस्स ( क ) ।
५. वुज्झति (चू पा) । ६. तम्मुत्तिए (, च ) ।
७. चित्तणिधायी ( चूपा) ।
८. पलिबहिरे ( क ग ) ; पलिबाहरे (च ); बलिबाहिरे (शु); पलिबाहिरे (ख, घ, छ, वृ ) ।
६. संकुच° (च) ।
१०. संपलिज्ज ० ( ख ) ।
११. आउट्टीकम्मं (क, च) ; आवट्टी कम्मं (घ ) ।
१२. परिन्नाय (क, ख, ग, घ, च, छ) ।
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आयारो
बंभचेर-पदं ७५. से पभूयदंसी पभूयपरिणाणे उबसंते समिए सहिते सया जए दह्र विप्पडिवेदेति
अप्पाणं७६. किमेस जणो करिस्सति ? ७७. 'एस से" परमारामो, जाओ लोगम्मि इत्थीओ॥ ७८. मुणिणा हु एतं पवेदितं, उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहि७६. अवि णिब्बलासए॥ ८०. अवि ओमोयरियं कुज्जा॥ ८१. अवि उड्ढठाणं ठाइज्जा ।
अवि गामाणगाम दुइज्जेज्जा ॥
अवि आहारं वोच्छिदेज्जा । ८४. अवि चए इत्थीसु मणं ॥ ८५. पुवां' दंडा पच्छा फासा, पुवं फासा पच्छा दंडा॥ ८६. इच्चेते कलहासंगकरा भवंति । पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासे वणाए
त्ति बेमि॥ ८७. से णो काहिए णो पासणिए णो संपसारए णो ममाए' णो कयकिरिए वइगुत्ते
अझप्प-संवुडे परिवज्जए सदा पावं ।। ८८. एतं मोणं समणुवासिज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥ पंचमो उद्देसो
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आयरिय-पदं
८६. से बेमि-तं जहा।
अवि हरए पडिपुण्णे, 'चिठ्ठइ समंसि भोमे"।
__ उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठति सोयमझगए। ६०. से पास सव्वतो गुत्ते, पास लोए महेसिणो,
जे य पण्णाणमंता पबुद्धा आरंभोवरया ॥ ६१. सम्ममेयंति पासह ॥ ६२. कालस्स कंखाए परिव्वयंति त्ति बेमि ॥ १. एसे (सो) (क, घ, च)।
४. समंसि भोमे चिट्ठइ (च)। २. पुव्विं (घ)।
५. पासहा (क, च, छ)। ३. ममायए (छ); मामए (शु)।
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४५
पंचमं अज्झयणं (लोगसारो-पंचमो उद्देसो) सद्धा-पदं ६३. वितिगिच्छ'-समावन्नेणं अप्पाणेणं णो लभति समाधि ।। ६४. सिया वेगे अणगच्छंति, असिया वेगे अणगच्छंति.
अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे कहं ण णिविज्जे ? ६५. तमेव सच्चं णीसंकं, जंजिहि पवेइयं ॥
मज्झत्थ-पदं
१६. सड्डिस्स णं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स
समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ । समियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ । असमियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ । समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होइ उवेहाए।
असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होइ उवेहाए । ६७. उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए ॥ १८. इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति ।। अहिंसा-पदं ६६. उद्वियस्स ठियस्स गति समणपासह ।। १००. एत्थवि बालभावे अप्पाणं णो उवदंसेज्जा ।। १०१. तुमंसि नाम सच्चेव जं 'हंतव्वं' ति मन्नसि,
तुमंसि नाम सच्चेव जं 'अज्जावेयव्वं' ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं 'परितावेयव्वं' ति मन्नसि, "तुमंसि नाम सच्चेव जं 'परिघेतव्वं' ति मन्नसि,
तुमंसि नाम सच्चेव • जं 'उद्दवेयव्वं' ति मन्नसि ।। १०२. अंजू चेय-पडिबुद्ध'-जीवी, तम्हा ण हंता ण विधायए॥ १०३. अणुसंवेयणमप्पाणेणं, जं 'हंतव्यं' ति णाभिपत्थए । आय-पदं १०४. जे आया से विण्णाया, जे विण्णाया से आया । जेण विजाणति से आया ॥
१. वितिगिछ (छ); विगिछ (शु)।
४. चेयं (क, ख, ग, च, च, छ)। २. तं चेव (क, घ, च)।
५. पडिबुज्झ (क, च, च)। ३. सं० पा०-एवं जं 'परिघेतव्वं' ति मन्नसि जं। ६. X(ख, ग, घ, च, छ)।
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४६
१०५ तं पडुच्च पडिसंखाए ||
१०६. एस आयावादी समियाए- परियाए वियाहिते ।
छट्ठो उद्देसो
मग्गदंसण-पदं
१०७. अणाणाए एगे सोवट्ठाणा, आणाए एगे निरुवद्वाणा || १०८. एतं ते मा होउ ॥
१०६. एयं कुसलस्स दंसणं ॥
११० तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए, तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे ॥ १११. अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए । ११२. जे महं' अबहिमणे ॥
११३. पवाएणं पवायं जाणेज्जा |
११४. सहसम्मइयाए, परवागरणेणं अण्णेसि वा अंतिए सोच्चा ॥ ११५. णिद्देसं णातिवट्टेज्जा मेहावी ||
सच्चस्स अणुसीलण पदं
११६. सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया ।। ११७. इहारामं परिणाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए ॥
निट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासित्ति बेमि ॥ ११८. उड्ढं सोता अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया, एते सोया विक्खाया, जेहिं संगति पासहा ॥ ११६. 'आवट्टं तु उवेहाए", 'एत्थ विरमेज्ज वेयवी" ॥ १२०. विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति ॥ १२१. पडिलेहाए णावकंखति, इह आगतिं गतिं परिणाय ।। १२२. अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्गं" वक्खाय - २ए ॥
१. अहं (चू) ।
२. ० सम्मुइ (ति) याए (क, घ, च, छ) । ३. ० ले हियं (च) ।
४. सव्वत्ताए (चू); सर्वात्मना ( वृ) ।
५. ० मेतं (चू) ।
६. ० ज्जा (घ) ।
११. वदुमग्गं (क); वडुमग्गं ( च, शु) ।
७. आवट्टमेयं तु पेहाए ( ख, ग, घ ) ; अट्टमेयं १२. विक्खाय ( क, ख, ग, घ, च, छ) ।
आयारो
-त्ति बेमि ॥
उहाए (चू) ।
८. विवेगं किट्टर वेदवी ( चू, वृपा ); एत्थ विरमेज्ज वेयवी (चूपा ) 1
९. विणएत्ता (चूपा) ।
१०. णिक्कम (घ, छ) ।
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पंचमं अज्झयण (लोगसारो - बट्टो उद्देसो)
परमप्प-पदं
१२३. सव्वे सरा पियट्टति ||
१२४. तक्का जत्थ ण विज्जइ ॥
१२५. मई तत्थ ण गहिया ॥
१२६. ओए अप्पतिद्वाणस्स' खेयन्ने ||
१२७. से ण दोहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमण्डले ||
१२८. ण किहे, न णोले, ण लोहिए', ण हालिदे, ण सुकिल्ले ॥
१२६. ण सुब्भिगंधे, ण दुरभिगंधे ॥
१३०. ण तित्ते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे ॥
१३१. ण कक्खडे', ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिद्धे, ण लुक्खे ॥
१३२. ण काऊ ॥
१३३. ण रुहे ।।
१३४. ण संगे ।।
१३५. ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णा ।।
१३६. परिणे सण्णे |
१३७. उवमा ण विज्जए ॥
१३८. अरूवी सत्ता ॥
१३६. अपयस्स पयं णत्थि ॥
१४०. सेण सद्दे ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव |
१. वृत्तिकृता एतत्पदं षष्ठ्यन्तं व्याख्यातम् तेन अर्थस्य जटिलता जाता । प्राकृतशैल्या एतत् विभक्तिपरिवर्तनपूर्वकं प्रथमान्तं व्याख्यायते, तदा अर्थसारल्यं स्यात् ।
४७
- त्ति बेमि ॥
२. हुस्से (क, घ, च); रहस्से (ख); हरस्से (छ) । ३. सुरहि ० ( क, ख, ग ) । ४. कक्कडे (घ, छ) । ५. सव्वओ (चू); X (घ) ।
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नाणस्स निरूवण-पदं
१. ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ' से रे ||
२.
३.
से किट्टति तेसि समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं ॥
४. एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति ॥
अणत्तपणाणं अवसाद-पदं
५.
६.
छट्ठ अभय
धुयं पढमो उद्देसो
७.
माओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, अक्खाइ से णाणमणेलिसं ॥
पासह एगेवसीयमाणे' अणत्तपणे ॥
से बेमि - से जहा वि कुम्मे हरए विणिविट्ठचित्ते, पच्छन्न- पलासे, उम्मग्गं से
लहइ ॥
भंगा इव सन्निवे णो चयंति, एवं पेगे - 'अगरूहि कुलेहि" जाया, 'रूहि सत्ता" कलुणं थणंति, णियाणाओ ते ण लभंति मोक्खं ॥
१. अक्खाति (क, ख, ग, घ ); अग्घाति ( चू) । २. विसीय (क, ख, ग, घ, चू) ।
३. उम्मुग्गं (क, घ, छ) ।
४. वेगे (च) ।
५. अणेगगोतेसु कुलेसु (चू) । ६. रूवेसु गिद्धा (च) ।
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छटुं अज्झयणं (धुयं-पढमो उद्देसो) ८. अह पास 'तेहि-तेहि कुलेहिं आयत्ताए जाया
गंडी अदुवा कोढी', रायसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ॥ उरि पास मूर्य च, सूणिरं च गिलासिणि । वेवई पीढसप्पि च, सिलिवयं महुमेहणि ॥ सोलस एते रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो। अह णं फुसंति आयंका, फासा य असमंजसा ॥ मरणं तेसिं संपेहाए', उववायं चयणं च णच्चा।
परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा॥ ६. संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया ।। १० तामेव सइं असई अतिअच्च" उच्चावयफासे पडिसंवेदेति ॥ ११. बुद्धेहिं एयं पवेदितं ॥ पाणि-किलेस-पदं १२. संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो । १३. पाणा पाणे किलेसंति ॥ १४. पास लोए महब्भयं ॥ तिगिच्छापसंगे अहिंसा-पदं १५. बहुदुक्खा हु जंतवो॥ १६. सत्ता कामेहि माणवा ॥ १७. अबलेण वहं गच्छंति, सरीरेण पभंगुरेण ॥ १८. अट्टे से बहुदुक्खे, इति बाले पगब्भइ" ॥ १. तेहिं (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ)। ११. अतिगच्च (क)। २. x(च)।
१२. वेदेति (क, ख, घ, च, छ)। ३. कोट्टी (ग, छ)।
१३. कामेसु (च)। ४. मूई (क, घ, चू)।
१४. पकुव्वइ (क, ख, ग, घ, च, छ, व, च); ५. वेवयं (क, ख, ग, च); वेवइयं (घ)। पगब्भइ (चूपा); वृत्तौ चूर्णी च 'पकुव्वइ' ६. सिलेवइं (घ, च)।
पाठो व्याख्यातोस्ति । किन्तु उत्तराध्ययनस्य ७. मधुमेहणं (छ)।
पञ्चमाध्ययने सप्तमे श्लोके 'इइ बाले ८. सपेहाए (क, घ, च); पेहाए (ख, ग)।
पगब्भई' एवं पाठोस्ति। चूर्णिकृता ६. परियागं (ख, ग, घ) (अशुद्ध); पलिपागं
पाठान्तरत्वेन एष पाठो व्याख्यातः । अर्थ
मीमांसयासौ अधिक संगच्छते। तेनासौ १०, तमसि (क, घ)।
मूले स्वीकृतः।
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आयारो
१६. एते रोगे बहू णच्चा, आउरा परितावए।। २०. णालं पास ॥ २१. अलं तवेएहि ॥ २२. एयं पास मुणी ! महन्भयं ॥ २३. णातिवाएज्ज कंचणं ॥ सयणपरिच्चायधुत-पदं २४. आयाण भो! सुस्सूस भो ! 'धूयवादं पवेदइस्सामि॥ २५. इह खलु अत्तत्ताए तेहिं-तेहिं कुलेहिं अभिसेएण' अभिसंभूता, अभिसंजाता,
अभिणिव्वट्टा, अभिसंवुड्डा', अभिसंबुद्धा अभिणिक्खंता, अणुपुत्वेण महामुणी ॥ २६. तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, "माणे चयाहि" इति ते वदंति ॥
छंदोवणीया अज्झोववन्ना, अक्कंदकारी जणगा रुवंति । २७. अतारिसे मुणी, णो' ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा । २८. सरणं तत्थ णो समेति । किह णाम से तत्थ रमति ? २६. एयं णाणं सया समणुवासिज्जासि ।
-त्ति बेमि॥
बीओ उद्देसो कम्मपरिच्चायधुत-पदं ३०. आतुरं लोयमायाए, 'चइत्ता पुव्वसंजोग' हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरम्मि
___ वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्म अहा तहा, 'अहेगे तमचाइ कुसीला॥ ३१. वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्जा ॥ ३२. अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए ।। ३३. कामे ममायमाणस्स इयाणि वा मुहत्त" वा अपरिमाणाए भेदे ॥
१. नागार्जुनीयाः-धूयोवायं पवेयइस्सामि (चू); ६. एवं (च) (अशुद्धं)। धूतोवायं पवेयंति (वृ)।
७. जहित्ता पुव्वमायतणं (च)। २. X(घ, च)।
८. हिच्चा इह (चू)। ३. x (क, छ); ° संवड्ढा (ख, ग); अभिबुद्धा ६. जहा (ख)। (घ)।
१०. विओ° (छ)। ४. जहाहि (चू)।
११. मुहुत्तेण (ख, ग, च, छ, वृ)। ५. X(क, घ, च, छ)।
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छ अभयणं (धुय - बीओ उद्देसो)
३४. एवं से अंतराइएहि कामेहिं आकेवलिएहिं' अवितिण्णा' चेए'" । ३५. 'अहेगे धम्म मादाय" ' आयाणप्पभिडं सुपणिहिए " चरे ॥ ३६. अपलीयमाणे ' दढे ॥
३७. सव्वं हि परिणाय, एस पणए महामुणी ॥
३८. अइअच्च सव्वतो संगं "ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि ।। " ३६. जयमाणे एत्थ विरते अणगारे सव्वओ मुंडे यंते ॥ ४०. जे अचेले परिवुसिए" संचिक्खति" ओमोयरियाए । ४१. से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए" वा ॥
४२. पलियं पथे अदुवा पथे ॥
४३. अतहि सद्द- फासेहि, इति संखाए ॥
४४. एगतरे अण्णयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए ॥ ४५. जे य हिरी, जे य अहिरीमणा " ||
४६. चिच्चा सव्वं विसोत्तियं, 'फासे फासे ६ समियदंसणे || ४७. एते भो ! णगिणा वत्ता, जे लोगंसि अणागमणधम्मिणो ॥
४८. आणाए मामगं धम्मं ॥
४६. एस उत्तरवादे, इह माणवाणं वियाहिते ॥
५०. एत्थोवरए तं झोसमाणे ॥
५१. आयाणिज्जं परिण्णाय, परियाएण विगिचइ ॥ ५२. ' इहमेगेसि एगचरिया होति ।।
५३. तत्थियराइयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसणाए सव्वेसणाए || ५४. से मेहावी परिव्वए ॥
१. अकेवल ० ( ) |
२. अवतिन्ना (ग, छ, वृ) ।
३. एताणि विवज्जतेण पढिज्जंति अत्थआसावातो - अहेगे तं चाई सुसीले वत्थं पडिग्गनं कंबलं पाय-पुंछ अविउसिज्ज, अणुपुब्वेण अहियासमाणो परीस हे दुरहियासओ, कामे अममायमाणस्स इदाणि वा मुहुते वा अपरिमाण भेदे । एवं से अंतराइएहि कामेहिं आकेलिएहिं वितिन्ना ए (चू) । ४. सहि धम्ममायाय ( चूपा) ।
१५.
५. ० पभितिसु पणि० ( क, ख, ग, च, छ, वृ) । १६. फासे (ख, घ); संफासे फासे (च ) |
६. उवदेसमेव चर (चू) ।
१७. X (चू)।
५१
७. अप्प ० ( क, ग, घ, छ) ।
८. गिहिं (ख, घ); गंधं (थं ) ( चू) । ६. रीयते (क, घ, च) | १०. ० जुसिते (छ); X (चू) । ११. संचिदृति (छ) । १२. वा (ख, च, छ) । १३. लुंचिए ( ख, ग, छ, वृ) । १४. पकत्थ ( क ) ; पकंथे ( ख, ग, च); पगत्थ (छ) ।
० माणे (णा ) ( ख, घ, च, छ) ।
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५२
आयारो
५५. सुभि अदुवा दुभि ॥ ५६. अदुवा तत्थ भेरवा ॥ ५७. पाणा पाणे किलेसंति ॥ ५८. ते फासे पुट्ठो धारो' अहियासेज्जासि ।
-त्ति बेमि॥ तइओ उद्देसो उवगरणपरिच्चायधुत-पदं ५६. 'एयं खु मुणो आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता'। ६०. जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवइ-परिजुण्णे मे वत्थे
वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि,
उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि', पाउणिस्सामि ॥ ६१. अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति,
तेउफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसति ।। ६२. एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले ।। ६३. 'लाघवं आगममाणे ॥ ६४. तवे से अभिसमण्णागए भवति । ६५. जहेय' भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव
समभिजाणिया ॥ सरीरलाघवधुत-पदं ६६. एवं तेसि महावीराणं चिरराइं पुव्वाइं वासाणि रीयमाणाणं दवियाणं पास
अहियासियं ॥ ६७. आगयपण्णाणाणं किसा बाहा" भवंति, पयणुए य मंससोणिए । ६८. विस्सेणि कट्ट, परिण्णाए। १. वीरो (रे) (क, च)।
७. से जहेयं (च)। २. एस मुणी (चू)।
८. नागार्जुनीयाः--सव्वं । ३. सइत्ता (क, ख, ग, छ, वृ)।
६. सम्मत्तमेव (ख, ग, घ, च, छ, व); समत्तमेव ४. जिण्णे (घ, छ)।
(वपा)। ५. x (क, घ, च)।
१०. ० जाणित्ता (ख, ग, च)। ६. नागार्जुनीयाः-एवं खलु से उवगरण- ११. बाधा (क, च); बाहवो (छ) ।
लाघवियं तवं कम्मक्खयकारणं करेइ १२. ०ण्णाय (ख, ग, च, छ)। (चू, वृ)।
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३
छटुं अज्झयणं (धुयं-चउत्थो उद्देसा)
६६. एस तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए त्ति बेमि ।। संजमधुत-पदं ७०. विरयं भिक्खं रीयंत, चिररातोसियं, अरती तत्थ कि विधारए ? ७१. संधेमाणे समुट्ठिए॥ ७२. जहा से दीवे असंदीणे, एवं से धम्मे 'आयरिय-पदेसिए"। ७३. 'ते अणवकंखमाणा" अणतिवाएमाणा' दइया मेहाविणो पंडिया ।। विणयधुत-पदं ७४. एवं तेसि भगवओ अणुट्ठाणे जहा से दिया-पोए। ७५. एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइय।
-त्ति बेमि ॥
चउत्थो उद्देसो गोरवपरिच्चायधुत-पदं ७६. एवं ते सिस्सा दिया य राओ य, अणुपुव्वेण वाइया 'तेहिं महावीरेहि
पण्णाणमंतेहि ॥ ७७. तेसितिए" पण्णाणमुवलब्भ हिच्चा उवसमं 'फारुसियं समादियंति ।। ७८. वसित्ता बंभचेरंसि आणं 'तं णो' त्ति मण्णमाणा ।। ७९. अग्घायं तु सोच्चा णिसम्म समणुण्णा जीविस्सामो एगे णिक्खम्म ते
असंभवंता विडज्झमाणा, कामेहि गिद्धा अज्झोववण्णा।
समाहिमाघायमझोसयता, सत्थारमेव फरुसं वदंति ॥ ८०. सीलमंता उवसंता, संखाए रीयमाणा। असीला अणुवयमाणा॥ ८१. बितिया मंदस्स बालया ॥ १. न धारए (चूपा)।
८. आणुट्ठाणे (चू)। २. संधणाए (च); संधेमाणे (चूपा) ।
६. दिय (ग)। ३. °ट्ठाय (ख, ग, च, छ) ।
१०. तेसि महावीराणं (चू)। ४. आरिय-देसिए (क, च, चू)।
११. तेसंतिए (क, च); तेसिमंतिए (छ)। ५. ते अवयमाणा भावसोया (चू); ते अणव- १२. ° पइलब्भ (चू)।। कखेमाणा (चूपा)।
१३. अहेगे फारुसियं समारभंति (चूपा); अहेगे ६. पाणे अणति° (ख, ग, छ, वृ); अणतिवरते- फारुसियं समारुहंति (वृपा)।
माणा जाव अपरिगिण्हेमाणा (चू)। १४. आघायं (क, ख, घ, च)। ७. चियत्ता (चू)।
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आयारो
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८२. णियट्टमाणा वेगे आयार-गोयरमाइक्खंति णाणभट्ठा सणलूसिणो । ८३. णममाणा एगे जीवितं विप्परिणामेंति ।। ८४. पुट्ठा वेगेणियळंति, जीवियस्सेव कारणा' । ८५. णिक्खंतं पि तेसिं दुन्निक्खंतं भवति ।। ८६. बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुणो जाति पकति ॥ ८७. अहे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसी' विउक्कसे ॥ ८८. उदासीणे फरुसं वदंति ॥ ८६. पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं ।। १०. तं महावी जाणिज्जा धम्म। ६१. अहम्मट्ठी तुमंसि णाम बाले, आरंभट्ठी, अणुवयमाणे, हणमाणे', घायमाणे,
हणओ यावि समणुजाणमाणे, घोरे धम्मे उदीरिए, उवेहइ णं अणाणाए॥ ६२. एस विसण्णे वितद्दे वियाहिते त्ति बेमि ।। ६३. किमणेण भो ! जणेण करिस्सामित्ति मण्ण माणा' ---‘एवं पेगे वइत्ता',
मातरं पितरं हिच्चा, णातओ य परिग्गहं ।
'वीरायमाणा समुट्ठाए, अविहिंसा सुव्वया दंता" ॥ १४. अहेगे" पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे" । ६५. वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवंति ॥
१. कारणाए (क, घ, छ)।
२३०) अस्य पाठस्य संवादिविवरणं लभ्यते२. गब्भाइ (चू)।
'पूढविकाइयादि जीवे हणसि हणावेसि ३. ° मंसीति (ख, ग, च)।
हणंतोवि' योगत्रिककरणत्रिगेण । ४. उदासीणा (छ)।
६. मण्णमाणे (क, ख, घ, च, छ)। ५. हण पाणे (क, ख, ग, घ च); हयमाणे ७. एवमेगे विदित्ता (क); एवं एगे विभत्ता
(छ); 'छ' प्रतौ 'हयमाणे' इति पाठान्तरं (चूपा); विदित्ता (छ)। लभ्यते । अस्याधारेण 'हणमाणे' इति पाठस्य ८. ०माणे (क, घ, च, छ)। कल्पना जायते । अर्थसमीक्षयापि 'हणमाणे' ९. नागार्जुनीया-समणा भविस्सामो अणगारा इति पाठः समीचीनः प्रतिभाति । 'घायमाणे'
अकिंचणा अपुत्ता अपसूया अविहिंसगा अत्र कारितस्य 'हणओयावि समणुजाणमाणे' सुव्वया दंता परदत्तभोइणो पावं कम्मं न अत्रानुमोदनस्यार्थोस्ति । अस्मिन् संदर्भे यदि करिस्सामो समुट्टाए (चू, वृ)। हणमाणे' पाठः स्यात् तदा कृतकारिता- १०. ४(क, ख, ग, घ, च, छ, व)। नुमोदनस्य संगतिर्जायते। चूर्णावपि (पृ० ११. पडियमाणे (च, छ)।
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छ8 अज्झयणं (धुयं-पंचमो उद्देसो)
५५ ६६. अहमेगेसि सिलोए' पावए भवइ, “से समणविभंते समणविन्भंते" ॥ ६७. पासहेगे' समण्णागएहिं असमण्णागए', णममाणेहिं अणममाणे, विरतेहिं अविरते,
दविएहिं अदविए॥ ६८. अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिट्ठियढे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि ।
-त्ति बेमि ।। पंचमो उद्देसो तितितक्खाधुत-पदं ६६. से गिहेसु वा गिहतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेसु वा, नगरेसु वा नगरंतरेसु वा,
जणवएसु वा 'जणवयंतरेसु वा", संतेगइया जणा लूसगा भवंति, अदुवा
फासा फुसंति ते फासे, पुट्ठो वीरोहियासए॥ धम्मोवदेसधुत-पदं १००. ओए समियदसणे॥ १०१. दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आइक्खे विभए किट्टे
वेयवी॥ १०२. से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–संति, विरति, उवसमं,
णिव्वाणं", सोयवियं", अज्जवियं, मद्दवियं, लाघवियं, अणइवत्तियं ॥ १०३. सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अणुवीइ भिक्ख
धम्ममाइक्खेज्जा॥
१. लोए (च, छ)।
अद्धाणपडिवन्नस्स अच्छंतस्स वा जाव २. समणवितंते (क, घ, चू); समण भवित्ता काउसग्गं ठाणं वा ठियस्स (चू, )।
समणविभंते (ख, ग); समणे भवित्ता विन्भंते ७. धीरो (च)। विभंते (छ)।
८. नागार्जुनीया :-'जे खलु समणे बहुस्सुए ३. पास एगे (क); पासवेगे (च) ।
बब्भागमे आहारणहेउकुसले धम्मकहालद्धि४. सह असमण्णागए (ख, ग, छ)।
संपन्ने खेत्तं कालं पुरिसं समासज्ज केयं पुरिसे ५. सव्वओ परिव्वएज्जासि (चू) ।
कं वा दरिसणमभिसंपन्नो? एवं गुण जाइए ६. जणवयंतरेसु वा जाव रायहाणीसु वा
रायहाणीअंतरेसु वा गामणयरतरे वा गाम ६. अणु ट्ठिएसु वा जाव सोवट्ठिएसु वा (चू)। जणवयंतरे वा णगरजणवयंतरे वा जाव गाम- १०. जेव्वाणं (क, च)। रायहाणोअंतरे वा उज्जाणे वा उज्जाणंतरे ११. सोयं (ख, ग)। वा विहारभूमी गयस्स वा गच्छंतस्स वा १२. अणतिवातियं (चू)।
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आयारो
१०४. अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइवखमाणे--णो अत्ताणं आसाएज्जा, णो परं आसा
एज्जा, णो अण्णाई पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई आसाएज्जा ॥ १०५. से अणासादए अणासादमाणे वुज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं,
जहा से दीवे असंदोणे, एवं से भवइ सरणं महामुणी॥ कसायपरिचायधुत-पदं १०६. एवं से उठ्ठिए ठियप्पा', अणिहे अचले चले, अबहिलेस्से परिव्वए । १०७. संखाय पेसलं धम्म, दिट्ठिमं परिणिव्वुडे ॥ १०८. तम्हा संगं ति पासह ॥ १०६. गंथेहिं गढिया' णरा, विसण्णा कामविप्पिया॥ ११०. 'तम्हा लहाओ णो परिवित्तसेज्जा" ॥ १११. जस्सिमे आरंभा सव्वतो सव्वत्ताए सुपरिणाया भवंति, 'जेसिमे लूसिणो णो
परिवित्तसंति", से वंता कोहं च माणं च मायं च लोभं च ।। ११२. एस तुट्टे वियाहिते त्ति बेमि ॥ ११३. कायस्स विओवाए, एस संगामसीसे वियाहिए।
से हु पारंगमे मुणी, अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठि, कालोवणीते कंखेज्ज कालं, जाव सरीरभेउ ।
-त्ति बेमि।।
१. उद्वितप्पा (चू, च)।
६. तिउट्टे (चू)। २. गहिता (छ)।
७. विवाघाए (ख, ग); विघाए (छ); विवायाए ३. कामक्कंता (क, ख, ग, च, छ, वृ)।
(च), व्याघातः (विआघाए) (वृ)। ४. जंसि इमे लूसिणो णो परिवित्तसंति (चू); ८. हन्न ° (क)।
तम्हा लूहाओ णो परिवित्तसिज्जा (चूपा)। ६. ° तट्ठि (क, छ) । ५. X (चू); जस्सि° (च, छ)।
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अट्ठमं अज्झयणं
विमोवखो
पढमो उद्देसो असमणुण्ण विमोक्ख-पदं १. से बेमि-समणण्णस्स' वा असमणण्णस्स' वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा
साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा णो पाएज्जा, णो
णिमंतेज्जा, णो कुज्जा वेयावडियं-परं आढायमाणे त्ति बेमि ॥ २. धुवं चेयं जाणेज्जा -असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा
पडिग्गहं वा कंबलं वा, पायपुंछणं वा लभिय णो लभिय, भुजिय णो भुजिय, पंथं विउत्ता' विउकम्म विभत्तं धम्म झोसेमाणे' समेमाणे पलेमाणे, पाएज्ज
वा, णिमंतेज्ज वा, कुज्जा वेयावडियं-परं अणाढायमाणे त्ति बेमि ॥ असम्मायार-पदं ३. इहमेगेसि आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवति, ते इह आरंभट्ठी अणुवयमाणा
हणमाणा' घायमाणा, हणतो यावि समणुजाणमाणा ।। ४. अदुवा अदिन्नमाइयंति ॥ ५. अदुवा वायाओ विउंजंति', तं जहा-अस्थि लोए, णत्थि लोए, धुवे लोए,
अधुवे लोए, साइए लोए, अणाइए लोए, सपज्जवसिते लोए, अपज्जवसिते
१. अतः पूर्व 'से भिक्खू' इति गम्यमस्ति। (छ); मालेमाणा (चू)। २. अमणु ° (क, ख, ग ।
६. द्रष्टव्यम्-६।६१ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ३. वियत्ता (क, छ); विवत्ताणं (ख, ग); ७. विप्पउंजंति (क, ख, ग, च, छ)। ___ विइयत्ता (च); विवत्तूण (चू)।
८. साइ (घ)। ४. जोसे ° (च)।
६. अणाइ (घ)। ५. मलेमाणा (घ); बलेमाणे (च); चलेमाणे
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आयारो
लोए, सुकडेत्ति वा दुक्कडेत्ति वा, कल्लाणेत्ति वा पावेत्ति' वा साहुत्ति वा साहुत्ति वा सिद्धीत वा असिद्धीति वा, णिरएत्ति वा अणिरएत्ति वा ।। ६. जमिणं विप्पडिवण्णा मामगं धम्मं पण्णवेमाणा ||
७. एत्थवि जाणह' अकस्मात् ॥
८. एवं तेसि णो सुअवखाए, णो सुपण्णत्ते धम्मे भवति ॥
विवेग-पदं
६. से जहेयं भगवया पवेदितं आसुपण्णेण जाणया पासया ॥ १०. अदुवा गुत्ती वओगोयरस्स त्ति बेमि ॥
११. सव्वत्थ सम्मयं पावं ॥
१२. तमेव उवाइकम्म ॥
१३. एस महं विवेगे वियाहिते ||
१४. गामे वा अदुवा रणे ?
व गामेणेव रणे धम्ममायाणह-पवेदितं माहणेण मईमया ॥ १५. जामा तिष्णि उदाहिया ", जेसु इमे आरिया' संबुज्झमाणा समुट्ठिया । १६. जे णिव्या पावेहि" कम्मेहि, अणियाणा ते वियाहिया ॥
अहिंसा-पदं
१७. उड्ढं अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो सव्वावंति च णं पडियक्क' 'जीवेहिं कम्म - समारंभे णं ॥
१८. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं एतेहि काएहि दंडं समारंभेज्जा, ठेवण्णेहिं एते हि काएहि दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णे एतेहिं काएहिं दंडं समारंभंते वि समणुजाणेज्जा |
१६. जेवणे एतेहिं काएहि दंड समारंभंति, तेसि पि वयं लज्जामो ॥
२० तं परिण्णाय मेहावी तं वा दंड, अण्णं वा दंडं, णो दंडभी" दंडं समारंभेज्जासि ।
- त्ति बेमि ॥
१. पावइत्ति ( क ); पावएत्ति (घ, च, छ) । २. जाण (क, च); जाणे (घ ) ।
३. अकम्हा (चू) ।
४. न एस धम्मे सुक्खाए सुपन्नत्ते भवइ (चू) | ५. उदाहडा (घ, छ, चू); उदाहया ( ख, ग ) ।
६. आयरिया (घ, छ) ।
७. निब्बुडा (चू) ।
८. पाडेक्कं ( क ); पाडियक्कं (घ, चू) ।
8. दंडं समारभंते (चू) ।
१०.
दंडभीरू (चू) ।
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अट्ठमं अज्झयणं (विमोक्खो-बीओ उद्देसो)
__ बीओ उद्देसो अणाचरणीय-विमोक्ख-पद २१. से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिट्ठज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयटेज्ज वा, सुसाणंसि
वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहसि वा, रुक्खमूलसि वा, कुंभारायतणंसि वा, हुरत्था वा कहिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकभित्तु गाहावती बूयाआउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं' अभिहडं आहटु
चेतेमि', आवसह वा समुस्सिणोमि, से भुजह वसह आउसंतो समणा ! २२. भिक्खू तं गाहावति समणसं सवयसं पडियाइक्खे-आउसंतो गाहावती ! णो
खलु ते वयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुम मम अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेएसि, आवसहं वा समुस्सिणासि, से विरतो आउसो गाहावती ! एयस्स अकरणाए॥ से भिक्ख परक्कमेज्ज वा", चिट्रेज्ज वा, णिसीएज्ज वा, तुयट्रेज्ज वा सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरिगुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभारायतणंसि वा°, हुरत्था वा कहिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्तु गाहावती आयगयाए पहाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं बा पाणाई भूयाई जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाति
तं भिक्खू परिघासेउं ।।। २४. तं च भिक्खू जाणेज्जा-सहसम्मइयाए”, परवागरणेणं, अण्णेसि वा अंतिए'
सोच्चा अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाणाइं भूयाइं जीवाई सत्ताई समारब्भ 'समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आह? '
१. सिटुं (ख, ग, घ)। २. आफुडं (च)। ३. वेतेमित्ति केयि भणंति करेमि, तं तु ण
युज्जति (चू)। ४. आवसधं (ख, ग); आवसथं (छ)।
५. सं० पा०-परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था। ६. °स्सिणोति (क)। ७. सम्म (क, घ, च, छ)। ८. X (क, ग, घ, च, छ)। ६. सं० पा०-समारब्भ जाव चेएइ ।
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आयारो
चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाति', तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा
अणासेवणाए' त्ति बेमि ॥ २५. भिक्खं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा जे इमे आहच्च गंथा फुसंति–“से हंता !
हणह, खणह, छिदह, दहह, पचह, आलुपह, विलुपह, सहसाकारेह', विप्परा
मुसह"--ते फासे 'धीरो पुट्ठो' अहियासए॥ २६. अदुवा आयार-गोयरमाइक्खे, तक्किया ण मणेलिसं। 'अणुपुव्वेण सम्म
पडिलेहाए आयगुत्ते ॥ २७. अदुवा गुत्ती गोयरस्स। २८. बुद्धेहिं एवं पवेदितं-से समणुण्णे असमणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा
साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा नो पाएज्जा, नो निमंतेज्जा, नो कुज्जा बेयावाडियं-परं आढायमाणे त्ति बेमि ॥ धम्मनायाणह, पवेइयं माहणेण मतिमया-समणुण्णे समणुण्णस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पाएज्जा, णिमंतेज्जा, कुज्जा वेयावडियं-परं आढायमाणे ।
-त्ति बेमि ॥ तइओ उद्देसो पव्वज्जा-पदं ३०. मज्झिमेणं वयसा एगे", संबुज्झमाणा समुट्ठिता ॥
२६. धम्मनाका
१. 'स्सिणोति (क)।
ण वा, सतं उत्तरसमत्थो भवति ताहे, अह २. संपडिलेहाए (ख, ग, घ)।
गुत्ती एगंतेणं गुत्ती वयोगोयरे'। आदर्शेषु ३. ° सेवणयाए (घ)।
पाठपरिवर्तनं जातम् । वृत्तिकृतापि परि४. सहसक्कारेह (क)।
वर्तितपाठानुसारेण विवरण कृतम्, किन्तु ५. पुट्ठो धीरो (ख, ग, घ); पुट्ठो वीरो (घ)।
अर्थमीमांसया नैतत् समीचीनं प्रतिभाति । वीरो पुट्ठो (च)।
अस्यैवाध्ययनस्य दशमे सूत्रे 'अदुवा गुत्ती ६. अदुवा वइगुत्तोए गोयरस्स अणुपुव्वेण सम्म
वओगोयरस्स' इति पाठो लभ्यते। तेनास्माभिः पडिलेहाए आयगुत्ते (क, ख, ग, घ, छ, ७); चूणिसम्मतः पाठः स्वीकृतः । चूर्णिव्याख्यातः पाठः सङ्गतोस्ति, यथा- ७. मीणे (क, च)। 'असरिसं जं भणितं-अणण्णतुल्लं, अणुव्व- ८. मीणे (क, च)। णाणि सम्म, जं भणितं - कम्मेण कित अस-8. मझ° (ख)। रिसं. पडिलेहा पेक्खिता, आयगुत्ते तिहि १०. वि एगे (क, ख,ग,च,छ,वृ); मिह एगे (घ)। गुत्तीहि उवउत्तो उत्तरेवि दिज्जमाणे कुप्पति
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अट्ठमं अज्झयणं (विमोक्खो-तइओ उद्देसो) ३१. 'सोच्चा वई मेहावों", पंडियाणं निसामिया ।
समियाए' धम्मे, आरिएहि पवेदिते ॥ अपरिग्गह-पदं ३२. ते अणवकंखमाणा अणतिवाएमाणा अपरिग्गहमाणा णो 'परिग्गहावंतो सव्वा
वंती" च णं लोगंसि ॥ ३३. णिहाय दंडं पाणेहि, पावं कम्मं अकुव्वमाणे, एस महं अगंथे वियाहिए ॥ आहारहेउ-पदं ३४. ओए जुतिमस्स' खेयण्णे उववायं चवणं च णच्चा॥ ३५. आहारोवचया देहा, परिसह-पभंगुरा ॥ ३६. पासहेगे सव्विदिएहिं परिगिलायमाणेहिं ।। ३७. ओए दयं दयइ॥ ३८. जे सन्निहाण-सत्थस्स खेयण्णे । ३६. से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खणण्णे विणयण्णे समयण्णे परिग्गहं अममाय
माणे कालेणुट्ठाई अपडिण्णे ।। ४०. दुहओ छेत्ता नियाइ ॥ अगणि-असेवण-पदं ४१. तं भिक्खू सीयफास-परिवेवमाणगायं उवसंकमित्तु गाहावई बूया-आउसंतो
समणा ! णो खलु ते गामधम्मा उव्वाहंति ? आउसंतो गाहावई ! णो" खलु मम गामधम्मा उव्वाहंति । सीयफासं" णो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए । णो खलु मे कप्पति अगणिकायं उज्जालेत्तए वा
पज्जालेत्तए वा, कायं आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा अण्णेसिं वा वयणाओ। ४२. सिया से एवं वदंतस्स परो अगणिकायं उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता कायं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए।
-त्ति बेमि ॥
१. सोच्चा मेहावी वयणं (क, ख, ग, घ, छ); सह योजितोस्ति । सोच्चा मेहावी णं वयणं (चू)।
५. जुइमंतस्स (ख, ग, च); अहवा जुत्तिमं (चू)। २. समयाए (क)।
६. ओवायं (क, घ)। ३. आयरिएहिं (घ, छ)।
७. चयणं (घ, च)। ४. ०वंति सव्वावति (ख, ग, घ, च, छ); ८. संनिहाणस्स (च)।
०वंती स सव्वा° (चू); चूर्णिकृता 'स है. x (चू)। सव्वावंति च णं लोगंसि' इति पाठस्य १०. अप्पं (च)। सम्बन्धः णिहाय दंडं पाणेहि' अनेन सूत्रेण ११. ° फासं च (क, ख, च)।
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आयारो
चउत्थो उद्देसो उवगरण-विमोक्ख-पदं ४३. जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिते' पायचउत्थेहि, तस्स णं णो एवं भवति
चउत्थं वत्थं जाइस्सामि' ॥ ४४. से अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा ।। ४५. अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा । ४६. णो धोएज्जा', णो रएज्जा, णो धोय-रत्ताई वत्थाइं धारेज्जा । ४७. अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ।। ४८. ओमचेलिए" || ४६. एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।। ५०. अह पुण एवं जाणेज्जा-उवाइक्कते खलु हेमंते,गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाई
वत्थाइं परि?वेज्जा, अहापरिजुण्णाई वत्थाइं परिद्ववेत्ता५१. अदुवा संतरुत्तरे ॥ ५२. अदुवा एगसाडे । ५३. 'अदुवा अचेले ॥ ५४. लाघवियं आगममाणे ।। ५५. तवे से अभिसमन्नागए भवति । ५६. जमेयं भगवया पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए' समत्तमेव"
समभिजाणिया ।। सरीर-विमोक्ख-दं ५७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-पुट्ठो खलु अहमंसि, नालमहमंसि सीय-फासं
अहियासित्तए, से वसुमं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे ।।
१. ° उसिते (घ,छ)। २. धारिस्सामि (चू)। ३. धावेज्जा (ग); धाएज्जा (घ)। ४. ओवमाणे (ख, च, छ)। ५. अवम° (क, ख, ग)। ६. अथवावमचेल एककल्पपरित्यागात् द्विकल्प-
धारीत्यर्थः (वृ)।
७. x (चू)। ८. जहेयं (घ)। ६. सव्वयाए (घ); सव्वताए (च); आवट्टे
(ख, ग)। १०. सम्मत्त ° (ख, ग, घ, च, छ, वृ); समत्त ०
(वृपा)।
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agiri ( विमोक्खो -- पंचमो उद्देसो)
५८. तवसिणो हु तं सेयं, जमेगे' विहमाइए' ॥ ५६. तत्थावि तस्स कालपरियाए ||
६०. से वि तत्थ विअंतिकारए ।
६१. इच्वेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेय सं", आणुगामियं ।
पंचमो उद्देसो
उवगरण- विमोक्ख पदं
६२. जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं परिवसिते पायतइएहि, तस्स णं णो एवं भवति - तइयं वत्थं जाइस्सामि ||
७०. अदुवा एगसाडे ||
७१. अदुवा अचेले ।
७२. लाघवियं आगममाणे ||
६३. से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा' ।।
६४. अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं धारेज्जा ।।
६५. णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोय-रत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा ॥
६६. अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ॥
६७. ओमचेलिए ° ॥
६८. एयं खु तस्स भिक्खुस्स सामग्गियं ॥
६६. अह पुण एवं जाणेज्जा -- उवाइक्कते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णाई
त्थाई परिवेज्जा, अहापरिजुण्णाइं वत्थाइं परिद्ववेत्ता -
६३
- ति बेभि ॥
७३. तवे से अभिसमन्नागए भवति ||
७४. जमेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव ' समभिजाणिया ||
१. जंसेगे (क, घ, च) |
२.
सादिए (छ) ।
३. निस्से ( ख, ग, घ, च); निस्सेसियं (चू ) ।
४. सं० पा० जाएज्जा जाव एयं ।
गिलाणस्स भत्तपरिण्णा-पदं
७५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति - " पुट्ठो अबलो अहमंसि, नालमहमंसि 'गिहंतरसंकमणं" भिक्खायरिय - गमणाए" ' से एवं वदंतस्स परो अभिहडं असणं वा
५. जहेयं (घ, छ) ।
६. सम्मत्त ० ( ख, ग, घ, च, छ, वृ); समत्त (वृपा) । ७. गृहाद्गृहान्तरं सङ्क्रमितुम्' इति वृत्तौ । ८. भिक्खायरियं (क, घ, च, छ) ।
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६४
आयारो
पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहट्ट दलएज्जा, से पुवामेव' आलोएज्जा आउसंतो ! गाहावती ! णो खलु मे कप्पइ 'अभिहडे असणे वा पाणे खाइमे
वा साइमे वा भोत्तए वा, पायए वा, अण्णे वा एयप्पगारे । वेयावच्चपकप्प-पदं ७६. जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे-अहं च खलु पडिण्णत्तो अपडिण्णत्तेहि, गिलाणो
अगिलाणेहि, अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं सातिज्जिस्सामि । अहं वा वि खलु अपडिण्णत्तो पडिण्णत्तस्स, अगिलाणो गिलाणस्स, अभिकख साहम्मिअस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए । आहटु पइण्णं आणखेस्सामि', आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्ट पइण्णं आणखेस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि, आहटु पइण्णं णो आणक्खेस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि, आहट्ट पइण्णं णो आणखेस्सामि,
भाहडं च णो सातिज्जिस्सामि ।। ७८. 'लाघवियं आगममाणे॥ ७६. तवे से अभिसमण्णागए भवति । ८०. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव
समभिजाणिया ।। ८१. एवं से अहाकिट्टियमेव धम्म समहिजाणमाणे संते विरते सुसमाहितलेसे ॥ ८२. तत्थावि तस्स कालपरियाए ।। ८३. से तत्थ विअंतिकारए । ८४. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं"।
-ति बेमि॥
१. पुव्व ° (ख, ग, घ)।
(४) भोत्तए वा पायए वा अन्ने वा तहप्प२. अभिहडं असण (ख, ग, च)।
गारे (वृपा)। ३. भोइत्तए (ख, ग)।
७. करणयाए (क, च)। ४. पायत्तए (ख); पित्तए (घ); पातुए (छ); ८. परिणं (क, ख, ग, घ, च, छ); चूणिवृत्त्य__पात्तए (च)।
नुसारेण स्वीकृतोऽयं पाठः (सर्वत्र)। ५. तहप्पगारे (छ)।
६. आणिक्खि ° (ख, ग); अणिक्खि ° (चू)। ६. तं भिक्खु के इ गाहावई उवसंकमित्तु बूया- १०. चिन्हान्तर्वर्ती पाठः चूर्णी वृत्तौ च समस्ति,
आउसंतो समणा ! अहन्नं तव अट्ठाए असणं प्रतिषु नोपलभ्यते। चूर्ण्यनुसारेणायं पाठः वा (४) अभिहडं दलामि, से पुवामेव स्वीकृत:, वृत्तौ 'समभिजाणमाणे' एतस्य जाणेज्जा-आउसंतो गाहावई ! जन्नं तु पश्चादसौ स्वीकृतोस्ति । मम अट्टाए असणं (४) अभिहडं चेतेसि, णो ११. अणु° (क ख, ग, च, छ)। य खलु मे कप्पइ एयप्पगार असण वा
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अट्ठमं अज्झ यणं (विमोक्खो-छट्टो उद्देसो)
छट्टो उद्देसो ८५. जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिते पायबिइएण, तस्स णो एवं भवइ-बिइयं
वत्थं जाइस्सामि ॥ ८६. से अहेसणिज्जं वत्थं जाएज्जा ।। ८७. अहापरिग्गहियं वत्थं धारेज्जा' ।। ८८. णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोय-रत्तं वत्थं धारेज्जा । ८९. अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ॥ ६०. ओमचेलिए॥ ६१. एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।। ६२. अह पुण एवं जाणेज्जा-उवाइक्कंते खलु हेमंते °, गिम्हे पडिवन्ने, अहापरिजुण्णं
वत्थं परिवेज्जा, अहापरिजुण्णं वत्थं परिहवेत्ता६३. 'अदुवा अचेले ॥ ६४. लाघवियं आगममाणे । ६५. 'तवे से अभिसमण्णागए भवति । ६६. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए ° समत्तमेव
समभिजाणिया ॥
एगत्तभावणा-पदं ६७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ–एगो अहमंसि, न मे अत्थि कोइ, न याहमवि
कस्सइ, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा। ६८. लाघवियं आगममाणे ॥ १६. तवे से अभिसमन्नागए भवइ । १००. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव'
समभिजाणिया ॥ अणासायलाघव-पदं १०१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेमाणे १. सं० पा०-धारेज्जा जाव गिम्हे। ७. एतेसु अट्ठसुवि उद्देसएसु एस आलावओ २. अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले (ख, ग, घ, सव्वत्थ भाणियव्वो–ण मे अस्थि कोयि च, छ, शु)।
णाहमवि कस्सति, अहवा वेहाणसमरणउद्देस३. सं० पा०-आगममाणे जाव समत्तमेव । गातो आरब्भ एस आलावओ वत्तव्यो, ण ४. द्रष्टव्यम्-८।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । मम अत्थि कोयि ° (चू)। ५. कस्सवि (घ)।
८. द्रष्टव्यम् -८५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम । ६. एगाणिय ° (च, चू)।
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आयारो णो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारेज्जा आसाएमाणे', दाहिणाओ वा
हणुयाओ वामं हणुयं णो संचारेज्जा आसाएमाणे, से अणासायमाणे ।। १०२. लाघवियं आगममाणे। १०३. तवे से अभिसमन्नागए भवइ । १०४. जमेयं भगवता पवेइयं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव'
समभिजाणिया ।। संलेहणा-पदं १०५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-से 'गिलामि च खलु अहं इमंसि समए' इम
सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवर्दृत्ता, कसाए पयणुए किच्चा, समाहियच्चे फलगावयट्ठी,
उट्ठाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे ॥ इंगिणिमरण-पदं १०६. अणपविसित्ता गाम वा, णगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं' वा, पट्टणं वा,
दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, णिगमं वा, रायहाणि वा, 'तणाई जाएज्जा", तणाई जाएत्ता, से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पुत्तिगपणग-दग मट्टिय-मक्कडासंताणए, 'पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय
तणाई संथरेज्जा, तणाई संथरेत्ता" एत्थ वि समए इत्तरियं कुज्जा ॥ १०७. तं सच्चं सच्चावादी ओए तिण्णे छिण्ण-कहकहे आतीतटे अणातीते वेच्चाण"
भेउरं कायं, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सि 'विस्सं भइत्ता'१२
भेरवमणुचिण्णे।। १. साहरेज्जा (चू)।
६. सच्चवादी (ख, ग, च, छ)। २. आढायमाणे (चुपा वृपा)।
१०. अइअटे (क, घ, च)। ३. द्रष्टव्यम्-८,५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ११. चेच्चाण (ख, ग, घ, च, छ, वृ); वकार४. गिलाणा मिव (ख, ग); गिलाणमिव (छ,चू)। चकारयोलिपिसादृश्यात् वर्णपरिवर्तनं जातम, ५. समये णो संचाएमि (ख, ग); न शक्नोमि तेन 'वेच्चाण' स्थाने 'चेच्चाण' इति रूप (वृ)।
संवृत्तम् । वृत्ति कृता उपलब्धपाठाधारण ६. मंडबं (ग)।
'त्यक्त्वा' इति व्याख्यातम्, किन्तु चूणिकृता ७. ४ (क, ग, घ, च)।
'विइत्ता' इति व्याख्यातम् । प्रकरणसङ्गत्या८. पडिलेहिता संथारगं सथरेइ संथारग
स्माभिः 'वेच्चाण' इति पाठः स्वीकृतः । संथरेता (चू)।
१२. विस्संभणयाए (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ);
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अट्ठमं अज्झयण (विमोक्खो-सत्तमो उद्देसो) १०८. तत्थावि तस्स कालपरियाए । १०६. से तत्थ विअंतिकारए । ११०. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं, आणुगामियं ।
-ति बेमि॥ सत्तमो उद्देसो उवगरण-विमोक्ख-पदं १११. जे भिक्खू अचेले परिवुसिते, 'तस्स ' एवं भवति–चाएमि अहं तणफासं
अहियासित्तए, सीयफासं अहियासित्तए, तेउफासं अहियासित्तए, दस-मसगफासं अहियासित्तए, एगतरे अण्णतरे विरूवरूवे फासे अहियासित्तए, हिरिपडिच्छादणं चहं णो संचाएमि अहियासित्तए, एवं से कप्पति कडि-बंधणं
धारित्तए ॥ ११२. अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति,
तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे
अहियासेति अचेले ।। ११३. लाघवियं आगममाणे ॥ ११४. तवे से अभिसमन्नागए भवति ।। ११५. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव
समभिजाणिया । वेयावच्चपकप्प-पदं ११६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं
वा खाइमं वा साइमं वा आहट्ट दलइस्सामि, आहडं च सातिज्जिस्सामि । ११७. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं
वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलइस्सामि, आहडं च णो सातिज्जिस्सामि ।। ११८. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति- अहं च खलु 'अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा
वृत्तिकृता 'विश्रंभणतया' इति व्याख्यातम्, ४. च (ख, ग, घ, च) । किन्तु प्रकरणदृष्ट्या देहात्मभेदभावनाभि- ५. द्रष्टव्यम् -- ८।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । धायकपाठः सुसङ्गतोस्ति, तेन चूर्णिकृता ६. आहट्ट पइण्णं (चू); चतुर्वपि सूत्रेषु असो व्याख्यातः पाठः स्वीकृतः ।
पाठभेदो द्रष्टव्यः । १. से वि (ख, ग, च, छ)।
७. दाहामि (चू)। २. तस्स णं भिक्खुस्स (वृ)।
८. X (क, ख, ग, घ, च, छ)। ३. चूर्णी असौ पाठो न व्याख्यातो दृश्यते ।
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आयारो
पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु नो दलइस्सामि, आहडं च
सातिज्जिस्सामि ॥ ११६. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-अहं खलु अण्णेसि भिक्खूणं असणं वा पाणं
वा खाइमं वा साइमं वा आह? नो दलइस्सामि, आहडं च णो
सातिज्जिस्सामि ॥ १२०. अहं च खलु तेण अहाइरित्तेणं' अहेसणिज्जेणं अहापरिग्गहिएणं असणेण वा
पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा अभिकंख साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं
करणाए॥ १२१. अहं वावि तेण अहातिरित्तेणं अहेसणिज्जेणं अहापरिग्गहिएण असणेण वा
पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा अभिकंख साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं
सातिज्जिस्सामि ॥ १२२. लाघवियं आगममाणे' । १२३. 'तवे से अभिसमण्णागए भवति ।। १२४. जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए ° समत्तमेव'
समभिजाणिया । पाओवगमण-पदं १२५. जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवति-से गिलामि च खलु अहं इमम्मि समए इमं
सरीरगं अणुपुत्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेत्ता कसाए पयणुए किच्चा समाहिअच्चे फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिणिव्वुडच्चे ॥ अणुपविसित्ता गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, णिगमं वा °, रायहाणि वा, तणाई जाएज्जा, तणाई जाएत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगतमवक्कमेत्ता अप्पंडे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए अप्पोसे अप्पोदए अप्पत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, पडिलेहिय-पडिले हिय पमज्जिय-पमज्जिय तणाई संथरेज्जा, तणाई संथरेत्ता एत्थ वि समए कायं च, जोगं च, इरियं च, पच्चक्खा
एज्जा ॥ १२७. 'तं सच्चं सच्चावादी ओए तिण्णे छिन्न-कहंकहे आतीतट्टे अणातीते वेच्चाण
१. आहा ° (क, च, छ)। २. सं० पा० -आगममाणे जाव समत्तमेव । ३. द्रष्टव्यम् - ८।५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम्।
४. गिलाएमि (ख, छ)। ५. सं० पा०-~गाम वा जाव रायहाणि । ६. द्रष्टव्यम्-८।१०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
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अणं (विमोक्खो - अट्टमो उद्देसो)
६ह
भेरं कार्य, संविहूणिय विरूवरूवे परिसहोवसग्गे अस्सि "विस्सं भइत्ता" भेरवfood ||
१२८. तत्थावि तस्स कालपरियाए ।
१२६. से तत्थ विअंतिकारए ||
१३०. इच्चेतं विमोहायतणं हियं, सुहं, खमं, णिस्सेयसं आणुगामियं ।
अमो उद्देस
अणसण-पदं
१. ' आणुपुव्वी - विमोहाई, वसुमंतों
मइमंतो,
भत्तपच्चक्खाण-पदं
२. दुविहं पि विदित्ताणं, बुद्धा धम्मस्स पारगा" ।
तिउट्टति ॥ तितिक्खए ।
जाई धीरा समासज्ज ।
सव्वं णच्चा अणेलिसं ॥
३. कसाए पयणुए किच्चा, अह भिक्खू गिलाएज्जा,
४. जीवियं णाभिकखेज्जा, मरणं णोवि
मरणे
संखाए, आरंभाओ' अप्पाहारो आहारस्सेव
दुहतोवि ण सज्जेज्जा, जीविते ५. मज्झत्थो णिज्जरापेही, समाहिमणुपालए
अंतो बहि विउसिज्ज, अज्झत्थं
४. वीरा (क, च) ।
५. वुसिमंतो (चू) ।
६. जं किंचुवक्कमं' जाणे, तस्सेव
खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिए ||
अंतरद्धाए, ७. गामे वा अदुवा रणे, अप्पपाणं तु विण्णाय, ८. अणाहारो तुअट्टेज्जा", पुट्ठो णातिवेल
थंडिलं तणाई
अंतियं ॥
पत्थए ।
तहा ॥
आउक्खेमस्स
सुद्धमेसए ॥ अप्पणो ।
पडिलेहिया । संथरे मुणी ॥ तत्थहियासए ।
उवचरे, माणुस्सेहिं वि पुट्ठओ" ॥
१. द्रष्टव्यम् - ८।१०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. नागार्जुनीया : - कट्ठमिव आतट्ठे तत्थ संचतितं सज्जीकरेत्ता उपतिष्णे छिन्नकहं कहेज्जा जाव आणुगामियं (चू ) ।
३. अणुपुव्वेण विमोहाई (क, ख, ग, घ, च, छ) । १०. वियाणित्ता ( चु) ।
११. विज्जेज्जा ( चू, वृ) ।
१२. ० पुट्ठवं (क, च, छ); ० पुट्ठए ( ख, ग ) ।
- ति बेमि ॥
६. विगिचित्ता दुट्ठादुट्ठाण जाणगा ( चुपा) । ७. ० पु०वी ( ग ) ।
८.
कम्णाओ (घ, च, चूपा, वृपा) । ९. किंचिवुक्कमं (च) ।
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७०
आयारो
६. संसप्पगा य जे पाणा, जे य उड्ढमहेचरा।
भुंजंति मंस-सोणियं, ण छणे ण पमज्जए । १०. पाणा देहं विहिंसंति, ठाणाओ ण विउब्भमे ।
_ 'आसवेहि विवित्तेहि', तिप्पमाणेऽहियासए । ११. गंथेहि विवित्तेहि, आउ-कालस्स पारए। इंगिणिमरण-पदं
पगहियतरगं चेयं, दवियस्स वियाणतो। १२. अयं से अवरे धम्मे, णायपुत्तेण साहिए।
आयवज्ज पडीयारं, विजहिज्जा तिहा तिहा ॥ १३. हरिएसु ण णिवज्जेज्जा, थंडिलं 'मुणिआ सए'।
विउसिज्ज अणाहारो, पुट्ठो तत्थहियासए । १४. इंदिएहि गिलायंते, समियं साहरे मुणी।
तहावि से अगरिहे", अचले जे समाहिए। १५. अभिक्कमे पडिक्कमे, संकुचए पसारए।
काय-साहारणट्ठाए , एत्थं वावि अचेयणे । १६. परक्कमे परिकिलंते, अदुवा चिटे अहायते ।
ठाणेण परिकिलंते, णिसिएज्जा य अंतसो॥ १७. 'आसीणे णेलिसं मरणं, इंदियाणि समीरए।
कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए॥ १८. जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए।
ततो उक्कसे" अप्पाणं, सव्वे फासेहियासए ।
१. वि उब्भमे (क, ख, ग, घ, वृ)। २. अवसव्वेहिं विचित्तेहिं (चू)। ३. तप्प (छ)। ४. विचित्तेहिं (क, ख, घ, च, छ, चू)। ५. तरागं (क); ° तरं (चू)। ६. सुयाहितो (चू)। ७. मुणि आसए (च, चू)। ८. वियो (ख, ग, च, छ)। ६. आहरे (ख, ग, घ, च, छ, वृ)।
१०. अगरहे (क, ख, ग, छ)। ११. साहरण ° (क, ग, छ); संधारण (चू);
संहारण (च)। १२. इत्थं (घ)। १३. परिक्कमे (क, ख, ग, घ, च, छ) । १४. आसीण मणेलिसं (क, घ, च); उदासीणो ____ अणेलिसो (चू)। १५. उवक्कसे (ग, घ, छ)।
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अट्टमं अज्झणं (विमोक्खो अट्टमो उद्देसी )
१६. अयं चायततरे' सिया, जो एवं सव्वगायणिरोधेवि, ठाणातो ण २०. अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वद्वाणस्स अचिरं पडिले हित्ता, विहरे चिट्ठ २१. अचित्तं तु समासज्ज, ठावए वो सिरे सव्वसो कार्य, ण मे २२. जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा 'य देहभेयाए, इति
तत्थ
देहे
संवुडे
२३. भेउरेसु न रज्जेज्जा, कामेसु इच्छा - लोभं ण सेवेज्जा, सुहुमं वण्णं २४. सासएहिं णिमंतेज्जा, "दिव्वं मायं तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं नूमं २५. सव्वद्वे हि अमुच्छिए, आउकालस्स तितिक्खं परमं णच्चा, विमोहण्णतरं
१. चायतरे ( ख ) ; चाततरे (चू क ); ढग्गातरे धम्मे ( चूपा); यदि आत्ततरः (वृ) ।
२. तिति संखाते ( क ) ; इति संख्या (ता) (ग, घ. छ); इति संखाय ( च, वृ) 1 ३. बहुले सु ( चुपा, वृपा) ।
आयरे वा...
अणुपालए । विउब्भमे ॥
पग्गहे ।
माहणे ॥
अप्पगं ।
परीसहा ||
संखाय ।
पहियास |
बहुतरेसु वि । सपेहिया || ण सहे ।
वधूया ॥
पारए ।
हितं ॥
७१
- ति बेमि ।।
४. इच्छ° ( क ) ।
५. धुवं (धुव ) ( क, ख, ग, घ, च, छ, खूपा,
वृपा) ।
६. दिव्वमाय (., घ, च, चूपा) । ७. सव्वत्थेहिं (चू) |
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नवमं अज्झयणं उवहाणसुयं
पढमो उद्देसो भगवओचरिया-पदं १. अहासुयं वदिस्सामि, जहा से समणे भगवं उट्ठाय।
संखाए तंसि हेमंते, अहुणा पव्वइए रीयत्था ॥ २. णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते ।
से पारए आवकहाए', एयं खु अणुधम्मियं तस्स ।। ३. चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाण-जाइया आगम्म ।
अभिरुज्झ कायं विहरि, आरुसियाणं तत्थ हिसिसु । ४. संवच्छरं साहियं मासं, जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं ।
अचेलए ततो चाई, तं वोसज्ज वत्थमणगारे । ५. अदु पोरिसिं तिरियं भित्ति, चक्खमासज्ज अंतसो झाइ।
अह चक्खु-भीया' सहिया, तं "हंता हंता" बहवे कंदिसु॥ ६. सयहिं वितिमिस्सेहि', इत्थीओ तत्थ से परिण्णाय ।
सागारियं ण सेवे, इति से सयं पवेसिया झाति ।।
१. रीइत्था (क, चू); रीयित्था (च); रीएत्था ५. आरुज्झ° (चू)।
६. °भीय (ग, च, छ)। २. आवकहं (घ)।
७. विमिस्सेहिं (घ)। ३. आणु° (छ)।
८. साकारियं (घ, छ)। ४. ° जाती (क)।
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नवमं अज्झणं (उवहाणसुर्य - पढमो उद्देसो)
७.
८.
६.
णो
के इमे अगारत्था, मीसीभावं पहाय से पुट्ठो' वि णाभिभासिसु, गच्छति णाइवत्तई सुगरमेतमेगेसि, णाभिभासे दंडेहि, लूसियपुव्वो अतिअच्च मुणी दंडजुद्धाई
हयपुव्वो तत्थ
फरुसाई
दुतितिक्खाई, आघाय - पट्ट गीताई,
मिहो - कहासु', उरालाई,
॥
१०. गढिए
परक्कममाणे । मुट्ठाई ॥ समयमि' णायसुए विसोगे अदक्खू । गच्छइ णायपुत्ते असरणाए । णिक्खते । संते ॥
च ।
महावीरे ॥
ताई ११. अविसाहिए दुवे वासे, सीतोदं अभोच्चा पिहियच्चे से अण्णास आउकाय, तेउकायं च वाउ कार्य बीय-हरियाई, तसकायं च सव्वसो णच्चा ॥ १३. एयाई संति पडिलेहे, चित्तमंताई से अभिण्णाय । परिवज्जिया ण विहरित्था, इति संखाए से १४. अदु" थावरा तसत्ताए, तसजीवा य अदु सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला ॥ १५. भगवं च ' एवं मन्नेसि, सोवहिए हु लुप्पती बाले । कम्मं च सव्वसो णच्चा, तं पडियाइक्खे पावगं भगवं ॥ १६. दुविहं समिच्च मेहावी, किरियमक्खायणेलिसिं४ णाणीं । आयाण- सोयमतिवाय- सोयं, जोगं च सव्वसो णच्चा ॥ १७. अइवातियं" अणाउट्टे", सयमण्णेसिं जस्सित्थओ
थावरत्ताए ।
अकरणयाए ।
परिणाया, सव्वकम्मावहाओ से " अदक्खू |
एगत्तगए १२. पुढवि पण गाई
सो
१. नागार्जुनीया: पुट्ठो व सो अणुपुट्ठो व णो अणुन्नाइ पावगं भगवं । पुट्ठे व से अपट्टे वा° (चू) ।
२. मिधु (च) ; मिहु ° (छ) ।
३. ० कहासुं (क, घ) ।
च
४. समतो (चू) ।
५. ० पुत्ते ( ख, ग, वृ) ।
६. गाइ ° (छ) । ७. एगत्ति (चू) ।
८.
०
° कायं च (क, ग, च, छ ) ।
भाति ।
अंजू || अभिवायमाणे ।
६. पणगाय ( ख ) ।
१०.
० वज्जिया ( ख, ग ) ।
११. अदुवा (ख, ग, च, छ ); अदुव ( क ) । १२. कम्मणा (चू) |
१३. एवमन्नेसिं (क, घ, च, छ, ब); एवमणि
सित्ता (चू) ।
१४. ० मणेलिसं ( ख, ग ) ।
१५. ० वत्तियं (छ) ।
१६. अणउट्टि (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) ।
१७. X ( क, घ, च, छ) ।
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७४
आयारो
१८. अहाकडं न से सेवे, सव्वसो कम्मुणा 'य अदक्खू ।
जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियडं भुजित्था । १६. णो सेवती य परवत्थं', परपाए वि से ण भंजित्था।
परिवज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडिं असरणाए । २०. मायण्णे असण-पाणस्स, णाणुगिद्धे रसेसु अपडिण्णे ।
अच्छिपि णो पमज्जिया', णोवि य कंडूयये मुणी गायं । २१. अप्पं तिरियं पेहाए, अप्पं पिट्ठओ उपेहाए ।
अप्पं वुइएऽपडिभाणी, पंथपेही चरे जयमाणे ॥ २२. सिसिरंसि अद्धपडिवन्ने, तं वोसज्ज वत्थमणगारे ।
पसारित्तु बाहुं परक्कमे, णो अवलंबियाण कंधंसि ।। २३. एस विही अणुक्कतो, माहणेण
मईमया। 'अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा" ॥
-त्ति बेमि॥
बीओ उद्देसो भगवओ सेज्जा-पदं १ चरियासणाई सेज्जाओ, एगतियाओ जाओ बुइयाओ।
आइक्ख ताई सयणासणाई", जाइं सेवित्था से महावीरो॥ आवेसण - 'सभा-पवासु", पणियसालासु एगदा वासो।
अदवा पलियद्राणेसू, पलालपंजेस एगदा वासो।। ३. आगंतारे आरामागारे, गामे" णगरेवि एगदा वासो।
सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले वि एगदा वासो ।
१. आहा° (च, छ)।
(क, ख, ग, घ, च, छ, वृ, चूपा)। २. बंधं अदक्खू (क); अदक्खू (ख, ग, च); य १०. अयं च श्लोकः चिरंतनटीकाकारेण न ___ दक्खू (घ)।
व्याख्यातः (वृ)। ३. परं वत्थं (ख, ग)।
११. सयणाई (क, च)। ४. असरणयाए (घ, च)।
१२. आएसण (चू)। ५. पमज्जिज्जा (ख)।
१३. सभप्पवासु (क, घ, छ)। ६. व पेहाए (घ)।
१४. X (क, च); तह य (घ, छ, ब)। ७. वोसरिज्ज (घ, चू)।
१५. °वा (क)। ८. खधंसि (क, च)।
१६. सुण्णागारे (छ)। ६. बहसो अपडिण्णेण, भगवया एवं रीयंति
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नवमं अज्झयणं (उवहाणसुयं - बीओ उद्देसो)
एतेहिं मुणी राई दिवं पि 'णि पिणो
सयणेहिं, समणे आसी' पतेरस' वासे । जयमाणे, अप्पमत्ते समाहिए भाति ॥ पगामाए, सेवइ भगवं उट्टाए"। जग्गावती' य अप्पाणं, ईसि 'साई या " सी अपडिण्णे ॥ संबुज्झमाणे पुणरवि, आसिं भगवं उट्ठाए । णिक्खम्म एगया राओ, बहिं चकमिया' मुहुत्तागं ॥ सयहिं तस्सुवसग्गा, भीमा आसी अणेगरूवा य । संसप्पगाय जे पाणा, अदुवा जे पक्खिणो उवचरंति ॥ अदु" कुचरा उवचरंति, गामरक्खा य सत्तिहत्था य । अदु गामिया उवसग्गा, इत्थी एगतिया पुरिसा य ॥ इहलोइयाइं परलोइयाई, भीमाई अवि सुब्भ-दुब्भि-गंधाई, सद्दाई १०. अहियासए सया समिए ", फासाई अरई रइं अभिभूय,
४.
५.
६.
७.
८.
ε.
विरूवरूवाइं ।
११. सजणेहिं तत्थ पुच्छिसु,
यई माहणे अबहुवाई | एगचरा वि एगदा राओ । अव्aाहिए कसाइत्था, पेहमाणे समाहिं अपडणे || १२. अयमंतरंसि
मुत्तमे १३. जंसिप्पेगे
तंसिप्पेगे
एहा य
समादहमाणा ।
१४. संघाडिओ पविसिस्सामो", पिहिया वा सक्खामो", अतिदुक्खं हिमग-संफासा ॥ १५. तंसि भगवं अपडणे, अहे वियडे अहियासए दविए । णिक्खम्म एगदा राओ, चाएइ" भगवं समियाए ॥
अगरूवाई |
अगरूवाई |
तव उट्ठाए (चू) ।
५. जगा° (ख, छ) ।
६. साइ य (क, च, छ ) । ७. बहिं (च) ।
को एत्थ, अहमंसि त्ति भिक्खू आहट्टु | धम्मे, तुसिणीए स कसाइए भाति ॥ पवेयंति, सिसिरे मारुए वायंते । अणगारा, हिमवाए णिवाय मेसंति ॥
१. वासी (छ) ।
२. पतेलस (च) ।
३. सेवइ य ( ख, ग ) ।
१०. अदुवा (क, छ) ।
४. नागार्जुनीया: – णिद्दावि ण पगामा, आसी ११. सहिए, इति मंता भगवं अणगारे (पा) ।
१२. पहिरिस्सामो (चू)।
१३. परसामो (चू) ।
१४. चठाएइ ( ग ) – अशुद्धं प्रतिभाति ।
८. चकमित्ता (छ) ।
६. तत्थु (क, ख, ग, घ, छ) ।
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आयारो
१६. एस विही
'अपडिण्णण
अणुक्कतो, माहणेण मईमया।
वीरेण, कासवेण महेसिणा' ।।
-त्ति बेमि॥
तइओ उद्देसो भगवओ परीसह-उवसग्ग-पदं १. तणफासे सीयफासे य, तेउफासे य दंस-मसगे य ।
अहियासए सया समिए, फासाइं विरूवरूवाइं॥ २. अह' दुच्चर-लाढमचारी, वज्जभूमि च सुब्भ [म्ह? ] भूमि च । __ पंतं सेज्ज सेविसु, आसणगाणि चेव पंताई ॥ ___ लाढेहिं तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु ।
अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिसु ॥ ४. अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए दसमाणे ।
छुछुकारंति आहंसु, समणं कुक्कुरा डसंतुत्ति ।। ५. एलिक्खए जणे" भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरसासी।
लट्ठि गहाय णालीयं, समणा तत्थ एव विहरिसु । एवं पि तत्थ विहरंता, पुट्टपुव्वा अहेसि सुणएहिं । संलूंचमाणा सुणएहिं, दुच्चरगाणि तत्थ लाहिं ।। निधाय दंडं पाणेहि, तं कायं वोसज्जमणगारे ।
अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेच्चा ।। ८. णाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ से महावीरे।
एवं पि तत्थ लाहिं, अलद्धपुव्वो वि एगया गामो ॥ है. उवसंकमंतमपडिण्णं, गामंतियं पि अप्पत्तं ।
पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु, एत्तो परं पलेहित्ति ॥ १०. हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु'कुंताइ-फलेणं"।
अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे कंदिसु ॥ १. बहसो अपडिण्णेण, भगवया एवं रीयंति (क, ६. नालियं (ख, ग, चू)। ___ ख, ग, घ, छ, वृ, चूपा)।
७. दुच्चराणि (क, च, छ, वृ)। २. °फास (क, ख, ग, च)।
८. अदु (घ, छ)। ३. अवि (चू)।
६. लूसिति (चू)। ४. डसमाणे (च) भसमाणे (च)।
१०. एताओ (तो) (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. जणा (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ)। ११. कुंतेण फलेण (घ)।
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नवमं अज्झणं ( उवहाण सुर्य - चउत्थो उद्देसो)
११. मंसाणि परी सहाई
१२. उच्चालइय वोकाए
१३. सूरो संगामसीसे वा, संवुडे तत्थ से डिसेवमाणे फरुसाई, अचले भगवं
१४. एस विही अणुक्कंतो, माहणेण वीरेण, कासवेण
'अपड
भगवओ अतिगिच्छा-पदं
१.
२.
३.
कायं ।
छिन्नपुवाई उड्डुभंति एगया लुंचिसु, अहवा पंसुणा अवकिरिंसु ॥ हिणिसु, अदुवा आसणाओ खलइंसु । पणयासी, दुक्खस हे भगवं अपडणे ॥
महावीरे ।
५.
भगवओ आहार- चरिया-पदं
४.
ओमोदरियं चाएति, पुट्ठे वा से अपुट्ठे वा, संसोहणं च वमणं च संबाहणं 'ण से कप्पे", विरए गामधम्मेहि, रीयति सिसिरंमि एगदा भगवं, छायाए भाइ
माहणे
आयावई य गिम्हाणं, अदु जावइत्थं लू हेणं, एयाणि तिण्णि पडिसेवे, अपिइत्थ " एगया भगवं
उत्थो उद्देसो
अपुट्ठे वि भगवं णो से सातिज्जति गायब्भंगणं' दंतपक्खालणं
१. मंसूणि (क, ख, ग, घ, च, छ) । २. उट्टं भिया ( क, ख, ग, च, छ, वृ); उट्टभिया (घ) ।
इत्था || मईया |
॥
सिणाणं च । परिणाए ||
-
रोगेहिं । इच्छं ॥
-
11
अच्छइ उक्कुडुए अभिवाते । ओयण मंथु कुम्मासेणं अट्ठ मासे य जावए भगवं । अद्धमासं अदुवा मासं पि ॥
अबहुवाई | आसी य ॥
३. उवकरिंसु (क, ख, ग, घ, च, छ ) वृत्तिचूर्ण्यनुसारेण अशुद्ध प्रतिभाति । ४. बहुसो अपडणे, भगवया एवं रीयंति (क, १०. अपियत्थ ( चू) ।
ख, ग, घ, च, छ, वृ, चूपा) ।
५. ० मभंगणं (घ) ।
६. ण सेवित्था (चू) ।
७.
विरए य (क, घ च छ ) । ८. अभितावे (क, ख, ग, घ, च, छ, वृ) । ९. जावई (घ ) ।
७७
- त्ति बेमि ॥
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आयारो
६. अवि साहिए दुवे मासे, छप्पि मासे अदुवा अपिवित्ता'।
रायोवरायं अपडिण्णे, अन्नगिलायमेगया भुजे ।। ७. छट्रेणं एगया भुंजे, अदवा' अट्रमेण दसमेणं ।
दुवालसमेण एगया भुंजे, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ।। णच्चाणं' से महावीरे, णो वि य पावगं सयमकासी। अण्णेहि वा ण कारित्था, कीरंतं पि णाणुजाणित्था ॥ गामं पविसे णयरं वा, घासमेसे" कडं परट्टाए । सविसुद्धमेसिया भगवं, आयत-जोगयाए सेवित्था ।। अद् वायसा दिगिछत्ता, जे अण्णे रसेसिणो सत्ता।
घासेसणाए चिट्ठते, सययं णिवतिते य पहाए । ११. अदु माहणं व समणं वा, गामपिंडोलगं च अतिहिं वा।
सोवागं मूसियारं वा, कुक्कुरं 'वावि विहं ठियं पुरतो ।। १२. वित्तिच्छेदं वज्जतो, तेसप्पत्तियं परिहरंतो।
मंदं परक्कमे भगवं, अहिंसमाणो घासमेसित्था ॥ (त्रिभिः कुलकम्) १३. अवि सूइयं व" सुक्कं वा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं ।
अदु बक्कसं२ पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धए दविए । १४. अवि झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं ।
उड्डमहे तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ।। १५. अकसाई विग यगेही", सद्दरूवेसुऽमुच्छिए१६ भाति ।
छउमत्थे वि परक्कममाणे, णो" पमायं सई पि कुश्वित्था ।।
१. रीयित्था (चू); विहरित्था (च)।
विविधं ० ()। २. अदु अट्ठ (ख); अदुट्ठ ° (ग)। १०. तेसिमप्पत्तियं (ख, ग); तेसिं पत्तिय ३. णच्चाण (क, ख, ग, घ, च)।
(क, च); 'त्रासमकुर्वन्' (वृ)। ४. पविस्स (शु)।
११. वा (क, ख, ग, घ, च, छ)। ५. घासमातं (चू)।
१२. बुक्कसं (ख)। ६. गवेसित्था (चू)।
१३. उड्ढं अहे य (यं) (ख, ग, घ, छ)। ७. दिगिच्छित्ता (ख, ग)।
१४. लोए झायइ (ख, ग); झायइ (चू) । ८. समयं (क, ख, ग, घ, च, छ); स्वीकृतपाठः १५. गेही य (क, ख, ग, घ, च)। चूर्णिवृत्त्यनुसारी वर्तते।
१६. अमुच्छिए (ख, ग, च)। ६. वा विट्ठियं (क, ख); वा विचिट्ठियं (घ); १७. ण (च) ।
वा उवट्ठियं (चु}; वा चिट्ठियं (च); वा
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नवमं अज्झयणं (उवहाणसुयं-चउत्थो उद्देसो)
७६ १६. सयमेव अभिसमागम्म, आयतजोगमायसोहीए ।
अभिणिव्वुडे अमाइल्ले, आवकहं भगवं समिआसी ।। १७. एस विही अणुक्कतो, माहणणं मईमया। 'अपडिण्णण वीरेण, कासवेण महेसिणा"।
----त्ति बेमि॥
ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर २६६२७ अनुष्टुप् श्लोक-८४१ अक्षर १५
१. बहुसो अपडिण्णण, भगवया एवं रीयंति (क, ख, ग, घ, च, छ, वु, चूपा)।
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आयारचला
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पढमं अज्झयणं पिंडेसणा
पढमो उद्देसो सचित्त-संसत्त-असणादि-पदं
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटु समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा-पाणेहिं वा, पणएहिं वा, बीएहिं वा, हरिएहिं वा–संसत्तं, उम्मिस्सं, सीओदएण वा
ओसितं, रयसा वा परिवासियं', तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा–परहत्थंसि वा परपायंसि वा-अफासुयं अणेसणिज्ज ति
मण्णमाणे लाभे विसंते णो पडिग्गाहेज्जा। २. से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया, से तं आयाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्क
मेत्ता -- अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे, अप्प-पाणे, अप्प-बीए, अप्प-हरिए, अप्पोसे, अप्पुदए, अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए विगिंचिय-विगिचिय, उम्मिस्सं विसोहिय-विसोहिय तओ संजयामेव भुजेज्ज
वा पीएज्ज वा॥ ३. जं च णो संचाएज्जा भोत्तए वा पायए वा, ‘से तमायाय" एगंतमवक्कमेज्जा,
एगंतमवक्कमेत्ता–अहे झाम-थंडिलंसि वा, अट्ठि-रासिसि वा, किट्ट'-रासिसि
१. से जं (क, ब)। २. उस्सित्तं (क); अभिसित्त (च)। ३. घासियं (अ, क, घ, च, ब) । ४. X (चू)। ५. पडिगा ° (घ, छ, ब) ।
६. गाहे (अ, घ, च, छ, ब)। ७. उम्मीसं (क, च)। ८. सेत्त (अ, च, छ)। ६. किट्टि (छ)।
८
३
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आयारचूला
वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा,अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि'
पडिलेहिय-पडिले हिय पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव परिवेज्जा ॥ ओसहि-आदि-पदं ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सेज्जाओ' पूण ओसहीओ जाणेज्जा--कसिणाओ, सासिआओ, अविदल-कडाओ, अतिरिच्छच्छिन्नाओ, अव्वोच्छिन्नाओ, तरुणियं वा छिवाडि अणभिक्कताभज्जियं' पेहाए-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविटे समाणे सेज्जाओ' पुण ओसहोओ जाणेज्जा-अकसिणाओ, असासियाओ, विदल-कडाओ, तिरिच्छच्छिन्नाओ, वोच्छिण्णाओ, तरुणियं वा छिवाडि अभि
क्कतं भज्जियं पेहाएफासयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।। ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविटे
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलबं वा सइं भज्जियं-अफासुवं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ ७. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविटे
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा', 'बहुरजं वा, भुंज्जियं वा, मथु वा, चाउलं वा°, चाउल-पलंबं वा असई भज्जियं-दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो
वा भज्जियं—फासुयं एसणिज्ज" ति मण्णमाणे ° लाभे संते पडिगाहेज्जा॥ अण्णउत्थिय-गारत्थिय-सद्धि-पदं ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं" पिंडवाय-पडियाए ° पविसितुकामे
णो अण्णउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा" सद्धि गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा।
१. थंडिल्लसि (अ, छ)।
हस्त ° वृत्तौ दुभियंति । २. से जाओ (क, ब, छ)।
८. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पवितु । ३. ०क्त भज्जियं (क, च); ०क्तम- ६. सं० पा०-पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं । ___ भज्जियं (घ)।
१०. सं० पा०-एसणिज्ज जाव लाभे। ४. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पवितु । ११. सं० पा०--गाहावइकुल जाव पविसितुकामे। ५. से जाओ (क, ग, छ, ब)।
१२. परिहारिओ वा (अ, क, च, छ, ब)। ६. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाब पवितु। १३. X (अ, क, च, छ, ब)। ७. भुंजियं (क, घ, च, छ, ब); भज्जियं (अ);
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पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-पढमो उद्देसो)
८५
६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खम
माणे वा पविसमाणे वा णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज' वा पविसेज्ज वा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दुइज्जमाणे- णो अण्णउत्थिएण वा,
गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठ
समाणे णो अण्णउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स
वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जा वा अणुपदेज्जा वा ।। अस्सिपडियाए-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अण पविट्रे
समाणे सेज्ज पण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं 'समारब्भ समुद्दिस्स" कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्रियं वा, परिभत्तं वा' 'अपरिभुत्तं वा आसेवियं वा अणासेवियं वा-- अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति
मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा॥ १३. १० से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवित समाणे
सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुहिस्स काय पामिच्च अच्छेज्ज आणसट्ठ अभिहड आहटू चएइ। त तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसे वियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥
१. न प्रविशेत् नापि ततो निष्कामेत् (व)। २. ३. सं० पा०-भिक्खूणी वा जाव पविटे। ४. अस्सं ° (क, च, छ, ब, वृ)। ५. समारंभमुद्दिस्स (च,ब); समारभ ° (अ,घ)। ६. अबहिया अणीहडं (क, च)। ७. X (चू)
८.X (क)।। .. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। १०. सं० पा०-एवं बहवे साहम्मिया एगं साह
म्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावगा भाणियब्वा।
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आयारचूला
१४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा -- असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए एवं साहम्मिणि समुद्दिस्स, पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएइ । तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेविय वा - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो डिगाज्जा ।।
१५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा -- असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स, पाणाई भूयाई जोवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्टु चेएइ । तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंत रकर्ड वा, बहिया णीहड वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुक्त वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा - अफासूर्य अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
o
समण - माहणाइ- समुद्दिस्स-पदं
१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं' 'पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण - वणोमए पगणिय- पगणिय समुद्दिस्स, पाणाई वा भूयाई वा जीवाई वा सत्ताई वा समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिस अभिह आहट्टु चेएइ । तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
१७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं "पिडवाय-पडियाए अणु • पविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण - माहण - अतिहि- किवण वणीमए समुद्दिस्स, पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएइ । तं तप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अपुरिसंतरकडं, 'अबहिया
१, २. सं० पा० – गाहावइकुलं जाव पविट्टे ।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-बीओ उद्देसो)
णीहडं", अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति
मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ।। १८. अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्टियं, परिभुत्तं, ___आसेवियं-फासुय एसणिज्ज' ति मण्णमाणे लाभे संते ° पडिगाहेज्जा ॥
कुल-पदं
२०.
१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे,
सेज्जाई पुण कुलाई जाणेज्जा-इमेसु खलु कुलेसु णितिए पिंडे दिज्जइ, णितिए अग्ग-पिंडे दिज्जइ, णितिए भाए दिज्जइ, णितिए अवड्डभाए दिज्जइतहप्पगाराइं कुलाई णितियाइं णितिउमाणाई, णो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा ॥ एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए।
---त्ति बेमि॥ बीओ उद्देसो अट्ठमी-आदि-पव्व-पद २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अट्टमिपोसहिएसु वा, अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएमु वा, छमासिएसु वा उउसुवा, उउसंधीसु वा, उउपरियट्टेसु वा, बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, 'तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए'" 'चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए', कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओं वा सण्णिहि-सण्णिचयाओ वा परिएसिज्जमाणे पहाए-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अपुरिसंतरकडं,११
१. बहिया अणीहडं (अ)। २. सं० पा०-अणेसणिज्ज जाव णो। ३. सं० पा०-एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा। ४. X (क, च)। ५. एवं (घ, च, छ)। अशुद्ध प्रतिभाति ।। ६. उदुसु (च)।
७. x (च)। ८. X (अ, क, घ, च, ब)। ६. कालओ वा ततो(छ);कालओ वा तिण्णो(ब)। १०. संणिचयाओ वा तओ एवं विहं जावतियं पिंड
समणादीणं परिएसिज्जमाणं पेहाए (व)। ११. सं० पा०-अपरिसंतरकडं जाव अणासेवितं।
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आयारचूला
• अबहिया णीह, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं •, अणासेवितं - अफासुयं अणेसणिज्जं ' • तिमण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
२२. अह पुण एवं जाणेज्जा - पुरिसंतरकडं,' बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं परिभुत्तं आसेवियं – फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥
कुल-पदं
२३. से भिक्खू वा “भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठे समाणे सेज्जाई पुण कुलाई जाणेज्जा, तं जहा - उग्ग- कुलाणि वा, 'भोगकुलाणि" वा, राइण - कुलाणि वा खत्तिय कुलाणि वा, इक्खाग-कुलाणि वा, हरिवंस - कुलाणि वा, एसिय-कुलाणि वा वेसिय-कुलाणि वा गंडाग - कुलाणि वा, कोट्टाग-कुलाणि वा, गामरक्खकुलाणि वा, पोक्कसालिय' - कुलाणि वाअण्णयसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुछिएसु अगरहिएसु, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा फासूयं एसणिज्जं "ति मण्णमाणे लाभे संते • गाजा ॥
१. सं० पा० - अणेसणिज्जंणो ।
२. सं० पा० - पुरिसंतरकडं जाव आसेवियं । ३. सं० पा० – फासूयं जाव पडिगाहेज्जा । ४. सं० पा० - भिक्खू वा जाव पविट्ठे ।
महामह-पदं
२४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड गियरेसु वा, इंद- महेसु वा खंद-महेसु वा, रुद्द - महेसु वा, मुगुंदमहेसुवा, भूय-महेसु वा, जक्ख महेसु वा णाग- महेसु वा, थूभ - महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा दरि महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग' - महेसु वा, दह-महेसु वा, नई- महेसु वा, सर- महेसु वा, सागरमहेसु वा, आगर- महेसुवा - अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु, बहवे समण-माहण- अतिहि किविण वणीमए " एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहि" "उक्खाहि परिएसिज्जमाणे पेहाए, तिहिं उक्खाहि परिएसिज्जमाणे वेहाए, चउहिं उक्खाहि परिएसिज्जमाणे पेहाए, कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओ वा० सण्णिहि सण्णिचयाओ वा परिएसिज्जमाणे पेहाए - तपगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अपुरिसंतरकडं, "
५. भोज - कुलाणि ( चू) ।
६. वोक्क • ( अ, छ, ब, चू) ।
७. सं० पा० - एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा ।
o
८. लाग (घ, च, छ) ।
६. वा असणमहेसुवा (क) ।
2
१०. वणीमएसु (अ. क, च, छ, ब) अशुद्ध ं । ११. सं० पा० - दोहिं जाव सण्णिहिसण्णिचयाओ । १२. ०गयं ( अ, क, च); कयं (छ); सं० पा० - अपुरिसंतरकडं जाव णो ।
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पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-बीओ उद्देसो)
'अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं-अफासुयं अणेसणिज्ज
ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ।।। २५. अह पुण एवं जाणेज्जा-दिण्णं जं तेसि दायव्वं ।
अह तत्थ भुंजमाणे पहाए-गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिवा, कम्मकरं वा, कम्मकरि वा, से पुवामेव' आलोएज्जा-आउसि ! त्ति वा भगिणि ! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं भोयणजायं ? से सेवं वदंतस्स परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहटु दलएज्जा-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा सयं वा ण' जाएज्जा, परो वा से
देज्जा---फास्यं 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा। संखडि-पदं २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए संखडि णच्चा संखडि-पडियाए
णो अभिसंधारेज्जा गमणाए।। २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा-पाईणं संखडि णच्चा पडीणं गच्छे, अणाढायमाणे.
पडीणं संखडि णच्चा पाईणं गच्छे, अणाढायमाणे, दाहिणं संखडि णच्चा उदीणं गच्छे, अणाढायमाणे, उदीणं संखडि णच्चा दाहिणं गच्छे,
अणाढायमाणे॥ २८. जत्थेव सा संखडी सिया, तं जहा-गामंसि वा, णगरंसि वा, खेडंसि वा.
कव्वडंसि वा, मडंबंसि' वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा 'सण्णिवेसंसि वा रायहाणि सि वा–संखडि
संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । २९. केवली बूया आयाणमेयं ---संखडि संखडि-पडियाए अभिसंधारेमाणे आहा
कम्मियं वा, उद्देसियं वा, मोसजायं वा, कोयगडं वा, पामिच्चं वा, अच्छेज्ज वा, अणिसिटुं वा, अभिहडं वा आहटु दिज्जमाणं भुजेज्जा। असंजए भिक्खू-पडियाए, खुड्डिय-दुवारियाओ महल्लियाओ" कुज्जा,महल्लिय
१. पुव्व ° (क, च)।
चूर्णी-'गामादि पुत्ववणिया' इति सङ्कतेन २. आलोएज्जा पभू वा पभूसंदिट्ठो (च); प्रभु १।८।१०६ अनुक्रमः अनुसृतः । प्रभुसंदिष्टं वा ब्रूयात् (वृ)।
७. आययण° (वपा)। ३. X (घ, छ)।
८. ०ज्जायं (च, छ, ब)। ४. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। ६. अस्सं (घ, छ, ब)। ५. मंडबंसि (ब)।
१०. महाद्वाराः (वृ)। ६. रायहाणिसि वा सण्णिवेसंसि वा (वृ);
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आयारचूला
दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा, बहिं वा उवस्सयस्स' हरियाणि छिदिय-छिदिय, दालिय-दालिय, संथारगं संथरेज्जा—'एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए। तम्हा से संजए णियंढे तहप्पगारं पुरे-संखडि'
वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ३०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणोए वा सामग्गियं, जं सव्वढेहिं समिए सहिए सया जए।
-त्ति बेमि॥
तइओ उद्देसो ३१. से एगइओ अण्णतरं संखडि आसित्ता पिबित्ता छड्डेज्ज वा, वमेज्ज वा, भुत्ते
वा से णो सम्मं परिणमेज्जा, अण्णतरे वा से दुक्खे रोयातंके समुपज्जेज्जा। ३२. केवली बूया आयाणमेयं-इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा,
परिवायएहि वा, परिवाइयाहिं वा, एगझ सद्धं सोंड पाउं भो ! वतिमिस्सं हरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे णो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्सिभाव मावज्जेज्जा ॥ अण्णमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा, किलोवे वा, तं भिक्खू उवसंकमित्तु बूया-आउसंतो ! समणा ! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म -णियंतियं कट्ट, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आउट्टामो । तं चेगइओ सातिज्जेज्जा । अकरणिज्ज चेयं संखाए । एते आयाणा' सति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति । तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरे-संखडि वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडिपडियाए णो अभिसंधारेज्जा" गमणाए ।
१. कुज्जा उवासयस्स (क, छ); उवस्सयस्स ५. सद्धि (ब)।
कुज्जा (घ); उपाश्रयं संस्कुर्यात् (व)। ६. विति° (च, छ) । २. एस विलुंगयामो सिज्जाए अक्खाए (अ, छ); ७. मिश्रीभावम् ° (व)।
एस खलु गयामो सेज्जाए अक्खाए (क); ८. गाम° (चू); ग्रामासन्ने वा (वृ)। एस वि खलु गयामो सिज्जाए अक्खाए (च); ६. आयतणाणि (घ, वृ)। एस खलु गयामो सिज्जाए (ब)।
१०. X (अ, क, घ, च, छ) । ३. निग्गंथे अण्णयरं वा (घ)।
११. धारेज्ज (अ)। ४. X (क, घ, च)।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा - तइओ उद्देसो)
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३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयर संखड सोच्चा णिसम्म संपरिहावइ उस्सु भूयेण अप्पाणेणं ।
धुवा संखडी | णो संचाएइ तत्थ इतरेतरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं, वेसियं, पिडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेत्तए । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरेतरेहिं कुलेहि सामुदाणियं एसिय वेसिय, पिंडवा पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा | • नगरं वा, खेडं
३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणज्जा - गामं वा',
o
वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णवेसं वा, रायहाणि वा । इमंसि खलु गामसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वsसि वा मडंबंसि वा, पट्टणसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा, रायहाणिसि वा, संखडी सिया । तं पिय गामं वा जाव रायहाणि वा, 'संखडि-पडियाए" णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
३५. केवली बूया आयाणमेय - आइण्णावमाण' संखडि अणुपविस्समाणस्स - पाण वा पाए अक्कतपुव्वे भवइ, हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवइ, पाएण वा पाए आवडिवे भवइ, सीसेण वा सीसे संघट्टियपुव्वे भवइ, कारण वा काए संखोभियव्वे भवइ, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा अभिहयपुव्वे भवइ, सीओदएण वा ओसित्तपुब्वे भवइ, रयसा परिघासियपुव्वे' भवइ, अणेसणिज्जे वा परिभुत्तपुव्वे भवइ, अण्णेसि वा दिज्जमाणे पडिगाहियपुव्वे भवइ - तम्हा से संजए णिग्गंथे तहप्पगारं आइण्णोमाणं संखड संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्ज गमणाए ||
वा
विचिच्छिा - समावण्ण-पदं
३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्जे सिया - विचिगिच्छ" - समावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाए लेस्साए, तहप्पगारं असणं वा" "पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाज्जा |
१. अण्णयरि ( अ च ) |
२. संप्रधावति (वृ)
३. समु ० ( अ, क, च, छ) ।
४. सं० पा०—गामं वा जाव रायहाणि । ५. सं० पा०-- गामंसि वा जाव रायहाणिसि ।
२. संखडि संखडि-पडियाए ( ब ) ।
७. आइण्णो ° ( अ, घ, ब ) । अशुद्धं ।
o
८. परिज्जासित ० ( क ) ; परियासित ° ( च, छ ) । ९. ० णिज्जेण ( अ, छ) ।
१०. वितिमिच्छ ( ब ); वितिगिछ ( अ ); विचि
गिछ (छ) ।
११. सं० पा०—असणं वा लाभे ।
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१२
आयारचूला
सव्वभंडगमायाए-पदं ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं' 'पिंडवाय-पडियाए° पविसितुकामे
सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज
वा।। ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा णिक्खम
माणे वा, पविसमाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहार-भूमि वा वियार
भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणु
गामं दूइज्जेज्जा ॥ ४०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अह' पुण एवं जाणेज्जा–तिव्वदेसियं वा वासं
वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा महियं सण्णिवयमाणि' पहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छे संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं भंडगमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा। बहिया विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा।
कुल-पदं
४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण कुलाई जाणेज्जा, तं जहा–खत्तियाण
वा, राईण वा, कुराईण वा, रायपेसियाण वा, रायवंसट्ठियाण वा, अंतो वा बहि वा गच्छंताण वा, सण्णिविट्ठाण वा, णिमंतेमाणाण वा, अणिमंतेमाणाण वा असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। [एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्धेहि समिए सहिए सया जए।
–ति बेमि ॥]
१. स० पा०-गाहावइकुलं ""पविसितकामे । २. अह यं (घ, छ)। ३. ° माणं (अ, घ)। ४. तिरिच्छ (अ, क, घ, च)। ५. X (क, छ, ब); च (अ)। ६. . वंसुट्टियाणं (घ)।
७. बहियं (अ, छ); बाहियं (च); बहिया (घ)। ८. सं० पा०-असणं वा 'लाभे। ६. कोष्ठकवर्ती पाठ आदर्शषु नोपलभ्यते, किन्तु
प्रस्तुताध्ययनस्य रचनाक्रमेणासो युज्यते । उद्देशकान्ते सर्वत्र एतस्य दर्शनात् ।
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पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-चउत्थो उद्देसो)
६३
चउत्थो उद्देसो
संखडि-पदं
४२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे
समाणे सेज्जं पूण जाणेज्जा--मंसादियं वा, मच्छादियं वा, मस-खलं वा, मच्छखलं वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं' वा होरमाणं पहाए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहुओसा बहुउदया बहुउत्तिगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगा, बहवे तत्थ समण-माहण-अतिथि-किवणवणीमगा उवागता उवागमिस्संति, तत्थाइण्णावित्तो । णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए । सेव णच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडि वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि-पडियाए
णो अभिसंधारेज्ज गमणाए॥ ४३. से भिक्खु वा भिक्खुणो वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविठू समाणे
सेज्जं पुण जाणेज्जा-मसादियं वा, मच्छादियं वा, मंस-खलं वा, मच्छ-खल वा, आहेणं वा, पहेणं वा, हिंगोलं वा, संमेलं वा हीरमाणं पहाए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा. 'अप्पपाणा अप्पबीया अप्पहरिया अप्पोसा अप्पदया अप्पत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगा, णो तत्थ" बहवे समण-माहण_ 'अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता ° उवागमिस्संति, अप्पाइण्णावित्ती। पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह"-धम्माणुओगचिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरे-सडि वा, पच्छा-संखडि वा, संखडि संखडि
पडियाए अभिसंधारेज्ज गमणाए । खीरिणी-गावी-पदं ४४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं" पिंडवाय-पडियाए ° पविसितूकामे
सेज्जं पण जाणेज्जा-खीरिणीओ" गावीओ खीरिज्जमाणीओ पहाए, असणं
१. सं० पा०—भिक्षुणी वा जाव पवितु । ६. स एवं (क, च); से एवं (अ, घ) । २. मंस (घ)।
१०. सं० पा०-अप्पंडा जाव संताणगा। ३. मज्जा (घ, ब)।
११. जत्थ (अ, क, च, छ, ब)। ४. मज्ज° (घ)।
१२. सं० पा०—समण-माहण जाव उवागमि५. अहेणं (घ, ब)।
स्संति । ६. समील (च, ब)।
१३. ०पेहाए (क, ब); पेहा (च)। ७. अन्नाइण्णा (क, च); अच्चाइण्णा° (चू)। १४. सं० पा०-गाहावइ-कूलं जाव पविसितुकामे। ८. पेहाए (क, च, ब); पेहा (घ)। १५. खीरिणियाओ (क, घ, च, छ, ब)।
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आयारचूला
वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवसंखडिज्जमाणं' पहाए, पुरा अप्पजूहिए, सेवं णच्चा णो गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा।
से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिद्वेज्जा ।। ४५. अह पुण एवं जाणेज्जा - खोरिणीओ गावीओ खोरियाओ पहाए, असणं वा
पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं पहाए, पुरा पजूहिए, से एवं णच्चा
तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ माइठाण-पदं ४६. भिक्खागा णामेगे' एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे" वा, गामाणुगामं दूइज्ज
माणे-"खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, णो महालए, से हंता ! भयंतारो! बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए" वयह।" संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा परिवसंति, तं जहा-गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा। तहप्पगाराई कुलाइं पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथुयाणि वा, पुवामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अवि य इत्थ लभिस्सामि-पिडं वा, लोयं वा, खीरं वा, दधिं वा, णवणीयं वा, घयं वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महं वा, मज्जं वा, मंसं वा, संकुलिं वा, फाणियं वा, 'पूयं वा'", सिहरिणि वा, तं पुवामेव भोच्चा पेच्चा, पडिग्गहं संलिहिय संमज्जिय, तओ पच्छा भिक्खूहि सद्धिं गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिस्सामि, णिक्खमिस्सामि वा ।
माइट्ठाणं संफासे, तं णो एवं करेज्जा। ४७. से तत्थ भिक्खहिं सद्धि कालेण अणुपविसित्ता, तत्थितरेतरेहि कुलेहिं सामुदा
णियं, एसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा ॥ ४८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जए।
—ति बेमि ॥
१. उवक्खडि ° (अ, क, घ, छ, ब, चू)। ५. पडियाए (घ, ब)। २. अप्पमूहितो (क); अप्पयूहिए (घ); अप्पबू- ६. सकुलि (घ, छ); सक्कुलि (क्व) । हिए (छ)।
७. X (घ, छ, व)। ३. °नाम मेगे (ब)।
८. तत्थियराइयरेहिं (घ, ब)। ४. समाणा वा वसमाणा (च)।
६. सं० पा०-सामग्गियं"।
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पढमं अज्झयणं (पिडेसणा-पंचमो उद्देसो)
पंचमो उद्देसो ४६. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु अपविट्ठ
समाणे सेज्जं पूण जाणेज्जा-अग्ग-पिंडं उक्खिप्पमाणं पहाए, अग्ग-पिंड णिक्खिप्पमाणं पेहाए, अग्ग-पिंडं हीरमाणं पहाए, अग्ग-पिंडं परिभाइज्जमाणं पहाए, अग्ग-पिंडं परिभुज्जमाणं पहाए, अग्ग-पिंडं परिट्ठवेज्जमाणं पहाए, पुरा असिणाइ' वा, अवहाराइ वा, पुरा जत्थण्णे समण-माहण-अतिहि-किविणवणीमगा खद्धं-खद्धं उवसंकमंति-से हंता अहमवि खद्धं उवसंकमामि ।
माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा ॥ विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५०. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविढे
समाणे-अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा-सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा ॥ केवलो बूया आयाणमेयं -से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा, 'पक्खलेज्ज वा', पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, 'पक्खलमाणे वा", पवडमाणे वा, तत्थ से काये उच्चारेण वा, पासवणेण वा, खेलेण वा, सिंघाणेण वा, वंतेण वा, पित्तण वा, पूएण वा, सुक्केण वा, सोणिएण वा उवलित्ते सिया । तइप्पगारं कायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्टिए सअंडे सपाणे 'सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिग-पणग-दग-मट्टियमक्कडा • संताणए णो आमज्जेज्ज वा, णो पमज्जेज्ज वा, णो संलिहेज्ज वा, 'णो णिल्लिहेज्ज वा",णो" उव्वलेज्ज वा, णो उवट्टेज्ज वा, णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा। से पुवामेव अप्पससरक्खं तणं वा, पत्तं वा, कटुं वा, सक्करं वा जाइज्जा, जाइत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि
५१.
१. सं० पा० -भिक्खू वा जाव पविट्ठ। ६. पोगाराणि (अ); पोग्गलाणि (ब)। २. अग्रपिण्डो-निष्पन्नस्य शाल्योदनादेराहारस्य ७. x (अ, क, घ, च, ब)।
देवताद्यार्थं स्तोकस्तोकोद्वारस्तमुत्क्षिप्यमाणं ८. X (अ, क, घ, च, ब)। दृष्ट्वा (वृ)।
६. सं० पा०-सपाणे जाव संताणए। ३. असणाइ (क, ब); असिणेइ (छ)। १०. X (छ)। ४. खद्ध खद्ध (छ, ब)।
११. X (अ, क, घ, च, ब) सर्वत्र । ५. सं० पा०-भिक्खू वा जाव पवितु ।
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४५
आयारचूला
वा', अट्ठि-रासिंसि वा, किट्ट-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि, पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवट्टेज्ज वा, आयावेज्ज वा,
पयावेज्ज वा॥ वियाल-परक्कम-पदं ५२. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणो वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठ
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे पेहाए, एवं-मणुस्सं, आसं, हत्थि', सीह, वग्छ, विगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसरं, सियालं, विरालं, सुणयं, कोलसुणयं, कोकतियं, चित्ताचिल्लडयं-वियालं पडिपहे पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो
उज्जुयं गच्छेज्जा ॥ विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ५३. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ
समाणे-अंतरा से ओवाओ वा, खाणू वा, कंटए वा, घसी वा, भिलुगा वा, विसमे वा, विज्जले वा परियावज्जेज्जा-सति परक्कमे संजयामेव परक्कमज्जा,
णो उज्जुयं गच्छेज्जा ॥ कंटक-बोंदिया-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलस्स दुवार-बाहं कंटक-बोंदियाए
परिपिहियं पेहाए, तेसिं पुवामेव उग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय णो अवंगुणिज्ज वा, पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा। तेसिं पव्वामेव उग्गहं अणुण्णविय, पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय
तओ संजयामेव अवंगुणिज्ज वा, पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा ।। अणावायमसंलोय-चिट्ठण-पदं ५५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
१. सं० पा०--झामथंडिलंसि वा जाव अण्ण-
यरंसि। २. सं० पा० -भिक्खू वा जाव पवितु । ३. यथात्र किञ्चिद्गवादिकमास्त इति (वृ)। ४. पडिपहं (अ, क, च)।
५. हत्थी (अ, क, च, छ)। ६. वियालं-दृप्तम् (व) । ७. सं० पा० -भिक्खू वा जाव समाणे । ८. घसा (ब)। ६. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे ।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-पंचमो उद्दसो)
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा'-समणं वा, माहणं वा, गामपिंडोलगं वा, अतिहि
वा पुव्वपविटुं पेहाए णो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठज्जा ।। ५६. 'केवली बूया आयाणमेयं -पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा पाणं वा खाइम
वा साइमं वा आहट्ट दलएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जंणो तेसिं संलोए, सपडिदुवारे चिट्ठज्जा"। से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा,
एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा। परिभायण-संभंजण-पदं ५७. से से' परो अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा पाणं वा खाइमं वा
साइमं वा आह१ दलएज्जा, सेयं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! इमे भे असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा सव्वजणाए निसिटे, तं भुंजह वा' णं परिभाएह वा णं । तं चेगइओ पडिगाहेत्ता तुसिणीओ उवेहेज्जा, अवियाई एवं मम मेव सिया। एवं माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, तत्थ गच्छेत्ता से पुवामेव आलोएज्जा–आउसंतो समणा ! इमे भे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा सव्वजणाए णिसिद्धे, तं भुंजह वा णं, परिभाएह वा णं। 'से णेव" वदंतं परो वएज्जा-आउसंतो समणा ! तुमं चेव णं परिभाएहि । से तत्थ परिभाएमाणे णो अप्पणो खद्धं-खद्धं डायं-डायं ऊसढं-ऊसढं रसियं-रसियं मणुण्णं-मणुण्णं णिद्धं-णिद्धं लुक्खं-लुक्खं, से तत्थ अमच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहसममेव परिभाएज्जा। से णं परिभाएमाणं परो वएज्जा-आउसंतो समणा ! मा णं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगतिया भोक्खामो वा, पाहामो वा। से तत्थ भुजमाणे णो अप्पणो खद्धं खद्धं डायं डायं ऊसढं ऊसढं रसियं रसियं मणुण्णं मणुण्ण णिद्धं णिद्धं लुक्खं-लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बहुसममेव
भुंजेज्ज वा, पीएज्ज वा ॥ पुव्वपविठ्ठसमणादि-उवाइक्कमण-पदं ५८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-समणं वा, माहणं वा, गाम-पिंडोलगं वा, अतिहिं १. यथात्र गृहे श्रमणादिः कश्चित्प्रविष्ट: (व)। ६. x (अ, घ, च)। २. X (अ, क, छ, वृ)।
७. एवं (घ); अथैनं साधुमेवम् (वृ)। ३. X (घ)।
८. न गृण्हीयादिति (वृ)। ४. से एव (घ)।
8- सं० पा०-भिक्ख वा जाव समाणे। ५. व (अ, ब)।
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आयारचूला
वा पुव्वपविट्ठ पेहाए गो ते उवाइक्कम्म पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा । से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठेज्जा | ५६. अह पुणेव जाणेज्जा - पडिसेहिए व' दिन्ने वा, तओ तम्मि णियत्तिए । संजयामेव पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा ॥
දී
६०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए या जए ।
- ति बेमि° ॥
छट्ठो उद्देसो
भत्तट्ठ-समुदितपाणाणं उज्जुगमण-पदं
६१. से भिक्खू वा "भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - रसेसिणो बहुवे पाणा, घासेसणाए संथडे fa पेहाए, तं जहा - कुक्कुड- जाइयं वा, सूयर-जाइयं वा, अग्गपिंडंसि वा वायसा संथा सण्णिवइया पेहाए- -सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जयं गच्छेज्जा ।।
गाहावइकुल- पविट्ठस्स अकरणिज्ज-पदं
६२.
१. वा (छ) ।
२. एवं ( अ, क, छ, वृ ) ।
३. सं० पा० - सामग्गियं
। ४. सं० पा० - भिक्खु वा जाव समाणे । ५. ताञ्च (वृ) ।
६. सं० पा०-- भिक्खुणी वा जाव पविट्टे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा' ' गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे - नो गाहावइ - कुलस्स 'दुवार - साह" अवलंबिय- अवलंबिय चिट्ठेज्जा । नो गाहाव - कुलस्स दगच्छड्डणमत्ताए चिट्ठेज्जा । नो गाहावइ-कुलस्स चंदणिउयए चिट्ठेज्जा । नो गाहावइ - कुलस्स सिणाणस्स वा वच्चस्स वा, संलोए पडिदुवारे चिट्ठेज्जा । णो गाहावइ - कुलस्स आलोयं वा थिग्गलं वा, संधिवा, दग-भवणं वा बाहाओ परिज्भिय - पगिज्भिय, अंगुलियाए वा उद्दिसियउद्दिय, ओणमिय-ओणमिय, उष्ण मिय उण्णमिय णिज्भाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए उद्दिसिय उद्दिसिय जाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए चालियचालिय जाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए तज्जिय-तज्जिय जाएज्जा । णो गाहावई अंगुलियाए उक्खलुंपिय' - उक्खलुं पिय जाएज्जा । जो गाहावई वंदियदिय जाज्जा । ' णो व णं" फरुसं वएज्जा ॥
०
७. दुवारसामग्गियं ( अ ); दुवारवाहं ( क, च, चू); वारसाहं (घ) ।
८. चाउगुलंपिय२ (अ); उक्खलंपिय २ (क, च); उक्खुलंबिय २ (घ, व ) ।
६. णो चेव णं ( अ ) ; णो वयणं ( च, छ, ब ) ।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा -छट्टो उद्देसो)
पुरेकम आदि पर्द
६३. अह तत्थ कंचि' भुजमाणं पेहाए, तं जहा — गाहावई' वा',
गाहावइ-भारिय
वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ- पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाई वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा, ° कम्मर्कारं वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा -- उसो ! ति वा, भइणि ! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं भोयणजायं ? से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्वि वा, भायणं वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं हत्थं वा, मत्तं वा, व्वा, भायणं वा, सीओदग - वियडेण वा, उसिणोदग वियडेण वा उच्छोले हि ET, पोएहि वा, अभिकंखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।
से सेवं वयं तस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्वि वा, भायणं वा, सीओदग - वियडेण वा, उसिणोदग- वियडेण वा उच्छोलेत्ता पहोइत्ता आहट्टु दलएज्जा - तहपगारेण पुरेकम्मकएण हत्थेण वा, मत्तेण वा, दव्वीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं •ति मण्णमाणे लाभे संते • डिगाज्जा |
६४. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो पुरेकम्मकरण, उदउल्लेण । तहप्पगारेण उदउल्लेण हत्थेण वा , मत्तेण वा, दव्वीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा ।। ६५. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो उदउल्लेण, ससिणिद्वेण' । 'तहप्पगारेण ससिणिद्वेण
o
हत्थेण वा ।।
६६. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो ससिणिद्वेण, ससरक्खेण । तहप्पगारेण सस रक्खेण हत्थे वा ॥
६७. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो ससरक्खेण, मट्टिया-संसद्वेण । तहप्पगारेण मट्टियासंसद्वे हत्थे वा ॥
६८. अह पुण एवं जाणेज्जा - णो मट्टिया-संसट्टेण, ऊस- संसद्वेण । तहप्पगारेण ऊससंसण हत्थे वा ॥
१. किंचि (क, घ, छ ) ।
२. गाहावइयं (च छ) ।
३. सं० पा० गाहावई वा जाव कम्मर्कारिं । ४. सं० पा० - अणेस णिज्जं जाव णो ।
५. अतः ८१ सूत्रपर्यन्तं 'देज्जा' इति क्रियापदमध्याहार्यम् ।
६. सं० पा० - अफासूयं जाव णो ।
६६
७. सं० पा० समिणिद्वेण सेस तं चेव एवं ससरक्खे मट्टिया ऊसे, हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वण्णिय सेडिय, सोरट्टिय पिट्ठ कुक्कस उक्कुट्ट संसद्वेण । ८. अतः ८० सूत्रपर्यन्तं पूर्णपाठार्थं १।६४ सूत्रं
द्रष्टव्यम् ।
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१००
आयारचूला ६९. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो ऊस-संसट्टेण, हरियाल-संसट्ठण। तहप्पगारेण
हरियाल-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ७०. अह पुण एवं जाणेज्जा-णो हरियाल-संसट्टेण, हिंगुलय-संसट्ठण। तहप्पगारेण
हिंगुलय-संसटेण हत्थेण वा ।। ७१. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो हिंगुलय-संसटेण, मणोसिला-संसटेण । तहप्पगारेण
मणोसिला-संसद्रुण हत्थेण वा ।। ७२. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो मणोसिला-संसट्टेण, अंजण-संस?ण। तहप्पगारेण
अंजण-संस?ण हत्थेण वा ॥ ७३. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो अंजण-संसट्टेण, लोण-संसटेण। तहप्पगारेण लोण
संसद्वेण हत्थेण वा ॥ ७४. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो लोण-संसट्टेण, गेरुय-संसट्टेण । तहप्पगारेण गेरुय
संसटेण हत्थेण वा ॥ अह पुण एवं जाणेज्जा-णो गेरुय-संसद्रुण, वण्णिया-संसटेण। तहप्पगारेण
वणिया-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ७६. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो वण्णिया-संसद्वेण, सेडिया-संसद्वेण । तहप्पगारेण
सेडिया-संसद्रुण हत्थेण वा ।। ७७. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो सेडिया-संसट्ठण, सोरट्ठिया-संसट्टेण । तहप्पगारेण
सोरट्ठिया-संसद्रुण हत्थेण वा ।। ७८. अह पुण एवं जाणेज्जा--णो सोरट्ठिया-संसट्टेण, पिट्ठ-संसद्वेण । तहप्पगारेण पिट्ठ
संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ७६. अह पुण एवं जाणेज्जा –णो पिट्ठ-संसटेण, कुक्कस-संसट्ठण। तहप्पगारेण
कुक्कस-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ८०. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो कुक्कस-संसट्टेण, उक्कुट्ठ'-संसट्टेण। तहप्पगारेण
उक्कुट्ठ-संसद्रुण हत्थेण वा ॥ ८१. अह पुण एवं जाणेज्जा–णो 'असंसद्धे, संसट्टे'। तहप्पगारेण संसट्टेण हत्थेण
वा, मत्तेण वा, दव्वीए वा, भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा फासुयं 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा' ।।
१. सेढिय (क)। २. उक्किट्ठ (क)। ३. पूर्वपरिपाट्या एतत् पदद्वयमपि तृतीयान्तं
युज्यते, किन्तु आदर्शेषु प्रथमान्तं लिखितमस्ति, वत्तिकृतापि तथैव व्याख्यातमस्ति, तेन यया लब्ध एव पाठः स्वीकृतः ।
४. सं. पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा । ५. अह पुणेवं जाणेज्जा असंसढे तहप्पगारेण
संसट्टेण हत्थेण वा ४ असणं वा ४ फासुर्य जाव पडिगाहेज्जा 'छ' प्रतौ एतत् सूत्रमधिकमस्ति ।
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पढम अज्झयणं (पिडेसणा-छट्ठो उद्देसो) पिहुय-आदि-कोट्टण-पदं ८२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ.समाणे °
सेज्जं पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा, बहुरयं वा', 'भज्जियं वा, मथु वा, चाउलं वा°, चाउलपलबं वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए', 'चित्तमंताए लेलुए. कोलावासंसि वा दारुए जीवपइदिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय ° -मक्कडासंताणाए कोटेसु वा, कोट्टिति वा, कोट्टिस्संति वा, उप्पणिसु वा, उप्पणिति वा, उप्पणिस्संति वा - तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलंबं वा-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे
संते° णो पडिगाहेज्जा॥ लोण-पदं ८३. से भिक्खू वा भिक्खु णी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए चित्तमंताए सिलाए', 'चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणाए भिदिसु वा, भिंदंति वा, भिदिस्संति वा, रुचिसु वा, रुचिति वा, रुचिस्संति वा-बिल वा लोणं, उब्भियं वा लोणं-अफासुयं
•अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ॥ अगणि-णिक्खित्त-पदं ८४. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सेज्ज पण जाणेज्जा- असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा अगणिणिक्खित्तं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं"
'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ८५. केवली बूया आयाणमयं - अस्संजए" भिक्खु-पडियाए उस्सिचमाणे वा, निस्सि
चमाणे वा, आमज्जमाणे वा, पमज्जमाणे वा, ओयारेमाणे वा, उव्वत्तमाणे वा, अगणिजीवे हिंसेज्जा।
१. सं० पा०--भिक्खू वा से ज्ज । २. सं० पा०-बहुरयं वा जाव चाउलपलंबं । ३. सं० पा० -सिलाए जाव मक्कडा। ४. उप्फ° (अ, क, च)। ५. सं० पा०--अफासुयं जाव णो। ६. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे ।
७. सं० पा० ---सिलाए जाव सताणाए। ८. सं० पा०–अफासुयं जाव णो । ६. सं० पा०—भिक्ख वा जाव समाणे । १०. सं० पा०-अफासुयं लाभे । ११. असंजए (छ)। १२. ओयत्तेमाणे (अ, क); पवत्तेमाणे (छ)।
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१०२
आयारचूला अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणि-णिक्खित्तं-अफासुयं
अणेसणिज्जं 'ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। ८६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए।
-ति बेमि ॥ सत्तमो उद्देसो मालोहड-पदं ८७. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा--असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा खंधंसि वा, थंभंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा. हम्मियतलंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उणि क्खित्ते सिया-तहप्पगार मालोहडं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुय' अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा। ८८. केवली बूया आयाण मेयं-अस्संजए भिक्खु-पडियाए पीढं वा, फलगं वा,
णिस्सेणि वा, उदूहलं वा, अवहट्ट उस्सविय आरुहेज्जा । से तत्थ दुरुहमाणे पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा, पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा, अण्णयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जोवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा--तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो
पडिगाहेज्जा॥ ८६. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि?
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा कोट्ठियाओ वा, कोलज्जाओं वा, अस्संजए भिक्खु-पडियाए उक्कुज्जिय, अवउज्जिय,
१. स० पा०-अणेसणिज्ज लाभे।
५. दूहमाणे (घ)। २. सं० पा०—भिवखू वा जाव समाणे ।
६. बाहं (अ, क, घ, ब)। ३. सं० पा०–अफासुयं जाव णो।
७. सं० पा०-असणं वा ४ लाभे। ४. दहेज्जा (अ, ब); दूहिज्जा (घ); दुरु- ८. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे । हेज्जा (च)।
६. कोलेज्जाओ (क, च); कोलिज्जाओ (घ)।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा - सत्तमो उद्देसो)
१०३
ओहरिय, आहट्टु दलएज्जा - तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा मालोहड' ति णच्चा लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
मट्टिओलित्त-पदं
६०. से भिक्खू वा' •भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे ० समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा मट्टिओलित्तं'--तहप्पगारं असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
.
६१. केवली बूया आयाणमेयं - अस्संजए भिक्खू-पडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा पाणं खाइ वा साइमं वा उब्भिदमाणे पुढवीकायं समारंभेज्जा, तह तेउ-वाउवणस्सइ-तसकायं समारंभेज्जा, पुणरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेज्जा । अह भिक्खूण पुव्वोवदिट्ठा" "एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो पारं मट्टिओलित्तं असणं वा 'पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं अणेसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥
पुढविकाय-पइट्ठिय-पदं
९२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा " गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु प्पविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणज्जा -- असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुढविकाय-पइट्ठियं ---तहप्पगारं असणं वा 'पाण वा खाइमं वा साइमं वा पुढविकाय पट्टियं अफासुय' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
गाजा ||
o
आउकाय-पइट्ठिय-पदं
९३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" "गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्टे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउकाय-पइट्ठियं–तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आउकायपइट्ठियं-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
१. माला (छ) ।
२. सं० पा०-- भिक्खू वा जाव समाणे । ३. ० ओवलित्तं (घ, छ) ।
४. सं० पा० -असणं वा ४ जाव लाभे । ५. सं० पा० - पुव्वोवदिट्ठा जाव जं ।
६. सं० पा० असणं वा ४ लाभे ।
७. सं० पा० - भिक्खुणी वा जाव पविट्टे ।
८. सं० पा० - असणं वा ४ अफासुयं ।
६. स० पा०- अफासु जाव णो ।
१०. सं० पा० - भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्टियं तह चेव । एवं affarnagi लाभे ।
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१०४
आयारचूला
ह
अगणिकाय-पइट्ठिय-पदं ६४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकायपइद्वियं-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकायपइट्ठियं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ केवली बूया आयाणमेयं-अस्सजए भिक्खु-पडियाए अगणि ओसक्किय', णिस्सक्कियः, ओहरिय, आहट्ट दलएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे, जं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिकाय-पइट्ठियं
अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ॥ अच्चुसिण-वीयण-पदं ६६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविढे समाणे
सेज्जं पण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा अच्चसिणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए सूवेण' वा, विहुवर्णण वा, तालियंटेण वा, ‘पत्तेण वा", साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज्ज वा, वीएज्ज वा। से पुवामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा, भगिणि! त्ति वा मा एयं तुमं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अच्चुसिणं सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुणहत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमाहि वा, वीयाहि वा, अभिकखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।। से सेवं वदंतस्स परो सूवेण वा जाव फुमित्ता वा, वीइत्ता वा आहट्ट दलएज्जा-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं
'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। वणस्सइकाय-पइट्ठिय-पदं ६७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे ° समाणे
१. उस्सक्किय (क, घ, च); उस्सिक्किय (छ); ५. सुप्पेण (अ, च); ___ ओसिक्किय (अ)।
६. विहुयणेण (अ, क, घ, च) । २. णिस्सिक्किय (अ, छ, ब)।
७. X (ध, वृ)। ३. सं० पा०-पुव्वोवदिट्ठा जाव णो। ८. सं० पा०-अफासुयं जाव णो। ४. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पवितु । ६. सं० पा०-भिक्ख वा जाव समाणे ।
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पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-सत्तमो उद्देसो)
सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सइकायपइद्वियं-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वणस्सइकाय
पइट्ठियं -अफासुयं अणेसणिज्ज 'ति मण्णमाणे ° लाभे सते णो पडिगाहेज्जा। तसकाय-पइट्ठिय-पदं ६८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सेज्ज पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा तसकायपइट्ठिय-तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा तसकाय
पइट्ठियं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाण लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पाणग-जाय-पदं ६६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठ
समाणे सेज्जं पुण 'पाणग-जायं" जाणेज्जा, तं जहा--उस्सेइम वा, संसेइम वा, चाउलोदगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं अहुणा-धोयं, अणं बिलं, अव्वोक्कत', अपरिणयं, अविद्धत्थं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ . १००. अह पुण एव जाणेज्जा--चिराधोयं, अंबिलं, वुक्कतं', परिणयं, विद्धत्थं
फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ° पडिगाहेज्जा ।। १०१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठ
समाणे सेज्ज पुण 'पाणग-जायं" जाणेज्जा, तं जहा--तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयाम वा, सोवीरं वा, सुद्ध-वियर्ड वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं पुवामेव आलोएज्जा–आउसो ! त्ति वा भगिणी ! ति वा, दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं पाणग-जायं ? से सेवं वदंत परो वदेज्जा-आउसंतो ! समणा ! तुम चेवेदं पाणग-जायं पडिग्गहेण वा उस्सिचियाणं, ओयत्तियाणं गिण्हाहि-तहप्पगारं पाणग-जायं सयं वा गिण्हेज्जा, परो वा से देज्जा--फासुयं" 'एसणिज्ज ति मण्णमाणे
लाभे संते पडिगाहेज्जा। १. सं० पा०–अणेसणिज्ज लाभे ।
८. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पवितु । २. सं० पा०–एवं तसकाए वि ।
६. पाणगं (क, च)। ३. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पवितु। १०. वयंतस्स (घ)। ४. पाणगं (घ, ब)।
११. पडिग्गहेण वा मत्तएण वा(च);पडिगाहेण(छ) ५. अवुक्कतं (घ); अवोक्कंत (छ)। १२. वा णं (अ)। ६. वक्तं (छ)।
१३. सं० पा०-फासुयं लाभे संते जाव पडिगा७. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। हेज्जा ।
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१०६
आयारचूला १०२ से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
समाणे सेज्जं पुण 'पाणग-जाय जाणेज्जा- अणंतरहियाए पुढवीए', 'ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंत्ताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा सताणए ओद्धटुं निविखत्ते सिया। असंजए भिक्खु-पडियाए उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा, सकसाएण वा, मत्तेण वा, सीओदएण वा संभोएत्ता आहट्ट दलएज्जा-तहप्पगारं पाणग-जायं
अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । १०३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्व?हिं समिए सहिए सया जए।
-ति बेमि ° ॥ अट्ठमो उद्देसो १०४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविढे
समाणे सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा अंब-पाणगं वा, अंबाडगपाणगं वा, कविट्ठ-पाणगं वा, मातुलिंग'-पाणगं वा, मुद्दिया-पाणगं वा, दाडिमपाणगं वा, खज्जूर-पाणगं वा, णालिएर-पाणगं वा, करीर-पाणगं वा, कोलपाणगं वा, आमलग-पाणगं वा, चिचा-पाणगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं सअट्टियं सकणुयं सबीयगं अस्संजए भिक्खु-पडियाए छब्बेण" वा, दूसेण" वा, वालगेण वा, आवीलियाण वा, परिपीलियाण वा, परिस्सावियाण आहटु दलएज्जा-तहप्पगारं पाणग-जायं-अफासुयं" 'अणेसणिज्ज ति
मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ . गंध-आघायण-पदं १०५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा५ 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्ठ
१. स० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे ।
(च)। २. पाणगं (चू, वृ, च)।
६. असंजए (क, च)। ३. सं० पा०-पुढवीए जाव संताणए। १०. छप्पेण (अ, च); छद्रुण (घ) । ४. ओहट्ट (क)।
११. दूयेण (छ)। ५. सं० पा०-अफासुय'लाभे ।
१२. परिसाइयाण (क,छ,ब); परिसावियाण(घ)। ६. सं० पा०-सामग्गियं ।
१३. अहप्पगारं (घ)। ७. सं० पा०—भिवखुणी वा जाव पवितु। १४. सं० पा०—-अफासुयं 'लाभे । ८. मातुलुंग (अ, छ); मातुलेंग (क); मातुलंग १५. सं० पा०—भिवखुणी वा जाव पवितु ।
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पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-- अट्ठमो उद्देसो)
१०७ समाणे से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा-अन्न-गंधाणि वा, पाण-गंधाणि वा, सुरभि-गंधाणि वा अग्घाय'-अग्घायसे तत्थ आसाय-पडियाए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने अहोगंधो-अहोगंधो
णो गंधमाघाएज्जा॥ सालुय-आदि-पदं १०६. से भिक्खू वा 'भिवखुणी वा गाहाव इ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि?
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-सालुयं वा, विरालियं वा, सासवणालियं वाअण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं-अफासुयं' 'अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पिप्पलि-आदि-पदं १०७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविद्वे
समाण सेज्ज पुण जाणेज्जा --पिप्पलिं' वा, पिप्पलि-चुण्णं वा, मिरियं वा, मिरिय-चुण्णं वा, सिंगबेरं वा, सिंगबेर-चुण्णं वा- अण्णतरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं-- अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो
पडिगाहेज्जा ॥ पलंब-जाय-पदं १०८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु ° पविट्टे
समाणे सेज्ज पुण पलंब-जायं जाणेज्जा, तं जहा- अंब-पलंबं वा, अंबाडगपलंबं वा. ताल-पलंब वा, झिझिरि-पलंबं वा. सरभि-पलंब वा. सल्ल. पलंबं वा--अण्णयरं वा तहप्पगारं पलंब-जायं आमगं असत्थपरिणयं-अफासूयं
अणेसणिज्ज" ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पवाल-जाय-पदं १०६. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा२ 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अण पविटे
समाणे सेज्ज पुण पवाल-जायं जाणेज्जा, तं जहा-आसोत्थ-पवालं वा,
१. आघाय (अ, क, च)। २. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ३. सं० पा०–अफासुयं जाव लाभे । ४. सं० पा०—भिक्खुणी वा जाव पवितु । ५. पिप्पिलि (छ)। ६. सं० पा०–अफासुयं जाव णो। ७. सं० पा०—भिक्खुगी वा जाव पविट्ठ ।
८. पलंवग (ब)। ६. झिल्लिर (अ); झिझिर (घ, छ) । १०. सुरघु (छ)। ११. सं० पा०-अणेसणिज्जं जाव लाभे । १२. सं० पा०-भिक्खुणी वा जाव पविट्ठ । १३. आसोट (क, घ); आसत्थ (छ); आस?
(वृ)।
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१०८
आयारचूला
गोह'- पवालं वा, पिलुंखु पवालं वा, णीपूर - पवालं वा, सल्लइ पवालं वाअण्णयरं वा तहप्पगारं पवाल - जायं आमगं असत्यपरिणयं - अफासुयं अणेसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा |
सरडुय-जाय-पदं
११०. से भिक्खू वा* •भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे ' समाणे सेज्जं पुण सरडुय-जायं जाणेज्जा, त जहा - अंब - सरडुयं वा अंबाडगसरडुयं वा कवि-सरडुयं वा, दाडिम-सरडुयं वा, विल्ल' - सरडुयं वा - अण्णय रं वा तप्पगारं सरडुय जायं आमगं असत्यपरिणयं - अफासुयं' 'अणेस णिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाज्जा |
मंथु-जय-पदं
o
१११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु पविट्ठे समा सेज्जं पुण मथु-जाय जाणेज्जा, तं जहा उंबर-मंथं वा, णग्गोह-मंथु वा, पिलुंखु -मंथं वा, आसोत्थ-मंथु वा - अण्णयरं वा तहप्पगारं मंथु जायं आमयं दुरुक्कं साणुबीयं - अफासुयं " अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • डिगाज्जा |
आमडाग आदि-पदं
११२. से भिक्खू वा? • भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे' समाणे सज्ज पुण जाणेज्जा - आमडागं वा, पूइपिण्णागं वा, महुं वा, 'मज्जं वा", सप्पि वा, खोल वा पुराणगं । एत्थ पाणा अणुष्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्थ पाणा संबुड्ढा, एत्थ पाणा अवुक्कंता", एत्थ पाणा अपरिणया, एत्थ पाणा अविद्धत्था"--अफासुयं अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ उच्छु- मेरग-आदि-पदं
११३. से भिक्खू वा" • भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्टे •
१. णिग्गोह (छ) .
२. णीयूर ( अ, घ, छ, ब) ।
३. स० पा० – अणेसणिज्जं जाव णो ।
४. सं० पा० - भिक्खू वा जाव समाणे ।
५. अबद्धास्थिफलम् (वृ) ।
६. फिल्ल ( क ) ; पिल्ल (घ ) ।
७. वा पिप्पल्लि (च ) ।
८. सं० पा०- - अफासुर्य जाव णो ।
६. सं० पा० – भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे ।
१०. पिलक्खु ( क च ) |
११. सं० पा० - अफासुयं जाव णो ।
१२. सं० पा०- - भिक्खू वा जाव समाणे । १३. × (चू) ।
१४. वक्कंता (क, छ); ऽवक्कंता (च) ; वुक्कंता
(ब) ।
१५. णो विद्धत्था (घ, छ) ।
१६. सं० पा० - भिक्खू वा जाव समाणे ।
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पढमं अज्झयण (पिंडेसणा-अट्ठमो उद्देसो)
१०६ समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-उच्छु-मेरगं वा, अंक-करेलुयं वा, कसेरुगं वा, सिंघाडगं वा, पूतिआलुगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमगं असत्थपरिणयं
'अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा ॥ उप्पल-आदि-पदं ११४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-उप्पलं वा, उप्पल-नाल वा, भिसं वा, भिसमुणालं वा, पोक्खलं वा, पोक्खल-विभंग' वा-अण्णतरं वा तहप्पगारं' आमगं असत्थपरिणयं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगा
हेज्जा । अग्गबीय-आदि-पदं ११५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-अग्ग-बीयाणि वा, मूल-बीयाणि वा, खंधबीयाणि वा, पोर-बीयाणि वा, अग्ग-जायाणि वा, मूल-जायाणि वा, खंधजायाणि वा, पोर-जायाणि वा, णण्णत्थ' तक्कलि-मत्थएण वा, तक्कलि-सीसेण वा, णालिएरि-मत्थएण वा, खज्जूरि -मत्थएण वा, ताल-मत्थएण वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थ
परिणयं-- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ' णो पडिगाहेज्जा ।। उच्छु-पदं ११६. से भिक्खू वा" 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-उच्छु वा काणगं" अंगारियं संमिस्सं विगदूमिय', वेत्तरगं" वा, कंदलीऊसुयं" वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयंअफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
१. सं० पा०-असत्यपरिणयं जाव णो। २. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ३. विभाग (क, च)। ४. सं० पा०-नहपगारं जाव णो। ५. सं० पा०-.-भित्रखू वा जाव समाणे। ६. अण्णत्थ (चू)। ७. णालिएर (अ, च, ब) । ८. खज्जूर (ब)। ६. सं० पा०-असत्थपरिणयं जाव णो। १०. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे ।
११. काण (घ, ब)। १२. वइदूमिय (अ); विगदूसिय (घ, ब); वियि
दूमियं (छ)। १३. वेत्तगं (अ); वित्तज्जगं (घ); वेत्तगागं (छ)। १४. ° उस्सुगं (चू); ° ऊसिगं (छ); चूर्णी
अन्येपि शब्दा दृश्यन्ते-कलतो सिम्बाकलो चणगो, ओली सिंगा तस्स चेव, एवं मुग्ग
मासाणावि। १५. सं० पा०-असत्थपरिणयं जाव णो।
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असत्थपरि
११०
आयारचूला लसुण-पदं ११७. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-लसुणं वा, लसुण-पत्तं वा, लसुण-नालं वा, लसूण-कंदं वा, लसूण-चोयगं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं'
- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ।। अस्थिय-आदि-पदं ११८. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-अत्थियं वा कुंभिपक्कं, तिदुगं वा, वेलुयं वा, कासवणालियं वा-अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणय- अफासुयं
अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। कण-आदि-पदं ११६. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे °
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-कणं वा, कण-कुंडगं वा, कण-पूयलियं वा, चाउलं वा, चाउल-पिटुं वा, तिलं वा, तिल-पिटुं वा, तिल-पप्पडगं वाअण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा। १२०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं", "जं सव्वद्वेहि समिए सहिए सया जए।
–ति बेमि° ॥ नवमो उद्देसो पच्छाकम्म-पदं १२१. इह खलु पाईणं वा, पडोणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति
गाहावई वा.१२ गाहावइणीओ वा. गाहावइ-पत्ता वा. गाहावइ-धयाओ वा. गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा,° कम्मकरीओ वा तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ-जे इमे भवंति समणा भगवंतो
१. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । २. चोयं (क, ध, च, छ. ब)। ३. सं० पा०--असत्यपरिणयं जाव णो। ४. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे। ५. अच्छियं (च)। ६. पेल्लुगं (क); पलुगं (च) ।
७. सं० पा०-असत्थपरिणय जाव णो। ८. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ६. पूलि (क, च छ, ब)। १०. सं० पा०--असत्थपरिणयं जाव णो। ११. सं० पा०--सामग्गिय । १२. सं० पा०—गाहावई वा जाव कम्मकरीओ।
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१११
पढम अज्झयणं (पिंडेसणा-नवमो उद्देसो)
सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एएसि कप्पइ आहाकम्मिए असणे' वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायत्तए वा। सेज्ज पुण इमं अम्हं अप्पणो अट्ठाए' णिट्ठियं, तं जहा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा सव्वमेय समणाणं णिसिरामो, अवियाइं वयं पच्छा वि अप्पणो अट्टाए असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा चेइस्सामो । एयप्पगार णिग्घोस सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम वा
अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। पुरापच्छासंथुय-कुल-पदं १२२. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा, 'समाणे वा, वसमाणे वा', गामाणुगाम वा
दूइज्जमाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा-गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा,° रायहाणि वा। इमंसि खलु गामंसि वा, णगरंसि वा, खेडंसि वा कव्वदंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा,° रायहाणिसि वा–संतेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंथुया वा, पच्छासंथुया वा परिवसंति, तं जहा-गाहावई वा, 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओवा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरोओ वा। तहप्पगाराइं कुलाई णो पुवामेव भत्ताए वा, पाणाए वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। केवली बूया आयाणमेयं-पुरा पेहाए 'तस्स परो अट्ठाए'' असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा उवकरेज्ज वा, उवक्खडेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ एस कारणं, एस उवएसो, जंणो तहप्पगाराइं कुलाई पुवामेव भत्ताए वा, पाणाए वा पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा । से तमायाए एगतमवक्कमेज्जा, एगतमवक्कमेत्ता अणावायमसंलोए चिट्ठज्जा । से तत्थ कालेणं अणुपविसेज्जा, अणुपविसेत्ता तत्थियरेयरेहि
१२३.
१. असणं (क)।
६. सं० पा० --गामं वा जाव रायहाणि । २. पात्तए (क); पायए (च); पाएतए (घ)। ७. सं० पा०—गामंसि वा जाव रायहाणिसि । ३. सयट्टाए (अ, क, च)।
८. पुव्व ° (ब)। ४. सं० पा०-अणेसणिज्जं जाव लाभे। . सं० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ५. सभाणे वसमाणे वा (क, च, ब); समाणे १०. अस्य स्थाने ११५६ सूत्रे 'तस्सट्टाए परो' (घ, छ)।
इत्येवं रूपः पाठः।
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११२
आयारचूला
कुलेहि सामुदाणियं, एसियं, वेसियं, पिंडवायं एसित्ता आहारं आहारेज्जा। सिया से परो कालेण अणुपविट्ठस्स आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवकरेज्ज वा, उवक्खडेज्ज वा । तं चेगइओ तुसिणीओ उवेहेज्जा, आहडमेव पच्चाइक्खिस्सामि । माइट्ठाण संफासे, णो एवं करेज्जा । से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा, भगिणि ! त्ति वा, णो खलु मे कप्पइ आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा, पायए वा। मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि । से सेवं वयंतस्स परो आहाकम्मियं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेत्ता आहटु दलएज्जा। तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे°
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। गिलाण-पदं १२४. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा-मंसं वा मच्छं वा भज्जिज्जमाणं' पेहाए, तेल्लपूयं वा आएसाए उवक्खडिज्जमाणं पेहाए, णो खद्धं-खद्धं उवसंकमित्त
ओभासेज्जा', णन्नत्थ गिलाणाए । माइट्ठाण-पदं १२५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणपविट्रे
समाणे अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता सुब्भि-सुभि भोच्चा दुब्भि-दुभि परिवेइ । माइट्टाणं संफासे, णो एवं करेज्जा।
सुभि वा दुभि वा, सव्वं भुजे न छड्डए॥ १२६. से भिक्ख वा 'भिक्खुणो वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्रे'
समाणे अण्णतरं वा पाणग-जायं पडिगाहेत्ता पुप्फ-पुप्फ" आविइत्ता" कसायंकसायं परिवेइ। माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। पुप्फ पुप्फेति वा,
कसायं कसाए त्ति वा सव्वमेयं भुजेज्जा, णो किंचि वि परिवेज्जा ।। १२७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुपरियावण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता"
१. समुदा° (क, घ, च, छ. ब)। २. सं० पा०-अफासुयं लाभे । ३. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे। ४. भिज्जमाणं (अ); भज्जमानमिति (वृ)। ५. पेहाए सक्कुलि वा (चू)। ६. याचेत (वृ)। ७. गिलाणीए (अ, क, च); गिलाणणीसाए(छ)।
८. सं० पा०—भिवखू वा जाव समाणे । ६. साति° (ब)। १०. सं० पा०-भिवख वा जाव समाणे । ११. वर्णगन्धोपेतं पुष्पं तद् विपरीतं कषायम(व)। १२. आवेइत्ता (च); आवीइत्ता (छ)। १३. पडिगाहेत्ता बहवे (अ, छ, ब)।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-दसमो उद्देसो)
साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया। तेसिं अणालोइया' अणामंतिया' परिढुवेइ । माइट्टाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता से पुवामेव आलोएज्जा-आउसंतो! समणा ! इमे मे असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा बहुपरियावण्णे, तं भुंजह णं । से सेवं वयंतं परो वएज्जा-आउसंतो ! समणा ! आहारमेयं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा जावइयं-जावइयं परिसडइ', तावइयं-तावइयं भोक्खामो
वा, पाहामो वा । सव्वमेयं परिसडइ, सव्वमेयं भोक्खामो वा, पाहामो वा ॥ बहिया नीहड-पदं १२८. से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ
समाणे° सेज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परं समुद्दिस्स बहिया णीहडं, जं परेहिं असमणुण्णायं अणिसिटुं-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा। जं" परेहि समणुण्णायं सम्म" णिसिटुं–फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे °
लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ १२६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, 'जं सव्वद्वेहि समिए सहिए सया जए।
–ति बेमि ॥ दसमो उद्देसो माइट्ठाण-पदं १३०. से एगइओ साहारणं वा पिंडवायं पडिगाहेत्ता, ते साहम्मिए अणापुच्छित्ता
जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्धं-खद्धं दलाति"। माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता" वएज्जा-आउसंतो !
१. ० इय (च, छ)। २. मंते (घ)। ३. असणं (क)। ४. व णं (अ, ब)। ५. सरइ (घ, च, छ)। ६. °सरइ (घ, च)। ७. सं० पा०—भिक्खू वा सेज्जं । ८. तं (अ, क, घ, च)। ६. सं० पा०-अफासुयं जाव णो।
१०. तं (अ, क, घ, च)। ११. सम (अ, क, घ, ब)। १२. सं० पा०-फासुयं लाभे संते जाव पडिगा
हेज्जा। १३. सं० पा०—सामग्गियं । १४. दलयति (अ)। १५. गच्छेत्ता पुवामेव (अ, छ, ब)। १६. आलोएज्जा (ब)।
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११४
आयारचूला
समणा ! संति मम पुरे - संथया वा, पच्छा-संथया वा, तं जहा - आयरिए वा, उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा, गणावच्छेइए वा । अवियाई एएसि खद्धं खद्धं दाहामि ।
'से णेवं" वयंतं परो वएज्जा -- कामं खलु आउसो ! अहापज्जत्तं णिसिराहि' । जावइयं जावइयं परो वयइ, तावइयं तावइयं णिसिरेज्जा । सव्वमेयं परो वयइ, सव्वमेयं णिसिरेज्जा |
१३१. से एगइओ मणुण्णं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता पंतेण भोयणेण पलिच्छाएति मामेयं दाइयं संतं, दट्ठूणं सयमायए । आयरिए वा", "उवज्झाए वा, पवत्ती वा, थेरे वा, गणी वा, गणहरे वा गणावच्छेइए वा । णो खलु मे कस्सइ किंचि वि दायव्वं सिया । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा | से तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे पडिग्गहं कट्टु - 'इमं खलु" इमं खलु त्ति आलोएज्जा, णो किंचि वि णिगृहेज्जा ॥
१३२. से एगइओ अण्णतरं भोयण-जायं पडिगाहेत्ता भद्दयं भद्दयं भोच्चा, विवन्नं विरसमाहरइ । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा ।।
बहुउभय- धम्मिय-पदं
१३३ . से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे • सेज्जं पुण जाणेज्जा -- अंतरुच्छ्रयं वा, उच्छु-गंडियं वा, उच्छु-चोयगं वा, उच्छु- मेरुगं वा, उच्छु- सालगं वा, उच्छु- डगलं' वा, सिबलि' वा, सिंबलिथालगं" वा । अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे सिया" भोयणजाए, बहुउज्झियधम्मिए । तह पगारं अंतरुच्छ्रयं वा जाव सिबलि-थालगं वा - अफासुयं 'अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगा हेज्जा |
१. सेवं (घ ) ।
२. सिराह ( अ, छ) ।
३. भोयणे जाईण (घ) ।
४. सं० पा० - आयरिए वा जाव गणावच्छेइए । ५. x (क, ध, छ, ब) ।
६. सं० पा० - भिक्खू वा सेज्जं ।
७. ० मेरगं ( अ, ब ) ।
८. आचाराङ्गस्य १।१० वृत्तौ -- ' डालगं' ति शाखैकदेशः ! ७/२ वृत्ती - 'डालगं' आम्रश्लक्ष्णखण्डानि इति लभ्यते किन्तु
ति
निशीथस्य षोडशोद्देशे डगलं' पाठो लभ्यते । तद् भाष्यचूर्णी डगलस्यार्थो विहितः । भाष्ये यथा—'डगलं' चक्कलिछेदो (५४११ ) ; चूर्णो यथा - चक्कलिछेदे छिण्णं डगलं भण्णति ( भा० ४ पृष्ठ ६६ ) । आचारांगे लिपिदोषतः परिवर्तनमिदं जातमिति संभाव्यते । ९. संबलि ( अ, क, च, छ); संपलि ( ब ) । थालियं ( अ ) ।
१०.
११.
१२.
x (क, घ, च, छ) ।
सं० पा० - अफासुयं जाव णो ।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा-दसमो उद्देसो)
११५ १३४. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे
समाणे ° सेज्ज पुण जाणेज्जा-बहु-अट्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं । अस्सि खलु पडिग्गहियंसि, अप्पेसिया भोयण-जाए, बहउज्झियधम्मिए। तहप्पगारं बहु-अठ्ठियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ १३५. से भिक्खू वा' 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविटे
समाणे सिया णं परो बहु-अट्ठिएण मंसेण उवणिमंतेज्जा-आउसंतो! समणा ! अभिकखसि बहु-अद्वियं मंस पडिगाहित्तए? एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा, भइणि ! त्ति वा, णो खलु मे कप्पइ से बहु-अट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए, अभिकंखसि मे दाउं जावइयं, तावइयं पोग्गलं दलयाहि, मा अट्ठियाइं। से सेवं वयंतस्स परो अभिहट्ट अंतोपडिग्गहगंसि बहु-अट्ठिय मसं परिभाएत्ता' णिहटु दलएज्जा। तहप्पगारं पडिग्गहगं' परहत्थसि वा, परपायंसि वाअफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णोहि त्ति वएज्जा, णो अणहित्ति वएज्जा। से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अप्पंडए' 'अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पुदए अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणए मंसगं मच्छगं° भोच्चा अट्रियाई कंटए गहाय, से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा", 'अट्ठि-रासिसि वा, किट्ट-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय
रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिले हिय °,
पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव परिढवेज्जा ।। अजाणया लोण-दाण-पदं १३६. से भिक्खू वा२ •भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपवि? '
समाणे सिया से परो अभिहट्ट अंतो-पडिग्गहए बिलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं
१. सं० पा०—भिक्खू वा सेज्ज ।
८. अणिहित्ति (छ)। २. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे। ६. सं० पा०-अप्पंडए जाव संताणए। ३. मसेण मच्छेण (अ, ब, छ)।
१०. X (घ)। ४. पडिग्गहंसि (अ)।
११. सं० पा०--झामथंडिलंसि वा जाव पम५. परिभोउत्ता (अ); परियाभोएत्ता (क, च)। ज्जिय । ६. गहणं (अ)।
१२. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे । ७. सं० पा०-अणेसणिज्ज लाभे संते जाव णो।
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११६
आयारचूला
परिभाएत्ता णीहट्टु दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा - अफासुयं अणेसणिज्जं' "ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा । से आहच्च डिग्गाहिए सिया, तं च णाइदूरगए जाणेज्जा, से त्तमायाए तत्थ गच्छेज्जा, गच्छेत्ता पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा 'इमं किं जाया दिन्नं ? उदाहु अजाणया" ?
सोय भणेज्जा - णो खलु मे जाणया दिन्नं, अजाणया । कामं खलु आउसो ! इदाणिं णिसिरामि । तं भुंजह च णं परिभाएह च णं ।
तं परेहिं समणुण्णायं समणुसिहं, तओ संजयामेव भुंजेज्ज वा, पीएज्ज वा । जं च णो संचाएति भोत्तए वा, पायए वा । साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समण्णा अपरिहारिया अदूरगया तेसिं अणुपदातव्वं । सिया णो जत्थ साहम्मिया सिया, जहेव बहुपरियावण्णे कीरति, तहेव कायव्वं सिया || १३७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, "जं सव्वद्वेहिं समिए हिए या जए ।
- ति बेमि° ॥
एगारसमो उद्देसो
माइट्ठाण-पदं
१३८. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगामं 'वा दूइज्जमाणे " मणुष्णं भोयण-जायं लभित्ता "से" भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । सेय भिक्खू णो भुजेज्जा । तुमं चेव णं भुंजेज्जासि । "
से एगइओ भोक्खामित्ति कट्टु पलिउंचिय-पलिउंचिय आलोएज्जा, तं जहाइमे पिंडे, इमे' लोए, इमे तित्तए, इमे कडुयए, इमे कसाए, इमे अंबिले इमे महुरे, णो खलु तो किंचि गिलाणस्स सयति त्ति । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । तहाटिय" आलोएज्जा, जहाठियं" गिलाणस्स सदति तं वित्तयं तित्तएत्ति वा, कडुयं कडुएत्ति वा, कसायं कसाएत्ति वा, अंबिलं अंबिलेत्ति वा, महुरं महुरेत्ति
वा ॥
१. सं० पा० - अणेस णिज्जं जाव णो ।
७. गृहीत यूयम् (वृ) |
२. अजाया दिन्नं (घ) ।
८. X ( क, च, छ) ।
३. इमं ( अ ) ।
C. लुक्खए (छ) ।
४. सं० पा० सामग्गियं ।
१०. तहेव तं ( अ, च, छ) ।
५. दूइज्माणे वा (अ); दूइज्जमाणे ( च, छ, ब ) । ११. जहेव तं ( अ, च, छ) ।
६. से य ( अ ) ।
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पढमं अज्झयण (पिंडेसणा-एगारसमो उद्देसो) मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३६. भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगाम [वा ? ]
दूइज्जमाणे मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता “से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । से य भिक्खू णो भुजेज्जा । आहरेज्जासि' ण।"
णो खलु मे अंतराए आहरिस्सामि । इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म ।। सत्त पिडेसणा सत्त पाणेसणा-पदं १४०. अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ। १४१. तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा-असंसटे हत्थे असंसढे मत्ते-तहप्पगारेण
असंसटेण हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा [पाणं वा]" खाइमं वा साइमं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-फासुर्य 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते° पडिगाहेज्जा-पढमा पिडेसणा ॥ १४२. अहावरा दोच्चा पिंडेसणा–संसटे हत्थे संसटे मत्ते-'तहप्पगारेण संसट्रेण
हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा पाणं वा खाइम वा साइम वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते
-दोच्चा पिंडेसणा ।। १४३. अहावरा तच्चा पिंडेसणा-इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं
वा संतेगइया सड्ढा भवंति–गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा°, कम्मकरीओ वा। तेसि च णं अण्णतरेसु विरूवरूवेसु भायण-जाएसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा-थालंसि वा, पिढरंसि वा, सरगंसि वा, परगंसि वा, वरगंसि वा। अह पुणेवं जाणेज्जा-असंसढे हत्थे संस? मत्ते, संसटे वा हत्थे असंसट्टे मत्ते । से य पडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए" वा, से पुत्वामेव आलोएज्जाआउसो ! त्ति वा भगिणि ! त्ति वा एएणं तुमं असंसटेण हत्थेण संसद्वेण मत्तेण,
१. आहारेज्जासि (अ, घ, छ, ब); आहारेज्जा वा साइमं वा' इति पाठा नापेक्षिताः सन्ति । से (क, च)।
६. सं० पा०-फासुयं पडिगाहेज्जा। २. इमे (अ, क, च, छ, ब)।
७. सं० पा०—मत्ते तहेव दोच्चा पडिमा।। ३. इच्चेइयाई (क, छ, ब)।
८. स० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ४. मत्तएण (अ, छ, ब)।।
६. पिढरगसि (अ, च); पिठरगसि (घ); पिठ५. पिण्डैषणायां 'पाणं वा' इति पाठो नापे- रसि (ब)। क्षितोस्ति । असौ प्रवाहपाती एव बोध्यः । १०. असंसर्दू वा (क, च)। एवमेव पानेषणायामपि 'असणं वा खाइमं ११. पडिग्गहिए (छ, ब)।
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११८
आयारचूला
संसट्टेण वा हत्थेण असंसट्टण मत्तेण, अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा णिहट्ट उवित्तु दलयाहि । तहप्पगारं भोयण-जायं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे • लाभे संते पडिगाहेज्जातच्चा पिंडेसणा॥ अहावरा चउत्था पिंडेसणा-से भिक्खू वा', 'भिक्खुणी वा, गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे ° सेज्ज पुण जाणेज्जा-पिहुयं वा' 'बहुरज वा, भुज्जियं वा, मथु वा, चाउलं वा°, चाउल-पलंबं वा । अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए, तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउल-पलंबं वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-'फासुयं एसणिज्ज
ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा-चउत्था पिंडेसणा ॥ १४५.
अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे ° समाणे उवहितमेव भोयण-जायं जाणेज्जा, तं जहासरावंसि वा, डिडिमंसि वा, कोसगंसि वा। अह पुण एवं जाणेज्जा-बहुपरियावन्ने पाणीसु दगलेवे। तहप्पगारं असणं वा पाण वा खाइम वा साइम वा सय वा ण जाएज्जा 'परो वा से देज्जा-फासूयं
एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ० पडिगाहेज्जा-पंचमा पिंडेसणा।। १४६. अहावरा छट्ठा पिंडेसणा-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं
पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे° पग्गहियमेव भोयण-जायं जाणेज्जा-जं च सयट्ठाए पग्गहियं, जं च परट्ठाए पग्गहियं, तं पाय-परियावन्न, तं पाणिपरियावण्णं-फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा
छट्ठा पिडेसणा॥ १४७. अहावरा सत्तमा पिडेसणा-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं
पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे बहुउज्झिय-धम्मियं भोयण-जायं जाणेज्जा-जं चण्णे बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकखंति, तहप्पगारं उज्झिय-धम्मियं भोयण-जायं सयं वा ण जाएज्जा परो वा से देज्जा--'फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते. पडिगाहेज्जासत्तमा पिडेसणा। इच्चेयाओ सत्त पिडेसणाओ।।
१. सं० पा०-एसणिज्जं जाव लाभे। २. सं० पा० - भिक्खू वा सेज्जं । ३. स० पा०-पिहुय वा जाव चाउलपलंबं । ४. सं० पा०-देज्जा जाव पडिगाहेज्जा। ५. सं० पा०—भिक्खू वा जाव समाणे । ६. उग्गहिय° (घ)।
७. सं० पा० --जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा। ८. सं० पा०-भिक्खू वा जाव पग्गहिय । ६. उग्गहिय अ,क,च); उग्गहितं पग्गहित(चू)। १०. सं० पा०-- -फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। ११. सं० पा०-भिक्खू वा जाव समाणे। १२. सं० पा०-देज्जा जाव फासुयं पडिगाहेज्जा।
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पढमं अज्झयणं (पिंडेसणा - एगारसमो उद्देसो)
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१४८. अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा - असंसट्टे हत्थे असंस मत्ते' ||
१४६. अहावरा दोच्चा पाणेसणा-संसट्ठे हत्थे संसट्टे मत्ते ॥
१५०. अहावरा तच्चा पाणेसणा - इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्डा भवंति ||
१५१. अहावरा चउत्था पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ कुलं पिंडवायपडिया अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा - तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा । अि खलु पडिग्गाहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए । तहप्पगारं तिलोदगं वा, सोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा सयं वा णं जाज्जा, परो वा से देज्जा - फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते
गाजा ||
१५२. अहावरा पंचमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवायपडिया अणुपविट्ठे समाणे उवहितमेव पाणग-जायं जाणेज्जा ।।
१५३. अहावरा छट्टा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवायअपविमाणे पग्गहियमेव पाणग-जायं जाणेज्जा ।।
१५४. अहावरा सत्तमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ- कुलं पिंडवायडिया अणुपविट्ठे समाणे बहुउज्झिय धम्मिय पाणग जायं जाणेज्जा ° ॥ १५५. इच्चेयासि सत्तण्हं पिंडेसणाणं, सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वज्जा - मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पवन्ने ।
जे ते भयंता एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया, अण्णोष्णसमाहीए एवं च णं विहरति ॥
१५६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए या जए ।
-- ति बेमि ॥
१. अतः १५४ सूत्रपर्यन्तं पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं १।१४१-१४७ सूत्राणि । सं० पा० - तं चेव भाणियव्वं णवरं चउत्थाए णाणत्तं से भिक्खू वा जाव समाणे सेज्जं पुण पाणग-जायं
जाणेज्जा तं जहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा अस्सं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तव पडिगाज्जा ।
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बोयं अज्झयणं
सेज्जा
पढमो उद्देसो उवस्सयएसणा-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए', अणुपविसित्त।
गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंब वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा°, रायहाणि वा, सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा संताणयं । तहप्पगारे उवस्सए णो 'ठाणं वा, सेज्जं वा,
निसीहियं वा चेतेज्जा"॥ २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पपाणं"
•अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं । तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा,
सेज्ज वा, निसीहियं वा चेतेज्जा॥ अस्सिपडियाए-उवस्सय-पदं ३. सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई
भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे
१. एसित्तए से (अ, ब)। २. सं० पा०-गाम वा जाव रायहाणि । ३. सं० पा०-सअडं जाव संताणयं। ४. स्थानं-कायोत्सर्गः, शय्या-संस्तारकः,
निषीधिका–स्वाध्याय भूमि:, 'नो चेइज्ज'
त्ति नो चेतयेत्-नो कुर्यात् इत्यर्थः (वृ)। ५. सं० पा०-अप्पपाणं जाव संताणगं ।
१२०
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा-पढमो उद्देसो)
१२१ वा', 'अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा°
अणासेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ४. "सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा -अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स
पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहड आहट्ट चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभत्ते वा, आसेविते
वा अणासे विते वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ ५. सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई
भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तदिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते वा णो ठाणं वा सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुहिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते
वा अणासे विते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-उवस्सय-पदं ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण
अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स' पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई 'समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्टिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविए वा अणासेविए वा णो
ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण
अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ। तहप्पगारे
१. सं० पा०-अपूरिसंतरकडे वा जाव अणा- २. सं० पा०--एवं बहवे साहम्मिया एग साह
सेविते: १११२ सूत्रे 'अपुरिसंतरकडं वा' इति म्मिणि बहवे साहम्मिणीओ। पदानन्तरं 'बहिया णीहडं वा अणीहडं वा' ३. समुहिस्स तं चेव भाणियव्वं (घ, च)। इति पाठो विद्यते, तथापि उपाश्रयप्रकरणे ४. सं० पा०-सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे नेष प्राप्तोस्ति, तेन नासौ ग्राह्यः ।
उवस्सए अपूरिसंतरकडे जाव अणासेविए ।
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१२२
आयारचूला उवस्सए अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते', अणासेविए णो ठाणं वा
सेज्जं वाणिसीहियं वा चेतेज्जा। ६. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे', 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते °, आसेविए पडिले
हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । परिकम्मिय-उवस्सय-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु
पडियाए कडिए वा, उक्कबिए' वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घट्टे वा, मढे वा, संम? वा, संपधूमिए वा। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे', 'अणत्तट्ठिए, अपरि
भुत्ते °, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ११. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंत रकडे', 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते °, आसेविए पडिले
हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसोहियं वा चेतेज्जा ।। १२. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु
पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, "महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कज्जा, अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिदियछिदिय, दालिय-दालिय° संथारगं संथारेज्जा', बहिया वा णिण्णक्खु', तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे', 'अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते', अणासेविते णो
ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसतरकडे', 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते °, आसेविए पडिले
हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । बहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण [उवस्सयं ? ] जाणेज्जा-अस्संजए
भिक्खु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मुलाणि वा, [तयाणि वा ? ]", पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ
ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, १. सं० पा० -पुरिसंतरकडे जाव आसेविए। ७. णिणखु (क, छ) । २. उक्कंपिए (क, घ, च, ब)।
८. सं० पा०-अपरिसंतरकडे जाव अणासेविते । ३. सं० पा०-अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए। ६. सं० पा०—पुरिसतरकडे जाव आसेविए। ४. सं० पा०-पुरिसंतरकडे जाव आसेविए। १०. यद्यप्ययमत्र प्रतिषु नोपलभ्यते, तथापि ५. सं० पा०-जहा पिंडेसणाए जाव संथारगं। ३।३।५५ सूत्रमनुसृत्यासावत्र युज्यते । ६. सथारेज्जा (अ, क, घ, च, ब)।
११. सं० पा०-अपुरिसंतरकडे जाव णो।
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बाअं अज्झयणं (सेज्जा - पढमो उद्देसो)
अत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेविते चेतेज्जा ॥
o
१५. अह पुणेवं जाणेज्जा - पुरिसंत रकडे', 'अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता मज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा ° चेतेज्जा ॥
१२३
ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - अस्संजए भिक्खु - पडियाए पीढं वा, फलगं वा, णिस्सेणि वा, उदूहलं वा ठाणाओ ठाणं साहरइ, वाणिक्खु, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे', 'अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेविए • णो ठाणं वा सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।।
१७. अह पुणेवं जाणेज्जा - पुरिसंतरकडे अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता मज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा | अंत लिक्ख-जाय - उवस्सय-पदं
o
१८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - तं जहा - खंधंसि वा, मंचसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि णण्णत्थ आगाढाणा गाढेहिं कारणेहिं ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।
सेय आहच्च चेतिते सिया णो तत्थ सीओदग - वियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा । णो तत्थ ऊसढं पगरेज्जा, तं जहा - उच्चारं वा, पासवणं वा, खेलं वा, सिंघाणं वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूर्ति वा, सोणियं वा, अण्णयरं वा सरीरावयवं ॥
१. सं० पा० - पुरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा ।
२. सं० पा० - अपुरिसंतरकडे जाव णो । ३. सं० पा०- पुरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा । ४. गाढा ° (क, च, ब); आगाढावगाढेहिं (घ);
आगाढादीहिं (छ) ।
५. 'उत्सृष्टम्' उत्सर्जनं-त्यागमुच्चारादेः (वृ ) ।
०
१९. केवली बूया आयाणमेयं - से तत्थ ऊसढं पगरेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा । से तत्थ पलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरु वा, उदरं वा, सीसं वा, अण्णतरं वा कार्यसि इंदिय-जातं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा', "वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा ठाणाओ ठाणं कामेज्ज वा जीविआओ • ववरोवेज्ज वा ।
अह भिक्खूणं पुव्ववदिट्ठा एस पइण्णा, "एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, '
६. पयले ० (क, च, छ) ।
७. पवडे ०
(क, च, छ) ।
८. सं० पा०
६. सं० पा० - अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज । १०. सं० पा० प इण्णा जाव जं ।
हत्थं वा जाव सीसं ।
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१२४
आयारचूला जं तहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्खजाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा ।। सागारिय-उवस्सय-पदं २०. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-सइत्थियं, सखुटुं,
सपसुभत्तपाणं। तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्ज वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ २१. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइ-कुलेण सद्धि संवसमाणस्स-अलसगे वा,
विसूइया वा, छड्डी वा उव्वाहेज्जा'। अण्णतरे वा से दुक्खे रोगातंके' समुप्पज्जेज्जा । अस्संजए कलुण-पडियाए तं भिक्खुस्स गातं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणोएण वा, वसाए वा, अब्भंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा। सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आघंसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा । सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा, 'उच्छोलेज्ज वा', पहोएज्ज वा, सिणावेज्ज वा, सिंचेज्ज वा। दारुणा वा दारुपरिणामं कटु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, उज्जालेत्ता पज्जालत्ता कायं आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुत्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स --इह खलु गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइसण्हाओवा, धाईओ वा, दासा वा, दासोओ वा, कम्मकरा वा०, कम्मकरोओ वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दति वा। अह भिक्खू णं उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अण्णमण्णं अक्कोसंतु वा मा वा अक्कोसंतु, बंधंतु वा मा वा बंधंतु, रु भंतु वा मा वा रुभंतु, उद्दवेंतु वा मा वा उद्दवतु। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइण्णा", 'एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो.
१. साकारिए (छ, ब)। २. उप्पा ° (क, च, ब)। ३. रोगे आयंके (घ)। ४. लोद्देण (अ, ब)। ५. उच्छोलेज्ज पच्छोलेज्ज वा (ब)। ६. दारुणं परि० (अ, च); दारुण ° (क)।
७. वसमाणस्स (ब)। ८. सं० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। ६. पहति (क); X (च, ब); वहंति (अ)। १०. उद्दति वा उद्दति (घ); उदवंति वा ___ उद्दवेंति (छ)। ११. सं० पा०—पइण्णा जाव जं।
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बीअं अज्झयणं (संज्जा-पढमो उद्देसो)
१२५ जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा ॥ २३. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स'-इह खलु गाहावई
अप्पणो सअट्ठाए अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा, विज्झावेज्ज वा । अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अगणिकायं उज्जालेंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झावेंतु वा मा वा विज्झावेतु। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे [सागारिए ?] उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा॥ २४. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स
कुंडले वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, 'हिरण्णे वा", 'सुवण्णे वा", कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि' वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयणावली वा, तरुणियं वा कुमारि अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एरिसिया वा सा णो वा एरिसिया-इति वा णं बूया, इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारे [सागारिए ? ] उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइणीओ वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, गाहावइ-धाईओ वा, गाहावइ-दासीओ वा, गाहावइ-कम्मकरीओ वा। तासिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ जे इमे भवंति समणा भगवंतो' 'सीलमंता वयमंता गणमंता संजया संवुडा बंभचारी • उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एतेसिं कप्पइ मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्रित्तए। जा य खलु एएहिं सद्धि मेहुणं धम्म परियारणाए आउटेज्जा, पुत्तं खलु सा
१. वस (अ, घ, च, छ, ब)। २. सं० पा०-पुव्वोवदिट्ठा जाव जं। ३. ४ (अ)। ४. X (छ)।
५. तिसराणि (च)। ६. सं० पा०--पुव्वोवदिट्ठा जाव जं । ७. सं० पा०-भगवंतो जाव उवरया।
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१२६
आयारचूला
लभेज्जा-ओयस्सि तेयस्सि वच्चस्सि जसस्सि संपराइयं आलोयणदरिसणिज्जं । एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तासिं च णं अण्णयरी सड्ढी' तं तवस्सि भिक्खु मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टावेज्जा।
अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, : जंतहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा,सेज्जंवा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। २६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्व?हिं समिए सहिए सया जए।
–ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो २७. गाहावई णामेगे सुइ-समायारा भवंति, भिक्खू य असिणाणए' मोयसमायारे,
'से तग्गंधे' दुग्गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि भवइ । जं पुव्वकम्मं तं पच्छाकम्मं, जं पच्छाकम्मं तं पुव्वकम्मं । तं भिक्खु-पडियाए वट्टमाणे करेज्जा वा, नो 'वा करेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°,
जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। २८. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स"
अप्पणो सअट्ठाए विरूवरूवे भोयण-जाए उवक्खडिए सिया, अह पच्छा भिक्खुपडियाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडेज्ज वा, उवकरेज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकखेज्जा भोत्तए वा, पायए वा, वियट्टित्तए" वा।। अह भिक्खूणं पुबोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°,
जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा", 'सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ २६. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावइणा सद्धि संवसमाणस्स-इह खलु गाहावइस्स
अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाइं भिन्न-पुवाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाइं दारुयाई भिदेज्ज वा, किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा,
१. संपहारियं (अ)। २. सहियं (अ); सहितं (छ)। ३. सं० पा०-पुव्वोवदिट्ठा जाव जं । ४. सं० पा०-सामग्गियं । ५. असिणाणाए (अ)। ६. से से गंधे (अ, क, घ, च, छ, ब, चू)। ७. करेज्जा (अ); करेज्जा वा (छ, ब)।
८. सं० पा०—पूव्वोवदिट्टा जाव जं। ६. सं० पा०-ठाणं वा जाव चेतेज्जा। १०. तत्रवाहारगृद्ध्या विवत्तितुम् आसितुमाका
क्षेत् (वृ)। ११ तृतीयार्थे षष्ठी (वृ)। १२. सं० पा०—पुवोवदिट्ठा जाव जं। १३. सं० पा०—ठाणं वा चेतेज्जा।
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१२७
Aati अज्झणं (सेज्जा - बीओ उद्देसो)
,
दारुणा वा दारुपरिणामं कट्टु अगणिकायं उज्जालेज्ज वा, पज्जालेज्ज वा । तत्थ भिक्खू अभिकंखेज्जा आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा, वियट्टित्तए वा । अभिक्ai godaदिट्ठा' एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएंसो • जं तपगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्जं वा, णिसीहियं वा • चेतेज्जा ।। ३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चार- पासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे राओ वा विआले वा गाहावइ - कुलस्स दुवारवाहं अवंगुणेज्जा, तेणे य तस्संधिचारी अणुविज्जा । तस्स भिक्खुस्स णो कप्पइ एवं वदत्तिए - अयं तेण पविसइ वाणो वा पविस, उवल्लियइ वा णो वा उवल्लियइ, अइपतति' वा णो वा अपतति वदति वा णो वा वदति, तेण हडं अण्णेण हडं, तस्स हड अण्ण हडं, अयं तेणे अयं उवचरए, अयं हंता अयं एत्थमकासी तं तवस्सि भिक्खुं' अणं तेणं ति संकति ।
अह भिक्खूणं पुव्ववदिट्ठा" "एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, पगारे उस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा • चेतेज्जा |
तण-पलालाच्छाइय-उवस्सय-पदं
३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा -- तण-पुंजेसु वा, पलाल-पुंजेसु वा,सअंडे' 'सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग पणग दग-ताए, तहप्पगारे उवस्सए जो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसी हियं वा चेतेज्जा ॥
३२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्रायं जाणेज्जा - तण - पुंजेसु वा, पलाल-पुंजेसुवा, अप्पंडे' 'अप्पपाणे अप्पबीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पदए अप्पुत्तिग-पणग-ग-मट्टिय - मक्कडासंताणए, तहप्पगारे उवस्सए पडिले हित्ता मज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा |
वज्जियव्व उवस्सय-पदं
३३.
से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा परियावसहेसु वा अभिक्खणं-अभिक्खणं साहम्मिएहिं ओवयमाणेहिं गोवएज्जा" ||
१. दारुण ० (घ, च) ।
२. सं० पा० - पुव्वोव दिट्ठा जाव ज । ३. सं० पा०-- ठाणं वा चेतेज्जा ।
४. उव्वलियति (च); उवलियत्ति (घ) ५. आवयति (घ, च) ।
६. भिक्खुयं ( अ, छ) ।
७. सं० पा० - पुव्वोवदिट्ठा जाव चेतेज्जा । ८. चूर्णावत्र बहुवचनं लभ्यते – 'संडेहि ' ; सं० पा०--अंडे जाव संताणए ।
९. चुर्णावत्र बहुवचनं लभ्यते - 'अप्पंडेहि ' सं० पा० - अप्पडेहि जाव चेतेज्जा । १०. गोयवज्जा (अ); णो उवएज्जा (क, घ च ) ।
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१२८
आयारचूला कालाइक्कंत-कि रिया-पदं ३४. से आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा°, परियावसहेसु
वा, जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता' तत्थेव
भुज्जो' संवसंति, अयमाउसो ! कालाइक्कंत-किरिया वि भवइ ।। उवट्ठाण-किरिया-पदं ३५. से आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा°, परियावसहेसु वा,
जे भयंतारो उडुबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवातिणावित्ता तं दुगुणा तिगुणेण" अपरिहरित्ता तत्थेव भुज्जो संवसंति, अयमाउसो' ! उवट्ठाण-किरिया
वि भवइ ॥ अभिक्कंत-किरिया-पदं ३६. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति,
तं जहा—गाहावई वा', 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइधूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा°, कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सूणिसंते भवई। तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहि, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा--आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ" वा पवाओ" वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाणसालाओ वा, सुहाकम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि
१. सं० पा०-आगंतारेसु वा जाव परियाव- ७. या वि (अ, ब)। सहेसु।
८. स० पा०-गाहावई वा जाव कम्मकरीओ। :. तिणिता (अ, क, घ, च, ब)। ६. साधूनामेवंभूतः प्रतिश्रयः कल्पते नैवंभूतः, ३. भुज्जो-भुज्जो (घ)।
इत्येवं न ज्ञातं भवतीत्यर्थः, प्रतिश्रयदानफलं ४. स० पा०-आगतारेसु वा जाव परियाव- च स्वर्गादिकं तैः कुतश्चिदवगतम् (ख)। सहेसु।
१०. सहाणि (क, घ, छ, ब)। ५. दुगुणेण (अ, क, घ, च, ब)। स्वीकृतः पाठः ११. पवाणि (अ, क, घ, छ, ब)। वृत्त्यनुसारी वर्तते।
१२. वत्थ ° (छ)। ६. अयमाउसो ! इतरा (अ, च, ब)। १३. वल्कज ° (वृ)।
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा-बीओ उद्देसो)
१२६
वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा', गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर'कम्मंताणि वा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा', भवणगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं ओवय
माणेहि ओवयंति, अयमाउसो ! अभिक्कंत-किरिया वि भवइ ।। अणभिक्कंत-किरिया-पदं ३७. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति,
तं जहा—गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं बहवे समण-माहण-अतिहिकिविण-वणीमए समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिआई भवंति, तं जहा—आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा तेहिं अणोवय
माणेहिं ओवयंति, अयमाउसो ! अणभिक्कंत-किरिया वि भवति । वज्ज-किरिया-पदं ३८. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति,
तं जहा गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइजे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलमंता' 'वयमंता गुणमंता संजया संवुडा बंभचारी उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एएसि भयंताराणं कप्पइ आहाकम्मिए उवस्सए वत्थए। सेज्जाणिमाणि' अम्हं अप्पणो सअट्टाए चेतिताई भवंति, तं जहा-आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा । सव्वाणि ताणि समणाणं णिसिरामो, अवियाई वयं पच्छा अप्पणो सअट्ठाए चेतिस्सामो, तं जहा---आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा। एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं पाहडेहि वटुंति, अयमाउसो ! वज्ज-किरिया वि भवइ ।।
१. वा सुण्णागारकम्मंताणि वा (अ)। २. कंदरा (अ)। ३. वा सयण-गिहाणि वा (छ) । ४. या वि (अ, क, घ, च, ब)।
५. सं० पा०–सीलमंता जाव उवरया । ६. ° इमाणि (च)। ७. अट्टाए (अ, छ, ब)। ८. इतरातिरेहि (क, घ); इयरातरेहिं (अ, च) ।
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१३०
महावज्ज-किरियापदं
३६. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा — गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ ।
तं सद्दहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहि बहवे समण - माहण अतिहिfear - वणीमए पराणिय-पगणिय समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहि अगाराई चेतिताइं भवति, तं जहा - आएसणाणि वा भवणगिहाणि वा । जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं' पाहुडेहिं वट्टति, अयमाउसो ! महावज्ज - किरिया वि भवइ ॥ सावज्ज-किरियापदं
आयारचूला
४०. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीर्ण वा संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा — गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसि च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ ।
तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं बहवे समण - माहण - अतिहिकिवण- वणीमए समुद्दिस्स तत्थ तत्थ अगारीहि अगाराई चेतिआई भवंति, तं जहा -- आसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा । जे भयंतारो तहप्पगाराई आसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इतरेतरेहिं पाहुडेहि व ृति, अमाउसो ! सावज्ज-किरिया विभवइ ।।
महासावज्ज-किरिया -पदं
४१. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्डा भवंति, तं जहा - गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा । तेसिं च णं आयार - गोयरे णो सुणिते भवइ ।
तं सहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराई चेतिताई भवंति, तं जहा - आएसणाणि वा जाव भवगिहाणि वा । महया पुढविकाय-समारंभेणं, महया ग्राउकाय-समारंभेणं, महया ते काय-समारंभेणं, महया वाउकाय - समारंभेणं, महया वणस्स इकायसमारंभेणं, महया तसकाय समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया समारंभेणं, महया आरंभेणं, मया विरूवरूवेहिं पावकम्म- किच्चेहिं तं जहा- छायणओ लेवणओ संथार- दुवार-पिहणओ । सीतोदए वा परिट्ठवियपुव्वे भवइ, अगणिकाए वा उज्जालियव्वे भवइ, जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणि वा जाव
१. इतरातरेहिं (अ); इयराइयरेहिं (घ ) ।
२. सं० पा० एवं आउतेउवाउवणस्सइ ।
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा-तइओ उद्देसो)
१३१ भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं दुपक्खं ते
कम्म सेवंति, अयमाउसो ! महासावज्ज-किरिया वि भवइ।। अप्पसावज्ज-किरिया-पदं ४२. इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति,
तं जहागाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहि, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं अप्पणो सअट्टाए तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा—आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा। महया पुढविकाय-समारंभेणं' 'महया आउकायसमारंभेणं, महया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकाय-समारंभेणं, महया तसकाय-समारंभेणं, मया संरंभेणं, महया समारंभेणं, महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहि, तं जहाछायणओ लेवणओ संथार-दुवार-पिहणओ। सीतोदए वा परिढवियपुव्वे भवइ ° अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ। जे भयंतारो तहप्पगाराइं आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति, उवागच्छित्ता इयराइयरेहिं पाहुडेहिं एगपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो !
अप्पसावज्ज-किरिया वि भवइ ।। ४३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वढेहि समिए सहिए सया जए।
-त्ति बेमि° ॥ तइओ उद्देसो उवस्सय-छलण-पदं ४४. सिय णो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, णो य खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहि, तं
जहा–छायणओ, लेवणओ, संथार-दुवार-पिहणओ', पिंडवाएसणाओ। से भिक्खू चरिया-रए, ठाण-रए, निसीहिया-रए, सेज्जा-संथार-पिंडवाएसणारए । संति भिक्खुणो एवमक्खाइणो उज्जुया णियाग-पडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा वियाहिया। संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवइ, एवं णिक्खित्तपुव्वा भवइ, परिभाइय
१. सं० पा०-समारंभेणं जाव अगणिकाए। २. सं० पा०-सामग्गियं । ३. से य (क, घ, च, छ, ब)।
४. पिहुणाओ (अ); पिहाणओ (क, च, छ, ब)। ५. से य (अ)। ६. उज्जुअडा (अ, छ)।
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१३२
आयारचूला
पुवा भवइ, परिभुत्तपुव्वा भवइ, परिढवियपुव्वा भवइ, एवं वियागरेमाणे समियाए' वियागरेति ?
हंता भव॥ उवस्सय-जयण-पदं ४५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-खुड्डियाओ, खुडु
दुवारियाओ', निइयाओ' [ नीयाओ ? ] संनिरुद्धाओ भवंति । तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण
पच्छा पाएण तओ संजयामेव णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ ४६. केवली बूया आयाणमेयं-जे तत्थ समणाण वा, माहणाण वा, छत्तए वा, मत्तए
वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, 'नालिया वा, चेलं वा", चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा-दुब्बद्धे दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले-भिक्खू य राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा', 'बाहुं वा, ऊरुवा, उदरं वा, सीसं वा अण्णयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीवियाओ० ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं तओ संजयामेव णिक्खमेज्ज वा,
पविसेज्ज वा ॥ उवस्सय-जायणा-पदं ४७. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा
अणुवीइ उवस्सयं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते उवस्सयं अणुण्णवेज्जा-कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसिस्सामो जाव आउसंतो, जाव आउसंतस्स उवस्सए, जाव साहम्मिया 'एत्ता, ताव" उवस्सयं
गिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।। १. समिय (घ); समिया (छ)।
६. सं० पा०-पायं वा जाव इंदिय । २. °दुवाराओ (घ)।
७. सं० पा०—अभिहणेज्ज वा जाव ववरो३. नेरइयाओ (अ); निययाओ (घ)।
वेज्ज। ४. सनिरुडिओ (अ)।
८. समाहिद्वाए (अ.क,घ, छ); समाहिए (ब)। ५. नालिया वा चेले वा (अ); चेलं वा नालिया ६. एवावता (अ); इत्ता ता (क); इत्ता वा वा (घ, ब); नालिया वा (छ)।
(च); इं ताव (छ)।
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा --- तइओ उद्देसो)
सेज्जायर - णाम- गोय - जायणा-पदं
४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, तस्स पुव्वामेव णाम - गोयं जाणेज्जा । तओ पच्छा तस्स गिहे णिमंतेमाणस्स अणिमंतेमाणस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा -- अफासुय' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥
उवस्य-विसुद्धि-पदं
४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा – ससागारियं सागणियं सउदयं, णो पण्णस्स निक्खमण - पवेसाए, णो पण्णस्स वायण :- पुच्छणपरियट्टाणुपे धमाणुओग • चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा ॥
o
५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - गाहावइ - कुलस्स मज्झमज्झेणं गंतुं पंथं पडिबद्धं वा', णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, णो वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग - चिताए, तहप्पगारे
पण्णस्स
उस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥
१३३
५१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई वा', "गाहावइणीओ वा, गाहावइ- पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइसुहाओवा, धाईओवा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा०, कम्मकरीओ वा अण्णमण्णमक्कोसंति वा', 'बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दवेंति वा, णो पण्णस्स" •णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण - पुच्छण - परियट्टणाणुपेहधमाणुओ - चिताए । सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा', "सेज्जं वा, णिसीहियं वा ° चेतेज्जा ॥
o
५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं तेल्लेण वा, घएण वा णवणीएण वा, वसाए वा अब्भंगे [गें ? ] ति वा, मक्खे [खें ? ] ति वा, णो पण्णस्स' 'णिक्खमणपवेसाए, णो पण्णस्स वायण- पुच्छण - परियट्टणाणुपेह - धम्माणुओग चिंताए । तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा", "सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। ५३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा, अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्वेण
१. सं० पा० - अफासुयं जाव णो ।
२. सं० पा० - वायण जाव चिताए । ३. X ( अ ) ।
४. स० पा० - पण्णस्स जाव चिंताए ।
५. सं० पा० - गाहावई वा जाव कम्मकरीओ ।
६. सं० पा०-- अण्णमण्ण मक्कोसंति वा जाव उद्दवेंति ।
७, ६. सं० पा० - पण्णस्स जाव चिंताए ।
८, १०. सं० पा० - ठाणं वा जाव चेतेज्जा ।
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१३४
आयारचूला वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आघसंति वा, पघंसंति वा, उव्वलेंति वा, उव्वलैंति वा, णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग ° -चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा',
'सेज्ज वा, णिसीहियं वा, चेतेज्जा ॥ ५४. से भिवखू वा भिवखणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा- इह खलु गाहावई
वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेंति वा, पधोवेंति वा, सिंचंति वा, सिणावेंति वा, णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए, णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणपेहधम्माणुओग° चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ५५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई
वा जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिआ, णिगिणा उवल्लीणा मेहणधम्म विण्णवेति, रहस्सियं वा मंतं मंतेति, णो पण्णस्स' 'णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणपह-धम्माणुओग°-चिताए, तहप्पगारे
उवस्सए णो ठाणं वा', 'सेज्ज वा, णिसीहियं वा ° चेतेज्जा ॥ ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा--आइण्णसंलेक्खं',
णो पण्णस्स 'णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहधम्माणओग-चिताए, तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं
वा चेतेज्जा ॥ संथारग-पदं ५७. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए । सेज्जं पण
संथारगं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं, तहप्पगारं संथारगं- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड अप्पपाण अप्पवीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, गरुयं, तहप्पगारं संथारगं२-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड१२ •अप्पपाणं
५८.
१.३.५,८. सं० पा०-पण्णस्स जाव चिताए। ६. सं० पा०-सअडं जाव संताणगं । २.४.६. सं० पा०-ठाणं वा जाव चेतेज्जा। १०,१२. सं० पा०—संथारगं लाभे। ७. संलिखे (घ); ० सलेखे (छ)।
११,१३. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं ।
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा-तइओ उद्देसो)
१३५ अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं अपाडिहारियं, तहप्पगारं संथारगं'- अफासुयं अणेसणिज्जं
ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ ६०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड' 'अप्पपाणं
अप्पबोअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं पाडिहारियं णो अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारगं'- अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ६१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड' 'अप्पपाणं
अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, लहुयं पाडिहारियं अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारयं'- 'फासुयं एसणिज्जं
ति मण्णमाणे ° लाभे संते पडिगाहेज्जा । संथारग-पडिमा-पदं ६२. इच्चेयाइं आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणेज्जा, इमाहिं चउहिं
__पडिमाहिं संथारगं एसित्तए । ६३. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय
संथारगं जाएज्जा, तं जहा-इक्कडं वा, कढिणं' वा, जंतुयं वा, परगं वा, मोरगं वा, तणं वा, कुसं वा, 'कुच्चगं वा", पिप्पलगं वा, पलालगं वा । से पुवामेव आलोएज्जा–आउसो ! त्ति वा भगिणि ! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा–फासुयं
एसणिज्ज" ति मण्णमाणे ° लाभे संते पडिगाहेज्जा-पढमा पडिमा । ६४. अहावरा दोच्चा पाडमा-से भिक्ख वा भिक्खणी वा पेहाए संथारग जाएज्जा,
तं जहा—गाहावई वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा. गाहावडपुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्डं वा, धाई वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मर" वा । से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भगिणि !
१. क्वचित 'सेज्जा संथारगं' इति पाठोऽस्ति ।
तत्र 'सेज्जा' लिपिदोषेण प्रक्षिप्तः इति
सभाव्यते; सं० पा०--संथारगं लाभे। २. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं । ३. सं० पा०-संथारगं लाभे। ४. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा०-सथारयं जाव लाभे ।
६. कठिणगं (घ)। ७. पोरगं (घ)। ८. तणगं (क, च, छ, ब)। ६. कुच्चगं वा वच्चगं वा (चू)। १०. सं० पा०-एसणिज्जं जाव लाभे । ११. कम्मकरी (अ,घ,ब); कम्मकरीयं (च,छ) ।
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१३६
आयारचूला
७
त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा-फासुयं एसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे लाभे संते.
पडिगाहेज्जा-दोच्चा पडिमा ।। ६५. अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा,
ते तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा-इक्कडे वा' 'कढिणे वा, जंतुए वा, परगे वा, मोरगे वा, तणे वा, कुसे वा, कुच्चगे वा, पिप्पले वा °, पलाले वा । तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा, णेसज्जिए वा विहरेज्जा-तच्चा पडिमा ॥ अहावरा चउत्था पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव संथारगं जाएज्जा, तं जहा–पुढविसिलं वा, कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव । तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा, णेसज्जिए वा विहरेज्जा-चउत्था पडिमा । इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे •णो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया',
अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरति ।। संथारग-पच्चप्पण-पदं ६८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तिए। सेज्ज
पुण संथारगं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चप्पिणेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा-अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहियपडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणिय-'
विणिद्धणिय तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा ॥ उच्चारपासवण-भूमि-पदं ७०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे __वा पुवामेव णं पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा ॥
१. सं० पा०-एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा। २. सं० पाo---इक्कडे वा जाव पलाले । ३. सं० पा०-पष्टिवज्जमाणे तं चेव जाव
अण्णोण्णसमाहीए।
४. सं० पा०-सअंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं । ६. विहुणिय २ (क,च); विद्ध णिय २ (घ,ब)। ७. X (क, घ, च)।
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बीअं अज्झयणं (सेज्जा-तइओ उद्देसो)
१३७ . ७१. केवली बूया आयाणमेयं-अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू'
वा भिक्खणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा' 'बाहुं वा, ऊरु वा, उदरं वा, सीसं वा अण्णयरं वा कायंसि इंदिय-जायं ° लूसेज्ज वा पाणाणि वा' 'भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो,
जं पुवामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा ॥ सयण-विहि-पदं ७२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमि पडिलेहित्तए,
णण्णत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा', 'पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा°, गणावच्छेइएण' वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण' वा, मझेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा 'तओ संजयामेव" पडिले हिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय बहु-फासुयं
सेज्जा-संथारगं संथरेज्जा । ७३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकखेज्जा
बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जियपमज्जिय तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ
संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा ॥ ७४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सयमाणे, णो
अण्णमण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा। से
अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा ।। ७५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा,
१. से भिक्खू (छ, ब)।
५. गणावच्छेएण (च)। २. सं० पा०-पायं वा जाव लूसेज्ज । ६. अन्तेन वेत्यादीनां पदानां तृतीया सप्तम्यर्थे ३. सं० पा०-पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज। (व)। ४. सं० पा०-उवज्झाएण वा जाव गणावच्छे- ७. X (क, घ, च, ब)। इएण।
८. पमज्जिय तओ संजयामेव (क,घ,च,छ,ब)।
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१३८
आयारचूला
१६.
छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उड्डुए वा, वायणिसग्गे वा करेमाणे, पुवामेव आसयं वा, पोसयं वा पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज्ज' वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छीएज्ज वा, जंभाएज्ज वा, उड्डुयं वा, वायणिसग्गं वा करेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा–समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा-तहप्पगाराहि सेज्जाहिं संविज्जमाणाहिं पग्गहिततरागं विहारं विहरेज्जा, णो किंचिवि
गिलाएज्जा ॥ ७७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।
---त्ति बेमि ॥
१. उड्डोए (घ, च, छ)।
२. ऊसासेज्ज (क, घ, च, छ)।
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तइयं अज्झयणं
इरिया पढमो उद्देसो
वासावास-पदं
१. अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुढे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया
अहणुन्भिन्ना', अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया' 'बहुहरिया बहु-ओसा बहुउदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, अणभिक्कंता पंथा, णो विण्णाया मग्गा, सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा-गामं वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा°, रापहाणि वा । इमंसि खलु गामंसि वा', 'णगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, णिगमंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा°, रायहाणिसि वाणो महती विहारभूमी, णो महती वियारभूमी, णो सुलभे पीढ-फलग-सज्जासंथारए, णो सुलभे फासुए उछे अहेसणिज्जे, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहिकिवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अच्चाइण्णा वित्ती-णो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए', 'णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह ° -धम्माणुओग
१. अहुणुब्भिया (अ); अहुणोन्भिन्ना (घ); ३. सं० पा०—गाम वा जाव रायहाणि । अहुणाभिन्ना (च, ब)।
४. सं० पा०---गामंसि वा जाव रायहाणिसि । २. सं० पा०-बहबीया जाव संताणगा। ५. सं०पा०—निक्खमणपवेसाए जाव धम्माण ।
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आयारचूला चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारं गामं वा णगरं वा जाव रायहाणि वा णो
वासावासं उवल्लिएज्जा। ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा-गामं वा जाव रायहाणि वा।
इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा-महती विहारभूमी, महती वियारभूमा, सुलभे जत्थ पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए, सुलभे फासुए उछे अहेसणिज्जे, णो जत्थ बहवे समण'-'माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा° उवागया उवागमिस्संति य, अप्पाइण्णा वित्तो- पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारं
गाम वा जाव° रायहाणि वा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा ।। गामाणुगाम-विहार-पदं ४. अह पुणेवं जाणेज्जा--चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कता, हेमंताण य पंच-दस
रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा' 'बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, णो जत्थ बहवे समण'-'माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा° उवागया उवागमिस्संति य । सेवं
णच्चा णो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ५. अह पुणेवं जाणेज्जा-चत्तारि मासा वासाणं वोइक्कंता, हेमंताण य पंच-दस
रायकप्पे परिवसिए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा' 'अप्पपाणा अप्पबोआ अप्पहरिया अप्पोसा अप्पदया अप्पत्तिग-पणग-दग-मद्रिय-मक्कडा संताणगा, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्सति य । सेवं णच्चा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे, दठ्ठण तसे पाणे उद्धटुं पायं रीएज्जा, साहटु पायं रीएज्जा, उक्खिप्प पायं रीएज्जा, तिरिच्छं वा कटु पायं रीएज्जा । सति परक्कमे संजतामेव परक्क
मेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा,
बीयाणि वा, हरियाणि वा, उदए वा, मट्टिया वा अविद्धत्था। सति परक्कमे' 'संजतामेव परक्कमेज्जा °, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥
१. सं० पा०-समण जाव उवागया। २. सं० पा०—वित्ती जाव रायहाणि । ३. सं पा०-बहुपाणा जाव संताणगा। ४. सं० पा०-समण जाव उवागया
५. सं० पा०--अप्पंडा जाव संताणगा। ६. वितिरिच्छं (अ, घ, च, ब)। ७. सं० पा०-परक्कमे जाव णो।
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तइयं अज्झयणं (इरिया-पढमो उद्देसो) ८. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि
पच्चंतिकाणि दस्सुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिवोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए,
संथरमाणेहि जणवएहि, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए ।। है. केवली बूया आयाणमेयं-ते णं बाला 'अयं तेणे' 'अयं उवचरए' 'अयं तओ
आगए' त्ति कटु तं भिक्खं अक्कोसेज्ज वा', 'बंधेज्ज वा, रुभेज्ज वा", उद्दवेज्ज' वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं 'अच्छिदेज्ज वा', अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जंणो तहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि दस्सुगायतणाणि 'मिलक्खणि अणारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं °, विहार-वत्तियाए
पवज्जेज्जा गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा । १०. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा,
गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए । केवली बूया आयाणमेयं-ते णं बाला 'अयं तेणे" "अयं उवचरए' 'अयं तओ आगए' त्ति कटु तं भिक्खं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उहवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा---एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणिवा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहि जणवएहि, विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज° गमणाए, तओ संजयामेव
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया ।
सेज्ज पूण विहं जाणेज्जा--एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण
१. सं० पा०-अक्कोसेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज। ५. सं० पा०--पुब्बोवदिट्टा जाव जं। २. उवद्दवेज्ज (अ, क, च, ब)।
६. सं० पा०--दस्सुगायतणाणि जाव विहार३. अच्छिदेज्ज वा भिदेज्ज वा (च, छ, ब); वत्तियाए । ____ अच्छिदेज्ज वा अभिदेज्ज वा (अ)। ७. सं० पा०-अयं तेणे तं चेव जाव गमणाए। ४. परिवेज (घ, च, ब)।
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१४२
आयारचूला
वा, पंचाहेण वा पाउणेज्ज वा, नो पाउणेज्ज वा । तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्ज, सति लाढे 'विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं°, णो विहार-वत्ति
याए पवज्जेज्जा गमणाए ।। १३. केवली बूया आयाणमेयं----अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा, पणएसु वा, बीएसु
वा, हरिएसु वा, उदएसु वा, मट्टियासु वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुत्रोवदिट्ठा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो°, जं तहप्पगारं विहं अणेगाह-गमणिज्ज', 'सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, णो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा° गमणाए, तओ संजयामेव
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। नावा-विहार-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे' अंतरा से णावासंतारिमे
उदए सिया। सेज्ज पुण णावं जाणेज्जा–अस्संजए भिक्खु-पडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, णावाए वा णाव'-परिणामं कटु थलाओ वा णावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलाओ वा णावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुण्णं वा णावं उस्सिचेज्जा, सण्णं वा णावं उप्पीलावेज्जा। तहप्पगारं णावं उड्ढगामिणि वा, अहेगामिणि वा, तिरियगामिणि वा, परं जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा णो दुरुहेज्ज गमणाए । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुव्वामेव तिरिच्छ-संपातिमं णावं जाणेज्जा, जाणेत्ता से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता भंडगं पडिलेहेज्जा, पडिलेहेत्ता एगाभोयं भंडगं करेज्जा, करेत्ता ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएत्ता एगं पायं जले किच्चा,
एगं पायं थले किच्चा, तओ संजयामेव णावं दुरुहेज्जा ॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णावं दुरूहमाणे णो णावाए पुरओ दुरुहेज्जा, णो
णावाए मग्गओ दुरुहेज्जा, णो णावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलिए उवदंसिय-उवदंसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्ण मिय णिज्झाएज्जा ।।
१. सं० पा०-लाढे जाव णो।
१. णावं (क, घ, च, छ, ब)। २. मट्टिएसु (क, च); मट्टियाएसु (घ, छ)। ७. पडिगाहेज्जा (घ, छ, ब)। ३. सं० पा०-पुवोवदिट्ठा जाव जं। ८. भायं (अ); भोयण (छ)। ४. सं० पा०-अणेगाहगमणिज्ज जाव गमणाए। ६. अंगुलियाए (च, छ, ब) । ५. दूइज्जेज्जा (क, घ, च, छ, ब)।
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तइयं अज्झयणं (इरिया - पढमो उद्देसो)
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१७. से णं परो णावा-गतो णावा-गयं वएज्जा आउसंतो ! समणा ! एयं ता' तुमंणाव उक्कसाहि वा वोक्कसाहि वा, खिवाहि वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसाहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा', तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। १८. से णं परो णावा- गओ गावा-गयं वएज्जा आउसंतो ! समणा ! णो संचाएसि तुमंणावं उक्कसित् वा, वोक्कसित्तए वा खिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए । आहर एतं णावाए रज्जूयं, रायं चेव णं वयं णावं उक्कसिस्सामो वा, वोक्कसिस्सामो वा खिविस्सामो वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसिस्सामो | णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। १९. से णं परो णावा- गओ गावा-गयं वएज्जा - आउसंतो ! समणा ! एवं ता अलित्वा पिहएण वा, वंसेण वा, वलएण वा, अवल्लएण' वा वाह | णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा |
२०. से णं परो णावा - गओ णावा-गयं वदेज्जा आउसंतो ! समणा ! एयं ता तुमं वाए उदयं हत्थे वा पाएण वा, मत्तेण वा, पडिग्गहेण वा णावा- उस्सिचणेण वा उस्सिचाहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा | २१. से णं परो णावा- गओ णावा-गयं वएज्जा आउसंतो ! समणा ! एतं ता तुमं णावाए उत्तिगं हत्येण वा पाएण वा, बाहुणा वा, ऊरुणा' वा, उदरेण वा, सीसेण वा, कारण वा णावा- उस्सिचणेण वा, चेलेण वा 'मट्टियाए वा, कुसपत्तएण वा ", कुविदेण" वा पिहेहि । णो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा |
२२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णावाए उत्तिगेणं उदयं आसवमाणं पेहाए, उवरुवरि" णावं कज्जलावेमाणं पेहाए णो परं उवसंकमित्तु एवं बूया - आउसंतो ! गाहावइ ! एयं ते णावाए उदयं उत्तिगेणं आसवति, उवरुवरि वा णावा कज्जलावेति । एतप्पगारं मणं वा वायं वा णो पुरओ कट्टु विहरेज्जा, अप्पुस्सुए
१. x ( अ, छ) ।
२. रज्जूए ( अ, क, घ, व ) ।
३. जाणेज्जा (घ, ब ) ।
४. रज्जूए ( च ।
५. X (छ) ।
६. आलित्तेण ( अ, क, घ, च, छ, ) । ७. पीढेण ( अ, क, घ, च, छ, ब) । अयं पाठो निशीथस्य तथा अप्रयुक्ताचाराङ्गादर्शस्यानुसारेण स्वीकृत: ।
८. अवल्लेण (च) |
६. उरुणा (घ, च, छ, ब ) ।
१०. निशीथ चूर्णि भाग ४, पृष्ठ २०६ : 'मट्टियाए वा कुसपत्तेण वा' इत्यस्य स्थाने 'कुसमट्टियाए वा' इति पाठोस्ति ।
११. कुरुविंदे ( अ, क, घ, च, छ, ब) । अयं पाठो निशीथस्य तथा अप्रयुक्ताचाराङ्गादर्श -
स्यानुसारेण स्वीकृतः ।
१२. उववर (घ ) ।
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१४४
आयारचूला अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज' समाहीए , तओ संजयामेव णावा
संतारिमे उदए अहारिय रीएज्जा ।। २३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सदा जएज्जासि ।
–त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो नावा-विहार-पदं २४. से णं परो णावा-गओ णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा! एयं ता तुम
छत्तगं वा', 'मत्तगं वा, दंडगं वा, लट्ठियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेलं वा, चिलिमिलि वा, चम्मगं वा, चम्म-कोसगं वा, चम्म-छेयणगं वा गेण्डाहि, एयाणि तुमं विरूवरूवाणि सत्थ-जायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा
'दारिगं वा पज्जेहि । णो से तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा ।। २५. से णं परो णावा-गए णावा-गयं वदेज्जा-आउसंतो ! एस णं समणे णावाए
भंडभारिए भवइ । से णं बाहाए गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवह। एतप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से य चीवरधारी सिया, खिप्पामेव चीवराणि
उव्वेड्विज्ज वा, णिव्वेड्डिज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा ।। २६. अह पुणेवं जाणेज्जा–अभिक्कंत-कूरकम्मा खलु बाला बाहाहि गहाय नावाओ
उदगंसि पक्खिवेज्जा। से पुवामेव वएज्जा-आउसंतो ! गाहावइ ! मा मेत्तो बाहाए गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं णावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि। से णेवं वयंत परो सहसा बलसा बाहाहि गहाय णावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा तं णो सुमणे सिया, णो दुम्मणे सिया, णो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसिं बालाणं घाताए वहाए समुद्रुज्जा, अप्पुस्सुए' 'अबहिलेस्से एगंतगएणं
अप्पाणं वियोसेज्ज ° समाहीए, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा ॥ २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं,
काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे" तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा॥
१. विउसज्ज (क)। २. सं० पा०-छत्तगं वा जाव चम्मछेयणगं। ३. X (क, घ, च)। ४. पक्खिवेज्जा (क, ग, च, छ, ब) ।
५. दुमणे (घ, छ, ब)। ६. सं० पा०—अप्पुस्सुए जाव समाहीए । ७. से अणासादए अणा (अ)।
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तइयं अज्झयणं (इरिया-बीओ उद्देसो)
१४५ २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे णो उम्मग्ग-णिमग्गियं करेज्जा।
मामेयं उदगं कण्णेसु वा, अच्छोसु वा, णक्कंसि वा, मुहंसि वा परियावज्जेज्जा,
तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा॥ २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दोब्बलियं पाउणेज्जा। खिप्पामेव
उवहिं विगिचेज्ज वा, विसोहेज्ज वा, णो चेव णं सातिज्जेज्जा'। ३०. अह पुणेवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव
उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा काएण उदगतीरे चिट्ठज्जा ॥ ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा,
पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा,
आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा ।। ३२. अह पुण एवं जाणेज्जा-विगओदए मे काए, वोच्छिन्नसिणेहे मे काए।
तहप्पगारं कायं आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगाम
दूइज्जेज्जा ॥ ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो परेहिं सद्धि परिजविय
परिजविय गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। जंघासंतारिम-उदग-पदं ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे
उदए सिया। से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता' 'सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएत्ता ° एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं
थले किच्चा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा । ३५. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे, णो 'हत्थेण
हत्थं पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे तओ
संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा। ३६. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा जंघासतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे णो साय
वडियाए, णो परदाह-वडियाए, महइमहालयंसि उदगंसि कायं विउसेज्जा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा ।
१. उम्मुग्गं (घ, च, ब)। २. णिम्मुग्गियं (घ, च)। ३. सातिज्जेज्ज वा (छ)। ४. छिन्न ° (क, घ, च. ब)। ५. सं० पा०-~पमज्जेत्ता जाव एगं ।
६. उदगंसि (क, घ, च)। ७. हत्थेण वा हत्थं (अ) (सर्वत्र) । ८. से अणासादए अणा ° (अ)। ६. साया (अ)।
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आयारचूला
३७. अह पुणेवं जाणेज्जा-पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव
उदउल्लेण वा ससणिद्धेण' वा काएण दगतीरए' चिट्ठज्जा ॥ ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा कायं, ससणिद्धं वा कायं णो आमज्जेज्ज
वा पमज्जेज्ज वा ।। ३९. अह पुणेवं जाणेज्जा-विगतोदए मे काए, छिण्णसिणेहे मे काए, तहप्पगारं
कायं आमज्जेज्ज वा' 'पमज्जेज्ज वा संलिहेज्ज वा णिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उव्वट्टेज्ज वा आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं
दूइज्जेज्जा ॥ ४०.
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिदिय-छिदिय, विकुज्जिय-विकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय-वहाए गच्छेज्जा। “जहेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु" । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। से पुवामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं
दूइज्जेज्जा॥ विसमट्ठाण-परक्कम-पदं ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा,
फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा। सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं
गच्छेज्जा॥ ४२. केवली बूया आयाणमेयं से तत्थ परक्कममाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा । से
तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा रुक्खाणि वा, गुच्छाणि वा, गुम्माणि वा, लयाओ वा, वल्लीओ वा, तणाणि वा गहणाणि वा, हरियाणि वा, अवलंबियअवलंबिय उत्तरेज्जा', जे तत्थ पाडिपहिया' उवागच्छंति, ते पाणी जाएज्जा,
तओ संजयामेव अवलंबिय-अवलंबिय उत्तरेज्जा, तओ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।। ४३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जवसाणि वा,
सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा, सेणं वा विरूवरूवं सण्णिविट्ठ पेहाए, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा ।।
१. समिणिद्वेण (च)।
६. पाडिवधेया (क); पाडिवाहेया (घ); पाडि२. उदगतीरए (घ)।
पडिया (छ)। ३. सं० पा०—आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज। ७. उत्तारेज्जा (अ)। ४. जमेतं (छ)।
८. सणिरुद्धं (ब)। ५. उत्तारेज्जा (अ)।
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तइयं अभय (इरिया - तइओ उद्देसो)
अभिणिचारिय-पदं
४४. से णं परो सेणागओ वएज्जा आउसंतो ! एस णं समणे सेणाए अभिणिचारिय करेइ । सेणं बहाए गहाय ग्रागसह । से णं परो बाहाहिं गहाय आगसेज्जा । तं णो सुमणे सिया', 'णो दुम्मणे सिया, जो उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा, णो तेसिं बालाण घाताए वहाए समुट्ठेज्जा । अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज • समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा |
पाडिपहिय-पदं
४५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा । तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा आउसंतो ! समणा ! केवइए एस गामे वा', 'णगरे वा, खेडे वा, कव्वडे वा, मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, णिगमे वा, आसमे वा, सणिवेसे वा°, रायहाणी वा ? केवइया एत्थ आसा हत्थी गामपिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति ?
से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे ? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्प - जवसे ? 'एयपगाराणि परिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि परिणाणि नो पुच्छेज्जा" ॥
४६. एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं", "जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए या जज्जासि ।
१. अभिणिवारिय ( अ, क, घ, च, ब ) । २. सं० पा० - सिया जाव समाहीए । ३. सं० पा०—गामे वा जाव रायहाणी | x. X (व); एवपगाराणि परिणाणि नो गुच्छेज्जा एयपगाराणि परिणाणि पुट्ठो वा अपुट्टो वा णो वागरेज्जा (क, च, छ ) ;
१४७
तइओ उद्देस
अंगचेट्ठापुव्वं निज्भाण-पदं
४७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा', 'तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा णूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइयकडं, आएसणाणि वा", "आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ
-त्ति बेमि ॥
o
एयपगाराणि परिणाणि नो पुच्छेज्जा एय पुट्ठो वा ग्रपुट्ठो वा णो वागरेज्जा (घ ) । ५. सं० पा० सामग्गियं ।
७.
६. सं० पा० - पागाराणि वा जाव दरीओ । सं० पा० – आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि ।
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१४८
आयारचूला
४८.
वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओवा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मताणि वा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा°, भवणगिहाणि वा णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलियाए उद्दिसिय-उद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से कच्छाणि वार दवियाणि वा, णूमाणि वा, वलयाणि वा, गहणाणि वा, गहण-विदुग्गाणि वा, वणाणि वा, वण-विदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वय-विदुग्गाणि वा, अगडाणि वा, तलागाणि वा, दहाणि वा, णदीओ वा, वावीओ वा, पोक्खरिणीओ वा, दीहियाओ वा, गजालियाओ वा, सराणि वा, सर-पंतियाणि वा. सर-सरपंतियाणि वा णो बाहाओ पगिभिय-पगिझिय', 'अंगुलियाए उद्दिसियउद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय, णिज्झाएज्जा, तओ
संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ४६. केवली बूया आयाणमेयं-जे तत्थ मिगा वा, पसुया' वा, पक्खी वा सरीसिवा'
वा, सीहा वा, जलचरा वा, थलचरा वा, खहचरा वा सत्ता, ते उत्तसेज्ज वा, वित्तसेज्ज वा, वाडं वा सरणं वा कंखेज्जा । चारे त्ति मे अयं समणे। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा' 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय', 'अंगुलियाए उद्दिसिय-उद्दिसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्ण मिय-उण्णमिय°, णिज्झाएज्जा, तओ संजयामेव
आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। आयरिय-उवज्झाय-सद्धि-विहार-पदं ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि गामाणुगामं दुइज्जमाणे
णो आयरिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्थं', 'पाएण पायं, काएण काय आसाएज्जा। से० अणासायमाणे तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहि सद्धि
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ५१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धि दूइज्जमाणे अंतरा से
१. सं० पा०—पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा। ४. सं० पा०-पुव्वोवदिट्टा जाव । २. पसू (अ)।
५. सं० पा०-पगिज्झिय जाव णिज्झाएज्जा। ३. सिरीसिवा (अ, घ, च)।
६. स० पा०-हत्थं जाव अणासायमाणे।
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तइयं अज्झयण (इरिया -- तइओ उद्देसो)
१४६ पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो ! समणा ! के तुब्भे ? कओ वा एह ? कहिं वा गच्छिहिह ? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा, वियागरेज्जां वा । आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं
करेज्जा, तओ संजयामेव आहारातिणिए दूइज्जेज्जा ॥ आहारातिणिय-सद्धि-विहार-पदं ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आहारातिणियं गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो
रातिणियस्स हत्थेण हत्थं पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा । से.
अणासायमाणे तओ संजयामेव आहारातिणियं गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ॥ ५३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आहारातिणियं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया
उवागच्छेज्जा । ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसतो ! समणा ! के तुब्भे ? कओ वा एह ? कहिं वा गच्छिहिह ? जे तत्थ सव्वरातिणिए' से भासेज्ज वा, वियागरेज्ज वा । रातिणियस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा णो अंतराभासं भासेज्जा, तओ संजयामेव
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ पाडिपहिय-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया
उवागच्छेज्जा'। ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा ! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह, तं जहा–मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, पसं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा ? से आइक्खह, दसेह। तं णो आइक्खेज्जा, णो दसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छज्जा' । ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो! समणा ! अवियाई एत्तो पडिपहे पासह--उदगपसूयाणि कंदाणि वा. मूलाणि वा, 'तयाणि वा पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा", उदगं वा
५५.
१. ० राइणियाए (अ, ब); अहा (घ, च)। २. सं० पा०-हत्थं जाव अणासायमाणे। ३. रातिणिए (घ)। ४ आगच्छेज्जा (अ, च, छ)। ५. सिरीसिवं (अ, छ, ब); सिरीसवं (च)।
६. तस्स (क, च, छ)। ७. आगच्छेज्जा (अ, छ)। ८. तया पत्ता पुप्फा फला बीया हरिया (अ, क,
घ, च, छ, ब)।
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१५०
आयारचूला
संणिहियं, अगणिं वा संणिक्खित्तं ? से आइक्खह', 'दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा
णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।।। ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाण अतरा से पाडिपहिया
उवागच्छेज्जा। ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा-आउसंतो! समणा ! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह-जवसाणि वा', 'सगडाणि वा, रहाणि वा, सचक्काणि वा, परचक्काणि वा°, सेणं वा विरूवरूवं संणिविटुं ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसिं तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।। ५७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया
'उवागच्छज्जा । तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा -आउसैंतो ! समणा ! केवइए एत्तो गामे वा', 'णगरे वा, खेडे वा, कव्वडे वा मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, णिगमे वा, आसमे वा, सण्णिवेसे वा°, रायहाणी वा ? से आइक्खह, दंसेह । तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा । ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो ! समणा ! केवइए एत्तो गामस्स वा, णगरस्स वा', 'खेडस्स वा, कव्वडस्स वा, मडंबस्स वा, पट्टणस्स वा, दोणमुहस्स वा, आगरस्स वा, णिगमस्स वा, आसमस्स वा, सण्णिवेसस्स वा° रायहाणीए वा मग्गे ? से आइक्खह, दंसेह। तं णो आइक्वेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसि तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगाणं
दूइज्जेज्जा ॥ वियाल-पदं ५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाणं दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं
पडिपहे पेहाए', 'महिसं वियालं पडिपहे पहाए, एवं-मणुस्सं, आसं, हत्थि, सीहं, वग्छ, विगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसरं, सियालं, विरालं, सुणयं,
५८.
१. सं० पा०-आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा। २. स. पा०-जवसाणि वा जाव सेणं। ३. सं० पा०-पाडिपहिया जाव आउसतो।
४. सं० पा०-- गामे वा जाव रायहाणी। ५. सं० पा०—णगररस वा जाव रायहाणीए। ६. सं० पा०—पेहाए जाव चित्ताचिल्लडं।
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तइथं अभयणं (इरिया - तइओ उद्देसो)
१५१
कोल-सुणयं, कोकंतियं, ° चित्ताचिल्लडं - वियालं पडिप पेहाए, णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं. वा, वर्ण वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए ' 'अबहिलेस्से एगंतएणं अप्पाणं वियोसेज्ज • समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥
आमोसग - पदं
६०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया । सेज्जं पुर्ण विहं जाणेज्जा - इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा उवगरणपडियाए संपिंडिया गच्छेज्जा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, जो मग्गाओ मग्गं संक मेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्वंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंस कायं विउसेज्जा, जो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेजा || ६१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा पिंडिया गच्छेज्जा । तेणं आमोसगा एवं वदेज्जा आउसंतो ! समणा ! 'आहर एयं वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुछणं वा- देहि, णिविखवाहि । तं णो देज्जा, णो णक्खिवेज्जा, णो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कट्टु जाज्जा, णो कलुण -पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा ।
तणं आमोसगा 'सयं करणिज्जं " ति कट्टु अक्कोसंति वा', 'बंधंति वा, रुभंति वा, उद्दवंति वा । वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज' वा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, गो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया - आउसंतो ! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा उवगरण -पडियाए सयं करणिज्जं ति कट्टु अक्कोसंति वा जाव परिभवेति' वा । एयप्पगारं मणं वा वई' वा णो पुरओ कट्टु, विहरेज्जा,
१. सं० पा० - अप्पुस्सुए जाव समाहीए ।
२. आहारं एवं (छ); आहर एत्थ ( अ, क, ब ) ।
३. सयं करणिज्जा करणिज्जं (च ) | ४. सं० पा० – अक्कोसंति वा जाव उद्दवंति ।
५. परिट्ठ° ( अ, क, घ, च, छ, ब) । ६.
परिट्ठ ० ( अ, क, घ, च, छ, ब) ।
७. वायं (च); वयं ( छ, ग ) ।
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१५२
आयारचूला अप्पुस्सुए' 'अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज° समाहीए, तओ
संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ॥ ६२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वढेहिं समिते सहिए सया जएज्जासि।
-त्ति बेमि ॥
१. सं० पा०-अप्पुस्सुए जाव समाहीए।
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चउत्थं अज्झयणं भासज्जातं
पढमो उद्देसो वइ-अणायार-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाइं अणा
याराई अणायरियपुव्वाइं जाणेज्जा—जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विरंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विरंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्ज
वज्जेज्जा विवेगमायाए॥ २. धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा-असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइम
वा लभिय णो लभिय, भुजिय णो भुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णो आगए, अदुवा एइ अदुवा णो एइ, अदुवा एहिति अदुवा णो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि णो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि णो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि णो
एहिति ॥ सोडस-वयण-पदं ३. अणुवीइ' णिट्ठाभासी, समियाए संजए भासं भासेज्जा, तं जहा–एगवयणं,
दुवयणं, बहुवयणं, इत्थीवयणं, पुरिसवयणं, णपुंसगवयणं, अज्झत्थवयणं, उवणीयवयणं, अवणीयवयणं, उवणीय अवणीयवयणं, अवणीय-उवणीयवयणं तीयवयणं, पडुप्पन्नवयणं, अणागयवयणं, पच्चक्खवयणं, परोक्खवयणं ।
१. सव्वं वेयं (क, च, ब); सव्वं चेयं (घ)। २. अणुवीय (छ)।
३. इत्यि° (अ)।
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१५४
आयारचूला ४. से १. एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वएज्जा', २. 'दुवयणं वदिस्सामीति
दुवयणं वएज्जा, ३. बहुवयणं वदिस्सामीति बहुवयण वएज्जा, ४. इत्थीवयणं वदिस्सामीति इत्थीवयणं वएज्जा, ५. पुरिसवयणं वदिस्सामीति पुरिसवयणं वएज्जा, ६. णपुंसगवयणं वदिस्सामीति णपुंसगवयण वएज्जा, ७. अज्झत्थवयणं वदिस्सामीति अज्झत्थवयणं वएज्जा, ८. उवणोयवयणं वदिस्सामीति उवणीयवयणं वएज्जा, ह. अवणीयवयणं वदिस्सामीति अवणीयवयणं वएज्जा १०. उवणीय-अवणीयवयण वदिस्सामीति उवणीय-अवणीयवयण वएज्जा, ११. अवणीय-उवणोयवयणं वदिस्सामीति अवणीय-उवणीयवयणं वएज्जा, १२. तीयवयणं वदिस्सामीति तीयवयणं वएज्जा, १३. पडुप्पन्नवयण वदिस्सामोति पडप्पन्नवयणं वएज्जा, १४. अणागयवयण वदिस्सामीति अणागयवयण वएज्जा, १५. पच्चक्खवयणं वदिस्सामोति पच्चक्खवयणं वएज्जा,
१६. परोक्खवयणं वदिस्सामीति परोक्खवयणं वएज्जा ।। अणुवीइ णिहाभासि-पदं ५. 'इत्थी वेस, पुरिस वेस, णपुंसग वेस, एवं' वा चेयं, अण्णं वा चेयं अणुवीइ
णिट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासेज्जा, इच्चेयाई आयतणाई उवाति
कम्म॥ भासज्जात-पदं ६. अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तं जहा–सच्चमेगं पढम भासजायं,
बीयं मोसं, तइयं सच्चामोसं, जेणेव सच्चं वमोसं णव सच्चामोसं-असच्चा
मोस णाम तं चउत्थं भासज्जात ॥ ७. से बेमि--जे अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते
एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायाइं भासिसु वा, भासंति वा, भासिस्संति वा,
पण्णविसु वा, पण्णवति वा, पण्णविस्सति वा ।। ८. सव्वाइं च णं एयाणि अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फास___मताणि चयोवचइयाई विपरिणामधम्माइं भवंतीति अक्खायाइं ॥ ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा--पुव्वं भासा अभासा, भासि
ज्जमाणी भासा भासा, भासासमयविइक्कता भासिया भासा अभासा ।।
१. सं० पा०--वएज्जा जाव परोक्खवयणं । २. इत्थीवेद पुंय णपुंसगवेय (घ, छ, ब) । ३. एयं (घ, छ)। ४. अण्णहा (अ, च, छ, ब)। ५. मेय (अ, घ, छ); °मेत (क)।
६. चओवए (अ); चयोवचयाइं (छ); चयो
वचयमंताणि (ब)। ७. विविहपरिणाम ° (च, छ)। ८. समक्खयाई (अ)। है. 'विइक्कंतं च णं (क, घ, च, छ) ।
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चउत्थं अज्झयणं (भासज्जातं-पढमो उद्देसो)
१५५
सावज्ज-भासा-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-जा य भासा सच्चा, जा य
भासा मोसा, जा य भासा सच्चामोसा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कड़यं निरं फरुसं अण्हयकरि छयणकरि
भेयणकरि परितावणकरि उद्दवणकरि भूतोवघाइयं अभिकंख ‘णो भासेज्जा"। असावज्ज-भासा-पदं ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा-जा य भासा सच्चा सुहुमा,
जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं असावज्जं अकिरिय' अकक्कसं अकडुयं अनिठुरं अफरुसं अणण्हयकरि अछेयणकरि अभेयणकरि अपरितावण
करि अणुद्दवणकरि° अभूतोवघाइयं अभिकंख' भासेज्जा ।। आमंतणी-भासा-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिते वा अपडिसुणेमाणे णो
एवं वएज्जा-'होले ति वा, गोले ति वा", वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा घडदासे ति वा, साण ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा 'इच्चेयाइं तुमं एयाई ते जणगा वा—एतप्पगारं' भासं सावज्ज
सकिरियं जाव भूतोवघाइयं अभिकख नो भासेज्जा॥ १३.
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा-अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो' ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा-एयप्पगारं भासं असावज्ज
जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥ १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थि आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो
एवं वएज्जा-होले ति वा, गोले ति वा', 'वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेण ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चेयाइं तुमं एयाइं ते जणगा वा-एतप्पगारं भासं सावज्ज जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा ॥
१. णो भासं भासेज्जा (अ, ब); भासं णो ५. इतियाइं तुम इतियाइं (अ); एयाइं तुम भासेज्जा (घ)।
(क, च) एतिया तुम° (ब)। २. सं० पा०–अकिरियं जाव अभूतोवघाइयं । ६. तहप्पगारं (छ)। ३. अभिकखं भासं (अ, घ, छ)।
७. आउसतारो (क, घ, छ)। ४. होले इ वा गोले इ वा (घ); होलि त्ति वा ८. सं० पा०-गोले ति वा इत्थीगमेणं णेतव्वं ।
गोलि त्ति वा (छ)।
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आयारचूला
१५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी
एवं वएज्जा-आउसो ति वा, 'भगिणी ति वा", भगवई ति वा, साविगे ति वा, उवासिए ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये' ति वा-एतप्पगारं भासं
असावज्जं जाव अभूतोवघाइय अभिकख भासेज्जा ॥ विधि-निसिद्ध-भासा-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णा एवं वएज्जा–णभोदेवे' ति वा, गज्जदेवे ति वा,
विज्जुदेवे ति वा, पवुटुदेवे ति वा, निवुटुदेवे ति वा, पडउ वा वासं मा वा पडउ, णिप्फज्जउ वा सस्सं मा वा णिप्फज्जउ, विभाउ वा रयणी मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ मा वा जयउ-णो
एतप्पगारं भासं भासेज्जा पण्णवं ॥ १७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे ति वा, गुज्झाणुचरिए ति वा, संमुच्छिए
ति वा, णिवइए ति वा 'पओए, वएज्ज" वा वुटुबलाहगे ति वा ।। १८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सवढेहि समिए सहिए सया जएज्जासि।
-त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो कक्कस-भासा-पदं १६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा जहा वेगइयाई रूवाई पासेज्जा तहावि ताइं गो एवं
वएज्जा, तं जहा-गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा,' 'रायसी रायसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, झिमियं झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, मयं मुए ति वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वा°, महमेहणी महुमेहणी ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, "पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओट
१. भगिणि ति वा भोई ति वा (क, घ, च)। २. धम्मिणिए (क)। ३. णभं देवे (घ)। ४. गज्ज देवे (ब)। ५. पवुट्टो ° (अ)। ६. सासं (अ, ब)।
७. णिवडिए (च)। ८. तओ एवं वदेज्जा (छ)।
६. सं० पा०-कुट्टी ति वा जाव महमेहणो। १०. महुमेही (छ)। ११. सं० पा०--एवं पादणक्ककण्णउच्छिन्नेति
वा।
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उत्थं अज्झयणं ( भासज्जातं - बीओ उद्देसो)
१५७
o
छिन्नं • ओछिन्नेति वा" जे यावण्णे तहप्पगारे तहप्पगाराहि भासाहि बुझ्या'पति माणा । ते यावि तहप्पगाराहिं भासाहि अभिकख णो भांसेज्जा ।। अकक्कस भासा-पदं
२० सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रुवाई पासेज्जा तहावि ताई एवं एज्जा तं जहा - ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसी तेयंसी ति वा, वच्चंसी वच्चसी ति वा, जसंसी जसंसी ति वा, अभिरूवं अभिरुवे ति वा, पडिरूवं परुिवे ति वा, पासाइयं पासाइए ति वा, दरिसणिज्जं दरिसणीए ति वा, जे यावणे तपगारा तहप्पगाराहिं भासाहि बुझ्या बुझ्या णो कुप्पंति माणवा । ते यावि तह पगारा एयप्पगाराहिं' भासाहिं अभिकख भासेज्जा" ।। सावज्ज असावज्ज-भासा-पदं
२१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रुवाई पासेज्जा, तं जहा - वाणि वा', 'फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा अग्गलाणि वा, अग्गलपासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, णूमगिहाणि वा, रुक्ख - गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय - गिहाणि वा, पणिय सालाओ वा, जाण - गिहाणि वा, जाणसालाओ वा, सुहा- कम्मंताणि वा दब्भ-कम्मताणि वा बद्ध-कम्मताणि वा, वक्क - कम्मताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगाल- कम्मताणि वा, कटु-कम्मताणि वा, सुसाण-कम्मताणि वा, संति-कम्मताणि वा, गिरि-कम्मताणि वा, कंदरकम्मताणिवा, सेलोवद्वाण-कम्मंताणि वा, ° भवणगिहाणि वा - तहावि ताई
एवं वज्जा, तं जहा - सुकडे ति वा, सुट्ठकडे ति वा, 'साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा - एयप्पगारं भासं सावज्ज" सकिरियं कक्कसं कडुयं निठुरं फरुसं अण्हयकरि छेयणकरि भेयणकरिं परितावणकरि उद्दवणकर भूतोवघाइयं अभिकंख • णो भासेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा
२२.
वेगइयाई रुवाई पासेज्जा, तं जहा --
o
१. एवं पादनक्क कण्ण ओट्ठ° ( अ ) ; एवं कण्ण नक्क° (छ, ब ) ।
२. एप्प (क, छ) ।
३. X ( अ ) ।
४. भासेज्जा (छ) ।
५. एप्प ( अ, घ, त्र) ।
६. पूर्व सूत्रे 'तहप्पगाराहिं' विद्यते, किन्तु अत्र
प्रतिषु तथा नास्ति ।
७. भासेज्जा । तहप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासेज्जा ( अ, ब ) ।
८. सं० पा० - वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि ।
६. साहुकल्लाणं ति वा ( अ, छ) ।
१०. सं० पा० - सावज्जं जाव णो ।
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१५८
२३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं हा तहावितं णो एवं वएज्जा, तं जहा - सुकडे ति वा, सुट्ठकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा एयप्पगार भास सावज्जं जा भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा |
आयारचूला
पाणि वा जाव भवणगिहाणि वा - तहावि ताई एवं वएज्जा, तं जहाआरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिरुवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा एयप्पगारं भासं असावज्जं ' 'अकिरियं अकक्कसं अकडुयं अनिट्ठरं अफरुसं अणण्यकर अछेयणर्कार अभेयणकरि अपरितावणकर अगुद्दवणकर अभूतोवघाइयं अभिकंख • भासेज्जा |
२४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवक्खडियं हाए एवं वएज्जा, तं जहा- आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुष्णं मणुण्णे ति वा - एयप्पगार भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥
२५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा जलयरं वा, से त्तं परिवृढकार्यं पेहाए ण एवं वज्जा - थूले' ति वा, पमेइले ति वा, वट्टे ति वा, वज्भे ति वा, पाइ ति वा - एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा |
२६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं" "वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा, से त्तं परिवृढकार्य पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा परिवृढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, थिरसंघयणेति वा, चियमंससोणिए ति वा, बहुपडिपुण्णइंदिए ति वा एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेजा ||
२७.
सेभिक्खू वा भिक्खुणो वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए णो एवं वएज्जा, तं जहा - गाओ दोज्झाओ' ति वा, दम्मे ति वा, गोरहे" ति वा, 'वाहिमा ति वा
१. सं० पा० - असावज्जं जाव भासेज्जा ।
२. तहाविहं (घ, ब ) ।
३. तहप्प ० ( अ, च ! ।
४. माणुस्सं (घ, छ) । ५. तं (छ) ।
६. थुल्ले ( अ, क, च, छ) ।
७. सं० पा० - मणुस्सं जाव जलयरं ।
८. दोज्झा ( अ, क, च, छ, ब) 1
६. दम्मा ( अ, च, ब ) ।
१०. गोरहा ( अ, च ब ) ।
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चउत्थं अज्झयणं (भासज्जातं - बीओ उद्देसो)
१५६
रहजग्गाति वा " - एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णो भासेज्जा ।।
२८. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं वएज्जा, तं जहाजुगवे तवा घेणू तिवा, रसवतीति वा, हस्से' ति वा, महल्लए' ति वा, महव्वति वा संहति वा - एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥
२६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणारं पञ्त्रयाई वणाणि य' रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वएज्जा, तं जहा – पासायजोग्गा तिवा, 'हिजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा" ति वा, 'फलिहजोग्गा ति वा, अग्गल " - नावा- उदगदोणिपीढ - चंगबेर - गंगल- कुलिय- जंतलट्ठी - णाभि-गंडी आसण-सयण - जाण उवस्सयजग्गा तिवा - एप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा ॥
३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाई पव्वयाणि वणाणि य रुक्खा महल्ला हाए एवं एज्जा, तं जहा - जातिमता ति वा दीहवट्टा ति वा, महालया ति वा, पयायसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासाइया ति वा, दरिसणीयाति वा, अभिरूवा ति वा, पडिरूवा ति वा - एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ॥
३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया वणफला [ अंबा ? ] पेहाए तहावि ते णो एवं वएज्जा, तं जहा - पक्का ति वा, पायखज्जाति वा, वेलोचिया' ति वा, टाला तिवा, वेहिया ति वा एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकं णो भासेज्जा ॥
३२. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया 'वणफला अंबा" पेहाए एवं वएज्जा, तं जहा -- असंथडाइ वा बहुणिवट्टिमफला ति वा, बहुसंभूया इ वा, भूयरूवा ति वा -- एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ।। सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए तहावि ताओ णो एवं वएज्जा, तं जहा -- पक्का ति वा, नीलिया ति वा, छवीया " ति वा, लाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा तिवा - एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतो घाइयं अभिकं णो भासेज्जा ॥
३३.
१. वाहनयोग्यो रथयोग्य : ( वृ ) |
२. ह्रस्से (घ, छ); रहस्से ( ब ) | ३. महल्ले ( छ, ब ) |
४. वा ( च ब ) ।
५. तोरणजोग्गा ति वा गिजोग्गा ( अ, ब ) । ६. अग्गल जोग्गा तिवा फलिह° (च) ।
७. सिंगबेर ( अ, ब ) ।
८.
वेलोविगा ( अ ) ; वेलोतिया (क, घ, च); वेलोविया ( ब ) |
६. वणफणा (क, च, ब ) ; फलअंबा (वृ ) । १०. छवी ( अ ) ।
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१६०
आयारचूला ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पहाए एवं वएज्जा, तं
जहा--रूढा ति वा, बहुसंभूया ति वा, थिरा ति वा, ऊसढा ति वा, गब्भिया ति वा, पसूया ति वा ससारा' ति वा-एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव
अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा । ३५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाइं सुणेज्जा, तहावि ताइं णो
एवं वएज्जा, तं जहा--सुसद्दे ति वा, 'दुसद्दे ति वा२–एयप्पगारं भासं सावज्जं
जाव भूतोवघाइयं अभिकख णो भासेज्जा। ३६. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाइं सुणेज्जा', ताइं एवं वएज्जा,
तं जहा-सुसदं सुसद्दे ति वा, 'दुसइं दुसद्दे ति वा"-एयप्पगारं भासं
असावज्ज जाव अभूतोवघाइयं अभिकख भासेज्जा ।। ३७. एवं रूवाइं–कण्हे ति वा, णीले ति वा, लोहिए ति वा, हालिद्दे ति वा,
सूकिल्ले ति वा, गंधाइं--सुब्भिगंधे ति वा, दुब्भिगंधे ति वा, रसाई-तित्ताणि वा, कडुयाणि वा, कसायाणि वा, अंबिलाणि वा,
महुराणि वा, फासाइं-कक्खडाणि वा, मउयाणि वा, गुरुयाणि वा, लहुयाणि वा,
सीयाणि वा, उसिणाणि वा, णिद्धाणि वा, रुक्खाणि वा॥ अणुवीइ णिट्ठाभासि-पदं ३८. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा वंता 'कोहं च माणं च मायं च लोभं च', अणवीइ
णिट्ठाभासी णिसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं
भासेज्जा॥ ३६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वटेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।
—त्ति बेमि ॥
१. ससारा (अ, छ)। २. ४ (च, छ)। ३. x (अ, क, च, छ, ब)।
४. X (च, छ)। ५. कोहवयणं माणं वा ४ (क, घ, च, ब)।
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पंचमं अज्झयणं
वत्थेसणा
पढमो उद्देसो वत्थजाय-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं एसित्तए, सेज्जं पूण वत्थं
जाणेज्जा, तं जहा--जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तगं वा, खोमियं
वा, तुलकडं वा, तहप्पगारं वत्थं'२. जे णिग्गंथे तरुणे जुगवं' बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं वत्थं धारेज्जा, णो
बितियं ॥ जा णिग्गंथो, सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा-एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एगं चउहत्थवित्थारं, तहप्पगारेहि' वत्थेहिं असंविज्ज
माणहि अह पच्छा एगमेग संसीवेज्जा । अद्धजोयण-मेरा-पदं ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए वत्थ-पडियाए नो
अभिसंधारेज्जा गमणाए॥ अस्सिपडियाए वत्थ-पदं ५. से भिक्ख वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं
साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई 'भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं
१. धारयेदित्युत्तरेण सम्बन्धः (वृ) । २. जुववं (घ)। ३. एएहिं (अ, च, ब)।
४. अविज्ज ० (अ, ब)। ५. सं० पा०-पाणाइं जहा पिंडेसणाए।
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आयारचूला पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुय अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ "से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणोहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा
अफासूयं अणेसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-वत्थ-पदं
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकड वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहड वा अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते
णो पडिगाहेज्जा ॥ १० से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा-बहवे समण-माहण
१. सं० पा०–एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ बढे समणमाहणस्स
तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए ।
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पंचमं अज्झयणं (वत्थेसणा–पढमो उद्देसो)
अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ । तं तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं,
अणासेवितं—अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। ११. अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्टियं, परिभुत्तं,
आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । भिक्खु-पडियाए-कोयमाइ-वत्थ-पदं १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा-असंजए भिक्खु-पडियाए
कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घटुं वा, मटुं वा, संमटुं' वा, संपधूमियं' वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं', 'अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगा
हेज्जा॥ १३. अह पुणेवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकड', 'बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं,
आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा॥ महद्धणमुल्लवत्थ-पदं १४. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण वत्थाइं जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धण
मोल्लाइं तं जहा-आजिणगाणि वा, सहिणाणि' वा, सहिण-कल्लाणाणि वा, आयकाणि वा, कायकाणि वा, खोमयाणि वा, दुगुल्लाणि वा, मलयाणि वा, पत्तण्णाणि वा, अंसुयाणि वा, चीणंसुयाणि वा, देसरागाणि' वा, अमिलाणि वा, गज्जलाणि वा, फालियाणि वा, कोयहा [वा? ] णि" वा, कंबलगाणि वा, पावाराणि वा-अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं वत्थाई महद्धणमोल्लाइं२
'अफासुयाइं अणेसणिज्जाइं ति मण्णमाणे . लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ अजिणवत्थ-पदं १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, १. संसट्ठ (क)।
६. वेसरागाणि (अ); देसराणि (छ); वेसराणि २. धूवितं (अ, छ)।
(ब)। ३. सं० पा०-अपूरिसंतरकडं जाव अणासेवितं। १०. फलियाणि (क, च, छ, ब)। ४. सं० पा०-पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेज्जा। ११. कायहाणि (अ); कोहयाणि (घ); निशीथस्य ५. आतिणाणि (अ); अजिणमाणि (क, च)। १७ उद्देशकस्य चूर्णी 'कोतवाणि' इति पाठो ६. सहणाणि (छ)।
लभ्यते। ७. आयाणाणि (अ, क, घ, च); आयाण (ब)। १२. सं० पाo-मद्धणमोल्लाई'लाभे । ८. कायाणाणि (घ, ब)।
१३. वा वत्थाणि वा (क, छ) ।
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१६४
आयारचूला
तं जहा -- उद्दाणि वा, पेसाणि वा, पेसलेसाणि वा, किण्हमिगाईणगाणि वा, णील मगाईणगाणि वा, गोरमिगाईणगाणि वा, कणगाणि वा, कणगकताणि वा, कणगपट्टाणिवा, कणगखइयाणि वा, कणगफुसियाणि वा, वग्घाणि वा, विवग्घाणि वा, आभरणाणि वा, आभरणविचित्ताणि वा - अण्णयराणि वा तहप्पगाराई आईणपाउरणाणि वत्थाणि - अफासुयाई अणेसणिज्जाई ति मण्णमाणे • लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥
areपडिमा पदं
१६. इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहि वत्थं एत्तिए ||
१७. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा - जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जाफाणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - पढमा पडिमा || १८. अहावरा दोचा पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ- पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाई वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा०, कम्मर वा । से पुव्वामेत्र आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भगणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं ? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा - फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - दोच्चा पडिमा ||
तं जहा - गाहावई वा',
0
१६. अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तं जहा - अंतरिज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा" • परो वा से देज्जा - फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते. पडगाज्जातच्चा पडिमा ||
२०. अहावरा चउत्था पडिमा -- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्भिय-धम्मियं वत्थं जाज्जा, ज च बहवे समण - माहण - अतिहि - किवण-वणीमगा णावकखंति, तहप्पगारं उज्झिय- धम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से' देज्जा-
१. उद्दवाणि (घ ); ओड्डाणि (छ) ।
२. पेणाणि (छ) ।
३. कणगकंताणि ( अ, क, घ, च, छ, ब ) ; कनककान्तीनि ( वृ) |
३. सं० पा० - वत्थाणि लाभे ।
५. सं० पा० – गाहावई वा जाव कम्मकरिं ।
६. सं० पा० - फासूयं "लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा |
७. सं० पा० – जाएजा जाव पडिगाहेज्जा ह. णं ( अ, ब ) ।
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पचमं अज्झयणं (वत्थेसणा-पढमो उद्देसो)
१६५
फासुयं' 'एसणिज्जर ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा-चउत्था
पडिमा ॥ २१. इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं 'अण्णयरं पडिम पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा
मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया,
अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति° ॥ संगार-वयणपुव्वं वत्थ-पदं २२. सिया णं एयाए एसणाए एसमाणं परो वएज्जा-आउसंतो ! समणा !
एज्जाहि तुमं मासेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा, तो ते वयं आउसो ! अण्णयरं वत्थं दाहामो। एयप्पगारं' णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउं ? इयाणिमेव दलयाहि। से सेवं वयंत परो वएज्जा-आउसंतो! समणा ! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दाहामो । से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकखसि मे दाउं ? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंतं परो णेत्ता वदेज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो। अवियाइं वयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई भयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स वत्थं चेइस्सामो । एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्ण
माणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। वत्थ-आघसण-पदं २३. सिया णं परो णेत्ता वएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं
वत्थं सिणाणेण वा", 'कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णण वा,
१. सं० पा०-फासुयं पडिगाहेज्जा । २. यं (अ)। ३. स० पा० -पडिमाणं जहा पिंडेसणाए। ४. तराए (घ, च, छ, ब)। ५. दासामो (अ, च, ब)। ६. तहप्प ° (अ)।
७. गारं (छ)। ८. णेवं (क, घ, च, छ); एवं (ब)। ६. जाव (अ, क, घ, च, छ, ब) । १०. सं० पा०—अफासुयं जाव णो। ११. सं० पा०—सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता।
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आयारचूला
पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिणाणेण वा जाव आघसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो
पडिगाहेज्जा॥ वत्थ-उच्छोलण-पदं २४. से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं
वत्थं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा', पधोवेत्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पव्वामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम वत्थं सिओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा पधोवेहि वा, अभिकखसि' मे दाउं ? एमेव दलयाहि ।” से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा पधोवेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं--अफासुयं अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ॥ वत्थ-विसोहण-पदं २५. से णं परो णेत्ता वएज्जा- “आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं
वत्थं-कंदाणि वा', 'मूलाणि वा, [तयाणि वा ? ], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा°, हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहेहि, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए।" से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता दलएज्जा, तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो
पडिगाहेज्जा। वत्थ-पडिलेहण-पदं २६. सिया से परो णेत्ता वत्थं णिसिरेज्जा। से पुवामेव आलोएज्जा–आउसो !
त्ति वा भइणि ! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतोअंतेणं पडिले हिस्सामि ।। १. सं० पा०–अफासुयं जाव णो।
४. सं० पा०-अभिकखसि सेसं तहेव जाव णो। २. X (छ)।
५. सं० पा०-कंदाणि वा जाव हरियाणि । ३. पच्छोलेत्ता (छ)।
६. सं० पा०–अफासुयं जाव णो।
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पंचमं अज्झयणं ( वत्थेसणा - पढमो उद्देसो)
१६७
मणी
२७. केवली बूया आयाणमेयं - 'वत्थंतेण उ" बद्धे सिया कुंडले वा, गुणे वा, वा', 'मोत्तिए वा हिरण्णे वा, सुवण्णे वा, कडगाणि वा, तुडयाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एंगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा रयणावली वा, पाणे वा, बीए वा, हरिए वा । अभिक्खू पुव्ववदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं पुव्वामेव वत्थं अंतोअंतेण पडिले हिज्जा |
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अंडाइ-वत्थ-पदं
२८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा - सअंडं सपाणं सबीयं सहरियंसउस सउदयं सउत्तिग- पणगदग मट्टिय-मवकडा संताणगं, तहप्पगारं वत्थं - अफासुय' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा | अपंडाइ-वत्थ-पदं
o
२९. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा -- अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणगदग मट्टिय-मक्कडा संताणगं, अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्ज, रोइज्जंतं ण रुच्चइ, तहप्पगारं वत्थं - अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाहेज्जा | ३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा - अप्पड' 'अप्पपाण अप्पati अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग पणगदग मट्टिय-मक्कडा' संताणगं, अलं थिरं धुवं धारणिज्जं, रोइज्जतं रुच्चइ, तहप्पगारं वत्थं - फासु एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा |
वत्थ-परिकम्मपदं
३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा " णो णवए मे वत्थे" त्ति कट्टु णो बहुदेसिएण " सिणाणेण वा", "कक्केण वा, लोद्वेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आघंसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ॥
३२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा " णो णवए मे वत्थे" त्ति कट्टु णो बहुदेसिएण
१. वत्थे ते उ (च); वत्थेण उ (घ, ब ) । २. सं० पा०-- मणी वा जाव रयणावली । ३. सं० पा०-- -- पुव्वोवदिट्ठा जाव जं । ४. सं० पा० - सअंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा० - अफासुयं जाव णो । ६,८. सं० पा० - अप्पंडं जाव संताणगं । ७. सं० पा० - अफासुयं जाव णो । ६. सं० पा० - फासूयं जाव पडिगाहेज्जा ।
ܘ
o
१०. निशीथे ( १४/१५) 'बहुदेवसिएण ' पाओ लभ्यते । आचारांगस्य चूर्णावपि ( पृ० ३६४ ) 'बहुदेवसिएण ' पाठोस्ति, किन्तु तस्य वृत्तौ ( पृ० ३६४ ) ' बहुदेसिएण' पाठो व्याख्यातोति । प्रतिषु चापि एष एव लभ्यते तेनात्र अयमेव पाठः स्वीकृतः ।
११. सं० पा०-- सिणाणेण वा जाव पघंसेज्ज ।
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१६८
आयारचूला
सीओदग-वियडेण वा', 'उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा°,
पधोएज्ज वा ॥ ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुन्भिगंधे मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण
सिणाणण वा', 'कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णण वा, पउमेण वा
आघसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ॥ ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे वत्थे" त्ति कटु णो बहुदेसिएण
सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा ॥
वत्थ-आयावण-पदं
३५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए
वा, तहप्पगारं वत्थं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससणिद्धाए' पुढवीए', *णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावाससि वा दारुए जीवपइट्रिए सअड सपाण सबाए सहारए सउस सउदए
सउत्तिग-पणग-दग-मदिय-मक्कडा संताणए आयावेज्ज वा. पयावेज्ज वा ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं वत्थं थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालसि' वा, कामजलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकपे चलाचले
णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ॥ ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं वत्थं कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलसि वा, 'लेलुसि वा', अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए 'दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले
णो आयावेज्ज वा°, णो पयावेज्ज वा ॥ ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं वत्थं खधंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए 'दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो आयावेज्ज वा °, णो पयावेज्ज वा ।।
१. सं० पा०-सीओदग-वियडेण वा जाव पधो- ४. सं० पा०—पुढवीए जाव संताणए । एज्जा ।
५. ऊसु° (अ)। २. सं० पा--- सिणाणेण वा तहेव सीओदग- ६. जाव (अ);X (छ)।
वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा आला- ७. सं० पा०-अंतलिक्खजाए जाव णो। वओ।
८. सं० पा०-अंतलिक्खजाए जाव णो। ३. ससिणि (क, च)।
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पचम अज्झयणं (वत्थेसणा-बीओ उद्देसो)
१६६ ३६. से तमादाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा',
'अद्विरासिंसि किट्टरासिसि वा, तुसरासिसि वा, गोमयरासिसि वा', अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिले हिय, पमज्जिय
पमज्जिय तओ संजयामेव वत्थं आयावेज्ज वा, पयावेज्ज वा ॥ ४०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सवढेहिं समिए सहिए सया जए ज्जासि।
--त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो णो धोएज्जा रएज्जा-पदं ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाइं वत्थाई जाएज्जा, अहापरिग्गहियाई
वत्थाइं धारेज्जा, णो धोएज्जा णो रएज्जा, णो धोयरत्ताई वत्थाई धारेज्जा,
अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए। एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गियं ।। सव्वचीवरमायाए-पदं ४२. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे सव्वं
चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ ४३. “से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्खम
माणे वा, पविसमाणे वा सव्वं चीवरमायाए बहिया वियार-भूमि वा विहार
भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ॥ ४४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं चीवरमायाए
गामाणुगामं दूइज्जेज्जा॥ ४५. अह पुणेवं जाणेज्जा-तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा
महियं सण्णिवयमाणि पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सव्वं चीवरमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा, गामाणुगामं वा दूइज्जेज्जा ॥
१. सं० पा०--झामथंडिलंसि वा जाव अण्ण
यरंसि। २. सं० पा०--सामग्गियं । ३. सं० पा०–एवं बहिया विचारभूमि वा
विहारभूमि वा गामाणुगामं दूइज्जेजा अह पुणेवं जाणेज्जा तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सव्वं चीवरमायाए।
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१७०
आयारचूला
४७.
पाडिहारिय-वत्थ-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा एगइओ 'मुहुत्तगं-मुहुत्तगं" पाडिहारियं वत्थं
जाएज्जा-एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छेज्जा, तहप्पगारं वत्थं णो अप्पणा गिण्हेज्जा, णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थ-परिणाम करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु' एवं वदेज्जा-"आउसंतो ! समणा! अभिकखसि वत्थं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिद्ववेज्जा। तहप्पगारं 'वत्थं ससंधियं तस्स चेव णिसिरेज्जा, ‘णो णं साइज्जेज्जा॥ से एगइओ एयप्पगारं' णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि 'मुहुत्तगं-मुहुत्तगं' जाइत्ता' एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छंति, तहप्पगाराणि वत्थाणि णो अप्पणा गिण्हंति, णो अण्णमण्णस्स अणुवयंति", णो पामिच्चं करेंति, णो वत्थेण वत्थ-परिणाम करेंति, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेति-"आउसंतो! समणा ! अभिकखसि वत्थं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिवेंति । तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि तस्स चेव णिसिरेंति °, णो णं सातिज्जति, ‘से हंता' अहमवि मुहत्तगं" पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि ।
अवियाइं एयं ममेव सिया । माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा । वत्थविक्किया-पदं ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताई वत्थाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाई
१. मुहुत्तगं (घ, च, छ, ब)। २. जाव एगाहेण (अ, क, घ, च, छ, ब)। ३. • मित्ता (घ, च, छ, ब)। ४. ससंधियं वत्थं (अ); वत्थं ससंधियं वत्थं
(च, छ)। ५. णो अत्ताणं (अ, क, छ); न अत्ताणं (ब)। ६. तह ° (ब)। ७. मुहुत्तगं (छ)। ८. जाएज्जा (छ)। ६. जाव एगाहेण (अ, क, घ. च, छ, ब)।
१०. तं चेव जाव णो साइज्जति बहुवयणेण
भासियव्वं (क, च, छ); तं चेव जाव णो साइज्जति बहुमाणोए भासियव्वं (अ); तं चेव जाव णो साइज्जति बहुवयणेण भाणियव्वं (घ); तं चेव जाव णो साइज्जति बहुमाणेणं भासियव्वं (ब); सं० पा०-अणुवयंति तं चेव जाव णो सातिज्जति बहु
वयणेणं भाणियव्वं । ११. मुहुत्तं (अ, छ, ब)। १२. जाव एगाहेण (अ, क, घ, च, छ, ब)।
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पंचमं अज्झयणं (वत्थेसणा - बीओ उद्देसो)
१७१
णो वणमंताई करेज्जा, "अण्णं वा वत्थं लभिस्सामि" त्ति कट्टु णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्च कुज्जा, णो वत्थेण वत्थ- परिणामं करेज्जा', णो परं उबसंकमित्तु एवं वदेज्जा – “आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि मे वत्थं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिट्ठवेज्जा, जहा चेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ ।
परं च णं अदत्तहारि पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णिदाणाए णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा', 'णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुवा अणुविज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दृइज्जेज्जा |
आमोसग-पदं
४९. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दृइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया । सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा वत्थ-पडियाए संपिडिया' गच्छेज्जा", "णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।।
५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया' गच्छेज्जा । तेणं आमोसगा एवं वदेज्जा - प्राउसंतो ! समणा ! आहरेयं वत्थं, देहि, निक्खिवाहि" । "तं णो देज्जा, जो णिक्खिवेज्जा, णो वंदियवंद जाज्जा, णो अंजलि कट्टु जाएज्जा, णो कलुण-पडियाए जाएज्जा, for जाया जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा ।
ते णं आमोसगा सयं करणिज्जं ति कट्टु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, संभंति वा, उद्दवंति वा, वत्थं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूया -
१. कुज्जा (च) ।
२. वेयं ( अ, च); मेयं (क, घ, ब ) ।
३. सं० पा० – गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए
तओ ।
४. संपडिया (क, च, ब ) ।
५. सं० पा०--गच्छेज्जा जाव गामाणुगामं ।
६. पडिया ( अ ) ; संपडिया (क,घ, च); संपंडिया (छ) ।
७. सं० पा० - निक्खिवाहि णात्तं वत्थपडियाए ।
जहा इरियाए
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आयारचूला
आउसंतो ! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा वत्थ-पडियाए सयं करणिज्जं ति कट्टु अक्कोति वा, बंधंति वा, संभंति वा, उद्दवंति वा, वत्थं अच्छिदेति वा, अवहरेति वा परिभवेति वा । एयप्पगारं मणं वा, वई वा णो पुरओ कट्टु विहरेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा |
५१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए या जज्जासि
-त्ति बेमि° ॥
१. सं० पा० - सामग्गियं ।
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छट्ठ अज्झयणं पाएसणा पढमो उद्देस
पायजाय-पदं
१. सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा - अलाउपाय' वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा-तहप्पगारं पायं
एगपाय-पदं
२. जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, णो बीयं ॥
अद्धजोयण- मेरा-पदं
३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण - मेराए पाय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
पडिया पाय-पदं
४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई' 'भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्वं अभिहडं ग्राहट्टु चेति । तं तहप्पगारं पायं
१. लाउयपाय (क, च, छ); अलाउयपायं (घ ) । २. बितियं ( च, छ, ब ) ।
३. सं० पा० - पाणाई जहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा । पंचमे बहवे समणमाहणा
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पगणिय-पगणिय तहेव से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणा वत्सणाला ओ |
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५.
आयारचूला
पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफा असणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएति । तं तहप्पगारं पाय पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वाट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफा असणिज्जं ति मण्णमाणं लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एवं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्टु चेति । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वात्तद्वियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासु असणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाज्जा | ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएति । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफा अणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।।
समण - माहणाइ समुद्दिस्स पाय-पदं
८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - बहवे समण-माहणअतिहि - कवण - वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएइ । तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहड वाणी वा अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा परिभुत्तं वा अपरिभुक्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा -- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
डिगाज्जा |
६. से' भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - बहवे समण-माहण
१. यद्यपि प्राप्तप्रतिषु 'बहवे समणमाहण'
इति सूत्रात् पूर्व 'अस्संजए भिक्खु
पडियाए' एतत् सूत्रं लभ्यते, किन्तु वस्त्रषणाया: ( १०-१३) क्रमेण पूर्वं 'बहवे समण
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छटुं अन्झयणं (पाएसणा–पढमो उद्देसो)
१७५ अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चएति । तं तहप्पगारं पायं अपुरिसंतरकड, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अणा
सेवियं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ १०. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं, आसे
वियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ॥ भिक्खु-पडियाए कीयमाइ-पदं ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु-पडियाए
कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घटुं वा, मटुं वा, संमटुं वा, संपधूमियं वातहप्पगारं पायं अपुरिसंतरकडं, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं,
अणासेवियं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । १२. अह पण एवं जाणेज्जा-परिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्रियं, परिभत्तं,
आसेवियं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । महद्धणमुल्लपाय-पदं १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण पायाइं जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धण
मुल्लाइं, तं जहा–अय-पायाणि वा, तउ'-पायाणि वा, तंब-पायाणि वा, सीसग-पायाणि वा, हिरण्ण-पायाणि वा, सुवण्ण-पायाणि वा, रीरिय-पायाणि वा, हारपुड-पायाणि वा, मणि-काय-कंस-पायाणि वा, संख-सिंग-पायाणि वा, दंत-चेल-सेल-पायाणि वा, चम्म-पायाणि वा-अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं महद्धणमुल्लाइं पायाइं-अफासुयाई 'अणेसणिज्जाइं ति मण्ण
माणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा । पाय-बंधण-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण पायाइं जाणिज्जा विरूवरूवाइं महद्धण
बंधणाइं तं जहा-अयबंधणाणि वा', 'तउबंधणाणि वा, तंबबंधणाणि वा, सीसगबंधणाणि वा, हिरण्णबंधणाणि वा, सुवण्णबंधणाणि वा, रीरियबंधणाणि
माहण °' सूत्रं तत्पश्चात् 'अस्संजए भिक्खू संकेतितम् । पडियाए' एतत् सूत्रं युज्यते, अत: एष एव १. तउय (घ)। क्रमोत्र स्वीकृतः । सूत्रस्य विपर्ययो लिपि- २. स० पा०-अफासुयाइं जाव णो। दोषेण जात इति प्रतीयते । चूर्णी वृत्तौ च न ३. सं० पा०-अयबंधणाणि वा जाव चम्मव्याख्याते इमे सूत्रे । प्राप्तविपर्ययं परिलक्ष्यैव बंधणाणि । जयाचार्येण सूत्रस्य विचित्रा गतिरिति
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१७६
आयारचूला
वा, हारपुडबंधणाणि वा मणि काय - कंस बंधणाणि वा, संख-सिंग- बंधणाणि वा, दंत-चेल-सेल-बंधणाणि वा०, चम्मबंधणाणि वा - अण्णयराई वा तप्पगाराई मह्द्धणबंधणाई - अफासुयाई' 'अणेसणिज्जाई ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।।
O
पाय-पडिमा पदं
१५. इच्चेयाइं आयतणाई' उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहि पायं एसित्तए ||
१६. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय उद्दिसिय पायं जाज्जा, तं जहा - लाउय - पायं वा, दारुपायं वा, मट्टिया पायं वा तहप्पारं पायं सयं वा णं जाएज्जा', 'परो वा से देज्जा - फासूयं एसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - पढमा पडिमा ||
१७. अहावरा दोच्चा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए पायं जाएज्जा, तं जहा -- गाहावई वा', 'गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइपुत्तं वा गाहावइ-धूयं वा, सुहं वा, धाई वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मर वा । से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं पायं तं जहा - लाउय - पायं वा, दारु- पायं वा मट्टिया पायं वा ? तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा', 'परो वा से देज्जाफासुयं एसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते • पडिगाहेज्जा - दोच्चा पडिमा | १८. अहावरा तच्चा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा, संगतियं वा, वेजयंतियं' वा - तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा -- फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा- - तच्चा पडिमा || १६. अहावरा चउत्था पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय- धम्मियं पायं जाएज्जा, जं चऽण्णे बहवे समण - माहण - अतिहि - किवण - वणीमगा णावकखंति, जाएज्जा, परो वा से देज्जापडिगाहेज्जा - चउत्था पडिमा || पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा
तहप्पगारं उज्भिय- धम्मियं पायं सयं वा णं सणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते २०. इच्चेयाणं चउण्हं परिमाणं अण्णयरं पडिमं
०
मिच्छा विन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने ।
१. सं० पा० – अफा सुयाई जाव णो । २. आया ० (घ ) ।
३. सं० पा०-- जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा । ४. सं० पा० - गाहावई वा जाव कम्मकरिं । ५. स० पी --जाएज्जा जाव पडिगाहेज्जा ।
६. वेजयंति ( अ, ब, क, घ, च, छ) ।
७. सं० पा०—सयं वा जाव पडिगाहेज्जा । ८. सं० पा०-- सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा | ६. सं० पा०-- पडिमं जहा पिंडेसणाए ।
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छटुं अज्झयणं (पाएसणा-पढमो उद्देसो)
१७७ जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया,
अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति ।। संगार-वयणपुव्वं पाय-पदं २१. से णं एताए एसणाए एसमाणं परो पासित्ता वएज्जा-आउसंतो! समणा !
एज्जासि तुमं मासेण वा, 'दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा तो ते वयं आउसो ! अण्णयरं पायं दाहामो। एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकखसि मे दाउं ? इयाणिमेव दलयाहि। से सेवं वयंत परो वएज्जा आउसंतो! समणा ! अणुगच्छाहि तो ते वयं अण्णतरं पायं दाहामो । से पुव्वामेव आलोएज्जा-आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकखसि मे दाउं ? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंत परो णेत्ता वदेज्जा आउसो ! त्ति वा, भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं समणस्स दाहामो। अवियाइं वयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स पायं' चेइस्सामो । एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ पाय-अब्भंगण-पदं २२. से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं
तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, 'वसाए वा" अब्भंगेत्ता वा', 'मक्खेत्ता वा समणस्स णं दासामो।” एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पूव्वामेव आलोएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुमं पायं तेल्लेण वा जाव अब्भंगाहि वा मक्खाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं ? एमेव दलयाहि।" से सेवं वयंतस्स परो तेल्लेण वा जाव अभंगेत्ता वा मक्खेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेज्जा। पाय-आघसण-पदं
२३. से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं१. सं० पा० - मासेण वा जहा वत्थेसणाए। ४. सं० पा०-अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाइ २. जाव (अ, क, घ, च, छ, ब)।
तहेव सीओदगादि कंदादि तहेव । ३, ४ (क, च, ब)।
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१७८
आयारचूला
सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चण्णेण वा, पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम पायं सिणाणेण वा जाव आघसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेव वा जाव आघंसित्ता वा पघंसित्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेज्जा॥ पाय-उच्छोलण-पदं २४. से णं परो णेत्ता वएज्जा-“आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं
सीओदग-वियडण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा. पधोवेत्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा--"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयं तुम पायं सीओदगवियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पधोवेहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि ।। से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेत्ता वा, पधोवेत्ता वा दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुर्य अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। पाय-विसोहण-पदं २५. से णं परो णेत्ता वएज्जा--"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा आहरेयं पायं
कंदाणि वा, मूलाणि वा [तयाणि वा ? ] पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा मा एयाणि तुमं कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहेहि, णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे पाये पडिगाहित्तए।" से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा जाव हरियाणि वा विसोहित्ता दलएज्जा, तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेज्जा ।। सपाण-भोयण-पडिग्गह-पदं
से णं परो णेत्ता वएज्जा-आउसंतो! समणा ! मुहत्तगं-मुहत्तगं अच्छाहि जाव ताव अम्हे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवकरेंसु वा, उवक्खडेसु वा, तो ते वयं आउसो ! सपाणं सभोयणं पडिग्गहगं दासामो,
२६.
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छटुं अज्झणं ( पाएसणा - पढमो उद्देसो)
१७६
तुच्छए पडिग्गहए दिणे समणस्स णो सुट्टु साहु भवइ । से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ आहाकम्मिए असणे वा पाणे वा खाइमे वा साइमे वा भोत्तए वा, पायए वा, मा उवकरेहि, मा उवक्खडेहि, अभिकंखसि मे दाउ ? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा उवकरेत्ता उवक्खडेत्ता सपाणगं सभोयणं पडिग्गहगं दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं -- अफासु' 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते • णो पडिगाज्जा | डिग्गह- पडिलेहण-पदं
२७. सिया से परो त्ता' पडिग्गहं णिसि रेज्जा, से पुव्वामेव आलोएज्जा - आउसो ! त्ति वा भइणि ! त्ति वा तुमं चेव णं संतियं पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिले हिस्सामि ||
२८. केवली बूया आयाणमेयं - अंतो पडिग्गहंसि पाणाणि वा, बीयाणि वा,
हरियाणि वा ।
भिक्खू पुट्ठा एस पइण्णा', "एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो ० जं पुव्वामेव पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिलेहिज्जा ॥
अंडाइ - पाय-पदं
२६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - सअंडं' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिंग पणग- दग मट्टिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं पायं - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाज्जा | अपंsts- पाय-पदं
३०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग- पणगदग मट्टिय-मक्कडासंताणगं, अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज्ज, रोइज्जतं ण रुच्चइ, तहप्पगारं पायं - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाज्जा ॥
३१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा - अप्पंड अप्पपाणं अप्पवीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणगदग मट्टिय-मक्कडासंताणगं, अलं थिरं धुवं धारणिज्जं, रोइज्जतं रुच्चइ, तहप्पगार पायें - फासूयं एसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते पडिगाज्जा |
१. सं० पा०-- अफासूयं जाव णो ।
२. उवणेत्ता (घ, च, ब ) ।
३. सं० पा०
४. सं० पा०
पइण्णा जाव जं ।
सअंडादि सव्वे आलावगा जहा
वत्थेसणाए णाणत्तं तेल्लेण वा घएण वा वणीएण वा वसाए वा सिणाणादि जाव अण्णयरंसि वा ।
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१८०
आयारचूला
पाय-परिकम्म-पदं ३२ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा “णो णवए मे पाये" त्ति कटु णो बहुदेसिएण
तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अब्भंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा ॥ ३३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "णो णवए मे पाये” त्ति कटु णो बहुदेसिएण
सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णण वा, पउमेण वा
आघसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ।। ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा “णो णवए मे पाये' त्ति कटु णो बहुदेसिएण
सीतोदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा।। ३५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे पाये' त्ति कटु णो बहुदेसिएण
तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अब्भंगेज्ज वा, मक्खेज्ज वा ।। ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे पाये" त्ति कट्ठ णो बहदेसिएण
सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णण वा, पउमेण वा
आघंसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा ।। ३७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा "दुब्भिगंधे मे पाये” त्ति कटु णो बहुदेसिएण
सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा ।। पाय-आयावण-पदं ३८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्ज पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं पायं णो अणंतरहियाए पुढवीए, णो ससिणिद्धाए पुढवीए, णो सस रक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए [अण्णयरे ? ] जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए आयावेज्ज
वा, पयावेज्ज वा ॥ ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं पायं थूणंसि वा, गिहेलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले
णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ॥ ४०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं पायं कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलंसि वा, लेलुंसि वा, अण्णतरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले
णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ॥ ४१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं आयावेत्तए वा, पयावेत्तए वा,
तहप्पगारं पायं खंधसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा,
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छ8 अज्झयण (पाएसणा-बीओ उद्देसो)
हम्मियतलंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते
अणिकपे चलाचले णो आयावेज्ज वा, णो पयावेज्ज वा ॥ ४२. से तमादाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतवमक्कमेत्ता अहे झामथंडिलंसि वा,
अद्विरासिसि वा, किट्टरासिसि वा, तुसरासिसि वा, गोमयरासिसि वा°, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय
पमज्जिय तओ संजयामेव पायं आया वेज्ज वा, पयावेज्ज वा ।। ४३. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥ बीओ उद्देसो पडिग्गह-पेहा-पदं ४४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसमाणे
पुवामेव पहाए पडिग्गहगं, अवहट्ट पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव
गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा ।। ४५. केवली बूया आयाण मेयं-अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा, बोए वा, रए वा
परियावज्जेज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा', 'एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो. जं पुवामेव पहाए पडिग्गह, अवहटु पाणे, पमज्जिय रयं तओ संजयामेव
गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज वा ॥ सीओदगादिसंजुत्तपाय-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे
सिया से परो आह?' अंतो पडिग्गहगंसि सीओदगं परिभाएत्ता णोहट्ट दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा-अफासुय'
•अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ४७. से य आहच्च पडिग्गहिए सिया खिप्पामेव उदगंसि साहरेज्जा', सपडिग्गहमा
याए पाणं परिवेज्जा, ससणिद्धाए 'वा णं" भूमीए णियमेज्जा ॥ ४८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा, ससणिद्धं वा पडिग्गहं णो आमज्जेज्ज
१. पविठू ° (क, च, चू)। २. सं० पा०-पइण्णा जाव जं। ३. अभिहटु (अ, क, च, छ, ब)। ४. सं० पा०-अफासुय जाव णो।
५. सिया से (अ)। ६. आहरेज्जा (च)। ७. वणं (अ); एवं (छ)। ८. वण (घ, च); च णं (छ)।'
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आयारचूला वा', 'पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवटेज्ज
वा. आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ॥ ४६. अह पुण एवं जाणेज्जा-विगतोदए मे पडिग्गहए, छिण्ण-सिणेहे मे पडिग्गहए,
तहप्पगारं पडिग्गहं तओ संजयामेव आमज्जेज्ज वा जाव' पयावेज्ज वा ॥ सपडिग्गहमायाए-पदं ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसिउकामे
सपडिग्गहमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, णिक्खमेज्ज
वा ॥ ५१.. °से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि वा णिक्खम
माणे वा पविसमाणे वा सपडिग्गहमायाए बहिया वियार-भूमि वा विहार-भूमि
वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा ।। ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे सपडिग्गहमायाए गामाणु
गाम दूइज्जेज्जा। ५३. अह पुणेवं जाणेज्जा - तिव्वदेसियं वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा
महियं सण्णिवयमाणि पेहाए, महावाए ण वा रयं समुद्धयं पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवयमाणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सपडिग्गहमायाए गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा, बहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा णिक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा,
गामाणुगाम वा दूइज्जेज्जा ॥ पाडिहारिय-पडिग्गह-पदं ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा एगइओ मुहत्तगं-मुहुत्तगं पाडिहारियं पडिग्गहं
जाएज्जा, एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय-विप्पवसिय उवागच्छेज्जा,तहप्पगारं पडिग्गहं णो अप्पणा गिण्हेज्जा, णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्चं कुज्जा, णो पडिग्गहेण पडिग्गह-परिणाम करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा-"आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि पडिग्गहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिद्ववेज्जा। तहप्पगारं पडिग्गहं ससंधियं तस्स चेव
णिसिरेज्जा, णो णं साइज्जेज्जा ।। ५५. से एगइओ एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म जे भयंतारो तहप्पगाराणि
१. सं. पा.----आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज। २. सं० पा०-एवं बहिया वियारभूमि वा
विहारभूमि वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
तिव्वदेसियादि जहा बिइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ पडिग्गहे।
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अभय ( पाएसणा -- बीओ उद्देसो)
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डिग्गहाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं- मुहुत्तगं जाइत्ता एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय विष्पवसिय उवागच्छंति, तहप्पगाराणि पडिग्गहाणि णो अप्पणा गिव्हंति, णो अण्णमण्णस्स अणुवयंति, णो पामिच्च करेंति, णो पडिग्गहेण पडिग्गह- परिणामं करेंति, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेति—“आउसंतो ! समणा ! अभिकखसि पडिग्गहं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ? " थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिट्ठवेंति । तहप्पगाराणि पडिग्गहाणि ससंधियाणि तस्स चेव णिसिरेंति, णो णं सातिज्जंति, 'से हंता' अहमवि मुहुत्तगं पाडिहारियं पडिग्गहं जाइत्ता एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा विप्पवसिय विप्पवसिय उवागच्छिस्सामि । आवियाई एयं ममेव सिया । माइद्वाणं संफासे णो एवं करेज्जा |
पायविविकया-पदं
५६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो वण्णमंताई पडिग्गहाई विवण्णाई करेज्जा, विवण्णाई णो वण्णमंताई करेज्जा, "अण्णं वा पडिग्गहगं लभिस्सामि" त्ति कट्टु णो अण्णमण्णस्स देज्जा, णो पामिच्च कुज्जा, णो पडिग्गहेण पडिग्गहपरिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा -- " आउसंतो ! समणा ! अभिसि मे पहिं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा ?" थिरं वा णं संतं णो पलिच्छिदिय-पलिच्छिदिय परिद्ववेज्जा, जहा चेयं पडिग्गहं पावगं परो मन्नइ । परं च णं अदत्तहारि पडिप पेहाए तस्स पडिग्गहस्स णिदाणाए णो तेसि भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुविज्जा, णो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वाडं वा सरणं वा सेणं वा सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं
इज्जा | आमोसग - पदं
५७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया । सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा - इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा पडिग्गहपडियाए संपिंडिया गच्छेज्जा, णो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, णो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, णो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, णो रुक्खसि दुरुहेज्जा, णो महइमहालयंसि उदयंसि कार्य विउसेज्जा, णो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा | ५८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा पिंडिया गच्छेज्जा । ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा - "आउसंतो ! समणा !
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आयारचूला
आहरेयं पडिग्गहं देहि, निक्खिवाहि।" तं णो देज्जा, णो णिक्खिवेज्जा, णो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, णो अंजलि कटु जाएज्जा, णो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा। ते णं आमोसगा सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, भंति वा, उद्दवंति वा, पडिग्गहं अच्छिदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा । तं णो गामसंसारियं कुज्जा, णो रायसंसारियं कुज्जा, णो परं उवसंकमित्तु बूयाआउसंतो ! गाहावइ ! एए खलु आमोसगा पडिग्गह-पडियाए सयं करणिज्जं ति कटु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रु भति वा, उद्दवंति वा, पडिग्गहं अच्छिदेंति वा, अवहरेति वा, परिभवेति वा। एयप्पगारं मणं वा, वई वा णो पुरओ कटु विहरेज्जा । अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतगएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए,
तओ संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा ॥ ५६. एयं खलु तरस भिवखुरस वा भिवखुणीए वा सामगियं, जं सव्वहि समिए सहिए सया जएज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥
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सत्तमं अज्झयणं प्रोग्गह-पडिमा
पढमो उद्देसो अदिन्नादाण-पच्चक्खाण-पदं १. समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते अपसू परदत्तभोई पावं कम्मं णो
करिस्सामि त्ति समुट्ठाए सव्वं भंते ! अदिण्णादाणं पच्चक्खामि ॥ २. से अणुपविसित्ता गाम वा', 'णगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं
वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगम वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा ° –णेव सयं अदिन्नं गिण्हेज्जा, णेवण्णेणं अदिण्णं गिण्हावेज्जा, णेवण्णं
अदिण्णं गिण्हतं पि समणुजाणेज्जा ।। ओग्गह-पदं ३. जेहिं वि सद्धि संपव्वइए, तेसि पि याइं भिक्खू छत्तयं' वा, मत्तयं वा, दंडगं वा,
'लट्ठियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेलं वा, चिलमिलि वा, चम्मयं वा, चम्मकोसयं वा°, चम्मछेदणगं वा-तेसिं पुवामेव ओग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अपमज्जिय णो गिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज' वा। तेसि पुवामेव ओग्गहं अणुण्णविय पडिलेहिय पमज्जिय तओ संजयामेव ओगिण्हेज्ज' वा,
पगिण्हेज्ज वा ॥ ४. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा
अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो,
१. सं० पा० --गाम वा जाव'"। २. णेवण्णेहिं (घ, छ)। ३. छत्तं (घ, च)।
४. सं० पा०-दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं। ५. परिगिण्हेज्ज (अ)। ६. उ° (घ); उव ° (छ)।
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आयारचूला
जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया 'एत्ता, ताव'' ओग्गहं ओगिहि
स्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।। ५. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ साहम्मिया संभोइया
समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेण सयमेसियाए' असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा तेण ते साहम्मिया संभोइया समणुण्णा उवणिमंतेज्जा, णो चेव णं
पर-पडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा ।। ६. से आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा
अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा। कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं
ओगिण्हिसामो, तेण परं विहरिस्सामो ° ॥ ७. से कि पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियसि ? जे तत्थ साहम्मिया अण्णसंभोइया
समणुण्णा उवागच्छेज्जा, जे तेणं सयमेसियाए पोढे वा, फलए वा, सेज्जासंथारए वा, तेण ते साहम्मिए अण्णसंभोइए समणुण्ण उवणिमंतेज्जा, णो चेव
णं पर-वडियाए उगिज्झिय-उगिज्झिय उवणिमंतेज्जा ॥ ८. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा
अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णवेज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णातं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहे, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगि
हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो० ॥ है. से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइ
पुत्ताण वा सूई वा, पिप्पलए वा, कण्णसोहणए वा, णहच्छेयणए वा, तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए पाडिहारियं जाइत्ता णो अण्णमण्णस्स देज्ज वा, अणुपदेज्ज वा, सयं करणिज्जं ति कटु से तमादाए' तत्थ गच्छेज्जा, गच्छत्ता पुव्वामेव उताणए हत्थे कटु भूमीए वा ठवेत्ता ‘इमं खलु त्ति आलोएज्जा, णो चेव
णं सयं पाणिणा परपाणिसि पच्चप्पिणेज्जा ॥ १०. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा-अणंतरहियाए
पुढवीए, ससणिद्धाए पुढवीए", 'ससरक्खाए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए,
१. एतावता (अ, क, घ, च, छ ब)।
८. °ताए (छ)। २,४. सित्तए (अ, क, घ, च, छ)।
. हत्थेति (छ)। ३.५. सं० पा०-से आगंतारेसु वा जाव । १०. इमं खलु इमं खलु (अ, ब) । ६. सूती (अ); सूयी (च); सुई (छ); सुयी (ब)। ११. सं० पा०-पूढवीए जाव संताणए। ७. पडि ° (अ, छ, ब)।
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सत्तमं अज्झणं (ओग्गह- पडिमा — पढमो उद्देसो)
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चित्तमंताए लेलुए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउसे सउदए सउत्तिंग - पणग- दग-मट्टिय - मक्कडा • संताणए, तहप्पारं ओग्गहं णो ओगिण्हेज्ज' वा, पगिण्हेज्ज वा ॥
११.
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणिज्जा - थूणंसि वा, गिलुगंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे' "दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले • णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, गिरहेज्ज वा ।।
१२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा - कुलियंसि वा, • भित्तिसि वा, सिलसि वा लेलुंसि वा, अण्णयरे वा तहप्पगारे अंतलिक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा,
परहेज्ज वा ॥
१३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पण ओग्गहं जाणेज्जा — खंधसि वा", "मंच सि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मियतलंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे अंत लक्खजाए दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अणिकंपे चलाचले • णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥
१४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा - ससागारियं सागणियं सउदयं सइत्थि सखडुं सपसुं सभत्तपाणं, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए" "णो पण्णस्स वायण- पुच्छण-परियट्टणाणुपेह - धम्माणुओगचिताए । सेवं गच्चा तहप्पगारे उवस्सए ससागारिए जाव सखुड्डु पसु भत्तपाणे णो ओग्गहं ओगिव्हेज्ज वा, गिज्ज वा ॥
.
१५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा - गाहावइ - कुलस्स मज्मणं गंतुं पंथे पडिबद्धं वा णो पण्णस्स' 'णिक्खमण पवेसाए णो पण्णस्स वाण -पुच्छण-परिट्टणाणुपेह - धम्माणुओग चिंताए । सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥
१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा - इह खलु गाहावई वा", "गाहावइणीओ वा, गाहावइ - पुत्ता वा, गाहावइ - धूयाओ वा, गाहावइ - सुहाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अण्ण
१. गिण्हेज्ज ( च, छ, ब) ।
२. सं० पा० - दुब्बद्धे जाव णो ।
- कुलियंसि वा जाव णो ।
४. सं० पा० - संसि वा अण्णयरे वा तप्प
गारे जाव णो ।
३. सं० पा०-
५. सं० पा०—णिक्खमण - पवेसाए जाव धम्मा
ओ |
६. सं० पा० - पण्णस्स जाव चिंताए ।
७. सं० पा० - गाहावई वा जाव कम्मकरीओ ।
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आयारचूला
मण्णं अक्कोसंति वा', 'बंधंति वा, रंभंति वा, उद्दति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा अभंगति वा, मक्खेति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए। सेवं णच्चा
तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ।। १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा- इह खलु गाहावई वा
जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णण वा, चुण्णेण वा पउमेण वा आघसंति वा, पघंसंति वा, उव्वले ति वा, उव्वट्टेति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो
ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा
जाव कम्मकरीओ वा अण्णमण्णस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेंति वा, पधोवेति वा, सिंचंति वा, सिणावेंति वा, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपह-धम्माणुओगचिताए। सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा,
पगिण्हेज्ज वा ।। २०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ओग्गहं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा
जाव कम्मकरीओ वा णिगिणा ठिआ णिगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्म विण्णवेंति रहस्सियं वा मंतं मंतति, णो पण्णस्स णिक्खमण-पवेसाए णो पण्णस्स वायणपुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए । सेवं णच्चा तहप्पगारे उवस्सए
णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हेज्ज वा ॥ २१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ओग्गहं जाणेज्जा-आइण्णसंलेक्खं, णो
पण्णस्स •णिक्खमण-पवेसाए णो पणस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए। [ सेवं णच्चा ? ] तहप्पगारे उवस्सए णो ओग्गहं ओगिण्हेज्ज वा, पगिण्हज्ज वा ॥
१. सं० पा०-अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि वत्तव्वया। सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य २. सं० पा०-पण्णस्स जाव चिताए। जहा सिज्जाए आलावगा णवरं ओग्गह
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सतम अज्झयणं (ओग्गह-पडिमा -बीओ उद्देसो)
१८६ २२. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय ज सव्वढेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।
त्ति बेमि ॥
बीओ उद्देसो २३. से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा,
अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा, जे' तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा'। कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया 'एत्ता, ताव" ओग्गहं
ओगिहिसामो, तेण परं विहरिस्सामो॥ २४. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा
छत्तए वा', 'मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा°, चम्मछेदणए वा, तं णो अंतोहितो बाहिं णीणेज्जा, बहियाओ वा णो अंतो पवेसेज्जा, णो सुत्तं वा णं
पडिबोहेज्जा, णो तेसि किंचि अप्पत्तियं पडिणीयं करेज्जा ।। अंब-ओग्गह-पदं २५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा अंबवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे,
जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा । कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव
साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं° विहरिस्साम। ॥ २६. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा अंबं भोत्तए
वा, [पायए वा ? ] । सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा-सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं अंबंअफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा ॥
१. सं० पा०-सामग्गिय ।
७. किंचिवि (क, घ, च, ब)। २. X (अ)।
८. सं० पा०—खलु जाव विहरिस्सामो। ३. वित्ता (अ, क, च, ब)।
६. भिक्खुणं (छ)। ४. एताव (अ, घ, च, ब); एतावता (क, छ)। १०. सं० पा०–सअंडं जाव संताणगं । ५. सं० पा०-छत्तए वा जाव चम्मछेदणए। ११. सं० पा०----अफासूयं जाव णो। ६. x (क, घ, च, छ)।
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आयारचूला
२७. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा-अप्पंड अप्पपाणं
अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा - संताणगं अतिरिच्छछिन्न अवोच्छिन्नं-अफासुयं 'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे
लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा। २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जा-अप्पंड' अप्पपाणं
अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा - संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे
संते ° पडिगाहेज्जा॥ २६. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अभिकखेज्जा अंबभित्तगं वा, अंबपेसियं वा,
अंबचोयगं वा, अंबसालगं वा, अंबडगल' वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्ज पण जाणेज्जा-अंबभित्तगं वा जाव अंबडगलं वा सअंडं 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं-अफासूयं'
'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो पडिगाहेज्जा॥ ३०. से भिक्ख वा भिक्खणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-अंबभित्तगं वा जाव
अंबडगलं वा अप्पंड 'अप्पाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडा ° संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफासुयं
'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ३१. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण जाणज्जा अंबभित्तगं' वा जाव
अंबडगलं वा अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पदयं अप्पत्तिग. पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं--फासुयं २
'एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते ° पडिगाहेज्जा ॥ उच्छु-ओग्गह-पदं ३२. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उच्छवणं उवागच्छित्तए, जे तत्थ
ईसरे", जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा । कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो.
जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो॥ ३३. से कि पुण तत्थ ओग्गहंसि ° एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा
उच्छु भोत्तए वा, पायए वा। सेज्ज [पुण ? ] उच्छं जाणेज्जा-सअंडं. १,३. स. पा.-अप्पडं जाव संताणगं । ८,११. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणग। २. सं० पा०-अफासुयं जाव णो।
१०. अंबं वा अंबचितगं (घ, च, छ)। ४. सं० पा०--फाय जाव पडिगाहेज्जा। १२. सं० पा०-फासुयं जाव पडिगाहेज्जा। ५. ० डालगं (अ, क. घ, छ, ब)।
१३. सं० पा०-ईसरे जाव एवोग्गहियंसि । ६. सं० पा० -सअंडं जाव संताणगं ।
१४. सं० पा०-सअंडं जाव णो । ७,६. सं० पा०–अफासुयं जाव णो।
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सत्तमं अज्झयणं (ओग्गह-पडिमा–बीओ उद्देसो)
१९१ 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं उच्छु–अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते °
णो पडिगाहेज्जा ॥ ३४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उच्छं जाणेज्जा-अप्पंड' 'अप्पपाणं
अप्पबीय अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं अतिरिच्छच्छिन्न अवोच्छिन्नं-अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ ३५. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्ज पुण उच्छु जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पपाणं
अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं एसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे
संते पडिगाहेज्जा ° ॥ ३६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा' अंतरुच्छु यं वा, उच्छृगंडियं वा,
उच्छुचोयगं वा, उच्छुसालगं वा, उच्छुडगलं वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्ज पण जाणेज्जा-अंतरुच्छ्यं वा जाव डगलं वा सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं-अफासुयं अणेसणिज्ज
ति मण्णमाणे लाभे संते ° णो पडिगाहेज्जा । ३७. से भिक्खू वा भिक्खणी वा सेज्ज पुण लाणेज्जा---अंतरुच्छ्यं वा जाव डगलं
वा अप्पंड" 'अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवो छिन्नं-अफासूयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा--अंतरुच्छुयं वा जाव डगलं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दगमट्रिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं एसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा' ।। लसुण-ओग्गह-पदं ३६. से भिक्ख वा भिक्खणी वा अभिकखेज्जा ल्हसुणवणं उवागच्छित्तए, "जे तत्थ
ईसरे, जे तत्थ समहिलाए, ते ओग्गहं अणुजाणावेज्जा। काम खलु आउसो ! अहालदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो,
१. सं० पा०-अप्पंडं जाव संताणगं । २. सं० पा०-अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छ-
च्छिन्नं तहेव। ३. सेज्ज पुण अभिकखेज्जा (अ)। ४. सं० पा०—सअंडं जाव णो।
५. सं० पा०—अप्पड जाव पडिगाहेज्जा अति
रिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्नं तहेव। ६. सं० पा०–तहेव तिन्निवि आलावगा णवरं
ल्हसुण ।
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१६२
आयारचूला जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।। ४०. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? अह भिक्खू इच्छेज्जा ल्हसुणं भोत्तए
वा, [पायए वा ?] । सेज्ज पुण लहसुणं जाणेज्जा-सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तहप्पगारं लहसुणं
अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।। ४१. से भिक्खू वा भिक्षुगो वा सेज्ज पुण लहसुणं जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पाणं
अप्पबोयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं- अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ ४२. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण लहसुणं जाणेज्जा-अप्पंडं अप्पपाणं
अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे
संते पडिगाहेज्जा ॥ ४३. से भिक्खू वा भिक्खुणों वा अभिकंखेज्जा ल्हसुणं' वा, ल्हसुण-कंदं वा, ल्हसुण
चोयगं वा, ल्हसुण-णालगं' वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्जं पुण जाणेज्जाल्हसुणं वा जाव ल्हसुण-णालगं' वा सअंड' 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते ' णा पडिगाहेज्जा ।। ४४. ५ से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-लहसुणं वा जाव ल्हसुण
णालगं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफासुयं
अणसणिज्जति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । ४५. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा-लहसुणं वा जाव ल्हसुण
णालगं वा अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोस अप्पुदयं अप्पुत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं सणिज्ज
ति मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेज्जा ॥ ओग्गह-पदं ४६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आगंतारेसु वा', 'आरामागारेसु वा, गाहावइ
कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाणेज्जा-जे तत्थ ईसरे, जे १. लहसुण (च); लसण (ब)।
५. सं० पा०-एवं अतिरिच्छच्छिन्नेवि तिरिच्छ२. डालगं (अ, घ) ।
च्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा । ३. बीयं (क्व)।
६. सं० पा०-आगंतारेसु वा जावोग्गहियसि । ४. सं० पा०—सअंडं जाव णो।
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सत्तमं अज्झयणं (ओग्गह-पडिमा-बीओ उद्देसो)
१६३ तत्थ समहिवाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा । कामं खलु आउसो ! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसा, जाव आउसंतस्स आग्गहो, जाव
साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो ।। ४७. से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियंसि ? जे तत्थ गाहावईण वा, गाहावइ
पुत्ताण वा इच्चेयाइं आयतणाई उवाइकम्म। ओग्गह-पडिमा-पदं ४८. अह भिक्खू जाणेज्जा इमाहिं सत्तहिं पडिमाहिं ओग्गहं ओगिण्हित्तए । ४६. तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ
कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ ओग्गहं जाएज्जा'--'जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते ओग्गहं अणुण्णविज्जा। कामं खलु आउसो ! अहालंद अहापरिणायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओगिहिस्सामो, तेण परं° विहरिस्सामो-पढमा
पडिमा ॥ ५०. अहावरा दोच्चा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ "अहं च खलु अण्णेसिं
भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं भिक्खूणं 'ओग्गहे ओग्गहिए"
उवल्लिस्सामि"-दोच्चा पडिमा ॥ ५१. अहावरा तच्चा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ “अहं च खलु अण्णेसि
भिक्खूणं अट्टाए ओग्गहं ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं भिक्खूणं च ओग्गहे ओग्गहिए
णो उवल्लिस्सामि"--तच्चा पडिमा । ५२. अहावरा चउत्था पडिमा - जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ “अहं च खलु अण्णेसि
भिक्खूणं अट्ठाए ओग्गहं णो ओगिहिस्सामि, अण्णेसिं च ओग्गहे ओग्गहिए
उवल्लिस्सामि"-चउत्था पडिमा ॥ ५३. अहावरा पंचमा पडिमा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ, "अहं च खलु अप्पणो
अट्टाए ओग्गहं ओगिहिस्सामि, णो दोण्हं, णो तिण्हं, णो चउण्हं, णो पंचण्हं
पंचमा पडिमा ॥ ५४. अहावरा छट्ठा पडिमा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सेव ओग्गहे उवल्लि
एज्जा, जे तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा--इक्कडे वा' 'कढिणे वा, जंतुए वा, परगे वा, मोरगे वा, तणे वा, कुसे वा, कुच्चगे वा, पिप्पले वा°, पलाले वा।
१. आयाणाइं (क, च); आययाणाई (घ); ३. सं० पा०--जाएज्जा जाव विहरिस्सामो।
आयणाई (छ); आययणा (ब)। ४. ओग्गहिए ओग्गहे (अ)। २. परिहत्यावग्रहमवग्रहीतं जानीयात् (वृ)। ५. सं० पा०-इकडे वा जाव पलाले ।
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१३४
आयारचूला
तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए' वा, णेसज्जिए वा विहरेज्जा
छट्ठा पडिमा॥ ५५. अहावरा सत्तमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव ओग्गहं
जाएज्जा, तंजहा---पुढविसिलं वा, कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव, तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुओ वा, णेसज्जिओ वा विहरेज्जा-सत्तमा
पडिमा॥ ५६. इच्चेतासिं सत्तण्हं पडिमाणं अण्णयर पडिम पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा
मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अण्णो
ण्णसमाहीए, एवं च णं विहरंति° ॥ पंचविह-ओग्गह-पदं ५७. सुयं मे आउसं ! ते णं भगवया एवमक्खायं -इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे
ओग्गहे पण्णत्ते, तंजहा-देविंदोग्गहे, रायोग्गहे, गाहावइ-ओग्गहे, सागारिय
ओग्गहे, साहम्मिय-ओग्गहे ।। ५८. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय', 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जएज्जासि ।
—त्ति बेमि° ॥
३. सं० पा०-सामग्गियं ।
१. उक्कडए (अ, ब)। २. सं० पा०-अण्णयरं जहा पिंडेसणाए।
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अमं अज्झणं
ठाण-सत्तिक्कयं
ठाण-एसणा-पदं
१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा' ठाणं ठाइत्तए, से अणुपविसेज्जा ‘गामं वा, णगरं वा’, ‘खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा, रायहाणि वा", अणुपविसित्ता गामं वा जाव रायहाणि वा, सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - सअंड "सपाणं सवीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिंग - पणग- दग मट्टिय मक्कडासंताणयं तं तप्पगारं ठाणं - अफासुयं अणेसणिज्जं " "ति मण्णमाणे • लाभे संते णो पडिगाज्जा ।
२. " से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा -- अप्पंडं अप्पपाण अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग पणगदग मट्टिय-मक्कडासंताणगं । तहप्पगारे ठाणे पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा ॥
अस्सिपडियाए ठाण-पदं
३. सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहट्टु चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा,
१. ० कंखेइ ( अ, घ); ० कंखे ( च, ब ) ।
२. सं० पा० - नगरं वा जाव रायहाणि ।
३. गामं वा जाव सण्णिवेसं वा ( अ, क, घ, च,
छ, ब ) ।
४. सयंड ( अ, च); सं० पा० सअंडं जाव
१६५
मक्कडा ।
५. सं० पा० – अणे सणिज्जं लाभे ।
६. सं० पा० – एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगपसूबाईति ।
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१६६
आयारचूला
अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा परिभुक्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणसेविते वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ||
४. सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई भूगाई जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ आट्टु चेतेति । तहृप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंत रकडे वा, अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणसेविते वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा | ५. सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एवं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभि आट्टु चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, अतए वा अणत्तट्ठिए वा परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणसेविते वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चंतेज्जा ।।
६.
सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अभि ट्टु चेतेति । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणसेविते वाणो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ समण - माहणाइ- समुद्दिस्स-ठाण-पदं
७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - बहवे समण - माहणअतिहि - कवण - वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्टु चेएइ । तहप्पगारे ठाणे पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा अत्तट्ठिए वा अणत्तट्ठिए वा परिभुत्ते वा अपुरिभुत्तेवा, आसेविए वा अणासेविए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।।
८.
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - बहवे समण- माहणअतिहि- किवण - वणीमए समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्सकीय पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्टु चेएइ । तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्टिए, अपुरिभुत्ते, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।
६. अह पुणेव जाणेज्जा - पुरिसंतरकडे, अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिले हित्ता मज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।।
परिकम्मिय-ठाण-पदं
१०. सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण ठाणं जाणेज्जा - अस्संजए भिक्खु
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अट्ठमं अज्झयणं (ठाण-सत्तिक्कयं)
१६७ पडियाए कडिए वा, उक्कंबिए वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घटे वा, मढे वा, संमढे वा, संपधूमिए वा। तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते,
अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। ११. अह पुणेवं जाणेज्जा पुरिसंतरकडे, अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता
पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण ठाणं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु-पडियाए
खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा ठाणस्स हरियाणि छिदिय-छिदिय दालियदालिय संथारगं संथारेज्जा, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेविते णो ठाणं वा, सेज्ज वा णिसीहियं
वा चेतेज्जा ॥ १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंत रकडे, अत्तट्टिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिले हित्ता
पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। बहिया निस्सारिय-ठाण-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण [ठाणं ? ] जाणेज्जा- अस्संजए भिक्खु
पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगारे ठाणे अपुरिसंतरकडे, अणत्तट्ठिए, अपुरिभुत्ते,
अगासेविते णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा। १५. अह पुणेवं जाणेज्जा--पुरिसंतरकडे, अत्तट्टिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता
पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ ठाण-पडिमा-पदं १६. इच्चेयाइं आयतणाई उवातिकम्म, अह भिक्खू इच्छेज्जा चउहि पडिमाहिं ठाणं
ठाइत्तए। १७. तत्थिमा पढमा पडिमा-अचित्तं खलु उवसज्जिस्सामि', अवलंबिस्सामि, कारण
विपरिक्कमिस्सामि, सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति पढमा पडिमा ॥
१. आयाणाई (क, घ, च)। २. आदर्शषु सूत्रचतुष्टयेऽपि 'उवसज्जेज्जा अव
लंबेज्जा, काएण विपरिक्कमादी' इति पाठो
वर्तते । किन्तु प्रस्तुतपाठश्चूणिवृत्त्योराधारेण स्वीकृतः।
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१६८
आयारचूला
१८. अहावरा दोच्चा पडिमा -- अचित्तं खलु उवसज्जिस्सामि, अवलंबिस्सामि, कारण विपरिक्कमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति दोच्चा पडिमा || १६. अहावरा तच्चा पडिमा - अचित्तं खलु उवसज्जिस्सामि, णो अवलंबिस्सामि, णो काण विपरिक्कमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा || २०. अहावरा चउत्था पडिमा - अचित्तं खलु' उवसज्जिस्सामि, णो अवलंबिस्सामि, णो काण विपरिक्aमिस्सामि, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, वोसट्टकाए वोसट्टकेस-मंसु-लोम-णहे सण्णिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति चउत्था पडिमा || २१. इच्चेयासि चउन्हं पडिमाणं' अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने ।
जे ते भयंता एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अणोण समाहीए एवं च णं विहरति ।।
संथारग-पच्चप्पण-पदं
पुण
२२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । सेज्जं । संथारगं जाणेज्जा - सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं संथारगं णो पच्चपिज्जा ।।
२३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए । सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा --- अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पग दग-मट्टिय - मक्कडासंताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहियपडिले हिय, पमज्जिय-मज्जिय, आयाविय आयाविय, विणिगुणिय-विणिर्द्धाणिय तओ संजयामेव पच्चष्पिणेज्जा ॥
उच्चार पासवणभूमि-पदं
२४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा वसमाणे वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव णं पण्णस्स उच्चार- पासवणभूमि पडिले हिज्जा ।।
२५. केवली ब्रूया आयाणमेयं - अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिद्ववेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा, हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरु वा, उदरं वा, सीसं वा, अण्णयरं वा कार्यसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ ववरोवेज्ज वा ।
१. खलु णो (क, ब) ।
२. सं० पा० - परिमाणं जाव पग्गहियतरागं ।
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रचिट्ठज्जार दुरुहेजा पमज्जिय
अट्ठम अज्झयणं (ठाण-सत्तिक्कयं)
१६६ अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं
पुवामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेज्जा ।। ठाण-विहि-पदं २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमि पडिलेहित्तए,
णण्णत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा, गणावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मझेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा तओ संजयामेव पडिले हिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय बहु
फासुयं सेज्जा-संथारगं संथारेज्जा ॥ २७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकंखेज्जा
बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए, से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जियपमज्जिय तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ
संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठज्जा ।।। २८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठमाणे, णो अण्ण
मण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा। से अणासायमाणे
तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए चिट्ठज्जा ॥ २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा,
छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा उड्डुए वा वायणिसग्गे वा करेमाणे, पुवामेव आसयं वा, पोसयं वा, पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज्ज वा, णीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छोएज्ज वा, जंभाएज्ज वा, उड्डुयं वा वायणिसग्गं वा करेज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा --समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-सस रक्खा वेगया सेज्जा भवेन्जा, सदंसमसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, तहप्पगाराहिं
सेज्जाहिं संविज्जमाणाहि° पग्गहियतरागं विहरेज्जा, णेव किंचिवि वएज्जा'। ३१. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं', 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया° जएज्जासि ।
-त्ति बेमि॥
१. चरेज्जा (अ)।
२. सं० पा०-सामग्गियं जाव जएज्जासि ।
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नवमं अज्झयणं
णिसीहिया-सत्तिक्कयं णिसीहिया-एसणा-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा णिसीहियं गमणाए, सेज्ज पुण
णिसीहियं जाणेज्जा-सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंगपणग-दग-मट्टिय-° मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं णि सीहियं-अफासुयं अणेसणिज्ज' 'ति मण्णमाणे ° लाभे संते णो चेतिस्सामि [चेएज्जा?] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा णिसीहियं गमणाए, सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अप्पंड अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-° मक्कडासंताणयं, तहप्पगारं णिसीहियं-फासुयं
एसणिज्ज ति मण्णमाणे ° लाभे संते चेतिस्सामि [चेएज्जा ? ] ॥ अस्सिपडियाए णिसीहिया-पदं ३. "सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स
पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए
१. से (अ, क, घ, च, ब)।
६. सं० पा०-एसणिज्ज"लाभे । २. सं० पा०-सअंडं जाव मक्कडा ।
७. वृत्तौ 'गलीयात्' इति संस्कृत-रूपं विद्यते ३. सं० पा०-अणेसणिज्ज.."लाभे।
'चेतिस्सामि' इति पाठः सम्भवतो लिपिदोषेण ४. वृत्तौ 'परिगृह्णीयात्' इति संस्कृत-रूपं विद्यते जातः । प्रकरणानुसारेणात्र कोष्ठकान्तर्गतः
प्रिया'नि पार सम्भवतो लिपिदोषेण पाठो यज्यते । जातः। प्रकरणानुसारेणात्र कोष्ठकान्तर्गतः ८. सं० पा०-एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव पाठो युज्यते ।
उदगप्पसूयाइंति । ५. सं० पा०-अप्पंडं जाव मक्कड़ा।
२००
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नवमं अज्झयणं (णिसीहिया-सत्तिक्कयं)
२०१ वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति। तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। सेज्जं पण णिसीहियं जाणज्जा-अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समहिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-णिसीहिया-पदं ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा --बहवे समण-माहण
अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चएइ। तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंत रकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्ठियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥ से भिक्खू वा भिवखुणी वा सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा- बहवे समण-माहणअतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समूहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहट्ट चेएइ । तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥
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२०२
आयारचूला
६. अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया
पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा । परिकम्मिय-णिसीहिया-पदं १०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु
पडियाए कडिए वा, उक्कबिए वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घटे वा, मढे वा, संमढे वा, संपधूमिए वा, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं
वा चेतेज्जा ॥ ११. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया
पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा । १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा-अस्संजए भिक्खु
पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा, महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा णिसीहियाए हरियाणि छिदिय-छिदिय, दालिय-दालिय संथारगं संथरेज्जा, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अणत्तट्ठियाए,
अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। १३. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिले
हित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। बहिया निस्सारिय-णिसीहिया-पदं १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण [णिसीहियं?] जाणेज्जा -अस्संजए
भिक्खु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बोयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु, तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, अण तट्ठियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा,
सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा॥ १५. अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडा, अत्तट्ठिया, परिभुत्ता, आसेविया पडिलेहित्ता
पमज्जित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ॥
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नवमं अभयणं (णिसीहिया-सत्तिक्कथं )
२०३
१६. जे तत्थ दुवग्गा वा तिवग्गा वा चउवग्गा वा पंचवग्गा वा अभिसंधारेंति णिसीहियं गमणाए, णो अण्णमण्णस्स कायं आलिंगेज्ज वा विलिंगेज्ज वा, चुंबे वा, दंतेहि हेहिं वा अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज' वा ।। १७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए या जज्जा सेयमिणं मणेज्जासि । -त्ति बेमि ॥
-
१. वोच्छि° (च) ।
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दसमं अज्झयणं
उच्चारपासवण-सत्तिक्कयं पाय-पुंछण-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उच्चारपावसण-किरियाए उव्वाहिज्जमाणे सयस्स
पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाएज्जा ।। थंडिल-पदं २. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणज्जा-सअंडं सपाण' 'सबीअं
सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणग-दग-मट्टिय- मक्कडासंताणयं, तहप्प___ गारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा॥ ३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा --अप्पंड अप्पपाणं
अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय- मक्कडा
संताणयं, तहप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। ४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए एगं
साहम्मियं समुद्दिस्स' पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्रं अभिहडं आहटट उद्देसियं चेएइ। तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा
१. उप्पा (क)। २. सं० पा०--सपाणं जाव मक्कडा । ३. आदर्शषु एतत् पदं न दृश्यते, वृत्तौ च
उल्लिखितमस्ति । 'सअंड' इति पदस्य प्रतिपक्ष 'अप्पड' इति पदं स्वतः प्राप्तमस्ति । ४. सं० पा०-अप्पबीअं जाव मक्कडा । ५. सं० पा० --अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं
समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया
समुद्दिस्स अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे समणमाहण पगणिय-पगणिय समुहिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसिय चेतेति, तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकड वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहड वा।
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दसमं अयण (उच्चारपासवण-सत्तिक्कय)
अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।।
५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आहट्टु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतकडं वा जाव अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा |
६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए एवं साहमण समुद्दिस पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे अभिहडं आटु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगार थंडिल पुरिसंतकडं वा जाव अणासेवियं वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ॥ ७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बह साहमणीओ समुद्दिस पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स की पामिच्चं अच्छेज्जं अणिस अभिहडं आहट्टु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा जाव अणासेवियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ।।
८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - अस्सिपडियाए बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छज्जं अणिसङ्कं अभिह आहट्टु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगार थंडिलं पुरिसंतरकडं वा जाव अणासेवियं वा, अण्णरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ° ॥ ६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - बहवे समण-माहणकिवण वणीमग- अतिही' समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्सकीय पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्वं अभिहडं आहट्टु उद्देसियं चेएइ । तहप्पगार थडिलं अपुरिसंतरकड', 'अणत्तट्ठियं अपरिभुत्तं, अणासेवियं ●, अणरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ।। १०. अह पुणेवं जाणेज्जा - पुरिसंतरकड, अत्तट्ठियं परिभुत्तं, आसेवियं अण्णयरंसि वा तप्पगारंसि थंडिलंसि उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा |
"
१. पूर्वपाठेभ्यः (१।१७ २८ ५|१० ) अस्य शब्द-विन्यासो भिन्नोस्ति ।
२. सं० पा० - अपुरिसंतरकडं जाव बहिया
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अणीहड वा अण्णयरंसि ।
३. सं० पा०वा. अण्णयरंसि ।
- पुरिसतरकडं जाव बहिया णीहडं
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आयारचूला
११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-अस्सिपडियाए कयं वा,
कारियं वा, पामिच्चयं वा, छण्णं वा, घटुं वा, मटुं वा, लित्तं वा, संमटुं वा, संपधूमियं वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिल जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा', '[तयाणि वा ?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा°, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ' वा अंतो साहरंति, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि
णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। १३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-खधंसि वा, पीढंसि वा,
मंचंसि वा, मालंसि वा, अटुंसि वा, पासायंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि
थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा । १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-अणंतरहियाए पुढवीए,
ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए पुढवीए, मट्टियाकडाए', चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलुयाए, कोलावासंसि वा दारुयंसि जीवपइट्टियंसि 'सअंडंसि सपाणंसि सबीअंसि सहरियंसि सउसंसि सउदयंसि सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय• मक्कडासंताणयंसि, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चार
पासवणं वोसि रेज्जा ॥ १५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-- इह खलु गाहावई वा,
गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा', 'मूलाणि वा, [तयाणि वा ? ], पत्ताणि वा, पप्फाणि वा, फलाणि वा°, बीयाणि वा परिसा.सु वा परिसाडिति वा परिसाडिस्संति वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं
वोसिरेज्जा॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा-इह खलु गाहावई वा,
गाहावइ-पुत्ता वा सालीणि वा, वीहीणि वा, मुग्गाणि वा, मासाणि वा, तिलाणि
१. पामच्चियं (अ, क, घ, च)।
शुद्धं प्रतिभाति । २. सं० पा०-मूलाणि वा जाव हरियाणि । ६. अस्मिन् सूत्रे प्रतिषु 'वा' शब्दस्य प्रयोगा ३. बाहीतो (अ, क)।
अधिका दृश्यन्ते, यथा 'वा दारुयंसि वा जीव४. हम्मियतलसि (घ)।
पइट्ठियंसि वा' किन्तु ११५१ सूत्रानुसारेण ५. एष पाठो निशीथस्य (१४१२३)। सूत्रानु- 'वा' शब्दः सकृदेव युज्यते।।
सारेण स्वीकृतः। सर्वासु आचाराङ्गप्रतिषु ७. सं० पा०-जीवपइट्रियंसि जाव मक्कड़ा। 'मट्रिया मक्कडाए' इति पाठोस्ति । असौ न ८. सं० पा०--कंदाणि जाव बीयाणि ।
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दसमं अज्झयणं (उच्चारपासवण-सत्तिक्कयं)
२०७ वा, कुलत्थाणि वा, जवाणि वा, जवजवाणि वा, 'पतिरिसु वा पतिरिति वा" पतिरिस्संति वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं
वोसिरेज्जा ।। १७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा- आमोयाणि वा
घसाणि वा, भिलुयाणि वा, विज्जलाणि वा, खाणुयाणि वा, कडवाणि' वा, पगत्ताणि वा, दरीणि वा, पदुग्गाणि वा, समाणि वा, विसमाणि वा,
अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ॥ १८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-माणुस-रंधणाणि वा,
महिस-करणाणि वा, वसभ-करणाणि वा, अस्स-करणाणि वा कुक्कुड-करणाणि वा, लावय-करणाणि वा, वट्टय-करणाणि वा, तित्तिर-करणाणि वा, कवोयकरणाणि वा, कपिंजल-करणाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि
णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा॥ १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-वेहाणस-ट्ठाणेसु वा,
गिद्धपिट्ठ-ट्ठाणेसु वा, तरुपडण-ट्ठाणेसु वा, 'मेरुपडण-ट्ठाणेसु" वा, विसभक्षणट्ठाणेसु वा, अगणिफंडण-ट्ठाणेसु वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि [थंडिलंसि ?]
णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। २०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-आरामाणि वा,
उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, पवाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं
वोसिरेज्जा। २१. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-अट्टालयाणि वा,
चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि
थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ।। २२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण थंडिलं जाणेज्जा तियाणि वा, चउक्काणि
वा, चच्चराणि वा, चउमूहाणि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो
उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।। २३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-इंगालडाहेसु वा,
खारडाहेसु वा, मडयडाहेसु वा, मडयथूभियासु वा, मडयचेइएसु वा, अण्णयरंसि
वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसि रेज्जा ।। २४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–णदीआययणेसु वा,
१. पइरंसु वा पइरंति वा (घ, च, छ) । २. कडंबाणि (अ, ब)। ३. •पवडण (अ, च, छ)।
४. X (छ)। ५. ° फडय (क,ख,घ,च); ° पडण (छ) ।
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आयारचूला
पंकाणे वा, ओघाययणेसु वा सेयणपहंसि' वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा ॥
२५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - णवियासु वा मट्टियखाणियासु, णवियासु वा गोप्पलेहियासु, गवायणीसु वा, खाणोसु वा, अण्णयरंसि वा तप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चारपासवर्ण वोसिरेज्जा ।। २६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा - डागवच्चसि वा, सागवच्चंसि वा मूलगवच्चंसि वा, हत्थंकरवच्चंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि णो उच्चारपासवणं वोसि रेज्जा |
२७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा – असणवणंसि वा, सवसि वा, धायइवणंसि वा, केयइवणंसि वा अंबवणंसि वा, असोगवणंसि वा, नागवणंसि वा, पुण्णागवणंसि वा अण्णयरेसु वा तहृप्पगारेसु पत्तोव सु वा, पुप्फोवसुवा, फलोवएसु वा, बीओवएसु वा, हरिओवएसु वा णो उच्चारपासवर्ण वोसि रेज्जा" ||
२८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सपाययं वा परपाययं वा गहाय से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा अणावायंसि असंलोयंसि अप्पपाणंसि' 'अप्पबीअंसि अप्पहरियंसि अपife अप्पुदयंसि अप्पुत्तिंग- पणग- दग-मट्टिय • मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्सयंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा' ||
से तमायाए एगंतमवक्कमे अणावायंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा, झामथंडिलंसि वा अण्णय रंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि अचित्तंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं परिट्ठवेज्जा ॥
२६. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं", "जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए सया जज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥
१. "वहंसि ( अ );
२. गवाणीसु ( अ, घ ) ।
° पथं (छ) ।
३. वा पुण्णगवणंसि वा ( अ ) । ४. अस्मिन् सूत्रे चूर्णौ 'गुत्तागारादयः' अनेके शब्दा व्याख्याताः सन्ति । ते वृत्तो प्रतिषु च नोपलभ्यन्ते ।
५. चूर्णो भिन्नरूपः पाठो व्याख्यातो दृश्यते-'से भिक्खु वा २ राओ वा वियाले वा, वारगं णाम उच्चारमत्तओ, अप्पणगं परायगं वा
जाइत्ता अभिग्गहिओ धरेति न णिक्खवति विगिचति वोसिरति विसोहिति निल्लेवेति से मादा भामथंडिलादीसु परिद्वावेति' । ६. ० लोइयंसि ( अ ) ।
७. सं० पा० - अप्पपाणंसि जाव मक्कडा । ८. वोसिरेज्जा उच्चारपासवर्ण
(क्व) ।
द्रष्टव्यम् - १।३ ।
सं० पा०-- सामग्गियं जाव जएज्जासि ।
६.
१०
वोसिरिता
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एगारसमं अज्झयणं सह-सत्तिक्कयं
वितत - सह - कण्णसोय-पडिया-पदं
१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा [ अहावेगइयाई सद्दाई सुणेइ, तं जहा ? ] मुइंगसद्दाणि वा 'नंदीमुइंगसद्दाणि वा", झल्लरीसद्दाणि वा अण्णयराणि वा तहपगाराणि विरूवरूवाणि वितताई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
तत -सह- कण्णसोय-पडिया-पदं
२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेइ, तं जहा - वीणा -सद्दाणि वा, विपंची सद्दाणि वा वद्धीसग - सद्दाणि वा, तुणय-सद्दाणि वा, पणव' - सद्दाणि वा, तुंबवीणिय- सद्दाणि वा, ढंकुण सद्दाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं सद्दाई तताई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । ताल - सद्द - कण्णसोय-पडिया-पदं
३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा -- ताल - सद्दाणि वा, कंसताल सद्दाणि वा, लत्तिय सद्दाणि वा, गोहिय - सद्दाणि वा किरिकिरियसद्दाणिवा, अण्णयराणि वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाई तालसद्दाई कण्णसोयपडिया णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
सिर-सह- कण्णसोय-पडिया-पदं
४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तं जहा -- संख - सद्दाणि
१. X ( क, च) ।
२. वप्पी० (घ, च); पप्पी (छ); वव्वी • (क्व) ।
३. पणय ( अ, छ, ब ) ।
४. ढकुण ( अ ) ।
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२१०
विवि- सह - कण्णसोय-पडिया-पदं
५. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा - वप्पाणि वा, फलिहाणि वा', 'उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, णिज्भराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा दीहियाणि वा, गुंजालियाणि वा०, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा
आयारचूला
वा, वेणु-सद्दाणिवा, वंस - सद्दाणि वा, खरमुहि सद्दाणि वा, पिरिपिरिय' - सद्दाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई भुसिराई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
गमणाए ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तं जहा - कच्छाणि वा,
माणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वदुग्गाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोयपडिया णो अभिसंधारेज्जा गमनाए ||
७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तं जहा - गामाणि वा, नगराणि वा, णिगमाणि वा, रायहाणीणि वा, आसम-पट्टण - सन्निवेसाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई* विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए • णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
६.
८. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा -आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, वाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई "विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोयपडियाए • णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ||
६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति तं जहा - अट्टाणि वा, अट्टायाणि वा चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा अण्णयराइं वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए० णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए ॥
१०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति, तं जहा - तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्चराणि वा, चउम्मुहाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई' • विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए• णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
१. ० परि ( अ, वृ); परिपरिय (क, च, छ, ब ) । २. प्रथम- तृतीय- सूत्रयोः ' वितताई सद्दाई, तालसद्दाई' इति पाठोस्ति तथा द्वितीय-चतुर्थसूत्रयोः सद्दाई तताई, सद्दाई भुसिराई' इति
पाठोस्ति । एवं विशेष्य-विशेषणयोर्व्यत्ययोस्ति ।
३. सं० पा० -- फलिहाणि वा जाव सराणि । ४-३. सं० पा०—तहप्पगाराई सद्दाई णो ।
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त
एगारसमं अज्झयणं (सद्द-सत्तिक्कयं)
२११ ११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–महिसट्ठाण
करणाणि वा, वसभट्ठाण-करणाणि वा, अस्सट्ठाण-करणाणि वा, हत्थिट्ठाणकरणाणि वा', 'कुक्कुडट्ठाण-करणाणि वा, मक्कडट्ठाण-करणाणि वा, लावयट्ठाणकरणाणि वा, वट्टयट्ठाण-करणाणि वा, तित्तिरढाण-करणाणि वा, कवोयट्ठाणकरणाणि वा°, कविंजलढाण-करणाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई
'विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १२. से भिक्ख वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइ सुणोत, ।
जुद्धाणि वा, वसभ-जुद्धाणि वा, अस्स-जुद्धाणि वा, हत्थि-जुद्धाणि वा', 'कुक्कुडजुद्धाणि वा, मक्कड-जुद्धाणि वा, लावय-जुद्धाणि वा, वट्टय-जुद्धाणि वा, तित्तिर-जुद्धाणि वा, कवोय-जुद्धाणि वा°, कविंजल-जुद्धाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगागई विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए ° णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए। १३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, तं जहा–'जहिय
ट्राणाणि वा, हयजूहिय-ट्ठाणाणि वा, गयजूहिय-ट्ठाणाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए ° णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए॥ १४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं ° सुणेति, तं जहा-अक्खाइय
ट्ठाणाणि वा, माणुम्माणिय-ट्ठाणाणि वा, महयाहय-णट्ट-गीय-वाइय-तंति-तलताल-तुडिय-पडुप्पवाइय-ट्ठाणाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं 'विरूव
रूवाइं सहाई कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १५. से भिक्ख वा भिक्खणी वा 'अहावेगइयाइं सहाई सणेति, तं जहा-कलहाणि
वा, डिंबाणि वा, डमराणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई 'विरूवरूवाइं सद्दाई कण्णसोय-पडियाए °
णो अभिसंधारेज्जा गमणाए । १६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा" "अहावेगइयाई ° सद्दाई सुणेति, तं जहा-खुड्डियं
वारियं परिवुतं मंडियालंकियं" निवुज्झमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए १. स० पा०-हत्थिट्ठाण-करणाणि वा जाव ७. स० पा०—भिक्खू वा २ जाव सुणेति । कविजल ।
८. सं० पा०-तहप्पगाराई णो। २. सं० पा०-तहप्पगाराई सद्दाई णो। १. सं० पा०-भिक्खू वा २ जाव सुणेति । ३. सं० पा०-हत्थि-जूद्धाणि वा जाव कविजल । १०. मं० पा०-हप्पगाराइं सहाई णो। ४. सं० पा०-तहप्पगराई णो।
११. सं० पा०-भिक्खू वा २ जाव सद्दाई। ५. निशीथे १२ उद्देशके २६ सूत्रे 'उज्जूहिया १२. परिभुयं (क्व); मण्डितालंकृतां बहुपरिवृतां ठाणाणि' इति पाठो विद्यते ।
(वृ)। ६. सं० पा०-तहणगाराई णो।
१३. मंडिय° (घ, छ)।
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आयारचूला
णीणिज्जमाणं पेहाए, अण्णयराई वा तहप्पगाराई' 'विरूवरूवाइं सद्दाई कणसोय-पडिया णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
१७. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा - बहुगडाणि वा बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, बहुपच्चताणि वा, अण्णय राई वा तप्पगाराइं विरूवरूवाई महासवाइ कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
१८.
भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महुस्सबाई एवं जाणेज्जा, तं जहा - इत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, डहराणि वा, मज्झिमाणि वा, आभरण-विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा णच्चंताणि वा, हसंताणि वा, रमताणि वा मोहंताणि वा, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजताणि वा परिभाइंताणि वा, विच्छड्डियमाणाणि वा, विगोवयमाणाणि वा, अण्णय राई वा तहष्पगाराई विरूवरूवाइं महुस्सवाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
२१२
सद्दासत्ति-पदं
१६. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहि सद्देहिं णो परलोइएहि सद्देहिं णो सुह सहि, णो अहि सद्देहि, णो दिट्ठेहि सद्देहि, जो अदिट्ठेहि देहि, णो हि सद्देहिं णो कंतेहि सद्देहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्भेज्जा, गो मुज्भेज्जा, णो अज्भोववज्जेज्जा ॥
२०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं,' 'जं सव्वट्ठेहि समिए सहिए या जज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥
१. सं० पा०—तहप्पगाराई जो । २. मज्झ° ( छ, ब ) ।
३, सं० पा० - सामग्गियं जाव जएज्जासि ।
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बारसमं अज्झयणं रूव-सत्तिक्कयं
विविह-रूव-चक्खुदंसण-पडिया-पदं १. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासइ, तं जहा-गंथिमाणि
वा. वेढिमाणि वा, पूरिमाणि वा, संघाइमाणि वा, कट्रकम्माणि' वा. पोत्थकम्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणिकम्माणि वा, दंतकम्माणि वा', पत्तच्छेज्जकम्माणि वा, 'विहाणि वा, वेहिमाणि वा'', अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं [रूवाइं ? ] चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए। ___ “से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रूवाइं पासाइ, तं जहा-वप्पाणि
वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, णिज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दोहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अण्णयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं रूवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए॥ ३. से भिक्खू वा भिक्खुणो वा अहावेगइयाई रूवाइं पासइ, तं जहा-कच्छाणि
वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वणाणि वा, वणदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयदुग्गाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं रूवाइं
चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।। १. कट्टाणि (क, घ, च) ।
निशीयस्य १२ उद्देशकस्य १७ सूत्रानुसारेण २. वा मालकम्माणि वा (अ, क, घ, च, छ, अयं पाठः स्वीकृतः । आचाराङ्ग-प्रतिषु लिपिब); वृतौ चूर्धां च न व्याख्यातम्, अतो न दोषाद वर्णविपर्ययो जात इति प्रतीयते । गृहीतम् ।
४. सं० पा०–एवं णायव्वं जहा सद्द-पडियाए ३. विविहाणि वा वेढिमाइं (अ, क, घ, छ, ब)। सव्वा वाइत्तवज्जा रूव-पडियाए वि।
२१३
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२१४
४.
५.
६.
७.
८.
ε.
आयारचूला
भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - गामाणि वा, नगराणि वा, णिगमाणि वा, रायहाणीणि वा, आसम-पट्टण - सन्निवेसाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा -आरामाणि वा, उज्जाणाणि वा, वणाणि वा, वणसंडाणि वा, देवकुलाणि वा, सभाणि वा, वाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खु दंसणपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ तं जहा - अट्टाणि वा, अट्टायाणि वा, चरियाणि वा, दाराणि वा, गोपुराणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ||
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - तियाणि वा, चउक्काणि वा, चच्चराणि वा, चउंम्मुहाणि वा, अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसणं-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए || सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - महिसट्ठाण - करणाणि वा, वसभट्ठाण करणाणि वा अस्सद्वाण करणाणि वा, हत्थिद्वापीकरणाणि वा, कुक्कुडट्ठाण करणाणि वा, मक्कडट्ठाण करणाणि वा, लावयट्ठाण - करणाणि वा, वट्टयट्ठाण करणाणि वा, तित्तिरद्वाण करणाणि वा, कवोयट्ठाण - करणाणि वा, कविजलट्ठाण करणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं रूवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ||
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - महिसजुद्धाणिवा, वसभ-जुद्धाणि वा अस्स-जुद्धाणि वा, हत्थि - जुद्धाणि वा, कुक्कडजुद्धाणि वा, मक्कड - जुद्धाणि वा, लावय-जुद्धाणि वा वट्टय-जुद्धाणि वा, तित्तिर- जुद्धाणि वा, कवोय - जुद्धाणि वा कविजल - जुद्धाणि वा अण्णयराई वा पगारा विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
१०. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा -- जूहियणिवा, जूहिय-द्वाणाणि वा, गयजूहिय- द्वाणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण - पडियार णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए ||
११. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहाअक्खा इयद्वाणाणि वा, माणुम्माणिय-द्वाणाणि वा, महयाहय णट्ट- गीय-वाइय
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बारसमं अभयणं ( रूव-सत्तिक्कयं )
तंति-तल-ताल-तुडिय-पडुप्पवाइय-द्वाणाणि वा अण्णयराई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाइं ख्वाइं चक्खु दंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए। 11 १२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ तं जहा —- कलहाणि वा, डिंबाणि वा, डमराणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्ध रज्जाणि वा, अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधा रेज्जा गमणाए ॥
१३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई रुवाई पासइ, तं जहा - खुड्डियं दारियं परिवृतं मंडियालंकियं निवुज्झमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए जीणिज्जमाणं पेहाए, अण्णयराई वा तहप्पगाराइं विरूवरूवा रुवाई चक्खुदंसण-पडियाए गो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
२१५
१४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूवरूवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा - बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खुणि वा, बहुपच्चताणि वा, अण्णयराई वा तप्पगाराई विरूवरूवाई महासवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
१५. से भिक्खूं वा भिक्खुणी वा अण्णयराई विरूवरूवाई महुस्सवाई एवं जाणेज्जा, तं जहा - इत्थीणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा, डहराणि वा, मज्झिमाणि वा, आभरण- विभूसियाणि वा, गायंताणि वा, वायंताणि वा णच्चताणि वा, हसंताणि वा, रमताणि वा मोहंताणि, वा विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजताणि वा परिभाताणि वा, विच्छड्डियमाणाणि वा, विगोवयमाणाि वा, अण्णयराई वा तप्पगाराइं विरूवरूवाई महुस्सवाई चक्खुदंसण-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ॥
रूवासत्ति-पदं
१६. सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहिं रूवेहिं णो परलोइएहिं रूवेहिं णो सुहिं रूवेहि, णो असुएहिं रूवेहिं णो दिट्ठेहिं रूवेहिं णो अदिट्ठेहिं रूवेहि, णो रूहिं णो कंतेहिं रूवेहिं सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्भेज्जा, णो मुज्ज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा ।।
१७. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए या जज्जासि ० ।
-त्ति बेमि ॥
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तेरसमं अज्झयणं परकिरिया-सत्तिक्कयं
किरिया-पदं
१. परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं–णो तं साइए', णो तं णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं २. 'से से" परो पादाइं आमज्जेज्ज वा, ‘पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं
णियमे ।। ३. से से परो पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा .. णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४. से से परों पादाई फूमेज्ज वा, रएज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५. से से परो पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज
वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६. से से परो पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज
वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ से से परो पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज
वा, पधोएज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ८. से से परो पादाइं अण्णयरेण विलेवण-जाएण आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा
णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६. से से परो पादाइं अण्णयरेण धूवण-जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा--णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥
१. सायए (घ)। २. सिया से (क, घ, च) सर्वत्र । ३. X (अ, क, च, छ, ब)।
४. निशीथे सर्वत्रापि 'तेल्लेण वा, घएण वा,
वसाए वा, णवणीएण वा' इति पाठो विद्यते । ५. भिलं ° (छ)।
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तेरसम अज्झयणं (परकिरिया-सत्तिक्कयं)
२१७
१०. से से परो पादाओ खाणु वा, कंटयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा--णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥ ११. से से परो पादाओ पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं
साइए, णो तं णियमे ।।
काय-परिकम्म-पदं
१२. से से परो कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १३. से से परो कायं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए णो तं णियमे ।। १४. से से परो कायं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेज्ज'
वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १५. से से परो कायं लोद्धण' वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज
वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे ।। १६. से से परो कायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा,
पहोएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। १७. से से परो कायं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा
णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १८. से से परो कार्य अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥
वण-परिकम्म-पदं १६. से से परो कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा -णो तं साइए, णो तं
णियमे। २०. से से परो कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं
णियम ॥ २१. से से परो कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा,
भिलिंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। २२. से से परो कायंसि वणं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णण वा
उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ २३. से से परो कायंसि वणं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा
उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियम ॥
३. लोद्देण (अ, क)।
१. खाणुयं (क, घ, च, ब)। २. भिल्लंगेज्ज (च)।
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२१८
आयारचूला
२४. 'से से परो कायंसि वणं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ॥
णो
२५. से से परो कार्यसि वणं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज का, पधूवेज्ज वा - तं साइए, जो तं नियमे ॥
२६. से से परो कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ।।
२७. से से परो कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा -- णो तं साइए, जो तं नियमे ||
गंड-परिकम्म-पदं
२८. से से परो कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, मज्जेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ||
२६. से से परो कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ||
से से परो कार्यसि गंड वा', 'अरइयं वा, पिंडयं वा, घण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा नियमे ||
३१. से से परो कार्यसि गंडं वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा, कक्केण वा, चुणेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, साइए, णो तं यिमे ॥
३२. से से परो कार्यसि गंडं वा", "अरइयं वा, पिडयं वा०, वियडेण वा, उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, साइए, णो तं नियमे ।
भगंदलं वा अण्णयरेणं
[ से से परो कार्यसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे । से से परो कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ] ' ॥
३०.
१. २४-२५ सूत्रे कोष्ठकोल्लिखित प्रतिषु न विद्येते ( अ, क, घ, च, छ) ।
२. पुलयं ( अ, च); पुलइयं (क, छ, ब); पुलई (घ) । एवं सर्वासु प्रतिषु 'पिडयं' पाठः नोपलभ्यते, किन्तु उपलब्ध-पाठानां नार्थोऽवगम्यते । निशीथे तृतीयो देशके चतुस्त्रिंशत्तम
भगंदलं वा तेल्लेण वा, णो तं साइए, णो तं
भंगदल वा लोद्वेण वा, उब्वलेज्ज वा - णो तं
भगंदलं वा सीओदगपधोवेज्ज वाणो तं
सूत्रे 'विडयं' पाठः । अस्मिन् प्रकरणे स सम्यग् इति स पाठः स्वीकृतः । उक्तप्रतिपाठा लिपिदोषेण विकृता इति प्रतीयते । ३,४,५. सं० पा०- गंडं वा जाव भगंदलं । ६. २४-२५ सूत्राङ्कानुसारेण अत्रापि कोष्ठकान्तर्गते सूत्रे युज्येते, परन्तु प्रतिषु नोपलभ्यते ।
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तेरसमं अज्झयणं (परकिरिया-सत्तिक्कयं)
३१६ ३३. से से परो कार्यसि गंडं वा', 'अरइयं वा, पिडयं वा°, भगंदलं वा अण्णयरेणं
सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३४. से से परो कायंसि गंड वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं
सत्थजाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज
वा, विसोहेज्ज वा-~णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ मल-णीहरण-पदं ३५. से से परो कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥ ३६. से से परो अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णीहरेज्ज वा,
विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वाल-रोम-पदं ३७ से से परो दीहाइं वालाई, दोहाई रोमाइं, दीहाई भमुहाई, दीहाइं कक्खरोमाई,
दीहाई वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज' वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। लिक्ख-जूया-पदं ३८. से से परो सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं
साइए, णो त णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं ३६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं आमज्जेज्ज वा,
पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४०. "से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं संवाहेज्ज वा,
पलिमद्देज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ . ४१. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई फूमेज्ज वा, रएज्ज
वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४२. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं तेल्लेण वा घएण वा,
वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४३. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा,
चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥
१. सं० पा०-गंड वा जाव भगंदलं । २. संबद्धेज्ज (च); संवज्जेज्ज (छ) ।
३. सं० पा०-एवं हिट्रिमो गमो पायादि - भाणियब्वो।
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२२०
आयारचूलों
४४. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं सीओदग-वियडेण वा,
उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ ४५. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण विलेवण
जाएण आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण धूवण-जाएण
धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४७. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ खाणुं वा, कंटयं वा
णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४८. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ पूयं वा, सोणियं वा
णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। काय-परिकम्म-पदं ४६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज
वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५०. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं संवाहेज्ज वा,
पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५१. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं तेल्लेण वा, घएण वा,
वसाए वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५२. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं लोद्धेण वा, कक्केण वा,
चण्णण वा, वण्णण वा उल्लालज्ज वा, उव्वलेज्ज़ वा-णो त साइए, णो त
णियमे ।। ५३. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं सीओदग-वियडेण वा,
उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा-णो तं साइए, णोतं
णियमे ॥ ५४. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं विलेवण
जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५५. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं
धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वण-परिकम्म-पदं ५६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा,
पमज्जेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५७. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं संवाहेज्ज वा,
लिमद्देज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥
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तेरसमं अज्झयणं (परकिरिया-सत्तिक्कयं)
२२१ ५८. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं तेल्लेण वा, घएण
वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५६. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा त्यावेत्ता कायंसि वणं लोद्धेण वा.
कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं
साइए, णो तं णियमे ।। ६०. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं सीओदग-वियडेण
वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-णो तं साइए, णो
तं णियमे ।। ६१. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं
विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६२. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं धवण
जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं साइए, णोतं णियमे ॥ ६३. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ
जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ १४. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तयद्रावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ
जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा,
विसोहेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं ६५. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णोतं
णियमे ।। ६६. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं
णियमे ।। ६७. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज
वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६८. से से परो अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा, लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लो
लेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६६. से से परो अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।
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२२२
आयारचूला
[ से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ।
से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ] ॥
७०. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कार्यसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
७१. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा—णो तं साइए, णो तं नियमे ॥
मल-णीहरण-पदं
७२. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
७३. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, हमलं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा - णो तं साइए, जो तं नियमे ||
वाल- रोम-पदं
७४. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता दीहाई वालाई, दीहाई रोमाई, दीहाई भमुहाई दीहाई कक्खरोमाई, दीहाई वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
लिक्ख - जया-पदं
७५. से से परो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ॥
आभरण- आबिधण-पदं
७६. से से परो अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावित्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं वा, गेवेयं' वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्णसुत्तं वा आबिंधेज्ज' वा, पिणिधेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
१. वणवे (घ ) ।
२. आबंधेज्ज (घ, च ) |
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तेरसमं अभयणं (परकिरिया - सत्तिक्कयं )
पाद-परिकम्म-पदं
७७. से से परो आरामंसि वा, उज्जाणंसि वा णीहरेत्ता वा, पविसेत्ता वा पायाई आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा - णो तं साइए, गो तं नियमे । '
[ एवं णेयव्वा अण्णमण्ण किरियावि । ] ' ॥
तिमिच्छा-पदं
७८. से से परो सुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे,
से से परो असुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे,
से से परो गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेज्जा - णो तं साइए, णो तं नियमे ॥
७६. कडुवेयणा' कट्टुवेयणा पाण-भूय-जीव-सत्ता वेदणं वेदेति ।।
८०.
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वद्वेहिं समिते सहिते सदा ए, सेयमिणं मण्णेज्जासि ।
-त्ति बेमि ॥
१,२. अस्मात् सूत्रात् पुरतोपि 'पादाई संवाहेज्ज वा' ( सू० ३) अतः प्रभृति 'सीसाओ लिक्ख वा' ( सू ३८) पर्यन्तं सूत्राणि युज्यन्ते परन्तु नात्र कश्चित् पूरणीयः संकेत: प्रतिषु प्राप्यते । " एवं णेयव्वा अण्णमण्ण किरियावि" इति सूत्रमत्रानावश्यकं प्रतिभाति, किन्तु वृत्तावस्ति व्याख्यातम् । सम्भाव्यते प्रस्तुत - सूत्रस्य पूरणीय संकेतो लिपिदोषेण अन्यथा जातः । इत्यपि सम्भाव्यते ' एवं णेयव्त्रा अण्णमण्ण
२२३
किरियावि' इति सूत्रं वाचनान्तरगतमस्ति । एकस्यां वाचनायां उक्तसूत्रेणैव त्रयोदशाध्ययनस्य पाठः प्रवेदितः, अपरस्यां च त्रयोदशाध्ययनस्य संक्षिप्तपाठः पृथग्रूपेण प्रतिपादितः । वर्तमाने समुपलब्ध: पाठो द्वयोरपि वाचनयोमिश्रणं प्रतीयते । तेनास्माभि
रुक्तसूत्रं कोष्ठक एव स्वीकृतम् । ३. कम्मकय ० (च) ।
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चउद्दसमं अज्झयणं
अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं किरिया-पदं
१. अण्णमण्णकिरियं' अज्झत्थियं संसेसियं-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं २. से अण्णमण्णं पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ ३. से अण्णमण्णं पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं
णियमे ।। ४. से अण्णमण्णं पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५. से अण्णमण्ण पादाइ तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिगज्ज
वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ६. से अण्णमण्णं पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चण्णेण वा, वण्णेण वा
उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ७. से अण्णमण्णं पादाई सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज
वा, पधोएज्ज वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। ८. से अण्णमण्णं पादाइं अण्णयरेण विलेवण-जाएण आलिपेज्ज वा, विलिंपेज्ज
वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६. से अण्णमण्णं पादाइं अण्णयरेण धूवण-जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥
१. अण्णोण (वृ)। त्रयोदशाध्ययने 'से भिक्ख
वा २' इति पाठो नास्ति । चतुर्दशाध्ययने प्रतिषु विद्यते, किन्तु वृत्तौ उभयत्रापि नास्ति
व्याख्यातः। २. सं० पा०-सेसं तं
जइज्जासि ।
चेव, एयं खल .
२२४
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उस अज्झणं (अण्णुण्ण किरिया सत्तिक्कयं )
२२५
१०.
से अण्णमण्णं पादाओ खाणुं वा, कंटयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ॥
११. से अण्णमण्णं पादाओ पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
काय-परिकम्मपदं
१२. से अण्णमणं कायं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ||
१३. से अण्णमण्णं कायं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वाणो तं साइए, णो तं यि मे ||
१४. से अण्णमण्णं कायं तेल्लेण वा, घरण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा अब्भंगेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
१५. से अण्णमण्णं कायं लोद्वेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लो लेज्ज वा, उब्वलेज्ज वा -- णो तं साइए, जो तं नियमे ||
१६. से अण्णमण्णं कायं सोओदग-वियडेण वा, उसिणोदग - वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ॥
विलिपेज्ज़ वा
१७. से अण्णमण्णं कायं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, तं साइए, णो तं नियमे ॥
१८. से अण्णमण्णं कायं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वाणो तं साइए, णो तं यिमे ॥
वण-परिकम्मपदं
णो
१६. से अण्णमण्णं कायंसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वाणो तं साइए, तं नियमे ।
णो
२०.
से अण्णमण्णं कायंसि वणं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा - णो तं साइए, तं नियमे ।
२१. से अण्णमण्णं कार्यंसि वणं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।
अण्णमण्णं कायंसि वणं लोद्वेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।
२२.
२३. से अण्णमण्णं कायंसि वणं सीओदग - वियडेण वा उसिणोदग - वियडेण वा, उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा-- -णो तं साइए, णो तं नियमे ।
२४,
से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ।
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२२६
आयारचूला
२५. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा --
णो तं साइए, णो तं णियमे ।। २६. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज
वाणो तं साइए, णो तं णियमे ।। २७. से अण्णमण्णं कायंसि वणं अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता
वा पूयं वा सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ गंड-परिकम्म-पदं २८. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज
वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। २६. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा,
पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३०. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्लेण वा,
घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ ३१. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा लोद्धेण वा,
कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा -णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥ ३२. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग
वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा -णो तं साइए, णो तं णियम। [से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा- णो तं साइए, णो तं णियमे । । से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं
सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ३४. से अण्णमण्णं कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं
सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूर्व वा, सोणियं वा णीहरेज्ज
वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। मल-णीहरण-पदं ३५. से अण्णमण्णं कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो
तं साइए, णो तं णियमे ॥
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२२७
चउद्दसमं अज्झयणं (अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं) ३६. से अण्णमण्णं अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णीहरेज्ज
वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वाल-रोम-पदं ३७. से अण्णमण्णं दीहाई वालाई, दीहाइं रोमाइं, दीहाई भमुहाई, दीहाई कक्ख
रोमाई, दीहाई वत्थिरोमाइं कप्पेज्ज वा, संठवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ लिक्ख-जूया-पदं ३८. से अण्णमण्णं सीसाओ लिक्खं वा, जयं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा
__णो तं साइए, णो तं णियमे ।। पाद-परिकम्म-पदं ३६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं आमज्जेज्ज वा,
पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४०. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं संवाहेज्ज वा,
पलिमद्देज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाई फूमेज्ज वा, रएज्ज
वा- णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं तेल्लेण वा, घएण
वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४३. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तयावेत्ता पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण
वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा - णो तं साइए, णो
तं णियमे ॥ ४४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं सीओदग-वियडेण
वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–णो तं साइए, णो
तं णियमे ॥ ४५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण विलेवण
जाएण आलिंपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा-- णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४६. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता पादाइं अण्णयरेण धूवण
जाएण धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ४७. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता पादाओ खाणं वा, कंटयं
वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ४८, से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेना पादाओ पूयं वा, सोणियं
वाणीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥
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२२८
आयारचूला
काय-परिकम्म-पदं ४६. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं आमज्जेज्ज वा,
पमज्जेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५०. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं संवाहेज्ज वा
पलिमद्देज्ज वा --णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५१. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं तेल्लेण वा, घएण वा,
वसाए वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५२. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं लोद्धेण वा, कक्केण
वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, णो
तं णियमे ।। ५३. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं सीओदग-वियडेण वा,
उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पहोएज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे॥ ५४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं विलेवण
जाएणं आलिपेज्ज वा, विलिपेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे । ५५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायं अण्णयरेणं धूवण
जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। वण-परिकम्म-पदं ५६. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायं सि वणं आमज्जेज्ज
वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ५७. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं संवाहेज्ज वा,
पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ५८. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं तेल्लेण वा,
घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा वण्णेण वा, उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा - णो तं
साइए, णो तं णियमे ।। ६०. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं सीओदग
वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–णो तं
साइए, णो तं णियमे ॥ ६१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेण
विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।।
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चउद्दसम अज्झयणं (अण्णुण्णकिरिया-सत्तिक्कयं)
२२६ ६२. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं
धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा---णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६३. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं
धूवण-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि वणं अण्णयरेणं
सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता वा पूर्व वा, सोणियं वा णीहरेज्ज
वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। गंड-परिकम्म-पदं ६५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे॥ ६६. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा--णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ ६७. से अण्ण मण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा,
पिडयं वा, भगंदलं वा तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज
वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ६८. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं
वा, पिडयं वा, भगंदलं वा, लोद्धण वा, कक्केण वा, चुण्णण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोवेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे । [ से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिंपेज्ज वा, विलिंपेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे । से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज्ज वा
णो तं साइए, णो तं णियमे] ॥ ७०. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं
वा. पिडयं वा, भगंदल वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज
वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ ७१. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं
वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता वा, विच्छिदित्ता
६६.
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२३०
आयार वूला वा पूयं वा, सोणियं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ मल-णीहरण-पदं ७२. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्लं वा
णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। ७३. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं
वा, दंतमलं वा, णहमलं वा णोहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं
णियमे ॥ वाल-रोम-पदं ७४. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता दीहाई वालाइं, दीहाई
रोमाई, दीहाइंभमुहाई, दीहाइं कक्खरोमाइं, दीहाई वत्थिरोमाइं कप्पेज्ज वा,
संठवेज्ज वा--णो तं साइए, णो तं णियमे ।। लिक्ख-जूया-पदं ७५. से अण्णमण्णं अंकसि वा, पलियंकसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा
णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा–णो तं साइए, णो तं णियमे ।। आभरण-आबिधण-पदं ७६. से अण्णमण्णं अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं
वा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्णसुत्तं वा आबिंधेज्ज वा, पिणिधेज्ज
वाणो तं साइए, णो तं णियमे । पाद-परिकम्म-पदं ७७. से अण्णमण्णं आरामंसि वा, उज्जाणंसि वा णीहरेत्ता वा, पविसेत्ता वा पायाई
आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे ॥ तिगिच्छा-पदं ७८. से अण्णमण्णं सुद्धणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे ।
से अण्णमण्णं असुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे । से अण्णमण्णं गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउटेज्जा–णो
तं साइए, णो तं णियमे ॥ ७६. कडवेयणा कट्टवेयणा पाण-भूय-जीव-सत्ता वेदणं वेदेति ।। ८०. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वढेहिं समिते सहिते सदा जए, सेयमिणं मण्णेज्जासि ।
–त्ति वेमि॥
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भगवओ-चवणादि-णक्खत्त-पदं
१.
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्युत्तरे यावि होत्था - १. हत्थुत्तराहि चुए चइत्ता गब्भं वक्कते २. हत्युत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए ३. हत्थुत्तराहिं जाए ४. हत्थुत्तराहिं सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ५ हत्थुत्तराहि कसिणे पडिपुणे अव्वाघाए निरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ||
साइणा भगवं परिनिव्वुए ||
गब्भ-पदं
३.
पनरसमं अज्झयणं भावणा
समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए - सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमा समाए वीतिक्कताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए -- पण्णहत्तरीए' वासेहिं, मासेहि य अद्धणवमेहिं ' सेसेहि, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे-- आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठी पक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागणं, महाविजयसिद्धत्थ- पुप्फुत्तर-पवर - पुंडरीय - दिसासोवत्थिय - वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइ आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइता इह खलु जंबुद्दीवे" दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्डुभ रहे दाहिणमाहण कुंडपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल - सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण - सगोत्ताए सीहोब्भवभूएणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गब्भं वक्कते ॥
१. पण्णत्तरीए ( अ, क, घ, च) । २. ०णवमसेसेहिं (क, घ, च) ।
३. जोगोवगएणं ( अ, च) ।
४. अहाउयं (क, घ, च) ।
५. ०द्दीवेणं (क, घ, च, छ, ब) । ६. ० संमि (छ) ।
२३१
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२३२
आयारचूला
चवण-पदं ४. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था-चइस्सामित्ति जाणइ,
चुएमित्ति जाण इ, चयमाणे न जाणेइ, सुहुमे णं से काले पण्णत्ते ॥ गब्भसाहरण-पदं
तओ णं 'समणस्स भगवओ महावीरस्स" अणकंपए' णं देवे णं "जीयमेयं" ति कटु जे से वासाणं तच्चे मासे, पंचमे पक्खे - आसोयबहुले, तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेहिं जोगमुवागएणं बासीतिहिं राइंदिएहि वीइक्कंतेहि तेसीइमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसंसि णायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठ-सगोत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करेत्ता, सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करेत्ता' कुच्छिसि गब्भं साहरइ॥ जेवि य से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे, तंपि य दाहिणमाहणकुंडपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए
जालंधरायण-सगोत्ताए कुच्छिसि साहरइ॥ ७. समणे भगवं महावीरे तिण्णाणोवगए यावि होत्था-साहरिज्जिस्सामित्ति
जाणइ, साहरिएमित्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे वि जाणइ, समणाउसो ! जम्म-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अण्णया कयाइ णवण्हं मासाणं
बहुपडिपुण्णाणं, अट्ठमाणं राइंदियाणं वीतिक्कताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे-चेत्तसुद्धे, तस्सणं चेत्तसुद्धस्स तेरसीपक्खणं, हत्थुत्तराहिं
नक्खत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया ॥ ६. जण्णं राइं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया,
तण्णं राइं भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य
१. समणे भगवं महावीरे (अ, क, घ, च, छ, २. हियअणु ° (छ)।
ब); कल्पसूत्रे (३०) 'समणे भगवं महावीरे' ३. करेत्ता अब्वावाहं अव्वावाहेणं (चू); कल्पसूत्रे इति पाठोस्ति, किन्तु 'हरिणेगमेसिणा' 'साह- (३०) प्येष पाठो दृश्यते। रिए' इति पदयोः सन्दर्भ स युक्तोस्ति, किन्तु ४. विन (च); न (छ)। अशुद्ध प्रतिभाति । अत्र 'साहरई' इति क्रियापदस्य सन्दर्भ ५. आरोया (क, घ, च)। प्रथमान्तोसौ नैव युक्तः स्यात् ।
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पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देव-सण्णिवाते' देव
कहक्कहे उप्पिजलगभूए यावि होत्था ॥ १०. जण्णं' रयणि तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया,
तण्णं रयणि बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च, गंधवासं च,
चुण्णवासं च', हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु ॥ ११. जण्णं रयणि तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया,
तण्णं रयणि भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य
समणस्स भगवओ महावीरस्स कोउगभूइकम्माइं तित्थयराभिसेयं च करिसु ।। नामकरण-पदं १२. जओ णं पभिइ समणे भगवं महावीरे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गभं
आहुए, तओ णं पभिइ तं कुलं विपुलेणं हिरण्णेणं सुवण्णेणं धणेणं धण्णणं
माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्वइ ।। १३. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो एयमढे जाणेत्ता णिव्वत्त
दसाहंसि वोक्कंतंसि सुचिभूयंसि विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेंति, विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेंति, मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं उवणिमंतेत्ता बहवे समण-माहणकिवण-वणिमग-भिच्छुडग-पंडरगातीण विच्छड्डेति विगोवेंति' विस्साणेति, दायारे [ए ? ] सु" णं दायं पज्जभाएंति, विच्छड्डित्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता दायारे [ए ? ] सु णं दायं पज्जभाएत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भुंजावेंति, मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गं भजावेत्ता मित्त-णाइ-सयण-संबंधिवग्गेणं इमेयारूवं णामधेज्ज करेंति-जओ णं पभिइ इमे कुमारे तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि
१. य संपयतेहि य (क, घ, च)।
पसेणइय' सूत्रे 'दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता'
(सू० ६६५) इति पाठो विद्यते । 'कप्पसूत्ते' २. °वाते णं (अ, क, च, छ)।
'दाणं दायारेहिं परिभाएत्ता दाइयाणं परिभा३. जं (च, छ)।
एत्ता' (सू० १११) इति पाठोस्ति । आलोच्य४. तं (च, छ)।
पाठस्य विविधरूपावलोकनेन इत्यनुमीयतेस्य ५. च पुप्फवासं च (क, घ, ब)।
लिपिकाले परिवर्तनं जातम् । वस्तुत: 'दाया६. सुइ (छ)।
एसु इति पाठः सङ्गतोस्ति । अस्मिन् पाठे ७. आहए (क्व)।
सत्येव 'पज्जभाएंति' इति विभागार्थस्य धातु८. पवि° (अ)।
पदस्य क्षयपदस्य दायपदस्य च सार्थकता ६. विग्गो° (अ, क, घ, च)।
स्यात् । १०. 'ओवाइय' सूत्रे 'दाणं च दाइयाणं परिभाय- ११. दाणं (घ, छ)।
इत्ता' (सू० २३) इति पाठो दृश्यते । 'राय- १२. कारवेंति (क, च); करावेंति (घ)।
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२३४
आयारचूला
गब्भे आहए, तओ णं पभिइ इमं कुलं, विउलेणं हिरण्णणं सुवण्णणं धणेणं धण्णणं माणिक्केणं मोत्तिएणं संख-सिल-प्पवालेणं अईव-अईव परिवड्डइ, तो
होउ णं कुमारे "वद्धमाणे" ॥ बाल-पदं १४. तओ णं समणे भगवं महावीरे पंचधातिपरिवुडे, [तं जहा-खीरधाईए,
मज्जणधाईए, मंडावणधाईए, खेल्लावणधाईए, अंकधाईए,] अंकाओ अंक साहरिज्जमाणे रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणे व चंपयपायवे अहाणु
पुवीए संवड्डइ ॥ विवाह-पदं १५. तओ णं समणे भगवं महावीरे विण्णायपरिणये विणियत्तबाल-भावे'
अप्पुस्सुयाइं उरालाई माणुस्सगाई पंचलक्खणाई कामभोगाई सद्द-फरिस-रस
रूव-गंधाइं परियारेमाणे, एवं च णं विहरइ ।। नाम-पदं १६. समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते। तस्स णं इमे तिण्णि णामधेज्जा एवमा
हिज्जंति, तं जहा- १. अम्मापिउसंतिए “वद्धमाणे' २. सह-सम्मुइए “समणे" ३. "भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ” त्ति कटु देवेहि से णामं
कयं “समणे भगवं महावीरे" ।। परिवार-पदं १७. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं । तस्स णं तिण्णि
णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा–१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जंसे ति वा
३. जसंसे ति वा॥ १८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्र-सगोत्ता। तीसेणं तिण्णि
णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा–१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा
३. पियकारिणी ति वा।। १६. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए 'सुपासे' कासवगोत्तेणं ।। २०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेटे भाया ‘णंदिवद्धणे' कासवगोत्तेणं । २१. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जेट्ठा भइणी 'सुदंसणा' कासवगोत्तेणं ॥
१. आहते (च)।
५. विणिवित्त ° (च)। २. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते। ६. अणस्सुयाई (अ, ब)। ३. समल्लोणे (अ, घ)।
७. कणिट्ठा (घ, च)। ४. परिणय (घ, च, छ, ब)।
८. कासवी (च)।
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पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
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२२. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा 'जसोया' कोडिण्णागोत्तेणं ॥ २३. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स धूया कासवगोत्तेणं । तीसे णं दो णामधेज्जा
एवमाहिज्जति, तं जहा–१. अणोज्जा ति वा २. पियदंसणा ति वा ॥ २४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स णत्तुई कोसियगोत्तेणं' । तीसे णं दो णामधेज्जा
एवमाहिज्जति, तं जहा–१. सेसवतो ति वा २. जसवती ति वा ।। माउ-पिउ-काल-पदं २५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा
यावि होत्था । ते णं बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा' कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पाहत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा । तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति
परिणिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ अभिणिक्खमणाभिप्पाय-पदं २६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे णाते णायपुत्ते णायकुल
विणिव्वत्ते विदेहे विदेह दिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीसं वासाइं विदेहत्ति कट्ट अगारमझे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहि देवलोगमणुपत्तेहि समत्तपइण्णे चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता, दायारे [ए ? ] सु' णं 'दायं पज्जभाएत्ता, संवच्छरं दल इत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे -- मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं णक्खत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्खमणाभिप्पाए यावि
होत्थासंगहणी-गाहा
संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणवरिदस्स । तो अत्थ-संपदाणं, पव्वत्तई
पुव्वसूराओ॥१॥
१. कोसिया ° (घ)। २. सारक्खण ° (घ, च)। ३. सुसिय ° (अ, घ); झुसिय ° (च); झोसिय °
(ब)।
४. द्रष्टव्यम्-१५।१३ सूत्रस्य द्वितीयं पाद
टिप्पणम् । ५. दाणं (अ)। ६. दाइत्ता परिभाइत्ता (छ)।
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२३६
एगा हिरण्णकोडी, सूरोदयमाईयं, तिण्णेव य कोडिसया, असिति च सयसहस्सा,
अट्ठेव अणूया सयसहस्सा | दिज्जइ जा पायरासो त्ति' ॥२॥ अट्ठासीति च होंति कोडीओ ।
संवच्छरे
दिणं || ३ ||
लोगंतिया
वेसमणकुंडलधरा, महिड्डीया । बोहिति य तित्थयरं, कम्म-भूमिसु ||४|| बंभमि य कप्पंमि य, कण्हराइणो मज्झे । लोगंतिया विमाणा, अट्ठसु वत्था असंखेज्जा ||५|| देवणिकाया, भगवं बोहिति जिणवरं वीरं । अरहं तित्थं पव्वतेहि ||६||
एए
सव्वजगजीवहियं,
एयं
देवा
पण रससु बोद्धव्वा
देवागमण-पदं
२७. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमणाभिप्पायं जाणेत्ता भवणवइ - वाणमंतर - जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहिं-सएहि रूवेहिं, सएहिं-सएहिं णेवत्थेहि, सहि-सएहिं चिधेहि, सव्विड्डीए सव्वजुतीए सव्वबलसमुदएणं सयाई-सयाई जाण विमाणाई दुरुहंति, सयाई-सयाई जाणविमाणाई दुरुहित्ता अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेंति, अहाबादराई पोग्गलाई परिसाडेत्ता अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइंति, अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्धाए चलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा - ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाई दीवसमुद्दाई वीतिक्कममाणा वीतिक्कममाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सण्णिवेसे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसस्स उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए तेणेव झत्तिवेगेण उवट्टिया ||
आयारचूला
अलंकरण - सिवियाकरण-पदं
२८. तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं सणियं जाणविमाणं ठवेति, सणियं सनियं जाणविमाणं ठवेत्ता सणियं सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरति, सनियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरित्ता एगंतमवक्कमेति, एगंमवक्कमेत्ता महया वे उब्विणं समुग्धाएणं समोहण्णति, महया वेउब्विणं समुग्धाएणं समोहणित्ता एगं महं णाणामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वति । तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभाए एवं महं सपायपीढं णाणामणिकणय
१. उ (घ) ।
२. असियं ( अ, घ, छ, ब ) ।
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पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
२३७
रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकतरूवं सिंहासणं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावोरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सणियं-सणियं पुरत्थाभिमुहे सोहासणे णिसीयावेइ, सणियं-सणियं पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयावेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहि अब्भंगेति, अब्भंगेत्ता गंधकसाएहिं उल्लोलेति, उल्लोलित्ता सुद्धोदएणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता जस्स जंतपलं' सयसहस्सेणंति पडोलतित्तएणं साहिएणं सीतएण' गोसीस रत्तचंदणेणं अणुलिंपति, अणुलिपित्ता ईसिणिस्सासवातवोज्झं वरणगरपट्टणुग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालापेलवं छेयायरियकणगखचियंतकम्म हंसलक्खणं पट्टजुयलं णियंसावेइ, णियंसावेत्ता हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलि पालंबसुत्त-पट्ट-म उड-रयणमालाई आविधावेति, आविंधावेत्ता गंथिम-वेढिम-परिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समालंकेति, समालंकेत्ता दोच्चपि महया वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एगं महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि विउव्वइ, तं जहा-ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मकरविहग-वाणर - कुंजर - रुरु-सरभ-चमर-सद्लसीह-वणलय-विचित्तविज्जाहरमिहण-जयल-जंत-जोगजतं. अच्चीसहस्समालिणीयं, सणिरूवित-मिसिमिसित रूवगसहस्सकलियं, ईसिभिसमाणं, भिब्भिसमाणं, चक्खुल्लोयणलेस्सं, मुत्ताहलमुत्तजालंतरोवियं, तवणोय-पवरलंबूस-पलबंतमुत्तदाम, हारद्धहारभूसणसमोणयं, अहियपेच्छणिज्जं, पउमलय भत्तिचित्तं, 'असोगलय भत्तिचित्तं, कंदलयभत्तिचित्तं' णाणालयभत्ति-विरइयं सुभं चारुकंतरूवं णाणामणिपंचवण्णघंटापडाय-परिमंडियग्गसिहरं पासादीयं दरिसणीयं सूरूवं ।
संगहणी-गाहा
सीया उवणीया, जिणवरस्स जरमरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्लदामा, जलथलयदिव्वकुसुमेहिं ।।७।।
१. कासायिएहिं (च, छ)। २. णं मुल्लं (अ, घ, च, ब)। ३. सरसीएण (क, घ, च)। ४. ° लालपेसियं (घ); ° लालपेलवं (छ);
° लालप्पेसलव (ब)। ५. मसूरियकणयकणयंत° (घ)। ६. X (अ); असोगलयभत्तिचित्तं (क)। ७. सुभं चारुकंतरूवं पासादीयं (अ,क,घ,च,ब)।
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२३८
आयारचूला
सिवियाए मझयारे, दिव्वं वररयणरूवचेवइयं । सीहासणं महरिहं, सपादपीढं जिणवरस्स ।।८।। आलइयमालमउडो, भासुरबोंदी वराभरणधारी । खोमयवत्थणियत्थो, जस्स य मोल्लं सयसहस्सं ।।६।। छद्रेण उ भत्तेणं, अज्झवसाणण सोहणण' जिणो। लेसाहिं विसुज्झतो, आरुहइ उत्तमं सीयं ॥१०॥ सीहासणे णिविट्ठो, सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं । वीयंति चामराहिं, मणिरयणविचित्तदंडाहिं ॥११।। पूवि उक्खित्ता, माणुसेहि साहटुरोमपुलएहि । पच्छा वहंति देवा, सुरअसुरगरुलणागिदा ॥१२॥ पुरओ सुरा वहंती, असुरा पुण दाहिणंमि पासंमि । अवरे वहति गरुला, णागा पुण उत्तरे पासे ॥१३॥ वणसंड व कूसूमियं, पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरण, इय गयणयल सुरगणोह ॥१४॥ सिद्धत्थवणं व जहा, कणियारवणं व चंपगवणं वा। सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥१५।। वरपडहभेरिझल्लरि-संखसयसहस्सिएहि तूरेहिं । गयणतले धरणितले, तूर-णिणाओ परमरम्मो ।।१६।। ततविततं घणझुसिरं, आउज्जं चउविहं बहुविहीयं ।
वायंति तत्थ देवा, बहूहिं आणट्टगसएहि ।।१७।। अभिणिक्खमण-पदं २६. तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे--मग्गसिरबहले,
तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं महत्तेणं, 'हत्युत्तराहि णक्खत्तेणं' जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए', सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे-समण्णिज्जमाणे
१. चिंचइयं (घ)। २. खोमिय° (क, छ, ब)। ३. सुंदरेण (क, घ, च, व) । ४. साहटु (अ, क, च, ब)।
५. हत्थुत्तर ° (अ, घ, छ)। ६. बीयाए (छ)। ७. वाहिणीयाए (क, घ, व)।
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पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
२३६
उत्तरखत्तिय कुंडपुर-संणिवेसस्स मज्भंमज्भेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव णायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ईसिंरयणिप्पमाणं अच्छुप्पेणं भूमिभागेणं सणियं सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि ठवेइ, ठवेत्ता सणियंसणियं चंदप्पभाओ सिवियाओ सहस्यवाहिणोओ पच्चोयरइ, पच्चोयरित्ता सणियं सनियं पुरत्याभिमुहे सीहासणे णिसीयइ, आभरणालंकारं ओमुयइ । ओणं वेसणे देवे जन्नुव्वायपडिए समणस्स भगवओ महावीरस्स हंस लक्खणेणं पडेणं' आभरणालंकारं पडिच्छइ ।
लोय-पदं
३०. तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेइ ॥
३१. तओ णं सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स जन्नुव्वायपडिए वयरामएणं थालेणं केसाई पडिच्छइ, पडिच्छित्ता " अणुजाणेसि भंते" त्ति कट्टु खीरोयसायरं साहरइ ॥
सामाइयचरित - गहण -पदं
३२. तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेइ, करेत्ता, “सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्मं" ति कट्टु सामाइयं चरितं पडिवज्जइ, सामाइयं चरितं पडिवज्जेत्ता देवपरिसं मरिच आलिक्ख - चित्तभूयमिव वेइ ।
संग्रहणी - गाहा
दिव्वो मणुस्सघोसो, तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण । खिप्पामेव णिलुक्को, जाहे पडिवज्जइ चरितं ॥ १८ ॥ पडिवज्जित्तु चरितं अहोणिसिं सव्वपाणभूतहितं । सालोमपुलया, पयया देवा निसामिति ॥ १६ ॥
मणपज्जवनाण-लद्धि-पदं
३३. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरितं पडिवन्नस्स मणपज्जवणाणे णामं णाणे समुप्पन्ने - अड्डाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्दे हंसणी पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाई जाणे ॥
१. पडसाडणं (छ) ।
२. साहटु ० ( अ, क, ब) ।
३. मणुस्सा (छ) ।
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२४०
आयारचूला
अभिग्गह-पदं ३४. तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-णाति-सयण-संबंधिवग्गं
पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इम' एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-"बारसवासाइं वोसट्टकाए चतदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जति', तं जहा-दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया' वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे 'अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते'' सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि
अहियासइस्सामि ॥" विहार-पदं ३५. तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हेत्ता 'वोसट्ठकाए
___चत्तदेहे दिवसे मुहत्तसेसे कम्मारं गामं समणुपत्ते ॥ ३६. तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसट्टचत्तदेहे अणुत्तरेणं आलएणं, अणुत्तरेणं
विहारेणं, अणुत्तरेणं संजमेणं, अणुत्तरेणं पग्गहेणं, अणुत्तरेणं संवरेणं, अणुत्तरेणं तवेणं, अणुत्तरेणं बंभचेरवासेणं, अणुत्तराए खंतीए, अणुत्तराए मोत्तीए, अणुत्तराए तुट्ठीए, अणुत्तराए समितीए, अणुत्तराए गुत्तीए, अणुत्तरेणं ठाणेणं, अणुत्तरेणं कम्मेणं, अणुत्तरेणं सुचरियफलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणे
विहरइ ।। ३७. एवं विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुपज्जिसु-दिव्वा वा माणुसा वा
तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाण अणाइले अव्वहिए अदीण'
माणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। केवलनाण-लद्धि-पदं ३८. तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं विहरमाणस्स बारस
वासा विइक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे-वइसाहसुद्धे, तस्सणं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, हत्थुत्तराहि णक्खत्तेणं जोगोवगतेणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, भियगामस्स णगरस्स बहिया णईए
१. तओणं इमं (छ)। २. चियत्त ° (च, छ, ब)। ३. समुप्पज्जति (घ, छ, ब)। ४. तेरिच्छा (च, ब)। ५. X (अ, क, घ, च, ब)। ६. वोसढचत्त देहे (क,घ); बोसटुचियत्तदेहे (छ)।
७. कुमार (क, घ, च, छ, ब)। ८. कम्मेण (क, घ, च, छ)।
९. ०पज्जति (क, घ, ब)। १०. माणुस्सा (च)। ११. अद्दीण (अ, घ, च)।
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पनरसम अज्झयण (भावणा )
२४१
उजुवालिया' उत्तरे कूले, सामागस्स गाहावइस्स कट्टकरणंसि, वेयावत्तस्स चेइयस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, सालरुक्खस्स अदूरसामंते, उक्कुडुयस्स, गोदोहिया आयावणाए आयावेमाणस्स छणं भत्तेणं अपाणएणं, उड्ढजाणुअहो सिरस्स, धम्मज्भाणोवगयस्स, झाणकोट्ठोवगयस्स, सुक्कज्भाणंतरियाए माणस, निव्वाणे, कसिणे, पडिपुण्णे, अव्वाहए, णिरावरणे, अणते, अणुत्तरे, केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ||
३६. से भगवं अरिहं जिणे जाए, केवली सव्वष्णू सव्वभावदरिसी, सदेवमणुयासुरस्स लोस्स पज्जाए जाणइ, तं जहा - आगतिं गतिं ठिति चयणं उववायं भुत्तं पीयं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं लवियं कहियं मणोमाणसियं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाई जाणमाणे पासमाणे, एवं च णं विहरइ ॥ देवागमण-पदं
४०. जण्णं दिवसं समणस्स भगवओ महावीरस्स णिव्वाणे कसिणे' "पडिपुणे अव्वाहए णिरावरणे अणते अणुत्तरे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे तण्णं दिवसं भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिय विमाणवासि देवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि' य • उपयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवज्जोए देव-सण्णिवाते देव - कहकहे ° उप्पिलगभू यावि होत्था ॥
धम्मोवदेस-पदं
४१. तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे अप्पाणं च लोगं च अभिसमेक्ख पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्खति, तओ पच्छा मणुस्साणं ॥
४२. तओ णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदंसणधरे गोयमाईणं समणाणं णिग्गंया पंच महत्वयाई सभावणाई छज्जीवनिकायाई आइक्खइ भासइ' परूवेइ, तं जहा - पुढविकाए' आउकाए, तेउकाए, वाउकाए, वणस्सइकाए, तसकाए ।
अहिंसामहव्वय-पदं
४३. पढमं भंते ! महत्वयं - पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं से सुहुमं वा बायरं वा, तसं वा थावरं वा -- णेव सयं पाणाइवायं करेज्जा, ठेवण्णेहिं पाणाइवायं
१. उज्जु ° (घ, ब ) ।
२. अरहा ( अ, छ, ब); अरहं (क, घ ) ।
३. जाणए (घ, च) ।
४. भावे ( अ ) ।
५. सं० पा०—–कसिणे जाव समुप्पणे ।
६. ओवयंतेहि २ ( अ ब ) ।
७. सं० पा० ओवयंतेहि य लगभूए ।
८. भासइ पण्णवइ ( ब ) ।
६. सं० पा०-- पुढविकाए जाव तसकाए ।
जाव उप्पिंज
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२४२
आयारचूला कारवेज्जा, णेवण्णं पाणाइवायं करतं समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।।
अहिंसामहव्वयस्स भावणा-पदं ४४. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा-इरियासमिए से
णिग्गंथे, णो इरियाअसमिए' त्ति। केवली बया-इरियाअसमिए से णिग्गंथे. पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। इरियासमिए से णिग्गंथे, णो इरियाअसमिए त्ति
पढमा भावणा ॥ ४५. अहावरा दोच्चा भावणा-मणं परिजाणाइ से णिग्गंथे, जे य मणे पावए सावज्जे
सकिरिए अण्हयकरे छेयकरे भेदकरे अधिकरणिए' पाओसिए, पारिताविए पाणाइवाइए भूओवघाइए-तहप्पगारं मणं णो पधारेज्जा। मणं परिजाणाति से णिग्गंथे, 'जे य मणे अपावए' त्ति दोच्चा भावणा॥ अहावरा तच्चा भावणा-वइं परिजाणइ से णिग्गंथे, जा य वई पाविया सावज्जा सकिरिया अण्हयकरा छेयकरा भेदकरा अधिकरणिया पाओसिया पारिताविया पाणाइवाइया° भूओवघाइया-तहप्पगारं वइं णो उच्चारिज्जा।
जे वई परिजाणइ से णिग्गर्थ, जाय वई अपावियात्त तच्चा भावणा।। ४७. अहावरा चउत्था भावणा-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो
आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए । केवली बूया-आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए से णिग्गंथे पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा °, उद्दवेज्ज वा, तम्हा आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए से णिग्गंथे, णो आयाणभंडमत्तणिक्खेवणाअसमिए त्ति चउत्था
भावणा॥ ४८. अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइय
पाणभोयणभोई। केवली बूया- अणालोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पाणाई भूयाइं जीवाइं सत्ताइ अभिहणेज्ज वा', 'वत्तेज्ज वा परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणालोइयपाणभोयणभोई त्ति पंचमा भावणा ।।
१. अइरियासमिए (अ); अणइरियासमिते (छ)। ४. सं० पा०-सकिरिया जाव भूओवघाइया । २. अहिगरणकरे कलहकरे (घ, वृ)। ५. सं० पा०-अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज । ३. णो जे अमणे पावए (च)।
६. सं० पा०–अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज।
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पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
२४३ ४६. एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए
आणाए आराहिए यावि भवइ । पढमे भंते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमणं ।। सच्चमहन्वय-पदं ५०. अहावरं दोच्चं भंते ! महव्वयं-पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं वइदोसं-से कोहा
वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, णेव सयं मुसं भासेज्जा, णेवण्णेणं मुसं भासावेज्जा, अण्णं पि मुसं भासंतं ण समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि' निंदामि
गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।। सच्चमहव्वयस्स भावणा-पदं ५१. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा -अणुवीइभासी
से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासी। केवली बूया -अणणुवीइभासी से णिग्गंथे समावदेज्जा' मोसं वयणाए । अणुवीइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासित्ति
पढमा भावणा॥ ५२. अहावरा दोच्चा भावणा-कोहं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो कोहणे सिया।
केवली बूया -कोहपत्ते कोही समावदेज्जा मोसं वयणाए। कोह' परिजाणइ से
णिग्गंथे, ण य कोहणे सियत्ति दोच्चा भावणा॥ ५३. अहावरा तच्चा भावणा-लोभं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सिया।
केवलो बूया-लोभपत्ते लोभी समावदेज्जा मोसं वयणाए। लोभं परिजाणइ
से णिग्गंथे, णो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा ॥ ५४. अहावरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो भयभीरुए सिया।
केवली बूया-भयप्पत्ते भीरू समावदेज्जा मोसं वयणाए। भयं परिजाणइ से
णिग्गंथे, णो य भयभीरुए सियत्ति चउत्था भावणा ॥ ५५. अहावरा पंचमा भावणा-हासं परिजाणइ से णिग्गंथे, णो य हासणए सिया।
केवली बूया -हासपत्ते हासी समावदेज्जा मोसं वयणाए। हासं परिजाणइ से
णिग्गंथे, णो य हासणए सियत्ति पंचमा भावणा ॥ ५६. एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए' पालिए तीरिए किट्टिए अवट्रिए
आणाए आराहिए यावि भवति । दोच्चे भंते ! महव्वए' 'मुसावायाओ वेरमणं ॥
१. सं० पा०-पडिक्कमामि जाव वोसिरामि। ४. सं० पा०-फासिए जाव आणाए। २. वज्जेज्जा (क, घ, च, छ, ब)।
५. सं० पा०—महव्वए"। ३, कोवं (च, ब)।
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२४४
आयारचूला
अतेणगमहव्वय-पदं ५७. अहावरं तच्चं भंते ! महव्वयं-पच्चक्खामि सव्वं अदिण्णादाणं-से गामे वा,
णगरे वा, अरण्णे वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वाणेव सयं अदिण्णं गेण्हिज्जा, णेवण्णेहिं अदिण्णं गेण्हावेज्जा. अण्णंपि अदिण्णं गेण्हतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए' 'तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं
वोसिरामि ॥ अतेणगमहव्वयस्स भावणा-पदं ५८. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइमिओग्ग
हजाई से णिग्गंथे, णो अणणुवीइमिओग्गहजाई। केवली बूया-अणणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे, अदिण्णं गेण्हेज्जा । अणुवी इमिओग्गहजाई से णिग्गंथे,
णो अणणुवीइमिओग्गहजाई त्ति पढमा भावणा॥ ५६. अहावरा दोच्चा भावणा -अणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणण्ण
वियपाणभोयणभोई। केवली बूया -अणणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे अदिण्णं भुजेज्जा', तम्हा अणुण्णवियपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुण्णवियपाणभोयणभोई त्ति दोच्चा भावणा ।। अहावरा तच्चा भावणा-णिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि एतावताव ओग्गहणसीलए सिया। केवली बूया--णिग्गंथे णं ओग्गहंसि अणोग्गहियंसि एतावताव अणोग्गहणसीलो अदिण्णं ओगिण्हेज्जा । णिग्गंथेणं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि
एतावताव ओग्गहणसीलए सियत्ति तच्चा भावणा ।। ६१. अहावरा चउत्था भावणा--णिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं
अभिक्खणं ओग्गहणसीलए सिया। केवली बूया-णिग्गंथे णं ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं-अभिक्खणं अणोरगहणसीले अदिण्णं गिण्हेज्जा । णिग्गंथे
ओग्गहंसि ओग्गहियंसि अभिक्खणं-अभिक्खणं ओग्गहणसीलए सियत्ति चउत्था
भावणा ॥ ६२. अहावरा पंचमा भावणा-अणुवीइमितोग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मिएस, णो
अणणवीइमिओग्गहजाई । केवली बूया अणणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मिएसु अदिण्णं ओगिण्हेज्जा। अणुवीइमिओग्गहजाई से णिग्गंथे साहम्मि
एसु, णो अणणुवीइमिओग्गहजाई-इइ पंचमा भावणा ॥ ६३. एतावताव महव्वए सम्म' 'काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्रिए
१. सं० पा०-जावज्जीवाए जाव वोसिरामि। ३. सं० पा०-सम्म जाव आणाए। २. गिण्हेज्जा (घ)।
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२४५
पनरसमं अज्झयणं (भावणा)
आणाए आराहिए यावि भवइ । तच्चे भंते महव्वए' 'अदिण्णादाणाओ
वेरमणं ॥ बंभचेरमहव्वय-पदं ६४. अहावरं चउत्थं भंते ! महव्वयं-पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं से दिव्वं वा,
माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, णेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा,' 'णेवण्णेहि मेहुणं गच्छावेज्जा, अण्णंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।।
बंभचेरमहव्वयस्स भावणा-पदं ६५. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा-... णो णिग्गंथे
अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया-णिग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । णो णिग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं
कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा। ६६. अहावरा दोच्चा भावणा- णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराई इंदियाइं आलोएत्तए
णिज्झाइत्तए सिया। केवली बूया-णिग्गंथे णं इत्थीणं मणोहराइं इंदियाई आलोएमाणे णिज्झाएमाणे, संतिभेया संतिविभंगा' 'संतिकेवलीपण्णत्ताओ° धम्माओ भंसेज्जा। णो णिग्गंथे इत्थीणं मणोहराइं इंदियाइं आलोएत्तए
णिज्झाइत्तए सियत्ति दोच्चा भावणा ॥ ६७. अहावरा तच्चा भावणा-णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई
सरित्तए' सिया। केवली बूया-णिग्गंथे णं इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाई सरमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा।
णो णिग्गंथे इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरित्तए सियत्ति तच्चा भावणा।। ६८. अहावरा चउत्था भावणा-णाइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो पणीयरस
भोयणभोई । केवली बूया-अइमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे पणीयरसभोयणभोई त्ति, संतिभेदा 'संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा।
१. सं० पा०-महव्वए। २. सं० पा०---गच्छेज्जा तं चेव अदिण्णादाण-
वत्तव्वया भाणियव्वा जाव वोसिरामि। ३. मणोहराई २ (क, घ); मणोहराइ रूवाई
मणोहराई (छ)।
४. सं० पा०-सतिविभंगा जाव धम्माओ। ५. सुमरित्तए (अ, क, घ, छ, ब)। ६. स. पा.-संतिभेया जाव भंसेज्जा । ७. सं० पा०-संतिभेदा जाव भंसेज्जा।
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२४६
आयारचूला णो अतिमत्तपाणभोयणभोई से णिग्गंथे णो पणीयरसभोयणभोई त्ति चउत्था
भावणा॥ ६६. अहावरा पंचमा भावणा-णो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई
सेवित्तए सिया। केवली बूयाणिग्गंथे णं इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे, संतिभेया' 'संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ ° भंसेज्जा । णो णिग्गंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाइं सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा ॥ एतावताव महत्वए सम्म काएण फासिए' पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए• आराहिए यावि भवइ । चउत्थे भंते ! महव्वए' 'मेहुणाओ
वेरमणं ॥ अपरिग्गहमहन्वय-पदं ७१. अहावरं पंचम भंते ! महव्वयं-सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि--से अप्पं वा, बहुं
वा, अणु वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा णेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, णेवण्णेहि परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अण्णंपि परिग्गहं गिण्हतं ण समणुजाणिज्जा' 'जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिक्क
मामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं° वोसिरामि ।। अपरिग्गहमहन्वयस्स भावणा-पदं ७२. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति । तत्थिमा पढमा भावणा-सोयओ जीवे
मणुण्णामणुण्णाई सद्दाइं सुणेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्घायमावज्जेज्जा। केवली बूया-णिग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहि सद्देहि सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा।
ण सक्का ण सोउं सद्दा, सोयविसयमागता ।
रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥२०॥ सोयओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई सद्दाइं सुणेइ त्ति पढमा भावणा॥ ७३. अहावरा दोच्चा भावणा-चक्खूओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई रूवाइं पासइ ।
१. सं० पा०-संतिभेया जाव भंसेज्जा । २. सं० पा०-फासिए जाव आराहिए। ३. सं० पो०-महव्वए"। ४. पच्चाइक्खामि (अ, क, घ, च)।
५. सं० पा०-समणुजाणिज्जा जाव वोसिरामि ६. सोतत्तेणं (अ, क, छ, ब)। ७. तं (अ, क, घ, ब)।
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पनरसम अज्झयणं (भावणा)
मणुण्णामणुण्णेहि रूवेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा', 'णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा', णो विणिग्यायमावज्जेज्जा । केवली बूयानिग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहि रूवेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे' गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा' 'संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा।
णो सक्का रूवमदटुं, चक्खुविसयमागयं । 'रागदोसा उ जे तत्थ, ते" भिक्खू परिवज्जए ॥२१॥ चक्खूओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई रूवाइं पासइ त्ति दोच्चा भावणा॥ ७४. अहावरा तच्चा भावणा-घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं गंधाइं अग्घायइ।
मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा', 'णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा', णो विणिग्घायमावज्जेज्जा । केवली बूया--- निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहि सज्जमाणे रज्जमाणे 'गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्यायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा' 'संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा।
णो सक्का' ण गंधमग्घाउं, णासाविसयमागयं ।
रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥२२॥ घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई गंधाई अग्घायति त्ति तच्चा भावणा। ७५. अहावरा चउत्था भावणा–जिब्भाओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई रसाइं अस्सादेइ ।
मणुण्णामणुण्णेहि रसेहिं णो सज्जेज्जा", 'णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुज्झज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्यायमावज्जेज्जा । केवली ब्रूयाणिग्गंथे णं मणण्णामणुण्णेहिं रसेहिं सज्जमाणे 'रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे° विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलीपण्णत्ताओ धम्माओ° भंसेज्जा।
णो सक्का रसमणासाउं, जीहाविसयमागयं ।
रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥२३॥ जीहाओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं रसाइं अस्सादेइ त्ति चउत्था भावणा ।।
१. सं० पा.-रज्जेज्जा जाव णो। २. सं० पा०-रज्जमाणे जाव विणिग्धाय । ३. सं० पा०-संतिविभंगा जाव भंसेज्जा। ४. रागो दोसो उ जो तत्थं, तं (अ, क)। ५. सं० पा०-रज्जेज्जा जाव णो। ६. सं० पा.-रज्जमाणे जाव विणिग्घाय।
७. सं० पा०-संतिविभंगा जाव भंसेज्जा। ८. सक्को (छ)। ६. X (अ, क, च, ब)। १०. सं० पा०-सज्जेज्जा जाव णो। ११. सं० पा०-सज्जमाणे जाव विणिग्धाय । १२. सं० पा०-संतिभेदा जाव भंसेज्जा।
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२४८
आयारचूला
७६. अहावरा पंचमा भावणा-फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई फासाइं पडिसंवेदेइट।
मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं णो सज्जेज्जा, णो रज्जेज्जा, णो गिज्झज्जा, णो मुझज्जा, णो अज्झोववज्जेज्जा, णो विणिग्यायमावज्जेज्जा। केवली बूयाणिग्गंथे णं मणण्णामणुण्णेहि फासेहिं सज्जमाणे 'रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे ° विणिग्धायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा।
णो सक्का ण संवेदेउं, फासविसयमागयं ।
रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥२४॥ फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णाई फासाइं पडिसंवेदेति त्ति पंचमा भावणा ।। एतावताव महव्वए सम्म काएण फासिए पालिए तीरिए किट्रिए अवट्रिए आणाए आराहिए यावि भवइ । पंचमे भंते ! महव्वए' परिग्गहाओ
वेरमणं ॥ ७८. इच्चेतेहिं महव्वएहिं, पणुवीसाहि य भावणाहिं संपण्णे अणगारे अहासुयं
अहाकप्पं अहामग्गं सम्म काएण फासित्ता, पालित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता आणाए आराहित्ता यावि भवइ।
---त्ति बेमि॥
१. सं० पा०-सज्जमाणे जाव विणिग्याय । त्रापि 'अवट्रिए' इति पाठो युज्यते, तेन स २. अहिट्ठिए (अ, क, घ, च, छ, ब); प्रथम- स्वीकृतः ।
महाव्रतसूत्रे (४६) "किट्टिए अवट्ठिए' इति ३. सं० पाo-महव्वए। पाठोस्ति, अत्र 'किट्टिए अहिट्ठिए' इति पाठो ४. पण ° (छ, ब)। लभ्यते, किन्तु उक्तसूत्रस्य वृत्तेश्चानुसारेणा
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सोलसमं अज्झयणं विमुत्ती
अणिच्च-पद
१. अणिच्चमावासमुवेंति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं ।
विऊसिरे' विष्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए । पव्वय-दिळंत-पदं २. तहागअं भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विष्णु चरंतमेसणं ।
तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ।। ३. तहप्पगारेहि जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उदीरिया ।
तितिक्खए णाणि अदुट्ठचेयसा, गिरिव्व वाएण ण संपवेवए ।। रुप्प-दिनैत-पदं ४. उवेहमाणे कुसलेहिं संवसे, अकंतदुक्खी तसथावरा दुही।
अलसए सव्वसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए । ५. विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुणिस्स झायओ।
समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्डइ ॥ दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता। महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया॥ सितेहिं भिक्खू असिते परिव्वए, असज्जमित्थीसु चएज्ज पूअणं । अणिस्सिओ लोगमिणं तहा परं, ण मिज्जति कामगुणेहिं पंडिए ।
१. विउ ° (क, च, ब); वियो ° (घ); °विओ (छ) ।
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२५०
आयारचूला
८. तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो।
विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा' । भुजंगतय-दिळंत-पदं ६. से हु प्परिण्णा समयंमि वट्टइ, णिराससे उवरय-मेहुणे चरे ।
भुजंगमे जुष्णतयं जहा जहे', विमुच्चइ से दुहसेज्ज माहणे ।। समुद्द-दिळंत-पदं १०. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं ।
अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ॥ ११. जहा हि बद्धं इह ‘माणवेहि य", जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिओ ।
___ अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ, से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ।। १२. इममि लोए 'परए य दोसुवि', ण विज्जइ बंधण जस्स किचिवि । से हु णिरालंबणे अप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ ।
-त्ति बेमि ॥
ग्रन्थ-परिमाण
कुल अक्षर-६६६१० अनुष्टुप् श्लोक-३००६, अक्षर १८
१. जोइणो (अ, घ, ब)। २. मेहुणा (क, वृ)। ३. चए (घ)।
४. व (अ, क, ब)। ५. माणवेहिं (अ, क)। ६. परलोयतेसुवि (च)।
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सूयगडो
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पढमो सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं
समए
पढमो उद्देसो बंध-मोक्ख-पदं १. बुज्झज्ज तिउट्टेज्जा बंधणं परिजाणिया ।
किमाह बंधणं वीरे? किं वा जाणं तिउट्टइ ? ।। २. चित्तमंतमचित्तं वा परिगिझ किसामवि । ____ अण्णं वा अणुजाणाइ' एवं दुक्खा ण मुच्चई ।। ३. सयं तिवातए पाणे अदुवा अण्णेहि घायए।
हणंतं वाणुजाणाइ वेरं वड्डइ अप्पणो ।। ४. जस्सि' कुले समुप्पण्णे जेहिं वा संवसे णरे । ___ममाती लुप्पती बाले अण्णमण्णेहिं मुच्छिए ।। ५. वित्तं सोयरिया चेव सव्वमेयं ण ताणइ ।
'संधाति जीवितं चेव” कम्मणा' उ ति उट्टइ ।। ६. एए गंथे विउक्कम्म एगे समणमाहणा।
अयाणता विउस्सिता सत्ता कामेहिं माणवा ।। पंचमहन्भूत-पदं ७. संति पंच महन्भूया" इहमेगेसिमाहिया ।
पुढवी आऊ' तेऊ वाऊ आगासपंचमा ।।
१. किमाहु (चू)। २. धीरे (चू)। ३. अणुजाणाए (क)। ४. एव (क)। ५. जेसिं (ख); जंसी (चू)। ६. सोअरिया (ख); सोदरिया (चू)।
७. संखाए जीवियं चेव (क, ख, वृ, पा) । ८. कम्मुणा (ख); कम्मणो (); कम्मणा
(वृपा)। ६. वियोसिया (विओसिता), विउस्सिता (चू)। १०. महब्भूता (चू)। ११. आऊ य (ख)।
२५३
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२५४
सूयगडो १
८. एए पंच महब्भूया तेब्भो' एगो त्ति आहिया। ____ अह' एसिं' 'विणासे उ" विणासो होइ देहिणो' । एगप्प-वाद-पदं ६. जहा य पुढवीथूभे एगे णाणा हि दीसइ ।
एवं भो ! कसिणे लोए विण्णू णाणा हि दीसए । १०. एवमेगे ति जपंति मंदा आरंभणिस्सिया।
एगे किच्चा सयं पावं 'तिव्वं दुक्खं'" णियच्छइ ।। तज्जीव-तच्छरीर-वाद-पदं ११. पत्तेयं कसिणे आया जे बाला जे य पंडिया।
संति पेच्चा ण ते संति णत्थि सत्तोववाइया ।। १२. णत्थि पुण्णे व पावे वा णत्थि लोए इओ परे।
सरीरस्स विणासेणं विणासो होइ देहिणो" ॥
अकारक-वाद-पदं १३. कुव्वं च कारयं चेव सव्वं कुव्वं ण विज्जइ"।
___ एवं अकारओ अप्पा 'ते उ एवं पगब्भिया ।। १४. जे ते उ वाइणो एवं लोए तेसिं कुओ८ सिया? । __ तमाओ ते तमं जंति मंदा आरंभणिस्सिया" ।।
१. ते भो (क, चूपा)। २. एक्को (क)। ३. अध (च)। ४. तेसिं (ख, चू)। ५. विणासेणं (क्य); विसंयोगे (चू)। ६. देहिण (क, ख, चू)। ७. वट्टइ (क, वृ)। ८. एवमेगो (च)। ६. एगो (च)। १०. यणं (क)।
११. तेणं निव्वं (क, चू); तेणं तिप्पं (चपा)। १२. पच्चा (क्व)। १३. परं (च); वरे (क्व)। १४. देहिणं (ख, च)। १५. कारवं (चू)। १६. विज्जए (क)। १७. एवं एते (ख); एवमेगे (चू)। १८. कतो (ख)। १६. मोहेण पाउता (चूपा) ।
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पढमं अज्झयणं (समए—पढमो उद्देसो)
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आयच्छट्ठ-वाद-पदं १५. संति पंच महब्भूया इहमेगेसि आहिया ।
___ आयछट्ठा पुणेगाहु आया लोगे य सासए । १६. दुहओ ते ण विणस्संति' णो य उप्पज्जए असं ।
सव्वेवि सव्वहा' भावा णियतीभावमागया ॥ बुद्धाणं पंचखंध-चतुधातु-वाद-पदं १७. पंच खंधे वयंतेगे बाला उ खणजोइणो।
अण्णो अणण्णो णेवाहु हे उयं व अहेउयं ।। १८. पुढवी आऊ तेऊ य तहा वाऊ य एगओ।
चत्तारि धाउणो रूवं एवमाहंसु जाणगा। णिस्सारता-निर्दसण-पदं १६. अगारमावसंता वि आरण्णा" वा वि पव्वया ।
इमं दरिसणमावण्णा सव्वदुक्खा विमुच्चंति" । २०. 'तेणाविमं तिणच्चा ण ण ते धम्मविऊ जणा।
जे ते उ वाइणो एवं ण ते ओहंतराऽऽहिया । २१. तेणाविमं तिणच्चा णं ण ते धम्मविऊ जणा।
जे ते उ वाइणो एवं ण ते संसारपारगा।। २२. तेणाविमं तिणच्चा णं ण ते धम्मविऊ जणा।
जे ते उ वाइणो एवं ण ते गब्भस्स पारगा। २३. तेणाविमं तिणच्चा णं ण ते धम्मविऊ जणा।
जे ते उ वाइणो एवं ण ते जम्मस्स पारगा।
ББББ
१. आतच्छट्ठा (चू)।
११. अरण्णा (ख)। २. पुणो आहु (क, ख)।
१२. पव्वइया (क)। ३. विष्णस्सति (क).
१३. एतं (चू)। ४. सव्वया (क, ख)।
१४. विमुच्चई (क, ख)। ५. नियत्तीभाव (क, ख)। 'क' प्रतौ निम्न- १५. तेणा वि संधि णच्चा ण (क, ख, व)। वत्तौ
स्थाने नियती० इत्यपि लिखितमस्ति । प्रत्योश्चायमेव पाठो लभ्यते, किन्तु चूणिगत६. णेगाहु (चू)।
पाठोर्थविचारणया प्रकरणपाती प्रतिभाति, ७. च (क्व)।
तेनात्र मूले स एव स्वीकृतः । ८. X (क, ख)।
१६. व्या० वि०-द्विपदयोः सन्धिः-ओहंतरा ६. यावरे (वृ); जाणगा (वृपा)।
आहिया। १०. आगार ° (ख)।
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२५६
२४. तेणाविमं तिणच्चा णं ण ते जे ते उ वाइणो एवं ण ते २५. तेणाविमं तिणच्चा णं ण ते जे ते उ वाइणो एवं २६. ' णाणा विहाई दुखाई अणुहवंति पुणो संसारचक्कवालम्मि वाहिमच्चकुले २७. उच्चावयाणि गच्छंता गब्भमेस्संतांत सो महावीरे एवमाह'
णायपुत्ते
नियति-वाद-पदं २८. आघायं
'पुण एगेसिं" वेदयंति सुहं दुक्खं २६. ण तं सयं कडं
दुक्खं
सुहं वा जइ 'वा दुक्खं" ३०. ण' सयं" कडं ण अण्णेहिं संगइयं तं तहा तेसि ३१. एवमेयाणि
णिययाणिययं एवमेगे उ" एवं वट्टिया
३२.
बीओ उद्देसो
उववण्णा पुढो जिया । अदुवा लुप्पति' ठाणओ || 'ण य" अण्णकडं च णं । सेहियं वा असे हियं ॥ वेदयंति पुढो जिया । इहमेगेसिमाहियं जंपंता बाला पंडियमाणिणो" I संतं अयाणंता" अबुद्धिया || पासत्था 'ते भुज्जो " विप्पगब्भिया । संता णत्तदुक्खविमोयगा " 11
11
१. व्या० वि० २. ० माहु ( क ख ) ।
३. संसारचक्क वालम्मि, भमंता [य पुणो पुणो ] ।
उच्चावयं णियच्छंता, गब्भमे संतणंतसो ॥। (चू) ।
४. पुणिहेगेसि (चू) |
धम्मविऊ जणा । दुक्खस्स पारगा ॥ धम्मविऊ जणा ।
ण ते मारस्स पारगा ।।
पुणो ।
11
एष्यन्ति अनन्तशः ।
५. वेदयंती ( चू) ।
६. विलुप्यन्ते ( वृ ) ।
७. कओ (क, वृ); कत्तो ( ख ) । ८ वाऽसुहं (चू ) ।
1
जिणोत्तमे ।
१३
-त्ति बेमि ॥
ε. a (at) i
१०. सई (चू ) ।
११. पंडितवादिणो ( चू) ।
१२. अयाणमाणा (चू) ।
१३. य (क ) ।
१४. अजाणता (चू) |
सूयगडो १
१५. ० पवट्टिया ( क ). • उवट्टिया ( ख ) ; व्या०
वि० - एवं + अपि + उवट्टिया ।
१६. न ते दुक्खविमोक्खया ( क, ख );
• विमोक्खया (वृ) |
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२५७
पढमं अज्झयणं (समए-बीओ उद्देसो) ३३. जविणो मिगा जहा संता परिताणेण' तज्जिया'।
असंकियाइं संकंति संकियाइं असंकिणो । ३४. परिताणियाणि' संकता पासियाणि असंकिणो।
अण्णाणभयसंविग्गा संपलिंति तहिं तहिं ।। अह तं पवेज्ज वज्झं अहे वज्झस्स वा वए।
'मुच्चेज्ज पयपासाओ" 'तं तु मंदो ण देहई॥ ३६. अहियप्पाऽहियपण्णाणे विसमतेणुवागए ।
से बद्ध पयपासाई तत्थ घायं णियच्छइ ॥ ३७. एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी'. अणारिया।
असंकियाइं संकति संकियाइं असंकिणो ।। ३८. धम्मपण्णवणा जा सा२ 'तं तू'१३ संकति मूढगा।
आरंभाई ण संकति अवियत्ता अकोविया ।। ३६. सव्वप्पगं विउक्कस्सं५ सव्वं णूमं विहूणिया" ।
अप्पत्तियं अकम्मसे एयमटुं मिगे चुए ।। ४०. जे एयं णाभिजाणंति मिच्छदिट्ठी अणारिया।
मिगा वा पासबद्धा ते घायमेसंतऽणंतसो" ॥ अण्णाणिय-वाद-पदं ४१. माहणा समणा एगे सव्वे गाणं सयं वए।
'सव्वलोगे वि' जे पाणा ण ते जाणंति किंचणं" ।।
१. परियाणेण (क, ख)।
११. संकिंती (चू)। २. वज्जिया (क, ख, वृ); तज्जिया (वृपा)। १२. तु (चू) । ३. परियाणियाणि (क, ख)।
१३. तीसे (चू)। ४. मुच्चेजा ° (क); वधेज्ज पदपासातो (चू); १४. आरंभाय (चु) । __ मुच्चेज्ज पदपामादी (चूगा, वृपा)। १५. विउक्कासं (च)। ५. तं च मंदे ण पेहती (चू); देहते (क)। १६. विधुणिया (चू)। ६. अहिते हित पण्णाणा (चू)।
१७. तेतं (चू)। ७. विसमं तेणुवागते (चू); विसमतेऽणुवायए १८. मिच्छा ° (चू) । (क, वृरा)।
१६. व्या० वि -एषयन्ति अनन्तशः । ८. पयपासे हिं (चू)।
.२०. सव्वलोगंसि (चू)। ६. घंतं (चू)।
२१. कंचणं (क)। १०. मिच्छादिट्ठी (चू)।
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२५८
सूयगडो १
४२. मिलक्खू अमिलक्खुस्स जहा वुत्ताणुभासए'।
___ण हेउं से वियाणाइ भासियं तऽणुभासए ॥ ४३. एवमण्णाणिया णाणं वयंता वि सयं सयं ।
णिच्छयत्थं ण जाणंति मिलक्खु व्व अबोहिया ॥ ४४. अण्णाणियाण वीमंसा 'अण्णाणे ण णियच्छइ।
अप्पणो यः परं णालं कतो' अण्णाणुसासिउं ? ।। ४५. वणे मूढे जहा जंतू मूढणेयाणुगामिए ।
'दो वि एए अकोविया" तिव्वं सोयं णियच्छई ।। ४६. अंधो अंधं पहं णेतो दरमद्धाण गच्छई।
आवज्जे उप्पहं जंतू २ 'अदुवा पंथाणुगामिए । ४७. एवमेगे णियागट्टी धम्ममाराहगा वयं ।
अदुवा अहम्ममावज्जे ण ते सव्वज्जुयं५ वए। ४८. एवमेगे वियक्काहिं णो अण्णं ६ पज्जुवासिया।
अप्पणो य वियक्काहिं अयमंजू हि दुम्मई ।। ४६. एवं तक्काए" साता धम्माधम्मे अकोविया ।
दुक्खं ते णातिवद्वृति" सउणी पंजरं जहा ।। ५०. सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वयं ।
जे उ तत्थ विउस्संति 'संसारं ते२१ विउस्सिया२२ ॥
१. भासती (चू)।
११. णति (चू)। २. बियाणेति (चू)।
१२. जतो (चू); जंतू (चूपा)। ३. °भासती (चू)।
१३. अहसक्खाणुगामिए (क)। ४. अबोधिए (क, चू)।
१४. अपि (चूपा)। ५. णाणे व णियच्छति (क, चू)। १५. सव्वुज्जुयं (ख); सव्वुज्जुगं (चु) । ६. वि (वृ)।
१६. पर (वृ)। ७. कुतो (क)।
१७. तक्काइ (ख)। ८. मुढेणे ° (क, ख); मुढं णेयाणुगच्छति (वृ); १८. नातिउटति (क); नाइतुझंति (ख, व); ण ___ मूढ-मूढाणुगामिए (चू)।
तिउटैति (चूपा)। ६. दुहतो वि अकोविता (च); उभयो वि न १६. गरहंती (च) । याणंति (चूपा)।
२०. वदि (चू)। १०. व्या० वि.--छन्दोदृष्ट्या एकवचनम्- २१. संसारे ते (ख); संसरते (च) । णियच्छति।
२२. वि उसिया (वृपा)।
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पढम अज्झयणं (समए-बीओ उद्देसो)
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सोगताणं कम्मोवचय-चिता-पदं ५१. अहावरं पुरक्खायं किरियावाइदरिसणं' ।
कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधविवद्धणं' ॥ ५२. जाणं काएणऽणाउट्टो' अबुहो 'जं च" हिंसइ ।
पुट्टो वेदेइ परं अवियत्तं खु सावज्जं ॥ ५३. संतिमे तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं ।
अभिकम्मा य पेसा य मणसा' अणुजाणिया । ५४. एए उ तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं ।
एवं भावविसोहीए' णिव्वाणमभिगच्छइ ॥ ५५. पुत्तं 'पि ता समारंभ आहारटुं असंजए।
भुजमाणो वि" मेहावी कम्मुणा" णोवलिप्पते"। सुत्तकारस्स उत्तर-पदं ५६. मणसा जे पउस्संति चित्तं तेसि ण विज्जइ।
अणवज्जं अतहं तेसिं ण ते संवुडचारिणो । ५७. इच्चेयाहि दिट्ठीहिं सायागारवणिस्सिया ।
सरणं" ति मण्णमाणा५ सेवंती पावगं" जणा। ५८. जहा आसाविणिं" णावं जाइअंधो दुरूहिया"।
इच्छई" पारमागंतुं अंतराले० विसीयई ॥ ५६. एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया। 'संसारपारकंखी ते'२२ संसारं अणुपरियÉति ॥
-त्ति बेमि ॥ १. °वाईण दरि° (ख)।
१३. लिप्पई (क, ख)। २. संसारस्स पवड्डणं (क, ख, वृषा) ।
१४ हियं (चू) ३. ०णाउट्टे चू)।
१५. ° माणा तु (चू)। ४. ज व (क); जे य (चू) ।
१६. अहियं (चू)। ५. मणसा य (क)।
१७. आस्साविणि (चू)। ६. भावणसुद्धीए (चू)।
१८. दुरुभिया (चू)। ७. जेव्वाण° (चू)।
१६. इच्छेज्जा (क); इच्छंतो (चू)। ८. पिया (क, ख); पिता (वृ) ।
२०. अंतरा इ (क); अंतरा य (चू)। ६. समारब्भ (क्व)।
२१. मिच्छा° (चू)। १०. आहारेज्ज (क, ख)।
२२. पारमिच्छंता (चू)। ११. य (क, ख)।
२३. ° यट्टइ (क)। १२. कम्मणा (ख)।
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सूयगडो १
तइओ उद्देसो पूइकम्म-आहार-दोस-पद ६०. जं किंचि वि' पूइकडं 'सड्डी' आगंतु' ईहियं"।
सहस्संतरिय भुजे दुपक्खं चेव सेवई । ६१. तमेव अवियाणंता विसमंसि' अकोविया ।
'मच्छा वेसालिया चेव उदगस्सऽभियागमे ॥ ६२. उदगस्स पभावेणं 'सुक्कम्मि घातमेंति" उ ।
ढंकेहि य कंकेहि य आमिसत्थेहि ते दुही ।। ६३. एवं तु समणा एगे वट्टमाणसुहेसिणो ।
मच्छा वेसालिया चेव" घायमेसंतणंतसो१२ ॥ कयवाद-पदं ६४. इणमण्णं तु अण्णाणं इहमेगेसिमाहियं ।
देवउत्ते अयं लोए बंभउत्ते५ त्ति आवरे ॥ ६५. 'ईसरेण कडे'" लोए पहाणाइ५ तहावरे।
जीवाजीवसमाउत्तेः सुहदुक्खसमण्णिए ॥ ६६. 'सयंभुणा कडे७ लोए इति वुत्तं महेसिणा।
मारेण संथुया माया तेण लोए असासए ।।
१. उ (ख, चू);
१२. घंतमेसंत° (चू); व्या० वि-एष्यन्ति २. व्या० वि० ---विभक्तिरहितपदम्-सडीहिं। अनन्तशः। ३. व्या० वि० -विभक्तिरहितपदं वर्णलोपश्च- १३. ° उत्ति (क, ख)। आगन्तुकान् उद्दिश्य ।
१४. इस्सरेण कते (चू)। ४ सड्डीमा गंतुमीहियं (क, ख)।
१५. व्या वि०-पहाणाइ, अत्र 'कडे' इति वाक्य५. सह-संतरकडं (च)।
शेषः । ..विसममि (क)।
१६. जीवाजीवेहिं संजुत्ते (चू)। ७. °वेसारिया ° (क); मच्छे वेतालिए चेव १७. कते (चू)। (गा)।
१८. नागार्जुनीयास्तु पठन्ति८. उदगस्स अभिआगमे (चू)।
अतिवडियजीवा णं, ६. सुक्कसि ग्घात ° (ख); सुक्कंसि घंतमेति(चु)। मही विण्णवते प । १०. आमिसासीहि (चू)।
ततो से माया संजुत्ते, ११. व्या० वि० चेव-इव।
करे लोगस्सभिद्दवा ।। (चू)
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पढमं अभयणं (समए - - - चउत्थो उद्देसो)
जगे ।
६७. माहणा समणा एगे' आह अंडकडे अ तत्तमकासी य अयाणंता मुसं
वए ॥
६८. 'सएहिं परिया एहि " " लोगं बूया कडे त्ति य" । तत्तं ते 'ण वियाणंति" 'णायं णाऽऽसी" कयाइ वि ।। ६६. अमणुण्णसमुप्पायं विजाणिया । समुप्पायमजाणता किह' णाहिति संवरं ? ॥
अवतार-वाद-पदं
७०. सुद्धे अपावए आया इहमेगेसिमाहियं 1 कीडापदोसेणं से तत्थ
'पुणो
अवरभई ॥
७१. इह संवुडे मुणी जाए विडं व जहा भुज्जो
अत्तपवाद-पसंसा-पदं
७२. एयाणुवीइ मेहावी पुढो पावाउया" सव्वे
७३. 'सए सए" उवद्वाणे 'अधो व होति वसवत्ती
(चूपा) ।
४. नाभिजाणंति (बृ.) ।
५. न विणासी (क, ख, वृ)
पच्छा णीरयं
१. वेगे (क, ख ) ।
२. सएण परियाएण (चू) ।
बूया
३. ०त्ति या ( क ); ° कडे विधि (चू); लोए कडे विधि, लोकं बूया कडे ति च
६. कहं ( ख ) ।
७. नाहंति ( ख ) ।
८. कीलावण - प्पदोसेण, रजसा अवतारते ।
होइ
सरयं
वसे ।
'बंभचेरं ण तं अक्खायारो सयं सयं ॥ सिद्धिमेव ण अण्णा । सव्वकामसमप्पिए
11
१२
अपावए ।
तहा " ॥
इह संवुडे भवित्ताणं सुद्धे सिद्धीए चिट्ठती । १४. पुणो कालेणऽणंतेणं, तत्थ से अवरज्झती ॥
(चु) ।
● इह संवुडे भवित्ताणं,
पेच्चा होति अपावए । (चूपा) ।
8. बंभचेरे ण ते वसे (क, वृ) । १०. पावादिया (चू ) ।
११. सते सते ( क ) ।
१२. व्या० वि० - मकारः अलाक्षणिकः । १३. अधो इहत्तवसमत्ती (क); इहेव होति • ( चू); अबोही होति ( चुपा); 'ख' प्रतौ 'अधोधि' इति पाठोस्ति, किन्तु लिपिदोषेण 'वि' स्थाने 'धि' जातः इति प्रतीयते । ० समप्पिओ (चू ) ।
२६१
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२६२
सूयगडो
सिद्ध-वाद-पदं ७४. सिद्धा य ते अरोगा य इहमेगेसि आहियं ।
सिद्धिमेवपुरोकाउं' सासए' गढिया णरा। उवसंहार-पदं ७५. असंवुडा अणादीयं भमिहिंति पुणो-पुणो। कप्पकालमुवज्जति ठाणा आसुरकिब्बिसिय ।
___-त्ति बेमि॥
चउत्थो उद्देसो जावणा-पदं ७६. एते जिया भो ! 'ण सरणं'५ 'बाला पंडियमाणिणो। _ 'हिच्चा णं" पुव्वसंजोगं सितकिच्चोवएसगा ॥ ७७. तं च भिक्खू परिणाय विज्जं 'तेसु ण" मुच्छए ।
अणुक्कस्से अणवलीणे९ मज्झण२ मुणि जावए । सपरिग्गहा य सारंभा इहमेगेसिमाहियं । 'अपरिग्गहे अणारंभे'१५ भिक्खू जाणं परिव्वए। कडेसु घासमेसेज्जा विऊ दत्तेसणं चरे।
अगिद्धो विप्पमुक्को य ओमाणं परिवज्जए॥ लोगवाय-पदं ८०. 'लोगवायं णिसामेज्जा' ५५ इहमेगेसिमाहियं
विवरीयपण्णसंभूयं 'अण्णवुत्त-तयाणुगं'१७ ॥ १. पुरा ° (क, चू); सिद्धमेव (ख)। १०. अणुकम्मे (क); अणुक्कसाए (चू); अणुक्कसे २. आसएहिं (च)।
(चूपा)। ३. कप्पकालुववज्जति (चू)।
११. अप्पलोणे (क, ख, वृ)। ४. किब्बिसिया (ख)।
१२. मज्झिमेण (क, च)। ५. असरणं (चूपा)।
१३. अपरिग्गहो अणारंभो (ख, वृ)। ६. जत्थ बालेऽवसीयइ (क, वृपा)।
१४. ताणं (क, ख, वृ)। ७. जहित्ता (चू)।
१५. लोगावायं° (च); लोकावादं णिसामेत्ता ८. सिताकिच्चोवदेसिता (क, वृपा); सिया- (चूपा)। किच्चोवएसगा (ख); सितकिच्चोवगा सिया १६. विपरीतपण्णसंभूया (चू)।
१७. अणुण्णु वुतिताणुगं (क); अन्नेहिं बुइयाणुगं ६. तेसि ण (क); ण तत्थ (चूपा)।
(ख); अण्णोण्णबुइताणुगा (चू)।
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पढमं अभयणं ( समए - चउत्थो उद्देसो)
८१. अणते णितिए लोए सासए अंतवं णितिए लोए 'इइ ८२. 'अपरिमाणं वियाणा " सव्वत्थ सपरिमाणं 'इह
इहमेगेसि
अहिंसा-पदं
८३. जे केइ तसा पाणा
परिया' अथ से अंजू
८४. उराल जगतो जोगं
सव्वे अकंतदुक्खा " य ८५. एयं खुणाणिणो सारं अहिंसा समय
चेव
भिक्खु चरिया - पदं
८६. 'वुसिते विगयगिद्धी य" चरियासण सेज्जा
८७. एतेहिं तिहिं ठाणेहिं
उक्कसं" जलणं णूम"
८८. समिए तु सया साहू सितेहिं असिते भिक्खु
पासति (चू) ।
२. अमितं जाणती वीरे (चू) ।
३. इति वीरोऽधिपासती (चू) |
६. परिताए ( क ) ।
७. जायं (चू ) ।
८. तेण (वृ) । ε. ओरालं (क) ।
ण विणसई । धीरोऽतिपास" |
आहियं । धीरोऽतिपासई" |
चिट्ठतदुव
जेण' ते
'विवज्जासं
अओ
जं ण
एयावंत ̈
सव्वे
थावरा ।
तस्थावरा ||
पलेंति य० ।
अहिंसा" ।। कंचणं" 1 वियाणिया ||
हिंसइ
आयाणं
भत्तपाणे
'संजए
मज्झत्थं पंचसंवरसंबुडे आमोक्खाए परिव्वज्जासि ।।
1
-त्ति बेमि ॥
य
सययं
च
१. इति धीरोतिपासति ( क ); इति वीरोऽधि- १० विपरीय संपलेति य (क); ° पलिति य (चू) ।
११. अक्कंत ० ( वृ); अकंत ० ( वृपा) । १२. अहिंसा ( क ), अहिंसिया (ख, वृ ) | १३. किंचणं (ख, च ) ।
सारक्खए । अंतसो ॥
मुणी ।
विचिए ||
४. केति ( क, ख ) ।
१४. इत्तावय ( क ) ।
५. चिट्ठति अदुव ( ख ); व्या० वि० – द्विपदयो १५. बुसेए य विगयगेही ( क ) ; वुसिए य विगतगेही
सन्धिः - चिट्ठति । अदुव ।
(च); अकसायी सदाऽधिगतगेधी (चुपा) ।
२६३
१६. संजमेज्ज सया (च्) ।
१७. उक्कासं (चू) |
१८. णूमं ( क, ख, वृ) ।
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संबोधि-पदं
बुज्झहा संबोही खलु पेच्च राइओ णो सुलभं पुणरावि २. डहरा बुड्ढा य पासहा गब्भत्था वि चयंति
१. संबुज्झह' किण्ण' णो हूवणमंति
आउखयं मि
सेणे जह वट्टयं ३. 'मायाहि पियाहि लुप्पई 'एयाइ भयाइ" देहिया' ४. जमिणं जगई पुढो जगा सयमेव ' कडेहि गाहई""
अणिच्च भावणा-पदं ५. देवा राया
१. भो ! सबुज्झह (चू)।
२. किण्णु (चू) ।
३. पासह ( ख ) ।
४. य (चू) । ५. वि (वृ) ।
६. नागार्जुनीयास्तु पठन्ति —
माता पितरो य भातरो, विलभेज्जसु केण पेच्चए (चू) ।
बीअं अज्भयणं वेयालिए पढमो उद्देसो
७. एाई भाई (क) । ८. पेहिया ( ख ) ।
हरे एवं
गंधव्वरक्खसा असुरा भूमिचरा" णरसेट्ठिमाहणा" 'ठाणा ते
णो सुलहा आरंभा
कम्मे हिं णो तस्स
सुगई य' विरमेज्ज
लुप्पंति" मुच्चे
२६४
१३. पुट्ठव (क) ।
१४. भूमिगता (चू) ।
दुल्लहा । जीवियं ॥ माणवा ।
सिरीसिवा " । वि चयंति"" दुक्खिया ॥
ट्टई ॥ पेच्चओ "।
६. सुट्ठिए (वृपा) ।
१०. विलुप्यन्ते (वृ) |
११. कडेहि गार्हति ( क ) ; कडेऽवगाहए (चू) ।
१२ . तस्सा ( क, ख ); तेणं (चू) ।
सुव्व ॥ पाणिणो ।
अपुटुवं ॥
१५. सरि ० ( क ) ।
१६. णर-अधिपमाहणा ( चूपा) । १७. ते वि चयंति ठाणाई ( क ) ।
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बीयं अभय ( वेयालिए -- पढमो उद्देसो)
६. 'कामेहि य संथवेहि य" ताले जह बंध
कम्म-विवाग-पदं
७. जे यावि 'बहुस्सुए सिया" अभिणूमकडेहिं मुच्छिए ।
८. अह
कसाय परिणाम-पदं
पास विवेगमुट्ठिए" अवितिणे हिसि" आरं कओ परं ?
वेहासे
९. जइ विय णिगिणे "किसे " चरे 'जे इह " मायादि" मिज्जई
कम्मसहा
एवं
५. भवे बहुस्सुता ( ) ।
६. धम्मिय माहण (ख, वृ, चू) ।
७. सुयी (चू) ।
८.
करेहिं (चू) ।
६. मुच्छिया (चू) ।
१०. ते (वृ, चू) । ११. किच्चति (वृ, चू) ।
कालेण आउखयम्मि'
'धम्मिए माहणे " भिक्खुए सिया । तिव्वं से" कम्मेहिं किच्चती " ॥
"
१. कामेहि संथवेहि गिद्धा (वृ) ।
२. कम्स (च) |
माहणे
अत्र
३. आउखए वि (चू) 1 ४. व्या० वि०- ० - बहुस्सुए धम्मिए भिक्खुए - सर्वत्रापि बहुवचनं युज्यते । बहुवचनान्तं क्रियापदं स्वीकृतम्, तेन वृत्ति कृता छान्दसत्वाद्बहुवचनं द्रष्टव्यम् - इति लिखितम् ।
सिक्खापदं
१०. पुरिसोरम" पावकम्मुणा" पलियंतं
मणुयाण जीवियं ।
सण्णा इह काममुच्छिया मोहं जंति 'णरा असंवुडा'" ॥
इह भासई धुतं" । कम्मे हिं किच्च ॥
जइ वि य भुंजिय मासमंतसो । आगंता गब्भादणंतसो ॥
जंतवो ।
तुट्टई ॥
१२. विवाग ० ( चुपा ) ।
१३. अवि तिष्णे (चूपा) ।
१४. धुवं (क, ख, वृ) ।
१५. ण नेहिसि ( चूपा ) ।
१६. निगणे ( क, ख ) ।
१७. कसे ( ख ) ।
२६५
१८. जइ विह (चू ) ।
१९. मायाति (क ) ; मायाइ (ख); व्या० वि०विभक्तिरहितपदम् - मायादिणा ।
२०. गन्भायणंतसो (क, ख, वृ); व्या० वि० .... गर्भादिअनन्तशः ।
२१. व्या० वि० - पुरुष ! उपरम ।
२२. ० कम्मणा ( ख ) 1
२३. अंसवुडा नरा (क) ।
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२६६
सूयगडो १
११. जययं विहराहि जोगवं 'अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा।
अणुसासणमेव पक्कमे वीरेहि सम्म पवेइयं ॥ वीर-पदं १२. 'विरया वीरा समुट्ठिया कोहाकायरियाइपीसणा'
पाणे ण हणंति सव्वसो पावाओ विरयाऽभिणिव्वुडा ॥ कम्म-विधूणण-पदं १३. ण वि ता अहमेव लुप्पए" लुप्पंती लोगंसि पाणिणो।
एवं सहिएऽहिपासए अणिहे से पुढेऽहियासए ॥ १४. धुणिया कुलियं व लेववं कसए देहमणासणादिहि ।
अविहिंसामेव पव्वए अणुधम्मो मुणिणा पवेइओ ॥ १५. सउणी जह पंसुगंडिया" विहुणिय धंसयई सियं रयं ।
एवं दविओवहाणवं कम्म खवइ तवस्सि माहणे ॥ अणुलोम-परीसह-पदं १६. उदियमणगारमेसणं 'समणं ठाणठियं तवस्सिणं'१२ ।
डहरा वुड्ढा य पत्थए अवि सुस्से ण य तं लभे जणा" ।। १७. जइ कालुणियाणि कासिया" जइ रोयंति५ य पुत्तकारणा।
दवियं भिक्खू समुट्टियं णो ‘लब्भंति णं सण्णवेत्तए ।
१. अणुपत्थि पाणा (चूपा)। २. प्रतिक्रामेद् (वृ); परक्कमे (चू)। ३. वीरा विरता हु पावका (चू) । ४. व्या० वि दीर्घत्वमलाक्षणिकम् । ५. लुप्पधे (चू)। ६. लोगम्मि (क)। ७. सहिएहि (क)। ८. पुट्ठो अहियासए (क)। ६. किसए (ख)।
१०. व्या०वि०-दीर्घत्वमलाक्षणिकम् । ११. गंडिया (ख)। १२. समणट्ठाणट्टितं तवस्सियं (च)। १३. जणं (क); जणो (चू)। १४. से करे (चू)। १५. रोवंति (च)। १६. लब्भंति ण संठवेत्तए (क); लब्भिति न
संठवित्तए (तू)।
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२६७
बीअं अज्झयणं (वेयालिए-पढमो उद्देसो) १८. जइ तं' कामेहि लाविया 'जइ आणेज्ज तं बंधिता घरं ।
'तं जीवित' णावकंखिणं"५ ‘णो लब्भंति तं सण्णवेत्तए । १६. सेहंति" य णं ममाइणो 'माय पिया य सुया य भारिया ।
पोसाहि णे पासओ तुमं 'लोगं परं पि जहासि पोसणे ॥ २०. अण्णे अण्णेहि मुच्छिया मोहं जंति ‘णरा असंवडा' ।
विसमं विसमेहि गाहिया ते पावेहिं पुणो पगब्भिया ।। २१. 'तम्हा दवि इक्ख पंडिए'१३ पावाओ विरएभिणिव्वडे ।
'पणए वीरे महाविहि सिद्धिपहं णेयाउयं धुवं५ ॥ २२. वेयालियमग्गमागओ६ मणवयसा काएण संवुडो। चिच्चा वित्तं च णायओ आरंभं च सुसंवुडे चरे ।।
त्ति बेमि॥
बीओ उद्देसो
माण-विवज्जण-पदं
२३. तय सं व जहाइ से रयं इइ संखाय मुणी ण मज्जई ।
गोयण्णतरेण माहणे" अहऽसेयकरी अण्णेसि इंखिणी ।।
१.विय (ख); वि (वृ); णं (च)। २. जति णेज्जाहि णं बंधिउं घरं (क)। ३. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम-जीवितस्स । ४. कंखए (ख); णाभिकंखए (वृ) । ५. जइ जीविय नावकखति (क)। ६. नो लब्भंति न संठवित्तए (क, ख); नो
लब्भिंति न संठवित्तए (वृ) । ७. सेहिति (चू)। ८. माया (ख)। ६. माति पिति थि पती य भायरो (च)। १०. परलोगं पि जहाहि उत्तमं (चू)। ११. असंवुडा नरा (क)।
१२. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम-दविए। १३. दविए व समिक्ख पंडिते (च); तम्हा दवि
इक्ख पडिए (चपा)। १४. पणता वीरा महाविधि (च); पणता वीधे
तऽणुत्तरं (चूपा); पणया वीरा° (ख, वृ); व्या० वि०-छन्दोद्दष्ट्या ह्रस्वत्वम्-महा
वीहिं। १५. सिवं (च); धुवं (चूपा)। १६. °मातओ (क)। १७. चरेज्जासि (क,ख); परिचएज्जासि(चपा)। १८. व्या०वि०--विभक्तिरहितपदम्-तयं । १६. जे विदू (चू, वृपा); माहणे (चूपा)।
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२६८
सूयगडो१
२४. जो परिभवई परं जणं संसारे परिवत्तई महं।
अदु इंखिणिया उ पाविया' इह संखाय मुणी ण मज्जई ॥ २५. जे यावि अणायगे सिया जे वि य पेसगपेसगे सिया।
इद मोणपयं उवट्टिए णो लज्जे समयं सया चरे । २६. 'सम अण्णयरम्म संजमें" संसुद्धे समणे परिव्वए।
जा आवकहा समाहिए दविए कालमकासि पंडिए । २७. दूर अणुपस्सिया मुणी तीयं धम्ममणागयं तहा।
पुढे फरसेहिं माहणे अवि हण्णू 'समयंसि रीयइ ॥
समता-धम्म-पदं २८. पण्णसमत्ते९ सया जए समता२ धम्ममुदाहरे२ मुणी।
सुहुमे" उ सया अलूसए ‘णो कुज्झे" णो माणि" माहणे ॥ २६. बहुजणणमणम्मि संवुडे 'सव्वद्वेहिं णरे१८ अणिस्सिए ।
'हरए व सया अणाविले' धम्म पादुरकासि कासवं ॥ ३०. बहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं 'समयं समीहिया'२१ । ___जे मोणपयं उवट्ठिए विरई२२ तत्थ अकासि" पंडिए ।।
१. परियत्तती (च)।
व्या० वि०-समतयाः। २. महे (क); चिरे (ख, चू, वृपा)। १३. ° मुदाहरेज्ज (चू)। ३. पातिका (चूपा)।
१४. सुहमे (क)। ४. संखाए (चू)।
१५. कुप्पे (चू)। ५. अणातए (चू)।
१६. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम् -माणी। ६. पेस्सग° (चू)।
१७. कधयंतो ण परं [णु] कोवये (चूपा)। ७. जे (क, ख, वृ)।
१८. सव्वढेसु सदा (च)। ८. समे० (क, ख); समयन्नरम्मि° (चू); १६. हरदे वतुमे [पतुमे ?] अणाउले (च); समयण्णतरम्मि वा सुते (चपा)।
°अणाउरे (चूपा); ° अणाइले (क, चूपा)। ६. जे (क, ख)।
२०. प्रादु° (चू)। १०. समयाधियासए (वृपा, चपा)।
२१. ° उवेहिया (क, वृपा); समियं उवेहाए (च); ११. समत्थे (क, ख); पण्हसमत्थे (चु, वृपा); समिया उवेहिता (चपा)। पण्हसमत्ते (चपा)।
२२. विरयं (क)। १२. समिया (क); समिता (च);
२३. मकासि (चू)।
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२६४
बीअं अज्झयणं (वेयालिए-बीओ उद्देसो) ३१. 'धम्मस्स य पारगे मुणी आरंभस्स य 'अंतए ठिए।
सोयंति य णं ममाइणो ‘णो य" लभंती णियं' परिग्गह" । सामण्णस्स माहप्प-पदं ३२. इहलोगे दुहावहं विऊ परलोगे य 'दुहं दुहावह' ।
विद्धसणधम्ममेव तं इइ विज्ज को गारमावसे ? ॥ सुहुम-सल्ल-पदं ३३. 'महया पलिगोव' जाणिया जा वि य वंदणपूयणा इहं । ___ सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे विउमंता पयहिज्ज संथवं'।
एगचारि-पदं
३४. एगे चरे ठाणमासणे" सयणे एगे'२ 'समाहिए सिया । भिक्ख उवहाणवीरिए वइगुत्ते
अज्झत्थसंवडे" ॥ ३५. णो पीहे 'ण यावपंगुणे'१५ दारं सुण्णघरस्स संजए।
पुढे ण उदाहरे वई ण 'समुच्छे णो संथरे तणं ॥ ३६. जत्थत्थमिए अणाउले समविसमाणि मुणी हियासए ।
चरगा अदुवा वि भेरवा अदुवा तत्थ सिरीसिवा सिया ।।
१. अंतिए ठिए (क); अंतिए ठित (चूपा)। ८. मयं (वृ); महता (वृपा)। २. न (क)।
है. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम् –पलिगोवं । ३. निययं (क); णितियं (चू)।
१०. नागार्जुनीयास्तु पठन्ति-पलिमंथ महं विजा४. नागार्जनीया विकल्पयन्ति--
णिया, जाविय वंदणपूयणा इहं[इधं] । (चू); सोऊण तयं उवद्वित,
सुहुमं सल्लं दुरुद्धरं, ___ केयि गिही विग्येण उद्विता। तंपि जिणे एएण पंडिए । (चु, वृ) । धम्मम्मि इधं अणुत्तरे,
११. ० आसणे (च)। तंपि जिणेज्ज इमेण पंडिते ॥ (च)। व्या० वि०-मकारः अलाक्षणिकः । नागार्जुनीयास्तु पठन्ति
१२. एग (ख, चू)। सोऊण तयं उवट्ठियं,
१३. समाहितो चरे (चू)। __केह गिही विग्घेण उठ्ठिया। १४. अज्झप्प ° (चू)। धम्मम्मि अणुत्तरे मुणी,
१५. णावपंगुणे (क, ख); ° ऽवंगुणे (चू) । ___ तंपि जिणिज्ज इमेण पडिए ॥ (वृ)। १६. वयं (ख)। ५. विदा (ख, चू)।
१७. समुच्छति णो संथडे तणे (चू)। ६. दुहा दुहावहा (चूपा)।
१८. अणाइले (क)। ७. या (क, चू)।
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२७०
सूयगडो १
३७. तिरिया मणुया' य. दिव्वगा' उवसग्गा तिविहा धियासए ।
लोमादीयं पि' ण हरिसे सुण्णागारगए . महामुणी ॥ ३८. णो अभिकंखेज्ज जीवियं णो वि य पूयणपत्थए सिया।
'अब्भत्थमति भेरवा सूण्णागारगयस्स भिक्खणो॥ ३६. उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस्स विविक्कमासणं ।
___ सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाण' भए ण दंसए । राय-संसग्ग-विवज्जण-पदं ४०. उसिणोदगतत्तभोइणो१ धम्मठियस्स२ मुणिस्स हीमतो ।
संसग्गि" असाहु" राइहिं असमाही उ तहागयस्स वि ।। अहिगरण-वज्जण-पदं ४१. अहिगरणकरस्स६ भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं ।
__ अढे 'परिहायई बहू' अहिगरणं ण करेज्ज पंडिए“ । गिहि-भायण-पदं ४२. सीओदग" पडिदुगंछिणो" अपडिण्णस्स लवावसक्किणो।
सामाइयमाहु तस्स जं२ जो गिहिमत्तेऽसणं ण भुंजई" ।
१. मणुसा (चू, वृ)।
१४. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-संसग्गी २. व (क)।
असाहू। ३. दिविया (च)।
१५. मसाहु (क)। ४. हियासिया (ख, वृपा); विसे विया (चू)। १६. °कडस्स (क, ख)। ५. X (ख)।
१७. परिहायते धुवं (च)। ६. जावऽभिकंख (च)।
१८. संजए (च)। ७. अब्भत्थ मुवंति भेरवा (क); पठयते च- १६. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम-सीओद
गस्स। ___ "अप्पुत्थमुवेंति भेरवा" (चू)।
२०. °दुगुंछिणो (च)। ८. विवित्त° (क, च)।
२१. ° सेक्किणो (क); ° संकिणो (ख); हस्त६. त (च)।
लिखितवत्त्यादर्श-अवसक्किणोत्ति-अवस१०. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-अप्पाणं।
पिणः । ११. ° भोयणो (चू)।
२२. तं (चू)। १२. धम्मट्ठिस्स (चू)।
२३. जं (चू)। १३. ह्रीमतो (चू)।
२४. भक्खति (चू)।
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बीअं अज्झपणं (वेयालिए--बीओ उद्देसो)
उत्तम-धम्म-गहण-पदं ४३. ण य संखयमाहु जोवियं तह वि य बालजणो पगब्भई ।
बाले पावेहि मिज्जई इइ संखाय मुणी ण मज्जई ।। ४४. छंदेण' पलेतिमा पया बहुमाया मोहेण पाउडा ।
वियडेण पलेंति माहणे सीउण्हं वयसा हियासए ।। ४५. कुजए अपराजिए जहा अक्खेहि कुसलेहि दीवयं ।
कडमेव गहाय णो कलिं णो तेयं णो चेव दावरं ।। ४६. एवं लोगम्मि ताइणा बुइए जे धम्मे अणुत्तरे ।
तं गिण्ह हियं ति उत्तम कडमिव सेसऽवहाय पंडिए॥ बंभचेर-पदं ४७. उत्तर मणुयाण आहिया गामधम्म' इति मे अणुस्सुयं ।
जंसी२ विरया समुट्ठिया कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥ ४८. जे 'एय चरंति'१५ आहियं णाएण" महया महेसिणा।
ते उट्टिय५ ते समुट्ठिया अण्णोणं सारेंति धम्मओ ।। ४६. मा पेह पुरा पणामए अभिकंखे उवहिं धुणित्तए ।
जे 'दूवण"ण ते हि“णो णया ते जाणंति समाहिमाहियं । मुणीणं विवेग-पदं ५०. णो काहिए" होज्ज संजए पासणिए ण य संपसारए ।
णच्चा धम्म अणुत्तरं कयकिरिए य ण यावि मामए ।
१. मज्जती (चूपा)।
व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्गामधम्मे। २. छण्णेण (चू)।
१२. जंसि (ख)। ३. सीयुण्हं (चू)।
१३. एयं ° (क) ° करंति (च)। ४. दिव्वयं (क); दिव्ववं (च) ।
१४. नायएण (चू)। ५. तीयं (ख); त्रेतं (चू)।
१५. व्या० वि.--विभक्तिरहितपदम्-उट्टिया ३. ताणिणो (क); ताइणो (च) । १६. हणित्तए (वृ)। ७. ऽयं (चू)।
१७. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-दूवणया, ८. उत्तिमं (क)।
ये दुरूपनता: न ते हि समाधि जानन्ति, ये ९. व्या०वि० -विभक्तिरहितं सन्धिश्च-सेस नो नता:-विषयेषु न प्रणताः-सन्ति ते अवहाय ।
समाधि जानन्ति । १०. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम् -उत्तरा। १८. दुमणएहिं (क, वृपा)। ११. गामधम्मा (क)।
१६. काधीए (च)।
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२७२
सूयगडो १
५१. छण्णं च पसंस' णो करे ण य उक्कोस' पगास माहणे ।
तेसिं सुविवेगमाहिए' पणया जेहि सुझोसियं धुयं । आयहित-पदं ५२. अणिहे सहिए सुसंवुडे धम्मट्ठी उवहाणवोरिए ।
_ विहरेज्ज समाहितिदिए' 'आतहितं दुक्खेण लब्भते ।। सामाइय-पदं ५३. ण हि णूण पुरा अणुस्सुयं अदुवा तं तह णो अणुट्ठियं ।
मुणिणा सामाइयाहियं णातएण जगसव्वदंसिणा ॥ ५४. एवं मत्ता५ महंतरं६ धम्ममिणं सहिया बहू जणा। गुरुणो छंदाणुवत्तगा विरया तिण्ण महोघमाहियं ।।
–ति बेमि ॥
तइओ उद्देसो कम्मावचय-पदं ५५. संवुडकम्मस्स भिक्खुणो जं दुक्खं
तं संजमओऽवचिज्जई१९ मरणं हेच्च
पुढे अबोहिए। वयंति पंडिया ॥
१. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-पसंसं। ११. मऽणुस्सुतं (चू)। २. उक्कास (क, चू); व्या० वि०-विभक्ति- १२. ° समुट्ठियं (क, ख); अदुवाऽवितधं णो रहितपदम् - उक्कोसं।
अधिट्ठितं (चू); अदुवाऽवितहं णो (वृपा) । ३. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम् –पगासं। १३. सामाइगं पदं (च)। ४. च विवेग° (वृ); सुविवेग° (वृपा)। १४. नाएणं (क)। ५. धम्मे (चू)।
१५. माता (चू)। ६. सुज्झोसियं (क, चू, वृपा)।
१६. महत्तरं (चूपा, वृपा)। ७. धूयं (ख, वृ)।
१७. ०मिमं (चू)। ८. अणहे (वृपा)।
१८. मधोघ° (च)। ६. • इंदिए (ख); ° तेंदिए (चू)। १६. विचिज्जती (च)। १०. आयहियं खु दुहेण लब्भइ (क, ख)।
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बीअं अज्झयणं (यालिए-तइओ उद्देसो) काम-मुच्छा-पदं ५६. जे विण्णवणाहिऽजोसिया' संतिण्णेहि समं वियाहिया ।
'तम्हा उड्ढे ति पासहा अद्दक्खू कामाइं रोगवं ॥ ५७. अग्गं वणिएहि आहियं' धारेती रायाणया इहं ।
‘एवं परमा महव्वया अक्खाया उ सराइभोयणा ।। ५८. जे इह सायाणुगा णरा अज्झोववण्णा कामेहि मच्छिया ।
किवणेण' समं' पगब्भिया ण वि जाणंति समाहिमाहियं ।। ५६. वाहेण जहा व विच्छए अबले होइ गवं पचोइए।
से अंतसो अप्पथामए णाईवचए अबले विसीयइ । ६०. एवं कामेसणाविऊ' अज्ज सुए पयहेज्ज" संथवं ।
कामी कामे ण कामए लद्धे वा वि" अलद्धः कण्हुइं ।। ६१. मा पच्छ असाहुया भवे अच्चेही" अणसास५ अप्पगं ।
अहियं च असाहु" सोयई से थणई परिदेवई" बहुं ।। ६२. इह जीवियमेव पासहा 'तरुण एव वाससयस्स तुई।
'इत्तरवासं व बुज्झहा'२० गिद्ध" णरा कामेसु" मुच्छिया" ।।
१. °वणाहजोसिया (क); °वणाअझोसिया ११. X (क) ।
(ख); °ऽझोसिया (वृपा); ऽभूसिया (चू)। १२. अलद्धे (च)। २. उड्ढं तिरियं अधे तहा (वृपा); उड्ढं तिरियं १३. तवे (चू)। अधेतिधा (चूपा)।
१४. व्या० वि०-छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम् । ३. आणियं (चू); आहितं (चूपा) । १५. अणुसासे (चू)। ४. राईणिया (क, ख)।
१६. व्या०वि०-छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् । ५. एवं परमाणि महन्वताणि,
१७. परितप्पती (चू)। ___अक्खाताणि सरातिभोयणाणि (च)। १८. पस्सधा (चू)। ६. किमणेण (चू, वृपा)।
१६. तरुणेव० (ख); तरुणगो वाससयस्स तिउट्टति ७. समा (वृ)
(चू); दुब्बलवाससया तिउदृति (चूपा); ८. जेण तस्स तहिं अप्पथामता,
°वाससयाउ तुट्टति (वृपा)। अचयंतो खलु सेऽवसीदतो (च);
२०. इत्तर वासे य बुज्झह (क)। से अंतए अप्पथामए,
२१. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-गिद्धा। नातिचए अवसे विसीदति (चपा)।
२२. कामेहिं (क)। ६. कामेसणं विऊ (क, ख, चूपा)।
२३. चिप्पिता (च)। १०. पयहामि (चू); पजहेज्ज (क, चूपा)।
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२७४
सूयगडो १
आरंभ-परिणाम-पदं ६३. जे इह आरंभणिस्सिया आयदंड
एगतलूसगा। ___ गंता ते पावलोगयं चिरराय आसुरियं' दिसं ॥ परलोग-संदेह-पदं ६४. ण य संखयमाहु जीवियं तह वि य बालजणो पगब्भई ।
पच्चुप्पण्णेण कारियं के दलृ परलोगमागए ? ॥ परलोग-सद्दहणा-पदं ६५. अदक्खुव' ! दक्खुवाहियं सद्दहसू अदक्खुदंसणा ! ।
__ हंदि ! हु सुणिरुद्धदंसणे मोहणिज्जेण' कडेण कम्मुणा । आयतुला-पदं ६६. दुक्खी मोहे पुणो पुणो णिविदेज्ज सिलोग यणं ।
एवं सहिएऽहिपासए" 'आयतुलं पाणेहि संजए" ।। अगारवासे धम्म-पदं ६७. गारं पि य आवसे परे अणुपुव्वं पाणेहि संजए।
समया सव्वत्थ सुव्वए देवाणं गच्छे सलोगयं ।। सच्चोवक्कम-पदं ६८. सोच्चा भगवाणुसासणं सच्चे तत्थ करेज्जुवक्कम । - सव्वत्थ विणीयमच्छरे उंछं भिक्खु१२ विसुद्धमाहरे ।। ६६. सव्वं णच्चा अहिट्ठए धम्मट्ठी उवहाणवीरिए ।
____ गुत्ते जुत्ते सया जए आयपरे परमायतट्टिए । असरण-भावणा-पदं ७०. वित्तं पसवो य णाइओ 'तं बाले'१६ सरणं ति मण्णई ।
पए मम 'तेसि वा १५ अहं णो ताणं सरणं ण६ विज्जई ।।
एए मम
१. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्—आयदंडा । १०. करेहु ° (क, चू); करेज्ज° (ख); करेज्जू२. चिरकाल (चू)।
वक्कम (चूपा)। ३. आसूरियं (चू)।
११. अवणीत ° (वृ)। ४. को (ख)।
१२. व्या० वि० -छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् । ५. अद्दक्खुव (चू)।
१३. नायतो (क); णातयो (चू)। ६. मोहणिएण (चू)
१४. बालजणो (चू)। ७. ऽधिपासिया (चू)।
१५. तेसु वा (क); तेसु वि (ख); तेसु या (वृ); ८. • तुले पाणेहि भवेज्जसि (च) । ___°वी (चू)। ६. ४ (ख)।
१६. च (चू)।
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Pati hai ( वियालिए -- तइओ उद्देसो)
७१. अब्भागमियम्मि वा दुहे अहवोवक्कमिए'
एगस्स गई य' आगई विदुमंता सरणं ण ७२. सव्वे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेण दु हिं भयाउला सढा जाइजरामरणेहिऽभिदुया* बोहि दुल्लह-पदं
७३. इणमेव खणं वियाणिया णो सुलभं 'बोहिं च" एवं सहिहिपास' आह जिणे इणमेव
७६. एवं" से उदाहु अणुत्तरणाणी अरहा णायपुत्ते
धम्मस्स तेकालियत्त-पदं
७४. अभविसु पुरा वि भिक्खवो आएसा एयाई गुणाई आहु" ते कासवस्स ७५. तिविहेण वि पाण" मा हणे आयहिए
वि भविसु सुव्वया । अणुधम्मचारिणो || अणियाण संडे |
एवं सिद्धा अणंतगा" संपइ" जे य अणागयावरे ॥ अणुत्तरदंसी अणुत्तरणाणदंसणधरे । भगवं वेसालिए" वियाहिए " ॥ -त्ति बेमि ॥
१. अहवा उवक्कमिए ( क ) ।
२. भवंतए (चू); भवंतरे (वृ); भवंतिए (वृग ) । १३. अनंतसो ( क, ख ) ।
३. व (क, चू) ।
४. वाधिजरामरणेहऽभिदुता (चू) । ५. इणमो य ( वू, वृ) ।
६. विताणिता (चू) ।
७. बोधीय (च्) ।
पहियासए (ख); हिपस्सिया (चू); ऽधियासए
( चुपा, वृपा) ।
2. भवंति (क, ख ) ।
१०. आह (चू) ।
११. व्या०वि० - विभक्तिरहितपदम्
-पाणा ।
भवंतिए' । मई |
पाणिणो ।
11
१२. व्या० वि० - विभक्तिरहितपदम् - अणियाणे ।
आहियं । से सगा ॥
इतिकम्मवियालमुत्तमं
१४. संपत (चू) ।
१५. तुलना — उत्तरज्भयणाणि ६ । १७ । १६. वेसालीए (चू) |
१७. 'क' प्रती अस्यानन्तरमेकः श्लोकः अतिरिक्तो लभ्यते—
जिणवरेण सुदेसिय सया ।
जे आचरंति आहिय,
२७५
खवितरया वहिति ते सिवं गतिं ।
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तइयं अज्झयणं उवसग्गपरिणा
पदमो उद्देसो ओघ-उवसग्ग-पदं १. सूरं मण्णइ अप्पाणं जाव जेयं ण पस्सई।
जुझतं दढधम्मान्ना? ] णं' सिसुपालो व महारहं ॥ २. पयाया सूरा रणसीसे संगामम्मि उवट्ठिए।
माया पुत्तं ण जाणाइ जेएण परिविच्छए । ३. एवं सेहे वि अप्पुढे भिक्खुचरिया - अकोविए।
सूरं मण्णइ अप्पाणं जाव लूहं ण सेवए ।। सीत-परीसह-पदं ४. जया हेमंतमासम्मि सीयं फूसइ सवायगं।
तत्थ मंदा विसीयंति' रज्जहीणा' व खत्तिया ।। गिम्ह-परीसह-पदं ५. पटे . गिम्हाहितावेणं विमणे सुपिवासिए ।
तत्थ मंदा विसीयंति मच्छा अप्पोदए जहा ।। जायणा-परीसह-पदं ६. सया दत्तेसणा दुक्खं जायणा दुप्पणोल्लिया।
कम्मंता" दुब्भगा चेव इच्चाहंसु पुढोजणा ।।
१. कोष्ठकान्तवर्ती पाठश्चूर्ण्यनुसारी, यथा- ५. रट्ट (चू)। ____ दृढधन्वानम् ।
६. सुप्पिवासिए (क)। २. विच्छिए (क, ख)।
७. कम्मत्ता (क, ख, वृ)। ३. भिक्खाचरिए (क);भिक्खाचरिया (ख वृ)। ८. दूहगा (ख)। ४. वसीयंति (क)।
२७६
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२७७
तइयं अज्झयणं (उवसग्गपरिणा-पढमो उद्देसो) ७. एए सद्दे अचायंता गामेसु णगरेसु वा।
तत्थ मंदा विसीयंति संगामम्मि व भीरुणो' ।। वध-परीसह-पदं ८. अप्पेगे खुझियं भिक्खु सुणी डंसइ लसए ।
तत्थ मंदा विसीयंति तेउपुट्ठा' व पाणिणो ।। अक्कोस-परीसह-पदं ६. अप्पेगे] पडिभासंति' पाडिपंथियमागया
'पडियारगया एए" जे एए एव"-जीविणो । १०. अप्पेगे वइं" जुजंति णिगिणा पिंडोलगाहमा ।
मुंडा कंडू-विणटुंगा उज्जल्ला" असमाहिया ।। ११. एवं विप्प डिवण्णेगे अप्पणा उ अजाणया ।
तमाओ ते तमं जंति मंदा मोहेण पाउडा'" ।। फास-परीसह-पदं १२. पुट्ठो य दंसमसगेहिं तणफासमचाइया
_ ण मे दिढे परे लोए किं.५ परं मरणं सिया ? ।। केसलोय-बंभचेर-परीसह-पदं १३. संतत्ता केसलोएणं बंभचेरपराइया
तत्थ मंदा विसीयंति 'मच्छा पविट्ठा" व केयणे ।।
१. सद्दा (ख)।
१०. एवं (क)। २. य (क)।
११. वति (ख)। ३. भीरुया (ख)।
१२. चरगा (च)। ४. झुज्झियं (क, ख); खुधियं (क्व) । १३. उज्जाया (चपा) ५. भिक्खू (चू)।
१४. ० पाउता ( चू ); मतिमंदा इत्थिगाउया ३. तेज ° (क)।
(चपा)। ७. परि ° (क, च)।
१५. जइ (क, ख, वृ) ८. पडिपथिय ° (क, ख)।
१६. मच्छाविट्ठा (ख) ६. परियार ° (क); तद्दारवेत्तणिज्जेते (चूपा)।
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वध-बंध- परीसह पदं
१४. आयदंडसमायारा
1
मिच्छासंठियभावणा केई संतिणारिया'
11
हरिसप्पओसमावण्णा १५. अप्पेगे
य ॥
पलियंतंसि चारो' 'चोरो त्ति" सुव्वयं । बंधति भिक्खुयं बाला कसायवसणेहिं १६. तत्थ दंडेण संवीते मुट्ठिणा अदु बाले इत्थी वा
णाई
सरई
उक्खेव-पदं
१७. एए भो कसिणा फासा हत्थी
फरसा ' वा सरसंवीता' कीवावसगा
अनुकूल - परीसह-पदं
१८. अहिमे
१६. अप्पेगे णायओ "
O
१. लूसंत ( क ); लुसेंति ० (च) । २. चारि ( क, ख ) ।
३ चोरिति ( क ) ।
४. वयणेहि (क, ख, वृ) ।
०
५. फरुसा (चू) ।
६. कसिणा ( चू) ।
संगा भिक्खूणं जे
सुहुमा जत्थ एगे विसीयंति ण चयंति २
रोयंति
परिवारिया" |
दिस्स पोसणे तात ! पुट्ठो सि
कस्स ' तात ! जहासि" णे ।।
बीओ उद्देस
७. दुरु ० ( क, ख ) ।
८.
• संवीते ( ख )
६. कीवाऽवस ( क, वृ); कीवा अवसा ( ख );
।
फलेण
वा ।
कुद्धगामिणी ||
दुरहियासया ।
गया
हिं ||
- ति बेमि ॥
दुरुत्तरा । जवित्तए ।
तिब्वसढा (वृपा); तिव्वसढगा (पा) ।
१०. अह इमे (ख); अथ इमे (चू) ।
११. मंदा (चू) ।
१२. चत्ता (चू) ।
१३. जहित्तए ( क ) ; जवइत्तए ( चू) ।
सूयगडो १
१४. नातिगा ( ख ) ।
१५. ० यारिया ( क ) 1
१६. तात चयासि (ख, वृ) ; परिच्चयासि (चू ) ।
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२७६
तइयं अज्झयणं (उवसन्गपरिणा-बीओ उद्देसो) २०. पिया ते थेरओ तात ! ससा ते खुड्डिया इमा।
भायरो ते सवा'२ तात! सोयरा कि जहासि' णे? ॥ २१. मायरं पियरं पोस ‘एवं लोगो" भविस्सइ।
एवं 'खु लोइयं तात ! जे 'पालेति' उ' मायरं । २२. 'उत्तरा महरुल्लावा पुत्ता ते तात ! खुड्डया।
भारिया ते णवा तात! मा सा अण्णं जणं गमे ।। २३. एहि तात! घरं जामो मा तं कम्म' सहा वयं ।
बीयं पि ताव पासामो जामु ताव सयं गिहं ।। २४. गंतुं तात ! पुणागच्छे१२ ण तेणाऽसमणो सिया।
अकामगं परक्कमंत३ को तं" वारेउमरहइ ? ।। २५. जं किंचि अणगं तात ! तं पि सव्वं समीकतं ।
हिरण्णं ववहाराइ तं पि दाहामु५ ते वयं ।। २६. इच्चेव णं सुसेहंति कालुणीयउवट्ठिया
विबद्धो णाइसंगेहि तओऽगारं पहावइ ।। २७. 'जहा रुक्खं वणे जायं५५ मालुया
पडिबंधइ। एवं णं पडिबंधंति णायओ असमाहिए ।
१. व्या० वि० ---शृण्वंतीति श्रवा :
१३. परक्कम (क); परिकम (ख)। आणा उववायवयणणिद्देसे य चिटुंति (चू)। १४. ते (क, ख)। २. सया (क); सगा (ख, वृ)।
१५. दासामो (चू)। ३. चयासि (ख, वृ)।
१६. इच्चेवं (च)। ४ एस लोए (क)।
१७. सुसेहित्ति (क); सुसिक्खंतं (चू); सुसेहिति ५. खलु लोय (ख)।
(चूपा)। ६. पोसइ (क); पालयति (ख)।
१८. कालुणीयासमुट्ठिया (क); ° समुट्ठिया (ख); ७. पोसे पिउ (क्व)।
कालुणतो° (चू)। ८. इतरा मधुरोल्लावा (चूपा)।
१६. वणे जात जधा रुक्खं (च) । ६. ताव (चू)।
२०. एव (क)। १०. व्या०वि०-'अकृथाः' इति क्रियाशेषः । २१. परिवेढंति (च)। ११. तात (ख, वृ)।
२२. असमाहिणा (क्व)। १२. पुणोगच्छे (क, ख)।
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२८०
२८. विबद्धो पिट्ठओ २६. एए संगा
कीवा ' जत्थय किस्संति" णाइसंगेहि ३०. तं च भिक्खू परिणाय सव्वे जीवियं णावकखेज्जा सोच्चा ३१. अहिमे' संति आवट्टा कासवेण बुद्धा जत्थावसप्पति सीयंति
भोग - णिमंतण-पदं
३२. रायाणो राय मच्चा य माहणा णिमंतयंति भोगेहिं
पूजयामु
य ।
भिक्खुयं विहारगमणेहि महरिसी ! इत्थीओ सयणाणि आउसो " ! 'पूजयामु तं'"" ३५. जो तुमे नियमो चिण्णो भिक्खुभावम्मि सुव्वया " ! । अगारमावसंतस्स ३६. चिरं
भुंजाहिमाई
भोगाई
11
तहा३ ॥
दूइज्माणस्स इच्चेव णं णिमंतेंति णीवारेण "
तव
अचयंता उज्जाणंसि
३३. हत्थस्स -रह-जाणेहिं
'भुज भोगे इमे सग्घे " ३४. वत्थगंधमलंकारं
माइसंगेहि हत्थी वा वि परिसप्पति 'सूती गो व्व मस्साणं पायाला व
संगा
३७. चोइया भिक्खुचरियाए " मंदा विसीयंति
तत्थ
१. विबद्धे (चू) ।
२. नाय ० ( क ) ।
३. ० अदूरए ( क ); सूतिय व्व अदूरतो (चू) । ४. ० कीसंति (क); जत्थ विसण्णेसी (चू); जस्थ विसण्णासी, जत्थावकीसंति ( चूपा) । ५. अह इमे ( क ); अहो इमे ( चू, वृपा); अध इमे (पा) ।
5.
६. याऽवट्टा (चू); आवट्टा ( चूपा) ।
७. व्या०वि० - सन्धिपदमिदम् - हत्थि + अस्स
।
● सक्खे ( क ) ; भुंजाहिमाई भोगाई (चू) ।
अबुहा
धम्ममणुत्तरं ॥ पवेइया |
जहि ॥
अदुव
सव्वो 'संविज्जए
दोसो दाणि कुओ"
व
वग्गहे | अदूरगा " ॥ अतारिमा ।
मुच्छिया ||
महासवा ।
व
खत्तिया ।
॥
य ।
तं ॥
? 1
सूयरं ॥
वित्त" । दुब्बला ॥
६. ते (चू) ।
१०. आयसो (चू) |
११. पूजयामि ते ( चू) । १२. उत्तमो (चू) ।
१३. सो चिट्ठती तघा ( चू); संविज्जते तथा ( चूपा) ।
१४. कओ (क) 1
१५. णीयारेण (चू) ।
१६. भिक्खुवज्जाए (क) ।
१७. जवइत्तए (चू) ।
सूयगडो १
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तइयं अज्झयणं (उवसग्गपरिणा-त
२६१
३८. अचयंता व लहेण उवहाणेण
तज्जिया। तत्थ मंदा विसीयंति पंकसि व जरग्गवा ।। ३९. एवं णिमंतणं लद्धं मुच्छिया गिद्ध इत्थिसु । अज्झोववण्णा कामेहि चोइज्जता 'गिहं गय॥
-त्ति बेमि ॥
तइओ उद्देसो
अज्झत्थ-विसीदण-पदं ४०. जहा संगामकालम्मि 'पिट्ठओ भीरु वेहइ ।
वलयं गहणं णूमं को जाणइ पराजयं? ॥ ४१. मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स मुहुत्तो होइ० तारिसो।
पराजियाऽवसप्पामो इति भीरू उवेहई ।। ४२. एवं तु समणा एगे अबलं णच्चाण अप्पगं ।
अणागयं भयं दिस्स अवकप्पंति मं सुयं ।। ४३. 'को जाणइ'११ वियोवातं२ इत्थीओ उदगाओवा? ।
चोइज्जता पवक्खामो ण णे अत्थि पकप्पियं ।। ४४. इच्चेवं पडिलेहंति वलयाइ५ पडिले हिणो ।
वितिगिछसमावण्णा" पंथाणं व अकोविया ।। ४५. जे उ संगामकालम्मि णाया
सरपूरंगमा । 'ण ते पिट्ठमुवेहिति'१७ किं परं मरणं सिया ? ।।
१. य (चू)।
१०. हवति (क, चू)। २. सिरंसि व (क, वृ); उज्जाणंसि (ख); ११. के जाणंति (च) (नियुक्ति गा० ४१)। थलंसि व (क्व)।
१२. विउवायं (क)। ३. एयं (चू)।
१३. नो (क)। ४. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-गिद्धा । १४. इच्चे व णं (क, ख)। ५. कामेसु (च)।
१५. वलय (ख)। ६. गया गिहं (ख)।
१६. विनिगिच्छं (वृ)। ७. व्या वि०-विभक्तिरहितपदम्-भीरू। १७. नो ते पुट्ठ ° (ख); °पिट्ठतो पेहंति (च)। ८. पिढिओ० (क); पच्छतो भीरू वेहति (चू)। १८. भवे (च) । ६. मुहुत्ताण (क)।
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२८२
सूयगडो १
४६. एवं 'समुट्ठिए भिक्खू" वोसिज्जा' गारबंधणं। ___आरंभं तिरियं' कटु अत्तत्ताए परिव्वए ॥ परवादवयण-पदं ४७. तमेगे परिभासंति भिक्खुयं साहुजीविणं' ।
जे ‘एवं परिभासंति' अंतए ते समाहिए । ४८. संबद्धसमकप्पा ह 'अण्णमण्णेसु मुच्छिया।
पिंडवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य । ४६. एवं तुब्भे सरागत्था अण्णमण्णमणुव्वसा
णट्ठ-सप्पह-सब्भावा संसारस्स अपारगा। ५०. अह ते पडिभासेज्जा' भिक्ख मोक्ख विसारए ।
एवं तुब्भे पभासंता" दुपक्खं चेव सेवहा ।। ५१. तुब्भे भुजह पाएसु गिलाणाभिहडं२ ति य ।
तं च बीओदगं भोच्चा तमुद्देस्सादि जं कडं ॥ ५२. लित्ता तिव्वाभितावेणं" उज्झिया५ असमाहिया।
णाइकंडूइयं सेयं अरुयस्सावरज्झई० ॥ ५३. तत्तेण अणुसिट्ठा८ ते अपडिण्णण जाणया।
ण एस णियए" मग्गे असमिक्खा" वई किई ॥
१. समुट्ठितं भिक्खं (चू)।
११. दुवक्खं (चू)। २. वोसिच्चा (क)।
१२. गिलाणाभिहडम्मि (क); गिलाणोअभिहडं ३. (वि) तिरियं (चू)।
ति (ख, चू) ४. आतत्ताए(क); आतत्ताए, आतथाए(चूपा)। १३. तमुद्दिस्सादि (क); तमुद्देसा य (ख)। ५. ० जीवियं (क)।
१४. तिक्खा (ख); तिव्वाभिलेवेणं (चपा)। ६. ते उ० (क); ते उ एवं भासंति (चू)। १५. उज्जया (क); उज्जुया (ख); उज्जाता (च)। ७. ऽसमाहिते (च); व्या०वि०-अत्र पञ्चम्येक- १६. साधु (चू)।
वचने 'समाहीए' इतिरूपं भवति, किन्तु १७. अरुयस्स ° (क); अरुकस्सावरुज्झति (चूपा)। छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् ।
१८. अणुसट्टा (क, चू)। ८. अण्णमण्णसमुच्छिता (च); अण्णमण्णेहिं १६. णितिए (चू)।। __ मच्छिया (च) (निर्यक्ति गा० ४१)। २०. व्या० वि०-अकारस्य दीर्घत्वम् । ६. परिभासेज्जा (ख, वृ); परिभासिज्ज (क)। २१. कति (क, ख)। १०. पभासिता (क); ऽवभासंता (चू)।
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२८३
तइयं अज्झयणं (उवसग्गपरिणा-चउत्थो उद्देसो) ५४. एरिसा जा' वई एसा 'अग्गे वेणु व्व करिसिया"।
गिहिणं' अभिहडं सेयं भुजिउं ण उ भिक्खणं ।। ५५. धम्मपण्णवणा 'जा सा' सारम्भाण विसोहिया ।
ण उ एयाहि दिट्ठीहिं पुवमासि पगप्पियं ॥ ५६. सव्वाहि अणुजुत्तीहिं अचयंता
जवित्तए। तओ वायं णिराकिच्चा ते भुज्जो वि पगब्भिया । ५७. रागदोसाभिभूयप्पा मिच्छत्तेण अभिया ।
अक्कोसे" सरणं जंति टंकणा इव पव्वयं ।। ५८. बहुगुणप्पकप्पाइं कुज्जा अत्तसमाहिए।
जेणण्णे ण३ विरुज्झज्जा तेणं तं तं समायरे ॥ ५६. इमं च धम्ममायाय कासवेण
पवेइयं"। कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए। ६०. संखाय पेसलं धम्म दिट्ठिमं
परिणिव्वुडे । उवसग्गे णियामित्ता" आमोक्खाए" परिव्वएज्जासि ।।
-त्ति बेमि ॥
चउत्थो उद्देसो अणुस्सुत-विसीदण-पदं ६१. आहंसु महापुरिसा पुवि
'उदएण सिद्धिमावण्णा'१८ तत्थ मंदो
तत्ततवोधणा। विसीयइ ।।
१. भो (ख); भे (चूपा)।
१०. अभिदुया (ख)। २. अग्गवेणु (ख); अग्गिवेल्लव्व करिसिता(च); ११. आओसे (ख) ।
अग्गे वेलुव्व करिसिति (चपा)। १२. आतसमाहितो (चू)। ३. गिहिणो (ख, चू)।
१३. णो (ख)। ४. व्या० वि०-छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् ।। १४. पवेदिदं (चू)। ५. भिक्खुणो (ख, चू)।
१५. अगिणेण (चू)। ६. एसा (चू)।
१६. अधियासेतो (चू)। ७. अचएता (च)।
१७. अमोक्खाए (च)। ८. णिरे किच्चा (च); नरे किच्चा (क)। १८. भोज्जा सीतोदगं सिद्धा (च); मंदेऽवसीयति ६. रागदोस ° (ख)। .
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सूयगडो १
६२. अभुजिया णमी वेदेही रामउत्ते' यो भुजिया।
बाहुए उदगं भोच्चा तहा तारागणे रिसी ॥ ६३. आसिले देविले चेव दीवायण" महारिसी।
पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य । ६४. एए पुव्वं महापुरिसा आहिया इह संमया । भोच्चा बीयोदगं सिद्धा इइ
मेयमणुस्सुयं ।। ६५. तत्थ मंदा विसीयंति वाहच्छिण्णा व गद्दभा। पिट्टओ परिसप्पंति पीढसप्पीव
संभमे ॥
सातं सातेण विज्जई-पदं ६६. इहमेगे उ भासंति२ सातं सातेण विज्जई।
_ 'जे तत्थ आरियं" मग्गं परमं च समाहियं ॥ ६७. मा एयं अवमण्णंता अप्पेणं 'लुपहा बहु ।
एयस्स अमोक्खाए 'अयोहारि व्व'८ जूरहा ।। ६८. 'पाणाइवाए वटुंता"'मुसावाए असंजया'२० ॥
अदिण्णादाणे वटुंता मेहुणे य परिग्गहे ।।
१. विदेहि (ख)।
८. सीतोदगं (च)। २. रामगुत्ते (क, वृ); रामाउत्ते (चू); वृत्ति- ६. जह (चू)।
कारेण 'रामगुप्त' इति व्याख्यातम्, किन्तु १०. अणुधावंति (च)।
ऋषिभाषितस्य संदर्भे नैतत्सम्यक् प्रतिभाति । ११. पिट्ठ° (क्व)। ३. व (क)।
१२. मन्नते (च, वृपा)। ४. नारायणे (वृ); चूर्ध्या (पुण्यविजयजी द्वारा १३. जितत्थ (चू ) ।
संपादित, पृ० ६५) 'नारायणे' इति पाठो १४. आयरियं (च) । मद्रितोस्ति, किन्तु ऋषिभाषितस्य संदर्भ १५. ति (च)। 'तारागणे' पाठो युज्यते । संभवतो लिपिदोषेण १६. समाधिता (च)। 'तकार' स्थाने 'नकारो जातः ।
१७. बहु लुंपध (च) । ५. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-दीवायणे । १८. अयहारी व (क, च)। ६. बीताणि (चू)।
१६. पाणाइवाए व मक्खंता (क)। ७. पुदिव (चू)।
२०. ०य संजया (क); मुमावादे वसंजता (च)।
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त इयं अज्झयणं (उवसग्गपरिणा-चउत्थो उद्देसो) अबंभचेर-समत्थण-तण्णिरसण-पदं ६६. एवमेगे' उ' पासत्था पण्णवेंति अणारिया।
'इत्थीवसं गया बाला जिणसासणपरंमुहा ७०. जहा गंडं पिलागं वा परिपीलेत्ता
महत्तगं । एवं विण्णवणित्थीसु' दोसो तत्थ कओ सिया ? ॥ ७१. जहा 'मंधादए णाम' थिमियं पियति दगं ।
एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कओ" सिया ? ॥ ७२. जहा विहंगमा पिंगा थिमियं पियति दगं ।
एवं विण्णवणित्थीसुर दोसो तत्थ कओ५ सिया ? ॥ ७३. 'एवमेगे उ पासत्था'४ मिच्छादिट्ठी५ अणारिया।
अज्झोववण्णा कामेहिं पूयणा इव तरुणए"। ७४. अणागयमपस्संता" पच्चप्पण्णगवेसगा
। ते पच्छा परितप्पंति९ 'झीणे आउम्मि'२० जोव्वणे ।। ७५. जेहिं काले परक्कंतर 'ण पच्छा परितप्पए'२२ । ते धीरा बंधणुम्मुक्का णावखंति
जीवियं ॥ ७६. जहा णई वेयरणी दुत्तरा" इह सम्मता ।
एवं लोगंसि णारीओ दूत्तरा५ अमईमया ॥
१. एवमेते (चू)। २. य (क)। ३. इत्थीवसगा (क), इत्थीवसगता (च)। ४. परिपीलिज्ज (क, ख); णिपीलेत्ता (च)। ५. °वणत्थीसु (चू)। ६. कुतो (चू)। ७. मंधायती नाम (क); मंधातइण्णाम (चू)। ८. भुंजती (क, ख)। ६. °वणत्थीसु (चू)। १०. कुओ (चू)। ११. भुंजती (क, ख) । १२. °वणत्थीसु (चू)। १३. कुओ (चू)। १४. एवं तु समणा एगे (चू)। १५. मिच्छदिट्ठी (ख)। १६. यद्यपि चूर्णीपाठे 'तरुणए' इत्येव पाठो
मुद्रितोऽस्ति, किन्तु 'तण्णगे-छावके' इति व्याख्यांशेन प्रतीयते मौलिक: पाठः 'तण्णगे' इति आसीत्, किन्तु कठिनशब्दानां सरलीकरणपद्धत्या अत्रापि परिवर्तनं जातमिति
संभाव्यते। १७. °मपासंता (चू)। १८. ° गवेसए (क); • गवेसणा (च)। १६. अणुसोयंति (च)। २०. खीणे० (ख); झीणाउम्मि (चू)। २१. परिक्कंतं (क, च)। २२. सुकडं तेसि सामण्णं (चू)। २३. वीरा (क)। २४. दुरुत्तरा (ख)। २५. दुरुत्तरा (ख); दुरुत्तराओ (चू)। २६. व्या० वि०-छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम् ।
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२८६ ७७. जेहिं 'णारीण संजोगा' पूयणा पिटुओ कया।
सव्वमेयं णिराकिच्चा ते ठिया सुसमाहीए । ७८. एए ओघं तरिस्संति समुदं व ववहारिणो।
जत्थ पाणा विसण्णासी' 'किच्चंती सयकम्मुणा । ७६. तं च भिक्खू परिणाय सुव्वए समिए चरे।
मुसावायं विवज्जेज्जा' 'ऽदिण्णादाणं च" वोसिरे ॥ ८०. उड्वमहे तिरियं वा जे केई तसथावरा ।
सव्वत्थ 'विरतिं कुज्जा" संति णिव्वाणमाहियं ।। इमं च धम्ममायाय कासवेण
पवेइयं । कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए। ८२. संखाय पेसलं धम्म दिट्ठिमं परिणिव्वुडे । उवसग्गे णियामिता" आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥
-त्ति बेमि ॥
१. ते णारि संजोगा (चू)। २. णिरेकिच्चा (क, चू)। ३ सुसमाहिए (क, ख)। ४. X (ख)। ५. विसन्नासं (क); विषण्णा: सन्त: (व)। ६. सयकम्मणा (ख); कच्चंति सह कम्मणा
(च) । ७. च वज्जिज्जा (ख); विवज्जेज्जा (चू)। ८. अदिण्णादि च (चू)। ६. विज विरति (चू)। १०. नियाएत्ता (क); हियासित्ता (ख):
णिरेकिच्चा (चू)।
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इत्थी संसग्ग-विवज्जण-पदं
१.
२.
३.
४.
५.
पुव्वसंजोगं । विवित्सी' ॥
जे मायरं च पियरं च विप्पजहाय' एगे सहिए चरिस्सामि आरतमेहुणी' सुमेणं तं परक्कम्म छण्णपएण इत्थीओ मंदा | ' उवायं पिताओ जाणंति" जह' लिस्संति भिक्खुणो एगे ॥ पासे भिसं णिसोयंति अभिक्खणं पोसवत्थं परिहिंति । 'बाहु मुद्घट्टु कक्खमणुव्वजे ।। इत्थीओ एगया णिमंतेंति । पासाणि विरूवरूवाणि || णो वि य 'साहसं समणुजाणे । एवमप्पा 'सुरक्खिओ होइ "" ।।
१०
काय आहे दंसंति सयणासणेहिं जोगेहिं एयाणि चेव से जाणे णो तासु चक्खु संधेज्जा जो सद्धियं पि विहरेज्जा
चउत्थं अज्झयणं इत्थपरिणा
पढमो उद्देसो
१. विप्पजधाय ( चू) |
२. धुणो (च) ।
३. विवित्सु (वृ); विवित्तमेसी (पा) ।
४. ° जाणिसु (क, ख, वृपा); जाणंति ता १०. साहसमभिजाणेज्जा ( क ); ° समभिजाणे ( ख )
११. सहियं ( ख ) ।
१२. रक्खित्तु सेओ (चू) ।
विवित्ते सि
उवायं च (चू) ।
५. जहा ( ख ) ; जध (चू) ।
६. ० वत्थ ( क, ख ) ।
७. बाहु उद्घट्टु ° ( क ); बाहु मुद्वत्तु ° ( ख ) ; बाहु द्धट्टु कक्खं परामुसे ( 1 ) ।
८. जोगेहिं ( क, ख ) ।
६. तासि (चू ) 1
(वृपो );
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सूयगडो १
६. आमंतिय 'ओसवियं वा" भिक्खं आयसा णिमंतेंति ।
एयाणि चेव से जाणे सदाणि विरूवरूवाणि' । __ मणबंधणेहि णेगेहिं कलुणविणीयमुवगसिताणं ।
अदु मंजुलाई भासंति आणवयंति' भिण्णकहाहिं। ८. सीहं जहा व कुणिमेणं णिब्भयमेगचरं पासेणं ।
एवित्थियाओ बंधति संवुडमगतियमणगारं ॥ ६. अह तत्थ पुणो णमयंति रहकारो व णेमि अणुपुवीए ।
बद्धे मिए व पासेणं फंदंते वि ण मुच्चई ताहे ।। १०. अह सेऽणुतप्पई पच्छा भोच्चा पायसं व विसमिस्सं ।
एवं विवागमायाए संवासो ण' कप्पई दविए। ११. तम्हा उ° वज्जए इत्थो विसलित्तं व कंटगं णच्चा।
ओए कुलाणि वसवत्ती आघाए" ण से वि२ णिग्गंथे ।। १२. जे एयं 'उंछं तऽणुगिद्धा"३११४ अण्णयरा हु ते कुसीलाणं ।
सुतवस्सिए" वि से भिक्खू णो विहरे सहणमित्थीसु" । अवि धूयराहिं सुण्हाहिं धाईहिं अदुवा दासीहिं ।
महतीहि वा कुमारीहिं संथवं से ण कुज्जा अणगारे ।। १४. अदु णाइणं व सुहिणं वा अप्पियं दट्ठ एगया होइ।
'गिद्धा सत्ता'२० कामेहि रक्खणपोसणे मणुस्सोऽसि ।। १५. समणं 'पि दठ्ठदासीण'२५ तत्थ वि ताव एगे कुप्पंति ।
अदु भोयणेहिं णत्थेहि इत्थीदोससंकिणो होति ।। १. ओसविय (ख); ओसविया णं (चूपा)। १२. व (क)। २. जाणिया (क); जाणि (चू)।
१३. व्या०वि० सन्धिपदम्-तयणगिद्धा। ३. णिमंतणादीणि (च); विरूवरूवाणि १४. उच्छं अणु गिद्धा (क, ख)। (चूपा)।
१५. सुतमम्सिए (चू)। ४. ० मुवागसित्ताणं (क, ख); °मुपकम्मित्ताण १६. विरहे (चू)। (चू)।
१७. सहणं इत्थीसु (क)। ५. आणमेयंति (क); आणमयंति (चू)। १८. अविए (क)। ६. एवित्थिया (क); एवं इत्थियागो (ख)। १९. महल्लीहिं (चू)। ७. अणुपुव्वी (ख); अणुपुव्वीए (चू)। २०. गिद्ध मत्ता (ख)। ८. विवेग ° (क, ख, वृपा, चूपा); विवाग- २१. पि दठू ° (ख); दछृणुदासीणं (वृपा); ___ मण्णिसा (चू)।
पि दठूदासीणा (चूपा)। ६. न वि (ख)।
२२. अह (क); अदुवा (ख); अथवा (वृ)। १०. हु (क, चू)।
२३. भवंति (चू)। ११. आघाय (क)।
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चंउत्थं अज्झयणं (इत्थिपरिणा-पढमो उद्देसो)
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१६. कुवंति संथवं ताहिं पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं ।
तम्हा समणा ! 'ण समें ति आयहियाए" सण्णिसेज्जाओ ।। १७. बहवे गिहाई अवहट्ट 'मिस्सीभावं पत्थुया एगे'२
धुवमग्गमेव पवयंति वायावीरियं कुसीलाणं ।। १८. सुद्धं रवइ परिसाए अह रहस्सम्मि दुक्कडं कुणइ ।
जाणंति य णं 'तथा वेदा'६ माइल्ले महासढेऽयं ति ।। 'सयं दुक्कडं ण वयइ 'आइट्ठो वि" पकत्थई बाले । वेयाणुवीइ० मा कासी चोइज्जतो गिलाइ से भुज्जो ।। उसिया वि इत्थिपोसेसु पुरिसा इत्थिवेयखेत्तण्णा ।
पण्णासमण्णिया वेगे णारीणं वसं उवकसंति" । २१. अवि" हत्थपायछेयाए'६ अदुवा वद्धमंसउक्कते" ।
अवि तेयसाभितावणाई तच्छिय खारसिंचणाइं च ।। २२. अदु२१ कण्णणासियाछेज्जर कंठच्छेयण तितिक्खंती।
इति एत्थ पाव-संतत्ता ण य वेंति पुणो ण काहिंति ॥ २३. सुयमेयमेवमेगेसिं५ 'इत्थीवेदे वि'२६ हु सुयक्खायं ।
एयं पि ता वइत्ताणं अदुवा कम्मुणा" अवकरेंति ।। १. न समेंति आयाहियाय (क); तु जधाहि १३. एगे (चू)।
आतहिओ (चू); उ जहाहि आअहिताओ १४. उवणमंति (चू)। (वृपा); ण समिति (समेंति) आतहिओ १५. अदु (चू) । (चूपा)।
१६. ० च्छेदाति (क); °च्छेज्जाइं (च)। २. मिस्सीभावं पण्णता एगे (क); मिस्सीभाव- १०
१७. ° उक्तं (क); ° मंसंउक्कते (च)। पण्हया (चू); मिस्मीभावपत्थया (वृ);
१८. अदु (चू)। मिस्सीभावं पणता (दी)।
१६. ° तवणाइं (क, च) । ३. धुय ° (क)।
२०. तच्छेतु (चू)। ४. भासिसु (चू)।
२१. अह (क)। ५. करेत्ति (ख)।
२२. नासछेज्ज (ख); कण्णच्छेज्जं नासं वा ६. तधावेता (चू); तथाविदः (वृ)। ७. सयदुक्कडं च अवदते (क); सयदुक्कड
(च)। अवदते (चू)।
२३. कंठकिज्जणं (च)। ८. आइटे व (क); आउट्ठो वि (चू) ।
२४. करिस्सामो (चू); काहिंति (चूपा)। ६. पकप्पई (क)।
२५. सुतमेवमेतमेगेसि (च)। १०. वेयाणुवीयी (चू)।
२६. इत्थीवेदम्मि य (क); इत्थीवेदेत्ति (ख)। ११. ° पोसेहिं (चू)।
२७. अहवा (क); अध पुण (चू) । १२. खेदन्ना (ख, चू)।
२८. कम्मणा (ख)।
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सूयगडो१
२४. अण्णं मणेण चितेंति 'अण्णं वायाए कम्मुणा" अण्णं ।
तम्हा ‘ण सद्दहे भिक्खू बहुमायाओ इथिओ णच्चा । २५. जुवती समणं बूया चित्तवत्थालंकारविभूसिया' ।
विरया चरिस्सहं रुक्खं धम्माइक्ख णे भयंतारो ! ॥ २६. अदु सावियापवाएणं अहगं साहम्मिणी 'य तुब्भं ति।
जउकुम्भे जहा उवज्जोई संवासे विऊ विसीदेज्जा । २७. जउकुम्भे जोइसुवगूढे' आसुभितत्ते णासमुवयाइ ।
एवित्थियाहिं अणगारा 'संवासेण णासमुवयंति" ॥ २८. कुव्वंति 'पावगं कम्म० पुट्ठा वेगेवमाहंसु"।
णार हं करेमि पावं ति अंकेसाइणी ममेस त्ति ।। २९. बालस्स मंदयं बीयं जं च कडं अवजाणई भुज्जो।
दुगुणं करेइ से पावं पूयणकामो" विसण्णेसी ।। ३०. संलोकणिज्जमणगारं आयगयं णिमंतणेणाहंसु ।
वत्थं वा" ताइ ! पायं वा अण्णं पाणगं पडिग्गाहे ॥ ३१. णीवारमेवं६ बुज्झज्जा णो 'इच्छे अगारमागंतुं । 'बद्धे विसयपासेहि८ मोहमावज्जइ पुणो मंदे ।।
–त्ति बेमि ॥
१. वाया अन्नं च कम्मणा (ख)।
१०. पावकम्मं (चू, वृ)। २. तम्हा णो सद्दहेतव्वं (चू)।
११. वेगे एव माहंसु (क, ख)। ३. य चित्तलंकारवत्थगाणि परिहित्ता (क, ख)। १२. नो (ख)। ४. लूहं (ख, चू); मोणं (वृपा) ।
१३. बितियं (ख, चू)। ५. समणाणं (क, ख)।
१४. पूयण-कामए (क, च)। ६. संवासेण (चू)।
१५. व (ख, चू)। ७. ° सुवगृहे (क); अवगूढे (ख); जोतिमुवगूढे १६. णीयार° (च); णीयारमन्तं (चूपा)।
(च); व्या० वि—द्विपदयोः सन्धिः- १७. °आगार ° (ख); इच्छेज्ज अगारं गंतु जोइसा+उवगूढे ।
(चू); इच्छेज्ज अगारमावत्तं (चूपा, वृपा)। ८. एवित्थिगास (च)।
१८. बद्धे य विसयदामेहि (क); संबद्धोविसयदा६. ०णासमवेंति (क); संवासेणासुविणस्संति मेहिं (च) । (च)।
१६. °मागच्छति (व)।
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चउत्थं अज्झयणं (इत्थिपरिणा-बीओ उद्देसो)
२६१
बीओ उद्देसो इत्थी-आसत्तस्स विडंबणा-पदं ३२. ओए सया ण रज्जेज्जा भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा'।
भोगे' समणाण सुणेहा 'जह भुजति भिक्खुणो एगे ।। ३३. अह तं तु भेयमावण्णं मुच्छियं भिक्खु काममइवट्ट ।
पलिभिदियाण तो पच्छा पादुद्ध१ मुद्धि पहणति' ।। ३४. जइ केसियाए मए भिक्खु! णो विहरे सहणमित्थीए।
'केसे वि अहं लुचिस्सं" णण्णत्थ मए चरेज्जासि ।। ३५. अह णं से होइ उवलद्धे तो पेसेंति तहाभूएहि ।
अलाउच्छेयं पेहेहि१२ वग्गुफलाइं आहराहि त्ति ।। ३६. दारूणि सागपागाए पज्जोओ वा भविस्सई राओ।
पायाणि य मे रयावेहि एहि य ता मे 'पटि उम्मट्टे'१५ ।। ३७. वत्थाणि य मे पडिलेहेहि 'अण्णं पाणमाहराहि १५ त्ति ।
'गंधं च रओहरणं च 'कासवगं च समणुजाणाहि ॥ ३८. अदु अंजणि अलंकारं कुक्कययं मे पयच्छाहि ।
लोद्धं च लोद्धकुसुमं च वेणुपलासियं" च गुलियं च ।। ३६. कोटुं० 'तगरं अगरुं च'२१ संपिटुं सहर उसीरेणं"।
तेल्लं 'महे भिलिंगाय'२४ वेणुफलाइं सण्णिहाणाए।
१. विरज्जेज्जा (चू); विरज्जेज्ज (चूपा)। २. भोग (क)। ३. एगे किल जधा भुंजते (चू) । ४. कामेसु अतिअटै (चू)। ५. ततो (ख)। ६ पहणंतु (क); पहणंति (क्व)। ७. केसियाण (क, ख)। ८. केसाणविहु लुचिसु (क) । ६. विचरेज्जासि (चू)। १०. ततो गं देसेति तधारूवेहिं (चू)। ११. लाउच्छेयं (क, ख)। १२. पेहाहि (ख)। १३. अण्णपागाए (चू, वृपा)। १४. पट्टि उम्महे (चू)।
१५. अन्नपाणं च आहराहि (क, ख); अण्णपाणं
वा मे आहराहि (चू)। १६. गंथं व (चूपा, वृपा)। १७. कासव समणाणुजाणाहि (ख); कासवगं मे
आणयाहि (चू)। १८. कुकुहगं (चू)। १६. वेलुपलासी (चू)। २०. कुटुं (क)। २१. अगरु तगरं च (ख)। २२. समं (च)। २३. हिरिवेरेणं (च)। २४. मुहि भिलिजाए (क); मुहिं भिजाए (ख),
मुहं भिलिजाए (वृ)।
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२६२
सूयगडी १
४०. गंदीचुण्णगाइं पाहराहि' 'छत्तोवाहणं च जाणाहि ।
सत्थं च सूवच्छेयाए आणीलं च वत्थं रावेहि ॥ ४१. सुणिं च सागपागाए' आमलगाई दगाहरणं च ।
तिलगकरणि अंजणसलागं घिसु मे विहुयणं विजाणाहि ।। ४२. संडासगं च फणिहं च" सीहलिपासगं च आणाहि ।
आयंसगं च पयच्छाहि दंतपक्खालणं१२ पवेसेहि ।। ४३. पूयफलं५ तंबोलं च 'सूई-सुत्तगं च जाणाहि'।
कोसं च मोयमेहाए 'सुप्पुक्खल-मुसल-खारगलणंच। ४४. वंदालगं च करगं च वच्चघरगं च आउसो ! खणाहि।
सरपायगं च जायाए गोरहगं च सामणेराए ॥ ४५. 'घडिगं सह डिडिमएणं१९ चेलगोलं कुमारभूयाए।
वासं इममभिआवण्णं आवसहं 'जाणाहि भत्ता' ! ।। ४६. आसंदियं च णवसुत्तं पाउल्लाई संकमट्ठाए।
'अदु पुत्तदोहलट्ठाए ‘आणप्पा हवंति दासा वा" ।।
१. पहराहिं (क, ख)।
सुप्पुदुक्खलं च खारगलणं च (व) । २. छत्तग जाणाहि उवाहणा उ वा (च)। १६. चंदालगं (क, ख, वृ) व-च वर्णयोः ३. रयावेहि (क, ख)।
लिपिसादृश्यहेतुकमिदं परिवर्तन संभाव्यते । ४ सूवपाताए (चू)।
१७. वच्चघरं (वृ)। ५. आमलगा (चू)।
१८. सरपायं (ख); सरपादगं (च)। ६. दगाहरणिं (चू)।
१६. घडियं च सडिडिमयं च (क, ख)। ७. तिलकरणिं (चूपा)।
२०. समणाहियावण्णं (क); समभिआवणं (ख) । ८. विधूणयं (वृ); विधूवणं (चू)।
२१. च जाण भत्तं च (क, ख, व)। अत्र ६. जाणाहि (च)।
संभाव्यते 'भत्ता' शब्दस्य अर्थानवधारणतया १०. फणिगं (चू)।
लिपिकारः 'भत्तं च' इति पाठः उल्लिखितः । ११. ४ (क)।
वृत्तिकारस्य सम्मुखे एष एव पाठः आसीत्, १२ ०पक्खालग च (क)।
तेनासावेव व्याख्यातः। १३. पूयप्फल (चू)।
२२. पाउल्लाइ (क); पाउल्लगाई (चू)। १४. सूचि° (व); सूचि जाणाहि सुत्तगं (च)। २३. पुत्तस्स डोहलढाए (क, चूपा)। १५. सुप्पुक्खलगं च खारगलणाए (क); २४. आणप्पे भवति दासमिव (चू)।
सप्पुक्खलगं च खारगालगं च (ख);
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चैउत्थं अज्झयणं (इत्थिपरिणा-बोओ उद्देसो)
२६३ ४७. जाए फले समुप्पण्णे 'गेण्हसु वा णं अहवा जहाहि ।
अह पुत्तपोसिणो एगे 'भारवहा हवंति उट्टा वा" ।। ४८. 'राओ वि उट्ठिया संता दारगं 'संठवेंति धाई वा” ।
सुहिरीमणा वि ते संता वत्थधुवा' हवंति हंसा' वा ॥ ४६. एवं बहुहिं कयपुव्वं भोगत्थाए जेऽभियावण्णा ।
दासे मिए व पेस्से वा पसुभूए व से ण वा केई ॥ ५०. 'एवं खु तासु विण्णप्पं१९ संथवं संवासं च चएज्जा ।
तज्जातिया इमे कामा वज्जकरा य एव मक्खाया । ५१. 'एवं भयं ण"३ सेयाए 'इइ से अप्पगं णिरुंभित्ता।
णो इत्थि णो पसु भिक्खू णो सयं पाणिणा णिलिज्जेज्जा॥ ५२. सुविसुद्धलेसे मेहावी परकिरियं च वज्जए णाणी।
मणसा वयसा" काएणं सव्वफाससहे अणगारे ।। ५३. इच्चेवमाहु से वीरे 'धुयरए धुयमोहे से भिक्खू । तम्हा अज्झत्थविसुद्धे सुविमुक्के" 'आमोक्खाए परिव्वएज्जासि'२० ।।
-त्ति बेमि ।।
१. गेण्हाहि व णं छड्डेहि व णं (चू)। २. भरवाहो भवति उट्टो वो लहितओ (चू)। ३. एगे राओ वि उद्वित्ता (क)। ४. सण्णवेंति धाव इवा (चू)। ५. वत्थघोवा (क, ख); वत्थाधुवा (चू)। ६. हंसो (चू)। ७. एतं (चू)। ८. इत्थिआभिआवण्णा (च) । ६. पेसे (क, ख)। १०. केति (चूपा)। ११. एतं खु तासि वेण्णप्प (च)।
१२. वज्जेज्जा (ख) । १३. एतं भयण्ण (चू)। १४. इह सेयऽप्पगं (चू)। १५. पसू (चू)। १६. णिलेज्ज (च)। १७. वयस (क)। १८. धूतरायमग्गे सभिक्खू (चू); धूतरायमग्गे स
भिक्खू (वृपा)। १६ X(च); सुमुक्के (व) । २०. विहरेज्जामुक्खाए (क)।
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पंचमं अज्झयणं णरयविभत्ती
पढमो उद्देसो णरग-वेदणा-पदं १. पुच्छिसुहं' केवलियं महेसि कहंऽभितावा णरगा पुरत्था ? । ___ अजाणओ मे मुणि बूहि जाणं कहं णु बाला णरगं उति ? || २. एवं मए पुढे महाणुभावे' इणमब्बवी' कासवे आसुप्पण्णे ।
पवेयइस्सं दुहमट्ठदुग्गं आदीणियं दुक्कडिणं पुरत्था । ३. जे केइ बाला इह जीवियट्ठी पावाइं. कम्मा करेंति रुद्दा।
ते घोररूवे तिमिसंधयारे तिव्वाभितावे' णरए पडंति ।। ४. तिव्वं तसे पाणिणो थावरे य जे हिंसई आयसुहं पडुच्चा ।
जे लसए होइ अदत्तहारी ण सिक्खई सेयवियस्स किंचि॥ ५. पागब्भि पाणे बहुणं तिवाई१२ अणिन्वुडे" घायमुवेइ५ बाले। ___ "णिहो णिसं गच्छइ अंतकाले अहोसिरं कटु उवेइ दुग्गं । ६. हण 'छिदह भिंदह णं दहेह७ सद्दे सुणेत्ता परधम्मियाणं।
ते णारगा ऊ" भयभिण्णसण्णा कंखंति कं णाम दिसं वयामो? ॥ १. पुच्छिस्सहं (ख)।
११. तिब्वाणुभावे (चू)। २. अविजाणओ (च)।
१२. पडुच्च (ख)। ३. ब्रूहि (चू)।
१३. तिवाती (क); तिवादि (चू)। ४. मया (चू)।
१४. अनिव्वुए (घ)। ५. भागे (चू); °भावे (चूपा)। १५. घातगति उवेंति (चू)। ६. इणमो° (वृ)।
१६. णिधोणत (चू)। ७. आदाणियं (च), आदीणियं (चपा)। १७. ० डहाह (क) छिदध भिंदध णं ८. दुक्कडियं (ख, वृ); दुक्कडिणं (वृपा)। १८. सुणंति (क)। ९. जीवियट्ठा (क)।
१६. तू (क)। १०. कूराई (चू)।
२६४
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पंचम अज्झयणं (णरयविभत्ती-पढमो उद्देसो) ७. इंगालरासिं जलियं सजोइं ओवमं भूमिमणुक्कमंता'।
ते डज्झमाणा कलुणं थणंति अरहस्सरा तत्थ चिरट्टिईया ॥ ८. जइ ते सुया वेयरणीऽभिदुग्गा 'णिसिओ जहा खुर इव तिक्खसोया।
तरंति ते वेयरणीऽभिदुग्गं उसुचोइया' सत्तिसु हम्ममाणा ॥ ६. कोलेहि विज्झंति असाहुकम्मा णावं उते' सइविप्पहूणा ।
'अण्णे तु"सूलाहि तिसूलियाहिं दीहाहि विळूण अहे करेंति ॥ 'केसि च बंधित्तु गले सिलाओ उदगंसि बोलेंति महालयंसि ।
कलंबुयावालुयमुम्मुरे य लोलेंति पच्चंति य तत्थ अण्णे" ॥ ११. असूरियं णाम महाभितावं अंधं तमं दुप्पतरं महंतं ।
उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु समाहिओ" जत्थगणी झियाइ॥ १२. जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे अविजाणओ" डज्झइ लुत्तपण्णो ।
'सया य कलुणं पुण धम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्म ।। १३. चत्तारि अगणीओ समारभेत्ता जहि कूरकम्मा भितवेंति बाल।
___ ते तत्थ चिटुंतऽभितप्पमाणा" मच्छा व जीवंतुवजोइपत्ता । १४. संतच्छणं णाम महाभितावं ते णारगा जत्थ असाहुकम्मा ।
हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं फलगं व तच्छंति कुहाडहत्था । १५. रुहिरे पुणो वच्च-समुस्सियंगे२२ भिण्णुत्तिमंगे परिवत्तयंता ।
पयंति णं णेरइए फुरते सजीवमच्छे" व अयो-कवल्ले ।।
१. °अणोक्कमंता (चू)। २. खुरो जधा णिसितो तिक्खसोता (चू)। ३. असि ° (चू)। ४. कालेहि (क); कीलेहि (ख)। ५. उर्वती (च)। ६. भिन्नेत्थ (चू)। ७. पययंति (ख)। ८. x (चू)। 8. महब्भियावं (क)। १०. या (च)। ११. समूसिओ (ख); समूसिते (चूपा, वृपा)। १२. झियायती (क)। १३. जलणातियट्टे (चू)।
१४. अजाणतो (वृ)। १५. लूयपन्ने (क)। १६. X (चू)। १७. सया य कसिणं (वृपा)। १८. मदा (चू)। १६. चिटुंति अभि° (क); चिट्ठति भित ° (ख) । २०. जीव उवजोति ° (चू); व्या० वि०~
द्विपदयोः सन्धिः-जीवंता+उवजोइपत्ता। २१. °कम्मी (च)। २२. समूसितंतो (वृ); समूसितंगा (वृपा)। २३. भिदुत्तमंगे (ख)। २४. ° मच्छा (क); सज्जो व्व मच्छे (च);
सज्जोक्कमत्थे (चूपा)।
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सूयगडो १ १६. णो चेव ते तत्थ मसीभवंति' ण मिज्जई तिव्वभिवेयणाए।
तमाणुभाग अणुवेययंता दुक्खंति दुक्खी इह दुक्कडेणं' ।। १७. 'तहिं च ते लोलणसंपगाढे गाढं सुतत्तं अर्गाण वयंति ।
ण तत्थ सायं लभंतीऽभिदुग्गे० अरहियाभितावे" तह वी तवेंति ।। १८. से सुव्वई१२ णगरवहे व सद्दे 'दुहोवणीताण पदाण' तत्थ ।
उदिण्णकम्माण उदिण्णकम्मा पुणो पुणो ते सरह दुहेति ॥ १६. पाणेहि णं पाव विओजयंति तं भे पवक्खामि जहातहेणं ।
दंडेहि तत्था सरयंति बाला सव्वेहि दंडेहि पुराकएहिं ।। ते हम्ममाणा' 'णरगे पडंति'२० पुणे१ दुरूवस्स महाभितावे२ ।
ते तत्थ चिट्ठति दुरूवभक्खी तुटूंति कम्मोवगया किमीहि ।। २१. सया कसिणं पण घम्मठाणं गाढवणीयं अइदक्खधम्म ।
अंदूसु पक्खिप्प 'विहत्तु देहं २५ 'वेहेण सीसं सेऽभितावयंति'६ ॥ २२. छिदंति बालस्स खुरेण णक्क ओढे वि छिदंति दुवे वि कण्णे ।
जिब्भं विणिक्कस्स" विहत्थिमेत्तं तिक्खाहि सूलाहि भितावयंति" ।। २३. ते तिप्पमाणा 'तलसंपुड व्व' राइंदियं तत्थ थणंति बाला।
'गलंति ते सोणियपूयमसं३२ पज्जोइया खारपदिद्धियंगा॥
१. भवेति (च)।
१८. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-पावा। २. तिब्बऽतिवे ° (चू)।
१६. हिंसमाणा (क); हम्ममाणे (च)। ३. तमाणुभावं (ख); कम्माणभागं (चू) । २०. णरगं उति (चू)। ४. अणुवेदयंती (चू)।
२१. पुण्णं (चू)। ५. दुक्खा (क); सोयं (चू)।
२२. महभियावे (क); महब्भितावं (च) । ६. दुक्कडाणं (क)।
२३. कम्मोवसगा (च)। ७. तेहिं पि (चू)।
२४. सया य (क)। ८. लोलुअसं ° (क, चू); लोलेण ° (ख)। २५. हणति बाल (च)। ६. सादं (चू)।
२६. बेहेण तं सेभितविति सीसं (क); वेधेहि १०. लहईभिदुग्गे (क, ख)।
विधीत सिराणि तेसि (चू); वेढेण ताति ११. अरहब्भियावा (क); °तावा (ख)।
सिराणि तेंसि (चूपा)। १२. सुच्चई (ख)।
२७. नासं (क)। १३. गामवधे (चू)।
२८. विणिकिस्स (चू)। १४. याणि पयाणि (ख); उदिण्णकम्माए पयय २६. तिवातयंति (क); निपातयंति (च)। (चू)।
३०. तलसंपुडच्चा (च)। १५. तत्था (क)।
३१. मंदा (च)। १६. सहरिस (चू)।
३२. समीरिता सरुधिर-मंसदेहा (च)। १७. विधंति (चूपा)।
३३. खारपयच्छितंगा (चू)।
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पंचमं अज्झणं (णरयविभत्ती - पढमो उद्देसो)
२४. जइ' ते सुया लोहियपूयपाई' कुंभी महंताऽहियपोरुसीया २५. पक्खिप्प तासुं पपचंति बाले तन्हाइया ते तउतं तत्तं २६. अप्पेण' अप्पं इह चंचइत्ता
चिट्ठति तत्था बहुकूरकम्मा २७. समज्जिणित्ता कलुषं अणज्जा दुभिगंधेकसि य फासे
रग - वेदणा-पदं २८. अहावरं
बाला हा दुक्कडक मकारी २६. हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं
हत्तु" बालस्स विहत्तु " देहं ३०. बाहू पकत्तंति" य मूलओ से रहंसि जुत्तं सरयंति बालं
बीओ उद्देस
परेणं ।
बालागणी तेयगुणा समूसिया लोहियपूयपुण्णा || अट्टस्सरे ते कलुणं रसंते । पज्जिज्जमाणट्टयरं रसंति ॥ भवाहमे 'पुव्वस सहस्से " । 'जहाकडे कम्म" तहा से भारे ॥ इट्ठेहि कंतेहि य विप्पहूणा " । कम्मोवगा कुणिमे आवसंति ।।
-त्ति बेमि ॥
१. जे (क ) 1
२. लोहितापागपायी (चू) ।
३. ० पोरिसीणा (क); ० पोरसीया ( ख ) । ४. ० स्सरं (क, चू) ।
सासयदुक्खधम्मं तं भे पवक्खामि
जहातहेणं । वेयंति कम्माई " पुरेकडाई ॥ 'उदरं विकत्तंति खुरासिएहिं "" । वद्धं" थिरं पिट्टउ" उद्धरंति ॥ थूल" वियासं मुहे आडहंति । आरुस्स विज्यंति" तुदेण पट्टे" ।।
: अप्पाण (च) ।
६. पुव्वा सतसहस्से (चू) ।
७. व्या० वि० - छंदोदृष्ट्या दीर्घत्वम् ।
८. कडे कम्मे (क); जधकडे कम्मे (चू) ।
६. सि (ख) ।
१०. विप्पहीणा (चू ) ।
११. पावाई ( क ) ।
१२. उदराई फोडेंति खुरेहिं तेसि (चू); • खुरासितेहि • खुरासिगेहि (चूपा);
o
वृत्तौ 'क्षुरप्रासिभिः' इति व्याख्यातमस्ति अस्यानुसारेण 'खुरप्पसीहिं' इति पाठस्य परिकल्पना जायते ।
१३. गिहित्तु ( क ) ।
१४. वित्त ( क ) ; विविधं हंतं (वृ); विहण्ण
(चू)।
१५. वज्भं (क, चू) ।
१६.
१७.
१८. थुलं ( क ) ।
१६. विधति (ख, चू) ।
२०. पिट्ठे (चू) ।
३६७
व्या० वि० – छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् ।
कप्पंति ( क ) ।
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२६८
सूयगडो १ ३१. अयं व तत्तं जलियं सजोइं तओवमं भूमिमणक्कमंता।
ते डज्झमाणा कलुणं थणंति उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता ॥ ३२. बाला बला भूमिमणुक्कमंता' पविज्जलं लोहपहं व तत्तं ।
जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा' पेसे व" दंडेहि पुरा करेंति ।। ३३. ते संपगाढंमि पवज्जमाणा सिलाहि हम्मति भिपातिणीहि ।
संतावणी णाम चिरट्टिईया संतप्पई जत्थ असाहुकम्मा । ३४. कंदूसु" पविखप्प पयंति बालं तओ विदड्ढा पुण उप्पतंति।
ते उड़काएहि पखज्जमाणा३ अवरेहि खजति सणप्फएहि ।। ३५. समसियं णाम विधमठाणं 'जं सोयतत्ता१४ कलणं थणंति ।
अहोसिरं कटु विगत्तिऊणं" अयं व सत्थेहि समूसवेंति ।। ३६. समूसिया तत्थ विसूणियंगा पक्खीहि खज्जति अओमुहेहिं ।
संजीवणी णाम चिरट्टिईया जंसी पया हम्मइ८ पावचेया । ३७. तिक्खाहि सूलाहि ऽभितावयंति" वसोवगं सावययं० व लद्धं ।
ते सूलविद्धा कलुणं थणंति एगंतदुक्खं दुहओ गिलाणा ।। ३८. सया जलं ठाण५ णिहं महंतं जंसी 'जलंतो अगणी अकट्ठो'२२ ।
चिटुंति तत्था बहुकूरकम्मा अरहस्सरा" केइ चिरट्ठिईया ॥
१. तत्तोवम (क); चूर्णीकृता प्रथमोद्देश- १२. उप्फिडंति (चू)।
कस्य सप्तमश्लोके 'ततोवम' पाठो १३. पक्खिज्जमाणा (ख); विलुप्पमाणा (च)। व्याख्यात :----तत्रजयसकभल्लतुल्लं, अत्रतु १४. ज सामितत्ता (क); विगिच्चमाणा (च); 'तदोवमं' पाठो व्याख्यातः, तदस्या ओपम्यं जंसि विउक्कता, जसि उवियता (चपा)। तदोपमा । वृत्तिकारस्य व्याख्यायां उभयत्रापि १५. अहे ० (क)। साम्यमस्ति।
१६. विगंति ° (चू)। २. °मणोक्कमेत्ता (क); ° मणोक्कमंता (चू)। १७. संजीवणा (चू)। ३. भूमिअणोक्कमता (चू)।
१८. हम्मति (क)। ४. विपज्जल (चू); पविज्जलं (चूपा)। १६. निवाययंति (क); वर्षेति वाला (च); ५. °दुग्गा (चू)।
तिवाययंति (क्व)। ६. बहुकूरकम्मा (चू)।
२०. सोयरिय (क); सोबरिया (चू); सावरिया ७. व्व (क)।
(चूपा)। ८. ऽभिपातिमाहिं (चू)।
२१. नाम (ख, च)। ६. सतप्पते (च)।
२२. जलंती अगणी अकट्ठा (क, चू)। १०. ° कम्मी (क, चू)।
२३. बद्धा (ख, वृ)। ११. कडूसु (चू)।
२४. अरहितस्सरा (च)।
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पंचमं अज्झयणं (णरयविभत्ती-बीओ उद्देसो)
२६६ ३६. चिया महंतीउ' समारभित्ता छुब्भंति ते तं कलुणं रसंत।
___ आवट्टई तत्थ असाहुकम्मा सप्पी जहा छूढं' जोइमझे ।। ४०. सया कसिणं पुण घम्मठाणं गाढोवणोयं अइदुक्खधम्म ।
हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं 'सत्तुं व दंडेहि समारभंति ।। ४१. भंजति बालस्स वहेण पट्टि सोसं पि भिदंति' अयोधणेहि ।
ते भिण्णदेहा फलगा व तट्ठा तत्ताहि आराहि णियोजयंति ।। ४२. अभिजुजिया रुद्द' असाहुकम्मा उसुचोइया हत्थिवह वहति ।
एगं दुरूहित्तु दुवे तओ वा 'आरुस्स विज्झंति ककाणओ से। ४३. बाला बला भूमिमणुक्कमंता' पविज्जलं कंटइलं महंतं ।
विवद्धतप्पेहि विसण्णचित्ते' समीरिया कोट्टबलिं करेंति ।। वेयालिए णाम महाभितावे एगायए पव्वयमंतलिक्खे ।
हम्मति तत्था बहुकूरकम्मा परं सहस्साण मुहुत्तगाणं" ।। ४५. संबाहिया दुक्कडिणो थणंति अहो य राओ परितप्पमाणा ।
एगंतकूडे णरए महंते कूडेण तत्था विसमे हया उ ।। ४६. "भंजंति णं पुवमरी सरोसं समुग्गरे ते मुसले गहेउं ।
ते भिण्णदेहा रुहिरं वमंता ओमुद्धगा धरणितले पडंति'१२ ।। ४७. अणासिया णाम महासियाला पगब्भिया" तत्थ सयावकोवा"।
खज्जति तत्था बहुकूरकम्मा अदूरया संकलियाहि बद्धा ।। ४८. सयाजला णाम णईऽभिदुग्गा पविज्जला" लोहविलीणतत्ता।
जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा एगायताऽणुक्कमणं करेंति ।। ४६. एयाइँ फासाइँ फुसंति बालं णिरंतरं तत्थ चिरट्टिईयं ।
ण हम्ममाणस्स उ होइ" ताणं एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं ।। १. व्या० वि०-अत्र ओकारस्य ह्रस्वत्वम् । ११. मुहुत्तगस्स (चू)। २. पडियं (चू)।
१२. x()। ३. सत्तुव्व (क्व)।
१३. पगब्भिणो (क); पागब्भिणो (ख)। ४. पुट्टि (ख)।
१४. सताय ° (क); सयाप° (ख); सदावऽकोप्पा ५. भंजंति (चू)।
(च); सदावऽकोप्पं (चूपा) । ६. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम् –रुदं । १५. खायंति (चू)। ७. हत्थितुल्लं (चू)।
१६. अदूरिया (क)। ८. ०ककाणओ से (क); आरुब्भ विधति १७. पविज्जलं (वृ)। किंकाणतो सि (चू)।
१८. एकाणिका (च)। ९. भूमिअणोक्कमंता (चू)।
१६. चिरट्टिईया (चू)। १०. विवण्ण° (क, ख)।
२०. अत्थि (चू)।
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३००
सूयगडो १
५०. जं जारिसं पुव्वमकासि कम्मं तमेव' आगच्छइ संपराए ।
एगंतदुक्खं भवमज्जिणित्ता 'वेदेति दुक्खी तमणंतदुक्खं॥ ५१. एयाणि सोच्चा णरगाणि धीरे ण हिंसए कंचण' सव्वलोए ।
एगंतदिट्ठी अपरिग्गहे उ बुज्झज्ज लोगस्स वसं ण गच्छे ।। ५२. एवं 'तिरिक्खमणुयामरेस चउरंतणंतं तयणूविवागं । स सव्वमेयं इइ. वेयइत्ता कंखेज्ज कालं धुयमायरते ॥
-त्ति बेमि ॥
१. तधेव (च)। २. वेदेति एगो तमणंतकालं (च)। ३. किंचण (ख)। ४. य (च)। ५. लोभस्स (चू)। ६. तिरिक्खमणुयासुरेसुं चतुरंतणं न तयणु
विवागं (ख); तिरिक्खेसु वि चातुरंत,
अणंतकालं तदणुविवागं (चू)। ७. से (ख)। ८. इध (चू)। ६. ° मायरेज्ज (ख); मायरंति (चू)।
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छठं अज्झयणं
महावीरथुई महावीर-माहप्प-वण्णग-पदं १. पुच्छिसु णं समणा माहणा य अगारिणो' या परतित्थिया य।
से के 'इमं णितियं धम्ममाहु अणेलिसं? साहुसमिक्खयाए । २. कहं व णाणं? कह दंसणं से? सीलं कहं णायसुयस्स आसि ? ।
जाणासि पं भिक्खु ! जहातहेणं अहासुयं बूहि जहा णिसंतं ॥ ३. 'खेयण्णए से कुसले मेहावी"६ अणंतणाणी य अणंतदंसी।
जसंसिणो चक्खुपहे ठियस्स जाणाहि धम्मं च धिइं च पेह" ।। ४. 'उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु 'तसा य जे थावर जे य पाणा ।
से णिच्चणिच्चेहि" समिक्ख पण्णे 'दीवे व धम्म समियं उदाहु'१२ ॥ ५. से सव्वदंसी अभिभूयणाणी णिरामगंधे धिइमं ठियप्पा।
अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्जं 'गंथा अतीते''" अभए अणाऊ । ६. से भूइपण्णे अणिएयचारी ओहंतरे धीरे अणंतचक्खू ।
अणुत्तरं तवति सूरिए१५ वा वइरोयणिंदे व 'तमं पगासे' ।।
१. अकारिणो (च)।
१०. जे थावरा जे य तसा य पाणा (च)। २. इणेगंतहियं (क, चू); इमं हितगं (चूपा)। ११. स णिच्चणिच्चे य (चू) । ३. ° याते (क); साधुसमिक्ख दाए (चू)। १२. समिया एवं दीवसमो तहा ऽऽह (च)। ४. च (क, ख)।
१३. अणुत्तर (चू)। ५. आसुपण्णे (वृ); महेसी (वृपा)। १४. ०अदीते (क); गथातीते (च) । ६. खेतण्णे कुसले आसुपण्णे महेसी (चू)। १५. तप्पति (क, ख)। ७. पिहा (क); पेछं (चू); बेहि (वृपा)। १६. वइरोव ° (क); वेरोयणेदो (चू)। ८. °य (वृ); उड्ढे अधे वा (चू)। १७. तमप्पगासे (क); °पभासे (ख)। 8. व्या वि०-विभक्तिरहितपदम्-थावरा ।
३०१
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३०२
सूयगडो १
७. अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं णेता मुणी कासवे' आसुपण्णे ।
इंदे व देवाण महाणुभावे सहस्सणेता' 'दिवि णं' विसिट्टे । ८. से पण्णया अक्खयसागरे वा महोदही वा वि अणंतपारे ।
अणाइले या' अकसाई मक्के सक्के व देवाहिवई जुईमं ।। ६. से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए सुदंसणे वा णगसव्वसेटे ।
सुरालए 'वा वि" मुदागरे से विरायए णेगगुणोववेए । १०. सयं सहस्साण उ जोयणाणं तिकंडगे पंडगवेजयंते ।
से जोयणे णवणउति सहस्से उद्धस्सिए" हेतु सहस्समेगं ।। ११. पुढे णभे चिट्ठइ भूमिवट्ठिए" जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति ।
से हेमवण्णे बहुणंदणे य२ जंसी" रइं वेययई महिंदा । १२. से५ पव्वए सद्दमहप्पगासे विरायती कंचणमट्ठवण्णे ।
अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरीवरे से जलिए व भोमे ॥ १३. महीए मज्झम्मि ठिए णगिंदे पण्णायते सूरियसुद्धलेसे ।
एवं सिरीए उ स भूरिवण्णे" मणोरमे 'जोयति अच्चिमाली'२० ॥ १४. सुदंसणस्सेस जसो गिरिस्स२२ पवुच्चती महतो पव्वतस्स ।
एतोवमे समणे णातपुत्ते, जाती-जसो-दंसण - णाण - सीले । १५. गिरीवरे वा णिसढायताणं रुयगे व से? वलयायताणं ।
__ ततोवमे से जगभूतिपण्णे५ मुणीण 'मझे तमुदाहु२६ पण्णे ॥ १. कासव (ख)।
... १६. व्या० वि०-अत्र सप्तम्याः बहुवचने 'गिरीसु २. °णेत्ता (चू); °णेता (चूपा)।
इति रूपं भवति, किन्तु छन्दोदृष्ट्या ह्रस्व. ३. दिविण (चू)।
त्वम् । ४. पन्नसा (चू)।
१७. महीय (ख, चू)। ५. से (चू)।
१८. सूरियलेस्सभूते (चू)। ६. अकसाय (चू)।
१६. भूतिवण्णे (च)। ७. भिक्खू (क, ख, चू, वृपा)।
२०. अच्चीसहस्समालिणी (णो?) (चू)। ८. वासि (ख, वृ)।
२१. ० स्सेव (क, ख)। १. तिकंडि से (क, चू); तिकंड से (ख) । २२. गिरिस्सा (क)। १०. णवणवते (क, ख)।
२३. नाय° (क, ख)। ११. उड्ढुस्सिते (चू); उड्ढं थिरे (चूपा)। २४. व्या०वि०-द्विपदयो; सन्धिः१२. भूमिते ठिते (क, चू)।
णिसढे+आयताणं । १३. या (क)।
२५. ° भूतपण्णे (चू)। १४. व्या० वि०-छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम्। २६. मावेदमुदाहु (चू)। १५. स (च)।
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छटुं अज्झयणं (महावीरत्युई)
३०३ १६. अणुत्तरं धम्ममुदीरइत्ता अणुत्तरं झाणवरं झियाइ ।
सुसुक्कसुक्कं अपगंडसुक्कं संखंदुवेगंतवदातसुक्क' ॥ १७. अणुत्तरग्गं परमं महेसी 'असेसकम्मं स विसोहइत्ता।
सिद्धि गति साइमणंत' पत्ते णाणेण सीलेण य दंसणेण"॥ १८. 'रुक्खेसु णाते जह सामली वा" जंसी रति वेययंती' सुवण्णा ।
वणेसु या णंदणमाहु सेटुं णाणेण सीलेण य” भूतिपण्णे ॥ १६. थणितं व सहाण अणुत्तरं उ चंदे व ताराण महाणभावे।
गंधेसु वा चंदणमाहु सेटुं एवं मुणीणं अपडिण्णमाहु ॥ २०. जहा सयंभू उदहीण सेटे णागेसु वा 'धरणिंदमाहु से₹१ ।
खोओदए'२ 'वा रस''-वेजयंते तहोवहाणे" मुणि५ वेजयंते ।। २१. हत्थीसु एरावणमाहु१६ णाते सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा ।
पक्खीसु या गरुले वेणुदेवे णिव्वाणवादीणिह" णायपुत्ते ।। २२. जोहेसु णाए जह वीससेणे पुप्फेसु वा 'जह अरविंदमाहु“ ।
खत्तीण से? जह दंतवक्के इसीण से? तह वद्धमाणे ॥ २३. दाणाण सेढे अभयप्पयाणं सच्चेसु या अणवज्जं वयंति ।
तवेसु या उत्तम" बंभचेरं लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते ॥ २४. ठितीण सेट्ठा लवसत्तमा वा सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा ।
णिव्वाणसेट्टा जह सव्वधम्मा ण णायपुत्ता परमत्थि णाणो ।। २५. पुढोवमे धुणती विगयगेही ण सण्णिहिं कुव्वइ आसुपण्णे।
तरिउ समुदं व महाभवोघं अभयंकरे वीर ४१२५ अणंतचक्खू ।। १. अपेव संखेंदुवदातसुद्धं (चू);
१२. खातोदए (क)। संखेंदुवेगंतवदातसुक्क (चूपा)। १३. रसतो (चू)। २. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-साइमणंतं । १४. तवो° (क, ख, वृ)। ३. णाणेण सीलेण य दंसणेण ।
१५. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-मूणी। अमेसकम्म स विसोधइत्ता,
१६. ° माह (क)। सिद्धीगति सातियणंत पत्ते (च)। १७. जेव्वाण ° (चू)। ४. रुक्खेहि णाता जह कूडसामली (चू)। १८. अरविंदं वदंति (चू)। ५. वेययती (क, ख)।
१६. वा (क)। ६. से? (क)।
२०. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-उत्तमं । ७. उ (चू)।
२१. भगवं (चू)। ८. भागे (चू)।
२२. जेव्वाण ° (चू)। ६. या (ख)।
२३. तरित्तु (ख); तरित्ता (चू)। १०. सेटे (चू)।
२४. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-वीरे । ११. धरणिंदे आहु से? (क); धरणमाहुसेटू (चू)। २५. वीरे (क, चू)।
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३०४
सूयगडो १ कोहं च माणं च तहेव मायं लोभं चउत्थं अज्झत्तदोसा'।
एताणि चत्ता अरहा महेसी ण कुव्वई पाव' ण कारवेइ ॥ २७. किरियाकिरियं वेणइयाणुवायं अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं ।
से सव्ववायं इह वेयइत्ता उवट्ठिए सम्म' स दीहरायं ॥ २८. सेवारिया इथि सराइभत्तं' उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए ।
लोगं विदित्ता 'अपरं परं च सव्वं पभू वारिय सव्ववारी१२ ॥ २६. सोच्चा य धम्म अरहंतभासियं" समाहियं अट्ठपदोवसुद्धं । तं सद्दहताय" जणा अणाऊ 'इंदा व'५ देवाहिव आगमिस्स।
-ति बेमि ।।
१. ० दोसं (क)। २. पावं (क)। ३. किरियं अकिग्यिं (ख, चू।। ४. स (चू)। ५. इति (क, ख, वृ)। ६. व्या वि०-अत्र अनुस्वारलोपः । ७. संजमदीहरायं (क, ख, वृ)। ८. स (चू)। है. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम् - इत्थि।
१०. सराय (क)। ११. आरं पारं (क, ख, वृपा)। १२. सव्ववारे (क); सव्ववारं (ख, वृ)। १३. अरिहंत ° (ख)। १४. व्या०वि०-द्विपदयो: सन्धिः वर्णलोपश्च
सदहंता आदाय। १५. इंदा वि (क); इंदे व (ख)। १६. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-देवाहिवा। १७. आगमिस्संति (क, ख, व); आगमिस्से (च)।
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सत्तमं अभयणं
कुसीलपरिभासितं
ओघतो कुसील - पर्द
• १. पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ
२. एताई कायाइं पवेइयाइं 'एते हि काहि य" आयदंडे अणुपरिमाणे ३. जाईपह से जाति-जाति बहुकूरकम्मे ४. अस्सि च लोए अदुवा परत्था" संसारमावण्ण" परं परं ते
जे अंडया जे य जराउ' पाणा संसेयया जे
'तण रुक्ख" बीया य तसा य पाणा ।
रसयाभिहाणा ॥ पडिलेह' सायं । विप्परियासुवेति ॥ विणिधाय मेति"
वि० - विभक्तिरहितपदम्
एतेसु जाणे' 'पुणो- पुणो 'तसथावरेहिं
1
जं कुव्वती मिज्जति" तेण बाले ।। सयग्गसो वा तह अण्णा वा । बंधंति वेयंति य दुण्णियाणि ॥
- तणा
१. व्या० रुक्ख ।
२. व्या० वि० - विभक्तिरहितं वर्णलोपश्च -
जराउया ।
३. जाणं (वृ) ।
४. पडिले हि ( क ) ।
५. एएण कारण य ( ख ); एतेसु काएसु तु
(चू) ।
६, एतेसु या विपरियासुविति ( क, ख, वृ); व्या० वि० - द्विपदयोः सन्धिः विप्परियास
मुवेति ।
७. जावहं ( चू, वृपा) ।
८.
६. जाति (वृ ) ।
१०. मज्जते (पा) ।
• वरेसुं विणिग्घात ( चु) ।
११. पुरत्या ( क ) ।
१२. व्या० वि० - विभक्तिरहितपदम् - संसार
मावण्णा ।
१३. परंपरेण (चू) ।
१४
३०५
व्या० वि० -- बंधानुलोम्यात् 'दुण्णीयाणि' अत्र ईकारस्य ह्रस्वत्वम् ।
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सूयगडो १
पासंड-कुसील-पदं ५. जे मायरं च पियरं च हिच्चा समणव्वए अगणि' समारभिज्जा।
अहाहु से लोए कुसीलधम्मे भूयाइ जे हिंसति आतसाते । ६. उज्जालओ पाण' ऽतिवातएज्जा णिव्वावओ अगणितिवातएज्जा"।
तम्हा उ मेहावि समिक्ख धम्म ण पंडिते अगणि२ समारभिज्जा ।। ७. पुढवी वि जीवा आऊ वि जीवा पाणा य५ संपातिम" संपयंति ।
संसेदया५ कट्ठसमस्सिता य एते दहे अगणि६ समारभंते । ८. हरियाणि भूयाणि विलंबगाणि आहार-देहाई पुढो सियाइं ।
जे छिदई आतसुहं पडुच्च" 'पागन्भि-पण्णो बहुणं तिवाती ।। ६. जाइं च बुद्धिं च विणासयंते बीयाइ 'अस्संजय आयदंडे'२३ ।
अहाह से लोए अणज्जधम्मे बीयाइ" से हिंसइ आयसाते ।। कुसील-विवाग-पदं १०. गब्भाइ मिज्जति बुयाबुयाणा णरा परे५ पंचसिहा कुमारा।
जुवाणगा मज्झिम थेरगा" य चयंति ते आउखए पलीणा ।।
१. वा (क)।
१५. संसेइया (क)। २. व (क)।
१६. व्या० वि०—विभक्तिरहितपदम् ---अगणि। ३. समणव्वदे (क); समणव्वते (ख)। १७. देहाय (ख, व)। ४. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम् – अगणिं । १८. आयसातं (चू)। ५. अथाऽऽह (चू)।
१६. पडुच्चा (क)। ६. अणज्जधम्मे (च)।
२०. पागब्भिपाणे (क, ख, तू)। ७. उज्जालिया (च)।
२१. व्या०वि०-छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् । ८. व्या० वि--द्विपदयोः सन्धिः-पाणा २२. निवाती (चू)। अतिवातएज्जा।
२३. अस्संजति यायदडे (क)। ६. तिवातयंति (च); तिवातएज्जा (वपा)। २४. हरियादि (क)। १०. व्या० वि०--द्विपदयोः सन्धिः --अगणि २५. वरे (क)। अतिवातएज्जा।
२६. युवाणगा (चू)। ११. निव्वातएज्जा (क); निपातएज्जा (चू)। २७. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-मज्भिमा। १२. व्या०वि० -विभक्तिरहितपदम्-अगणि। २८. पोरुसा (वृपा)। १३. ति (क); इ (ख)।
२६, आउक्खए (क, ख)। १४. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-संपातिमा।
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सत्तमं अज्झणं (कुसीलपरिभासितं )
११. 'बुज्झाहि जंतू ! इह माणवेसु दठ्ठे भयं बालिएणं अलंभ" । एतदुक्खे जरिए हु' लोए सकम्मुणा विप्रसुति ॥ कुसील - दंसण-पदं
१२. इहेगे मूढा पवदंति मोक्खं एगे जय सीतोदगसेवणेणं १३. पाओसिणाणाइसु णत्थि मोक्खो
ते मज्जमंसं लसुणं ‘चऽभोच्चा" १४. उदगेण जे सिद्धिमुदाहरति
उदगस्स फासेण सियाय सिद्धी १५. मच्छा य कुम्माय सिरीसिवाय
अट्टणमेयं कुसला वयंति १६. उदगं जती" कम्ममलं हरेज्जा
'अंध व "" णेयारमणुस्सरता " १७. पावाई कम्माई पकुव्वओ हि सिज्भिसु एगे दगसत्तघाती १८. हुतेण जे सिद्धिमुदाहरति" एवं सिया सिद्धि हवेज्ज तेसि"
१. संबुज्झहा जंतवो माणुसत्तं,
दट्ठू भयं बालिसेणं अलंभो (क, ख, वृ ) 1 २. व ( ख, वृ); अस्मिन् श्लोके चूर्णो वृत्तौ च पाठभेदोर्थभेदश्चापि विद्यते । चूर्णी पाटर्थविचारणया स्वाभाविकः प्रतिभाति, तेन स स्वीकृतः । वृत्तिकारेण प्रतिदोषेण विपर्ययं गतः पाठो लब्धस्तेन व्याख्यायां जटिलता जातेति संभाव्यते ।
३. आहारसपंचगवज्जणेणं (चूपा, वृपा); आहारओ पंचगवज्जणेणं (वृपा ) |
आहार संपज्जणवज्जणेणं' 1 हुतेण एगे पवदंति मोक्खं ॥ खारस्स' लोणस्स अणासणेणं" । अण्णत्थ वासं परिकप्पयंति ॥ सायं च पातं उदगं फुर्सता । सिज्झिसु पाणा बहवे दसि ॥ मंगू य उद्दा दगरक्खसा य । उदगेण सिद्धि जमुदाहरति ॥ एवं सुहं इच्छामित्तमेव" । पाणाणि चेवं विणिहंति " मंदा || सीओदगं " तू जइ तं हरेज्जा । मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु" ॥ सायं च पायं अगणि फुसंता । अगणि फुसंताण कुकमिणं प ||
७.
१५. अंधव्व ( क ) ।
४. खाणस्स (क ) ।
१६. ० मणुसरित्ता (क, ख )
५. अणासतेणं ( क ) 1
१७. विहेढंति (चू ) ।
६. च भोच्चा (वृ); अत्र चूर्णो वृत्तौ च १८. सिओ (चू) ।
महानर्थभेदो विद्यते ।
१९. दगसिद्धि ० ( क ) ।
● गप्पयंति ( क ) ।
२०. मोक्खमुदा ० ( चू) । २१. तम्हा (क, ख, वृ) 1
८. सिज्यंसु (क, ख ) ।
९. मग्गू (क, ख, वृ) ।
१०. उट्टा (ख, वृ) ; अत्र लिपिसादृश्येन 'उद्दा' स्थाने 'उट्टा' पाठोस्ति जातः । वृत्तिकारस्य सम्मुख एष एव पाठः आसीत् किन्तु जलचरप्रकरणे 'उद्दा' पाठ एवं संगतोस्ति ११. जे सिद्धिमुदाहरति (क, ख, वृ) १२ व्या० वि० - छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम् १३. पुण्णं (च्) ।
,
१४. इच्छामेत्ततो वा ( क ) |
३०७
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३०८
कुसील - उवालंभ-पदं
१६. अपरिच्छ दिट्ठि ण हु एव सिद्धी 'भूतेहि जाण' पडिलेह सातं" २०. थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी तम्हा विऊ विरए आयगुत्ते लिंग-कुसील-पदं २१. जे धम्मलद्धं विणिहाय" भुंजे जे धावती" "लूसयई व वत्थं "
सुसील - पदं
२२. कम्मं परिणाय दगंसि धीरे 'से बीयकंदाइ अभुंजमाणे कुसील-पदं
२३. जे मायरं च पियरं च हिच्चा
'कुलाई जे धावति साउगाई " २४. कुलाई जे धावति साउगाई 'से आरियाणं गुणाणं सतंसे २५. 'णिक्खम्म दीणे पर भोयणम्मि" णीवार गिद्धे महावराहे
व
१. अपरिक्ख (ख) 1 २. दिट्ठे ( क, ख, वृ) ।
८. जगाई (चू ) ।
६. डिसखाए ( चू) ।
१०. या पडि ० ( चू); यं पडिसंह ° ( ख ) । ११. व निहाय ( क ) ; व णिधाय ( चू) ।
१२. सिणाइ (क, ख ) ।
१३. धोति (ख) 1
१४. लीसज्जा विवत्थं ( चूपा) । १५. णं अणिस्स ( ) ।
एहिति ते घातमबुज्झमाणा' | विज्जं गहाय तसथावरेहिं ॥ पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू || दठ्ठे तसे य प्पडिसाहरेज्जा" ।।
वियडेण साहट्टु य जे सिणाइ" । अहाहु से णागणियस्स" दूरे ||
वियडेण 'जीवेज्ज य" आदिमोक्खं । विरए सिणाणाइसु इत्थियासु " ||
११७
३. घंतम ° (चू) ।
विरता सिणाणा अदु इत्थिगा तो ( चु) । १८. आघाति धम्मं उदराणुगिद्धों (चू) ।
४. जाण (क, ख ) ।
५. भूतेहि जाण पडिलेह सातं (आयारो २।५२ ) । १६. आघाति अक्खाइउदराओ गिद्ध ( ) |
६. तस ० ( क ) ।
७. पुट्टो (क ) ।
गारं तहा पुत्तपसुं धणं च । अहाहु से सामणियस्स दूरे ॥ 'आधाइ धम्मं उदराणुगिद्धे " । 'जे लावएज्जा असणस्स हेउ | 'मुहमंगलिओदरिय" पगिद्धे " | 'अदूर एवेहिइ" घातमेव ॥
१६. जे जीवति (च्) ।
१७. ते बीज-कंदादि अभुंजमाणा,
सूडो १
२०. अहाहु से आयरियाण ( क, ख ) । २१. जे लावए ता असणादिहेतुं ( चू) ।
२२. क्खिदहीणे (च ) ।
१३. परभोयणत्थि (चू ) ।
२४. व्या० वि० - द्विपदयोः सन्धिः मुहमंगलिओ + ओदरियं ।
२५. मुहमंगलि उदरियाणुगिद्धे ( क ) ; मुमंगलिए उदराणुगिद्धे ( ख ) ।
२६. अदूरए एहति ( ख ) ; अदूर ते वेसति ( चू) ।
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सत्तमं अज्झयणं (कुसीलपरिभासितं)
३०६
२६. अण्णस्स पाणस्सिहलोइयस्स अणुप्पियं भासति सेवमाणे ।
पासत्थयं चेव कुसीलयं च णिस्सारए होइ जहा पुलाए। सुसील-पदं २७. अण्णायपिंडेणऽहियासएज्जा णो पूयणं तवसा आवहेज्जा।
'सद्देहि रूवेहि असज्जमाणे सव्वेहि कामेहि विणीय गेहि ॥ २८. सव्वाइं संगाइं अइच्च धीरे सव्वाइं दुक्खाइं तितिक्खमाणे।
अखिले अगिद्धे अणिएयचारी 'अभयंकरे भिक्खु अणाविलप्पा । २६. भारस्स जाता मुणि' भुंजएज्जा' कंखेज्ज 'पावस्स विवेग' भिक्खू ।
दुक्खेण पट्टे धयमाइएज्जा संगामसीसे व परं दमेज्जा' ।। ३०. 'अवि हम्ममाणे१२ फलगावतट्ठी समागमं कंखइ अंतगस्स।
णिद्धय कम्मं ण पवंचुवेइ अक्खक्खए वा सगडं ति बेमि ।।
३०
१. ण (चू)। २. आवहुज्जा (चू)। ३. अण्णे य पाणे य अणाणुगिद्धे,
सव्वेसु कामेसु णियत्तएज्जा (चू)। ४. वीरे (क, ख)। ५. व्या० वि०-भिक्खू । ६. ण सिलोयकामी परिव्वएज्जा (च)। ७. जत्ता (क)।
८. व्या० वि०-मुणी। ६. भुंजमाणे (चू)। १०. यो पाव विवेग (च); व्या०वि०--विवेग । ११. च परं० (क); अवरे दमेइ (च)। १२. प्रणिहम्ममाणे (चूपा)। १३. ° यतट्ठी (क)। १४. व्या० वि०-द्विपदयोः सन्धिः-पवंचं
उवेइ।
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अट्ठमं अज्झयणं
वीरियं
वोरिय-पदं १. दुहा वेयं सुयक्खायं वीरियं ति पवुच्चई ।
किण्णु वीरस्स वीरितं ? 'केण वीरो त्ति वुच्चति ?|| २. कम्ममेव पवेदेति' अकम्मं वा वि सुव्वया ॥
एतेहिं दोहि ठाणेहिं जेहि" दीसंति मच्चिया ॥ ३. पमायं कम्ममाहंसु अप्पमायं
तहावर । तब्भावादेसओ वा वि बालं पंडियमेव वा ॥ बाल-वीरिय-पदं ४. सत्थमेगे" सुसिक्खंति अतिवाताय२ पाणिणं ।
एगे मंते अहिज्जति पाणभूयविहेडिणो
१. चेतं (क, चू)।
तृतीयान्तः पाठो नास्ति व्याख्यातः । तत्र २. समक्खात (चू)।
'एते एव द्वे स्थाने' इति पाठो व्याख्यातोस्ति ३. वीरत्तं (क, ख, वृ)।
तेन 'एते एव दुवे ठाणे' इति पाठस्य कल्पना ४. कह चेयं पुवुच्चति (क, ख)।
जायते । यद्यष पाठः स्यात् तदा व्याख्याया ५. कम्ममेगे (क, ख, वृ); अत्र वृत्तिकृता 'एगे' जटिलतापि समाप्ता स्यात् । उत्तराध्ययने
इति पाठः स्वीकृतः, किन्तु अत्र प्रवेदनं (५।२) पि एतत् संवादी पाठो लभ्यतेतीर्थकराणां विद्यते, न तु मतान्तरसूचन- 'संतिमेव दुवे ठाणा' पुनश्च ‘जम्मि' अथवा मस्ति तेन नासो पाठो घटते।
'जेहिं' इति पाठावपि सुसंगच्छाते; ° जम्मि ६. परिणाय (च); पभासंति (चपा)।
(चू)। ७. चा (व)।
१०. तब्भाव ° (चू)। ८. मुच्चति (क); सुव्वया ! (व)। ११. अत्थ ° (चू)। ६. 'एतेहिं दोहिं ठाणेहिं, जेहि' अत्र तृतीया १२. ° वादाय (क)।
करणेनार्थस्य जटिलता जाता। चूर्णी १३. केइ (चू)।
३१०
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अट्टमं अज्झणं (वीरियं )
कट्टु ५. माइणो हंता छेत्ता
६. मणसा
वयसा
चेव कायसा
चेव
७. वेराइं
८. संपरायं
आरतो परतो वा वि दुहा वि य कुव्वती वेरी 'ततो वेरेहि पावोवगा य आरंभा दुक्खफासा य णियच्छंति अत्तदुक्कडकारिणों' बाला पावं कुव्वंति सकम्मविरियं बालाणं तु अकम्मविरियं पंडियाणं
ह
रागदोसस्सिया
६. एतं एत्तो
पंडित वीरिय-पदं
१०. दविए
बंधमुक्के सव्वतो
पोल्ल पावगं कम्मं सल्लं
भुज्जो
११. णेयाउयं
भुज्जो १२. ठाणी
अति
१३. एवमायाय आरिय
१४. सहसंमइए"
'समुट्ठिए
मायाओ 'कामभोगे
पगतित्ता आय - सायाणुगामिणो
५. अत्ता (चू) ।
६. ॰वीरियं (ख)।
७. पोलो (क, ख ) । ८. कंत अपणो ( वृपा ) ।
C. अणी (क, ख ) |
'कंतति
सुक्खातं उवादाय दुहावासं असुहत्तं विविहठाणाणि च इस्संति अयं वासे 'णातीहि य" मेहावी अप्पणो उवसंपजे सव्वधम्ममकोवियं"
.१२
१.
• समायरे ( क ); ° समाहरे (चू); आरंभाय १०. इमे (चू) ।
(चूप, वृपा) ।
२. जेहि वेरेहिं कच्चति (चू) ।
३. संपराइगं (क); संपरागं (चू) |
४. निगच्छति (चू) 1
तहा
ण
समारभे" ।
11
अंतसो ।
असंजता ॥
रज्जती I
अंतसो ||
णच्चा धम्मसारं सुणेत्तु" अणगारे पच्चक्खाय
छिणबंधणे ।
अंतसो" ।।
मह
तहा ॥
संसओ । सुहीहि ॥ गिद्धमुद्धरे ।
11
1
बहुं ॥
पवेइयं ।
मे ॥
११. नायएहि (क, ख ) ।
वा ।
पावए७ ॥
१२. अपणा (चू) |
१३. आयरियं (ख, चूपा ) 1
३११
१४. सव्वे धम्मा अकोपिता ( चू); • गोवियं
(ख, वृपा) ।
१५. सहसंमुइए ( क ) ; सह सम्मुत्तियाए (चू) | १६. सुत्त (चू ) ।
१७. समुट्ठिए उ० ( ख ); उवट्ठिते य मेधावी
(च) ।
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३१२
सूयगडो १
१५. जं किंचुवक्कम' जाणे 'आउक्खेमस्स अप्पणो।
तस्सेव अंतरा खिप्पं सिक्खं सिक्खेज्ज। १६. जहा कुम्मे सअंगाइं सए देहे समाहरे ।
एवं 'पावेहि अप्पाणं अज्झप्पेण समाहरे ।। १७. साहरे हत्थपाए य मणं' सव्विदियाणि य।
पावगं च परीणामं भासादोसं च पावगं ।। १८. 'अणु माणं च मायं च तं परिण्णाय पंडिए ।
'सुतं मे इह मेगेसि एयं वीरस्स वीरियं । १६. 'उड्डमहे तिरियं दिसासु जे पाणा तस थावरा ।।
सव्वत्थ विरति कुज्जा संति-णिव्वाणमाहितं५० ॥ २०. पाणे य णाइवाएज्जा अदिण्णं पि य णातिए।
सातियं ण मुसं बूया एस धम्मे वुसीमओ।। २१. 'अतिक्कमति वायाए मणसा वि ण पत्थए।
सव्वओ संवुडे दंते आयाणं सुसमाहरे ।। २२. कडं च कज्जमाणं" च आगमेस्स५ च पावगं ।
सव्वं तं णाणुजाणंति आयगुत्ता जिइंदिया ।
१. किन्तुवक्कम (क); किंचिउवक्कम (चू);
वीरियं (वृपा); आययद्रं सुआदाय, एयं व्या०वि०----द्विपदयोः सन्धिः-किंचि+ वीरस्स वीरियं (वृपा)। उवक्कम ।
१०. X(क, ख); अयं च श्लोको न सूत्रादर्शषु २. आउखेमं च अप्पणो। तस्सेव अतरद्धा, दृष्टः, टीकायां तु दृष्टः इति कृत्वा खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिते (च)।
लिखितः (व)। ३. पावाइं मेहावी (क, ख, वृ)।
११. नायए (क); णादिए (ख)। ४. संहरे (चू)।
१२. साइयं (ख); सादियं (वृ)। ५. कायं (चू)।
१३. ० सुसमाहिए (क); ६. तु (ख)।
अयं भावरते निच्चं, ७. तारिसं (क, ख, वृ)।
भवे भिक्खू सुसंवुडे । ८. अइमाणं (चूपा, वृपा)।
अतिक्कम तिपादाए, ६. आयपटुं सुयादाय एवं वीरस्स वीरियं (क, मणसा वि ण पत्थए ॥ (चू)।
ख); साया गारवणिहुते, उवसंते णिहे चरे १४. कीर (चू)। (क, ख); साया गारवणिहुए, उवसंते णिहे १५. मिस्स (ख)। चरे (व); सुयं मे इह मेगेसिं, एवं वीरस्स १६. आउगुत्ता (क)।
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अट्ठमं अज्झयणं (वीरियं) अबुद्ध-परक्कंत-पदं २३. जे याऽबुद्धा' महाभागा' वीरा ऽसम्मत्तदंसिणो' ।
असुद्धं तेसिं परक्कंतं सफल होइ सव्वसो।। बुद्ध-परक्कंत-पदं २४. जे उ* बुद्धा महाभागा' वीरा सम्मत्तदंसिणो।
सुद्धं तेसिं परक्कंतं अफलं होइ सव्वसो॥ २५. तेसिं तु तवोसुद्धो'६ णिक्खंता जे महाकुला।
'अवमाणिते परेणं तु ण सिलोगं वयंति ते ।। २६. अप्पपिंडासि पाणासि अप्पं भासेज्ज सुव्वए ।
खंतेऽभिणिव्वुडे दंते 'वीतगेही सया जए" ।। २७. झाणजोगं समाहटु कायं वोसेज्ज सव्वसो। तितिक्खं परमं णच्चा आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ।।
-त्ति बेमि ॥
१. अबुद्धा (क)।
७. जे य (क)। २. महानागा (चू)।
८. जं नेवन्ने वियाणंति, न सिलोगं पवेयए ३. असमत्त ° (ख); ° दरिसिणो (चू) (क, ख, वृ)। ४. य (ख, वृ)।
६. विगतगेधी ण रज्जति (चू)। ५. महानागा (चू)।
१०. ° योगं (चू)। ६. पि तवो ऽसुद्धो (क,वृ); तु तवो असुद्धो(ख)। ११. विउ (क, ख)।
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नवमं अज्झयणं
धम्मो
धम्म-पदं
१. कयरे धम्मे अक्खाए' माहणेण मईमता ? ।
अंजु' धम्म जहातच्चं' 'जिणाणं तं सुणेह मे ॥ २. माहणा खत्तिया वेस्सा' चंडाला अदुबोक्कसा।
एसिया वेसिया सुद्दा 'जे य आरंभणिस्सिया ।। परिग्गहे णिविट्ठाणं 'वेरं तेसिं" पवड्थई ।
आरंभसंभिया कामा ण ते दुक्खविमोयगा॥ ४. आघातकिच्चमाहे णाइओ विसएसिणो।
अण्णे हरंति तं वित्तं 'कम्मी कम्मेहि किच्चती"। ५. 'माता पिता ण्हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा।
णालं ते मम ताणाए लुप्पंतस्स सकम्मुणा'" ॥
१. आघाते (चू)।
६. °माधाए (चू); °माधेतुं (चूपा)। २. अजू (ख); अंजु (चू)।
१०. णायतो (क)। ३. अहा ° (क); जधातधा (चू)। ११. ° कच्चती (क); कम्माय एसति (चू)। ४. जणगा० (ख); जणगा तं सुणे धम्मे (चपा, १२. तव (क, ख. व)। वृपा)।
१३. तुलना-माया पिया ण्हसा भाया, ५. वेसा (क, ख)।
भज्जा पुत्ता य ओरसा। ६. जेऽन्ने (क)।
नालं ते मम ताणाय, ७. पावं तेसि (व); तेसि पावं (चू); वेरं तेसि
लुप्पंतस्स सकम्मुणा॥ (वृपा)।
-उत्तरज्झयणाणि ६।३। ८. ° सवुता (चू); ° सम्मुता (चूपा)।
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नवमं अज्भणं ( धम्मो )
६.
मट्ठ णिम्ममो
७.
मूलगुण-पदं
८.
ε.
'चिच्चा वित्तं च पुत्ते य" णाइओ 'चिच्चाण अंतगं सोयं
णिरवेक्खो
सपेहाए' परमाणुगामियं णिरहंकारी चरे भिक्खू
'पुढवी आऊ" अगणी वाऊ' 'तण अंडया 'पोय जराऊ रस एतेहि छहिं काहिं तं कायवक्केणं णारंभी
मणसा
१०. मुसावायं बहिद्ध च उग्गहं सत्थादाणाइं लोगंसि तं विज्जं !
१. व्या० वि० - अत्र 'सं' शब्दस्य अनुस्वारलोपः -- 'संपेहाए' (संप्रेक्ष्य ) । सम्मंपेहाए (च्) । ' स पेहाए' स प्रेक्षापूर्वकारी (वृ) । उत्तराध्ययन ( ६।४) संदर्भे चूर्णिव्याख्या संगतास्ति । सपेहाए ( स्वप्रेक्षया ) इत्यपि पाठो भवितुमर्हति ।
२. ० या ( क ) ; चेच्चा पुत्ते य मित्ते य (चू) । ३. चेच्चाण अत्तगं सोतं (चू); चेच्चा अणंतगं
सोयं (चुपा ); चेच्चाण अंतकं सोयं, चेच्चाण अत्तगं सोयं, चेच्चाणऽणतगं सोयं (वृपा) । ४. पुढवाऽऽतु (चू) । ५. वायू (चु) ।
रुक्ख"
य
संसेय
विज्जं !
ण
११.
च
जिणाहिये ||
परिग्रहं ।
परिव्वए ।
उत्तरगुण-पदं
य ।
११. पलिउंचणं च भयणं च थंडिल्लुस्सयणाणि धुत्तादाणाणि लोगंसि तं विज्जं ! परिजाणिया || १२. 'धावणं रयणं चेव वमणं च सिरोवेधे" तं विज्जं ! १३. गंधमल्ल १२ सिणाणं च दंतपक्खालणं परिग्गहित्यिक मं च तं
वत्थकम्मं
विरेयणं । परिजाणिया || तहा । परिजाणिया ||
विज्जं !
सवीयगा ।
उब्भिया ||
परिजाणिया ।
परिही ।
अजाइयं । परिजाणिया ||
६. व्या०वि० - विभक्तिरहितपदम्-तणा रुक्खा | ७. व्या० वि० विभक्तिरहितं वर्णलोपश्चपोयया जराउया रसया ससेइया । वातं (च्) ।
८.
६. अजाइया (क, ख ) ; मऽजाइयं (चु) । १०. धूणायाण ( क ); धूणादाणाई ( ख ) ; वृत्ति
( युग्मम् )
१२. मल्ल (ख, वृ, चू) ।
३१५
कृता 'धूण' इति पाठो व्याख्यातः धूनयेति प्रत्येकं क्रिया योजनीया (वृ); किन्तु चूर्णीगतः पाठोदृष्ट्या स्वाभाविकः प्रतिभाति । धोयणं रयणं चेव, वत्थीकम्म विरेयणं । वमणंजणपलीमंथं (क, ख, वृ) ।
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सूयगडो १
१४. उद्देसियं कीयगड' पामिच्चं चेव आहडं ।
'पूति अणेसणिज्जं च तं विज्ज! परिजाणिया ।। १५. आसूणिमक्खिराग' च गिद्धवघायकम्मगं
। उच्छोलणं च 'कक्कं च तं विज्ज! परिजाणिया । संपसारी कयकिरिए पसिणायतणाणि
य। सागारियं पिडं च तं विज्ज! परिजाणिया । १७. अट्टापदं ण सिक्खेज्जा वेधादीयं च णो वए।
हत्थकम्मं विवायं च तं विज्ज ! परिजाणिया ॥ १८. उवाणहाओ छत्तं च णलियं बालवीयणं ।
परकिरियं अण्णमण्णं च तं विज्जं ! परिजाणिया ।। १६. उच्चारं पासवणं हरितेसु ण करे मुणी।
वियडेण वावि साहटु णायमेज्ज" कयाइ वि ।। २० परमत्ते५ अण्णपाणं ण भुजेज्ज कयाइ वि।
परवत्थं अचेलो वि तं विज्ज! परिजाणिया ।। २१. आसंदी पलियंके य१६ णिसिज्जं च गिहतरे।
संपुच्छणं सरणं वा तं विज्ज! परिजाणिया । २२. 'जसं कित्ती सिलोगं च जाय वंदणपूयणा ।
सव्वलोगंसि जे कामा तं विज्ज ! परिजाणिया ।। २३. जेणेह" णिव्वहे भिक्ख अण्णपाणं तहाविहं ।
अणुप्पदाणमण्णेसि तं विज्ज ! परिजाणिया ।
१. कोतकडं (चू)।
१०. पाणहाओ य (क, ख, व)। २. पूइयं णेस ° (क); पूर्य अणे ° (ख)। ११. नालीयं (ख)। ३. आसूणियमक्खि ° (चू)।
१२. °वीयणी (क)। ४. गेहुवघाय ° (चू)।
१३. नाच° (ख)। ५. कक्केणं (चू)।
१४. कदादि (क)। ६. य कयकिरीते (क, ख)।
१५. परपत्ते (चू)। ७. पासणिया (चू)।
१६. पलियकं च (चू)। ८. अट्ठावयं (ख)।
१७. संपुच्छणं च (क, चू)। है. वेहाईयं (ख); वेधातीतं (व); वेधादीयं १८, जस किति (ख, चू)। (वृपा)।
१६. जणेहि (क); जेणिहं (चू); जेणिह (चूपा)।
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नवमं अज्झयणं (धम्मो)
३१७
['सीलमंते असीले वा तेसि दाणं विवज्जए।
णिज्ज रट्टाए दायव्वं तं विज्ज ! परिजाणिया" ]|| २४. एवं उदाहु णिग्गंथे महावीरे महामुणी ।
अणंतणाणदंसी से धम्मं देसितवं सुतं ।। भासा-विवेग-पदं २५. भासमाणो ण भासेज्जा 'णो य'२ वम्फेज्ज मम्मयं' ।
'माइट्ठाणं विवज्जेज्जा'" 'अणुवीइ वियागरे ।। २६. 'संतिमा तहिया भासा जं
वइत्ताणुतप्पई । जं छणं तं ण वत्तव्वं एसा आणा णियंठिया ।। २७. होलावायं सहीवायं गोयवायं च णो वए ।
तुमं तुमं ति अमणुण्ण सव्वसो तं ण वत्तए ।।
संसग्गि-वज्जण-पदं
२८. अकुसीले सदा भिक्खू ‘णो य' संसग्गियं भए।
सुहरूवा तत्थुवसग्गा पडिबुज्झज्ज ते विदू ।।
सामण्ण-चरिया-पदं
२६. 'णण्णत्थ अंतराएणं११ परगेहे
गाम-कुमारियं किडं णाइवेलं ३०. 'अणुस्सुओ उरालेसु जयमाणो
चरियाए अप्पमत्तो 'पुट्ठो ३१. हम्ममाणो ण कुप्पेज्जा वुच्चमाणो
सुमणो अहियासेज्जा ण य
ण णिसीयए । हसे मुणी ।
परिव्वए'१२ । तत्थऽहियासए॥
ण संजले । कोलाहल करे ।।
१. अयं श्लोकः केवलं चूर्णावेव व्याख्यातो ७. छन्नं (क, ख, वृपा)। लभ्यते।
८. सोलवादं (चू); गोतावादं (चूपा)। २. णेय (क); नेव (ख)।
है. अपडिण्णे (चू)। ३. मामयं (क, वृपा)।
१०. नेव (क, ख)। ४. मायाठाणं ण सेवेज्ज (चू)।
११. नन्नत्यंतरा (क)। ५. अणुवीय ° (क); अणुचिंतिय ° (ख); १२. अणिस्सिओ उरालेहिं, अपमत्तो परिव्वए । ___° उदाहरे (व); अणुचिंतिय वाहरे (चू)। (चू); अणिस्सिओ° (वृपा)। ६. तत्थिमा तइया (क, ख, वृ)।
१३. पुट्ठो सम्माधियासए (च)।
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सूयगडो १
३२. 'लद्धे कामे' ण पत्थेज्जा विवेगे एव माहिए।
आयरियाई सिक्खेज्जा 'बुद्धाणं अंतिए" सया ।। ३३. सुस्सूसमाणो उवासेज्जा सुप्पण्ण
सुतवस्सियं। वीरा' जे अत्तपण्णेसी धितिमंता जिइंदिया । ३४. गिहे दोवमपासंता परिसादाणिया
णरा। ते वोरा बंधणुम्मुक्का णावखंति
जोवियं ॥ ३५. अगिद्धे सद्दफासेसु आरंभेसु अणिस्सिए ।
'सव्वं तं समयातीतं जमेत लवियं बहु ।। ३६. अइमाणं च मायं च तं परिण्णाय पंडिए । गारवाणि य सव्वाणि णिव्वाणं' संधए मुणि ।।
-त्ति बेमि ।।
१. लद्वीकामे (चूपा, वृपा)। २. एस माहिए (क); एस आहिए (ख)। ३. आरियाई (व); आयरियाई (वपा)। ४. सुबुद्धाणंतिए (चू)। ५. धीरा (वृपा)।
६. मपस्संता (क)। ७. सव्वेतं (च)। ८. जमिदं (चू)। ६. णेव्वाणं (चू)।
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समाधि-पदं
१. आघं मइमं अणुवीइ धम्मं अंजु समाहिं तमिणं सुणेह । अपडणे भिक्खू समाहिपत्ते 'अणिदाणभूते सुपरिव्वज्जा" | २. उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर' जे य पाणा । हत्थेहि पादेहि य संजमित्ता' अदिण्णमण्णेसु य णो गहेज्जा | ३. सुक्खायधम्मे वितिगिच्छतिणे" लाढे चरे आयतुले पयासु" । आयं ण कुज्जा इह जीवियट्ठी चयं ण कुज्जा सुतवस्सि" भिक्खू ॥ चरित -समाधि-पदं
दसमं अज्झयणं समाही
१३
४. सव्विदियाभिणिव्वुडे पयासु पासाहि पाणे पुढो विसणे"
१. मई ( ख ) ।
२. अंजू (क, ख ) ।
३. तधियं (च्) ।
४. अडिग (क्व ) ।
५. भिक्खू उ ( ख ) । ६. ० भूते परिवएज्जा (वृ); एज्जा (वृपा, चूपा); वृषा ) ।
७. त (क); या (चु) ।
० भूतेसु परिव्व० भूने सुपरि०
चरे मुणी सव्वओ विप्पक्के । 'दुक्खेण अट्टे"" परिपच्चमाणे " ॥
५. व्या० वि० थावरा | ९. संजमंतो (चू ) ।
१०. वितिगिंछ ( चु) ।
११. पयासुं (च्) ।
१२. व्या० वि० - सुतवस्सी ।
१३. ० दियभि ० ( क ) ; ० दियणिव्वुडे ( चू) । १४. वि सत्ते (क, वृ); विसंते ( चुपा ) | १५. दुक्खट्टितट्टे (चुपा) । १६. परितप्यमाणे (ख, चू, वृपा) ।
३१६
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३२०
सूयगडो
५. एतेसु' बाले य' पकुव्वमाणे आवट्टती' 'कम्मसु पावएसु" ।
अतिवाततो कीरति पावकम्म जिउंजमाणे उ करेड कम्म।। ६. आदीणवित्ती' वि करेति पावं मंता हु एगंतसमाहिमाहु ।
बुद्धे समाहीय रए विवेगे पाणाइवाया विरते ठितप्पा ।। ७. सव्वं जगं तू समयाणुपेही पियमप्पियं कस्सइ णो करेज्जा।
उट्ठाय 'दीणे तु" पुणो विसण्णे१२ संपूयणं चेव सिलोयकामी ॥ ८. आहाकडं३ चेव णिकाममीणे७ णिकामसारी ५ य विसण्णमेसी । __इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले परिग्गहं चेव पकुव्वमाणे ॥ ६. 'वेराणुगिद्धे णिचयं करेति'१८ इतो चुते से दुहमट्ठदुग्गं"।
तम्हा तु मेधावि" समिक्ख धम्म चरे मुणी सव्वतो विप्पमुक्के । १०. आयं ण कुज्जा इह जीवितट्ठी२ असज्जमाणो य" परिव्वएज्जा।
णिसम्मभासी य विणीयगिद्धी" हिंसण्णितं वा ण कहं करेज्जा ।। ११. आहाकडं वा ण णिकामएज्जा णिकामयंते य ण संथवेज्जा।
धुणे उरालं अणवेक्खमाणे चेच्चाण सोयं अणुवेक्खमाणे ।। १२. एगत्तमेवं अभिपत्थएज्जा 'एतं पमोक्खे'२८ ण मुसं ति पास ।
एसप्पमोक्खे अमुसेऽवरे वी अकोहणे सच्चरए तवस्सी ॥
१. एवं तु (वृपा, चूपा)। २. तु (चू)। ३. आउट्टती (चूपा, वृपा)। ४. कम्मेहिं पावहिं (चू)। ५. वि (ख)। ६. आदीणभोई (क, चू, वपा) । ८. उ (क, ख)। ८. समाहीइ (क)। ६. ठितच्चा, ठितच्ची (चूपा, वृपा)। १०. तं (ख)। ११. दीणो य (क, ख)। १२. विसत्तो (क)। १३. अधाकडं (चू)। १४. णियायमीणे (चूपा)। १५. नियामचारी (क, ख, वपा)। १६. इत्थीहिं (चू)।
१७. ममायमाणे (चू)। १८. आरंभसत्ता णिचयं करेंति (च); आरंभ
सत्तो' (वृपा)। १६. ° दुग्गे (चू)। २०. व्या० वि०-मेधावी । २१. छंदं (चू, वृपा); आय (चूपा) । २२. जीवियट्ठी (वृ)। २३. उ (क)। २४. °गिद्धि (वृ); ° गेधी (चू)। २५. अणुवेहमाणे (ख, वृ)। २६. अणुपेहमाणे (क, वृ)। २७. ° मेयं (ख)। २८. एवं पमुक्खो (क, ख, व)। २६. वरे (वृ)। ३०. तपस्सी (च)।
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३२१
दसमं अज्झयणं (समाही) १३. इत्थीसु या 'आरयमेहुणे उ" परिग्गहं चेव अकुव्वमाणे ।
'उच्चावएसुं विसएसु ताई'३ ‘ण संसयं” भिक्खु समाहिपत्ते ।। १४. अरति रति च अभिभूय भिक्खू तणादिफासं तह सीतफासं ।
'उण्हं च दंसं चऽहियासएज्जा सुभि च दुभि च तितिक्खएज्जा ।। १५. गुत्ते वईए य समाहिपत्ते लेसं समाहटु परिव्वएज्जा।
गिहं ण छाए ण वि छादएज्जा सम्मिस्सिभावं पजहे पयासु ॥ असमाधि-पदं १६. जे केइ लोगम्मि उ अकिरियाता' अण्णेण पुट्टा धुतमादिसंति।
आरंभसत्ता गढिया य लोए धम्म ण जाणंति विमोक्खहेउं ॥ १७. 'तेसिं पुढो छंदा माणवाणं किरिया-अकिरियाण व पुढोवाद'२ ।
'जातस्स बालस्स पकुव्व देह'१६ पवडती वेरमसंजयस्स ।। १८. आउक्खयं५ चेव अबुज्झमाणे ममाइ से साहसकारि १९७ मंदे।
अहो य राओ" परितप्पमाणे अट्टे सुमूढे अजरामरे व्व ।। १६. जहाय वित्तं पसवो य सव्वे जे बंधवा जे य पिया य मित्ता।
लालप्पई ‘से वि उवेति मोहं'१ अण्णे जणा तं सि२ हरंति वित्तं ॥
१. • मेहुणा उ (ख, व); अरतमेधुणे या (चू)। माणवा तु, किरियाकिरीणं च पुढो य वायं
व्या०वि०-आ-+अरत+मैथुन:-विरत- (ख); पुढो छंदा इह माणवा उ, किरिया मैथुनः इत्यर्थः ।
किरियाणं च पुढोवायं (व) । २. अमायमीणे (चू)।
१३. जाताण बालस्स पगब्भणाए (चूपा); ३. उच्चावएहि विपएहि ताया (च) ।
जायाए बालस्स पगब्भणाए (वपा)। ४. णिस्संसयं (क, ख, वृ); ण संसयं (वृपा)। १४. पवड्ढते (चू)। ५. व्या० वि०-भिक्खू ।।
१५. आयु (चू)। ६. तेउं च० (ख); तेउ च सदं (चू)। १६. व्या० वि०-साहसकारी। ६७. गुत्तो (क)।
१७. सहस्म ° (चू)। ८. छावएज्जा (क, ख)।
१८. रातो य (चू)। ६. सम्मिस्स° (क, ख, वृ); सम्मिस्सि ° १६. मरि (क, ख) । (वृपा)।
२०. जहाहि (क, ख)। १०. अकिरियाया (क); अकिरिय आया (ख)। २१. से वि य एइ मोहं (क, ख); ते वि उवेंति ११. ° मादियंति (चू)।
घंत (चू)। १२. पुढो य छंदा इह माणवातो, किरियाकिरीण २२. से (क) ।
च पुढो य वायं (क); पुढो य छंदा इह
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३२२
सूयगडो १ मूलगुण-समाहि-पदं २०. सीहं जहा खुद्दमिगा' चरंता दूरे चरंती परिसंकमाणा ।
एवं तु मेहावि' समिक्ख धम्म 'दूरेण पावं परिवज्जएज्जा" ।। २१. संबुज्झमाणे उ' गरे मतीमं पावाओ अप्पाण' णिवट्टएज्जा ।
'हिंसप्पसूताणि दुहाणि मत्ता 'वेराणुबंधीणि महब्भयाणि" । २२. मुसं ण बूया मुणि" अत्तगामी णिव्वाणमेयं२ कसिणं समाहिं ।
सयं ण कुज्जा ण वि कारवेज्जा करंतमण्णं" पि य णाणुजाणे ॥ उत्तरगुण-समाहि-पदं २३. 'सुद्धे सिया जाए ण दूसएज्जा'५ 'अमुच्छितो अणझोववण्णो ।
धितिमं 'विमुक्के ण यपूयणट्ठी ण सिलोयकामी य परिव्वएज्जा ।। २४. णिक्खम्म गेहाओ णिरावकंखी कायं विओसज्ज णिदाणछिण्णे । णो जीवितं णो मरणाभिकखी चरेज्ज भिक्खू वलया विमुक्के ॥
-त्ति बेमि॥
१. खुड्ड° (चू)। २. दुरेण (वृ)। ३. व्या० वि०--मेहावी। ४. पावाणि दूरेण विवज्जएज्जा (च)। ५. य (ख, चू)। ६. अप्पाणं (क)। ७. °सूयाई दुहाई (क, ख)। ८. मंता (क, ख)। ६. जेव्वाणभूते व परिव्वएज्जा (चू, वृपा)। १०. व्या० वि० ---मुणी।
११. ° कामी (चू)। १२. ° मेवं (चू)। १३. य (क, चू)। १४. करेंत ° (चू)। १५ सुद्धेसिया जायण तूसएज्जा (चू)। १६. अमुच्छिए न य अज्झोववण्णे (क, ख)। १७. विप्पमुक्के ण (चू)। १८. °गामी (क, ख, वृ)। १६. विओस्सेज्ज (क) ।
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गारसमं अभयणं मग्गे
मग्ग-सार-पदं
२. तं ' मग्गं अणुत्तरं " सुद्धं जाणं जहा भिक्खू ! ३. जइ णे केइ पुच्छेज्जा
१. कयरे मग्गे अक्खाते' माहणेण मतीमता ? | जं मग्गं उज्जु' पावित्ता ओहं तरति दुरुत्तरं ॥ सव्वदुक्खविमोक्खणं । तं णे बूहि' महामुनी ! ॥ 'देवा अदुव माणुसा " ।
तेसिं तु कयरं मग आइक्खेज्ज ? कहाहि णो' ||
४. जइ वो केइ पुच्छेज्जा देवा अदुव पडिसाहेज्जा मग्गसारं सुणेह महाघोरं कासवेण
'ते सिमं ५. अणुपुव्वेण
जमादाय इओ पुव्वं समुद्द
१. आघाते (चू) ।
२. अंजु (चु); व्या०वि० – उज्जुं ।
३. मगमणुत्तरं ( ख ) ।
४. ० मोक्खगं ( क ) ।
५. जाणेहि (चू) ।
६. ब्रूहि (चू) ।
७. अत्र चूर्णीविवरणानुसारेण 'देवा तिरिय माणुसा' इति पाठस्न परिकल्पना जायते,
माणुस । मे ॥ पवेइयं । वहारिणो ॥
३२३
तच्चेत्थम् - "तिरिया मणुस्सा, उत्तरगुण
द्धि वा पडुच्च तियं ( तिरियं ? ) अपि कश्चिद् गिरा वत्ति (वित ? ), वयसा वि पुच्छेज्ज"
८. णे (चू) ।
६. तेसि तु इमं मग्गं, आइक्खेज्ज सुणेध मे (चू. वृपा); तेसि तु ० ( चुपा ) ।
१०. समुद्दे व (चू) ।
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३२४
६. अतरं
८.
अहिंसा-पदं
अतो
७. पुढवीजीवा पुढो सत्ता आउजीवा वाजवा पुढो सत्ता तण अहावरे' तसा पाणा एवं 'इत्ताव एव" जीवकाए 'णावरे सव्वाहि अणुजुत्तहिं मइमं सव्वे अकंतदुक्खा' य १०. एयं खु णाणिणो सारं अहिंसा-सम ११. 'उड्ढं आहे” तिरियं च 'सव्वत्थ विरति कुज्जा" १२. पभू दोसे णिराकिच्चा " मणसा वयसा चैव
जं
ण
चेव एतावंतं
तरंतेगे तरिस्संति
तं सोच्चा पडिवक्खामि जंतवो !
ह.
एसणा-पदं
१३. संबुडे से महापणे एसणासमिए णिच्चं समारंभ"
तारिसं तु ण गेहेज्जा"
१४. भूयाई
१. व्या० वि० - तणा ।
२. ० वरा (चू) ।
३. व्या० विछक्काया ।
४. इत्तावये ( क, ख ) ; एताव ता (चू) ।
५. नावरे कोइ विज्जई (क्व ) ।
६. अक्कंत° ( ख ) ।
७. न हिंसया (क, वृ); अहिंसका ( चू) । ८चिणं (क, ख ) ।
जे
संति
ण
कायसा
६. उड्ढ अहे य ( ख ) ; उड्ढमहे (चू) । १०. ० विज्जा (क, वृ ) । ३।४।२० श्लोके चूर्णिकृता 'सव्वत्थविज्जं विरति पाठः स्वीकृतः, वृत्तिकृता च 'सव्वत्थ विरंति कुज्जा' पाठो
अणागया ।
तं सुणेह मे ॥
तहागणी | सबीयगा ॥ आहिया
विज्जती कए " ॥
पडिलेहिया ।
रुक्खा
छक्काय'
इ
सव्वे
अहिंसया ||
कंचणं । विजाणिया ||
हिंसति
तसथावरा ।
व्वाणमाहियं ॥
इ |
अंतसो ॥
विरुज्भेज्ज चेव
धीरे "
चरे । असणं ॥
वज्जयंते 'साधू उद्दिस्स" जं कडं । अण्णपाणं " सुज ॥
दत्तेसणं
व्याख्यातः । इह च चूर्णिकृता 'सव्वस्थ विरति कुज्जा' पाठः स्वीकृतः, वृत्तिकृता च 'सव्वत्थ विरति विज्जा' पाठो व्याख्यातः ।
११. णिरे ० (चू) ।
१२. य (चू) ।
१३.
पुणे ( क ) ।
सूयगडो १
१४. वीरे (क)
१५. च समारंभ ( क ) ; च समारम्भ ( ख ) ।
१६. समुद्दिस् य ( क ) ; समुद्दिस्सा य ( ख ); साहू मुद्दिस ( वृ) ; तमुद्दिस्सा य ( क्व ) ।
भुंजिज्जा (वृ) ।
१७. १८. अण्णं ० ( वृ ) ।
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एगारसमं अज्झयणं (मग्गे) १५. पूतिकम्म' ण सेवेज्जा' एस धम्मे सीमतो।
जं किंचि अभिसंकेज्जा' सव्वसो तं ण कप्पते । भासा-समिति-पदं १६. 'ठाणाइं संति सड्ढीण गामेसु णगरेसु वा।
अत्थि वा णत्थि वा धम्मो? अत्थि धम्मो त्ति णो वते ।। १७. अत्थि वा णत्थि वा पुण्णं? अत्थि पुण्णं ति णो वए। । अधवा णत्थि पुण्णं ति एवमेयं महब्भयं ॥ १८. 'दाणट्ठयाय जे पाणा' हम्मति तसथावरा ।
तेसि सारक्खणढाए 'अत्थि पुण्णं ति" णो वए। १६. जेसि तं उवकप्पेंति 'अण्णं पाणं" तहाविहं ।
तेसि लाभंतरायं ति तम्हा णत्थि त्ति णो वए । २०. जे य दाणं पसंसंति वधमिच्छंति पाणिणं ।
जे य णं पडिसेहति वित्तिच्छेदं करेंति ते॥ २१. दुहओ वि जे" ण भासंति अत्थि वा णत्थि वा पुणो।
आयं रयस्स हेच्चा णं णिव्वाणं१२ पाउणंति ते॥ धम्म-दीव-पदं २२. 'णिव्वाण-परमा'१३ बुद्धा णक्खत्ताण व चंदमा" ।
तम्हा सया जए दंते णिव्वाण संधए मुणी ।।
१. पूती° (क)।
च । वृत्तौ षोडशे श्लोके नास्ति धर्माधर्म२. सेवेज्ज (चू)।
सम्बन्धी कोपि प्रश्नः । सप्तदशे च पुण्य३. अभिकखेज्जा (क, ख, वृ)।
सम्बन्धी प्रश्नो नास्ति केवलमपृष्टस्य ४. सव्वतो (क)।
प्रश्नस्योत्तरमस्ति । एतेन प्रतीयते वृत्त्यनुसारी ५. भोत्तए (चू)।
पाठो सम्बद्धोस्ति । ६. हणंतं नाणुजाणेज्जा, आयगुत्ते जिइंदिए। ७. दाणटुताए जे सत्ता (चू)।
ठाणाई संति सड्ढीणं, गामेसु नगरेसु वा ॥ ८. तम्हा अस्थि त्ति (चू)। तहा गिरं समारब्भ, अस्थि पुण्णं ति नो वए। ६ अण्णपाणं (क, ख, व)। अह वा नत्थि पुण्णं ति, एवमेयं महब्भयं ॥ १०. पडिसेधेति (चू)। (क, ख, व); इदं गाथा-द्वयमस्माभिश्चूर्ण्य- ११. ते (क, ख, ७)। नुसारि स्वीकृतम् । अत्र वृत्त्यनुसारि गाथा- १२. जेव्वाणं (च)। दयं त्रटितप्रकरणमिवाभाति । श्रद्धालोः प्रश्न. १३. णिव्वाणं परमं (क,ख,वपा); व्वाण ° (च)। परिपाटी चूर्णी स्वाभाविकी विद्यते । षोडशे १४. चंदिमा (क)। श्लोके धर्मोस्ति नवेति प्रश्नस्तदुत्तरं च। १५. जेव्वाणं (च)। सप्तदशे श्लोके पुण्यमस्ति नवेति प्रश्नस्तदुत्तरं
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सूयगडो १
२३. वुज्झमाणाण पाणाणं किच्चंताणं' सकम्मणा।
आघाति' साधुतं दीवं पतिढेसा पवुच्चई ।। २४. आयगुत्ते सया दंते छिण्णसोए" णिरासवे।
जे धम्मं सुद्धमक्खाति पडिपुण्णमणेलिसं बोद्धदिट्ठि-समीक्खा-पदं २५. तमेव अविजाणंता अबुद्धा बुद्धवादिणो ।
बुद्धा मो त्ति य मण्णंता अंतए. ते समाहिए ॥ २६. ते य बीयोदगं चेव तमुद्दिस्सा य जं कडं ।
'भोच्चा झाणं झियायंति अखेतण्णा असमाहिया ।। २७. जहा ढंका य कंका य कुलला" मग्गुका सिही।
मच्छेसणं झियायंति झाणं ते कलुसाधमं ।। २८. एवं तु समणा एगे" मिच्छदिट्ठी२ अणारिया ।
विसएसणं झियायंति कंका वा कलुसाधमा ।। २६. 'सुद्धं मग्गं विराहित्ता इहमेगे उ दुम्मती।
उम्मग्गगया दुक्खं घातमेसंति तं तहा" ॥ ३०. जहा आसाविणि" णावं जाइअंधो
दुरूहिया। इच्छई५ पारमागंतुं अंतरा य
विसीदति ॥ ३१. एवं तु समणा एगे मिच्छद्दिट्टी अणारिया।
सोतं कसिणमावण्णा आगंतारो महब्भयं ॥ मग्ग-संधाण-पदं ३२. 'इमं च धम्ममादाय कासवेण
पवेदितं । तरे सोयं महाघोरं अत्तत्ताए परिव्वए॥
१. कच्चं (क)।
६. झाणं णाम (चू)। २. सकम्मुणा (चू)।
१०. पिलजा (चू)। ३. अक्खाति (चू)।
११. वेगे (क)। ४. साहुतं (क, ख); असौ शब्दः 'साधुकं' अस्ति, १२. मिच्छा ° (क) । ____तकारश्रुत्त्या 'साधुतं' जातमिति प्रतीयते। १३. चूणिकृता नासौ श्लोको व्याख्यातः । ५. °स्सोते (चू)।
१४. आसाविणी (चू)। ६. अणासवे (क, ख)।
१५. इच्छेज्जा (चू)। ७. बुद्धमाणिणो (क, ख, वृ)।
१६. इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं । ८. दूरतो (चू)।
कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स,अगिलाए समाहिए ।
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३२७
.
एगारसमं अज्झयणं (मग्गे) ३३. विरते गामधम्मेहिं जे केई जगई जगा।
तेसि अत्तुवमायाए' थाम कुव्वं परिव्वए । ३४. अतिमाणं च मायं च तं परिण्णाय पंडिए।
सव्वमेयं णिराकिच्चा णिव्वाण संधए मणी ।। ३५. 'संधए साहुधम्म" च पावधम्म णिराकरे ।
उवधाणवीरिए भिक्खू कोहं माणं ‘ण पत्थए । ३६. जे य बुद्धा अतिक्कता जे य बुद्धा अणागया।
___संती तेसि पइट्ठाणं भूयाणं जगई जहा ॥ ३७. 'अह णं वतमावण्णं" फासा उच्चावया फुसे।
ण तेहिं विणिहण्णेज्जा वातेण व महागिरी । ३८. संडे से महापण्णे धीरे 'दत्तेसणं चरे'१९ । कालमाकंखे एवं केवलिणो मतं ॥
--ति बेमि॥
संखाय पेसलं धम्म, दिट्ठिमं परिणिव्वुडे । ३. जेव्वाणं (चू)। तरे सोतं महाघोरं, अत्तताए परिव्वएज्जासि ॥ ४. सद्दहे साधुधम्म (चूपा, वृपा)। (च): क्वचित्पश्चार्धस्यान्यथा पाठः- ५. णिरे करे (च)। 'कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स, अगिलाए समा- ६. च वज्जए (क, ख) । हिए' (वृ); उपरिनिर्दिष्टचूणिपाठस्य ७. भूयाण (क)। तलना ततीयाध्ययनस्य ८१,८२, श्लोकयोः ६. अघेणं भेदमावण्णं (चपा)। षट्पदेभ्यो जायते।
६. तेसु (क, ख)।। १. अत्तुवमाणेण (चू); ता उवमाऽऽताए १०. बुद्धे, (चू); वीरे (चूपा)।
११. दत्तेसणचरे (बू)। २. णिरेकिच्चा (चू)।
१२. एतं (वृ)।
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बारसमं अज्झयणं
समोसरणं समोसरण-चउक्क-पदं १ चत्तारि समोसरणाणिमाणि पावादुया जाइं पुढो वयंति ।
किरियं अकिरियं 'विणयं ति" तइयं अण्णाणमाहंसु चउत्थमेव ।। अण्णाणवादि-पदं २. अण्णाणिया ता कुसला वि संता असंथुया णो वितिगिच्छ' तिण्णा।
अकोविया आहु अकोविएहिं अणाणुवीईति' मुसं वदंति ।। ३. 'सच्चं असच्चं इति चितयंता'६ असाहु' 'साहु त्ति उदाहरंता। वणइयवादि-पदं
जेमे जणा वेणइया अणेगे पुट्ठा वि भावं विणइंसु णाम ॥ ४. अणोवसंखा इति ते उदाहु अट्रे स ओभासइ० अम्ह एवं । अकरियवादि-पदं
लवावसक्की" य अणागएहिं णो किरियमाहंसु अकिरियआया ॥ १. विणइत्ति (क)।
८. साधु ति (चू)। २. ताव (चू)।
६. णामा (चू)। ३. व्या० वि०—वितिगिच्छं ।
१०. नो भासइ (चूपा)। ४. अकोविए ते (क); अकोवियाय (ख)। ११. लवावसंकी (क, ख); लवं-कर्म तस्माद५. ०वाई य (ख); ०वीय त्ति (चू)।
पशङ्कितुम्-अपसर्त शीलं येषां ते लवाप. ६. सच्चं मोसं० (चू); ° इति भासयंता। शनिः (वृ)। (चूपा)।
१२. वाई (ख, वृ)। ७. व्या० वि-असाहुं ।
३२८
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३२६
संमिस्स भावं सगिरा' इमं दुक्खं
६.
जमाइइत्ता
गिहीते से मुम्मुई* होइ' अणाणुवाई | इमेगपक्खं आहंसु छलायतणं चकम्मं ॥ ते एवमवखंति अबुज्झमाणा विरूवरूवाणिह अकिरियाता' । ह मणूसा भमंति संसारमणोवदग्गं ॥ णाइच्चो उदेइ ण अत्थमेइ ण चंदिमा वड्ढति हायती वा । सलिला "ण संदति ण वंति" वाया" वंभे णितिए " कसिणे हु लोए ॥ जहा हि" अंधे सह जोइणा वि रुवाणि णो पस्सइ हीणणेत्ते । संतं पि" ते एवमकिरियआता किरियं ण पस्संति णिरुद्धपण्णा ॥ संवच्छरं सुविणं लक्खणं च णिमित्तदेहं च उपायं च । अट्ठगमेयं बहवे अहिता " लोगंसि जाणंति अणागताई || १०. केई" णिमित्ता तहिया भवंति केसिचि 'ते विप्पडिएंति णाणं । ते विज्जभाव" अणहिज्जमाणा 'आहंसु विज्जापलिमोक्खमेव १२ ॥ fararदि-पदं
११. ते एवमक्खति समेच्च लोगं सयंक णऽण्णकडं च दुक्खं १२. ते चक्खु लोगस्सिह णायगा उ" तहा तहा सासयमाहु लोए
बारसमं अज्झणं (समोस रणं)
५.
७.
द
ĉ.
१. च गिरा ( ) |
२. गीते ( ख ) ।
३. ते (चू) ।
४. मुमिया ( क ) । ५. होंति (चू) ।
६. त ( क ) ।
७. विरूवरूवाणि (वृ) ।
८. अकिरियवाई (क. ख, वृ) ।
६. उट्ठेति (चू) ।
१०. सरितो (चू) ।
११. वयंति ( ख ) ।
१२. वायवो (चू) |
१३. नियते ( क, ख, वृ) ।
१४. य (क, चू) ।
१५. तु (चू) ।
१६. ० किरियवाई (क, ख, वृ) ।
'तहा - तहा ४ समणा आहंसु ' विज्जाचरणं मग्गाणुसासंति हियं पया माणव !
जंसी
माहणा य । पमोक्खं ५ ॥ पयाणं" । संपगाढा ||
१७. सुमिणं ( चू) |
१८. अधिज्जिता (चू) ।
१६. केयी (च्) ।
२०. तं विप्पडिएति ( क, ख, वृ) ।
२१. भासं (च); विज्जहरिसं ( चुपा) ।
२२. जाणामु लोगंसि वयंति मंदा (ख, वृपा) । २३. एयमक्खते (चू ) ।
२४. तधागता (चू); तधा तधा (चूपा) ।
२५. ० चरणप्पमोक्खं ( ख ) ।
२६. व्या० वि० – चक्खू ।
२७. लोगंसिह (क, ख, वृ) । २८. ओ ( क ) ।
२६. व्या० वि० – द्विपदयोः सन्धिः - मग्गं +
संत
३०. जाणं (च) ।
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सूगयडो १ १३. 'जे रक्खसा जे जमलोइया वा' जे आसुरा' गंधव्वा य काया।
आगासगामी य पुढोसिया ते' पुणो पुणो विप्परियासुर्वेति । १४. जमाहु ओहं सलिलं अपारगं जाणाहि णं भवगहणं दुमोक्खं ।
जंसी विसण्णा विसयंगणाहि दुहतो वि लोयं अणुसंचरंति ।। १५. ण कम्मुणा कम्म खति बाला अकम्मुणा कम्म खति धीरा । ___मेधाविणो 'लोभमया वतीता" संतोसिणो णो पकरेंति पावं ॥ १६. ते तीतउप्पण्णमणागयाइं१० लोगस्स जाणंति तहागताइं ।
णेतारो अण्णेसि" अणण्णणेया बुद्धा हु ते अंतकडा भवंति ।। १७. ते णेव कुव्वंति ण कारवेंति भूताभिसंकाएर दुगुंछमाणा।
सदा जता विप्पणमंति धीरा विण्णत्ति-वीरा य भवंति एगे । १८. डहरे य पाणे वुड्ढे य पाणे ते आततो पासइ सव्वलोगे।
उवेहती" लोगमिणं महंतं 'बुद्धप्पमत्तेसु५ परिव्वएज्जा ॥ १६. जे आततो परतो वा वि णच्चा अलमप्पणो होति अलं परेसिं । तं जोइभूयं च सतताजवसेज्जा
पाउकूज्जा अणवीइ धम्म । २०. अत्ताण जो जाणइ जो य लोगं 'जो आगति'२१ जाणइ ऽणागति च ।
जो सासयं जाण असासयं च जाति मरणं च चयणोववातं" ।।
१. जे रक्खसाया जमलोइया य (क, ख, वृ)। १५. व्या० वि०--द्विपदयोः सन्धिः -बढे। २. या सुरा (वृ)।
___अप्पमत्तेसु । बुद्ध+पमत्तेसु । ३. जे (ख, वृ); य (चू)।
१६. बुद्धेऽप्पमत्ते सुपरिव्वएज्जा (चूपा)। ४. °समेंति (चू)।
१७. या (ख, चू)। ५. गहणं (चू)।
१८. व्या० वि०---द्विपदयोः सन्धिः-सततं+ ६. ° गणासु (चू)।
आवसेज्जा। ७. वीरा (वृ)।
१६. सतावसेज्जा (क, ख)। ८. लोभ-भयादतीता (वृपा) ।
२०. आताण (चू); व्या० वि०-अत्ताणं । है. व्या० वि० --मकारः अलाक्षणिकः । २१. गइं च जो (क, ख)। १०. तीवमुप्पण्ण ° (क); तीयमुप्पण्ण ° (ख)। २२. जाणइ(ख); व्या०वि०-अत्र इकारलोप:११. मण्णेसि (चू)।
जाणइ। १२. ° संकाति (क)।
२३. जाती (क, ख)। १३. विदित्तु (चू, वृ), विण्णत्ति (चूपा, वृपा)। २४. जणोववायं (क, ख); ° पवादं (चू)। १४. उव्वेहती (ख, व)।
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बारसमं अज्झयणं (समोसरणं)
२१. अहो वि सत्ताण विउट्टणं च जो आसवं जाणति संवरं च ।
दुक्खं च जो जाणइ णिज्जरं च' 'सो भासिउमरिहति किरियवाद ।। २२. सद्देसु रूवेसु असज्जमाणे 'रसेसु गंधेसु" अदुस्समाणे । णो जीवियं णो मरणाभिकंखे' आयाणगुत्ते 'वलया विमुक्के ।।
—त्ति बेमि ॥
१. वा (चू)। २. आइक्खितु मरिहति सो (चूपा) । ३. अमुच्छमाणो (चू)। ४. गंधेसु रसेसु (क, ख); रसेहिं गंधेहि (चू)।
५. मरणाहिकंखी (क, ख); मरण विपत्थए (च); व्या०वि०-द्विपदयो: सन्धिः -मरणं
+अभिकखे। ६. माया विमुक्क (चूपा) ।
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तेरसमं अज्झयणं
आहत्तहीयं उक्खेव-पदं १. आहत्तहीयं तु पवेयइस्सं' णाणप्पगारं पुरिसस्स जात :
सतो य धम्म असतो य सीलं संति असंति करिस्सामि पाउं । सिस्स-दोस-गुण-पदं २. अहो य रातो य समुट्ठितेहिं तहागतेहि पडिलब्भ' धम्म ।
समाहिमाघातमजोसयंता सत्थारमेव फरुसं वयंति ।। ३. विसोहियं ते अणुकाहयंते जे या ऽऽतभावेण वियागरेज्जा। ___अट्ठाणिए 'होइ बहूगुणाणं" जे णाणसंकाए मुसं वदेज्जा" । ४. जे यावि२ पुट्ठा पलिउंचयंति आदाणमटुं खलु वंचयंति ।
असाहुणो ते इह साहुमाणी मायण्णिएहिति" अणंतघातं ॥
१. धिज्ज (चू)। २. पवेइयस्सं (ख)। ३. ° लंभ (चू)। ४. मभूसयंता (चू)। ५. ° मेव (चू)। ६. वा (चू)। ७. आत° (चू)। ८. वियागरेंति (चू)। ६. होति बहूणिवेसे (चूपा, वृपा); व्या० वि०
छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम् । १०. ° संकाइ (क)। ११. वदंति (चू)। १२. आवि (चू)। १३. आताण ° (क)। १४. ° एसिंति (क, ख); °एसंति (क्व) व्या०
वि०-द्विपदयोः सन्धिः-मायण्णिआ+ एहिति ।
३३२
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तेरसमं अभयणं (आहत्तहीयं )
६.
५. जे कोहणे होइ जगदृभासी' अद्धे' व से दंडपहं गहाय 'जे विग्गहिए अ णायभासी " ओवायकारी य हिरीमणे' य एतदिट्ठी " ७. से पेसले सुहुमे पुरिसजाते जच्चण्णिते बहुप असासिए जे तहच्ची" समे हु से ८. जे यावि अप्पं वसुमं " ति मंता संखाय वायं तवेण वाहं अहिए" ति मंता" ६. एगंत कूडेण तु से पलेइ ण विज्जई जे माणणट्टेण विउक्कसेज्जा वसुमण्णतरेण "
मद- परिहार- पदं
१. जगतट्ठे (चू); जयट्ठ २. वा पुणो ( चू, वृ) ।
३. अंधे (क, ख, वृ) |
४. धासति ( क्व ) ; धृष्यते ( वृ ) ।
१०. तहच्चा ( क, ख, वृ ) ।
११. सिमं (च्) । १२. अपरिक्ख ( 1 ) ।
विओसितं 'जे य" उदीरएज्जा । अविओसिते घासति पावकम्मी ॥ - ण से समे अझपत्ते ।
होइ
अमाइरूवे' ॥
१२४
१०. जे माह ' खत्तिए जाइए " वा जे पव्वइए" परदत्तभोई ११. ण तस जाती व कुलं व ताणं
तहुग्गपुत्ते" तह लेच्छवी " वा । 'गोतेण जे थब्भति माणवद्धे " ॥ णण्णत्थ विज्जाचरणं सुचिण्णं । णिक्खम्म से सेवइऽगारिकम्म" ण से पारए" होति विमोयणाए ॥
O
य
चेव
होइ
अपरिच्छ" कुज्जा ।
अण्णं जणं पस्सति" बिंबभूतं " ॥ मोणपदंसि गोते " । अबुझमाणे ||
५. जे विग्गहीए अन्नायभासी ( क, ख, वृ);
जे कोहणे होति उ णायभासी ( चूपा); • अन्नाभासी (क्व ) । अत्र 'अ नायभासी' इत्यस्य रूपान्तरं 'अन्नायभासी' इति जातम्, संभवतो लिपिदोषेणैव विपर्ययो २१ जातः । व्या० वि० - णातिभासी ।
२०
६. हिरीमते (चू ) ।
७. एगंतसड्ढी (वृपा) ।
८. अमारूवी (चू) ।
६. स उज्जुकारी (चू); सुउज्जुचारे (वृपा) ।
सुउज्जुयारे' । अपत्ते ॥
(क, चूपा; वृपा) । १३. सहिते त्ति (क, वृ); सहिउ ति ( ख ) । मत्ता ( क्व ) ; णच्चा (चू) ।
१४.
१५. पासइ ( ख ) ।
१६. चिंधभूतं (चूपा) ।
१७. य ( क ) ।
१८. गुत्ते ( क ) ; गोत्ते ( ख ) । १६. वसु पण्णऽण्णतरेण (चू) ।
जातिए खत्तिए (क); खत्तिय जायए (ख) तह उग्गपुत्ते (क, ख ) ।
२२. लेच्छए (क); लेच्छई (ख, वृ) ।
३३३
२३. पव्वईए (चू ) ।
२४. गोते ० ( क, ख ); गोत्ते ण जे थंभभिमाणबद्धे (वृ) ।
गारिअंगं (वृ); °ऽगारिकम्मं (वृपा ) |
२५.
२६. पारगो (वृ); पारके (चू) | २७. विमोक्ख • ( ) ।
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३३४
सूयगडो १
१२. णिक्किचणे' 'भिक्खु' सुलूहजीवी' जे गारवं' होइ सिलोगगामी' ।
आजीवमेयं तु अबुज्झमाणो पुणो-पुणो विप्परियासुवेति ॥ १३. जे भासवं भिक्खु सुसाहुवादी पडिहाणवं' होइ विसारए य ।
आगाढपण्णे 'सुय-भावियप्पा” अण्णं जणं पण्णसा परिहवेज्जा । १४. एवं ण से होति समाहिपत्ते जे पण्णसा भिक्खु" विउक्कसेज्जा ।
अहवा वि जे लाभमदावलित्ते अण्णं जणं खिसति बालपण्णे ।। १५. पण्णामदं चेव तवोमदं च णिण्णामए" गोयमदं च भिक्खू ।
___ आजीवगं चेव चउत्थमाहु से पंडिए उत्तमपोग्गले से । १६. एयाई मदाई विगिंच 'धीरा ताणि सेवंति'१५ सुधीरधम्मा।
ते सनगोतावगता६ महेसी उच्चं अगोतं च गति वयंति" ।। अणाणुगिद्ध-पदं १७. भिक्खू मुतच्चे" तह दिट्ठधम्मे 'गाम व णगरं व'२९ अणुप्पविस्सा।
से एसणं जाणमणेसणं च 'जो अण्णपाणे य'५२ अणाणुगिद्धे ।। धम्म-वागरण-विवेग-पदं १८. अरति रतिं च अभिभूय भिक्खू बहुजणे वा तह एगचारी।
एगंतमोणेण वियागरेज्जा एगस्स जंतो गतिरागती य ।।
१. निगिणेविया (च)। २. व्या० वि०-भिक्खू । ३. भिक्खू सलूह ° (क)। ४. व्या० वि०-अत्र वर्णलोपः-गारववं । ५. चू) नासौ शब्दो व्याख्यातोस्ति । ६. व्या० वि०-भिक्खू । ७. पणिधाण (च); पडिभाणवं (चूपा)। ८. सुवि० (ख, वृ)। ६. पण्णया (क्व)। १०. पण्णवं (ख)। ११. व्या० वि०-भिक्खू । १२. ° सेति (चू)।
१३. लाभमदेण मत्ते (चू); जातिमदेण मत्तो
(चूपा)। १४. तन्नामए (क)। १५. धीरे ण ताणि सेवेज्ज (क, चू) । १६. ० गोत्तावगया (क)। १७. अगोत्तं (क)। १८. उवेंति (ख)। १६. सुयच्चा (क); मुयच्चा (ख)। २०. कइ (चू)। २१. गामं च णगरं च (क, ख); गामे व णगरे व
२२. अण्णस्स पाणस्स (क, ख, व)।
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तेरसमं अज्झयणं (आहत्तहीयं )
१६. सयं समेच्चा अदुवा वि सोच्चा भासेज्ज जे गरहिता सणिदाणप्पओगा णताणि' २०. केसिंचि तक्काए' अबुज्झ भावं
आउस्स कालातियारं वघातं " २१. कम्मं च छंदं च विगिच धीरे
रूवेहिं लुप्पति भयावहेहि" २२. ण पूयणं चेव सिलोय " कामे " सब्वे अट्ठे परिवज्जयंते
निक्खेव - पदं
२३. 'आहत्तहीयं समुपेहमाणे जीवियंणो मरणाहिकंखे
१. ताणि ( क, ख ) | २. तक्काइ ( क ) । ३. खुड्डं (क) ।
४. अबुज्झमाणे (चू) ।
५. वघाते ( क ) । ६. तु (चू) ।
७. विविच ( क ) ।
5. ओ (क, ख ) ।
8. सुव्वते ( क ) ।
१०. पाव (वृ); आय • ११. भयारएहिं ( क ) ।
१२. महाया ( चु) । १३. व्या० वि० – सिलोयं ।
( वृपा) ।
धम्मं हितयं पयाणं ! सेवंति सुधीरधम्मा | खुद्द पि गच्छेज्ज असद्दहाणें । लद्बाणुमाणे य' परेसु अट्ठे ॥ विणएज्ज तु' सव्वतो' आतभाव" । विज्जं गहाय" तसथावरेहिं || पियमप्पियं कस्सइ" णो करेज्जा" I अणाइले" या अकसाइ इ १८१९ भिक्खू ॥
२३
सव्वेहिं पाणेहि णिहाय" दंडं । 'परिव्वज्जा वलया विमुक्के ॥ -त्ति बेमि ॥
१४. गामी ( क ); कामी ( ख ) । १५. कस्सति (क, चु) ।
१६. कहेज्जा (चू) |
१७. अणाउले (क, ख, वृ) ।
१८. व्या० वि० - अकसाई ।
३३५
१६. अकसाय ( क, ख ) ।
२०. आहत्तधिज्जं समुपेधमाणे (चू) ।
२१. विहाय ( क ); णिखिप्प (चू); 'णिहाय' अस्य
संस्कृतरूपं 'निहाय ' इति युज्यते । 'निधाय ' इत्यस्य 'परित्यज्य' इत्यर्थः कथं स्यात् ?
२२. ० कंखी (क, ख, वृ, चू) ।
२३. चरेज्ज मेधावी वलय-विप्पमुक्के (वृ); चरेज्ज मेधावी वलया विमुक्के (चू) ।
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बंभचेरवासे गंथ सिक्खापदं
१. गंथं विहाय इह' सिक्खमाणो उट्ठाय सुबंभचेरं वसेज्जा | ओवायकारी विणयं सुसिक्खे जे छेए' से विप्पमादं ण कुज्जा | दिया-पोतमपत्तजात्तं सावासगा पवितुं मण्णमागं । तमचाइयं तरुणमपत्त जायं ढंकादि अव्वत्तगमं ३. एवं तु 'सिक्खे वि अपुदुधम्मे णिस्सारं वुसिभं दियस्स छावं व अपत्तजातं हरिणं
२. जहा
४. ओसाणमिच्छे मणुए समाहिं अणोसिते ओभासमाणे दवियस्स वित्तं
५. जे ठाणओ" या " सयणासणे या
समिती गुत्तीय आयपणे
१. विधाय ( ) |
२. इति ( चुपा) ।
३. उत्थाय (चू) ।
४. छेगे (चू) ।
५. सवा० ( चू) ।
चउद्दसमं अज्झयणं गंथो
६. ० मपक्खगं वा (चू) ।
७. सेहं पि अधम्मं, निस्सारियं वुसिमं मन्न
माणा । (क, ख, वृ); ० णिस्सारं ० ( वृपा) । 5. व्या० वि० ण + अतकरे ।
हरेज्जा ॥ मण्णमाणो " । पावधम्मा अणेगे ॥
तक ति णच्चा | ण णिक्कसे बहिया आसुपण्णो ॥ परक्कमे यावि सुसाहुजुत्ते । वियागते" य पुढो वएज्जा |
६. चूण 'सद्दाणि सोच्चा' अयं पंचमः श्लोकः, 'जे ठाणओ या' असौ षष्ठः श्लोको वर्तते ।
१०. ठाण ( ) |
११. य (ख); दीर्घत्वम् ।
१२. य ( ख ) ।
१३. आसुपणे ( क ) । १४. ० रेति (चू) ।
३३६
व्या०
वि०- छन्दोदृष्ट्या
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चउदसमं अज्झणं (गंथो )
६. सद्दाणि सोच्चा अदु भेरवाणि fort भिक्खूण 'माय' कुज्जा"
बंभरवासे अणुसिट्ठि सहण - पदं ७. डहरेण वुड्ढे ऽणुसासिते तु सम्मं तय थिरतो णाभिगच्छ ८. विउट्टिते समयास अब्भुट्ठिताए" घडदासिए" वा ६. ण तेसु कुज्भे" ण य पव्वज्जा
तहा करिस्सं ति डिस्सुणेज्जा" १०. वर्णसि मूढस्स जहा अमूढा "
'तेणा वि" मज्भं इणमेव सेयं ११. 'अह तेण मूढेण अमूढगस्स
एतोमं तत्थ उदाहु वीरे*
बंभचेरवास-फल-पदं
१२. णेता जहा अंधकारंसि राओ से सुरिया अब्भुग्गमेणं
१. अणास ( ) |
२. व्या० वि० पमायं ।
३. पमायएज्जा (चू) ।
४. वा ( चु); व्या० दीर्घत्वम् ।
५. वितिगिछं (क, ख); व्या०
वितिगिच्छ ।
६. ऊ (क) 1
७० वा (वृ ।
८. तगं (चू) ।
६. सट्टे (वृ) ।
परिव्वज्जा |
अणासवे' तेसु कहं कहं वी" वितिगिच्छ' तिणे ॥
१०. व चोइते उ (क); उ चोइते य ( ख ) । ११. अच्चुट्ठिताए ( वृ ) ।
१२. व्या० वि० छन्दोदृष्ट्या ह्रस्वत्वम् । १३. ०रिणा ( क ) । १४. कुप्पे (चू) ।
रातिणिएणाऽवि समव्वणं । णिज्जंतए वावि अपारए 11 डहरेण वुड्ढेण ' ऽणुसासिते तु । अगारिणं" वा समयाणुसिद्वे || ण यावि किंची फरुसं वदेज्जा । सेयं खु मेयं ण पमाद" कुज्जा | मग्गाणुसासंति" हितं पयाणं । जं मे बुधा सम्मऽणु सासयति ॥ कायव्व पूया सविसेसजुत्ता । अणुगम्म 'अत्थं उवणेइ सम्मं ॥
मग्गं ण जाणाति अपस्समाणे । मग्गं वियाणाति पगासितंसि ॥
१५. ०णेत्ता (च्) ।
१६. व्या० वि० पमादं । १७. अमुडे (च्) ।
वि०- छन्दोदृष्ट्या १८. व्या० वि० - द्विपदयोः सन्धिः - मग्ग +
अणुसासंति ।
वि०- १९. तेणेव (क, च्) ।
२०. समणु ० (क); व्या० वि० द्विपदयोः
सन्धिः - सम्मं । अणुसासयति ।
२१. तेणावि (च्) ।
२२. व्या० वि० कायव्त्रा ।
३३७
२३. एवोai ( क ) ।
२४. धीरे (चू) ।
२५. अट्ठ उवर्णेति (चू)
२६. अपासमाणे (चू) |
२७. सूरियस (ख, चू); व्या० वि० - छन्दोदृष्ट्या दीर्घत्वम् ।
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सूयगडो १
१३. एवं तु सेहे वि अपुटुधम्मे धम्म ण जाणाति अबुज्झमाणे ।
से कोविए' जिणवयणेण पच्छा सूरोदए पासइ चक्खुणेव ।। १४. उड्ढे अहे यं तिरियं दिसासु 'तसा य जे थावर जे य" पाणा।
'सया जए तेसु परिव्वएज्जा' मणप्पओसं अविकंपमाणे ।। १५. कालेण पुच्छे समियं पयासु आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं ।
तं सोयकारी य पुढो पवेसे संखाइम केवलियं समाहि ॥ १६. अस्सि सुठिच्चा तिविहेण तायी एएसु या संति" णिरोधमाहु"।
ते एवमक्खंति तिलोगदंसी ण भुज्जमतं ति पमायसंग ।। १७. णिसम्म से भिक्ख समीहमद पडिभाणवं होति विसारदे य'१५ ॥
आदाणमट्ठी वोदाण-मोणं उवेच्च 'सुद्धेण उवेइ मोक्खं ॥ बंभचेरवासे लद्धगंथस्स कायव्व-पदं १८. संखाए“ धम्मं च वियागरंति बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति ।
ते पारगा दोण्ह विमोयणाए संसोधियं पण्हमुदाहरंति ।। १६. ‘णो छादए णो वि य लूसएज्जा'२० माणं ण सेवेज्ज 'पगासणं च ।
ण यावि पण्णे परिहास कुज्जा ‘ण याऽऽसिसावाद" वियागरेज्जा ।। २०. भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे ण णिव्वहे मंतपएण गोयं ।
ण किंचिमिच्छे७ मणुए पयासुं असाहुधम्माणि ण संवएज्जा ।
१. कोवितो (च)।
१६. आयाणअट्ठी (ख); व्या० वि०-मकारः २. हस्तलिखितवृत्तौ-य ।
अलाक्षणिकः। ३. तिरिया (च)।
१७. सुद्धे ण उवेति मारं (चू, वृग)। ४. व्या० वि०-थावरा।
१८. संखाय (क, चूपा)। ५. जे थावरा जे य तसा य (च)। १६. संमोहिया (चू, वृपा)। ६. सदा जतो तसि परक्कमतो (च)। २०. णो छादएज्जा ण य लूसिता वा (चू)। ७ समितं (क)।
२१. पगासए वा (चू)। ८ X (क)।
२२. व्या० वि०-परिहासं । ६. सखाणिमं (चू)।
२३. ण यासियावाय (ख); व्या० वि०१०. व्या० वि०-संती।
आसिसावाद। ११. निरोह ° (क, ख)।
२४. वियाकरेज्जा (चू)। १२. भूय एतं (चू)।
२५. ° संकाइ (क, ख)। १३. व्या० वि० - भिवखू ।
२६. गुत्तं (क)। १४. समीहिय, (ख,व); व्या० वि०-समीक्ष्य- २७. कित्ति (च)। मकार: अलाक्षणिकः ।
२८. संठवेज्जा (चू); संधएज्जा (चूपा)। १५. विसारतेता (क)।
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उस अज्झणं (गंथो)
२१. हासं पिणो संधए' पावधम्मे'
णो तुच्छ णो य' विकत्थ एज्जा' २२. संकेज्ज 'या संकितभाव" भिक्खू
ओए तहिय फरुसं वियाणें । अणाइले' या 'अकसाई' भिक्ख' ।। विभज्जवायं च वियागरेज्जा" । भासादुगं धम्मसमुट्ठितेहिं वियागरेज्जा समयाऽासुपण्णं" ।। २३. अणुगच्छमाणे वितहं ऽभिजाणे" तहा तहा साहु" अकक्कसेणं । कत्थई" भास" विहिंसएज्जा णिरुद्धगं वावि ण दीहएज्जा | २४. समालवेज्जा पडिपुण्णभासी णिसामिया " समियाअट्टदंसी" । आणा सिद्धं वयणं भिजुंजे" अभिसंघए" पावविवेग भिक्खू || २५. अहाबुइयाई सुसिक्खज्जा 'जएज्ज या णाइवेलं वएज्जा । से जाणइ भासिउं तं समाहिं || 'णो सुत्तमत्थं च करेज्ज अण्णं २६ । सुयं च ' सम्मं पडिवादएज्जा" | धम्मं च जे विदति तत्थ तत्थ " | से अरिहइ भासिउं तं समाहिं ||
से दिट्टिमं दिट्ठि ण लूसएज्जा २६. अलूसए णो पच्छण्णभासी सत्थारभत्ती अणुवीचि वायं २७. से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च आज्जवक्के कुसले वियत्ते
- ति बेमि ॥
१. संधइ ( ख ) ।
२. ० धम्मं (चू) |
३. तहितं ( क ); तहीयं (चू ) | ४. भिजणे (चू) ।
चुपा, वृपा); पर्कथएज्जा ( चुग ) ।
५. व (क) ।
२०. सुद्ध (क, ख ) ।
६. पकत्य एज्जा ( चू) विकयएज्जा ( क, ख, २१. भिउंजे ( क, ख ) ।
२२. कखेज्ज या ( चू) ।
२३. व्या० वि० – पावविवेगं ।
१६. कुब्वइ (क); कत्थई ( ख ) । १७. व्या० वि० -भासं ।
११. वितागरिज्जा ( क ); वियाकरेज्जा (चू ) | १२. धम्ममुव ० (ख); सम्मसमु° (च) | १३. समया सुपणे (वृ) ।
१४. तिजाणे ( क ) ; विजाणे ( ख ) ।
१५. व्या०वि० – साहू |
१८. णिसामियं (चू ) । १६. सम्मिया ( क ) ।
o
७. अणाउले ( ख ) ।
८. अकमाए ( वृ); व्या० वि० - अकसाई |
६. अविरुद्धसेवी (चू) |
१०. वोसंकितभाव (चू); व्या० वि० - असं. २६. ०करेज्ज ताती (क,
कितभावे ।
२४. जज्जसु (चू) ।
२५. व्या० वि० - दिट्ठि |
ख ) ; णो सुत्तमण्णं च करेज्ज ताई (वृ); णो सुत्तमत्थं • ( चू, वृपा) ।
२७. ० वीति ( क ) ।
२८. सोउं (चू) ।
२६. धम्मं पडिवाययंति ( ख ) ।
३०. तत्था ( क ) ।
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पण्णरसमं अज्झयणं
जमईए अणेलिस-पदं १. जमतोतं पडुप्पण्णं आगमिस्सं च णायओ' ।
सव्वं मण्णति 'तं ताई'' दंसणावरणंतए । २. अंतए वितिगिच्छाए' से जाणइ अणेलिसं। ___अणेलिसस्स अक्खाया ण से होइ तहि तहिं । ३. तहिं तहिं सुयक्खायं से य सच्चे सुआहिए।
सदा सच्चेण संपण्णे मेत्ति भूतेसु कप्पए । ४. भूतेसु ण विरुज्झेज्जा एस धम्मे वुसीमओ।
वसीम जगं परिण्णाय, अस्सि जीवियभावणा ।। ५. भावणाजोगसुद्धप्पा जले णावा व आहिया । _णावा व तीरसंपण्णा" सव्वदुक्खा तिउट्टति ।। ६. तिउट्टती९ उ मेहावी जाणं लोगंसि२ पावगं ।
तुटुंति" पावकम्माणि णवं कम्ममकुव्वओ ।।
१. नातओ (क); जाणति (चू)। २. मेधावी (चू)। ३. ° गिछाए (क)। ४. संजाणति (चू)। ५. अगलिसो (चू)। ६. भूतेहिं (क)। ७. भूतेहिं (क)।
८. बुसिमं (क); साहू (ख)। ६. परिणाए (चू)। १०. ° संपत्ता (क्व)। ११. अतिउट्टती १२. लोगस्स (च)। १३. खिज्जति (चू); अतिवटैंति (चूपा)।
३४०
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पण्णरसमं अज्झयणं (जमईए)
३४१
११.
७. अकुव्वओ णवं णत्थि कम्म णाम विजाणतो।
णच्चाण' से महावीरे जे ण जाईण मिज्जती ।। ८. ण मिज्जती महावीरे जस्स णत्थि पुरेकर्ड।
वाऊ व जालमच्चेइ 'पिया लोगंसि" इथिओ ।। ६. इथिओ जे ण सेवंति आदिमोक्खा हु ते जणा।
ते जणा बंधणुम्मुक्का णावकखंति जीवितं ।। १०. 'जीवितं पिटुओ० किच्चा अंतं पावंति कम्मुणं"।
कम्मुणा संमुहीभूता२ जे मग्गमणुसासति ।। 'अणुसासणं पुढो पाणी वसुमं पूयणा सते । अणासते जते दंते'१३ दढे आरतमेहुणे ।। 'णीवारे व ण लीएज्जा'१४ छिण्णसोते अणाइले"।
अणाइले सदा दंते संधि पत्ते अणेलिसं ।। १३. अणेलिसस्स खेयण्ण६ ण विरुज्झज्ज केणइ ।
मणसा वयसा चेव कायसा चेव चक्खुमं ॥ १४. 'से हु चक्खू मणुस्साणं जे कंखाए य अंतए ।
___ अंतेण खुरो वहती चक्कं अंतेण लोट्टति ।। १५. अंताणि धीरा सेवंति तेण अंतकरा इहं।
इह माणुस्सए ठाणे धम्ममाराहिउंर णरा ।।
१२.
१. विजाणति (ख, वृ)। २. विन्नाय (ख, वृ)। ३. व्या०वि०-जायइजाई । ४. मिज्जति (क); मज्जती (चू)। ५. मज्जते (चू); भिज्जति (वृपा) । ६. परेरयो (चू)। ७. वाउ व्व (ख)। ८. जाल अचेति (चू)। ६. पियो लोगस्स (चू)। १०. अतीतं पिच्छतो (चू)। ११. कम्मुणा (क, ख, वृपा)। १२. संमुहब्भूतो (चू)। १३. अणुसासति पुढो पाणे,
सिमं पूयणाऽऽसंसति । अणासए सदा दंते (चू); °अणासवे सदा
दंते (चूपा)। १४. णीवारे य° (क); णीयारे व ण लिज्जेजा
(चूपा)। १५. अणाविले (ख); अणाउले (चूपा, वृपा)। १६. खेतण्णे (चू)। १७. केणयि (चू)। १८. अंतए (चू)। १६. °जं कंखाउ अंतए (क); से चक्खु ___लोगम्सिध, जं कंखाय करेति अंतगं (चू)। २२. लोट्ठति (क्व)। २१. ° माराहगा (चू)।
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सूयगडो १
१६. णिट्टितट्ठा व देवा व उत्तरीए त्ति 'मे सुतं''।
सुतं च मेतमेगेसि अमणुस्सेसु णो तहा ।। १७. अंतं करेंति दुक्खाणं इहमेगेसि आहितं ।
आघातं पुण एसि दुल्लभेऽयं समुस्सए । इतो विद्धंसमाणस्स पुणो 'संबोहि दुल्लभा"। 'दुल्लभाओ तहच्चाओ जे धम्मटुं वियागरे । जे धम्म सुद्धमक्खंति पडिपुण्णमणेलिसं । अणेलिसस्स जं ठाणं तस्स जम्मकहा कुतो' ? | कुतो कयाइ मेहावी उप्पज्जति तथागता ? ।
तथागता अपडिण्णा चक्खू लोगस्सणुत्तरा। २१. अणुत्तरे य ठाणे से कासवेण पवेदिते ।
जं किच्चा णिव्वुडा" एगे णिटुं पावेंति पंडिया । २२. पंडिए वीरियं लद्धं णिग्घायाय पवत्तगं" ।
धुणे पुवकडं२ कम्मं णवं चावि ण कुव्वइ ।। २३. ण कुव्वइ महावीरे अणुपुव्वकडं रयं ।
रयसा संमुही भूते कम्मं हेच्चाण जं मतं ।। २४. जं मतं सव्वसाहूणं तं 'मतं सल्लगत्तणं' ।
साहइत्ताण तं तिण्णा देवा वा अविसु ते॥ २५. अभविसु पुरा वीरा५ आगमिस्सा वि सुव्वया। दुण्णिबोहस्स मग्गस्स अंतं पाउकरा तिण्ण" ।।
-त्ति बेमि ॥
१. इमं सुतं (क, ख)।
६. °त्तरं (क); अत्तस्स (चू)। २. व्या० वि०-संबोही।
१०. णिव्वुता (चू)। ३. बोही सुदुल्लहा (वृ)।
११. पव्वत्तए (चू)। ४. दूल्लभा य तधच्चा जे, धम्मदी विदितप- १२. ०कतं (च)। राऽपर। (चू)।
१३. भूता (ख, चू)। ५. कओ (ख)।
१४. मदं सल्लकत्तणं (क); सम्मुहुन्भुता (चूपा)। ६. कताई (क); कदायि (चू)।
१५. धीरा (क, ख)। ७. तहागया (क, ख)।
१६. तिण्णे (ख)। ८. तथागता य (चू)।
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सोलसमं अज्झयणं
गाहा उक्खेव-पदं १. अहाह भगवं-एवं से दंते दविए वोसट्टकाए त्ति वच्चे..---माहणे त्ति' वा, समणे
त्ति वा, भिक्खू त्ति वा, णिग्गंथे त्ति का॥ २. पडिआह'-भंते ! कह दंते दविए वोसट्टकाए त्ति वच्चे- माहणे त्ति वा ?
समणे त्ति वा ? भिक्खू त्ति वा ? णिग्गंथे त्ति वा ? तं 'णो बूहि" मह का माहण-पदं ३. इतिविरतसव्वपावकम्मे पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुण्ण-परपरिवाद
अरतिरति-मायामोस-'मिच्छादसणसल्ले विरते'' समिए सहिए सया जए, णो
कुज्झे णो माणी "माहणे" त्ति वच्चे ॥ समण-पदं ४. एत्थ वि समणे अणिस्सिए अणिदाणे आदाणं च अतिवायं च 'मुसावायं च" बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोहं च पेज्जं च दोसं च - इच्चेव 'जतोजतो" आदाणाओ० अप्पणो पदोसहेऊ? 'ततो-ततो'१२ आदाणाओ पुव्वं पडिविरते सिआ" दंते दविए वोसट्टकाए “समणे' त्ति वच्चे ।।
१. वुच्चे (क, ख)। २. इ (क) सर्वत्र । ३. °आहु (चू)। ४. कहं नु (ख)। ५. णे० (क, ख); ° ब्रूहि (चू) । ६. विरए सव्वपावकम्मेहिं (ख)। ७. सल्लविरते (ख, वृ) ।
८. x (चू)। ६. जातो जातो (चु)। १०. आदाणतो (क)। ११. ° हेतुं (क)। १२. तातो तातो (चू)। १३. पाणाइवायाओ (क, ख); भवति (चू)।
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सूयगडो १ भिक्खु-पदं ५. एत्थ वि भिक्खू 'अणुण्णते णावणते" दंते दविए वोसटकाए संविधुणीय विरूव.
रूवे परीसहोवसग्गे अज्झप्पजोगसुद्धादाणे उवट्ठिए ठिअप्पा संखाए परदत्तभोई
"भिक्खू" त्ति वच्चे ॥ णिग्गंथ-पदं
एत्थ वि णिग्गंथे एगे एगविद् बुद्धे संछिण्णसोए सुसंजए सुसमिए सुसामाइए आतप्पवादपत्ते विऊ दुहओ वि सोयपलिछिण्णे णो पूयासक्कारलाभट्ठी धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिवण्णे समियं चरे दंते दविए वोसटकाए “णिग्गंथे" त्ति वच्चे । 'से एवमेव जाणह जमहं भयंतारो' ।
- त्ति बेमि ॥ ग्रन्थ परिमाण कुल अक्षर २४३१७ अनुष्टप श्लोक ७५६ अक्षर २६
१. अणुण्णते विणीए नामए (क, ख); अणुण्णत्ते ५. आयवायपत्ते (वृ) ।
नामए (वृ); अणुण्णए नावणए महेसी ६. सोतपलिच्छण्णे (चू)। (उत्तरज्झयणं २१।२०); अणुन्नए नावणए ७. पूयणट्ठी (चू)। (दसवेआलियं ५।१११३)।
८. समयं (वृ)। २. शुद्धात्मा शुद्धद्रव्यभूतः (वृ)।
६. विज्ज (चू)। ३. एगतिए विदू (चूपा); एगंतविदू (वृपा)। १०. सेवमायाणधभयंतारो (चू)। ४. छिन्नसोते (चू)।
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बीओ सुयक्खंधो पढमं अज्झयणं
पोंडरीए पउमवरपोंडरीय-पदं १. सुयं मे आउसं ! तेणं' भगवया एवमक्खायं-इह खलु पोंडरीए णामज्झयणे ।
तस्स णं अयम? पण्णत्ते-से जहाणामए पोक्खरणी' सिया बहुउदगा बहसेया
बहुपुक्खला लद्धट्ठा पोंडरीकिणी पासादिया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ।। २. तीसे णं पोक्खरणीए तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहि-तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया
बुइया-अणुपुवट्ठिया' ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता
'पासादिया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ॥ ३. तीसे णं पोक्खरणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरीए१२ बुइए
अणुपुवट्ठिए ऊसिए रुइले वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादिए 'दरिस
णीए अभिरूवे ° पडिरूवे ॥ ४. सव्वावंति च णं तीसे पोक्खरणोए तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहि-तहिं बहवे पउमवर
पोंडरीया बुइया-अणुपुव्वट्ठिया ऊसिया रुइला" 'वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादिया दरिसणीया अभिरूवा ° पडिरूवा ।।
१. तेण (चू)।
८. दरिसणिज्जा (चू)। २. इहं (चू)।
६. ° पुन्बु ° (क)। ३. पुक्खरिणी (क, ख)।
१०. उस्सिता (चू)। ४. बहूदगा (चू)।
११. जाव पडिरूवा (क)। ५. X (चू)।
१२. पउमे (चू)। ६. पोंडरिगिणी (क, ख); पोंडरीगिणी (चू)। १३. सं० पा०—पासादिए जाव पडिरूवे। ७. पासादीया (ख, वृपा)।
१४. सं० पा०--रुइला जाव पडिरूवा।
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सूयगडो २
५. सव्वावंति च णं तीसे पोक्खरणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरीए
बुइए-अणुपुव्वट्ठिए' ऊसिए रुइले वण्णमंते गंधमते रसमंते फासमंते पासादिए
दरिसणीए अभिरूवे ° पडिरूवे ॥ पढम-पुरिसजात-पदं ६. अह पुरिसे पुरत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणि', तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुवट्ठियं ऊसियं' 'रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं° पडिरूवं । तए णं से पुरिसे एवं वयासी-अहमंसि पुरिसे 'देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू"। अहमेतं पउमवरपोंडरीयं 'उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा' से परिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणि । जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए ‘णो
पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे-पढमे पुरिसजाते ।। दोच्च-पुरिसजात-पदं ७. अहावरे दोच्चे पुरिसजाते-अह पुरिसे दक्खिणाओ दिसाओ आगम्म तं
पुक्खरणि, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुवट्टियं 'ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं ।
१. सं० पा०-अणपुवट्टिए जाव पडिरूवे । मग्गस्स गइपरकमण्ण (व)। २. पुक्खरिणि (क, ख); चूणिसम्मते पाठे सर्व- ६. उण्णिक्खिस्सामि त्ति कटु इति वच्चा
त्रापि 'पोखरणी' अथवा 'पुक्खरणी' एवं (क, ख); उक्खेस्सामि त्ति कटु इति वच्चा रकारयुक्तः पाठो विद्यते । आदर्शयोः सर्वत्र (ख); उण्णेक्केस्समिति ° (चू)। अत्र 'इति 'पूक्खरिणी' एवं रिकारयुक्तः पाठो विद्यते । कटु' इति पदमतिरिक्तं संभाव्यते । चूर्णिकृता यद्यपि संस्कृतदृष्ट्यासी पाठः समीचीन:
नैतद् व्याख्यातम् । वृत्तिकारस्य सम्मुखे प्रतिभाति किन्तु प्राकृतदृष्ट्या रकारयुक्तः उक्तपदयुक्त आदर्शः आसीत् तेन वृत्तिकृता तद् पाठः प्राचीनोस्ति ।
व्याख्यातम्, किन्तु व्याख्यायां काचिज्ज३. सं० पा०---ऊसियं जाव पडिरूवं ।
टिलतैव प्रतीयते । ४. मंसी (चू)।
७. सऽग्गे, अउत्तरा विसण्णे-पढमे पूरिसे ५. खेयन्ने कुसले पंडिते वियत्ते मेहावी अबाले (च) सर्वत्र । ०तीसे सेयंसि णि [वि?]
मग्गत्थे मग्गविऊ मग्गस्स गइपरक्कमण्ण सण्णे (व)। (क, ख); कुसले पंडिते धम्मण्णू देसकालण्णू ८. ° जाए (चू) । खेतण्णे वियत्ते मेधावी अबाले मग्गत्थे मग्गणे ह. सं० पा०-अणपूवट्रियं जाव पडिरूवं ।
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पढम अज्झयणं (पोंडरीए)
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तं च एत्थ' एगं पुरिसजायं पासइ पहीणतीरं, अपत्तपउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए ‘णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसणं । तए णं से पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी-अहो ! णं इमे पुरिसे 'अदेसकालण्णे अखेत्तण्णे अकुसले अपंडिए अविअत्ते अमेधावी बाले णो मग्गणे णो मग्गविदू णो मग्गस्स गति-आगतिण्णे णो परक्कमण्ण', जणं एस पुरिसे “अहं देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले' 'पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू, अहमेयं° पउमवरपोंडरीयं उण्णि क्खिस्सामि" णो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एस पुरिसे मण्णे। अहमंसि पुरिसे देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू, अहमेत पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पोक्खरणि । जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, 'अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि
विसण्णे-दोच्चे पुरिसजाते । तच्च-पुरिसजात-पदं ८. अहावरे तच्चे पुरिसजाते - अह पुरिसे पच्चत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं
पोक्खरणि, तीसे पोक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुवट्ठियं 'ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं° पडिरूवं । ते तत्थ दोण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए', 'अंतरा पोक्खरणीए ° सेयंसि विसण्णे ।
१. एत्थं (क); तत्थ (ख)।
क्रमः पूर्वसूत्रात् भिन्नोस्ति । २. निसणं (ख);सऽग्गे, अउत्तरा विसण्णं (चू)। ४. अत्र ८,९,१० सूत्रानुसारेण 'एवं मण्णे' ३. अखेयण्णे अकुसले अपंडिए अवियत्ते अमेधावी इति पाठो युज्यते ।
बाले णो मग्गत्थे णो मम्गविऊ णो मग्गस्स ५. सं० पा०--कूसले जाव पउमवरपोंडरीयं । गतिपरक्कमण्णू (क, ख); अखेयण्णे अकुसले ६. बुच्चा (ख)। अपंडिए अवियत्ते अमेधावी बाले णो मग्गत्थे ७. अंतरा सेयंसि निसण्णे (क, ख) । णो मग्गण्ण णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू ८. सं० पाo..-अणुपुवट्टियं जाव पडिरूवं । (व)। वृत्तौ प्रथमपुरुषजातसूत्रे 'कुसले ६. सं० पा०--णो पाराए जाव सेयंसि । पंडिए खेयन्ने' असौ क्रमो विद्यते । प्रस्तुत १०. निसण्णे (क, ख) । सूत्रे च 'अखेयन्ने अकुसले अपंडिए' असौ
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सूयगडो २ तए णं से पुरिसे एवं वयासी-अहो ! णं इमे परिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला णो मग्गण्णा णो मग्गविदू णो मग्गस्स गति-आगतिण्णा णो परक्कमण्ण, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे -"अम्हे तं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो” णो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मण्णे।। अहमंसि पुरिसे देसकालणे खेत्तण्णे कुसले पंडिए विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पोक्खरणि । जावजावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंत उदए महंते सेए' 'पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए ° सेयंसि
विसण्णे-तच्चे पुरिसजाते ।। चउत्थ-पुरिसजात-पदं ६. अहावरे चउत्थे पुरिसजाते-अह पुरिसे उत्तराओ दिसाओ आगम्म तं पोक्खरणिं,
तीसे पोक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति 'तं मह एगं पउमवरपोंडरोयं अणुपव्वट्रियं' 'ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंत रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। ते तत्थ तिण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते 'पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए ° सेयंसि विसण्णे। तए णं से पुरिसे एवं वयासी–अहो ! णं इमे पुरिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा' अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला णो मग्गण्णा णो मग्गविद् णो मग्गस्स गति-आगतिण्णा णो परक्कमण्ण, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे—“अम्हे एतं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो” णो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मण्णे। अहमंसि परिसे देसकालण्णे खेत्तण्णे 'कुसले पंडिए विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे° परक्कमण्ण, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पोक्खरणि । जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए 'पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे-- चउत्थे पुरिसजाते।
१. सं० पा०-सेए जाव सेयंसि । २. X (क, ख)। ३. सं० पा०-अणुपुवट्ठियं जाव पडिरूवं । ४. सं० पा०-अपत्ते जाव सेयंसि ।
५. सं० पा०-अखेत्तण्णा जाव परक्कमण्णू । ६. सं० पा०-खेत्तण्णे जाव परक्कमण्णू । ७. सं० पा०-सेए जाव विसण्णे।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
३४६ भिक्खु-पदं १०. अह भिक्खू लूहे तोरट्ठी देसकालण्णे खेत्तण्णे' 'कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी
अबाले मग्गण्णे मग्गविद् मग्गस्स गति-आगतिण्णे° परक्कमण्णू अण्णतरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगम्म तं पोक्खरणिं, तीसे पोक्खरणोए तोरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं' 'अणुपुवट्टियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं । ते तत्थ चत्तारि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते' 'पउमवरपोंडरीयं, णो हव्वाए णो पाराए °, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे। तए णं से भिक्खू एवं वयासी-अहो ! णं इमे पुरिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा' 'अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला णो मग्गण्णा णो मग्गविद् णो मग्गस्स गति-आगतिण्णा णो° परक्कमण्णू, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे''अम्हे एतं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो” णो य खलु एतं पउमवरपोंडरीयं एवं उण्णिक्खेयव्वं जहा णं एते पुरिसा मण्णे। अहमंसि भिक्खू लू हे तीरट्ठी देसकालण्णे खेत्तण्णे 'कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गणे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे° परक्कमण्ण, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा से भिक्खू णो अभिक्कमे तं पोक्खरणि, तीसे पोक्खरणीए तीरं ठिच्चा सदं कुज्जा-'उप्पयाहि खलु
भो ! पउमवरपोंडरीया ! उप्पयाहि । अह से उप्पतिते पउमवरपोंडरीए॥ पुव्वुत्त-णातस्स-अट्ठ-पदं ११. किट्टिए णाए समणाउसो ! अट्ठ पुण से जाणितव्वे भवति ।
भंतेति ! 'णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य समणं भगवं महावीर" वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-किट्टिए णाए भगवया" अटुं पुण से ण जाणामो।
१. सं० पा०-खेत्तण्णे जाव परक्कमण्ण । ८. आजाणि° (च)। २. सं० पा०--उमवरपोंडरीय जाव पडिरूवं। ६. समणं भगवं महावीरं निग्गंथा य निग्गंथीओ ३. सं० पा०-अपत्ते जाव अंतरा।
य (क, ख)। ४. सं० पा०-अखेत्तण्णा जाव परक्कमण्णू । १०. समणाउसो (क, ख); प्रयुक्ताप्रयुक्तप्रतिषु ५. सं० पा०—खेत्तण्णे जाव परक्कमण्णू । 'समणाउसो' इति पाठो लभ्यते, किन्तु ६. कटु इति वच्चा (क); कटु इति वुच्चा अर्थविचारणयासौ न सम्यक् प्रतिभाति ।
चूर्णी --'से किट्टिते भगवता', वृत्तौ च७. उप्पदाहि खलु भो पउ मवर ! उप्पदाहि खलु 'ज्ञातं भगवता' इति लभ्यते तेनात्र मूले
भो पउमवर ! (चू); ऊर्ध्वमुत्पततोत्पतत 'भगवया' इति पाठः स्वीकृतः । (व)।
११. आयाणामो (चू)।
(ख)।
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सूयगडो २
समणाउसोति ! समणे भगवं महावीरे ते' बहवे णिग्गंथे' य णिग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासो-हंता समणाउसो ! आइक्खामि विभयामि' किट्टेमि
पवेदेमि सअटुं सहेउं सणिमित्तं भुज्जो भुज्जो उवदंसेमि ।। १२. से बेमि-लोयं च खलु मए अप्पाहटु' समणाउसो ! सा पोक्खरणी बुइया।
कम्म च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से उदए बुइए। कामभोगे य खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से सेए बुइए। जणजाणवए' च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! ते बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया । रायाणं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइए। अण्णउत्थिया य खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! ते चत्तारि परिसजाया बुइया। धम्म च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से भिक्खू बुइए । धम्मतित्थं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से तीरे बुइए । धम्मकहं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! से सद्दे बुइए । णिव्वाणं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से उप्पाए बुइए।
एवमेयं च खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से एवमेयं बुइयं । तज्जीव-तस्सरीर-वादि-पदं १३. इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणस्सा भवंति
अणपूवेणं लोग उववण्णा", तं जहा-आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया" वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति --- महाहिमवंत - मलय-मंदर-महिंदसारे" जाव" पसंतडिंबडमरं रज्ज पसाहेमाणे विहरति ।
१. ते य (ख)।
६. लोगत्तं (क, ख)। २. निग्गंथा (क)।
१०. उवउत्ता (क)। ३. विभावेमि (क, ख, व)। अत्र वत्तिकृता ११. उच्चागोत्ता (ख)।
'विभावयामि' इति व्याख्यातम, प्रत्योरपि १२. हुस्समता (क); रहस्समंता (क्व)। 'विभावेमि' पाठ उपलभ्यते. किन्त ६७ १३. महयाहिमवत-महंत (ओ० स०१४)। सूत्रस्य सदर्भ विभयामि' इति चणिगतपाठः १४. 'क' प्रती वृत्तौ च संक्षिप्तपाठो वर्तते।
चूर्णी राजवर्णको व्याख्यातोस्ति । 'ख' समीचीनोस्ति।
प्रतौ संक्षिप्तपाठस्य पूर्तीकृतपाठस्य च ४. सकारणं (चू)।
मिश्रणं जातम् । पूर्व राजवर्णकस्यौपपा५. आह१ (वृ); अप्पाहट्ट (वृपा)।
तिकानुसारी पाठो लिखितोस्ति ततश्च ६. X(क, ख)।
'रायवण्णओ जहा उववाइए जाव पसंतडिं७. ० वयं (क)।
बडमरं रज्ज पसाहेमाणे विहरति' । ८. संति एगतिया (क)।
१५. ओ० सू० १४ ।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
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१४. तस्स णं रण्णो परिसा भवति-उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा
इक्खागपत्ता, 'नागा नागपत्ता", कोरव्वा कोरव्वपत्ता, भटा भट्रपत्ता, माहणा माणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता।। तेसिं च णं एगइए सड्डी भवति । कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु गमणाए । 'तत्थ अण्णतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, 'वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते सुपण्णत्ते भवइ, तं जहा-उड्ढे पायतला, अहे केसग्गमत्थया, तिरियं तयपरियंते जीवे । एस 'आया पज्जवे कसिणे। एस जोवे जीवति, एस मए णो जीवति । सरीरे धरमाणे धरति, विणट्ठम्मि य णो धरति । एययंत जीवियं भवति । आदहणाए परेहिं णिज्जइ । अगणिझामिए सरीरे कवोतवण्णाणि अट्ठीणि भवंति । आसंदी
पंचमा पुरिसा गामं पच्चागच्छति । एवं असंते असंविज्जमाणे। १६. 'जेसिं तं" सूयक्खायं भवति-अण्णो भवइ जीवो अण्णं सरीरं, तम्हा, ते 'णो
एवं विपडिवेदेति अयमाउसो ! आया दीहे ति वा हस्से" ति वा । परिमंडले ति वा वट्टे ति वा तसे ति वा चउरसे ति वा आयते ति वा 'छलसे ति वा । किण्हे ति वा णीले ति वा लोहिए ति वा हालिद्दे ति वा सुक्किल्ले ति वा । सुब्भिगंधे ति वा दुब्भिगंधे ति वा । तित्ते ति वा कडुए ति वा कसाए ति वा अंबिले ति वा महुरे ति वा । कक्खडे ति वा मउए ति वा गरुए ति वा लहुए ति वा सोए ति वा उसिणे ति वा णिद्धे ति वा लुक्खे ति वा। एवं असंते असंविज्जमाणे ॥
.१ नाया नायपुत्ता (ख)।
सारेण निम्नपाठः कल्पितं शक्यते-जेसितं २. चूौँ केचिदन्येपि शब्दा व्याख्याताः । असंतो असंविज्जमाणे तेसि तं सुयक्खाय द्रष्टव्यमोवाइयं सू० २३ ।
भवति, जेसि पुण अण्णो° । चूर्णिगतपाठो ३. तत्थन्न ° (क, ख)।
मूले स्वीकृतः। ४. वयमेतेणं (क)।
६. व्या० वि०-जेसि त सुयक्खायं भवति५. मए (ख, वृ)।
अण्णो भवइ जीवो अण्ण सरीरं, ते णो एव ६. आयपज्जवे (क, ख)।
विपडिवेदेति, तम्हा (तस्मादप्येवाऽसु७. एतंत (क); एयंत (क्व) ।
अक्खातं--चू) इत्यन्वयः । ८. जेसि तं असंते असविज्जमाणे तेसिं तं १०. एवं नो (ख)। (क, ख); पुरोवतिसूत्रत्रयस्य (१६-१८) ११. ह्रस्से (क)। संदर्भसौ पाठोशद्धः प्रतिभाति, लिपिदोषेण १२. छलंसिए ति वा अट्रंसे ति वा (ख) । पाठपरिवर्तनं जातमिति प्रतीयते । वृत्ती १३. गुरुए (ख)। पाठस्य स्पष्टता नोपलभ्यते किन्तु व्याख्यानु
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सूयगडो २
१७. जेसि तं सुयक्खायं भवइ -अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, तम्हा ते णो एवं
उवलभंतिसे जहाणामए केइ पुरिसे कोसीओ असिं अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! असी, अयं कोसो। एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो'- अयमाउसो ! आया, 'अयं सरीरे"। से जहाणामए केइ पुरिसे मुंजाओ इसियं अभिणिव्बट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! मुंजे [इमा ?] इसिया। एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, 'अयं सरीरे । से जहाणामए केइ पुरिसे मंसाओ अट्ठि अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! मंसे, अयं अट्ठी । एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, अयं सरीरे। से जहाणामए केइ पुरिसे करतलाओ आमलक अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा -अयमाउसो ! करतले, अयं आमलए। एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो--अयमाउसो ! आया, अयं सरीरे। से जहाणामए केइ पुरिसे दहीओ णवणीयं अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! णवणीयं, अयं दही । एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, अयं ° सरीरे । से जहाणामए केइ पुरिसे तिलेहितो तेल्लं अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! तेल्लं, अयं पिण्णाए। एवमेव *णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, अयं ° सरीरे । से जहाणामए केइ पुरिसे इक्खूओं खोयरस अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! खोयरसे, अयं छोए । एवमेव णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, अयं° सरीरे । से जहाणामए केइ पुरिसे अरणीओ अग्गि अभिणिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जाअयमाउसो ! अरणी, अयं अग्गी । एवमेव 'णत्थि केइ पुरिसे अभिणिव्वट्टित्ता
१. केवि (क)। २. कोसओ (ख)। ३. उवदंसेइ (क, ख)। ४. इम सरीरं (ख)। । अयं असीया (क); इयं इसिया (ख)। ६. इदं सरीरं (ख) सर्वत्र ।
७. स० पा०-केइ जाव सरीरे । ८. सं० पा०–एवमेव जाव सरीरे । ६. उक्खूतो (क)। १०. खोत्त° (क); खोत ° (ख)। ११,१२. सं० पा०-एवमेव जाव सरीरे ।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
३५३ णं उवदंसेत्तारो-अयमाउसो ! आया, अयं सरोंरे । एवं असंते असंविज्ज
माण।। १८. जेसि तं सुयक्खायं भवइ, तं जहा -अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, तम्हा, तं मिच्छा।। १६. से हंता' हणह खणह छणह उहह पयह आलंपह विलुपह सहसक्कारेह विपरा
मुसह । एतावताव' जीवे, णत्थि परलोए ॥ २०. ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ
वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा । एवं ते विरूवरूवेहि कम्मसमारं
भेहिं विरूवरूवाई कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए ॥ २१. एवं एगे पागब्भिया णिक्खम्म मामगं धम्मं पण्णवेति । तं सद्दहमाणा तं पत्तिय
माणा तं रोएमाणा' साधु सुयक्खाते समणेति ! वा माहणेति वा। कामं खलु आउसो ! तुमं पूययामो', तं जहा-असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा 'वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा ।
तत्थेगे पूयणाए समाउटिंसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु॥ २२. पुवामेव तेसिं णायं भवइ-समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता
अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्मं णो करिस्सामो समुट्ठाए। ते" अप्पणा अप्पडिविरया भवंति । सयमाइयंति, अण्णे वि आइयाति, अण्णं पि आइयंतं समणुजाणंति । एवामेव ते इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा।। ते णो अप्पाणं समुच्छेदेति, णो परं समुच्छेदेति, णो अण्णाइं पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताइं समुच्छेदेति । पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता-इति । ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेहि विसण्णा । इति पढमे पुरिसजाए तज्जीवतस्सरीरिए" आहिए ॥
१. हंता तं (ख)।
वस्त्रगंधमाल्यालङ्करान् सूचयति द्रष्टव्यम्२. एतावता (ख)।
रायपसेणइयं सू० ८०२। ३. सुक्कडे (क, ख)।
१०. णिगायइंसु (क)। ४. समारभति (चू)।
११. व्या०वि०-आदौ 'पच्छा' इति अध्याहर्त५. रोयमाणा (क)।
व्यम् । ६,७. °त्ति (ख)।
१२. ° संजोगं (क, ख)। ८. पूययामि (ख)।
१३. कामभोगेसु (ख)। 8. गंधेण वा ४ (चू)। चतुःसंख्याङ्कः संभवतः १४. ० तच्छरीरए (क, ख)।
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सूयगडो २
पंचमहन्भूतवादि-पदं २३. अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहन्भूइए त्ति आहिज्जइ - इह खलु पाईणं वा
पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अणपव्वेणं' 'लोग उववण्णा, तं जहा- आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सवण्णा वेगे दवण्णा वेगे, सरूवा वेगे दुरूवा वेगे । तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति–महाहिमवंत-मलय
मंदर-महिंदसारे जाव' पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति ।। २४. तस्स णं रण्णो परिसा भवति-उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा
इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा
माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता॥ २५. तेसिं च णं एगइए सड्डी भवति । कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिसु
गमणाए । तत्थ अण्णतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो! जहा मे एस धम्मे सुयक्खाते ° सुपण्णत्ते भवति-इह खलु पंचमहन्भूया जेहिं णो' कज्जइ किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा, 'अवि अंतसो" तणमायमवि ।। तं च पदोद्देसेणं' पुढोभूतसमवायं जाणेज्जा, तं जहा -पुढवी एगे महब्भुते, आऊ दुच्चे महब्भूते, तेऊ तच्चे महब्भूते, वाऊ चउत्थे महब्भूते, आगासे पंचमे महब्भूते । इच्चेते पंच महन्भूया अणिम्मिया अणिम्माविया अकडा णो कित्तिमा ‘णो कडगा" अणादिया अणिधणा अवंझा अपुरोहिता सतता
सासया॥ २७. आयछटा पुण एगे एवमाहु-सतो णत्थि विणासो, असतो णत्थि संभवो ।
एताव ताव जीवकाए, एताव ताव अस्थिकाए, एताव ताव सव्वलोए, एतं
मुहं लोगस्स करणयाए, अवि अंतसो" तणमायमवि ।। २८. से किणं किणावेमाणे, हणं घायमाणे, पयं पयावेमाणे, अवि अंतसो पुरिसमवि
विक्किणित्ता घायइत्ता, 'एत्थं पि जाणाहि'२ णत्थित्थ दोसो ।।
१. सं० पा०--अणुपुवेणं जाव सुपण्णत्ते । २. ओ० सू० १४ । ३. अस्माकम् (वृ)। ४. अवि यंतसो (क); इति० (ख)। ५. पिद्देसेणं (क, ख)। ६. समवायं (चू)।
७. ततिए (क)। ८. अणिमेता (क)। ६. कत्तिमा (चू)। १०. x (चू)। ११. यंतसो (क)। १२. इत्थं पि जाणीहि (क); एस्थ वि जाण (च)।
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पढमं अभयणं (पोंडरीए)
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२६. ते णो एवं विप्पडवेदेति, तं जहा - किरिया इ वा' 'अकिरिया इ वा सुकडे इ वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इवा असिद्धी इ वा रिए इ वा अणिरए इ वा । ' एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाई कामभोगाई समारंभंति भोयणाए । ३०. एवं ते अणारिया विप्पडिवण्णा [ मामगं धम्मं पण्णवेति ? ] । तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुयक्खाते समणेति वा माहणे ति ! वा । कामं खलु आउसो ! तुमं पूययामो, तं जहा -- असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा । तत्थे पूणाए समाउसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु ॥
३१. पुव्वामेव तेसि णायं भवइ- समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्मं णो करिस्सामो समुट्ठाए ।
'अपणा अपडिवरिया भवंति । सयमाइयंति, अण्णे वि आइयावेंति अण्ण पिआइयंतं समणुजाणंति । एवामेव ते इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा |
ते णो अप्पाणं समुच्छेदेति णो परं समुच्छेदेंति, णो अण्णाई पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समुच्छेदेति । पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता :इति ते णो हव्वा णो पाराए, 'अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । दोच्चे पुरिसजाते पंचमहब्भूइए त्ति आहिए ||
ईसरकारणिय-पदं
३२. अहावरे तच्चे पुरिसजाते ईसरकारणिए त्ति आहिज्जइ - इह खलु पाईणं वा • पडणं वा उदीर्ण वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा - आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे 'दुरूवा वेगे । तेसि च णं मणुयाणं एगे राया भवति महाहिमवंत मलय-मंदर-महिंदसारे जाव' पसंतडिबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति ॥
I
१. सं० पा० - किरिया इ वा जाव अणिरए । २. एवमेव ( ख ) ।
३. प्रथमपुरुषप्रकरणे २१ सूत्रे वृतिकारेण - सांप्रतं तत्प्रज्ञापित शिष्यव्यापारमधिकृत्याह'तं सद्दहमाणा' इति संबन्धयोजना कृता सा अग्रिमेषु त्रिष्वपि पुरुषेषु तथैव युज्यते । यदि 'त सद्दहमाणा' इत्यादिपाठस्य कर्त्ता 'ते अणारिया विप्पडिवण्णा' स्यात् तदा 'साधु
सुक्खाते' इत्यादिपाठस्य संबन्धो न घटेत । ४. सं० पा०-पत्तियमाणा जाव इति । ५. व्या० वि० – आदी पच्छा' इति अध्याहर्तव्यम् ।
६. जाव विसणे ( क ) ।
७. सं० पा० – पाईणं वा जाव सुयक्खाते । ८. ओ० सू० १४ ।
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सूयगडो २
३३. तस्स णं रण्णो परिसा भवति-उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा
इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा
माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। ३४. तेसिं च णं एगइए सड्डी भवति। कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु
गमणाए । तत्थ अण्णतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो ! जहा मे एस धम्मे° सुयक्खाते सुपण्णत्ते भवतिइह खलु धम्मा पुरिसादिया' पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता' पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति-- से जहाणामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संवुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ। एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया परिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता' पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संवुड्डा' सरीरे अभिसमण्णागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ। एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया 'पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए वम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए 'पुढविसवुड्ढे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया" 'पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव ° अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए पुक्खरिणी सिया" 'पुढविजाया पुढविसंवुड्डा पुढविअभिसमण्णागया° पुढविमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया
१. व्या० वि०-पुरुषः-ईश्वरः ।
७. विम्मिए (ख)। २. 'पुरिससंभूता पुरिसअभिसमण्णागता' एते ८. सं० पा०-पुरिसादिया जाव अभिभूय । वाक्ये वृत्तौ न व्याख्याते।
९. सं० पा०-पुढविजाए जाव पुढविमेव । ३. वुड्ढे (क, वृ)।
१०. सं० पा०-पुरिसादिया जाव अभिभूय । ४. सं० पा०-पुरिसादिया जाव पुरिसमेव। ११. सं० पाo---सिया जाव पुढविमेव । ५. अभिसंवुड्ढा (क, ख); वुड्डा (वृ)। १२. सं० पा०-पुरिसादिया जा व अभिभूय । ६. सं० पा०--पुरिसादिया जाब पुरिसमेव ।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
३५७ 'पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव ° अभिमूय चिट्ठति । से जहाणामए उदगपुक्खले सिया' उदगजाए उदगसंवुड्ढे उदगअभिसमण्णागए ° उदगमेव अभिभूय चिट्ठइ । एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया' •पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। "से जहाणामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए उदगसंवुड्ढे उदगअभिसमण्णागए उदगमेव अभिभूय चिट्ठइ। एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससभूता पुरिसपज्जोतिता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव
अभिभूय चिट्ठति ॥ ३५. जंपि य इमं समणाणं णिग्गंथाणं उद्दिवं पणीयं विअंजियं वालसंग
गणिपिडगं, तं जहा—आयारो' 'सूयगडो, ठाणं, समवाओ, वियाहपण्णत्ती, णायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं °, दिट्ठिवाओ-सव्वमेयं मिच्छा, ण एतं तहियं, ण एतं आहातहियं। इमं सच्चं इमं तहियं इमं आहातहियं ते एवं सणं कव्वति, ते एवं सण्णं संठवेंति, ते एवं सण्णं सोवट्ठवयंति । तमेवं ते तज्जातियं दुक्खं णातिवटुंति',
सउणी पंजरं जहा ॥ ३६. ते णो विप्पडिवेदेति तं जहा-किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुकडे इ वा
दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा णिरए इ वा ° अणिरए इ वा। एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमा
रंभेहिं विरूवरूवाइं कामभोगाई समारंभंति भोयणाए ।। ३७. एवं ते अणारिया विप्पडिवण्णा [मामगं धम्मं पण्णवेति ?] | "तं सद्दहमाणा
तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुयक्खाते समणेति ! वा माहणेति ! वा। काम खलु आउसो ! तुम पूययामो, तं जहा --असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणण वा। तत्थेगे पूयणाए समाउटिंसु, तत्थेगे पूयणाए णिकाइंसु ॥
१. सं० पा०-सिया जाव उदगमेव । २. सं० पा०-पूरिसादिया जाव चिट्ठति । ३. सं० पा०-एवं उदगबुब्बुए भणियब्वे । ४. पणियं (क, ख)। ५. सं०पा०-आयारो जाव दिदिवाओ।
६. ण तिउटटंति (वपा)। ७. स० पा०-किरिया इ वा जाव अणिरए। ८. एवमेव (क, ख)। है. सं० पा०-एवं सद्दमाणा जाव इति ।
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सूयगडो २ ३८. पुवामेव तेसिं णायं भवइ-समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता
अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्म णो करिस्सामो समुट्ठाए। ते' अप्पणा अप्पडिविरया भवंति । सयमाइयंति, अण्णे वि आइयाति, अण्णं पि आइयंतं समणुजाणंति । एवामेव ते इत्थिकामभोगेहि मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा। ते णो अप्पाणं समुच्छेदेंति, णो परं समुच्छेदेति, णो अण्णाइं पाणाई भूयाइ जीवाइं सत्ताइं समुच्छेदेति । पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता --- इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा ।
तच्चे पुरिसजाते ईसरकारणिए त्ति आहिए ।। णियतिवादि-पदं ३६. अहावरे चउत्थे पुरिसजाते णियतिवाइए त्ति आहिज्जइ -इह खलु पाईणं वा'
•पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा-आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे । तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति - महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे
जाव' पसंतडिबडमरं रज्ज पसाहेमाणे विहरति ।। ४०. तस्स णं रण्णो परिसा भवति-उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा
इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा
माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता ॥ ४१. तेसि च णं एगइए सड्डी भवति । कामं तं समणा वा माहणा वा संपहारिंसु
गमणाए । तत्थ अण्णतरेणं धम्मेणं पण्णत्तारो, वयं इमेणं धम्मेणं पण्णवइस्सामो। से एवमायाणह भयंतारो ! जहा मे एस धम्मे ° सुयक्खाते सुपण्णत्ते भवति । इह खलु दुवे पुरिसा भवंति-एगे पुरिसे किरियमाइक्खइ, एगे पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ। जे य पुरिसे किरियमाइक्खइ, जे य पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ, दो वि ते पुरिसा
तुल्ला एगट्ठा कारणमावण्णा ।। ४२. बाले पुण एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे। अहमंसि दुक्खामि वा सोयामि वा
_ 'जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा', अहमेयमकासि । परो
१. व्या० वि०-आदौ पच्छा' इति ४. एककारणापन्नत्वादिति (वृ)। अध्याहर्तव्यम्।
५ तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा २. सं० पा०--पाईणं वा जाव सुयक्खाते । जूरामि वा (क, व); तप्पामि वा पीडामि वा ३. ओ० सू०१४।
परितप्पामि वा (चू)।
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३५६
पढम अज्झयण (पोंडरीए)
वा जं दुक्खइ वा' 'सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पीडइ वा परितप्पइ वा, परो एयमकासि। एवं से बाले सकारणं वा परकारणं वा एवं विप्पडिवेदेति
कारणमावण्णे ॥ ४३. मेहावी पुण एवं विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे । अहमंसि दुक्खामि वा सोयामि
वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा, णो अहं एयमकासि । परो वा जं दुक्खइ वा' 'सोयइ वा जूरइ वा तिप्पइ वा पीडइ वा परितप्पइ वा, णो परो एयमकासि। एवं से मेहावी सकारणं वा परकारणं वा एवं
विप्पडिवेदेति कारणमावण्णे ॥ ४४. से बेमि-पाईणं वा पडोणं वा उदीणं वा दाहिणं वा जे तसथावरा पाणा ते एवं
संघायमागच्छंति, ते एवं विप्परियायमावति, ते एवं विवेगमागच्छंति, ते एवं
विहाणमागच्छति, ते एवं संगइयंति उवेहाए। ४५. ते णो एयं विप्पडिवेदेति, तं जहा-किरिया इ वा 'अकिरिया इ वा सुकडे इ
वा दुक्कडे इ वा कल्लाणे इ वा पावए इ वा साहू इ वा असाहू इ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा णिरए इ वा अणिरए इ वा । एवं ते विरूवरूवेहि कम्मसमा
रंभेहि विरूवरूवाइं कामभोगाइं समारंभंति भोयणाए । ४६. एवं ते अणारिया विप्पडिवण्णा [मामगं धम्मं पण्णवेंति ?] । तं सद्दहमाणा तं
पत्तियमाणा तं रोएमाणा साधु सुयक्खाते समणेति ! वा माहणेति ! वा। काम खलु आउसो ! तुम पूययामो, तं जहा-असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्थेण वा पडिग्गहेण वा कंबलेण वा पायपुंछणेण वा ।
तत्थेगे पूयणाए समाउट्रिसु, तत्थेगे प्यणाए णिकाइंसु ॥ ४७. पुवामेव तेसिं णायं भवइ-समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता
अपसू परदत्तभोइणो भिक्खुणो, पावं कम्म णो करिस्सामो समुट्ठाए । ते' अप्पणा अप्पडिविरिया भवंति । सय माइयंति, अण्णे वि आइयाति, अण्ण पि आइयंत समणुजाणंति । एवामेव ते इत्थिकामभोगेहि मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा लुद्धा रागदोसवसट्टा। ते णो अप्पाणं समुच्छदंति णो परं समुच्छेदेति, णो अण्णाइं पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताई समुच्छेदेति । पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता-इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा' । चउत्थे पुरिसजाते णियतिवाइए त्ति आहिए ।।
१. सं० पा०-दुक्खइ वा जाव परितप्पइ । २. सं० पा०-दुक्खामि वा जाव परितप्पामि । ३. सं० पा०-दुक्खइ वा जाव परितप्पइ। ४. विप्परियास' (क, ख)।
५. सं० पा०-किरिया इ वा जाव णिरए इ
वा जाव चउत्थे। ६. व्या० वि०-आदौ पच्छा' इति
अध्याहर्तव्यम् ।
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३६०
सूयगडो २
४८. इच्चेते चत्तारि पुरिसजाया णाणापण्णा णाणाछंदा 'णाणासीला णाणादिट्ठी " ाणारु णाणारंभा णाणाअज्भवसाणसंजुत्ता 'पहीणा पुव्वसंजोगा आरियं असंपत्ता इति णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा कामभोगेसु विसण्णा ||
भिक्खुणो भिक्खायरिया-समुट्ठाण-पदं
1
४६. से बेमि-- पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा - आरिया वेगे अणारिया वेगें, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, काय मंता वेगे हस्समंता वेग, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे • दुरूवा वेगे । तेसिं चणं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, तं जहा - 'अप्पयरा वा भुज्जरा" वा । तेसि च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाई भवति, तं जहा'अप्पयरा वा भुज्जयरा" वा । तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय ए भिक्खायरियाए समुट्ठिया । सतो वा वि एगे णायओ य उवगरणं च' विप्पजहाय भिखारिया समुट्ठिया । असतो वा वि एगे णायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया ॥
po
५०. जे ते सतो वा असतो वा णायओ 'य उवगरणं च" विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया, पुव्वमेव तेहिं णातं भवति - इह खलु पुरिसे "अण्णमण्णं" ममट्ठाए" एवं विप्पडिवेदेति", तं जहा - खेत्तं मे वत्थू मे हिरण्णं मे सुवण्णं में 'धणं मे" धणं मे कंसं मे दूस मे विपुल धण - कणग- रयण-मणि- मोत्तिय संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संत-सार-सावतेयं मे सद्दा मेरूवा मे गंधा मे रसा मे फासा मे । खलु मे कामभोगा, अहमवि एतेसिं ।
से मेहावी पुव्वमेव" अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा - इह खलु मम अण्णतरे दुक्खे
१. णाणादिट्ठी णाणासीला ( क ) ।
२. पहीणपुव्वसंजोगा ( क, ख ); प्रहीणः पूर्व
संयोग: यैः (वृ) |
३. मणूसा ( क ) ।
४. सं० पा०-- अणारिया वेगे जाव दुरूवा ।
५. अप्पयरो वा भुज्जयरो ( क, ख ) ।
६. अप्पयरो वा भुज्जयरो ( ख ) ।
७. य अणातयो य (चू) ।
८. च अणुवगरणं च (चू) ।
६. य अणायओ य उवगरणं च (क, ख );
य अणायओ य उवगरणं च अणुवगरणं च (च्) ।
१०. भवति, तं जहा ( ख, वृ ) ।
११. अन्यद् अन्यद् वस्तु उद्दिश्य ( वृ ) । १२. विप्परियावेति ( क ) ।
१३. वत्थं (क)
१४. धणम्मे ( क ) ।
o
१५. पुव्वा ° ( ख ) । १६. तं इह (ख) ।
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पढमं अभयणं (पोंडरीए)
३६१
रोगातं के समुप्पज्जेज्जा - अणि अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे
।
से हंता ! भयंतारो ! कामभोगा' ! मम अण्णतरं दुक्खं रोगायंकं परियाइयह - अणि अकतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं णो सुहं । माह दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा । इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ पडिमोयह- अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमगुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ जो सुहाओ । 'एवमेव णो लद्धपुव्वं भवति ।
इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा । पुरिसे वा एगया पुव्वि कामभोगे विप्पtes, कामभोगा वा एगया पुव्वि पुरिसं विप्पजहंति । अण्णे खलु कामभोगा, अण्णो अहमंसि । से किमंग पुण वयं अण्णा मण्णेहिं कामभोगे हिं मुच्छामो ? इति संखाए णं वयं कामभोगे विप्पजहिस्सामो || ५१. से मेहावी जाणेज्जा - बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं तं जहा - माता मे पिता मे भाया में 'भगिणी मे भज्जा में" पुत्ता मे णत्ता मे धूया मे पेसा मे सहा में" सुही मे सयणसंगंथसंथुया मे । एते खलु मम णायओ, अहमवि एएसि । से हावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा - इह खलु ममं अण्णयरे दुक्खे रोगातं समुपज्जेज्जा - अणिट्टे' 'अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे • दुखे
।
से हंता ! भयंतारो ! णायओ ! इमं मम अण्णयरं दुक्खं रोगातंकं परियाइह - अणि अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं • णो सुहं । माहं दुक्खामि वा सोयामि वा" "जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितामिव । इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोयह
१. कामभोगाई (क, ख ) 1
२. ताऽहं ( क, ख ) ; द्रष्टव्यम् - ५१ सूत्रस्य ' मा मे' पदस्य पादटिप्पणम् ।
५. भज्जा मे भगिणी मे ( क ) ।
६. धूया मे पेसा मे णत्ता मे सुहा मे ( ख ) । ७. एवं से (क, ख ) ।
८. सं० पा०- अणिट्ठे जाव दुक्खे । ६. परियादियध ( क ) 1
१०
३. लद्धपुव्वे (क); एवं णो० (ख); वृत्तौ — 'न चायमर्थस्तेन दुःखितेन 'एवमेवे' ति यथा प्रार्थितस्तथैव लब्धपूर्वो भवति, अग्रिमसूत्रे 'न चैतत्तेन दुःखितेन लब्धपूर्वं ११. भवति'' एवमेव नो लब्धपूर्वं भवति' इति १२. व्याख्यातमस्ति ।
४. वयं च ( ख ) ।
सं० पा०- - अणि जाव णो सुहं ।
सं० पा० - सोयामि वा जाव परितप्पामि । परिमोएह (क); पूर्वस्मिन् सूत्रे 'पडिमोयह' इति पदमस्ति ।
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३६२
सूयगडो २ अणिट्ठाओ' 'अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ ° णो सुहाओ । एवमेवं णो लद्धपुव्वं भवइ ।
T वि भयंताराणं मम णाययाणं अण्णयरे दुक्खे रोगातके समप्पज्जेज्जाअणि?' अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्ख° णो सुहे। से हंता ! अहमेतेसि भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णतरं दुक्खं रोगातंक परियाइयामि-अणि?' 'अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं ° णो सुहं, 'मा में दुक्खंतु वा' 'सोयंतु वा जूरंतु वा तिप्पंतु वा पीडंतु वा ° परितप्पंतु वा। इमाओ णं अण्णयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोएमि-अणिवाओ" 'अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ ° णो सुहाओ । एवमेव णो लद्धपुव्वं भवति । अण्णस्स दुक्खं अण्णो णो परियाइयइ', अण्णेण कतं' अण्णो णो पडिसंवेदेइ, पत्तेयं जायइ, पत्तेयं मरइ, पत्तेयं चयइ, पत्तेयं उववज्जइ, पत्तेयं झंझा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं मण्णा,' •पत्तेयं विण्ण, पत्तेयं ° वेदणा। इति खलु णातिसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा। पुरिसे वा एगया पुव्वि णाइसंजोगे विप्पजहइ, णाइसंजोगा वा एगया पुचि पुरिसं विप्पजहंति । अण्णे खलु णातिसंजोगा, अण्णो अहमंसि । से किमंग पुण वयं अण्णमण्णेहि
णाइसंजोगेहिं मुच्छामो ? इति संखाए णं वयं णातिसंजोगे विप्पजहिस्सामो॥ ५२. से मेहावी जाणेज्जा-बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं, तं जहा - हत्था मे
पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीसं मे आउं मे बलं मे वण्णो मे तया मे
१. सं० पा०-अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ। ८. एवामेव (ख)। २. एवामेव (क); एवमेयं (वृ) ।
९. पडियादियति (क); परियादियति (ख); ३. सं० पा०-अणिढे जाव णो सुहे।
पडिया इयइ (प्रत्यापिबति) (व)। ४. सं० पा०-अणिटुं जाव णो सुहं। १०. कत कम (क); कडं कम्मं (व); कडं (चू)। ५. मम ज्ञातयः (व) अत्र 'मा' शब्दोस्ति तथैव ११. सं० पा०-एवं विष्णू वेदणा। पूर्ववर्ती द्वयोः संदर्भयोरपि 'मा' शब्दो युज्यते। १२. तरागं (क)। एकत्र 'मा' शब्दः प्रतिष्वपि लभ्यते, एकत्र १३. मे सील मे (क, ख)। अत्र 'शील' च 'ताह' अथवा 'नाह' इति अस्पष्टोल्लेखः शब्दोऽधिकः प्रतीयते । शीलस्य नात्र प्राप्यते । उत्तरवर्तिसंदर्भानुसारेण प्रथमे कश्चित् प्रसङ्गः। वृत्तिकृता लिखितमपि संदर्भपि 'मा' एव शब्दो युज्यते।
पुष्णातीदम्-'एतच्च हस्तपादादिकं ६. सं० पा०-दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु । स्पर्शनेन्द्रियपर्यवसानं शरीरावयवसंबन्धित्वेन ७. सं० पा०-अणिट्राओ जाव णो सुहाओ। विवक्षितम्।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
छाया मे सोयं मे चक्खं मे घाण मे जिब्भा मे फासा मे ममाति, वयाओ परिजूरइ', तं जहा-आऊओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ' 'चक्खूओ धाणाओ जिब्भाओ° फासाओ। सुसंधिता' संधी विसंधीभवति, वलितरगे गाए भवति, किण्हा केसा पलिया भवंति। जं पि य इमं सरीरगं
उरालं आहारोवचियं', एयं पि य में अणुपुव्वेणं विप्पजहियव्वं भविस्सति ॥ भिक्खुणो लोगनिस्साविहार-पदं ५३. एयं संखाए से भिक्खु भिक्खायरियाए समुट्टिए दुहओ लोगं जाणेज्जा, तं
जहा-जीवा चेव, अजीवा चेव । तसा चेव, थावरा चेव ।। ५४. इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा
सपरिग्गहा-जे इमे तसा थावरा पाणा-ते सयं समारंभंति, अण्णेण वि समारंभाति, अण्णं पि समारंभंतं समणुजाणंति । इह खलु गारत्धा सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा-जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा-ते सयं परिगिण्हंति, अण्णण वि परिगिण्हावेंति, अण्णं पि परिगिण्हतं समणुजाणंति । इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे । जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, एतेसिं चेव णिस्साए बंभचेरवासं वसिस्सामो। कस्स णं तं हेउं ? जहा पुव्वं तहा अवरं, जहा अवरं तहा पुव्वं । अंजू एते अणुवरया अणुवट्ठिया पुणरवि तारिसगा चेव । जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा दुहओ पावाइं कुव्वंति, इति संखाए दोहि वि अंतेहिं अदिस्समाणो । इति भिक्खू रीएज्जा ॥
१. स्पर्शनेन्द्रियम् (वृ)।
वत्तिकारेणादर्श लब्धः तेन व्याख्यातः । २. ममातिज्जति (क, ख)।
चूर्णी नैष लभ्यते। ३. पडिजूरइ (ख)।
७. °वइयं (ख)। ४. सं० पा०--सोयाओ जाव फासाओ । ८. ४(ख)। ५. सुसंधितो (क्व)।
६. सतं (क)। ६. भवंति, तं जहा (क, ख, व); अत्र 'तं जहा' १०. वेते (क)।
इति पाठो नावश्यकः प्रतिभाति, किन्तु
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३६४
सूयगडो २ ५५. से बेमि-पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा एवं से परिण्णातकम्मे, एवं
से ववेयकम्मे,' एवं से वियंतकारए भवइ त्ति मक्खायं ॥ अहिंसा-धम्म-पदं ५६. तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-पुढवीकाए'
'आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए। से जहाणामए मम असायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा' वा कवालेण वा आउडिज्जमाणस्स' वा हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा 'किलामिज्जमाणस्स वा उदृविज्जमाणस्स वा" जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि–इच्चेवं जाण। सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेण वा 'अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा ° कवालेण वा आउडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा ताडिज्जमाणा वा परिताविज्जमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उद्दविज्जमाणा बा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति । एवं णच्चा सव्वे पाणा" 'सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे ° सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जा
वेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा" ण उद्दवेयव्वा ॥ ५७. से बेमि-जे" अईया, जे य पडुप्पण्णा, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो" सव्वे
ते एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा५ 'सव्वे भया सब्वे जीवा सव्वे ० सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण
परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा ॥ ५८. एस धम्मे धुवे णितिए सासए समेच्च लोगं खेयण्णेहि पवेइए। भिक्खुचरिया-पदं
५६. एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ" "विरए मुसावायाओ विरए अदत्तादाणाओ १. विवेय ° (क); वियवेय (ख)।
६. सं० पा०-दंडेण वा जाव कवालेण । २. व्या० वि०-मकारः अलाक्षणिकः । १०. सं० पा०-पाणा जाव सत्ता। ३. सं० पा०-पुढविकाए जाव तसकाए। ११. परितापेयव्वा (क)। ४. अस्सायं (ख)।
१२. जे य (क)। ५. लेलूण (ख)।
१३. आगमिस्सा (क, ख)। ६. आउट्टि ° (ख)।
१४. भगवंता (क, ख)। ७. वा ताविज्जमाणस्स वा (क)।
१५. सं० पा०-पाणा जाव सत्ता । ८. उदृविज्जमाणस्स वा किलामिज्जमाणस्स वा १६. तोलनीयम्-आयारो ४।१,२।
(क); किलामिज्जमाणस्स वा (च); परि- १७. सं० पा०-पाणाइवायाओ जाव विरए। क्लाम्यमानस्य (व)।
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
fare मेहुणाओ • विरए परिग्गहाओ । णो ' दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा", णो अंजणं, णो वमणं, णो विरेयणं, णो धूवणे, णो तं परियाविएज्जा' ॥ ६०. से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे अमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिणिव्वुडे णो आसंस पुरतो करेज्जा — इमेण मे दिट्ठेण वा सुएण वा मरण' वा विष्णाएण वा, इमेण वा सुरिय-तव-नियम- बंभचेरवासेणं, इमेण वा जायामायावुत्तिएणं' धम्मेणं इतो चुते पेच्चा' देवे सिया 'कामभोगाण वसवत्ती", सिद्धे वा अक्ख' । एत्थ वि सिया, एत्थ वि णो सिया ||
६१. से भिक्खू 'सहि अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुच्छिए फासेहिं" अमुच्छिए, विरए - कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरते ॥
६२. से भिक्ख " -- जे इमे तसथावरा पाणा भवंति - ते णो सयं समारंभइ, णो अण्णेहि समारंभावेइ, अण्णे समारंभंते वि ण समणुजाणइ - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते ||
६३. से भिक्खू - जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा - ते णो सयं परिगिण्हइ, 'णो अण्णेणं" परिगिण्हावेइ, अण्णं परिगिण्हंतंपि ण समणुजाणइ - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते ॥
११४
११५
६४. से भिक्खू -- जं पि य इमं संपराइयं कम्मं कज्जइ - णो तं सयं करेइ, 'णो अण्णेणं * कारवेइ, अण्णं पि करेंतं 'ण समणुजाणइ " - इति से महतो आदाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते ॥
६५. से" भिक्खू जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए
१. दंनवणेणं दंते धोवेज्जा (च्) ।
२. चूर्णौ वृत्तौ च 'विरेवणं' व्याख्यातमस्ति;
प्रत्योः नोपलभ्यते ।
३. ० दितेज्जा ( क ) ।
४. कुज्जा ( ख ) ।
५. मुएण (क, ख ) ।
६. ० वत्तिएणं ( ख ) ।
७. पिच्चा ( क, ख ) ।
८. कामं कमी कामवसवत्ती (चू) ।
C.
मसुभे ( ख ) ।
१०. सद्देसु जाव फासेसु (क) ।
१५. णाणुजाण (क, ख ) ।
११. चूर्णो वृत्तौ चास्य पाठांशस्य संबन्धः पूर्वसूत्रेण १६. तोलनीयम् - 'आयारचूला' १।१२ ।
३६५
योजितः, किन्तु 'से भिक्खु' 'जे इमे' इति सूत्रस्य कर्तृ पदमस्ति तेनास्माभिः प्रस्तुतसूत्रेणैवास्थ सम्बन्धयोजना कृता । अग्रिमसूत्रे चूर्णिकृतापि इत्थमेव योजना कृतास्ति । १२. वण्णेहिं ( ख ) ; अत्र पारिपाश्विक प्रकरणे
कारितानुमोदने प्रायः एकवचनमस्ति किन्तु अत्र बहुवचनं लभ्यते । १३. णेवणेणं (क) ।
१४. नेवण्णे (क, ख ) 1
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सूयगडो २
एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाई जीवाइं सत्ताइं समारब्भ' समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुं अभिहडं आहट्टद्देसियं, तं चेतियं सिया, तं णो सयं भुंजइ, णो अण्णेणं भुंजावेइ, अण्णं पि भुजंतं ण समणुजाणइ -इति से
महतो आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरते ॥ ६६. से भिक्खू अह पुण एवं जाणेज्जा-तं विज्जइ तेसि परक्कमे । जस्सट्टाए
चेतियं सिया, तं जहा-अप्पणो पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं धातीणं णातीणं राईणं दासाणं दासोणं कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाणं' पुढो पहेणाए सामासाए पातरासाए सण्णिहि-सण्णिचओ कज्जति, इह एएसि माणवाणं भोयणाए । तत्थ भिक्खू परकड-परणिद्वितं उग्गमुप्पायणेसणासुद्धं सत्थातीतं सत्थपरिणामितं अविहिसितं एसितं वेसितं सामुदाणियं पण्णमसणं' कारणट्ठा पमाणजुत्तं अक्खोवंजण-वणलेवणभूयं, संजमजायामायावुत्तियं बिलमिव पण्णगभूतणं अप्पाणणं आहारं आहारेज्जा-अण्णं अण्णकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले
लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले ।। धम्म-देसणा-पदं ६७. से भिक्खू मायण्णे अण्णयरिं दिसं वा अणुदिसं वा पडिवण्णे धम्म आइक्खे
विभए किट्टे, उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–'संतिं विरति"
उवसमं णिव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवातियं ॥ ६८. सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवीइ किट्टए
धम्म॥ ६६. से भिक्ख धम्म किट्टेमाणे-णो अण्णस्स हेउं धम्ममाइक्खेज्जा। णो पाणस्स
हेउं धम्ममाइक्खेज्जा। णो वत्थस्स हेउं धम्ममाइक्खेज्जा । णो लेणस्स हेउं धम्ममाइक्खेज्जा। णो सयणस्स हेउं धम्ममाइक्खज्जा। णो अण्णेसि विरूवरूवाणं कामभोगाणं हेउं धम्ममाइक्खेज्जा। अगिलाए धम्ममाइक्खेज्जा। णण्णत्थ कम्मणिज्जरट्ठयाए धम्ममाइक्खेज्जा ।।
१. समारम्भ (क)।
यदि वा शान्ति:-अशेषक्लेशोपशमरूपा २. आदेसाणं (ख)।
तस्यै–तदर्थं विरतिः शान्तिविरतिस्तां ३. व्या० वि०-प्राज्ञम्-~-गीतार्थेन उपात्तम् । कथयेत् (वृ), किन्तु चूर्णिकारेण 'जहा धुते' ४. ० वत्तियं (ख)।
इति समर्पणं कृतम् । आचारस्य धुताध्ययने ५. संतिविरति (क, ख, वृ); वृत्तिकारेण (६।१०२) 'संति विरति' इति असंयुक्तः 'संतिविरई' इति संयुक्तपाठ: स्वीकृतः, तथा पाठोस्ति । तमनुसत्यास्माभिस्तथैव स्वीकृतः । च-शान्तिः-उपशम: क्रोधजयस्तत्प्रधाना ६. तथा सोयवियं (ख)। प्राणातिपातादिभ्यो विरतिः शान्तिविरतिः,
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पढमं अज्झयणं (पोंडरीए)
३६७ ७०. इह खलु तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म सम्म उट्ठाणेणं उद्याय
वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया। जे तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म सम्म उट्ठाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया, ते एवं सव्वोवगता, ते एवं
सव्वोवरता, ते एवं सव्वोवसंता, ते एवं सव्वत्ताए परिणिव्वुड त्ति बेमि ॥ भिक्खु-वयणिज्ज-पदं ७१. एवं से भिक्खू धम्मट्ठी धम्मविऊ णियागपडिवण्णे, से जहेयं बुइयं, अदुवा पत्ते
पउमवरपोंडरीयं, अदुवा अपत्ते पउमवरपोंडरीयं ।। ७२. एवं से भिक्खू परिणायकम्मे परिण्णायसंगे परिण्णायगेहवासे उवसंते समिए
सहिए सया जए। से एय-वयणिज्जे, तं जहा-समणे ति वा माहणे ति वा खंते ति वा दंते ति वा गुत्ते ति वा मुत्ते ति वा इसी ति वा मुणी ति वा कती' ति वा विदू ति वा भिक्खू ति वा लूहे ति वा तीरट्ठी ति वा चरणकरणपारविउ।
-त्ति बेमि ।।
१. अंतियं से (क)। २. एवं (ख)।
भारत
के कि
३. किती (ख)।
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बीअं अज्झयणं
किरियाठाणे उक्खेव-पदं १. सूयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु किरियाठाणे णामझ
यणे पण्णत्ते । तस्स णं अयमढे, इह खलु संजूहेणं दुवे ठाणा एवमाहिज्जति,
तं जहा-धम्मे चेव अधम्मे चेव, उवसंते चेव अणुवसंते चेव ।। अधम्मपक्खेकिरिया-पदं २. तत्थ णं जे से पढमठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे', तस्स णं अयमद्वे, इह खलु
पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा --- आरिया वेगे अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता' वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे । तेसिं च णं इमं एयारूवं दंडसमादाणं' संपेहाए, तं जहाणेरइएसु तिरिक्खजोणिएसु माणसेस् देवेस जे यावण्णे तहप्पगारा पाणा विण्ण वेयणं वेयंति । तेसि पि य णं इमाइं तेरस किरियाठाणाई भवंतीति मक्खाय', तं जहा-अट्टादंडे', अणद्वादंडे', हिंसादंडे, अकस्मादंडे, दिट्ठिविपरियासियादंडे, मोसवत्तिए.
१. णाममज्झयणे (क)। २. विहंगे (क, ख)। ३. हुस्स ° (क)। ४. डंड ° (ख)। ५. मक्खायाइं (क, चू)। ६. व्या०वि० --अत्र अकारस्य दीर्घत्वम् ।
७. व्या० वि०-अत्र अकारस्य दीर्घत्वम् । ८. अकम्हा ० (क, ख); इह चाकस्मादित्ययं
शब्दो मगधदेशे सर्वेणाप्यागोपालाङ्गनादिना
संस्कृतएवोच्चार्यत इति (वृ०, सू० ६)। 8. • विप्परि० (ख)।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३६६ अदिण्णादाणवत्तिए, अज्झत्थिए, माणवत्तिए, मित्तदोसवत्तिए, मायावत्तिए,
लोभवत्तिए, इरियावहिए । अट्ठादंड-पदं ३. पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिए' त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे आयहेउं वा णाइहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहे वा मित्तहेउं वा णागहेउं वा भूयहेउं वा जक्खहेउं वा तं दंडं तसथावरेहि पाणेहिं सयमेव णिसिरति, अण्णण वि णिसिरावेति अण्णं पि णिसिरंतं समणुजाणति । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ ।
पढमे दंडसमादाणे अट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिए ॥ अणट्ठादंड-पदं
अहावरे दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ-- से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति, ते णो अच्चाए णो' अजिणाए णो मंसाए णो सोणियाए णो हिययाए णो पित्ताए णो वसाए णो पिच्छाए' णो पुच्छाए णो बालाए णो सिंगाए णो विसाणाए ‘णो दंताए णो दाढाए" णो णहाए णो ण्हारुणिए णो अट्ठीए णो अद्विमिजाए', 'णो हिसिंसु मे त्ति, णो हिंसंति मे त्ति, णो हिंसिस्संति" मे त्ति, णो पुत्तपोसणाए णो पसुपोसणाए" णो अगारपरिवूहणयाए" णो समणमाहणवत्तणाहेउं णो तस्स सरीरगस्स 'किंचि विपरियाइत्ता" भवति । से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता ओदवइत्ता" उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवति"-अणट्ठादंडे । से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तं जहा—इक्कडा इ वा
१. अट्टादंडे (व)। २. केति (क, ख)। ३. परियार (चू)। ४. अट्ठादंडे (क, ख)। ५. एवं हियाए पित्ताए (क, ख)। ६. पिछाए (क)। ७. वृत्ती नैतौ शब्दी व्याख्यातो स्तः। ८. मजाए (ख)।
६. चूर्णी कालत्रयेपि एकवचनम् । १०. पसुपोसणयाए (क)। ११. ° परिवंहणताए (क)। १२. °वत्तियहेउं (क)। १३. किंचि परियादित्ता (क); किञ्चित् परित्राणं
(व)। १४. उवद्दवइत्ता (क) । १५. भवति–से (क)।
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३७०
सूयगडो २
कडिणा' इ वा जंतुगा इ वा परगा इ वा मोरका इ वा तणा इ वा कुसा इ वा कुच्छगा' इ वा पव्वगा' इ वा पलाला' इ वा–ते णो पुत्तपोसणाए' णो पसुपोसणाए णो अगारपरिवूहणयाए' णो समणमाहणवत्तणाहे णो तस्स सरीरगस्स 'किंचि विपरियाइत्ता" भवति ।। से हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता ओदवइत्ता उज्झिउं बाले वेरस्स आभागी भवइ-अणट्ठादंडे ।। से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा 'पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा" तणाई ऊसविय-ऊसविय सयमेव अगणिकायं णिसिरति. अण्णण वि अगणिकायं णिसिरावेति, अण्णं पि अगणिकायं णिसिरंतं समणुजाणति-अणट्ठादंडे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज ति आहिज्जइ ।
दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिए त्ति आहिए । हिंसादंड-पदं
अहावरे तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ .. से जहाणामए केइ पुरिसे ममं वा ममियं" वा अण्णं वा अण्णिय वा 'हिंसिंसु वा, हिंसंति वा, हिंसिस्संति'" वा, तं दंडं तसथावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसिरइ, अण्णेण वि णिसिरावेइ, अण्णं पि णिसिरंतं समणुजाणइ-हिंसादंडे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज" ति आहिज्जइ । तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिए त्ति आहिए ॥
१. कठिणा (ख)।
है. वत्ती नेमो शब्दौ स्वीकृती स्तः, यथा-- २. कुच्चग (आयारचूला–२।६३) ।
कच्छादिकेषु दशसु स्थानेषु वनदुर्गपर्यन्तेषु । ३. पप्पगा (क, ख); पिप्पलगं (आयारचूला-- १०. सावज्जे (क. ख)।
११. ममि (ख)। ४. पलालए (क, ख)।
१२. अणि (ख)। ५. ° पोसणयाए (क) सर्वत्र ।
१३. वृत्तौ कालत्रये पि एकवचनमस्ति, किन्तु ६. अगारपोसणयाए (क, ख) ।
इतः पूर्वस्मिन् सूत्रे कालत्रये पि तत्र बहु७. समणमाहणपोसणयाए (क, ख)।
वचनं व्याख्यातमस्ति । ८. किंचि परियादित्ता (क); किमपि परित्रा- १४. सावज्जे (क)।
णाय (वृ)।
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३७१
बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे) अकस्मादंड-पदं ६. अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मादंडवत्तिए'त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा' 'दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविद ग्गंसि वा पव्वयंसि वा° पव्वयविदुग्गंसि वा मियवत्तिए' मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता "एते मिय" त्ति काउं अण्णयरस्स मियस्स वहाए उसं' आयामेत्ता णं णिसिरेज्जा, से “मियं वहिस्सामि" त्ति कट्ट तित्तिरं वा वट्टगं वा 'चडगं वा' लावगं वा कवोयगं वा कवि वा कविजलं वा विधित्ता भवति - इति” खलु से अण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसइ --अकस्मादंडे । से जहाणामए केइ पुरिसे सालीणि वा वोहीणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि वा परगाणि वा रालाणि वा णिलिज्जमाणे अण्णयरस्स तणस्स वहाए सत्थं णिसिरेज्जा, से “सामगं तणगं मुकुंदुगं वीहीऊसियं" कलेसुयं तणं छिदिस्सामि" त्ति कटु सालि वा वीहिं वा कोद्दवं वा कंगुं वा परगं वा रालयं वा छिदित्ता भवति–इति खलु से अण्णस्स अट्ठाए अण्णं फुसति-अकस्मादंडे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज२ ति आहिज्जइ।
चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मादंडवत्तिए आहिए । दिट्ठिविपरियासियादंड-पदं ७. अहावरे पंचमे दंडसमादाणे दिदिविपरियासियादंडवत्तिए"त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं वा पिईहिं वा भाईहिं वा भगिणीहि वा भज्जाहिं वा पुत्तेहि वा धूयाहि वा सुहाहिं वा सद्धिं संवसमाणे मित्तं अमित्तमिति" मण्णमाणे मित्ते हयपुव्वे भवइ-दिट्ठिविपरियासियादंडे । से जहाणामए केइ पुरिसे गामघायंसि वा णगरघायंसि वा खेडघायंसि कब्बडघायंसि मडंबघायंसि वा दोणमुपायंसि वा पट्टणघायंसि वा
१. अकम्हा° (ख)।
७. इह (क, ख)। २. सं० पा०-कच्छंसि वा जाव पव्वयवि- ८. अकम्हा° (ख) सर्वत्र ।
दुग्गंसि वा; कच्छसि वा जाव वणविदुग्गंसि ६. णितिज्जमाणे (ख) ।
वा (ख); कच्छे वा यावद् वनदुर्गे वा (व)। १०. मुकुंदगं (ख); कुमुदगं (क्व)। ३. ° वित्तिए (ख)।
११. वाहिरूसितं (क)। ४. उसुगं (क)।
१२. सावज्जे (क)। ५. स (ख)।
१३. ° दंडे (क, ख)। ६. X (क)।
१४. अमित्तमेव (ख)।
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३७२
८.
सूयगडो २ आसमघायंसि वा सण्णिवेसघायंसि वा णिगमघायंसि वा रायहाणिघायंसि वा अतेणं तेणमिति मण्णमाणे अतेणे हयपुव्वे भवइ --दिट्ठिविपरियासियादंडे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज' ति आहिज्जइ।
पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठिविपरियासियादंडवत्तिए' त्ति आहिए । मोसवत्तिय-पदं ___ अहावरे छटे किरियट्ठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे आयहेउं वा णाइहेउ वा अगारहेउं वा परिवारहेडं सयमेव मुसं वयति, अण्णेण वि मुसं वयावेइ, मुसं वयंतं पि अण्णं समणुजाणति। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज ति आहिज्जइ ।
छठे किरियट्ठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिए । अदिण्णादाणवत्तिय-पदं ६. अहावरे सत्तमे किरियट्ठाणे अदिण्णादाण वत्तिए त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे आयहेउं वाणाइहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहेउं वा सयमेव अदिण्णं आदियति, अण्णेण वि अदिण्णं आदियावेति, अदिण्णं आदियंतं पि अण्णं समणुजाणइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिज्जइ।
सत्तमे किरियट्ठाणे अदिण्णादाणवत्तिए त्ति आहिए ॥ अज्झत्थिय-पदं १०. अहावरे अट्ठम किरियट्ठाणे अज्झथिए' त्ति आहिज्जइ----
से जहाणामए केइ पुरिसे-णत्थि णं केइ किंचि विसंवादेइ-सयमेव होणे दीण दट्टे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्माणोवगए भूमिगयदिट्ठिए झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिज्जति, तं जहा–कोहे माणे माया लोहे । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज ति आहिज्जइ । अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिए।
१. सावज्जे (क)। २. दंडे (क, ख)। ३. णाय° (क, ख)। ४. सं० पा०-आयहेउ वा जाव परिवारहेउं । ५. किरियाठाणे (क, ख)।
६. अज्झत्थवत्तिए (ख)। ७. °सागरपविढे (वृ)। ८. आसंसइया (ख)। ६. लोहे । अज्झत्थमेव कोहमाणमायालोहे
(क्व)।
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३७३
बीअं अज्झयण (किरियाठाणे) माणवत्तिय-पदं ११. अहावरे णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे जाइमदेण वा कुलमदेण वा बलमदेण वा रूवमदेण वा तवमदेण वा सुयमदेण वा लाभमदेण वा इस्सरियमदेण वा पण्णामदेण वा, अण्णयरेण वा मदट्ठाणेणं मत्ते समाणे परं हीलेति णिदेति खिसति गरिहति परिभवति अवमण्णति । "इत्तरिए' अयं, अहमंसि पुण विसिट्ठजाइकुलबलाइगुणोववेए"—एवं अप्पाणं समुक्कसे'। देहा चुए कम्मबिइए' अवसे पयाति, तं जहा-गब्भाओ गन्भं जम्माओ जम्मं माराओ मार णरगाओ णरगं । चंडे थद्धे चवले माणी यावि भवइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्ज ति आहिज्जइ।
णवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए त्ति आहिए । मित्तदोसवत्तिय-पदं १२. अहावरे दसमे किरियट्टाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिज्जइ
से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं' वा पिईहिं' वा भाईहिं वा भइणीहि वा भज्जाहिं वा धूयाहि वा पुत्तेहिं वा सुण्हाहि वा सद्धि संवसमाणे तेसिं अण्णयरंसि अहालहगंसि अवराहसि सयमेव 'गरुयं दंड णिव्वत्तति", तं जहा-सीओदगवियडंसि वा कायं उब्बोलेत्ता भवइ, उसिणोदगवियडेण वा कार्य ओसिंचित्ता' भवइ, अगणिकायेणं कायं उद्दहित्ता भवइ, जोत्तेण वा वेत्तेण वा णेत्तेण वा तया' वा 'कसेण वा छियाए वा१३ लयाए वा 'अण्णयरेण वा दवरण पासाइं उद्दालित्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा" वा कवालेण
वा कायं आउट्टित्ता" भवति । १. गरहति (ख)।
बकारकारयोरपि सादृश्यमस्ति, ततो २. इत्तिरिए (क)।
लिपिदोषेण 'उबो[ब्बो]लेत्ता' स्थाने ३. समुक्कोसे (ख)।
'उच्छोलेत्ता' जातमिति प्रतीयते । ४. वितिए (क)।
६. उस्सिचिता (चू)। ५. मादीहिं (क)।
१०. उवडहित्ता (ख); उड्डहित्ता (चू)। ६. पितिहिं (ख)।
११. तयाइ (ख)। ७. गुरुयं डंडं वत्तेति (क)।
१२. कमेण (क;) कडएण (चू)। ८. उबोलेत्ता (क); उच्छोलित्ता (ख); १३. x (वृ)।
उद्ब्रोडयिता-अत्र 'बोल' धातु प्रयोगो १४. X (क, ख, चू)। वर्तते। वृत्तावपि 'बोलयिता' इति १५. लेलूण (ख)। व्याख्यातमस्ति। प्राचीनलिप्या संयुक्त- १६. उपताडयिता (व)। बकारस्य तथा संयुक्तछकारस्य, असंयुक्त
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३७४
सूयगडो २
तहप्पगारे पुरिसजाते संवसमाणे दुम्मणा भवंति, पवसमाणे सुमणा भवंति । तहपगारे पुरिसजाते दंडपासी, दंडगरुए, दंडपुरक्खडे, अहिते इमंसि लोगंसि, अहिते परंसि लोगंसि, संजलणे कोहणे, पिट्ठिमंसियावि भवइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जति ।
दस मे किरियट्टा मित्तदोसवत्तिए ति आहिए ||
मायावत्तिय-पदं
१३. अहावरे एक्कारसमे किरियद्वाणे मायावत्तिए त्ति आहिज्जइ' - जे इमे भवंति गूढायारा तमोकासिया उलूगपत्तलहुया पव्वयगुरुया, आरिया वि संता अणारियाओ भासाओ पउंजंति, अण्णहा संतं अप्पाणं अण्णा मण्णंति, अण्ण पुट्ठा अणं वागति, अण्णं आइक्खियव्वं अण्णं आइक्खति ।
से हाणामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले तं सल्लं णो सयं णीहरति, णो अण्ण णीहरावेति णो पडिविद्धंसेति, एवमेव णिण्हवेति, अविउट्टमाणे अंतो-अंतो रियति एवमेव माई मायं कट्टु णो आलोएइ, णो पडिक्कमेइ, णो दिइ,
,
गरह, णो विउट्ट, णो विसोहेइ, णो अकरणाए अन्भुट्ठेइ, णो अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जइ ।
माई अस्सि लोए पच्चायाति, माई" परंसि लोए पच्चायाति", णिदइ", पसंसति, णिच्चरति, णणियदृति, णिसिरिया" दंडं छाएइ, माई" असमाहडसुहलेस्से " यावि भवइ । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ ।
एक्कारसमे किरिट्ठाणे मायावत्तिए त्ति आहिए ||
लोभवत्तिय-पदं
१४. अहावरे बारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिज्जइ " -- जे इमे भवंति "
१. ० गुरुए ( क, ख ) ।
२. पट्टि (ख) 1
o
३. आहिज्जइ, तं जहा - ( वृ ) ।
४. तमोकाइया ( चू) ।
५. उलुग° (ख, चू) ।
६. विरंजंति (क, चू); विप्पउंजंति ( ख ) ।
७. सति ( क ) ।
८. णीहारा ( ख ) ।
६. भियाति ( ख ) ; झोसियाति ( चू) । १०. माती (क),
११. पुणो पुणो पच्चा ( वृ) । १२. निंदर गहाय ( क ) ;
निंदा गरहा (चू) ।
निंदइ गरहइ ( ख ) ;
१३. णो (चू) ।
१४. निसिरिय (ख, चू) 1
१५. मायी (क, ख ) ।
१६. असमाहिद° (क); असमाहडलेस्से (चू) |
१७. आहिज्जइ, तं जहा - ( वृ) 1 १८. भवन्ति, तं जहा (वृ ) ।
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बीअं अज्झयण (किरियाठाणे)
३७५
रणिया आवसहिया गामंतिया कण्हुई रहस्सिया' णो बहुसंजया, णो बहुपडि - विरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहि, ते अप्पणा' सच्चामोसाई एवं विउंजंति - अहं
हंतव्व अण्णे हंतव्वा, अहं ण अज्जावेयव्वो अण्णे अज्जावेयव्वा, अहं ण परिघेतव्वी अण्णे परिघेतव्वा, अहं ण परितावेयव्वो अण्णे परितावेयव्वा, अहं
उद्दवेयव्वो अण्णे उवेयव्वा ।
वामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाई चपंचमाई छद्दसमाई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाई कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु आसुरिएसु किब्बिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति । तओ विप्पमुच्चमाणा भुज्जो 'एलमूयत्ताए तमूयत्ताए' जाइमूयत्ताए" पच्चायंति । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ । दुवालसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिए ||
१५. इच्चेताई दुवालस किरियाणाई दविएणं समणेणं वा माहणेणं वा सम्म सुपरिजाणियव्वाणि भवंति ॥
- दं
१६. अहावरे तेरसमें' किरियट्ठाणे इरियावहिए त्ति आहिज्जइ - इह खलु अत्तत्ताए ias अणगार इरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्स आयाणभंड-ऽमत्त-णिक्खेवणासमियस्स उच्चार- पासवण - खेल - 'सिंघाण जल्ल" - पारिट्ठा
१. कण्हुतीराहुसिया ( क ) ।
२. अप्पणी ( क ) ।
३. गढिया गरहिया (क, ख ); असो 'गढ़िया' शब्दस्यैव रूपान्तरमस्ति ।
वृत्तिकारण
चत्वार एव शब्दा व्याख्याताः, यथा - मूच्छिता गृद्धा ग्रथिता अध्युपपन्नाः । ४. तातो ( क ) ।
५. तम्मूय ० ( क ); x ( ख ) ; तमोकाइयत्ताए (चू) ।
६. 'एलमूयत्ताए' इति पाठश्चतुर्षु स्थलेषु विद्यते । तत्र अग्रिमः पाठः सर्वत्र भिन्नोस्ति,
यथा
२।२।१४ एलमत्ताए तमूयत्ताए जाइमूयताए ।
२/२/१८ एलम्यत्ताए तमंघयाए ।
इत्यस्य
२२५६ एलमूयत्ताए तमूयत्ताए । २।७।२५ एलमूयत्ताए तमोरुवत्ताए । २।२।१४ स्थाने चूर्णो 'तमोकाइयत्ताए' पाठोस्ति, २।२।१८, २.७।२५ अनयो; स्थलयोरपि 'तमोकाइयत्ताए ' तुल्यार्थतास्ति । तेन प्रतीयतेत्र तमोवाचकः पाठ: प्रयुक्तोस्ति । 'तमूयत्ताए' इत्यपि 'तमोयत्ताए ' [ तमस्तया ] इत्यस्य ऊकारकृतः प्रयोगो वर्तते । अस्माभिः यस्मिन् स्थले यादृश: पाठो लब्धः तादृशः एव स्वीकृतः । ७. पडिले हितव्वाणि (चू) । ८. तेरसे (क) ।
C. जल्ल-सिंघाणग ( क ) ।
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सूयगड २
वणियासमिस्स मणसमियस्स वइसमियस्स' कायस मियस्स मणगुत्तस्स वइगुत्तस्स' कायगुत्तस्स गुत्तिदियस्स गुत्तबंभयारिस्स आउत्तं गच्छमाणस्स आउ चिट्ठमाणस्स आउत्तं णिसीयमाणस्स आउत्तं तुयट्टमाणस्स 'आउत्तं भुंजमाणस्स आउत्तं भासमाणस्स" आउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गिण्हमाणस्स वा णिक्खिवमाणस्स वा जाव चक्खुपम्हणिवायमवि, अस्थि विमाया सुहमा किरिया इरियावहिया णाभ कज्जइ - सा पढमसमए बद्धपुट्ठा बितियसमए वेइया ततियसमए णिज्जिण्णा । सा बद्धपुट्ठा उदीरिया वेइया णिज्जिण्णा से काले अम्मयाऽवि भवइ' । एवं खलु तस्स तप्पत्तियं आहिज्जइ ।
तेरस मे" किरिट्ठाणे इरियावहिए त्ति आहिए ॥
१७. से बेमि--- जे य अईया जे य पडुप्पण्णा जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंता सव्वे ते एयाइं चेव तेरस किरियट्टाणाई भासिसु वा भासेंति वा भासिस्संति वा, पण वेंसु वा पण्णवेंति वा पण्णवेस्संति वा, एवं चेव तेरसमं किरियद्वाणं सेविंसु वा सेवंति वा सेविरसंति वा ॥
३७६
पावसुयज्झयण-पदं
१८. अदुत्तरं च णं पुरिस - विजय - विभंगमाइक्खिस्सामि - इह खलु णाणापण्णाणं णाणाछंदाणं णाणासीलाणं णाणादिट्ठीणं णाणारुईणं" णाणारंभाणं णाणाज्भवसाणसंजुत्ताणं 'इहलोग पडिबद्धाणं परलोगणिप्पिवासाणं विसयतिसियाणं इणं णाणाविहं 'पावसुयज्झयणं भवइ", तं जहा - १. भोमं २. उप्पायं ३ सुविणं
१. वयसमि ० ( ख ) ।
o
२. वयगु° (ख) |
३. आणपाणमाणस्स (चू) ।
४. आउत्तं भुंजमाणस्स (ख); X (च) ।
५. बद्धा° (ख) ।
६. बिई (क्व ) ।
७. अकम्मं या वि (चू) ।
o
८.
तोलनीयम् - भगवती ३।१४८ ।
६. तप्पत्तियं सावज्जं ति ( क, ख ); प्रयुक्तप्रत्योः तथान्येष्वपि प्रचुरेषु आदर्शेषु 'सावज्ज' अथवा 'सावज्जे' पाठोत्र लभ्यते, किन्तु पूर्ववर्तिद्वादशक्रियास्थानगताभ्यासेन लिपिप्रमादोसौजात इति प्रतीयते । नासौ पाठः संगतोस्ति । क्रियाया बन्धो न च नाम सावद्यो भवति ।
ईर्यापथिक्या:
१०.
११.
चूर्णो वृत्तौ चापि नास्ति स पाठो व्याख्यातः । चूर्णिकारेण स्पष्टं कृतमस्ति विवेचनम् - ट्ठल्ला पुण सावज्जा चेव बारस किरिया - णा भवति, एवं पव्वइओ वा उप्पव्वइओ वा, एवं सरागसंयतस्स सावज्जो चेव ( चूर्णी पृ० ३५३) । वृत्तिकारेणापि 'सावज्ज' शब्दस्य नोल्लेखः कृतः । एवं तावद् वीतरास्प्रत्ययकं कर्म 'आधीयते' - संबध्यते । ( वृत्तपत्र ५८ पंक्ति 8 ) ।
तेरसे ( क ) ।
० रुतीणं ( क ) ।
१२. X ( क, ख ) ।
अर्थविचारणया १३. पावसुत्तपसंगं वण्णइस्सामि ( चू); पावसुय
ज्यणं एवं भवइ (क, ख ) ।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३७७
४. अंतलिक्खं ५. अंगं ६. सरं ७. लक्खणं ८. वंजणं ६. इथिलक्खणं १०. पुरिसलक्खणं ११. हयलक्खणं १२. गयलक्खणं १३. गोणलक्खणं १४. मेंढलक्खणं १५. कुक्कुडलक्खणं १६. तित्तिरलक्खणं १७. वट्टगलक्खणं १८. लावगलक्खणं १६. चक्कलक्खणं २०. छत्तलक्खणं २१. चम्मलक्खणं २२. दंडलक्खणं २३. असिलक्खणं २४. मणिलक्खणं २५. कागणिलक्खणं २६. सुभगाकरं २७. दुब्भगाकरं २८. गब्भाकरं २६. मोहणकरं ३०. आहव्वणि ३१. पागसासणि ३२. दव्वहोमं ३३. खत्तियविज्ज ३४. चंदचरियं ३५. सूरचरियं ३६. सुक्कचरियं ३७. बहस्सइचरियं' ३८. उक्कापायं ३६. दिसादाह ४०. मियचक्क ४१. वायसपरिमंडलं ४२. पंसुवुद्धि ४३. केसवुट्ठि ४४. मंसवुढेि ४५. रुहिरवुद्धि ४६. वेयालि ४७. अद्धवेयालि ४८. ओसोवणि ४६. तालुग्घाडणि ५०. सोवागि ५१. सावरि ५२. दामिलि ५३. कालिंगि ५४. गोरि ५५. गंधारि ५६. 'ओवतणि ५७. उप्पतणि° ५८. जणि ५९. थंभणि ६०. लेसणि ६१. आमयकरणि ६२. विसल्लकरणि ६३. पक्कमणि ६४. अंतद्धाणि२।। एवमाइयाओ विज्जाओ अण्णस्स हेउं पउंजंति, पाणस्स हेउं पउंजंति, वत्थस्स हेउं पउंजंति, लेणस्स हेउं पउंति, सयणस्स हेउं पउंजंति, अण्णेसि वा विरूवरूवाणं कामभोगाण हेउं पउंजंति, तेरिच्छं ते विज्ज सेवंति, ते अणारिया विप्पडिवण्णा कालमासे कालं किच्चा 'अण्णय रेसु आसुरिएसु किब्बिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति । ततो वि विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयत्ताए
तमंधयाए पच्चायति ॥ चउद्दसविह-कूरकम्मकरण-पदं १६. से एगइओ आयहेउं वा 'णाइहेउं वा'१८ अगारहेउं वा परिवारहेउं वा णायगं
वा सहवासियं वा णिस्साए-१. अदुवा अणुगामिए २. अदुवा उवचरए
१. पागसासणं (ख)। २. खत्तीविज्ज (ख)। ३. विहप्फति ° (क)। ४. दिसीदाहं (क)। ५. पंसुवुढी (क)। ६. ओसोयणि (क)। ७. तालुग्घाडणं (ख)। ८. सावरि (क); शाम्बरी (वृ) । ६. दामलि (ख)। १०. उप्पतणि णिवडतणि कंपणि (च)।
११. X(चू)। १२. अंतद्धाणिं आयमणि (ख)। १३. विउंजंति (क) सर्वत्र । १४. तिरिच्छं (क्व)। १५. सेवेति (क, ख)। १६. अण्णयराइं आसूरियाई किब्बिसियाइं ठाणाइ
(क, ख)। १७. विप्पमुक्का (वृ)। १८. णायहेउं वा (क), णायहेउं वा सयणहेउं
वा (ख)।
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३७८
सूयगडो २
३. अदुवा पाडिपहिए' ४. अदुवा संधिच्छेयए' ५. अदुवा गंठिच्छेयए' ६. अदुवा ओरब्भिए ७. अदुवा सोयरिए' ८. 'अदुवा वागुरिए ६. अदुवा साउणिए" १०. अदुवा मच्छिए ११. अदुवा गोवालए' १२. अदुवा गोघायए १३. अदुवा सोवणिए" १४. अदुवा सोवणियंतिए। से एगइओ अणुगामियभावं पडिसंधाय तमेव अणुगमिय" हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेति - इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ उवचरगभावं पडिसंधाय तमेव उवचरिय हंता छेत्ता भेत्ता लंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव", पडिपहे ठिच्चा हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहिं कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ संधिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव", संधि छेत्ता भेत्ता 'लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ°--इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ गंठिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव", गंठि छेत्ता भेत्ता" 'लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ ° - इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं" उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ ओरब्भियभावं पडिसंधाय उरन्भं वा अण्णतरं वा तसं पाणं हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ---इति से महया पावेहिं कम्मेहि अत्ताणं ° उवक्खाइत्ता भवति।
१. पाडिवधिए (क)।
अणुगमिय-अणुगमिय (क्व) । २. संधिछेदए (ख)।
६. चरितं (ख)। ३. गंठिभेदए (क); गंठिछेदए (ख)। १०. व्या० वि०-तदेव प्रातिपथिकत्वं कुर्वन । ४. सोवरिए (क, ख); अत्र लिपिदोषेण 'सोक- ११. व्या० वि०–'प्रतिपद्यते' इति क्रियाशेषः ।
शि' अथवा 'सोयरिए' स्थाने 'सोवरिए' १२. सं० पा०-भेत्ता जाव इति । इति पाठो जातः ।
१३. व्या० वि०–'अनुयाति' इति क्रिया शेषः । ५. अदुवा साउणिए अदुवा वागुरिए (वृ)। १४. सं० पा०-भेत्ता जाव इति । ६. गोपालए (क)।
१५. अप्पाणं (क, ख)। ७. सोवणितिए (क); सोतेणिए (ख)। १६. सं० पा.---हंता जाव उवक्खाइत्ता। ८. अणुगमियाणुगामित (क); अणुगामियाणु- १७. भवति । एसो अभिलावो सव्वत्थ (क, ख)।
गमिय (ख); उपचर्य अनुव्रज्य च (वृ);
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३७६ से एगइओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हता' 'छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं ° उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ वागुरियभावं पडिसंधाय मियं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हता' 'छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं° उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ साउणियभावं पडिसंधाय सउणि वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता' 'छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं ° उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता' 'छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ–इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं ° उवक्खाइत्ता भवति । 'से एगइओ गोवालगभावं पडिसंधाय तमेव गोणं परिजविय' हता' 'छेत्ता भेत्ता लंपइत्ता विलंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहिं कम्मेहि अत्ताणं ° उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ गोघायगभावं पडिसंधाय गोणं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हता 'छेत्ता भेत्ता लपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं° उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ सोवणियभावं पडिसंधाय सुणगं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हता" 'छेत्ता भेत्ता लंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं° उवक्खाइत्ता भवति । से एगइओ सोवणियंतियभावं पडिसंधाय मणुस्सं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हतार 'छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता ° आहारं आहारेइ-इति से महया पावेहि कम्मेहि अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ।।
१. सोवरिय० (ख) । चूर्णी क्रमप्राप्तं सौकरिक- २. सं० पा०-हंता जाव उवक्खाइत्ता।
पदं व्याख्यातं नास्ति । गोघातकभावस्या- ३,४,५. सं० पा०—हंता जाव उवक्खाइत्ता। नन्तरं "केइ पुण भणंति-सोयरियभावं ति ६. गोणं वा (क, ख)। महिसं, अण्णतरो तव्वत्तिरित्तो गोणादि"- ७. परिजविय-परिजविय (क)। (चूर्णी पृ० ३५७) इति उल्लेख: प्राप्यते। ८,९. सं० पा०-हंता जाव उवक्खाइत्ता । वत्तिकारस्य सम्मुखेपि सौकरिकपदस्य पाठः १०. से एगइओ गोघायगभावं° । से एगइओ स्पष्टो नासीदिति प्रतीयते--."अत्रान्तरे गोवालगभावं° । (क, ख)। सौकरिकपदं, तच्च स्वबुद्धया व्याख्येयम् ११. सं० पा०-~-हंता जाव उवक्खाइत्ता । सौकरिका:-श्वपचाश्चाण्डालाः-खट्टिका १२. सं० पा०—हंता जाव आहारं । इत्यर्थः" (वृत्ति पत्र ६३ पं० २)।
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३८०
सप्पओयणं कूरकम्मकरण-पदं
२०. से एगइओ परिसामज्झाओ उट्ठेत्ता अहमेयं हणामि त्ति कट्टु तित्तिरं वा गंवा [ गं वा ? ] लावगं वा कवोयगं वा [ कवि वा ? ] कविजलं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता' 'छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ -- इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं • उवक्खाइत्ता भवति ॥
सद्दादि विसहि विरुद्धस्स कूरकम्मकरण-पदं
२१. से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुरा
थालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं सस्साई भामेइ, अणेण वि अगणिकाएणं सस्साई भामावेइ, अगणिकाएणं सस्साई भामेतं पि अण्णं समणुजाणइ - इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ॥ २२. से एगइओ केइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेइ, अण्णेण वि कप्पावेइ, कप्पतं वि अण्ण समणुजाणइ - इति से महया" "पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ।।
२३. से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटकबोंदियाए पडिपेहिता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ, अण्णेण वि भामावेइ, झामंतं पि अण्णं समणुजाणइ - इति से महया' 'पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ॥ २४. से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा कुंडलं वा मणिवा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ, अण्णेण वि अवहरावेइ, अवहतं पि अण्णं समणुजाणइ - इति से महया" "पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति ।
१. आहणामि ( क ) ।
२, ३. अस्याध्ययनस्य षष्ठे सूत्रे इमौ शब्दो
सूयगडो २
स्तः ।
४. सं० पा०-हता जाव उवक्खाइत्ता । ५. चूर्णो अस्य सूत्रस्य व्याख्याया अन्ते एवं फासे वि' 'आहतो भरितो वा केणइ असुइणा खेलेणं उविद्वेण वा' इत्युल्लिखितमस्ति ।
अयमुल्लेखः स्वतंत्रसूत्राणां संकेतोथवा व्याख्यामात्रमिति स्पष्टं न परिज्ञायते ।
६. घोडाण ( क ) ।
७,८. सं० पा०-- महया जाव भवति । ६. वा गुणिवा ( क ) ।
१०
सं० पा० - महया जाव भवति ।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३८१ संपदायलित्तस्स असव्ववहारकरण-पदं २५. से एगइओ केणइ वि आदाणेणं विरुद्ध समाणे, समणाणं वा माहणाणं वा
'दंडगं वा छत्तगं वा'२ भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठिगं वा भिसिगं वा चेलगं' वा चिलिमिलिगं वा 'चम्मगं वा चम्मछेयणगंवा चम्मकोसियं वा सयमेव अवहरइ', 'अण्णण वि' अवहरावेइ, अवहरंतं पि अण्णं° समणुजाणइ-इति से
महया पावकम्मेहिं अत्ताणं° उवक्खाइत्ता भवति ।। वोमंसरहियस्स कूरकम्मकरण-पदं २६. से एगइओ नो वितिगिछइ-गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणि
काएणं ओसहीओ झामेइ', 'अण्णेण वि अगणिकाएणं ओसहीओ झामावेइ, अगणिकाएणं ओसहीओ° झामेंतं पि अण्णं समणुजाणइ-इति से महया
'पावकम्मे हि अत्ताणं उवक्खाइत्ता' भवति ॥ २७. से एगइओ णो वितिगिंछइ"--गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा
गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव धूराओ कप्पेइ, अण्णण वि कप्पावेइ, अण्णं पि कप्पंतं समणुजाणइ"-'इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं
उवक्खाइत्ता भवति ॥ २८. से एगइओ णो वितिगिछइ१२–गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उसालाओ
वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा° गद्दभसालाओ वा कंटकबोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ", 'अण्णेण वि झामावेइ, झामतं
पि अण्णं° समणुजाणइ ।। १. समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथा- केनचिन्निमित्तेन कुपितः सन्नेतत्कुर्यादित्याह ।
लएणं (क, ख); प्रस्तुतसूत्रं 'समणमाहणेन' २. छत्तगं वा दंडगं वा (ख), तोलनीयंसंबद्धपस्ति, तेनाव 'अदुवा खलदाणेणं अदवा आयारचूला २१४६ ।। सुराथालएणं' इति पाठो नैव युज्यते । पूर्व' इति पाठो नवरायोपि ३. चेलं वा (क)।
४. चम्मं वा चम्मछेदणं (क)। वर्तिषु सूत्रेषु प्रवर्तमान: पाठोसौ अत्रापि
५. सं० पा०-अवहरइ जाव समणुजाणइ। लिपिप्रमादेन पूर्वप्रचलितक्रमाभ्यासेन वा लिखितोस्तीति प्रतीयते । चूर्णी वृत्तौ च
६. सं० पा०-महया जाव उवक्खाइत्ता।
७. गिछइ, तं जहा (ख, व)। अपहरणस्य यानि कारणानि प्रदर्शितानि
८. सं० पा०-झामेइ जाव झामेंतं । तेभ्योपि उक्तानुमानस्य परिपुष्टिर्जायते ।
६. सं० पा०-महया जाव भवति । चौँ यथा--"इमो अण्णो पासंडत्थाण १०. गिछइ, तंजहा (ख, व)। दिदिरागेणं वादे वा पराइतो सयमेव तेसिं ११. सं० पा०-समणुजाणइ । अण्णं किंचि णत्थि जं अस्थि तं अवहरति," १२. ०गिछइ, तंजहा (ख, व)। वत्तौ च यथा-"अथैकः कश्चित्स्वदर्शनानु- १३. सं० पा०-उसालाओ वा जाव गद्दभ । गगेण वा, वादपराजितो वाऽन्येन वा १४. सं० पा०-झामेइ जाव समणजाणइ ।
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सूयगडो २
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२६. से एगइओ णो वितिगिछ' – गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा' 'कुंडलं वा मोत्ति वा सयमेव अवहरइ', 'अण्णेण वि अवहरावेइ, अवहरतं पि अण्णं • समणुजाणइ ॥
वा
३०. से एगइओ णो वितिगिछइ - समणाण वा माहणाण वा दंडगं वा" "छत्तगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठिगं वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मगं 'अण्णेण वि अवहरावेइ, अवहतं पावकम्मेहिं अत्ताणं • उवक्खाइत्ता
वा° चम्मछेयणगं वा सयमेत्र अवहरई', पि अण्णं • समणुजाणइ - इति से महया भवति ॥
०
३१. से एगइओ समणं वा माहणं वा दिस्सा णाणाविहेहिं 'पावेहिं कम्मेहि" अत्ताणं उवक्खात्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए आफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, काले वि' से अणुपविट्ठस्स 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा णो दवावेत्ता भवति, "जे इमे" भवंति - वोण्णमंता भारक्कता” अलसगा वसलगा ‘किवणगा समणगा, ते इणमेव" जीवितं धिज्जीवियं " संपडिब्रूहेंति ।
ते 'पारलोस्स अट्टस्स" किचि वि सिलिस्संति", ते दुक्खति ते सोयंति जूति ते तिप्पंति ते पिट्टेति ते परितप्पति ते दुक्खण-जूरण- सोयण-तिप्पणपिट्टण - परितपण-वह-बंध - परिकिलेसाओ अपडिविरता" भवंति । ते महता आरंभेण ते महता समारंभेण ते महता आरंभसमारंभेण विरूवरूवेहिं पावकम्म
१. ० गिछइ, तंजहा (ख, वृ) ।
२. सं० पा० गाहावइपुत्ताण मोत्तियं ।
वा जाव
१३. किमणगा पव्वयंति (क); किवणगा समणगा पव्वयंति ( ख ) ; ० श्रमणा भवंति — प्रव्रज्यां गृहन्ति (वृ ) |
१४. अणमेव (क); इणामेव ( ख ) । १५. धीजीवितं (क) ।
३. सं० पा० - अवहइ जाव समणुजाणइ । ४. गछइ, तंजा (ख, वृ) ।
५. सं० पा० - दंडगं वा जाव चम्मछेयणगं । ६. सं० पा० - अवहरइ जाव समणुजाणइ । ७. सं० पा० महया जाव उवक्खाइत्ता । ८. पावकम्मे हिं (क, ख ) ।
६. वि (क ) ।
१०. असणं वा पाणं वा जाव (क); असणं वा ४ जाव (ख) |
११. अपरं च दानोद्यतं निषेधयति तत्प्रत्यनीकतया,
एतच्च ब्रूते — ये इमे पाषण्डिका भवंति १६. बंधण ( ख ) ।
(वृ) ।
१२. भारोक्कता ( क, ख ) ।
१६. पारलोयस्स ० ( क ) ; पारलोयस्स अट्ठाए ( ख ); पारलोइयं अत्थं ( चू); पारलोइयस्स अस्स साहणं (वृ) ।
१७.
१८.
सिलीसंति ( ख ) ।
१।४२,४३,५१ –– निर्दिष्टाङ्क षु सूत्रेषु 'पीड' धातुप्रयोगो वर्तते, अत्र च तस्मिन्नेव प्रकरणे 'पिट्ट' धातुप्रयोगो लभ्यते । नानयोः कश्चिदर्थ भेदः संभाव्यते ।
२०. अप्पडरिया (क्व)
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
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किच्चेहिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भंजित्तारो भवंति, तंजहा-अण्णं अण्णकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले । सपुव्वावरं च णं हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-'पायच्छित्ते सिरसा ण्हाए कंठेमालकडे' आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियमालामउली पडिबद्धसरीरे वग्धारिय-सोणिसुत्तग-मल्ल-दामकलावे अहयवत्थपरिहिए चंदणोक्खित्तगायसरीरे'' महइमहालियाए कूडागारसालाए महइमहालयंसि सीहासणंसि इत्थीगुम्मसंपरिवुडे 'सव्व राइएणं जोइणा झियायमाणेणं महयाय-णट्ट-गीयवाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइय-रवेणं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अवुत्ता चेव अब्भटेंतिभण देवाणुप्पिया ! किं करेमो ? किं आहरेमो ? किं उवणेमो ? किं उवट्ठावेमो ? किं भे हियइच्छियं ? किं भे आसगस्स सयइ ? तमेव पासित्ता अणारिया एवं वयंति -देवे खलु अयं पुरिसे ! देवसिणाए खलु अयं पुरिसे ! 'देवजीवणिज्जे खलु अयं पुरिसे" ! अण्णे वि य णं उवजीवंति । तमेव पासित्ता आरिया वयंति-अभिक्कंतकूरकम्मे खलु अयं पुरिसे, अइधूए", अइआयरक्खे दाहिणगामिए णेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए"
यावि भविस्सइ॥ ३२. इच्चेतस्स ठाणस्स उद्वित्ता" वेगे अभिगिझंति, अणुट्ठित्ता वेगे अभिगिज्झति,
अभिझंझाउरा अभिगिझंति । एस ठाणे अणारिए अकेवले अप्पडिपुण्णे 'अणेयाउए असंसुद्धे असल्लगत्तणे
१. ओरालाई (क)।
६. एतावान् पाठो वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । २. मणुस्स° (क, ख)।
७. आविद्ध वेमो (क), आचिट्ठामो, आविट्ठवेमो ३. यद्यपि चूर्णिकारवत्तिकाराभ्यां 'जे इमे (क्व)।
भवंति' इतः 'समणगा' पर्यन्तं अन्तर्वाक्यं ८. हियं ० (ख) । स्वीकतं किन्त यत्तदोः सम्बन्धेन बदवचनस्य ६. चिन्हाङ्कित: पाठो वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । सम्बन्धेन च 'सयणं सयणकाले', पर्यन्तं १०. अइधुत्ते (क)। अन्तर्वाक्यं युज्यते ।
११. बोहियाए (ख)। ४. x(चू)।
१२. उवट्टिते (क)। ५. पायच्छित्ते कप्पियमालामउली पडिबद्धसरीरे १३. असंबुद्धे अणेयाउए (क); अणेयाऊए असंबुद्धे
वग्धारियसोणिसुत्तगमल्लदामकलावे सिरसा (ख); वृत्ती नैष पाठो व्याख्यातोस्ति । पहाए कठे मालकडे-वृत्तौ चिन्हित-पाठ- प्रत्यो: 'असंबुद्धे' पाठो लभ्यते किन्तु 'आवस्थाने एतावानेव पाठो निर्दिष्टक्रमेण व्याख्या
श्यक' चतुर्थाध्ययने 'केवलियं पडिपूण्णं तोस्ति।
णेयाउयं संसुद्ध' अनेन क्रमेणासौ पाठो
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सूयगडो २ असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अणिव्वाणमग्गे' अणिज्जाणमग्गे' असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू।
एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए ॥ धम्मपक्खे भिक्खुणो भिक्खायरिया-समुट्ठाण-पदं ३३. अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईणं
वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा' भवंति, तं जहाआरिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे हस्समंता वेगे सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाई भवंति, "तं जहा-- अप्पयरा वा भज्जयरा वा। तेसिं च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति. तं जहा-अप्पयरा वा भज्जयरा वा । तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया। सतो वा वि एगे णायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। असतो वा वि एगे णायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए
समुट्ठिया ॥ ३४. जे ते सतो वा असतो वा णायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए
समुट्ठिया, पुव्वमेव तेहिं णातं भवति - इह खलु पुरिसे अण्णमण्णं ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा खेत्तं मे वत्थू मे हिरण्णं मे सुवण्णं मे धणं मे धण्णं मे कंसं मे दूसं मे विपुल-धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणसंत-सार-सावतेय में सहा में रूवा में गधा में रसा में फासा में। एते खलू मे कामभोगा, अहमवि एतेसि ।। से मेहावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा ---इह खलु मम अण्णतरे दुक्खे रोगातके समुप्पज्जेज्जा-अणिढे अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे णो सुहे। से हंता ! भयंतारो ! कामभोगा! मम अण्णतरं दुक्खं रोगायंकं परियाइयहअणिटुं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं णो सुहं । माऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा । इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ पडिमोयह-अणिट्ठाओ अकंताओ
विद्यते । तत् प्रतिपक्षरूपत्वेनात्र 'अणयाउए २. X(क, व)। असंसुद्धे' इति पाठो युज्यते । केषुचित् ३. मणुया (ख)। मद्रितप्रतिषु इत्थं लभ्यमानोप्यस्ति, तेनास्मा- ४. सं० पा०-एसो आलावगो तहा णेयव्वो भिर्मूलेसौ स्वीकृतः ।
जहा पोंडरीए जाव सव्वोवसंता सव्वतार १. अपरिणिव्वाणमग्गे (वृ)।
परिनिव्वुड त्ति बेमि ।
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३८५ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाआ दुक्खाओ णो सुहाओ । एवमेव णो लद्धपुव्वं भवति । इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा । पुरिसे वा एगया पुन्वि कामभोगे विप्पजहइ, कामभोगा वा एगया पुव्वि पुरिसं विप्पजहंति । अण्णे खलु कामभोगा, अण्णो अहमसि । से किमंग पूण वयं अण्णमण्णेहि कामभोगेहि
मुच्छामो ? इति संखाए णं वयं कामभोगे विप्पजहिस्सामो ।। ३५. से मेहावी जाणेज्जा बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं, त जहा ---माता
मे पिता मे भाया मे भगिणी मे भज्जा मे पुत्ता में णत्ता मे धूया मे पेसा मे सहा मे सुही मे सयणसंगथसंथुया मे । एते खलु मम णायओ, अहमवि एएसि । से मेहावी पुत्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा। इह खल मम अण्णयरे दक्खे रोगातके समुप्पज्जेज्जा-अणि? अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे णो सुहे। से हता ! भयंतारो ! णायओ ! इमं मम अण्णयरं दुक्खं रोगातकं परियाइयह – अणिटुं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं णो सुहं । माऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा । इमाओ मे अण्णत राओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोयहअणिट्टाओ अकताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दक्खाओ णो सुहाओ । एवमेवं णो लद्धपुव्वं भवइ । तेसि वा वि भयंताराणं मम णाययाणं अण्णयरे दुक्खे रोगातके समुप्पज्जेज्जाअणि? अकते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे णो सुहे । से हंता ! अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णतरं दुक्खं रोगातंक परियाइयामि--अणिटुं अकंतं अप्पियं असुभं अमणुण्णं अमणामं दुक्खं णो सुहं, मा मे दुक्खंतु वा सोयंतु वा जूरंतु वा तिप्पंतु वा पीडंतु वा परितप्पंतु वा । इमाओ णं अण्णय राओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोएमि-अणिटाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ णो सुहाओ । एवमेव णो लद्धपुव्वं भवति । अण्णस्स दुक्खं अण्णो णो परियाइयइ, अण्णण कतं अण्णो णो पडिसंवेदेइ, पत्तेयं जायइ, पत्तेयं मरइ, पत्तेयं चयइ, पत्तेयं उववज्जइ, पत्तेयं झंझा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं मण्णा, पत्तेयं विष्णू, पत्तेयं वेदणा । इति खलु णातिसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा। पूरिसे वा एगया पुवि णाइसंजोगे विप्पजहइ, णाइसंजोगा वा एगया पुव्वि पुरिसं विप्पजहति । अण्णे खलु णातिसंजोगा, अण्णो अहमंसि ।
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सूयगडो २
से किमंग पुण वयं अण्णमण्णेहिं णाइसंजोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं
णातिसंजोगे विप्पजहिस्सामो।। ३६. से मेहावी जाणेज्जा-बाहिरगमेयं, इणमेव उवणीयतरगं, तं जहा-हत्था मे
पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीस मे आउं मे बलं मे वण्णो मे तया मे छाया मे सोयं मे च मे घाणं मे जिब्भा मे फासा मे ममाति, वयाओ परिजूरइ, तं जहा-आऊओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ चक्खूओ घाणाओ जिब्भाओ फासाओ। सुसंधिता संधी विसंधीभवति, वलितरंगे गाए भवति, किण्हा केसा पलिया भवंति । जं पि य इमं सरीरगं उरालं आहारोवचियं, एयं
पि य मे अणुपुत्वेणं विप्पजहियव्वं भविस्सति ।। भिक्खुणो लोगनिस्साविहार-पदं ३७. एयं संखाए से भिक्खू भिक्खायरियाए समुट्टिए दुहओ लोगं जाणेज्जा, तं
जहा--जीवा चेव, अजीवा चेव । तसा चेव, थावरा चेव ।। ३८. इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा
सपरिग्गहा-जे इमे तसा थावरा पाणा- ते सयं समारंभंति, अण्णण वि समारंभाति, अण्ण पि समारंभंतं समणजाणंति । इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा-ते सयं परिगिण्हंति, अण्णण वि परिगिण्हावेंति, अण्णं पि परिगिण्हतं समणुजाणंति । इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे । जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, एतेसिं चेव णिस्साए बंभचेरवासं वसिस्सामो। कस्स णं तं हेउं ? जहा पुव्वं तहा अवरं, जहा अवरं तहा पुव्वं । अंजू एते अणुवरया अणुवट्ठिया पुणरवि तारिसगा चेव । जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, दहओ पावाइं कुव्वंति, इति संखाए दोहि वि अंतेहिं अदिस्समाणो।
इति भिक्ख रीएज्जा ।। ३६. से बेमि–पाईणं वा पडीणं वा उदोणं वा दाहिणं वा एवं से परिणातकम्म,
एवं से ववेयकम्मे, एवं से वियंतकारए भवइ त्ति मक्खायं । अहिंसाधम्म-पदं ४०. तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-पुढवीकाए आउकाए
तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३८७ से जहाणामए मम असायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा आउडिज्जमाणस्स वा हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा किलामिज्जमाणस्स वा उद्दविज्जमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्वं भयं पडिसंवेदेमि-इच्चेवं जाण। सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा आउडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा ताडिज्जमाणा वा परिताविज्जमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उद्दविज्जमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दक्खं भयं पडिसंवेदेति । एवं णच्चा सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण
परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा ।। ४१. से बेमि-जे अईया, जे य पडुप्पण्णा, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो सव्वे ते
एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेति सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण
परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा ।। ४२. एस धम्म धुवे णितिए सासए समेच्च लोगं खेयण्णेहिं पवेइए। भिक्खुचरिया-पदं ४३. एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ विरए मुसावायाओ विरए अदत्तादाणाओ
विरए मेहणाओ विरए परिग्गहाओ। णो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा,
णो अंजणं, णो वमणं, णो विरेयणं, णो धूवणे, णो तं परियाविएज्जा । ४४. से भिक्ख अकिरिए अल्सए अकोहे अमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिणिव्वडे
णो आसंसं पुरतो करेज्जा-इमेण मे दिटेण वा सुएण वा मएण वा विण्णाएण वा, इमेण वा सुचरिय-तव-णियम-बंभचेरवासेणं, इमेण वा जायामायावृत्तिएण धम्मेणं इतो च्ते पेच्चा देवे सिया कामभोगाण वसवत्ती, सिद्धे वा अदुक्खमसूहे।
एत्थ वि सिया, एत्थ वि णो सिया ॥ ४५. से भिक्खू सद्देहिं अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहि अमुच्छिए रसेहिं
अमुच्छिए फासेहिं अमुच्छिए, विरए-कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ---इति से महतो आदाणाओ
उवसंते उवदिए पडिविरते ॥ ४६. से भिक्खु-जे इमे तसथावरा पाणा भवंति–ते णो सयं समारंभइ, णो
अण्णेहि समारंभावेइ, अण्णे समारंभंते वि ण समणुजाणइ-इति से महतो
आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरते ।। ४७. से भिक्खू-जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा–ते णो सयं
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गडो २
परिगण्इ, णो अण्णं परिगिण्हावेइ, अण्णं परिगिण्हतंपि ण समणुजाणइइति महतो आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिवि रते |
४८. से भिक्खू – जंपि य इमं संपराइयं कम्मं कज्जइ - णो तं सयं करेइ, णो अण्णेणं कारवेइ, अण्णं पि करेंतं ण समणुजाणइ -- इति से महतो आदाणाओ वसंते उवट्टिए पडिविरते ॥
३८८
४६. से भिक्खू जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिपडियाए एवं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई भूयाइं जीवाई सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अभिहडं आहट्ठद्देसियं तं चेतियं सिया, तं णो सयं भुंजइ, णो अण्णणं भुंजावेइ, अण्णं पि भुंजतं ण समणुजाणइ - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्टिए पडिविरते ॥
५०. भिक्खू अह पुण एवं जाणेज्जा ---तं विज्जइ तेसि परक्कमे । जस्सट्टाए चेतियं सिया, तं जहा - अप्पणो पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं धातीणं णातीणं राईणं दासाणं दासीण कम्मकराणं कम्मकरीणं आएसाणं पुढो पहेणाए सामासाए पातरासाए सहि सण्णिचओ कज्जति, इह एएसि माणवाणं भोयणाए । तत्थ भिक्खू परकड - परणितिं उग्गमुप्पायणेसणासुद्धं सत्थातीतं सत्थपरिणामितं अविहिंसितं एसितं वेसितं सामुदाणियं पण्णमसणं कारणट्ठा पमाणजुत्तं अक्खोवंजण-वणलेवणभूयं संजमजायामायावृत्तियं बिलमिव पण्णगभूतेणं अप्पाणेण आहारं आहारेज्जा - अण्णं अण्णकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले ॥
धम्मदेसणा-पदं
५१. से भिक्खू मायणे अण्णर्यार दिसं वा अणुदिसं वा पडिवण्णे धम्मं आइक् विभए किट्टे - उट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए - संति विरति उवसमं णिव्वाणं सोवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवातियं ॥
५२. सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवीइ face धम्मं ॥
५३. से भिक्खू धम्मं किट्टेमाणे- णो अण्णस्स हेउं धम्ममाइक्खेज्जा । णो पाणस्स हे धम्ममाइक्खेज्जा । णो वत्थस्स हेउ धम्ममाइक्खेज्जा | णो णस्स हेडं धम्म माइक्खेज्जा | णो सयणस्स हेउं धम्ममाइक्खेज्जा | णो अण्णेसि विरूवरुवाणं कामभोगाणं हेउं धम्ममाइक्खेज्जा । अगिला धम्ममाइक्खेज्जा । णण्णत्थ कम्मणिज्जरया धम्ममाइक्खेज्जा |
५४. इह खलु तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म सम्मं उट्ठाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया । जे तस्स भिक्खुस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३८६ सम्मं उठाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सि धम्मे समुट्ठिया, ते एवं सव्वोवगता, ते एवं
सव्वोवरता, ते एवं सव्वोवसंता, ते एवं ° सव्वत्ताए परिणिव्वुड त्ति बेमि ।। ५५. एस ठाणे आरिए केवले' 'पडिपुण्णे णेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे
मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे ° सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहू।
दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंग मीसग-पक्ख-पदं ५६. अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-जे इमे भवंति
आरण्णिया आवसहिया गामंतिया' कण्हुईरहस्सिया' णो बहुसंजया, णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहिं, ते अप्पणा सच्चामोसाइं एवं विउंजंति-अहं ण हंतव्वो अण्णे हंतव्वा, अहं ण अज्जावेयव्वो अण्णे अज्जावेयव्वा, अहं ण परिघेतव्वो अण्णे परिघेतव्वा, अहं ण परितावेयव्वो अण्णे परितावेयव्वा, अहं ण उद्दवेयव्वो अण्णे उद्दवेयव्वा । एवामेव ते इत्थिकामेहि मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाई चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाइं कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु आसुरिएसु किब्बिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति ° । तओ विप्पमुच्चमाणा भुज्जो
एलमूयत्ताए तमूयत्ताए पच्चायति ।। ५७. एस ठाणे अणारिए अकेवले 'अप्पडिपुण्णे अणेयाउए असंसुद्धे असल्लगत्तणे
असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अणिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे' असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू।
एस खलु तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिए । अधम्म-पक्ख-पदं ५८. अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु
पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति-महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया 'अधम्माणया अधम्मिट्रा'६ अधम्मक्खाई
१. सं० पा०—केवले जाव सव्वदुक्ख° ।
वर्ती पाठ एवास्माभिः स्वीकृतः । २. गामणियंतिया (क, ख); अस्याध्ययनस्य ३. कण्हुईराहस्सिया (क); सं० पा०-कण्हईरचतुर्दशे सूत्रे 'गामंतिया' पाठोस्ति, चौँ हस्सिया जाव तओ। वृत्तौ च जाव शब्देन स एवात्र संगृहीतो ४. मूयत्ताए (क)। भवति । यद्यपि प्रत्योरत्र 'गामणियंतिया' ५. सं० पा०-अकेवले जाव असव्वदक्ख । पाठो लभ्यते, किन्तु उक्तसूत्रमनुसृत्य पूर्व- ६. अमिष्ठाः अधर्मानज्ञाः (व)।
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३४०
सूयगडो २ अधम्मपायजीविणो' अधम्मपलोइणो' अधम्मपलज्जणा अधम्मसीलसमुदाचारा अधम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, 'हण' 'छिद' 'भिंद' विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूडकवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुवया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए', 'सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए °, सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कोहाओ' 'माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ • मिच्छादसणसल्लाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए ,सव्वाओ ण्हाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द - फरिस - ‘रस-रूव" - गंध - मल्लालंकाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए. सव्वाओ० सगड-रह-जाण-जग्ग-गिल्लि-थिल्लि. सिय- संदमाणिया - सयणासण - जाण - वाहण - भोग-भोयण-पवित्थरविडीओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्धमास-रूवग-संववहाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ 'हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवालाओ"अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूड माणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ करण-कारावणाओ५२ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण"पिट्टण-तज्जण-ताडण-बह-बंधपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए। जे यावण्णे तहप्पगारा" सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा५ कज्जति [ततो वि अप्पडिविरया जावज्जीवाए।]
१. अहम्मजीवी (ख)।
वाक्यानि न सन्ति । २. ०पलोई (ख); °पविलोइणो (व)। ११. हिरण्णसुवण्णकोडियाओ (क)। ३. ° दायारा (ख)।
१२. कारणाओ (क)। ४. दुस्सीला दुरणुणेया (चू)।
१३. कंडनकुट्टण (वृ)। ५. सं० पा०-जावज्जीवाए जाव सव्वाओ। १४. तहप्पगारे (क, ख) । ६. सं० पा०–कोहाओ जाव मिच्छा ° । १५. वणकरा जे अणारिएहि (क, ख, व); ७. X (क, ख)।
असौ पाठः व्याख्यांश: प्रतीयते । ६३,७१ ८. वण्णगंध (क, ख) लिपिदोषेण 'वण्णग'
एतयोः सूत्रयोरपि नासौ विद्यते। औपइत्यस्य स्थाने 'वण्णगंध' इति जातम् । पातिके (सू० १६१,१६३) ऽपि नासौ ९. रूवरस (वृ)।
लभ्यते। १०. औपपातिके (सू० १६१) कानिचिद् १६. कोष्ठकान्तर्वर्ती पाठश्चूर्णी व्याख्यातो
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ati hai ( किरियाठाणे)
३६१
से जहाणामए केइ पुरिसे कलम - मसूर तिल मुग्ग-मास- णिप्फाव- कुलत्थआलिसंदग पलिमंथगमा दिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजति, एवमेव तहपगारे पुरिसजाए तित्तिर- वट्टग लावग कवोय-कविजल मिय-महिस-वराहगाह - गोह - कुम्म सिरीसिवमादिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं' परंजति । जा विय से बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा - दासे इ वा पेसे इवा भयए इ वा भाइले इ वा कम्मकरए इ वा भोगपुरिसे इवा, तेसि पिय णं अण्णयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव ' गरुयं दंडं" णिव्वत्तेइ ", तं जहा - इमं दंडेह, इमं मुंडेह, इमं तज्जेह इमं तालेह, इमं अंदुयबंधणं' करेह, इमं णियलबंधणं करेह, इमं हडिबंधणं करेह, इमं चारगबंधणं करेह, इमं णियल - जुयल - संकोडिय - मोडियं करेह, इमं हृत्थच्छिण्णयं करेह, इमं पायच्छिण्णयं करेह, इमं कण्णच्छिण्णयं करेह, इमं णक्कच्छिण्णयं 'करेह, इमं " ओच्छिणयं करेह, इमं सीसच्छिण्णयं करेह, इमं मुहच्छिण्णयं करेह, 'इमं वेयवहितं करेह, इमं अंगवहितं करेह", इमं फोडियपयं" करेह, इमं यणुपाडियं करेह, इमं दसणुप्पाडियं करेह, इमं वसणुप्पाडियं करेह, इमं जिप्पाडियं करेह, इमं ओलंबियं करेह, इमं घसियं करेह, इमं घोलिय करेह, इमं सूलाइयं करेह, इमं सूलाभिण्णयं करेह, इमं खारपत्तियं करेह, इमं वज्भपत्तियं" करेह, इमं सीहपुच्छियगं करेह, इमं वसहपुच्छियगं करेह. इमं कडforei" करेह, इमं कागणिमंसखावियगं करेह, इमं भत्तपाणणिरुद्धगं करेह, इमं जावज्जीवं वहबंधणं करेह, इमं अण्णतरेणं असुभेणं कु मारेणं मारह | जाविय से अभितरिया परिसा भवइ, तं जहा - माया इ वा पिया इ वा भाया इवा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इवा धूया इ वा सुहा
नास्ति - ' परेषां प्राणा परितावेंति, दृष्टान्तः क्रियते निर्दयत्वे तेषां से जहाणामए .." | वृत्तौ स च व्याख्यातः, किन्तु तत्र अग्रिम - पाठस्य दृष्टान्तरूपेण सम्बन्धयोजना नास्ति - "पुनरन्यथा बहुप्रकारमधार्मिकपदं प्रतिपिपादयिषुराह" । दृष्टान्तस्य स्पष्टबोधार्थ - मसौ पाठ: कोष्ठकान्तर्वर्त्ती कृतः । १. व्या० वि० – बहुवचनप्रकरणे पि यदेकवचनातं कर्तृपदम्, तद् उपमानोपमेययोरनुरो
धात् ।
२. पलिमिच्छग ० ( क ) । ३. एवा ° ( ख ) ।
४. मिच्छं ० ( क ) ।
५. अवराहम्मि ( क ) |
६.
गुरुय ० ( क ) ।
७. निवत्तेइ ( ख ) |
८. अडुयं ० ( ख ) ।
६. अतो 'इमं तथा करेह' इति पाठस्य प्रयोगः क्वचिद् क्वचिदेव विद्यते स चास्माभिः सर्वत्र पूरितः ।
१०. वेगच्छहियं अंगच्छहियं ( क ) । ११. पक्खाफोडियं ( क्व) ।
१२. वज्भवत्तियं ( ख ) ।
३. दवग्गिदड्डयं ( ख ) |
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३६२
सूयगडो २ इ वा, तेसि पि य णं अण्णयरंसि अहालहगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दंडं णिवत्तेति, तं जहा--सीओदगवियडंसि उब्बोलेत्ता' भवइ, "उसिणोदगवियडेण वा कायं ओसिचित्ता भवइ, अगणिकायेणं कायं उद्दहित्ता भवइ, जोत्तेण वा वेत्तेण वा णेत्तेण वा तया वा कसेण वा छियाए वा लयाए वा अण्णयरेण वा दवरएण पासाई उद्दालित्ता भवति, दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिसजाते संवसमाणे दुम्मणा भवंति, पवसमाणे सुमणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसजाते दंडपासी, दंडगरुए, दंडपुरक्खडे, अहिते इमंसि लोगंसि', अहिते परंसि लोगंसि । ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पितॄति परितप्पंति । ते दुक्खण-सोयणजूरण - तिप्पण - पिट्टण-परितप्पण - वह-बंधण - परिकिलेसाओ अप्पडिविरया
भवति ।। ५६. एवामेव ते इत्थिकामेहि मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाई
चउपंचमाई छसमाई वा अप्पयरो वा भज्जयरो वा कालं भंजित्त भोगभोगाई पसवित्तु वेरायतणाइं, संचिणित्ता बहूई कूराई कम्माइं उस्सण्णाइ संभारकडेण कम्मूणासे जहाणामए अयगोले इ वा सेलगोले इ वा उदगंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमइवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते वज्जबहुले 'धूयबहुले पंकबहुले वेरबहुले अप्पत्तियबहुले दंभबहुले णियडिबहुले साइबहुले अयसबहुले उस्सण्णतसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितल
मइवइत्ता अहे णरगतलपइट्टाणे भवति ॥ ६०. ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणंसंठिया णिच्चंधगार
तमसा ववगय-गह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइसप्पहा मेद-वसा-मंस-रुहिर-पूय-पडलचिक्खल्ल"-लित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा कण्ह"-अगणिवण्णाभा
कक्खडफासा" दुरहियासा असुभा णरगा। असुभा णरएसु वेयणाओ। णो चेव १. उब्बोलेत्ता (क); उच्छोलेत्ता (ख)। ८. नियइ° (क)। २. सं० पा०-जहा मित्तदोसवत्तिए जाव ६. सादि० (ख)।। अहिते।
१०. णिच्चंधतमसा (व); णिच्चंधगारतमसा ३. व्या० वि०-अस्यार्थसंबन्धः 'कज्जति'
(वृपा)। पदानन्तरं योजनीयः ।
११. ४ (वृ)। ४. पविसूइत्ता (क); परिसुइत्ता (ख) ।
१२. विस्सा (ख)। ५. पावाइं (क)।
१३. कण्हा (क, ख)। ६. ओसण्णाई (क)। ७. पंकबहुले धुन्नबहुले (क)।
१४. कक्कड ° (क)।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३६३ णं णरएसु णेरइया णिहायति वा पयलायंति वा सई वा रई वा धिइं वा मई वा उवलभंते । ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं
तिव्वं दुरहियासं णेरइय-वेयणं पच्चणुभवमाणा' विहरति । ६१. से जहाणामए रुक्खे सिया पव्वयग्गे जाए, मुले छिण्णे, अग्गे गरुए, जओ णिण्णं
जओ विसमं जओ दग्गं तओ पवडति, एवामेव तहप्पगारे पूरिसजाते गब्भाओ गन्भं जम्माओ जम्मं माराओ मारं णरगाओ णरगं दुक्खाओ दुक्खं' दाहिण
गामिए णेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवइ ।। ६२. एस ठाणे अणारिए अकेवले 'अप्पडिपुण्णे अणेयाउए असंसुद्धे असल्लगत्तणे
असिद्धिमग्गे अमुत्ति मग्गे अणिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे ° असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू।
पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए ॥ धम्म-पक्ख-पदं ६३. अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईणं
वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहाअणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठा' 'धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा' ० धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए', 'सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सब्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पहाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवणसद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सिय-संदमाणिया-सयणासण-जाण - वाहणभोग-भोयण-पवित्थरविहीओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कय-विक्कय
१. सुइ (ख)।
इति पाठे 'शील' शब्दो विद्यते, धर्मपक्षवर्णने २. पच्चणुब्भवमाणा (ख)।
केवलं 'धम्मसमुदायारा' पाठोस्ति । अत्र ३. व्या० वि०-'याति' इति क्रियाशेषः । __ शीलशब्दो न विवक्षितोऽथवा लि पिदोषेण ४. सं० पा०-अकेवले जाव असव्वदुक्ख । _त्यक्तोभूदिति न निश्चेतुं शक्यम् । ५. सं० पा०-धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं । ७. धम्मेण (क)। ६. अधर्मपक्षवर्णने 'अधम्मसीलसमुदाचारा' ८. सं० पा०-जावज्जीवाए जाव जे यावण्णे ।
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सूर्यगडो २
मासद्ध मास-रूवग-संववहाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ हिरण्णसुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ करण-कारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-ताडण-वह-बंधपरिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए °, जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा
कज्जंति, तओ वि पडिविरया जावज्जीवाए ॥ ६४. से जहाणामए अणगारा भगवंतो 'इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया
आयाण-भंड-ऽमत्त-णिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्लपारिट्ठावणियासमिया मणसमिया वइसमिया' कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता' गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा अणासवा अग्गंथा छिण्णसोया णिरुवलेवा, कंसपाई व मुक्कतोया, संखो' इव णिरंजणा, जीव इव अप्पडिहयगई, गगणतलं पिव णिरालंबणा, वायुरिव अप्पडिबद्धा, सारदसलिलं व सुद्धहियया, पुक्खरपत्तं व णिरुवलेवा, कुम्मो इव गुत्तिदिया, विहग इव विप्पमुक्का, खग्गविसाणं व एगजाया, भारुडपक्खी व अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जायथामा, सोहो इव दुद्धरिसा, मंदरो इव अप्पकंपा, सागरो इव गंभीरा, चंदो इव सोमलेसा, सुरो इव दित्ततेया, जच्चकणगं व जायरूवा, वसुंधरा इव सव्वफास
विसहा, सुहुयहुयासणो विव तेयसा जलंता ॥ १. वय ° (क)।
पदर्शने औपपातिकमाचाराङ्गसंबंधि प्रथम२. ४(क)।
मुपाङ्ग तत्र साधु गुणाः प्रबन्धेन व्यावय॑न्ते, ३. संख (ख)।
तदिहापि तेनैव क्रमेण द्रष्टव्यमित्यतिदेश: ४. वाउ° (ख)।
यावद्भूतम्-अपनीतं केशश्मश्रुलोमनखादिक ५. भारंडपंखी (ख)।
यैस्ते तथा (वृत्तिः पृष्ठ ७७ पंक्ति ५) चूणि६. ० कंचणग (ख)।
वृत्त्यनुसारेण सर्वोपि पाठः औपपातिकवद् ७. सुठ्ठहुया(क)।
युज्यते, वर्तमानादर्शषु औपपातिकपाठाद् ८. चूर्णौ ‘से जहाणामए केइ पुरिसा अणगारा
भिन्नो पाठो लभ्यते । औपपातिक (सूत्र २७) इरियासमिता जाव सुहत'० एष संक्षिप्त- गतपाठः इत्थमस्ति-इरियासमिया भासापाठो वर्तते, वृत्तौ च 'पञ्चभिः समितिभिः समिया एसणासमिया आयाण-भंड-मत्तसमिताः' अतः परं 'धूतकेस'० पर्यन्तं सर्वोपि णिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेलपाठः औपपातिकवत् समर्पितोस्ति, यथा- सिंघाण-जल्ल-पारिद्वावणियासमिया मणगुत्ता ते पञ्चभिः समितिभिः समिता:, एवमित्यु- वयगुत्ता काय गुत्ता गुत्ता गुत्ति दिया गुत्तबंभ
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३६५ ६५. णत्थि णं तेसिं भगवंताणं कत्थ वि पडिबधे भवइ। [से पडिबंधे चउविहे
पण्णत्ते, तं जहा–अडए इ वा पोयए इ वा उग्गहे इ वा पग्गहे इ वा] ' जण्णंजण्णं दिसं इच्छंति तण्ण-तण्णं दिसं अप्पडिबद्धा सुइभूया लहुभूया अप्पग्गंथा'
संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरति ।। ६६. तेसि णं भगवंताणं इमा एयारूवा जायामायावित्ती होत्था, तं जहा-चउत्थे
भत्ते छटे भत्ते अट्ठमे भत्ते दसमे भत्ते दुवालसमे भत्ते चउदसमे भत्ते अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते दोमासिए भत्ते तिमासिए भत्ते चउम्मासिए भत्ते पंचमासिए भत्ते छम्मासिए भत्ते। अदुत्तरं च णं उक्खित्तचरगा णिक्खित्तचरगा उक्खित्तणिक्खित्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लूहचरगा समुदाणचरगा संसट्टचरगा असंसट्टचरगा तज्जायसंसट्टचरगा दिट्ठलाभिया अदिठुलाभिया पुटुलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अण्णातचरगा' उवणिहिया संखादत्तिया परिमियपिंडवाइया सुद्धेसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी पुरिमड्डिया आयंबिलिया णिव्विगइया अमज्जमंसासिणो णो णियामरसभोई ठाणाइया पडिमट्ठाइया णेसज्जिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाइणो अवाउडा अगत्तया अकंडुया अणिठ्ठहा धुतकेसमंसु
रोमणहा सव्वगायपडिकम्मविप्पमक्का चिति ।। ६७. ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति,
पाउणित्ता आवाहंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खंति,
यारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा, कंसपाईव वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, सहय-हयासणो मक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव इव तेयसा जलंता। अप्पडिहयगई जच्चकणगं पिव जायरूवा, सूत्रकृताङ्गवृत्तिकारनिर्दिष्ट: 'धूतकेसमंसुआदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इब रोमनहा' इति पाठः औपपातिकस्य वाचनान्तगतिदिया,पूक्ख रपत्तं व निरुवलेवा, गगणमिव रत्वेन स्वीकृतोस्ति । निरालंबणा, अणिलो इव निरालया, चंदो १. असौ कोष्ठकवर्ती पाठः व्याख्यांशः प्रतीयते । इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो २. अणुप्पगंथा (क)। इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, ३. ° चरगा अण्णाइलोगचरगा (क);° चरगा मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं व सुद्ध- अण्णायलोगचरगा (ख)। हियया, खग्गविसाणं व एगजाया, भारुड- ४. निताम ° (क)। पक्खी व अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, ५. ठाणादीता (क); ठाणाईया (ख)। वसभो इव जायत्थामा, सीहो इव दुद्धरिसा, ६. पडिमट्ठादी (क) ।
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३६६
२
पच्चविखत्ता 'बहूइं भत्ताई' अणसणाए छेदेति, छेदित्ता" जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्ध' माणाव - माणणाओ हीलणाओ णिदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटंगा बावीस परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठे आराहेंति, मट्ठे आहेत्ता चरमेहि उस्सासणिस्सासेहिं अनंतं अणुत्तरं णिव्वाघायं णिरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदंसणं समुप्पाडेंति', तओ पच्छा सिज्भंति बुज्यंति मुच्चति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ।। ६८. ' एगच्चाए पुण एगे भयंतारो भवंति " ॥
६६. अवरे पुण पुव्वकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति तं जहा - महड्डिएसु महज्जुइएस महापरक्कमेसु महाजसे महब्बले महाणुभावेसु महासोक्खेसु ।
ते णं तत्थ देवा भवंति महड्डिया' महज्जुइया" "महापरक्कमा महाजसा महब्बला महाणुभावा ° महासोक्खा हार - विराइय- वच्छा कडग-तुडिय-थंभिय-भुया अंगयकुंडल - मट्टगंडयल - कण्णपीढधारी विचित्तहत्याभरणा विचित्तमाला-मउलिमउडा कल्लाणग-पवर- वत्थपरिहिया कल्लाणग-पवरमल्लाणुले वणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा" दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डीए दिव्वाए ती दिव्वा भाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गइकल्लाणा ठिइकल्लाणा आगमेभिया यावि भवंति ॥
७०. एस ठाणे आरिए" "केवले पडिपुणे
णेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे
उववत्तारो भवंति ।
१. वासाहिं ( क, ख ) ।
२. वृत्ती एष पाठो नास्ति व्याख्यातः ।
३. लद्भावलद्धवित्तीओ (स्थानाङ्ग ९।६२ ) ।
४. पाडेंति रत्ता ( ख ) ।
५. अस्य सूत्रस्य रचना संक्षिप्ता वर्तते । 'पुव्वक मावसेसेणं' इत्यादि पदानि अग्रिम - सूत्रगतानि इह ग्रहीतव्यानि । औपपातिके ( सू० १६७ ) एतद्विषय कसूत्रस्य पूर्णा रचना लभ्यते-- एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुब्वकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सव्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए
६. महिड्डिया ( क ) |
७. सं० पा० - महज्जुइया जाव महासोक्खा । ८. ० वत्थाभरणा ( क ) 1
६. 'कल्लाणगंध' (क, ख ) औपपातिके (सू०४७) 'कल्लाणग' इत्येव पाठो लभ्यते । संभवतो लिपिदोषेणास्य स्थाने 'कल्लाणगंध' इति पाठो जातः ।
१०.
११.
० वणमालाधरा (क) ।
सं० पा० - आरिए जाव सव्वदुक्ख • ।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
३६७ मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू। दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए।
मीसग-पक्ख-पदं ७१. अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईणं वा
पडीणं वा उदोणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा' धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू, एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया'। 'एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ पहाणुम्मद्दणवण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सिय-संदमाणिया-सयणासण-जाण-वाहण-भोग-भोयण - पवित्थरविहीओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कय-विक्कयमासद्धमास-रूवग-सववहाराओ पांडविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया । एगच्चाओ हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कूडतुल-कूडमाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ करण-कारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया । एगच्चाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-ताडण-वह-बंधपरिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया । जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा
१. सं० पा०-धम्माणुया जाव धम्मेणं ।
२. सं० पा०--अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे।
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३६६
सूयगडो २
कज्जति, तओ वि 'एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए,' एगच्चाओ अप्पडि
विरया ॥ ७२. से जहाणामए समणोवासगा भवंति-अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा
आसव-संवर-'वेयण-णिज्जर-किरिय-अहिगरण-बंधमोक्ख-कुसला असहेज्जा' देवासुर-णाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल- गंधव्व - महो रगाइएहिं देवगणेहि णिग्गंथाओ पावयणाओ अणतिक्कमणिज्जा, 'इणमो णिग्गंथिए पावयणे" णिस्संकिया णिक्कंखिया णिव्वितिगिच्छा' लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियदा अभिगयट्ठा अदिमिजपेम्माण रागरत्ता "अयमाउसो ! णिग्गंथे पावयणे अटू अयं परम सेसे अणट्रे" ऊसियफलिहा अवंगयदवारा 'चियत्ततेउर-परघरदारप्पवेसा' चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणोसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणा बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहा
परिग्गहिएहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ ७३. ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइ समणोवासगपरियागं
पाउणंति, पाउणित्ता आबाहंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खंति, पच्चविखत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदंति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता" कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा-महड्डिएसु महज्जुइएसु" महापरक्कमेसु महाजसेसु महब्बलेसु महाणुभावेसु महासोक्खेसु । ते णं तत्थ देवा भवंति ---महड्डिया महज्जुइया महापरक्कमा महाजसा महब्बला महाणुभावा महासोक्खा हार-विराइय-वच्छा कडग-तुडिय-थंभिय-भुया अंगयकुंडल-मट्ठगंडयल-कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउलिमउडा कल्लाणग-पवरवत्थपरिहिया कल्लाणग-पवरमल्लाणुलेवणधरा भासुर
१. x (क, ख); प्रत्योः मुद्रितप्रतिषु च नैष ६. अद्विमिजाए ° (ख)।
पाठो लभ्यते, किन्तु प्रकरणानुसारेणासौ ७. अचि यत्तंतेउरपरघरपवेसा (क, ख); यज्यते । वत्तावसौ व्याख्यातोस्ति । औप- अचियत्तंतेउर० (व)।
पातिके (सूत्र १६१) ऽप्यसौ लभ्यते । ८. पाडिहारिएण य पीढ (ओवाइय स० १६२।। २. वेयणानिज्जराकिरियाहिगरण (ख)। ६. अहापडि ° (ख)। ३. असहेज्ज (क); असाहेज्जं (ख)। १०. समाहि° (क)। ४. निग्गंथे पावयणे (ओवाइय सू० १६२)। ११. सं० पा०-महज्जुइएसु जाव महासोक्खेसु ५. णिव्वितिगिछा (क)।
सेस तहेव एसट्ठाणे आरिए जाव एगंतसम्मे ।
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ati अभय (किरियाठाणे)
३६६
बोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं रूत्रेणं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वा पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गइकल्लाणा ठिइकल्लाणा आगमेसिभया यावि भवंति ॥
७४. एस ट्ठाणे आरिए केवले पडिपुणे णेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगतसम्म साहू | तच्चस्स ठाणस्स मी सगस्स विभंगे एवमाहिए ||
तिपद - समोयार-पदं
७५. अविरइं पडुच्च बाले आहिज्जइ । विरई पडुच्च पंडिए आहिज्जइ । विरयाविरइं पडुच्च बालपंडिए आहिज्जइ ।
तत्थ गंजा सा सव्वओ, अविरई एसद्वाणे आरंभट्ठाणे अणारिए' 'अकेवले अप्पड - असंसुद्धे असलगत्तणे असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अणिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे • असब्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू |
पुणे
या
तत्थ णं जा सा विरईएसद्वाणे अणारंभट्ठाणे आरिए' 'केवले पडिपुणे णेयाउए संसुद्धे सलगत्त सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साहू |
तत्थ णं जा सा' विरयाविरई एट्ठाणे आरंभाणारंभट्ठाणे, एसद्वाणे आरिए • केवले पडिपुणे णेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे • सव्वदुक्खप्पहीण मग्गे एगंतसम्मे साहू ||
दुपद- समोयार-पदं
७६. एवामेव समणुगम्ममाणा इमेहिं चेव दोहिं ठाणेहिं समोयरंति, तं जहा- - धम्मे चेव, अधम्मे चेव । उवसंते चेव, अणुवसंते चेव ।
१. सं० पा० - अणारिए जाव असव्वदुक्ख । २. सा सव्वओ (क, ख ) 1
३. सं० पा० - आरिए जाव सव्वदुक्ख । ४. सा सव्वओ ( क, ख ) ।
५. अस्य पाठस्य पुनरुल्लेखः विशेषत्वसूचनार्थम्, यथा वृत्तिकार -- एतदपि कथञ्चिदार्यमेव ।
o
तत्थ णं जे से 'पढमट्ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए, तस्स' णं इमाई तिणि तेवट्टाई पावादुयसयाई भवतीति मक्खायाई, तं जहा - किरियावाईणं
६. सं० पा० - आरिए जाव सव्वदुक्ख • । ७. पढमस्स द्वाणस्स अधम्मस्स ० ( क ) ; पढमस्स अधम्म (चू) ।
८. तत्थ (वृ ) ।
C. अक्खायाई (क) 1
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४००
सूयगडो २
अकिरियावा अण्णाणियवाईणं वेणइयवाईणं । तेवि णिव्वाणमाहंसु, वि पलिमोक्खमाहंसु, तेवि लवंति सावगा, तेवि लवंति सावइत्तारो ॥
अहिंसा-पदं
७७. ते सव्वे पावाया आइगरा धम्माणं, णाणापण्णा णाणाछंदा णाणासीला णाणादिट्ठी णाणारुई णाणारंभा णाणाज्भवसाणसंजुत्ता एवं महं मंडलिबंध " किच्चा सव्वे एगओ चिट्ठति ।
पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पाई बहुपडिपुण्णं अओमएणं संडास एणं हाय ते सव्वे पावादुए आइगरे धम्माणं, णाणापणे णाणाछदे णाणासीले णाणादिट्ठी णाणारुई णाणारंभे णाणाज्भवसाणसंजुत्ते एवं वयासीहंभो पावाया ! आइगरा " ! धम्माणं, णाणापण्णा ! णाणाछंदा ! णाणासीला ! णाणादिट्ठी ! णाणारुई ! णाणारंभा ! णाणाज्भवसाणसंजुत्ता ! इमं ताव तुम्भे सागणियाणं इंगालाणं पाई बहुपडिपुण्णं गहाय मुत्त-मुत्तगं पाणिणा धरेह | णो बहु संडासगं संसारियं कुज्जा, णो बहु अग्गिथंभणियं कुज्जा, णो बहु साहम्मियवेयावडियं कुज्जा, णो बहु परधम्मियवेयावडियं कुज्जा, उज्जुया णियागपडिवण्णा अमायं कुव्वमाणा पाणि पसारेह - इति वच्चा " से पुरिसे तेसिं पावादुयाण" तं सागणियाणं इंगालाणं" पाई बहुपडि 'अओमएणं संडास एणं गहाय पाणिसु णिसिरति" । तए णं ते पावादुया आइगरा धम्माणं, णाणापण्णा णाणाछंदा णाणासीला दिट्ठी णाणारु णाणारंभा णाणाज्भवसाणसंजुत्ता पाणि पडिसाहरंति" । तणं से पुरिसे ते सव्वे पावादुए आइगरे धम्माणं, णाणापण्णे णाणाछंदे
१. निज्जाण ० ( क ) परिणिव्वाण (वृ) । २. परि० (ख) |
३. पावाइया (क, ख ) ।
४. आइकरा ( क )
|
५. मंडल ० ( क ) ।
६. पायं ( क ) ।
७. अतोमतेण ( क ) ।
८. पावाइए ( क, ख ) ।
६. सं० पा० णाणापणे जाव णाणाज्भव
साण ० ।
१०. पावाइया ( क, ख ) ।
११. आदियरा ( क ) ।
o
२०
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१२. सं० पा० णाणापण्णा जाव णाणाज्भवसाण ० ।
१३. वच्चा ( क, ख ) ।
१४. पावादियाणं (क, ख ) ।
१५. अंगालाणं ( क ) ।
१६. नागार्जुनीयास्तु 'अओमएण संडास एण हा इंगाले सिरति (चू) ।
१७. पावाइया ( क ) ; पावांदिया ( ख ) ।
१८. सं० पा० णाणापण्णा जाव णाणाज्भवसाण ० ।
१६. पडिसाहति ( क ) ।
२०. सं० पा० धम्माणं जाव णाणाज्भवसाण ।
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बीअं अज्झयणं (किरियाठाणे)
४०१ णाणासीले णाणादिट्ठी णाणारुई णाणारंभे° णाणाझवसाणसंजुत्ते एवं वयासी–हभो पावादुया ! आइगरा! धम्माणं, णाणापण्णा' ! 'णाणाछंदा ! णाणासीला! णाणादिट्ठी ! णाणारुई ! णाणारंभा ! णाणाझवसाणसंजुत्ता ! 'कम्हा णं तुब्भे पाणि पडिसाहरह' ? 'पाणी णो डझज्जा' ? दड्ढे कि भविस्सइ ? दुक्खं । दुक्खं ति मण्णमाणा पडिसाहरह ? एस तुला एस पमाणे एस समोसरणे । पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे ॥ तत्थ णं जे ते समणमाहणा एवमाइक्खंति', 'एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं ° परूवेंति - "सव्वे पाणा' 'सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे ° सत्ता हंतव्वा अज्जावेयव्वा परिघेतव्वा परितावेयव्वा किलामेयव्वा' उद्दवेयव्वा'' ते आगंतु छयाए ते आगंत भेयाए ते आगंतु जाइ-जरा-मरण-जोणिजम्मण-संसारपुणब्भव-गब्भवास-भवपवंच-कलंकलीभागिणो भविस्संति। ते बहूणं दंडणाणं बहूणं मुंडणाणं बहूणं तज्जणाणं बहूणं तालणाणं बहूणं अंदुबंधणाणं बहणं घोलणाणं बहूणं माइमरणाणं बहूणं पिइमरणाणं बहूणं भाइमरणाणं बहूणं भगिणीमरणाणं बहूणं भज्जामरणाणं बहूणं पुत्तमरणाणं बहूणं धूयमरणाणं बहूणं सुण्हामरणाणं बहूणं दारिद्दाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पिय-विप्पओगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं" आभागिणो भविस्संति । अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत"-संसार-कतारं भुज्जो-भुज्जो
१. सं० पा०–णाणापण्णा जाव णाणाझव- ८,९. आगंतुं (क); आगंतं (ख)। साण° ।
१०. भेयाए जाव (क, ख); अत्रायं शब्दोनाव२. पडिसाहरेह (क); कम्हा पाणिं णो पसा- श्यकः प्रतिभाति । चूर्णी 'ते आगंतु छेयाए रेह (चू)।
जाव कलंकलीभावभागिणो भविस्संति' इति ३. पाणी डझज्ज (चू)।
संक्षिप्तपाठो विद्यते । प्रत्योः संक्षिप्तपाठस्य ४. पाणिं ण पसारेह (चू)।
पूर्णपाठस्य च मिश्रणं जातमिति प्रतीयते । ५. सं० पा०-एवमाइक्खति जाव परूवेति । ११. आगंतुं (क)। ६. सं० पा०-पाण। जाव सत्ता।
१२. अंदुबंधणाणं जाव (क, ख) अयमपि 'जाव' ७. आयारो ४।१,२०,२२,२३,५२१०१ सूयगडो शब्दो नावश्यकः प्रतिभाति ।
११५६,५७,२।१४ उल्लिखितसूत्रेषु एष पाठो १३. दुम्मणसाणं (क)। नास्ति।
१४, चतुरंत (क)।
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४०२
सूयगडो २ अणुपरियट्टिस्संति । ते णो सिज्झिस्संति णो बुज्झिस्संति' णो मुच्चिस्संति णो परिणिव्वाइस्संति° णो सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। एस तुला एस पमाणे एस समोसरणे।।
पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे ॥ ७६. तत्थ णं जे ते समणमाहणा एवमाइक्खंति', 'एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं
परूवेंति-"सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा ण किलामेयव्वा ण उद्दवेयव्वा"ते णो आगंतु छेयाए ते णो आगंतु भेयाए 'ते णो आगंतु जाइ-जरा-मरणजोणिजम्मण - संसार - पुणब्भव - गब्भवास - भवपवंच - कलंकलीभागिणो भविस्संति । ते णो बहूणं दंडणाणं णो बहूणं मुंडणाणं णो बहूणं तज्जणाणं णो बहूणं तालणाणं णो बहूणं अंदुबंधणाणं णो बहूणं घोलणाणं णो बहूणं माइमरणाणं णो बहणं पिइमरणाणं णो बहणं भाइमरणाणं णो बहणं भगिणीमरणाणं णो बहणं भज्जामरणाणं णो बहणं पुत्तमरणाणं णो बहणं धूयमरणाणं णो बहूणं सुण्हामरणाणं णो बहूणं दारिद्दाणं णो बहूणं दोहग्गाणं णो बहणं अप्पियसंवासाणं णो बहूणं पिय-विप्पओगाणं णो बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं आभागिणो भविस्संति । अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसार-कतारं भुज्जो-भुज्जो णो अणुपरियट्टिस्संति। ते सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिणिन्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति ॥ उवसंहार-पदं ८०. इच्चेतेहिं बारसहि किरियाठाणेहिं वट्टमाणा जीवा णो सिज्झिसु णो बुझिसु
णो मुच्चिसु णो परिणिव्वाइंसु णो सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा णो करेंति वा णो करिस्संति वा। एयंसि' चेव तेरसमे किरियाठाणे वट्टमाणा जीवा सिज्झिसु बुझिसु मुच्चिसु
परिणिव्वाइंसु सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा ॥ ८१. एवं से भिक्खू आयट्ठी आयहिए आयगुत्ते आयजोगी' आयपरक्कमे आयरक्खिए आयाणुकंपए आयणिप्फेडए आयाणमेव पडिसाहरेज्जासि ।।
-त्ति बेमि॥
१. सं० पा०-बुझिसंति जाव णो सव्व । २. सं० पा०–एवमाइक्खंति जाव परूवेति । ३. जाव (क)। ४. सं० पा०-दंडणाणं जाव नो बहणं । ५. सं० पा०—सिज्झिस्संति जाव सव्व ।
६. एतम्मि (क)। ७. जोगे (ख)। ८. x(ख, वृ)। ६. ०फोडए (ख)।
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तइयं अज्झयणं
आहारपरिणा उक्खेव-पदं १. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु आहारपरिण्णा णामझ
यणे । तस्स णं अयम?, इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा सव्वओ' सव्वावंति च णं लोगंसि ‘चत्तारि बीयकाया एवमाहिज्जंति, तं जहाअग्गबीया मूलबीया पोरबीया खंधबीया' ।।
थावरकाय-पगरणं पुढविजोणियरुक्खस्स आहार-पदं २. तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा
पुढविवक्कमा', 'तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा", कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु रुक्खत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तासि' णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा
१. सव्वाओ (क,चू)।
ग्रन्थेष्वपि अस्मिन्नर्थे अवक्रान्तिशब्दो लभ्यते । २. नागार्जनीयास्तु पठन्ति-"वणस्सइकाइयाण ४ तदुवकमा (क, ख); तदुवूक्कमा (वृ); पंचविहा बीजवक्कती एवमाहिज्जइ, तं केसि चि आलावगो चेव एस णत्थि, जेसि पि जहा–अग्गमूलपोरुक्खंधबीयरुहा छट्ठावि अस्थि तेसि पि उक्तार्थ एव (च)।
एगिदिया संमूच्छिमा बीया जायते" (वृ, च)। ५. प्रत्योः अत्र 'तेसि' पाठो लभ्यते । असो ३. पुढविवुक्कमा (क, ख, वृ); वृत्तिकृता सर्वत्र अशुद्धः प्रतिभाति । चूर्णी वृत्तौ च 'तासिं' व्यत्क्रम-पदं व्याख्यातमस्ति, किन्तु चूर्णी- इति पाठो विद्यते । रेण सर्वत्र अवक्रमपदं व्याख्यातम् आयुर्वेद
४०३
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४०४
सूयगडो २ आहारेंति पुढविसरोरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] ' । 'णाणा विहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं ['सव्वप्पणत्ताए आहारेंति'] ।
१. वणप्फइ° (क)।
प्रथमपद्धतेरालापकेषु 'तसपाणसरोरं' इति २. वनस्पतेरालापकानां पद्धतिद्वयं विद्यते । पाठः कोष्ठके नियोजित:, द्वितीयपद्धतेरालापप्रथमायां पद्धतौ द्विचत्वारिंशत् आलापका: केषु च आदर्शानुसारी पाठः स्वीकृतः । सन्ति । द्वितीयस्यां च द्वात्रिंशत् आलापकाः । 'तसपाणसरीरं' इति पाठस्य नियोजनं निराद्वयोः पद्धत्योः को भेदोऽस्तीति चूर्णिव्याख्यया धार नास्ति । 'णाणाविहाणं तसथावराण न ज्ञातुं शक्यते । वृत्त्या दीपिकया च तत्रका पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति' इति पाठेन भेदरेखा खचितास्ति। प्रथमपद्धतौ-'ते जीवा स्वयमेव त्रसप्राणशरीरस्याहारः प्रतिपादितो आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं भवति । वृत्तिकारेणाप्यस्य समर्थनं क्रियतेवाउसरीरं वणस्स इसरीरं' एतावान् पाठोस्ति। किंबहुनोक्तेन?, नानाविधानां त्रसस्थावराणां द्वितीयपद्धतौ--'ते जीवा आहारेंतिं पुढवि
प्राणिनां यच्छरीरं तत्ते समुत्पद्यमानाः सरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं
'अचित्त' मिति स्वकायेनावष्टभ्य प्रासुकीवणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं'। अत्र 'तस- कुर्वन्ति (वृ) । यदि वनस्पति. त्रसप्राणपाणसरीरं' इति विशिष्टमस्ति । वत्तिकार- शरीस्याहारं न कुर्यात् तहि उक्तपाठस्य दीपिकाकाराभ्यां द्वितीयपद्धते याख्याया अन्ते
संगतिः कथं स्यात् ? अप्कायादिसूत्रेष्वपि उक्तवैशिष्ट्यस्य समर्थनं कृतमस्ति, यथा
इत्थमेव लभ्यते । तेन उक्तपाठनियोजन
सम्यक्प्रतिभाति । त्रसानां प्राणिनां शरीरमाहारयन्त्येतदवसाने
३. नासौ पाठश्चूर्णी व्याख्यातः । तत्रासौ द्रष्टव्यम् (व) । त्रसानां शरीरमाहारयन्तीति
पाठान्तररूपेण उल्लिखितोस्ति, नागार्जअंते ज्ञेयम् (दीपिका)। हस्तलिखितादर्शषु
नीयास्तु अवरं च णं असंबद्धं पुढविसरीरं प्रथमपद्धतेरालापका: पूर्ववद् वर्तन्ते। द्वितीय
जाव णाणाविधाणं तसथावराणं पाणाणं शरीरं पद्धतेरालापकेषु 'तसपाणत्ताए विउटैति'
अचित्तं कुव्वंति जंतवो, पुव्वविउट चेव इति वैशिष्ट्यमस्ति । द्रष्टव्यः ४४ सूत्रस्य
जीवेणं जीवसहगतं आहारत्ताए गेण्हति, तंपि पादटिप्पणगत: संक्षिप्तपाठः।
जया सरीरत्ताए परिणामेति तदा अचेतनीयदि वृत्त्यनुसारी पाठ: स्वीक्रियेत तदा
करोति,कथं वा अण्णेण जीवेण परिग्गहितं ताव वनस्पतियोनिकानां त्रसानां निरूपणं नान्य
अण्णसरीरत्ताए परिणमेति ? जया पूण परित्रोपलभ्यते।
चत्तं भवति, जीवेण जेणेव सरीरगं णिव्वत्तियदि च आदर्शानुसारी पाठः स्वीक्रियेत तदा
तमासी तदा अण्णो जीवो आहरेति, (च)। वनस्पते: त्रसप्राणशरीरस्य आहारनिरूपणं ५. विप्प० (क, ख)। नान्यत्रोपलभ्यते।
५. सारूवियकडं (क, ख)। एतामुभयमुखीं समस्या समाधातुं अस्माभिः ६. आदर्शयो: 'संत' इति पदस्याग्रे क्रियापदं
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as अयणं (आहारपरिण्णा)
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'अवरे वि य णं" तेसि पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा गाणारा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
३. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा', तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहि रुक्खेहिं रुक्खत्ताए विउति ।
जीवा सिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आरारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] | णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वष्पणत्ताए आहारेति ? ] ।
अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
४. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा', कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएसु रुक्खेसु रुक्खत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहात ? ] ।
अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं
रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा
भणति (चू) ।
२ रुक्खवुक्कमा (ख, वृ ) । ३. तदुक्कमा (ख, वृ) ।
४. ० वक्कम ( क ) ; ° वुक्कमा (ख, वृ) | ५. रुक्खवुक्कमा (ख, वृ) सर्वत्र । ६. तदुववकमा (ख, वृ) सर्वत्र । ७. तत्थवुक्कमा (ख, वृ) सर्वत्र । ८. सरीरगं ( ख ) ।
६. सं० पा०-- णाणावण्णा जाव ते जीवा ।
नोपलभ्यते । चूर्णो 'संत' इदि पदं नास्ति व्याख्यातं, किन्तु 'सव्वप्यणत्ताए आहारेंति' इति क्रियापदं लभ्यते । वृत्तौ च सत्पदस्याग्रे तन्मयतां प्रतिपद्यते इति विवृतमस्ति । १. नागार्जुनीयास्तु - एवं सम्प्रतिपन्नाः - अवरे वि
य णं, कतरं ? संबद्धमसंबद्धं वा, जो पुढविकाइयसरीरेहिं तस्यापतितैर्भोगैः संश्लेष इत्यर्थः, तेसिं तं पुढवितप्पढमताए सिणेहमाहारयति, असंबद्धं पुण जं पासतो पुढवि सरीरं वा ते पुण पण्णत्ती आलावगा वि
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४०६
सूयगडो २ णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएसु रुक्खेसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति--ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं? ]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं ° सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तैसि रुक्खजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं 'पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं ° बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा' 'णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया °णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं । अज्झारोहरुक्खस्स आहार-पदं ६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहि रुक्खेहिं अज्झारोहत्ताए विउद्वृति। ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं° सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?]। अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा' •णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ॥ ७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा"
१. सं० पा०—सरीरं जाव सारूविकडं । २. सं० पा०-पवालाणं जाव बीयाणं । ३. सं० पा०—णाणागंधा जाव णाणाविह। ४. अज्भोरुह ० (क) सर्वत्र ।
५. सं० पा०-पुढविसरीरं जाव सारूविकडं। ६. सं० पा०–णाणावण्णा जाव मक्खायं । ७. सं० पा०-अज्झारोहसंभवा जाव कम्मणि
याणणं।
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४०७
तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
'अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा• कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएसु अज्झारोहेसु अज्झारोहत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं' अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्स इसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं ° सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] | अवरे वि य णं तेसि अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा' *णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ।। ८. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा'
'अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा ° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएसु अज्झारोहेसु अज्झारोहत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं० सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा' •णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ।। १. अहावरं परक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा'
'अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा' कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएसु अज्झारोहेसु मूलत्ताए' 'कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए ° बीयत्ताए विउद॒ति ।
१. अज्झारोहजोणियाणं (ख), अशुद्धं प्रतिभाति। ५. सं० पा०-पुढविसरीरं जाव सारूविकडं । २. सं० पा०-पूढविसरीरं जाव सारूविकडं। ६. सं० पा०----णाणावण्णा जाव मक्खायं । ३. सं० पा०-णाणावण्णा जाव मक्खायं । ७. सं० पा०--अज्झारोहसंभवा जाव कम्मणि४. सं० पा०-अज्झारोहसंभवा जाव कम्म- याणेणं। णियाणेणं ।
८. सं० पा०-मूलत्ताए जाव बीयत्ताए।
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सूयगडो २ ते जीवा तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेति'- ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तंउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] ° ॥ अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं मूलाणं•कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं ° बीयाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ॥ पुढविजोणियतणस्स आहार-पदं १०. अहावरं पुरक्खायं--इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा' 'पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा० णाणाविहजोणियासू पूढवीस तणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासिं णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति'-'ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं
सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? । अवरे वि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। "अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए
आहारेंति ?] ॥ १. सं० पा० - सिणेहमाहारेंति जाव अवरे। ५. सं० पा०-सिणेहमाहारेंति जाव ते जीवा । २. सं० पा०—मूलाणं जाव बीयाणं।
६. सं० पा०–एवं पुढविजोणिएसु तणेसु ३. सं० पो०-णाणावण्णा जाव मक्खायं । तणत्ताए विउटति जाव मक्खायं । ४. सं० पा०--पुढविसंभवा जाव णाणाविह° ।
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इयं अभयणं (आहारपरिण्णा)
४०६
अवरे विणं सिं पुढविजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा जाणारसा णाणा फासा णाणासंठाणसठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
o
१२. "अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसि तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] | णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ॥
अवरे विय णं तेसि तणजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा जाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
१३. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता
तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवकम्मा तजोणिसुतणे मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसि तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइस रीरं [तसपाणसरीरं ? ] | णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहात ? ] |
अवरे वियणं तेसिं तणजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
पुढ विजोणियओस हिस्स आहार- पर्द
१४.
अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
१. सं० पा० – एवं तणजोगिएसु तणेसु तत्ताए विउति । तणजोणियं तणसरीरं च आहारेंति जाव मक्खायं ।
२. सं० पा०—– एवं तणजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए
जाव बीयत्ताए विउट्ठेति । ते जीवा जाव मक्खायं ।
३. सं० पा० - एवं ओसहीण वि चत्तारि
आलावगा ।
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सूयगडो २ तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु ओसहित्ताए विउद॒ति ।। ते जीवा तासि णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तासि पुढविजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। १५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा, पुढविजोणियासु ओसहीसु ओसहित्ताए विउद॒ति। ते जीवा तासिं पुढविजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरोरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तासि पुढविजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। १६. अहावरं पुरक्खायं--इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा ओसहिजोणियासु ओसहीसु ओस हित्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। १७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहि
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४११ वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा ओसहिजोणियासु ओसहीसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउटुंति । ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए अ अवरे वि य णं तेसिं ओसहिजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। पुढविजोणियहरियस्स आहार-पदं १८. “अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढवि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु हरियत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासि णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्स इसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्बंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य ण तेसिं पुढविजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ १६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएसु हरिएसु हरियत्ताए विउद्भृति। ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं
१. सं० पा०-एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा।
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४१२
सूयगडो २ सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कम्मा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोगिएसु हरिएसु हरियत्ताए विउटुंति। ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारति ?। अवरे वि य णं तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया.
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। २१. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएसु हरिएसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] । अवरे वि य णं तेसिं हरियजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। पुढविजोणियकुहणस्स आहार-पदं २२. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा' पुढविवक्कमा,
१. सं० पा०--पुढविसंभवा जाव कम्म ।
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४१३ तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणियासु पुढवीसु आयत्ताए' कायत्ताए कुहणत्ताए कंदुकताए उव्वेहलियत्ताए णिव्वेहलियत्ताए सछ [त्त ?] त्ताए' छत्तगत्ताए वासाणियत्ताए करत्ताए विउदृति। ते जीवा तासिं णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं पुढविजोणियाणं आयाणं कायाणं कुहणाणं कंदुकाणं उव्वेहलियाणं णिव्वेहलियाणं सछत्ताणं छत्तगाणं वासाणियाणं कूराणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति० मक्खायं ।
'एक्को चेव आलावगो, सेसा तिण्णि णत्थि" । उदगजोणियरुक्खस्स आहार-पदं २३. अहावरं पुरक्खाय-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा 'उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु रुक्खत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं 'आउसरोरं तेउसरीरं वाउसरोरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तेसि उदगजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा" णाणागंधा
१. आयत्ताए वायत्ताए (क)।
७. सं० पा०-णाणावण्णा जाव मक्खायं । २. कुदुकत्ताए (क); कंदुत्ताए (ख)।
८. कुहणेषु त्वेक एवालापको द्रष्टव्यः, तद्यो३. सछत्ताए सज्झताए (क)।
निकानामपरेषामभावादिति भावः (व)। ४. वासि° (क)।
६. सं० पा०-उदगसंभवा जाव कम्म° । ५ सं० पा०-पुढविसरीरं जाव संतं । १०. सं० पाo--पुढविसरीरं जाव संतं। ६. आयत्ताणं (ख); सं० पा०-आयाणं जाव ११. सं० पा०-णाणावण्णा जाव मक्खायं।
कूराणं।
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४१४
सूयगडो २ णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ "अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएहि रुक्खेहिं रुक्खत्ताए विउद्भृति ।। ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरोरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरोरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ २५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु रुक्खेसु रुक्खत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेति -ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [ तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे विय णं तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। २६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु रुखेसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाण
१. सं० पा०-जहा पुढविजोणियाण रुक्खाणं चत्तारि गमा अज्झारोहाण वि तहेव, तणाणं
ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा भाणियव्वा एक्केक्के ।
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तइयं अज्झयगं (आहारपरिणा)
४१५ सरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सब्वप्पणत्ताए आहारेति ?]। अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।
अज्झारोहरुक्खस्स आहार-पदं २७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्यवक्कमा उदगजोणिएहि रुक्खेहि अज्झारोहत्ताए विउद॒ति। ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरोरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउविया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। २८. अहावरं पुरक्खायं ---इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा
अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु अज्झारोहेसु अज्झारोहत्ताए विउट्टति । ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारति पूढविसरीर आउसरीर तेउसरोर वाउसरीर वणस्सइसरोर तिसपाणसरीरं ? ] | णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कूव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीर
पोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। २६. अहावरं पुरक्खायं--इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा
अज्मारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणणं
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४१६
सूयगडो २ तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएसु अज्झारोहेसु अज्झारोहत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति--ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं ते उसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सरीरा णाणावण्णा 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणमंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पूरक्खायं--इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएसु अज्झारोहेसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेति पुढविसरोरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं कणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तेसि अज्झारोहजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पूप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउब्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं । उदगजोणियतणस्स आहार-पदं ३१. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु तणत्ताए विउद्भृति। ते जीवा तेसि णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं |तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसि उदगजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। ३२. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराण पाणाणं सरीरं अचित्तं कुवंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णागासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खाय ॥ ३३. अहावरं पूरक्खायं--इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएसु तणेसु तणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरोरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं? | णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे विय णं तेसिं तणजोणियाणं तणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ३४. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएसु तणेसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पूढविसरोरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] ।
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४१८
सूयगडो २
अवरे वि य णं तेसिं तणजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ उदगजोणियओसहिस्स आहार-पदं ३५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु ओसहित्ताए विउद॒ति। ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] | अवरे वि य णं तासि उदगजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ३६. अहावर पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणियासु ओसहीसु ओसहित्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासि उदगजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेंति पूढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं? || णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] | अवरे वि य णं तासि उदगजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं । अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तवक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा ओसहिजोणियासु ओसहीसु ओसहित्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पूढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] | णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं
३७.
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिण्णा)
४१६ कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा ओसहिजोणियासु ओसहीसु मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउम॒ति ।। ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि ओसहिजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। उदगजोणियहरियस्स आहार-पदं ३६. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु हरियत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं?] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संत [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसि उदगजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु हरिएसु हरियत्ताए विउद्भृति ।
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४२०
सूयगडो २
ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तिसपाणसरीर? 11णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएसु हरिएसु हरियत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं? ]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं हरियजोणियाणं हरियाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।। ४२. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा, कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएसू हरिएसू मूलत्ताए कंदत्ताए खंधत्ताए तयत्ताए सालत्ताए पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए बीयत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं? ] । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसि हरियजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति ति मक्खायं ॥
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४२१ उदगजोणियसेवालादिस्स आहार-पदं ४३. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा' 'उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए अवगत्ताए पणगत्ताए सेवालत्ताए कलंबुगत्ताए हढत्ताए कसेरुगत्ताए कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयताए णलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोंडरीयत्ताए महापोंडरीयत्ताए सयपत्तत्ताए सहस्सपत्तत्ताए कल्हारत्ताए कोकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिसत्ताए भिसमुणालत्ताए पुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति-- ते जीवा आहारेति पढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं [तसपाणसरीरं ?]। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारति ?] । अवरे वि य णं तेसि उदगजोणियाणं उदगाणं अवगाणं पणगाणं सेवालाणं कलंबुगाणं हढाणं कसे रुगाणं कच्छभाणियाणं उप्पलाणं पउमाणं कुमुयाणं णलिणाणं सुभगाणं सोगंधियाणं पोंडरीयाणं महापोंडरीयाणं सयपत्ताणं सहस्सपत्ताणं कल्हाराणं कोकणयाणं अरविंदाणं तामरसाणं भिसाणं भिसमुणालाणं पुक्खलाणं पुक्खलच्छिभगाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा
भवंति त्ति ° मक्खायं । रुक्खजोणियतसपाणस्स आहार-पदं ४४. "अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
१. सं० पा०----उदगसंभवा जाव कम्म । २. X (क, ख)। ३. हठत्ताए (क)। ४. पोक्खलत्थिभगत्ताए (क)। ५. सं० पा०-पुढविसरीरं जाव संतं । ६. पोक्खलत्थिभगत्ताणं (क, ख)। ७. सं० पा०--णाणावण्णा जाव मक्खायं । ८. सं० पा०-अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि, (२) रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहि, (३) रुक्ख
जोणिएहि मूलेहिं जाव बीएहिं । (४) रुक्ख जोणिएहिं अज्झोरुहेहिं; (५)अज्झोरुहजोणिएहिं अज्झोरुहेहि, (६) अज्झोरुहजोणिएहिं जाव बीएहि । (७) पुढविजोणिएहि तणेहिं, (८) तणजोणिएहि तणेहि, (९) तणजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहि। (१०-१२) एवं ओसहीहिं वि तिण्णि आलावगा। (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि
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४२२
सूयगडो २ तज्जोणिया तस्संभवा तव्ववकमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहि रुक्खेहि तसपाणत्ताए' विउद॒ति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पुरक्खायं--इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं तसपाणत्ताए विउद्भृति । ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] ।
४५.
आलावगा।
तणजोणियाण ओसहिजोणियाणं हरियजोणि(१६) पुढविजोणिएहिं आएहि जाव याणं रुक्खाणं अज्झोरुहाणं तणाणं ओसहीण कूरेहि।
हरियाणं मूलाणं जाव बीयाणं आयाणं (१) उदगजोणिएहि रुक्खेहि, (२) रुक्खजा- कायाणं जाव कुरवाणं उदगाणं जाव पुक्खणिएहि रुक्खेहि, (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहि लच्छिभगाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा जाव बीएहिं ।
आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं । (४-६) एवं अज्झोरुहेहिं वि तिण्णि ।
अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं अज्झो(७-६) तणेहि वि तिण्णि आलावगा।
रुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं (१०-१२) ओसहीहि वि तिण्णि ।
हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं जाव बीयजो(१३-१५) हरिएहि वि तिण्णि ।
णियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव (१६) उदगजोणिएहि उदएहि अवएहिं जाव कुरवजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणिपुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउटैति । याणं जाव पुक्खलच्छिभगजोणियाणं तसपाते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणि- णाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । याणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं १. चूर्णी वृत्तौ च सर्वत्रापि नासो व्याख्यातः।
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तइयं अभयणं (आहारपरिणा)
४२३
अवरे वि य णं तेसि रुक्खजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ४६. अहावरं पुरक्खायं- इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं मूलेहि कदेहि खंधेहि तयाहि सालाहि पवालेहि पत्तेहि पुप्फेहि फले हिं बीएहि तसपाणत्ताए विउद्भृति । ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य ण तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा
भवंति त्ति मक्खायं ।। अज्झारोहजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ४७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि रुक्खजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ४८. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा
अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएहिं अज्झारोहेहिं तसपाणत्ताए विउद॒ति ।
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४२४
सूयगडो २ ते जीवा तेसि अज्झारोहजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं । ४६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा
अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं कंदेहि खंहिं तयाहिं सालाहिं पवालेहि पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहिं तसपाणत्ताए विउद्भृति । ते जीवा तेसिं अज्झारोहजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] । अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
तणजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ५०. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहि तणेहि तसपाणत्ताए विउद॒ति। ते जीवा तेसिं पढविजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुवंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तणजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४२५ णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ५१. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा, तज्जो
णिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएहि तणेहि तसपाणत्ताए विउटुंति। ते जीवा तेसि तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?]। अवरे वि य णं तेसि तणजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ५२. अहावरं परक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेण तत्थवक्कमा तणजोणिएहि मूलेहि कंदेहि खंधेहिं तयाहिं सालाहिं पवाले हि पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहि तसपाणत्ताए विउद॒ति ।। ते जीवा तेसिं तणजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा
भवंति त्ति मक्खायं । ओस हिजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ५३. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणियाहिं ओसहीहिं तसपाणत्ताए विउबँति । ते जीवा तासि पुढविजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति
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४२६
५४.
सूयगडो २ पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकड संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसि ओसहिजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा ओसहिजोणियाहिं ओसहीहि तसपाणत्ताए विउद्भृति । ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं त सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारति ?] । अवरे वि य णं तेसि ओसहिजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहिवक्कमा. तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेण तत्थaaकमा ओसद्विजोणिएहि मलेहि कंदेहि खंधेहिं तयाहिं सालाहिं पवाले पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहि तसपाणत्ताए विउदृति ।। ते जीवा तेसिं ओसहिजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४२७ हरियजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ५६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहिं हरिएहिं तसपाणत्ताए विउटुंति । . ते जीवा तेसि पुढविजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि हरियजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। ५७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएहि हरिएहिं तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेंति पूढविसरोर आउसरार तेउसरीर वाउसरार वणस्सइसरीर तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?]। अवरे वि य णं तेसिं हरियजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। ५८. अहावरं पुरक्खायं---इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएहिं मूलेहि कदेहिं खंधेहिं तयाहिं सालाहि पवालेहि पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहि बीएहि तसपाणत्ताए विउति । ते जीवा तेसिं हरियजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] ।
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४२८
सूयगडो २ अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।
कुहणजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ५६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा पुढविजोणिएहिं आएहिं काएहिं कुहणेहिं कंदुकेहि उव्वेहलिएहिं णिव्वेहलिएहि सछत्तेहिं छत्तगेहिं वासाणिएहि कूरेहिं तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं आयाणं कायाणं कुहणाणं कंदुकाणं उव्वेहलियाणं णिव्वेहलियाणं सछत्ताणं छत्तगाणं वासाणियाणं कूराणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराण पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] । अवरे वि य णं तेसि आयजोणियाणं कायजोणियाणं कुहणजोणियाणं कंदुकजोणियाणं उव्वेहलियजोणियाणं णिव्वेहलियजोणियाणं सछत्तजोणियाणं छत्तगजोणियाणं वासाणियजोणियाणं कूरजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं। एक्को चेव आला
वगो, सेसा दो णत्थि। रुक्खजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ६०. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएहि रुक्खेहिं तसपाणत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरोरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] अवरे विय ण तेसिं रुक्खजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा
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६२.
तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४२६ णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं तसपाणत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा आहारेति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] । अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं -इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहि मूलेहि कदेहि खंधेहि तयाहि सालाहि पवालेहि पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहि तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति -ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य ण तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोव
वण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अज्झारोहजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ६३. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वकम्मा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहिं तसपाणत्ताए विउटुंति ।
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४३०
सूयगडो २
ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहाणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवग्गा कम्मणियाणणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएहि अज्भारोहेहि तसपाणत्ताए विउद्रति । ते जीवा तेसिं अज्झारोहजोणियाणं अज्भारोहाणं सिणेहमाहारेंति--ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं अज्झारोहजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अज्झारोहजोणिया अज्झारोहसंभवा अज्झारोहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणणं तत्थवक्कमा अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं कंदेहि खंधेहिं तयाहिं सालाहिं पवालेहिं पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहिं तसपाणत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसि अज्झारोहजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ता आहारेंति ?]। अवरे वि य णं तेसिं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पूप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।
६५.
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४३१ तणजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ६६. अहावरं पुरक्खायं- इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएहि तणेहिं तसपाणत्ताए विउद्वृति। ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?। अवरे वि य णं तेसिं तणजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ६७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएहि तणेहिं तसपाणत्ताए विउटुंति। ते जीवा तेसिं तणजोणियाणं तणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तणजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ६८. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता तणजोणिया तणसंभवा तणवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तणजोणिएहिं मूलेहि कंदेहि खंधेहिं तयाहिं सालाहिं पवालेहिं पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहिं बीएहिं तसपाणत्ताए विउम॒ति । ते जीवा तेसि तणजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति--ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पूवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] ।
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४३२
सूयगडो २
अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासं ठाणसंठिया णाणा विहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववणगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
ओस हिजो जिय-तसपाणस्स आहार-पदं
६६. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणियाहि ओसहीहिं तसपाणत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तासिं उदगजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणा विहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारति ? ] । अवरे वि य णं तेसि ओसहिजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
७०. अहावरं पुरखायं - इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओसहिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्यवक्कमा ओस हिजोणियाणं ओसहीहिं तसपाणत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तासि ओसहिजोणियाणं ओसहीणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] |
अवरे वियणं तेसि ओसहिजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
७१. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता ओसहिजोणिया ओसहिसंभवा ओस हिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवमा ओस हिजोणिएहिं मूलेहिं कंदेहिं खंधेहिं तयाहिं सालाहि पवालेहिं पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहि बीएहिं तसपाणत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसि ओसहिजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पुप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति
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तइयं अज्झणं (आहारपरिण्णा)
४३३
पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे विणं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा गाणा फासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववणगा भवंति त्ति मक्खायं ।
हरियजोणिय तसपाणस्स आहार पर्व
७२. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएहि हरिएहिं तसपाणत्ताए विउट्टंति ।
जीवा तेसिं उदगजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहात ? ] |
अवरे वि य णं तेसि हरियजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा गाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
७३. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएहि हरिएहि तसपाणत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं हरियाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे वय णं तेसिं हरियजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
७४, अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता हरियजोणिया हरियसंभवा हरियवक्कमा,
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सूयगडो २ तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा हरियजोणिएहिं मूलेहि कंदेहि खंधेहिं तयाहिं सालाहिं पवालेहिं पत्तेहिं पुप्फेहि फलेहि बीएहिं तसपाणत्ताए विउम्रुति।। ते जीवा तेसि हरियजोणियाणं मूलाणं कंदाणं खंधाणं तयाणं सालाणं पवालाणं पत्ताणं पप्फाणं फलाणं बीयाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं खंधजोणियाणं तयजोणियाणं सालजोणियाणं पवालजोणियाणं पत्तजोणियाणं पुप्फजोणियाणं फलजोणियाणं बीयजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा
कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ सेवालादिजोणिय-तसपाणस्स आहार-पदं ७५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा उदगवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कम्मा उदगजोणिएहिं उदगेहिं अवगेहिं पणगेहिं सेवालेहि कलंबुगेहिं हढेहि कसेरुगेहि कच्छभाणिएहि उप्पलेहिं पउमेहि कुमुएहिं णलिणेहिं सुभगेहि सोगंधिएहिं पोंडरीएहि महापोंडरीएहिं सयपत्तेहिं सहस्सपत्तेहिं कल्हारेहि कोकणएहि अरविंदेहिं तामरसेहिं भिसेहिं भिसमुणालेहिं पुक्खलेहिं पुक्खलच्छिभगेहि तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं अवगाणं पणगाणं सेवालाणं कलंबुगाणं हढाणं कसेरुगाणं कच्छभाणियाणं उप्पलाणं पउमाणं कुमुयाणं णलिणाणं सुभगाणं सोगंधियाणं पोंडरीयाणं महापोंडरीयाणं सयपत्ताणं सहस्सपत्ताणं कल्हाराणं कोकणयाणं अरविदाणं तामरसाणं भिसाणं भिसमूणालाणं पक्खलाणं पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं पणगजोणियाणं सेवालजोणियाणं कलंबुगजोणियाणं हढजोणियाणं कसेरुगजोणियाणं कच्छभाणिय
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४३५
जोणियाणं उप्पलजोणियाणं पउमजोणियाणं कुमुयजोणियाणं णलिणजोणियाणं सुभगजोणियाणं सोगंधियजोणियाणं पोंडरीयजोणियाणं महापोंडरीयजोणियाणं सयपत्तजोणियाणं सहस्सपत्तजोणियाणं कल्हारजोणियाणं कोकणयजोणियाणं अरविदजोणियाणं तामरसजोणियाणं भिसजोणियाणं भिसमुणालजोणियाणं पुक्खलजोणियाणं पुक्खलच्छिभग जोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
तसकाय-पगरणं
मणुस्सस्स आहार-पदं ७६. अहावरं पुरक्खायं-णाणाविहाणं मणुस्साणं, तं जहा–कम्मभूमगाणं
अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं । तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणिए', एत्थ णं मेहुणवत्तियाए णामं संजोगे समुप्पज्जइ। ते दुहओ वि सिणेहं संचिणंति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउद॒ति । 'ते जीवा माउओयं पिउसुक्क तदुभय-संसटुं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ" आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेति । अणुपुव्वेणं वुड्डा पलिपागमणुपवण्णा, तओ कायाओ अभिणिवट्टमाणा इत्थि वेगया जणयंति, पुरिसं वेगया जणयंति, णपुंसगं वेगया जणयंति । ते जीवा डहरा समाणा 'माउक्खीरं सप्पि आहारेति, अणपुव्वेणं वुड्डा ओयणं कुम्मासं तसथावरे य पाणे-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं
१. मिलक्खुयाणं (क)।
८. पनियागमणुचिण्णा (क); पलिभागमणु२. अहावकासेणं (क, ख)।
___ चिन्ना (ख)। ३. व्या० वि०-याकरणदृष्ट्या सप्तम्येकवचने ६. वेगइया (ख) सर्वत्र । दीर्घत्वं स्यात् ।
१०. चूर्णी 'माउक्खीर' शब्दस्याऽनन्तरमेव 'सप्पि' ४. माओउयं (चू)।
शब्द: व्याख्यातः, यथा--खीरं मातुः स्तन्यं, ५. पिय ° (ख)।
सप्पि घृत वा णवणीतं वा । वृत्तौ 'वूड्डा' इति ६. चूणौं असो पाठः --माओउयं सोणियं पितः शब्दस्याऽनन्तरं-नवनीतदध्योदनादिकं याव
शुक्रम्-एतावानेव व्याख्यातोस्ति, वृत्तौ च (कुल्माषान् भुञ्जते । प्रतिषु नेत्थं लभ्यते । नास्ति व्याख्यातः ।
११. सं० पा०-पूढविसरीरं जाव सारूविकडं। ७. रसविहीओ (क); रसविगईओ (चू)।
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सूयगडो २
वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं • साविक संतं [ सव्वष्पणत्ताए आहारेति ? ] ।
अवरे वि य णं तेसि णाणाविहाणं मणुस्सगाणं कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं सरीरा णाणावण्णा' ●णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउब्विया । ते जीवा कम्मोवण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
जलचरस्स आहार पदं
७७. अहावरं पुरक्खायं - णाणाविहाणं जलचराणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, तं जहा – मच्छाणं' "कच्छभाणं गाहाणं मगराणं सुंसुमाराणं । तेसि च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्म कडाए जोणिए, एत्थ गं मेहुणवत्तया णामं संजोगे समुप्पज्जइ । ते दुहओ वि सिहं संचिति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउट्टंति । ते जीवा माउओयं पिउसुक्कं तदुभय-संसदूं कलुस किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेति । अणुपुव्वेणं वुड्डा पलिपागमणुपवण्णा, तओ कायाओ अभिणिवट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति, पौयं वेगया जणयंति, से अंडे उब्भिज्जमाणे इत्थि वेगया जणयंति, पुरिसं वेगया जणयंति, णपुंसगं वेगया जणयंति । ते जीवा डहरा समाणा आउसिणेहमाहाति, अणुपुव्वेणं बुड्ढा वणस्सइकायं तस्थावरे य पाणे - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं ।
विहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं • संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे वि य णं तेसि णाणाविहाणं जलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छाणं' "कच्छभाणं गाहाणं मगराणं सुंसुमाराणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा
१. सं० पा० णाणावण्णा जाव भवंति । २. सं० पा० - मच्छाणं जाव सुंसुमाराणं । ३. सं० पा०--कम्म तहेव जाव तओ ।
४. लिभागमणुचिन्ता ( क ) ; पलितागमणुचिन्ना
(ख)।
o
५. जे ( क ) ।
६. सं० पा०- - पुढविसरीरं जाव संत | ७. सं० पा०--मच्छाणं जाव सुंसुमाराणं । ८. सं० पा० णाणावण्णा जाव मक्खायं ।
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४३७ णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। चउप्पयथलचरस्स आहार-पदं ७८. अहावरं पुरक्खायंणाणाविहाणं चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं,
तं जहा-एगखुराणं दुखुराणं गंडीपदाणं सणप्फयाणं'। तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्म'कडाए जोणिए, एत्थ णं° मेहुणवत्तिए णामं संजोगे समुप्पज्जइ। ते दुहओ वि सिणेहं संचिणंति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए ° विउद॒ति । ते जीवा माउओयं पिउसुक्क' 'तदुभय-संसटुं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेति । अणुपुव्वेणं वुड्डा पलिपागमणुपवण्णा तओ कायाओ अभिणिवट्टमाणा इत्थि वेगया जणयंति, पुरिसं वेगया जणयंति, णपुंसगं वेगया जणयंति । ते जीवा डहरा समाणा माउक्खीरं सप्पि आहारेंति, अणवेणं वा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे-ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?]। अवरे वि य णं तेसिं णाणाविहाणं चउप्पयथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं एगखुराणं 'दुखुराणं गंडीपदाणं° सणप्फयाणं सरीरा णाणावण्णा" •णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति ° मक्खायं ।। उरपरिसप्पथलचरस्स आहार-पदं ७६. अहावरं पुरक्खायं-णाणाविहाणं उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणि
याणं, तं जहा--अहीणं अयगराणं आसालियाणं महोरगाणं । तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स 'य कम्मकडाए जोणिए, एत्थ णं
१. सणपयाण (क)। २. सं० पा०-कम्म जाव मेहुणवत्तिए। ३. सं० पा०—पुरिसत्ताए जाव विउटैति। ४. सं० पा०-एवं जहा मणुस्साणं जाव इत्थि। ५. सं० पा०-पुढविसरीरं जाव संतं ।
६. सं० पा०—एगखुराणं जाव सणप्फयाणं । ७. सं० पा०—णाणावण्णा जाव मक्खायं । ८. सं० पा० - पुरिसस्स जाव एत्थ णं मेहुणे
एवं तं चेव नाणत्तं ।
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४३८
सूयगड २ मेहुणवत्ता णामं संजोगे समुप्पज्जइ । ते दुहओ वि सिणेहं संचिणंति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउट्टंति ।
जीवा माओ पिउसुक्कं तदुभय-संसद्वं कलुस किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेति । अणुपुव्वेणं बुड्ढा पलिपागमणुपवण्णा, तओ भाणा • अंडं वेगया जणयंति, पोयं वेगया जणयंति । से अंडे उभिज्ज माणे इत्थि वेगया जणयंति, पुरिसं 'वेगया जणयंति", णपुंसगं 'वेगया जयंति । ते जीवा डहरा समाणा वाउकायमाहारेंति, अणुपुव्वेणं बुड्ढा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीर आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं • संतं [ सव्वष्पणत्ताए आहारेंति ? ] |
o
अवरे वियणं तेसि णाणाविहाणं उरपरिसप्पथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अहीणं' 'अवगराणं आसालियाणं महोरगाणं सरीरा णाणावण्णा' • णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।
भुयपरिसप्पथलचरस्स आहार -पदं
८०. अहावरं पुरखखायं - णाणाविहाणं भुयपरिसप्पथलचरपंचिदियतिरिक्खजोणिया तं जहा - गोहाणं णउलाणं सेहाणं सरडाणं सल्लाणं सरवाणं खाराणं घरको इलियाणं विस्संभराणं मूसगाणं मंगुसाणं पयलाइयाणं विरालियाणं जाहाणं चाउप्पाइयाणं । तेसि च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणिए, एत्थ णं मेहुणवत्तियाए णामं संजोगे समुप्पज्जइ । ते ओवि सिहं संचिति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउति ।
ते जीवा माउओ पिउसुक्कं तदुभय-संसद्वं कलुषं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेति । अणुपुब्वेणं वुड्डा पलिपागमणुपवण्णा, ओ कायाओ अभिविट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति, पोयं वेगया जणयंति । से अंडे
१,२.पि (क, ख ) ।
३. स० पा० - पुढविसरीरं जाव संतं ।
४. सं० पा० - अहीणं जाव महोरगाणं ५. सं० पा० णाणावण्णा जाव मक्तायं ।
६. घरकोल्लि ० ( क ) ।
७. सं० पा० – जहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं ।
उरपरिसप्पाणं तहा
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिण्णा)
४३६
उज्जाणे इत्थ वेगया जणयंति, पुरिसं वेगया जणयंति, णपुंसंगं वेगया . जयंति । ते जीवा डहरा समाणा वाउकायमाहारेंति, अणुपुब्वेणं वुड्ढा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे- ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे वियणं तेसिं णाणाविहाणं भुयपरिसप्पपंचिदियथलचर तिरिक्खजोणियाणं गोहाणं' 'उलाणं सेहाणं सरडाणं सल्लाणं सरवाणं खाराणं घरकोइलियाणं विस्संभराणं मूसगाणं मंगुसाणं पयलाइयाणं विरालियाणं जाहाणं चाउप्पाइयाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
o
खहचरस्स आहार-पदं
८१. अहावरं
पुरखायं - णाणाविहाणं
खहचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं', तं जहा - चम्पक्खीणं लोमपक्खोणं समुग्गपक्खीणं विततपक्खीणं । तेसि च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणिए, एत्थ गं मेहुणवत्तया णामं संजोगे समुप्पज्जइ । ते दुहओ वि सिणेहं संचिणंति । तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए णपुंसगत्ताए विउट्टंति ।
o
ते जीवा माउओयं पिउसुक्कं तदुभय-संसद्वं कलुषं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति । तओ पच्छा जं से माया णाणाविहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेंति । अणुपुव्वेणं बुड्ढा पलिपागमणुपवण्णा, तओ कायाओ अभिणिवट्टमाणा अंडं वेगया जणयंति, पोयं वेगया जणयंति । से अंडे उब्भिज्जमाणे इत्थि वेगया जणयंति, पुरिसं वेगया जणयंति, णपुंसगं वेगया जयंति । ते जीवा डहरा समाणा माउगाय सिणेहमाहारेंति, अणुपुब्वेणं' बुड्ढा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरें" "आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं • संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेति ? ] ।
१. सं० पा० – गोहाणं जाव मक्खायं । २. खचर ० ( क ) |
३. सं० पा० – जहा उरपरिसप्पाणं नाणत्तं ।
४.
पुव्वेणं च णं ( क ) ।
५. सं० पा० - पुढविसरीरं जाव संतं ।
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४४०
सूयगडो २
अवरे वि य णं तेसि णाणाविहाणं खहचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं चम्मपक्खीणं' 'लोमपक्खीणं समुग्गपक्खीणं विततपक्खीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ॥ विलिदियस्स आहार-पदं ८२. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा' णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा अणुसूयत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं' 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं अणुसूयगाणं सरीरा णाणावण्णा
॥ णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। "अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं मणुस्साणं तिरिक्खजोणियाण य सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा दुरूवसंभवत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं मणुस्साणं तिरिक्खजोणियाण य सिणेहमाहारेंतिते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति ।
१. सं० पा०-चम्मपक्खीणं जाव मक्खायं । आदर्शेन्यत्रासौ पाठो नोपलब्धस्तेन प्रायः २. तत्थोवक्कमा (ख); ८२ सूत्रस्य वृत्तौ 'तत्र सर्वत्रापि 'तत्थवक्कमा' इति पाठः स्वीकृतः।
उपक्रम्य' तथा ८५ सूत्रस्य वृत्तौ 'तत्र ३. सं० पा०-पूढविसरीरं जाव संतं । व्युत्क्रम्य' इति व्याख्यातमस्ति । अन्यत्र ४. अणुसूयाणं (क)। सर्वत्रापि 'तत्र व्युत्क्रमा' इति व्याख्यातम। ५. सं० पा०–णाणावण्णा जाव मक्खायं । लिपिदोषेणेकरूपस्यापि पाठस्य भिन्नता ६. सं० पा०–एवं दुरूवसंभवत्ताए एवं जातेति प्रतीयते। सर्वत्रापि तत्थावक्कम्म खुरदुगत्ताए। (तत्रावक्रम्य) इति पाठो युज्यते । किन्तु
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिण्णा)
परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संत [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं मणुस्सतिरिक्खजोणियाणं दुरूवसंभवाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविह
सरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं । ८४. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कम्मा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कम्मा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा खुरदुगत्ताए' विउद॒ति । ते जीवा तेसि णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं खुरदुगाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीर
पोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ आउकायस्स आहार-पदं ८५. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया' 'णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा [उदगत्ताए विउटुंति ?] । तं सरीरगं वायसंसिद्धं वायसंगहियं वायपरिगयं उड्ढेवाएसु उड्ढंभागी भवइ, अहेवाएसु अहेभागी भवइ, तिरियंवाएसु तिरियभागी भवइ, तं जहा-उस्सा' हिमए महिया करए हरतणुए सुद्धोदए। ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] ।
१. खुरुडुगत्ताए (चू)।
३. ओसा (क)। २. सं० पा०-णाणाविहजोणिया जाव कम्म। ४. सं० पा०-पुढविसरीरं जाव संतं ।
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सूयगड २
अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं उस्साणं' 'हिमगाणं महिगाणं करगाणं हरतणुगाणं° सुद्धोदगाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासं ठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवति त्ति मक्खायं ।
o
८६. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उदगसंभवा' 'उदगवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा • कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तसथावरजोगिएसु उदएसु उदगत्ताए विउट्टंति । ते जीवा तेसिं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्व पणत्ताए आहारेति ? ] ।
अवरे वि य णं तसथावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउब्विया । ते जीवा कम्मो ववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ ८७. अहावरं पुरखखायं -- इहेगइया सत्ता उदगजोणिया ' 'उदगसंभवा उदगवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा
उदगजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउट्टंति ।
ते जीवा तेसिं उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरी आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे वियणं तेसि उदगजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णासारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउब्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
८८. अहावरं पुरक्खायं - इहेगइया सत्ता उदगजोणिया 'उदगसंभवा उदगवक्कमा,
४४२
१. सं० पा०-- उस्साणं जाव सुद्धोदगाणं । २. सं० पा० णाणावण्णा जाव मक्खायं । ६. सं० पा०- उदगसंभवा जाव कम्म० । ४. सं० पा० - पुढविसरीरं जाव संतं । ५. सं० पा० णाणावण्णा जाव मक्खायं ।
६. सं० पा०-- उदगजोणिया जाव
उदगजोणियाणं ( ख ) अशुद्धं प्रतिभाति । ७. सं० पा०- - पुढविसरीरं जाव संतं ।
८. सं० पा० - णाणावण्णा जाव मक्खायं । ६. सं० पा० - उदगजोणिया जाव कम्म ०
1
कम्म;
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिण्णा)
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा° कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा उदगजोणिएसु उदएसु तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं उदगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अगणिकायस्स आहार-पदं ८६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया' •णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा' कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्ते वा अगणिकायत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पूढविसरीरं 'आउसरीरं तेउसरीरंवाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ° संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं अगणीणं सरीरा णाणावण्णा" *णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल
विउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति ° मक्खायं ॥ ६०. "अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अगणिजोणिया अगणिसंभवा अगणि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तसथावरजोणिएसु अगणीसु अगणिकायत्ताए विउदृति। ते जीवा तेसि तसथावरजोणियाणं अगणीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं ।
१. सं० पा०--पुढविसरीर जाव संतं । २. सं० पा०–णाणावण्णा जाव मक्खायं । ३. सं० पा०-णाणाविहजोणिया जाव कम्म। ४. सं० पा०-पुढवसरीरं जाव संतं ।
५. सं० पा०—णाणावण्णा जाघ मक्खायं । ६. सं० पा०-सेसा तिणि आलावगा जहा
उदगाणं ।
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९१.
सूयगडो २ णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं अगणीणं सरीराणाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अगणिजोणिया अगणिसंभवा अगणिवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अगणिजोणिएसु अगणीसु अगणिकायत्ताए विउम्रुति।। ते जीवा तेसि अगणिजोणियाणं अगणीणं सिणेहमाहारेति–ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसि अगणिजोणियाणं अगणीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।। १२. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता अगणिजोणिया अगणिसंभवा अगणि
वक्कमा, तज्जोणिया तस्ससंभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा अगणिजोणिएसु अगणीसु तसपाणत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि अगणिजोणियाणं अगणीणं सिणेहमाहारेति ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पध्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सवप्पणत्ताए आहारेंति ?] | अवरे वि य णं तेसि अगणिजोणियाणं तसपाणाणं सरीराणाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥
वाउकायस्स आहार-पदं ६३. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया' णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा ° कम्मणिया
. सं० पा०-णाणाविहजोणिया जाव कम्म° ।
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिणा)
४४५ णणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा वाउक्कायत्ताए विउद॒ति । "ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जोवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरोरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं वाऊणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया । ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता वाउजोणिया वाउसंभवा वाउवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तसथावरजोणिएसु वाऊसु वाउकायत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसि तसथावरजोणियाणं वाऊणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं ते उसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?]। अवरे वि य णं तेसि तसथावरजोणियाणं वाऊणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरोरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता वाउजोणिया वाउसंभवा वाउवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा वाउजोणिएसु वाऊसु वाउकायत्ताए विउद॒ति । ते जीवा तेसिं वाउजोणियाणं वाऊणं सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पढविसरीरं आउसरीरं तेउसरोरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] अवरे वि य णं तेसिं वाउजोणियाणं वाऊणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गल विउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।।
९५.
१. सं० पा०-जहा अगणीणं तहा भाणियब्वा चत्तारिगमा।
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४४६
सूयगडो २
६६. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता वाउजोणिया वाउसंभवा वाउवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा वाउजोणिएसु वाऊसु तसपाणत्ताए विउटुंति । ते जीवा तेसि वाउजोणियाणं वाऊणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्स इसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तेसिं वाउजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। पुढविकायस्स आहार-पदं ६७. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया' णाणाविहसंभवा
णाणाविहवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पुढवित्ताए सक्करत्ताए वालुयत्ताए जाव' सूरकतत्ताए विउटुंति। ते जीवा तेसि णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं' 'आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति।
१. सं० पा०-णाणाविहजोणिया जाव कम्म। ३. गोमेज्जए य रुयए, २. जाव शब्दस्य पूरकपाठः-इमाओ गाहाओ
अंके फलिहे य लोहियक्खे य। अणुगंतव्वाओ
मरगय मसारगल्ले, १. पुढवी य सकरा वालुया य,
भुयमोयगइंदनीले य॥
४. चंदणगेरुयहंसगब्भ, उवले सिला य लोणसे ।
पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे । अय तउय तम्ब सीसग,
चंदप्पभवेरुलिए, रुप्प सुवण्णे य वइरे य॥
जलकते सूरकते य॥ २. हरियाले हिंगुलुए,
एयाओ एएसु भाणियव्वाओ गाहाओमणोसिला सासगंजणपवाले।
(क, ख) । उल्लिखितसंग्रहगाथानां चूणौँ अब्भपडलब्भवालुय,
वृत्तौ च कोपि संकेतो नोपलभ्यते । बायरकाए मणिविहाणा॥ ३. सं० पा०-पूढविसरीरं जाव संतं ।
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तइयं अज्झयणं (आहारपरिण्णा)
४४७
परिविद्धत्थं तं सरीरं पुवाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं ० संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेति ?] । अवरे वि य णं तासि तसथावरजोणियाणं पुढवीणं' 'सक्कराणं वालुयाणं जाव ° सूरकंताणं सरीरा णाणावण्णा' 'णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरी रपोग्गल विउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति° मक्खायं ।। ३"अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा तसथावरजोणियासु पुढवीसु पुढवित्ताए विउद॒ति । ते जीवा तासिं तसथावरजोणियाणं पुढवीण सिणेहमाहारेति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पूव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणय सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए अ अवरे वि य णं तासिं तसथावरजोणियाणं पूढवीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ।। 88. अहावरं पुरक्खायं --इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेगं तत्थवक्कमा पुढविजोणियासु पुढवीसु पुढवित्ताए विउट्ठति । ते जीवा तासि पुढविजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारेंति-ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्स इसरीरं तसपाणसरीरं। णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वति । परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ?] । अवरे वि य णं तासि पुढविजोणियाणं पुढवीणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा णाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया णाणाविहसरीरपोग्गलविउव्विया।
ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ॥ १००. अहावरं पुरक्खायं-इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा पुढविवक्कमा,
तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा
पुढविजोणियासु पुढवीसु तसपाणत्ताए विउम॒ति । १. सं० पा.---पुढवीणं जाव सूरकताणं । ३. सं० पा०-सेसा तिण्णि आलावगा जहा २. सं० पा०-णाणावण्णा जाव मक्खायं । उदगाणं ।
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४४८
सूयगड २
जीवा तासं पुढविजोणियाणं पुढवोणं सिणेहमाहारेति - ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरोरं वाउसरोरं वणस्सइसरीरं तसपाणसरीरं । विहाणं तस्थावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति । परिविद्वत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं विपरिणयं सारूविकडं संतं [ सव्वप्पणत्ताए आहारेंति ? ] ।
अवरे वियणं तेसिं पुढविजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा णाणावण्णा णाणागंधा गाणारसा णाणाफासा णाणासंठाणसंठिया पाणाविहसरोरपोग्गलविउध्विया । ते जीवा कम्मो ववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं ० ॥
निक्खेव पदं
१०१. अहावरं पुरक्खायं सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा णाणाविहवक्कमा, सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरक्कमा, सरीराहारा कम्मोवगा कम्मणियाणा कम्मगइया कम्मठिया कम्मणा' चेव विपरियासमुर्वेति ॥ १०२. सेवमायाणही सेवमायाणित्ता' आहारगुत्ते समिए सहिए सया जए ।
-त्ति बेमि ॥
१. कम्मुणा ( क ) ।
२, ३. से एव° ( ख ) ।
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चउत्थं अज्झयणं पच्चक्खाणकिरिया
पइण्णा -पदं
सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु पच्चक्खाणकिरियाणामज्झयणे। तस्स णं अयम?-आया अपच्चक्खाणी यावि भवइ। आया अकिरियाकूसले यावि भवइ । आया मिच्छासंठिए यावि भवइ । आया एगंतदंडे यावि भवइ। आया एगंतबाले यावि भवइ । आया एगंतसुत्ते यावि भवइ । आया अवियार-मण-वयण-काय-वक्के यावि भवइ । आया अप्पडिहयपच्चक्खाय'-पावकम्मे यावि भवइ। एस खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते। से बाले अवियार-मण-वयण
काय-वक्के सुविणमवि ण पस्सइ, पावे य से कम्मे कज्जइ ।। चोयगस्स अक्खेव-पदं २. तत्थ चोयए पण्णवर्ग एवं वयासो-असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए
पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मणवयण'-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे णो कज्जइ। कस्स णं तं हेउं? चोयए एवं ब्रवीति'—अण्णयरेणं मणेणं पावएणं मणवत्तिए' पावे कम्मे कज्जइ, अण्णयरीए वईए पावियाए वइवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अण्णयरेणं
१. अपच्चक्खाय (ख)। २. वयस (क, ख)।
३. बवीति (क्व)। ४. पत्तिए (क)।
४४६
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४५०
सूयगडो २ काएणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियारमण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि पासओ-एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कज्जइ। पुणरवि चोयए एवं ब्रवीति –तत्थणं जेते एवमाहंसु-असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइ
[तत्थ णं जे ते एवमाहंसु] ' मिच्छं ते एवमाहंसु ॥ हेउ-पदं ३. तत्थ पण्णवए चोयगं एवं वयासी-जं मए पुव्वं वुत्तं असंतएणं मणेणं पावएणं,
असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइतं सम्म। कस्स णं तं हेउं ? आचार्य आह-तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहापढविकाइया' 'आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया. तसकाइया। इच्चेतेहि छहि जीवणिकाएहिं आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ-विओवात-चित्त-दंडे, तं जहा-'पाणाइवाए 'मुसावाए अदिण्णादाणे मेहणे परिग्गहे कोहे 'माणे मायाए लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुण्ण परपरिवाए अरइरईए मायामोसे° मिच्छादसणसल्ले ॥
१. एतत् पुनरुक्तं वर्तते तेन कोष्ठके विन्यस्तम् । २. सं० पा०-पुढविकाइया जाव तसकाइया। ३. विउवाय (क, ख)। ४. सं० पा०-पाणाइवाए जाव परिग्गहे। ५. सं० पा० -कोहे जाव मिच्छा । ६. प्राणातिपातादारभ्य मिथ्यादर्शनशल्यपर्यन्तं
संक्षिप्तपाठो वर्तते। चूणिवृत्त्योरनुसारेण स एवं विस्तृतो भवति–पाणाइवाए आया अपडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढपाणाइवायचित्तदंडे भवइ। मुसावाए आया अप्पडियपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढमुसावायचित्तदंडे भवइ । अदिण्णादाणे आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ
अदिण्णादाणचित्तदंडे भवइ । मेहणे आया अपडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढमेहणचित्तदंडे भवइ । परिग्गहे आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढपरिग्गहचित्तदंडे भवइ। कोहे आया अप्पडियपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्च पसढकोहचित्तदंडे भवइ। माणे आया अप्पडिहयपच्चक्खायपावक्कमे णिच्चं पसढमाणचित्तदंडे भवइ । मायाए आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढमायचित्तदंडे भवइ । लोहे आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्च पसढलोहचित्तदंडे भवइ। पेज्जे आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ़पेज्जचित्तदंडे
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चउत्थं अज्झयणं (पच्चक्खाण किरिया )
दिट्ठत-पदं
४. आचार्य आह - तत्थ खलु भगवया वहए दिट्ठते पण्णत्ते से जहाणामए वहए सिया गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रण्णो वा रायपुरिसस्स वा खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्धूण वहिस्सामित्ति पहारेमाणे ।
से किं णु हु णाम से वहए 'तस्स वा' गाहावइस्स तस्स' वा गाहावइपुत्तस्स तस्स' वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स' खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्दूणं हिस्सामित्ति पहारेमाणे " दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसद - विओवाय' - चित्तदंडे भवइ ? एवं वियागरेमाणे समिया वियागरे ?
चोए - हंता भवइ ॥
उaणय-पदं
५. आचार्य आह - जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स तस्स वा गाहावइपुत्तस्स तस्स वाणो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्धूण हिस्सामित्ति पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढ - विओवाय' - चित्तदंडे, एवामेव बाले वि सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं • सव्वेसि सत्ताणं दिया वा राओ वा
भवइ । दोसे आया अप्पsिहयपच्चक्खायपावकम्मे णिच्चं पसढदोस चित्त दंडे भवइ । कल आया अपsिहयपच्चकखाय- पाव कम्मे णिच्चं पसढकलह चित्तदंडे भवइ । अब्भक्खाणे आया अपsिहयाच्चकवाय पावकम्मे णिच्चं पढअभक्खाणचित्त दंडे भवइ । पेसुणे आया अपपिच्चकखाय - पावकम्मे णिच्वं पसढपेसुण्णचित्तदंडे भवइ । परपरिवार आया अपsिहयपच्चक्खाय - पावकम्मे णिच्चं पसढपरपरिवायचित्तदंडे भवइ । अरइरईए आया अपिच्चखाय - पावकम्मे णिच्चं पसढअरइरईचित्तदंडे भवइ । मायामोसे आया अपपिच्चवखाय - पावकम्मे णिच्चं पसढमायामसचित्तदंडे भवइ । मिच्छादंसणसल्ले १० आया अपsिहपच्चक्खाय - पावकम्मे णिच्चं
८.
C.
पसढमिच्छादंसणसल्ल चित्तदंडे भवइ ।
१. X ( ख ) ।
२, ३, ४. X ( ख ) । ५. ० पुरिसस्स वा ( ख ) ।
६. नागार्जुनीयास्तु पठन्ति - 'अप्पणो अक्खणया तस्स वा पुरिसस्स छिद्द अलभमाणे णो वहे, तं जया मे खणो भविस्सर तस्स पुरिसस छिद्द भिस्सामि तया मे स पुरिसे अस्सं वयव्वे भविस्सइ, एवं मणो पहारेमाणे (चू वृ) ।
७. विउवाय ( क, ख ) ।
० मीति ( क )
४५१
।
वित्तिवाय ( क ) ।
सं० पा०-- पाणाणं जाव सव्वेसिं ।
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४५२
सूयगडो २
सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढ विओवाय'चित्तदंडे, तं जहा - पाणाइवाए जाव' मिच्छादंसणसल्ले' ।
एस' खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पsिहयपच्चक्खाय - पावकम्मे किरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते 'यावि भवइ" ।
से बाले अवियारमण-वयण' - काय वक्के सुविणमविण पस्सइ, पावे य से कम्मे
कज्जइ ||
णिगमण-पदं
६. जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स" "तस्स वा गाहावइपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स 'पत्तेयं - पत्तेयं" 'चित्तं समादाय" दिया वा राओ वा सुत्वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढ - विओवायचित्तदंडे भवइ, एवामेव बाले सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं • सव्वेसि सत्ताणं पत्तेयं पत्तेयं चित्तं समादाय दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढ - विओवाय - चित्तदंडे
भवइ ॥
चोयगस्स अक्खेव पदं
७. 'णो इणट्टे समट्टे" - इह खलु बहवे पाणा, जे इमेणं सरीरसमुस्सएणं णो दिट्ठा वा सुया वा णाभिमया" वा विष्णाया वा, जेसि णो पत्तेयं-पत्तेयं चित्तं समादाय दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए णिच्चं पसढ - विओवाय चित्तदंडे, तं जहा --- 'पाणाइवाए जाव" मिच्छादंसणसल्ले" ॥
१. विउवाय ( क, ख ) ।
२. सू० २/४ | ३ |
३. णिच्चं पसढपाणाइवायचित्त दंडे णिच्चं पसढमुसावायचित्तदंडे, णिच्चं पसढअदिण्णादाण चित्तदंडे एवं 'मिच्छादंसण सल्ल' पर्यन्तं पाठयोजना कार्या । द्रष्टव्यम् - तृतीयसूत्रे एततुल्यपाठस्य पादटिप्पणम् ।
७. सं० पा० – गाहावइस्स जाव तस्स । ८. पत्ते ( क, ख ) ।
६. चित्तसमादाए ( क, ख ) ।
१०
११.
सं० पा० पाणाणं जाव सव्वेसि ।
णो इणत्थे समत्थे चोयक : (क); णो इट्टे
चोदकः ( ख ) ।
१२. णाभिमुत्ता ( क ) 1
१३. चित्तसमादाए (क, ख ) ।
४. एवं ( ख ) ।
५. प्रथम सूत्रे एतत्तुल्यवाक्ये 'यावि भवइ' इति १४. सू० २| ४ | ३ |
पाठांशो नास्ति । ६. वयस ( क ) ।
१५. द्रष्टव्यम् - पंचमसूत्रे एतत्तुल्यपाठस्य पादटिप्पणम् ।
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चउत्थं अज्झयणं (पच्चक्खाणकिरिया)
४५३ सण्णि-असण्णि-दिद्वैत-पदं ८. आचार्य आह-तत्थ खलु भगवया दुवे दिटुंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिटुंते
य असण्णिदिटुंते य॥ ६. से कि तं सण्णिदिटुंते ?
सण्णिदिट्ठते-जे इमे सण्णिपंचिदिया पज्जत्तगा। एतेसि णं छज्जीवणिकाए
पडुच्च', [पइण्णं कुज्जा ?] । १०. से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । तस्स णं एवं भवइ - एवं
खलू अहं पढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। णो चेव णं से एवं भवइ-इमेण वा इमेण वा । से ‘य तेणं पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ" पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय
पावकम्मे यावि भवइ॥ ११. “से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । तस्स णं एवं भवइ
एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। णो चेव णं से एवं भवइ-इमेण वा इमेण वा। से य तेणं आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ आउकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे
यावि भवइ ।। १२. से एगइओ तेउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ-एवं
खलु अहं तेउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि । णो चेव णं से एवं भवइइमेण वा इमेण वा । से य तेणं तेउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । से य
तओ तेउकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे याविभवइ ।। १३. से एगइओ वाउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । तस्स णं एवं भवइ - एवं
खलु अहं वाउकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि । णो चेव णं से एवं भवइइमेण वा इमेण वा। से य तेणं वाउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि ।
१. अत्र पूरकपाठरूपेण चूर्णिगतविवरणं लभ्यते- अहं षट्सु जीवनिकायेषु मध्ये पृथिवीकायेन
एवं चोदएण वुत्ते पण्णवतो भणति-जइ वि वैकेन वालुकाशिलोपललवणादि स्वतस्स अपच्चक्खाणियस्स अणवकारेसु अणु- रूपेण 'कृत्य'–कार्य कुयी, स चैवं कृतवजूज्जमाणेसु यतः सन्निकृष्टेसू विप्रकृष्टेस प्रतिज्ञस्तेन, तस्मिन् तस्मात्तं वा करोति वधचित्तं ण उप्पज्जति तहा वि सो तेसु कारयति च (व)।
अविरति प्रत्ययादमुक्तवैरो भवति। ४. एतेणं (ख)। २. पडुच्च, तं जहा--पुढविकायं जाव तसकायं ५. ताओ (क, ख)। (क, ख); व्याख्यांशोयं प्रतीयते ।
६. सं० पा०-एवं जाव तसकाए त्ति भाणि३. एवं भूतां प्रतिज्ञां-नियमं कुर्यात् । तद्यथा- यवं।
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४५४
सूयगडो २ से य तओ वाउकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि
भवइ॥ १४. से एगइओ वणस्सइकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ
एवं खलु अहं वणस्सइकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। णो चेव णं से एवं भवइ-इमेण वा इमेण वा। से य तेणं वणस्सइकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । से य तओ वणस्सइकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहय
पच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ॥ १५. से एगइओ तसकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं
खल अहं तसकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि । णो चेव णं से एवं भवइइमेण वा इमेण वा। से य तेणं तसकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । से य तओ तसकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि
भवइ० ॥ १६. से एगइओ छज्जीवणिकाएहि किच्चं करेइ वि कारवेइ वि । तस्स णं एव भवइ
एवं खलु छज्जीवणिकाएहिं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। णो चेवणं से एवं भवइ–इमेहि वा इमेहिं वा। से य तेहि छहि जीवणिकाएहि किच्चं करेइ वि ° कारवेइ वि । से य तेहिं छहिं जीवणिकाएहि असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे, तं जहा-'पाणाइवाए जाव' मिच्छादसणसल्ले'। एस खलु भगवया अक्खाए अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे सुविणमवि 'ण पस्सइ" पावे य से कम्मे कज्जइ। –से तं सण्णिदिटुंते॥
१. सं० पा.---जीवणिकाएहिं जाव कारवेइ। निर्दिष्टा पाठपद्धतिः प्रजायते-से एगइओ २. सू० २।४।३।
मुसं वयइ वि वाएइ वि। तस्स णं एवं ३. एवं मुसावाते वि, ण तस्स एवं भवति-इदं भवइ-एवं खलु अहं सव्वदव्वेसु मुसं वएमि
मया वक्तव्यमन्तं इदं नो वत्तव्वमिति, से य वि, वाएमि वि । णो चेव णं से एवं भवइततो मुसावायातो तिविहेण असंजते । इमं वत्तव्वं, इमं ण वत्तव्वं । से य सव्वदन्वेसु अदिण्णादाणे इदं मया घेत्तव्वं अमुगस्स ण । मुसं वयइ वि, वाएइ वि। से य णं तओ मेथुणं इमं सेवियब्वं इमं ण । परिग्गहे इम मुसावायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयघेत्तव्वं इमं ण। कोहे इमस्स रूसितव्वं इमस्स पच्चक्खाय-पावकम्मे । एवं 'मिच्छादसणण । एवं जाव परपरिवाए इमं वा विभासा। सल्ल' पर्यन्तं पाठयोजना कार्या। मिच्छादसणे इमं तत्त्वमिति शेषमतत्त्वमिति ४. ० अपच्चक्खाय (क, ख)। (च)। अस्य चुणिविवरणस्याधारण निम्न- ५. अपस्सओ (क, ख)।
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चउत्थं अभयणं ( पच्चक्खाणकिरिया )
१७. से किं तं असण्णिदिट्टंते ?
अदिते - जे इमे प्रसण्णिणो पाणा, तं जहा - पुढविकाइया' 'आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया॰ वणस्सइकाइया छट्ठा वेगइया तसा पाणा । जेसि णो तक्का इ वा सण्णा इवा पण्णा इ वा मणे इ वा वई इ वा सयं वा करणाए, अहिं वा कारवेत्तए, करेंतं वा समणुजाणित्तए, ते वि णं बाला सव्वेसि पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं दिया वा राओ वा सुत्ता' वा जागरमाणा' अमित्तभूया मिच्छासंठिया णिच्चं पसढ - विओवायचित्तदंडा, तं जहा - 'पाणाइवाए जाव' मिच्छादंसण सल्ले" |
o
इच्चेवं जाणे' णो चेव मणो णो चेव वई पाणाणं' भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परितप्पणयाए, ते दुक्खण- सोयण' 'जूरण तिप्पण पिट्टण परितप्पण-वह-बंध" परिकिलेसाओ अपडिविरया भवंति ।
o
इति" खलु ते असण्णिणो वि संता अहोणिसं पाणाइवाए उवक्खाइज्जति जाव" अहोणिसंमिच्छादंसणसल्ले उवक्खा इज्जति ॥
सण असण - दिट्ठतस्स परिसेस-पदं
१८. सव्वजोणिया वि खलु सत्ता-सण्णिणो हुच्चा असणिण्णो होंति, असण्णिणो हुच्चा सण्णिणो होंति, होच्चा सण्णी अदुवा असण्णी । तत्थ से अविविचित्ता अविधूणित्ता" असंमुच्छित्ता अणणुतावित्ता असणिकायाओ वा सण्णिकार्य संकमंति, afraterओ वा असण्णिकाय संकमंति, सष्णिकायाओ वा सण्णिकार्य संकमंति, असणिकायाओ वा असण्णिकायं संकमंति ॥
१६.
जेएए सण्णी वा असण्णी वा सव्वे ते मिच्छायारा णिच्चं पसढ-विओवायचित्तदंडा, तं जहा - 'पाणाइवाए जाव" मिच्छादंसणसल्ले" ।।
१. सं० पा० पुढविकाइया जाव वणस्सइ
काइया ।
२. सं० पा० पाणाण जाव सव्वेसिं ।
३. सुत्ते ( क, ख )
४. जागरमाणे ( क, ख ) ।
५. सू० २।४।३ ।
६. द्रष्टव्यम् - पञ्चमसूत्रे एतत्तुल्यपाठस्य पादटिप्पणम् । एकवचनस्य स्थाने बहुवचनं कार्यमिति विशेषः ।
४५५
७. जाण ( क ) ; जाव ( ख ) ।
८. सं० पा०—पाणाणं जाव सत्ताणं ।
६. सं० पा० - सोयण जाव परितप्पण । १०. बंधण (क, चू) ।
११. इह ( क ) ।
१२. ये (वृ) ।
१३. सू० २।४।३ ।
१४. अविधुणित्ता ( क ) ; अविघूर्णिता ( ख ) । १५. सू० २/४ | ३ |
१६. द्रष्टव्यम् - पंचमसूत्रे एतत्तुल्यपाठस्य पादटिप्पणम् । एकवचनस्य स्थाने बहुवचनं कार्य - मिति विशेषः ।
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सूयगडो २
२०. एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहय-पच्चवखाय-पावकम्मे
सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते । से बाले अवियारमण-वयण-काय-वक्के सुविणमवि ण पासइ, पावे य से कम्मे कज्जइ॥
संजय-पदं २१. चोयग:-से किं कुव्वं ? कि कारवं ? कहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय
पावकम्मे भवइ ? आचार्य आह-तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकायाहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-पुढवीकाइया' 'आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया° तसकाइया। से जहाणामए मम अस्सातं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा' वा कवालेण वा आतोडिज्जमाणस्स वा' 'हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा किलामिज्जमाणस्स वा उवद्दविज्जमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि-इच्चेवं जाण । सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेण वा 'अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा° कवालेण वा आतोडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा तालिज्जमाणा वा परिताविज्जमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उवद्दविज्जमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं णच्चा सव्वे पाणा" 'सव्वे भूया सव्वे जीवा ° सव्वे सत्ता ण हंतव्वा •ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा° ण उद्दवेयव्वा ।
एस धम्मे धुवे णिइए सासए समेच्च लोग खेत्तण्णेहिं पवेइए॥ २२. एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ जाव' मिच्छादसणसल्लाओ। २३. से भिक्खू णो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा, णो अंजणं, णो वमणं, णो
धूवणेत्तं पिआइए॥
१. सं० पा.-पुढविकाइया जाव तसकाइया। ६. सं० पा० -तालिज्जमाणा वा जाव उवद्द२. लेलूण (क, ख)।
विज्जमाणा। ३. सं० पा०-आतोडिज्जमाणस्स वा जाव ७. सं० पा०-पाणा जाव सव्वे । __उवद्दविज्ज ।
८. सं० पा०-हंतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा। ४. हिंसक्कारं (क, ख)।
६. सू० २।४।३। ५. सं० पा०-दंडेण वा जाव कवालेण । १०. पिआदिते (क, ख)।
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४५७
उत्थं अभय ( पच्चक्खाणकिरिया )
२४. से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे' 'अमाणे अमाए • अलोभे उवसंते परिfrogs ||
२५. एस खलु भगवया अक्खाए संजय विरय पडिहय पच्चक्खाय - पावकम्मे afar ias inडिए यावि भवइ ।
१. सं० पा०-
- अकोहे जाव अलोभे ।
-
-त्ति बेमि ॥
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१. 'आदाय
बंभचेरं
च
अस्सि धम्मे अणायारं
सासय- असासय-पदं
२. अणादीय
सासयमसासए
३. एएहिं
ठ
ठाणेह
एएहिं ४. समुच्छिज्जिहिति सत्थारो
गंठिगा वा भविस्संति,
५. एएहिं
सरिस - असरिस-पदं
६. जे केइ
सरिसं
७. एएहिं
एएहि
दोह दोह
पंचमं अज्झयणं
यारसु
ठाणे
दोहि हिं दोहि ठाणे
परिण्णाय'
वा*
१. बंभचेर आदाय (च्) ।
२. परिण्णाते ( क ) ।
खुड्डगा पाणा तेहि वेरं ति दोहि ठाणे दोहि ठह
३. ० दग्गे ( क ) ; अणवयग्गे ( क्व ) ।
४. वावि (क, ख ) |
•
आपणे इमं णायरेज्ज कयाइ
अणवदग्गं ति वा पुणो ।
इइ दिट्ठि ण ववहारो ण अणायारं विजाण ॥
धारए ॥ विज्जई |
वई ।
वि ॥
अणेलिसा ।
सव्वे पाणा सासयं ति व णो वए । ववहारो ण अणायारं विजाण ॥
विज्जई |
महालया ।
अदुवा संति असरिसं ति य णो वए ॥
ववहारो अणायारं
ण विज्जई । विजाण ॥
५. तु जाए ( क, ख ); तु विजाणए (वृ) सर्वत्र । ६. समुच्छेहिति ( ख ) ; वोच्छिज्जिस्संति ( चू) । ७. व (ख)।
८. विशदृशम् - असदृशम् (वृ ) ।
૪૬૬
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४५६
पंचमं अज्झयणं (आयारसुर्य) अहाकम्म-पदं ८. अहाकम्माणि भुंजंति' 'अण्णमण्णे सकम्मुणा।
उवलित्ते त्ति जाणिज्जा अणवलित्ते त्ति वा पणो । ६. एएहिं दोहि ठाणेहिं ववहारो ण विज्जई ।
___ एएहिं दोहि ठाणेहि अणायारं विजाणए ।। सरीरवीरिय-पदं १०. जमिदं ओरालमाहारं कम्मगं च तमेव' य ।
सव्वत्थ वीरियं अत्थि णत्थि सव्वत्थ वीरियं ।। ११. एएहि दोहि ठाणेहिं ववहारो ण विज्जई।
एएहिं दोहि ठाणेहि अणायारं विजाणए । लोगादीणं अत्थित्त-सण्णा-पदं १२. णत्थि लोए अलोए वा णेवं सण्णं णिवेसए ।
अत्थि लोए अलोए वा एवं सण्णं णिवेसए । १३. णत्थि जीवा अजीवा वा वं सणं णिवेसए।
अस्थि जीवा अजीवा वा एवं सण्णं णिवेसए । १४. णत्थि धम्मे अधम्मे वा णेवं सणं णिवेसए ।
अत्थि धम्मे अधम्मे वा। एवं सण्णं णिवेसए॥ णत्थि बंधे व मोक्खे वा जेवं सण्णं णिवेसए ।
अत्थि बंधे व मोक्खे वा एवं सण्णं णिवेसए । १६. णत्थि पुण्णे व पावे वा । णेवं सण्णं णिवेसए।
अस्थि पुण्णे व पावे वा एवं सणं णिवेसए॥ १७. णत्थि आसवे संवरे वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि आसवे संवरे वा एवं सण्णं णिवेसए । १८. णत्थि वेयणा णिज्जरा वा णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि वेयणा णिज्जरा वा एवं सण्णं णिवेसए॥ १६. णत्थि किरिया अकिरिया वा __णेवं सण्णं णिवेसए।
अत्थि किरिया अकिरिया वा एवं सण्णं णिवेसए । २०. णत्थि कोहे व माणे वा णेवं सणं णिवेसए।
अत्थि कोहे व माणे वा एवं सण्णं णिवेसए॥
१. आहाकडाति (क); अहाकडाणि (ख)। कम्मुणा (चू)। २. चूर्णी ' जति' इति शब्दो नास्ति व्याख्यातः। ४. तहेव (ख) । ३. अन्नमन्नेसु कम्मणा (ख); अण्णमणस्स
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४६०
माया व लोभे वा माया व लोभे वा
२१. णत्थि अत्थि २२. णत्थि पेज्जे' व दोसे वा अस्थि पेज्जे व दोसे वा २३. णत्थि चाउरते
अस्थि चाउरते
२४. णत्थि
अत्थि २५. णत्थि
अतिथ सिद्धी असिद्धी वा २६. णत्थि सिद्धी णियं ठाणं अत्थि सिद्धी णियं ठाणं २७. णत्थि
देवो व देवी वा
वा
देवो व देवी सिद्धी असिद्धी वा
साहू साहू वा अत्थि साहू असाहू वा २८. णत्थि कल्लाणे पावे वा अस्थि कल्लाणे पावे वा २६. कल्लाणे पावए वा वि जं वेरं तं ण जाणंति as - विवेग-पदं
३०.
असे सं अक्खयं वावि वज्झा पाणा 'अवज्भ त्ति" दीसंति अप्पाण 'एए मिच्छोवजीवित्ति" ३२. दक्खिणाए
३१.
ण वियागरेज्ज ३३. इच्चे हिं
धारयंते उ
संसारे संसारे
१. रागे (क्व ) ।
२. सव्व (क, ख ) ।
३. अब ति ( ख ) ।
पडिलंभो
मेहावी,
ठह
४. णीसरे ( ख ) ।
५. समियाचारा (क, ख, वृपा ) ।
अप्पा
णेवं सण्णं णिवेसए ।
एवं सण्णं णिवेसए || णेवं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेसए ॥ णेवं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेसए || णेवं सण्णं णिवेसए ।
एवं सण्णं णिवेसए || णेवं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेस ॥
वं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेसए ॥ णेवं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेसए ॥ वं सण्णं णिवेसए । एवं सण्णं णिवेस | ववहारो ण विज्जइ । समणा बालपंडिया ||
सव्वं दुक्खे ति वा पुणो । इति वायं ण
णीसि ॥
साहुजीवणो ।
ण
भिक्खुण इति दिट्ठि 'अत्थि वा णत्थि वा संतिमग्गं च बूहए || जिणें दिट्ठेहि संजए । आमोक्खाए परिव्वज्जासि ।।
-त्ति बेमि ॥
धारए ॥ पुणो ।
६. ते य मिच्छाय जीवंति ( क ) । ७. अस्थि णत्थि त्ति वा ( क ) । ८. जिणु ( क्व ) ।
ε. J (F) I
१०. अप्पाणो (क) ।
सूयगडो २
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शासन
छठें अज्झयणं
अद्दइज्जं गोसालगस्स अक्खेव-पदं १. पुराकडं' अद्द ! इमं सुणेह, एगंतचारी समणे पुरासो।
से भिक्खवो' उवणेत्ता अणेगे आइक्खतिण्ह' पुढो वित्थरेणं ।। २. साशजीविया पट्टवियाऽथिरेणं सभागओ गणओ भिक्खुमझे।
आइक्खमाणो बहुजण्णमत्थं ण संधयाई अवरेण पुव्वं ॥ ३. एगंतमेव' अदुवा वि इण्हि दोऽवण्णमण्णं ण समेंति जम्हा । अद्दगस्स उत्तर-पदं
'पवि च इण्डि च अणागयं च 'एगंतमेव पडिसंधया ॥ ४. समेच्च लोग तसथावराणं खेमकरें समणे माहणे वा।
आइक्खमाणो वि सहस्समझे एगंतयं सारयई तहच्चे ।। धम्म कहंतस्स उ णत्थि दोसो खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स। भासाय दोसे य विवज्जगस्स गुणे य भासाय" णिसेवगस्स ।।
१. पुरे° (ख, चू)। २. भिक्खुणो (ख)। ३. आइक्खतेण्हिं (क)। ४. संधियाति (क)। ५. ° मेवं (ख)। ६. ० अणागतं वा (क); पूवि व पच्छं व ___अणागतं व (चू)। ७. ० मेवं (ख)।
८. 'एगंतमेवं पडिसंदधाती' ति वक्तव्ये ग्रन्थानुलोम्यात्सुखमोक्खोच्चारणाद् वृत्त
बन्धानुवृत्तेश्च पसत्थं याति (चू)। ६. लोगे (ख)। १०,११. व्या० वि०---बन्धानुलोम्यात् 'भासाए'
इति षष्ठ्यन्तपदस्य स्थाने 'भासाय' इति मृदूच्चारणं कृतम् ।
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सूयगडो २
६. महव्वए पंच अणुव्वए य तहेव पंचासव' संवरे य।
विरई इह स्सामणियम्मि पण्णे' लवावसक्की समणे त्ति बेमि ॥ गोसालगस्स अक्खेव-पदं ७. सीओदगं सेवउ बीयकायं आहायकम्म' तह इत्थियाओ।
एगंतचारिस्सिह अम्ह धम्मे, तवस्सिणो णाभिसमेइ पावं ।। अद्दगस्स उत्तर-पदं ८. सीओदगं वा तह बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ।
एयाइं जाणे पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवंति ।। ६. सिया य बीयोदगइत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवंतु ।
अगारिणो वि समणा भवंतु सेवंति उ ते वि तहप्पगारं। जे यावि बीओदगभोइ भिक्खू । भिक्खं विहं जायइ जीवियट्ठी।
ते ‘णाइसंजोगमविप्पहाय" काओवगा शंतकरा भवंति ।। गोसालगस्स अक्खेव-पदं ११. इमं वयं तु तुम पाउकुव्वं पावाइणो गरहसि सव्व एव ।
पावाइणो" पुढो किट्टयंता सयं सयं दिट्ठिर करेंति पाउं" । अगस्स उत्तर-पदं १२. ते अण्णमण्णस्स उ"गरहमाणा अक्खंति ऊ समणा माहणा य ।
सतो य अत्थी असतो य णत्थी गरहामो दिट्ठि ण गरहामो किंचि॥ १३. ण किंचि रुवेणऽभिधारयामो सदिट्टिमग्गं तु करेमो५ पाउं ।
मग्गे इमे किट्टिए आरिएहिं अणुत्तरे सप्पुरिसेहिं अंजू ॥
१. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-पंचासवे। ६. संजोग य विप्पजहाय (क)। २. पुण्णे (वृ); पण्णे (वृपा)।
१०. गरिहसि (ख)। ३. आहाइ ° (क)।
११. पावाइणो उ (क)। ४. च (क, ख)।
१२. पदिदि (क्व); व्या०वि०-विभक्तिरहित५. जाणं (क)।
पदम्—दिट्टि। ६. वी (क्व)।
१३. पावं (क, ख) अशुद्धमेतत् । ७. जं (क्व)।
१४. वि (ख)। ८. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-बीयोदग- १५. करेमु (क्व) ।
भोई।
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छटुं अज्झयणं (अद्दइज्ज) १४. उड्ढं अहे य तिरियं दिसासु तसा य जे थावर' जे य पाणा।
भूयाभिसंकाए' दुगुंछमाणे णो गरहइ बुसिमं किंचि लोए ।। गोसालगस्स अक्खेव-पदं १५. आगंतगारे आरामगारे' समणे उ भीते ण उवेइ वासं ।
दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊणातिरित्ता य लवालवा य ।। १६. मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता सत्तेहि अत्येहि य णिच्छयण्ण' ।
पुच्छिसु मा णे' अणगार अण्णे इति संकमाणो ण उवेइ तत्थ ।। अगस्स उत्तर-पदं १७. णाकामकिच्चा ण य बालकिच्चा रायाभियोगेण कुओ भएणं ?
वियागरेज्जा पसिणं ण वा वि सकामकिच्चेणिह आरियाणं ।। १८. गंता व तत्था अदुवा अगंता वियागरेज्जा समियासुपण्णे ।
अणारिया दंसणओ परित्ता इति संकमाणो ण उवेइ तत्थ ।। गोसालगस्स अक्खेव-पदं १६. पण्णं जहा वणिए उदयट्ठी आयस्स . हेउं पगरेइ संगं ।
तओवमे" समणे णायपुत्ते इच्चेव मे होइ मई वियक्का ।। अद्दगस्स उत्तर-पदं २०. ण ण कुज्जा विहुणे पुराणं चिच्चा"ऽमई 'ताइ" य साह एवं ।
एतावता" बंभवति त्ति वुत्ते तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ।। २१. समारभंते वणिया भूयगामं परिग्गहं चेव ममायमाणा" ।
ते णाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेउं पगरेंति संग ।।
१. विभक्तिरहितपदम्-थावरा ।
पाठश्चूणि-वृत्त्यनुसारी स्वीकृतः । क्वचित्२. भूयाहि° (ख)।
प्रयक्तदीपिकादर्श पि इत्थमेव पाठो लब्धः । ३. आरामा ° (क)।
१०. भतेणं (क)। ४. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-सिक्खिया । ११. ततोवमे (क)। ५. निच्छियण्णू (ख) निच्छियन्ना (क्व)। १२. चेच्चा (क)। ६. णो (क)।
१३. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-ताई। ७. व्या०वि०—विभक्तिरहितपदम्-अणगारा। १४. ताति हि आह (व)। ८. एगे (क)।
१५. एत्तावता (क, ख)। ६. नो काम° (क, ख); 'णाकाम' ० इति १६. ममायमीणा (क)।
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सूयगडो २
२२. वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा वणिया वयंति ।
वयं तु कामेहिं अज्झोववण्णा अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥ २३. आरंभगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया णिस्सिय' आयदंडा।
तेसिं च से उदए जं वयासी चउरंतणंताय' दुहाय' णेह' । २४. गंति णच्चंति तओदए से वयंति ते दो वि गुणोदयम्मि।
से उदए साइमणंतपत्ते तमुदयं साहयइ ताइ' णाई । २५. अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं ।
तमायदंडेहि समायरंता अबोहिए ते पडिरूवमेयं ।। बुद्ध-भिक्खूणं साभिप्पाय-निरूवण-पदं २६. पिण्णागपिंडीमवि विद्ध" सूले केई पएज्जा पुरिसे इमे त्ति ।
अलाउयं वा वि कुमारग त्ति'१ स२ लिप्पई पाणिवहेण अम्हं॥ २७. अहवा विविद्धण मिलक्खु" सूले पिण्णागबुद्धीए णरं पएज्जा।
कुमारगं वा वि अलाउए त्ति । ण लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ।। पुरिसं च विद्धण कुमारगं" वा । सूलंमि केइ पए जायतेए।
पिण्णागपिंडि सइमारुहेत्ता । बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए । २६. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए भिक्खुयाणं।
ते पुण्णखधं सुमहऽज्जणित्ता५ भवंति आरोप्प" महंतसत्ता ॥ अद्दगस्स उत्तर-पदं ३०. अजोगरूवं इह संजयाणं पावं तु पाणाण पसज्झ" काउं ।
अबोहिए दोण्ह वि तं असाहु वयंति जे यावि पडिस्सुणंति" । ३१. उड्ढं अहे य तिरियं दिसासु विण्णाय लिगं तसथावराणं ।
भूयाभिसंकाए दुगुंछमाणे वदे करेज्जा वा कुओ विहऽत्थि" ? १. व्या० वि-विभक्तिरहितपदम् -णिस्सिया। १३. मिलक्ख (क); मिलक्खू (ख, चू)। २. ०णताए (क)।
१४. कुमारकं (क)। ३. दुहाए (क)।
१५. सुमहज्जिणित्ता (क, ख)। अय पाठः ४. णे य (ख)।
क्वचितप्रयुक्तदीपिकादर्शाधारेण स्वीकृतः । ५. साय० (क)।
४३ श्लोके चूर्णी वृत्तौ च सुमहऽज्जणित्ता ६. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-ताई।
इत्येव पाठः समुपलभ्यते। ७. व्या० वि०-अहिंसयन् ।
१६. व्या० वि०-विभक्तिरहितपदम्-आरोप्पा । ८. ° पदाणु ° (क); ° सत्ताणुकंपी (चू)। १७. महत्त° (क)। ६. समाणयंता (चूपा)।
१८. पसज्ज (ख)। १०. व्या० वि-विभक्तिरहितपदम्-विद्धं । १६. पडिसुणेति (क)। ११. कुमारएत्ति (ख)।
२०. उड्ढे (क)। १२. से (क)।
२१. व्या० वि०--वि-+-इह+अस्ति ।
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छ अभय (अद्दइज्जं )
३२. पुरिसे त्तिविण्णत्ति' ण एवमत्थि को संभव पिण्णगपिंडियाए ३३. वायाभिओगेण जमावहेज्जा अट्टा मेयं वयणं गुणाणं ३४. लद्धे अह अहो एव'
तुब्भे पुव्वं समुदं अवरं च पुट्ठे ३५. जीवाणुभागं सुविचितयंता वियागरे छण्णपओपजीवी " ३६. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से असंजए लोहियपाणि" से ऊ ३७. थूलं उरब्भं इह मारियाणं तं लोणतेल्लेण उवक्खडेता ३८. तं भुजमाणा पिसियं पभूयं इच्चेवमाहंसु अणज्जधम्मा ३६. जे यावि भुजंति तहप्पगारं 'मणं ण एवं कुसला करेंति" ४०. ' सव्वेसि जीवाण १५ दट्टयाए
तस्संकिणो इसिणो णायपुत्ता
४१. भूयाभिसंकाए दुर्गामाणा तम्हाण भुंजंति तहप्पगारं
१. पिण्णत्त ( क, ख ) । व्या० वि० - विभक्तिरहितपदम् - विण्णत्ती ।
२. एयअस्थि (क, ख ) । ३. पिण्णाग ०
(क); छंदोदृष्ट्या 'पिण्णाग'
शब्दस्य ह्रस्वत्वं 'ख' प्रत्यनुसारेण स्वीकृतम् ।
४. ० जोएण ( क ) ।
५. ० मेवं ( क ) ।
६. जे ( क ) ; जिण ( ख ) 1
अणारिए से वाया वि एसा णो तारिसं वायमुदाहरेज्जा | णो दिखिए बूय सुरालमेयं ॥
पुरिसे तहा हु । बुइया असच्चा ||
सुविचिति । ओलोइए पाणितलट्ठिए वा ॥ आहारया अणविहीए सोहिं । सम्मोह संजयाणं ॥ जे भो णितिए भिक्खुयाणं | णियच्छई गरहमिहेव लोए ॥ उद्दिभत्तं च पगप्पएत्ता । सपिप्पलीयं पगरंति मंसं ॥ णो उवलिप्पामो वयं रएणं । अणारिया बाल" रसेसु गिद्धा ॥ सेवंति वाया वि एसा बुझ्या उ मिच्छा ॥ सावज्जदोसं भ
पावमजाणमाणा ।
सव्वेसि पाणाण सम्मोह
परिवज्जयंता । परिवज्जयंति ||
निहाय दंड । संजाणं ॥
मस्ति ।
९. ओधारिया (चू) |
१०. छणणपदोपजीवी ( चूपा) ।
११. व्या० वि० - विभक्तिरहितपदम् -- लोहिय पाणी ।
४६५
१२. अणज्जबुद्धो ( चू) ।
१३. व्या० वि० - विभक्तिरहितपदम् — बाला ।
७. आकारस्य ह्रस्वत्वम् ।
5. एवं ( क ); छंदोट्या 'एव' इति जात- १५ सव्वेसि जीवाणं ( क ) ।
१४. खणं ण एवं कुसला वदंति ( चु); मणं ण एयं कुसला करेंति (चुपा) ।
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सूयगडो २
४२. 'णिग्गंथधम्मम्मि इमा समाही" अस्सि सुठिच्चा अणिहे चरेज्जा।
बुद्धे मुणी सीलगुणोववेए 'इहच्चणं पाउणई सिलोग" ॥ वेय-वाईणं साभिप्याय-निरूवण-पदं ४३. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए माहणाणं ।
ते पुण्णखंधं सुमहज्जणित्ता' भवंति देवा इइ वेयवाओ । अगस्स उत्तर-पदं ४४. सिणायगाणं तु दुवे सहस्से जे भोयए णितिए कुलालयाणं ।
से गच्छई लोलुवसंपगाढे तिव्वाभितावी णरगाभिसेवी । ४५. दयावरं 'धम्म दुगुंछमाणे" वहावहं धम्म पसंसमाणे।
एग पि जे भोययई असील' 'णिहो णिसं गच्छइ अंतकाले ॥ संख-परिवायगाणं साभिप्पाय-निरूवण-पदं ४६. दुहओविधम्मम्मि समुठियामो अस्सि सुट्ठिच्चा तह एस कालं"।
आयारसीले बुइएह णाणे२ ण संपरायम्मि विसेसमत्थि ।। ४७. अव्वत्तस्वं पुरिसं महंत सणातणं अक्खयमव्वयं च ।
सव्वेसु भूएसु" वि" सव्वओ से चंदो व ताराहि समत्तरूवे ॥
१. णिग्गंथं धम्माण इमो° (चू); ° इमं णिधो • (चू); णिव्वो णिसं जाइ कओऽसुरेहि समाहिं (व)।
(क्व); अत्र लिपिदोषेण 'णिहो' स्थाने २. इच्चत्थतं० (क, ख); अच्चत्थतं पाउण- 'णिवो' इति पाठः संजातः । वृत्तिकारेण तीसिलाइं (व); अयं पाठश्चूर्ण्यनुसारी तादृश एव आदर्श उपलब्धस्तेन स पाठस्तथैव स्वीकृतः । चूर्णौ श्लोको नाम श्लाघा इति व्याख्यातः । 'जाइ कओऽसुरेहिं' इति पाठस्य व्याख्यातमस्ति, वृत्तौ च श्लाघा मूलत्वेन परिवर्तनं जातमथवा वाचनाभेदोयमिति स्वीकृतास्ति।
न निश्चयेन वक्तुं शक्यते। प्रस्तुतसूत्रे ३. सुमहज्जिणित्ता (क, ख)।
(११५१५) 'णिहो णिसं गच्छइ अंतकाले' ४. लोलग ° ,क), लोलुय° (ख) ।
इति पदं विद्यते । तदेवात्रास्तीति चणि५. तिव्वाणुतावे णरए वयंति (चू); तिव्वाभि- व्याख्यया प्रतीयते। ___ तावी गरगाभिसेवी (चूपा)।
११. काले (ख)। ६,८. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम् --धम्म। १२. नाणा (क)। ७. धम्म दूसेमाणो (चू), धम्म दुगंछमाणो १३. संपरागंमि (क)। (क, चूपा)।
१४. पाणेसु (चू)। ६. कुसील (चू)।
१५. उ (क)। १०. णिवो णिसं जाइ कओऽसुरेहिं (क, ख, वृ); १६. तारेहिं (क)।
मामि
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ण' माहणा' खत्तिय-वेस-पेसा । णरा य सव्वे तह देवलोगा । कहिति जे धम्ममजाणमाणा। संसार घोरम्मि अणोरपारे । पुण्णेण णाणेण समाहिजुत्ता। तारेति अप्पाण' परं च तिण्णा ।। जे यावि लोए चरणोववेया। अहाउसो ! विप्परियासमेव ।।
छुटुं अज्झयणं (अद्दइज्ज) अगस्स उत्तर-पदं ४८. एवं ण मिज्जति ण संसरंति'
कीडा य पक्खी य सरीसिवाय ४६. लोग अयाणित्तिह केवलेणं
णासेंति अप्पाण' परं च णट्टा ५०. लोगं विजाणंतिह केवलेणं
धम्म समत्तं च कहिंति जे उ ५१. जे गरहियं ठाणमिहावसंति
उदाहडं तं तु समं मईए हत्थितावसाणं साभिप्पाय-निरूवण-पदं ५२. संवच्छरेणावि य एगमेगं
सेसाण जीवाण दयट्ठयाए अद्दगस्स उत्तर-पदं ५३, संवच्छरेणावि य एगमेगं
सेसाण जीवाण वहेण लग्गा ५४. संवच्छरेणावि य एगमेगं
आयाहिए से पुरिसे अणज्जे ५५. बुद्धस्स आणाए इमं समाहि
तरिउ" समुदं व महाभवोघं
बाणेण' मारेउ महागयं तु । वासं वयं वित्ति पकप्पयामो॥
पाणं हणता अणियत्तदोसा। सिया य थोवं गिहिणो वि तम्हा ॥ पाणं' हणते 'समणव्वते ऊ । ण 'तारिसं केवलिणो भणंति" ॥ अस्सि सुठिच्चा तिविहेण ताई । आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जासि'" ।।
-त्ति बेमि ॥
१. संचरंति (ख)।
१०. ०व्वएसु (ख, वृ)। २. ते (क)।
११. तारिसा केवलिणो भवंति (क); तारिसे ३. बंभणा (चू)।
केवलिणो भवंति (ख, वृ, चूपा) । अत्र चूणि४. सिरीसवा (क); सिरीसिवा (ख)।
पाठोर्थसमीक्षया समीचीनः प्रतिभाति तेन स ५. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-अप्पाण। स्वीकृतः । ६. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम्-अप्पाणं। १२. ताती (क); तारी (ख)। ७. पाणेण (क); वाणेण (ख) ।
१३. तरित्ता (क, चू)। ८. वित्ति (ख)।
१४. आयाणबंध समूदाहरिज्जासि (क); आयाणं ६. पाणे (क)।
बंध समुदाहरेज्जासि (ख)।
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सत्तमं अज्झयणं
नालंदइज्जं
उक्त्र-पदं
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था -- रिद्धत्थिमियसमिद्धे' sa ||
२ तस्स णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया' उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए, एत्थ णं णालंदा णामं बाहिरिया होत्या - अणेगभवणसयसण्णिविट्ठा' 'पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ॥
लेव-गाहावइ-पदं
३. तत्थ णं णालंदा बाहिरियाए लेवे णामं गाहावई होत्था - अड्ढे 'दित्ते वित्ते" विच्छिण्ण" - विपुल - भवण-सयणासण जाणवाहणा इण्णे बहुधण- बहुजायरूवरजए आओग-पओग-संपत्ते विच्छड्डिय-पउर भत्तपाणे बहुदासी - दास- गो-महिसगवेल गप्पभूए बहुजणस्स अपरिभूए यावि होत्था ||
४. से णं लेवे णामं गाहावई समणोवासए यावि होत्था - अभिगयजीवाजीवे ' • उवलद्ध पुण्णपावे आसव-संवर- वेयण - णिज्जर-किरिय-अहिगरण-बंध- मोक्खकुसले असहेज्जे देवासुर-णाग - सुवण्ण-जक्ख- रक्खस- किण्णर- किंपुरिस गरुलगंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं णिग्गंथाओ पावयणाओ अणतिक्कम णिज्जे,
१. रिद्धि ० ( क ) ।
२. वण्णओ जाव (क, ख ); ओ० सू० १ |
३. बहिता ( क ) ।
४. सं० पा० - अणेगभवणसय सण्णिविट्ठा जाव
पडिरुवा ।
५. लेए ( क ) ।
६. दित्तचित्ते (चू) |
७. वित्थण (क्व ) ।
८. सं० पा० - अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ।
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सत्तमं अज्झयणं (णालंदइज्जे )
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इमणिग्गथिए पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अभिगयट्ठे अट्टिमिजपेम्माणुरागरत्ते "अयमाउसो ! णिग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्टे” ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउर-परघरदारप्पवेसे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुणं पोसहं सम्मं अपामाणे समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं वत्थ - पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं पीढ - फलग - सेज्जासंथारएणं पडिलाभमाणे बहूहिं सीलव्वय-गुण- वेरमण - पच्चक्खाण - पोसहोववासेहिं अहापरिहिहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ||
o
५. तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स णालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरत्थि मे दिसिभाए, एत्थ णं सेसदविया णाम उदगसाला होत्था - अणेगखं भसयस णिविट्ठा पासा - दीया दरिसणीया अभिरुवा पडिरूवा ॥
६.
तीसे णं सदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरत्थि मे दिसिभाए, एत्थ णं हत्थिजामे णामं वणसंडे होत्था - किण्हे वण्णओ वणसंडस्स' ||
७. तस्सि च णं गिहपदेसंसि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं आहे आरामंसि ॥
उदगपेढालपुत्तस्स पहाणुमइ-पदं
८. अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे णियंठे मेदज्जे गोत्तेणं जेणेव ' भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासीआउसंतो ! गोयमा ! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च मे आउसो ! अहा अहादरिसियमेव वियागरेहि ॥
९. सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी - अवियाइ आउसो ! सोच्चा सिम्म जाणिस्समो ॥
उदगपेढालपुत्तस्स पह पदं
१०. सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी - आउसंतो' ! गोयमा ! अत्थि खलु कम्मरपुत्तिया णाम समणा णिग्गंथा तुम्हागं" पवयणं" पवयमाणा
१. ० पुरच्छि मे ( ख ) ।
२. सं० पा०—पासादीया जाव पडिरूवा ।
३. ओ० सू० ४-७ ।
४. मेतज्जो ( क ) । ५. जेणामेव (क, ख ) ।
६. तेणामेव ( ख ) ।
७. सवादं (क) 1
o
८. आउसो ! ( ख ) ।
६. कुमारपुत्तिया (क, ख, वृ); अत्र लिपिदोषेण 'कम्मार' शब्दस्य स्थाने 'कुमार' इति रूपान्तरं जातं इति संभाव्यते ।
१०.
तुब्भागं ( क ) ।
११. पवद ( क ) 1
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सूयगडो २ गाहावई' समणोवासगं उवसंपण्णं एवं पच्चक्खावेंति- “णण्णत्थ अभिजोगेणं', गाहावइ-चोरग्गहण-विमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहि णिहाय दंडं।" एवं ण्हं पच्चक्खंताणं दुप्पच्चक्खायं भवइ । एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियं भवइ । एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अइयरंति सयं पइण्णं । कस्स णं तं हे। संसारिया खलु पाणा-थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति । तेसि च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं घत्तं । एवं ण्हं पच्चक्खंताणं सुपच्चक्खायं भवइ । एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं सुपच्चक्खावियं भवइ । एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा णाइयरंति सयं पइण्णं-"णण्णत्थ अभिजोगेणं, गाहावइ-चोरग्गहण-विमोक्खणयाए तसभूएहिं पाणेहि णिहाय दंडं ।” एवं सइ 'भासाए परिकम्मे विज्जमाणे जे ते कोहा वा लोहा वा परं पच्चक्खावेंति । अयं पि' णो' उवएसे कि णो णेयाउए भवइ ? अवियाइं आउसो ! गोयमा !
तुभं पि एयं एवं रोयइ ? भगवओ गोयमस्स उत्तर-पदं ११. सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-आउसंतो! उदगा ! णो
खलु अम्हं एयं एवं रोयइ। जेते समणा वा माहणा वा एवमाइक्खंति', 'एवं भासेंति, एवं पण्णवैति, एवं ° परूवेंति णो खलु ते समणा वा णिग्गंथा वा भासं भासंति, अणुतावियं खलु ते भासं भासंति, अब्भाइक्खंति खलु ते समणे" समणोवासए वा । जेहिं वि अण्णेहिं पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणि वि ते अब्भाइक्खंति । कस्स णं तं हेउं ?
१. गाहावइ (क, ख)।
ख्यानस्य चर्चा कृतास्ति तेन पराक्रमापेक्षया २. ४ (क, ख)।
परिकर्मशब्दोऽधिकं समीचीनोस्ति । ३. राआभिवाएणं (ख); अभिजोगेणं तंजहा- ६. पि भे (क, ७)। रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं ७. अस्माकम् ।
८. X (ख)। ४. एवामेव (क); एवमेव (ख)।
६. सं० पा०-एवमाइक्खंति जाव परूवेंति। ५. भासापरक्कमे (क); भासाए परक्कमे (ख, १०. अणुगाणियं (चू)।
वृ)। 'परिकम्मे' इति पाठश्चूधिारेण ११. समणा (क)। स्वीकृतः । अत्र सविशेषणनिविशेषणप्रत्या
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सत्तम अज्झयणं (णालंदइज्ज)
संसारिया खलू पाणा-तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जति । थावरकायाओ विप्पमूच्चमाणा तसकायंसि उववज्जति। तेसिं च णं
तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं । उदगपेढालपुत्तस्स पडिपण्ह-पदं १२. सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी—कयरे खलु आउसंतो !
___ गोयमा ! तुब्भे वयह तसपाणा तसा 'आउ' अण्णहा ? भगवओ गोयमस्स पच्चुत्तर-पदं १३. सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-आउसंतो! उदगा ! जे
तुब्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते 'वयं वदामो'" 'तसा पाणा तसा । जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुब्भे वदह तसभूया पाणा तसा। एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा। किमाउसो ! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ-तसभूया पाणा तसा ? इमे भे दुप्पणीयत राए भवइ-तसा पाणा तसा ? तओ एगभाउसो! पलिकोसह, एक्कं अभिणंदह । अयं पि 'भे उवएसे" णो णेयाउए भवइ। भगवं च णं उदाहु---संतेगइया मणुस्सा२ भवंति, तेसि च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ - णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। 'वयं णं अणुपुव्वेणं गोत्तस्स" लिस्सिस्सामो। 'ते एवं संखसावेंति"
१. अदु-उत।
पाठोस्ति तथा चूणौँ 'उपदेशः' इति व्याख्यात२. आउमन्नहा (क); अह अण्णहा (ख)।
मस्ति । तदाधारेणासौ पाठः स्वीकृतः । ३. वतह (क)।
१२. मणस्सा गब्भवक्कंतिया संखेज्जवासाउया ४. तसब्भूया (क)।
आरिया (चू)। ५. वदं वतामो (क)।
१३. वयण्णं (क); वय णं (ख) । ६. तसा पाणा २ (क); तसा पाणा (ख) सर्वत्र । १४. गुत्तत्तस्स (क); गुत्तस्स (क्व) । ७, ८. ते (ख)।
१५. लिसिस्सामी (ख)। १. तो (क)।
१६. ते एवं संखं ठवयंति ते एवं संखं सोवठवयंति १०. पडिकोसह (ख)।
(क); ते एव संखं ठवयंति ते एवं संखं ११. भेदो से (क, ख); भे (वृ); 'भे उवएसे' इति सोवठावयंति (ख); ते एवं संखं ठावेंति
पाठस्य स्थाने लिपिदोषेण 'भेदो से' इति (चू); नागार्जुनीयास्तु-एवं आपाणं संकजातम् । दशमे सूत्रे 'पि णो उवएसे' इति सावेति (चू); ० संठवयंति (क्व)।
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सूयगडो २ "णण्णत्थ अभिजोगेणं गाहावइ-चोरगहण-विमोक्खणयाए तसेहिं पाणेहि णिहाय दंडं' । तं पि तेसि कुसलमेव भवइ । तसा वि वुच्चंति तसा तससंभारकडेणं कम्मुणा, णामं च णं अब्भुवगयं भवइ। 'तसाउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, तसकायट्टिइया ते तओ आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता थावरत्ताए पच्चायंति"। थावरा वि वुच्चंति थावरा थावरसंभारकडेणं कम्मुणा, णामं च णं अब्भुवगयं भवइ । 'थावराउयं च णं पलिक्खीणं भवइ,२ थावरकायद्विइया ते तओ आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता भुज्जो पारलोइयत्ताए पच्चायति ।
ते पाणा वि वुच्चंति', ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया॥ उदगपेढालपुत्तस्स सपक्ख-ठावणा-पदं १५. सवायं उदए पेढालपुत्ते भयवं गोयम एवं वयासी-आउसंतो ! गोयमा ! णत्थि
णं से केइ परियाए' जंसि समणोवासगस्स 'एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते । कस्स णं तं हेउं ? संसारिया खलु पाणा-थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जति ।
तेसिं च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं ॥ भगवओ गोयमस्स पच्चत्तर-पदं १६. सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–णो खलु आउसो ! अस्माकं
वत्त व्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहि सव्वभूएहि सव्वजीवेहि सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते भवइ । कस्स णं तं हेउं ?
१. जाव तसाऊ अपलिक्खीणं भवइ० (चू); ६. एगपाणाइवायविरए वि दंडे णिक्खित्ते क.ख): नागार्जुनीयास्तु-आउयं च णं पलिक्खीणं एकप्राणातिपातविरमणेपि (१); अग्रिमसूत्रे भवति तसकायट्रितीए वा ततो आउयं 'एगपाणाए वि' इति पाठो लभ्यते, स च विप्पजहित्ता तिण्हं थावराणं अण्णतरेसूव
समीचीन: प्रतिभाति, तेनाऽत्रापि स एव वज्जति (चू)।
स्वीकृतः । जाव सव्वपाणेहिं दडे णिक्खित्ते २. जाव थावराऊ अपलिक्खीणं भवई (चू)। ३. वुच्चंति भूता जाव सत्ता वि (चू)। ७. अस्माकमित्येतन्मगधदेशे आगोपालाङ्गनादि४. परिताए (क)।
प्रसिद्ध संस्कृतमेवोच्चार्यते तदिहापि तथैवो५. जणं (क, ख, चू)।
च्चारितमिति (वृ)।
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सत्तम अज्झयणं (णालंदइज्ज)
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संसारिया खलु पाणा- तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति । तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जति । थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि उववज्जति । तेसिं च णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्रिइया । ते बहुयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह–“णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते"। अयं पि
'भे उवएसे'' णो णेयाउए भवइ । समणदिद्वैत-पदं १७. भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो! णियंठा ! इह खलू
संतेगइया मणुस्सा भवंति । तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ-जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसि णं आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते । जे इमे अगारमावसंति, एएसि णं आमरणंताए दंडे णो णिक्खित्ते । केई च णं समणे" जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दुइज्जित्ता 'अगारं वएज्जा" ? हंता वएज्जा। तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स' से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ ? णेति । एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे णिक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहि दंडे णो णिक्खित्ते । तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे णो भग्गे
भवइ । सेवमायाणहणियंठा ! सेवमायाणियव्वं ॥ १८. भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो! णियंठा ! इह खल
गाहावइणो वा गाहावइपुत्ता वा तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमज्जा ? हंता उवसंकमज्जा।
१. जणं (क); जम्मि (क्व)। २. भेदे से (क, ख)। ३. केसि (क, ख); अशुद्धं प्रतिभाति, केचन
श्रमणाः (वृ)। ४. अगारमावसेज्जा (ख, वृ)।
५. तं गारत्थं (क); गृहस्थं (वृ)। ६. ८. वहेमाणस्स (क)। ७. णोति (ख)। ६. सेएव० (ख)!
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तेसिं च णं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ? हंता आइक्खियव्वे |
किं ते तहप्पगार धम्मं सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा - इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं 'णेयाउयं' संसुद्ध" सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं 'णिज्जाणमग्गं णिव्वाणमगं" अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं । एत्थ ठिया जीवा सिज्भंति बुज्भंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंत करेंति ।
इमाणा' तहा' गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्टामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठेमो ́ तहा उट्ठाए उट्ठेत्ता पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामो त्ति वएज्जा ?
हंता वएज्जा ।
किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावेत्तए ? हंता कप्पंति ।
किं ते तप्पगारा कप्पंति उवट्ठावेत्तए ? हंता कप्पति ।
तेसिं च णं तहप्पगाराणं सव्वपाणेहिं" सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्ते हिं दंडे णिक्खित्ते ?
१. ताउ ( क ) ।
२. संसुद्धं णेयाउयं (ख) ।
३. णेज्जाणमग्गं णेव्वाण ० ( क ) ।
४. परिणिव्वायंति ( ख ) ।
५. तमाणाए (ख) ।
६. तह ( क ) सर्वत्र ।
७. णिसियामो (क); णिस्तियामो ( ख ) ।
सूयगडो २
हंता णिक्खित्ते ।
ते" णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा जाव वासाई चउपंचमाई छद्दसमाई " वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता" अगारं वएज्जा" ?
हंता वएज्जा ।
८.
अट्ठामो ( ख ) । ६. बट्टेति ( ख ) ।
१०. सं० पा० - सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहि ।
११. से ( क, ख ); अशुद्धं प्रतिभाति ।
१२. छद्दसमणि ( क, ख ) । १३. दूतिज्जित्ता (क, ख ) । १४. वदेज्जा (क) ।
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सत्तमं अज्झयणं (णालंदइज्ज)
तस्स णं सव्वपाणेहिं' 'सव्वभूएहिं सव्वजीवेहि ° सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ? णेति। . से जे से जीवे जस्स परेणं सव्वपाणेहिं 'सव्वभूएहि सव्वजीवेहि ° सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते। से जे से जीवे जस्स आरेणं सव्वपाणेहिं 'सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व ° सत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते । से जे से जीवे जस्स इयाणि सव्वपाणेहिं 'सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व ° सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ । परेणं अस्संजए, आरेणं संजए, इयाणि अस्संजए । अस्संजयस्स णं सव्वपाणेहिं 'सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व ° सत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते भवइ । सेवमायाणह णियंठा ! सेवमायाणियव्वं ।। भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो! णियंठा ! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ वा अण्ण यरेहितो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमज्जा? हंता उवसंकमज्जा। 'कि तेसि" तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे ?
"हंता आइक्खियव्वे । कि ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा-इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं णिज्जाणमग्गं णिव्वाणमग्गं अवितहं असंदि सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं । एत्थ ठिया जीवा सिझति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति । इमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्टामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुटेमो तहा उट्ठाए उतॄत्ता पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामो त्ति वएज्जा ? हंता वएज्जा। किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावेत्तए ? हंता कप्पंति। कि ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए ? हंता कप्पति । किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावेत्तए ?
हंता कप्पंति। १.सं० पा०-सव्वपाणेहिं जाव सत्तेहि। ८. सं० पा०-सब्वपाणेहिं जाव सत्तेहिं । २. णो णिक्खित्ते (क)।
६. केइ इह (ख)। ३. णोत्ति (क); णोति (ख)।
१०. परिवाइया (क); परिव्वाया (क्व)। ४,५,६. सं० पा०—सव्वपाणेहि जाव सत्तेहिं । ११. पूर्वसूत्रात् किंचित् शब्दभेदः । ७. एयाणि (क)।
१२. सं० पा०-तं चेव जाव उवटावेत्तए।
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किं ते तपगारा कप्पंति उवट्ठावेत्तए ? हंता कप्पंति
।
किं ते तपगारा कप्पंति संभुंजित्तए ?
हंता कप्पंति ।
ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा " जाव वासाई चउपंचमाई छद्दसमाई वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता • अगारं वएज्जा ?
हंता वज्जा ।
ते णं तपगारा कप्पंति सभुंजित्तए ?
णो इट्ठे' समट्ठे |
२
भुं
1
से जे से जीवे जे परेण णो कप्पंति संभुंजित्तए । से जे से जीवे जे आरेणं कप्पंति । से से जीवे जे इयाणि णो कप्पंति संभुंजित्तए । परेणं अस्समणे, आरेण समणे, इयाणि अस्समणे । अस्समणेणं सद्धि णो कप्पंति समणाणं ग्गिंथाणं संभुंजित्तए । सेवमायाणह नियंठा ! सेवमायाणियव्वं ॥
पच्चक्खाणस्स विसय उवदंसण-पदं
२०. भगवं च णं उदाहु - णियंठा खलु पुच्छियव्वा - आउसंतो ! णियंठा ! इह खलु संतेगइया समणोवासगा भवंति । तेसि च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइणो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए, वयं णं चाउद्दसमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसह सम्मं अणुपालेमाणा विहरि - सामो । 'थूलगं पाणाइवायं पच्चक्खा इस्सामो, एवं थूलगं मुसावायं थूलगं अदिण्णादाणं' थूलगं मेहुणं थूलगं परिग्रहं पच्चवखाइस्सामो, इच्छापरिमाणं करिस्सामो दुविहं तिविहेणं । मा खलु ममट्ठाए किंचि विकरेह वा कारवेह वा तत्थ वि पच्चक्वाइस्सामा । ते णं अभोच्चा' अपिच्चा असिणाइत्ता आसंदीपेढियाओ" पच्चोरुहित्ता" ते तह कालगया किं वत्तव्वं सिया ? सम्म कालगत्ति वत्तव्वं सिया ।
१. सं० पा० तं चेव जाव अगारं वएज्जा ।
२. तिट्ठे (क, ख ) ।
३. तेणं ( क ) 1
४. सं० पा० - उदाहु संतेगइया ।
५. वयं च ( क ) ।
६. पोसधं ( क ) 1
७. ० पच्चाइक्खिस्सामो ( क ) ; नागार्जुनीयास्तु --
सामाइयकडेऽहिकाउं 'सव्वपाणातिवातं पच्चक्खाइस्सामो' तद्दिवसं (चू) ।
८. अदिण्णं ( क, ख )
६.
अभोच्चाए (क, ख ) ।
१०. ० पीठियाओ ( क ) 1
११. पच्चोरुभित्ता ( ख ) ।
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सत्तमं अज्झयणं (णालंदइज्ज)
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ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरदिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया 'तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ° ।” अयं पि 'भे उवएसे'' णो णेयाउए भवइ । भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्वा-आउसंतो ! णियंठा ! इह खलु संतेगइया समणोवासगा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगाराओ' 'अणगारियं° पव्वइत्तए, णो खलु वयं संचाएमो चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु' 'पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा विहरित्तए। वयं णं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाझसणाझसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया कालं अणवकंखमाणा विहरिस्सामो । सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाइस्सामो', 'एवं सव्वं मुसावायं सव्वं अदिण्णादाणं सव्वं मेहणं सव्वं परिग्गहं पच्चक्खाइस्सामो ‘तिविहं तिविहेणं" मा खलु ममट्ठाए किंचि वि 'करेह वा कारवेह वा करतं समणुजाणेह वा तत्थ वि पच्चक्खाइस्सामो। तेणं अभोच्चा अपिच्चा असिणाइत्ता' आसंदीपेढियाओ पच्चोरुहित्ता ते तह कालगया कि वत्तव्वं सिया ? सम्म कालगय त्ति वत्तव्वं सिया। ते पाणा वि वच्चंति", 'ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्रिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं सम्णोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जंणं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह–“णत्थि णं से
१. इति से (क, ख)।
६. जाव (क)। २. मं० पा०-से महया "जं णं तुब्भे वयह तं ७. सं० पा०-पच्चक्खाइस्सामो जाव सवं चेव जाव अयं ।
परिग्गह। ३. भेदे से (क, ख)।
८. तिविहेणं तिविहं (क) । ४. सं० पा०-अगाराओ जाव पव्वइत्तए। ६. सं०पा०—किंचि वि जाव आसंदीपेढियाओ। ५. सं० पा०-चाउद्दसट्ठ मुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु १०. समणा (क)। जाव अणुपालेमाणा।
११. सं० पा०—बुच्चंति जाव अयं ।
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४७८
२२.
सूयगडो २
hs परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते • ।" अयं पि भे उसे णो णेयाउए भवइ ।।
भगवं च णं उदाहु' – संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा - महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अहम्मिया' 'अधम्माणुया अधम्मिट्ठा अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसीलसमुदाचारा अधम्मेण चेव वित्ति कप्पे माणा विहरंति, 'हण' 'छिंद' 'भिंद' विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-मायाणियडि-कूड - कवड-साइसंपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू । सव्वाओ पाणाइवायाओ
परिया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए' दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आगं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता भुज्जो सगमादाए दोग्गइगामिणो भवति ।
पाणावि वुच्चति ते तसावि वच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह" णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ||
o
२३. भगवं च णं उदाहु - संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा - अणारंभा अपरिग्गहा धम्मा' धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियदा साहू | सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमर
१. येषु सूत्रेषु प्रश्नोत्तरक्रमो विद्यते तत्रैव 'णियंठा खलु पुच्छियव्वा' इत्यादि पाठो गृहीतः अतः परवर्तिसूत्रेषु प्रश्नोत्तरक्रमो नास्ति तेन तस्य पाठस्य नास्ति तत्रावकाशः । २. सं० पा० - अहमिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वओ परिग्गहाओ ।
३. आमरणंतिआए ( क ) ।
४. सं० पा० – वुच्चति ते तसा ए महा ते चिर ते बहुतरगा आयाणसो इती से महता जेणं तुभे णो णेयाउए ।
५. सं० पा० - धम्माया जाव सव्वाओ ।
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सत्तमं अज्झयणं (णालंदइज्ज)
४७९
णंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउगं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तओ भुज्जो सगमायाए सोग्गइगामिणो भवंति ।। ते पाणावि वुच्चंति', 'ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरटिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भेउवएसे° णो णेयाउए भवइ ।। भगवं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया' 'धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू। एगच्चाओ पाणाइवायाओपडिविरया जावज्जीवाए. एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ° अप्पडिविरया । जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउगं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तओ भुज्जो सगमादाए सोग्गइगामिणो भवंति । ते पाणा वि वुच्चंति, 'ते तसावि वुच्चंति ते महाकाया, ते चिरट्टिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे
णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे° णो णेयाउए भवइ ।। २५. भगवं च णं उदाहु-संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–आरणिया आव
सहिया गामंतिया कण्हुईरहस्सिया-जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ–णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूय
१. सं० पा०-वुच्चंति जाव णो णेयाउए। २. सं० पा०-धम्माणुया जाव एगच्चाओ
परिग्गहाओ अप्पडिविरया। ३. सं० पा०-वुच्चंति जाव णो णेयाउए ।
४. गामणियंतिया (क, ख, वृ); द्रष्टव्यम्
२०५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ५. कण्हंतिरहस्सिया (क)।
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सूयगडो २ जीवसत्तेहि अप्पणा सच्चामोसाइं एवं विउंजंति'.-.--अहं णं हंतव्वो अण्णे हंतव्वा', 'अहं ण अज्जावेयव्वो अण्णे अज्जावेयव्वा, अहं ण परिघेतव्वो अण्णे परिघेतव्वा, अहं ण परितावेयव्वो अण्णे परितावेयव्वा, अहं ण उद्दवेयव्वो अण्णे उद्दवेयव्वा। एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाइं चउपंचमाइं छहसमाई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाई कालमासे कालं किच्चा अण्णयराइं आसुरियाई किब्बिसियाई 'ठाणाइं० उववत्तारो भवंति । तओ वि विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयत्ताए तमोरूवत्ताए' पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति', 'ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया । ते चिरद्विइया, ते बहतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवटियस्स पडिविरयस्स जं णं तब्भे वा अण्णो वा एवं वयह-'णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते'। अयं पि
भे उवएसे° णो णेयाउए भवइ॥ २६. भगवं च णं उदाहु-संतेगइया पाणा दीहाउया, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो
आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ। ते पुवामेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरिद्विइया, ते दीहाउया । ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स' 'सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह—“णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि
दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे ° णो णेयाउए भवइ ।। २७. भगवं च णं उदाहु-संतेगइया पाणा समाउया, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो
आमरणंताए दंडे णिक्खिते भवइ । ते सममेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते समाउया। ते
१. पाणभूय ° (क, ख)। २. विप्पडिवेदेति (क, ख, वृपा)। ३. सं० पा०-हंतव्वा जाव कालमासे । ४. सं० पा०—किब्बिसियाई जाव उववत्तारो।
५. तमूयत्ताए (क); तमोतत्ताए (ख)। ६. सं० पा०-वुच्चंति जाव णो णेयाउए । ७. सं० पा०-समणोवासगस्स जाव णो
णेयाउए।
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सत्तमं अज्झणं (णालंदइज्जं )
४८ १
बहुरंगा' 'पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह“णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।।
o
२८. भगवं च णं उदाहु-संतेगइया पाणा अप्पाउया, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते भवइ । ते पुत्रामेव कालं करति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति ।
ते पाणा वि वुच्चति, ते तसावि वुच्चति ते महाकाया, ते अप्पाउया । ते बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया' 'तसकायाओ उवसंतस्स यस पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि णं से hs परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि उवएसे णो णेयाउए भवइ ॥
०
aभंगेहिं पच्चक्खाणस्स विसय उवदंसण-पदं
1
२६. भगवं च णं उदाहु—- संतेगइया समणोवासगा भवंति । तेसि च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ - णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता' 'अगाराओ अणगारियं • पव्वइत्तए । णो खलु वयं संचाएमो चाउदसमुद्दिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं अणुपालित्तए । णो खलु वयं संचाएमो अपच्छिम मारणंतियसंलेहणाभूसणाभूसिया भत्तपाणपडियाइक्खिया कालं अणवकखमाणा विहरित्तए । वयं णं सामाइयं देसावगासियं पुरत्था पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं एतावताव सव्वपाणेहिं सव्वभूएहि सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहि दंडे णिक्खित्ते पाणभूयजीवसत्तेहिं खेमंकरे अहमंसि ।
१. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति तेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ ।
१. सं० पा० - बहुरंगा जाव णो णेयाउए । २. सं० पा० – महया जाव णो णेयाउए । ३. सं० पा० -- भवित्ता जाव पव्वइत्तए । ४. सं० पा० अच्छिमं जाव विहरित्तए ।
o
५. व्या० वि - 'अणुपालेमाणा विहरिस्सामो' इति अध्याहर्तव्यम् ।
- सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहि ।
६. सं० पा०-स
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४८२
सूयगडो २
ते पाणा वि' वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्रिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवास गस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह-"णत्थि णं से केइ परियाए जसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णि क्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । २. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते। ते पाणावि वच्चंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्रिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्च क्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उट्रियस्स पडिविरयस्स ज ण तुब्भ वा अण्णो वा एवं वयह-"णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।' ३. तत्थ 'आरेणं जे" तसा पाणा, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं चेव जे तसा थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते पाणावि' 'वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया । ते बहुतरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह – “णत्थि णं से केइ परियाए जसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भेउवएसे णो णेयाउए भवइ ।। ४. तत्थ 'आरेणं जे" थावरा पाणा.हि समणोवासगस्स अटाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिखित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं
१. सं० पा०-पाणावि जाव अयं पि भेदे से। २. स० पा०--ते तसा"ते चिर जाव अयं
पि भेदे से ।
३. जे आरेणं (क, ख)। ४. सं० पा०—पाणावि जाव अयं पि भेदे। ५. जे आरेणं (क, ख)।
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सत्तमं अज्झणं ( जालंदइज्जं )
४८३
अप्पयरगा पाणा
चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते पाणावि वच्चति ते तसावि वुच्चंति से महाकाया, ते चिरट्ठिइया । ते बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि गं से परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।°
५. तत्थ 'आरेणं जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्टाए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तत्थ आरेणं वेव जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, ते पच्चायंति । तेहि समणोवासगस्स 'अट्ठाए दंडे अणिक्खिते अट्ठाए दंडे णिक्खित्ते" ।
I
ते पाणावि * " वच्चति ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया । ते बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स
यस पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पिभे उसे णो णेयाउए भवइ । °
६. तत्थ ‘परेणं जे’^ थावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अट्टाए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ परेणं चैव जे तसा थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायंति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते पाणावि बुच्चति, ते तसावि वच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवद्वियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह- " णत्थि णं से hs परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" ० अयं पि भे उसे णो णेयाउए भवइ ।
१. सं० पा० - पाणावि जाव अयं पि भे । २. जेते आरेण (क, ख ) ।
३. सुपच्चक्खायं भवंति ( ख ) ।
४. सं० पा० - पाणावि जाव अयं पि भेदे । ५. जेते परेण (क, ख ) ।
६. सं० पा० - पाणावि जाव अयं ।
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सूयगडो २
७. तत्थ 'परेण जे" तसथावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंता दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ ।
ते पाणावि वच्चति, ते तसावि वच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहि समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उट्ठियस पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि णं से
परिया जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते । " ० अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ ।
८. तत्थ 'परेण जे तसथावरा पाणा जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंता दंडे णिक्खिते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं जे थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स अट्ठाए दंडे अणिक्खित्ते अणट्ठाए दंडे णिक्खित्ते, तेसु पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ ।
ते पाणावि' 'वुच्चति, ते तसावि वुच्चति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स
यस पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि से hs परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । °
६. तत्थ 'परेणं जे" तसथावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंता दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्पजहित्ता ते तत्थ परेणं चेव जे तस्थावरा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते पच्चायति । तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ ।
ते पाणावि' 'वुच्चति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्टिइया । ते बहुरंगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स यस पडिविरयस्स जं गं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह - " णत्थि णं से केइ
१. जे परेणं ( क ) ; जेते परेणं ( ख ) ।
२. सं० पा०-- पाणावि जाव अयं ।
३. जे परेणं (क); जेते परेण ( ख ) । ४. सं० पा० - पाणावि जाव अयं पि भेदे ।
५. जे परेणं (क, ख ) ।
६. सं० पा० - पाणावि जाव अयं पि भेदे से"" ।
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सत्तमं अभयणं (णालंदइज्जं )
४८५
परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि उवएसे णो णेयाउए भवइ ॥ °
तस-यावर पाणाणं अव्वोच्छित्ति-पदं
३०. भगवं च णं उदाहु- -ण एयं भूयं ण एयं भव्वं 'ण एयं भविस्सं" जणं - तसा पाणा वोच्छिज्जिहिति', थावरा पाणा भविस्संति । थावरा पाणा वोच्छिज्जिहिंति तसा पाणा भविस्संति । अवोच्छिष्णेहिं तसथावरेहिं पाणेहिं जपणं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वदह - " णत्थि णं से केइ परियाए 'जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्खित्ते ।" अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ || उवसंहार-पदं
0
३१. भगवं च णं उदाहु-आउसंतो ! उदगा ! जे खलु समणं वा माहणं वा परिभासइ मित्ति' मण्णइ आगमित्ता णाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरितं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [ उट्टिए ? ], से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ |
जे खलु समणं वा माहणं वा णो परिभासइ मित्ति' मण्णइ आगमित्ता णाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरितं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [ उट्ठिए ? ], से खलु परलोगविसुद्धीए चिट्ठइ ॥
३२. तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसिं पहारेत्थ गमणाए ।
३३. भगवं च णं उदाहु आउसंतो ! उदगा ! जे खलु तहारूवस्स समणस्स वा माणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म अप्पणो चेव सुहुमाए पडिलेहाए अणुत्तरं जोगखेमपयं लंभिए समाणे सो वि तावतं आढाइ 'परिजाणेइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ" कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ ।।
१. भवइ (वृ); X () ।
२. वोच्छिज्जिस्संति ( क ) ।
३. सं० पा० - परियाए जाव णो णेयाउए । ४. मेत्ति ( क, ख ) ; मैत्रीं मन्यमानोऽपि ( वृ); स्वीकृत पाठश्चूर्ण्यनुसारी वर्तते । वि०- मामिति ।
व्या०
५. प्रत्योर्नेष पाठो लभ्यते, चूर्णावपि नास्ति । वृत्तावस्ति व्याख्यातः ।
६. मेत्ति (क, ख ) ; मैत्री मण्यते ( वृ ) ।
७. नागार्जुनीयास्तु — णो खलु समणं वा हीलमाणो परिभासति मणसा वायाए कारणं आगमित्ता णाणं आगमित्ता दंसणं आगमित्ता चरितं पावाणं कम्माणं अकरणयाए, से खलु परलोगपडिमंथत्ताए चिट्ठति (च) । ८. परिजाणाइ वंदति णमंसति ( क ) ; x ( वृ ) ।
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४८६
सूयगडो २ ३४. तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-एएसि णं भंते ! पदाणं
पुव्वि अण्णाणयाए अस्सवणयाए अबोहीए अणभिगमेणं अदिढाणं अस्सुयाणं अमुयाणं अविण्णायाणं अणिज्जूढाणं' अव्वोगडाणं अव्वोच्छिण्णाणं अणिसिट्टाणं अणिवूढाणं अणुवहारियाणं एयमटुं णो सद्दहियं णो पत्तियं णो रोइयं । एएसि णं भंते ! पदाणं एण्हि जाणयाए सवणयाए बोहीए' अभिगमेणं दिट्ठाणं सुयाणं मुयाणं विण्णायाणं णिज्जूढाणं वोगडाणं वोच्छिण्णाणं णिसिटाणं णिवूढाणं ° उवधारियाणं एयमटुं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि ‘एवामेयं जहा णं',
तुब्भे वदह॥ ३५. तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं एवं वयासी-सद्दहाहि णं अज्जो ! पत्ति
याहि णं अज्जो ! रोएहि णं अज्जो ! एवमेयं जहा णं अम्हे वयामो॥ ३६. तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुभं
अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जि
ताणं विहरित्तए । ३७. तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं गहाय जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव
उवागच्छइ । तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ३८. तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
-त्ति बेमि॥ ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर ८४६२२ अनुष्टुप् श्लोक २६४४, अक्षर १४
१. ४(क)। २. सं० पा०–बोहीए जाव उवधारियाणं ।
३. एवमेव से जहेयं । ४. अंतियं (क)।
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ठाणं
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पढमं ठाणं
१. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवता एवमक्खायंअत्थिवाय-पदं
२. एगे आया । ३. एगे दंडे ॥ ४. एगा किरिया ॥ ५. एगे लोए॥ ६. एगे अलोए ।। ७. एगे धम्मे ।। ८. एगे अहम्मे ।। ६. एगे बंधे॥ १०. एगे मोक्खे ॥ ११. एगे पुण्णे ॥ १२. एगे पावे।। १३. एगे आसवे ॥ १४. एगे संवरे॥ १५. एगा वेयणा ॥ १६. एगा णिज्जरा॥ पइण्णग-पदं १७. एगे जीवे पाडिक्कएणं' सरीरएणं ॥ १८. एगा जीवाणं अपरिआइत्ता विगुव्वणा ।।
१. पडिक्खएणं (वपा)।
४८६
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४६०
ठाणं
१६. एगे मणे॥ २०. एगा वई॥ २१. एगे काय-वायामे ॥ २२. एगा उप्पा॥ २३. एगा वियती॥ २४. एगा वियच्चा।। २५. एगा गती। २६. एगा आगती॥ २७. एगे च यणे ॥ २८. एगे उववाए॥ २६. एगा तक्का ।। ३०. एगा सण्णा ॥ ३१. एगा मण्णा ॥ ३२. एगा विण्णू ॥ ३३. एगा वेयणा ॥ ३४. एगे छेयणे ॥ ३५. एगे भेयणे। ३६. एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं । ३७. एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते ॥ ३८. 'एगे दक्खे" जीवाणं एगभूए ।। ३६. एगा अहम्मपडिमा, 'जं से" आया परिकिलेसति ।। ४०. एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए। ४१. एगे मणे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४२. एगा वई देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४३. एगे काय-वायामे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि ।। ४४. एगे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसकार'-परक्कमे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि
समयंसि॥ ४५. एगे णाणे॥ ४६. एगे दंसणे ॥
१. एगहक्खे (वृपा)। २. जंसि (वृपा)। ३. पज्जवज्जाए (ख)।
४. वती (क, ख, ग)। ५. पुरिसक्कार (क)।
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पढमं ठाणं
४६१
४७. एगे चरिते ॥ ४८. एगे समए॥ ४६. एगे पएसे॥ ५०. एगे परमाणू ॥ ५१. एगा सिद्धी ॥ ५२. एगे सिद्धे ॥ ५३. एगे परिणिव्वाणे ॥ ५४. एगे परिणिव्वुए ॥ पोग्गल-पदं ५५. एगे सद्दे ॥ ५६. एगे रूवे॥ ५७. एगे गंधे॥ ५८. एगे रसे ॥ ५६. एगे फासे। ६०. एगे सुब्भिसद्दे। ६१. एगे दुब्भिसद्दे ॥ ६२. एग सुरुवे॥ ६३. एगे दुरूवे ॥ ६४. एगे दीहे ॥ ६५. एगे हस्से॥ ६६. एगे वट्टे । ६७. एगे तसे ॥ ६८. एग चउरसे ॥ ६६. एगे पिहुले ॥ ७०. एगे परिमंडले ॥ ७१. एगे किण्हे ॥ ७२. एगे णीले ॥ ७३. एगे लोहिए॥ ७४. एगे हालिद्दे ॥ ७५. एगे सुक्किल्ले ॥ ७६. एगे सुब्भिगंधे ॥
३. सुक्किले (क, ग)।
१. निव्वुडे (क, ग)। २. रहस्से (क, ग)।
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४६२
ठाण
७७. एगे दुब्भिगंधे ॥ ७८. एगे तित्ते॥ ७६. एगे कडुए॥ ८०. एगे कसाए। ८१. एगे अंबिले ॥ ८२. एगे महुरे॥ ८३. एगे कक्खड़े ॥ ८४. 'एगे मउए॥ ८५. एगे गरुए। ८६. एग लहुए। ८७. एगे सीते। ८८. एगे उसिणे ।। ८६. एगे णिद्धे ॥ ६०. एगे° लुक्खे॥ अट्ठारसपाव-पदं ६१. एगे पाणातिवाए। ६२. 'एगे मुसावाए। ६३. एगे अदिण्णादाणे ॥ ६४. एगे मेहुणे ॥ ६५. एगे परिग्गहे ॥ ६६. एगे कोहे॥ ६७. 'एगे माणे॥ ६८. एगा माया० ॥ ६६. एगे लोभे ॥ १००. एगे पेज्जे॥ १०१. एगे दोसे ।। १०२. 'एगे कलहे॥ १०३. एगे अब्भक्खाणे॥ १०४. एगे पेसुण्णे ॥
१. कक्कडे (क, ग); सं० पा०—कक्खडे जाव
लुक्खे । २. सं० पा०—पाणातिावए जाव एगे।
६. सं० पा० -कोहे जाव एगे। ४. सं० पा०-दोसे जाव एगे।
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पढमं ठाणं
४६३
१०५. एगे परपरिवाए ॥ १०६. एगा अरतिरती।। १०७. एगे मायामोसे ।। १०८. एगे मिच्छादसणसल्ले ॥ अट्ठारसपाव-वेरमण-पदं १०६. एगे पाणाइवाय-वेरमणे ॥ ११०. 'एगे मुसावाय-वेरमणे ॥ १११. एगे अदिण्णादाण-वेरमणे ।। ११२. एगे मेहुण-वेरमणे ॥ ११३. एगे° परिग्गह-वेरमणे ॥ ११४. एगे कोह-विवेगे । ११५. 'एगे माण-विवेगे॥ ११६. एगे माया-विवेगे। ११७. एगे लोभ-विवेगे। ११८. एगे पेज्ज-विवेगे । ११६. एगे दोस-विवेगे। १२०. एगे कलह-विवेगे। १२१. एगे अब्भक्खाण-विवेगे। १२२. एगे पेसुण्ण-विवेगे । १२३. एगे परपरिवाय-विवेगे ।। १२४. एगे अरतिरति-विवेगे। १२५. एगे मायामोस-विवेगे। १२६. एगे० मिच्छादसणसल्ल-विवेगे। ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं १२७. एगा ओसप्पिणी ॥ १२८. एगा सुसम-सुसमा । १२६. 'एगा सुसमा ॥ १३०. एगा सुसम-दूसमा ।।
१. सं० पा०—पाणाइवायवेरमणे
परिग्गहवेरमणे । २. कोव (क)।
जाव ३. सं० पा०—कोहविवेगे जाव मिच्छादसण
सल्ल° । ४. सं० पा०—सुसमसुसमा जाव एगा।
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४९४
ठाणं
१३१. एगा दूसम-सुसमा ।। १३२. एगा दूसमा ° ॥ १३३. एगा दूसम-दूसमा । १३४. एगा उस्सप्पिणी ॥ १३५. एगा दुस्सम-दुस्समा ।। १३६. 'एगा दुस्समा ॥ १३७. एगा दुस्सम-सुसमा । १३८. एगा सुसम-दुस्समा । १३६. एगा सुसमा° ॥ १४०. एगा सुसम-सुसमा ।। चउवीसदंडग-पदं १४१. एगा जेरइयाणं वग्गणा ।। १४२. एगा असुरकुमाराणं वग्गणा' ।। १४३. 'एगा णागकुमाराणं वग्गणा॥ १४४. एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा ॥ १४५. एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा ।। १४६. एगा अग्गिकुमाराणं वग्गणा ।। १४७. एगा दीवकुमाराणं वग्गणा ।। १४८. एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा ।। १४६. एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा ।। १५०. एगा वायुकुमाराणं वग्गणा ।। १५१. एगा थणियकूमाराणं वग्गणा ॥ १५२. एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा ॥ १५३. एगा आउकाइयाणं वग्गणा ॥ १५४. एगा तेउकाइयाणं वग्गणा ॥ १५५. एगा वाउकाइयाणं वग्गणा ॥ १५६. एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा ।। १५७. एगा बेइंदियाणं वग्गणा ।। १५८. एगा तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १५६. एगा चरिदियाणं वग्गणा ।।
१. सं० पा०-दुस्समदुस्समा जाव एगा।
२. सं० पा०-असुरकुमाराणं वग्गणा चउवीस
दंडओ जाव एगा।
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पढमं ठाणं
४६५
१६०. एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा ।। १६१. एगा मणुस्साणं वग्गणा ॥ १६२. एगा वाणमंतराणं वग्गणा ॥ १६३. एगा जोइसियाणं वग्गणा० ॥ १६४. एगा वेमाणियाणं वग्गणा ।। भव-अभव-सिद्धिय-पदं १६५. एगा भवसिद्धियाणं वग्गणा ।। १६६. एगा अभवसिद्धियाणं वग्गणा ॥ १६७. गा भवसिद्धियाणं' णेरइयाणं वग्गणा ॥ १६८. एगा अभवसिद्धियाणं णरइयाणं वग्गणा ।। १६६. एवं जाव एगा भवसिद्धियाणं वेमाणियाणं वग्गणा, एगा अभवसिद्धियाणं
वेमाणियाणं वग्गणा ।। दिट्ठि-पदं १७०. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं' वग्गणा ।। १७१. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। १७२. एगा सम्मामिच्छद्दि ट्ठियाणं वग्गणा ।। १७३. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १७४. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणंर णेइयाणं वग्गणा ।। १७५. एगा सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १७६. एवं जाव थणियकुमाराणं वग्गणा । १७७. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं पुढविक्काइयाणं वग्गणा ।। १७८. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं ॥ १७९. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा ।। १८०. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा ।। १८१. १०एगा सम्मद्दिट्ठियाणं तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १८२. एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं तेइंदियाणं वग्गणा ॥ १८३. एगा सम्मद्दिट्ठियाणं चउरिदियाणं वग्गणा ।।
१,२,३. सिद्धीयाणं (क, ख)। ४. ठा० १११४२-१६३ । ५,६. ० दिट्टीयाणं (क, ख, ग)। ७. सम्ममिच्छदिट्ठीयाणं (क);
(ख, ग)।
८. सम्म° (क, ग)। ६. ठा० १११४२-१५० ।
१०. ठा० १११५३-१५५ । दिट्ठीयाणं ११. सं० पा०—एवं तेइंदियाणं वि चरिंदियाणं
वि।
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४६६
१८४. एगा मिच्छद्दिद्वियाणं चउरिदियाणं वग्गणा ।।
०
१८५. सेसा जहा णर३या जाव' एगा सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं वग्गणा ।
कण्ह-सुक्क पक्खिय-पदं
१८६. एगा कण्हपक्खियाणं वग्गणा ॥
१८७ एगा सुक्कपक्खियाणं वग्गणा || १८८. एगा कण्हपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा ||
१८६. एगा सुक्कपक्खियाणं णेरइयाणं वग्गणा । १०. एवं - चउवीसदंडओ भाणियव्वो ।
लेसा-पदं
१६१. एगा कण्हलेस्साणं वग्गणा ॥
१६२. एगा नीलले साणं वग्गणा ।। १६३. "एगा काउलेसाणं वग्गणा || १६४. एगा तेउलेसाणं वग्गणा ॥ १६५. एगा पहले साणं वग्गणा ॥ १६६. एगा • सुक्कलेसाणं वग्गणा ॥ १६७. एगा कण्हले साणं णेरइयाणं वग्गणा ।। १६८. एगा णीललेसाणं णेरइयाणं वग्गणा ||
१६६. एगा काउलेसाणं णेरइयाणं वग्गणा ।।
२००. एवं - जस्स जइ लेसाओ भवणवइ वाणमंतर पुढवि आउ-वणस्सइकाइयाणं च चत्तारि लेसाओ, तेउ वाउ - बेइंदिय- तेइंदिय- चउरिदियाणं तिणि लेसाओ, पंचिदियति रिक्खजोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ, जोतिसियाणं एगा तेउलेसा, मणियाणं तिण्णि उवरिमलेसाओ ||
२०१. एगा कण्हले साणं भवसिद्धियाणं वग्गणा ॥ २०२. एगा कण्हले साणं अभवसिद्धियाणं वग्गणा ॥
२०३. एवं - छवि लेसासु दो दो पयाणि भाणियव्वाणि || २०४. एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा ॥ २०५. एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं णेरइयाणं वग्गणा ॥
१. ठा० १।१६०-१६४ ।
२. ठा० १११७३-१७५ ।
३. ठा० १।१४२-१६४ ।
४. सं० पा० एवं जाव सुक्कलेसाणं । ५. सं० पा० एवं जाव काउलेसाणं ।
६. ठा० १।१६२-१६६ ।
ठाणं
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पढमं ठाणं
४६७
२०६. एवं जस्स जति लेसाओ' तस्स ततियाओ' भाणियव्वाओ जाव' वेमाणियाणं । २०७. एगा कण्हलेसाणं सम्मद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २०८. एगा कण्हलेसाणं मिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २०६. एगा कण्हलेसाणं सम्मामिच्छद्दिट्ठियाणं वग्गणा ।। २१०. एवं-छसुवि लेसासु जाव वेमाणियाणं 'जेसिं जइ दिट्ठीओ ॥ २११. एगा कण्हलेसाणं कण्हपक्खियाणं वग्गणा । २१२. एगा कण्हलेसाणं सुक्कपक्खियाणं वग्गणा ।। २१३. जाव' वेमाणियाणं । जस्स जति लेसाओ एए अट्ठ, चउवीसदंडया ।। सिद्ध-पदं २१४. एगा तित्थसिद्धाणं वग्गणा ।। २१५. एगा अतित्थसिद्धाणं वग्गणा ।। २१६. “एगा तित्थगरसिद्धाणं वग्गणा ।। २१७. एगा अतित्थगरसिद्धाणं वग्गणा ।। २१८. एगा सयंबुद्धसिद्धाणं वग्गणा ॥ २१६. एगा पत्तेयबुद्धसिद्धाणं वग्गणा ।। २२०. एगा बुद्धबोहियसिद्धाणं वग्गणा ।। २२१. एगा इत्थीलिंगसिद्धाणं वग्गणा ॥ २२२. एगा पुरिसलिंगसिद्धाणं वग्गणा । २२३. एगा णपुंसकलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२४. एगा सलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२५. एगा अण्णलिंगसिद्धाणं वग्गणा ।। २२६. एगा गिहिलिंगसिद्धाणं वग्गणा ॥ २२७. एगा एक्कसिद्धाणं वग्गणा ।। २२८. एगा अणिक्कसिद्धाणं वग्गणा ।। २२६. एगा अपढमसमयसिद्धाणं वग्गणा, एवं जाव अणंतसमयसिद्धाणं वग्गणा ।।
१. ठा० ११२०० । २. तत्तियाओ (क)। ३. ठा० १।१४२-१६३ । ४. ठा० १११४१-१६३ । ५. जेसिजेसि० (क); जेसि जट्रिीओ (ख);
पू०-ठा० ११७३-१८५ । ६. ठा० १११४१-१६३ । ७. ठा० श२०० । ८. सं० पा०-एवं जाव एगा। ६. पढमसमय (ख, वृपा)।
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ठाणं
पोग्गल-पदं २३०. एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अणंतपएसियाणं खंधाणं'
वग्गणा ॥ २३१. एगा एगपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जपएसोगाढाणं
पोग्गलाणं वग्गणा ॥ २३२. एगा एगसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जसमय
ठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा।। २३३. एगा एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेज्जगुणकालगाणं
पोग्गलाणं वग्गणा, एगा अणंतगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा ।। २३४. एवं-वण्णा गंधा रसा फासा भाणियव्वा जाव' एगा अणंतगुणलुक्खाणं
पोग्गलाणं वग्गणा ।। २३५. एगा जहण्णपएसियाणं खंधाणं वग्गणा । २३६. एगा उक्कस्सपएसियाणं' खंधाणं वग्गणा ।। २३७. एगा अजहण्णुक्कस्सपएसियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २३८. "एगा जहण्णोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा ।। २३६. एगा उक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा । २४०. एगा अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४१. एगा जहण्णठितियाणं खंधाणं वग्गणा ।। २४२. एगा उक्कस्सठितियाणं खंधाणं वग्गणा ।। २४३. एगा अजहण्णुक्कोसठितियाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४४. एगा जहण्णगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा ।। २४५. एगा उक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा ।। २४६. एगा अजहण्णक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा ॥ २४७. एवं-वण्ण-गंध-रस-फासाणं वग्गणा भाणियव्वा जाव' एगा अजहण्णुक्कस्स
गुणलुक्खाणं पोग्गलाणं [खंधाणं? ] वग्गणा ॥ जंबुद्दीव-पदं २४८. एगे जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं 'सव्वभंतराए सव्वखुड्डाए, वट्टे तेल्लापूय
१. पोग्गालाणं (क, ख, ग)। २. ठा० ११७२-८६ । ३. उक्कोस्स ° (ख); उक्कोस ° (ग)। ४. स० पा०-एवं जहण्णोगाहणगाणं....
अजहण्णुक्कस्सगुणकालगाणं । ५. ठा० ११७२-८६ । ६. सं० पा०-सव्वदीवसम्हाणं जाव अद्धंगूलगं ।
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पढमं ठाणं
संठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साई दोण्णि य सत्तावोसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई ° अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए
परिक्खेवेणं॥ महावीर-णिव्वाण-पदं २४६. एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसाए तित्थगराणं
चरमतित्थयरे' सिद्धे बुद्धे मुत्ते' अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ देव-पदं २५०. अणुत्तरोववाइया णं देवा' 'एग रयणि" उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ णक्खत्त-पदं २५१. अद्दाणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ॥ २५२. चित्ताणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २५३. सातिणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। पोग्गल-पदं २५४. एगपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। २५५. एगसमयठितिया' पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ २५६. एगगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव' एगगुणलुक्खा पोग्गला अणंता
पण्णत्ता ॥
१. चरिम° (क, ग)। २. सं० पा०--मुत्ते जाव सव्वदुक्ख । ३. देवा णं (क, ख, ग)। ४. एगा रतणि (ख)।
५. सं० पा०–एवमेगसमयठितिया। ६. ठितीया (क, ख, ग)। ७. °कालगाणं (ख)। ८. ठा० ११७२-८६ ।
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बीअं ठाणं
पढमो उद्देसो दुपओआर-पदं १. 'जदत्थि णं" लोगे तं सव्वं दुपओआरं', तं जहा-जीवच्चेव, अजीवच्चेव ।
'तसच्चेव, थावरच्चेव' । सजोणियच्चेव, अजोणियच्चेव । साउयच्चेव, अणाउयच्चेव । सइंदियच्चेव, अणिदियच्चेव । सवेयगा चेव, अवेयगा चेव । सरूवी चेव, अरूवी चेव । सपोग्गला चेव, अपोग्गला चेव । संसारसमावण्णगा चेव, असंसारसमावण्णगा चेव । सासया चेव, असासया चेव । आगासे चेव, णोआगासे चेव । धम्मे चेव, अधम्मे चेव । बंधे चेव, मोक्खे चेव । पुण्णे चेव,
पावे चेव । आसवे चेव, संवरे चेव । वेयणा चेव, णिज्जरा चेव ।। किरिया-पदं
२. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–जीवकिरिया चेव, अजीवकिरिया चेव ।। ३. जीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सम्मत्तकिरिया चेव, मिच्छत्तकिरिया
चेव ।। ४. अजीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-इरियावहिया चेव, संपराइगा चेव ।।
दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–काइया चेव, आहिगरणिया' चेव ।। काइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--अणुवरयकायकिरिया चेव, दुपउत्तकायकिरिया चेव॥ आहिगरणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजोयणाधिकरणिया चेव, णिव्वत्तणाधिकरणिया चेव ।।
;
१. जदत्थि च णं (क वृपा); जदत्थि णं च (ग)। २. दुपडोयारं (क, ख, ग, वृपा)। ३. तसे चेव थावरे चेव (क्व)। ४. अणिदिएच्चेव (क, ग)।
५. अहिग ° (ग)। ६. दुप्प ° (क्व)। ७. अहिकर° (क); आहिकर ° (ग) ।
५००
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बी ठाणं ( पढमो उद्देसो)
५०१
८.
दो करियाओ पण्णत्ताओ तं जहा - पाओसिया चेव, पारियावणिया चेव ॥ ६. पाओसिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपाओसिया चेव, attaपाओसिया चेव ॥
१०. पारियावणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सहत्थपारियावणिया चेव, परहत्थपारियावणिया चेव ।।
११. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पाणातिवायकिरिया चेव, अपच्चक्खाणकिरिया चेव ||
१२. पाणातिवायकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सहत्थपाणातिवायकिरिया चेव, परहत्थपाणातिवायकिरिया चेव ॥
१३. अपच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीव अपच्चक्खाणकिरिया चेव, अजीव पच्चक्खाणकिरिया चेव ॥
१४. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- आरंभिया चेव, पारिग्गहिया चेव ।
१५. आरंभिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवआरंभिया चेव, अजीव - आरंभिया चेव ||
१६. पारिग्गहिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपारिग्गहिया चेव, अजीव परिगहिया व° ॥
o
१७. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मायावत्तिया चेव, मिच्छादंसणवत्तिया चेव ।
१८. मायावत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आयभाववंकणता चेव, परभाववकणता चेव ॥
१६. मिच्छादंसणवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - ऊणाइरियमिच्छादंसणवत्तिया चेव, तव्वइरित्तमिच्छादंसणवत्तिया चेव ॥
२०.
दो करियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - दिट्टिया चेव, पुट्ठिया चेव ॥
२१. दिट्टिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, 'जहा - जीवदिट्टिया चेव, अजीवदिट्टिया
चेव ॥
५०
२२. पुट्टिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपुट्टिया चेव, अजीवपुट्ठिया
चेव ॥
२३. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पाडुच्चिया चेव, सामंतोवणिवाइया चेव ।।
१. सं० पा० एवं पारिग्गहिया वि । २. मायवत्तिया ( क ग ) ।
३. मायवत्तिया ( क ग ) ।
४. ऊणायरिय° (क, ग ); ऊणाइरित्त • ( क्व) । ५. सं० पा० - एवं पुट्ठियावि ।
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५०२
ठाणं २४. पाडुच्चिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--जीवपाडुच्चिया चेव, अजीव
पाडुच्चिया चेव ॥ २५. "सामंतोवणिवाइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवसामंतोवणिवाइया
चेव, अजीवसामंतोवणिवाइया चेव ° ।। २६. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-साहत्थिया चेव, सत्थिया चेव ॥ २७. साहत्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवसात्थिया चेव अजीव
साहत्थिया चेव ॥ २८. “णेसत्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवणेसत्थिया चेव, अजीव
णेसत्थिया चेव ° ॥ २६. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आणवणिया चेव, वेयारणिया' चेव ॥ ३०. "आणवणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीवआणवणिया चेव, अजीव
आणवणिया चेव ।। ३१. वेयारणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जीववेयारणिया चेव, अजीव
वेयारणिया चेव ° ॥ ३२. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-अणाभोगवत्तिया चेव, अणवकखवत्तिया
चेव ॥ ३३. अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणाउत्तआइयणता' चेव,
अणाउत्तपमज्जणता चेव ।। अणवकंखवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आयसरी रअणवकंख
वत्तिया चेव, परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव ॥ ३५. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव ॥ ३६. पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-मायावत्तिया चेव, लोभवत्तिया
चेव ।।
दोसवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–कोहे चेव, माणे चेव ।। गरहा-पदं ३८. दुविहा गरिहा पण्णत्ता, तं जहा-मणसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति ।
अहवा-गरहा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-दीहं वेगे अद्धं गरहति, रहस्सं वेगे अद्धं गरहति ॥
१. सं० पा०–एवं सामंतोवणिवाइयावि । २. सं० पा०--एवं सत्थियावि । ३. वेयारणीया (क, ख); अणाणुवणिता (ग)।
४. सं० पा०-जहेव सत्थियाओ। ५. ० आयाणता (क)।
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बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो) पच्चक्खाण-पदं ३६. दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसा वेगे पच्चवखाति, वयसा वेगे
पच्चक्खाति। अहवा-पच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्सं वेगे अद्धं पच्चक्खाति ।।
विज्जाचरण-पदं ४०. दोहि ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अणादीयं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसार_कंतारं वीतिवएज्जा, तं जहा–विज्जाए चेव चरणेण चेव ।। आरंभ-परिग्गह-पदं ४१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज सवणयाए, तं
जहा–आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४२. दो ठाणाइं अपरियाणेत्ता' आया णो केवलं बोधिं बुज्झज्जा, तं जहा–आरंभे
चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४३. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं
पव्वइज्जा, तं जहा-आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ४४. "दो ठाणाइं अपरियाणेत्ता आया णो केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा
आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४५. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा
आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४६. दो ठाणाइं अपरियाणेत्ता आया णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-आरंभे
चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४७. दो ठाणाइं अपरियाणेत्ता आया णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं
जहा-आरंभ चेव, परिग्गहे चेव ॥ ४८. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा
आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।। ४६. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा
आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ।।
१. अपरियादितित्ता (क, ग); अपरियाइत्ता
(वृपा)। २. अपरियाइत्ता (क, ग)।
३. सं० पा०–एवं णो केवलं बंभचेरवासमा
वसेज्जा"ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलणाणं ।
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५०४
५०. दो ठाणाई अपरियाणत्ता आया णो केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव परिग्गहे चेव ॥
५१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया णो केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - आरंभे चैव परिग्गहे चेव० ॥
५२. दो ठाणाई परियाणेत्ता' आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहाआरंभे चैव परिग्गहे चेव ॥
५३. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बोधि बुज्भेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥
ठाणं
५४. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥
५५. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा - आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥
५६.
दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा- आरंभ चेव, परिग्गहे चेव ॥
५७. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥
५८. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहाआरंभे चैव परिग्गहे चेव ॥
५६. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव परिग्गहे चेव ॥
६०. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभ चेव, परिग्गहे चेव ॥
६१. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहाआरंभे चेव, परिग्गहे चेव ॥
६२. दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभ चेव, परिग्गहे चेव ॥
सोच्चा- अभिसमेच्च-पदं
६३. दोहि ठाणेह आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहासोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥
६४. "दोहि ठाणेहिं आया केवलं बोधि बुज्भेज्जा, तं जहा- सोच्च च्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥
१. परियाइत्ता ( क ) ; परियादित्ता ( ग ) ।
२. सं० पा० - एवं जाव केवलणाणं उप्पा
डेज्जा ।
३. सं० पा० - जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा ।
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बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो)
५०५ ६५. दोहि ठाणेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं
जहा-सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६६. दोहि ठाणेहिं आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६७. दोहि ठाणेहि आया केवलं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६८. दोहि ठाणेहिं आया केवलं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ ६९. दोहि ठाणेहि आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव
अभिसमेच्चच्चेव ।। ७०. दोहि ठाणेहि आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ ७१. दोहि ठाणेहिं आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ।। ७२. दोहि ठाणेहिं आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ ७३. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-सोच्चच्चेव,
अभिसमेच्चच्चेव ॥ कालचक्क-पदं ७४. दो समाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-ओसप्पिणी समा चेव, उस्सप्पिणी समा चेव ।। उम्माय-पदं ७५. दुविहे उम्माए पण्णत्ते, तं जहा–जक्खाएसे' चेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स
उदएणं। तत्थ णं जे से जक्खाएसे, से णं सुहवेयतराए चेव, सुहविमोयतराए' चेव । तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, से णं दुहवेयतराए' चेव, दुहविमोयतराए चेव ॥
१. जक्खातेसे (क, ग); जक्खावेसे (क्व); अत्र लिपिदोषेण परिवर्तनं जातमथवा सूत्र
६।४३ सूत्रे 'जक्खावेसेणं' पाठो विद्यते, अत्र कारस्य रचनाभेदः इति न निश्चेतुं शक्यते । च 'जक्खाएसे' इति प्रथमान्तः पाठोस्ति। २. ० मोहतराए (ग)। वृत्तिकारेणाप्यसौ प्रथमान्तत्वेन व्याख्यातः। ३. वेवतराए (ग)।
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ठाणं
दंड-पदं ७६. दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव ॥ ७७. णेरइयाणं दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठादंडे य, अणट्ठादंडे य॥ ७८. एवं-चउवीसादंडओ जाव' वेमाणियाणं ।। दसण-पदं ७६. दुविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा–सम्मइंसणे चेव, मिच्छादसणे चेव ॥ ५०. सम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-णिसग्गसम्मइंसणे चेव, अभिगमसम्मदसणे
चेव ।। ८१. णिसग्गसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पडिवाइ चेव, अपडिवाइ चेव ॥ ८२. अभिगमसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पडिवाइ चेव, अपडिवाइ चेव ॥ ८३. मिच्छादंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अभिग्गहियमिच्छादसणे चेव, अणभिग्ग
यिमिच्छादसणे चेव ।। ८४. अभिग्गहियमिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सपज्जवसिते चेव, अपज्जव
सिते चेव ॥ ८५. अणभिग्गहियमिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सपज्जवसिते चेव,
अपज्जवसिते चेव ॥ णाण-पदं ८६. दुविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे चेव, परोक्खे चेव ।। ८७. पच्चक्खे णाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–केवलणाणे चेव, णोकेवलणाणे चेव ॥ ८८. केवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवत्थकेवलणाणे चेव, सिद्धकेवलणाणे चेव।। ८६. भवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–सजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव,
अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव ॥ ६०. सजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पढमसमयसजोगिभवत्थ
केवलणाणे चेव, अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव । अहवा–चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमयसजोगिभवत्थ
केवलणाणे चेव ॥ ६१. "अजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—पढमसमयअजोगिभवत्थ
केवलणाणे चेव, अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव ।
३. सं०पा०--एवं अजोगिभवत्थके वलणाणे वि।
१. ठा० १११४२-१६३ । २. संपा०-एवं अणभिग्गहितमिच्छादंसणे वि।
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५०७
बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो)
अहवा-चरिमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमयअजोगिभवत्थ
केवलणाणे चेव ॥ ६२. सिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव, परंपर
सिद्धकेवलणाणे चेव ।।। ६३. अणंतरसिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-एक्काणंतरसिद्ध केवलणाणे चेव,
अणेक्काणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव ॥ ६४. परंपरसिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-एक्कपरंपरसिद्ध केवलणाणे चेव,
अणेक्कपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव ॥ ६५. णोकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओहिणाणे चेव, मणपज्जवणाणे चेव ।। ६६. ओहिणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—भवपच्चइए चेव, खओवसमिए चेव ।। ६७. दोण्हं भवपच्चइए पण्णत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव ॥ ६८. दोण्हं खओवसमिए पण्णत्ते, तं जहा–मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ॥ ६६. मणपज्जवणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-उज्जुमति चेव, विउलमति चेव ।। १००. परोक्खे णाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे चेव, सुयणाणे चेव ॥ १०१. आभिणिबोहियणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–सुयणिस्सिए चेव, असुयणिस्सिए
चेव ।। १०२. सुयणिस्सिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे चेव, वंजणोग्गहे चेव ॥ १०३. असुयणिस्सिए' 'दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे चेव, वंजणोग्गहे चेव ° ॥ १०४. सुयणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंगपविट्ठ चेव, अंगबाहिरे चेव ॥ १०५. अंगबाहिरे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-आवस्सए चेव, आवस्सयवतिरित्ते चेव ।। १०६. आवस्सयवतिरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–कालिए चेव, उक्कालिए चेव ।। धम्म-पदं १०७. दुविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव ॥ १०८. सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–सुत्तसुयधम्मे चेव, अत्थसुयधम्मे चेव ॥ १०६. चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–अगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्त
धम्मे चेव ॥ संजम-पदं ११०. दुविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-सरागसंजमे चेव, वीतरागसंजमे चेव ॥
१. सं० पा०—असुयणिस्सितेवि एमेव ।
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५०८
ठाणं
१११. सरागसंजमे दुविहे पण्णत्त, त जहा - सुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव, बादरसंपरायसरागसंजमे चेव ॥
११२. सुहुमसंप रायस रागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पढमसमयसुहुमसंप रायसरागसंजमे चेव, अपढमसमय सुहुमसंप रायस रागसंजमे चेव ॥
अहवा - चरिमसमयसुहुम संप रायसरागसंजमे चेव, अचरिमसमय सुहुमसंप रायसरागसंजमे चेव ।
अहवा – सुहुमसंप रायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - संकिलेसमाणए चेव, विसुज्झमाणए चेव ।।
११३. बादरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयबादरसंपरायसरागसंजमे चेव, अपढमसमयबादरसंपरायस रागसंजमे चेव ।
अहवा - चरिमसमयबादरसंप रायस रागसंजमे चेव, अचरिमसमयबादरसंप रायसरागसंजमे चेव ।
अहवा - बादरसंप रायसरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पडिवातिए चेव, अडवातिए चेव ||
११४. वीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव, खीणकसायवीय रागसंजमे चेव ॥
११५. उवसंतकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमय उवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव, अपढमसमय उवसंतकसायवीय रागसंजमे चंव ।
अहवा - चरिमसमयउवसंत कसायवीय रागसंजमे चेव, अचरिमसमयउवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव ॥
११६. खीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - छउमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे चेव, केवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव ॥
११७. छउमत्थखीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे चेव, बुद्धबोहियछ उमत्थखीण कसाय वीतरागसंजमे
चेव ॥
११८. सयंबुद्धछउमत्थखोणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखोण कसायवीतरागसंजमे चेव, अपढमसमय सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे चेव ।
अहवा - चरिमसमय सयंबुद्धछ उमत्थखीण कसायवीतरागसंजमे चेव, अचरिमसमय सयंबुद्धछउ मत्थखीण कसायवीतरागसंजमे चेव ॥
११६. बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमय बुद्धबोहियछउमत्थखीणक सायवीत रागसंजमे चेव, अपढमसमयबुद्धबोहिय
छउमत्थखीण कसायवीतरागसंजमे चैव ।
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बीअं ठाणं ( पढो उद्देसो)
५०६
अहवा - चरिमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थ खीणकसायवीयरागसंजमे चेव, अचरिमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थ खीण कसायवीय रागसंजमे चेव ||
१२०. केवलिखीणकसायवीय रागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सजोगिकेव लिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव, अजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव ॥ १२१. सजोगिकेवलिखीण कसायवीय रागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पढमसमयसजोगिव लिखाण कसायवीय रागसंजमे चेव, अपढमसमयसजोगिकेव लिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव ।
अहवा - चरिमसमयसजोगि के वलिखीण कसायवीय रागसंजमे चेव, अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीण कसायवीय रागसंजमे चेव ॥
१२२. अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंजमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागसंजमे चेव, अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीय रागसंजमे चेव ।
अहवा --- चरिमसमयअजोगिके व लिखीण कसायवीयरागसंजमे चेव, अचरिमसमयअजोग केवल खीणकसायवीयरागसंज मे चेव ॥
जीव- णिकाय-पदं
बायरा चेव ॥ बायरा चेव ॥
बायरा
चेव ॥
१२३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमा चेव, १२४. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमा चेव, १२५. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा सुहुमा चेव, १२६. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा सुहुमा चेव, बायरा चेव ॥ १२७. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमा चेव, बायरा चेव ॥ १२८. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ॥ १२६. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ॥ १३०. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ॥ १३१. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चैव ॥ १३२. दुविहा वणस्स इकाइया पण्णत्ता, तं जहा -- पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव ° ॥ १३३. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चेव || १३४. दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चेव ॥ १३५. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चेव ॥ १३६. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - परिणया चेव, अपरिणया चेव || १३७. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा-परिणया चेव, अपरिणया चेव ||
१. सं० पा० एवं जाव दुविहा ।
२. सं० पा० एवं जाव वणस्सइकाइया ।
३. सं० पा० एवं जाव वणस्सइकाइया ।
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५१०
ठाणं
दव्व-पदं १३८. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा-परिणया चेव, अपरिणया चैव ॥ जीव-णिकाय-पदं १३६. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा-गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा
चेव ॥ १४०. "दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमा
वण्णगा चेव ।। १४१. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा
चेव ॥ १४२. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा–गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा
चेव ॥ १४३. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा—गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमा
वण्णगा चेव ॥ दव्व-पदं १४४. दुविहा दवा पण्णत्ता, तं जहा-गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा
चेव ।। जीव-णिकाय-पदं १४५. दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ।। १४६. "दुविहा आउकाइया पण्णत्ता, तं जहा--अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा
चेव ॥ १४७. दुविहा तेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ।। १४८. दुविहा वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १४६. दुविहा वणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ।। दव्य-पदं १५०. दुविहा दव्वा पण्णत्ता, तं जहा–अणंतरोगाढा चेव, परंपरोगाढा चेव ॥ १५१. दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहा-ओसप्पिणीकाले चेव, उस्सप्पिणोकाले चेव ।। १५२. दुविहे आगासे पण्णत्ते, तं जहा—लोगागासे चेव, अलोगागासे चेव ॥
३. उवस्सप्पिणी° (ख); ओस्सप्पिणी (ग)।
१. सं० पा०-एव जाव वणस्सइकाइया । २. सं० पा०-जाव दव्वा ।
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बीअं ठाणं (पढमो उद्देसो)
५११ सरीर-पदं १५३. णेरइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए । १५४. "देवाणं दो सरीरगा पण्णता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरए कम्मए, बाहिरए वेउव्विए । १५५. पुढविकाइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंत रगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरगे कम्मए, बाहिरगे ओरालिए जाव' वणस्सइकाइयाणं ।। १५६. बेइंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए ।। १५७. "तेइंदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए । चरिदियाणं दो सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणितबद्धे बाहिरगे ओरालिए । १५६. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव,
बाहिरगे चेव । अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणियण्हारुछिराबद्धे बाहिरगे
ओरालिए। १६०. "मणस्साणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरगे चेव, बाहिरगे चेव ।
अब्भंतरगे कम्मए, अट्ठिमंससोणियण्हारुछिराबद्ध बाहिरगे ओरालिए •॥ १६१. विग्गहगइसमावण्णगाणं णेरइयाणं दो सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-तेयए चेव,
कम्मए चेव । णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ १६२. णेरइयाणं दोहि ठाणेहि सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा-रागेण चेव, दोसेण चेव
जाव वेमाणियाणं ॥ १६३. णेरइयाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए सरीरगे पण्णत्ते, तं जहा–रागणिव्वत्तिए चेव,
दोसणिव्वत्तिए चेव जाव' वेमाणियाणं ॥ काय-पदं १६४. दो काया पण्णता, तं जहा -तसकाए चेव, थावरकाए चेव ।। १६५. तसकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव ।। १६६. "थावरकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव ॥
१. सं० पा०–एवं देवाणं भाणियव्वं । २ ठा० १.१५३-१५५ । ३. सं० पा०-जाव चरिंदियाणं । ४. सं० पा०-मणस्साणं वि एवं चेव ।
५. ठा० १।१४२-१६३ । ६. ठा० १।१४२-१६३ । ७. ठा० १११४२.१६३ । ८. सं० पा०—एवं थावरकाए वि ।
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५१२
ठाणं
दिसादुगे करणिज्ज-पदं १६७. दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पव्वावित्तए
पाईणं चेव, उदीणं चेव ।। "दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावित्तए, संभंजित्तए, संवासित्तए, सज्झायमुद्दिसित्तए, सज्झायं समुद्दिसित्तए, सज्झायमणुजाणित्तए, आलोइत्तए, पडिक्कमित्तए, णिदित्तए, गरहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणयाए अन्भुट्टित्तए अहारिहं
पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जित्तए— पाईण चेव, उदीणं चेव ॥ १६६. दो दिसाओ अभिगिझ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अपच्छिम
मारणंतियसंलेहणा-जूसणा-जूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पाओवगताणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए, तं जहा-पाईणं चेव, उदीणं चेव ।।
बीओ उद्देसो
वेदणा-पदं
१७०. जे देवा उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा चार
द्वितिया गतिरतिया गतिसमावण्णगा, तेसि णं देवाणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं
वेदेति ।। १७१. णेरइयाणं सता समियं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदणं
वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति जाव' पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं॥ १७२. मणुस्साणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, इहगतावि एगतिया वेदणं
वेदेति, अण्णत्थगतावि एगतिया वेदणं वेदेति । मणुस्सवज्जा सेसा एक्कगमा ॥ गति-आगति-पदं १७३. णेरइया दुगतिया दुयागतिया पण्णत्ता, तं जहा-णेरइए णेरइएसु उववज्जमाणे
मणुस्सेहितो वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से णेरइए णेरइयत्तं विप्पजहमाणे मणुस्सत्ताए वा पंचिदियतिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा ।।
१. सं० पा०-एवं। २. ठितीया (क, ग)।
३. ठा० १११४२-१५६ ।
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अं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५१३
१७४. एवं असुरकुमारावि', णवरं - से चेव णं से असुरकुमारे असुरकुमारतं विप्पजह - माणुसत्ता वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं सव्वदेवा' ।। १७५. पुढविकाइया दुर्गातिया दुयागतिया पण्णत्ता, तं जहा -- पुढविकाइए पुढविकाइस ववजमाणे पुढविकाइएहिंतो वा णो पुढविकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा । से चेवणं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा णो पुढ विकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा |
१७६. एवं जाव' मणुस्सा ||
दंडग-मग्गणा-पदं
१७७. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा - भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया चेव जाव मणिया ||
१७८. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा अनंत रोववण्णगा चेव, परंपरोववण्णगा चेव जाव' वेमाणिया ||
१७६. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा - गतिसमावण्णगा चेव, अगतिसमावण्णगा चेव जाव' वेमाणिया ||
१५०. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमओववण्णगा चेव, अपढमसमओववणगा चैव जाव" वेमाणिया ||
१८१. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा - आहारगा चेव, अणाहारगा चेव । एवं जाव' वेमाणिया |
१८२. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा - उस्सासगा चेव, णोउस्सासगा चेव जाव' वेमाणिया ||
१८३. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा -सइंदिया चेव, अणिदिया चेव जाव" मणिया ||
१८४. दुविहा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव जाव" माणिया ||
१८५. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा - सण्णी चेव, असण्णी चेव । एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिंदियवज्जा जाव वाणमंतरा" ॥
१८६. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा -भासगा चेव, अभासगा चेव । एवमेगिदियवासव्वे ॥
१८७. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा सम्मद्दिट्टिया चेव, मिच्छद्दिट्टिया चेव । एगिदियवज्जा सव्वे " ।।
१. असुरकुमारणवि (क, ग) ।
२. ठा० १।१४३-१५१, १६२-१६४ ।
३. ठा० १।१५३-१६० ।
४-११. ठा० १।१४२-१६३ ।
१२. ठा० ११४२-१५१, १६०, १६१ ।
१३. वेमाणिया ( वृ) ; वाणवंतरिया ( वृपा) ।
१४, १५. ठा० १।१४२-१५१, १५७-१६४ ।
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५१४
ठाणं
१८८. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा–परित्तसंसारिता चेव, अणंतसंसारिता चेव
जाव' वेमाणिया । १८६. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा—संखेज्जकालसमयद्वितिया चेव, असंखेज्ज
कालसमयट्ठितिया चेव। एवं-पंचेंदिया एगिदियविगलिंदियवज्जा जाव'
वाणमंतरा ॥ १९०. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा-सुलभबोधिया चेव, दुलभबोधिया चेव
जाव वेमाणिया । १६१. दुविहा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा कण्हपक्खिया चेव, सुक्कपक्खिया चेव जाव'
वेमाणिया ॥ १६२. दुविहा णेरइया पण्णता, तं जहा-चरिमा चेव, अचरिमा चेव जाव'
वेमाणिया ॥ आहोहि-णाण-दंसण-पदं १९३. दोहि ठाणेहिं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं
आया अहेलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ ।
आहोहि समोहतासमोहतेणं' चेव अप्पाणणं आया अहेलोगं जाणइ-पासइ ।। १६४. “दोहिं ठाणेहिं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव
अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ।।
आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया तिरियलोगं जाणइ-पासइ ।। १६५. दोहिं ठाणेहिं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा—समोहतेणं चेव अप्पाणेणं
आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्डलोगं जाणइ-पासइ। आहोहि समोहतासमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया उड्ढलोगं जाणइ-पासइ ।। दोहिं ठाणेहिं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-समोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, असमोहतेणं चेव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ।
१६६.
१. ठा० १११४२-१६३ । २. संखेज्जकालठितीया (वृपा)। ३. ठा० १११४२-१५१, १६०, १६१ । ४-६. ठा० १११४२-१६३ ।
७. समोहिता ° (क)। ८. सं० पा०-एवं तिरियलोगं उड्डलोगं केवल
कप्पं लोगं ।
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बीअं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५१५ आहोहि समोहतासमोहतेणं चैव अप्पाणेणं आया केवलकप्पं लोगं जाणइ
पासइ° ॥ १६७. दोहिं ठाणेहिं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-विउव्वितेणं चेव
अप्पाणेणं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता अहेलोग जाणइ-पासइ।
आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणणं आता अहेलोगं जाणइ-पासइ ॥ १९८. "दोहिं ठाणेहिं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-विउन्वितेणं चेव
अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ।
आहोहि विउव्वियाविउवितेणं चेव अप्पाणणं आता तिरियलोगं जाणइ-पासइ ।। १६६. दोहिं ठाणेहिं आता उड्डलोगं जाणइ-पासइ
टाणेटि आता उडलोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-विउव्वितेणं चेव आता उड्डलोग जाणइ-पासइ, अविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्डलोगं जाणइपासइ। आहोहि विउव्वियाविउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता उड्डलोगं जाणइ-पासइ ।। दोहिं ठाणेहिं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, तं जहा-विउव्वितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ, अविउवितेणं चेव अप्पाणेणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइ-पासइ । आहोहि विउव्वियाविउवितेणं चेव अप्पाणणं आता केवलकप्पं लोगं जाणइपासइ° ॥
00
देसेण-सव्वेण-पदं २०१. दोहि ठाणेहिं आया सद्दाइं सुणेति, तं जहा-देसेण वि आया सद्दाइं सुणेति,
सव्वेणवि आया सद्दाई सुणेति ॥ २०२. "दोहि ठाणेहिं आया रूवाइं पासइ, तं जहा-देसेण वि आया रूवाइं पासइ,
सव्वेणवि आया रूवाइं पासइ ।। २०३. दोहि ठाणेहिं आया गंधाई अग्घाति, तं जहा–देसेण वि आया गंधाइं अग्घाति,
सव्वेणवि आया गंधाइं अग्धाति ।। २०४. दोहि ठाणेहिं आया रसाइं आसादेति, तं जहा-देसेण वि आया रसाई
आसादेति, सव्वेण वि आया रसाइं आसादेति ॥
१. अहो (क, ग)। २. सं० पा०-एवं तिरियलोगं उड़ढलोगं केवल
कप्पं लोग।
३. सं० पा०-एवं स्वाइपासइ गंधाइं अग्घाति
रसाइं आसादेति फासाई पडिसंवेदेति ।
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५१६
ठाणं
२०५. दोहि ठाणेहिं आया फासाइं पडिसंवेदेति, तं जहा-देसेण वि आया फासाई
पडिसंवेदेति, सव्वेण वि आया फासाइं पडिसंवेदेति ° ॥ २०६. दोहिं ठाणेहिं आया ओभासति, तं जहा–देसेणवि आया ओभासति, सव्वेणवि
आया ओभासति ॥ २०७. एवं-पभासति, विकुव्वति, परियारेति, भासं भासति, आहारेति, परिणामेति,
वेदेति, णिज्जरेति ॥ २०८. दोहिं ठाणेहिं देवे सद्दाइं सुणेति, तं जहा–देसेणवि देवे सद्दाइं सुणेति,
सवेणवि देवे सद्दाइं सुणेति जाव' णिज्जरेति ॥ सरीर-पदं २०६. मरुया देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–'एगसरीरी चेव दुसरीरी' चेव ॥ २१०. एवं किण्ण रा किंपुरिसा गंधव्वा णागकुमारा सुवण्णकुमारा अग्गिकुमारा
वायुकुमारा॥ २११. देवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–'एगसरीरी चेव, दुसरीरी" चेव ।।
तइओ उद्देसो
सद्द-पदं
२१२. दुविहे सद्दे पण्णत्ते, तं जहा-भासासद्दे चेव, णोभासासद्दे चेव ॥ २१३. भासासद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अक्खरसंबद्धे चेव, णोअक्खरसंबद्धे चेव ।। २१४. णोभासासद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—आउज्जसद्दे चेव, णोआउज्जसद्दे चेव ।। २१५. आउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा---तते चेव, वितते चेव ॥ २१६. तते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -धणे चेव, सुसिरे चेव ।। ११७. "वितते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-घणे चेव, सुसिरे चेव ।। ° २१८. णोआउज्जसद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भूसणसद्दे चेव, गोभूसणसद्दे चेव ।। २१६. णोभूसणसद्दे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-तालसद्दे चेव, लत्तियासद्दे चेव ।। २२०. दोहिं ठाणेहिं सददुप्पाते सिया, तं जहा–साहण्णताणं चेव पोग्गलाणं सददुप्पाए
सिया, भिज्जंताणं चेव पोग्गलाणं सदुप्पाए सिया॥
१. ४ (ख)। २. ठा० २।२०२-२०७। ३. एमसरीरिणो चेव दुसरीरि (क); एगसरीरे
चेव बिसरीरे (ख)।
४. एगासरीरा चेव बिसरीरा (क); एगसरीरे
चेव बिसरीरे (ख)। ५. सुसरे (ख); गुसिरे (क्व)। ६. सं० पा...-एवं विततेवि ।
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अं ठाणं (तइओ उद्देसो)
पोग्गल - पदं
२२१. दोहिं ठाणेहिं पोग्गला साहण्णंति, तं जहा - सई वा पोग्गला साहणंति, परेण वा पोग्गला साहणंति ॥
२२२. दोहि ठाणेहिं पोग्गला भिज्जंति, तं जहा - सई वा पोग्गला भिज्जंति, परेण वा पोग्गला भिज्जति ॥
२२३. दोहिं ठाणेहिं पोग्गला परिपडंति', तं जहा -- सई वा पोग्गला परिपडंति, परेण वा पोग्गला परिपडंति ॥
२२४. "दोहिं ठाणेहिं पोग्गला परिसडंति, तं जहा सई वा पोग्गला परिसडंति, परेण वा पोग्गला परिसति ॥
२२५. दोहिं ठाणेहिं पोग्गला विद्धसंति, तं जहा - सई वा पोग्गला विद्धसंति, परेण वा पोग्गला विद्धसंति ॥ °
२२६. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - भिण्णा चेव, अभिण्णा चेव ।। २२७. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - भेउरधम्मा चेव, णोभेउरधम्मा चेव ।। २२८. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - परमाणुपोग्गला चेव, णोपरमाणुपोग्गला
चेव ॥
५१७
२२६. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमा चेव, बायरा चेव ॥
२३०. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - बद्धपासपुट्ठा चेव, णोबद्धपासपुट्ठा चेव ॥ २३१. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा -- परियादितच्चेव", अपरियादितच्चेव' ।। २३२. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - अत्ता' चेव, अणत्ता चेव ॥
२३३. दुविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा - इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । " कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ° ॥
o
इंदिय-विसय-पदं
२३४. दुविहा सहा पण्णत्ता, तं जहा - 'अत्ता चेव, अणत्ता चेव" । इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव । कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव, अण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ॥
१. परिवति ( क ) ; परिसति ( ग ) ।
२. परिवाडिज्जति ( क ); परिसाडिज्जति ( ग ) ।
३. सं० पा० एवं परिसडंति विद्धंसंति ।
४. परियादिइत ( ग ) ।
0
५. अपरियादिइत (क, ग) ।
६. अत्ते ( क ) ।
७. अणत्ते ( क ) ।
८. सं० पा०- एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा ।
६. अत्तच्चेव अणत्तच्चेव ( क ) 1
१०. सं० पा०० - एवमिट्ठा जाव मणामा ।
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ठाणं
५१० २३५. दुविहा रूवा पण्णत्ता, तं जहा–'अत्ता चेव, अणत्ता चेव" । "इट्ठा चेव,
अणिट्टा चेव। कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा
चेव, अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३६. "दुविहा गंधा पण्णत्ता, तं जहा–अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्टा चेव, अणिट्टा
चेव। कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव,
अमणण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३७. दुविहा रसा पण्णत्ता, तं जहा–अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्ठा चेव, अणिट्ठा
चेव। कंता चेव, अकंता चेव। पिया चेव, अपिया चेव । मणुण्णा चेव,
अमणुण्णा चेव । मणामा चेव, अमणामा चेव ।। २३८. दुविहा फासा पण्णता, तं जहा–अत्ता चेव, अणत्ता चेव । इट्ठा चेव, अणिट्ठा
चेव। कंता चेव, अकंता चेव । पिया चेव, अपिया चेव। मणुण्णा चेव,
अमणण्णा चेव। मणामा चेव, अमणामा चेव ॥ आयार-पदं २३६. दुविहे आयारे पण्णत्ते, तं जहा -णाणायारे चेव, णोणाणायारे चेव ।। २४०. णोणाणायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दसणायारे चेव, णोदसणायारे चेव ॥ २४१. णोदसणायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-चरित्तायारे चेव, णोचरित्तायारे चेव ॥ २४२. णोचरित्तायारे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -तवायारे चेव वीरियायारे चेव ॥ पडिमा-पदं २४३. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समाहिपडिमा चेव, उवहाणपडिमा चेव ।। २४४. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विवेगपडिमा चेव, विउसग्गपडिमा चेव ॥ २४५. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-'भद्दा चेव, सुभद्दा चेव" ।। २४६. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-महाभहा चेव, सव्वतोभदा चेव ।। २४७. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खुड्डिया चेव मोयपडिमा, महल्लिया चेव
मोयपडिमा ॥ २४८. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जवमज्झा चेव चंदपडिमा, वइरमज्झा
चेव चंदपडिमा । सामाइय-पदं २४६. दुविहे सामाइए पण्णत्ते, तं जहा-अगारसामाइए चेव, अणागारसामाइए चेव।। १. अत्तच्चेव अणत्तच्चेव (क)।
४. भद्दे चेव सुभद्दे चेव (क, ग)। २. सं० पा०-एवमिट्ठा जाव मणामा। ५. ° भद्दे (क, ग)। ३. सं० पा०–एवं गंधा रसा फासा एवमिक्के- ६. ° भद्दे (क, ग)।
क्के छ छ आलावगा भाणियन्वा ।
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५१६
बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) जम्म-मरण-पदं २५०. दोण्हं उववाए पण्णत्ते, तं जहा-देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव ।। २५१. दोण्ह उव्वट्टणा पण्णत्ता, तं जहा–णेरइयाणं चेव, भवणवासीणं चेव ।। २५२. दोण्हं चयणे पण्णत्ते, तं जहा-जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव ।। २५३. दोण्हं गब्भवक्कंती पण्णत्ता, तं जहा—मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ।। गब्भत्थ-पदं २५४. दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पण्णत्ते, तं जहा—मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ॥ २५५. दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्डी पण्णत्ता, तं जहा -मणुस्साणं चेव, पंचेदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ॥ २५६. "दोण्हं गब्भत्थाणं-णिवुड्डी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे
आयाती मरणे पण्णत्ते, तं जहा–मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं
चेव ॥ २५७. दोण्हं छविपव्वा' पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ।। २५८. दो सुक्कसोणितसंभवा पण्णत्ता, तं जहा–मणुस्सा चेव, पंचिंदियतिरिक्ख- जोणिया चेव ॥ ठिति-पदं २५६. दुविहा ठिती पण्णत्ता, तं जहा-कायट्ठिती चेव, भवट्टिती चेव ॥ २६०. दोण्हं कायद्विती पण्णत्ता, तं जहा--मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्ख
जोणियाणं चेव ॥ २६१. दोण्हं भवट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा-देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव ।। आउय-पदं २६२. दुविहे आउए पण्णत्ते, तं जहा—अद्धाउए चेव, भवाउए चेव ।। २६३. दोण्हं अद्धाउए पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं
चेव ॥ २६४. दोण्हं भवाउए पण्णत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव ॥
१. सं० पा०-एवं। २. आयाई (ग)।
३. छविपव्वत्ति (क, ग); छवियत्त, छविपत्त
(वृपा)।
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५२०
कम्म-पदं
२६५. दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - पदेसकम्मे चेव, अणुभावकम्मे चेव ॥ २६६. दो अहाउयं पालेंति, तं जहा - देवच्चेव', णेरइयच्चेव ||
२६७. दोन्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते, तं जहा - मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव ॥
खेत्त-पदं
२६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता - बहुसम - तुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवट्टति आयाम - विक्खंभ' -संठाणपरिणाहेणं, तं जहा - भरहे चेव, एरवए चेव ॥
२६ε. एवमेएणमभिलावेणं - - हेमवते चेव, हेरण्णवए चेव । हरिवासे चेव, रम्मय
वासे चेव ॥
२७०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थि मे णं दो खेत्ता पण्णत्ता'बहुसमतुल्ला अविसेस मणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवद्धति आयाम - विक्खंभठाण-परिणाहेणं, तं जहा - पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव ॥
ठाण
२७१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो कुराओ पण्णत्ताओ
बहुसमतुल्ला जाव' देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव ।
तत्थ णं दो महतिमहालया महादुमा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णणं णाइवति आयाम - विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण - परिणाहेणं, तं जहा— कूडसामली चेव, जंबू चेव सुदंसणा ।।
तत्थ णं दो देवा महिड्डिया " "महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला • महासोक्खा " पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा - गरुले चेव वेणुदेवे, अणाढिते चेव जंबुद्दीवाहिवती ॥
पव्वय-पदं
२७२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पण्णत्ता
१. देवे चेव (ख, ग ) । २. पण्णत्तातं (क,ख,ग ); प्रतिषु 'तंजहा' द्विवारं विद्यते किन्तु 'पण्णत्ता' शब्दस्यानन्तरं 'तंजहा' पाठो न युज्यते, तेनास्माभिरसौ पाठान्तरे स्वीकृतः । अयं क्रमोऽनेकेषु सूत्रेषु अनुवर्तते । प्रतिषु मध्ये मध्ये क्वचित् 'तंजहा' पाठो नास्त्यपि ।
३. विक्खंभेणं ( ख ) ।
४. ° लावेगं यव्वं (क) ।
५. एरन्नवते ( क ग ) ।
६. पण्णत्तातं (क, ख, ग ) ।
७. सं० पा०—अविसेस जाव पुब्वविदेहे ।
८. ठा० २।२६८ ।
१०
सं० पा० - महिड्डिया जाव महासोक्खा । ११. महेसक्खा (वृपा) ।
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बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो)
५२१ बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटुंति आयाम-विक्खंभुच्च
त्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा—चुल्ल हिमवंते चेव, सिहरिच्चेव ॥ २७३. एवं–महाहिमवंते चेव, रूप्पिच्चेव । एवं-णिसढे चेव, णीलवंते चेव ।। २७४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हेमवत-हेरण्णवतेसु वासेसु दो
वट्टवेयड्डपव्वता पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता' 'अण्णमण्णं णातिवट्ठति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा --सद्दावाती चेव, वियडावाती चेव । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाब पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा---
साती चेव, पभासे चेव ॥ २७५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हरिवास-रम्मएसुवासेसु
दो वट्टवेयड्डपव्वया पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा-गंधावाती चेव, मालवंतपरियाए चेव । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया' जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा
अरुणे चेव, पउमे चेव ।। २७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पुव्वावरे पासे,
एत्थ णं आस-खंधग-सरिसा अद्धचंद -संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता
----बहुसमतुल्ला जाव" तं जहा-सोमणसे चेव, विज्जुप्पभे चेव ।। २७७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पुव्वावरे पासे,
एत्थ णं आस-क्खंधग-सरिसा अद्धचंद-संठाण-संठिया दो वक्खारपव्वया पण्णत्ता
-बहुसमतुल्ला जाव तं जहा-गंधमायणे चेव, मालवंते चेव ।।। २७८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो दीहवेयड्ढपव्वया पण्णत्ता
बहुसमतुल्ला जाव" तं जहा--भारहे चेव दीहवेयड्ढे, एरवते" चेव दीहवेयड्ढे ।।
गुहा-पदं
२७६. भारहए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ-बहुसमतुल्लाओ अविसेसमणा
१. सं० पा०-अविसेसमणाणत्ता जाव सद्दा- ७. गंधावती (क, ख, ग); द्रष्टव्यं ठा०४।३०७ वाती।
सूत्रस्य पादटिप्पणम्। २. सद्दावती (क, ख, ग); द्रष्टव्यं ठा० ४।३०७ ८. महिड्डिया चेव (क, ख, ग)। सूत्रस्य पादटिप्पणम्।
६. ठा० २।२७१ । ३. वियडावती (क, ख, ग)।
१०. अवद्धचंद (वृ); अद्धचंद (वृपा)। ४. ठा० २।२७१ ।
११-१३. ठा० २।२७२ । ५. हरिवरिसरम्मतेसु (क, ग)।
१४. एरावते (क, ग)। ६. ठा० २।२७२।
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५२२
ठाणं
णत्ताओ अण्णमण्णं णातिवटुंति आयाम-विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा- तिमिसगुहा चेव, खंडगप्पवायगुहा चेव । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहाकयमालए चेव, गट्टमालए चेव ॥ एरवए णं दीहवेयड्ढे दो गुहाओ पण्णत्ताओ जाव' तं जहा-कयमालए चेव, गट्टमालए चेव ।।
२८०.
कूड-पदं
२८१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा
पण्णत्ता-बहु समतुल्ला जाव' विक्खंभुच्चत्त-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा
चुल्लहिमवंतकूडे चेव, वेसमणकूडे चेव ।। २८२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्वए दो कूडा
पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा-महाहिमवंतकूडे चेव, वेरुलियकूडे चेव ॥ २८३. एवं-णिसढे वासहरपव्वए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा
णिसढकूडे चेव, रुयगप्पभे चेव ॥ २८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंते वासह रपव्वए दो कूडा
पण्णत्ता- बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा–णीलवंतकूडे चेव, उवदसणकूडे चेव ।। २८५. एवं-रुप्पिमि वासह रपव्वए दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव तं जहा
रुप्पिकूडे चेव, मणिकंचणकूडे चेव ।। २८६. एवं सिहरिमि वासहरपव्वते दो कूडा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव" तं
जहा-सिहरिकूडे चेव, तिगिछिकूडे" चेव ।। महादह-पदं २८७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं चुल्लहिमवंत-सिहरीसु वास
हरपव्वएसु दो महदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णातिवटैंति आयाम-विक्खंभ-उब्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा-पउमद्दहे चेव, पोंडरीयद्दहे चेव ।
१. ठा० २।२७१। २. एरावते (क, ग)। ३. ठा० २।२७६ । ४. ठा० २।२६८।
५,६. ठा० २।२८१।
७. रुयगकूडे (ख)। ८-१०. ठा० २।२८१। ११. तेगिंछ ० (क); तिगिच्छि ° (ख)।
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५२३
बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो)
तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति तं
जहा-सिरी चेव, लच्छी चेव।। २८८. एवं-महाहिमवंत-रुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला
जाव' तं जहा–महापउमद्दहे चेव, महापोंडरीयद्दहे चेव ।
तत्थ णं दो देवयाओ' हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव ॥ २८६. एवं-णिसढ-णीलवतेसु तिगिछद्दहे चेव, केसरिहहे चेव ।
तत्थ णं दो देवताओ' धिती चेव, कित्ती चेव ।। महाणदी-पदं २६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ
महापउमद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा-रोहियच्चेव,
हरिकंतच्चेव ॥ २६१. एवं-णिसढाओ' वासहरपव्वयाओ तिगिछिद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ
पवहंति, तं जहा–हरिच्चेव, सीतोदच्चेव ॥ २६२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णीलवंताओ वासहरपव्वताओ केसरि
दहाओ दहाओ दो महाणईओ पवहंति, तं जहा-सीता चेव, णारिकता चेव ॥ २६३. एवं–रुप्पीओ वासहरपव्वताओ महापोंडरीयद्दहाओ दहाओ दो महाणईओ
पवहंति, तं जहा—णरकता चेव, रुप्पकूला चेव ।। पवायद्दह-पदं २६४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो पवायदहा पण्णत्ता
बहुसमतुल्ला', तं जहा-गंगप्पवाय(हे चेव, सिंधुप्पवायद्दहे चेव ॥ २६५. एवं–हेमवए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला", तं जहा-रोहिय
___प्पवायद्दहे चेव, रोहियंसप्पवायदहे चेव ।। २६६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं हरिवासे वासे दो पवायदहा पण्णत्ता
-बहुसमतुल्ला", तं जहा–हरिपवायदहे चेव, हरिकंतप्पवायदहे चेव ॥ २९७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं महाविदेहे वासे दो पवायदहा
१. ठा० २।२७१। २. ठा० २।२८७। ३-५. पू०-ठा० २।२८७ । ६. हरिकता चेव (ख)।
७. निसिढाओ (क)। ८. सीतोत° (क, ख, ग)। ६-११. पू०-ठा० २।२८७ ।
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५२४
ठाण
पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा–सीतप्पवायदहे चेव, सीतोदप्पवायदहे
चेव ॥ २६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रम्मए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता
बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा–णरकंतप्पवायदहे चेव, णारिकंतप्पवायद्दहे चेव ॥ २६६. एवं-हेरण्णवते वासे दो पवायदहा पण्णत्ता-बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा
सुवण्णकूलप्पवायदहे चेव, रुप्पकूलप्पवायद्दहे चेव॥ ३००. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवए वासे दो पवायदहा पण्णत्ता
बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा- रत्तप्पवायद्दहे चेव, रत्तावईपवायद्दहे चेव ।। महाणदी-पदं ३०१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे वासे दो महाणईओ
पण्णत्ताओ-बहुसमतुल्लाओ जाव' तं जहा-गगा चेव, सिंधू चेव ।।। ३०२. एवं-जहा पवातदहा, एवं गईओ भाणियव्वाओ जाव एरवए वासे दो
महाणईओ पण्णत्ताओ-बहुसमतुल्लाओ जाव' तं जहा–रत्ता" चेव, रत्तावती
चेव ।। कालचक्क-पदं ३०३. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो
सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था ।। ३०४. जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो
सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते ॥ ३०५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए
समाए दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले° भविस्सति ॥ ३०६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मणुया
दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, दोण्णि य पलिओवमाई परमाउं
पालइत्था ॥ ३०७. एवमिमीसे ओस प्पिणीए जाव' पालइत्था ॥ ३०८. एवमागमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव" पालयिस्संति ।। १-५. ठा० २।२८७ ।
११. सं० पा०—एवमिमीसे ओस प्पिणीए जाव ६. नईओ वि (ख)।
पण्णत्ते एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव ७. ठा० २।२६५-२६६ ।
भविस्सति । ८. एरावए (क, ग)।
१२. आगामेसाए (क)। ६. ठा० २।२८७ ।
१३,१४. ठा० २।३०६ । १०. रत्तिवति (क, ग)।
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बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो)
सलागा- पुरिस-वंस-पदं
३०६. जंबुद्दीवे दीवे भर हेरवएसु वासेसु ' एगसमये एगजुगे" दो अरहंतवंसा उप्पज्जिसु वा उपज्जंति वा उपज्जिस्संति वा ॥
३१०.
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टिवसा उपज्जिसु वा उपज्जंति वा उपज्जिस्संति वा ॥
३११. जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो दसारवंसा उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥
लागा - पुरिस-पदं
३१२. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो अरहंता उप्पज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उपज्जिस्संति वा ॥
३१३. "जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएस वासेसु एगसमये एगजुगे दो चक्कवट्टी उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उप्पज्जिस्संति वा ॥
३१४. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो बलदेवा उपज्जिसु वा उपज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥
३१५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगसमये एगजुगे दो वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जेति वा उपज्जिस्संति वा ॥
५२५
कालानुभव-पदं
३१६. जंबुद्दीवे दीवे दोसु कुरासु मणुया सया 'सुसम सुसममुत्तमं इड्डि" पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा देवकुराए चैव, उत्तरकुराए चेव ।।
३१७. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसममुत्तमं इड्डि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरति, तं जहा - हरिवासे चेव, रम्मगवासे चेव ॥
३१८. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसमद्सममुत्तममिढि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - हेमवए चेव, हेरण्णव चेव ॥
३१६. जंबुद्दीवे दीवे दोसु खेत्ते मणुया सया दूसमसुसममुत्तममिढि पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव ॥
३२०. जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - भरहे चेव, एरखते चेव ॥
१. एगजुगे एगसमये ( वृ) ; एगसमये एगजुगे (वृपा) ।
२. सं० पा०—एवं चक्कवट्टिवसा दसारवंसा । ३. अरिहंत ( ख ) ।
४. सं० पा० – एवं चक्कवट्टी एवं बलदेवा एव
वासुदेवा जाव उपज्जिस्संति ।
५. ° मुत्त मिड्डि (क); ° मुत्तममिड्ढि ( ग ) । ६. दो तत्थ ( क ) ।
७. एरण्णव (क, ख, ग ) ।
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५२६
ठाणं
चंद-सूर-पदं ३२१. जंबुद्दीवे दीवे-दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा ।। ३२२. दो सूरिआ तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति' वा ।। णक्खत्त-पदं ३२३. दो कित्तियाओ, दो रोहिणीओ, दो मग्गसिराओ', दो अदाओ', 'दो पुणव्वसू,
दो पूसा, दो अस्सलेसाओ, दो महाओ, दो पुव्वाफग्गुणीओ, दो उत्तराफग्गुणीओ, दो हत्था, दो चित्ताओ, दो साईओ, दो विसाहाओ, दो अणुराहाओ, दो जेट्ठाओ, दो मूला, दो पुव्वासाढाओ, दो उत्तरासाढाओ, दो अभिईओ, दो सवणा, दो धणिट्ठाओ, दो सयभिसया, दो पुव्वाभद्दवयाओ, दो उत्तराभवयाओ, दो रेवतीओ दो अस्सिणीओ°, दो भरणीओ, [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा
जोइस्संति वा' ? ] ।। णक्खत्तदेव-पदं ३२४. 'दो अग्गी, दो पयावती, दो सोमा, दो रुद्दा, दो अदिती', दो बहस्सती,
दो सप्पा, दो पिती, दो भगा, दो अज्जमा, दो सविता, दो तट्ठा, दो वाऊ, दो इंदग्गी, दो मित्ता, दो इंदा, दो णिरती, दो आऊ, दो विस्सा, दो बम्हा, दो विण्हू, दो वसू, दो वरुणा, दो अया, दो विविद्धी, दो पुस्सा, दो अस्सा, दो यमा ।
१. तवइंसु (क, ख); तवयंसु (ग)।
रेवति अस्सिणि भरणी, २. तवतिस्संति (क, ख, ग)।
णेयव्वा आणुपुव्वीए ॥३॥ ३. मग्गसिरा (क, ख)।
एवं गाहाणुसारेणं णेयव्वं जाव दो भरणीओ। ४. सं० पा०-दो अदाओ एवं भाणियव्वं । ५. असौ पाठः प्रस्तुतसूत्रे साक्षाल्लिखितो नास्ति, संगहणी गाहा
किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति [पाहुड १६] पाठानुसारेकत्तिया रोहिणि भगसिर,
णासौ युज्यते । पाठसंक्षेपपद्धती नास्य अद्दा य पुणव्वसू अ पूसो य ।
क्रियापदं लिखितमिति प्रतीयते। तत्तोऽवि अस्सलेसा,
६. अत्र नक्षत्रदेवशब्दस्य साक्षादुल्लेखो नास्ति । महा य दो फग्गुणीओ य ॥१॥
असौ च चन्द्रप्रज्ञप्ती [पाहुड १० पाहुडपाहुड हत्थो चित्ता साई, विसाहा तह य होति अणुराहा ।
१२], जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ [वक्षस्कार ७] च जेट्ठा मूलो पुव्वाऽऽसाढा,
लभ्यते। तह उत्तरा चेव ।।२।।
७. अदिती (क, ग)। अभिई सवणे धणिवा,
८. बंभ (अ० सू० ३४२) । सयभिसया दो य होति भद्दवया ।
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बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) . महग्गह-पदं ३२५. 'दो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सणिच्चरा, दो आहुणिया,
दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कणकणगा, दो कणगविताणगा', दो कणगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कब्बडगा, दो अयकरगा', दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो 'रुप्पी, दो रुप्पाभासा", दो णीला, दो णीलोभासा, दो भासा, दो भासरासी, दो तिला, दो तिलपुप्फवण्णा, दो दगा, दो दगपंचवण्णा, दो काका, दो कक्कंधा, दो इंदग्गी, दो धूमकेऊ, दो हरी, दो पिंगला, दो बुद्धा, दो सुक्का, दो बहस्सती, दो राहू, दो अगत्थी, दो माणवगा, दो कासा', दो फासा, दो धुरा', दो पमुहा, दो विगडा, दो विसंधी, दो णियल्ला, दो पइल्ला, दो जडियाइलगा, दो अरुणा, दो अग्गिल्ला, दो काला, दो महाकालगा, दो सोत्थिया, दो सोवत्थिया, दो वद्धमाणगा", दो पलंबा, दो णिच्चालोगा, दो णिच्चुज्जोता, दो सयंपभा, दो ओभासा, दो सेयंकरा, दो खेमंकरा, दो आभंकरा, दो पभंकरा, दो अपराजिता, दो अरया, दो असोगा, दो विगतसोगा, दो विमला, 'दो वितता, दो वितत्था', दो विसाला, दो साला, दो सुव्वता, दो अणियट्टी, दो एगजडी, दो दुजडी, दो करकरिगा, दो रायग्गला, दो पुप्फकेतू, दो भावकेऊ, [चारं
चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा ? ] ॥ जंबुद्दीव-वेइआ-पदं ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
१. अङ्गारकादयोऽष्टाशोतिर्ग्रहाः सूत्रसिद्धाः, ६. क्काकंधा (ख)।
केवलमस्मद्दष्टपुस्तकेषु केषुचिदेव यथोक्त- ७. कसा (क, ग)। संख्या संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्त्यनुसारेणासाविह ८. मधुरा (ग)। संवादनीया (वृत्ति पत्र ७४)।
१. जडियाइला (क, ग)। २. स्थानांगवृत्तौ उद्धृतसूर्यप्रज्ञप्ति (पाहुड २०) १०. वद्धमाणगा दो पूसमाणगा दो अंकुसा (ग)। पाठे किञ्चिद् भेदो दृश्यते
११. दो वितत्ता दो वितव्वा (क); दो विमुहा दो कणवियाणए कणसंताणए णीले णीलोभासे वितत्ता (ग)। रुप्पी रुप्पोभासे ।
१२. असौ पाठः प्रस्तुतसूत्रे साक्षाल्लिखितो नास्ति, ३. अतिकरगा (क, ग); अंतकरगा (ख) । किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति (पाहुड १६) पाठानुसारे४. रुप्पा दो रुप्पो° (ख)।
णासौ युज्यते । पाठसंक्षेपपद्धतौ नास्य क्रिया५. नीला (क, ग)।
पदं लिखितमिति प्रतीयते ।
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५२८
लवण समुद्द-पदं
३२७. लवणे णं समुद्दे दो जोयणस्यसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ३२८. लवणस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
धायइसंड-पदं
३२९. धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा - भरहे चेव, एरवए चेव ।।
३३०. एवं - जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव' दोसु वासेसु मणुया छव्विपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - भरहे चेव, एरखए चेव, णवरं - कूडसामली चेव, धायईरुक्खे' चेव । देवा - गरुले चेव वेणुदेवे, सुदंसणे चेव ॥
३३१. धायइसंडे' दीवे पच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिने गं दो वासा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव' तं जहा -भरहे चेव, एरवए चेव ||
३३२. एवं – जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव' छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहति तं जहा - भरहे चेव, एरवए चेव, णवरं - कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव । देवा - गरुले चेव वेणुदेवे, पियदंसणे चेव ।।
३३३. धायइसंडे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाई, दो हेमवयाई, दो हेरण्णवयाई, दो हरिवासाई, दो रम्मगवासाई, दो पुव्वविदेहाई, दो अवरविदेहाई, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमहद्दुमा, दो उत्तरकुरुमहद्दुमवासी देवा ।।
३३४. दो चल्लहिमवंता, दो महाहिमवंता, दो णिसढा, दो णीलवंता, दो रुप्पी, दो सिहरी ॥
३३५. दो सद्दावाती, दो सद्दावातिवासी साती देवा, दो वियडावाती, दो वियडावातिवासी पभासा देवा, दो गंधावाती दो गंधावातिवासी अरुणा देवा, दो मालवंत परियागा, दो मालवंतपरियागवासी पउमा देवा ||
ठाण
३३६. दो मालवंता, दो चित्तकूडा, दो पम्हकूडा, दो णलिणकूडा, दो एगसेला, दो तिकूडा, दो वेसमणकूडा, दो अंजणा, दो मातंजणा, दो सोमणसा,
१. ठा० २।२६८ ।
२. ठा० २१२६६-३२० ।
३. धाती ० ( क, ख, ग ) ।
४. धातती ( क, ख, ग ) । ५. ठा० २।२६८ ।
६. ठा० २।२६६-३२० ।
७. महाधायती ० ( क, ख, ग ) ।
८. गंधावती (क, ख, ग ); द्रष्टव्यं ठा० ४।३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
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बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो)
५२६
दो विज्जुपभा, दो अंकावतो, दो पम्हावती, दो आसोविसा, दो सुहावहा, दो चंदवता, दो सूरपव्वता, दो नागपव्वता, दो देवपव्वता, दो गंधमायणा, दो उसुगारपव्वया, दो चुल्ल हिमवंत कूडा, दो वेसमणकूडा, दो महाहिमवंत कूडा, दो वेरुलियकूडा, दो णिसढकूडा, दो रुयगकूडा, दो नीलवंत कूडा, दो उवदंसणकूडा, दो रुप्पिकूडा, दो मणिकंचणकूडा, दो सिहरिकूडा, दो छ ।
३३७. दो पउमद्दहा, दो पउमद्दहवासिणीओ सिरीओ देवीओ, दो महापउमद्दहा, दो महापउमद्दहवासिणीओ हिरीओ देवीओ, एवं जाव' दो पुंडरीयद्दहा, हवासिणीओ लच्छीओ देवीओ ।।
३३८. दो गंगप्पवायद्दहा जाव' दो रत्तावतीपवातद्दहा ॥
३३९. दो रोहियाओं जाव दो रुप्पकूलाओ, दो गाहवतीओ', दो दहवतीओ, दो पंकवतीओ', दो तत्तजलाओ, दो मत्तजलाओ, दो उम्मत्त जलाओ, दो खीरोयाओ, दो सीहसोताओं, दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीओ, 'दो फेणमालिणीओ, गंभीरमालिणीओ" ।।
३४०. दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छावती, दो आवत्ता,
दो मंगलवत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावती, दो रम्मा, दो रम्मगा, दो रमणिज्जा, दो मंगलावती, दोहा, दो सुम्हा, दो महपम्हा", दो पम्हगावती, दो संखा, दो णलिणा, दो कुमुया, दो सलिलावती, दो वप्पा, दो सुवप्पा, दो महावप्पा, दो वप्पगावती,
दो वग्गू, सुवग्गू, दो गंधिला दो गंधिलावती ॥
३४१. दो खेमाओ, दो खेमपुरोओ, दो रिट्ठाओ, दो रिट्ठपुरीओ, दो खग्गीओ,
दो मंजूसाओ, दो ओसधीओ", दो पोंडरिगिणीओ" दो सुसीमाओ, दो कुंडलाओ, दो अपराजियाओ, दो पभंकराओ, दो अंकावईओ, दो पम्हावईओ,
१. ठा० २।२८७-२८६ ।
२. ठा० २/२६४-३०० ।
३. रोहियांसाओ ( ग ); 'दो रोहियाओ' इत्यादौ नद्यधिकारे गङ्गादीनां सदपि द्वित्त्वं नोक्तं, जम्बूद्वीपप्रकरणोक्तस्य "महाहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ महापउम हाओ दो महानदीओ पहंति" इत्यादिसूत्रक्रमस्याश्रयणात् तत्र हि रोहिदादय एवाष्टौ श्रूयन्त इति ( वृ ) । ४. ठा० २।२६०-२६३ ।
५. गंधावतीओ ( क ग ) ।
६. वेगवती (वृपा) ।
७. खारोआओ (क, ग, वृ); खीरोदाओ (वृपा) । ८. सीयसोताओ (वृपा ) । ९. उंमिणमा ( ख ) 1
१०. दो गंभीरमालिणीओ, दो फेणमालिणीओ (वृपा) ।
११.
महा ० ( क, ग ) ।
१२.
उसुहीओ ( ख ) ।
१३. पोंडरि ० ( ख ) ।
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ठाणं
दो सुभाओ, दो रयणसंचयाओ, दो आसपुराओ, दो सीहपुराओ, दो महापुराओ, दो विजयपुराओ, दो अवराजिताओ, दो अवराओ', दो असोयाओ, दो वियोगाओ, दो विजयाओ, दो वेजयंतीओ, दो जयंतीओ, दो अपराजियाओ, दो चक्कपुराओ, दो खग्गपुराओ, दो अवज्झाओ, दो अउज्झाओ || ३४२. दो भद्दसालवणा, दो णंदणवणा, दो सोमणसवणा, दो पंडगवणाई || ३४३. दो पंडुकंबल सिलाओ, दो अतिपंडुकंबल सिलाओ, दो रत्तकंबल सिलाओ, दो अइरत्तकंबलसिलाओ ||
५३०
३४४. दो मंदरा, दो मंदरचूलिआओ ।।
३४५. धायइसंडस्स णं दीवस्स वेदिया दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ३४६. कालोदस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
पुक्खरवर-पदं
चेव ॥
३४७. पुक्खरखरदीवड्ढपुरत्थिमद्धे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता - बहुसमतुल्ला जाव तं जहा - भरहे चेव, एरवए ३४८. तहेव जाव' दो कुराओ पण्णत्ताओ - देवकुरा चेव, उत्तरकुरा चेव ।
तत्थ णं दो महतिमहालया महद्दुमा पण्णत्ता, तं जहा -- कूडसामली चेव, पउमरुक्खे चेव । देवा - गरुले चेव वेणुदेवे, पउमे चैव जाव' छव्विपि कालं पच्चणुभव माणा विहरंति ॥
३४६. पुक्खरवरदी वड्डपच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर- दाहिणे णं दो वासा पण्णत्ता । तहेव' णाणत्तं - कूडसामली चेव, महापउमरुक्खे चेव । देवा — गरुले चेव वेणुदेवे, पुंडरीए चेव ॥
३५०. पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाई, दो एरवयाई जाव दो मंदरा, दो मंदरचूलियाओ ॥
वेदिका - पदं
३५१. पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ३५२. सव्वेसिंपिणं दीवसमुद्दाणं वेदियाओ दो गाउयाई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ताओ ॥
इंद-पदं
३५३. दो असुरकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा - चमरे चेव, बली चैव ॥
१. अवरयाओ (क, ग ); अवयाओ ( ख ) ।
२. पंडुगवणाई ( ख ) ।
३. ठा० २।२६८ ।
४. ठा० २।२६६-३७१ ।
५. ठा० २।२७२-३२० ।
६. पू० ठा० २।२६८.३२० ।
७. ठा० २।३३३-३४३ ।
८. ● चूलियाई ( क ) ।
0
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बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो)
५३१
३५४. दो णागकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा–धरणे चेव, भूयाणंदे चेव ।। ३५५. दो सुवण्णकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा–वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव ।। ३५६. दो विज्जुकुमारिदा पण्णत्ता, तं जहा-हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव ॥ ३५७. दो अग्गिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अग्गिसिहे चेव, अग्गिमाणवे चेव ॥ ३५८. दो दीवकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे चेव, विसिढे चेव ॥ ३५६. दो उदहिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा -जलकते चेव, जलप्पभे चेव ।। ३६०. दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा--अमियगती चेव, अमितवाहणे चेव ।। ३६१. दो वायुकुमारिंदा' पण्णत्ता, तं जहा-वेलंबे चेव, पभंजणे चेव ॥
शणियकमारिदा पण्णत्ता. तं जहा-घोसे चेव, महाघोसे चेव ॥ ३६३. दो पिसाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-काले चेव, महाकाले चेव ॥ ३६४. दो भूइंदा पण्णत्ता, तं जहा–सुरूवे चेव, पडिरूवे चेव ॥ ३६५. दो जक्खिदा पण्णत्ता, तं जहा -पुण्णभद्दे चेव, माणिभद्दे चेव ।। ३६६. दो रक्खसिंदा पण्णत्ता, तं जहा -भीमे चेव, महाभीमे चेव ।। ३६७. दो किण्णरिंदा पण्णत्ता, तं जहा-किण्णरे चेव, किंपरिसे चेव ॥ ३६८. दो किंपुरिसिंदा पण्णत्ता, तं जहा- सप्पुरिसे चेव, महापुरिसे चेव ॥ ३६६. दो महोरगिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अतिकाए चेव, महाकाए चेव ॥ ३७०. दो गंधव्विदा पण्णत्ता, तं जहा--गीतरती चेव, गीयजसे चेव ।। ३७१. दो अणपण्णिदा पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिहिए चेव, सामण्णे' चेव ।। ३७२. दो पणपण्णिदा पण्णत्ता, तं जहा—धाए चेव, विहाए चेव ।। ३७३. दो इसिवाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-इसिच्चेव, इसिवालए चेव ।। ३७४. दो भूतवाइंदा पण्णत्ता, तं जहा-'इस्सरे चेव, महिस्सरे" चेव ।। ३७५. दो कंदिदा पण्णत्ता, तं जहा-सुवच्छे चेव, विसाले चेव ॥ ३७६. दो महाकंदिदा पण्णत्ता, तं जहा-हस्से चेव, हस्सरती चेव ॥ ३७७. दो कुंभंडिंदा पण्णत्ता, तं जहा—सेए चेव, महासेए चेव ।। ३७८. दो पतइंदा पण्णत्ता, तं जहा—पत्तए तेव, पतयवई चेव ॥ ३७६. जोइसियाणं देवाणं दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-चंदे चेव, सूरे चेव ।। ३८०. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा–सक्के चेव, ईसाणे चेव ।। ३८१. सणंकुमार -माहिदेसु कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सणंकुमारे चेव, माहिंदे
चेव ।।
१. वसिट्टे (क, ग)। २. वात ° (क, ग)। ३. सामाणे (क); सामणि (ख, ग)। ४. इस्सिरे चेव महिस्सरे (क)।
५. कुंभडिंदा (ख); कुंभंडिंडा (ग)। ६. महापयतए (क); पयगवते (ख); पयतए
(ग)। ७. एवं सणं ° (क, ख, ग)।
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५३२
ठाणं
३८२. बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-बंभे चेव, लंतए चेव ।। ३८३. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा–महासुक्के चेव,
सहस्सारे चेव ॥ ३८४. आणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु णं कप्पेसु दो इंदा पण्णत्ता, तं जहा-पाणते
चेव, अच्चुते चेव ॥ विमाण-पदं ३८५. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा दुवण्णा पण्णत्ता, तं जहा–'हालिद्दा
चेव, सुकिल्ला ' चेव ॥ देव-पदं ३८६. गेविज्जगा णं देवा' दो रयणीओ उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता ।।
चउत्थो उद्देसो
जीवाजीव-पदं
३८७. समयाति वा आवलियाति वा जीवाति या अजोवाति या पवच्चति ।। ३८८. आणापाणूति वा थोवेति' वा जीवाति या अजोवाति या पवुच्चति ॥ ३८६. खणाति वा लवाति वा जीवाति या आजीवाति या पच्चति । एवं-मुहत्ताति
वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उडूति' वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा वाससयांति वा वाससहस्साइ वा वाससतसहस्साइ वा वासकोडीइ वा पुव्वंगाति वा पुव्वाति वा तुडियंगाति वा तुडियाति वा अडडंगाति वा अडडाति वा 'अववंगाति वा अववाति' वा हुहुअंगाति वा हयाति' वा उप्पलंगाति वा उप्पलाति वा पउमंगाति वा पउमाति वा णलिणंगाति वा णलिणाति वा अत्थणिकुरंगाति' वा अत्थणिकुराति वा अउअंगाति वा अउआति वा 'णउअंगाति वा णउआति वा'११ पउतंगाति वा पउताति वा
१. हालिद्दे चेव सुकिल्ले (क, ग)।
७. अपयंगाति वा अपवाति (क, ग)। २. देवा णं (क, ख, ग)।
८. हूडु° (ग)। ३.४. वा (क); वृत्तिकृता 'या' व्याख्यातः- ६. अच्छीणिकूरंगाति (क); अत्थिणिकूरंगा
चकारौ समुच्चयार्थों, दीर्घता च प्राकृ- (ख)। तत्वात् ।
१०. अत्थणिउराति (क, ग)। ५. थोवाति (क, ख, ग)।
११. X (ग)। ६. उदूति (क, ग)।
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५३३
बीअं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
चूलियंगाति वा चूलियाति वा सीसपहेलियंगाति वा सीसपहेलियाति वा पलिओवमाति वा सागरोवमाति वा 'ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा"
जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति ॥ ३६०. गामाति वा णगराति वा णिगमाति बा रायहाणीति वा खेडाति वा कब्बडाति
वा मडंबाति वा दोणमुहाति वा पट्टणाति वा आगराति वा आसमाति वा संबाहाति वा सण्णिवेसाइ वा घोसाइ वा आरामाइ वा उज्जाणाति वा वणाति वा वणसंडाति वा वावीति वा पुक्खरणीति वा सराति वा सरपंतीति वा अगडाति वा तलागाति वा दहाति वा णदीति वा पुढवीति वा उदहीति वा वातखंधाति वा उवासंतराति वा वलयाति वा विग्गहाति वा दीवाति वा समुद्दाति वा वेलाति वा वेइयाति' वा दाराति वा तोरणाति वा णेरइयाति वा णेरइयावासाति वा जाव' वेमाणियाति वा वेमाणियावासाति वा कप्पाति वा कप्पविमाणावासाति वा वासाति वा वासधरपव्वताति वा कडाति वा कडागाराति वा विजयाति वा रायहाणीति वा-जीवाति या अजीवाति
या पवुच्चति ॥ ३६१. छायाति' वा आतवाति वा दोसिणाति वा अंधकाराति वा 'ओमाणाति वा
उम्माणाति वा अतियाणगिहाति' वा उज्जाण गिहाति वा अवलिंबाति वा
सणिप्पवाताति वा-जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति ॥ ३६२. दो रासी पण्णत्ता, तं जहा-जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव ।। कम्म-पदं ३६३. दुविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पेज्जबंधे चेव, दोसबंधे चेव ॥ ३६४. जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्मं बंधंति, तं जहा-रागेण चेव, दोसेण चेव ॥ ३६५. जीवा णं दोहिं ठाणेहिं पावं कम्म उदीरेंति, तं जहा-अब्भोवगमियाए चेव
वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए॥ ३९६. “जीवा णं दोहि ठाणेहिं पावं कम्मं वेदेति, तं जहा-अब्भोवगमियाए चेव
वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए॥ ३९७. जीवा णं दोहि ठाणेहिं पावं कम्मं णिज्जरेंति, तं जहा --अब्भोवगमियाए चेव
वेयणाए, उवक्कमियाए चेव वेयणाए ।
१. उस्सप्पिणीति वा ओसप्पिणीति वा (क,ख)। ५. ओमाणाति वा पमाणाति वा (क)। २. वेतिताति (क, ख, ग)।
६. अतिताण ° (क, ख, ग)। ३. ठा० १११४२-१६३ ।
७. सं० पा०-एवं वेदेति एवं णिज्जरेंति । ४. छाताति (क, ख, ग)।
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१३४
ठाणं
अत्त-णिज्जाण-पदं ३९८. दोहि ठाणेहिं आता सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेवि आता
सरीरं फुसित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं फुसित्ता णं णिज्जाति ॥ ३९६. "दोहि ठाणेहि आता सरीरं फुरित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता
सरीरं फुरित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं फुरित्ता णं णिज्जाति ।। ४००. दोहि ठाणेहिं आता सरीरं फुडित्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता
सरीरं फुडित्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं फुडित्ता णं णिज्जाति ।। ४०१. दोहि ठाणेहिं आता सरीरं संवट्टइत्ता णं णिज्जाति, तं जहा--देसेणवि आता
सरीरं संवट्टइत्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं संवट्टइत्ता णं
णिज्जाति ॥ ४०२. दोहिं ठाणेहिं आता सरीरं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति, तं जहा-देसेणवि आता
सरीरं णिवट्टइत्ता णं णिज्जाति, सव्वेणवि आता सरीरगं णिवट्टइत्ता णं
णिज्जाति ० ॥ खय-उवसम-पदं ४०३. दोहि ठाणेहिं आता केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, तं जहा-खएण'
चेव, उवसमेण चेव ।। ४०४. "दोहि ठाणेहिं आता-केवलं बोधि बुज्झेज्जा, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ
अणगारियं पव्वइज्जा, केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ° मणपज्ज
वणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-खएण चेव, उवसमेण चेव ॥ ओवमिय-काल-पदं ४०५. दुविहे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा–पलिओवमे चेव, सागरोवमे चेव ।
से किं तं पलिओवमे ? पलिओवमेसंगहणी-गाहा
जं जोयणविच्छिण्णं, पल्लं एगाहियप्परूढाणं । होज्ज णिरंतरणिचितं, भरितं वालग्गकोडीणं ॥१॥
१. सं० पा०--एवं फूरित्ता णं एवं फुडित्ता णं
एवं संवट्टइत्ता णं एवं णिवट्टइत्ता णं । २. खतेण (क, ख, ग)।
३. सं० पा०—एवं जाव मणपज्जवणाणं। ४. ० च्छन्नं (क, ग)।
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बीअं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
५३५
वाससए वाससए, एक्केक्के अवहडंमि जो कालो। सो कालो बोद्धव्वो, उवमा एगस्स पल्लस्स ॥२॥ एएसि पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिता।
तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं ॥३॥ पाव-पदं ४०६. दुविहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा- आयपइट्ठिए चेव, परपइट्ठिए चेव ।। ४०७. "दुविहे माणे, दुविहा माया, दुविहे लोभे, दुविहे पेज्जे, दुविहे दोसे, दुविहे
कलहे, दुविहे अब्भक्खाणे, दुविहे पेसुण्णे, दुविहे परपरिवाए, दुविहा अरतिरती, दुविहे मायामोसे, दुविहे मिच्छादसणसल्ले पण्णत्ते, तं जहा-आयपइट्ठिए चेव,
परपइट्ठिए चेव । एवं णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं° ॥ जीव-पदं ४०८. दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-तसा चेव, थावरा चेव ॥ ४०६. दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—सिद्धा चेव, असिद्धा चेव ॥ ४१०. दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव अणिदिया चेव, सकायच्चेव
अकायच्चेव, सजोगी चेव अजोगी चेव, सवेया चेव अवेया चेव, सकसाया चेव अकसाया चंव, सलेसा चंव अलेसा चंव, णाणी चव अगाणी चंव, सागारोवउत्ता चेव अणागारोवउत्ता चेव, आहारगा चेव अणाहारगा चेव, भासगा चेव
अभासगा चेव, चरिमा चेव अचरिमा चेव, ससरीरी चेव असरीरी चेव ।। मरण-पदं ४११. दो मरणाई समणणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो णिच्चं वण्णि
याइं णो णिच्चं कित्तियाइं णो णिच्चं बुइयाई णो णिच्चं पसत्थाई णो णिच्चं
अब्भणुण्णायाइं भवंति, तं जहा—वलयमरणे चेव, वसट्टमरणे चेव ॥ ४१२. एवं--णियाण मरणे चेव तब्भवमरणे चेव, गिरिपडणे चेव तरुपडणे चेव, जल
पवेसे' चेव जलणपवेसे चेव, विसभक्खणे चेव सत्थोवाडणे चेव ।।
१. सं० पा०-एवं रइयाण जाव वेमाणियाणं
एवं जाव मिच्छादसणसल्लाणं । २. ठा० १११४२-१६३ । ३. सं० पा०–एवं एसा गाहा फासेतव्वा जाव
ससरीरी चेव असरीरी चेव । संगहणी-गाहा
सिद्ध सइंदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य ।
णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी॥१॥ ४. पूइयाइं (क, ख, ग, वृपा) । ५. वलात ° (क, ख, ग)। ६. जलपडणे (ग)।
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ठाणं
४१३. दो मरणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णो णिच्चं
वण्णियाइं णो णिच्चं कित्तियाइं णो णिच्चं बुइयाइं णो णिच्चं पसत्थाइं° णो णिच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति । कारणे पुण अप्पडिकुट्ठाइं, तं जहा–वेहाणसे'
चेव गिद्धपट्टे चेव ॥ ४१४. दो मरणाई समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णियाई
'णिच्चं कित्तियाइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं° अब्भणुण्णायाई
भवंति, तं जहा—पाओवगमणे चेव, भत्तपच्चक्खाणे चेव ।। ४१५. पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव । णियमं
अपडिकम्मे ॥ ४१६. भत्तपच्चपक्खाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–णीहारिमे चेव, अणीहारिमे चेव।
णियमं सपडिकम्मे ॥ लोग-पदं ४१७. के अयं लोगे?
जीवच्चेव, अजीवच्चेव ॥ ४१८. के अणंता लोगे?
जीवच्चेव, अजीवच्चेव ॥ ४१६. के सासया लोगे?
जीवच्चेव, अजीवच्चेव ।। बोधि-पदं ४२०. दविहा बोधी पण्णत्ता, तं जहा–णाणबोधी चेव, दंसणबोधी चेव ॥ ४२१. दुविहा बुद्धा पण्णत्ता, तं जहा–णाणबुद्धा चेव, दसणबुद्धा चेव ।। मोह-पदं ४२२. "दुविहे मोहे पण्णत्ते, तं जहा-णाणमोहे चेव, दंसणमोहे चेव ॥ ४२३. दुबिहा मूढा पण्णत्ता, तं जहा–णाणमूढा चेव, दंसणमूढा चेव ॥ कम्म-पदं ४२४. णाणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-देसणाणावरणिज्जे चेव, सव्व
___णाणावरणिज्जे चेव ॥
१. सं० पा०-मरणाइं जाव णो णिच्चं । २. कारणेण (क, ख, ग, वृपा)। ३. विहायसि-नभसि भवं वैहायसं प्राकृतत्वेन
तु वेहाणसमित्युक्तमिति (वृ)।
४. सं० पा०-वणियाइं जाव अब्भणण्णायाई। ५. ०क्कमे (क, ग)। ६. °क्कमे (क, ग)। ७. सं० पा०–एवं मोहे मूढा ।
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बी ठाणं (उत्थो, उद्देसो)
५३७
४२५. दरिसणावर णिज्जे कम्मे' 'दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - देसदरिसणावरणिज्जे चेव, सव्वदरिसणावर णिज्जे चेव ॥
४२६. वेयणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सातावेयणिज्जे चेव, असातावेयणिज्जे चेव ॥
४२७. मोहणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - दंसणमोहणिज्जे चेव, चरितमोहणिजे चेव ॥
४२८. आउ कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - अद्धाउए चेव, भवाउए चेव ।। ४२. णामेकम् दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुभणामे चेव, असुभणामे चेव ॥
४३०. गोत्ते कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उच्चागोते चेव, णीयागोते चेव ॥ ४३१. अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- पडुप्पण्णविणासिए' चेव, पिहति' य आगामि चेव ||
मच्छा-पदं
४३२. दुविहा मुच्छा पण्णत्ता, तं जहा - पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव ॥ ४३३. पेज्जवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - माया चेव, लोभे चैव ॥ ४३४. दोसवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा – कोहे चेव, माणे चेव ॥
आराहणा-पदं
४३५. दुविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मियाराहणा चेव, केवलिआ राहणा
चेव ॥
४३६. धम्मियाराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- सुयधम्माराहणा चेव, चरितधम्माराहणा चेव ॥
४३७. केवलिआराहणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - अंतकिरिया चेव, कप्पविमाणोववत्तिया चेव ॥
तित्थगर- वण्ण-पदं
४३८. दो तित्थगरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा - मुणिसुव्वए चेव, अरिमी चेव ॥
१. सं० पा० - दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं ४. क्वचिदागामिपथानिति दृश्यते, क्वचिच्च
चेव ।
• विणासी (वृपा) ।
२.
३. पिहित (क्व ) ।
आगमपति (वृ) |
५. माते (क, ग) । ६. कम्मिआ ० ( ग ) ।
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ठाणं
४३६. दो तित्थगरा पियंगुसामा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-मल्ली चेव, पासे चेव ॥ ४४०. दो तित्थगरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता, तं जहा-पउमप्पहे चेव,
वासुपुज्जे चेव ॥ ४४१. दो तित्थगरा चंदगोरा वण्णणं पण्णत्ता, तं जहा-चंदप्पभे चेव, पुप्फदंते चेव ॥ पुव्ववत्थु-पदं ४४२. सच्चप्पवायपुव्वस्स णं दुवे वत्थू पण्णत्ता । णक्खत्त-पदं ४४३. पुव्वाभद्दवयाणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ॥ ४४४. 'उत्तराभद्दवयाणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ४४५. "पुवफग्गुणीणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ॥ ४४६. उत्तराफग्गुणीणवखत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। समुद्द-पदं ४४७. अंतो णं मणुस्सखेत्तस्स दो समुद्दा पण्णत्ता, तं जहा- लवणे चेव, कालोदे चेव ।। चक्कवट्रि-पदं ४४८. दो चक्कवट्टी अपरिचत्तकामभोगा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए
पुढवीए अपइट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णा, तं जहा-सुभूमे चेव, बंभदत्ते चेव ॥
देव-पदं ४४६. असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाइं
ठिती पण्णत्ता ॥ ४५०. सोहम्मे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ ४५१. ईसाणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ ४५२. सणंकुमारे कप्पे देवाणं जहण्णेणं दो सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । ४५३. माहिदे कप्पे देवाणं जहण्णेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ॥ ४५४. दोसु कप्पेसु कप्पित्थियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव ॥
१. °समा (क)। २. पासो (ग)। ३. वासपुज्जे (क, ग)। ४. पुष्प° (क, ग)। ५. वत्थू पं सुभनामे चेव असुभनामे चेव (क)।
६. पुव्व ° (ख)। ७. उत्तर ° (ख); X (ग)। ८. सं० पा०-एवं पुव्वफगुणी उत्तराफग्गुणी। ६. पू०-ठा० १११४३-१५१ ।
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बीअं ठाणं (चउत्थी उद्देसो) ४५५. दोसु कप्पेसु देवा तेउलेस्सा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव ।। ४५६. दोसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चेव, ईसाणे चेव ।। ४५७. दोसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा–सणंकुमारे चेव,
__माहिंदे चेव ॥ ४५८. दोसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-बंभलोगे चेव, लंतगे चेव ।। ४५६. दोसु कप्पेसु देवा सद्दपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-महासुक्के चेव,
सहस्सारे चेव ।। ४६०. दो इंदा मणपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-पाणए चेव, अच्चुए चेव ।। पावकम्म-पदं ४६१. जीवाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
चिणिस्संति वा, तं जहा--तसकायणिव्वत्तिए चेव, थावरकायणिव्वत्तिए चेव ।। ४६२. "जीवा णं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए° उवचिणिसु वा उवचिणंति
वा उवचिणिस्संति वा, बंधिसु वा बंधेति वा बंधिस्संति वा, उदीरिंसु वा उदीरेंति वा उदीरिस्संति वा, वेदेंसु वा वेदेति वा वेदिस्संति वा, णिजरिसु वा णिज्जरेंति वा णिज्जरिस्संति वा, 'तं जहा-तसकायणिव्वत्तिए चेव,
थावरकायणिव्वत्तिए चेव ।। पोग्गल-पदं ४६३. दुपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। ४६४. दुपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता । ४६५. एवं जाव' दुगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।।
१. सं० पा०–एवं।
२. ठा० ११२५५,२५६ ।
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इंद-पदं
१.
२.
३.
विकुव्वणा-पदं
४.
५.
६.
७.
८.
तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा - णामिदे, ठवणिदे, दविदे || तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा - णाणिदे, दंसणिदे, चरित्तिदे ॥ तओ इंदा पण्णत्ता, तं जहा - देविदे, असुरिंदे, मणुस्सिदे ॥
संचित-पदं
तइयं ठाणं पढमो उद्देस
तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा - बाहिरए पोग्गलए परियादित्ता'गा विकुव्वा, बाहिरए पोग्गले अपरियादित्ता - एगा विकुव्वणा, बाहिरए पोग्गले परियादित्तावि अपरियादित्तावि - एगा विकुव्वणा ॥
तिविहा विकुव्वणा' पण्णत्ता, तं जहा-अब्भंतरए पोग्गले परियादित्ता - एगा विकुब्वणा, अभंतरए पोग्गले अपरियादित्ता - एगा विकुव्वणा, अब्भंतरए पोगले परियादित्तावि अपरियादित्तावि-एगा विकुव्वणा ।।
तिविहा विकुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा - बाहिरब्भंतरए पोग्गले परियादित्ता - एगा विकुव्वणा, बाहिर भंतरए पोग्गले अपरियादित्ता - एगा विकुव्वणा, बाहिर भंतर पोगले परियादित्तावि अपरियादित्तावि - एगा विकुव्वणा ।
तिविहा णेरइया पण्णत्ता, तं अवत्तव्वगसंचिता ॥
एवमेगिदियवज्जा जाव वेमाणिया ||
१. बाहिरते ( क, ख, ग ) ।
२. परियातित्ता (क, ख, ग ) ।
३. विगुव्वणा ( क ग ) ।
जहा - कतिसंचिता, अकतिसंचिता',
४. नेरइयाणं (क, ग ) ।
५. अकिति ° ( क ) ।
६. ठा० १।१४२-१५१, १५७-१६३ ।
५४०
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो) परियारणा-पदं ९. तिविहा परियारणा' पण्णत्ता, तं जहा
१. एगे देवे अण्णे देवे, अण्णेसिं देवाणं देवीओ य अभिमुंजिय-अभिजुजिय परियारेति', अप्पणिज्जिआओ' देवीओ अभिमुंजिय-अभिजुजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय-विउव्विय परियारेति ।। २. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभिजंजिय-अभिजंजिय परियारेति, अप्पणिज्जिआओ देवोओ अभिजु जिय-अभिजंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय-विउव्विय परियारेति। ३. एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभिजुजिय-अभिजुजिय परियारेति, णो अप्पणिज्जिताओ देवीओ अभिजुजिय-अभिजंजिय परियारेति,
अप्पाणमेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेति ॥ मेहुण-पदं १०. तिविहे मेहुणे पण्णत्ते, तं जहा-दिव्वे, माणुस्सए, तिरिक्खजोणिए ॥ ११. तओ मेहुणं गच्छंति, तं जहा–देवा, मणुस्सा, तिरिक्खजोणिया ।। १२. तओ मेहुणं सेवंति, तं जहा-इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। जोग-पदं १३. तिविहे जोगे पण्णत्ते, तं जहा-मणजोगे, वइजोगे कायजोगे। एवं
णेरइयाणं' विगलिंदियवज्जाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ १४. तिविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-मणपओगे, वइपओगे कायपओगे । जहा जोगो
विगलिंदियवज्जाणं जाव तहा पओगोवि ।। करण-पदं १५. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, एवं विगलि
दियवज्ज जाव वेमाणियाणं ॥ १६. तिविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा–आरंभकरणे, संरंभकरणे, समारंभकरणे ।
णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ।।
१. परिणावणा (ग)।
६. णेरतिताणं वि (क); णेरतिता वि (ग)। २. ० रेंति (ग)।
७. ठा० १११४२-१५१, १६०-१६३ । ३. ०णिज्जाओ (क); अप्पणिच्चियाओ ८. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६४ । (भ० २१७६)।
६. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ । ४. अभिजुजियाओ (ख)।
१०. ठा० ११४१-१६३ । ५. विकुव्विय (ग)।
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५४२
आउ पगरण-पदं
१७. तिहि ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - पाणे अतिवातित्ता भवति, मुसं वइत्ता भवति, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं असणज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवति - इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ॥
भवइ,
१८. तिहि ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगति, तं जहा - णो पाणे अतिवातित्ता णो मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा 'फासुएणं एसणिज्जेणं" असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ- - इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ।
१६. तिहि ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - पाणे अतिवातित्ता भवइ, मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता णिदित्ता खिसित्ता गरहित्ता अवमाणित्ता अण्णयरेणं' अमणुण्णेणं अपीतिकारतेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ – इच्चेतेहि तिहि ठाणेहि जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगति ॥
२०. तिहि ठाणेहिं जीवा सुभदीहा उयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - णो पाणे अतिवातित्ता भवइ, णो मुसं वदित्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता सित्ता सक्कारिता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं 'देवतं चेतितं" पज्जुवासेत्ता पीतिकारणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ - इच्चे ते हिं तिहि ठाणेहि जीवा सुहदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति ॥
गुत्ति-अगुत्ति-पदं
२१. तओ' गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती ॥ २२. संजयमणुस्साणं' तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मणगुत्ती, वइगुत्ती, कायगुत्ती ॥
२३. तओ अगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मणअगुत्ती, वइअगुत्ती, कायअगुत्ती । एवं - णेरइयाणं जाव' थणियकुमाराणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं असंजतमणुस्साणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं ॥
दंड-पदं
२४. तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा -मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे |
१. फासुएस णिज्जेणं (क, ग ) ।
२. X ( वृपा) ।
३. देवयं चेइयं (क, ग ) ।
४. सुभ ० ( ग ) ।
ठाणं
५. ततो (क, ग ) ।
६. संजत ° (क, ग) ।
७. ठा० १।१४२-१५० ।
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो)
५४३ २५. णेरइयाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा-मणदंडे, वइदंडे, कायदंडे । विगलिंदिय
वज्जं जाव' वेमाणियाणं॥ गरहा-पदं २६. तिविहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा—मणसा वेगे गरहति, वयसा वेगे गरहति,
कायसा वेगे गरहति-पावाणं कम्माणं अकरणयाए। अहवा-गरहा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-दोहंपेगे अद्धं गरहति, रहस्संपेगे
अद्धं गरहति, कायंपेगे पडिसाहरति—पावाणं कम्माणं अकरणयाए। पच्चक्खाण-पदं २७. तिविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसा वेगे पच्चक्खाति, वयसा वेगे
पच्चक्खाति, कायसा वेगे पच्चक्खाति-पावाणं कम्माणं अकरणयाए। अहवा-पच्चक्खाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - दीहंपेगे अद्धं पच्चक्खाति, रहस्संपेगे अद्धं पच्चक्खाति, कायंपेगे पडिसाहरति—पावाणं कम्माणं अकरण
याए । उपकार-पदं २८. तओ रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—'पत्तोवगे, पुप्फोवगे"", फलोवगे ।
एवामेव तओ पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा -पत्तोवारुक्खसमाणे', पुप्फोवारुक्ख
समाणे, फलोवारुक्खसमाणे ।। पुरिसजात-पदं २९. तओ परिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा—णामपुरिसे, ठवणपुरिसे, दव्वपुरिसे ।। ३०. तओ पुरिस नाया पणत्ता, तं जहा –णाणपुरिसे, दंसणपुरिसे, चरित्तपुरिसे ।। ३१. तओ पुरिसज्जाया पण्णत्ता, तं जहा-वेदपुरिसे, चिधपुरिसे, अभिलावपुरिसे ।। ३२. तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, तं जहा–उत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, जहण्ण
पुरिसा ॥ ३३. उत्तमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-धम्मपुरिसा, भोगपुरिसा, कम्म
परिसा। धम्मपरिसा अरहता', भोगपुरिसा चक्कवट्टी, कम्मपूरिसा वासुदेवा ।। ३४. मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--उग्गा, भोगा, राइण्णा ।। ३५. जहण्णपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-दासा, भयगा, भाइल्लगा ।
१. ठा० ११४२-१५१, १६८-१६३ । २. वइसा (क, ग)। ३. °णताते (क, ग)। ४. सं० पा०–एवं जहा गरहा तहा पच्चक्खाणे
वि दो आलावगा। ५. पत्तोवेगे पुप्फोवेगे (ख)।
६. 'पत्तोवग' इत्यादिवाच्ये पत्तोवा इत्यादिकं
प्राकृतलक्षणवशादुक्तं, 'समाणे' इत्यत्रापि
च 'सामाणे' (वृ)। ७. अरिहंता (ख)। ८. भातिल्लगा (क, ख,ग)।
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૫૪૪
मच्छ-पदं
३६. तिविहा मच्छा पण्णत्ता, तं जहा - अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ॥ ३७. अंडया' मच्छा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, पुंसंगा ॥ ३८. पोतया मच्छा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ॥ पक्खि-पदं
३६. तिविहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहा - अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ॥ ४०. अंडया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा || ४१. पोयया पक्खी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ॥ परिसप्प-पदं
४२. "तिविहा उरपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा - अंडया, पोयया, संमुच्छिमा ॥ ४३. अंडया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ॥ ४४. पोयया उरपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा || ४५. तिविहा भुजपरिसप्पा पण्णत्ता, तं जहा - अंडया, पोयया, संमुच्छिमा || ४६. अंडया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा || ४७. पोयया भुजपरिसप्पा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा ● ॥ इत्थी - पदं
४८. तिविहाओ इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तिरिक्खजाणित्थीओ, मणुस्सित्थीओ देवित्थओ ||
४६. 'तिरिक्खजोणीओ इत्थीओ" तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- जलचरीओ, थलचरीओ, खहचरीओ ||
५०. मणुस्सित्थीओतिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कम्मभूमियाओ, अकम्मभूमियाओ, अंतरदीविगाओ ||
ठाण
पुरिस-पदं
५१. तिविहा पुरिसा पण्णत्ता, तं जहा - तिरिक्खजोणियपुरिसा, मणुस्सपुरिसा, देवपुरा ||
५२. तिरिक्खजोणियपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- जलचरा, थलचरा, खह
चरा ॥
१. पोतता ( क ग ) ।
२. अंडगा ( क ) ।
३. सं० पा० - एवमेतेणं अभिलावेणं उरपरि -
सप्पावि भाणियव्वा भुजपरिसप्पावि भाणि
४.
५.
यव्वा एवं चेव ।
० जोणियातो ( क, ख, ग ) ।
० जोणित्थिओ ( ग ) ।
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो)
५४५ ५३. मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–कम्मभूमिया, अकम्मभूमिया, अंतर
दीवगा ॥ णपुंसग-पदं ५४. तिविहा णपुंसगा पण्णत्ता, तं जहा –णेरइयणपुंसगा, तिरिक्खजोणियणपुंसगा,
मणुस्सणपुंसगा। ५५. तिरिक्खजोणियणपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा, थलयरा, खह
यरा॥ ५६. मणुस्सणपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतर
दीवगा। तिरिक्खजोणिय-पदं ५७. तिविहा तिरिक्ख जोणिया पण्णत्ता, तं जहा--इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। लेसा-पदं ५८. णेरइयाणं तओ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा॥ ५६. असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा,
णीललेसा, काउलेसा ॥ ६०. एवं जाव' थणियकुमाराणं ।। ६१. एवं-पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सतिकाइयाणवि ।। ६२. तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बंदियाणं तेंदियाणं चउरिदिआणवि' तओ लेस्सा,
जहा' णेरइयाणं ॥ ६३. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा॥ ६४. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णताओ, तं जहा
तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा॥ ६५. "मणुस्साणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा,
णीललेसा, काउलेसा ॥ ६६. मणुस्साणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेउलेसा,
पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥
१. ठा० १११४३-१५० । २. °दिआणं (क)। ३. जधा (क)।
४. ठा० ३१५८ । ५. सं० पा०-एवं मणुस्साणवि ।
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ठाणं
६७. वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं' ।। ६८. वेमाणियाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेउलेसा, पम्हलेसा,
सुक्कलेसा ॥ तारारूव-चलण-पदं ६९. तिहिं ठाणेहिं तारारूवे चलेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, परियारेमाणे वा,
ठाणाओ वा ठाणं संकममाणे-तारारूवे चलेज्जा ।। देवविक्किया-पदं ७०. तिहि ठाणेहिं देवे विज्जुयारं करेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, परियारेमाणे
वा, तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्ढि जुतिं जसं बलं वीरियं
पुरिसक्कार-परक्कम उवदंसेमाणे-देवे विज्जुयारं करेज्जा ॥ ७१. तिहिं ठाणेहि देवे थणियसदं करेज्जा, तं जहा-विकुव्वमाणे वा, “परियारे
माणे वा, तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्ढि जुतिं जसं बलं वीरियं
पुरिसक्कार-परक्कम उवदंसेमाणे-देवे थणियसदं करेज्जा ॥ . अंधयार-उज्जोयाइ-पदं ७२. तिहि ठाणेहिं लोगंधयारे सिया, तं जहा -अरहतेहि वोच्छिज्जमाणेहि, अरहंत
पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे ।। ७३. तिहि ठाणेहिं लोगुज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ७४. तिहिं ठाणेहिं देवंधकारे सिया, तं जहा-अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहि, अरहंत
पण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे ।। ७५. तिहि ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहतेहि
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ७६. तिहिं ठाणेहि देवसण्णिवाए सिया, तं जहा---अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ७७. "तिहिं ठाणेहिं देवुक्कलिया सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ७८. तिहिं ठाणेहिं देवकहकहए सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ १. ठा० ३१५६ ।
थणियसइंपि । २. विज्जुतार (क, ख, ग)।
५. अरहंतेसु (क)। ३. पुरिसगार ° (क, ग)।
६. सं० पा.-एवं देवुक्क लिया देवकहकहए। ४. सं० पा०-- एवं जहा विज्जुतारं तहेव
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो)
५४७ ७९. तिहिं ठाणेहिं देविदा माणुसं लोग हव्वमागच्छंति, तं जहा-अरहंतेहिं
जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८०. एवं सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीओ देवीओ,
परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिवई देवा, आयरक्खा देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छंति', 'तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं. अरहताणं
णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८१. तिहिं ठाणेहिं देवा अब्भुट्ठिज्जा, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहि', 'अरहतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८२. "तिहिं ठाणेहिं देवाणं आसणाइं चलेज्जा, तं जहा - अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ।। ८३. तिहि ठाणेहिं देवा सीहणायं करेज्जा. तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं.
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८४. तिहिं ठाणेहि देवा चेलुक्खेवं करेज्जा, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि
पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८५. तिहिं ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ ८६. तिहिं ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं
जायमाणेहिं, अरहतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु ॥ दुप्पडियार-पदं ८७. तिण्हं दुप्पडियारं समणाउसो ! तं जहा-अम्मापिउणो, भट्टिस्स, धम्मा
यरियस्स। १. संपातोवि य णं केइ पुरिसे अम्मापियरं सयपागसहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेत्ता, सुरभिणा गंधट्टएणं" उव्वट्टित्ता, तिहिं उदगेहिं मज्जावेत्ता, सव्वालंकारविभूसियं करेत्ता, मणण्णं थालीपागसुद्धं अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं 'भोयावेत्ता जावज्जीवं पिद्विवडेंसियाए" परिवहेज्जा, तेणावि तस्स अम्मापिउस्स दुप्पडियारं भवइ । अहे णं से तं अम्मापियरं केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णव इत्ता परूवइत्ता
१. अरहंतेहिं य (क)।
६. सं० पा० ---अरहतेहिं तं चेव । २. अणिताधिपती (क, ग)।
७. गंधोवट्टएणं (ग)। ३. सं० पा० --हव्वमागच्छंति"।
८. भोयावेज्जा तं पिट्ठिवडेंसए (ग)। ४. सं० पा० जायमाणेहिं जाव तं चेव। ६. आघइत्ता (क); आघय इत्ता (ग)। ५. सं० पा०-एवमासणाई चलेज्ना सीहणात १०. पन्न इवइत्ता (ग)।
करेज्जा चेलुक्वेवं करेज्जा।
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५४८
तसे देवे धम्मायरियं दुब्भिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरेज्जा, कंताराओ वा णिक्कंतारं करेज्जा, दोहकालिएणं वा रोगातंकेणं अभिभूतं समाणं विमोएज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवति ।
अहे णं से तं धम्मायरियं केवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भट्ठ समाणं भुज्जोवि केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता' 'पण्णवइत्ता परूवइत्ता' ठावइता भवति, तेणामेव तस्स धम्मायरियस्स सुप्पडियारं भवति [ समणाउसो ! ? ] ॥ संसार-वीईवयण-पदं
८८.
ठाणं
ठावइता' भवति, तेणामेव तस्स अम्मा पिउस्स सुप्पडियारं भवति समणाउसो ! २. केइ महच्चे दरिद्दं समुक्कसेज्जा । तए णं से दरिद्दे समुक्किट्ठे समाणे पच्छा पुरं चणं विउलभोगसमितिसमण्णागते यावि विहरेज्जा ।
तणं से महच्चे अण्णया कयाइ दरिद्दीहूए समाणे तस्स दरिद्दस्स अंतिए हव्वमागच्छेज्जा ।
तए णं से दरिद्दे तस्स भट्टिस्स सव्वस्समवि' दलयमाणे तेणावि' तस्स दुप्पडियारं भवति ।
अहे णं से तं भट्ट 'केवलिपण्णत्ते धम्मे" आघवइत्ता पण्णवइत्ता परूवइत्ता ठावता भवति, तेणामेव तस्स भट्टिस्स सुप्पडियारं भवति [ समणाउसो ! ? ] । ३. केति तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए' एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे |
तिहि ठाणेहिं संपणे अणगारे अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं वीईएज्जा, तं जहा अणिदाणयाए, दिट्ठिसंपण्णयाए, जोगवाहियाए ।
कालचक्क-पदं
८६. तिविहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा - उक्कोसा", मज्भिमा, जहण्णा ॥ ६०. तिविहा सुसम सुसमा तिविहा सुसमा तिविहा सुसम - दूसमा, तिविहा दूसम -
१. ठावइत्ता ( क ग ) ; ठाविता ( ख ) ।
२. ०डितारं ( क ) ।
३. सव्वस्सवि ( क ग ) ।
४. तेणे वि ( ग ) ।
५. पन्नत्तं धम्मं (क, ग) ।
६. अंतियं (क, ग ) ।
७. आयरियं ( क, ख ) ।
5. आधवित्ता ( क ) ; सं० पा० - आघवइत्ता
जाव ठावइता |
६. उस ० ( क ग ) ।
१०. उक्कस्सा ( ग ) 1
११. सं० पा० एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव दुसमदूसमा ।
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तइयं ठाण (पढमो उद्देसो)
सुसमा, तिविहा दूसमा, तिविहा दूसम-दूसमा पण्णत्ता, तं जहा---उक्कोसा,
मज्झिमा, जहण्णा ॥ ६१. तिविहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा—उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ६२. 'तिविहा दुस्सम-दुस्समा, तिविहा दुस्समा, तिविहा दुस्सम-सुसमा, तिविहा
सुसम-दुस्समा, तिविहा सुसमा, तिविहा सुसम-सुसमा पण्णत्ता, तं जहा
उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ।। अच्छिण्ण-पोग्गल-चलण-पदं ६३. तिहिं ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा, तं जहा--आहारिज्जमाणे वा पोग्गले
चलेज्जा, विकुव्वमाणे वा पोग्गले चलेज्जा, ठाणाओ वा ठाण संकामिज्जमाणे पोग्गले चलेज्जा।
उपधि-पदं ६४. तिविहे उवधी १ण्णत्ते, तं जहा-कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवही ।
एवं असुरकुमाराणं भाणियव्वं । एवं -एगिदियणे रइयवज्ज जाव' वेमाणियाणं । अहवा-तिविहे उवधी पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते', अचित्ते, मीसए । एवं--
णेरइयाणं णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ परिग्गह-पदं
तिविहे परिग्गहे पणत्ते, तं जहा --कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे, बाहिरभंडमत्तपरिग्गहे। एवं-असुरकुमाराणं। एवं-एगिदियणेरइयवज्जं जाव" वेमाणियाणं। अहवा ---तिविहे परिग्गहे पण्णत्ते, तं जहा–सचित्ते, अचित्ते, मीसए । एवंरइयाणं णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ।।
६५.
पणिहाण-पदं ६६. तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणपणिहाणे, वयपणिहाणे, कायपणिहाणे ।
एवं--पंचिदियाणं जाव वेमाणियाण ॥
१. ओस्स ° (क)। २. उक्कस्सा (ग)। ३. सं० पा०-एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ
जाव सुसमसुसमा। ४. ठा० १।१४३-१५१, १५७-१६३ ।
५. सच्चित्ते (क)। ६. ठा० १११४२-१६३ । ७. ठा० १११४३-१५१, १५७-१६३ । ८. ठा० १११४२-१६३ । . ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ ।
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ठाणं
१७. तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसुप्पणिहाणे, वयसुप्पणिहाणे',
कायसुप्पणिहाणे ॥ १८. संजयमणुस्साणं तिविहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणसुप्पणिहाणे,
वयसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे ।। ६९. तिबिहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा–मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे,
कायदुप्पणिहाणे । एवं--पंचिदियाणं जाव' वेमाणियाणं । जोणि-पदं १००. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा--सीता, उसिणा, सीओसिणा। एवं
एगिदियाणं' विगलिदियाणं तेउकाइयवज्जाणं संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख
जोणियाणं संमुच्छिममणुस्साण य॥ १०१. तिविहा जोणी पण्णता, तं जहा–सचित्ता, अचित्ता, मीसिया। एवं
एगिदियाणं विगलिदियाणं संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं संमुच्छिम
मणुस्साण य॥ १०२. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-संवुडा, वियडा,संवुडवियडा ।। १०३. तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-कुम्मुण्णया, संखावत्ता, वंसीवत्तिया ।
१. कुम्मुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं । कुम्मुण्णयाते णं जोणिए तिविहा उत्तमपुरिसा गब्भं वक्कमंति, तं जहा–अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा। २. संखावत्ता णं जोणी इत्थीरयणस्स संखावत्ताए णं जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमंति, चयंति, उववज्जंति, णो चेव ण णिप्फज्जति । ३. वंसीवत्तिता णं जोणी पिहज्जणस्स। वंसीवत्तिताए णं जोणिए बहवे
पिहज्जणा गब्भं वक्कमति ॥ तणवणस्सइ-पदं १०४. तिविहा तणवणस्सइकाइया पण्णत्ता, तं जहा—संखेज्जजीविका', असंखेज्ज
जीविका, अणंतजीविका ॥ तित्थ-पदं १०५. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहा---मागहे, वरदामे,
पभासे ॥ १०६. एवं—एरवएवि ॥ १. वति० (ख, ग)।
४. निप्पज्जंति (क, ग)। २. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ । ५. पिहु ° (ख)। ३. एगिदियाणं जाव (क)।
६. ° जीविता (क, ख, ग)।
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो) १०७. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पण्णत्ता,
तं जहा- मागहे, वरदामे, पभासे ।। १०८. एवं-धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धेवि पच्चत्थिमद्धेवि । पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थि
मद्धेवि, पच्चत्थिमद्धेवि ।। कालचक्क-पदं १०६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि
सागरोवमकोडाकोडीओ काले' होत्था ॥ ११०. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिण्णि
सागरोवमकोडाकोडीओ काले पण्णत्ते ॥ १११. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए
तिण्णि सागरोवमकोडाकोडीओ काले भविस्सति ॥ ११२.
एवं–धायइसंडे पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। एवं-पुक्खरवरदीवद्धे
पुरथिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि कालो भाणियव्वो ॥ ११३. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए
मणुया तिण्णि गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, तिण्णि पलिओवमाइं परमाउं
पालइत्था ।। ११४. एवं–इमीसे ओसप्पिणीए, आगमिस्साए उस्सप्पिणीए ।। ११५. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरासु मणुया तिण्णि गाउआई उड्ढे उच्चत्तेणं
पण्णत्ता, तिण्णि पलिओवमाइं परमाउं पालयति ।। ११६. एवं जाव' पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ।। सलागा-पुरिस-वंस-पदं ११७. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीए तओ
वंसाओ उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा-अरहंतवंसे,
चक्कवट्टिवंसे, दसारवंसे ।। ११८. एवं जाव' पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ।। सलागा-पुरिस-पदं ११६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीए तओ
१. कालो (क, ख, ग)।
आगमिस्साते उस्सप्पिणीए भविस्सति । २. सं० पा०-एवं ओस प्पिणीए णवरं पण्णत्ते ३,४. ठा० ३।१०८ ।
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ठाणं
उत्तमपुरिया उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहाअरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा ||
१२०. एवं जाव' पुक्ख रवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे ॥
आउय-पदं
१२१. तओ आहाउयं पालयंति', तं जहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा || १२२. तओ मज्झिममाउयं पालयंति, तं जहा - अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा ॥ १२३. बायरते उकाइयाणं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं ठिती पण्णत्ता ॥ १२४. बायरवाउकाइयाणं उक्कोसेणं तिष्णि वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता ॥
जोणि-ठिइ-पदं
१२५. अह भंते ! सालीणं वीहीणं गोधूमाणं जवाणं जवजवाणं - एतेसि णं घण्णाणं कोद्वाउत्ताणं पल्ला उत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं छियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ?
जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि संवच्छराई । तेण परं जोणी पमिलायति । तेण परं जोणी पविद्धंसति । तेण परं जोणी विद्धंसति । तेण परं बीए बीए भवति । तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ॥
रय-पदं
१२६. दोच्चाए णं सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं उक्कोसेणं तिष्णि सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ||
१२७. तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए जहणणेणं णेरइयाणं तिणि सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ॥
१२८. पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिष्णि णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ १२६. तिसु णं पुढवीसु णेरइयाणं उसिणवेयणा पण्णत्ता, तं जहा - पढमाए, दोच्चाए,
तच्चाए ॥
१३०. तिसु णं पुढवीसु णेरइया उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहापढमाए, दोच्चाए, तच्चाए ॥
सम-पदं
१३१. तओ लोगे समा सर्पक्खि सपडिदिसि पण्णत्ता, तं जहा - अप्पइट्ठाणे णरए, जंबुद्दीवेदी, सव्वसिद्धे विमाणे ।
१. उपज्जंसु (क) 1
२. ठा० ३।१०८ ।
३. पार्लेति (क, ग ) । ४. जोणि ( ग ) ।
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तइयं ठाणं (पढमो उद्देसो) १३२. तओ लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं पण्णत्ता, तं जहा-सीमंतए णं णरए,
समयक्खेत्ते, ईसीपब्भारा पुढवी ।।
समुद्द-पदं
१३३. तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं' पण्ण त्ता, तं जहा-कालोदे, पुक्खरोदे,
सयंभुरमणे ॥ १३४. तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा-लवणे, कालोदे,
सयंभुरमणे ॥ उववाय-पदं १३५. तओ लोगे णिस्सीला णिव्वता णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा
कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिठ्ठाणे णरए णेरइयत्ताए
उववज्जंति, तं जहा--रायाणो, मंडलीया, जे य महारंभा कोडंबी॥ १३६. तओ लोए सुसीला सुव्वया सग्गुणा समेरा सपच्चक्खाणपोसहोववासा
कालमासे कालं किच्चा सव्वट्ठसिद्ध विमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति,
तं जहा - रायाणो परिचत्तकामभोगा, सेणावती, पसत्थारो। विमाण-पदं १३७. बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा तिवण्णा पण्णत्ता, तं जहा-किण्हा,
णीला, लोहिया ॥ देव-पदं १३८. आणयपाणयारणच्चुतेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं
__ तिण्णि रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । पण्णत्ति-पदं १३६. तओ पण्णत्तीओ कालेणं अहिज्जंति, तं जहा-चंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती,
दीवसागरपण्णत्ती॥
बीओ उद्देसो लोग-पदं १४०. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा–णामलोगे, ठवणलोगे, दव्वलोगे ॥ १४१. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-णाणलोगे, दंसणलोगे, चरित्तलोगे।
१. x (क, ग)।
२. उदगरसा (क, ख)।
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ठाणं
१४२. तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-उड्ढलोगे, अहोलोगे, तिरियलोगे ॥ परिसा-पदं १४३. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
समिता, चंडा, जाया। अभितरिता समिता, मज्झिमिता चंडा, बाहिरिता
जाया ।। १४४. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सामाणिताणं देवाणं तओ परिसाओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-समिता जहेव चमरस्स ॥ १४५. एवं-तावत्तीसगाणवि ॥ १४६. लोगपालाणं-तुंबा तुडिया पव्वा ।। १४७. एवं-अग्गमहिसीणवि ॥ १४८. बलिस्सवि एवं चेव जाव' अग्गमहिसीणं ।। १४६. धरणस्स य सामाणिय-तावत्तीसगाणं च-समिता चंडा जाता। १५०. 'लोगपालाणं अग्गमहिसीणं-ईसा तुडिया दढरहा ।। १५१. जहा धरणस्स तहा सेसाणं भवणवासीणं ॥ १५२. कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
ईसा तुडिया दढरहा ।। १५३. एवं सामाणिय-अग्गमहिसीणं ।। १५४. एवं जाव" गीयरतिगीयजसाणं । १५५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
तुंबा तुडिया पव्वा ॥ १५६. एवं-सामाणिय-अग्गमहिसीणं ।। १५७. एवं-सूरस्सवि ॥ १५८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–समिता
चंडा जाया ॥
१. ठा० ३।१४३ । २. तायत्ती (ख)। ३. तुंपा (क); तंपा (ग)। ४. बलस्सवि (क); बालास्सवि (ग)। ५. ठा० ३।१४३-१४७ । ६. पू०-ठा० ३।१४३ । ७. लोगपालग्ग ° (क, ग)।
८. पू०-ठा० ३।१४३ । ६. ठा० २।३५४-३६२ । १०. पू० ठा० ३।१४३ । ११. ठा० २।३६३-३७० । १२. पू०-ठा० ३।१४३ । १३. पू०-ठा० ३।१४३ ।
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५५५ १५६. एवं- जहा चमरस्स जाव' अग्गमहिसीणं ।। १६०. एवं जाव' अच्चुतस्स लोगपालाणं ।। जाम-पदं १६१. तओ जामा पण्णत्ता, तं जहा--पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १६२. तिहिं जामेहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा–पढमे
जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १६३. “तिहिं जामेहिं आया केवलं बोधि बुज्झज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे
जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६४. तिहिं जामेहि आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा, तं
जहा-पढमे जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १६५. तिहिं जामेहिं आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा-पढमे जामे,
मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६६. तिहिं जामेहि आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा--पढमे जामे, मज्झिमे
जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६७. तिहिं जामेहिं आया केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे
जामे, पच्छिमे जामे ॥ १६८. तिहिं जामेहि आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-पढमे
जामे, मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १६६. तिहिं जामेहिं आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-पढमे जामे, मज्झिमे
जामे, पच्छिमे जामे ॥ १७०. तिहिं जामेहिं आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा–पढमे जामे,
मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १७१. तिहिं जामेहिं आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा—पढमे जामे,
मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। १७२. तिहिं जामेहिं आया केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा-पढमे जामे,
मज्झिमे जामे, पच्छिमे जामे ।। वय-पदं १७३. तओ वया पण्णत्ता, तं जहा–पढमे वए", मज्झिमे वए, पच्छिमे वए । १७४. तिहिं वएहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा-पढमे वए,
मज्झिमे वए, पच्छिमे वए।
१. ठा० ३११४४-१४७ । २. ठा० २।३८०-३८४ ।
३. सं० पा०-एवं जाव केवलणाणं । ४. वते (क, ख, ग)।
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५५६
ठाण
१७५ तिहिं वएहिं आया - केवलं बोधि बुज्भेज्जा, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, केवलमाभिणिबोहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - पढमे वए, मज्झिमे वए, पच्छिमेव ॥
बोधि-पदं
१७६. तिविधा बोधी पण्णत्ता, तं जहा - णाणबोधी, दंसणबोधी, चरित्तबोधी ॥ १७७. तिविहा बुद्धा पण्णत्ता, तं जहा णाणबुद्धा, दंसणबुद्धा, चरित्तबुद्धा ॥ मोह-पदं
१७८. तिविहे मोहे पण्णत्ते, तं जहा - णाणमोहे, दंसणमोहे, चरित्तमोहे ॥ १७६. तिविहा मूढा पण्णत्ता, तं जहा - णाणमूढा, दंसणमूढा, चरित्तमूढा ॥ पव्वज्जा-पदं
o
१८० तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहतो [ लोग ? ] पडिबद्धा ॥
१८१. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - पुरतोपडिबद्धा, मग्गतोपडिबद्धा, दुहओपबिद्धा ||
१८२. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा – तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता ॥ १८३. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ओवातपव्वज्जा", अक्खातपव्वज्जा, संगारपव्वज्जा |
णियंठ-पदं
१८४. तओ णियंठा णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा - पुलाए, णियंठे, सिणाए ॥ १८५. तओ नियंठा सण - णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता, तं जहा बउसे, पडिसेवणाकुसीले', कसायकुसीले ।।
सेहभूमि-पदं
१८६. तओ सेहभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा । उक्कोसा छम्मासा, मज्झिमा चउमासा, जहण्णा सत्तराइंदिया ||
१. सं० पा० – एसो चेव गमो णेयव्वो जाव केवलणाति ।
२. सं० पा० - एवं मोहे मूढा ।
३. द्रष्टव्यम् - ठा० ४।५७१ सूत्रम् ।
४. अववात (क) ।
५. सन्नि ( ख ) ।
६. कुसीले ( ग ) ।
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इयं ठाण (बीओ उद्देसो)
थेरभूमी-पदं
१८७. तओ थेरभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - जातिथेरे, सुयथेरे, परियायथे रे ।
वासा समग्गिंथे जातिथेरे, ठाणसमवायधरे णं समणे णिग्गंथे सुयथेरे, वीसवासपरियाए णं समणे णिग्गंथे परियायथेरे ||
गंता - अगंता-पदं
१८८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुमणे, दुम्मणे, णोसुमणे णोदुम्मणे || १८६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --गंता णामेगे सुमणे भवति, गंता णामेगे दुम्मणे भवति, गंता णामेगे णोसमणे णोदुम्मणे भवति ।।
१०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जामीतेगे सुमणे भवति, जामीतेगे दुम्मणे भवति, जामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ।
५५७
१६१. "तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, जाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जाइस्सामीतेगे णोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ।। १६२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अगंता णामेगे सुमणे भवति, अगंता दुम्मणे भवति, अगंता णामेगे णोसुमण-णोदुम्मणे भवति ।। १९३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण जामि एगे सुमणे भवति, ण जामि एगे दुम्मणे भवति, ण जामि एगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ।।
१९४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - ण जाइस्सामि एगे सुमणे भवति, ण जास्सामि एगे दुम्मणे भवति, ण जाइस्सासि एगे णोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ॥
आगंता - अणागंता-पदं
१६५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - आगंता णामेगे सुमणे भवति, आगंता मेगे दुम्मणे भवति, आगंता णामेगे णोसुमणे - गोदुम्मणे भवति ||
१६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - एमीतेगे सुमणे भवति, एमीतेगे दुम्मणे भवति, एमीतेगे णोमणे - गोदुम्मणे भवति ॥
१७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - एस्सामीतेगे सुमणे भवति, एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, एस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवति ||
१६८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अणागंता णामेगे सुमणं भवति, अणागंता मेगे दुम्मणे भवति, अणागंता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति ।।
१. सं० पा० एवं जाइस्सामीतेगे सुमणे भवति । २. जामिस्सामि (क, ग ) ।
३. सं० पा० एवं आगंता णामेगे सुमणे
भवति ३... एगे सुमणे भवति । ४. सं० पा० एवं एएणं अभिलावेगं --
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५५८
ठाण
१६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण एमीतेगे सुमणे भवति, ण एमीतेगे
दुम्मणे भवति, ण एमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।। २००. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण एस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
एस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण एस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । चिट्ठित्ता-अचिट्ठित्ता-पदं २०१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -चिट्टित्ता णामेगे सुमणे भवति, चिट्ठित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, चिद्वित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २०२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, चिट्ठामोतेगे
दुम्मणे भवति, चिट्ठामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २०३. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, चिट्ठि
स्सामीतेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २०४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अचिट्टित्ता णामेगे सुमणे भवति,
अचिट्ठित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अचिट्ठित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। २०५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे
दुम्मणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति॥ २०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
चिट्ठिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। णिसिइत्ता-अणिसिइत्ता-पदं २०७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-णिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, णिसिइत्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, णिसिइत्ता णामेग णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।
संगहणी गाहागंता य अगंता य,
आगंता खलु तहा अणागता। चिद्वित्तमचिद्वित्ता,
णिसितित्ता चेव णो चेव ॥१॥ हंता य अहंता य,
छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता । बुतित्ता अबूतित्ता,
भासित्ता चेव णो चेव ॥२॥ दच्चा य अदच्चा य, __.. भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता। लभित्ता अलभित्ता,
पिबइत्ता चेव णो चेव ॥३॥
सुतित्त। असुतित्ता,
जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झित्ता । जतित्ता अजयित्ता य,
पराजिणित्ता चेव णो चेव ॥४॥ सद्दा रूवा गंधा,
रसा य फासा तहेव ठाणा य । णिस्सीलस्स गरहिता,
पसत्था पुण सीलवंतस्स ॥५॥ एवमिक्केके तिण्णि उ तिण्णि उ आलावगा भाणियव्वा ।
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५५४ २०८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-णिसीदामीतेगे सुमणे भवति, णिसीदामी
तेगे दुम्मणे भवति, णिसीदामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, णिसी
दिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, णिसीदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २१०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अणिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति,
अणिसिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अणिसिइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। २११. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण णिसीदामीतेगे सुमणे भवति, ण णिसी
दामीतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २१२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
णिसीदिस्सामोतेगे दुम्मणे भवति, ण णिसीदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। हंता-अहंता-पदं २१३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–हता णामेगे सुमणे भवति, हंता णामेगे
दुम्मणे भवति, हंता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २१४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-हणामीतेगे सुमणे भवति, हणामीतेगे
दुम्मणे भवति, हणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।। २१५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, हणिस्सामी
तेगे दुम्मणे भवति, हणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २१६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – अहंता णामेगे सुमणे भवति, अहंता णामेगे
दुम्मणे भवति, अहंता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २१७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण हणामीतेगे सुमणे भवति, ण हणामीतेगे
दम्मणे भवति, ण हणामोतेगे जोसमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २१८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण हणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण हणि
स्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण हणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। छिदित्ता-अछिदित्ता-पदं २१६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-छिदित्ता णामेगे सुमणे भवति, छिदित्ता
___णामगे दुम्मणे भवति, छिदित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -छिदामीतेगे सुमणे भवति, छिदामीतेगे
दम्मणे भवति, छिदामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २२१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–छिदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, छिदिस्सामी
तेगे दुम्मणे भवति, छिदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥
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५६०
ठाणं
२२२. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-अच्छिदित्ता णामेगे सुमणे भवति,
अछिदित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अछिदित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण छिदामीतेगे सुमणे भवति, ण छिदामी
तेगे दुम्मणे भवति, ण छिदामोतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २२४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण छिदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
छिदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण छिदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। बूइत्ता-अबूइत्ता-पदं २२५. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-बूइत्ता णामेगे सुमणे भवति, बूइत्ता णामेगे
दम्मणे भवति, बुइत्ता णामेगे जोसमणे-णोदम्मणे भवति ॥ २२६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बेमीतेगे सुमणे भवति, बेमीतेगे दुम्मणे
भवति, बेमौतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २२७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वोच्छामीतेगे सुमणे भवति, वोच्छामीतेगे
दुम्मणे भवति, वोच्छामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २२८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अबूइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अबूइत्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अबूइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २२६. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–ण बेमोतेगे सुमणे भवति, ण बेमीतेगे
दुम्मणे भवति, ण बेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- ण वोच्छामीतेगे सुमणे भवति, ण
वोच्छामीतेगे दुम्मणे भवति, ण वोच्छामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। भासित्ता-अभासित्ता-पदं २३१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-भासित्ता णामेगे सुमणे भवति, भासित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, भासित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २३२. तओ परिसजाया पण्णता, तं जहा-भासामीतेगे सुमणे भवति, भासामीतेगे
दुम्मणे भवति, भासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-भासिस्सामीतेगे सुमणे भवति,
भासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, भासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २३४. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --अभासित्ता णामेगे सुमण भवति, अभासित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अभासित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २३५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण भासामीतेगे सुमणे भवति, ण भासामी
तेगे दुम्मणे भवति, ण भासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण भासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
भासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५६१ दच्चा-अदच्चा-पदं २३७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दच्चा णामेगे सुमणे भवति, दच्चा णामेगे
दुम्मणे भवति, दच्चा णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २३८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-देमीतेगे सुमणे भवति, देमीतेगे दुम्मणे
भवति, देमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।। २३६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दासामीतेगे सुमणे भवति, दासामीतेगे
दुम्मणे भवति, दासामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २४०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अदच्चा णामेगे सुमणे भवति, अदच्चा
णामेगे दुम्मणे भवति, अदच्चा णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २४१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण देमीतेगे सुमणे भवति, ण देमीतेगे
दुम्मणे भवति, ण देमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २४२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --ण दासामीतेगे सुमणे भवति, ण दासामी
तेगे दुम्मणे भवति, ण दासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। भुंजित्ता-अभुंजित्ता-पदं २४३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- जित्ता णामेगे सुमणे भवति, भुंजित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, भुंजित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २४४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- जामीतेगे सुमणे भवति, भुंजामीतेगे
दुम्मणे भवति, भुंजामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २४५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— जिस्सामीतेगे सुमणे भवति, अॅजिस्सामी
तेगे दुम्मणे भवति, भुंजिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २४६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ---अ जित्ता णामेगे सुमणे भवति, अभंजित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अभुंजित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २४७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण भुंजामीतेगे सुमणे भवति, ण भुजामीतेगे
दुम्मणे भवति, ण भुजामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २४८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण भंजिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
भुंजिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भुंजिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ लभित्ता-अलभित्ता-पदं २४६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--लभित्ता णामेगे सुमणे भवति, लभित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, लभित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २५०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–लभामीतेगे सुमणे भवति, लभामीतेगे
दुम्मणे भवति, लभामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति॥ २५१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, लभिस्सामी
तेगे दुम्मणे भवति, लभिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।
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५६२
ठाणं
२५२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अलभित्ता णामेगे सुमणे भवति, अलभित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अलभित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २५३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- ण लभामीतेगे सुमणे भवति, ण लभामी
तेगे दुम्मणे भवति, ण लभामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।। २५४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण लभिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
लभिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण लभिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । पिबित्ता-अपिबित्ता-पदं २५५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पिबित्ता णामेगे सुमणे भवति, पिबित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, पिबित्ता णामगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २५६. तओ पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-पिबामीतेगे सुमणे भवति, पिबामीतेगे
दुम्मणे भवति, पिबामीतेगे जोसुमण-णोदुम्मणे भवति ।। २५७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--पिबिस्सामीतेगे सुमणे भवति, पिबिस्सामी
तेगे दुम्मणे भवति, पिबिस्सामीतेगे णोसमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २५८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अपिबित्ता णोमेगे सुमणे भवति, अपिबित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अपिबित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २५९. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण पिबामीतेगे सुमणे भवति, ण पिबामी
तेगे दुम्मण भवति, ण पिबामीतेग णोसूमण-णोदम्मण भवति ।। २६०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण पिबिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
पिबिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पिबिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। सुइत्ता-असुइत्ता-पदं २६१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुइत्ता णामे सुमणे भवति, सुइत्ता णामेगे
दुम्मणे भवति, सुइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २६२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुआमीतेगे सुमणे भवति, सुआमीतेगे
दुम्मणे भवति, सुआमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुइस्सामीतेगे सुमणे भवति, सुइस्सामीतेगे
दुम्मणे भवति, सुइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २६४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--असुइत्ता णामेगे सुमणे भवति, असुइत्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, असुइत्ता णामगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २६५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण सुआमीतेगे सुमणे भवति, ण सुआमी
तेगे दुम्मणे भवति, ण सुआमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--ण सुइस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
सुइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण सुइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
जुज्झित्ता-अजुज्झित्ता-पदं २६७ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुज्झित्ता णामेगे सुमणे भवति, जुज्झित्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, जुज्झित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुज्झामीतेगे सुमणे भवति, जुज्झामीतेगे
दुम्मणे भवति, जुज्झामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवति, जुज्झि
स्सामीतेगे दुम्मणे भवति, जुज्झिस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २७०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अजुज्झित्ता णामेगे सुमणे भवति, अजु
ज्झित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अजुज्झित्ता णामगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २७१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण जुज्झामीतेगे सुमणे भवति, ण
जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुज्झामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –ण जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
जुज्झिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जुज्झिस्सामीतेग णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। जइत्ता-अजइत्ता-पदं २७३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं ज़हा-जइत्ता णामेगे सुमणे भवति, जइत्ता णामेगे
दुम्मणे भवति, जइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --जिणामीतेगे सुमणे भवति, जिणामीतेगे
दुम्मणे भवति, जिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मण भवति ।। २७५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, जिणिस्सामी
तेगे दुम्मण भवति, जिणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अजइत्ता णामेगे सुमणे भवति, अजइत्ता
णामेगे दुम्मणे भवति, अजइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २७७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण जिणामीतेगे सुमण भवति, ण जिणामी
तेगे दुम्मणे भवति, ण जिणामीतेगे णोसूमण-णोदुम्मणे भवति ।। २७८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-ण जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण जिणिस्सामोतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । पराजिणित्ता-अपराजिणित्ता-पदं २७६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पराजिणित्ता णामेगे सुमणे भवति, परा
जिणित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, पराजिणित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २८०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पराजिणामीतेगे सुमणे भवति,
पराजिणामीतेगे दुम्मणे भवति, पराजिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । २८१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पराजिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, परा
जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, पराजिणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।।
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५६४
ठाणं
२८२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अपराजिणित्ता णामेगे सुमणे भवति, अपरा
जिणित्ता णामंगे दुम्मणे भवति, अपराजिणित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति । २८३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण पराजिणामीतेगे सुमणे भवति, ण परा
जिणामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ २८४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण पराजिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण
पराजिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणिस्सामोतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। सुणेत्ता-असुणेत्ता-पदं २८५.
"तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सह सूणेत्ता णामेगे सुमणे भवति, सई
सणेत्ता णामेगे दम्मणे भवति, सह सणेत्ता णामेगे जोसमणे-णोदम्मणे भवति ।। २८६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सदं सुणामीतेगे सुमणे भवति, सदं
सुणामीतेगे दुम्मणे भवति, सदं सुणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २८७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सदं सुणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, सई
सुणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, सदं सुणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २८८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सदं असुणेत्ता णामेगे सुमणे भवति,
सदं असुणेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, सदं असुणेत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। २८६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सदं ण सुणामीतेगे सुमणे भवति, सद्दे ण
सुणामीतेगे दुम्मणे भवति, सद्दे ण सुणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सई ण सुणिस्सामीतेगे .सुमणे भवति, सदं
ण सुणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, सई ण सुणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ० ॥ पासित्ता-अपासित्ता-पदं २६१. "तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ....रूवं पासित्ता णामेगे सुमणे भवति, रूवं
पासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रूवं पासित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ।। २६२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं पासामीतेगे सुमणे भवति, रूवं
पासामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं पासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥ १. स० पा० -- सदं सुणेत्ताणामेगे सुमणे भवति ण सुणिस्सामीति ।
३ एवं सुणामीति ३ एवं सुणेस्सामीति ३ २. सं० पा०-एवं रूवाई गंधाई रसाइं फासाइ एवं असुणेत्ताणामेगे सु ३ ण सुणामीति ३ एकेके छ-छ आलावगा भाणियव्वा ।
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५६५ २६३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं पासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रूवं ____ पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं पासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ॥ २६४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं अपासित्ता णामेगे सुमणे भवति,
रूवं अपासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रूवं अपासित्ता णामेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ २६५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं ण पासामीतेगे सुमणे भवति, रूवं ण
पासामीतेग दम्मणं भवति, रूवं ण पासामीतेग णोसूमण-णोदुम्मण भवति । २६६. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं ण पासिस्सामीतेगे समणे भवति.
रूवं ण पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ अग्घाइत्ता-अणग्घाइत्ता-पदं २६७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति,
गंधं अग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति । २६८. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंधं
अग्धामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। २६६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवति,
गंध अग्धाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घाइस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ।। ३००. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अणग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति,
गंध अणग्धाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंध अणग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ ३०१. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं ण अग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंधं
ण अग्धामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्धामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंध ण अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवति,
गंधं ण अग्धाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ आसाइत्ता-अणासाइत्ता-पदं ३०३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -रसं आसाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं
आसाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे
भवति ॥ ३०४. तओ परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-~-रसं आसादेमीतेगे समणे भवति. रसं
आसादेमी तेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ॥
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ठाणं
३०५. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रसं आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवति,
रसं आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादिस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ ३०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रसं अणासाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे जोसुमणे
भवति । ३०७. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रसं ण आसादेमीतेगे सुमणे भवति, रसं ण
आसादेमीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति ।। ३०८. तओ पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--रसं ण आसादिस्सामीतेगे समणे भवति.
रसं ण आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादिस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ।। फासेत्ता-अफासेत्ता-पदं ३०६. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---फासं फासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं
फासेत्ता णामेगे दम्मणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे णोसूमणे-णोदम्मणे
भवति ॥ ३१०. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-फासं फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं
फासेमीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासेमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति । ३११. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा –फासं फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फासं
फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।। ३१२. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा---फासं अफासेत्ता णामेगे सुमणे भवति,
फासं अफासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं अफासेत्ता णामेगे जोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ।। ३१३. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-फासं ण फासेमीतेगे सुमणे भवति,
फासं ण फासेमीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासेमीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति । ३१४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–फासं ण फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति,
फासं ण फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे णोसुमणे
णोदुम्मणे भवति ॥ गरहिअ-पदं ३१५. तओ ठाणा णिसीलस्स णिग्गुणस्स णिम्मे रस्स णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासस्स
गरहिता भवंति, तं जहा–अस्सि लोगे गरहिते भवति, उववाते गरहिते भवति, आयाती गरहिता भवति ।
१. अववाते (क, ग)।
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तइयं ठाणं (बीओ उद्देसो)
५६७
पसत्थ-पदं ३१६. तओ ठाणा 'सुसीलस्स सुव्वयस्स' सगुणस्स समेरस्स' सपच्चक्खाणपोसहोव
वासस्स पभत्था भवंति, तं जहा–अस्सि लोगे पसत्थे भवति, उववाए पसत्थे
भवति, आजाती पसत्था भवति ।। जीव-पदं ३१७. तिविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा --इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा। ३१८. तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मद्दिट्टी, मिच्छाद्दिट्ठी',
सम्मामिच्छद्दिट्टी ॥ अहवा-तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा, णोपज्जत्तगा-णोऽपज्जत्तगा। "परित्ता, अपरित्ता, णोपरित्ता-णोऽपरित्ता । सुहमा, बायरा, णोसुहुमा-णोबायरा । सण्णी, असण्णी, णोसण्णी-णोअसण्णी ।
भवी, अभवी, णोभवी-णोऽभवी ॥ लोगठिती-पदं ३१६. तिविधा लोगठिती पण्णत्ता, तं जहा–आगासपइट्ठिए वाते, वानपइट्ठिए उदही,
उदहीपइट्ठिया पुढवी ॥ दिसा-पदं ३२०. तओ दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-उड्डा, अहा, तिरिया । ३२१. तिहि दिसाहि जीवाणं गती पवत्तति-उड्ढाए, अहाए", तिरियाए । ३२२. "तिहि दिसाहि जीवाणं ° --आगती, वक्कंती, आहारे, वुड्डी, णिवुड्डी,
गतिपरियाए, समुग्धाते, कालसंजोगे, दंसणाभिगमे, जीवाभिगमे 'पण्णत्ते,
तं जहा-उड्ढाए, अहाए, तिरियाए । ३२३. तिहिं दिसाहि जीवाणं अजीवाभिगमे पण्णत्ते, तं जहा-उड्ढाए, अहाए,
तिरियाए। ३२४. एवं-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ।। ३२५. एवं-मणुस्साणवि ॥
१. ससीलस्स सव्वयस्स (ख)।
५. अहाते (क, ख, ग)। २. सुमेरस्स (ख)।
६. सं० पा०-एवं। ३. मिच्छ ° (क, ग)।
७. ठाणेहिं (ख)। ४. सं० पा०-एवं सम्मद्दिविपरित्ता पज्जत्तग- ८,६. पू०-ठा० ३.३२१-३२३ ।
सुहमसण्णिभविया य।
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ठाण
तस-थावर-पदं ३२६. तिविहा तसा पण्णत्ता, तं जहा-तेउकाइया, वाउकाइया, उराला तसा पाणा ।। ३२७. तिविहा थावरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया वणस्सइकाइया ॥ अच्छेज्जादि-पदं ३२८. तओ अच्छेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ।। ३२६. "तओ अभेज्जा पण्णत्ता, तं जहा—समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३०. तओ अडज्झा पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ॥ ३३१. तओ अगिज्झा पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३२. तओ अणड्डा पण्णत्ता, तं जहा -समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३३. तओ अमज्झा पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३४. तओ अपएसा पण्णत्ता, तं जहा - समए, पदेसे, परमाणू ।। ३३५. तओ अविभाइमा' पण्णत्ता, तं जहा-समए, पदेसे, परमाणू ।। दुक्ख-पदं ३३६. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं
वयासी - किंभया पाणा ? समणाउसो ! गोतमादी' समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी–णो खलु वयं देवाणुप्पिया ! एयमढे जाणामो वा पासामो वा। तं जदि णं देवाणुप्पिया ! एयमद्वं णो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमद्रं जाणित्तए। अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-दुक्खभया पाणा समणाउसो ! से णं भंते ! दुक्खे केण कडे ? जीवेणं कडे पमादेणं। से णं भंते ! दुक्खे कहं वेइज्जति ?
अप्पमाएणं ॥ ३३७. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेंति एवं
परूवेंति कहण्णं समणाणं णिग्गंथाणं किरिया कज्जति ? ।
१. सं० पा०-एवमभेज्जा अडझा अगिज्झा
अणड्डा अमज्झा अपएसा । २. अविभातिमा (क, ख, ग)।
३. गोयमाती (क, ख, ग)। ४. त्ति (ग)।
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तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो)
५६६ तत्थ जा सा कडा कज्जइ, णो तं पुच्छंति । तत्थ जा सा कडा णो कज्जति, णो तं पुच्छति । तत्थ जा सा अकडा णो कज्जति, णो तं पुच्छंति । तत्थ जा सा अकडा कज्जति, णो तं पुच्छंति । से एवं वत्तव्वं सिया ? अकिच्चं दुक्खं, अफुसं दुक्खं, अकज्जमाणकडं दुक्खं । अकट्ठ-अकटु 'पाणा भया जीवा सत्ता' वेयणं वेदेतित्ति वत्तव्वं । जे ते एवमाहंसु, मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि-किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं । कट्ट-कटु 'पाणा भूया जीवा सत्ता वेयणं वेयंतित्ति वत्तव्वयं सिया ॥
तइओ उद्देसो आलोयणा-पदं ३३८. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, णो
णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भट्रेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा
अरिस वाहं. करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं॥ ३३६. तिहि ठाणेहि मायी मायं कटु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा', 'णो
णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भट्रेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, तं जहा
अकित्ती वा मे सिया', अवण्णे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया ॥ ३४०. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कटु णो आलोएज्जा", णो पडिक्कमेज्जा, णो
णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, तं जहा
१. सिता (क, ख, ग)।
प्रायः 'करिसु' 'चिणिसु' इत्यादि प्रयोगा २. X (ग)।
एव लभ्यन्ते, क्वचिदेव 'अकरिसु' 'अभविसु' ३. जीवा सत्ता भूता पाणा (क); पाणा भूता इत्यादि प्रयोगा : सन्ति ।
८. सं० पा०—णो पडिक्कमेज्जा जाव ४. फुस्सं (क्व)।
पडिवज्जेज्जा। ५. किज्ज° (क)।
६. सिता (क, ख, ग)। ६. जीवा सत्ता भूता पाणा (क); पाणा भूता १०. अविणते (क, ख, ग)। (ग)।
११. सं० पा०-णो आलोएज्जा जाव ७. ठा० ८।१० सूत्रे 'करिसु' पाठो विद्यते । पडिवज्जेज्जा।
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ठाणं
कित्ती वा मे परिहाइस्सति, जसे वा मे परिहाइस्सति प्रयासक्कारे वा मे परिहाइस्सति ||
३४१. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा', 'णिदेज्जा, गरि हेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा - माइस्स णं अस्सि लोगे गरहिए भवति, उववाए गरहिए भवति, आयाती गरहिया भवति ॥
५७०
३४२. तिहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा णिदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा - अमाइस्स णं अस्सि लोगे पसत्थे भवति, उववाते पसत्थे भवति, आयाती' पसत्था भवति ॥
३४३. तिहि ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरिहेंज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं° पडिवज्जेज्जा, तं जहा - णाणट्टयाए, दंसणट्टयाए, चरित्तट्टयाए ॥
सुधर-पदं
३४४. तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुत्तधरे, अत्थधरे, तदुभयधरे ॥
उपधि-पदं
३४५. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ वत्थाई धारितए वा परिहरितए वा, तं जहा - 'जंगिए, भंगिए, खोमिए " ||
३४६. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ पायाइं धारितए वा परिहरित्तए वा, तं जहा - लाउयपादे वा, दारुपादे वा, मट्टियापादे वा ॥
३४७. तिहि ठाणेहिं वत्थं धरेज्जा, तं जहा - हिरिपत्तियं, दुगंछापत्तियं, परीसह - वत्तियं ॥
आयरक्ख-पदं
३४८. तओ आयरक्खा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता भवति, तुसिणीए वा सिया, उद्वित्ता वा आताए एगंतमंतमवक्कमेज्जा |
वियड- दत्ति-पदं
३४६. णिग्गंथस्स णं गिलायमाणस्स कप्पंति तओ वियडदत्तीओ पडिग्गाहित्तते,
तं जहा - उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥
१. सं०पा०-- पडिक्क मेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा । ४. २. सं० पा०-- आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा । ३. आयाय ( ग ) ।
५.
सं० पा० - आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा । जंगिते भंगिते खोमिते ( क, ख, ग ) ; जंगियं भंगियं खोमियं (वृ) ।
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तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो)
- ५७१ विसंभोग-पदं ३५०. तिहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे साहम्मियं संभोगियं विसंभोगियं करेमाणे
णातिक्कमति, तं जहा-सयं वा दटुं, सड्ढयस्स' वा णिसम्म, तच्चं मोसं
आउट्टति, चउत्थं णो आउट्टति ॥ अणुण्णादि-पदं ३५१. तिविधा अणुण्णा पण्णत्ता, तं जहा—आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणित्ताए । ३५२. तिविधा समणुण्णा पण्णत्ता, तं जहा - आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए,
गणित्ताए। ३५३. "तिविधा उवसंपया पण्णत्ता, तं जहा-आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए,
गणित्ताए। ३५४. तिविधा विजहणा पण्णत्ता, तं जहा - आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए,
गणित्ताए° ॥ वयण-पदं ३५५. तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा–तव्वयणे, तदण्णवयणे, णोअवयणे ।। ३५६. तिविहे अवयणे पण्णत्ते, तं जहा–णोतव्वयणे', णोतदण्णवयणे, अवयणे ।। मण-पदं ३५७. तिविहे मणे पण्णत्ते, तं जहा-तम्मणे, तयण्णमणे, णोअमणे । ३५८. तिविहे अमणे पण्णत्ते, तं जहा-णोतम्मणे, णोतयण्णमणे, अमण ।। वुट्ठि -पदं ३५६. तिहिं ठाणेहिं अप्पवुट्ठीकाए सिया, तं जहा
१. तस्सि च णं देसंसि वा पदेसंसि वा णो बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला
य उदगत्ताते वक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति । २. देवा णागा जक्खा भूता णो सम्ममाराहिता भवंति, तत्थ समुट्टियं उदग___ पोग्गलं परिणतं वासितुकामं अण्णं देसं साहरंति। ३. अब्भवद्दलगं च णं समुट्ठितं परिणतं वासितुकामं वाउकाए विधुणति ।
इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहि अप्पवुट्ठिगाए सिया ॥
१. विसंभोतियं (क, ख)। २. सढियस्स (क, ख); सड्ढस्स (क्व)। ३. गणित्ताते (क, ख, ग)। ४. सं० पा०--एवं उवसंपया एवं विजहणा।
५. तवयणे (ख)। ६. अन्नत्थ (ख)। ७. पोग्गलं वा (क)।
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५७२
ठाणं
३६०. तिहि ठाणेहि महावुट्ठीकाए सिया, तं जहा
१. तस्सि च णं देसंसि वा पदेसंसिौं वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला __य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमंति चयंति उववज्जति । २. देवा णागा जवखा भूता सम्ममाराहिता भवंति, अण्णत्थ समुद्वितं उदग
पोग्गलं परिणयं वासिउकामं तं देसं साहरंति । ३. अब्भवद्दलगं च णं समुट्टितं परिणयं वासितुकामं णो वाउआए विधुणति ।
इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं महावुट्टिकाए सिआ ।। अहुणोववण्ण-देव-पदं ३६१. तिहि ठाणेहि अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छि
त्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा१. अहुणोववण्ण देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झो
ववण्णे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाति, णो परियाणाति, णो 'अटुं बंधति", णो णियाणं पगरेति, णो ठिइपकप्पं पगरेति। २. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झो
ववण्ण, तस्स णं माणुस्सए पेम्मे वोच्छिण्णे दिव्वे संकेते भवति । ३. अहणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते 'गिद्धे गढिते ०
अज्झोववणे, तस्स णं एवं भवति-'इण्हि गच्छं मुहत्तं गच्छं", तेणं कालेणमप्पाउया मणुस्सा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति। इच्चेतेहि तिहिं ठाणेहि अहणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणसं लोगं
हब्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। ३६२. तिहि ठाणेहि अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोग हव्वमागच्छि
त्तए, संचाएइ हव्वमागच्छित्तए-- १. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते
अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति-अत्थि णं मम माणुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति वा गणावच्छेदेति वा, जेसि पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागते, तं गच्छामि णं ते
१. तंसि (ग)। २. पतेसंसि (क, ख, ग)। ३. उक्कमति (ग)। ४. X (क, ग)।
५. अटेंति (ग)। ६. सं० पा०-मुच्छिते जाव अज्झोववण्णे । ७. इयव्हिं° (ख); इयहिं गच्छं मुहत्तागच्छ
(ग); इयण्हिं न गच्छं (वृ)।
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तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो)
भगवंते वदामि णमस्सामि सक्कारेमि सम्माणमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि । २. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे अगढिते ०
अणज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवति–'एस णं माणुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अतिदुक्कर-दुक्करका रगे, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि णमंसामि' 'सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवा
सामि। ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु' 'दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे अगढिते ०
अणज्झोववणे, तस्स णमेवं भवति-अत्थि णं मम माणस्सए भवे माताति वा 'पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा ध्याति वा सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता मे इमं एतारूवं दिव्वं देविति दिव्वं देवजुति दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं । इच्चेतेहिं तिहि ठाणेहि अहुणोववण्णे देवे देवलोगेस इच्छेज्ज माणसं लोगं
हव्वमागच्छित्तए, संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। देवस्स मणट्टिइ-पदं ३६३. तओ ठाणाई देवे पीहेज्जा, तं जहा-माणुस्सगं भवं, आरिए खेत्ते जम्म,
सुकुलपच्चायाति ।। ३६४.
तिहिं ठाणेहिं देवे परितप्पेज्जा, तं जहा१. अहो ! णं मए संते बले संते वीरिए संते पुरिसक्कार-परक्कमे खेमंसि सुभिक्खंसि आयरिय-उवज्झाएहि विज्जमाणेहिं कल्लसरी रेणं णो बहुए
सुते अहीते। २. अहो ! णं मए इहलोगपडिबद्धेणं परलोगपरंमुहेणं विसयतिसितेणं णो दीहे
सामण्णपरियाए अणुपालिते।। ३. अहो ! णं मए इड्डि-रस-साय"-गरुएणं भोगासंसगिद्धेणं" णो विसुद्धे चरित्ते
फासिते।
इच्चेतेहि तिहि ठाणेहिं देवे परितप्पेज्जा ।। १. ° सेमि (क, ख, ग)।
७. सुहीति (ग)। २. सं० पा०-अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे । ८. सुकूले ° (ख)। ३. एयंसि णं (क)।
६. बहुते (क, ख, ग)। ४. सं० पा० -णमंसामि जाव पज्जुवासामि। १०. साया (ख)। ५. सं० पा०-देवलोगेसु जाव अणज्झोववण्णे। ११. भोगामिसगिद्धेणं (वृपा)। ६. सं० पा०-माताति वा जाव सुण्हाति ।
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ठाण
५७४
३६५. तिहि ठाणेहिं देवे वइस्सामित्ति जाणइ, तं जहा - विमाणाभरणाई णिप्पभाई पासित्ता, कप्परुक्खगं मिलायमाणं पासित्ता, अप्पणो तेयलेस्सं परिहाय माणि जाणित्ता - इच्चे एहिं तिहि ठाणेहिं देवे इस्सामित्ति जाणइ ॥ ३६६. तिहिं ठाणेहिं देवे उब्वेगमागच्छेज्जा, तं जहा
१. अहो ! गं मए इमाओ एतारूवाओ दिव्वाओ देविड्डीओ दिव्वाओ देवजुतीओ दिव्aाओ देवाणुभावाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमण्णागताओ चइयव्वं' भविस्सति ।
२. अहो ! णं मए माउओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसट्टं तप्पढमयाए आहारो आयारेयव्वो भविस्सति ।
३. अहो ! णं मए कलमल - जंबालाए असुईए उब्वेयणियाए' भीमाए गब्भवसहीए वसियव्वं भविस्सइ ।
इच्चे एहिं तिहि ठाणेहिं देवे उब्वेगमागच्छेज्जा |
विमाण-पदं
३६७. तिसंठिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा - वट्टा, तंसा, चउरंसा ।
१. तत्थ णं जे ते वट्टा विमाणा, ते णं पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिया सव्वओ समंता पागार - परिक्खित्ता एगदुवारा पण्णत्ता |
२. तत्थ णं जे ते तसा विमाणा, ते णं सिंघाडगसंठाणसंठिया दुहतोपागारपरिक्खित्ता एगतो वेइया - परिक्खित्ता तिदुवारा पण्णत्ता ।
३. तत्थ णं जे ते चउरंसा' विमाणा, ते णं अक्खाडगसंठाणसंठिया सव्वतो समंतावेइया परिक्खित्ता चउदुवारा पण्णत्ता ॥
३६८. तिपतिट्टिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा - घणोदधिपतिट्ठिता, घणवातपइट्टिता,
ओवासंतरपट्ठिता ।।
३६६. तिविधा विमाणा पण्णत्ता, तं जहा --अवट्टिता, वेउव्विता, पारिजाणिया ||
दिट्ठि-पदं
३७०. तिविधा णेरइया पण्णत्ता, तं जहा - सम्मादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी |
३७१. एवं - विगलिदियवज्जं जाव' वेमाणियाणं ॥
१. चवियव्वं ( क ) ; चतियव्वं ( ख, ग ) ।
२. उब्वेवणिताते ( क, ख, ग ) ।
३. वेतिता ( क, ख, ग ) ।
४. चउरंस (क, ग ) ।
५. उवट्टिता ( क ) ।
६. परिजाणिता ( क, ख, ग ) ।
७. ठा० १।१४२-१५१, १६०-१६३ ।
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तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो)
दुग्गति-सुगति-पदं
३७२. तओ दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - णेरइयदुग्गतो, तिरिक्खजोणिय दुग्गती', दुग्गी ॥
३७३. तओ सुगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- सिद्धसोगती, देवसोगती, मणुस्ससोगती ॥ ३७४. तओ दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा - णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता, मणुस्सदुग्गता ॥
३७५. तओ सुगता पण्णत्ता, तं जहा - सिद्धसोगता, देवसुग्गता, मणुस्ससुग्गता । तव - पाणग-पदं
३७६. चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहाउस्सेइमे, संसेइमे, चाउलधोवणे ॥
३७७. छट्टभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहातिलोदए, तुसोदए, जवोदए ||
३७८ अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए, तं जहाआयामए, सोवीरए', सुद्धवियडे ॥
पिंडेसणा-पदं
३७९. तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहा - फलिओ वह डे', सुद्धोवहडे, संसट्टोव हडे || ३८० तिविहे ओग्गहिते' पण्णत्ते, तं जहाजं च ओगिण्हति जं च साहरति, जंच आसगंसि पक्खिवति ॥
ओमोयरिया -पदं
३८ १. तिविधा ओमोयरिया पण्णत्ता, तं जहा - उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया ||
चियत्तो
३८२. उवगरणोमोदरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- एगे वत्थे, एगे पाते,
वह साइज्जणा " ।।
णिग्गंथ-चरिया-पदं
३८३. तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अहियाए" असुभाए अखमाए
७.
१. तिरियदु ( क ) ; तिरियजो ० ( ग ) ।
२. उस्सेतिमे (क, ख, ग ) ।
५७५
३. संसेतिमे (क, ख, ग ) ।
४. आयामते (क, ख, ग ) । ५. सोवीरते ( क, ख, ग ) ६. फल ( क ) ।
।
उवग्गहिते ( क ) । आसगंसि य ( क ) |
६. ° मोदरिता ( क, ख, ग ) ।
१०. सातिज्जूणता ( क, ख, ग ) ।
११. अभियाते ( क ) ; अहियाते ( ख, ग ) ।
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ठाणं
अणिस्सेसाए' अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा --कूअणता, कक्करणता,
अवज्झाणता॥ ३८४. तओ ठाणा णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा हिताए सुहाए खमाए णिस्सेसाए'
आणुगामिअत्ताए भवंति, तं जहा-अकूअणता, अकक्करणता, अणवज्झाणता॥ सल्ल-पदं ३८५. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा-मायासल्ले, णियाणसल्ले, मिच्छादसणसल्ले ।। तेउलेस्सा-पदं ३८६. तिहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे संखित्त-विउलतेउलेस्से भवति, तं जहा
आयावणताए, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं । भिक्खुपडिमा-पदं ३८७. तिमासियं' णं भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति तओ दत्तीओ
भोअणस्स पडिगाहेत्तए, तओ पाणगस्स ।। ३८८. एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्म अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा
अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेयसाए अणाणुगमियत्ताए भवंति, तं जहाउम्मायं वा लभिज्जा, दीहकालियं वा रोगातंक पाउणेज्जा, केवलीपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। एगरातियं भिक्खुपडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स अणगारस्स तओ ठाणा हिताए सुभाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा-ओहिणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, केवलणाणे वा से
समुप्पज्जेज्जा ॥ कम्मभूमी-पदं ३६०. जंबुद्दोवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भरहे, एरवए,
__ महाविदेहे ॥ ३६१. एवं -धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे जाव' पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे । दसण-पदं ३९२. तिविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मइंसणे, मिच्छदसणे, सम्मामिच्छदंसणे ॥ ३६३. तिविहा रुई पण्णत्ता, तं जहा–सम्मरुई, मिच्छरुई, सम्मामिच्छरुई ॥
१. अणिस्से यसाए (क्व)। २. णिस्से साते (क, ख, ग); णिस्सेयसाए (क्व)। ३. 'तमासितं (क, ग); °सिय (ख)
४. अक्खते (ख)। ५. ठा० ३।१०८ । ६. रुती (क, ख, ग) ।
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५७७
तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो) पओग-पदं ३६४. तिविधे पओगे पण ते, तं जहा-सम्मपओगे, मिच्छपओगे, सम्मामिच्छपओगे।। ववसाय-पदं ३६५. तिविहे ववसाए' पण्णत्ते, तं जहाधम्मिए' ववसाए, अधम्मिए ववसाए,
धम्मियाधम्मिए ववसाए। अहवा'—तिविधे ववसाए पण्णते, तं जहा-पच्चक्खे, पच्चइए, आणुगामिए॥ अहवा-तिविधे ववसाए पण्णत्ते, तं जहा-इहलोइए, परलोइए", 'इहलोइय
परलोइए ॥ ३६६. इहलोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--लोइए", वेइए", सामइए । ३६७. लोइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा–अत्थे, धम्मे, कामे ॥ ३६८. वेइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-रिव्वेदे", जउव्वेदे, सामवेदे ॥ ३६६. सामइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-णाणे, दंसणे, चरित्ते ।। अत्थजोणी-पदं ४००. तिविधा अत्थजोणी पण्णत्ता, तं जहा-सामे, दंडे ", भेदे ॥ पोग्गल-पदं ४०१. तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तं जहा-पओगपरिणता, मीसापरिणता, वीससा
परिणता। णरग-पदं ४०२. तिपतिट्ठिया णरगा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविपतिट्ठिया, आगासपतिट्ठिया, आय
पइट्ठिया । णेगम-संगह-ववहाराणं पुढविपतिट्ठिया, उज्जुसुतस्स आगासपतिटिया, तिण्हं सद्दणयाणं आयपतिट्ठिया ।
१. ववसाते (क, ख, ग)। २. धम्मिते (क, ख, ग)। ३. अथवा (क)। ४. पच्चतिते (क, ख, ग)।। ५. पारलोगिते (क)। ६. इहलोगित-परलोगिते (क, ख, ग)। ७. लोगिते (क, ख, ग)।
८. वेतिते (क, ख, ग)।
६. सामतिते (क, ख, ग)। १०. वेतिगे (क, ख, ग)। ११. रिउव्वेदे (ख)। १२. सामातिते (क); सामइते (ख, ग)। १३. पयाणे (वृपा)। १४. ०णताणं (क, ख, ग)।
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५७८
ठाणं
मिच्छत्त-पदं ४०३. तिविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा–अकिरिया', अविणए', अण्णाणे ॥ ४०४. अकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-पओगकिरिया, समदाणकिरिया,
अण्णाणकिरिया ॥ ४०५. पओगकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-मणपओगकिरिया, वइपओगकिरिया,
कायपओगकिरिया ॥ ४०६. समुदाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–अणंतरसमुदाणकिरिया, परंपर
समुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाणकिरिया ॥ ४०७. अण्णाणकिरिया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा–मतिअण्णाणकिरिया, सुतअण्णाण
किरिया, विभंगअण्णाणकिरिया ॥ ४०८. अविणए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-देसच्चाई, णिरालंबणता, णाणापेज्जदोसे ।। ४०६. अण्णाणे तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-देसण्णाणे, सव्वण्णाणे, भावण्णाणे ॥ धम्म-पदं ४१०. तिविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे ।। उवक्कम-पदं ४११. तिविधे उवक्कमे पणत्ते, तं जहा --धम्मिए उवक्कमे, अधम्मिए उवकम्मे,
धम्मियाधम्मिए उवक्कमे ॥ अहवा-तिविधे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-आओवक्कमे, परोवक्कमे,
तदुभयोवक्कमे॥ ४१२. “तिविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-आयवेयावच्चे, परवेयावच्चे, तदुभय
वेयावच्चे ॥
१. अकिरिता (क, ख, ग)। २. अविणते (क, ख, ग)। ३. विभंगणाण° (क)। ४. देसच्चाती (क, ग); देसच्चाता (ख)। ५. सं० पा०–एवं वेयावच्चे अणग्गहे अणसट्री
उवालंभे एवमेक्केके तिण्णि-तिण्णि आलावगा जहेव उवक्कमे। अनेन संक्षिप्तपाठेनेति प्रतीयते-आत्म-पर-तदुभय-वैयावृत्त्यादिवत् धार्मिक - अधार्मिक-धामिकाधार्मिक - वैयावृत्त्यादि-आलापका अपि यूज्यन्ते, किन्तु
वृत्तिकृता केवलं आत्म-पर-तदुभय-भेदा एव स्वीकृताः। तथा च वृत्तिः–'एव' मिति उपक्रमसूत्रवत् आत्मपरोभयभेदेन वैयावृत्त्यादयो वाच्याः (वृत्ति पत्र १४५) । ‘एवं' मित्यादिना पूर्वोक्तोतिदेशो व्याख्यातः, एवं चात्राक्षरघटना-यथैवोपक्रमे आत्मपरतदुभयैस्त्रय आलापका उक्ताः एवमेकैकस्मिन् वैयावृत्त्यादिसूत्रे ते त्रयस्त्रयो वाच्याः (वृत्ति पत्र १४५)।
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तइयं ठाणं (तइओ उद्देसो)
५७६ ४१३. तिविधे अणुग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-आयअणुग्गहे, परअणुग्गहे, तदुभयअणुग्गहे। ४१४. तिविधा अणुसट्ठी पण्णत्ता, तं जहा-आयअणुसट्ठो, परअणुसट्ठो, तदुभय
__ अणुसट्ठी ॥ ४१५. तिविधे उवालंभे पण्णते, तं जहा-आओवालंभे, परोवालंभे, तदुभयोवालंभे ॥ तिवग्ग-पदं ४१६. तिविहा कहा पण्णत्ता, तं जहा-अत्थकहा, धम्मकहा, कामकहा ॥ ४१७. तिविहे विणिच्छए पण्णत्ते, तं जहा—अत्थविणिच्छए, धम्मविणिच्छए,
कामविणिच्छए॥ ४१८. तहारूवं णं भंते ! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवास
णया? सवणफला। से णं भंते ! सवणे किंफले ? णाणफले । से णं भंते ! णाणे किंफले? विण्णाणफले । १ से णं भंते ! विण्णाणे किंफले? पच्चक्खाणफले । से णं भंते ! पच्चक्खाणे किफले ? संजमफले । से णं भंते ! संजमे किंफले ! अणण्हयफले । से णं भंते ! अणण्हए किंफले ? तवफले। से णं भंते ! तवे किंफले ? वोदाणफले । से णं भंते ! वोदाणे किंफले? अकिरियफले । साणं भंते ! अकिरिया किंफला? णिव्वाणफला। से णं भंते ! णिव्वाणे किंफले ? सिद्धिगइ-गमण-पज्जवसाण-फले समणाउसो !
१. सं० पा०-एवमेतेणं अभिलावणं इमा गाहा अणगंतव्वा--सवणे "णिव्वाणे जाव से णं भंते !
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५८०
ठाण
चउत्थो उद्देसो
पडिमा-पदं ४१६. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं
जहा-अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा। ४२०. “पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए,
तं जहा-अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि . वा, अहे
रुक्खमूलगिहंसि वा ॥ ४२१. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ उवस्सया उवाइणित्तए,
तं जहा-अहे आगमणगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूल
गिहंसि वा ॥ ४२२. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं
जहा-पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव ।। ४२३. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए,
तं जहा--पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव ।। ४२४. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पति तओ संथारगा
जहा–पुढविसिला, कट्ठसिला, अहासंथडमेव ॥ काल-पदं ४२५. तिविहे काले पण्णत्ते, तं जहा–तीए, पडुप्पण्ण, अणागए। ४२६. तिविहे समए पण्णत्ते, तं जहा-तीए, पडुप्पण्णे, अणागए । ४२७. एवं-आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरते जाव' वाससतसहस्से
पुव्वंगे पुव्वे जाव' ओसप्पिणी ॥ ४२८. तिविधे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, तं जहा–तीते, पडुप्पण्णे, अणागए ।।
साना त
.43
.
.
.
..ागल
वयण-पदं
४२६. तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा--एगवयणे, दुवयणे, बहुवयणे ।
अहवा---तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा–इथिवयणे, वयणे, णपुंसगवयणे ।
१. सं० पा०-एवमणुण्णवेत्तते उवातिणित्तते । २. सं० पा०-एवं अणण्णवेत्तए उवाइणित्तए । ३. ठा० २।३८६। ४. ठा० २।३८६ सूत्रे 'वाससतसहस्साइ वा
वासकोडीइ वा पुव्वंगाति वा' इति पाठो विद्यते। ५. ठा० २।३८६ । ६. उस्स (क, ख)।
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तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
५८१ अहवा-तिविहे वयणे पण्णत्ते, तं जहा-तीतवयणे, पडुप्पण्णवयणे,
अणागयवयणे।। णाणादीणं पण्णवणा-सम्म-पद ४३०. तिविहा पण्णवणा पण्णत्ता, तं जहा–णाणपण्णवणा, दसणपण्णवणा,
चरित्तपण्णवणा।। ४३१. तिविधे सम्मे पण्णत्ते, तं जहा–णाणसम्मे, दंसणसम्मे, चरित्तसम्मे । उवघात-विसोहि-पदं ४३२. तिविधे उवधाते पण्णत्ते, तं जहा-उग्गमोवघाते, उप्पायणोवघाते,
एसणोवधाते ।। ४३३. "तिविधा विसोही पण्णत्ता, तं जहा-उग्गमविसोही, उप्पायणविसोही,
एसणाविसोही ॥ आराहणा-पदं ४३४. तिविहा आराहणा पण्णत्ता, तं जहा-णाणाराहणा, दसणाराहणा,
चरित्ताराहणा॥ ४३५. णाणाराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ४३६. "दसणाराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ ४३७. चरित्ताराहणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–उक्कोसा, मज्झिमा, जहण्णा ॥ संकिलेस-असंकिलेस-पदं ४३८. तिविधे संकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा–णाणसंकिलेसे, दसणसंकिलेसे,
चरित्तसंकिलेसे ॥ ४३९. "तिविधे असंकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा–णाणअसंकिलेसे, दंसणअसंकिलेसे,
चरित्तअसंकिलेसे ।। अइक्कम-आदि-पदं ४४०. तिविधे अतिक्कमे पण्णत्ते, तं जहा–णाणअतिक्कमे, दंसणअतिक्कमे,
चरित्तअतिक्कमे ॥ ४४१. तिविधे वइक्कमे पण्णत्ते, तं जहा–णाणवइक्कमे, सणवइक्कमे,
चरित्तवइक्कमे ॥ ४४२. तिविधे अइयारे पण्णत्ते, तं जहा णाणअइयारे, दंसणअइयारे, चरित्तअइयारे॥
१. अतीत ° (क)। २. सं० पा०–एवं विसोही । ३. सं० पा०-एवं दंसणाराहणावि चरित्ता
राहणावि । ४. संपा०-एवं अंसकिलेसेवि'''अणायारेवि ।
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५८२
ठाणं
४४३. तिविधे अणायारे पण्णत्ते, तं जहा-णाणअणायारे, दंसणअणायारे,
चरित्तअणायारे॥ ४४४. तिण्हमतिक्कमाणं-आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा,
'विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, तं जहा–णाणातिक्कमस्स, दंसणातिक्कमस्स,
चरित्तातिक्कमस्स ॥ ४४५. "तिण्हं वइक्कमाणं -आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा,
विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा-णाणवइक्कमस्स, सणवइक्कमस्स,
चरित्तवइक्कमस्स ॥ ४४६. तिण्हमतिचाराणं-आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा, विउट्टेज्जा,
विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म
पडिवज्जेज्जा, तं जहा–णाणातिचारस्स, दंसणातिचारस्स, चरित्तातिचारस्स ।। ४४७. तिण्हमणायाराणं-आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरहेज्जा ,
विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तंजहा-णाण-अणायारस्स, सण-अणायारस्स, चरित्त
अणायारस्स° ॥ पायच्छित्त-पदं ४४८. तिविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा--आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे,
तदुभयारिहे ॥ अकम्मभूमी-पदं ४४६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा–हेमवते, हरिवासे, देवकुरा ॥ ४५०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा-उत्तरकुरा, रम्मगवासे, हेरण्णवए।
वास-पदं
४५१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासा पण्णत्ता, तं जहा
भरहे, हेमवए, हरिवासे ॥
१. सं० पा०-गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा। २. सं० पा०--एवं वइक्कमाणं अतिचाराणं
अणायाराणं।
३. °माण वि (ख)। ४. एरण्णवए (क, ख, ग)।
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तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
५८३ ४५२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासा पण्णत्ता तं जहा
रम्मगवासे, हेरण्णवते, एरवए । वासहरपव्वय-पदं ४५३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासहरपव्वता पण्णत्ता,
तं जहा-चुल्ल हिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे ।।। ४५४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासहरपव्वत्ता पण्णत्ता,
तं जहा-णीलवंते, रुप्पी, सिहरी ॥ महादह-पदं ४५५. जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ महादहा पण्णत्ता, तं जहा
पउमदहे, महापउमदहे, तिगिछदहे। तत्थ णं तओ देवताओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति,
तं जहा-सिरी, हिरी, धिती॥ ४५६. एवं-उत्तरे णवि, नवरं—केसरिदहे, महापोंडरीयदहे, पोंडरीयदहे ।
देवताओ-कित्ती, बुद्धी, लच्छी। णदी-पदं ४५७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्ल हिमवंताओ वासधरपव्वताओ
पउमदहाओ महादहाओ तओ महाणदीओ पवहंति, तं जहा—गंगा, सिंधू,
रोहितंसा॥ ४५८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरीओ वासहरपव्वताओ
पोंडरीयदहाओ महादहाओ तओ महाणदीओ पवहंति, तं जहा-सुवण्णकूला,
रत्ता, रत्तवती ॥ ४५६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं तओ
अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-गाहावती, दहवती, पंकवती ।। ४६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं तओ
अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तत्तजला,मत्तजला, उम्मत्तजला ॥ ४६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए दाहिणे णं
तओ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–खीरोदा, सीहसोता', अंतोवाहिणी॥ ४६२. जंबद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए उत्तरे णं
तओ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-उम्मिमालिणी, फेणमालिणी, गंभीरमालिणी॥
३. सीतसोता (क, ग)।
१. तिगिच्छ ° (क); तिगिच्छि ° (ख)। २. ठा० २७१।
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५८४
धाasis - पुक्खरवर-पदं
४६३. एवं - धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धेवि अकम्मभूमीओ आढवेत्ता जाव' अंतरनदीओत्ति णिरवसेसं भाणियव्वं जाव' पुक्खरवरदीवढपच्चत्थिमद्धे तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं ॥
भूकंप-पदं
४६४. तिहि ठाणेहिं देसे पुढवीए चलेज्जा, तं जहा
१. अहेणं इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उराला पोग्गला णिवतेज्जा । तते गं उराला पोग्गला णिवतमाणा देस पुढवीए चालेज्जा' ।
२. महोरगे वा महिड्डीए जाव' महेसक्खे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे उम्मज्ज - णिमज्जियं करेमाणे देस पुढवीए चालेज्जा' ।
४६५. तिहि ठाणेहि केवलकप्पा पुढवो चलेज्जा, तं जहा
३. णागसुवण्णाण वा संगामंसि वट्टमाणंसि देस [ देसे' ? ] पुढवीए चलेज्जा । इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं देसे पुढवीए चलेज्जा ॥
ठाणं
१. अधे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते गुप्पेज्जा । तए णं से घणवा विसमा घोहिमेएज्जा । तए णं से घणोदही एइए समाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा |
२. देवे वा महिड्डिए जाव' महेसक्खे तहारूवस्स समणस्स माहणस्स वा इड्डि जुति जसं बलं वीरि पुरिसक्का र परक्कम उवदंसेमाणे केवलकप्पं पुढवि चालेज्जा । ३. देवासुरसंगामंसि वा वट्टमाणंसि केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा ।
इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं केवलकप्पा पुढवी चलेज्जा ।।
देवब्बिसिय-पदं
४६६. तिविधा देवकिब्बिसिया पण्णत्ता, तं जहा - तिपलिओ मद्वितीया, तिसागरोवमद्वितीया, तेरससागरोवमद्वितीया ।
१. कहि णं भंते! तिपलिओवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ?
१. ठा० ३।४४९-४६२ ।
२. ठा० ३।१०८ ।
३. चलेज्जा (क, ख, ग ) ; वृत्तौ चलयेयुः इति व्याख्यातमस्ति तेन चालेज्जा इति पाठ: प्रतीयते ।
४. महोरते ( क, ख, ग ) ।
५. ठा० २।२७१ ।
६. चलेज्जा (क, ख, ग ) ।
७. देसंति देशश्चलेदिति (वृ ) ।
८. ठा० २।२७१ ।
६. वीरितं ( क, ख, ग ) ।
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तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
उप्पि जोइसियाणं, हिट्ठि' सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमद्वितीया देवसिया परिवसति ।
२. कहि णं भंते ! तिसाग रोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि सोहम्मीसाणाणं कप्पाणं, हेट्ठि सणकुमार - माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ तिसागरोवमद्वितीया देवकिब्बिसिया परिवसंति ।
३. कहि णं भंते ! तेरससाग रोवमद्वितीया देव किब्बिसिया परिवसंति ? उप्पि बंभलोगस्स कप्पस्स, हेट्ठि' लंतगे कप्पे, एत्थ णं तेरससागरोवमट्टितीया aafar परिवसंति ॥
देवठिति-पदं
४६७. सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवाणं तिष्णि पलिओ माइं ठिई पण्णत्ता ||
४६८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अग्भितरपरिसाए देवीणं तिणि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता ॥
५८५
४६६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिओ माई ठिती पण्णत्ता ॥
पायच्छित्त-पदं
४७०. तिविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरितपायच्छित्ते ॥
४७१. तओ अणुग्धातिमा' पण्णत्ता, तं जहा - हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोणं भुजमा ||
४७२. तओ पारंचिता पण्णत्ता, तं जहा -दुट्टे पारंचिते, पमत्ते पारंचिते, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिते ॥
४७३. तओ अणवटुप्पा पण्णत्ता, तं जहा - साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अण्णमियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थातालं दलयमाणे ॥
पव्वज्जादि - अजोग्ग-पदं
४७४. तओ णो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं जहा - पंड, वातिए, कीवे ॥
१. हव्वि (क, ख ) ।
२. हव्वि (क, ख ) ।
३. माहिंदे (क) ।
४. हव्वि ( क ) ।
५. ० ग्घातिया (ठा० ५।१०१) ।
६. तेण्णं (क); तेणं (क्व )
७. हत्थतालं (ख); अत्थायाणं, हत्थालंबं (वृपा ) ८. दलमाणे (वृ) ।
६. वातिते (क, ख, ग ); वाहिए (वृपा) ।
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५८६
o
४७५. "तओ णो कप्पंति – मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवद्वावेत्तए, संभुजित्तए, संवासित्तए, "तं जहा - पंडए, वातिए, कीवे ॥
o
अवाय णिज्ज-वाय णिज्ज -पदं
४७६. तओ अवायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा - अविणीए, विगतीपडिबद्धे, अविओसवितपाहुडे ।।
४७७. तओ कप्पति वाइत्तए, तं जहा - विणीए, अविगतीपडिबद्धे, विओसवियपाहुडें ।
दुसण्णप्प-सुसण्णप्प-पदं
४७८. तओ दुसण्णप्पा पण्णत्ता, तं जहा दुट्ठे, मूढे, वुगाहि ॥
४७६. तओ सुसण्णप्पा पण्णत्ता, तं जहा - अदुट्टे, अमूढे, अबुग्गाहिते ||
मंडलिय-पव्वय-पदं
४८०. तओ मंडलिया पव्वता पण्णत्ता, तं जहा - माणुसुत्तरे, कुंडलवरे, रुयगवरें ॥ महति महालय-पदं
४८१. तओ महतिमहालया पण्णत्ता, तं जहा - जंबुद्दीवए मंदरे मंदरेसु, सयंभूरमणे समुद्दे समुद्देसु, बंभलोए कप्पे कप्पे ॥
कपठिति-पदं
४८२. तिविधा कप्पठिती पण्णत्ता, तं जहा - सामाइयकप्पठिती, छेदोवट्ठावणियपठिती, णिव्विस माणकप्पठिती ॥
ठाणं
अहवा - तिविहा कप्पट्टितो पण्णत्ता, तं 'जहा - णिविकप्पट्ठिती, जिणकप्पपति ॥
सरीर-पदं
४८३. णेरइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - वेउव्विए, तेयए, कम्मए । ४८४. असुरकुमाराणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - वेउव्विए, तेयए, कम्मए ॥ ४८५. एवं - सव्वेसि देवाणं ' ॥
१. सं० पा० एवं |
२. उट्ठावेत्त ( क, ख ) ।
३. अविओसित • ( क्व) ।
४. वातित्तते (क, ख, ग ) ।
५. विउसिय ० ( क्व ) ।
o
६. रुतगवरे (क, ख, ग ) ।
७. सं० पा० एवं चेव ।
८. ठा० १।१४३-१५१, १६२-१६४ ।
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५८७
तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ४८६. पुढविकाइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, तेयए, कम्मए । ४८७. एवं-वाउकाइयवज्जाणं जाव' चउरिदियाणं ।। पडिणीय-पदं ४८८. गुरुं पडुच्च तओ पडिणीया' पण्णत्ता, तं जहा-आयरियपडिणीए, उवज्झाय
पडिणीए, थेरपडिणीए॥ ४८६. गति पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगपडिणीए, परलोग
पडिणीए, दुहओलोगपडिणीए॥ ४६०. समूहं पडुच्च तओ पडिणोया पण्णत्ता, तं जहा–कुलपडिणीए, गणपडिणीए,
संघपडिणीए॥ ४६१. अणुकंपं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-तवस्सिपडिणीए,
गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए । ४६२. भावं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा–णाणपडिणीए, दंसणपडिणीए,
चरित्तपडिणीए॥ ४६३. सुयं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए,
तदुभयपडिणीए ॥ अंग-पदं ४६४. तओ पितियंगा पण्णत्ता, तं जहा—अट्ठी, अद्विमिजा, केसमंसूरोमणहे। ४६५. तओ माउयंगा पण्णत्ता, तं जहा–मसे, सोणिते, मत्थुलिंगे । मणोरह-पदं ४६६. तिहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा--
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा सुयं अहिज्जिस्सामि ? २. कया णं अहं एकल्लविहारपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि ? एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे' समणे निग्गंथे महाणिज्जरे
महापज्जवसाणे भवति ॥ ४६७. तिहिं ठाणेहिं समणोवासए" महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि ?
१. ठा० १११५३, १५४, १५६-१५६ । २. पडिणीता (क, ख, ग)। ३. पहारेमाणे (वृ); पागडेमाणे (वृपा)।
४. ४ (क)। ५. समणोवासते (क, ख, ग)।
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५८८
ठाणं
२. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकखमाणे विहरिस्सामि एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणोवासए महाणिज्जरे
महापज्जवसाणे भवति ।। पोग्गलपडिघात-पदं ४६८. तिविहे पोग्गलपडिघाते पण्णत्ते, तं जहा-परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प
पडिहण्णिज्जा, लुक्खत्ताए वा पडिहण्णिज्जा', लोगते वा पडिहणिज्जा ।। चक्खु-पदं ४६६. तिविहे चक्खू पण्णत्ते, तं जहा--एगचक्खू, बिचक्खू, तिचक्खू ।
छउमत्थे णं मणुस्से एगचक्खू, देवे बिचक्खू, तहारूवे समणे वा माहणे वा
उप्पण्णणाणदंसणधरे' तिचक्खुत्ति वत्तव्वं सिया ॥ अभिसमागम-पदं ५००. तिविधे अभिसमागमे पण्णत्ते, तं जहा-उड्ढं, अहं, तिरियं ।
जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जति, से णं तप्पढमताए उड्डमभिसमेति, ततो तिरियं, ततो पच्छा
अहे । अहोलोगे णं दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो ! इडिढ-पदं ५०१. तिविधा इड्डी पण्णत्ता, तं जहा-देविड्डी, राइड्डी, गणिड्डी ।। ५०२. देविड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-विमाणिड्डी, विगुव्वणिड्डी', परियारणिड्डी।
अहवा-देविड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-सचित्ता, अचित्ता, मीसिता ॥ ५०३. राइड्डी तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-रण्णो अतियाणिड्डी, रणो णिज्जाणिड्डी,
रण्णो बल-वाहण-कोस-कोट्ठागारिड्डी।। ___ अहवा-राइड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–सचित्ता, अचित्ता, मीसिता॥ ५०४. गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-णाणिड्डी, दंसणिड्डी, चरित्तिड्डी।
अहवा---गणिड्डी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–सचित्ता, अचित्ता, मीसिता ।। गारव-पदं ५०५. तओ गारवा पण्णत्ता, तं जहा- इड्डीगारवे, रसगारवे, सातागारवे ॥
१. पडिहणेज्जा (ख)। २. °धरे से णं (क, ख)।
३. विगुवि ० (क, ग)। ४. रातिड्डी (क, ख, ग)।
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तइयं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
५८६
करण-पदं ५०६. तिविहे करणे पण्णते, तं जहा-धम्मिए करणे, अधम्मिए करणे, धम्मिया
धम्मिए करणे ॥ सुयक्खायधम्म-पदं ५०७. तिविहे भगवता धम्मे पण्णत्ते, तं जहा--सुअधिज्झिते, सुज्झाइते', सुतवस्सिते ।
जया सुअधिज्झितं भवति तदा सुज्झाइतं भवति, जया सुज्झाइतं भवति तदा सुतवस्सितं भवति, से सुअधिज्झिते सुज्झाइते सुतवस्सिते सुयक्खाते णं
भगवता धम्मे पण्णत्ते ॥ जाणु-अजाणु-पदं ५०. तिविधा वावतो पण्णत्ता. तं जहा--जाण, अजाण. वितिगिच्छा। ५०६. "तिविधा अज्झोववज्जणा पण्णता, तं जहा-जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा ॥ ५१०. तिविधा परियावज्जणा पण्णता, तं जहा-जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा ॥ अंत-पदं ५११. तिविधे अंते पण्णत्ते, तं जहा-लोगते, वेयंते, समयंते ।। जिण-पदं ५१२. तओ जिणा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणजिणे, मणपज्जवणाणजिणे,
केवलणाणजिणे ॥ ५१३. तओ केवली पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणकेवली, मणपज्जवणाणकेवली,
केवलणाणकेवली ॥ ५१४. तओ अरहा पण्णत्ता, तं जहा-ओहिणाणअरहा, मणपज्जवणाणअरहा,
केवलणाणअरहा। लेसा-पदं ५१५. तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, णीललेसा,
काउलेसा॥ ५१६. तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–तेउलेसा, पम्हलेसा,
सुक्कलेसा ॥ ५१७. "तओ लेसाओ-दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ, अमणुण्णाओ, अविसुद्धाओ,
१. सुज्झातिते (क, ख, ग)। २. सुतक्खाते (क, ख, ग)। ३. सं० पा०-एवमझोवज्जणा परियावज्जणा। ४. मझोवज्जणा (क, ख, ग) । ५. सं० पा०–एवं दोग्गतिगामिणीओ सोगति
गामिणीओ, संकिलिट्ठाओ असंकि लिट्ठाओ, अमणण्णाओ मणण्णाओ, अविसूद्धाओ विसुद्धाओ, अप्पसत्थाओ पसत्थाओ, सीतलुक्खाओ णि ण्हाओ।
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५६०
ठाणं
अप्पसत्थाओ, सीत-लुक्खाओ पण्णताओ, तं जहा-कण्हलेसा, णीललेसा,
काउलेसा ॥ ५१८. तओ लेसाओ-सोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ, मणुण्णाओ, विसुद्धाओ,
पसत्थाओ, णिधुण्हाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेउलेसा, पम्हलेसा,
सुक्कलेसा ॥ मरण-पदं ५१६. तिविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा–बालमरणे, पंडियमरणे, बालपंडियमरणे ॥ ५२०. बालमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ठितलेस्से, संकिलिट्ठलेस्से, पज्जवजातलेस्से॥ ५२१. पंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ठितलेस्से, असंकिलिट्टलेस्से
पज्जवजातलेस्से ।। ५२२. बालपंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-ठितलेस्से, असंकिलिट्रलेस्से,
अपज्जवजातलेस्से ॥ असद्दहंतस्स पराभव-पदं ५२३. तओ ठाणा अव्ववसितस्स अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए
अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा१. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए' णिग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवंति, णो से परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवइ ।। २. से णं मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइए पंचहि महव्वएहि संकिते 'कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे ° कलुससमावण्णे पंच महव्वताइं णो सहहति' •णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिजंजिय-अभिजंजिय अभिभवंति °, णो से परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिमुंजिय अभिभवति। ३. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणिकाएहि
संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे छ जीवणिकाए णो सहति णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभिजुजिय अभिभवंति, णो से परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिजुंजिय° अभिभवति ।।
१. पव्वतिते (क, ख, ग)। २. सं० पा०--संकिते जाव कलुससमावण्णे।
३. सं० पा०-सद्दहति जाव णो से । ४. सं० पा०-जीवणिकाएहि जाव अभिभवइ ।
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इयं ठाणं (उत्थो उद्देसो)
सद्दतस्स विजय-पदं
५२४. तओ ठाणा ववसियस्स हिताए' 'सुभाए खमाए णिस्सेसाए • आणुगामियत्ताए
o
भवंति तं जहा -
१. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणें णिस्संकिते' णिक्कखिते णिव्वितिगिच्छिते णो भेदसमावणे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सद्दहति पत्तियति रोएति' से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवति, णो तं परिस्सहा अभिजुंजिय-अभिजुंजिय अभिभवंति । २. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे पंचहि महत्वएहि freiकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छिते णो भेदसमावण्णें णो कलुससमावण्णे पंचमहव्वताइं सद्दहति पत्तियति रोएति से परिस्सहे अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवइ, णो तं परिस्सहा अभिजुंजिय-अभिजुंजिय अभिभवंति । ३. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणिकाएहि स्सिंकिते णिक्कंखिते णिव्वितिगिच्छिते णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावण्णे छ जीवणिकाए सद्दहति पत्तियति रोएति से परिस्सहे अभिजुंजिय-अभिजुंजय अभिभवति, णो तं परिस्सहा अभिजुंजिय- अभिजुंजिय अभिभवंति ॥ पुढवी- वलय-पदं
५२५. एगमेगा णं पुढवी तिहिं वलएहिं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता, तं जहा - घणोदधिवलणं, घणवातवलएणं, तणुवायवलएणं ॥
विग्गह-इ-पदं
५२६. णेरइया णं उक्कोसेणं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जंति । एगिदियवज्जं जाव मणियाणं ॥
णक्खत्त-पदं
५२८. अभिईणक्खत्ते' तितारे पण्णत्ते ॥
५२६. एवं सवणे, अस्सिणी, भरणी, मगसिरे, पूसे, जेट्ठा ।
खीणमोह-पदं
५२७. खीणमोहस्स णं अरहओ तओ कम्मंसा जुगवं खिज्जंति, तं जहाणाणावर णिज्जं दंसणावरणिज्जं, अंतराइयं' ||
१. सं० पा०-हिताते जाव अणुगामितत्ताते । २. सं० पा०—णिस्संकिते जाव णो कलुस -
समावणे ।
३. रोतेति ( क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० - णिक्कंखिए जाव परिस्सहे ।
o
५६१
५. सं० पा० - णिस्संकिते जाव परिस्सहे । ६. तिसमतितेणं ( क, ख, ग ) ।
७. ठा० १।१४२-१५१, १५७-१६३ । ८. अंतरातियं (क, ख, ग ) ।
९. अभिती (क, ख, ग ) ।
o
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५६२
तित्थकर - पदं
५३०. धम्माओ णं अरहाओ संती अरहा तिहिं साग रोवमेहिं तिचउब्भागपलिओवमएहिं वीक्तेिहिं समुप्पण्णे ||
५३१. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकरभूमी ॥
५३२. मल्ली णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता' 'अगाराओ अणगारियं • पव्वइए ||
५३३. पासे णं अरहा तिहिं पुरिससएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए ||
५३४. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तिणि सया चउद्दसपुव्वीणं अजिणाणं जिण संकासाणं सव्वक्खरसण्णिवातीणं जिणा [जिणाणं ? ] इव अवितहं वरमाणा उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था ||
५३५. तओ तित्थयरा चक्कवट्टी होत्था, तं जहा संती, कुंथू, अरो ॥
विज्ज विमाण-पदं
५३६. तओ गेविज्ज - विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा - हेट्टिम - गेविज्ज विमाण-पत्थडे, मज्झिम- गेविज्ज - विमाण- पत्थडें, उवरिम-गविज्ज- विमाण- पत्थडे ॥
५३७. हिट्टिम - गेविज्ज- विमाण - पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - हेट्ठिम हेट्ठिम-गे विज्जविमाण- पत्थडे, ट्ठिम-मज्झिम-गविज्ज- विमाण-पत्थडे, हेट्टिम उवरिम गेविज्जविमाण-पत्थडे ||
५३८. मज्झिम- गेविज्ज-विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - मज्झिम - हेट्टिम - विज्ज - विमाण - पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम- गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिमउवरिम - विज्ज-विमाण-पत्थडे ॥
ठाणं
५३६. उवरिम- गेविज्ज - विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - उवरिम- हेट्टिम - उवरिम-मज्झिम- गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम
विज्ज-विमाण-पत्थडे,
उवरिम - विज्ज - विमाण-पत्थडे ||
पावकम्म-पदं
५४०. जीवाणं तिट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति' वा
१. सं० पा० - भवित्ता जाव पव्वतिते ।
२. सं० पा० – एवं पासे वि ।
३. जिणो ( ख ) ।
४. चिणिति ( क ) ।
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तइय ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
५६३ चिणिस्संति वा, तं जहा -- इत्थिणिव्वत्तिते, पुरिसणिव्वत्तिते, णपुंसगणिव्वत्तिते।
एवं-चिण-उवचिण-बंध उदीर-वेद' तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं ५४१. तिपदेसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। ५४२. एवं जावतिगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।।
१. वेदा (ख)। २. तहा (क)। ३. तिपतेसिता (क, ख, ग)।
४. ठा० ११२५४-२५६ । ५. तिगुणा ° (क, ग)।
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चउत्थं ठाणं
पढमो उद्देसो अंतकिरिया-पदं १. चत्तारि अंतकिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. तत्थ खलु इमा पढमा अंतकिरिया-अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहले लहे तीरी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी। तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसज्जाते दीहेणं परियाएण' सिझति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणमंतं करेइ, जहा-से भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी-पढमा अंतकिरिया । २. अहावरा दोच्चा अंतकिरिया--महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए संजमबहुले संवरबहुले 'समांहिबहुले लहे तीरट्ठी° उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी। तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते णिरुद्धण' परियाएणं सिज्झति 'बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाण ° मंतं करेति, जहासे गयसूमाले अणगारे-दोच्चा अंतकिरिया। ३. अहावरा तच्चा अंतकिरिया-महाकम्मपच्चायाते यावि भवति । से ण मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए “संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले लूहे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी । तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति,
१. परितातेणं (क, ग)। २. सं० पा०—संवरबहुले जाव उवहाणवं । ३. विरुद्धेणं (क)। ४. सं० पा०-सिज्झति जाव मंतं ।
५. गतसुकुमाले (ख)। ६. सं० पा०-जहा दोच्चा णवरं दीहेणं परि
तातेणं ।
५६४
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५६५
चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो)
तहप्पगारा वेयणा भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते° दीहेणं परियाएणं सिझति' "बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति ° सव्वदुक्खाणमंतं करेति, जहा–से सणंकुमारे राया चाउरंतचक्कवट्टी--तच्चा अंतकिरिया। ४. अहावरा चउत्था अंतकिरिया-अप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए संजमबहुले' 'संवरबहुले समाहिबहुले लु हे तीरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति, णो तहप्पगारा वेयणा भवति। तहप्पगारे पुरिसजाते णिरुद्धणं परियाएणं सिज्झति 'बुज्झति मुच्चति परिणिन्वाति ° सव्वदुक्खाणमंतं करेति,
जहा -सा मरुदेवा भगवती–चउत्था अंतकिरिया ॥ उण्णत-पणत-पदं २. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा–उण्णते णाममेगे उण्णते, उण्णते णामेगे पणते,
पणते णाममेगे उण्णते, पणते णाममेगे पणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णामेगे उण्णते, "उण्णते नाममेगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते°, पणते णाममेगे पणते ॥ चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उग्णते णामभेगे उण्णतपरिणते, उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा-उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, "उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे
पणतपरिणते ० ।। ४. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तंजहा -उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, "उण्णते णाममेगे
पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णामणेगे पणतरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- उष्णते णाममेगे उण्णतरूवे, "उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे
पण तरूवे ° ॥ ५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतमणे, उण्णते
णाममेगे पणतमणे, पणते णाममेगे उण्णतमणे, पणते णाममेगे पणतमणे॥ ६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उष्णतसंकप्पे,
१. सं० पा०-सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण । ६. सं० पा०-चउभंगो...। २. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वतिते । ७. सं० पा० -तहेव चउभंगो। ३. सं० पा०-संजमबहुले जाव तस्स णं। ८. सं० पा०-उण्णए णाम ।
सं० पा०—सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण ° । ६. सं० पा० -एवं संकप्पे पण्णे परिसजाए ५. सं० पा०-तहेव जाव पणते ।
पडिवक्खो णत्थि ।
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ठाणं
उण्णते णाममेगे पणतसंकप्पे, पणते णाममेगे उण्णतसंकप्पे, पणते णाममेगे
पणतसंकप्पे ।। ७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतपण्ण, उण्णते
णाम मेगे पणतपण्णे, पणते णाममेगे उण्णतपण्णे, पणते णाममेगे पणतपण्णे ॥ ८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतदिट्ठी, उण्णते __णाममेगे पणतदिट्ठी, पणते णाममेगे उण्णतदिट्ठी, पणते णाममेगे पणतदिट्ठी ॥ ६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतसीलाचारे',
उण्णते णाममेगे पणतसीलाचारे, पणते णाममेगे उण्णतसीलाचारे, पणते
णाममेगे पणतसीलाचारे ।। १०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतववहारे, उण्णते
णाममेगे पणतववहारे, पणते णाममेगे उण्णतववहारे, पणते णाममेगे पणत
ववहारे ॥ ११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उण्णते णाममेगे उण्णतपरक्कमे, उण्णते
णाममगे पणतपरक्कमे, पणते णाममेगे उण्णतपरक्कम, पणते णाममेगे पणत
परक्कमे ॥ उज्जु-वंक-पदं १२. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके,
"वंके णाममेगे उज्ज , वंके णाममेगे वंके° ॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जू, "उज्ज णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके ।। चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, वंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, वंके णाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंक
परिणते ॥ १४. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-उज्ज णाममेगे उज्जरूवे, उज्ज णाममेगे
वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेग उज्जुरूवे,
उज्ज णाममेगे वंकरूवे, वंके णाममेगे उज्जुरूवे, वंके णाममेगे वंकरूवे ।। १५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममंगे उज्जुमणे, उज्ज
णाममेगे वंकमणे, वंके णाममेगे उज्जुमणे, वंके णाममेगे वंकमणे ॥
१. ०सीले आयारे (वृपा) । २. सं० पा०-चउभंगो...।
३. सं० पा०-एवं जहा उण्णत..."विभाणि
यव्वो जाव परक्कमे।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) १६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जुसंकप्पे, उज्जू णाममेगे
मग वकसंकप्पे, वंके णाममगे उज्जूसंकप्पे, वंके णाममेगे वंकसंकप्पे ॥ १७. चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्ज णाममेगे उज्जुपण्णे, उज्जू णाम
मेगे वंकपण्णे, वंक णाममेगे उज्जुपण्णे, वंके णाममेगे वंकपण्णे ॥ १८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जुदिट्ठी, उज्जू णाम
मेगे वंकदिट्ठी, वंके णाममेगे उज्जुदिट्ठी, वंके णाममेगे वंकदिट्ठी ॥ १६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--उज्जू णाममेगे उज्जुसीलाचारे, उज्ज
णाममेगे वंकसीलाचारे, वंके णाममेगे उज्जुसीलाचारे, वंके णाममेगे वंकसीलाचारे ॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेमे उज्जुववहारे, उज्ज
णाममेगे वंकववहारे, वंके णाममेगे उज्जुववहारे, वंके णाममेगे वंकववहारे । २१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममंगे उज्जुपरक्कमे, उज्जू
णाममेगे वंकपरक्कम, वंके णाममगे उज्जुपरक्कमे, वंके णाममेगे वंक
परक्कमे° ॥ भासा-पदं २२. पडिमापडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्तए,
तं जहा-जायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणी, पुट्ठस्स वागरणी ।। २३. चत्तारि भासाजाता पण्णत्ता, तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं, बीयं मोसं, तइयं
सच्चमोसं, चउत्थं असच्चमोसं ।। सुद्ध-असुद्ध-पदं २४. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धे, सुद्धे णाम एगे असुद्ध,
असुद्धे णामं एगे सुद्धे, असुद्धे णामं एगे असुद्धे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धे, "सुद्धे
णामं एगे असुद्धे, असुद्धे णाम एगे सुद्धे, असुद्धे णामं एगे असुद्धे ॥ २५. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा- सुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, सुद्धे णामं एगे
असुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरिणए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, • सुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरिणए, असुद्धे णाम एगे असुद्धपरिणए । चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धरूवे, सुद्धे णामं एगे असुद्ध
रूवे, असुद्धे णाम एगे सुद्धरूवे, असुद्धे णामं एगे असुद्धरूवे । १. सं० पा०-चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा।
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५६८
ठाणं एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णाम एगे सुद्धरूवे, सुद्धे
णामं एगे असुद्धरूवे, असुद्धे णामं एगे सुद्धरूवे, असुद्धे णामं एगे असुद्धरूवे ° ॥ २७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धमणे, "सुद्धे णामं
एगे असुद्धमणे, असुद्धे णामं एगे सुद्धमणे, असुद्धे णामं एगे असुद्धमणे ॥ २८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धसंकप्पे, सुद्धे णामं
एगे असुद्धसंकप्पे, असुद्धे णामं एगे सुद्धसंकप्पे, असुद्धे णामं एगे असुद्धसंकप्पे ॥ २६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धपण्णे, सुद्धे णामं एगे
असद्धपण्णे, असद्धे णाम एगे सद्धपण्णे, असद्धे णामं एगे असद्धपण्णे। ३०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुद्धे णामं एगे सुद्धदिट्ठी, सुद्धे णामं एगे
असुद्धदिट्ठी, असुद्धे णाम एगे सुद्धदिट्ठी, असुद्धे णामं एगे असुद्धदिट्ठी ।। ३१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णाम एगे सुद्धसीलाचारे, सुद्धे णामं
एगे असुद्धसीलाचारे, असुद्धे णामं एगे सुद्धसीलाचारे, असुद्धे णामं एगे असुद्ध
सीलाचारे॥ ३२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णाम एगे सुद्धववहारे, सुद्धे णामं
एगे असुद्धववहारे, असुद्धे णामं एगे सुद्धववहारे, असुद्धे णामं एगे असुद्धववहारे।। ३३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्धे णामं एगे सुद्धपरक्कमे, सद्धे णाम
एगे असुद्धपरक्कमे, असुद्धे णामं एगे सुद्धपरक्कमे, असुद्धे णामं एगे असुद्धपरक्कमे° ॥
सुत-पदं
३४. चत्तारि सुता पण्णत्ता, तं जहा–अतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले ॥ सच्च-असच्च-पदं ३५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चे णाम एगे सच्चे, सच्चे णामं एगे
___ असच्चे, असच्चे णाम एगे सच्चे, असच्चे णामं एगे असच्चे ।। ३६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, सच्चे
णामं एगे असच्चपरिणते, असच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, असच्चे णामं एगे
असच्चपरिणते ।। ३७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सच्चे णामं एगे सच्चरूवे, सच्चे णामं
एगे असच्चरूवे, असच्चे णामं एगे सच्चरूवे, असच्चे णामं एगे असच्चरूवे॥
२. सं० पा०-एवं परिणते जाव परक्कमे।
१. सं० पा०-च उभंगो एवं संकप्पे जाव
परक्कमे।
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उत्थं ठाणं ( पढमो उद्देसो)
५६६
३८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- सच्चे णामं एगे सच्चमणे, सच्चे णामं एगे असच्चमणे, असच्चे णामं एगे सच्चमणे, असच्चे णामं एगे असच्चमणे || ३६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- सच्चे णामं एगे सच्चसंकप्पे, सच्चे णामं एगे असच्च संकप्पे, असच्चे णामं एगे सच्चसंकप्पे असच्चे णामं एगे असच्चसं कप्पे ॥
४०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सच्चे णामं एगे सच्चपणे, सच्चे णामं एगे असच्चपणे, असच्चे णामं एगे सच्चपण्णे, असच्चे णामं एगे असच्चपण्णे || ४१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सच्चे णामं एगे सच्चदिट्ठी, सच्चे णामं एगे असच्चदिट्टी, असच्चे णामं एगे सच्चदिट्ठी, असच्चे णामं एगे असच्चदिट्ठी ॥ ४२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सच्चे णामं एगे सच्चसीलाचारे, सच्चे णामं एगे असच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे सच्चसीलाचारे, असच्चे णामं एगे असच्चसीलाचारे ॥
४३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सच्चे णामं एगे सच्चववहारे, सच्चे णामं एगे असच्चववहारे, असच्चे णामं एगे सच्चववहारे, असच्चे णामं एगे असच्चववहारे ||
४४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सच्चे णामं एगे सच्चपरक्कमे, सच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे, असच्चे णामं एगे सच्चपरकक्मे, असच्चे णामं एगे असच्चपरक्कमे ॥
सुचि असुचि-पद
४५. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा - सुई' णामं एगे सुई, सुई णामं एगे असुई, असुईणामं एगे सुई, असुई णामं एगे असुई • ||
o
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुई, "सुई णामं एगे असुई, असुईणामं एगे सुई, असुई णामं एगे असुई ||
४६. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुइपरिणते, सुईणामं एगे असुइपरिणते, असुई णामं एगे सुइपरिणते, असुई णामं एगे असुइपरिणते । एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुइपरिणते, सुई णामं एगे असुइपरिणते, असुई णामं एगे सुइपरिणते, असुई णामं एगे असुइपरिणते ॥
४७. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुइरूवे, सुई णानं एगे असुइरूवे, असुई णामं एगे सुइरूवे, असुई णामं एगे असुइरूवे ।
१. सुती ( क, ख, ग ) ।
२. सं० पा० - चउभंगो ।
३. सं० पा० - चउभंगो एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणितं तव सुतिणावि जाव परक्कमे ।
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ठाणं
५१.
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सुई णामं एगे सुइरूवे, सुई
णामं एगे असुइरूवे, असुई णामं एगे सुइरूवे, असुई णामं एगे असुइरूवे ॥ ४८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णाम एगे सुइमणे, सुई णामं एगे
असुइमणे, असुई णामं एगे सुइमणे, असुई णामं एगे असुइमणे ॥ ४६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णाम एगे सुइसंकप्पे, सुई णामं एगे
असुइसंकप्पे, असुई णाम एगे सुइसंकप्पे, असुई णामं एगे असुइसंकप्पे ॥ ५०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुई णामं एगे सुइपण्णे, सुई णाम एगे
असुइपण्णे, असुई णाम एगे सुइपण्णे, असुई णाम एगे असुइपण्णे ॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुई णामं एगे सुइदिट्ठी, सुई णामं एगे असुइदिट्ठी, असुई णामं एगे सुइदिट्ठी, असुई णामं एगे असुइदिट्ठी ।। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णाम एगे सूइसीलाचारे, सुई णामं एगे असुइसीलाचारे, असुई णामं एगे सुइसीलाचारे, असुई णाम एगे
असुइसीलाचारे । ५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - सुई णामं एगे सुइववहारे, सुई णाम
एगे असुइववहारे, असुई णामं एगे सुइववहारे, असुई णामं एगे असुइववहारे ।। ५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुई णामं एगे सुइपरक्कमे, सुई णामं
एगे असुइपरक्कमे, असुई णामं एगे सुइपरक्कमे, असुई णामं एगे
असुइपरक्कमे° ॥ कोरव-पदं ५५. चत्तारि कोरवा पण्णत्ता, तं जहा-अंबपलबकोरवे, तालपलबकोरवे, वल्लि
पलबकोरवे, मेंढविसाणकोरवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अंबपलबकोरवसमाणे, ताल
पलबकोरवसमाणे, वल्लिपलबकोरवसमाणे, मेंढविसाणकोरवसमाणे॥ भिक्खाग-पदं ५६. चत्तारि घुणा पण्णत्ता, तं जहा–तयक्खाए', छल्लिक्खाए, कट्ठक्खाए,
सारक्खाए। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-तयक्खायसमाणे, 'छल्लिक्खायसमाणे, कट्ठक्खायसमाणे °, सारक्खायसमाणे । १. तयक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स सारक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते । २. सारक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स तयक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते।
१. ०क्खाते (क, ख, ग)।
२. सं० पा०-- तयक्खायसमाणे जाव सारक्खाय
समाणे।
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६०१
चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो)
३. छल्लिक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स कट्रक्खायसमाणे तवे पण्णत्ते।
४. कट्ठक्खायसमाणस्स णं भिक्खागस्स छल्लिक्खायसमाणे तवे पण्णते ॥ तणवणस्सइ-पवं ५७. चउविवहा तणवणस्सतिकाइया' पण्णत्ता, तं जहा- अग्गबीया, मूलबीया,
पोरवीया, खंधबीया ॥ अहुणोववण्ण-णेरइय-पदं ५८. चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे णेरइए णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्व
मागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए--- १. अहुणोववण्णे णेरइए णिरयलोगंसि समुन्भूयं' वेयणं वेयमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। २. अहुणोववण्णे णेरइए णिरयलोगंसि णिरयपालेहिं भुज्जो-भुज्जो अहिट्ठिज्जमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। ३. अहुणोववण्णे णेरइए णिरयवेयणिज्जसि कम्मसि अक्खीणंसि अवेइयंसि' अणिज्जिण्णंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। ४. "अहुणोववण्णे णेरइए णिरयाउअंसि' कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छेज्जा माणुसं लोग हव्वमागच्छित्तए °, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। इच्चेतेहिं चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे णेरइए' 'णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं
लोग हव्वमागच्छित्तए °, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। संघाडी-पदं ५६. कप्पंति णिग्गंथीणं चत्तारि संघाडीओ धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा
एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थारा, एगं चउहत्थवित्थारं ॥ झाण-पदं ६०. चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा-अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के
झाणे॥
१. ° कातिता (क, ख, ग)। २. सम्मुहभूयां, समहन्भूयं (वृपा)। ३. अवेतितंसि (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-एवं णिरयाउअंसि
अक्खीणंसि जाव णो चेव। ५. णिरतिताउ° (क, ग)। ६. सं० पा०–णेरतिते जाव णो चेव ।
कम्मसि
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६०२
६१. अट्ट झाणे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा
१. अमणुण्ण' - संपओग-संपत्ते, तस्स विप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । २. मणुण्ण - संपओग-संपत्ते, तस्स अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । ३. आतंक - संपओग - संपउत्ते, तस्स विप्पओग-सति समण्णागते यावि भवति । ४. परिजुसित - काम- ' भोग-संपओग- संपउत्ते" तस्स अविप्पओग-सति - समण्णागते यावि भवति ॥
६२. अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा- कंदणता, सोयणता, तिप्पणता, परिदेवणता ॥
६३. रोद्दे झाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - हिंसाणुबंधि, मोसाणुबंधि, तेणाणुबंधि, सारक्खणाणुबंधि ।।
६४. रुद्दस्स णं झाणस्स चत्तारि लवखणा पण्णत्ता, तं जहा -- ओसण्णदोसे, बहुदोसे, अण्णा दोसे', आमरणंतदोसे ||
ठाण
६५. धम्मे झाणे चउविहे चउप्पडोयारे' पण्णत्ते, तं जहा आणाविजए", अवायविजए, विवागविजए, ठाणविजए ||
६६. धम्मस्स णं भाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा -- आणारुई, सिगरई सुत्तरुई, ओगाढरुई ||
६७. धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंवणा पण्णत्ता, तं जहा -- वायणा, पडिपुच्छणा, परिट्टणा, अणुप्पेहा ॥
६८. धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- एगाणुप्पेहा, अणिच्चाणुप्पेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा ॥
-
६६. सुक्के झाणे चउब्विहे चउप्पडोआरे' पण्णत्ते, तं जहा पुहत्तवितक्के सवियारी, गत्तवितक्के अवियारी, सुहुमकिरिए अणियट्टी, समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाती ॥
७०. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा - अव्वहे, असम्मोहे, विवेगे, विउस्सग्गे ।।
१. असमणुन्न ० (क, ग, वृपा) ।
२. परिभूसिय (क, ग, वृपा) ।
३. भोगसंपत्ते (वृ); भोगसंपओगसंपउत्ते
(वृपा) ।
४. सोणता (क, ख, ग ) ।
५. नाणाविहदोसे ( वृपा ) ।
६. चउप्पयावयारं (वृ); चउप्पडोयारं (वृपा) ।
७. ० विजते ( क, ख, ग ) ।
८. उप्पओआरे ( ग ) ।
६. पुहुप्त ( ख ) । १०. ० किरिते ( क, ख, ग ) ।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) ७१. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा--खंती, मुत्ती,
'अज्जवे, मद्दवे" । ७२. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-अणंत
वत्तियाणुप्पेहा, विप्परिणामाणुप्पेहा, असुभाणुप्पेहा, अवायाणुप्पेहा ।। देवाणं पदमेरा-पदं ७३. चउविवहा देवाण ठिती पण्णत्ता, तं जहा–देवे णाममेगे, देवसिणाते णाममेगे,
देवपुरोहिते णाममेगे, देवपज्जलणे णाममेगे । संवास-पदं ७४. चउविहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छेज्जा,
देवे णाममेगे छवीए' सद्धि संवासं गच्छेज्जा, छवी णाममेगे देवीए सद्धि संवासं
गच्छेज्जा, छवी णाममेगे छवीए सद्धि संवासं गच्छेज्जा ॥ कसाय-पदं ७५. चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभ
कसाए । एवं–णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ।। ७६. चउपतिट्ठिते कोहे पण्णत्ते, तं जहा-आतपतिट्टिते, परपतिट्टिते, तदुभयपतिहिते,
अपतिद्विते । एवं णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ७७. ५'चउपतिट्टिते माणे पण्णत्ते, तं जहा-आतपतिट्ठिते, परपतिट्टिते, तदुभय
पतिट्टिते, अपतिट्ठिते । एवं-णेरयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ७८. चउपतिट्ठिता माया पण्णत्ता, तं जहा-आतपतिट्ठिता, परपतिद्विता, तदुभय
पतिद्विता, अपतिद्विता । एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । ७६. चउपतिट्ठिते लोभे पण्णत्ते, तं जहा-आतपतिट्टिते, परपतिट्ठिते, तदुभयपतिट्ठिते,
अपतिटिते । एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं० ॥ ८०. चउहिं ठाणेहिं कोधुप्पत्ती सिता, तं जहा-खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा', सरीरं
पडुच्चा, उहि पडुच्चा । एवं--णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।।
१. महवे अज्जवे (क, ख, ग); औपपातिके ५. सं० पा०-एवं जाव लोभे वेमाणियाणं ।
(सूत्र ४३) 'अज्जवे मद्दवे' एवं पाठो विद्यते। ६,७. ठा० १११४२-१६३ । अत्रापि इत्थमेव युज्यते। लिपिदोषेण शब्द- ८. ठा० १११४२-१६३ । विपर्ययो जात इति प्रतीयते।
६. पडुच्च (क, ख, ग)। २. छब्वीते (क, ख, ग)।
१०. ठा० १११४२-१६३ । ३,४. ठा० १४१४२-१६३ ।
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ठीण
८१. "चउहि ठाणेहि माणुप्पत्ती सिता, तं जहा-खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, सरीरं
पडुच्चा, उवहिं पडुच्चा । एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । ८२. चउहि ठाणेहिं मायुप्पत्ती सिता, तं जहा–खेत्तं पडुच्चा, वत्थं पडुच्चा, सरीरं
पडुच्चा, उवहिं पडुच्चा । एवं–णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं॥ ८३. चउहि ठाणेहि लोभुप्पत्ती सिता, तं जहा–खेत्तं पडुच्चा, वत्थं पडुच्चा, सरीरं
पडुच्चा, उवहिं पडुच्चा । एवं-णे रइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥ चउबिधे कोहे पण्णत्ते, तं जहा-अणंताणुबंधी कोहे, अपच्चक्खाणकसाए" कोहे,
पच्चक्खाणावरणे कोहे, संजलणे कोहे । एवं-णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ ८५. "चउव्विधे माणे पण्णत्ते, तं जहा-अणंताणुबंधी माणे, अपच्चक्खाणकसाए
माणे, पच्चक्खाणावरणे माणे, संजलणे माणे । एवं-णेरइयाणं जाव
वेमाणियाणं ।। ८६. चउव्विधा माया पण्णत्ता, तं जहा-अणंताणुबंधी माया, अपच्चक्खाणकसाया
माया, पच्चक्खाणावरणा माया, संजलणा माया । एवं --णेरइयाणं जाव'
वेमाणियाणं ।। ८७. चउविधे लोभे पण्णत्ते, तं जहा-अणताणुबंधी लोभे, अपच्चक्खाणकसाए
लोभे, पच्चक्खाणावरणे लोभे, संजलणे लोभे । एवं-णेरइयाणं जाव"
वेमाणियाणं ॥ ८८. चउव्विहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते,
उवसंते, अणुवसंते । एवं–णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं। ८६. चउविहे माणे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते,
उवसंते, अणुवसंते । एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ।।। ६०. चउव्विहा माया पण्णत्ता, तं जहा--आभोगणिव्वत्तिता, अणाभोगणिव्वत्तिता,
उवसंता, अणुवसंता । एवं-णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं । ११. चउव्विहे लोभे पण्णत्ते, तं जहा-आभोगणिव्वत्तिते, अणाभोगणिव्वत्तिते,
उवसंते, अणुवसंते । एवं-णेरइयाणं जाव" वेमाणियाणं ।। कम्मपगडि-पदं ६२. जीवा णं चउहि ठाणेहि अट्ठकम्मपगडीओ चिणिंसु, तं जहा-कोहेणं, माणेणं,
मायाए, लोभेणं । एवं जाव वेमाणियाणं ।।
१. सं० पा०–एवं जाव लोभे वेमाणियाणं। २,३,४. ठा० १।१४२-१५३ । ५. अपच्चक्खाण (ख)। ६. ठा० १११४२-१६३ ।। ७. सं० पा०-~-एवं जाव लोभे वेमाणियाणं।
८. ठा० १११४२-१६३ । ६,१०,११. ठा० १११४२-१६३ । १२. सं० पा०--एवं जाव लोभे वेमाणियाणं । १३,१४,१५. ठा० १११४२-१६३ । १६. ठा० १११४१-१६३ ।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो)
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६३. "जीवा णं चउहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा–कोहेणं, माणेणं,
मायाए, लोभेणं । एवं जाव' वेमाणियाणं ।। १४. जीवा णं चउहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा-कोहेणं,
माणेणं, मायाए, लोभेणं । एवं जाव' वेमाणियाणं ॥ ६५. एवं-उवचिणिसु उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरिंसु
उदीरिति उदीरिस्संति, वेदेंसु वेदेति वेदिस्संति, णिज्जरेंसु णिज्जरेंति
णिज्जरिस्संति जाव वेमाणियाण' । पडिमा-पदं ६६. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समाहिपडिमा, उवहाणपडिमा, विवेग
पडिमा, विउस्सग्गपडिमा ।। ६७. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा ।। १८. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खुड्डिया मोयपडिमा, महल्लिया मोय
पडिमा, जवमझा, वइरमज्झा ॥ अस्थिकाय-पदं ६६. चत्तारि अत्थिकाया अजीवकाया पण्णत्ता, तं जहा--धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थि
काए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । १००. चत्तारि अत्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थि
काए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए॥ आम-पक्क-पदं १०१. चत्तारि फला पण्णता, तं जहा-आमे णाममेगे आममहुरे, आमे णाममेगे
पक्कमहुरे, पक्के णाममेगे आममहुरे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आमे णाममेगे आममहुरफलसमाणे, आमे णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे, पक्के णाममेगे आममहुरफलसमाणे,
पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे ।। सच्च-मोस-पदं १०२. चउविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा–काउज्जुयया, भासुज्जुयया, भावुज्जुयया,
अविसंवायणाजोगे।
१. सं० पा०--एवं चिणंति एस दडओ एवं" ३,४. ठा० १११४१-१६३ । एवमेतेणं तिण्णि दंडगा ।
५. वेमाणियाणं एवमेक्कक्के पदे तिणि दंडगा २. ठा० १११४१-१६३ ।
भाणियब्वा जाव णिज्जरिस्संति (क,ख,ग ) ।
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ठाणं
१०३. चउविवहे मोसे पण्णत्ते, तं जहा-कायअणुज्जुयया, भासअणुज्जुयया, भाव
अणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे ।। पणिधाण-पदं १०४. चउव्विहे पणिधाणे,पण्णत्ते, तं जहा-मणपणिधाणे, वइपणिधाणे, कायपणिधाणे,
उवकरणपणिधाणे । एवं–णेरइयाणं पंचिंदियाणं जाव' वेमाणियाणं ॥ १०५. चउबिहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा—मणसुप्पणिहाणे', 'वइसुप्पणिहाणे,
कायसुप्पणिहाणे °, उवगरणसुप्पणिहाणे । एवं-संजयमणुस्साणवि ॥ १०६. च उबिहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणदुप्पणिहाणे', 'वइदुप्पणिहाणे,
कायदुप्पणिहाणे °, उवकरणदुप्पणिहाणे । एवं-पंचिंदियाणं जाव' वेमा
णियाणं ॥ आवात-संवास-पदं १०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--आवातभद्दए' णाममेगे णो संवासभद्दए,
संवासभद्दए णाममेगे णो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि,
एगे णो आवातभद्दए णो संवास भद्दए । वज्ज-पदं १०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वज्जं पासति णो
परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं पासति
परस्सवि, एगो णो अप्पणो वज्जं पासति णो परस्स ॥ १०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अप्पणो णाममेगे वज्जं उदीरेइ णो
परस्स, परस्स णाममेगे वज्ज उदीरेइ णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं उदीरेइ
परस्सवि, एगे णो अप्पणो वज्ज उदीरेइ णो परस्स ।। ११०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वज्ज उवसामेति णो
परस्स, परस्स णामगे वज्ज उवसामेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्ज
उवसामेति परस्सवि, एगे णो अप्पणो वज्ज उवसामेति णो परस्स ।। लोगोपचार-विणय-पदं १११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अब्भुटेति णाममेगे णो अब्भुट्ठावेति,
१. ठा० १११४२-१५१, १६०-१६३ । २. सं० पा०-मणसुप्पणिहाणे जाव उवगरण °। ३. 'एवं' शब्दस्य स्थाने यदि 'एयं' तथा 'अवि'
शब्दस्य स्थाने 'एव' स्यात्, यथा---'एयं संजयमणुस्साणमेव' तदा अर्थदृष्ट्या रचना
दृष्ट्या च अधिक संगच्छते । ४. सं० पा०-मणदुप्पणिहाणे जाव उवक रण । ५. ठा० १११४१-१५१, १६०-१६३ । ६ ० भद्दते (क, ख, ग)।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो)
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अब्भुट्ठावेति णाममेगे णो अब्भुट्ठति, एगे अब्भुटेति वि अब्भुट्टावेति वि, एगे णो
अब्भुटेति णो अब्भुट्टावेति ॥ ११२. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--वंदति णाममेगे णो वंदावेति, वंदावेति
णाममगे णो वंदति, एगे वंदति वि वंदावेति वि, एगे णो वंदति णो वंदावेति ।। ११३. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सक्कारेइ णाममेगे णो सक्कारावेइ,
सक्कारावेइ णाममेगे णो सक्कारेइ, एगे सक्कारेइ वि सक्कारावेइ वि, एगे णो
सक्कारेइ णो सक्कारावेइ॥ ११४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--सम्माणेति णाममेगे णो सम्माणावेति,
सम्माणावेति णाममेगे णो सम्माणेति, एगे सम्माणेति वि सम्माणावेति वि,
एगे णो सम्माणेति णो सम्माणावेति ।। ११५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--पूएइ णाममेगे णो पूयावेति, पूयावेति
णाममेगे णो पूएइ, एगे पूएइ वि पूयावेति वि, एगे णो पूएइ णो पूयावेति ।। सज्झाय-पदं ११६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--वाएइ णाममेगे णो वायावेइ, वायावेइ
णाममेगे णो वाएइ, एगे वाएइ वि वायावेइ वि, एगे णो वाएइ णो वायावेइ ।। ११७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पडिच्छति णाममेगे णो पडिच्छावेति,
पडिच्छावेति णाममेगे णो पडिच्छति, एगे पडिच्छति वि पडिच्छावेति वि, एगे
णो पडिच्छति णो पडिच्छावेति ॥ ११८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—पुच्छइ णाममेगे णो पुच्छावेइ
पूच्छावेइ णाममेगे णो पुच्छइ, एगे पुच्छइ वि पुच्छावेइ वि, एगे णो पुच्छइ णो पुच्छावेइ॥ चनारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वागरेति णाममेगे णो वागरावेति. वागरावेति णाममेगे णो वागरेति, एगे वागरेति वि वागरावेति वि, एगे णो
वागरेति णो वागरावेति ॥ १२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुत्तधरे णाममेगे णो अत्थधरे, अत्थधरे
णाममेगे णो सुत्तधरे, एगे सुत्तधरे वि अत्थधरे वि, एगे णो सूत्तधरे णो
अत्थधरे ॥ लोगपाल-पदं १२१. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तं जहा--
सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे ।
वाएइ पडिच्छति पुच्छइ वागरेति ।
१. सं० पा०---एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेड। २. सं० पा०--एवं सक्कारेइ सम्माणेति पूएइ
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ठाणं
१२२. एवं - बलिस्सवि - सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे । धरणस्स - कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले । भूयाणंदस्स - कालपाले, कोलपाले, संखवाले, सेलपाले । वेणुदेवस- चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे । वेणुदालिस्स' - चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे । हरिकंतस्स - पभे, सुप्पभे, पभकंते, सुप्रभते । हरिस्सहस्स– पभे, सुप्पभे, सुप्पभकंते, पभकंते । अग्गिसिहस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउकते, तेउप्पभे । अग्गिमाणवस्स - तेऊ, तेउसिहे, ते उप्पभे, ते कंते । पुण्णस्स - 'रूवे, रूवंसे", "रूवकंते, रूवप्पभे । विसिट्ठस्स -रूवे, रूवंसे, रूवप्पभे, रूवकंते । जलकंतस्स - जले, जलरते, जलकंते, जलप्पभे । जलप्पहस्स – जले, जलरते, जलप्पहे, जलकंते । अमितगतिस्स - तुरियगती, खिप्पगती, सोहगती, सीहविक्कमगती । अमितवाहणस्स - तुरियगती, खिष्पगती, सोहविक्कमगती, सीहगती । वेलंबस्स -- काले, महाकाले, अंजणे, रिट्ठे । पभंजणस्स - काले, महाकाले, रिट्ठे, अंजणे । घोसस्स - आवत्ते, वियावत्ते, गंदियावत्ते, महाणंदियावत्ते । महाघोसस्स - आवत्ते, वियावत्ते, महाणंदियावत्ते, गंदियावत्ते । सक्कस्स - सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे । ईसाणस्स - सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे । एवं - एगंतरिता जाव' अच्चुतस्स ॥
देव-पदं
१२३. चउव्विहा वाउकुमारा पण्णत्ता, तं जहा - काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे | १२४. चउव्विहा देवा पण्णत्ता, तं जहा - भवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया,
विमाणवासी ||
पमाण-पदं
१२५. चउविहे पमाणे पण्णत्ते, तं जहा -- दव्वप्यमाणे, खेत्तप्पमाणे, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे ॥
महत्तरिया-पदं
१२६. चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रूया, रूयंसा, सुरूवा, रूयावती ॥
१२७. चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- चित्ता, चित्तकणगा, सतेरा, सोतामणी ॥
१. ० दालस्स ( ख ) ।
२. रूप्पे रूप्प से (क, ग ); रूते रूतंसे ( ख ) । ३. रूतकं रूप्पभे ( क, ख, ग ); रूदकं ते
रूदपभे ( क्व ) ।
४. विसस्स ( ख ) ।
५. ठा० २१३८१-३८४ ।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो) देव-ठिति-पदं १२८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो मज्झिमपरिसाए देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं
ठिती पण्णत्ता॥ १२६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि पलिओवमाई
ठिती पण्णत्ता॥ संसार-पदं १३०. चउव्विहे ससारे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे,
भावसंसारे ॥ दिटिठवाय-पदं १३१. चउव्विहे दिट्ठिवाए पण्णत्ते, तं जहा–परिकम्म', सुत्ताई, पुव्वगए, अणुजोगे । पायच्छित्त-पदं १३२. चउव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा--णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते,
चरित्तपायच्छित्ते, वियत्तकिच्चपायच्छित्ते । १३३. चउठिवहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा–पडिसेवणापायच्छित्ते, संजोयणा
पायच्छित्ते, आरोवणापायच्छित्ते, पलिउंचणापायच्छित्ते ।। काल-पदं १३४. चउव्विहे काले पण्णत्ते, तं जहा-पमाणकाले, अहाउयनिव्वत्तिकाले,
मरणकाले, अद्धाकाले ॥ पोग्गल-परिणाम-पदं १३५. चउविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा–वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे,
रसपरिणामे, फासपरिणामे ।। चाउज्जाम-पदं १३६. भरहेरवएसु णं वासेसु पुरिम-पच्छिम-वज्जा मज्झिमगा बावीसं अरहंता
भगवंतो चाउज्जामं धम्म पण्णवयंति, तं जहा-सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ बेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं,
सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं ।।। १३७. सव्वेसु णं महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्म पण्णवयंति, तं
जहा--सव्वाओ पाणातिवायाओ वेरमण', 'सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं ।।
३. सं० पा०-वेरमणं जाव सव्वातो।
१ परिक्कम (क, ग)। २. चियत्त (वृपा)।
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ठाणं
दुग्गति-सुगति-पदं १३८. चत्तारि दुग्गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-णेरइयदुग्गती, तिरिक्खजोणियदुग्गती,
मणुस्सदुग्गती, देवदुग्गती ॥ १३६. चत्तारि सोग्गईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सिद्धसोग्गती, देवसोग्गती, मणुय
सोग्गती, सुकुलपच्चायाती ॥ १४०. चत्तारि दुग्गता पण्णत्ता, तं जहा–णेरइयदुग्गता, तिरिक्खजोणियदुग्गता',
मणुयदुग्गता', देवदुग्गता ॥ १४१. चत्तारि सुग्गता पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धसुग्गता', 'देवसुग्गता, मणुयसुग्गता,
सुकुलपच्चायाया ॥ कम्मंस-पदं १४२. पढमसमयजिणस्स णं चत्तारि कम्मंसा खीणा भवंति, तं जहा-णाणावरणिज्ज,
दंसणावरणिज्जं, मोहणिज्ज, अंतराइयं ।। १४३. उप्पण्णणाणदंसणधरे णं अरहा जिणे केवली चत्तारि कम्मंसे वेदेति, तं जहा
वेदणिज्ज, आउयं, णाम, गोतं ॥ १४४. पढमसमयसिद्धस्स णं चत्तारि कम्मंसा जुगवं खिज्जति, तं जहा-वेयणिज्ज,
आउयं, णामं, गोतं ॥ हासुप्पत्ति-पदं १४५. चउहि ठाणेहिं हासुप्पत्ती सिया, तं जहा—पासेत्ता, भासेत्ता, सुणेत्ता,
संभरेत्ता ॥ अंतर-पदं १४६. चउविहे अंतरे पण्णते, तं जहा-कटुंतरे, पम्हंतरे, लोहंतरे, पत्थरंतरे ।
एवामेव इत्थिए वा पुरिसस्स वा चउविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा--कटुंतर
समाणे, पम्हंतरसमाणे, लोहंतरसमाणे, पत्थरंतरसमाणे ।। भयग-पदं १४७. चत्तारि भयगा पण्णत्ता, तं जहा-दिवसभयए', जत्ताभयए, उच्चत्तभयए,
कब्बालभयए।
१. तिरियदुग्गता (क)। २. मणुस्स ° (ख)। ३. सं० पा.-सिद्धसुग्गता जाव सुकुल ° ।
४. अंतरातितं (क, ख, ग)। ५. °भयते (क, ख, ग)। ६. कव्वाडभयते (ख) ।
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चउत्थं ठाणं (पढमो उद्देसो)
पडिसेवि-पदं
१४८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-संपागडपडिसेवी णामेगे णो पच्छण्ण
पडिसेवो, पच्छण्णपडिसेवी णामेगे णो संपागडपडिसेवी, एगे संपागडपडिसेवी
वि पच्छण्णपडिसेवी वि, एगे णो संपागडपडिसेवी' णो पच्छण्णपडिसेवी ।। अग्गमहिसी-पदं १४६. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि
___ अग्ग महिसीओ पण्णताओ, तं जहा–कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा ॥ १५०. एवं-जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स ।। १५१. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि
अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ, तं जहा -मितगा, सुभद्दा, विज्जुता, असणी ॥ १५२. एवं-जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स ।। १५३. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररणो कालवालस्स महारण्णो चत्तारि
अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा ।। १५४. एवं जाव' संखवालस्स ॥ १५५. भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो कालवालस्स महारण्णो चत्तारि
अग्गमहिसीओ पण्णताओ, तं जहा-सुणंदा, सुभद्दा, सुजाता, सुमणा ॥ १५६. एवं जाव सेलवालस्स ।। १५७. जहा धरणस्स एवं सव्वेसि दाहिणिदलोगपालाणं जाव' घोसस्स ।। १५८. जहा भूताणंदस्स एवं जाव' महाघोसस्स लोगपालाणं ॥ १५६. कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो चत्तारि अग्गमहिसोओ पण्णत्ताओ,
तं जहा - कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा ।। १६०. एवं - महाकालस्सवि॥ १६१. सुरुवस्स णं भूतिदस्स भूतरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा ...
रूववती, बहुरूवा, सुरूवा, सुभगा ।। १६२. एवं-पडिरूवस्सवि ॥ १६३. पुण्णभद्दस्स णं जक्खिदस्स जक्खरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा --पुण्णा, बहुपुण्णिता, उत्तमा, तारगा। १६४. एवं-माणिभद्दस्सवि ॥
१. °पडिसेवीवि (क, ग)। २. पडिसेवीवि (क, ग)।
३,४,५,६. ठा० ४११२२ । ७. °पुत्तिता (ख)।
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ठाणं १६५. भीमस्स णं रक्खसिंदस्स रक्खसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा–पउमा, वसुमती, कणगा, रतणप्पभा । १६६. एवं-महाभीमसस्सवि ॥ १६७. किण्णरस्स णं किण्णरिदस्स [किण्णररण्णो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-वडेंसा, केतुमतो, रतिसेणा, रतिप्पभा॥ १६८. एवं-किंपुरिसस्सवि ॥ १६६. सप्पुरिसस्स णं किंपुरिसिंदस्स [किंपुरिसरण्णो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-रोहिणी, णवमिता, हिरी, पुप्फवती ॥ १७०. एवं -महापुरिसस्सवि ॥ १७१. अतिकायस्स णं महोरगिंदस्स [महोरगरण्णो ?] चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा---भुयगा, भुयगावती, महाकच्छा, फुडा ॥ १७२. एवं -महाकायस्सवि।। १७३. गीतरतिस्स णं गंधव्विदस्स [ गंधव्वरण्णो ? ] चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सती ।। १७४. एवं-गीयजसस्सवि।।। १७५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णा चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा-चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा ॥ १७६. एवं -सूरस्सवि, णवरं-सूरप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा॥ १७७. इंगालस्स णं महागहस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया,
वेजयंती, जयंती, अपराजिया। १७८. एवं-सव्वेसि महग्गहाणं जाव' भावके उस्स ॥ १७६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-रोहिणी, मयणा, चित्ता, सामा॥ १८०. एवं जाव' वेसमणस्स ।। १८१. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ, तं जहा-पुढवी, राती, रयणी, विज्जू ।। १८२. एवं जाव' वरुणस्स ।। विगति-पदं १८३. चत्तारि गोरसविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खीरं, दहि, सप्पि, णवणीतं ।। १८४. चत्तारि सिणेहविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तेल्लं, घयं, वसा, णवणीतं ।। १८५. चत्तारि महाविगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा---महुं, मंसं, मज्ज, णवणीतं ॥ १. ठा० २।३२५ ।
३. ठा० ४।१२२ । २. सोमा (क्व)।
४. ठा० ४११२२।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
गुत्त-अगुत्त-पदं १८६. चत्तारि कूडागारा पण्णत्ता, तं जहा—गुत्ते णाम एगे गुत्ते, गुत्ते णामं एगे अगुत्ते,
अगुत्ते णाम एगे गुत्ते, अगुत्ते णामं एगे अगुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गुत्ते णामं एगे गुत्ते, गुत्ते णाम
एगे अगुत्ते, अगुत्ते णामं एगे गुत्ते, अगुत्ते णाम एगे अगुत्ते ॥ १८७.
चत्तारि कूडागारसालाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-गुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, गुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा॥ एवामेव चत्तारित्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—गुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, गुत्ता णाममेगा अगुत्ति दिया, अगुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा
अगुत्तिदिया ॥ ओगाहणा-पदं १८८. चउविहा ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-दवोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालो
गाहणा, भावोगाहणा॥ पण्णत्ति-पदं १८९. चत्तारि पण्णत्तीओ अंगबाहिरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा---चंदपण्णत्ती, सूर
पण्णत्ती, जंबुद्दीवपण्णती, दीवसागरपण्णत्ती ॥
बीओ उद्देसो पडिसलीण-अपडिसंलीण-पदं १६०. चत्तारि पडिलीणा पण्णत्ता, त जहा–कोहपडिसलीणे', माणपडिसंलीणे,
मायापडिसंलीणे, लोभपडिसलीणे ।. १६१. चत्तारि अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा -कोहअपडिसंलोणे', 'माणअपडि
संलीणे, मायाअपडिसंलीणे , लोभअपडिसंलीणे ॥ १९२. चत्तारि पडिसंलीणा पण्णता, तं जहा–मणपडिसंलोणे, वतिपडिसलीणे, काय
पडिसंलीणे, इंदियपडिसंलीणे ।। १९३. चत्तारि अपडिसलीणा पण्णत्ता, तं जहा-मणअपडिसंलीणे', 'वतिअपडिसंलीणे.
कायअपडिलीणे, इंदियअपडिसंलीणे ।।
३. सं० पा०---मणअपडिसंलीणे जाव इंदिय ।
१. कोव ° (क)। २. सं० पा०-कोहअपडिसंलीणे जाव लोभ ।
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६१४
दी - अदीण-पदं
१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- दीणे णाममेगे दीणे, दीणे णाममेगे अदी, अदीणे णाममेगे दीणे, अदीणे णाममेगे अदीणे ||
१९५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा दीणे णाममेगे दीणपरिणते, दी णाममेगे अदीणपरिणते, अदीणे णाममेगे दीणपरिणते, अदीणे णाममेगे अदीणपरिणते ||
१६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- दीणे णाममेगे दीणरूवे, दीणे णाममेगे अदीरू, अदी णाममेगे दीणरूवे, अदीणे णाममेगे अदीणरूवे || १६७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- दीणे णाममेगे दीणमणे, दीणे णाममेगे अदीणमणे, अदीणे णाममेगे दीणमणे, अदीणे णाममेगे अदीणमणे ॥ १६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणसंकप्पे, दीणे णाममेगे अदीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे दीणसंकप्पे, अदीणे णाममेगे अदीणसंकप्पे | १६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणपणे, दीणे णाममेगे अदीपणे, अदी णाममेगे दीणपण्णे, अदीणे णाममेगे अदीणपणे ॥
२०० चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणदिट्ठी, दीणे णाममेगे अदीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे दीणदिट्ठी, अदीणे णाममेगे अदीणदिट्ठी || २०१ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणसीलाचारे, दीणे णाममेगे अदोणसीलाचारे, अदीणे णाममेगे दीणसीलाचारे, अदीणे णाममेगे अदीणसीलाचारे ||
२०२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणववहारे, दीणे णाममेगे अदीणववहारे, अदीणे णाममेगे दीणववहारे, अदीणे णाममेगे अदीणववहारे ॥
२०३ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणपरक्कमे, दीणे णाममेगे अदीणपरक्कम, अदीणे णाममेगे दीणपरक्कमे, अदीणे णाममेगे अदीण
परक्कमे° ॥
२०४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणवित्ती, दीणे णाममेगे अदी वित्ती, अदीणे णाममेगे दोणवित्ती, अदीणे णाममेगे अदीणवित्ती ॥ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणजाती, दी णामगे अदी जाती, अदीणे णाममेगे दीणजाती, अदीणे णाममेगे अदीणजाती ॥
२०५.
ठाण
१. सं० पा० एवं दीणमणे दीणसंकप्पे दीणपुणे दीणदिट्ठी दीणसीलाचारे दीणववहारे । २. सं० पा० - एवं सव्वेसि चउभंगो भाणियव्वो ।
३. सं० पा० - एवं दीणोभासी ।
दीणजाती दीणभासी
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उत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
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२०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणभासी, दीणे णाममेगे अदी भासी, अदीणे णाममेगे दीणभासी, अदीणे णाममेगे अदीणभासी || २०७ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणोभासी, दीणे णाममेगे अदीणोभासी, अदीणे णाममेगे दीणोभासी, अदीणे णाममेगे अदणोभासी ॥
o
२०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- दीणे णाममेगे दीणसेवी, दीणे णामhi अदी सेवी, अदीणे णाममेगे दीणसेवी, अदीणे णाममेगे अदीणसेवी ॥ २०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - दीणे णाममेगे दीणपरियार, दी णाममेगे अदीणपरियाए, अदीणे णाममेगे दोणपरियाए, अदीणे णाममेगे अदी परियाए ||
२१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- दीणे णाममेगे दीणपरियाले, दी णाममेगे अदीणपरियाले, अदीणे णाममेगे दीणपरियाले, अदीणे णाममेगे परिया ||
अज्ज अणज्ज -पदं
२११ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- अज्जे णाममेगे अज्जे, अज्जे णाममेगे अज्जे, अणजे नाममेगे अज्जे, अणज्जे णाममेगे अणज्जे ||
२१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- अज्जे णाममेगे अज्जपरिणए, अज्जे णाममेगे अणज्जपरिणए, अणज्जे णाममेगे अज्जपरिणए, अणज्जे नाममेगे अज्जपरिणए ||
२१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा --अज्जे णाममेगे अज्जरूवे, अज्जे णाममेगे अणज्जरूवे, अणज्जे णाममेगे अज्जरूवे, अणज्जे नाममेगे अणज्जरूवे ॥
२१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- अज्जे णाममेगे अज्जमणे, अज्जे नाममेगे अणज्जमणे, अणज्जे णाममेगे अज्जमणे, ग्रणज्जे णाममेगे अणज्जमणे || २१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अज्जे णाममेगे अज्जसंकप्पे, अज्जे णाम अज्जसं कप्पे, अणज्जे णाममेगे अज्जसंकप्पे, अणज्जे णाममेगे अणज्ज - कप्पे ॥
२१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - अज्जे णाममेगे अज्जपणे, अज्जे णामगे अणज्जपणे, अणज्जे णाममेगे अज्जपणे, अणज्जे णाममेगे अणज्जपणे ॥
१. सं० पा० - एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाए २. सं० पा० – एवं अज्जरूवे...अज्जेण वि एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाले सव्वत्थ भाणियव्वा ।
चभंगो ।
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ठाणं
२१७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जदिट्ठी, अज्जे
णाममेगे अणज्जदिट्ठी, अणज्जे णाममेगे अज्जदिट्ठी, अणज्जे णाममेगे अणज्ज
दिट्ठी ॥ २१८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अज्जे णाममेगे अज्जसीलाचारे, अज्जे
णाममेगे अणज्जसीलाचारे, अणज्जे णाममेगे अज्जसीलाचारे, अणज्जे णाममेगे अणज्जसीलाचारे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा----अज्जे णाममेगे अज्जववहारे, अज्जे णाममेगे अणज्जववहारे, अणज्जे णाममेगे अज्जववहारे, अणज्जे णाममेगे
अणज्जववहारे ॥ २२०.
चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जपरक्कमे, अज्जे णाममेगे अणज्जपरक्कम, अणज्जे णाममेगे अज्जपरक्कमे, अणज्जे णाममेगे
अणज्जपरक्कम ।। २२१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाम मेगे अज्जवित्ती, अज्जे
णाममगे अणज्जवित्ती, अणज्जे णाममेगे अज्जवित्ती, अणज्जे णाममगे
अणज्जवित्ती॥ २२२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममगे अज्जजाती, अज्जे
णाममेगे अणज्जजाती, अणज्जे णाममेगे अज्जजाती, अणज्जे णाममेगे
अणज्जजाती ।। २२३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जभासी, अज्जे
णाममेगे अणज्जभासी, अणज्जे णाममेगे अज्जभासी, अणज्जे णाममेगे अणज्ज
भासी॥ २२४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अज्जे णाममेगे अज्जओभासी, अज्जे
णाममेगे अणज्जओभासी, अणज्जे णाममेगे अज्जओभासी, अणज्जे णाममेगे
अणज्जओभासी ॥ २२५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अज्जे णाममेगे अज्जसेवी, अज्जे
णाममेगे अणज्जसेवी, अणज्जे णाममगे अज्जसेवी, अणज्जे णाममेगे अणज्ज
सेवी॥ २२६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जपरियाए, अज्जे
णाममेगे अणज्जपरियाए, अणज्जे णाममेगे अज्जपरियाए, अणज्जे णाममेगे
अणज्जपरियाए॥ २२७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जपरियाले, अज्जे
णाममेगे अणज्जपरियाले, अणज्जे णाममेगे अज्जपरियाले, अणज्जे णाममेगे अणज्जपरियाले ॥
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
२३०.
२२८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जभावे, अज्जे
णाममेगे अणज्जभावे, अणज्जे णाममेगे अज्जभावे, अणज्जे णाममेगे
अणज्जभावे ।। जाति-पदं २२६. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे, कुलसंपण्णे, बलसंपण्णे,
रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे', 'कुलसंपण्णे, बलसंपण्णे० रूवसंपण्णे।। चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि
कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे ।। २३१.
चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाम एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाम एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जातिसंपण्णे णाम एगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि
बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे ॥ २३२.
चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे॥
कुल-पदं
१३३. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपण्णे,
बलसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णामं एगे णो
१. सं० पा०-जातिसंपण्णे जाव रूवसंपण्णे ।
onal
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६१८
ठाणं
बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि,
एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे ।। २३४. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णामं एगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कूलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- कुलसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि
रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ बल-पदं २३५. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाम एगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि,
एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ हत्थि -पदं २३६. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा-भद्दे, मंदे, मिए', संकिण्णे।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-भद्दे, मंदे, मिए, संकिण्णे ।। २३७. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा-भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे णाममेगे मंदमणे,
भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-भद्दे णाममेगे भद्दमणे, भद्दे
णाममेगे मंदमणे, भद्दे णाममेगे मियमणे, भद्दे णाममेगे संकिण्णमणे ।। २३८. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा–मंदे णाममेगे भद्दमणे, मंदे णाममेगे मंदमणे,
मंदे णाममेगे मियमणे, मंदे णाममेगे संकिण्णमणे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-मंदे णाममेगे भद्दमणे, "मंदे
णाममेगे मंदमणे, मंदे णाममेगे मियमणे, मंदे णाममेगे संकिण्णमणे ° ॥ २३६. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा–मिए णाममेगे भद्दमणे, मिए णाममेगे
मंदमणे, मिए णाममेगे मियमणे, मिए णाममेगे संकिण्णमणे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-मिए णाममेगे भद्दमणे, "मिए णाममेगे मंदमणे, मिए णाममेगे मियमणे, मिए णाममेगे संकिण्णमणे ।।
३. सं० पा०-तं चेव।
१. मिते (क, ख, ग)। २. सं० पा०-तं चेव ।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो) २४०. चत्तारि हत्थी पण्णत्ता, तं जहा-संकिण्णे णाममेगे भद्दमणे, संकिण्णे णाममेगे
मंदमणे, संकिण्णे णाममेगे मियमणे, संकिण्णे णाममेगे संकिण्णमणे।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-संकिण्णे णाममेगे भद्दमणे, "संकिण्णे णाममेगे मंदमणे, संकिण्णे णाममेगे मियमणे °, संकिण्णे णाममेगे
संकिण्णमणे। संगहणी-गाहा
मधुगुलिय-पिंगलक्खो, अणुपुटव-सुजाय-दीहणंगूलो । पुरओ उदग्गधीरो, सव्वंगसमाधितो भद्दो ॥१॥ चल-बहल-विसम-चम्मो, थूलसिरो' थलएण पेएण। थूलणह-दंत-वालो, हरिपिंगल-लोयणो मंदो ॥२॥ तणुओ तणुयग्गीवो', तणुयतओ' तणुयदंत-णह-वालो। भीरू तत्थुव्विग्गो, तासी य भवे मिए णामं ॥३॥ एतेसि हत्थीणं 'थोवा थोव', तु जो अणुहरति हत्थी। रूवेण व सीलेण व, सो संकिण्णोत्ति णायव्वो ॥४॥ भद्दो मज्जइ सरए, मंदो उण मज्जते वसंतंमि।
मिउ मज्जति हेमंते, संकिण्णो सव्वकालंमि ॥५॥ विकहा-पदं २४१. चत्तारि विकहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा,
रायकहा ।। २४२. इत्थिकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–इत्थीणं जाइकहा, इत्थीणं कुलकहा,
इत्थीणं रूवकहा, इत्थीणं णेवत्थकहा ॥ २४३. भत्तकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–भत्तस्स आवावकहा', भत्तस्स
णिव्वावकहा, भत्तस्स आरंभकहा, भत्तस्स गिट्ठाणकहा ॥ २४४.
देसकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा---देसविहिकहा, देसविकप्पकहा, देसच्छंद
कहा, देसणवत्थकहा ॥ २४५. रायकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-रण्णो अतियाणकहा, रणो
णिज्जाणकहा, रण्णो बलवाहणकहा, रण्णो कोसकोट्ठागारकहा ।।
१. सं० पा०-तं चेव जाव संकिण्णे । २. थुल्लसिरो (क, ग)। ३. तणुतग्गीवो (क, ख, ग)। ४. तणुयततो (क, ख, ग) । ५. थोवं थोवं (क्व)।
६. आवाहकहा (क, ग); अबोहकहा (ख) । ७. णिव्वाहकहा (क, ग); णिच्चावकहा(ख)। ८. णिट्ठावणकहा (क, ग)। ६. अतिताण ° (क, ख, ग)।
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६२०
ठाणं
कहा-पदं २४६. चउव्विहा कहा' पण्णत्ता, तं जहा-अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेयणी',
णिव्वेदणी ॥ २४७. अक्खेवणी कहा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-आयारअक्खेवणी, ववहार
अक्खेवणी, पण्णत्तिअक्खेवणी', दिट्ठिवातअक्खेवणी ॥ २४८. विक्खेवणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-ससमयं कहेइ ससमयं कहित्ता
परसमयं कहेइ, परसमयं कहेत्ता ससमयं ठावइता' भवति, सम्मावायं कहेइ सम्मावायं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ, मिच्छावायं कहेत्ता सम्मावायं ठावइता'
भवति ॥ २४६. संवेयणी कहा चउव्विहा पण्णता, तं जहा–इहलोगसंवेयणी, परलोगसंवेयणी,
आतसरीरसंवेयणी, परसरीरसंवेयणी ॥ २५०. णिव्वेदणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा
१. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवति । २. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुह फलविवागसंजुत्ता भवति । ३. परलोगे दचिण्णा कम्मा इहलोगे दहफलविवागसंजुत्ता भवति । ४. परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति । १. इहलोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति । २. इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवति । ३. परलोगे सूचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजूत्ता भवंति ।
४. परलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ॥ किस-दढ-पदं २५१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-किसे णाममेगे किसे, किसे णाममेगे
दढे, दढे णाममेगे किसे, दढे णाममेगे दढे । २५२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-किसे णाममेगे किससरीरे, किसे णाम
मेगे दढसरीरे, दढे णाममगे किससरीरे, दढे णाममेगे दढसरीरे ॥ २५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-किससरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे
१. धम्मकहा (क्व)। २. सवेगणी (क, ख, ग) सर्वत्र । ३. निव्वेगणी (ख, ग)। ४. पन्नत्तिखेवणी (क, ग)। ५. ठावतित्ता (क, ख); ठवइत्ता (ग)।
६. ° वातं (क, ख, ग)। ७. ठावतित्ता (क, ख); ठवेत्ता (ग)। ८. °लोग (क)। ६. सं० पा०–एवं चउभंगो तहेव ।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
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समुपज्जति णो दढसरीरस्स, दढसरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पज्जति णो किससरीरस्स, एगस्स किससरीरस्सवि णाणदंसणे समुप्पज्जति दढसरीरस्सवि, एगस्स णो किससरीरस्स णाणदंसणे समुप्पज्जति णो दढसरीरस्स ।। अतिसेस - णाण- दंसण-पदं
२५४. चउहि ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा अस्सि समयंसि अतिसेसे पाणदंसणे समुपज्जकाविण समुप्पज्जेज्जा, तं जहा
१. अभिक्खणं - अभिक्खणं इत्थिकहं भत्तकहं देसकहं रायकहं कहेत्ता भवति । २. विवेगेण विउस्सग्गेणं णो सम्ममप्पाणं भावित्ता भवति ।
३. पुण्व रत्ताव रत्तकालसमयंसि णो धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति ।
४. फायस्स एस णिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स णो सम्मं गवेसित्ता भवति । इच्चेतेहिं चउहि ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा' 'अस्ति समयसि अतिसेसे पाणदंसणे समुप्पज्जिकामेवि णो समुप्पज्जेज्जा ॥
२५५. चउहि ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा [ अस्सि समयंसि ? ] अतिसे ाणदंसणे समुपज्जि उकामे समुप्पज्जेज्जा, तं जहा
१. इत्थिक भत्तकहं देसकहं रायकहं णो कहेत्ता भवति ।
२. विवेगेण विउस्सगेणं सम्ममप्पाणं भावेत्ता भवति ।
-
३. पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति ।
४. फासूयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स सम्मं गवेसित्ता भवति । इच्चे हि चउहि ठाणेहिं णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा' ' [ अस्सि समयंसि ? ] अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जिकामे • समुप्पज्जेज्जा ॥
सज्झाय-पदं
२५६. णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा चउहिं महापाडिवएहिं सभायं करेत्तए, तं जहा --- आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हगपाडिव ||
२५७ णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा चउहिं संझाहिं सभायं करेत्तए, तं जहा - पढमाए, पच्छिमाए, मज्भण्हे, अड्डरते ॥
२५८. कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथोण वा चउक्ककालं सभायं करेत्तए, तं जहा पुव्वण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चू से ||
लोग ट्ठति-पदं
२५६. चउब्विहा लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा - आगासपतिट्ठिए वाते, वातपतिट्ठिए उदधी, उदधिपतिट्ठिया पुढवी, पुढविपतिट्ठिया तसा थावरा पाणा ।।
१. सं० पा० - णिग्गंथीण वा जाव णो समुप्प | ३. पढमाते (क, ख, ग ) । २. सं० पा० - णिग्गंथीण वा जाव समुप्प° ।
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६२२
ठाण
पुरिस-भेद-पदं २६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-तहे णाममेगे, णोतहे णाममेगे, सोवत्थो
णाममेगे, पधाणे णाममेगे। आय-पर-पदं २६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--आयंतकरे णाममेगे णो परंतकरे,
परंतकरे णाममेगे णो आयंतकरे, एगे आयंतकरेवि परंतकरेवि, एगे णो आयंतकरे
णो परंतकरे ॥ २६२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आयंतमे णाममेगे णो परंतमे, परंतमे
णाममेगे णो आयंतमे, एगे आयंतमेवि परंतमेवि, एगे णो आयंतमे णो परंतमे ॥ २६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आयंदमे णाममेगे णो परंदमे, परंदम
___णाममेगे णो आयंदमे, एगे आयंदमेवि परंदमेवि, एगे णो आयंदमे णो परंदमे ।। गरहा-पदं २६४. चउविवहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा-उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामि
त्तेगा गरहा, जकिचिमिच्छामित्तेगा गरहा, एवंपि पण्णत्तेगा' गरहा ।। अलमंथु-पदं २६५. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे अलमंथ भवति णा
परस्स, परस्स णाममेगे अलमंथू भवति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि अलमंथ
भवति परस्सवि, एगे णो अप्पणो अलमंथू भवति णो परस्स ।। उज्जु-वंक-पदं २६६. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा-उज्जू णाममेगे उज्जू, उज्जू णाममेगे वंके,
वंके णाममेगे उज्ज, वंके णाममेगे वंके । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं ज़हा- उज्जू णाममेगे उज्ज, उज्ज
णाममेगे वंके, वंके णाममेगे उज्जू, वंके णाममेगे वंके ।। खेम-अखेम-पदं २६७. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाममेगे अखेमे,
अखेमे णाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमे, खेमे णाम
मेगे अखेमे, अखेमे णाममेगे खेमे, अखेमे णाममेगे अखेमे ॥ २६८. चत्तारि मग्गा पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे णाममेगे अखेम
रूवे, अखेमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे ।
१. पण्णत्ते एगा (वृषा)।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेमे णाममेगे खेमरूवे, खेमे
णाममेगे अखेमरूवे, अखेमे णाममेगे खेमरूवे, अखेमे णाममेगे अखेमरूवे॥ वाम-दाहिण-पदं २६६. चत्तारि संवुक्का पण्णत्ता, तं जहा-वामे णाम मेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे
दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे
णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते ।। २७०. चत्तारि धूमसिहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा
णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता। एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाम मेगा
दाहिणावत्ता ।। २७१. चत्तारि अग्गिसिहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता,
वामा णाममगा दाहणावत्ता, दाहिणा णाममगा वामावत्ता, दाहिणा णाममगा दाहिणावत्ता। एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा
दाहिणावत्ता ।। २७२. चत्तारि वायमंडलिया पण्णत्ता, तं जहा–वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा
णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा दाहिणावत्ता ॥ एवामेव चत्तारि इत्थीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -वामा णाममेगा वामावत्ता, वामा णाममेगा दाहिणावत्ता, दाहिणा णाममेगा वामावत्ता, दाहिणा णाममेगा
दाहिणावत्ता॥ २७३. चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा–वामे णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे
दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वाम णाममेगे वामावत्ते, वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, दाहिणे णाममेगे
दाहिणावत्ते ॥ णिग्गंथ-णिग्गंथी-पदं २७४. चउहि ठाणेहि णिग्गंथे णिग्गंथिं आलवमाणे वा संलवमाणे वा णातिक्कमति,
तं जहा-१. पंथं पुच्छमाणे वा, २. पंथं देसमाणे वा, ३. असणं वा पाणं वा
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ठाणं
खाइमं वा साइमं वा दलेमाणे वा, ४. 'असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं
वा" दलावेमाणे वा ॥ तमुक्काय-पदं २७५. तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा -तमेति वा, तमुक्कातेति
वा. अंधकारेति वा. महंधकारेति वा॥ २७६. तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा--लोगंधगारेति वा,
लोगतमसेति वा, देवंधगारेति वा, देवतमसेति वा । २७७. तमुक्कायस्स णं चत्तारि णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा---वातफलिहेति वा,
वातफलिहखोभेति वा, देवरण्णेति वा, देववूहेति वा ।। २७८. तमुक्काते णं चत्तारि कप्पे आवरित्ता चिति, तं जहा-सोधम्मीसाणं
सणंकुमार-माहिंदं ॥ दोस-पदं २७६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--संपागडपडिसेवी णाममेगे, पच्छण्ण
पडिसेवी णाममेगे, पडुप्पण्णणंदी णाममेगे, णिस्सरणणंदी णाममेगे ।। जय-पराजय-पदं २८०. चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जइत्ता' णाममेगा णो पराजिणित्ता,
पराजिणित्ता णाममेगा णो जइत्ता, एगा जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगा णो जइत्ता णो पराजिणित्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जइत्ता णाममेगे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगे णो जइत्ता, एगे जइत्तावि पराजिणित्तावि,
एगे णो जइत्ता णो पराजिणित्ता ॥ २८१. चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जइत्ता णाममेगा जयइ, जइत्ता णाममेगा
पराजिणति, पराजिणित्ता णाममेगा जयइ, पराजिणित्ता णाममेगा पराजिणति । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जइत्ता णाममेगे जयइ, जइत्ता णाममेगे पराजिणति, पराजिणित्ता णाममेगे जयइ, पराजिणित्ता णाममेगे पराजिणति ॥
१. दलतमाणे (क, ग); दलमाणे (ख)। २. X (क. ख, ग)। ३. दवावेमाणे (क, ग)। ४. देवफलिहेति (वृपा)।
५. वातपरिखोभेति, देवपरिखोभेति (वृपा)। ६. पडुप्पन्नसेवी (वृपा) । ७. जतित्ता (क, ख, ग)।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
माया-पदं २८२. चत्तारि केतणा पण्णत्ता, तं जहा–वंसीमूलकेतणए,मेंढविसाणकेतणए, गोमुत्ति
केतणए, अवलेहणियकेतणए। 'एवामेव चउविधा माया पण्णत्ता, तं जहा-वंसीमूलकेतणासमाणा', 'मेंढविसाणकेतणासमाणा, गोमुत्तिकेतणासमाणा', अवलेहणियकेतणासमाणा। १. वसीमूलकेतणासमाणं मायमणुपविढे जोवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति। २. मेंढविसाणकेतणासमाणं मायमणुपवितु जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. गोमुत्ति केतणासमाणं मायमणुपविढे जीवे • कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. अवलेहणिय केतणासमाणं मायमणुपविढे जीवे कालं करेति', देवेसु
उववज्जति ॥ माण-पदं २८३. चत्तारि थंभा पण्णत्ता, तं जहा-सेलथंभे, अट्ठिथंभे, दारुथंभे, तिणिसलताथंभे ।
एवामेव चउम्विधे माणे पण्णत्ते, तं जहा–सेलथंभसमाणे', 'अद्विथंभसमाणे, दारुथंभसमाणे°, तिणिसलतार्थभसमाणे। १. सेयथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । २. "अट्ठिथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. दारुथंभसमाणं माणं अणुपविढे जीवे कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति ° ।
४. तिणिसलताथंभसमाणं माणं अणुपविढे जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति ॥ लोभ-पदं २८४. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा-किमिरागरत्ते, कद्दमरागरत्ते, खंजण रागरत्ते,
हलिद्दरागरत्ते । एवामेव चउव्विधे लोभे पण्णत्ते, तं जहा-किमिरागरत्तवत्थसमाणे, कद्दमरागरत्तवत्थसमाणे, खंजणरागरत्तवत्थसमाणे, हलिद्दरागरत्तवत्थसमाणे ।
१. पूर्वं क्रोधमानसूत्राणि ततो मायासूत्राणि ४. सं० पा०–अवलेहणित जाव देवेसु । (वृपा)।
५. सं० पा०-सेलथंभसमाणे जाव तिणिस। २. सं० पा०-वंसीमूलकेतणासमाणा जाव ६. सं० पा०--एवं जाव तिणिस । अवलेह ।
७. हलिहा (क)। ३. सं० पा० -गोमुत्ति जाव कालं ।
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६२६
ठाणं १. किमिरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, णेरइएसु उववज्जइ। २. "कद्दमरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणितेसु उववज्जइ। ३. खंजणरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जइ ।
४. हलिद्दरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविढे जोवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जइ।। संसार-पदं २८५. चउव्विहे संसारे पण्णत्ते, तं जहा ---णेरइयसंसारे', 'तिरिक्खजोणियसंसारे,
मणस्ससंसारे°, देवसंसारे ।। २८६. चउविहे आउए' पण्णत्ते, तं जहा–णेरइयआउए, 'तिरिक्खजोणियआउए,
०, देवाउए । २८७. चउविहे भवे पण्णत्ते, तं जहा—णेरइयभवे', 'तिरिक्खजोणियभवे, मणस्सभवे °,
देवभवे ॥ आहार-पदं २८८. चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ॥ २८६. चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-उवक्खरसंपण्णे, उवक्खडसंपण्णे, सभाव
संपण्णे, परिजुसियसंपण्णे ॥
कम्मावत्था-पदं
२६०. चउविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिबंधे, ठितिबंधे, अणुभावबंधे, पदेसबंधे ॥ २६१. चउविहे उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे,
उवसमणोवक्कमे, विप्परिणामणोवक्कमे ।। २६२. बंधणोवक्कमे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिबंधणोवक्कमे, ठितिबंधणो
वक्कमे, अणुभावबंधणोवक्कमे, पदेसबंधणोवक्कमे ॥ २६३. उदीरणोवक्कमे चउन्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिउदीरणोवक्कमे, ठिति
उदीरणोवक्कमे, अणुभावउदीरणोवक्कमे, पदेसउदीरणोवक्कमे ॥ २६४. उवसामणोवक्कमे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-पगतिउवसामणोवक्कमे, ठिति
उवसामणोवक्कमे, अणुभावउवसामणोवक्कमे, पदेसउवसामणोवक्कमे ।।
१. सं० पा०-तहेव जाव हलिद्द । २. सं० पा०—रतियसंसारे जाव देवसंसारे। ३. आउते (क, ख, ग)।
४. सं० पा०-णेरतिआउते जाव देवाउते । ५. सं० पा० -रतियभवे जाव देवभवे । ६. नो उवक्खरसंपन्ने (वृपा)।
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त्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
२६५. विष्परिणामणोवक्कमे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - पगतिविष्परिणामणोवक्कमे, ठितिविपरिणामणोवक्कमे अणुभावविप्परिणामणोवक्कमे, पएसविप्परिणामगोवक्कमे ॥
२९६. चउव्विहे अप्पाबहुए पण्णत्ते, तं जहा - पगतिअप्पाबहुए, ठितिअप्पाबहुए, अणुभाव अप्पा हुए, पएसअप्पा बहुए ॥
२६७. चउव्विहे संकमे पण्णत्ते, तं जहा - पगतिसंकमे, ठितिसंकमे, अणभावसंकमे, एससंक ||
२६८. चउव्विहे णिधत्ते पण्णत्ते, तं जहा - पगतिणिधत्ते, ठितिणिधत्ते, अणुभावणिधत्ते, एसणिधत्ते ||
२६६. चउव्विहे णिगायिते पण्णत्ते, तं जहा - पगतिणिगायिते, ठितिणिगायिते, वासिणिगायिते ॥
संखा-पदं
३००. चत्तारि एक्का पण्णत्ता, तं जहा - दविएक्कए, माउएक्कए', पज्जवेक्कए, संगक्क' |
३०१. चत्तारि कती पण्णत्ता, तं जहा -दवितकती, माउयकती, पज्जवकती, संगती ।
३०२. चत्तारि सव्वा पण्णत्ता, तं जहा --- णामसव्वए, ठवणसव्वए, आएससव्वए, रिवसेससव्व ॥
कूड - पदं
३०३. माणुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिं चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा - रयणे, रतणुच्चए, सव्वरयणे, रतणसंचए ' ॥
कालचक्क - प
३०४. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो हुत्था |
३०५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो ॥
६२७
३०६. जंबुद्दींवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो भविस्सइ ॥
१. पतेस
० (क, ख, ग ) ।
२. दविए एक्कए (ग, वृपा ) ।
३. माउ एक्कते ( ख ) ।
४. पज्जवेक्कगे (क); पज्जवे एक्कए ( ख, ग ) ।
५. संग एक्कते ( ख, ग ) ।
६. रतणसंचये (क, ख, ग ) ।
७. हुत्था ( ख, ग ) ।
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६२८
ठाणं अकम्मभूमी-पदं ३०७. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुवज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा -- हेमवते, हेरण्णवते, हरिवरिसे', रम्मगवरिसे। चत्तारि वट्टवेयड्डपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-सद्दावाती', वियडावाती, गंधावाती, मालवंतपरिताते । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा
साती, पभासे, अरुणे, पउमे ।। महाविदेह-पदं ३०८. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पुव्वविदेहे, अवर
विदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा ।। पव्वय-पदं ३०६. सव्वे वि णं णिसढणीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं,
चत्तारि गाउसयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥ ३१०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरकूले
चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-चित्तकूडे, पम्हकूडे', णलिणकडे,
एगसेले ॥ ३११. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणकूले
चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा–तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे,
मातंजणे॥ ३१२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणदीए
१. °वस्से (ग)।
स्थानाङ्गवृत्तौ तथा जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ च २. वासे (ख); °वस्से (ग)।
'शब्दापाती विकटापाती गंधापाती' इति ३. ठा० २।२७४, २७५ सूत्रयोः 'सद्दावाती सस्कृतरूपं कृतमस्ति । वृत्त्याधारेण स दावाती' ... वियडावाती गंधावाती' पाठ: वृत्त्याधारण प्रभृतिपाठस्य कल्पना जायते । सद्दावई'
स्वीकृतः । ठा० २:३३५ सूत्रे प्रतिषु 'सद्दा. इत्यादि पाठः मृदूच्चारणार्थं कृतमथवा लिपिवाती' तथा 'सद्दावतिवासी'- इत्थं रूपद्वयं दोषेण परिवर्तन जातमिति न निश्चतुं शक्यते, लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रे प्रतिषु ‘सद्दावई वियडावई तेनास्माभिः सर्वत्रापि 'सद्दावाती' प्रभृतिपाठः गंधावई' इति पाठोस्ति । 'रायपसेणइय' सूत्रे स्वीकृतः । तथा 'जंबुद्दीव पण्णत्ती' सूत्रेपि प्राप्तादर्शषु ४. ठा० २१२७१ । 'सद्दावई वियडावई गंधावई' पाठो लभ्यते। ५. बंभकूडे (क) ।
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उत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
६२६
दाहिकले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - अंकावती, पम्हावती, आसीवसे, सुहाव ||
३१३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महानदी ' उत्तरकूले चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - चंदपव्वते, सूरपव्वते, देवपव्वते, णागपव्वते ||
३१४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा- सोमणसे, विज्जुप्पभे, गंधमायणे, मालवंते ॥
सलागा - पुरिस-पदं
३१५. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण्णपए' चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उपज्जिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिसंति वा ॥
मदर - पव्वय-पदं
३१६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा - भद्दसालवणे, णंदणवणे, सोमणसवणे, पंडगवणे ॥
३१७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- पंडुकंबलसिला, अइपंडुकंबलसिला, रत्तकंबलसिला, अतिरत्तकंबलसिला ||
३१८. मंदरचूलिया णं उर्वारं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
धाइड पुक्खरवर-पदं
३१६. एवं -- धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धेवि कालं आदि करेत्ता जाव' मंदरचूलियत्ति । एवं जाव पुक्खरवरदीवपच्चत्थिमद्धे जाव मंदरचूलियत्ति ।
संग्रहणी - गाहा
जंबुद्दीवगआवस्सगं" तु कालाओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुव्वावरे पासे ॥१॥
दार- पर्द
३२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजये, वेजयंते,
१. महाणतीते ( क, ख, ग ) ।
२. जहणपते ( क, ख, ग ) ।
३. ठा० ४।३०४-३१८ ।
४. ठा० ३।१०८ ।
५. जंबुद्दीवे ० ( वृपा) ।
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६३०
ठाण
जयंते, अपराजिते । ते णं दारा चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता |
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा - विजये, वैजयंते, जयंते, अपराजिते ॥
अंतरदीव - पदं
३२१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उसु विदिसासु लवणसमुद्दं तिष्णि तिणि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ गं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा - एगूरुयदीवे, आभासियदीवे, वेसाणियदवे, गंगोलियदीवे ।
तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा - एगूरुया, आभासिया, साणिया, गंगोलिया ॥
३२२. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा - हयकण्णदीवे, गयकण्णदीवे, गोकणदीवे, सक्कुलिकण्णदीवे' ।
तेसु णं दीवेसु चउव्विधा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा - हयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा ॥
३२३. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं पंच-पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ पं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा - आयंसमुदीवे, मेंहदी, अओमुहदीबे, गोमुहदीवे ।
तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा' 'परिवसंति, तं जहा - आयंसमुहा, मेंढमुहा, ओहा, गोहा ॥
o
३२४. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं छ- छ जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा - आसमुहदीवे, हत्थिमुहदीवे, सीमुदी, वग्घमुहदीवे ।
सुणं दीवेसु चव्विा मणुस्सा" "परिवसंति, तं जहा -- आसमुहा, हत्थिमुहा, सीमुहा, वग्धमुहा० ॥
३२५. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं सत्त सत्त जोयणसयाई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा, पण्णत्ता, तं जहा - आसकण्णदीवे, हत्थिकण्णदीवे कण्णदीवे, कण्णपाउरणदीवे ' ॥
१. तावतितं (क, ख,
ग) ।
२. ठा० २।२७१ ।
३. एगरूअदीवे (क, ख, ग ) ।
४. एगरूता (क, ग ); एगुरूता ( ख ) ।
५. संकुलि (क्व ) ।
६. सं० पा० - मणुस्सा भाणियव्वा । ७. सं० पा० - मणुस्सा भाणियव्वा ।
८. कन्नापाउ° (क, ग) ।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा' 'परिवसंति, तं जहा-आसकण्णा, हत्थि
कण्णा, अकण्णा, कण्णपाउरणा ॥ ३२६. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं अट्ठट्ठ जोयणसयाई ओगाहेत्ता,
एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-उक्कामुहदीवे, मेहमुहदीवे, विज्जुमुहदीवे, विज्जुदंतदीवे । तेसु णं दीवेसु चउम्विहा मणुस्सा' 'परिवसंति, तं जहा–उक्कामुहा, मेहमुहा,
विज्जुमुहा, विज्जुदंता ॥ ३२७. तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुदं णव-णव जोयणसयाइं ओगाहेत्ता,
एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा–घणदंतदीवे, लट्ठदंतदीवे, गूढदंतदीवे, सुद्धदंतदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-घणदंता, लट्ठदंता
गूढदंता, सुद्धदंता॥ ३२८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स चउसु
विदिसासु लवणसमुदं तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगूरुयदीवे', सेसं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं
जाव सुद्धदंता॥ महापायाल-पदं ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसिं लवणसमुदं पंचा
णउई जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालता महालंजरसंठाणसंठिता' चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहा-वलयामुहे", केउए, जूवए, ईसरे । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा
काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे॥ आवास-पव्वय-पदं ३३०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमूह
बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—गोथूभे, उदओभासे", संखे, दगसीमे।
१. सं० पा०–मणुस्सा भाणियब्वा । २. सं० पा०-मणुस्सा भाणियव्वा । ३. एगरूय° (क, ख, ग)। ४. ठा० ४।३२१-३२७ । ५. वेतितंताओ (क, ख, ग)।
६. महालिंजर ° (क, ग)। ७. वलतामुहे (क, ख, ग)। ८. केउते (क, ख, ग)।
६. ठा० २।२७१। १०. दउयभासे (ख); उदयभासे (क्व)।
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ठाणं
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा
गोथूभे, सिवए, संखे, मणोसिलाए॥ ३३१. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउसु विदिसासु लवणसमुदं
बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-कक्कोडए, विज्जुप्पभे, केलासे, अरुणप्पभे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा -
कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पभे ।। जोइस-पदं ३३२. लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा।
चत्तारि सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा। चत्तारि कित्तियाओ
जाव' चत्तारि भरणीओ। ३३३. चत्तारि अग्गी जाव चत्तारि जमा ॥ ३३४. चत्तारि अंगारा जाव' चत्तारि भावकेऊ ।।
दार-पदं ३३५. लवणस्स णं समुदस्स चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए, वेजयंते, जयंते
अपराजिते । ते णं दारा चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं पण्णत्ता। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति, त जहा
विजए", वेजयंते, जयंते, अपराजिए। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ३३६. धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते॥ ३३७. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बहिया चत्तारि भरहाई, चत्तारि एरवयाई। एवं जहा
१. ठा० २।२७१ । २. ° रातीणं (क, ख, ग)। ३. ठा० २।२७१। ४. सूरिता (क, ख, ग)। ५. तवइंसु (वृ)। ६. ठा० २।३२३ ।
७. ठा० २।३२४ । ८. अंगारया (क, ग)। ६. ठा० २।३२५ । १०. ठा० २।२७१ । ११. विजते (क, ख, ग)।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
सदुद्देसए' तहेव णिरवसेसं भाणि यव्वं जाव' चत्तारि मंदरा चत्तारि
मंदरचूलियाओ॥ णंदीसरवरदीव-पदं ३३८. णंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं
चत्तारि अंजणगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा -पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वते, दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपव्वते, उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते । ते णं अंजणगपव्वता चउरासीति जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साइं विक्खंभण, तदणतर च ण मायाए-मायाए परिहायमाणा-परिहायमाणा उरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पण्णत्ता। मूले इक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, उवरि तिण्णि-तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बाव, जोयणसतं परिक्खेवेणं । मूले विच्छिण्णा मज्झे संखेत्ता उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वअंजणमया अच्छा ‘सण्हा लण्हा" घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकड़-च्छाया सप्पभा समिरीया" सउज्जोया पासाईया दरिसणीया
अभिरूवा पडिरूवा।। ३३६. तेसि णं अंजणगपव्वयाणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता।
तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि सिद्धायतणा पण्णत्ता। तेणं सिद्धायतणा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं. बावत्तरि जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं ।। तेसि णं सिद्धायतणाणं चउदिसि चत्तारि दारा पण्णता, तं जहा–देवदारे, असुरदारे, णागदारे, सुवण्णदारे । तेसु णं दारेसु चउव्विहा देवा परिवसंति, तं जहा-देवा, असुरा, णागा, सुवण्णा । तेसि णं दाराणं पुरओ चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता। तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ चत्तारि पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया अक्खाडगा पण्णत्ता।
३. सर्वज्ञात हा एती एकस्यैव शब्दस्य च
१. शब्दोपलक्षित उद्देशक: शब्दोद्देशको द्विस्थान
कस्य तृतीय इत्यर्थः (वृ)। २. ठा० २।३३३-३४३, ३५० । ३. सव्वंजण ° (वृ)। ४. 'सण्हा लण्हा' एतौ एकस्यैव शब्दस्य रूप
भेदी स्तः । श्लक्ष्णशब्दस्य 'ल' लोपे कृते
'सण्हा' तथा 'स्' लोपे कृते 'लण्हा' इतिरूपं जायते । वृत्तिकारेणानयोः किञ्चिदर्थभेदोऽपि सूचितः,यथा-सहा-लक्षणपरमाणुस्कन्धनिष्पन्नाः, श्लक्ष्णदलनिष्पन्नपटवत्, लण्हाश्लक्षणा मसृणा इत्यर्थः (वृ)। ५. सस्सिरीया (क)।
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ठाणं
तेसि णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि मणिपेढियातो पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढिताणं उरि चत्तारि सीहासणा पण्णत्ता। तेसि णं सीहासणाणं उरिं चत्तारि विजयदूसा पण्णत्ता। तेसि णं विजयदूसगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया' अंकुसा पण्णत्ता । तेसु णं वइरामए सु अंकुसेसु चत्तारि कुंभिका मुत्तादामा पण्णत्ता । ते णं कुंभिका मुत्तादामा पत्तेयं-पत्तेयं अण्णेहिं तदद्धउच्चत्तपमाणमित्तेहिं चउहिं अद्धकंभिक्केहि मुत्तादामेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ' पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरिं चत्तारि-चत्तारि चेइयथूभा पण्णत्ता। तेसि णं चेइयथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उरि चत्तारि जिणपडिमाओ सव्वरयणामईओ संपलियंकणिसण्णाओ थूभाभिमुहाओ चिटुंति, तं जहा–रिसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेणा। तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि चेइयरुक्खा पण्णत्ता। तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासि णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि महिंदज्झया पण्णत्ता। तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरओ चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ। तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउदिसि चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता,
तं जहा-पुरत्थिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं । संगहणी-गाहा
पुवे णं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।
अवरे णं चंपगवणं, चूतवणं उत्तरे पासे ॥१॥ ३४०. तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले अंजणगपन्वते, तस्सणं चउद्दिसिं चत्तारि णंदाओ
पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णंदुत्तरा, णंदा, आणंदा, णंदिवद्धणा। ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, दसजोयणसताइं उव्वेहेणं ।
१. वइरामता (क, ख, ग)। २. ° कुंभिकेहिं (ख, वृ)। ३. °पेढिताओ (क, ख, ग)। ४. चेतितथूभा (क, ख, ग)।
५. महेन्द्रा इति-अतिमहान्तः समयभाषया ते
च ते ध्वजाश्चेति, अथवा महेन्द्रस्येव
शक्रादेर्ध्वजाः महेन्द्रध्वजाः (वृ)। ६. तत्थ (क) सर्वत्र ।
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चउत्थं ठाणं (बीओ उद्देसो)
तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णत्ता, तं जहापूरस्थिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे थे। तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता,
तं जहा-पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं ।।। संगहणी-गाहा
पुत्वे णं असोगवणं', 'दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।
अवरे णं चंपगवणं°, चूयवणं उत्तरे पासे ॥१॥ तासि णं पुक्खरिणीणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि दधिमुहगपव्वया पण्णत्ता। ते णं दधिमुहगपव्वया चउसट्टि जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता, दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा। तेसि णं दधिमुहगपव्वताणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता । सेसं
जहेव अंजणगपव्वताणं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव' चूतवणं उत्तरे पासे ॥ ३४१. तत्थ णं जे से दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउदिसिं चत्तारि णंदाओ
पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भद्दा, विसाला, कुमुदा, पोंडरीगिणी । ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं, सेसं तं चेव जाव
दधिमुहगपव्वता जाव' वणसंडा॥ ३४२. तत्थ णं जे से पच्चत्थिमिल्ले अंजणगपन्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि णंदाओ
पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–णंदिसेणा, अमोहा, गोथूभा, सुदंसणा।
सेसं तं चेव, तहेव दधिमुहगपव्वता, तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा ॥ ३४३. तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि णंदाओ
पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिता । ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं, सेसं तं चेव पमाणं,
तहेव दधिमुहगपव्वत्ता, तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा॥ ३४४. णंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउसु
१. सं० पा०-असोगवणं जाव चूयवणं । २. ठा० ४।३३८ । ३. ठा०४।३३६। ४. पोंडरगिणी (क, ग); पोंडरिगिणी (ख)।
५,६. ठा० ४।३४० । ७. ठा० ४।३४० । ८. ठा० ४।३४० ।
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ठाणं
विदिसासु चत्तारि रतिकरगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा–उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वए, दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, उत्तरपच्चस्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए। ते णं रतिकरगपव्वता दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिता; दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई
छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा ।। ३४५. तत्थ णं जे से उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं ईसाणस्स
देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा --णंदुत्तरा, णंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा। कण्हाए, कण्ह
राईए, रामाए, रामरक्खियाए। ३४६. तत्थ णं जे से दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स ण चउद्दिसि सक्कस्स
देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समणा, सोमणसा, अच्चिमाली, मणोरमा। पउमाए,
सिवाए, सतीए', अंजूए॥ ३४७. तत्थ णं जे से दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्कस्स
देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—भूता, भूतवडेंसा, गोथूभा, सुदंसणा। अमलाए, अच्छराए, णवमियाए", रोहिणीए । तत्थ णं जे से उत्तरपच्चथिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउहिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–रयणा, रतणुच्चया, सव्वरतणा, रतणसंचया।
वसूए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए, वसुंधराए । सच्च-पदं ३४६. चउविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा-णामसच्चे, ठवणसच्चे, दव्वसच्चे, भावसच्चे॥ आजीविय-तव-पदं ३५०. आजीवियाणं चउव्विहे तवे पण्णत्ते, तं जहा-उग्गतवे', घोरतवे,
रसणिज्जूहणता, जिभिदियपडिसलीणता ।
१. ठा० ४।३३८ ।
मेत्ताओ' पाठोस्ति । आदर्शषु इत्थमेव २. कण्हरातीते (क, ख, ग)।
लभ्यते, तेन तथैव स्वीकृतः । ३. सुतीते (क, ख, ग)।
५. णवमिताते (क, ख, ग)। ४. प्रागवतिनोः द्वयोः सूत्रयोः केवलं 'पमाणाओ' ६. उदारतवे (पा)।
पाठोस्ति । अत्र उत्तरवर्तिनि सूत्रे च 'पमाण
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
३५१. चउव्विहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा - मणसंजमे, वइसंजमे', कायसंजमे, उवगरणसंजमे ॥
३५२. चउव्विधे चियाए' पण्णत्ते, तं जहा - मणचियाए, वइचियाए, कायचियाए, उवगरण चियाए ।
३५३. चउव्विहा अकिंचणता पण्णत्ता, तं जहा - मणअकिंचणता, वइअकिंचणता, कायअकिंचनता, उवगरणअकिंचनता ॥
इओ उद्देस
कोह-पदं
३५४. चत्तारि राईओ' पण्णत्ताओ, तं जहा - पव्वयराई, पुढविराई, वालुयराई, उदगराई ।
एवामेव उवि कोहे पण्णत्ते, तं जहा - पव्वयराइसमाणे, पुढविराइसमाणे, वालुयराइसमाणे, उदगराइसमाणे ।
१. पव्वयराइसमा कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, रइएसु उववज्जति । २. पुढविराइसमा कोहमणुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणि सु उववज्जति ।
३. वालुयराइसमाणं कोहमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. उदगराइसमाणं कोहमणुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति ।।
भाव-पदं
३५५. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा - कमोद, खंजणोदए, वालुओदए, सेलोदए । एवामेव उव्विहे भावे पण्णत्ते, तं जहा - कद्दमोदगसमाणे, खंजणोदगसमाणे, वालुओदगसमाणे, सेलोदगसमाणे ।
१. कद्दमोदगसमाणं भावमणुपविट्टे जीवे कालं करेइ, रइएस उववज्जति । २. खंजणोदगसमाणं भावमणुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति ।
३. वालुओदगस माणं भावमणुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. सेलोदगसमाणं भावमणुपविट्ठे जीवे कालं करेइ, देवेसु उववज्जति ॥ रुत रुव-पदं
३५६. चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा - रुतसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रुवसंपणे
१. वति ० ( क, ख, ग ) । २. चिता (क, ख,
1
३. रातीओ (क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० - एवं जाव सेलोदग° ।
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ठाणं
णाममेगे णो रुतसंपण्णे, एगे रुतसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो रुतसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रुतसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो रुतसंपण्णे, एगे रुतसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे
णो रुतसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ।। पत्तिय-अप्पत्तिय-पदं ३५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तियं
करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं
करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति ।। ३५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे पत्तियं करेति णो
परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं
करेति परस्सवि, एगे णो अप्पणो पत्तियं करेति णो परस्स ।। ३५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति,
पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, __ अप्पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति ॥ ३६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे पत्तियं पवेसेति णो
परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं पवेसेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं
पवेसेति परस्सवि, एगे णो अपणो पत्तियं पवेसेति णो परस्स ॥ उपकार-पदं ३६१. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोवए, पुप्फोवए, फलोवए, छायोवए।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोवारुक्खसमाणे,
पुप्फोवारुक्खसमाणे, फलोवारुक्खसमाणे, छायोवारुक्खसमाणे ।। आसास-पदं ३६२. भारण्ण' वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा
१. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ३. जत्थवि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते ।
१. भारूण्णं (क); भारूप्प (ग)।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
४. जत्थवि य णं आवकहाए चिट्ठति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते । एवामेव समणोवासगस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा१. 'जत्थवि य णं' सीलव्वत-गुणव्वत-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं पडिवज्जति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। २. जत्थवि य णं सामाइयं देसावगासियं सम्ममणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ३. जत्थवि य णं चाउद्दसट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते। ४. जत्थवि य णं अपच्छिम-मारणंतित-संलेहणा-'झूसणा-झूसिते'२ भतपाणपडियाइक्खिते' पाओवगते कालमणवकंखमाणे विहरति, तत्थवि य से एगे
आसासे पण्णत्ते ॥ उदित-अत्थमित-पदं ३६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--उदितोदिते णाममेग, उदितत्थमिते
णाममेगे, अत्थमितोदिते णाममेगे, अत्थमितत्थमिते णाममेगे । भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं उदितोदिते, बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टो उदितत्थमिते, हरिएसबले णं अणगारे अत्थमितोदिते, काले णं सोयरिये
अत्थमितत्थमिते ॥ जुम्म-पदं ३६४. चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलिओए । ३६५. णेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा-कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे,
कलिओए॥ ३६६. एवं-असुरकुमाराणं जाव' थणियकुमाराणं । एवं-पुढविकाइयाणं आउ-तेउ
वाउ-वणस्सतिकाइयाणं बंदियाणं तेंदियाणं चउरिदियाणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं वाणमंतर-जोइसियाणं वेमाणियाणं-सव्वेसि जहा णरइयाणं ॥
सूर-पदं
३६७. चत्तारि सूरा पण्णत्ता, तं जहा-तवसूरे, खंतिसूरे, दाणसूरे, जुद्धसूरे ।
खंतिसूरा अरहंता, तवसूरा अणगारा, दाणसूरे वेसमणे, जुद्धसूरे वासुदेवे ।। १. जत्थ णं से (ख)।
४. हरितेसबले (क, ख, ग)। २. जूसणाजूसिते (वृ)।
५. ठा० १११४३-१५० । ३. पडितातिक्खिते (क, ख, ग)।
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६४०
ठाणं
उच्चणीय-पदं ३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे
__णाम मेगे णीयच्छंदे, णीए' णाममेगे उच्चच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे ।। लेसा-पदं ३६६. असुरकुमारा चत्तारि लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा, णीललेसा,
काउलेसा, तेउलेसा॥ ३७०. एवं जाव' थणियकुमाराणं । एवं-पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सइकाइयाणं
वाणमंतराणं-सवेसि जहा असुरकुमाराणं ॥ जुत्त-अजुत्त-पदं ३७१. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा–जुत्ते गाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते,
अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते
णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ॥ ३७२. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा---जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते ॥ ३७३. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते
णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ॥ ३७४. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे
अजुत्तसोभे ॥ ३७५. चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते,
अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते
णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ॥ १. णीते (क, ख, ग)।
२. ठा० १।१४३-१५० ।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६४१ ३७६. "चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुतपरिणते, अजुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते ।। ३७७. चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते
णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ॥ ३७८. चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते
णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे ।। सारहि-पदं ३७६. चत्तारि सारही पण्णत्ता, तं जहा--जोयावइत्ता णामं एगे णो विजोयावइत्ता,
विजोयावइत्ता णाममंगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जोयाव इत्ता णाम एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णामं एगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि
विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता ॥ जुत्त-अजुत्त-पदं ३८०. चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते,
अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाम मेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते
णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाम मेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ॥ ३८१. "चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा- जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्त
परिणते ॥ १. सं० पा०—एवं जहा जाणेण "पुरिसजाया २. स० पा०–एवं जुत्तपरिणते "पुरिसजाता।
जाव सोभेत्ति ।
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६४२
ठाणं
३८२. चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त
रूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ।। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते
णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ।। ३८३. चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त
सोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे ॥ चत्तारि गया पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्त, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते
णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते ।। ३८५. "चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा -जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणत्ते, जुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे
अजुत्तपरिणते ॥ ३८६. चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा--जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त
रूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, जुत्ते
णाममेगे अजुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तरूवे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तरूवे ।। ३८७. चत्तारि गया पण्णत्ता, तं जहा --जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्त
सोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। एवामेवा चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्त
सोभे ।। पंथ-उप्पह-पदं ३८८. चत्तारि जुग्गारिता' पण्णत्ता, तं जहा-पंथजाई' णाममेगे णो उप्पहजाई,
उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उप्पहजाईवि, एगे णो पंथजाई
णो उप्पहजाई। १. सं० पा.---एवं जहा हयाण..."तहेव २. जुगारिता (ख); जुग्गायरिया (वृपा) । पुरिसजाया।
३. जाती (क, ख, ग)।
International
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च उत्थं ठाणं (तइ ओ उद्देसो)
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पंथजाई णाममेगे णो उप्पहजाई, उप्पहजाई णाममेगे णो पंथजाई, एगे पंथजाईवि उप्पहजाईवि,
एगे णो पंथजाई णो उप्पहजाई ॥ रूव-सील-पदं ३८९. चत्तारि पुप्फा पण्णत्ता, तं जहा–रूवसंपण्णे णाममेगे णो गंधसंपण्णे, गंधसंपण्णे
णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि गंधसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो गंधसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सील
संपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ जाति-पदं ३६०. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो कूलसंपण्णे,
कुलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो
जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे ॥ ३६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे,
बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो
जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे ।। ३६२. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो
जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ ३६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे,
सूयसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो
जातिसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ॥ ३६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जातिसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे,
सीलसपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे
णो जातिसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ।। ३६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे,
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ॥
१. सं० पा...-एवं जातीते य......"जातीते य चरित्तेण य ।
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६४४
ठाणं
कुल-पदं
३९६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे,
बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो
कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे ॥ ३६७. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो
कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ ३९८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे,
सुयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो
कुलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ॥ ३६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - कुलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे,
सीलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सीलसंपण्णैवि, एगे णो
कुलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ ४००. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे,
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे
णो कुलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ° ।। बल-पदं ४०१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो
बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥ ४०२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- बलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपणे,
सुयसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो
बलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ।। ४०३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--बलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपणे,
सीलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो
बलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ।। ४०४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे,
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे
णो बलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ° ॥ रूव-पदं ४०५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - रूवसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपणे
१. सं० पा०---एवं कुलेण य"चरित्तेण य ।
२. सं० पा०-एवं बलेण य""चरितण य।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देओ)
६४५ सुयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो
रूवसंपण्णे णो सुयसंपण्णे ॥ ४०६. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे,
सीलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो
रूवसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ ४०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे,
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे
णो रूवसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ॥ सुय-पदं ४०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुयसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे.
सीलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो
सुयसंपण्णे णो सीलसंपण्णे ॥ ४०९. "चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुयसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे,
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, एगे सुयसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे
णो सुयसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ° ॥ सील-पदं ४१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सीलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे.
चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, एगे सीलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो सीलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे ॥
आयरिय-पदं ४११. चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा-आमलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहरे,
खंडमहुरे। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा- आमलगमहरफलसमाणे',
'मुद्दियामहुरफलसमाणे, खीरमहुरफलसमाणे °, खंडमहुरफलसमाणे ॥ वेयावच्च-पदं ४१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—आतवेयावच्चकरे णाममेगे णो पर
वेयावच्चकरे, परवेयावच्चकरे णाममेगे णो आतवेयावच्चकरे, एगे आतवेयावच्चकरेवि परवेयावच्चकरेवि, एगे णो आतवेयावच्चकरे णो परवेयावच्चकरे ॥
१. सं० पा०–एवं रूवेण य.. चरित्तेण य । २. सं० पा०–एवं सुतेण य चरित्तेण य । ३. सं० पा०-आमलगमहरफलसमाणे जाव
खंडमहुर° । ४. वेतावच्चकरे (क, ख, ग)।
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६४६
ठाणं
४१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-करेति णाममेगे वेयावच्चं णो पडिच्छइ,
मग वेयावच्च णो करेति, एगे करेतिवि वेयावच्चं पडिच्छइवि. एगे णो करेति वेयावच्चं णो पडिच्छइ॥ अटु-माण-पदं ४१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे
णाममेगे णो अट्टकरे, एगे अट्ठकरेवि माणकरेवि, एगे णो अट्टकरे णो माणकरे ।। ४१५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गणट्टकरे णाममेगे णो माणफरे, माणकरे
णाममेगे णो गणट्टकरे, एगे गण?करेवि माणकरेवि, एगे णो गणट्टकरे णो
माणकरे ॥ ४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसंगहकरे णाममेगे णो माणकरे,
माणकरे णाममेगे णो गणसंगहकरे, एगे गणसंगहकरेवि माणकरेवि, एगे णो गणसंगहकरे णो माणकरे ।। चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गणसोभकरे णाममेगे णो माणकरे, माणकरे णाममेगे णो गणसोभकरे, एगे गणसोभकरेवि माणकरेवि, एगे णो
गणसोभकरे णो माणकरे ॥ ४१८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- गणसोहिकरे णाममेगे णो माणकरे,
माणकरे णाममेगे णो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरेवि माणकरेवि, एगे णो
गणसोहिकरे णो माणकरे ।। धम्म-पदं ४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवं णाममगे जहति णो धम्म, धम्म
णाममेगे जहति णो रूवं, एगे रूवंपि जहति धम्मपि, एगे णो रूवं जहति
णो धम्म । ४२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्म णाममेगे जहति णो गणसंठिति,
गणसंठिति णाममेगे जहति णो धम्म, एगे धम्मवि जहति गणसंठितिवि, एगे णो
धम्म जहति णो गणसंठिति ॥ ४२१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पियधम्मे णाममेगे णो दढधम्मे, दढ
धम्मे णाममेगे णो पियधम्मे, एगे पियधम्मेवि दढधम्मेवि, एगे णो पियधम्मे णो
दढधम्मे॥ आयरिय-पदं ४२२. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-पव्वावणारिए' णाममेगे णो
___ उवट्ठावणायरिए, उवट्ठावणायरिए णाममेगे णो पव्वावणायरिए, एगे १. पव्वायणा • (क्व)।
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उत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६४७
पव्वावणायरिएवि उवट्ठावणायरिए वि, एगे णो पव्वावणायरिए णो उट्ठावणारिए -- धम्मारिए ||
४२३. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा - उद्देसणायरिए णाममेगे णो वायणायरिए, वाणारि णाममेगे णो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिएवि वायणाय रिएवि, उद्देणार णो वायणायरिए - धम्मायरिए |
अंतेवास-पदं
४२४. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं जहा - पव्वावणंतेवासी णाममेगे णो उवट्ठावणंतेवासी, उवट्ठावणंतेवासी णाममेगे णो पव्वावणंतेवासी, एगे पव्वावणंतेवासीवि उवद्वावणंतेवासीवि, एगे णो पव्वावणंतेवासी णो उवट्ठावणंतेवासी - धम्मंतेवासी ॥
४२५. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं जहा — उद्देसणंतेवासी णाममेगे णो वायणंतेवासी, वायणतेवासी णाममेगे णो उद्देसणंतेवासी, एगे उद्देसणंतेवासीवि वायणंतेवासीवि, एगे णो उद्देसणंतेवासी णो वायणंतेवासी - धम्मंतेवासी ।
महाकम्म- अप्पकम्म णिग्गंथ-पदं
४२६. चत्तारि णिग्गंथा पण्णत्ता, तं जहा --
१. रातिणिए' समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए अणायावी असमिते धम्मस्स अणाराध' भवति ।
२. रातिणिए समणे णिग्गंथे अप्पकम्मे अपकिरिए आतावी समिए धम्मस्स आराहए भवति ।
३. ओमरातिणिए समणे णिग्गंथे महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति ।
४. ओमरातिणिए समणे णिग्गंथे अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिते धम्मस्स आराहए भवति ।।
महाकम्म- अप्पकम्म णिग्गंथी-पदं
४२७. चत्तारि णिग्गंथीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. रातिणिया समणी णिग्गंथी "महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति ।
२. रातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आरहिया भवति ।
१. रातिणिते ( क, ख, ग ) ।
२. अणाराधते (क, ख, ग ) ।
३. ० किरिते (क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० - एवं चैव ।
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६४५
ठाणं
३. ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । ४. ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता
धम्मस्स आराहिया भवति ॥ महाकम्म-अप्पकम्म-समणोवासग-पदं ४२८. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा
१. राइणिए समणोवासए महाकम्मे "महाकिरिए अणायावी असमिते धम्मस्स अणाराधए भवति। २. राइणिए समणोवासए अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिए धम्मस्स आराहए भवति । ३. ओमराइणिए समणोवासए महाकम्मे महाकिरिए अणातावी असमिते धम्मस्स अणाराहए भवति । ४. ओमराइणिए समणोवासए अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी समिते धम्मस्स
आराहए भवति ° ॥ महाकम्म-अप्पकम्म-समणोवासिया-पदं ४२६. चत्तारि समणोवासियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. राइणिया' समणोवासिता महाकम्मा "महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । २. राइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता धम्मस्स आराहिया भवति। ३. ओमराइणिया समणोवासिता महाकम्मा महाकिरिया अणायावी असमिता धम्मस्स अणाराधिया भवति । ४. ओमराइणिया समणोवासिता अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी समिता
धम्मस्स आराहिया भवति ° ॥ समणोवासग-पदं ४३०. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा-अम्मापितिसमाणे, भातिसमाणे,
मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे ॥ ४३१. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा-अदागसमाणे, पडागसमाणे, खाणु
समाणे, खरकंटयसमाणे ॥
१. सं० पा०–तहेव। २. रायणिता (क)।
३. सं० पा०-तहेव चत्तारि गमा। ४. खरण्टसमाणे (वृपा)।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६४६ ४३२. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स समणोवासगाणं सोधम्मे कप्पे अरुणाभे
विमाणे चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। अहुणोववण्ण-देव-पदं ४३३. चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज' माणुसं लोगं हव्वमा
गच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा१. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाइ, णो परियाणाति, णो अटुं बंधइ, णो णियाणं पगरेति, णो ठितिपगप्पं पगरेति । २. अहणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववणे, तस्स णं माणुस्सए पेमे वोच्छिण्णे दिव्वे संकते भवति । ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्मोववण्णे, तस्स णं एवं भवति-इण्हि' गच्छ मुहुत्तणं गच्छं, तेणं कालेणमप्पाउया मणुस्सा कालधम्मुणा संजुत्ता भवंति। ४. अहणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्सए गंधे पडिकूले पडिलोमे यावि' भवति, उडढंपि य णं माणुस्सए गंधे जाव चत्तारि पंच जोयणसताइं हव्वमागच्छति । इच्चेतेहिं चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणसं लोगं
हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए । ४३४. चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छि
त्तए, संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा-- १. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते. 'अगिद्धे अगढिते ° अणज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवति-अत्थि खलु मम माणस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति गणावच्छेदेति वा, जेसि पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती [दिव्वे देवाणुभावे ? ] लद्धे पत्ते अभिसमण्णागते, तं गच्छामि णं ते भगवते वंदामिणमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ० पज्जुवासामि। २. अहुणोवण्णे देवे देवलोएसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते °
१. इच्छेज्जा (क, ख, ग)। २. णिताणं (क, ख, ग)। ३. इयहिं (ख)। ४. तावि (क, ख, ग)।
५. सं० पा०-अमुच्छिते जाव अणज्झोववण्णे। ६. सं० पा०-वंदामि जाव पज्जुवासामि । ७. सं० पा०-देवलोएस जाव अणज्झोववण्णे।
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६५०
ठाण
अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति-एस णं माणुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अइदुक्कर-दुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवते वंदामि' •णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ° पज्जुवासामि । ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु 'दिव्वेसुकामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते° अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति-अत्थि णं मम माणुस्सए भवे माताति वा' 'पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा ° सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता में इममेतारूवं दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुति [दिव्वं देवाणभावं ? ] लद्धं पत्तं अभिसमण्णागतं । ४. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु 'दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते ° अणज्झोववणे, तस्स णमेवं भवति-अत्थि णं मम माणुस्सए भवे मित्तेति वा सहाति वा सुहोति वा सहाएति वा संगइएति वा, तेसि च णं अम्हे अण्णमण्णस्स संगारे पडिसुते भवति--जो मे पुद्वि चयति से संबोहेतव्वे । इच्चेतेहि 'चउहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं
हव्वमागच्छित्तए ° संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।। अंधयार-उज्जोयाइ-पदं ४३५. चउहि ठाणेहिं लोगंधगारे" सिया, तं जहा--अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं,
अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे
वोच्छिज्जमाणे ॥ ४३६. चउहि ठाणेहि लोउज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहि
पव्वयमाणेहि ",अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासू, अरहंताणं परिनिव्वाणमहिमास । ४३७. १००चउहि ठाणेहिं देवंधगारे सिया, तं जहा-अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेहि,
अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे ।।
१. सं० पा०-वंदामि जाव पज्जुवासामि। ८. सहीएति (ख)। २. सं० पा०-देवलोएसु जाव अणज्झोववण्णे । ६. जं (क) । ३. सं० पा०--माताति वा जाव सुण्हाति । १०. सं० पा० - इच्चेतेहिं जाव संचातेति । ४. तेसिमंतितं (क, ख, ग)।
११. लोगंधारे (क)। ५. इमे (ख, वृषा)।
१२. जायतेते (ख)। ६. सं० पा०-देवलोगेसु जाव अणझोववण्णे। १३. पव्वतमाणेहिं (क)। ७. सहीति (ख, ग)।
१४. सं० पा०-एवं देवंधगारे'""देवकहकहते ।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६५१ ४३८. चउहि ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४३६. चउहिं ठाणेहिं देवसण्णिवाते सिया, तं जहा--अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥ ४४०. चउहि ठाणेहिं देवुक्कलिया' सिया, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४१. चउहिं ठाणेहिं देवकहकहए सिया, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण
महिमासु ॥ ४४२. चउहि ठाणेहिं देविदा माणुसं लोगं हव्वमागच्छंति', 'तं जहा-अरहंतेहि
जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहताणं
परिणिव्वाणमहिमासु॥ ४४३. एवं सामाणिया, तायत्तीसगा, लोगपाला देवा, अग्गमहिसीओ देवीओ,
परिसोववण्णगा देवा, अणियाहिवई देवा, आय रक्खा देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छंति, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं,
अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४४. चउहि ठाणेहिं देवा अब्भुट्ठिज्जा, तं जहा -अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं
पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।। ४४५. चउहिं ठाणेहिं देवाणं आसणाई चलेज्जा, तं जहा -अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं
परिणिव्वाणमहिमासु ॥ ४४६. चउहिं ठाणेहिं देवा सीहणायं करेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण
महिमासु ॥ ४४७. चउहिं ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं करेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण
महिमासु ॥ ४४८. चउहि ठाणेहिं देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा-अरहंतेहिं जायमाणेहिं,
अरहंतेहिं पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥
""जायमाणेहिं जाव अरहंताणं "महिमासु ।
१. देवुक्कलिताते (क)। २. सं० पा०-एवं जहा तिठाणे जाव लोगंतिता
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६५३
ठाणं
४४६. चउहि ठाणेहिं लोगंतिया देवा माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं जहाअरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ॥
दुहसेज्जा-पदं
४५० चत्तारि दुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा -- से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ' अणगारिय पव्वइए णिग्गंथे पावणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेयसमावणे कलुससमावणे णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएइ, णिग्गंथं पावयणं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे' अरोएमाणे मणं उच्चावयं णियच्छति, विणिघात मावज्जति - पढमा दुहसेज्जा ।
२. अहावरा दोच्चा दुहसेज्जा - से णं मुडे भवित्ता अगाराओ' 'अणगारियं ० पव्वइएसएणं लाभेणं णो तुस्सति, परस्स लाभमा साएति पीहेति पत्येति अभिलसति, परस्स लाभमासाएमाणे "पीहेमाणे पत्थेमाणे अभिलसमाणे मणं उच्चावयं णिच्छर, विणिघातमावज्जति - दोच्चा दुहसेज्जा |
३. अहावरा तच्चा दुहसेज्जा से णं मुंडे भवित्ता' अगाराओ अणगारियं पव्वइए दिव्वे माणुस्सए कामभोगे आसाएइ "पीहेति पत्थेति • अभिलसति, दिव्वे माणुस कामभोगे आसाएमाणे ' ' पीहेमाणे पत्थेमाणे • अभिलसमाणे मणं उच्चावयं नियच्छति, विणिघात मावज्जति - तच्चा दुहसेज्जा ।
४. अहावरा चउत्था दुहसेज्जा --से णं मुंडे' भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइए, तस्स णं एवं भवति - जया णं अहमगारवासमावसामि तदा
महं संवाहण - परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाई लभामि, जप्पभिदं चणं अहं मुंडे" "भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तप्पभिदं च णं अहं संवाहण" "परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणारं णो लभामि । से णं संवाहण • परिमद्दण-गातब्भंग गातुच्छोलणाई आसाएति पीहेति पत्थेति • अभिलसति,
१. तंतस्थ (क, ख, ग ) ।
२. आगारातो ( क ग ) ।
३. अपतिएमाणे ( ख ) ।
o
८. सं० पा० ६. सं० पा० १०. सं० पा०
४. सं० पा० - अगारातो जाव पव्वतिते ।
११. सं० पा० -
५. सं० पा० – आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे । १२. सं० पा०
६. सं० पा० - भवित्ता जाव पव्वइए ।
७. सं० पा० - आसाएइ जाव अभिलसति ।
आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे ।
मुंडे जाव पव्वइए (तिते) । मुंडे जाव पव्वइए (तिते ) । संवाहण जाव गातु ।
संवाहण जाव गातु ।
१३. सं० पा०-- आसएति जाव अभिलसति ।
-
o
०
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६५३ से णं संवाहण'- परिमद्दण-गातब्भंग ° गातुच्छोलाणाई आसाएमाणे पीहेमाणे पत्थेमाणे अभिलसमाणे° मणं उच्चावयं णियच्छति, विणिघातमावज्जति
चउत्था दुहसेज्जा॥ सुहसेज्जा -पदं ४५१. चत्तारि सुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा-से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिते णिक्कंखिते णिव्वितिगिच्छिए णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ रोएति, णिग्गंथं पावयणं सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोएमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघातमावज्जति-पढमा सुहसेज्जा । २. अहावरा दोच्चा सुहसेज्जा-से णं मुंडे' 'भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए सएणं' लाभेणं तुस्सति परस्स लाभं णो आसाएति णो पोहेति णो पत्थेति णो अभिलसति, परस्स लाभमणासाएमाणे 'अपीहेमाणे अपत्थेमाणे° अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघातमावज्जतिदोच्चा सुहसेज्जा। ३. अहावरा तच्चा सुहसेज्जा-से णं मुंडे' 'भवित्ता अगाराओ अणगारियं । पव्वइए दिव्वमाणुस्सए कामभोगे णो आसाएति •णो पीहेति णो पत्थेति° णो अभिलसति, दिव्वमाणुस्सए कामभोगे अणासाएमाणे 'अपीहेमाणे अपत्थेमाणे ' अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघातमावज्जति--तच्चा सुहसेज्जा। ४. अहावरा चउत्था सुहसेज्जा-से णं मुंडे" भवित्ता अगाराओ अणगारियं° पव्वइए, तस्स णं एवं भवति--जइ ताव अरहंता भगवंतो हट्टा अरोगा बलिया कल्लसरीरा अण्णयराइं ओरालाई कल्लाणाई विउलाइं पयताइं पग्गहिताई महाणुभागाइं कम्मक्खयकरणाइं तवोकम्माइं पडिवज्जति, किमंग पुण अहं अब्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं णो सम्मं सहामि खमामि तितिक्खेमि अहियासेमि ?
ताता
१. सं० पा०-संवाहण जाव गातु° । ७. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइए। २. सं. पा.--आसाएमाणे जाव मणं । ८. सं० पा०-~णो आसाएति जाव णो अभि३. पतीइ (ख)।
लसति । ४. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वतिते ।
६. सं० पा०-अणासाएमाणे जाव अभिल५. सतेणं (क, ख, ग)।
समाणे। ६. सं० पा०-अणासाएमाणे जाव अणभिलस- १०. सं० पा.-मुंडे जाव पव्वतिते ।
माणे।
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६५४
ठाणं
ममं च णं अब्भोवगमिओवक्कमियं [वेयणं? ] सम्ममसहमाणस्स अक्खममाणस्स अतितिखेमाणस्स अणहियासेमाणस्स कि मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति ।। ममं च णं अब्भोवगमिओ"वक्कमियं [वेयणं ? ] ° सम्म सहमाणस्स' 'खममाणस्स तितिक्खमाणस्स ° अहियासेमाणस्स कि मण्णे कज्जति ?
एगतसो मे णिज्जरा कज्जति -चउत्था सुहसेज्जा ।। अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं ४५२. चत्तारि अवायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा-अविणीए, विगइपडिबद्धे', अवि
ओसवितपाहुडे, माई ॥ ४५३. चत्तारि वायणिज्जा' पण्णत्ता, तं जहा –विणोते, अविगतिपडिबद्धे', विओ
सवितपाहुडे, अमाई॥ आय-पर-पदं ४५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आतंभरे णाममेगे णो परंभरे, परंभरे
__णाममेगे णो आतंभरे, एगे आतंभरेवि परंभरेवि, एगे णो आतंभरे णो परंभरे ।। दुग्गत-सुग्गत-पदं ४५५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुग्गए, दुग्गए णाममेगे
सुग्गए, सुग्गए णाममंगे दुग्गए, सुग्गए णाममेगे सुग्गए। ४५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुव्वए, दुग्गए
णाममेगे सुव्वए, सुग्गए णाममेगे दुव्वए, सुग्गए णाममेगे सुव्वए। ४५७. चत्तारि परिसजाया पण्णता, तं जहा-दग्गए णाममेगे दप्पडिताणंदे. दग्गए
णाममगे सुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे दुप्पडिताणंदे, सुग्गए णाममेगे
सुप्पडिताणंदे ॥ ४५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, दुग्गए
णाम मेगे सुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे दुग्गतिगामी, सुग्गए णाममेगे
सुग्गतिगामी॥ ४५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दुग्गए णाममेगे दुग्गतिं गते, दुग्गए
णाममेगे सुग्गतिं गते, सुग्गए णाममेगे दुग्गतिं गते, सुग्गए णाममेगे सुग्गति गते ।।
१. सं० पा०-अब्भोवगमिओ जाव सम्म । २. सं० पा०-सहमाणस्स जाव अहियासे-
माणस्स। ३. वीए ° (क); वीई ° (ख, ग)।
४. वातणिज्जा (क)। ५. अविती० (क, ख, ग)। ६. वितोसवित° (क)। ७. अमाती (क, ख, ग)।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६५५ तम-जोति-पदं ४६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–तमे णाममेगे तमे, तमे णाममेगे जोती,
जोती णाममेगे तमे, जोती णाममेगे जोती॥ ४६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–तमे णाममेगे तमबले, तमे णाममेगे
जोतिबले, जोती णाममेगे तमबले, जोती णाममेगे जोतिबले॥ ४६२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-तमे णाममेगे तमबलपलज्जणे, तम
णाममेगे जोतिबलपलज्जणे, जोती णाममेगे तमबलपलज्जणे, जोतो णाममेगे
जोतिबलपलज्जणे॥ परिण्णात-अपरिग्णात-पदं ४६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--परिण्णातकम्मे णाममेग णो परिण्णात
सण्णे. परिणातसण्णे णाममंगे णो परिण्णातकम्म, एगे परिणातकम्मेवि
परिण्णातसण्णेवि, एगे णो परिण्णातकम्मे णो परिण्णातसण्णे ॥ ४६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--परिण्णातकम्मे णाममेगे णो परिण्णात
गिहावासे, परिणातगिहावासे णाममेगे णो परिण्णातकम्मे, एगे परिण्णातकम्मेवि
परिणातगिहावासेवि, एगे णो परिण्णातकम्मे णो परिण्णातगिहावासे ॥ ४६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता', तं जहा -परिणातसण्णे णाममेगे णो परिण्णात
गिहावासे, परिणातगिहावासे णाममगे णो परिण्णातसणे, एगे परिण्णात
सण्णेवि परिणातगिहावासेवि, एगे णो परिण्णातसपणे णो परिण्णातगिहावासे ।। इहत्थ-परत्थ-पदं ४६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-इहत्थे णाममेगे णो परत्थे, परत्थे
णाममेंगे णो इहत्थे, एगें इहत्थेवि परत्येवि, एगे णो इहत्थे णो परत्थे ।। हाणि-वुड्डि-पदं ४६७. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा–एगेणं णाममेगे वड्डति एगेणं हायति,
एगेणं णाममेगे वड्डति दोहिं हायति, दोहिं णाममेगे वड्डति एगेणं हायति, दोहिं
णाममेगे वड्डति दोहिं हायति ।। आइण्ण-खलुंक-पदं ४६८. चत्तारि पकंथगा' पण्णत्ता, तं जहा-आइण्णे णाममेगे आइण्णे, आइण्णे
णाममेगे खलुके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुके।
१. ° पज्जलणे (क, ख, ग, वृपा)।
२. पकंथका (क); कंथका (वृपा)।
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ठाणं
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णे, “आइण्णे णाममेगे खलुंके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुंके° ॥ ४६६. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णताए वहति, आइणे णाममेगे खलुंकताए' वहति, खलुंके णाममेगे आइण्णताए वहति, खलुंके णाममंगे खलुंकताए वति ।
६५६
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णताए वहति, आइणे णाममेगे खलुंकताए वहति, खलुंके णाममेगे आइण्णताए वहति, खलुंके णाममेगे खलुंकताए वहति ॥
जाति-पदं
४७०. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णाममेग णो कुल संपण्णे, कुलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो कुल संपण्णे ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णाममेगे जो कुलसंपणे, कुलसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपणेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपण्णे ||
४७१. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो बलसंपण्णे |
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो बलसंपणे, बलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो बलसंपण्णे ||
४७२. चत्तारि [ ? ] कंथगा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो रुवसंपणे, रूवसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो रुवसंपण्णे |
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपणे णाममेगे णो रूव संपवणे, रूवसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णे विरूवसंपणेवि, एगे णो जातिसंपणे णो रूवसंपण्णे ||
४७३. चत्तारि [ प ? ] कंथगा पण्णत्ता, तं जहा - जातिसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपवणे णाममेगे णो जातिसंपवणे, एगे जातिसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो जयसंपण्णे ।
१. सं० पा० - चउभंगो ।
२. विहरति ( क, ख, ग, वृपा) ।
३. खलुंकत्ताए (क, ग ) ।
४. कंथका (ख, वृपा) ।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६५७ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो जयसंपण्णे ।।
कुल-पदं
४७४. "चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे,
बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि,
एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे ॥ ४७५. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे,
रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि स्वसंपण्णेवि एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ।।। चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि,
एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे ° ।। बल-पदं ४७७. "चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूव
संपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो, बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे ॥
१. सं० पा०-एवं कुलसंपण्णण य..... "जय- २. सं० पा०-एवं बलसंपण्णण य...... पूरिससंपण्णण य ।
जाया पडिवक्खो।
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६५८
ठाणं
४७८. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जय
संपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे
णो बलसंपण्णे णो जयसंपण्णे ° ।। रूव-पदं ४७६. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णामभेगे णो जयसपण्णे, जय
संपण्णे णाममेगे णो रूवसपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि,
एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे ॥ सीह-सियाल-पदं ४८०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए
विहरइ, सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेग
णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ॥ सम-पदं ४८१. चत्तारि लोगे समा पण्णत्ता, तं जहा-अपइट्ठाणे णरए, जंबुद्दीवे दीवे, पालए
जाणविमाणे, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे॥ ४२. चत्तारि लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं पण्णत्ता, तं जहा—सीमंतए णरए,
समयक्खेत्ते, उडुविमाणे, इसीपब्भारा पुढवी ॥ बिसरीर-पदं ४८३. उद्दलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया,
वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥ ४८४. अहोलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा-"पुढविकाइया, आउकाइया,
वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥ ४८५. तिरियलोगे णं चत्तारि बिसरीरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया,
वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा ॥
१. सं० पा०-एवं चेव एवं तिरियलोए वि।
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चउत्थं ठाणं (तइओ उद्देसो)
६५६ सत्त-पदं ४८६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते,
थिरसत्ते ॥ पडिमा-पदं ४८७. चत्तारि सेज्जपडिमाओ पण्णत्ताओ ।। ४८८. चत्तारि वत्थपडिमाओ पण्णत्ताओ॥ ४८६. चत्तारि पायपडिमाओ पण्णत्ताओ। ४६०. चत्तारि ठाणपडिमाओ पण्णत्ताओ। सरीर-पदं ४६१. चत्तारि सरीरगा जीवफुडा पण्णत्ता, तं जहा वेउव्विए, आहारए, तेयए,
कम्मए।। ४६२. चत्तारि सरीरगा कम्मुम्मीसगा' पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, वेउब्बिए,
__ आहारए', तेयए' ॥
फुड-पदं
४६३. चउहिं अत्थिकाएहिं लोगे फुडे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थि
काएणं, जीवत्थिकाएणं, पुग्गलत्थिकाएणं ।। ४६४. चहिं बादरकाएहि उववज्जमाणेहिं लोगे फुडे पण्णते, तं जहा-पुढविकाइ
एहिं, आउकाइएहि, वाउकाइएहिं, वणस्सइकाइएहिं ॥
तुल्ल-पदं
४६५. चत्तारि पएसग्गेणं तुल्ला पण्णत्ता, तं जहा--धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए,
लोगागासे, एगजीवे ॥ णो सुपस्स-पदं ४६६. चउण्हमेगं सरीरं णो सुपस्सं भवइ, तं जहा-पुढविकाइयाणं, आउकाइयाणं,
तेउकाइयाणं, वणस्सइकाइयाणं ॥ इंदियत्थ-पदं ४६७. चत्तारि इंदियत्था पुट्ठा वेदेति, तं जहा-सोइंदियत्थे, घाणिदियत्थे, जिब्भि
दियत्थे, फासिंदियत्थे ॥
१. कम्ममीसगा (ख)। २. आहारते (क, ख, ग)। ३. तेतते (क, ख, ग)।
४. °कातेहिं (क, ख, ग)। ५. पस्सं (वृ); सुपस्सं (वृपा) ।
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६६०
अलोग - अगमण-पदं
४६८. चउहि ठाणेहिं जीवा य पोग्गला य णो संचाएंति बहिया लोगंता गमणयाए, तं जहा - गतिअभावेणं, णिरुवग्गह्याए, लुक्खताए, लोगाणुभावेणं ॥
णात-पदं
४६. चउव्वि णाते पण्णत्ते, तं जहा -- आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवण ।।
५००. आहरणे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा - अवाए, उवाए, ठवणाकम्मे, पडुप्पण्णविणासी ॥
५०१. आहरणतं से चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - अणुसिट्ठी', उवालंभे,
वय ॥
पुच्छा, णिस्सा५०२. आहरणतद्दोसे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवणीते, दुरुaणीते ॥
५०३. उवण्णासोवणए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - तव्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, पडिणिभे, हेतू ॥
हे उ-पदं
५०४. हेऊ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- जावए, थावए, वंसए, लूसए ।
अहवा - ऊ चव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे । अहवा - हेऊ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - अत्थित्तं अस्थि सो हेऊ, अत्थित्तं णत्थि सो हेऊ, णत्थित्तं अत्थि सो हेऊ, णत्थित्तं णत्थि सो हेऊ ॥
संखाण-पदं
५०५. चउवि संखाणे पण्णत्ते, तं जहा - परिकम्मं ववहारे, रज्जू, रासी ॥ अंधगार- उज्जोय-पदं
५०६. अहोलोगे णं चत्तारि अंधगारं करेंति, तं जहा - णरगा, रइया, 'पावाई कम्माई, असुभा पोग्गला ||
ठाणं
१. अणुट्ठे (क, ग ) ।
२. पडिकम्म (क, ख, ग ) ।
,
५०७ तिरियलोगे णं चत्तारि उज्जोत करेंति, तं जहा - चंदा, सूरा, मणी, जोती ॥ तं जहा - देवा, देवीओ, विमाणा,
५०८. उड्डलोगे णं चत्तारि उज्जोतं करेंति,
आभरणा ||
३. पाव- कम्माई (क, ग) ।
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६६१
चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
चउत्थो उद्देसो पसप्पग-पदं ५०६. चत्तारि पसप्पगा पण्णत्ता, तं जहा-अणुप्पण्णाणं भोगाणं उप्पाएत्ता' एगे
पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं भोगाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए, अणुप्पण्णाणं सोक्खाण उप्पाइत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं सोक्खाणं अविप्पओगेणं एगे
पसप्पए॥ आहार-पदं ५१०. णेरइयाणं चउविहे आहारे पणत्ते, तं जहा- इंगालोवमे, मुम्मुरोवमे, सीतले,
हिमसीतले ॥ ५११. तिरिक्खजोणियाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-कंकोवमे, बिलोवमे,
पाणमंसोवमे, पुत्तमंसोवमे। ५१२. मणुस्साणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ।। ५१३. देवाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा -वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते॥ आसीविस-पदं
चत्तारि जातिआसीविसा पण्णत्ता, तं जहा–विच्छ्यजातिआसीविसे', मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजातिआसीविसे, मणुस्सजातिआसीविसे । विच्छ्यजातिआसीविसस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? पभू णं विच्छ्यजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणयं' विसट्टमाणि करित्तए। विसए से विसट्ठताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स •णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोदि विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणि “करित्तए। विसए से विसठ्ठताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा° करिस्संति वा । उरगजाति आसीविसस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? पभू णं उरगजातिआसीविसे जंबुद्दीवपमाणमत्तं बोंदि विसेणं "विसपरिणयं
१. उप्पायत्ता (क, ग)। २. ० जातीयासीविसे (क, ख, ग) सर्वत्र । ३. विसपरिगयं (वृपा)। ४. इह चैकवचनप्रक्रमेऽपि बहुवचननिर्देशो वृश्चि-
काशीविषाणां बहुत्वज्ञापनार्थम् (वृ)।
५. सं० पा०-मंडुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा। ६. सं० पा०-सेसं तं चेव जाव करिस्संति । ७. सं० पा०-उरगजाति पुच्छा। ८. सं० पा०-सेसं तं चेव जाव करिस्सति ।
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६६२
ठाणं विसट्टमाणि करित्तए। विसए से विसद्वताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा° करिस्संति वा । मणस्सजाति आसीविस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ° ? पभू णं मणुस्सजातिआसीविसे समयखेत्तपमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणतं विसट्टमाणि करेत्तए। विसए से विसट्ठताए, णो चेव णं' 'संपत्तीए करेंसु वा
करेंति वा° करिस्संति वा ॥ वाहि-तिगिच्छा-पदं ५१५. चउविहे वाही पण्णत्ते, तं जहा–वातिए, पित्तिए, सिभिए, सण्णिवातिए । ५१६. चउव्विहा तिगिच्छा पण्णत्ता, तं जहा-विज्जो, ओसधाई, आउरे, परियारए। ५१७. चत्तारि तिगिच्छगा पण्णत्ता, तं जहा-आततिगिच्छए णाममेगे णो पर
तिगिच्छए, परतिगिच्छए णाममेगे णो आततिगिच्छए, एगे आततिगिच्छएवि
परतिगिच्छएवि, एगे णो आततिगिच्छए णो परतिगिच्छए । वणकर-पदं ५१८. चतारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-वणकरे णाममेगे णो वणपरिमासी,
वणपरिमासी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणपरिमासीवि, एगे णो
वणकरे णो वणपरिमासी॥ ५१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वणकरे णाममेगे णो वणसारक्खी,
वणसारक्खी णाममेगे, णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसारक्खीवि, एगे णो
वणकरे णो वणसारक्खी ।। ५२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वणकरे णाममेगे णो वणसरोही'
वणसरोही णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसरोहीवि, एगे णो वण
करे णो वणसरोही। अंतोबाहि-पदं ५२१. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा-अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले
णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अंतोसल्ले णाममेगे णो
३. ° सारोठी (ग)।
- १. सं० पा०-मणुस्सजाति पुच्छा।
२. सं० पा०-णो चेव णं जाव करिस्संति।
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चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
६६३ बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि,
एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले ।। ५२२. चत्तारि वणा पण्णता, तं जहा-अंतोदुढे णाममेगे णो बाहिंदुद्वे, बाहिंदुद्वे
णाममेगे णो अंतोदुटे, एगे अंतोदुद्वेवि बाहिंदुहृवि, एगे णो अंतोदुढे णो बाहिंदुटे । एवामेव चत्तारि परिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--अंतोदे णाममेगे णो बाहिदुद्वे, बाहिंदुद्वे णाममेगे णो अंतोदुट्टे, एगे अंतोदुद्वेवि बाहिंदुद्वेवि, एगे णो अंतो
दुढे णो बाहिंदुद्वे ॥ सेयंस-पावंस-पदं ५२३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे णाममेगे
पावंसे, पावंसे णाममेगे सेयंसे, पावसे णाममेगे पावसे ।। ५२४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए,
सेयंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, पावंसे
णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए॥ ५२५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्ति मण्णति, सेयंसे
णाममेगे पावंसेत्ति मण्णति, पावंसे णाममेगे सेयंसेत्ति मण्णति, पावंसे णाममेगे
पावंसेत्ति मण्णति ॥ ५२६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए
मण्णति. सेयंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए मण्णति. पावसे णाममेगे सेयंसेत्ति
सालिसए मण्णति, पावंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए मण्णति ।। आघवण-पदं ५२७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे णो पविभावइत्ता',
पविभावइत्ता णाममेगे णो आघवइत्ता, एगे आघवइत्तावि पविभावइत्तावि,
एगे णो आघवइत्ता णो पविभावइत्ता ।। ५२८ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे णो उंछजीवि
संपण्णे, उंछजीविसंपण्णे णाममेगे णो आघवइत्ता, एगे आघवइत्तावि उंछजीवि
संपण्णेवि, एगे णो आघवइत्ता णो उंछजीविसंपण्णे ।। रुक्खविगुव्वणा-पदं ५२६. चउव्विहा रुक्खविगुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा-पवालत्ताए, पत्तत्ताए', पुप्फत्ताए,
फलत्ताए।
१. परि° (ग)।
२. पण्णत्ताए (क, ख, ग)।
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६६४
ठाणं
वादिसमोसरण-पदं ५३०. चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा-किरियावादी, अकिरियावादी,
अण्णाणियावादी, वेणइयावादी॥ ५३१. णेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा-किरियावादी', 'अकि
रियावादी, अण्णाणियावादी° वेणइयावादी॥ ५३२. एवमसुरकुमाराणवि जाव' थणियकुमाराणं । एवं-विगलिंदियवज्जं जाव'
वेमाणियाणं ॥ मेह-पदं ५३३. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता
णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो वासित्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता
णो वासित्ता॥ ५३४. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा—गज्जित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता,
विज्जयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गज्जित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि विज्जु
याइत्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता ॥ ५३५. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-वासित्ता णाममेगे णो विज्जयाइत्ता, विज्जु
याइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि, एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–वासित्ता णाममेगे णो विज्जयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्तावि विज्जुयाइत्तावि,
एगे णो वासित्ता णो विज्जुयाइत्ता॥ ५३६. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-कालवासी णाममेगे णो अकालवासी,
अकालवासी णाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासीवि अकालवासीवि, एगे णो कालवासी णो अकालवासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-कालवासी णाममेगे णो
१. सं० पा०-किरियावादी जाव वेणइयावादी। ३. ठा० १११६०-१६३ । २. ठा० १३१४३-१५० ।
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चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
अकालवासी, अकालवासी णाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासीवि अकाल
वासीवि, एगे णो कालवासी णो अकालवासी ॥ ५३७. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्त
वासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि, एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्तवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासीवि अखेत्तवासीवि,
एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी ।। अम्म-पियर-पदं ५३८. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा--जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्म
वइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्मवइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो णिम्मवइत्ता। एवामेव चत्तारि अम्मपियरो पण्णत्ता, तं जहा-जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्तावि णिम्म
वइत्तावि, एगे णो जणइत्ता णो णिम्मवइत्ता ।। राय-पद ५३६. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-देसवासी णाममेगे णो सव्ववासी, सव्ववासी
णाममेगे णो देसवासों, एगे देसवासीवि सव्ववासीवि, एगे णो देसवासी णो सव्ववासी। एवामेव चत्तारि रायाणो पण्णत्ता, तं जहा–देसाधिवती णाममेगे णो सव्वाधिवती, सव्वाधिवती णाममेगे णो देसाधिवती, एगे देसाधिवतीवि
सव्वाधिवतीवि, एगे णो देसाधिवती णो सव्वाधिवती॥ मेह-पदं ५४०. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-पुक्खलसंवट्टते, पज्जुण्णे, जीमूते, जिम्मे ।
पुक्खलसंवट्टए णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससहस्साई भावेति । पज्जुण्णे णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवाससयाइं भावेति । जीमूते णं महामेहे एगणं वासेणं
१. खेत्तावासी (ख)।
'पज्जण्ण' शब्दस्य 'पज्जुण्ण' इति न जातम् ? २. प्राप्तादर्शेषु सर्वत्रापि 'पज्जुण्णे' इति पाठो किन्तु अत्र मेघस्य विशिष्टप्रकारा निर्दिष्टाः
लभ्यते । भगवत्यां (१४।२१) सामान्यमेघाथ सन्ति, तेन 'पज्जुण्ण' इति पाठो पिनासंभवी। 'पज्जण्णे' इति पाठो विद्यते । तमनुसृत्या- ३. जिम्हे (क्व)। त्रापि संदेहो जायते, क्वचित् लिपिदोषेण
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ठाणं
दसवासाइं भावेति । जिम्मे णं महामेहे बहूहि वासेहिं एगं वास भावेति वा ण
वा भावेति ।। आयरिय-पदं ५४१. चत्तारि करंडगा पण्णत्ता, तं जहा-सोवागकरंडए, वेसियाकरंडए, गाहावति
करंडए, रायकरंडए। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-सोवागकरंडगसमाणे, वेसियाकरं
डगसमाणे, गाहावतिकरंडगसमाणे, रायकरंडगसमाणे ॥ ५४२. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे
एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे
एरंडपरियाए॥ ५४३. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे
एरंडपरिवारे, एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे एरंडपरिवारे । एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा-साले णाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे एरंडपरिवारे, एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे
एरंडपरिवारे। संगहणी-गाहा
सालदुममज्झयारे, जह साले णाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, सुंदरसीसे मुणयव्वे ॥१॥ एरंडमझयारे, जह साले णाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥२॥ सालदुममज्झयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया। इय मंगुलआयरिए, सुंदरसीसे मुणेयव्वे ॥३॥ एरंडमझयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया।
इय मंगुलआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥४॥ भिक्खाग-पदं ५४४. चत्तारि मच्छा पण्णत्ता, तं जहा–अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी,
मज्झचारी। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मज्झचारी॥
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चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) गोल-पदं ५४५. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा-मधुसित्थगोले, जउगोले, दारुगोले,
मट्टियागोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–मधुसित्थगोलसमाणे,
जउगोलसमाणे, दारुगोलसमाणे, मट्टियागोलसमाणे॥ ५४६. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा–अयगोले, तउगोले, तंबगोले, सीसगोले ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अयगोलसमाणे', 'तउगोल
समाणे, तंबगोलसमाणे°, सीसगोलसमाणे ॥ ५४७. चत्तारि गोला पण्णत्ता, तं जहा-हिरण्णगोले, सुवण्णगोले, रयणगोले,
वयरगोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-हिरण्णगोलसमाणे, 'सुवण्णगोलसमाणे, रयणगोलसमाणे °, वयरगोलसमाणे ॥
पत्त-पदं
५४८. चत्तारि पत्ता पण्णत्ता, तं जहा-असिपत्ते, करपत्ते, खुरपत्ते, कलंबचीरियापत्ते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–असिपत्तसमाणे', 'करपत्तसमाणे, खुरपत्तसमाणे °, कलंबचीरियापत्तसमाणे ।।
कड-पदं
५४६. चत्तारि कडा पण्णत्ता, तं जहा—सुबकडे, विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–सुंबकडसमाणे", "विदलकड
समाणे, चम्मकडसमाणे, ° कंबलकडसमाणे ॥ तिरिय-पदं ५५०. चउव्विहा चउप्पया पण्णत्ता, तं जहा–एगखुरा, दुखुरा, गंडीपदा, सणप्फया। ५५१. चउव्विहा पक्खी पण्णता, तं जहा-चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी,
विततपक्खी॥ ५५२. चउन्विहा खुड्डपाणा पण्णत्ता, तं जहा–बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया,
समुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया ।
१. सं० पा०---अयगोलसमाणे जाव सीसगोल । चीरिता । २. सं० पा-हिरण्णगोलसमाणे जाव वइर- ४. सुंठकडे (क, ख, ग)। गोल° ।
५. सं० पा०-सुंबकडसमाणे जाव कंबलकड ! ३. सं० पा० - असिपत्तसमाणे जाव कलंब- ६. सणप्पदा (क); सणपदा (ग)।
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भिक्खाग-पदं
५५३. चत्तारि पक्खी पण्णत्ता, तं जहा - णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता ।
ठाणं
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिवतित्ता णाममेगे णो परिवइत्ता, परिवइत्ता णाममेगे णो णिवतित्ता, एगे णिवतित्तावि परिवइत्तावि, एगे णो णिवतित्ता णो परिवइत्ता ।।
free- अणिक्कट्ठ-पदं
५५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्ठे, णिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कट्टे, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्ठे, अणिक्कट्ठे णाममेगे Safar I
५५५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - णिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्टप्पा, णिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कट्टप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे णिक्कट्टप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे afragar ||
बुध-बुध-पदं
५५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - बुहे णाममेगे बुहे, बुहे णाममेगे अबुहे, अबु णामगे बु, अबु णाममे अबु ||
५५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- बुधे णाममेगे बुधहियए', बुधे णाममे refore, अबुधे णाममेगे बुधहियए, अबुधे णाममेगे अबुधहियए ।। अणुकंप-पदं
५५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - आयाणुकंपए णाममेगे णो पराणुकंपए, पराणुकंप णाममेगे णो आयाणुकंपए, एगे आयाणुकंपएवि पराणुकंपएवि, एगे आपण पराणुकंपए ||
संवास-पदं
५५६. चउब्विहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - दिव्वे, आसुरे, रक्खसे, माणुसे || ५६०. चउव्विहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, देवे णाम असुरी सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६१. चउव्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति,
१. बुहबोहिए ( ख ) ।
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त्थं ठाणं (उत्थो उद्देसो)
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देवे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति ॥
५६२. चउब्विधे संवासे पण्णत्ते, 'जहा -- देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, देवे णाममेगे मणुस्सीए' सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धिं संवासं गच्छति ॥
५६३. चउव्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६४. चउव्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे असुरी सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति ॥ ५६५. चउव्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा - रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवा गच्छति, रक्खसे णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति ॥
अवद्धंस-पदं
५६६. चउव्विहे अवद्धंसे पण्णत्ते, तं जहा - आसुरे, आभिओगे, संमोहे, देव कब्बिसे । ५६७. चउहिं ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए कम्मं पगति, तं जहा- कोवसीलताए', पाहुडसी लताए, संसत्ततवोकम्मेणं णिमित्ताजीवया ॥
५६८. चउहि ठाणेहिं जीवा आभिओगत्ताए कम्मं पगति, तं जहा -- अत्तुक्कोसेणं, परपरिवारणं भूतिकम्मेणं, कोउयकरणं ॥
५६६. चउहि ठाणेहिं जीवा सम्मोहत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - उम्मग्गदेसणाए, मग्गंत एणं, कामासंसपओगेणं, भिज्जाणियाणकरणेणं ॥
५७०. चउहि ठाणेहिं जीवा देवकिब्बिसियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणमवण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवणं वदमाणे ।।
१. मणुस्सीहि देवीहि मणुस्सीहि - एषु बहुवचनं लिपिदोषेण जातमिति संभाव्यते । एकस्मिन् आदर्श 'मणुस्सीई' इति लभ्यते । एकारस्य स्थाने इकारो जातः, तत् स्थाने च 'हि' इति जातम् । पूर्वापरसूत्रेषु सर्वत्र एकवचनमेव
दृश्यते ।
२. अभिओगे (क, ख, घ) । ३. क्रोध • ( ख ) ; क्रोधन ( वृ) । ४. ० जीवाते ( ग ) ।
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६७०
पव्वज्जा-पदं
५७१. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहतो लोग डिबद्धा, अप्पडिबद्धा ||
५७२ - चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - पुरओपडिबद्धा, मग्गओपडिबद्धा, दुहतोडबद्धा, अप्पबिद्धा ||
ठाण
५७३. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - ओवायपव्वज्जा, अक्खातपव्वज्जा, संगारपव्वज्जा, विहगगइपव्वज्जा' ॥
५७४. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता', परियावइत्ता ॥
५७५. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - णडखइया, भडखइया, सोहखइया, सियालखइया ||
५७६. चउव्विहा किसी पण्णत्ता, तं जहा - वाविया, परिवाविया, णिदिता परिणिदिता ।
एवामेव चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - वाविता, परिवाविता, णिदिता, परिणिदिता ॥
५७७. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा - घण्णपुंजितसमाणा धण्णविरल्लितसमाणा, धण्णविक्खित्तसमाणा, धण्णसंकट्टितसमाणा ||
सण्णा-पदं
५७८. चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा ||
५७६. चउहि ठाणेहिं आहारसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - ओमकोट्ठताए, छुहावेणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥
५८०. चउहि ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - हीणसत्तताए, भयवेयणिज्जस्स' कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥
५८१. चउहि ठाणेहिं मेहुणसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - चितमंससोणिययाए, मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥
५८२. चउहि ठाणेहिं परिग्गहसण्णा समुप्पज्जति, तं जहा - अविमुत्तयाए, लोभवेणिज्जस्स' कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ॥
१. विहगपव्वज्जा ( क, ख, ग, वृपा) । २. उयावइत्ता (वृपा) ।
३. मोयावइत्ता (क, ख, ग, वृपा) ।
४. परिपूयावइत्ता (क, ग ); परिवुयावइत्ता
(ख, वृ) ।
५. भयमोहणिज्जस ( क) ।
६. लोभमोहणिज्जस्स ( क ) ।
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चउत्यं ठाणं (च उत्थो उद्देसो)
६७१
काम-पदं ५८३. चउव्विहा कामा पण्णत्ता, तं जहा-सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोहा। सिंगारा
कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं,
रोद्दा कामा णेरइयाणं ।। उत्ताण-गंभीर-पदं ५८४. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाम
मेगे गंभीरोदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहिदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरहिदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणहिदए, गंभीरे णाममेगे
गंभीरहिदए। ५८५. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे
णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासो, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे
गंभीरोभासी॥ ५८६. चत्तारि उदही पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदही, उत्ताणे णाम
मेगे गंभीरोदही, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदही, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदही। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहियए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरहियए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणहियए, गंभीरे णाममेगे
गंभीरहियए॥ ५८७. चत्तारि उदही पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे
णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, गंभीरे णाममेगे
गंभीरोभासी॥ तरग-पदं ५८८. चत्तारि तरगा पण्णत्ता,तं जहा-समुदं तरामीतेगे समुदं तरति, समुदं तरामीतेगे
गोप्पयं' तरति,गोप्पयं तरामीतेगे समुदं तरति,गोप्पयं तरामीतेगे गोप्पयं तरति।।
१. गोप्पतं (क, ख, ग) सर्वत्र ।
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६७२
ठाणं
५८९. चत्तारि तरगा पण्णत्ता, तं जहा-समुदं 'तरेत्ता णाममंगे' समझे विसीयति',
समुदं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए विसीयति, गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे सम द्दे विसी
यति, गोप्पयं तरेत्ता णाममेगे गोप्पए विसीयति ।। पुण्ण-तुच्छ-पदं ५६०. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुणे, पुण्णे णाममेगे तुच्छे,
तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णे, पुण्णे
णाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुण्णे, तुच्छे णाममेगे तुच्छे । ५६१. चत्तारि कुंभा पण्णता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे णाममेगे
तुच्छोभासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे तुच्छोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे णाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे णाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे णाममेगे
तुच्छोभासी॥ ५६२. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा -पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेगे तुच्छ
रूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुणे
णाममेगे तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेगे तुच्छरूवे ।। ५६३. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे पियट्टे', पुण्णेवि एगे अवदले',
तुच्छेवि एगे पियट्टे, तुच्छेवि एगे अवदले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे पियट्टे, "पुण्णेवि
एगे अवदले, तुच्छेवि एगे पियट्टे, तुच्छेवि एगे अवदले ° ॥ ५६४. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे विस्संदति, पुणेवि एगे णो
विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पुण्णेवि एगे विस्संदति, "पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो
विस्संदति ॥ चरित्त-पदं ५६५. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा–भिण्णे, जज्जरिए, परिस्साई, अपरिस्साई ।
१. तरामीतेगे (क)। २. सीतति (क); विसीतति (ख, ग)। ३. पित? (क, ख, ग)।
४. अबद्दले (क, ख, ग)। ५. सं० पा०-तहेव। ६. सं० पा०-तहेव ।
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६७३
चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
एवामेव चउविहे चरित्ते पण्णत्ते, तं जहा-भिण्णे', 'जज्जरिए, परिस्साई ,
अपरिस्साई॥ महु-विस-पदं ५९६. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा-महुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे
विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकंभे णाममेगे विसपिहाणे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-महुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे
विसपिहाणे। संगहणी-गाहा
हिययमपावकलुसं, जीहाऽवि य महुरभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से मधुकुंभे मधुपिहाणे ॥१॥ हिययमपावकलुसं, जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से मधुकुंभे विसपिहाणे ॥२॥ जं हिययं कलुसमयं, जीहाऽवि य मधुरभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से विसकुंभे महुपिहाणे ॥३॥ जं हिययं कलुसमयं, जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं ।
जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से विसकुंभे विसपिहाणे ॥४॥ उवसग्ग-पदं ५६७. चउविवहा उवसग्गा पण्णत्ता, तं जहा-दिव्वा, माणुसा, तिरिक्खजोणिया,
आयसंचेयणिज्जा। ५६८. दिव्वा उवसग्गा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा–'हासा, पाओसा," वीमंसा,
पुढोवेमाता ॥ ५६६. माणुसा' उवसग्गा वउव्विहा पण्णता, तं जहा-हासा, पाओसा, वीमंसा,
कुसीलपडिसेवणया । ६००. तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा-भया', पदोसा, आहार
हेउं, अवच्चलेण-सारक्खणया ।। ६०१. आयसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-घट्टणता, पवडणता,
थंभणता, लेसणता॥
१. सं० पा०-भिण्णे जाव अपरिस्साई। २. आयसंवेय (क)। ३. हास पउस (ख)।
४. माणुस्सा (ग)। ५. भता (क, ख, ग)।
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६७४
कम्म-पदं
६०२. चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - सुभे णाममेगे सुभे, सुभे णाममेगे असुभे, असुभे णामगे सुभे, असुभे णाममेगे असुभे ॥
६०३. चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - सुभे णाममेगे सुभविवागें, सुभे णाममेगे असुभविवागे, असुभे णाममेगे सुभविवागे, असुभे णाम मेगे असुभविवागे ॥ ६०४. चउवि कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - पगडीकम्मे, ठितीकम्मे, अणुभावकम्मे, पदेसकम् ॥
संघ-पदं
६०५. चउव्विहे संघे पण्णत्ते, तं जहा - समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ || बुद्धि-पदं
६०६. चउव्विहा बुद्धी पण्णत्ता, तं जहा - उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मिया, परिणामिया ॥ मइ-पदं
६०७. चउव्विहा मई पण्णत्ता, तं जहा - उग्गहमती, ईहामती, अवायमती, धारणामती ।
ठाणं
अहवा - चउव्विहा मती पण्णत्ता, तं जहा - अरंजरोदगस माणा, वियरोदगसमाणा, सरोदगसमाणा, सागरोदगसमाणा ॥
जीव-पदं
६०८. चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइया तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा, देवा ॥
६०६. चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी,
अजोगी ।
अहवा - चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थिवेयगा, पुरिसवेयगा, पुंसकवेयगा, अवेयगा ।
अहवा - चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, ओहिदंसणी, केवलदंसणी ।
अहवा - चउव्विहा सव्वजोवा पण्णत्ता, तं जहा - संजया, असंजया, संजयासंजया, गोसंजया णोअसंजया ||
मित्त अमित्त-पदं
६१० चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्ते णाममेगे अमित्ते. अमित्ते णाममेगे मित्ते, अमित्ते णाममेगे अमित्तं ॥
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॥3
चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
६७५ ६११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, "मित्ते
णाममेगे अमित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे ॥ मुत्त-अमुत्त-पदं ६१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुत्ते णाममेगे
अमुत्ते, अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, अमुत्ते णाममेगे अमुत्ते॥ ६१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुत्ते णाममंगे
अमुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे ।। गति-आगति-पदं ६१४. पंचिदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया पण्णत्ता, तं जहा-पंचिंदिय
तिरिक्खजोणिए पचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणे णेरइएहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहितो वा, मणुस्सेहितो वा, देवेहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पंचिदियतिरिक्खजोणिए पंचिदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा', 'तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा', देवत्ताए वा गच्छेज्जा ॥ मणुस्सा चउगइआ चउआगइआ "पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्से मणुस्सेस उववज्जमाणे णेरइएहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणस्सेहिंतो वा, देवेहितो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से मणस्से मणुस्सत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, तिरिक्खजोणिय
त्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा ° ॥ संजम-असंजम-पदं ६१६. बेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स चउबिहे संजमे कज्जति, तं जहा
जिब्भामयातो सोक्खातो अववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, फासामएणं
दुक्खणं असंजोगित्ता भवति ॥ ६१७. बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स चउविधे असंजमे कज्जति, तं जहा
जिब्भामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, "फासामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति ॥
१. सं० पा०-चउभंगो। २. उववज्जमाणा (क्व)। ३. सं० पा०–णेरइयत्ताए वा जाव देवत्ताए।
४. उवागच्छेज्जा (क्व)। ५. सं० पा०-एवं चेव मणुस्सावि । ६. सं० पा०–एवं चेव ।
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६७६
ठाणं
किरिया-पदं ६१८. सम्मद्दिटियाणं जरइयाणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया,
पारिग्गहिया, मायावत्तिया', अपच्चक्खाणकिरिया ।। ६१६. सम्मद्दिट्ठियाणमसुरकुमाराणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
___ "आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया ° ॥ ६२०. एवं विगलिंदियवज्जं जाव' वेमाणियाणं ॥
गुण-पदं
६२१. चउहि ठाणेहिं संते गुणे णासेज्जा, तं जहा-कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए,
मिच्छत्ताभिणिवेसेणं ॥ ६२२. चउहि ठाणेहिं असंते गुणे दीवेज्जा, तं जहा-अब्भासवत्तियं, परच्छंदाणु
वत्तियं, कज्जहेउं, कतपडिकतेति वा ।। सरीर-पदं ६२३. णेरइयाणं चउहिं ठाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा–कोहेणं', माणेणं, मायाए,
लोभेणं ॥ ६२४. एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ६२५. णेरइयाणं चउट्ठाणणिव्वत्तिते सरीरे पण्णत्ते, तं जहा --कोहणिव्वत्तिए', 'माण
णिव्वत्तिए, मायाणिव्वत्तिए °, लोभणिव्वत्तिए । ६२६. एवं जाव वेमाणियाणं ॥ धम्म-दार-पदं ६२७. चत्तारि धम्मदारा पण्णत्ता, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे ॥ आउ-बंध-पदं ६२८. चउहि ठाणेहिं जीवा जेरइयाउयत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा - महारंभताए,
महापरिग्गयाए", पंचिदियवहेणं, कुणिमाहारेणं ॥ ६२६. चउहि ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणिय [आउय ? ] त्ताए कम्मं पगरेंति, तं
जहा–माइल्लताए, णियडिल्लताए, अलियवयणेणं, कुडतुलकडमाणेणं ।।
१. मातावत्तिया (क, ख, ग)। २. सं० पा०--एवं चेव। ३. ठा० १।१४३-१५१, १६०-१६३ । ४. संते (क, ख, ग, वृपा)। ५. कोवेणं (क, ग)। ६. ठा० १११४२-१६३ ।
७. सरीरए (क)। ८. सं. पा.--कोहणिव्वत्तिए जाव लोभ । ६. ठा० १११४२-१६३ । १०. रतियत्ताए (क, ख, ग, वृ); णेरइयाउय
त्ताए (वृपा)। ११. १ परिग्गहाते (क)।
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६७७
चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो) ६३०. चउहि ठाणेहि जीवा मणुस्साउयत्ताए' कम्म पगरेंति, तं जहा--पगतिभद्दताए,
पगतिविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरिताए । ६३१. चउहि ठाणेहिं जोवा देवाउयत्ताए कम्म पगरेंति, तं जहा–सरागसंजमेणं,
संजमासंजमेणं, बालतवोकम्मेणं, अकामणिज्जराए । वज्ज-णट्टआइ-पदं ६३२. चउविहे वज्जे पण्णत्ते, तं जहा-तते, वितते, घणे, झुसिरे ।। ६३३. चउविहे गट्टे पण्णत्ते, तं जहा-अंचिए, रिभिए, आरभडे, भसोले । ६३४. चउव्विहे गेए पण्णत्ते, तं जहा–'उक्खित्तए, पत्तए, मंदए, रोविंदए" ।। ६३५. चउव्विहे मल्ले पण्णत्ते, तं जहा-गंथिमे, वेढिमे, पूरिम', संघातिम ॥ ६३६. चउव्विहे अलंकारे पण्णत्ते, तं जहा–केसालंकारे, वत्थालंकारे, मल्लालंकारे,
आभरणालंकारे।। ६३७. चउबिहे अभिणए पण्णत्ते, तं जहा–'दिलृतिए, पाडिसुते', सामण्णओविणि
वाइयं', लोगमज्भावसिते॥
१. मणुस्सत्ताते (ख)।
स्थानाङ्गवृतौ तु नास्ति व्याख्यातोसौ पाठः । २. भिसोले (क, ग)।
स्वयं वृत्तिकारणालेखि-नाटयगेयाभिनय३. मेदए (क)।
सूत्राणि सम्प्रदायाभावान्न विवृतानि । ४. रायपसेणइयसुत्ते (११५, २८१ सूत्रयोः)
-वृत्ति पत्र २७२। क्रमशः --'उक्खित्तं पायंत मंदायं रोइया- ५. पूतिमे (क)। वसाण' 'उक्खित्तायं पायंतायं मंदायं रोइया- ६. पाडसुते (क, ग); पाडुसुत्ते (क्व)। वसाणं' पाठः प्राप्यते । तत्रापि २८१ सूत्रे ७. सामंतोवातणिते (क, ख, ग)। प्रतिष 'रोइंदावसाणं' पाठोऽस्ति, किन्तु वृत्ति- ८. मझो (ख)। कारेण 'रोइयावसाणं' पाठोऽस्ति व्याख्यातः ।
६. रायपसेणइय (सूत्र ११७, २८१)
स्थानाङ्ग (४।६३७)
जीवाभिगम (३२)
दिद्वंतिय पाडतिय सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं
दिटुंतिए पाडिसुते सामन्नओविणिवाइयं लोगमज्झावसिते
दिलृतियं पाडिसुयं सामन्नओविणिवाइय लोगमज्झावसाणियं
स्थानाङ्गवृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसौ पाठः । जीवाभिगमस्य पाठो वृत्तिमनुसृत्यास्माभिरुदृङ्कितः । रायपसेणइयसूत्रे प्रथमवारमसौ
व्याख्यातोस्ति–'दार्टान्तिकम् प्रात्यन्तिकम सामान्यतोविनिपातम् लोकमध्यावसानिकम।'
--वृत्ति पत्र १४५॥
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६७८
विमाण-पदं
६३८. सणकुमार - माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा चउवण्णा पण्णत्ता, तं जहा - णीला, लोहिता, हालिद्दा, सुविकल्ला ॥
देव-पदं
६३६. महासुक्क सहस्सारेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
गब्भ-पदं
६४०. चत्तारि दगगब्भा' पण्णत्ता, तं जहा - उस्सा, महिया, सीता, उसिणा । ६४१ . चत्तारि दगगन्भा' पण्णत्ता, तं जहा - हेमगा, अब्भसंथडा, सीतोसिणा, पंचरूविया ।
संग्रहणी - गाहा
माहे उमगा गब्भा, फग्गुणे अब्भसंथडा । सीतोसिणा उ चित्ते, वइसाहे' पंचरूविया ॥ १ ॥
६४२. चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, बिबताए ।
संग्रहणी - गाहा
ठाण
अप्पं सुक्कं बहुं ओयं, इत्थी तत्थ पजायति । अप्पं अयं बहु सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायति ॥ १ ॥ दोहंपि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावे णपुंसओ । इत्थी - ओय' - समायोगे', बिंबं तत्थ पजायति ॥२॥
पुव्ववत्थु पर्द
६४३. उप्पायपुव्वस्स णं चत्तारि चलवत्थू पण्णत्ता ॥
ऽस्ति पाठः । एतौ द्वावपि 'रायपसेणइय ' सूत्रस्य 'पाडंतिय' शब्दाद् वाचनाभेद
गच्छतः ।
वृत्त्यनुसारेणात्र 'सामन्नओविणिवातं' पाठो युज्यते । जीवाभिगमवृत्तावपि 'सामान्यतोविनिपातिकम्' इति व्याख्यातमस्ति । आदर्शषु 'सामंतोवणिवाइयं' जातम् । सम्भवतः 'सामन्नओ' स्थाने 'सामन्नो' जातः, अस्यैव 'सामन्तो' रूपे परिवर्तनं जातमिति प्रतीयते । स्थानाङ्गे 'पाडिसुते' पाठस्तथा
१. उदग० ( क ) ।
२. उदग ० ( क ग ) ।
३. वतिसाहे (क, ख, ग ) । ४. तोत (क, ख, ग ) ।
जीवाभिगमवृत्तौ प्रतिश्रुतिकम्' इति व्याख्यातो- ५. समातोगे (क, ख, ग ) ।
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चउत्थं ठाणं (चउत्थो उद्देसो)
६७४
कव्व-पदं ६४४. चउव्विहे कव्वे पण्णत्ते, तं जहा-गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेए ।। समुग्घात-पदं ६४५. णेरइयाणं चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्धाते, कसायसमुग्घाते,
___मारणंतियसमुग्धाते, वेउव्वियसमुग्घाते । ६४६. एवं-वाउक्काइयाणवि ॥ चोदसपुव्वि-पदं ६४७. अरहतो णं अरिटुणेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुवीणमजिणाणं जिणसंकासाणं
सव्वक्खरसण्णिवाईणं जिणो' [जिणाणं ? ] इव अवितथं वागरमाणाणं
उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था । वादि-पदं ६४८. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वादीणं सदेवमणयासुराए
परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिता वादिसंपया हुत्था ॥ कप्प-पदं ६४६. हेदिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे,
ईसाण, सणंकुमारे, माहिदे ॥ ६५०. मज्झिल्ला चत्तारि कप्पा पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-बंभलोगे,
लंतए, महासुक्के, सहस्सारे ॥ ६५१. उवरिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-आणते,
पाणते, आरणे, अच्चुते ॥
समुद्द-पदं
६५२. चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा-लवणोदे, वरुणोदे, खीरोदे,
घतोदे॥ कसाय-पदं ६५३. चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता, तं जहा-खरावत्ते, उण्णतावत्ते, गूढावत्ते,
आमिसावत्ते।
१. तृतीयस्थानस्य ५३४ सूत्रे 'जिणा इव' पाठो
लभ्यते तथा 'ख' प्रतौ 'जिणो इव' । अत्र तु सर्वासू प्रतिषु 'जिणो इव' पाठो लभ्यते।
व्याकरणदृष्ट्या उभयत्रापि 'जिणाणं इव'
युज्यते । २. अवितह (ख, ग)।
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ठाण
एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा - खरावत्तसमाणे कोहे', उण्णतावत्समाणे माणे, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे ।
१. खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति । २. ` उण्णतावत्तसमाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति । ३. गूढावत्तसमाणं मायं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति । ४. आमिसावत्तसमाणं लोभमणुपविट्ठे जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति ॥ णक्खत्त-पदं
६८०
६५४. अणुराहाणक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥
६५५. पुव्वासाढा णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥
६५६. उत्तरासाढा णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥
पावकम्म-पदं
६५७. जीवाणं चउट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वाणेरइयणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, मणुस्सव्वित्तिते, देवणिव्वत्तिते ॥
६५८. एवं - उवचिणिसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा ।
एवं - चिण उवचिण-बंध - उदीर वेय तह णिज्जरा चेव ॥
पोग्गल - पदं
६५६. चउपदेसिया खंधा अनंता पण्णत्ता ॥
६६०. चउपदेसोगाढा पोग्गला अनंता पण्णत्ता ॥
६६१. चउसमयद्वितीया पोग्गला अनंता पण्णत्ता ॥
६६२. चउगुणकालगा पोग्गला अनंता जाव' चउगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पण्णत्ता ॥
१. कोवे (क, ग) ।
२. सं० पा० उष्णत्तावत्तसमाणं माणं एवं चेव गूढावत्तसमाणं मातमेवं चेव ।
३. पुव्वासाढे (क, ग ); सं० पा० - पुब्वासाढा एवं चेव ।
४. उत्तरासाढे (क, ग ) ; सं० पा०-- उत्तरासाढा
एवं चेव ।
५. ठा० ४।६५७ ।
६. ठा० १।२५६ ।
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पंचमं ठाणं पढमो उद्देसो
महव्वय-अणुव्वय-पदं १. पंच महव्वया पण्णत्ता, तं जहा-सव्वाओ पाणातिवायाओ' 'वेरमणं, सव्वाओ
मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहणाओ
वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥ २. पंचाणुव्वया पण्णत्ता, तं जहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ
मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छा
परिमाणे॥ इंदिय-विसय-पदं
३. पंच वण्णा पण्णत्ता, तं जहा-किण्हा, पीला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला ।। ४. पंच रसा पण्णत्ता, तं जहा-तित्ता', 'कडुया, कसाया, अंबिला°, मधुरा॥ ५. पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा—सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा॥ ६. पंचहिं ठाणेहिं जीवा सज्जति, तं जहा–सद्देहि', 'रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं°,
फासेहिं॥ ७. "पंचहि ठाणेहिं जीवा रज्जंति, तं जहा-सद्देहिं, रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं,
फासेहिं ।। ८. पंचहि ठाणेहिं जीवा मुच्छंति, तं जहा--सद्देहि, रूवेहि, गंधेहिं, रसेहि,
फासेहि ॥
१. सं० पा०-पाणातिवायाओ जाव सव्वातो। ४. सं० पा०-एवं रज्जति मुच्छंति गिझति २. सं० पा०—तित्ता जाव मधुरा ।
अझोववज्जंति। ३. सं० पा०–सद्देहिं जाव फासेहिं ।
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ठाण
६. पंचहि ठाणेहिं जीवा गिज्भंति, तं जहा - सद्देहिं, रूवेहि, गंधेहि, रसेहि, फासेहिं ॥
१०. पंचहि ठाणेहिं जीवा अज्झोववज्जंति, तं जहा - सद्देहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहि,
फा
११. पंचहि ठाणेहिं जीवा विणिघायमावज्जंति, तं जहा - सद्देहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहिं, फासेहिं ॥
१२. पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेस्साए अागामियत्ता भवति, तं जहा - सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा, फासा ॥ १३. पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं हिताए सुभाए, 'खमाए णिस्सेस्साए • आणुगामियत्ता भवति, तं जहा - सद्दा, ख्वा, गंधा, रसा, फासा ॥
१४. पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भवंति तं जहा - सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा, फासा ॥
१५.
पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं सुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा - सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा, फासा ॥
आसव-संवर-पदं
१६. पंचहि ठाणेहिं जीवा दोग्गतिं गच्छति, तं जहा - पाणातिवातेणं', 'मुसावाएणं, अण्णादाणे, मेहुणेणं, परिग्गहेणं ॥
• मुसा
१७. पंचहि ठाणेहिं जीवा सोगति गच्छति, तं जहा - पाणातिवातवेरमणेणं', वायवेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं, परिग्गहवेरमणेणं ।।
पडिमा पदं
१८. पंच पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा, भदुत्तरपडिमा ||
थावर काय-पदं
१६. पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा - इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मती' थावरकाए, पायावच्चे" थावरकाए ||
१. सं० पा० सद्देहिं जाव फासेहिं ।
२. सं० पा० - सद्दा जाव फासा ।
३. सं० पा०-सुभाते जाव आणुगामियत्ताते । ४,५,६. सं० पा० – सद्दा जाव फासा । ७. सं० पा० -- पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं ।
८. सं० पा० - पाणातिवातवेरमणणं जाव परि
ग्गह।
६. सुमति ( क ) ; समुति ( ग ) ।
१०. पातावच्चे (क, ख, ग ) ।
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पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) २०. पंच थावरकायाधिपती पण्णत्ता, तं जहा- इंदे थावरकायाधिपती', 'बंभे
थावरकायाधिपती, सिप्पे थावरकायाधिपती, सम्मती थावरकायाधिपती,
पायावच्चे थावरकायाधिपती ।। अइसेस-णाण-दसण-पदं २१. पंचहि ठाणेहिं ओहिदसणे समुप्पज्जिउकामेवि तप्पढमयाए खंभाएज्जा',
तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। २. कुंथुरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। ३. महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा । ४. देवं वा महिड्डियं' 'महज्जुइयं महाणुभागं महायसं महाबलं ° महासोक्खं" पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। ५. पुरेसु वा 'पोराणाई उरालाई महतिमहालयाई महाणिहाणाई पहीणसामियाइं पहीणसे उयाई पहीणगुत्तागाराइं उच्छिण्णसामियाइं उच्छिण्णसेउयाइं उच्छिण्णगुत्तागाराइं जाइं इमाइं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडग - तिग-चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापहपहेसु णगर-णिद्धमणेसु सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति-सेलोवट्ठावण-भवणगिहेसु संणिक्खित्ताइ चिटुंति, ताई वा पासित्ता तप्पढमताए खंभाएज्जा। इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहिं ओहिसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए खंभा
एज्जा । २२. पंचहि ठाणेहिं केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए णो
खंभाएज्जा, तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। २. "कुंथुरासिभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा । ३. महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। ४. देवं वा महिड्डियं महज्जुइयं महाणुभाग महायसं महाबलं महासोक्खं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। ५. पुरेसु वा पोराणाई उरालाई महतिमहालयाइं महाणिहाणाइं पहीणसामियाई
१. सं० पा०—इंदे थावरकाताधिपती जाव ५. पोराणाई महंति (ख); पोराणाई (वृ); पातावच्चे।
पोराणाइं ओरालाई (वृपा)। २. खभातेज्जा (क, ख, ग) सर्वत्र ।
६. पहीणसेक्काराइं (व); पहीणसेउयाइं(वपा)। ३. सं० पा०-महिड्डियं जाव महासोक्खं । ७. सं० पा०-सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु । ४. महेसक्कं (क, ग); महेसक्खं (वृपा)।
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ठाणं
पहीणसे उयाइं पहीणगुत्तागाराइं उच्छिण्णसामियाई उच्छिण्णसेउयाई उच्छिण्णगुत्तागाराइं जाइं इमाइं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु णगर-णिद्धमणेसु सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति-सेलोवट्ठावण° भवणगिहेसु सण्णिक्खित्ताई चिट्ठति, ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए°
णो खंभाएज्जा । सरीर-पदं २३. रइयाणं सरीरगा पंचवण्णा पंचरसा पण्णत्ता, तं जहा—किण्हा' •णीला,
लोहिता, हालिद्दा°, सुक्किल्ला। तित्ता', 'कडुया, कसाया, अंबिला,
मधुरा॥ २४. एवं--णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥ २५. पंच सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, वेउव्विए, आहारए, तेयए,
__ कम्मए॥ २६. ओरालियसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे', 'णोले, लोहिते,
हालिद्दे , सुकिल्ले । तित्ते', 'कडुए, कसाए, अंबिले °, महुरे ।। २७. वेउव्वियसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा—किण्हे, णीले, लोहिते,
हालिद्दे, सुक्किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ॥ २८. आहारयसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा- किण्हे, णोले, लोहिते, हालिद्दे,
सक्किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ॥ २६. तेययसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे, णीले, लोहिते, हालिद्दे,
सुक्किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ॥ ३०. कम्मगसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा-किण्हे, णीले, लोहिते, हालिद्दे,
सुक्किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे° ॥ ३१. सव्वेवि णं बादरबोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा अट्टफासा॥ तित्थभेद-पदं ३२. पंचहि ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा-दुआइक्खं,
दुविभज्ज, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं ।। १. सं० पा०--ठाणेहिं जाव णो खंभातेज्जा। ६. सं० पा०—किण्हे जाव सुक्किल्ले । २. सं० पा०-किण्हा जाव सुक्किल्ला। ' ७. सं० पा०—तित्ते जाव महुरे । ३. सं० पा०—तित्ता जाव मधुरा।
८. सं० पा०-एवं जाव कम्मगसरीरे । ४. ठा० १११४२-१६३ ।
६. दुविभवं (वृपा)। ५. कम्मते (क, ग)।
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पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो)
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३३. पंचहि ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा - सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरणुचरं ॥
अब्भणुष्णात-पदं
३४. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्च कित्तिताई णिच्चं बुझ्याई' णिच्चं पसत्थाई णिच्चमव्भणुण्णाताई भवंति तं जहा - खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे ॥
३५. पंच ठाणाई समणेणं भगवता महावीरेणं' 'समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्च कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा - सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे ॥ ३६. पंच ठाणाई समणेणं' 'भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्च वण्णिताई णिच्च कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्च • अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा उक्खित्तचरए, णिक्खित्तचरए, अंतचरए, पंतचरए, लूहचरए ॥
o
३७. पंच ठाणाई' समणेणं भगवता महावीरेण समणाणं णिग्गंथाणं णिच्च वण्णिताई णिच्च कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा - अण्णातचरए, अण्णइलायचरए', मोणचरए, संसद्कप्पिए, तज्जातसंसट्टकप्पिए ।
३८. पंच ठाणा समणेण भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्च कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं ' अब्भणुण्णाताइं भवंति तं जहा - उवणिहिए, सुद्धेसणिए, संखादत्तिए, विट्ठलाभिए, पुलाभिए ||
३६. पंच ठाणाई' समणेण भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्च कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा - आयंविलिए, निव्विइए, पुरिमड्डिए, परिमितपिंडवातिए ", भिण्णपिंडवातिए ||
४०. पंच ठाणाई
समणेणं भगवता महावीरेण समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं
१. 'सुरनुचर' न्ति रेफप्राकृतत्वादिति (वृ ) । २. पूतिताई ( ग ) ।
३. सं० पा० - महावीरेणं जाव अब्भणुष्णायाई ४. सं० पा० – समणेणं जाव अब्भणुष्णायाई । ५. सं० पा०-ठाणाई जाव अब्भण्ण्णायाई । ६. अन्नवेलचरए (वृपा ) ।
o
0
७८. सं० पा०-- ठाणाई जाव अब्भणुष्णायाई । ९. निव्विते ( क ग )
१०. पुरमड्डि (क) ।
११. परिमितपिंडवातिते ( क ) |
१२. सं० पा०-ठाणाई जाव अब्भणुष्णायाई ।
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ठाणं
वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा-अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे,
लूहाहारे॥
४१. पंच ठाणाई' 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं
वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं० अब्भणण्णाताई भवंति, तं जहा-अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी,
पंतजीवी, लूहजीवी॥ ४२. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णि
ताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा-ठाणातिए, उक्कुडुआसणिए, पडिमट्ठाई, वीरासणिए,
णेसज्जिए॥ ४३. पंच ठाणाई' 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं
वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्च बुझ्याइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुण्णाताई' भवंति, तं जहा–दंडायतिए, लगंडसाई, आतावए, अवाउडए",
अकंडूयए। महाणिज्जर-पदं ४४. पंचहि ठापेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा
अगिलाए आयरियवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे,
अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे ॥ ४५. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा
अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे॥
विसंभोग-पदं ४६. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे साहम्मियं संभोइयं' विसंभोइयं करेमाणे णाति
क्कमति, तं जहा–१. सकिरियट्ठाणं पडिसेवित्ता भवति । २. पडिसेवित्ता णो
आलोएइ। ३. आलोइत्ता णो पट्टवेति । ४ पट्टवेत्ता णो णिव्विसति । १. सं० पा०-ठाणाइं जाव अब्भणुण्णायाई। ५. संभोतितं (क, ख, ग)। २,३. सं० पा०-ठाणाइं जाव भवति । ६. विसंभोतितं (क, ख, ग)। ४. अवाअडते (क)।
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पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो)
६८७ ५. जाइं इमाइंथेराणं ठितिपकप्पाइं भवंति ताइं अतियंचिय-अतियंचिय पडि
सेवेति, से हंदहं पडिसेवामि कि मं थेरा करेस्संति ? पारंचित-पदं ४७. पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे साहम्मियं पारंचितं करेमाणे णातिक्कमति,
तं जहा–१. कुले' वसति कुलस्स भेदाए अब्भुट्टिता भवति । २. गणे वसति गणस्स भेदाए अब्भुटेत्ता भवति । ३. हिंसप्पेही । ४. छिद्दप्पेही। ५. अभिक्खणं
अभिक्खणं पसिणायतणाई पउंजित्ता भवति ।। वुग्गहट्ठाण-पदं ४८. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच वुग्गहट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्म पउंजित्ता भवति । २. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं णो सम्म पउंजित्ता भवति। ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते' काले-काले णो सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति। ४. आयरियउवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं णो सम्ममभुट्टित्ता भवति । ५. आयरियउवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारो' यावि हवइ, णो आपुच्छियचारी।
HRITINEE
अवुग्गहट्ठाण-पदं ४६. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावग्गहटाणा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरियउवज्झाए णं गणसि आणं वा धारणं वा सम्म पउंजित्ता भवति । २. "आयरियउवज्झाए णं गणंसि° आधारातिणिताए सम्म किइकम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले सम्म अणुपवाइत्ता भवति । ४. आयरिय उवज्झाए गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्म अब्भुट्टित्ता भवति । ५. आयरियउवज्झाए गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी ।।
१. सकुले (क, ग)। २. ताई (ख)।
३. आणाउच्छितचारी (क, ग)। ४. सं० पा०-एवमाधारातिणिताते।
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ठाणं णिसिज्जा-पदं ५०. पंच णिसिज्जाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—उक्कुडुया', गोदोहिया, समपायपुता,
पलियंका', अद्धपलियंका।। अज्जवट्ठाण-पदं ५१. पंच अज्जवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा–साधुअज्जवं, साधुमद्दवं, साधुलाघवं,
साधुखंति, साधुमुत्ती॥ जोइसिय-पदं ५२. पंचविहा जोइसिया पण्णत्ता, तं जहा-चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, ताराओ। देव-पदं ५३. पंचविहा देवा पण्णत्ता, तं जहा-भवियदव्वदेवा', णरदेवा, धम्मदेवा, देवाति
देवा, भावदेवा ॥ परिचारणा-पदं ५४. पंचविहा परियारणा' पण्णता, तं जहा-कायपरियारणा', फासपरियारणा,
रूवपरियारणा, सद्दपरियारणा, मणपरियारणा ।। अग्गमहिसी-पदं ५५. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा-काली, राती, रयणी', विज्ज, मेहा ॥ ५६. बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
___ 'तं जहा–सुभा, णिसुंभा, रंभा, णिरंभा, मदणा ।। अणिय-अणियाहिवइ-पदं ५७. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगा
मिया अणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए।
१. उक्कडती (क); उक्कडुती (ग)। २. पुलितंका (क, ग); पलितंका (ख)। ३. अद्धपलितका (क, ख, ग)। ४. भवित ° (क, ख, ग)। ५. परितारणा (क, ख, ग)।
६. कात ° (क, ख, ग)। ७. रतणी (क, ख, ग)। ८. वतिरोत (क, ख, ग)। ६. मतणा (क, ख, ग)।
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५६.
पंचम ठाणं (पढमो उद्देसो)
६८९ दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे आसराया पीढाणियाधिवती, कुंथ' हत्थिराया कुंजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवतो, किण्णरे रधाणिया
धिवती॥ ५८. बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगा
मियाणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए', 'पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए °, रधाणिए। महदुमे पायत्ताणियाधिवती, महासोदामे' आसराया पीढाणियाधिवती, मालंकारे हत्थिराया कुंजराणियाधिपती, महालोहिअक्खे महिसाणियाधिपती, किंपुरिसे रधाणियाधिपती ।। धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररणो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणियाधिपती पपणत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए जाव' रहाणिए । भद्दसेणे पायत्ताणियाधिपती, जसोधरे आसराया पोढाणियाधिपती, सुदंसणे हत्थिराया कंजराणियाधिपती, णीलकंठे महिसाणियाधिपती, आणंदे
रहाणियाहिवई ।। ६०. भूयाणंदस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो पंच संगामियाणिया, पंच
संगामियाणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए जाव रहाणिए। दक्खे पायत्ताणियाहिवई, सुग्गीवे आसराया पीढाणियाहिवई, सूविक्कमे हत्थिराया कुंजराणियाहिवई, सेयकंठे महिसाणियाहिवई, णंदुत्तरे रहाणियाहिवई ।। वेणुदेवस्स णं सुवण्णिदस्स सुवण्णकुमाररण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियाणियाहिपती पण्णत्ता, तं जहा-पायत्ताणिए । एवं जधा धरणस्स"
तधा वेणुदेवस्सवि । वेणु दालियस्स जहा भूताणंदस्स ॥ ६२. जधा धरणस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ॥ ६३. जधा भूताणंदस्स" तधा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव" महाघोसस्स ।।
१. वेकुंथू (क, ग)। २. सं० पा०-पायत्ताणिते जाव रधाणिते । ३. ° सोतासे (क, ग)। ४. आसराता (क, ख, ग)। ५. पत्ताणीएते (क)। ६. ठा० ५।५७ । ७. पत्ताणीएते (क)। 5. ठा० १५७ ।
६. पत्ताणीएते (क)। १०. ठा० ५।५६ । ११. ठा० ५।६०। १२. ठा० ५।५६ । १३. ठा० २१३५६-३६१ । १४. ठा० ५१६० । १५. ठा० २।३५६-३६१ ।
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६६०
ठाणं
६४. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणिया
धिवती पण्णत्ता, तं जहा–पायताणिए', 'पीढाणिए, कुंजराणिए, ° उसभाणिए, रधाणिए। । हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिवती, वाऊ आसराया पीढाणियाधिवती, एरावणे हत्थिराया कुंजराणियाधिपती, दामड्डी उसभाणियाधिपती, माढरे
रधाणियाधिपती॥ ६५. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया जाव' पायत्ताणिए',
पीढाणिए, कुंजराणिए, उसमाणिए, रधाणिए । लहुपरक्कमे पायत्ताणियाधिवती, महावाऊ आसराया पीढाणियाहिवती, पुप्फदंते हत्थिराया कुंजराणियाहिवती, महादामड्डी उसभाणियाहिवती,
महामाढरे रधाणियाहिवती ।। ६६. जधा सक्कस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव' आरणस्स ।। ६७. जधा ईसाणस्स' तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुतस्स ॥ देवठिति-पदं ६८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभंतरपरिसाए देवाणं पंच पलिओवमाइं
ठिती पण्णत्ता ।। ईसाणस्स णं देविदस्स देवरणो अब्भंतरपरिसाए देवीणं पंच पलिओवमाडं
ठिती पण्णत्ता ।। पडिहा-पदं ७०. पंचविहा पडिहा पण्णत्ता, तं जहा—गतिपडिहा, ठितिपडिहा, बंधणपडिहा,
भोगपडिहा, बल-वीरिय-पुरिसयार-परक्कमपडिहा ।। आजीव-पदं ७१. पंचविधे आजीवे पण्णत्ते, तं जहा-जातिआजोवे, कुलाजोवे, कम्माजीवे,
सिप्पाजीवे, लिंगाजीवे ॥
१. पत्ताणीएते (क); सं० पा०-पायत्ताणिते
जाव उसभाणिते । २. ठा० ५।५७ । ३. पत्ताणीएते (क)। ४. ठा० ५।६४ । ५. ठा० २।३८१-३८४।
६. ठा० ५।६५ । ७. ठा० २।३८१-३८४ । ८. 'पडिह' त्ति प्राकृत्वात् 'उप्पा' इत्यादिवत्
प्रतिघातः (वृ)। ६. गणाजीवे (वृपा)।
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पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) राय-चिंध-पदं ७२. पंच' रायककुधा' पण्णता, तं जहा-खग्गं, छत्तं, उप्फेस', पाणहाओ',
वालवीअणी ॥ उदिण्ण-परिस्सहोवसग्ग-पदं ७३. पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिणे परिस्सहोवसग्गे सम्म सहेज्जा खमेज्जा
तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा, तं जहा१. उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिंदति वा भिदति वा अवहरति वा। २. जक्खाइडे खलु अयं पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिदति वा भिदति वा ° अवहरति वा। ३. ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे" भवति । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा १२ अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिंदति वा अवहरति वा। ४. ममं च णं सम्ममसहमाणस्स अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणधियासमाणस्स" कि मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कज्जति ।
१. अनन्तरं साधूनां रजोहरणादिकं लिङ्ग- ४. उपाणहाओ (क्व)।
मुक्तम्, अधुना खड्नादिरूपं राज्ञां तदेवाह- ५. बालवीयणि (क, ग); बालवीयणे (ख)। 'पंच रायककुभा' इत्यादि (वृ०प० २८६) ६. अदिन्ने (क)। अनेन वृत्त्युल्लेखेन ज्ञायते प्रस्तुतसूत्रात् पूर्व ७. ओयन्नकम्मे (क)। वृत्तिकारस्य सम्मुखीनेष्वादशेषु निर्दिष्टं सूत्र- ८. उवद्दवेइ (वृ)। मासीत् सांप्रतिकेष्वादशेषु तन्नोपलभ्यते । ६. जक्खातिट्टे (क, ख, ग) । वस्त्र-रजोहरणसूत्रे अतोग्रे (१९०-१९१) १०. सं० पा०-तहेव जाव अवहरति । लभ्येते।
११. उतिन्ने (क, ग)। २. रात (क, ख, ग)।
१२. सं० पा०-तहेव जाव अवहरति । ३. उप्फेसिं (क, ग)।
१३. अणधितास (क, ख, ग)।
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ठाणं
५. ममं च णं सम्मं सहमाणस्स 'खममाणस्स तितिक्खमाणस्स अहियामाणस्स किं मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे णिज्जरा कज्जति । इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहिं छउमत्थे उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा' • खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा |
७४. पंचहि ठाणेहिं केवली उदिष्णे परिसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा' 'खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा, तं जहा
१. खित्तचित्ते खलु अयं * पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा "अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिन्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा, पारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय पुंछण मच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा ।
२. दत्तचित्ते खलु अयं पुरिसे । तेण में एस पुरिसे' 'अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिन्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा, पारं वा णेति, उद्दवेइ वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय पुंछणमच्छिदति विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा । ३. जक्खाइ खलु अयं पुरिसे । तेण मे एस पुरिसे" "अक्कोसति वा अवहसति वाणिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा, पारं वाति, उद्दवेइ वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा ।
४. ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिष्णे भवति । तेण मे एस पुरिसे' "अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा । ५. ममं च णं सहमाणं खममाणं तितिक्खमाणं' अहियासेमाणं पासेत्ता बहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिण्णे-उदिण्णे परीसहोवसग्गे एवं सम्म सहिस्संति खमिस्संति तितिक्खिस्संति अहियासिस्संति । इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहिं केवली उदिष्णे परीस होवसग्गे सम्मं सहेज्जा" खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा |
o
o
१. सं० पा० सहमाणस्स जाव अहियासे - ६, ७, ८. सं० पा० - पुरिसे जाव अवहरति । C. तितिक्खमाणं (क, ग) ।
माणस्स ।
२,३. सं० पा० - सहेज्जा जाव अहियासेज्जा । १० सं० पा० - सहिस्संति जाव अहियासिस्संति । ४. अतं ( क, ख, ग ) । ११. सं० पा० – सहेज्जा जाव अहियासेज्जा !
५. सं० पा० -- तहेव जाव अवहरति ।
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पंचमं ठाणं (पढमो उद्देसो) हेउ-पदं ७५. पंच' हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हेउं ण जाणति, हेउं ण पासति, हेउं ण बुज्झति,
हेउं णाभिगच्छति, हेउं अण्णाणमरणं मरति ।। ७६. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हेउणा ण जाणति', "हे उणा ण पासति, हेउणा ण
बुज्झति, हेउणा णाभिगच्छति °, हेउणा अण्णाणमरणं मरति ।। ७७. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा -हेउं जाणइ', 'हेउं पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभि
गच्छइ°, हे छउमत्थमरणं मरति ।। ७८. पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा–हेउणा जाणइ", हेउणा पासइ, हेउणा बुज्झइ,
हेउणा अभिगच्छइ °, हेउणा छउमत्थमरणं मरइ ।। अहेउ-पदं ७६. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेडं ण जाणति', 'अहेउं ण पासति, अहेउं ण
बुज्झति, अहेउं णाभिगच्छति °, अहेउं छउमत्थमरणं मरति ।। ८०. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेउणा ण जाणति', 'अहेउणा ण पासति,
अहेउणा ण बुज्झति, अहेउणा णाभिगच्छति °, अहे उणा छउमत्थमरणं मरति ।। ८१. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा- अहेउं जाणति', 'अहेउं पासति, अहेउं बुज्झति,
अहेउं अभिगच्छति °, अहेउं केवलिमरणं मरति ॥ ८२. पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा–अहेउणा जाणति', 'अहेउणा पासति, अहेउगा
बुज्झति, अहे उणा अभिगच्छति,° अहेउणा केवलिमरणं मरति ॥ अणुत्तर-पदं ८३. केवलिस्स णं पंच अणुत्तरा पण्णत्ता, तं जहा–अणुत्तरे णाणे, अणुत्तरे दसणे
__ अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए । पंच-कल्लाण-पदं ८४. पउमप्पहे णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा-१. चित्ताहिं चुते चइत्ता गब्भं
वक्कते। २. चित्ताहिं जाते । ३. चित्ताहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं
१. भगवती पंचमशतकस्य सप्तमोडेशे एतानि ५. सं० पा०-जाणति जाव अहेउं ।
अष्टसूत्राणि क्रमभेदेन तथा किञ्चित् पाठ- ६. सं० पा०--जाणति जाव अहेउणा । भेदेन लभ्यन्ते ।
७. सं० पा०-जाणति जाव अहेउं । २. सं० पा० - जाणति जाव हेउणा । ८. सं० पा०-जाणति जाव अहेउणा। ३. सं० पा० -जाणइ जाव हे ।
६. चित्ता (क, ग)। ४. सं० पा०---जाणइ जाव हेउणा । १०. चित्राभिरिति रूढ्या बहुवचनम् (वृ) ।
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ठाणं
६६४
पव्वइए । ४. चित्ताहि अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे
केवलवरणाणदसणे समुप्पण्णे । ५. चित्ताहिं परिणिव्वुते ।। ८५. पुप्फदंते णं अरहा पंचमूले हुत्था, तं जहा-मूलेणं चुते च इत्ता गब्भं वक्कते। ८६. "सीयले णं अरहा पंचपुव्वासाढे हुत्था, तं जहा-पुव्वासाढाहिं चुते चइत्ता
गब्भं वक्ते ।। ८७. विमले णं अरहा पंचउत्तराभवए हुत्था, तं जहा-उत्तराभद्दवयाहिं चुते चइत्ता
गब्भं वक्ते ।। ८८. अणते णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा-रेवतिहिं चुते चइत्ता गब्भं
वक्कते। ८६. धम्मे णं अरहा पंचपूसे हुत्था, तं जहा-पूसेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्ते ॥ १०. संतो णं अरहा पंचभरणीए हुत्था, तं जहा–भरणीहिं चुते चइत्ता गम्भं
वक्कते ॥ ६१. कंथ णं अरहा पंचकत्तिए हुत्था, तं जहा-कत्तियाहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्ते ।। ६२. अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा-रेवतिहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्कते।। ६३. मुणिसुव्वए णं अरहा पंचसवणे हुत्था, तं जहा-सवणेणं चुते चइत्ता गम्भं
वक्कते॥ १४. णमी णं अरहा पंचआसिणीए" हुत्था, तं जहा-आसिणीहिं चुते चइत्ता गब्भं
वक्कते॥ ६५. णेमी णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा-चित्ताहिं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते ॥ १६. पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, तं जहा–विसाहाहिं चुते चइत्ता गब्भं
वक्कते४० ॥ ६७. समणे भगवं महावीरे पंचहत्थत्तरे होत्था, तं जहा-१. हत्थुत्तराहिं चुते चइत्ता
مه
ل
له
१. पू०-ठा० ५८४ ।
अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ २. सं० पा०–एवं चेव एवमेतेणं अभिलावेणं मुणिसुव्वयस्स सवणो, इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो
आसिणि णमिणो य णेमिणो चित्ता। पउमप्पभस्स चित्ता,
पासस्स विसाहाओ, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स ।
पंच य हत्थुत्तरे वीरो ॥३॥ पुवाइं आसाढा,
३. पू०-ठा० ५।०४। सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ ४-१०. पू०-ठा० ५।८४ । रेवतित अणंतजिणो,
११. असिणिए (क, ग)। पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। १२-१४. पू०-ठा० ५२८४ । कुंथुस्स कत्तियाओ,
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पचमं ठाणं (बीओ उद्देसो)
गभं वक्कते। २. हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गम्भं साहरिते। ३. हत्थुत्तराहिं जाते। ४. हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता' 'अगाराओ अणगारितं° पव्वइए। ५. हत्थुत्तराहिं अणंते अणुत्तरे' •णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे' केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ।।
बोओ उद्देसो महाणदी-उत्तरण-पदं १८. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाओ उद्दिट्टाओ गणियाओ' वियं
जियाओ पंच महण्णवाओ महाणदीओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए' वा संतरित्तए वा, तं जहा--गंगा, जउणा, सरऊ, एरावती, मही। पंचहिं ठाणेहिं कप्पति, तं जहा–१. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. पव्व
हेज्ज वा णं कोई, ४. दओघसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अणारिएसु ॥ पढमपाउस-पदं EE. णो कप्पइ णिग्गंथाण वाणिग्गंथीण वा पढमपाउसंसि गामाणुगामं दूइज्जित्तए।
पंचहिं ठाणेहि कप्पइ, तं जहा-१. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. 'पव्व
हेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि ° महता वा, ५. अणारिएहिं ।। वासावास-पदं १००. वासावासं पज्जोसविताणं णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा गामाणगामं
दूइज्जित्तए। पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ, तं जहा–१. णाणट्ठयाए, २. दंसणट्ठयाए, ३. चरित्तट्ठयाए, ४. आयरिय-उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा, ५. आयरिय-उवज्झायाण वा
बहिता वेआवच्चकरणयाए । अणुग्घातिय-पदं १०१. पंच अणुग्घातिया पण्णत्ता, तं जहा-हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवेमाणे,
रातीभोयणं भुंजेमाणे, सागारियपिंडं भुंजेमाणे, रायपिंडं भुंजेमाणे ॥
१. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइए। २. सं० पा०-अणुत्तरे जाव केवलवर । ३. X (क, ग)। ४. वितंजितातो (क, ख, ग)। ५. उत्तरित्ते (क, ग)।
६. भतंसि (क)। ७. उदओघसि (ख)। ८. दूतिज्जते (क, ग)। ९. सं० पा०-दुब्भिक्खंसि वा जाव महता। १०. धातिमा (३।४७१) ।
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ठीण
रायंतेउर-पवेस-पदं १०२. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे रायतेउरमणुपविसमाणे णाइक्कमति, तं जहा -
१. णगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा णो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तेसि विण्णवणट्टयाए रायंतेउरमणुपविसेज्जा। २. पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणमाणे रायंतेउरमणपविसेज्जा। ३. हयस्स' वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरमणपविसेज्जा। ४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमणुपवेसेज्जा। ५. बहिता व णं आरामगयं वा उज्जाणगयं वा रायतेउरजणो सव्वतो समंता संपरिखिवित्ता णं सण्णिवेसिज्जा। इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे' 'रायंतेउरमणुपविसमाणे ° णातिक्कमइ॥
गब्भधरण-पदं १०३. पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा, तं जहा
१. इत्थी दुव्वियडा दुण्णिसण्णा सुक्कपोग्गले अधिट्ठिज्जा। २. सुक्कपोग्गलसंसिढे व से वत्थे अंतो जोणीए अणुपवेसेज्जा। ३. सई वा से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा। ४. परो व से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा। ५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए मुक्कपोग्गला अणुपवेसेज्जा-इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहि
'इत्थी पुरिसेण सद्धि असंवसमाणीवि गन्भं धरेज्जा ॥ १०४. पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गब्भं णो धरेज्जा, तं जहा
१. अप्पत्तजोव्वणा । २. अतिकंतजोव्वणा । ३. जातिवंझा। ४. गेलण्णपुट्ठा । ५. दोमणंसिया---इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि 'इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि
गब्भं णो धरेज्जा ॥ १०५. पंहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि णो गब्भं धरेज्जा, तं जहा
१. णिच्चोउया, २. अणोउया। ३. वावण्णसोया। ४. वाविद्धसोया। ५. अणंगपडिसेवणी-इच्चेतेहिं 'पंचहिं ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गब्भं णो धरेज्जा ।।
१. हतस्स (क, ख, ग)। २. निवेसिज्जा (ख, ग)। ३. सं० पा०—णिग्गंथे जाव णातिक्कमइ।
४. सं० पा०-ठाणेहिं जाव धरेज्जा। ५. सं० पा०-ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा। ६. सं० पा०-इच्चेतेहिं जाव णो धरेज्जा।
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पंचमं ठाणं (बीओ उद्दे सो)
६६७ १०६. पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गब्भं णो धरेज्जा, तं जहा--
१. उउंमि' णो णिगामपडिसेविणी यावि' भवति। २. समागता वा से सुक्कपोग्गला पडिविद्धंसंति । ३. उदिण्णे वा से पित्तसोणिते । ४. पुरा वा देवकम्मणा। ५. पुत्तफले वा णो णिव्विढे भवति–इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहिं
इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गभं° णो धरेज्जा।। णिग्गंथ-णिग्गंथी-एगओवास-पदं १०७. पंचहि ठाणेहि णिग्गंथा णिग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्ज वा णिसीहियं
वा चेतेमाणा णातिक्कमंति, तं जहा१. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमणुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा णातिक्कमंति। २. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य गामंसि वा णगरंसि वा' खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा णिगमंसि वा आसमंसि वा सण्णिवेसंसि वा रायहाणिसि वा वासं उवागता, एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया णो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा' 'सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° णातिक्कमंति। ३. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य णागकुमारावासंसि वा 'सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवागता, तत्थेगओ' 'ठाणं वा सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° णातिक्कमंति। ४. आमोसगा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ चीवरपडियाए पडिगाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा 'सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° णातिक्कमंति । ५. जुवाणा दीसंति, ते इच्छंति णिग्गंथीओ मेहुणपडियाए पडिगाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा' 'सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° णातिक्कमंति। इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि 'णिग्गंथा णिग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा° णातिक्कमंति ।।
१. अउंमि (क)।
७. सं० पा०-ठाणं वा जाव णातिक्कमति । २. तावि (क, ख, ग)।
८. X (ख, ग)। ३. निविट्ठ (ख)।
६. गतिओ (क, ग); गयाओ (क्व); ४. सं० पा०-इच्चेतेहिं जाव णो धरेज्जा। सं० पा०-तत्थेगओ जाव णातिक्कमति । ५. सं० पा०-णगरंसि वा जाव रायहाणिसि । १०,११. सं०पा०-ठाणं वा जाव णातिक्कमति । ६. तत्थेगतिता (क); तत्थगतिता (ग)। १२. सं० पा०-ठाणेहि जाव णातिक्कमति ।
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६८
ठाणं
१०८. पंचहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलियाहि णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति, तं जहा --
१. खित्तचित्ते' समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथी हिंसद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ।
२. दित्तचित्ते' समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गीहिंसद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ।
३. जक्खाइट्ठे समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ।
४. उम्मायपत्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहि णिग्गंथी हिंसद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ।
५. णिग्गंथीपव्वाइयए समणे णिग्गंथेहि अविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धि संवसमाणे णातिक्कमति ॥
आसव-संवर-पदं
१०६. पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा - मिच्छत्तं, अविरती, पमादो, कसाया, जोगा ॥
११०. पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा - संमत्तं विरती, अपमादो, अकसाइत्तं अजोगित्तं ॥
दंड-पदं
१११. पंच दंडा पण्णत्ता, तं जहा - अट्ठादंडे, अणट्ठादंडे, हिंसादंडे, अकस्मादंडे, दिट्ठीविपरियासियादंडे ||
किरिया - पदं
११२. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा – आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया ॥
११३. मिच्छादिट्ठियाणं णेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा – आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादंसणवत्तिया ॥
१. खेत्तइत्ते (क, ख, ग ) ।
२. सं० पा० - एवमेतेणं गमएणं दित्तचित्ते जक्खातिट्ठे उम्मायपत्तं ।
३. वित्ततित्ते (क, ख, ग ) ।
४. कसाता (क, ख, ग ) ।
O
५. अम्हा ० ( ख ) ।
६. मातावत्तिता ( क, ख, ग ) ।
७. सं० पा० - तंजहा जाव मिच्छादंसणवत्तिया ।
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पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो)
६६६
११४. एव सव्वेसि णिरंतरं जाव' मिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं, णवरं - विगलिंदिया मिच्छीि ण भणति । सेसं तहेव ॥
११५. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - काइया, आहिगरणिया, पाओसिया', पारितावणिया, पाणातिवातकिरिया ||
११६.
रइयाणं पंच एवं चेव । एवं- निरंतरं जाव' वेमाणियाणं ॥
११७. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आरंभिया', 'पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया ॥
११८.
रइयाणं पंच किरिया निरंतरं जाव' वेमाणियाणं ||
११६. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - दिट्टिया, पुट्टिया, पाडुच्चिया", सामंतोafणवाइया, साहत्थिया' ॥
१२०. एवं णेरइयाणं जाव' वेमाणियाणं ॥
१२१. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सत्थिया, आणवणिया, वेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, अणवकखवत्तिया । एवं जाव" वेमाणियाणं ॥
१२२. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पेज्जवत्तिया, दोसवत्तिया, पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, ईरियावहिया । एवं - मणुस्साणवि । सेसाणं णत्थि ।।
परिण्णा-पदं
१२३. पंचविहा परिण्णा पण्णत्ता, तं जहा - उवहिपरिण्णा, उवस्सय परिण्णा, कसायपरिण्णा, जोगपरिण्णा, भत्तपाणपरिण्णा ॥
ववहार-पदं
१२४. पंचविहे " ववहारे पण्णत्ते, तं जहा - आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते । जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ट वेज्जा ।
णो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा | णो से तत्थ सुते सिया जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्टवेज्जा । णो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पवेज्जा ।
६. ठा० १८१४२-१६३ ।
७. पाडोचिता (क, ख, ग ) । ८. सोहत्थिता ( ग ) ।
४. ठा० १।१४२-१६३ ।
६,१०. ठा० १।१४२-१६३ ।
५. सं० पा० - आरंभिता जाव मिच्छादंसण- ११. तुलना - भगवती ८।३०१; व्यवहार १० ।
वत्तिता ।
१२. सं० पा० - एवं जाव जहा से ।
१. ठा० १।१४२-१५१, १६०-१६३ ।
२. कातिता ( क, ख, ग ) ।
३. पातोसिता ( क, ख, ग ) ।
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७००
ठाणं
णो से तत्थ धारणा सिया ° जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्टवेज्जा । इच्चतेहिं पंचहि ववहारं पट्टवेज्जा-आगमेणं' 'सुतेणं आणाए धारणाए ° जीतेणं। जधा-जधा से तत्थ आगमे 'सुते आणा धारणा ° जीते तधा-तधा ववहारं पट्टवेज्जा । से किमाह भंते ! आगमवलिया समणा णिग्गंथा ? इच्चेतं पंचविधं ववहारं जया-जया जहि-जहिं तया-तया तहि-तहिं अणिस्सि
तोवस्सितं सम्मं ववहरमाणे समणे णिग्गंथे आणाए आराधए भवति । सुत्त-जागर-पदं १२५. संजयमणुस्साणं सुत्ताणं पंच जागरा पण्णत्ता, तं जहा–सद्दा', 'रूवा, गंधा,
रसा°, फासा । १२६. संजतमणुस्साणं जागराणं पंच सुत्ता पण्णत्ता, तं जहा सद्दा', 'रूवा, गंधा,
रसा°, फासा ॥ १२७. असंजयमणुस्साणं सुत्ताणं वा जागराणं वा पंच जागरा पण्णत्ता, तं जहा
सद्दा', 'रूवा, गंधा, रसा°, फासा ॥ रयादाण-वमण-पदं १२८. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं आदिज्जंति, तं जहा-पाणातिवातेणं', 'मुसावाएणं,
अदिण्णादाणेणं, मेहणेणं, परिग्गहेणं ।। १२६. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं वमंति, तं जहा पाणातिवातवेरमणेणं", मुसावाय
वेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं°, परिग्गहवेरमणेणं ॥ दत्ति-पदं १३०. पंचमासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति पंच दत्तीओ
भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणगस्स ।। उवघात-विसोहि-पदं १३१. पंचविधे उवधाते पण्णत्ते, तं जहा-उग्गमोवघाते, उप्पायणोवघाते, एसणोव
घाते, परिकम्मोवघाते, परिहरणोवघाते ॥ १. सं० पा०-आगमेणं जाव जीतेणं ।
६,७,८. सं० पा०--सद्दा जाव फासा। २. सं० पा०-आगमे जाव जीते।
६. सं० पा०-- पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं । ३. जता (क, ख, ग)।
१०. सं० पा०-पाणातिवातवेरमणेणं जाव परि४. तता (क, ख, ग)।
ग्गह° । ५. अणिस्सातो° (क, ग)।
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पचमं ठाणं (बीओ उद्देसो)
७०१ १३२. पंचविहा विसोही पण्णता, तं जहा-उग्गमविसोही, उप्पायणविसोही, एसण
विसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही । दुल्लभ-सुलभबोहि-पदं १३३. पंचहि ठाणेहि जीवा दुल्लभबोधियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा -अरहताणं
अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवझायाणं अवण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वदमाणे, विवक्क'
तव-बंभचेराणं देवाणं अवण्णं वदमाणे ॥ १३४. पंचहिं ठाणेहिं जोवा सुलभबोधियत्ताए कम्म पकरेंति, तं जहा-अरहताणं
वण्णं वदमाणे', 'अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स वणं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणं वण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स वण्णं वदमाणे °, विवक्क'-तव-बंभचेराणं
देवाणं वण्णं वदमाणे ।। पडिसंलीण-अपडिसंलीण-पदं १३५. पंच पडिसलीणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियपडिलीणे', 'चक्खिदियपडिसंलीणे.
घाणिदियपडिसलीणे, जिभिदियपडिसंलीणे °, फासिदियपडिसलीणे ॥ १३६. पंच अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा–सोति दियअपडिसलीणे', 'चक्खिदिय
अपहिसंलोणे. घाणिदियअपडिसंलीण, जिभिदियअपडिसंलीणे. फासिदियअपडिसंलीणे॥
सवर-असंवर-पदं १३७. पंचविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियसंवरे, 'चविखदियसंवरे, घाणिदिय
संवरे, जिभिदियसंवरे°, फासिदियसंवरे ।। १३८. पंचविधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे,
पाणिदियअसंवरे, जिभिदियअसंवरे °, फासिदियअसंवरे ।। संजम-असंजम-पदं १३६. पंचविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-सामाइयसंजमे', छेदोवट्ठावणियसंजमे,
परिहारविसुद्धियसंजमे, सुहुमसंपरागसंजमे, अहक्खायचरित्तसंजमे ।। १. विविक्क (ख)।
फासिदिय । २. सं० पा०-वदमाणे जाव विवक्कतव° । ६. सं० पा०--सोतिदियसंवरे जाव फासिदिय । ३. विविक्क (ख)।
७. सं० पा०-सोतिदियअसंवरे जाव फासि४. सं० पा०-सोइंदियपडिसंलीणे जाव फासि- दिय । दिय ।
८. सामातिते (क, ख, ग)। ५. सं० पा०-सोतिदियअपडिसंलीणे जाव ६. विसुद्धित ° (क, ख, ग) ।
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७०२
ठाण १४०. एगिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविधे संजमे कज्जति, तं जहा
पुढविकाइयसंजमे', 'आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे °,
वणस्सतिकाइयसंजमे ॥ १४१. एगिदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहा
पुढविकाइयअसंजमे', 'आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइय
असंजमे, वणस्सतिकाइयअसंजम।। १४२. पंचिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा
सोतिदियसंजमे', 'चक्खिदियसंजमे, घाणिदियसंजमे, जिभिदियसंजमे°,
फासिदियसंजमे॥ १४३. पंचिदिया णं जोवा समारभमाणस्स पंचविधे असंजमे कज्जति, तं जहा
सोतिदियअसंजमें', 'चक्खिदियअसंजमे, घाणिदियअसंजमे, जिभिदियअसंजमे°,
फासिदियअसंजमे ॥ १४४. सव्वपाणभूयजीवसत्ता णं असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, तं जहा
एगिदियसंजमे', 'बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे°, पंचिंदिय
संजमे ।। १४५. सव्वपाणभूयजीवसत्ता णं समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहा
एगिदियअसंजमे', 'बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चउरिदियअसंजमे°,
पंचिदियअसंजमे ॥ तणवणस्सइ-पदं १४६. पंचविहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोर
बीया, खंधबीया, बीयरुहा ॥ आयार-पदं १४७. पंचविहे आयारे पण्णत्ते, तं जहा–णाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे,
तवायारे, वीरियायारे । आयारपकप्प-पदं १४८. पंचविहे आयारपकप्पे पण्णत्ते, तं जहा-मासिए उग्धातिए, मासिए अणुग्धा
तिए, चउमासिए उग्घातिए, चउमासिए अणुग्घातिए, आरोवणा ।। १. सं० पा०—पुढविकातियसंजमे जाव वण- दिय° । स्सति ।
४. सं० पा०-सोतिदियअसंजमे जाव फासिं२. सं० पा०-पुढविकातितअसंजमे जाव वण- दिय । स्सति ।
५. सं० पा०-एगिदियसंजमे जाव पंचिदिय । ३. सं० पा०----सोतिदियसंजमे जाव फासि- ६. सं० पा०--एगिदियअसंजमे जाव पंचिदिय ।
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पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो)
७०३
आरोवणा-पदं १४६. आरोवणा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-पट्ठविया, ठविया, कसिणा, अकसिणा',
हाडहडा ॥ वक्खारपन्वय--पदं १५०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच
वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा -- मालवंते, चित्तकूडे, 'पम्हकूडे, णलिणकूडे",
एगसेले ॥ १५१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच
वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे,
सोमणसे ।। १५२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए दाहिणे
णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा---विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावतो,
आसीविसे, सुहावहे ।। १५३. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए' महाणदीए उत्तरे णं
पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-चंदपव्वते, सूरपव्वते, णागपव्वते, देवपव्वते, गंधमादणे ।।
महादह-पदं
१५४. जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं देवकुराए कुराए पंच महहहा
पण्णत्ता, तं जहा-णिसहदहे, देवकुरुदहे, सूरदहे, सुलसदहे, विज्जप्पभदहे। १५५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पंच महादहा
पण्णत्ता, तं जहा–णीलवंतदहे, उत्तरकुरुदहे, चंददहे, एरावणदहे, मालवंतदहे ।। वक्खारपव्वय-पदं १५६. सव्वेवि णं वक्खारपव्वया सोया-सीओयाओ महाणईओ 'मंदरं वा पव्वतं"
पंच जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचगाउसताइं उव्वेहेणं ।। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं १५७. धायइसंडे दीवे पुरथिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महाणदीए
१. अकसिणा जाव (क, ग)। २. बंभकूडे पम्हकूडे (क, ग)। ३. सीतोताते (क, ख, ग)। ४. मंदरं वा पव्वतंतेणं (क, ख, ग); समवाया
ङ्गस्य 'पइण्णग' समवायस्य २३ सूत्रानुसारेण
'मंदरं वा पव्वयं' इति पाठो युज्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तावपि मंदरं वा--'मेरुवा पर्वतं प्रति' इति व्याख्यातमस्ति । तदनुसारेणापि 'मंदरं वा पव्वतं' इति पाठो युज्यते । तेनैष एव पाठः स्वीकृतः।
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७०४
समयक्त्त पदं
१५८. समयक्खत्ते णं पंच भरहाई, पंच एरवताई, एवं जहा चउट्ठाणे वितीयउद्दे ता एत्थवि भाणियव्वं जाव पंच मंदरा पंच मंदरचूलियाओ, णवरंउसुयारा णत्थि ॥
ठाणं
उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा - मालवंते, एवं जहा जंबुद्दीवे' तहा जाव' पुक्खरवरदीवड्ढं पच्चत्थिमद्धे 'वक्खारपव्वया दहा य उच्चत्त भाणियव्वं ॥
गाहणा-पदं
o
१५६. उसमे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था | १६०. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंच धणुसताइं उड़ढं उच्चत्तेणं होत्था । १६१. बाहुबली णं अणगारे "पंच धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था || सुंदरी णं अज्जा पंच धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था° ।।
अजा
१६२.
१६३.
विबोध- पदं
१६४. पंचहि ठाणेहिं सुत्ते विबुज्भेज्जा, तं जहा - सद्देणं, फासेणं, भोयणपरिणामेणं, णिक्खणं, सुविणदंसणेणं ॥
णिग्गंथी - अवलंबण-पदं
१६५. पंचहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे णिग्गंथिं गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा
१. णिग्गंथिं च णं अण्णयरे पसुजातिए वा पक्खिजातिए वा ओहातेज्जा, तत्थ ग्गिंथे णिरथिं गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति ।
२. णिग्थे णिग्गंथ दुग्गंसि वा विसमंसि वा पक्खलमाणि वा पवडमाणि वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति ।
३. णिग्गंथे णिग्गंथि सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणि वा उबुज्जमाणि वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति ।
१. ठा० ५।१५०-१५६ ।
२. ठा० ३।१०८ ।
३. वक्खार दहा य वक्खार-पव्वयाण (ख); वारदात ( ग ) ।
४. ठा० ४।३३७ ।
५,६. सं० पा०— एवं चैव ।
७. सं० पा० - एवं सुंदरी वि ।
८. सेतंसि ( क, ख, ग ) ।
६. उवज्झमाणी (क); उवुज्झमाणी ( ग ) ।
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पंचमं ठाणं (बीओ उद्देसो)
७०५ ४. णिग्गंथे णिग्गंथि णावं आरुभमाणे वा ओरोहमाणे वा णातिक्कमति । ५. खित्तचित्तं' दित्तचित्तं' जक्खाइटुं उम्मायपत्तं उवसग्गपत्तं साहिगरणं सपायच्छित्तं जाव भत्तपाणपडियाइक्खियं अट्टजायं वा णिग्गंथे णिग्गंथि गेण्हमाणे
वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति ॥ आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं १६६. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि पंच अतिसेसा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए 'णिगज्झिय-णिगज्झिय" पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा णातिक्कमति । २. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिचमाणे वा विसोधेमाणे वा णातिक्कमति । ३. आयरिय-उवज्झाए पभू इच्छा वेयावडियं करेज्जा, इच्छा णो करेज्जा। ४. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो' वसमाणे णातिक्कमति। ५. आयरिय-उवज्झाए बाहिं उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा [एगओ ?]
वसमाणे णातिक्कमति ।। आयरिय-उवज्झाय-गणावक्कमण-पदं १६७. पंचहि ठाणेहिं आयरिय-उवज्झायस्स गणावक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा
१. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्म पउंजित्ता भवति । २. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आधारायणियाए कितिकम्मं वेणइयं णो सम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरिय-उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते 'काले-काले' णो सम्ममणुपवादेत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए गणंसि सगणियाए' वा परगणियाए वा णिग्गंथोए बहिल्लेसे भवति। ५. मित्ते णातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवगहट्टयाए गणावक्कमणे पण्णत्ते ।।
१. खेत्तइत्तं (क, ख, ग)। २. दित्तइत्तं (क, ख, ग)। ३. उवस्सगस्स (ख) सर्वत्र । ४. निगिज्झिय (क्व)।
५. X (क, ख, ग)। ६. काले (ख, ग)। ७. सगणिताते (क, ख, ग)।
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७०६
इडिमंत-पदं
१६८. पंचविहाइड्डिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा -अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, भाविप्पाणो अणगारा ॥
तइओ उद्देसो
अस्थिकाय-पदं
१६६. पंच अत्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासथिकाए, जीवथिकाए, पोग्गलत्थकाए ।
१७०. धम्मत्थिकाए अवणे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे |
समास पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, ओ।
Goaओ णं धम्मत्थिकाए एगं दव्वं ।
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते ।
ठाणं
कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति'भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए' अवट्ठ णिच्चे |
भावओ अवणे अगंधे अरसे अफासे ।
ओम
||
१७१. अधम्मत्थिकाए अवण्णे "अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्टिए
लोग दव्वे |
से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ ।
दव्वओ णं अधम्मत्थिकाए एवं दव्वं ।
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते ।
१. भविस्सइ ( ख ) ।
२. अव्वते (क, ख, ग ) |
कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे |
३. सं० पा० एवं चेव णवरं गुणतो ठाणगुणे ।
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७०७
पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो)
भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे ।
गुणओ ठाणगुणे । १७२. आगासत्थिकाए अवण्णे "अगंधे अरसे अफासे अरूवो अजोवे सासए अवदिए
लोगालोगदब्वे । से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं आगासत्थिकाए एगं दव्वं । खेत्तओ लोगालोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे ।
गुणओ अवगाहणागुणे° ॥ १७३. जीवत्थिकाए णं अवण्णे "अगंधे अरसे अफासे अरूवी जीवे सासए अवट्ठिए
लोगदव्वे। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं जीवत्थिकाए' अणंताई दवाई। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते । कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे ।
गुणओ उवओगगुणे° ।। १७४.
पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूवी अजोवे सासते अवट्टिते' 'लोगदव्वे । से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा--दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाई।
१. सं० पा०–एवं चेव णवरं खेत्तओ..... ____ अवगाहणागुणे सेसं तं चेव । २. सं० पा०-एवं चेव णवरं दवओण...'
उवओगगुणे सेसं तं चैव । ३. जीवत्थिगाते (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-अवट्रिते जाव दव्वओ।
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ठाण
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासि', 'ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्तिभुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्ठिते° णिच्चे। भावओ वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते ।
गुणओ गहणगुणे ॥ गइ-पदं १७५. पंच गतोओ पण्णत्ताओ, तं जहा-णिरयगती, तिरियगती, मणुयगती, देवगती,
सिद्धिगती॥ इंदियत्थ-पदं १७६. पंच इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियत्थे', 'चक्खिदियत्थे, घाणिदियत्थे,
जिभिदियत्थे', फासिदियत्थे ।।
मुंड-पदं
१७७. पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियमुंडे', 'चक्खिदियमुंडे घाणिदियमुंडे,
जिभिदियमुंडे,° फासिंदियमुंडे । अहवा-पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा–कोहमुंडे माणमुंडे, मायामुंडे, लोभमुंडे,
सिरमुंडे । बायर-पदं १७८, अहेलोगे णं पच बायरा पण्णत्ता, तं जहा -पुढविकाइया, आउकाइया,
वाउकाइया, वणस्सइकाइया, ओराला तसा पाणा ।। १७६. उड्डलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-"पुढविकाइया, आउकाइया,
वाउकाइया, वणस्सइकाइया, ओराला तसा पाणा ° ।। १८०. तिरियलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया', 'बेइंदिया, तेइंदिया,
चरिदिया० पंचिदिया। १८१. पंचविहा बायरतेउकाइया पणत्ता, तं जहा-इंगाले, जाले, मुम्मुरे, अच्ची,
अलाते।
१. सं० पा०-णासि जाव णिच्चे।
४. सं० पा०–एवं चेव । २. सं० पा०-सोतिदियत्थे जाव फासिंदियत्थे। ५. सं० पा०-एगिदिया जाव पंचिदिया। ३. सं० पा०-सोतिदियमुंडे जाव फासिदिय ।
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पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो)
७०६
१८२. पंचविधा बादरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा --- पाईणवाते, पडीणवाते, दाहिणवाते, उदीणवाते, विदिसवाते ॥
अचित्त-वाउकाय-पदं
१८३. पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अक्कंते, धंते', पीलिए, सरीराणुगते, समुच्छिमे ॥
णियंठ-पदं
१८४. पंच नियंठा पण्णत्ता, तं जहा - पुलाए, बउसे, कुसीले, णियंठे, सिणाते ॥ १८५. पुलाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - णाणपुलाए, दंसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, अहासुमपुलाए णामं पंचमे ।।
१८६. बउसे पंचविधे पण्णत्ते, णं जहा - आभोगबउसे, अणाभोगबउसे, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहासुहुम उसे णामं पंचमे ||
दंसणकुसीले चरित्तकुसीले,
१८७. कुसीले पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - णाणकुसीले,
लिंगकुसीले ', अहासुहुमकुसीले णामं पंचमे ||
१८८. नियंठे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- पढमसमयणियंठे, अपढमसमयणियंठे, चरिमसमयणियंठे, अचरिमसमयणियंठे, अहासुहुमणियंठे णामं पंचमे ।। १८६. सिणा ते पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा - अच्छवी, असबले, अकम्मंसे, संसुद्धणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली, अपरिस्साई' |
उपधि-पदं
१०. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंच वत्थाई धारितए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा - जंगिए', भंगिए, साण, पोत्तिए, तिरोडपट्टए " णामं पंचमए । १९१. कप्पति" णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंच रयहरणाई धारितए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा -- उणिए, उट्टिए", साणए, पच्चापिच्चिए ", मुंजापिच्चिए णामं पंचम ॥
१. धम्म ( ख ) ।
२. पुलाते ( क, ख, ग ) ।
३. तवकुसीले (वृपा ) ।
४. अपरिस्साती (क, ख, ग ) ; अरहा (वृपा) । ५. कप्पंति ( वृ); तृतीयस्थानस्य ( ३/३४५) वृत्तौ 'कल्पते' इति व्याख्यातमस्ति, अत्र तु 'कल्पन्ते' इति व्याख्यातम् ।
६. जंगिते ( क, ख, ग ) ।
७. भंगिते (क, ख, ग) ।
८. साणते ( क, ख, ग ) ।
६. पोत्तिते ( क, ख, ग ) ।
१०. तिडपट्टते ( क, ख, ग ) । ११. कप्पंति (वृ ) ।
१२. रतहरणाई ( क, ख, ग ) । १३. उण्णीते (क, ख, ग ) । १४. उट्टिते (क, ख, ग ) । १५. पच्चापिच्चिए ( ग ) ।
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७१०
ठाणं
णिस्साट्ठाण-पदं १९२. धम्मण्णं चरमाणस्स पंच णिस्साटाणा पण्णत्ता, तं जहा-छक्काया, गणे, राया',
गाहावती, सरीरं ।। णिहि-पदं १९३. पंच णिहि पण्णत्ता, तं जहा-पुत्तणिही, मित्तणिही, सिप्पणिही, धणणिही,
धण्णणिही । सोच-पदं १६४. पंचविहे सोए' पण्णत्ते, तं जहा–पुढविसोए, आउसोए, तेउसोए, मंतसोए,
बंभसोए। छउमत्थ-केवलि-पदं १६५. पंच ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं,
अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं । एयाणि चेव उप्पण्णणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं', 'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं
असरीरपडिबद्ध°, परमाणुपोग्गल ।। महाणिरय-पदं १६६. अधेलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणिरया पण्णत्ता, तं जहा-काले,
महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अप्पतिट्ठाणे ॥ महाविमाण-पदं १६७. उड्ढलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाविमाणा पण्णत्ता, तं जहा-विजये,
वेजयंते, जयंते, अपराजिते, सव्वट्ठसिद्धे ।। सत्त-पदं १९८. पंच पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते,
उदयणसत्ते ॥ भिक्खाग-पदं १६६. पंच मच्छा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी, पडिसोतचारी, अंतचारी, मज्झ
चारी, सव्वचारी।
१. राता (क, ख, ग)। २. सोते (क, ख, ग)।
३. सं० पा०-धम्मत्थिकातं जाव परमाणु
पोग्गलं।
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पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो)
७११ एवामेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी', 'पडिसोतचारी,
अंतचारी, मज्झचारी', सव्वचारी ॥ वणीमग-पदं २००. पंच वणीमगा पण्णत्ता, तं जहा-अतिहिवणीमगे', किवणवणीमगे, माहण
वणीमगे, साणवणीमगे, समणवणीमगे। अचेल-पदं २०१. पंचहि ठाणेहिं अचेलए पसत्थे भवति, तं जहा–अप्पापडिलेहा', लाधविए पसत्थे,
रूवे वेसासिए, तवे अणुण्णाते, विउले इंदियणिग्गहे ।। उक्कल-पदं २०२. पंच उक्कला पण्णत्ता, तं जहा-दंडुक्कले, रज्जुक्कले, तेणुक्कले, देसुक्कले,
सव्वुक्कले ॥ समिती-पदं २०३. पंच समितीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इरियासमिती, भासासमिती', 'एसणा
समिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण
जल्ल °-पारिठावणियासमिती ।। जीव-पदं २०४. पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया', 'बेइंदिया,
तेइंदिया, चउरिदिया , पंचिदिया । गति-आगति-पदं २०५. एगिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिए एगिदिएसु उव
वज्जमाणे एगिदिएहितो वा', 'बेइंदिएहितो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिदिएहिंतो वा °, पंचिदिएहितो वा उववज्जेज्जा। 'से चेव णं से एगिदिए एगिदियत्तं विप्पजहमाणे एगिदियत्ताए वा', 'बेइंदियताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चउरिदियत्ताए वा ° ,पंचिदियत्ताए" वा गच्छेज्जा ॥
१. सं० पा०—अणुसोतचारी जाव सम्वचारी। ६. सं० पा०-एगिदितेहिंतो वा जाव पंचिदिय । २. वणीमते (क, ख, ग)।
७. X (क, ग)। ३. अप्पपडिलेही (ख)।
८. एगिदित्ताते (क, ग)। ४. सं० पा०-भासासमिती जाव पारिठावणिया- ६. सं० पा०-एगिदियत्ताते वा जाव पंचिदियसमिती।
त्ताते। ५. सं० पा०---एगिदिया जाव पंचिदिया। १०. पंचिंदित्ताते (क, ग)।
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७१२
ठाणं २०६. बेंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव ॥ २०७. एवं जाव' पंचिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा-पंचिदिए जाव'
गच्छेज्जा। जीव-पदं २०८. पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-कोहकसाई', 'माणकसाई, माया
कसाई , लोभकसाई, अकसाई। अहवा-पंचविधा सव्वजीवा पण्णता, तं जहाणेरइया', 'तिरिक्खजोणिया,
मणुस्सा°, देवा, सिद्धा। जोणि-ठिइ-पदं २०६. अह भंते ! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव - कुलत्थ - आलिसंदग - सतीण
पलिमंथगाणं-एतेसि णं धण्णाणं कुट्टाउत्ताणं "पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं ° केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराइं । तेण परं जोणी पमिलायति', 'तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं
बीए अबीए भवति °, तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ।। संवच्छर-पदं २१०. पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा-णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे,
लक्खणसंवच्छरे, सणिचरसंवच्छरे । २११. जुगसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-चंदे, चंदे, अभिवड्डिते, चंदे, अभिवड्डिते
चेव ।। २१२. पमाणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-णक्खत्ते, चंदे, उऊ, आदिच्चे,
अभिवड्डिते ॥ २१३. लक्खणसंवच्छरे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहासंगहणी-गाहा
समगं णक्खत्ताजोगं जोयंति समगं उदू परिणमंति ।
णच्चुण्ह णातिसीतो, बहूदओ" होति णक्खत्तो ॥१॥ १. पू०-ठा०५।२०५।
पमिलिथमाणे (ग)। २. ठा० ५।२०४।
७. सं० पा०-जधा सालीणं जाव केवतितं । ३. ठा० ५।२०५।
८. सं० पा०-पमिलायति जाव तेण परं। ४. सं० पा०-कोहकसाई जाव लोभकसाई। ६. जयंति (क, ग)। ५. सं० पा०-णेरइया जाव देवा। १०. णउण्हं (क, ग)। ६. पमिलिथगाणं (क); पलिमंथगाणी (ख); ११. बहूदतो (क, ख, ग)।
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पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो)
७१३ ससिसगलपुण्णमासी, जोएइ विसमचारिणक्खत्ते । कडुओ' बहूदओ वा, तमाहु संवच्छरं चंदं ॥२॥ विसमं पवालिणो परिणमंति अणुसु देति पुप्फफलं । वासं ण सम्म वासति, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं तु रसं, पुप्फफलाणं तु देइ आदिच्चो। अप्पेणवि वासेणं, सम्म णिप्फज्जए सासं ॥४॥ आदिच्चतेयतविता, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति ।
'पुरिति रेणु थलयाई", तमाहु अभिवड्डितं जाण ॥५॥ जीवस्स णिज्जाणमग्ग-पदं २१४. पंचविधे जीवस्स णिज्जाणमग्गे पण्णत्ते, तं जहा---पाएहि, ऊरूहि, उरेणं, सिरेणं,
सव्वंगेहिं । पाएहिं णिज्जायमाणे णिरयगामी भवति, ऊरूहि णिज्जायमाणे तिरियगामी भवति, उरेणं णिज्जायमाणे मणुयगामी भवति, सिरेणं णिज्जायमाणे देवगामी
भवति, सव्वंगेहिं णिज्जायमाणे सिद्धिगति-पज्जवसाणे पण्णत्ते ॥ छयण-पदं २१५. पंचविहे छेयणे पण्णत्ते, तं जहा-उप्पाछेयणे, वियच्छेयणे, बंधच्छेयणे,
पएसच्छेयणे, दोधारच्छेयणे। आणंतरिय-पदं २१६. पंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते, तं जहा-उप्पायाणंतरिए, वियाणंतरिए',
पएसाणंतरिए', समयाणंतरिए, सामण्णाणंतरिए । अणंत-पदं २१७. पंचविधे अणंतए" पण्णत्ते, तं जहा-णामाणतए", ठवणाणंतए, दव्वाणंतए,
गणणाणतए पदेसाणंतए।
अहवा-पंचविहे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा-एगंतोऽणतए, दुहओणंतए, देस• वित्थाराणंतए, सव्ववित्थाराणंतए, सासयाणंतए ।
१. विसमचारण ° (क, ग); विसमाचारिण०
(ख)। २, कडुतो (क, ख, ग)। ३. पूरेति त थलताई (क, ख)। ४. उप्पाय ° (क, ग)। ५. पंथच्छेयण (वृपा)।
६. उप्पातयणंतरिते (क, ख, ग)। ७. वितणंतरिते (क, ख, ग)। ८. पतेसाणंतरिते (क, ख, ग)।
६. समताणंतरिते (क, ख, ग)। १०. अणंते (क, ख, ग)। ११. णामणंतते (क, ग)।
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७१४
ठाणं
णाण-पदं २१८. पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे,
मणपज्जवणाणे, केवलणाणे ।। २१६. पंचविहे णाणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा--आभिणिबोहियणाणावरणिज्जे',
'सुयणाणावरणिज्जे, ओहिणाणावरणिज्जे, मणपज्जवणाणावरणिज्जे °, केवल
णाणावरणिज्जे ॥ २२०. पंचविहे सज्झाए पण्णत्ते, तं जहा–वायणा, पुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा,
. धम्मकहा।। पच्चक्खाण-पदं २२१. पंचविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा-सद्दहणसुद्धे, विणयसुद्धे, अणुभासणासुद्धे,
अणुपालणासुद्धे, भावसुद्धे ।। पडिक्कमण-पदं २२२. पंचविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा-आसवदारपडिक्कमणे, मिच्छत्तपडिक्कमणे,
___ कसायपडिक्कमणे, जोगपडिक्कमणे, भावपडिक्कमणे ॥
सुत्त-पदं
२२३. पंचहि ठाणेहि सुत्तं वाएज्जा, तं जहा-संगहट्ठयाए, उवग्गहट्ठयाए', णिज्जर
याए, सुत्ते वा मे पज्जवयाते भविस्सति, सुत्तस्स वा अवोच्छित्तिणयट्टयाए । २२४. पंचहि ठाणेहि सुत्तं सिक्खेज्जा, तं जहा–णाणट्ठयाए, दसणट्टयाए, चरित्तट्टयाए,
वुग्गहविमोयणट्टयाए', अहत्थे वा भावे जाणिस्सामीतिकट्ट । कप्प-पदं २२५. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा' पण्णत्ता, तं जहा-किण्हा',
*णीला, लोहिता, हालिद्दा °, सुक्किल्ला ।। २२६. सोहम्भीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ २२७. बंभलोग-लंतएस णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी
उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। बंध-पदं २२८. णेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा,
१. सं० पा०-आभिणिबोहियणाणावरणिज्जे
जाव केवल। २. उवग्गहणट्ठयाए (ख)।
३. विमोतणठूयाते (क, ख, ग)। ४. पंचविधा (क, ग)। ५. सं० पा०-किण्हा जाव सुक्किल्ला।
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पंचमं ठाणं (तइओ उद्देसो)
७१५ तं जहा–किण्हे', 'णीले, लोहिते, हालिद्दे , सुक्किल्ले । तित्ते', 'कडुए, कसाए,
अंबिले°, मधुरे ।। २२६. एवं जाव' वेमाणिया ॥ महाणदी-पदं २३०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं गंगं महाणदि पंच महाणदीओ
समति , तं जहा--जउणा, सरऊ, आवी', कोसी, मही ।।। २३१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं सिंधुं महाणदि पंच महाणदोओ
समति, तं जहा—'स[त ? ] द्, वितत्था, विभासा", एरावती, चंदभागा ॥ २३२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तं महाणदि पंच महाणदीओ
समति, तं जहा-किण्हा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा॥ २३३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तावति महाणदि पंच महाणदीओ
समप्पेंति, तं जहा-इंदा, इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोगा ॥ तित्थगर-पदं २३४. पंच तित्थगरा कुमारवासमझे वसित्ता मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं'
पव्वइया, तं जहा–वासुपुज्जे, मल्ली, अरिट्ठणेमी, पासे, वीरे ।। सभा-पदं २३५. चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभा पण्णत्ता, तं जहा–सभासुधम्मा, उववात
सभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा', ववसायसभा ॥ २३६. एगमेगे णं इंदट्ठाणे पंच सभाओ पण्णत्ताओ, तं जहा सभासुहम्मा", 'उववात
सभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा,° ववसायसभा ॥ णक्खत्त-पद २३७. पच णक्खत्ता पंचतारा पण्णत्ता, तं जहा–धणिट्ठा, रोहिणी, पुणव्वसू, हत्थो,
विसाहा॥ पावकम्म-पदं २३८. जीवा णं पंचट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
१. सं० पा०--किण्हे जाव सुक्किल्ले । २. सं० पा०---तित्ते जाव मधुरे । ३. ठा० १११४२-१६३ । ४. आदी (क, ख, ग)। ५. सतद् विभासा वितत्था (क्व)।
६. °मज्झा (क, ग)। ७. सं० पा०--मुंडा जाव पव्वतिता। ८. अलंकारित° (क, ख, ग)। ६. ववसात° (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-सभासुहम्मा जाव ववसातसभा।
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७१६
ठाण
चिणिस्संति वा, तं जहा - एगिदियणिव्वत्तिए', 'बेइंदियणिव्वत्तिए, तेइंदियणिव्वत्तिए, चउरिदियणिव्वत्तिए, पंचिदियणिव्वत्तिए ।
एवं - चिण उवचिण-बंध - उदीर-वेद तह णिज्जरा चेव ॥
पोग्गल - पदं
२३६. पंचप एसिया खंधा अनंता पण्णत्ता ॥
२४०. पंच एसोगाढा पोग्गला अनंता पण्णत्ता जाव पंचगुणलुक्खा पोग्गला अनंता
पण्णत्ता ॥
१. सं० पा० एगिंदियणिव्वित्तिते जाव पंचदित ।
२. ठा० १।२५५, २५६ ।
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छठें ठाणं गण-धारण-पदं १. छहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति गणं धारित्तए, तं जहा-सड्डी पुरिसजाते,
सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पुरिसजाते, बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिम
अप्पाधिकरणे ॥ णिग्गंथी-अवलंबण-पदं २. छहिं ठाणेहिं णिग्गंथे णिग्गंथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ,
तं जहा-खित्तचित्तं, दित्तचित्तं, जक्खाइटुं, उम्मायपत्तं', उवसग्गपत्तं, साहिकरणं॥
साहम्मियस्स अंतकम्म-पदं ३. छहि ठाणेहि णिग्गंथा णिग्गंथोओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा
णाइक्कमंति, तं जहा-अंतोहिंतो वा बाहिं णीणेमाणा, बाहीहिंतो वा णिब्बाहिं णीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा' वा, अणुण्णवेमाणा वा, तुसिणीए वा
संपव्वयमाणा ॥ छउमत्थ-केवलि-पदं
छ ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आयासं, जीवमसरीरपडिबद्धं, परमाणपोग्गलं, सह ।। एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे 'केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा-धम्मत्थिकार्य', 'अधम्मत्थिकायं, आयासं, जीवमसरोरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं °, सई ॥
१. उम्मातपत्तं (क, ख, ग)। २. साहीकरणी (ख)। ३. भयमाणा, उवसामेमाणा (वृपा)।
४. सं० पा०—जिणे जाव सव्वभावेणं । ५. सं० पा०-धम्मत्थिकातं जाव सदं ।
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७१८
ठाणं
असंभव-पदं ५. छहिं ठाणेहिं सव्वजीवाणं णत्थि इड्डोति वा जुतीति वा जसेति वा बलेति वा
वोरिएति वा पुरिसक्कार-परक्कमेति वा, तं जहा–१. जीवं वा अजीवं करणताए । २. अजोवं वा जीवं करणताए । ३. एगसमए णं वा दो भासाओ भासित्तए। ४. सयं कडं वा कम्मं वेदेमि वा मा वा वेदेमि । ५. परमाणुपोग्गलं' वा छिदित्तए वा भिदित्तए वा अगणिकाएणं वा समोदहित्तए ।
६. बहिता वा लोगंता' गमणताए । जीव-पदं ६. छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया', 'आउकाइया, तेउकाइया,
वाउकाइया, वणस्सइकाइया° तसकाइया ।। ७. छ तारग्गहा पण्णत्ता, तं जहा-सुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारए, सणिच्छरे,
केतू ॥ ८. छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया',
'आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया,° तसकाइया । गति-आगति-पदं ६. पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइए पुढवि
काइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहितो वा', 'आउकाइएहितो वा, तेउकाइएहितो वा, वाउकाइएहितो वा, वणस्सइकाइएहितो वा, ° तसकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा ॥ से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा', 'आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइय
त्ताए वा° तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा । १०. आउकाइया छगतिया छआगतिया एवं चेव जाव तसकाइया । जीव-पदं ११. छव्विहा सव्वजोवा पण्णत्ता, तं जहा-आभिणिबोहियणाणो", 'सयणाणी.
ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी,° केवलणाणी, अण्णाणी।
१. सुहमपोग्गले (क, ग)।
७. सं० पा०-पूढविकातितत्ताते वा जाव तस। २. सम्मोदहित्तते (क)।
८. ठा० ६।६। ३. लोगे वा (क, ग)।
६. ठा० ६।६। ४. सं० पा०--पूढविकाइया जाव तसकाइया। १०. सं० पा०-आभिणिबोहियणाणी जाव केवल५. सं० पा०-पुढविकाइया जाव तसकाइया। णाणी। ६. सं० पा०-पूढविकाइएहिंतो वा जाव तस।
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छट्टु ठाणं
७१६
अहवा - छविवहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा -- एगिंदिया', 'बेइंदिया, इंदिया, चउरिदिया, ° पंचिदिया, अणिदिया ।
अहवा - छविवहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालियसरीरी, वेउब्वियसरीरी, आहारगसरीरी, तेअगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी ॥
तणवणस्सइ-पदं
१२. छव्विहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा - अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा ॥
- सुलभ-पदं
१३. छट्टाणाई सव्वजीवाणं णो सुलभाई भवंति तं जहा - माणुस्सए भवे । आरिए खेत्ते जम्मं । सुकुले पच्चायाती । केवलीपण्णत्तस्स धम्मस्स सवणता । सुतस्स वा सहणता । सहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्मं काएणं फासणता ॥ इंदियत्थ-पदं
१४. छ इंद्रियत्था पण्णत्ता, तं जहा- सोइंदियत्थे, ' 'चक्खिदियत्थे, घाणिदियत्थे, जिभिदित्थे, फासिदियत्थे णोइंदियत्थे ॥
o
संवर-असंवर-पदं
१५. छव्विहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा -सोति दियसंवरे,' चक्खि दियसंवरे, घाणिदियसंवरे, जिभिदियसंवरे, ° फासिंदियसंवरे, णोइंदियसंवरे ॥
१६. छव्विहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा -- सोतिदियअसंवरे', 'चक्खि दियअसंवरे घाणिदियअसंवरे, जिब्भिदियअसंवरे, फासिंदियअसंवरे, णोइंदियअसंवरे ॥
सात असात-पदं
१७. छव्विहे साते पण्णत्ते, तं जहा सोतिंदियसाते', 'चक्खिदियसाते, घाणिदियसाते, जिभिदिवसाते, फासिंदियसाते, णोइंदियसाते ॥
१५. छव्विहे असाते पण्णत्ते, तं जहा -सोतिदियअसाते', 'चक्खिदियअसाते, घाणिदियअसाते, जिब्भिदियअसाते, फासिंदियअसाते, गोइंदियअसाते || पायच्छित्त-पदं
१६. छविहे पायच्छिते पण्णत्ते, तं जहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारि, विवेगार, विउस्सग्गारिहे, तवारि ॥
१. सं० पा० - एगिंदिया जाव पंचिदिया ।
२. सं० पा० - सोइंदियत्थे जाव फासिंदियत्थे । ३. सं० पा० - सोतिंदियसंवरे जाव फासिंदिय । ४. सं० पा० - सोति दियअसंवरे जाव फासिं
दिय ० 1
५. सं० पा० - सोतिदियसाते जाव नोइंदियसाते । ६. सं० पा० - सोतिदियअसाते जाव नोइंदियअसाते ।
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७२०
ठाणं
मणुस्स-पदं २०. छविहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-जंबूदीवगा, धायइसंडदीवपुरथिमद्धगा,
धायइसंडदीवपच्चत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपुरथिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा। अहवा-- छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिममणुस्सा-कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा; गब्भवक्कंतिअमणुस्सा-कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा,
अंतरदीवगा ॥ २१. छव्विहा इड्डिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा,
वासुदेवा, चारणा, विज्जाहरा ॥ २२. छव्विहा अणिड्डिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-हेमवतगा, हेरण्णवतगा,
हरिवासगा', रम्मगवासगा', कुरुवासिणो, अंतरदीवगा ।। कालचक्क-पदं २३. छव्विहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा-सुसम-सुसमा', 'सुसमा, सुसम-दूसमा,
दूसम-सुसमा, दूसमा°, दूसम-दूसमा ।। २४. छव्विहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा-दुस्सम-दुस्समा', 'दुस्समा, दुस्सम
सुसमा, सुसम-दुस्समा, सुसमा°, सुसम-सुसमा ॥ २५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए
मणुया छ धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं
पालयित्था ॥ २६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओस प्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए
५"मणुया छ धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं
पालयित्था ॥ २७. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए
समाए "मणुया छ धणुसहस्साइं उड्डमुच्चत्तेणं भविस्संति °, छच्च अद्धपलि
ओवमाइं परमाउं पालइस्संति ॥ २८. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु-उत्तरकुरुकुरासु' मणुया छ धणुस्सहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाणु पालेति ॥
१,२. °वंसगा (क, ग); ° वसगा (ख); २।२६६
सूत्रानुसारेण 'वास' पाठः स्वीकृतः । ३. सं० पा०-सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा। ४. सं० पा०-दुस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा।
५. सं० पा०-एवं चेव । ६. सं० पा०–एवं चेव जाव छच्च । ७. उत्तरकुराकुराए (ख) ।
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छुटुं ठाणं
७२१
२६. एवं धायइसंडदीवपुरथिमद्धे चत्तारि आलावगा' जाव' पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थि
__ मद्धे चत्तारि आलावगा। संघयण-पदं ३०. छविहे संघयणे पण्णत्ते, तं जहा–वइरोसभ-णाराय-संघयणे, उसभ-णाराय
संघयणे, णाराय-संघयणे, अद्धणाराय-संघयणे, खोलिया-संघयणे, छेवट्ट
संघयणे॥ संठाण-पदं ३१. छव्विहे संठाणे पण्णत्ते, तं जहा-समच उरंसे, णग्गोहपरिमंडले, साई', खुज्जे,
वामणे, हुंडे ॥ अणत्तव-अत्तव-पदं ३२. छट्ठाणा अणत्तवओ अहिताए असुभाए अखमाए अणीसेसाए अणाणुगामियत्ताए
भवंति, तं जहा–परियाए", परियाले , सुते, तवे, लाभे, पूयासक्कारे ॥ ३३. छट्ठाणा अत्तवतो हिताए' 'सुभाए खमाए णोसेसाए° आणुगामियत्ताए भवंति,
तं जहा—परियाए, परियाले", 'सुते, तवे, लाभे°, पूयासक्कारे ।। आरिय-पदं ३४. छविहा जाइ-आरिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-- संगहणी-गाहा
अंबद्धा य कलंदा य, वेदेहा वेदिगादिया।
हरिता चुचुणा" चेव, छप्पेता इब्भजातिओ ॥१॥ ३५. छव्विहा कुलारिया मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा-उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा,
णाता, कोरव्वा ॥ लोगट्ठिति-पदं
३६. छव्विहा लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा-आगासपतिट्ठिते वाए, वातपतिट्ठिते १. ठा० ६।२५-२८॥
७. परिताते (क, ख, ग)। २. ठा० ३।१०८।
८. परिताले (क, ख, ग)। ३. ठा० ६।२५-२८ ।
६. सं० पा०-हिताते जाव आणगामियत्ताते। ४. वति ° (क, ख, ग)।
१०. सं० पा०- परिताले जाव पूतासक्कारे। ५. णारात (क, ख, ग)।
११. वेदिगातिता (क, ख, ग)। ६. साती (क, ख, ग)।
१२. चुंबणा (क); चुबुणा (ग)।
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७२२
ठाण
उदही, उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा
जीवपतिहिता, जीवा कम्मपतिट्ठिता ॥ दिसा-पदं ३७. छहिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पाईणा', पडीणा, दाहिणा, उदीणा', उड्डा,
अधा ॥ ३८. छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा-पाईणाए', 'पडीणाए, दाहिणाए,
उदीणाए, उड्डाए °, अधाए॥ ३६. "छहिं दिसाहि जीवाणं° -आगई वक्कंती आहारे वुड्डी णिवुड्डी विगुव्वणा
गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे णाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे 'पण्णत्ते, तं जहा—पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदोणाए,
उड्ढाए, अधाए ॥ ४०. एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणवि, मणुस्साणवि ॥ आहार-पदं ४१. छहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारमाहारेमाणे णातिक्कमति, तं जहासंगहणी-गाहा
वेयण'-वेयावच्चे, ईरियट्ठाए य संजमट्ठाए ।
__ तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिंताए ।।१।। ४२. छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारं वोच्छिदमाणे णातिक्कमति, तं जहासंगहणी-गाहा
आतंके उवसग्गे, तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीए । पाणिदया-तवहेउं, सरीरवुच्छेयणट्ठाए ॥१॥
उम्माय-पदं
४३. छहिं ठाणेहिं आया उम्मायं पाउणेज्जा, तं जहा-अरहंताणं अवण्णं वदमाणे,
अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरिय-उवज्झायाणं अवण्णं
१. पातीणा (क, ख, ग)। २. उतीणा (क, ग)। ३. सं० पा०-पातीणाते जाव अधाते । ४. सं० १३०एवं।
५. ठा०६।३८,३६ । ६. वेतण (क, ख, ग)। ७. °ट्ठयाए (क)। ८. उम्मायपमायं (वृपा)।
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छटुं ठाणं
७२३
वदमाणे, चाउव्वण्णस्स संघस्स अवण वदमाणे, जक्खावेसेण चेव,मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं ॥
पमाय-पदं ४४. छबिहे पमाए' पण्णत्ते, तं जहा–मज्जपमाए, णिद्दपमाए, विसयपमाए, कसाय
पमाए, जूतपमाए, पडिलेहणापमाए ।। पडिलेहणा-पदं
४५. छव्विहा पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
___ आरभडा संमद्दा, वज्जेयव्वा य 'मोसली ततिया।
पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया' छट्ठी ॥१॥ ४६. छविवहा अप्पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
___ अणच्चावितं अवलितं', अणाणुबंधि अमोसलिं चेव ।
छप्पुरिमा णव खोडा, पाणीपाणविसोहणी ॥१॥ लेसा-पदं ४७. छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा,
पम्हलेसा, सूक्कलेसा ॥ ४८. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा,
णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा ॥ ४६. एवं मणुस्स-देवाण वि । अग्गम हिसी-पदं ५०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो छ अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ। ५१. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जम्मस्स महारण्णो छ अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ।
१. जक्खादेसेण (क, ख, ग)। २. पमाते (क, ख, ग)। ३. अट्ठाणठवणयाए (वृपा)। ४. वक्खित्ता (क, ख, ग)।
५. वेतिया (क, ख, ग)। ६. अचलित (ख)। ७,८. सं० पा०-कण्हलेसा जाव सूक्कलेसा।
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७२४
ठाणं
देवठिति-पदं ५२. ईसाणस्स णं देविंदस्स [देव रण्णो' ? ] मज्झिमपरिसाए देवाणं छ पलिओवमाई
ठिती पण्णत्ता। महत्तरिया-पदं ५३. छ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ' पण्णत्ताओ, तं जहा-रूवा', रूवंसा', सुरूवा,
रूववती, रूवकता', रूवप्पभा'। ५४. छ विज्जुकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- अला, सक्का, सतेरा,
सोतामणी, इंदा, घणविज्जुया ॥ अग्गम हिसी-पदं ५५. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
___ तं जहा- अला, सक्का, सतेरा, सोतामणी, इंदा, घणविज्जुया ॥ ५६. भूताणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ,
तं जहा-'रूवा, रूवंसा", सुरूवा, रूववती, रूवकता, रूवप्पभा ॥ ५७. जहा धरणस्स तहा सव्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ॥ ५८. जहा" भूताणंदस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जावर महाघोसस्स ।। सामाणिय-पदं ५६. धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमाररण्णो छस्सामाणियसाहस्सीओ
पण्णत्ताओ। ६०. एवं भूताणंदस्सवि जाव" महाघोसस्स ॥
मइ-पदं
६१. छव्विहा ओगहमतो" पण्णत्ता, तं जहा--खिप्पमोगिण्हति", बहुमोगिण्हति,
बहुविधमोगिण्हति, धुवमोगिण्हति, अणिस्सियमोगिण्हति, असंदिद्धमोगिण्हति ॥
१. सर्वत्रापि एवं दृश्यते। २. ° महत्तरितातो (क, ख, ग)। ३. रूता (क, ख, ग)। ४. रूतसा (क, ख, ग)। ५. रूयकता (क, ख, ग)। ६. रूतप्पभा (क, ख, ग)। ७. आला (क्व)। ८. रूता रूतंसा (क); रूता रूवंसा (ग)।
६. ठा० ६।५५ । १०. ठा० २।३५५-३६१ । ११. ठा० ६।५६ । १२. ठा० २।३५५-२६१ । १३. ठा०२।३५५-३६२ । १४. उग्गह° (क)। १५. खिप्पा (क, ग)।
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छ8 ठाणं
७२५ ६२. छव्विहा ईहामती पण्णत्ता, तं जहा–खिप्पमीहति, बहुमोहति', 'बहुविधमीहति,
धुवमीहति, अणिस्सियमीहति °, असंदिद्धमीहति ॥ ६३. छविधा अवायमती पण्णत्ता, तं जहा--खिप्पमवेति', 'बहुमवेति, बहुविधमवेति,
धुवमवेति, अणिस्सियमवेति °, असंदिद्धमवेति ॥ ६४. छव्विहा धारणा [मती ? ] पण्णत्ता, तं जहा-बहुं धरेति, बहुविहं धरेति,
पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अणि स्सितं धरेति, असंदिद्धं धरेति ॥
तव-पदं
६५. छविहे बाहिरए तवे पण्णत्ते, तं जहा–अणसणं, ओमोदरिया, भिक्खायरिया',
रसपरिच्चाए', कायकिलेसो, पडिसलीणता ॥ ६६. छव्विहे अब्भंतरिए तवे पण्णत्ता, तं जहा-पायच्छित्तं, विणओ, वेयावच्चं,
__ सज्झाओ', झाणं, विउस्सग्गो ॥ विवाद-पदं ६७. छविहे विवादे पण्णत्ते, तं जहा -ओसक्कइत्ता', उस्सक्कइत्ता', अणुलोमइत्ता',
पडिलोमइत्ता, भइत्ता, भेलइत्ता॥
खुड्डपाण-पदं
६८. छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता, तं जहा -- 'बंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया,
समुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया॥ गोयरचरिया-पदं ६९. छव्विहा गोयरचरिया" पण्णत्ता, तं जहा-पेडा, अद्धपेडा, गोमुत्तिया", पतंग
वीहिया", संबुक्कावट्टा", गंतुंपच्चागता॥ महाणिरय-पदं
७०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ १. सं० पा.-बहुमीहति जाव असंदिद्धमीहति। ८. संकामइत्ता (क, ग)। २. स० पा०-खिप्पमवेति जाव असंदिद्ध°। ६. भेलतित्ता (क, ख, ग); भेयइत्ता (वृपा)। ३. भिक्खातरिता (क, ख, ग)।
१०. खुड्ड (क)। ४. रसपरिच्चाते (क, ख, ग)।
११. वाचनान्तरे तु सिंहाः व्याघ्रा वृका दीपिका ५. अहेव सज्झाओ (ख)।
ऋक्षास्तरक्षाः (वृ)। ६. ओक्कस्सतित्ता (क, ग); ओसक्कावइत्ता १२. ° चरिता (ख, ग)। (वृपा)।
१३. गोमुत्तिता (क, ख, ग)। ७. उक्कस्सइत्ता (क, ग); ओसक्कइत्ता (वृ); १४. विहिया (क, ख, ग)। उस्सक्कावइत्ता (वृपा)।
१५. संबुक्कवट्टा (ख, ग)।
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७२६
ठाणं
अवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा-लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, णिद्दड्ढे, जरए',
पज्जरए॥ ७१. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा-आरे,
वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे ॥ विमाण-पत्थड-पदं ७२. बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा-अरए', विरए', णीरए,
णिम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे ॥ णक्खत्त-पदं ७३. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पुव्वंभागा समखेत्ता तीसति
मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाभद्दवया, कत्तिया, महा, पुव्वफग्गुणी, मूलो,
पुव्वासाढा ॥ ७४. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता णत्तंभागा अवड्ढक्खेत्ता पण्ण
रसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा—सयभिसया, भरणी, भद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्ठा ।। ७५. चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता उभयभागा दिवड्डखेत्ता
पणयालीसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-रोहिणी, पुणव्वसू, उत्तराफग्गुणी,
विसाहा, उत्तरासाढा, उत्तराभद्दवया ॥ इतिहास-पदं ७६. अभिचंदे णं कुलकरे छ धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था ॥ ७७. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्वसतसहस्साई महाराया हत्था । ७८. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स छ सता वादीणं सदेवमणुयासुराए
परिसाए अपराजियाणं संपया होत्था ॥ ७६. वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससतेहिं सद्धि मुंडे'भवित्ता अगाराओ अणगा
रियं° पव्वइए ॥ ८०. चंदप्पभे णं अरहा छम्मासे छउमत्थे हुत्था॥ संजम-असंजम-पदं ८१. तेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स' छविहे संजमे कज्जति, तं जहा१. जरते (क, ख, ग)।
६. सं० पाo-मुंडे जाव पव्वइते । २. अरते (क, ख, ग)।
७. छम्मासा (ख)। ३. विरते (क, ख, ग)।
८. तेतिंदिया (क, ख, ग)। ४. णीरते (क, ख, ग)।
६. असमारंभ ° (ख)। ५. पुव्वा आसाढा (ग)।
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छद्रं ठाण
७२७
८२.
घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खणं असंजोएत्ता भवति । जिब्भामातो' सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, "जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति । फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । फासामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति ° ॥ तेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स छविहे असंजमे कज्जति, तं जहाघाणामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति'। 'जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति ° फासामएणं
दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ।। खेत्त-पन्वय-पदं ८३. जंबुद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरि
वस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा ॥ ८४. जंबुद्दीवे दीवे छव्वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवए,
हरिवासे, रम्मगवासे ॥ ८५. जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते,
णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी ।। ८६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा-चुल्ल
हिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, णिसढकूडे', रुयगकडे । ८७. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा-णीलवंत
कूड', उवदसणकूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे, सिहरिकूडे, तिगिछिकूडे ॥ महादह-पदं ८८. जंबुद्दीवे दीवे छ महद्दहा पण्णत्ता, तं जहा-पउमद्दहे, महापउमद्दहे, तिगिछिद्दहे',
केसरिद्दहे, महापोंडरीयद्दहे, पुंडरीयद्दहे। तत्थ णं छ देवयाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमट्ठितियाओ परिवसंति,
तं जहा-सिरी, हिरी, धिती, कित्ती, बुद्धी, लच्छी। णदी-पदं ८६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ महाणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
गंगा, सिंधू, रोहिया, रोहितंसा, हरी, हरिकंता॥ १. जिब्भमतो फासमतो (ग)।
५. णेल ° (क)। २. सं० पा०--एवं चेव एवं फासामातो वि। ६. तिगिच्छकूडे (क, ख, ग)। ३. सं० पा०-भवति जाव फासामतेणं। ७. तिगिच्छ ° (क); तिगिछ° (ख)। ४. णिसभकूडे (क, ग)।
८. ठा० २।२७१।
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७२०
ठाणं
६०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ महाणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
णरकता, णारिकता, सुवण्णकूला, रुप्पकूला, रत्ता, रत्तवती ॥ ६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उभयकूले छ
अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—गाहावती, दहवती, पंकवती, तत्तयला,
मत्तयला, उम्मत्तयला ॥ ६२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोदाए महाणदीए उभयकले
छ अंतरणदीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खीरोदा, सीहसोता, अंतोवाहिणी, उम्मि
मालिणी, फेणमालिणी, गंभीरमालिणी।। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं ६३. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-हेमवए',
'हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा ॥ ६४. एवं जहा जंबुद्दीवे दीवे जाव' अंतरणदीओ जाव' पुक्खरवरदीवद्धपच्चत्थिमद्धे
भाणितव्वं ॥ उउ-पदं ६५. छ उदू पण्णत्ता, तं जहा—पाउसे, वरिसारत्ते, सरए, हेमंते, वसंते, गिम्हे ॥ ओमरत्त-पदं ६६. छ ओमरत्ता पण्णत्ता, तं जहा-ततिए पव्वे, सत्तमे पव्वे, एक्कारसमे पव्वे,
पण्णरसमे पव्वे, एगूणवीसइमे पव्वे, तेवीसइमे पव्वे ॥ अतिरत्त-पदं ६७. छ अतिरत्ता पण्णत्ता, तं जहा-चउत्थे पव्वे, अट्ठमे पव्वे, दुवालसमे पव्वे,
सोलसमे पव्वे, वीसइमे पव्वे, चउवीसइमे पव्वे ॥ अत्थोग्गह-पदं १८. आभिणिबोहियणाणस्स णं छव्विहे अत्थोग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदिय
त्थोग्गहे, 'चक्खिदियत्थोग्गहे, घाणिदियत्थोग्गहे, जिभिदियत्थोग्गहे, फासिं
दियत्थोग्गहे °, णोइंदियत्थोग्गहे ॥ ओहिणाण-पदं ६६. छव्विहे ओहिणाणे पण्णत्ते, तं जहा-आणुगामिए, अणाणुगामिए, वड्डमाणए,
हायमाणए, पडिवाती, अपडिवाती॥
१. सं० पा०–हेमवए." २. ठा० ६।८४-६२। ३. ठा० ३।१०८।
४. उडू (ग)। ५. सं० पा०-सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय ।
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छटुं ठाण
७२६
अवयण-पदं १००. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाइं छ अवयणाई वदित्तए, तं जहा
अलियवयणे, हीलियवयणे, खिसितवयणे, फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसवितं
वा पुणो उदीरित्तए॥ कप्पस्स पत्थार-पदं १०१. छ कप्पस्स पत्थारा पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवायस्स वायं वयमाणे, मुसा
वायस्स वायं' वयमाणे, अदिण्णादाणस्स वायं वयमाणे, अविरतिवायं वयमाणे, अपरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे-इच्चेते छ कप्पस्स पत्थारे पत्थारेत्तर सम्ममपडिपूरेमाणे तट्ठाणपत्ते ॥
पलिमंथु-पदं
१०२. छ कप्पस्स पलिमंथू' पण्णत्ता, तं जहा-कोकुइते' संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए"
सच्चवयणस्स पलिमंथू, चक्खुलोलुए ईरियावहियाए पलिमंथू , तितिणिए एसणागोयरस्स" पलिमंथू, इच्छालोभिते मोत्तिमग्गस्स पलिमंथू, भिज्जाणिदाण
करणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवता अणिदाणता" पसत्था ।। कप्पट्ठिति-पदं १०३. छव्विहा कप्पट्टिती पण्णत्ता, तं जहा-सामाइयकप्पद्विती, छेओवट्ठावणिय
कप्पट्टिती", णिव्विसमाणकप्पट्टिती, णिविट्ठकप्पट्टिती, जिणकप्पद्विती, थेर
कप्पट्टिती ।। महावीरस्स छट्ठभत्त-पदं १०४. समणे भगवं महावीरे छोणं भत्तेणं अपाणएणं मुंडे" भवित्ता अगाराओ
अणगारियं ° पव्वइए॥ १०५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छ?णं भत्तेणं अपाणएणं अणंते अणुत्तरे'५
'णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे° समुप्पण्णे॥
१. अवतणाई (क, ख, ग)। २. वादं (क)। ३. वातं (क, ख, ग)। ४. सम्मा ° (ख)। ५. पाठान्तरेण परिमन्था वाच्याः (वृ)। ६. कोकुतिते (क, ख, ग)। ७. मोहरिते (क, ख, ग)। ८. चक्खुलोलुते (क, ख, ग)।
६. ईरितावहिताते (क, ख, ग)। १०. एसणागोतरस्स (क, ख, ग)। ११. अणिताणता (क, ख, ग)। १२. सामातित ° (क, ख, ग)। १३. छतोवट्ठावणित ° (क, ख, ग)। १४. सं० पा०--मुंडे जाव पव्वइए । १५. सं० पा०—अणुत्तरे जाव समुप्पण्णे ।
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७३०
ठाणं
१०६. समणे भगवं महावीरे छटेणं भत्तेणं अपाणएणं सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ विमाण-पदं १०७. सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ देव-पदं १०८. सणं कुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जगा सरीरगा उक्कोसेणं छ
रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। भोयण-परिणाम-पदं १०६. छव्विहे भोयणपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा--मणुण्णे, रसिए, पीणणिज्जे, 'बिह
णिज्जे, मयणिज्जे', दप्पणिज्जे॥ विसपरिणाम-पदं ११०. छविहे विसपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा–डक्के, भुत्ते, णिवतिते, मंसाणुसारी
सोणिताणुसारी, अट्ठिमिजाणुसारी॥ पट्ठ-पदं १११. छव्विहे पट्टे पण्णत्ते, तं जहा–संसयपट्टे, वुग्गहपढे, अणुजोगी, अणुलोमे,
तहणाणे, अतहणाणे ॥ विरहिय-पदं ११२. चमरचंचा णं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववातेणं ॥ ११३. एगमगे णं इंदढाणे उक्कोसेणं छम्मासे विरहिते उववातेणं ॥ ११४. अधेसत्तमा णं पुढवी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं ।। ११५. सिद्धिगती णं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं ॥ आउयबंध-पदं ११६. छव्विधे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा-जातिणामणिधत्ताउए, गतिणाम
णिधत्ताउए, ठितिणामणिधत्ताउए, ओगाहणाणामणिधत्ताउए, पएसणामणिध
त्ताउए, अणुभागणामणिहत्ताउए । ११७. णेरइयाणं छविहे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा–जातिणामणिहत्ताउए',
१. सं० पा०--सिद्धे जाव सव्वदुक्ख ° । २. दीवणिज्जे (वृ); मयणिज्जे (वृपा)। ३, दप्पणिज्जे विहणिज्जे मयणिज्जे (क, ग)। ४. अट्टे (वृपा)।
५. अणुभाव ° (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-जातिणामाणिहत्ताउते
अणुभाग ° ।
जाव
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छटुं ठाणं
७३१
'गतिणामणिहत्ताउए, ठितिणामणिहत्ताउए, ओगाहणाणामणिहत्ताउए,
पएसणामणिहत्ताउए, ° अणुभागणामणिहत्ताउए । ११८. एवं जाव' वेमाणियाणं ।। परभवियाउय-पदं ११६. णेरइया णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति ।। १२०. एवं असुरकुमारावि जाव' थणियकुमारा॥ १२१. असंखेज्जवासाउया सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि या णियम छम्मासावसेसाउया
परभवियाउयं पगरेंति ।। १२२. असंखेज्जवासाउया सण्णिमणुस्सा णियम 'छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं
पगरेति ॥ १२३. वाणमंतरा जोतिसवासिया वेमाणिया जहा णेरइया । भाव-पदं १२४. छविधे भावे पण्णत्ते, तं जहा-ओदइए', उवसमिए, खइए' खओवसमिए,
पारिणामिए, सण्णिवातिए॥ पडिक्कमण-पदं १२५. छविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा-उच्चारपडिक्कमणे, पासवणपडिक्कमणे,
इत्तरिए, आवकहिए, जंकिंचिमिच्छा, सोमणंतिए । णक्खत्त-पदं १२६. कत्तियाणक्खत्ते छत्तारे पण्णत्ते ।। १२७. असिलेसाणक्खत्ते छत्तारे पण्णत्ते॥ पावकम्म-पदं १२८. जीवा णं छट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
चिणिस्संति वा, तं जहा--पुढविकाइयणिव्वत्तिए, 'आउकाइयणिव्वत्तिए,
१. अणुभाव° (क, ख, ग)। २. ठा० १।१४२-१६३ । ३. ठा० १११४३-१५० । ४. सं० पा०—णियमं जाव पगरेंति । ५. ठा० ६११६ ।
६. ओदतिते (क, ख, ग)। ७. खतिते (क, ख, ग)। ८. खतोवसमिते (क, ख, ग)। ६. इत्तिरिते (क, ख, ग)। १०. सं०पा०-पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव तस।
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७३२
वाउकाइयणिव्वत्तिए,
ते उकाइयणिव्वत्तिए, तसकायणिव्वत्तिए ।
एवं - चिण उवचिण-बंध - उदीर वेय तह णिज्जरा चेव ॥
पोग्गल - पदं
१२६. छप्पएसिया णं खंधा अनंता पण्णत्ता ॥
१३०. छप्पएसोगाढा पोग्गला अणता पण्णत्ता ॥
१३१. छसमयद्वितीया पोग्गला अनंता पण्णत्ता ॥ १३२. छगुणकालगा पोग्गला जाव' छगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥
१. ठा० १।२५६ ।
ठाणं
वणस्सइकाइयणिव्बत्तिए,
o
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सत्तमं ठाणं गणावक्कमण-पदं
सत्तविहे गणावक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा–'सव्वधम्मा रोएमि। एगइया रोएमि एगइया णो रोएमि । सव्वधम्मा वितिगिच्छामि । एगइया वितिगिच्छामि एगइया णो वितिगिच्छामि । सव्वधम्मा जुहुणामि । एगइया जुहुणामि एगइया णो जुहुणामि । इच्छामि णं भंते ! एगल्लविहारपडिमं उवसंपिज्जत्ता णं
विहरित्तए । विभंगणाण-पदं २. सत्तविहे विभंगणाणे पण्णत्ते, तं जहा-एगदिसिं लोगाभिगमे, पंचदिसि
लोगाभिगमे, किरियावरणे जीवे, मुदग्गे जीवे, अमुदग्गे जीवे, रूवी जीवे, सव्वमिणं जीवा। तत्थ खलु इमे पढमे विभंगणाणे-जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदोणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे । तस्स णं एवं भवति – अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-एगदिसिं' लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसू-पंचदिसिं लोगाभिगमे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-पढमे विभंगणाणे ॥ अहावरे दोच्चे विभंगणाणे-जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णणं पासति पाईणं वा' पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे । तस्स णं
एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदसणे समुप्पण्णे-पंचदिसिं १. सव्वधम्मं जाणामि एवं पि एगे अवक्कमे २. एगदिसि (क, ग); एगदिसं (वृ) । (वृपा)।
___३. क्वचिद्वाशब्दा न दृश्यन्ते (वृ)।
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७३४
ठाणं
लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-एगदिसिं लोगाभिगमे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-दोच्चे विभंगणाणे । अहावरे तच्चे विभंगणाणे---जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णणं पासति पाणे अतिवातेमाणे, मुसं वयमाणे, अदिण्णमादियमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे, परिग्गह परिगिण्हमाणे, राइभोयणं भुंजमाणे, पावं च णं कम्मं कोरमाणं णो पासति । तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे - किरियावरणे जीवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-णो किरियावरणे जीवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु -तच्चे विभंगणाणे । अहावरे चउत्थे विभगणाण-जया ण तधारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा 'विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गले परियाइत्ता' पुढेगत्तं' णाणत्तं फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता' विकुवित्ता णं चिट्ठित्तए। तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-मुदग्गे जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु--अमुदग्गे जीवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु-चउत्थे विभंगणाणे। अहावरे पंचमे विभंगणाणे-जया' णं तधारूवस्स समणस्स' वा माहणस्स वा विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गलए अपरियाइत्ता' पुढेगत्तं णाणत्तं 'फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए । तस्स णं एवं भवति-अत्थि' •णं मम अतिसेसे णाणदंसणे ° समुप्पण्णे-अमुदग्गे जीवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-मुदग्गे जीवे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छ ते एवमाहंसु-पंचमे विभंगणाणे। अहावरे छट्रे विभंगणाणे--जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा 'विभंगणाणे ° समुप्पज्जति । से णं तेणं विभंगणाणेणं समुप्पण्णेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गले परियाइत्ता वा अपरियाइत्ता वा पुढेगत्तं णाणत्तं
१. सं० पा०-माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति। ६. सं० पा०-समणस्स जाव समुप्पज्जति । २. परितावितित्ता (क, ग)।
७. अपरितादितित्ता (क, ख)। ३. पुढविगत्तं (ख)।
८. सं० पा०-णाणत्तं जाव विउव्वित्ता। ४. फडित्ता (क, ख); फुट्टित्ता संवद्वित्ता निव्व- ६. सं० पा०-अत्थि जाव समुप्पण्णे। . ट्टित्ता (वृपा)।
१०. सं० पा०--माणस्स वा जाव समुप्पज्जति। ५. जधा (क, ग)।
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सत्तमं ठाणं
७३५
फुसित्ता' 'फुरित्ता फुट्टित्ता विकुवित्ता णं चिट्ठित्तए । तस्स णं एवं भवतिअत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-रूवो जोवे । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु-अरूवी जोवे । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसुछटे विभंगणाणे। अहावरे सत्तमे विभंगणाणे-जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगणाणे समुप्पज्जति । से ण तेण विभंगणाणणं समुप्पण्णेणं पासई सुहुमेणं वायुकाएणं फुडं पोग्गलकायं एयंत वेयंत चलंतं खुभंतं फंदंतं घट्टतं उदीरेंतं तं तं भावं परिणमंतं । तस्स णं एवं भवति-अत्थि णं मम अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पण्णे-सव्वमिणं जीवा । संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसुजीवा चेव, अजीवा चेव । जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु । तस्स णं इमे चत्तारि जीवणिकाया णो सम्ममूवगता भवति, तं जहा-पढविकाइया. आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया । इच्चेतेहि चाहिं जीवणिकाएहिं मिच्छादंडं पवत्तेइ-सत्तमे विभंगणाणे ।।
जोणिसंगह-पदं
३. सत्तविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, ___संसेयगा', संमुच्छिमा, उब्भिगा ।। गति-आगति-पदं ४. अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पण्णत्ता, तं जहा-अंडगे अंडगेसु उववज्जमाणे
अंडगेहिंतो वा, पोतजेहिंतो वा', 'जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहितो वा°, उब्भिगेहिंतो वा उववज्जेज्जा। सच्चेवणं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, 'जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, समुच्छिमत्ताए वा°,
उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा ॥ ५. पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव । सत्तण्हवि गतिरागती भाणियव्वा
जाव उब्भियत्ति ॥
१. सं० पा०-फुसित्ता जाव विकुन्वित्ता । २. एतंत (क, ख, ग)। ३. वेतंतं (क, ख, ग)। ४. मुवागता (क, ख, ग)। ५. ° संगधे (क)। ६. संसेत्तगा (क, ग)। ७. सं० पा०--पोतजेहिंतो वा जाव उब्भि
गेहितो। ८. सेच्चेव (ख)। ६. सं० पा०-पोतगत्ताते वा जाव उब्भि
गत्ताते। १०. पोत्तगा (क, ग)। ११. ठा० ७।३ ।
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७३६
ठाणं
संगहट्ठाण-पदं ६. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धाारणं वा सम्म पउंजित्ता भवति। २. "आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्म सम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्ममब्भु द्वित्ता भवति । ५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी। ६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पण्णाई उवगरणाई सम्मं उप्पाइत्ता भवति । ७. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि पुव्वुप्पण्णाइं उवकरणाइं सम्म सारक्खेत्ता
संगोवित्ता भवति, णो असम्म सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवति ।। असंगहट्ठाण-पदं ७. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त असंगहठाणा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्म पउंजित्ता भवति। २. "आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं णो सम्म पउंजित्ता भवति । ३. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले णो सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति । ४. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं णो सम्ममन्भुट्टित्ता भवति । ५. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइ, णो आपुच्छियचारी। ६. आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पण्णाइं उवगरणाइं णो सम्म उप्पाइत्ता भवति ।
१. सं० पा०-एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय। ३. सं० पा०-एवं जाव पच्चुप्पण्णाणं । २. °चारी यावि भवति (क, ख, ग)।
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सत्तमं ठाणं
७. आयरिय उवज्झाए णं गणंसि सारखेत्ता संगोवेत्ता भवति ॥
पडिमा पदं
८. सत्त पिंडेसणाओ पण्णत्ताओ ||
६. सत्त पाणेसणाओ पण्णत्ताओ ॥ १०. सत्त उग्गहपडिमाओ पण्णत्ताओ ||
आयारचूला - पदं
११. सत्तसत्तिक्कया पण्णत्ता ।
१२. सत्त महज्झयणा पण्णत्ता ॥
पडिमा पदं
१३. सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपण्णत्ताए राइदिएहिं एगेण य छण्णउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं' 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया' यावि भवति ॥
अहे लोग ट्ठति-पदं
१४. अहेलोगे णं सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ || १५. सत्त घणोदधीओ पण्णत्ताओ ||
o
१६. सत्त घणवाता पण्णत्ता ॥
१७. सत्त तणुवाता पण्णत्ता ॥
१८. सत्त ओवासंतरा पण्णत्ता ॥
१६. एतेसु णं सत्तसु ओवासंतरेसु सत्त तणुवाया पट्टिया || २०. एतेसु णं सत्तसु तणुवातेसु सत्त घणवाता पट्टिया ||
२१. एतेसु णं सत्तसु घणवातेसु सत्त घणोदधी पतिट्ठिया ||
२२. एतेसुणं सत्तसु घणोदधीसु 'पिंडलग - पिहुल-संठाण - संठियाओ" सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पढमा जाव सत्तमा ।
१. अहासुत्ता (क, ख, ग ) ; सं० पा० - अहासुत्तं जाव आराहिया ।
७३७
पच्चुप्पण्णाणं उवगरणाणं णो सम्मं
२३. एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - घम्मा, वंसा, सेला, अंजणा, रिट्ठा, मघा, माघवती ॥
२. समवायाङ्ग (४६०१ ) ' आणाए आराहिया' पाठोऽस्ति ।
३. छत्तातिछत्तसंठाणसंठियाओ (वृ); पिंडलगपिहुलसंठाणसंठिआओ, पिहुल पिहुलसंठाणसंठियाओ (वृपा) ।
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७३८
ठाणं
२४. एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त गोत्ता पण्णत्ता, तं जहा - रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुअप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, 'तमा, तमतमा" ॥ बायरवाउकाइय-पद
२५. सत्तविहा बायरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा - पाईणवाते, पडीणवाते, दाहिणवाते, उदीणवाते, उड्डवाते, अहेवाते, विदिसिवाते ||
संठाण-पदं
२६. सत्त संठाणा पण्णत्ता, तं जहा दीहे, रहस्से, वट्टे, तसे, चउरसे, पिहुले, परिमंडले |
भट्ठाण -पदं
२७. सत्त भट्टाणा पण्णत्ता, तं जहा - इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अम्हा भए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए ।
छउमत्थ-पदं
२८. सतहि ठाणेहि छउमत्थं जाणेज्जा, तं जहा - पाणे अइवाएत्ता भवति । मुसं इत्ता भवति । 'अदिण्णं आदित्ता" भवति । सद्दफरिसरसरूवगंधे आसादेत्ता भवति । पूयासक्कार' अणुवहेत्ता भवति । इमं सावज्जति पण्णवेत्ता पडि सेवेत्ता भवति । णो जहावादी' तहाकारी यावि भवति ॥
केवलि-पदं
२६. सत्तहिं ठाणेहि केवली जाणेज्जा, तं जहा - णो पाणे अइवाइत्ता भवति । णो संवत्ता भवति । णो अदिण्णं आदित्ता भवति । णो सफरिसरसरूवगंधे आसादेत्ता भवति । णो पूयासक्कारं अणुवहेत्ता भवति । इमं सावज्जंति पण्णवेत्ताणो डिसेवेत्ता भवति । जहावादी तहाकारी यावि भवति ॥
गोत्त-पदं
३०. सत्त मूलगोत्ता पण्णत्ता, तं जहा - कासवा, गोतमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिआ, मंडवा, वासिट्ठा ॥
३१. जे कासवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा - ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वतिणो, ते वरिसकण्हा ||
१. तमप्पा तमतमप्पभा ( क ) ।
२. पाडी ० ( क ) ।
३. ० भते (क, ख, ग ) ।
४. अदिन्नमदितित्ता (क, ग) ।
५. पूता ° (क, ख, ग ) ।
६. जधा ० ( क, ख, ग ) ।
७. तधा ० ( क, ख, ग ) ।
८. सं० पा० - अइवाइत्ता भवति जाव जधावाती ।
९. पव्वपेच्छतिणो ( क्व ) ।
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सत्तमं ठाणं
७३६
३२. जे गोतमा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते गोतमा, ते गग्गा, ते भारदा,
ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्ख राभा, ते उदत्ताभा॥ ३३. जे वच्छा ते सत्तविधा, पण्णता, तं जहा ते वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तेया,
ते सामलिणो, ते सेलयया, ते अट्ठिसेणा, ते वीयकण्हा ॥ ३४. जे कोच्छा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा,
ते पिंगलायणा, ते कोडिगो [ण्णा ?], ते मडलिणो, ते हारिता, ते सोमया ॥ ३५. जे कोसिआ ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते कोसिआ, ते कच्चायणा,
ते सालं कायणा, ते गोलिकायणा, ते पक्खिकायणा, ते अग्गिच्चा, ते लोहिच्चा ।। ३६. जे मंडवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा -ते मंडवा, ते आरिट्ठा, ते संमुता,
ते तेला, ते एलावच्चा, ते कंडिल्ला, ते खारायणा ।। ३७. जे वसिट्ठा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-ते वासिट्ठा, ते उंजायणा, ते जारु
___ कण्हा, ते वग्घावच्चा, ते कोंडिण्णा, ते सण्णी, ते पारासरा ।। णय-पदं ३८. सत्त मूलगया पण्णता, तं जहा –णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुते, सद्दे,
समभिरूढे, एवंभूते ॥ सरमंडल-पदं
३६. सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे ।
धेवते चेव णेसादे, सरा सत्त वियाहिता ॥१॥ ४०. एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
सज्ज त अग्गजिब्भाए, उरेण रिसभं सरं। कंठग्गतेण गंधारं, मज्झजिब्भाए मज्झिमं ॥१॥ णासाए पंचमं बूया, दंतोटेण य धेवतं । 'मुद्धाणेण य१३ णेसादं, सरढाणा वियाहिता । २।।
१. उइंसणाभा (क. टिप्पण); उदगत्ताभा (क्व)। ८. खारातिणा (क); खातणा (ख); खारातेणा २. मित्ता (क, ग); मित्तेता (ख); मित्तिया (ग)। (क्व)।
६. जारेकण्हा (क्व)। ३. सेलतता (क, ख, ग)।
१०. रेवते (ग, वृपा)। ४. पिंगातणा (क, ख, ग)।
११. णेसाते (क, ख)। ५. सोमभी (क, ख, ग)।
१२. रेवतं (क, ग)। ६. समुता (ग)।
१३. भमुहक्खेवेण (अ० सू० २६६)। ७. कतेल्ला (ख)।
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७४०
४१. सत्त सरा जीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहासज्जं रवति मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं । हंसो णदति' गंधारं मज्झिमं तु गवेला ॥ १ ॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छटुं च सारसा कोंचा, सायं सत्तमं गजो ॥२॥ ४२. सत्त सरा अजीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा
सज्जं रवति मुइंगो, गोमुही रिसभं सरं । संखो णदति गंधारं मज्झिमं पुण झल्लरी ॥ १ ॥ चउचलणपतिट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं । आडंबरो वतियं, महाभेरी य सत्तमं ||२||
४३. एतेसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा - कतं च ण विणस्सति । णारीणं चेव' वल्लभो || १ || सेणावच्चं धणाणि य । इथिओ सयणाणि य ॥ २ ॥ वज्जवित्ती कलाहिया ।
सज्जेण लभति वित्ति, गावो 'मित्ताय पुत्ताय", रिसभेण उ एसज्ज, वत्थगंधमलंकारं,
जे अण्णे सत्थपारगा ||३|| भवंति सुजविण । मज्झिमसरमस्सितो
॥४॥
भवंति पुढती । अगगणणायगा 11211
गंधारे गीतजुत्तिणा भवंति कइणों पण्णा,
मज्झिमसर संपण्णा", खायती पियती" देती,
पंचमसर संपण्णा",
सूरा
संग कत्तारो,
१. रवइ (अ० सू० २. गओ (अ० सू० ३. रवइ (अ० सू० ३०१ ) ।
३०० ) । ३०० ) ।
४. रेवतियं (क, ख, ग ) ।
प्रसङ्गेऽत्र 'विज्जवित्ती' ( वैद्यवृत्तयः ) इति पाठ: समीचीनः प्रतिभाति । अनुयोगद्वारस्य आदर्शद्वये असौ लब्ध एव । वृत्तिकारयोः सम्मुखे 'वज्जवित्ती' इति पाठ: आसीत्, तेन ताभ्यां 'वर्यवृत्तयः' इति व्याख्या कृता । ८. कलाहिता ( क, ख, ग ) । ६. कतिणो (क, ख, ग ) ।
५. पुत्ताय मित्ताय (अ० सू० ३०२ ) । ६. होई (अ० सू० ३०२ ) ।
७. विज्जवित्ती (अ०सू० ३०२ ); स्थानाङ्गवृत्ती अनुयोगद्वारस्य मलधारिहेमचन्द्रीयवृत्ती च 'वर्यवृत्तयः - प्रधानजीविका:' इति व्याख्यातमस्ति, किन्तु अस्मिन् श्लोके कलाप्रधानानां १२. पंचमसरमंता उ ( अ० सू० ३०२ ) । शास्त्रप्रधानानां च निर्देशो वर्तते तस्मिन्
१०. मज्झिमसरमंता उ (अ० सू० ३०२) । ११ . पितती ( क, ख, ग ) ।
ठाण
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सत्तमं ठाणं
७४१
धेवतसरसंपण्णा', भवंति कलहप्पिया'। 'साउणिया वग्गुरिया, सोयरिया मच्छबंधा य ॥६।। 'चंडाला मुट्ठिया मेया, जे अण्णे पावकम्मिणो ।
गोघातगा य जे चोरा, सायं सरमस्सिता ॥७॥ ४४. एतेसि णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पण्णत्ता, तं जहा-सज्जगामे मज्झिमगामे
गंधारगामे ॥ ४५. सज्जगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
मंगी कोरव्वीया, हरी य रयणी य सारकता य ।
छट्ठी य सारसी णाम, सुद्धसज्जा य सत्तमा ॥१॥ ४६. मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
उत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता ।
अस्सोकता" य सोवीरा, 'अभिरू हवति' सत्तमा ॥१॥ ४७. गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--
णंदी य खुद्दिमा पूरिमा, य च उत्थी य सुद्धगंधारा । उत्तरगंधारावि य, पंचमिया हवति मुच्छा उ ॥१॥ सुठुत्तरमायामा, सा छट्ठी णियमसो उ णायव्वा । अह उत्तरायता, कोडिमा य" सा सत्तमी मुच्छा ॥२॥ सत्त सरा कतो संभवंति ? गीतस्स१ का भवति जोणी? कतिसमया'२ उस्साया ? कति वा गीतस्स आगारा ? ।।१।। सत्त सरा णाभीतो, भवंति गीतं च रुण्णजोणीयं"। पदसमया५ ऊसासा, तिण्णि य गीयस्स आगारा ॥२॥
४८.
१. रेवत (क, ख, ग); धेवयसरमंता उ चीनोस्ति, संगीतरत्नाकरेपि एतद नाम (अ० सू० ३०२)।
लभ्यते, तेन असौ पाठः अत्रापि स्वीकृतः । २. दुहजीविणो (अ० सू० ३०२) ।
७. आसोकंता (ख, ग); आसकंता (अ० सू० ३. साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया ३०५)। ___ (अ० सू० ३०२)।
८. अभिरूवेति (क)। ४. णेसातं (क, ख, ग)।
६. खुड्डिया (अ० सू० ३०६) । ५. नेसायसरमंता उ, हवंति हिंसगा नरा। १०. त (क, ग)। जंघाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा ॥ ११. गेयस्स (क, ख, ग)।
(अ० सू० ३०२)। १२. कतिसमता (क, ख, ग)। ६. उत्तरासमा (क, ख, ग); अत्र आदर्शेषु १३. गेयस्स (क, ख, ग)। 'उत्तरासमा' इति पाठो विद्यते, किन्तु वस्तुतः १४. रुय° (क्व)। अनुयोगद्वारस्वीकृतः ‘उत्तरायता' पाठः समी- १५. पादसमता (ख); पायसमा (अ०सू० ३०७)।
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७४२
ठाणं
आइमिड आरभंता, समव्वहंता य मझगारंमि। अवसाणे ‘य झवेंता', तिण्णि य गेयस्स आगारा ॥३॥ छद्दोसे अट्टगुणे, तिण्णि य वित्ताइं 'दो य' भणितीओ। 'जो णाहिति सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झम्मि ॥४॥ भीतं 'दूतं रहस्सं", 'गायंतो मा य गाहि उत्ताल । काकस्सरमणुणासं, च होति गेयस्स छद्दोसा ॥५॥ पुण्णं रत्तं च अलंकियं च वत्तं तहा अविघुटुं । मधुरं समं सुललियं, अट्ठ गुणा होति गेयस्स ।।६।। उर-कंठ-सिर-विसुद्धं, च गिज्जते मउय-रिभिअ-पदबद्धं । समतालपदुक्खेवं, सत्तसरसीहरं गेयं ॥७॥ णिहोसं सारवंतं च, हेउजुत्तमलंकियं
। उवणीतं सोवयारं च, मितं मधुरमेव य ॥८॥
१. त ज्जवेता (ख, ग)।
ल्परूपेण नृत्यत्पादक्षेपलक्षणः इत्यर्थोपि कृतः । २. दोण्णि (अ० सू० ३०७)।
अनुयोगद्वारस्य हारीभद्रीयवृत्तौ 'पदुक्खेवं' ३. जा णाहिति (ग)।
इति पाठः प्राप्यते । अर्थ संगत्यासौ समी४. दुतं उप्पिच्छं (वृपा); दुयमप्पिच्छं (अ० । चीनोस्ति। दु-ड वर्णयोः प्राचीनलिप्यां सू० ३०७)।
सादृश्येन 'पदुक्खेवं इति स्थाने 'पडक्खेवं' ५. उत्तालं च कमसो मुणेयव्वं (अ०सू० ३०७)। इति परिवर्तनं जातं सम्भाव्यते। ६. सुकुमारं (क, ख, ग); वृत्तिकृता 'सुकुमारं- १०. अनुयोगद्वारे अस्याः गाथायाः अनन्तरं निम्नललित' इति व्याख्यातम् ।
लिखिता गाथा वर्तते७. पसत्थं (क, ख, ग)।
अक्खरसमं पदसम, ८. गिज्जते (ख)।
तालसमं लयसमं गहसमं च । ६. पदुक्खेवं (क, ख, ग, वृ); आदर्शषु 'पडु- निस्ससिउस्ससियसम, क्खेवं' इति पाठो लिखितो लभ्यते, वृत्तावपि
संचारसमं सरा सत्त ॥ मुख्यत्वेनासौ व्याख्यातोस्ति, यथा-तथा
(अ० सू० ३०७)। समः प्रत्युत्क्षेपः प्रतिक्षेपो वा-मुरजकंशि- अत्र वृत्ति कृता अनुयोगद्वारटीकामाश्रित्य काद्यातोद्यानां यो ध्वनिस्तल्लक्षणः नत्यत्पाद- व्याख्या कृतास्ति-इयं च गाथा स्वरक्षेपलक्षणो वा यस्मिस्तत्समप्रत्युत्क्षेपं सम- प्रकरणोपान्ते 'तंतिसम' मित्यादिरधीतापि प्रतिक्षेपं वेति (वृत्ति पत्र ३७६)। वृत्ति- इहाक्षरसममित्यादि व्याख्यायते, अनुयोगद्वारकारेण 'पडक्खेवं' इति पाठो लब्धस्ततः टीकायामेवमेवदर्शनादिति (वृ)। प्रत्युत्क्षेपः इतिशब्दानुसारी अर्थः कृतः, विक
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सत्तमं ठाणं
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सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं । तिण्णि वित्तप्पयाराई, चउत्थं णोपलब्भती ॥६॥ सक्कता पागता चेव, 'दोण्णि य भणिति आहिया। सरमंडलंमि गिज्जते. पसत्था इसिभासिता ॥१०॥ केसी गायति' मधुरं? केसि गायति खरं च रुक्खं च ? केसी गायति चउरं? 'केसि विलंब" ? दूतं केसी ?
विस्सरं पुण केरिसी? ॥११।। सामा गायइ मधुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च। गोरी गायति चउर, काण विलंबं दुतं अंधा ॥
___ विस्सरं पुण पिंगला ॥१२।। तंतिसमं तालसम, पादसमं लयसमं गहसमं च । णीससिऊससियस, संचारसमा सरा सत्त ॥१३॥ सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एकविसती।
ताणा एगूणपण्णासा, समत्तं सरमंडलं ॥१४।। कायकिलेस-पदं ४६. सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-ठाणातिए', उक्कुड्यासणिए, पडिमठाई,
वीरासणिए, णेसज्जिए, दंडायतिए", लगंडसाई ॥ खेत्त-पव्वय-णदी-पदं ५०. जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते,
हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे ।। ५१. जंबद्दीवे दीवे सत्त वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते,
णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे ॥ ५२. जंबद्दीवे दीवे सत्त महाणदीओ पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समति",तं जहा
गंगा, रोहिता, हरी, सीता, णरकता, सुवण्णकूला रत्ता ।। ५३. जंबहीवे दीवे सत्त महाणदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदं समप्पंति, तं
जहा - सिंध, रोहितंसा, हरिकता, सीतोदा, णारिकता", रुप्पकूला, रत्तावती ।। १. वित्तप्पयायाइं (ख)।
७. दंडाततिते (क, ग); दंडातिए (ख)। २. दुविधा (क, ग)।
८. हरिवंसे (क, ग); अशुद्ध प्रतिभाति । ३. गातति (क, ख, ग)।
६. निसभे (क, ग)। ४. केसी य विलंबियं (अ० सू० ३०७)। १०. समुप्पेति (क, ख, ग)। ५. वीसती (ख)।
११. नारीकंता (ख, ग)। ६. ठाणातिते (क, ख, ग)।
१२. रत्तवती (क)।
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ठाणं
५४. धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासा पण्णत्ता, तं जहा-भरहे', 'एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे ॥
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५५. धायइसंडदीव पुरत्थिमद्धे णं सत्त वासहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा -- चुल्लहिमवंते', महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे ॥
५६. धायइसंडदीव पुरत्थिमद्धे णं सत्त महाणदीओ पुरत्थाभिमुहीओ कालोयसमुद्द समप्पेंति, तं जहा - गंगा', 'रोहिता, हरी, सीता, णरकंता, सुवण्णकूला •
1
रता ॥
५७. धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं सत्त महाणदीओ पच्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुद्द समप्पति तं जहा - सिंधू, रोहितंसा, हरिकंता, सीतोदा, णारिकता, रुप्प - कूला, रत्तावती ॥
५८. धायइसंडदीवे पच्चत्थिमद्धे णं सत्त वासा एवं चेव, णवरं - पुरत्थाभिमुहीओ लवणसमुद्दं समप्पेंति, पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं । सेसं तं चेव ।।
५६. पुक्खरखरदीवड्डपुरत्थिमद्धे णं सत्त वासा तहेव', नवरं - पुरत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समुदं समप्पेंति, पच्चत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समप्पेंति । सेसं तं चैव ॥
६०. एवं पच्चत्थिमद्धेवि नवरं - पुरत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं समप्पेंति, पच्चत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समप्पेंति । सव्वत्थ वासा वासहरपव्वता नदीओ य भाणितव्वाणि ||
कुलगर-पदं
६१. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था, तं जहासंगणी - गाहा
मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंप्रभे ।
विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥१॥
६२. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमी से ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्थापढमित्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे ।
तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव
णाभी य ।।१।।
१. सं० पा०--भरहे जाव महाविदेहे । २. सं० पा० - चुल्ल हिमवंते जाव मंदरे ।
३. सं० पा० - गंगा जाव रत्ता ।
४. सं० पा० - सिंधू जाव रत्तावती ।
५. ठा० ७।५४-५७ ।
६. ठा० ७१५४-५७ ।
७. तीतो ( क, ख, ग ) ।
८. पसेणइ पुण ( ख ) ।
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सत्तमं ठाण
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६३. एएसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ हुत्था, तं जहा
चंदजस चंदकंता, सुरूव पडिरूव चक्खुकता य ।
सिरिकता मरुदेवी, कुलकरइत्थीण णामाई ॥१।। ६४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति
मित्तवाहण' सुभोमे य, सुप्पभे य सयंपभे ।
दत्ते सुहमे सुबंधू य, आगमिस्सेण होक्खती ॥१॥ ६५. विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमार्गाच्छसु, तं जहा
मतंगया' य भिंगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा।
मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ।।१।। ६६. सत्तविधा दंडनीति पण्णत्ता, तं जहा-हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, परिभासे,
मंडलबंधे, चारए, छविच्छेदे ।। चक्कवट्टिरयण-पदं ६७. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त एगिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा
चक्करयणे, छत्तरयणे, चम्मरयणे, दंडरयणे, असिरयणे, मणिरयणे,
काकणिरयणे ।। ६८. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त पंचिदियरतणा पण्णत्ता, तं जहा
सेणावतिरयणे, गाहावतिरयणे, वड्डइरयणे, पुरोहितरयणे, इत्थिरयणे, आस
रयणे, हत्थिरयणे ।। दुस्समा-लक्खण-पदं ६६. सत्तहि ठाणेहि ओगाढं दुस्समं जाणेज्जा, तं जहा—अकाले वरिसइ, काले ण
वरिसइ, असाधू पुज्जति, साधू ण पुज्जति, गुरूहि जणो मिच्छं पडिवण्णो,
मणोदुहता, वइदुहता॥ सुसमा-लक्खण-पदं ७०. सत्तहि ठाणेहि ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा-अकाले ण वरिसइ, काले
१. मित्तप्पभे (क, ग)। २. मत्तंगता (क, ख, ग); यद्यपि आदर्शः
वृत्तावपि चात्र 'मत्तंगता' पाठो लभ्यते, तथापि अर्थसमीक्षया 'मतंगया' पाठः समीचीनः प्रतिभाति । 'मदंगया' इत्यस्य स्थाने 'त' श्रत्या 'मतंगया' इति पाठो जातः, तस्यैव 'मत्तंगता' इत्याकारे परिवर्तनं जातमिति
संभाव्यते । तेनैव वृत्ति कृता 'मत्तांग' शब्दो व्याख्यातः-मत्तं-मदस्तस्य कारणत्वान्मद्यमिह मत्तशब्देनोच्यते तस्याङ्गभूता:-कारणभूतास्तदेव वाऽङ्ग–अवयवो येषां ते मत्ता
ङ्गका: (वृ)। ३. छबिछेदे (ख)। ४. कागिणि ° (ग)।
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ठाण
वरिसइ, असाधू ण पुज्जंति, साधू पुज्जंति, गुरूहि जणो सम्म पडिवण्णो,
मणोसुहता, वइसुहता। जीव-पदं ७१. सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-णेरइया, तिरिक्खजोणिया,
___तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ। आउभेद-पदं ७२. सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते, तं जहासंगहणी-गाहा
अज्झवसाण-णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाते ।
फासे आणापाणू 'सत्तविधं भिज्जए" आउं ।।१।। जीव-पदं ७३. सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया,
वाउकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, अकाइया। अहवा-सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा- कण्हलेसा', •णीललेसा,
काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा °, सुक्कलेसा, अलेसा ।। बंभदत्त-पदं ७४. बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सत्त य वाससयाई
परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्टाणे
णरए णेरइयत्ताए उववण्णे ।। मल्ली-पव्वज्जा-पदं ७५. मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं
जहा-मल्ली विदेहरायवरकण्णगा, पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाये अंगराया, रुप्पी कुणालाधिपती, संखे कासीराया, अदीणसत्तू कुरुराया, जितसत्त
पंचालराया ॥ दसण-पदं ७६. सत्तविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मइंसणे, मिच्छइंसणे, सम्मामिच्छदसणे,
चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदसणे, केवलदसणे ॥
३. केवलि
(क, ग)।
१. सत्त विधि भिज्जए (क, ग)। २. सं० पा०-कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा ।
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सत्तमं ठाणं
छउमत्थ-केवलि-पदं ७७. छउमत्थ-वीयरागे णं मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ वेदेति, तं जहा
णाणावरणिज्जं, दंसणावरणिज्ज', वेयणिज्ज, आउयं, णाम, गोतं, अंतराइयं ।। ७८. सत्त ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं,
अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई, गंधं। एयाणि चेव उप्पण्णणाण "दसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं' जाणति पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं', 'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं
असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सदं°, गंधं ॥ । महावीर-पदं ७६. समणे भगवं महावीरे वइरोसभणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण-संठिते सत्त
___रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था । विकहा-पदं ८०. सत्त विकहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा,
दंसणभेयणी, चरित्तभेयणी।।
आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं ८१. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स' पाए णिगिज्झिय-णिगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जमाणे वा णातिक्कमति । २. "आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोधेमाणे वा णातिक्कमति । ३. आयरिय-उवज्झाए पभ इच्छा वेयावडियं करेज्जा. इच्छा णो करेज्जा । ४. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो वसमाणे णातिक्कमति । ५. आयरिय-उवज्झाए ° बाहिं उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा [एगओ ?] वसमाणे णातिक्कमति ।
१. दरिसणा° (क, ग)। २. सं० पा०-उप्पण्णणाण जाव जाणति । ३. सं० पा०-धम्मत्थिकायं जाव गंधं । ४. विकधातो (क, ग)।
५. मिउकालणिता (क,ग);मिउकोलुणिता (ख)। ६. उवस्सगस्स (क, ख, ग)। ७. पाते (क, ख, ग)। ८. सं० पा०- एवं जधा पंचद्राणे जाव बाहिं।
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६. उवकरणातिसे से । ७. भत्तपाणातिसेसे ॥
संजम - असंजम-पदं
८२. सत्तविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयसंजमे', 'आउकाइयसंजमे, उकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे, वणस्स इकाइय संज मे ०, तसकाइय संजमे, अजीवकाइयसंजमे ॥
८३. सत्तविधे असं मे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयअसंजमे', 'आउकाइयअसंजमे, ते उकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वणस्स इकाइयअसंजमे, तसकाइयअसंजमे, अजीव काइयअसंजमे ||
आरंभ-पदं
८४. सत्तविहे आरंभे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयआरंभे, आउकाइयआरंभे, तेउकाइयआरंभे, वाउकाइयआरंभे, वणस्सइकाइयआरंभे, तसकाइयआरंभे, arrantsआरंभे ||
८५. सत्तविहे अणारं पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयअणारं ' ।।
८६. सत्तविहे सारं पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयसारंभे ।। ८७. सत्तविहे सारंभ पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयअसारंभे' ।। ८८. सत्तविहे समारंभे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयसमारंभे" ।। ८. सत्तविहे असमारंभे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइयअसमारंभे " ० ।।
जोणि-ठिइ-पदं
६०. अध भंते ! अदसि - कुसुम्भ-कोद्दव- कंगु-रालग 'वरट्ट - कोसग "" सण- सरिसवमूलगबीयाणं - एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्ला उत्ताणं 'मंत्राउत्ताणं माला उत्ताणं ओलित्ताणं वित्ताणं लछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ?
गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं" सत्त संवच्छराई । तेण पर जोणी
१. सं० पा० पुढविकातितसंजमे जाव तस । २. सं० पा० - पुढविकातितअसंजमे जाव तस° । ३. अजीवकाय ( ख, ग ) ।
४. सं० पा० - पुढविकातितआरंभे जाव अजीव । ५. सं० पा०—- एवमणारंभेवि जाव अजीवकायअसमारंभे ।
६. पू० ठा० ७८४ |
ठाण
܂
७. संरंभे (क ) ।
८-११. पू० ठा० ७८४ ।
१२. व कोसगा ( ख, ग ); भगवत्यां ( ६ । १३१) 'वरग' इति पाठोस्ति ।
१३. सं० पा० - पल्ला उत्ताणं जाव पिहियाणं । १४. उक्कोसं (क, ग) ।
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सत्तमं ठाणं
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पमिलायति', 'तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं
बीए अबीए भवति, तेण परं॰ जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते ।। ठिति-पदं ६१. बायरआउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता । ६२. तच्चाए णं वालुयप्पभाए' पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाई ठिती
पण्णत्ता॥ ६३. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती
पण्णत्ता।। अग्गमहिसी-पदं ६४. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ॥ ६५. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ॥ ६६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ॥ देव-पदं ६७. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरपरिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाई
ठिती पण्णत्ता। १८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अग्गमहिसीणं देवीणं सत्त पलिओवमाइं ठिती
पण्णत्ता ।। ६६. सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता । १००. 'सारस्सयमाइच्चाणं [देवाणं ? ] सत्त देवा सत्तदेवसता पण्णत्ता॥ १०१. गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा सत्त देवसहस्सा पण्णत्ता ।। १०२. सणंकमारे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सत्त सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।। १०३. माहिदे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सातिरेगाइं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ॥ १०४. बंभलोगे कप्पे जहण्णेणं देवाणं सत्त सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।। १०५. बंभलोय-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा सत्त जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। १०६. भवणवासीणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं
उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥
३. तुलना-भ० ६।११४ ।
१. सं० पा०–पमिलायति जाव जोणी । २. वालुप्पभाते (ख, ग)।
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ठाणं
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१०७. " वाणमंतराणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरंगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
१०८. जोइसियाणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरंगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
१०६. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु देवाणं 'भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
नंदीसरवर - पदं
११०. दिस्सरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त दीवा पण्णत्ता, तं जहा - जंबुद्दीवे, धायइसंडे, पोक्खरवरे, वरुणवरे, खीरवरे, घयवरे, खोयवरे ॥
१११. णंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त समुद्दा पण्णत्ता, तं जहा - लवणे, कालोदे, पुक्खरोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घओदे, खोओदें |
सेदि-पदं
११२. सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - उज्जुआयता, एगतोवंका, दुहतोवंका, एगतोखहा', दुहतोखहा, चक्कवाला, अद्धचक्कवाला ||
अणिय अणिया हिवइ-पदं
११३. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररग्णो सत्त अणिया, सत्त अणाधिपती पण्णत्ता, तं जहा - पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए, ट्टाणिए, गंधव्वाणिए ।
दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे आसराया पीढाणियाधिवती, कुंथू हत्थि - राया कुंजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवती, किण्णरे रधाणियावती, रिट्ठे णट्टाणियाधिवती, गीतरती गंधव्वाणियाधिवती ॥ ११४. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सत्ताणिया, सत्त अणियाधिपती पण्णत्ता, तं जहा - पायत्ताणिए' जाव' गंधव्वाणिए ।
महद्दुमे पायत्ताणियाधिपती जाव" किंपुरिसे रधाणियाधिपती, महारिट्ठे" णट्टाणियाधिपती, गीतजसे गंधव्वाणियाधिपती ॥
१. सं० पा० एवं वाणमंतराणं एवं जोइसियाणं ।
२. भवधारणिज्जगा सरीरा (क, ख, ग ) । ३. कालोते (क, ख, ग ) ।
४. खोतोदे (क, ख, ग ) । ५. ० खुहा ( ख ) ।
६. अणित्ता (ख) ।
७. सं० पा० - एवं जहा पंचट्ठाणे जाव किण्णरे ।
८. पत्ताणिते ( क ग ) ।
o
६. ठा० ७।११३ ।
१०. ठा० ५।५८ । ११. महारि ( क, ख, ग ) ।
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सत्तमं ठाणं
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११५. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स नागकुमार रण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाधि
पती पण्णत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए जाव' गंधव्वाणिए। भद्दसेणे पायत्ताणियाधिपती जाव' आणंदे रधाणियाधिपती, गंदणे णट्टाणिया
धिपती, तेतली गंधव्वाणियाधिपती॥ ११६. भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो सत्त अणिया, सत्त अणिया
हिवई पण्णत्ता, तं जहा -पायत्ताणिए जाव' गंधव्वाणिए । दक्खे पायत्ताणियाहिवती जाव' णंदुत्तरे रहाणियाहिवई, रती णट्टाणियाहिवई,
माणसे गंधवाणियाहिवई ॥ ११७. "जधा धरणस्स तधा सव्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स ।। ११८. जधा भूताणंदस्स तथा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव' महाघोसस्स ।। ११६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवती पण्णत्ता,
तं जहा-पायत्ताणिए जाव रहाणिए, णट्टाणिए, गंधव्वाणिए । हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिपती जाव माढरे रधाणियाधिपती, सेते णट्टाणि
याहिवती, तंबुरु' गंधव्वाणियाधिपती ।। १२०. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता, तं
जहा-पायत्ताणिए जाव" गंधव्वाणिए । लहुपरक्कमे पायत्ताणियाहिवती जाव" महासेते णट्टाणियाहिवती, रते गंधव्वा
णिताधिपती॥ १२१. "जधा सक्कस्स तहा' सव्वेसि दाहिणिल्लाणं जाव आरणस्स ।।
१. ठा० ७।११३ ।
यव्वं । २. रुसेणे क, ख, ग)। पंचमस्थाने (स०५६) ७. ठा० ७.११५। पादातानीकाधिपतेर्नाम 'भद्दसेणे' विद्यते, ८. ठा० २।३५५-३६१ । तस्यानुसारेणात्रापि 'भद्दसेणे' पाठो युज्यते। ६. ठा० ७।११६ । संभवतो लिपिदोषेण 'भ' स्थाने 'रु' वर्णो १०. ठा० २।३५५-३६१ । जात: अथवा कश्चिद् वाचनाभेद: स्यात् । ११. ठा० ५।६४ । आवश्यकचौँ 'रुद्दसेण' इति नाम लभ्यते- १२. ठा०५।६४ । दाहिणिल्लाणं पादत्ताणियाधिवती रुद्दसेणो १३. तंबुरू (क); तंबुरु (ख); तंपुरू (ग)। (पृ. १४६) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तौ (वक्ष ५) 'भद्द- १४. ठा० ७।११६ ।। सेणे' पाठो लभ्यते ।
१५. ठा० ५।६५ । ३. ठा० ५।५६ ।
१६. सं० पा०-सेसं जहा पंचद्राणे एवं जाव ४. ठा० ७१११३ ।
अच्चुतस्सवि णेतव्वं । ५. ठा० ५।६०।
१७. पू०-ठा० ७.११६ । ६. सं० पा०-एवं जाव घोसमहाघोसाणं १८. ठा० २।३८१- ३८४ ।
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७५२
ठाणं
१२२. जधा ईसाणस्स तहा' सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव' अच्चतस्स ॥ १२३. चमरस्स णं असरिंदस्स असरकमाररण्णो दमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स सत्त
कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा ॥ १२४. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स पढ
माए कच्छाए चउसट्टि देवसहस्सा पण्णत्ता। जावतिया पढमा कच्छा तस्विगुणा दोच्चा कच्छा। जावतिया दोच्चा कच्छा तव्विगुणा तच्चा कच्छा । एवं
जाव जावतिया छट्ठा कच्छा तव्विगुणा सत्तमा कच्छा। १२५. एवं बलिस्सवि, णवरं-महद्दुमे सट्टिदेवसाहस्सिओ। सेसं तं चेव ।। १२६. धरणस्स एवं चेव, णवरं अट्ठावीसं देवसहस्सा । सेसं तं चेव ।। १२७. जधा धरणस्स एवं जाव" महाघोसस्स, णवरं-पायत्ताणियाधिपती अण्णे, ते
पूव्वभणिता ।। १२८.
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स । णाणत्तं पायत्ताणियाधिपतीणं । ते पुव्वभणिता । देवपरिमाणं इमं-सक्कस्स चउरासीति देवसहस्सा, ईसाणस्स असीति देवसहस्साइं जाव" अच्चुतस्स लहुपरक्कमस्स दस देवसहस्सा जाव जावतिया छट्ठा कच्छा तव्विगुणा सत्तमा कच्छा। देवा इमाए गाथाए अणुगंतव्वा .
चउरासीति असीति, बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य ।
पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा य दससहस्सा ॥१॥ वयणविकप्प-पदं १२६. सत्तविहे वयणविकप्पे पण्णत्ते, तं जहा ---आलावे, अणालावे, उल्लावे,
अणुल्लावे", संलावे, पलावे, विप्पलावे ।। विणय-पदं १३०. सत्तविहे विणए पण्णत्ते, तं जहा--णाणविणए, दसणविणए, चरित्तविणए,
मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए ।। १. ठा० ७.१२० ।
८. ठा० ७१२३, १२४ । २. ठा० २।३८१-३८४ ।
६. ठा० २१३८०-३८४ । ३. ठा०७१२३ ।
१०. असीति (क, ग)। ४. ठा० ७.१२४ ।
११. ठा० २।३८१-३८४ । ५. ठा० ७।१२३।
१२. ठा० ७.१२४ । ६. ठा०.७।१२४ ।
१३. वतणविकप्पे (क, ख, ग)। ७. ठा० २।३५४-३६२ ।
१४. अणुलावे (वृपा)।
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सत्तमं ठाणं
७५३
१३४.
१३१. पसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा-अपावए, असावज्जे, अकिरिए,
णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे । १३२. अपसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा-पावए, सावज्जे, सकिरिए, सउ
वक्केसे, अण्हयकरे', छविकरे, भूताभिसंकणे ॥ १३३. पसत्थवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा–अपावए, असावज्जे', 'अकिरिए,
णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे°, अभूताभिसंकणे ।। अपसत्थवइविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा-पावए', 'सावज्जे, सकिरिए,
सउवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे , भूताभिसंकणे ॥ १३५. पसत्थकायविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा-आउत्तं गमणं, आउत्तं ठाणं,
आउत्तं णिसीयणं, आउत्तं तुअट्टणं, आउत्तं उल्लंघणं, आउत्तं पल्लंघणं, आउत्तं सविदियजोगजुंजणता ॥ अपसत्थकायविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा--अणाउत्तं गमणं, 'अणाउत्तं ठाणं, अणाउत्तं णिसीयणं, अणाउत्तं तुअट्टणं, अणाउत्तं उल्लंघणं, अणाउत्तं
पल्लंघणं°, अणाउत्तं सव्विदियजोगजुंजणता ॥ १३७. लोगोवयारविणए सत्त विधे पण्णत्ते, तं जहा-अब्भासवत्तितं, परच्छंदाणव
त्तितं, कज्जहेउं, कतपडिकतिता, अत्तगवेसणता, देसकालण्णता, सव्वत्थेसु अपडिलोमता॥
समुग्घात-पदं १३८. सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्घाए, मारणं
तियसमुग्धाए, वेउव्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्घाए, आहारगसमुग्घाए, केवलि
समुग्घाए । १३६. मणुस्साणं सत्त समुग्धाता पण्णत्ता एवं चेव ॥ पवयणणिण्हग-पदं १४०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणणिण्हगा पण्णत्ता,
१. अभिभूता (क, ग)।
७. लोगोवतारविणते (क, ख, ग)। २. अण्हकरे (क, ख, ग)।
८. आभा ° (क, ग)। ३. सं० पा०—असावज्जे जाव अभूताभिसंकणे। ९. तेयग° (ख)। ४. सं० पा०-पावते जाव भूताभिसंकणे । १०. केवल ० (ख)। ५. सविदित ° (क, ख, ग)।
११. पवतण ° (क, ख, ग)। ६. सं० पा०—मणं जाव अणाउत्तं ।
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७५४
ठाणं
तं जहा-बहुरता, जीवपएसिया', अवत्तिया', सामुच्छेइया', दोकिरिया',
तेरासिया', अबद्धिया । १४१. एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा-जमाली,
तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले ॥ १४२. एतेसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, तं जहासंगहणी-गाहा
सावत्थी उसभपुरं, सेयविया मिहिलउल्लगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुरं, णिण्हगउप्पत्तिणगराइं ॥१॥
अणुभाव-पदं
१४३. सातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा-मणुण्णा
सद्दा, मणुण्णा रूवा', 'मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा, मणुण्णा फासा,
मणोसुहता, वइसुहता॥ १४४. असातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा
अमणुण्णा सद्दा', 'अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा,
अमणुण्णा फासा, मणोदुहता °, वइदुहता ।। णक्खत्त-पदं १४५. महाणक्खत्ते सत्ततारे पण्णत्ते ।। १४६. अभिईयादिया" णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया" पण्णत्ता, तं जहा-अभिई",
सवणो, धणिट्ठा, सतभिसया", पुव्वभद्दवया, उत्तरभद्दवया, रेवती ॥
१. जीवपतेसिता (क, ख, ग)।
त्ताओ, तत्थेगे एवमाहंसु -कत्तिआइया सत्त २. अवत्तिता (क, ख, ग)।
नक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता" एवमन्ये ३. सामुच्छेइता (क, ख, ग)।
मघादीन्यपरे धनिष्ठादीनि इतरेऽश्विन्यादीनि ४. दोकिरिता (क, ख, ग)।
अपरे भरण्यादीनि, दक्षिणापरोत्तरद्वाराणि च ५. तेरासिता (क, ख, ग)।
सप्त सप्त यथामतं क्रमेणैव समवसे यानीति, ६. अवट्ठिता (क); अवद्धिता (ख, ग)। 'वयं पुण एवं वयामो-अभियाइया णं सत्त ७. धम्मातरिता (क, ख, ग)।
नक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, एवं दक्षिण८. मिहला उल्लग° (ख)।
द्वारिकादीन्यपि क्रमेणवेति, तदिह षष्ठं मत६. सं० पा०-रूवा जाव मणुण्णा।
माश्रित्य सूत्राणि प्रवृत्तानि, लोके तु प्रथम १०. सं० पा०-सदा जाव वतिदुहता।
मतमाश्रित्यैतदभिधीयते' (वृ)। ११. अभितीयादिता (क, ख, ग); इह चार्थे पञ्च १२. पुव्वदारिता (क, ख, ग)।
मतानि सन्ति, यत आह चंद्रप्रज्ञप्त्याम् - १३. अभिती (क, ख, ग)। "तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पण्ण- १४. सतभिसता (क, ख, ग)।
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सत्तमं ठाणं
७५५
१४७. अस्सिणियादिया' णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा-अस्सिणी,
भरणी, कित्तिया', रोहिणी, मिगसिरे', अद्दा, पुणव्वसू । १४८. पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता अवरदारिया पण्णत्ता, तं जहा -पुस्सो, असिलेसा,
मॅघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता ।। १४६. सातियाइया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती, विसाहा,
अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा ।। कूड-पदं १५०. जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णता, तं जहासंगहणी-गाहा
सिद्ध सोमणसे या, बोद्धव्वे मंगलावतीकूडे ।
देवकुरु विमल कंचण, विसिटकडे य बोद्धव्वे ॥१॥ १५१. जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे य' गंधमायण, बोद्धव्वे गंधिलावतीकूडे ।
उत्तरकुरु फलिहे, लोहितकवे आणंदणे चेव ॥१।। कुलकोडी-पदं १५२. बिइंदियाणं सत्त जाति-कुलकोडि-जोणीपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ।। पावकम्म-पदं १५३. जीवा णं सत्तद्वाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
चिणिस्संति वा, तं जहा-णे रइयनिव्वत्तिते', 'तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणिणीणिव्वत्तिते, मणुस्सणिव्वत्तिते, मणुस्सीणिव्वत्तिते, देवणिव्वत्तिते देवीणिव्वत्तिते ।।
एवं-चिण-२०उवचिण-बंध-उदीर-वेद तह • णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १५४. सत्तपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ।। १५५. सत्तपएसोगाढा पोग्गला जाव" सत्तगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।।
१. अस्सणितादिता (क, ख, ग) । २. कित्तिता (क, ख, ग)। ३. मिगसिर (ख)। ४. अस्सिलेसा (क, ग)। ५. पुव्व ° (क, ग)। ६. ता (क, ख, ग); तह (क्व)। ७. बोधव्वे (क, ख, ग)। ८. त (क, ख, ग)।
६. त (क, ख, ग)। १०. बितिदिताणं (क, ख, ग)। ११. जाती (क, ख, ग)। १२. स० पा०-णेरतियणिव्वत्तिते जाव देव
णिव्वत्तिते। १३. स० पा० ---चिण जाव णिज्जरा। १४. ठा० ११२५४-२५६ ।
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अट्ठमं ठाणं एगल्लविहार-पडिमा-पदं १. अट्टहिं ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति एगल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं
विहरित्तए, तं जहा-सड्डी पुरिसजाते, सच्चे पुरिसजाते, मेहावी पुरिसजाते,
बहुस्सुते पुरिसजाते, सत्तिम, अप्पाधिगरणे, धितिमं, वीरियसंपण्णे ॥ जोणिसंगह-पदं २. अविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडगा, पोतगा', 'जराउजा, रसजा,
संसेयगा संमुच्छिमा,° उब्भिगा, उववातिया ॥ गति-आगति-पदं ३. अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पण्णत्ता, तं जहा-अंडए अंडएसु उववज्जमाणे
अंडएहितो वा, पोतएहिंतो वा', 'जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहितो वा, संमुच्छिमेहितो वा, उभिएहितो वा°, उववातिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से अंडए" अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा', 'जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा,
उब्भियत्ताए वा,° उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा ।। ४. एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती णत्थि ॥ कम्म-बंध-पदं ५. जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा - १. सं० पा० -पोतगा जाव उब्भिगा। ६. सं० पा०-पोतगत्ताते वा जाव उववातित२. उववातिता (क, ख, ग)।
ताते। ३. सं० पा०-पोततेहिंतोवा जाव उववातितेहितो। ७. गतिरागतिश्च नास्तीत्यष्टप्रकारा इति शेष: ४. X (क, ख, ग)।
(वृ)। .५. अंडते (क, ख, ग)।
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अट्ठमं ठाणं
७५७ णाणावरणिज्जं, दरिसणावरणिज्ज, वेयणिज्जं, मोहणिज्ज, आउयं', णाम गोतं, अंतराइयं ॥ णेरइया णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा एवं चेव ॥
एवं णिरंतरं जाव' वेमाणियाणं ।। ८. जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिसु वा उवचिणंति वा उवचिणिसंति वा
एवं चेव। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।
'एते छ चउवीसा दंडगा" भाणियव्वा । आलोयणा-पदं ६. अहिं ठाणेहिं मायो' मायं कटु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा' •णो
णिदेज्जा णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भनेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, तं जहाकरिसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा
मे परिहाइस्सइ॥ १०. अहिं ठाणेहि मायी मायं कटु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा,
गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, तं जहा
१. आउतं (क, ख, ग)। २. अंतरातितं (क, ख, ग)। ३. ठा० १११४२-१६३ । ४. अस्य पाठस्य वृत्तिनिम्नप्रकाग वर्तते
यतश्चयनादिपदानि षड् अतः सामान्यसूत्रपूर्वका: षडेव दण्डकाः (वृ)। इयं वृत्तिः उपलब्धपाठानुसारिणी नास्ति। अस्या अनुसारेण पाठः इत्थं प्रतीयते-'एए छ, दंडगा
भाणियव्वा'। ५. माती (क, ख, ग)। ६. सं० पा०—णो पडिक्कमेज्जा जाव णो
पडिवज्जेज्जा। ७. ठा० ३।३३८ सूत्रे 'अकरिसु' पाठो विद्यते।
८. अवणए (ख, ग); ३।३३६ सूत्रे 'अविणए'
पाठोस्ति । अस्मिन् सूत्रे तस्य तुल्यमस्ति प्रकरणम् । अत्र 'अवणए' पाठोस्ति । वृत्तिकृता प्रथम स्थाने 'अविनयः साधुकृतो मे स्यात्' द्वितीय स्मिन् स्थाने 'अपनयो वा पूजा सत्कारादेरपनयनं मे स्यादिति' लिखितम् । इतिदर्शनेन प्रतीयते वृत्तिकारेण यादृशः पाठो लब्धस्तादृश एवार्थः कृतः । 'क' आदर्श 'अविणए' पाठो लिखित आसीत् । ततः 'वि' वर्णगतेकारमात्रां हरितालेनाच्छिद्य वकारः कृतोस्ति । पूर्वपाठस्य संगतिदृष्ट्यावापि 'अविणए' पाठो युज्यते। ६. सं० पा०-आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा।
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७५८
ठाणं
१. मायिस्स णं अस्सि लोए गरहिते भवति । २. उववाए गरहिते भवति । ३. आयाती' गरहिता भवति । ४. एगमवि मायी मायं कटु णो आलोएज्जा', णो पडिक्कमेज्जा, णो णिदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, णत्थि तस्स आराहणा। ५. एगमवि मायी मायं कटु आलोएज्जा', 'पडिक्कमेज्जा, णिदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा। ६. बहुओवि मायी मायं कटु णो आलोएज्जा', •णो पडिक्कमज्जा, णो णिदेज्जा णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणाए अब्भुट्ठज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जेज्जा, णत्थि तस्स आराहणा। ७. बहुओवि मायी मायं कटु आलोएज्जा', 'पडिक्कमज्जा, शिंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जेज्जा °, अत्थि तस्स आराहणा। ८. आयरिय-उवज्झायस्स वा मे अतिसेसे णाणसणे समुप्पज्जेज्जा, से यं' मममालोएज्जा मायी णं एसे। मायी णं मायं कटु से जहाणामए अयागरेति वा तंबागरेति वा तउआगरेति वा सीसागरेति वा रुप्पागरेति वा सुवण्णागरेति वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा बुसागणीति वा णलागणीति वा दलागणीति वा सोंडियालिछाणि वा भंडियालिछाणि वा गोलियालिछाणि वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुआवाएति वा इट्टावाएति वा जंतवाडचुल्लीति वा लोहारंबरिसाणि वा। तत्ताणि समजोतिभूताणि किंसुकफुल्लसमाणाणि उक्कासहस्साइं विणिम्मयमाणाइं-विणिम्मुयमाणाइं, जालासहस्साई पमुंचमाणाई-पमुंचमाणाइं इंगाल
१. आताती (क, ख, ग)।
वज्जेज्जा। २. मातं (क, ख, ग)।
६. सं० पा०-आलोएज्जा जाव अत्थि । ३. सं० पा०-णो आलोएज्जा जाव णो पडि- ७. तं (क, ख, ग) । वज्जेज्जा।
८. आया ° (क, ख, ग)। ४. सं० पा०-आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा। ६. लिच्छाणि (क)। ५. सं० पाणो आलोएज्जा जाव णो पडि- १०. ० चुल्लिं (क, ग)।
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अट्टमं ठाणं
७५६ सहस्साई' पविक्खिरमाणाई-पविक्खिरमाणाइं,अंतो-अंतो झियायंति, एवामेव मायी मायं कट्ट अंतो-अंतो झियाइ'। जवि य णं अण्णे केइ वदंति तंपि य णं मायी जाणति अहमेसे 'अभिसंकिज्जामिअभिसंकिज्जामि। 'मायी णं मायं कटु अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए ‘उववत्तारो भवंति', तं जहा–णो महिड्डिएसु णो महज्जुइएसु णो महाणुभागेसु णो महायसेसु णो महाबलेसु णो महासोक्खेसु णो दूरंगतिएसु णो चिरद्वितिएस् । से णं तत्थ देवे भवति णो महिड्डिए" *णो महज्जुइए णो महाणुभागे णो महायसे णो महाबले णो महासोक्खे णो दूरंगतिए णो चिरट्रितिए।। जावि य से तत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुटुंति-मा बहुं देवे ! भासउभासउ। से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव माणुस्सए भवे जाई इमाइं कुलाइं भवंति, तं जहा-अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा किवणकुलाणि वा, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति । से णं तत्थ पुमे भवति दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अणिढे अकते अप्पिए अमणुण्णे अमणाम हीणस्सरे दीणस्सरे अणिटुस्सरे अकंतस्सरे अपियस्सरे अमणुण्णस्सरे अमणामस्सरे अणाएज्जवयणे पच्चायाते । जावि य से तत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता" चेव अब्भुटुंति—मा बहुं अज्जउत्तो" ! भासउभासउ।
१. अंगाल ° (क, ख, ग)।
८. सं० पा०—णो महिड्डिएसु जाव णो दूरंगति२. परिक्खिर ° (क, ग); परिकिर ° (क्व)। तेसु । ३. झियायइ (क्व)।
है. सं० पा०-णो महिडिए जाव णो चिरद्वितिते । ४. जंतवि (क); जतवि (ख, ग)।
१०. महा° (क)। ५. अभिसिक्खिज्जामि (क, ग)।
११. अवुत्ता (ख)। ६. से णं तस्स (वृ); मायी णं मायं कटु(वृपा)। १२. परिताणाति (ख, ग)। ७. 'उववत्तारो' त्ति वचनव्यत्ययादुपपत्ता भव- १३. अवुत्ता (ग) । तीति (वृ)।
१४. अज्जपुत्ते (ख)।
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७६०
ठाणं
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मायी गं मायं कट्टु आलोचित - पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति तं जहा- महिड्डिएस' 'महज्जुइएस महाणुभागेसु महायसेसु महाबलेसु महासोक्खेसु दूरगंतिएसु चिरद्वितिए । से णं तत्थ देवे भवति महिड्डिए महज्जुइए महाणुभागे महायसे महाबले महासोक्खे दूरंगतिए • चिरट्ठितिए हार- विराइयवच्छे कडक तुडित-थंभितभु' अंगद - कुंडल - मट्ठ- गंडतल - कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणे विचित्तवत्थाभरणे विचित्तमालामउली कल्लाणग-पवर- वत्थ- परिहिते कल्लाणग-'पवर-गंधमल्लाणुलेवणधरे" भासुरबोंदी पलंब-वणमालधरे दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रसेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघातेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए
डीए दिव्वा जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे महयाहत - णट्टगीत-वादित-तंती-तल-ताल-तुडित- घण- मुइंग- पडुप्पवादित-रवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ ।
बाहिरब्भंतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाइ परिजाणाति महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुद्वंति - बहुं देवे ! भासउ -भासउ ।
से णं ताओ देवलगाओ आउक्खएणं भवक्खणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं • चइत्ता इव माणुस्सए भवे जाई इमाई कुलाई भवंति - अड्ढाई' "दित्ताई' विच्छिण्ण- विउल-भवण-सयणासण- जाण - वाहणाई " 'बहुधण - बहुजाय रूव-रय - याई"" आओगपओग-संपउत्ताइं विच्छड्डिय-पउर भत्तपाणाई बहुदासी - दास-गोमहिस - गवेल - भूयाई बहुजणस्स अपरिभूताई, तहप्पगारेसु" कुलेसु पुमत्ताए पन्चायति । से णं तत्थ पुमे भवति सुरूवे सुवण्णे सुगंधे सुरसे सुफासे इट्ठे कंते" • पिए मणुण्णे • मणामे अहीणस्सरे" "अदीणस्सरे इट्ठस्सरे कंतस्सरे पियस्सरे मणुण्णस्सरे • मणामस्सरे आदेज्जवयणे पच्चायाते ।
I
o
सेत्थ बाहिरभंतरिया परिसा भवंति, सावि य णं आढाति" परि
-
१. सं० पा० – महिड्डिएसु जाव चिरट्ठितिए । २. ० द्विती ( क ग ) ।
३. सं० पा० - महिड्डिए जाव चिरद्वितिते । ४. विशतित ( क, ख, ग ) ।
५. भुते ( क, ख, ग ) । ६. पवर- मल्लाण
(वृपा) ।
७. सं० पा० आउक्खएणं जाव चइता |
(वृ); पवर-गंधमल्लाणं •
८. सं० पा० - अड्ढाई जाव बहुजणस्स । C. औपपातिके (सूत्र १४१ ) - दित्ताई वित्ताई । १०. क्वचिद् - वाहणाइन्नाई ( वृ ) । ११. औपपातिके (सूत्र १४१) बहुधण जाय • । १२. तहाप्प ० ( क ग ) ।
१३. सं० पा० - कंते जाव मणामे ।
१४. सं० पा० - अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे । १५. सं० पा० - आढाति जावे बहुं ।
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अट्टमं ठाणं
७६१ जाणाति महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव
चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव अब्भुटुंति °-बहु अज्जउत्ते ! भासउ-भासउ ।। संवर-असंवर-पदं ११. अट्ठविहे संवरे पण्णत्ते, तं जहा- सोइंदियसंवरे', 'चक्खिदियसंवरे, धाणिदिय
___ संवरे, जिभिदियसंवरे°, फासिदियसंवरे, मणसंवरे, वइसंवरे, कायसंवरे ॥ । १२. अट्टविहे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा - सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे,
घाणिदियअसवरे, जिब्भिदियअसंवरे, फासिदियअसंवरे, मणअसंवरे, वइ
असंवरे कायअसंवरे ॥ फास-पदं १३. अट्ठ फासा पण्णत्ता, तं जहा-कक्खडे', मउए, गरुए, लहुए, सीते, उसिणे
णिद्धे, लुक्खे ॥ लोगट्ठिति-पदं १४. अट्ठविधा लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा—आगासपतिहिते वाते, वातपतिट्टिते
उदही, “उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्टिता° जीवा कम्मपतिट्ठिता, अजीवाजीवसंगहीता', जीवा कम्म
संगहीता ॥ गणिसंपया-पदं १५. अट्टविहा गणिसंपया पण्णत्ता, तं जहा-आचारसंपया, सुयसंपया, सरीरसंपया,
वयणसंपया', वायणासंपया, मतिसंपया, पओगसंपया, संगहपरिण्णा णाम
अट्ठमा ॥ महाणिहि-पदं १६. एगमेगे णं महाणिही अट्ठचक्कवालपतिट्ठाणे अट्ठट्ठजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं
पण्णत्ते ॥ समिति-पदं १७. अट्ठ समितीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इरियासमिती, भासासमिती, एसणा
१. सं० पा०-सोइंदियसंवरे जाव फासिदिय । २. सं० पा०-सोतिदियअसंवरे जाव काय-
असंवरे। ३. कक्कडे (क, ख, ग)।
४. स० पा०-एव जधा छटाणे जाव जीवा। ५. ० संगहिता (क, ग)। ६. वणसंपता (ख)। ७. वातणासंपता (क, ख, ग)।
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७६२
ठाण
समिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार- पासवण - खेल - सिघाणजल्ल-परिठावणियासमिती, मणसमिती, वइसमिती, कायसमिती ।
आलोयणा-पदं
१८. अट्ठहिं ठाणेहि संपणे अणगारे अरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, तं जहाआयारवं', आधारखं, ववहारवं ओवीलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, णिज्जावए, अवायसी ||
१६. अट्ठहि ठाणेहि संपणे अणगारे अरिहति अत्तदोसमालोइत्तए, तं जहाजातिसंपणे, कुलसंपणे, विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, दसणसंपण्णे, चरित्तसंपणे, खंते, दंते ॥
पायच्छित्त-पदं
२०. अट्ठविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारि, मूलारि ॥
मट्ठाण-पदं
२१. अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा - जातिमए, कुलमए, बलभए, रूवमए, तवमए, सुतमए, लाभमए, इस्सरियमए ॥
अकिरियावा दि-पदं
२२. अट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता, तं जहा -एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, 'मितवा', सायवाई, समुच्छेदवाई, णितावाई, णसंतपरलोग वाई' | महानिमित्त-पदं
२३. अट्ठविहे महाणिमित्ते पण्णत्ते, तं जहा - भोमे, उप्पाते, सुविणे, अंतलिक्खे, अंगे, सरे, लक्खणे, वंजणे ॥
वयणविभत्ति-पदं
२४. अदुविधा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहा
१. आलोतणा (ख) ।
२. आतार (क, ख, ग ) ।
३. ० मालोतेत्तते (क, ग ); ० मालोयत्तते ( ख ) । ४. अमितवाती (क) ।
५. ण संति परलोकवाती ( ख, ग, वृ); वृत्ति
कारेण 'ण संति' इति पाठो व्याख्यातः 'न विद्यते शान्तिश्च मोक्षः ।' किन्तु 'णसंते' इति पाठ: समीचीनः प्रतिभाति 'असत्परलोकवादी' इति स्वाभाविकोर्थोस्ति ।
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अट्ठमं ठाणं
७६३ संगहणी-गाहा
णिद्देसे पढमा होती', बितिया उवएसणे। ततिया करणम्मि कता, चउत्थी संपदावणे ॥१॥ पंचमी य अवादाणे, छट्ठी सस्सामिवादणे'। सत्तमी सण्णिहाणत्थे, अट्टमी आमंतणी भवे ॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, णिसे-सो इमो अहं वत्ति । बितिया उण उवएसे- भण 'कुण व इमं व तं वत्ति ।।३।। ततिया करणम्मि कया- णीतं व कतं व तेण व मए वा । हंदि णमो साहाए, हवति चउत्थी पदाणंमि ॥४।। अवणे गिण्हसु तत्तो, इत्तोत्ति वा पंचमी अवादाणे। छट्ठी तस्स इमस्स व, गतस्स वा सामि-संबंधे ॥५॥ हवइ पुण सत्तमो तमिमम्मि आहारकालभावे य।
आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! त्ति ॥६॥ छउमत्थ-केवलि-पदं २५. अट्ठ ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकाय',
'अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई, गंध, वातं। एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवलो 'सव्वभावेणं जाणइ पासइ, त जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जोवं असरीर
पडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सदं °, गंध, वातं ।। आउवेद-पदं २६. अट्ठविध आउवेदे पण्णत्ते, तं जहा-कुमारभिच्चे, कायतिगिच्छा, सालाई",
सल्लहत्ता', जंगोली, भूतवेज्जा, खारतंते, रसायणे"।
१. होति (क, ग)। २. अवाताणे (क, ख, ग)। ३. इह प्राकृतत्वाद् दीर्घत्वम् । ४. सन्नियाणत्थे (क, ग)। ५. आमंतणा (क, ख, ग)। ६. बितीता (ग)। ७. कुणसु (अ० सू० ३०८)।
८. भणियं (अ० सू० ३०८)। ६. धम्मत्थिगातं (क, ख, ग); सं० पा-धम्म
त्थिकायं जाव गंधं । १०. सं० पा०-केवली जाणइ पासइ जाव गंधं । ११. सालभते (क); सालाती (ख, ग)। १२. सेल्लहता (ख)। १३. रसातणे (क, ख, ग)।
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७६४
ठाणं
अग्गमहिसी-पदं २७. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अट्ठग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पउमा,
सिवा, सची', अंजू, अमला, अच्छरा, णवमिया, रोहिणी ॥ २८. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अट्ठग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हा,
कण्हराई', रामा, रामरक्खिता, वसू, वसुगुत्ता, वसुमित्ता, वसुंधरा ।। २६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो अटुग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। ३०. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो अट्ठग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ।
महग्गह-पदं ३१. अट्ठ महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा-चंदे, सूरे, सुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारे,
सणिचरे, केऊ ।।
तणवणस्सइ-पदं ३२. अट्ठविधा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा–मूले, कंदे, खंधे, तया, साले,
पवाले, पत्ते, पुप्फे ॥ संजम-असंजम-पदं ३३. चरिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स अट्ठविधे संजमे कज्जति, तं जहा–चक्खु
मातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति । "घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। जिब्भामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति ° । फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति । फासामएणं
दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति ॥ ३४. चरिदिया णं जीवा समारभमाणस्स अट्ठविधे असंजमे कज्जति, तं जहा
चक्खुमातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। "घाणामातो सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ° । फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ।
१. सूती (ख, ग); सती (क्व)। २. कण्हराती (क, ख, ग)।
३. सं० पा०-एवं जाव फासामातो। ४. सं० पा०–एवं जाव फासामातो।
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अट्ठमं ठाणं
७६५
सुहुम-पदं ३५. अट्ठ सुहुमा पण्णत्ता, तं जहा-पाणसुहुमे, पणगसुहुमे, बीयसुहुमे, हरितसुहुमे,
पुप्फसुहुमे, अंडसुहुमे, लेणसुहुमे, सिणेहसुहुमे ॥ भरहचक्कवट्टि-पद ३६. भरहस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाइं अणुबद्धं' सिद्धाइं
'बुद्धाइं मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुडाइ° सव्वदुक्खप्पहीणाई, तं जहाआदिच्चजसे, महाजसे, अतिबले महाबले, तेयवोरिए' कत्तवोरिए दंडवीरिए,
जलवीरिए॥ पास-गण-पदं ३७. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा
सुभे, अज्जघोसे, वसिढ़े, बंभचारी, सोमे, सिरिधरे, 'वीरभद्दे, जसोभद्दे ॥ दसण-पदं ३८. अट्ठविधे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा-सम्मदंसणे, मिच्छदसणे, सम्मामिच्छदसणे,
चक्खुदंसणे', 'अचक्खुदंसणे, ओहिदसणे °, केवलदंसणे, सुविणदसणे ॥ ओवमिय-काल-पदं ३६. अट्ठविधे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा–पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी,
उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्टे, तीतद्धा, अणागतद्धा, सव्वद्धा ।। अरिट्ठणेमि-पदं ४०. अरहतो णं अरिढणेमिस्स जाव अट्ठमातो पुरिसजुगातो जुगंतकरभूमी।
दुवासपरियाए अंतमकासी॥ महावीर-पदं ४१. समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवेत्ता अगाराओ अणगारितं
पव्वाइया, तं जहा
१. अणहव (क, ग)। २. सं० पा०-सिद्धाइं जाव सव्वदुक्ख । ३. तेतवीरिते (क, ख, ग)। ४. कण्णवीरिते (क, ग)। ५. वीरिते भद्दजसे (ख, ग)।
६. सं० पा०-चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे । ७. 'भवित्त' त्ति अन्तर्भूतकारितार्थत्वात् मुण्डान ___ भावयित्वेति दृश्यम् (वृ)। ८. पवाविता (क, ख, ग)।
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ठाणं
संगहणी-गाहा
वीरंगए वीरजसे, संजय एणिज्जए य रायरिसी।
सेये सिवे उद्दायणे, तह संखे कासिवद्धणे ॥१॥ आहार-पदं ४२. अट्ठविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा–मणुण्णे-असणे, पाणे, खाइमे, साइमे ।
अमणुण्णे'-'असणे, पाणे, खाइमे°, साइमे ॥ कण्हराइ-पदं ४३. उप्पि सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेर्टि' बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाण'-पत्थडे,
एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पुरथिमे णं दो कण्हराईओ, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्हराईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। पुरथिमा अब्भंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। दाहिणा अब्भंतरा कण्हराई पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्टा। पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा । उत्तरा अब्भंतरा कण्हराई पुरत्थिमं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। पुरथिमपच्चत्थिमिल्लाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ छलसाओ। उत्तरदाहिणाओ बाहिराओ
दो कण्हराईओ तंसाओ। सव्वाओ वि णं अब्भंतरकण्हराईओ चउरंसाओ॥ ४४. एतासि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठ णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-कण्हराईति
वा, मेहराईति वा, मघाति वा, माघवतीति वा, वातफलिहेति वा, वातपलि
क्खोभेति वा, देवफलिहेति वा, देवपलिक्खोभेति वा ॥ ४५. एतासि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतियविमाणा पण्णत्ता,
तं जहा- अच्ची, अच्चिमाली, वइरोअणे, पभंकरे", चंदाभे, सूराभे, 'सुपइट्ठाभे, अग्गिच्चाभे१२॥
१. उदायणे (क, ख, ग)। २. X (क)। ३. सं० पा०- अमणुण्णे जाव साइमे। ४. हवि (क); हट्ठि (ख)। ५. रिटे) (क)। ६. कण्हरातीतो (क, ख, ग)। ७. कण्हरातीयं (क)। ८. मल्लाओ (क, ख, ग)। ६. ° फलहितेति (क)। १०. फलक्खो० (क)।
११. सुभंकरे (वृ)। . १२. अंकाभे सुपइट्ठाभे (वृ); सुक्काभे सुपइट्ठाभे ।
(भ० ६।१०६); लोकान्तिकविमानानां नाम्नां तिस्रः परंपराः प्राप्यन्ते । एका भगवती. सूत्रस्य । तत्र षड नामानि तुल्यानि सप्तमाष्टमयोरन्तरमस्ति । द्वितीया च स्थानांगसमवाययोः (समवाय ८।१५)। तृतीया च वृत्तिगता। तत्रापि पंच नामानि तुल्यानि, चतुर्थसप्तमाष्टमानि च भिन्नानि सन्ति ।
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अट्टमं ठाणं
४६. एतेसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अदुविधा लोगंतिया देवा पण्णत्ता, तं जहा
संगहणी-गाहा
सारस्सतमाइच्चा,
वही वरुणा य गद्दतोया य ।
तुसिता अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव बोद्धव्वा ॥ १ ॥
४७. एतेसि णं अट्ठण्हं लोगंतियदेवाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाई ठिती
पण्णत्ता ॥
मज्भपदेस -पदं
४८. अटु धम्मत्थिकाय' - मज्भपएसा पण्णत्ता ॥
४९. अटु अधम्मत्थिकाय- मज्झपएसा पण्णत्ता ॥
५०. अट्ठ आगासत्थिकाय - मज्भपएसा पण्णत्ता ॥
५१. अटू जीव- मज्झपएसा पण्णत्ता ||
महापउम-पदं
५२. अरहा णं महापउमे अट्ठ रायाणो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वावेस्सति, तं जहा – पउमं, पउमगुम्मं णलिणं, णलिणगुम्मं, पउमद्धयं, धणुद्धयं, कणगरहं, भरहं ।
कण्ह अग्गमहिसी पर्द
५३. कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ठ अग्गमहिसीओ अरहतो णं अरिट्ठमिस्स अंति मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइया सिद्धाओं 'बुद्धाओ मुत्ताओ अंतगडाओ परिणिव्वुडाओ • सव्वदुक्खप्पहीणाओ, तं जहा
o
संग्रहणी - गाहा
पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य । जंबवती सच्चभामा, रुप्पिणी अगमसिओ ॥ १ ॥
पुव्ववत्थु-पदं
५४. वीरियपुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू' अट्ठ चूलवत्थू पण्णत्ता ॥
१. लोकान्तिकदेवानां नामसु चतुर्थाष्टमे नाम्नी तत्वार्थ सूत्रे भिन्ने स्तः-- सारस्वतादित्यवन्यरुण गर्दतोय तुषिताव्याबाधमरुतोरिष्टाश्च (४।२६) दिगम्बरपरंपरासम्मते 'मरुत्' नाम न विद्यते - सारस्वतादित्यवह न्यरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधरिष्टाश्च ॥
२. बोधव्वा (क, ख, ग ) ।
७६७
३. ० गात ( क, ख, ग ) । ४. सं० पा० एवं चेव । ५. सं० पा० - एवं चेव । ६. पउमद्भुतं (क, ख, ग ) । ७. सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख । ८. मूलवत्थू ( क ) ।
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७६८
ठाणं
गति-पदं ५५. अट्ठ गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-णिरयगती, तिरियगती', 'मणुयगती, देव
गती°, सिद्धिगती, गुरुगती, पणोल्लणगती, पब्भारगती॥ दीवसमुद्द-पदं ५६. गंगा-सिंधु-रत्त-रत्तवतिदेवीणं दीवा 'अट्ठ-अट्ठ' जोयणाइं आयामविक्खंभेणं
पण्णत्ता ॥ ५७. उक्कामह-मेहमुह-विज्जुमुह-विज्जुदंतदीवा णं दीवा अट्ठ-अट्ट जोयणसयाई
आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ ५८. कालोदे णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ५६. अब्भतरपुक्खरद्धे णं अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ६०. एवं बाहिरपुक्खरद्धेवि ।। काकणिरयण-पदं ६१. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए काकणिरयणे छत्तले
दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अधिकरणिसंठिते ॥ मागध-जोयण-पदं
६२. मागधस्स णं जोयणस्स अट्ठ धणुसहस्साइं णिधत्ते पण्णत्ते ।। जंबूदीव-पदं ६३. जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई
विक्खंभेणं, सातिरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता ।। ६४. कूडसामली णं अट्ठ जोयणाई एवं चेव ।। ६५. तिमिसगुहा णं अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं । ६६. खंडप्पवातगुहा णं अट्ठ' 'जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं । ६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उभतो कूले
अट्ठ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—चित्तकूडे, पम्हकडे, णलिणकूडे, एग
सेले, तिकडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे।।। ६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीतोयाए महाणदीए उभतो कूले
१. सं० पा०—तिरियगती जाव सिद्धगती। २. अट्ठ (क)। ३. कालोते (क, ख, ग)।
४. निहारे (वृ); निहत्ते (वृपा)। ५. सं० पा०-अट्ठ एवं चेव । ६. बम्भकूडे (क)।
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अट्ठमं ठाणं
७६६ अट्ट वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा–अंकावती, पम्हावती, आसीविसे,
सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपव्वते, ‘णागपव्वते, देवपव्वते ।। ६६. जबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पवयस्स पुरत्थिमे णं साताए महाणदोए उत्तरे णं अट्ठ
चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा-कच्छे, सुकच्छे, महाकच्छे, कच्छगावती,
आवत्ते', 'मंगलावत्ते, पुक्खले°, पुक्खलावती ।। ७०. जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं
अट्ट चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा–वच्छे, सुवच्छे', 'महावच्छे,
वच्छगावती', रम्मे, रम्मगे, रमणिज्जे, मंगलावती॥ ७१. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महाणदीए दाहिणे णं
अट्ठ चक्कवट्टि विजया पण्णत्ता, तं जहा -पम्हे', 'सुपम्हे, महपम्हे, पम्हगावती,
संखे, णलिणे, कुमुए°, सलिलावती ॥ ७२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोतोयाए महाणदीए उत्तरे णं
अट्ट चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा-वप्पे, सुवप्पे', 'महावप्पे, वप्पगावती,
वग्गू, सुवग्गू, गंधिल्ले °, गंधिलावती ॥ ७३. जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं अट्ठ
रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खेमा, खेमपुरी', 'रिट्ठा, रिठ्ठपुरी, खग्गी,
मंजसा, ओसधो , पुंडरीगिणी ।। ७४. जंबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणईए दाहिणे णं अट्ठ
रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सुसीमा, कुंडला', 'अपराजिया, पभंकरा,
अंकावई, पम्हावई, सुभा°, रयणसंचया ॥ ७५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणदीए दाहिणे
णं अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आसपुरा", 'सोहपुरा, महापुरा,
विजयपुरा, अवराजिता, अवरा, असोया °, वीतसोगा"। ७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महाणईए उत्तरे णं
१. ठा० ४ ३१३ सूत्र 'देवपन्वते णागपब्बते' एवं ७. गंधला (ख)। पाठो विद्यते।
८. खेमपुरा (क, ख, ग); सं० पा०-खेमपुरी २. सं० पा०--आवत्ते जाव पुक्खलावती। जाव पुंडरीगिणी। ३. सं० पा०-सुवच्छे जाव मंगलावती। ६. स० पा०-कुंडला चेव जाव रयणसंचया । ४. ठा० २।३४० सूत्रे 'कच्छावती' पाठो विद्यते। १०. स० पा०-आसपुरा जाव वीतसोगा। ५. सं० पा०--पम्हे जाव सलिलावती। ११. वीतिसोगा (क,ग); विगयसोगा (२।३४१)। ६. सं० पा०-सुवप्पे जाव गंधिलावती।
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७७०
ठाणं
अट्ठ रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया, वेजयंती', 'जयंती, अपराजिया,
चक्कपुरा, खग्गपुरा, अवज्झा, अउज्झा ॥ ७७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं सीताए महाणदीए उत्तरे णं
उक्कोसपए अट्ठ अरहंता, अट्ठ चक्कवट्टी, अट्ठ बलदेवा, अट्ठ वासुदेवा उप्पज्जिसु
वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा । ७८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए [महाणदीए ? ] दाहिणे
णं उक्कोसपए एवं चेव ।। ७६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोओयाए महाणदीए दाहिणे णं
उक्कोसपए एवं चेव ॥ ८०. एवं उत्तरेणवि ॥ ८१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणईए उत्तरे णं अट्ठ
दीहवेयड्ढा, अट्ठ तिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडगप्पवातगुहाओ, अट्ठ कयमालगा देवा, अट्ठ णट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुंडा, अट्ठ सिंधुकुंडा, अट्ठ गंगाओ, अट्ठ सिंधूओ,
अट्ठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता ॥ ८२. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीए दाहिणे णं अट्ठ
दीहवेअड्डा एवं चेव जाव' अट्ठ उसभकूडा देवा पण्णत्ता, णवरमेत्थ रत्त-रत्तावती,
तासिं चेव कंडा ॥ ८३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महाणदीए दाहिणे णं
अट्ठ दीहवेयड्डा जाव' अट्ठ गट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुंडा, अट्ठ सिंधुकुंडा, अट्ठ गंगाओ, अट्ठ सिंधूओ, अट्ठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा
पण्णत्ता ॥ ८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए उत्तरे णं
अट्ठ दीहवेयड्डा जाव' अट्ठ णट्टमालगा देवा पण्णत्ता'। अट्ठ रत्ताकुंडा, अट्ठ रत्तावतिकुंडा, अट्ठ रत्ताओ', अट्ठ रत्तावतीओ, अट्ठ उसभकूडा पव्वत्ता°, अट्ठ
उसभकूडा देवा पण्णत्ता ॥ ८५. मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोइणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। धायइसंड-पदं ८६. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं धायइरुक्खे अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झ
देसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते॥
१. सं० पा०-वेजयंती जाव अउज्झा। २. ठा०८८१ ३,४. ठा० ८८१॥
५. पण्णत्ता नवरमेत्थ (क, ग)। ६. सं० पा०-रत्ताओ जाव अट्ठ उसभकूडा। ७. °भाते (क, ग)।
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७७१
अट्ठमं ठाणं ८७. एवं धायइरुक्खाओ आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणियव्वा जाव'
मंदरचूलियत्ति ॥ ८८. एवं पच्चत्थिमद्धेवि महाधातइरुक्खातो आढवेत्ता जाव' मंदरचूलियत्ति ॥ पुक्खरवर-पदं ८९. एवं पुक्खरवरदीवड्डपुरत्थिमद्धेवि पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव' मंदरचूलि
यत्ति ॥ ६०. एवं पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धेवि महापउमरुक्खातो जाव' मंदरचूलियत्ति ॥ कूड-पदं
६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते भद्दसालवणे अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
पउमुत्तर णीलवंते, सुहत्थि अंजणागिरी।
कुमुदे य पलासे य, वडेंसे रोयणागिरी ॥१॥ जगती-पदं १२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स जगतो अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए
अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ कूड-पदं ६३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्वते अट्ठ कूडा
पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
सिद्ध महाहिमवंते, हिमवंते रोहिता हिरीकूडे ।
हरिकता हरिवासे, वेरुलिए चेव कूडा उ ।।१।। ६४. जंबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुप्पिमि वासहरपव्वते अटू कडा
पण्णत्ता, तं जहा
१. ठा० ८।६४-८५। २. ठा० ८।६३-८५ । ३,४. ठा० ८।६३-८५।
५. कुमुते (क, ख, ग)। ६. रोतणागिरी (क, ख, ग)। ७. हरी० (क, ख, ग)।
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७७२
ठाणं
सिद्धे य रुप्पि रम्मग, णरकता बुद्धि रुप्पकूडे य ।
हिरण्णवते मणिकंचणे, य रुप्पिम्मि कूडा उ ॥१॥ ६५. जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा--
रिटे तवणिज्ज कंचण, रयत दिसासोत्थिते पलंबे य ।
अंजणे अंजणपुलए, रुयगस्स पुरथिमे कूडा ॥१॥ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव' पलिओवमद्वितीयाओ परिवति, तं जहा
णंदुत्तरा य गंदा, आणंदा णंदिवद्धणा।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥२॥ १६. जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं रुयगवरे पव्वते अट्ट कूडा पण्णत्ता, तं जहा
कणए कंचणे पउमे. णलिणे ससि दिवायरे चेव ।
वेसमणे वेरुलिए, रुयगस्स उ दाहिणे कूडा ॥१॥ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमद्वितीयाओ परिवति, तं जहा
समाहारा सुप्पतिण्णा, सुप्पबुद्धा जसोहरा।
लच्छिवती सेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा ॥२॥ ६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा --
सोत्थिते य अमोहे य, हिमवं मंदरे तहा।
रुअगे रुयगुत्तमे चंदे, अट्टमे य सुदंसणे ॥१॥ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमट्ठितीयाओ परिवति, तं जहा
इलादेवी सुरादेवी, पुढवी पउमावती।
एगणासा" णवमिया, सीता भद्दा य अट्ठमा ॥२॥ ६८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुअगवरे पन्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा
रयण-रयणुच्चए या, सव्वरयण रयणसंचए चेव । विजये य वेजयंते, जयंते अपराजिते ॥१॥
१. मुट्ठि (क, ग)। २. ठा०२।२७१ । ३. सुपबुद्धा (क, ग); सुपवई (ख) ।
४. रुतगुत्तमे (क, ख, ग)। ५. एगानासा (क, ख)। ६. ता (क, ख, ग)।
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अट्टमं ठाणं
तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ महड्डियाओ जाव पलिओवमट्ठितीयाओ परिवसंति, तं जहा -
अलंबुसा मिस्सकेसी, पोंडरिगी य वारुणी ।
आसा सव्वगा चेव, सिरी हिरी चेव उत्तरतो ॥२॥
महत्तरिया-पदं
६. अट्ठ अहेलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
संगहणी-गाहा
भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥ १ ॥
१००. अट्ठ उड्डलोगवत्थव्वाओ' दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मेघंकरा मेघवती, सुमेधा मेघमालिणी ।
तोयधारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिता ॥ १॥
कप्प-पदं
१०१. अट्ठ कप्पा तिरिय - मिस्सोववण्णगा पण्णत्ता, तं जहा- सोहम्मे, "ईसाणे, सणकुमारे, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे ॥
१०२. एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा पण्णत्ता, तं जहा - सक्के', 'ईसाणे, सणकुमारे, माहिदे, बंभे, लंत, महासुक्के, सहस्सारे ॥
१०३. एतेसि णं अट्ठण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा पण्णत्ता,
जहा - पालए, पुप्फए, सोमणसे, सिरिवच्छे, गंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे ॥ पडिमा पदं
७७३
१०४. अट्ठट्ठमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीतेहि भिक्खासतेहि अहासुत्तं' 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया अणुपालितावि भवति ॥
१. मितकेसी (क्व ) ।
२. ० वच्छव्वाओ (क, ग) ।
३. सं० पा० - सोहम्मे जाव सहस्सारे ।
४. सं० पा०—सक्के जाव सहस्सारे । ५. दावत्ते (क्व) ।
६. विमले (क, ख, ग ); यद्यपि सर्वेषु आदर्शेषु 'विमले' इति पाठो विद्यते किन्तु दशम
स्थानस्य १५० सूत्रे जाव 'विमलवरे सव्वतोभद्दे' पाठस्ति । तत्र वृत्तिकृता, अष्टमः शब्द: 'मणोरमे' । इति व्याख्यात । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि इत्थमेव पाठोस्ति । तेनात्र 'मणोरमे ' इति पाठः स्वीकृतः । ७. भिक्खुपडिमा (क, ख, ग ) । ८. सं० पा० - अहासुत्तं जाव अणुपालितावि ।
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७७४
ठाणं
जीव-पदं १०५. अविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयणेरइया,
अपढमसमयणेरइया,' 'पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमय
मणया, अपढमसमयमणया, पढमसमयदेवा. अपढमसमयदेवा। १०६. अट्ठविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-णेरइया, तिरिक्खजोणिया,
तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा मणुस्सीओ, देवा, देवीओ, सिद्धा । अहवा-अटुविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-आभिणिबोहियणाणी', 'सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी , केवलणाणी, मतिअण्णाणी,
सुतअण्णाणी, विभंगणाणी ॥ संजम-पदं १०७. अविधे संजमे पण्णत्ते, त जहा-पढमसमयसुहमसंपरागसरागसंजमे,
अपढमसमयसुहुमसंपरागसरागसंजमे, पढमसमयबादरसंपरागसरागसंजमे, अपढमसमयबादरसंपरागसरागसंजमे, पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे, अपढमसमय उवसंतकसायवीतरागसंजमे, पढमसमयखीणकसायवीतरागसंजमे,
अपढमसमयखीणकसायवीतरागसंजमे ॥ पुढवि-पदं १०८. अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा', 'सक्करप्पभा, वालुअप्पभा,
पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमा०, अहेसत्तमा, ईसिपब्भारा॥ १०६. ईसिपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागे अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई
बाहल्लेणं पण्णत्ते॥ ११०. ईसिपब्भाराए णं पुढवीए अट्ठ णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-ईसिति वा,
ईसिपब्भाराति वा, तणूति वा, तणुतणूइ वा, सिद्धीति वा, सिद्धालएति वा,
मुत्तीति वा, मुत्तालएति वा॥ अब्भुद्वैतव्व-पदं १११. अट्ठहिं ठाणेहि सम्मं घडितव्वं जतितव्वं परक्कमितव्वं अस्सि च णं अद्वे
णो पमाएतव्वं भवति१. असुयाणं धम्माणं सम्मं सुणणताए अब्भुटुंतव्वं भवति । २. सुताणं धम्माणं ओगिण्हणयाए उवधारणयाए अब्भुटुंतव्वं भवति ।
१. सं० पा०-अपढमसमयनेरतिता एवं जाव केवल। अपढम ।
३. सं० पा०-रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा। २. सं० पा०—आभिणिबोहितणाणी जाव ४. सिद्धालतेति (क, ख, ग)।
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अट्ठमं ठाणं
७७५
३. णवाणं' कम्माणं संजमेणमकरणताए अब्भटेयव्वं भवति । ४. पोराणाणं कम्माणं तवसा विगिचणताए विसोहणताए अब्भुटुंतव्वं भवति । ५. असंगिहीतपरिजणस्स' संगिण्हणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति । ६. सेहं आयारगोयरं गाहणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति ।। ७. गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणताए अब्भटेयव्वं भवति । ८. साहम्मियाणमधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो अपक्खग्गाही मज्झत्थभावभूते कह णु साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पतुमंतुमा ?
उवसामणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति । विमाण-पदं ११२. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा अट्ठ जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता॥ वादि-पदं ११३. अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स अट्ठसया वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वादे
अपराजिताणं उक्कोसिया वादिसंपया हुत्था ॥ केवलिसमुग्घात-पदं ११४. अटुसमइए केवलिसमुग्धाते पण्णत्ते, तं जहा-पढमे समए दंडं करेति, बीए
समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेति, पंचमे समए लोगं पडिसाहरति, छठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं
पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति । अणुत्तरोववाइय-पदं
समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ट सया अणुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं "ठितिकल्लाणाणं' आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइयसंपया
हुत्था ॥ वाणमंतर-पदं ११६. अट्टविधा वाणमंतरा देवा पण्णत्ता, तं जहा-पिसाया, भूता, जक्खा, रक्खसा,
किण्णरा, किंपुरिसा, महोरगा, गंधव्वा । ११७. एतेसि णं अट्ठविहाणं वाणमंतरदेवाणं अट्ठ चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहा१. पावाणं (क्व)।
४. मंथानं (ख)। २. परितणस्स (क, ग); ° परियणतस्स ५. मंथु (क, ग)।
६. सं० पा०-गतिकल्लाणाणं जाव आगमे । ३. ०समतिते (क, ख, ग)।
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७७६
संग्रहणी - गाहा
कलंबो उ पिसायाणं तुलसी भूयाण भवे, असोओ किण्णराणं च, णागरुक्खो भुयंगाणं,
वडो जक्खाण चेइयं । रक्खसाणं च कंडओ ||१|| 'किंपुरिसाणं तु" चंपओ । गंधव्वाण य तेंदुओ ॥२॥
जोइस पदं
११८. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठजोयणस उड्डमबाहा सूरविमाणे चारं चरति ॥
११६. अट्ठणक्खत्ता चंदेणं सद्धि पमद्दं जोगं जोएंति, तं जहा - कत्तिया, रोहिणी, पुव्वसू, महा, चित्ता, विसाहा, अणुराधा, जेट्ठा ॥
दार-पदं
१२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दारा अट्ठ जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १२१. सव्र्व्वेसिपि णं दीवसमुद्दाणं दारा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ बंध ठिति-पदं
१२२. पुरिसवेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जहण्णेणं अट्ठसंवच्छराई बंधठिती पण्णत्ता ॥ १२३. जसोकित्तीणामस्स णं' कम्मस्स जहणेणं अट्ठ मुहुत्ताइं बंधठिती पण्णत्ता ॥ १२४. उच्चागोतस्स णं कम्मस्स जहणेणं अट्ठ मुहुत्ताइं बंधठिती पण्णत्ता ॥ कुलकोडी-पदं
१२५. तेइंदियाणं अट्ठ जाति-कुलकोडी - जोणीपमुह-सतसहस्सा पण्णत्ता ॥ पावकम्म-पदं
१२६. जीवा णं अट्ठठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा - पढमसमयणेरइयणिव्वत्तिते', 'अपढमसमयणे रइयणिव्वत्तिते, पढमसमयतिरियणिव्वत्तिते, अपढमसमयतिरियणिव्वत्तिते पढमसमयमणुव्वित्तिते, अपढम समयमणुयणिव्वत्तिते, पढमसमयदेवणिव्वत्तिते °, अपढमसमयदेवणिव्वत्तिते ।
ठाण
एवं - चिण उवचिण'- बंध- उदीर - वेद तह णिज्जरा चेव || पोग्गल - पदं
१२७. अट्ठपएसिया खंधा अणता पण्णत्ता ।।
१२८. अट्ठपएसोगाढा पोग्गला अनंता पण्णत्ता जाव' अट्ठगुणलुक्खा पोग्गला अनंता
पण्णत्ता ॥
१. ० साण य ( ख ) ।
२. ० नामए ( क ) ।
३. सं० पा० एवं चेव ।
४. सं० पा०-- पढमसमयणेरतितणिव्वत्तिते जाव
अपढम० ।
५. सं० पा०—उवचिण जाव णिज्जरा ।
६ ठा० १।२५५,२५६ ।
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णवमं ठाणं
विसंभोग-पदं १. णवहिं ठाणेहि समणे णिग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे णातिक्कमति, तं।
जहा--आयरियपडिणीयं, उवज्झायपडिणीयं, थेरपडिणीयं, कुलपडिणीयं,
गणपडिणीयं, संघपडिणीयं, णाणपडिणीयं, दंसणपडिणीयं, चरित्तपडिणीयं ।। बंभचेरअज्झयण-पदं २. णव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा-सत्थपरिणा, लोगविजओ', 'सीओसणिज्ज,
सम्मत्तं, आवंती, धूतं, विमोहो °, उवहाणसुयं, महापरिण्णा ।। बंभचेरगुत्ति-पदं ३. णव बंभचेरगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- १. विवित्ताई सयणासणाई
से वित्ता भवति--णो इत्थिसंसत्ताई णो पसुसंसत्ताइं णो पंडगसंसत्ताई। २. णो इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। ३. 'णो इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति । ४. णो इत्थीणमिदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता णिज्झाइता भवति । ५. णो पणीतरसभोई [भवति ?] । ६. णो पाणभोयणस्स अतिमातमाहारए सया' भवति । ७. णो पुव्वरतं पुव्वकीलियं सरेत्ता भवति । ८. णो सहाणवाती णो रूवाणुवाती णो सिलोगाणुवाती [भवति ?] । ६. णो सातसोक्खपडिबद्ध यावि भवति ॥
१. सं० पा०-लोगविजओ जाव उवहाणसुयं । तीदमेव व्याख्यायते ..."दृश्यमानपाठाभ्यूगमे २. 'नो इत्थिगणाई' तीह सूत्रं दृश्यते केवलं त्वेवं व्याख्या--नो स्त्रीगणानां पर्युपासको 'नो इत्थिगणाई' ति सम्भाव्यते उत्तराध्यय- भवेदिति (वृ)। नेषु तथाधीतत्वात् प्रक्रमानुसारित्वाच्चास्ये- ३. सता (क, ख, ग)।
७७७
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ওওও
ठाणं बंभचेरअगुत्ति-पदं ४. णव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-१. णो विवित्ताई सयणासणाई
सेवित्ता भवति-इत्थीसंसत्ताई पसुसंसत्ताई पंडगसंसत्ताई। २. इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति । ३. इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति । ४. इत्थीणं इंदियाइ 'मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता • णिज्झाइत्ता भवति । ५. पणीयरसभोई [भवति ? ] । ६. पाणभोयणस्स अइमायमाहारए सया भवति। ७. पुव्वरयं पुव्वकीलियं सरित्ता भवति । ८. सद्दाणुवाई रूवाणुवाई सिलोगाणुवाई
[भवति ? ] । ६. सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवति ।। तित्थगर-पदं ५. अभिणंदणाओ णं अरहओ सुमती अरहा णवहिं सागरोवमकोडीसयसहस्से हिं'
वीइक्कतेहि समुप्पण्णे ॥ सब्भावपयत्थ-पदं ६. णव सब्भावपयत्था पण्णत्ता, तं जहा--जीवा, अजीवा, पुण्णं, पावं, आसवो,
संवरो, णिज्जरा, बंधो, मोक्खो॥ जीव-पदं
७. णवविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया', 'आउ__काइया, तेउकाइया, वाउकाइया', वणस्सइकाइया, बेइंदिया, तेइंदिया,
चउरिदिया , पंचिदिया। गति-आगति-पदं ८. पुढविकाइया णवगतिया णवआगतिया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइए पुढवि
काइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा', 'आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहितो वा, वाउकाइएहितो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहितो वा, तेइंदिएहितो वा, चउरिदिएहितो वा°, पंचिदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा', 'आउ काइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चरिदियत्ताए वा°, पंचिंदियत्ताए वा
गच्छेज्जा। ६. एवमाउकाइयावि जाव पंचिदियत्ति ॥
वा
जाव
१. सं० पा०-इंदियाइं जाव णिज्झाइत्ता। २. ° कोडाकोडी ° (ग)। ३. सं० पा०-पुढविकाइया जाव वणस्सइ-
काइया। ४. सं० पा०-बेइंदिया जाव पंचिंदिया।
५. पंचिंदितत्ति (क, ग)। ६. सं० पा०--पुढविकाइएहितो
पंचिदिएहितो। ७. सं० पा०-पुढविकाइयत्ताए पंचिंदियत्ताते।
वा जाव
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णवमं ठाणं
जीव-पदं
१०. णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, णेरइया, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया, मणुया, देवा, सिद्धा ।
अहवा - नवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया', पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणुया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा, सिद्धा ॥
ओगाहणा-पदं
११. णवविहा सव्वजीवोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - पुढविकाइओगाहणा, आउकाइओगाहणा', 'तेउकाइओगाहणा, वाउकाइओगाहणा, वणस्स इकाइओगाहणा, बेइंदियओगाहणा, तेइंदियओगाहणा', चउरिदियओगाहणा, पंचिदिय -
गाणा ॥
संसार - पर्द
११. जीवा णं णवहिं ठाणेहिं संसारं वत्तिसु वा वत्तंति वा वत्तिस्संति वा, तं जहा --- पुढविकाइयत्ताए", "आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणस्स इइयत्ताए, बेइंदियत्ताए, तेइंदियत्ताए, चउरिदियत्ताए, पंचिदियत्ताए ॥ गुपपत्ति-पदं
१३. णर्वाह ठाणेहिं रोगुप्पत्ती सिया, तं जहा – अच्चासणयाए, अहितासणयाए, अतिणिद्दाए", अतिजागरितेणं, उच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अद्धाणगणं, भोयणपडिकूलताए, इंदियत्थविकोवणयाए ॥
दरिसणावर णिज्ज -पदं
१४. णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा - णिद्दा, णिद्दानिद्दा, पयला, पयलापयला, थी गिद्धी, चक्खुदंसणावरणे", अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदंसणावरणे", केवलदंसणावरणे ॥
१. सं० पा० - अपढमसमय णेरतिता जाव
अपढमसमयदेवा |
२. ० काइया ( ख ) 1
३. सं० पा०-- आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइ
७७६
काइओगाहणा ।
४. बेंदिओ ० ( क ) ।
५. तेंदिओ ० ( क ) ।
६. सासारं ( ख ) ।
७. सं० पा० – पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिदिय
ताए ।
८. पंचिदियकाइयत्ताए ( ग ) ।
९. ० सणाते ( ख, ग ) ।
१०. ० णिहितेणं ( क ); णिदिते ( ग ) ।
११. चक्खुदरिसणा (क, ग ) । १२. अवधि ० (क, ग ) ।
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७८०
ठाणं
जोइस-पदं १५. अभिई णं णक्खत्ते सातिरेगे णवमुहत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोएति ॥ १६. अभिइआइया णं णव णक्खत्ता णं चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा-अभिई,
सवणो धणिट्ठा', 'सयभिसया, पुव्वाभद्दवया, उत्तरापोट्ठवया, रेवई, अस्सिणी,
भरणी॥ १७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमीभागाओ णव जोअण
सताइं उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ।। मच्छ-पदं १८. जंबुद्दीवे णं दीवे णवजोयणिआ मच्छा पविसिसु वा पविसंति वा पवि
सिस्संति वा॥ बलदेव-वासुदेव-पदं १६. जंबुद्दीवे दोवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेव पियरो हुत्था,
तं जहासंगहणी-गाहा
‘पयावती य बंभे रोद्दे सोमे सिवेति य । महसीहे अग्गिसीहे, दसरहे णवमे य वसुदेवे ।।१।। इत्तो आढत्तं जधा समवाये गिरवसेसं जाव'
एगा से गब्भवसही, सिज्झिहिति आगमेसेणं ।। २०. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए णव बलदेव-वासुदेवपितरो
भविस्संति, णव बलदेव-वासुदेवमायरो भविस्संति । एवं जधा समवाए णिरवसेसं जाव' महाभीमसेणे, सुग्गीवे य अपच्छिमे।
एए खलु पडिसत्तू, कित्तिपुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे वि चक्कजोही, हम्मेहिती सचक्केहिं ।।१।।
१. समणो (ग)।
४. मलिनोभय-शुक्ति-छप्तारब्ध -पदातेर्म इलावह२. सं० पा०--धणिवा जाव भरणी, चन्द्रप्रज्ञप्तौ सिप्पि-छिक्काढत्त-पाइक्कं (हेमशब्दानुशासन
(१०-११) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ (वक्ष ७) च ८।२।१३८)। चन्द्रस्योत्तरेणं योगं युजानानां द्वादश- ५. पइण्णगसमवाय सू० २३६-२४७ । नक्षत्राणामुल्लेखोस्ति । अत्र तु नवमस्थान- ६. पइण्णगसमवाय सू० २५६, २५७ । कानुरोधेन नवैव गृहीतानि ।
७. य (क, ग)। ३. जतावती त पम्हे (ग)।
८. हम्मेहंति (ख, ग)।
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णवमं ठाण
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महाणिहि-पदं २१. एगमेगे णं महाणिधी णव-णव जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २२. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स णव महाणिहिओ [णो ? ] पण्णत्ता,
तं जहासंगहणी-गाहा
णेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयण महापउमे। काले य महाकाले, माणवग महाणिही संखे ॥१॥ णेसप्पंमि णिवेसा, गामागर-णगर-पट्टणाणं च। दोणमुह-मडंबाणं, खंधाराणं गिहाणं च ॥२।। गणियस्स य बीयाणं, माणम्माणस्स जं पमाणं च । धण्णस्स य बीयाणं, उप्पत्ती पंडुए भणिया ।।३।। सव्वा आभरणविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं । आसाण य हत्थोण य, पिंगलगणिहिम्मि सा भणिया ॥४॥ रयणाइं सव्वरयणे, चोद्दस पवराई चक्कवट्टिस्स । उपज्जति एगिदियाइं, पंचिंदियाइं
च ॥५।। वत्थाण य उप्पत्ती, णिप्फत्ती चेव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धोयाण य', सव्वा एसा महापउमे ॥६॥ काले कालण्णाणं, भव्व पुराणं च तीसु वासेसु । सिप्पसतं कम्माणि य, तिण्णि पयाए हियकराई ।।७।। लोहस्स य उप्पत्ती, होइ महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि-मोत्ति-सिल-प्पवालाणं ॥८॥ जोधाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च। सव्वा य जुद्धनीती, माणवए दंडणीतो य॥६॥ पट्टविही णाडगविही, कव्वस्स चउव्विहस्स उप्पत्ती। संखे महाणिहिम्मी, तुडियंगाणं च सव्वेसि ॥१०॥ चक्कट्ठपइट्ठाणा, अठुस्सेहा य णव य विक्खंभे । बारसदीहा मंजूस- संठिया जलवीए' मुहे ॥११॥ वेरूलियमणि-कवाडा, कणगमया विविध-रयण-पडिपुण्णा । ससि-सूर-चक्क-लक्खण-अणुसम-जुग-बाहु-वयणा य ॥१२॥
३. जह्नवीइ (क, ग)।
१. धोयाणं (क); धोवाण (ख)। २. ४ (क)।
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७८२
पलिओ मद्वितीया, जेसिं ते आवासा, एए ते वणिहिणो,' जे वसमुवगच्छंती,
णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा । अक्किज्जा' आहिवच्चा वा ॥ १३ ॥ पभूतधण रयणसंचय समिद्धा सव्वेसि चक्कवट्टीणं ।।१४।।
1
विगति-पदं
२३. णव विगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - खीरं, दधि, णवणीतं, सप्पि, तेलं, गुलो, महुं, मज्जं, मंसं ॥
बोंदी-पदं
२४. णव-सोत-परिस्सवा बोंदी पण्णत्ता, तं जहा - दो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुहं, पोसए, पाऊ ॥
पुण्ण-पदं
२५. णवविधे पुणे, पण्णत्ते, तं जहा - अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, लेणपुण्णे, पुणे, मणपुणे, वइपुण्णे, कायपुण्णे, णमोक्कारपुणे ||
पावायतण-पदं
२६. णव पावस्सायतणा पण्णत्ता, तं जहा - पाणातिवाते, मुसावाए', 'अदिण्णादाणे, मेहुणे, परिग्ग, कोहे, माणे, माया, लोभे ॥
पावसुयपसंग-पदं
२७. णवविधे पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं जहा
संग्रहणी-गाहा
उप्पाते निमित्ते मंते, आइक्खिए तिगिच्छिए । कला आवरणे अण्णाणे मिच्छापवयणे ति य ॥१॥
उणिय-पदं
२८. णव उणिया वत्थू पण्णत्ता, तं जहा
ठाणं
संखाणे निमित्ते काइए पोराणे पारिहथिए । परपंडिते' 'वाई य", भूतिकम्मे तिगिच्छिए ॥१॥
१. अग्गिच्चा ( क ग ) ।
२. निओ ( ख, ग ) ।
३. सं० पा० - मुसावाते जाव परिग्गहे ।
४. अतिक्खते ( क, ख, ग ) ।
गण-पदं
२६. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा - गोदासगणे, उत्तर
५. ० पवतणे ( क ग ); ० पावतणे ( ख ) ।
६. परिपंडित (क, ग ) ।
७. वातित (क, ग ) ; वाती ( ख ) ; वातिते (क्व ) ।
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णवमं ठाणं
७८३
बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, 'उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे", काम
ड्डियगणे, माणवगणे, कोडियगणे ।। भिक्खा-पदं ३०. समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णवकोडिपरिसुद्धे भिक्खे
पण्णत्ते, तं जहा–ण हणइ, ण हणावइ, हणतं णाणुजाणइ, ण पयइ, ण पया
वेति, पयंत णाणुजाणति, ण किणति, ण किणावेति, किणतं णाणुजाणति ॥ देव-पदं ३१. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो णव अग्गमहिसीओ
पण्णत्ताओ। ३२. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अग्गमहिसीणं णव पलिओवमाई ठिती
पण्णत्ता ॥ ३३. ईसाणे कप्पे उनकोसेणं देवीणं णव पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । ३४. णव देवणिकाया पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
सारस्सयमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य ।
तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥१॥ ३५. अव्वाबाहाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णता ।। ३६. "अग्गिच्चाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता । ३७. रिद्वाणं देवाणं णव देवा णव देवसया पण्णत्ता ।। ३८. णव गेवेज्ज-विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा-हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेविज्ज-विमाण
पत्थडे, हेट्रिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-उवरिम-गेविज्ज-विमाणपत्थडे, मज्झिम-हेट्ठिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-मज्झिम-गेविज्जविमाण-पत्थडे, मज्झिम - उवरिम - गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-हेट्रिमगेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-मज्झिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे, उवरिमउवरिम-गेविज्ज-विमाण-पत्थडे ।।
(ख)।
१. पलितस्सतगणे (क, ग); बलितस्सतगणे उडुवाडियगणे वेसववाडिययगणे' ।
३. कामिड्डितिगणे (क, ख, ग)। २. उद्दवातितगणे विस्सवाइतगणे (क, ख, ग); ४. पतति (क, ख, ग)।
कल्पसूत्रे (सूत्र २१३, २१४) पंचमषष्ठयो- ५. पतंतं (क, ख, ग)। गणयोर्नाम्नी किञ्चिद् भेदेन विद्येते, यथा- ६. सं० पा०-एव अगिच्चावि एव रिट्रावि ।
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७८४
ठाणं
३६. एतेसि णं णवण्हं गेविज्ज-विमाण-पत्थडाणं णव णामधिज्जा पण्णता, तं जहासंगहणी-गाहा
___ भद्दे सुभद्दे सुजाते, सोमणसे पियदरिसणे।
सुदंसणे अमोहे य, सुप्पबुद्धे जसोधरे ॥१॥ आउपरिणाम-पदं ४०. णवविहे आउपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-गतिपरिणामे, गतिबंधणपरिणामे,
ठितीपरिणामे, ठितिबंधणपरिणामे, उड्ढंगारवपरिणामे, अहेगारवपरिणामे,
तिरियंगारवपरिणामे, दीहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे ।। पडिमा-पदं ४१. णवणवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीतीए' रातिदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहि
भिक्खासतेहिं अहासुत्तं' अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्म कारणं
फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया • आराहिया यावि भवति ॥ पायच्छित्त-पदं ४२. णवविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणारिहे', 'पडिक्कमणारिहे,
तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे °, मूलारिहे,
अणवठ्ठप्पारिहे। कूड-पदं ४३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दोहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता,
__ तं जहा-- संगहणी-गाहा
सिद्धे भरहे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा ।
भरहे वेसमणे या, भरहे कूडाण णामाई ॥१॥ ४४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं णिसहे वासहरपव्वते णव कूडा
पण्णत्ता, तं जहा
१. जसेवरे (क)। २. एगासीताते (ख, ग)। ३. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आहारिया। ४. सं० पा०-आलोयणारिहे जाव मूलारिहे।
५. अत्र पद्यत्वात् नाम्नां संक्षेपो विद्यते, पूर्ण
नामानि इत्थं सन्ति-खंडग-खंडप्रपात:,
माणी-माणिभद्रः, पुण्ण-पूर्णभद्रः। ६. निसुभे (क, ग)।
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णवमं ठाणं
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सिद्धे णिसहे हरिवस, विदेह हरि' धिति असीतोया।
अवरविदेहे रुयगे, णिसहे कूडाण णामाणि ॥१॥ ४५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वते णंदणवणे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
णंदणे मंदरे चेव, णिसहे हेमवते रयय रुयए य ।
सागरचित्ते वइरे, बलकूडे चेव बोद्धव्वे ।।१।। ४६. जंबुद्दीवे दीवे मालवंतवक्खारपव्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे य मालवंते, उत्तरकुरु' कच्छ सागरे रयते ।
सीता य पुण्णणामे, हरिस्सहकूडे य बोद्धव्वे ॥१॥ ४७. जंबुद्दीवे दीवे कच्छे दोहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे कच्छे खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा ।
कच्छे वेसमणे या, कच्छे कूडाण णामाई ॥१॥ ४८. जंबुद्दीवे दीवे सुकच्छे दीहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे सुकच्छे खंडग, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा।
सुकच्छे वेसमणे या, सुकच्छे कूडाण णामाई॥१॥ ४६. एवं जाव' पोक्खलावइम्मि दीहवेयड्ढे । ५०. एवं वच्छे दीहवेयड्ढे ॥ ५१. एवं जाव" मंगलावतिम्मि दीहवेयड्ढे ।। ५२. जंबुद्दीवे दीवे विज्जुप्पभे वक्खारपव्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे अ विज्जुणामे, देवकुरा पम्ह कणग सोवत्थी।
सीओदा य सयजले, हरिकूडे चेव बोद्धव्वे ॥१॥ ५३. जंबुद्दीवे दीवे पम्हे दीहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे पम्हे खंडग, माणी वेयड्ढ" पुण्ण तिमिसगुहा ।
पम्हे वेसमणे या, पम्हे कूडाण णामाई ॥१॥ ५४. एवं चेव जाव' सलिलावतिम्मि दीहवेयड्ढे ।। ५५. एवं वप्पे दीहवेयड्ढे ।
१. आदर्शेषु 'हरि' पाठो विद्यते । जम्बूद्वीप- सम्मुखीनः आसीत्, तेन तथा व्याख्यातः ।
प्रज्ञप्तौ (वक्ष० ४) चापि 'हरि' पाठोस्ति। २. उत्तरकुरा (क, ग)। अस्या वृत्तिकारेणापि 'हरिसलिलानदीसुरीकूटं' ३. ठा० ८।६६ । उल्लिखितमस्ति । किन्तु अभयदेवसरिणा अत्र ४. ठा० ८७० । वृत्तौ 'ह्रीकूटं' इति उल्लिखितम्-'ह्रीदेवी- ५. सं० पा०-वेयड्ढ" । निवासो ह्रीकूट' सम्भवतः 'हिरि' पाठः तत् ६. ठा० ८।७१ ।
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७८६
ठाण
५६. एवं जाव' गंधिलावतिम्मि दोहवेयड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे गंधिल खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा ।
गंधिलावति वेसमणे, कूडाणं होंति णामाइं ॥१॥ एवं - सव्वेसु दोहवेयड्ढेसु दो कूडा सरिसणामगा, सेसा ते चेव ॥ ५७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णेलवंते वासहरपन्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे णेलवंते विदेहे, सीता कित्ती य णारिकता य ।
अवरविदेहे रम्मगकूडे, उवदंसणे चेव ।।१।। ५८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवते दीहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धेरवए खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा ।
एरवते वेसमणे, एरवते कूडणामाइं ॥१॥ पास-पदं ५६. पासे णं अरहा पुरिसादाणिए वज्जरिसहणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण
संठिते णव रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था ॥ तित्थगरणामणिवत्तण-पदं ६०. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तित्थंसि णवहिं जोवेहिं तित्थगरणामगोत्ते
कम्मे णिव्वत्तिते, तं जहा-सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेणं अणगारेणं,
दढाउणा, संखेणं, सतएणं', सुलसाए सावियाए, रेवतीए॥ भावितित्थगर-पदं ६१. एस णं अज्जो ! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुट्टिले, सतए
गाहावती, दारुए णियंठे", सच्चई णियंठोपुत्ते', सावियबुद्धे अंब [म्म ?] डे परिव्वायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा । आगमेस्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्म पण्णवइत्ता सिज्झिहिंति 'बुझिहिंति मुच्चिहिंति परिणिव्वाइहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति ॥
महापउम-पदं
६२. एस णं अज्जो ! सेणिए राया भिभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे
१. ठा० ८७२। २. ठा० ६।४३ । ३. सततेण (क, ख, ग)। ४. साविताते (क, ख, ग)। ५. दारुते (क, ख, ग)।
६. नितंठे (क, ख, ग)। ७. सच्चती (क, ख, ग) । ८. नितंठी (क, ख, ग)। ६. सावित ° (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-सिज्झिहिति जाव अंतं ।
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णवमं ठाणं
७८७
रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए णरए चउरासीतिवाससहस्सद्वितीयंसि णिरयंसि' णेरइयत्ताए उववज्जिहिति । से णं तत्थ णेरइए भविस्सति—काले कालोभासे' गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए ° परमकिण्हे वण्णेणं । से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं 'तिउलं' पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं। से णं ततो णरयाओ' उव्वदे॒त्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुमत्ताए पच्चायाहिति । तए णं सा भद्दा भारिया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वोतिक्कताणं सुकुमालपाणिपायं अहीण - पडिपुण्ण - पंचिंदिय-सरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंग-सुंदरंग ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं' सुरूवं दारगं पयाहिती। जं रयणिं च णं से दारए पयाहिती, तं रणि च णं सतदुवारे णगरे सब्भंतरबाहिरए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिति । तए णं तस्स दारयस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कते 'णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते ° बारसाहे" अयमेयारूवं गोण्णं गुणणिप्फणं णामधिज्ज काहिंति, जम्हा णं अम्हमिमंसि दारगंसि जातंसि समाणंसि सयदुवारे णगरे सभितरबाहिरए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे वटे, तं होउ णमम्ह मिमस्स दारगस्स णामधिज्ज महापउमे-महापउमे। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरोणामधिज्ज काहिंति महापउमेत्ति । तए णं महापउमं दारगं अम्मापितरो सातिरेगं अट्ठवासजातगं जाणित्ता महतामहता रायाभिसेएणं अभिसिंचिहिति । से णं तत्थ राया भविस्सति महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे रायवण्णओ जाव" रज्जं पसासेमाणे विहरिस्सति।
१. स्थितिषु (वृ)। २. निरयसि रइएस (क, ग); नरकेषु (वृ)। ३. सं० पा०-कालोभासे जाव परमकिण्हे । ४. स. पा०-उज्जलं जाब दुरहियासं । ५. विउलं (वृषा)। ६. णरतातो (क, ख, ग)। ७. पातं (क, ख, ग)। ८. सं० पा०-वंजण जाव सुरूवं । ह. सं० पा०-वीइक्कते जाव बारसाहे।
१०. बारसाहे दिवसे (क, ख, ग); बारसाह
दिवसे त्ति द्वादशानां पूरणो द्वादशः स एवाख्या पस्य स द्वादशाख्यः स चासौ दिवसश्चेति विग्रहः, अथवा द्वादशं च तदहश्च द्वादशाहस्तन्नामको दिवसो द्वादशाहदिवस इति (वृ); द्रष्टव्यं औपपातिक सूत्र
१४४ 'बारसाहे' पाठस्य पादटिप्पणम् । ११. ओ० सू० १४ ।
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७८८
ठाणं
तए णं तस्स महापउमस्स रण्णो अण्णदा कयाइ दो देवा महिड्डिया' 'महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला° महासोक्खा' सेणाकम्मं काहिति, तं जहा-पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य । तए णं सतदुवारे णगरे बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठिसेणावति-सत्थवाह-प्पभितयो अण्णमण्णं सद्दावेहिंति, एवं वइस्संति- जम्हा णं देवाणुप्पिया ! अम्हं महापउमस्स रण्णो दो देवा महिड्डिया' 'महज्जुइया महाणुभागा महायसा महाबला° महासोक्खा सेणाकम्मं करेति, तं जहापुण्णभद्दे य माणिभद्दे य । तं होउ णमम्हं देवाणुप्पिया ! महापउमस्स रण्णो दोच्चेवि णामधेज्जे देवसेणे-देवसेणे। तते णं तस्स महापउमस्स रण्णो दोच्चेवि णामधेज्जे भविस्सइ देवसेणेति । तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो अण्णया कयाई सेय-संखतल-विमल-सण्णिकासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पज्जिहिति । तए णं से देवसेणे राया तं सेयं संखतलविमल-सण्णिकासं चउदंतं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे सतदुवारं णगरं मझमझेणं अभिक्खणं-अभिक्खणं 'अतिज्जाहिति य णिज्जाहिति' य। तए णं सतदुवारे णगरे बहवे राईसर-तलवर'- माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठिसेणावति-सत्थवाह-प्पभितयो° अण्णमण्णं सद्दावेहिति, एवं वइस्संति - जम्हा णं देवाणप्पिया! अम्हं देवसेणस्स रण्णो सेते संखतल-विमल-सण्णिकासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पण्णे, तं होउ णमम्हं देवाणुप्पिया ! देवसेणस्स तच्चेवि णामधेज्जे विमलवाहणे-[विमलवाहणे ?] । तए णं तस्स देवसेणस्स रण्णो तच्चेवि णामधेज्जे भविस्सति विमलवाहणेति। तए णं से विमलवाहणे राया तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अम्मापितीहिं देवत्तं गतेहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भणुण्णाते समाणे, उदुमि सरए, संबुद्धे अणुत्तरे मोक्खमग्गे पुणरवि लोगतिएहिं जीयकप्पिएहिं देवेहि, ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं
१. सं० पा०-महिड्ढिया जाव महासोक्खा । २. महेसक्खा (क, ख, ग); २।२७१ सूत्रे
'महासोक्खा' इति पाठोस्ति। वृत्तिकृता 'महेसक्खा' इति पाठान्तरत्वेन उल्लिखितम् ।
अत्रापि मूलपाठे स एव उपयुज्यते । ३. सं० पा०-महिड्ढिया जाव महासोक्खा। ४. कताती (क, ख, ग)। ५. आदर्शषु अप्राप्तः 'ति' वर्णः भगवती
(१५।१७२) सूत्रानुसारेण स्वीकृतः । वृत्तिकृता एष पाठो न लब्धः तेन व्याख्यातमिदम्--क्वचिद्वर्त्तमाननिर्देशो दृश्यते स च
तत्कालापेक्षः (वृ)। ६. सं० पा०--तलवर जाव अण्णमण्णं । ७. पुणो त (क, ग)। ८. लोगंतितेहिं (क, ख, ग)।
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णवमं ठाणं
७८६
मंगलाहिं सस्सिरिआहिं वग्गूहिं अभिणंदिज्जमाणे अभिथुव्वमाणे य बहिया सुभूमिभागे उज्जाणे एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहिति । से णं भगवं जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयाहिति तं चेव दिवसं सयमेयमेतारूवं अभिग्गहं अभिगिहिहिति'-जे केइ
१. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वयाहिति । २. 'क' प्रतौ स्वीकृतपाठस्य वाचनान्तरस्य च
सम्मिश्रणं लभ्यते । वृत्तिकारेणापि वाचनान्तरस्य व्याख्या कृतास्ति, यथा-- इतो वाचनान्तरमनुश्रित्य लिख्यते । तस्स ण भगवतस्स [अत्र 'से णं भगवं' युज्यते साइरेगाई दुवालसवासाइं निच्चं वोसट्रकाए। चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिहिंति तं दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते सव्वे सम्म सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ; तए णं से भगव अणगारे भविस्सइ इरियासमिए भासासभिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-जल्लसिंघाण-पारिद्वावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबभयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे (वृपा-किन्नगंथे) निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहयहुयासणे तिव तेयसा जलंते । कसे संखे जीवे,
गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे,
विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कुंजर वसहे सीहे,
नगराया चेव सागरमखोहे । चंदे सूरे कणगे,
वसुंधरा चेव सुहुयहुए ।।२।। नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे
भविस्सइ, सेय पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं जं जं णं दिसं इच्छइ तं गं तं णं दिसं अपडि बढे सुचिभूए लहभूए अणुप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय विय [चिय?| फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे समुप्पजिहिति । तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई गति ठियं चयणं उववायं तकं मणोमाणसियं भूतं कडं परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्म अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वद्रमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणआसुराइं लोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं सणेरइए जाव पंचमहब्बयाई स भावणाई छ जीवनिकाया धम्म देसेमाणे विहरिस्सति ।
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७६०
ठाण
उवसग्गा उप्पज्जिहिंति तं जहा - दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते सव्वे सम्म 'सहिस्सइ खमिस्सइ" तितिक्खिस्सइ अहियास्सिसइ | तणं से भगवं अणगारे भविस्सति - इरियासमिते भासासमिते एवं जहा वद्धमाणसामी तं चेव णिरवसेसं जाव' अव्वावारविउसजोगजुत्ते । तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहि संवच्छरे हिं वीक्तेि हि तेरसहिय पक्खेहिं तेरसमस्स' णं संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते" केवलवरणाणदंसणे समुप्पजिहिति । जिणे भविस्सति केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सणेरइय जाव' पंच महव्वयाइं सभावणाई छच्च जीवणिकाए धम्मं देसेमाणे विहरिस्सति ।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं ऐगे आरंभठाणे पण्णत्ते । एवमेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं एवं आरंभठाणं पण्णवेहिति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा - पेज्जबंधणे य, दोसबंधणे य। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं दुविहं बंधणं पण्णवेहिति, तं जहा - पेज्जबंधणं च, दोसबंधणं च । से हाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा मणदंडे, वयदंडे, कायदंडे । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं तओ दंडे पण्णवेहिति, तं जहा - मणोदंडं, वयदंडं, कायदंडं ।
१. उप्पज्जंति (ख) 1
२. सहेज्जा खमेज्जा (क, ख, ग ) .
३. अस्य पूर्तिस्थलं अद्यावधिनोपलब्धम् । ४. तेरसगस्स (क, ग); तेरसम्मस्स ( ख ) | ५. अंतो (क, ग ) ।
६. वद्धमाणस्स ( ग ) ।
७. अस्यपूर्तिर्भावनाध्ययनस्य चूर्णिविवृतपाठस्याधारेण इत्थं जायते--- अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरितेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दद्वेणं लाघवेण खंतीए मुत्तीए सच्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फलपरिनिव्वाण - मग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स भाणंतरिया वट्टमाणस्स अणते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडणे । अंगाणि भाग १, परिशिष्ट २, आलोच्य - पाठ तथा वाचनान्तर ।
८. अस्यपूतिर्भावनाध्ययनस्य चूर्णिविवृतपाठस्याधारेण इत्थं जायते— तिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणिस्सइ पासिस्सइ, तं जहा - आगतिं गतिं ठिति चयणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भुत्तं कडं परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी, तं तं कालं मणसवयसकाइएहिं जोगेहि वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सा | तणं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुरं लोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं । अंगसुत्ताणि भाग १, परिशिष्ट २, आलोच्य पाठ तथा
वाचनान्तर ।
९. मते (क, ख, ग ) ।
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णवमं ठाणं
७६१
से जहाणामए "अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाए पण्णवेहिति, तं जहाकोहकसायं. माणकसायं, मायाकसायं. लोभकसायं। से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा-सद्दे, रूवे, गंधे, रसे, फासे। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणे पण्णवेहिति, तं जहा--सई, रूवं, गंध, रसं, फासं । से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, तं जहा–पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए°, तसकाइए। से जहाणामए' 'अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सत्त भयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा' - इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए° । एवामेव महापउमवि अरहा समणाण णिग्गथाण सत्त भयदाणे पण्णवेहिति', 'तं जहा-इहलोगभयं परलोगभयं आदाणभयं अकम्हाभयं वेयणभयं मरणभयं असिलोगभयं । एवं अट्ठ मयट्ठाणे, णव बंभचेरगुत्तीओ, दसविधे समणधम्मे, एवं जाव" तेत्तीसमासातणाउत्ति। से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावे' मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवित्तीओं पण्णत्ताओ। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावं 'मुंडभावं अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं कट्ठसेज्जं केसलोयं बंभचेरवासं परघरपवेसं लद्धावलद्धवित्ती पण्णवेहिति । से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मीसज्जाएति वा अज्झोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे
१. सं० पा०---एवमेतेणमभिलावेणं एवामेव ५. आवस्सय ४। ___ जाव तसकाइया।
६. निग्गभावे (ख)। २. सं० पा०-से जहाणामते ......। ७. लद्धावलद्धवित्ती जाव (क, ग)। ३. सं० पा०-सत्त भयढाणा पं० तं०""। ८. सं० पा०--णग्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती। ४. सं० पा०-पण्णवेहिति....।
६. लद्धावलद्धवित्ती जाव (क)।
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७६२
fe अभिडेति वा कंतारभत्तेति वा दुब्भिक्खभत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तेति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति वा फलभयति वा बीयभोयणेति वा हरियभोयणेति वा पडिसिद्धे । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मियं वा 'उद्देसियं वा मीसज्जायं वा अज्झोयरयं वा पूतियं कीतं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसद्वं अभिहडं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति ।
ठाणं
से हाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेल धम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतियं' 'सपडिक्कमणं • अचेलगं धम्मं पण्णवेहिति ।
से जहाणामए अज्जो ! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिक्खावतिए - दुवालसविधे सावगधम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुव्वतियं' 'सत्तसिक्खावतियं - दुवालसविधं • सावगधम्मं पण्णवेस्सति । से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति वा रायपिंडेति वा पडिसिद्धे । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंड वा रायपिंड वा डिसेहिस्सति ।
से जहाणामए अज्जो ! मम णव गणा एगारस गणधरा । एवामेव महापउमस्सवि अरहतो व गणा एगारस गणधरा भविस्संति ।
o
से जहाणामए अज्जो ! अहं तीसं वासाई अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता' • अगाराओ अणगारियं पव्वइए, दुवालस संवच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहि ऊणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं 'बुज्भिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं सव्वदुखाणमंतं करेस्सं । एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाई अगारवासम वसित्ता' 'मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वाहिती, दुवालस संवच्छराई" "तेरसपक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाईं तीस वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरि
१. सं० पा० - आधाकम्मितं वा जाव हरित ४. सं० पा० भवित्ता जाव पव्वतिते । भोयणं ।
५. सं० पा० - सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण । ६. सं० पा० - वसित्ता जाव पव्वाहिती ।
७. सं० पा० - संवच्छराई जाव वावत्तरिवासाई ।
२. सं० पा० – पंचमहव्वतितं जाव अचलगं । ३. सं० पा०-- पंचाणुव्वतितं जाव सावगधम्मं ।
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णवमं ठाणं
७६३
या पाउणित्ता, बावत्तरिवासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती' 'बुज्झिहिती मुच्चिहिती परिणिव्वा इहिती • सव्वदुक्खाणमंतं काहिती
०
संगहणी-नाहा
जस्सील-समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो । तस्सील-समायारो, होति उ अरहा महापउमो ॥१॥
क्खत्त-पदं
६३. णव णक्खत्ता 'चंदस्स पच्छंभागा" पण्णत्ता, तं जहासंगहणी - गाहा
अभिई समणो धणिट्ठा, रेवति अस्सिणि मग्गसि र पूसो । हत्थो चित्ता य तहा, पच्छंभागा णव हवंति ॥ १ ॥
विमाण-पदं
६४. आणत-पाणत-आरणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता ॥
कुलगर-पदं
६५. विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था 11
तित्थगर - पदं
६६. उसभेणं अरहा कोसलिएणं इमीसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडी हिं वोक्ताहिं तित्थे वत्तिते ॥
दीव - पदं
६७. घणदंत- लट्ठदंत- गूढदंत - सुद्धदंतदीवा णं दीवा णव णव जोयणसताई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
महग्गह-पदं
६८. सुक्कस्स णं महागहस्स णव वीहीओ पण्णओ, तं जहा - हयवीही", गयवीही', नागवीही, व सहवीही, गोवोही, उरगवीही", अयवीही, मियवीही, वेसाण रवीही ॥
१. सं० पा० - सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाण° । २. पच्छभागा (क); पच्छं भागा ( ख, ग ) । ३. अस्सेति ( ख ) ।
४. मिगसिरा ( ग ) ।
५. हत° ( क, ख, ग ) ।
६. गत ० ( क, ख, ग ) ।
o
७. जरगवीही (क, ख ) ; जरग्गविही ( ग ) ।
८.
मित° (क, ख, ग ) ।
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७६४
ठाणं
कम्म-पदं ६६. णवविधे णोकसायवेयणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा-इत्थिवेए', पुरिसवेए,
___णपुंसकवेए, हासे, रती, अरती, भये, सोगे, दुगुंछा ॥ कुलकोडि-पदं ७०. चउरिदियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ।। ७१. भुयगपरिसप्प-थलयर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणि
पमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ॥ पावकम्म-पदं ७२. जीवा णं णवढाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
चिणिस्संति वा, तं जहा-पुढविकाइयणिव्वत्तिते', 'आउकाइयनिव्वत्तिते, तेउकाइयणिव्वत्तिते, वाउकाइयणिव्वत्तिते, वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, बेइंदियणिव्वत्तिते, तेइंदियणिव्वत्तिते, चउरिदियणिव्वत्तिते° पंचिदियणिव्वत्तिते ।
एवं-चिण-उवचिण' 'बंध-उदीर-वेद तह ° णिज्जरा चेव ॥ पोग्गल-पदं ७३. णवपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता जाव' णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता
पण्णत्ता।
१. °वेते (क, ख, ग)। २. सं० पा०-पूढविकाइयणिव्वित्तिते
पंचिदियणिव्वत्तिते।
३. स० पा०-उवचिण जाव णिज्जरा। ४. ठा० ११२५४-२५६ ।
जाव
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दसमं ठाणं लोगट्ठिति-पदं १. दसविधा लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा
१. जण्णं जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायंति-- एवंप्पेगा' लोगट्टिती पण्णत्ता। २. जण्णं जीवाणं सया समितं पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता। ३. जण्णं जीवाणं सया समितं' मोहणिज्जे पावे कम्मे कज्जति-एवंप्पेगा लोगट्ठिती पण्णत्ता। ४. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति-एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता । ५. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं तसा पाणा वोच्छिज्जिस्संति 'थावरा पाणा भविस्संति", थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति-एवंप्पेगा लोगट्ठिती पण्णत्ता। ६. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं लोगे अलोगे भविस्सति, अलोगे वा लोगे भविस्सति–एवंप्पेगा लोगट्रिती पण्णत्ता। ७. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं लोए अलोए पविस्सति, अलोए वा लोए पविस्सति-एवंप्पेगा लोगट्टिती पण्णत्ता। ८. जाव ताव लोगे ताव ताव जीवा, 'जाव ताव' जीवा ताव ताव लोएएवंप्पेगा लोगट्टिती पण्णत्ता।
१. एवं एगा (क, ख, ग, वृपा)। २. समिते (क, ग)। ३,४. एतं (क, ख, ग)। ५. X (क्व)।
६. इह यावज्जीवास्तावत्तावल्लोको, यावति क्षेत्रे
जीवास्तावत्क्षेत्र लोक इति भावार्थः, 'जाव तावे' त्यादिवाक्यरचना तु भाषामात्रम् (वृ)।
७६५
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ठाणं
६. जाव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गतिपरियाए ताव ताव लोए, जाव ताव लोगे ताव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गतिपरियाए एवंप्पेगा लोगद्विती पण्णत्ता। १०. सव्वेसुवि णं लोगतेसु अबद्धपासपुट्ठा पोग्गला लुक्खत्ताए कज्जति, जेणं जीवा य पोग्गला य णो संचायति बहिया लोगंता गमणयाए–एवंप्पेगा लोगद्विती
पण्णत्ता॥ इंदियत्थ-पदं
२. दसविहे सद्दे पण्णत्ते, तं जहासंगह-सिलोगो
__णीहारि' पिंडिमे लुक्खे, भिण्णे जज्जरिते इ' य ।
दीहे रहस्से पुहत्ते य, काकणी खिखिणिस्सरे ॥१॥ ३. दस इंदियत्था तीता पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिसु। सब्वेणवि
एगे सद्दाइं सुणिंसु । देसेणवि एगे रूवाइं पासिंसु । सव्वेणवि एगे रूवाइं पासिंसु। "देसेणवि एगे गंधाइं जिंघिसु । सव्वेणवि एगे गंधाइं जिंघिसु। देसेणवि एगे रसाइं आसादेंसु । सव्वेणवि एगे रसाइं आसासु । देसेणवि एगे फासाइं पडिसं
वेड्स । सव्वेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेंस ॥ ४. दस इंदियत्था पडुप्पण्णा पण्णत्ता, तं जहा-देसेणवि एगे सद्दाई सुणेति ।
सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणेति । “देसेणवि एगे रूवाइं पासंति। सव्वेणवि एगे रूवाइं पासंति । देसेवि एगे गंधाइं जिघंति । सव्वेणवि एगे गंधाइं जिघंति । देसेणवि एगे रसाइं आसादेति । सव्वेण वि एगे रसाइं आसादेंति । देसेणवि एगे
फासाइं पडिसंवेदेति । सव्वेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेति ° ।। ५. दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता, तं जहा–देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति ।
सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति । “देसेणवि एगे रूवाइं पासिस्संति । सवेणवि एगे रूवाई पासिस्संति । देसेणवि एगे गंधाइ जिघिस्संति । सव्वेणवि एगे गंधाई जिघिस्संति । देसेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति । सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति । देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति । सव्वणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति ॥
१. गतिपरिताते (क, ख, ग)। २. नीहारिए (क, ग)। ३. X (क, ग)। ४. सं० पा०-एवं गंधाइं रसाइं फासाइं जाव
सव्वेणवि। ५. सं० पा०-एवं जाव फासाई। ६. सं० पा०–एवं जाव सव्वेणवि।
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दसमं ठाणं
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अच्छिण्ण-पोग्गल-चलण-पदं ६. दसहि ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेज्जा, तं जहा-आहारिज्जमाणे वा
चलेज्जा। परिणामेज्जमाणे वा चलेज्जा। उस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा । णिस्ससिज्जमाणे वा चलेज्जा । वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा। णिज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा। विउव्विज्जमाणे वा चलेज्जा। परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा।
जक्खाइटे वा चलेज्जा । वातपरिगए वा चलेज्जा ॥ कोधुप्पत्ति-पदं
दसहि ठाणेहि कोधुप्पत्ती सिया, तं जहा-मणुण्णाइं मे सद्द फरिस-रस-रूव-गंधाई अवहरिंसु । अमणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं उवहरिसु। मणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई अवहरइ। अमणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूवगंधाइं उवहरति । मणुण्णाइं मे सह-'फरिस-रस-रूव-गंधाइं० अवहरिस्सति । अमणण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई ° उवहरिस्सति । मणण्णाई मे सद्द'-'फरिस-रस-रूव ° -गंधाई अवहरिंसु वा अवहरइ वा अवहरिस्सति वा। अमणण्णाइं मे सद्द - फरिस-रस-रूव-गंधाइं° उवहरिसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा । मणुण्णामणुण्णाइं मे सद्द- फरिस-रस-रूव-गंधाइं° अवहरिसु वा अवहरति वा अवहरिस्सति वा, उवहरिंसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा । अहं च णं आयरिय-उवज्झायाणं सम्मं वट्टामि, ममं च णं आयरिय-उवज्झाया
मिच्छं विपडिवण्णा ॥ सजम-असंजम-पदं ८. दसविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा--पुढविकाइयसंजमे", 'आउकाइयसंजमे, तेउ
काइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे °, वणस्सतिकाइयसंजमे, बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे, पंचिदियसंजमे, अजीवकायसंजमे ।।
१. प्रतिषु 'वातपरिग्गहे' पाठो लभ्यते, किन्तु ३. सं० पा०---फरिस जाव गंधाई।
अर्थ समीक्षया स संगति नैति । वृत्तिव्या- ४. सं० पा०-सद्द जाव अवहरिस्सति । ख्यातः पाठोत्र समीचीनो विभाति, तेनात्र स ५. स० पा०-सद्द जाव उवहरिस्सति । एव मूले स्वीकृतः । वृत्तौ व्याख्या इत्थमस्ति- ६. सं० पा०-सद्द जाव गंधाई। "वातपरिगतो-देहगतवायुप्रेरितः वातपरिगते ७. सं० पा०—सद्द जाव उवहरिंसु । वा देहे सति बाह्यवातेन वोत्क्षिप्त इति ।" ८. सं० पा०-सद्द जाव अवहरिंसु । (वृत्तिपत्र ४४८)।
६. पडिवन्ना (क्व)। २. इह चैकवचनबहवचनयोर्न विशेषः प्राकृतत्वात् १०. सं० पा०-पुढविकातितसंजमे जाव वण
स्सति ।
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ठाणं
९. दसविधे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा --- पुढविकाइयअसंजमे, आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वणस्सतिकाइयअसंजमे', 'बेइंदियअसंजमे, इंदियअसंजमे, चउरिदियअसंजमे, पंचिदियअसंजमे, अजीवकायअसंजमे || संवर- असंवर-पदं
१०. दसविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा -सोतिंदियसंवरे', 'चक्खि दियसंवरे, घाणिदियसंवरे, जिब्भिदियसंवरे, फासिंदियसंवरे, मणसंवरे वयसंवरे कायसंवरे, उवकरणसंवरे, सूचीकुसग्गसंवरे ॥
११. दसविधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा- सोतिदियअसंवरे', 'चक्खिदियअसंवरे, घाणिदियअसंवरे, जिब्भिदिय असंवरे, फासिंदियअसंवरे, मणअसंवरे, वयअसंवरे, कायअसंवरे, उवकरणअसंवरे, सूचीकुसग्गअसंवरे ॥
७६८
अहमंत-पदं
१२. दसहि ठाणेहि अहमंतीति थंभिज्जा, तं जहा - जातिमएण वा कुलमण वा, • बलमएण वा, रूवमएण वा, तवमएण वा, सुतमएण वा, लाभमएण वा °, इस्सरियमण वा णागसुवण्णा वा मे अंतियं हव्वमागच्छंति, पुरिसधम्मातो वा मे उत्तरिए आहोधिए" णाणदंसणे समुप्पण्णे ॥
समाधि-असमाधि-पदं
१३. दसविधा समाधी पण्णत्ता, तं जहा - पाणातिवायवेरमणे, मुसावायवेरमणे, अदिण्णादाण वेरमणे, मेहुणवेरमणे, परिग्गहवेरमणे, इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, आयाण- भंड- मत्तणिक्खेवणासमिती, उच्चार- पासवणखेल-सिंघाणग- जल्ल-पारिट्ठावणिया समिती ॥
१४. दसविधा असमाधी पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवाते, 'मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहुणे, परिग्गहे, इरिया समिती', 'भासाऽसमिती, एसणाऽसमिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणाऽसमिती, उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाणग- जल्ल- पारिवाणियाsसमिती |
पव्वज्जा-पदं
१५. दसविधा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं
जहा --
१. सं० पा० - वणस्सतिकातितअसंजमे taar
|
२. सं० पा० - सोतिदियसंवरे जाव फासिंदिय । ३. सं० पा० - सोतिंदितअसंवरे जाव सूची
कुसग्ग ।
जाव
४. सं० पा०
- कुलमतेण वा जाव इस्सरिय |
५.
अबोधित ( ग ) ; अहो ° (वृ) ।
६. रितासमिती ( क ) ; इरिता ० ( ख, ग ) । ७. सं० पा०-- पाणातिवाते जाव परिग्गहे । ८. सं० पा० - इरिताऽसमिती जाव उच्चार |
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दसमं ठाणं
७६६
संगहणी-गाहा
छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविणा पडिस्सुता चेव । सारणिया रोगिणिया, अणाढिता देवसण्णत्ती ॥१॥
वच्छाणुबंधिया ॥ समणधम्म-पदं १६. दसविधे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा-खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे,
संजमे तवे, चियाए, बंभचेरवासे । वेयावच्च-पदं १७. दसविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-आयरियवेयावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे,
थेरवेयावच्चे, तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे,
गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मियवेयावच्चे ।। परिणाम-पदं १८. दसविधे जीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे', कसाय
परिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, णाणपरिणामे, सण
परिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे ।। १६. दसविधे अजीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाण
परिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फास
परिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे ॥ असज्झाइय-पदं २०. दसविधे अंतलिक्खए' असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा-उक्कावाते, दिसिदाघे,
गज्जिते, विज्जुते, णिग्घाते, जुवए, जक्खालित्ते', धूमिया, महिया, रयुग्घाते' । २१. दसविधे ओरालिए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा -- अट्ठि, मंसे, सोणिते', असुइ
सामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराए', सुरोवराए', पडणे, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे।
१. इंदित ° (क, ख, ग)।
६. रतुग्घाते (क, ख)। २. वेत° (क, ख, ग)।
७. ग्रन्थान्तरे चर्माप्यधीयते, यदाह-"सोणिय ३. अंतलिक्खिते (क, ख, ग)।
मंसं चम्म, अट्ठीवि य होति चत्तारि" (वृ)। ४. जूयते (ख)।
८. चंदोवराते (क, ख, ग)। ५. जक्खलित्तते (क); जक्खालित्तते (ख); . सूरोवराते (क, ख, ग) ।
जक्खलितिते (ग)।
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८००
ठाणं
संजम-असंजम-पदं २२. पंचिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स दसविधे संजमे कज्जति, तं जहा-सोता
मयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । सोतामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । "चक्खुमयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । घाणामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । जिब्भामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति । फासामयाओ सोक्खाओ अववरो
वेत्ता भवति ° । फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति ॥ २३. "पंचिदिया णं जीवा समारभमाणस्स दसविधे असंजमे कज्जति, तं जहा
सोतामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। सोतामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । चक्खुमयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । धाणामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । जिब्भामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति । जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति । फासामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता
भवति । फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति ॥ सुहुम-पदं २४. दस सुहुमा पण्णत्ता, तं जहा-पाणसुहुमे, पणगसुहुमे', 'बीयसुहुमे, हरितसुहुमे,
पुप्फसुहुमे, अंडसुहुमे, लेणसुहुमे °, सिणेहसुहुमे, गणियसुहुमे, भंगसुहुमे ।। महाणदी-पदं २५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं गंगा-सिंधु-महाणदीओ दस महाण
दीओ समप्पे ति, तं जहा-जउणा, सरऊ, आवी, कोसी, मही, सतर्दू, वितत्था',
विभासा, एरावती, चंदभागा ।।। २६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्ता-रत्तवतीओ महाणदीओ दस
महाणदीओ समप्पेंति, तं जहा -किण्हा, महाकिण्हा, णीला, महाणीला, महातीरा, इंदा', 'इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा°, महाभोगा' ।।
१. सं० पा०–एवं जाव फासामतेणं। २. सं० पा०—एवं असंयमो वि भाणितब्बो। ३. सं० पा० –पणगसुहमे जाव सिणेहसुहमे । ४. विवच्छा (क); विवत्था (ग)। ५. सं० पा०-इंदा जाव महाभोगा। ६. सर्वेषु प्रयुक्तादर्शेषु निम्नप्रकारः पाठो
लभ्यते-"किण्हा महाकिण्हा नीला महानीला
तीरा महातीरा इदा जाव महाभोगा।" वृत्तौ च-"एवं रक्तासूत्रमपि नवर यावत्करणात् 'इन्दसेणा वारिसेण' ति द्रष्टव्यमिति" (वृत्तिपत्र ४५४) । किन्तु पंचमस्थानसमागतपाठस्य (सू० २३२, २३३) संदर्भे नैष पाठः समीचीनो भाति, तेनास्माभिर्मूले पंचमस्थानसमागतः पाठः स्वीकृतः ।
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दसम ठाणं
यहाणी- पदं
२७. जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे दस रायहाणोओ पग्णत्ताओ, तं जहा
संगहणी - गाहा
चंपा महुरा वाणारसी य सावत्थि 'तह य" साकेत' । हत्थि उर कंपिल्लं मिहिला को संबि रायगिहं ॥ | १ ||
राय-पदं
२८. एयासु णं दससु रायहाणीसु दस रायाणो मुंडा भवेत्ता 'अगाराओ अणगारिय पव्वइया, तं जहा - भरहे, सगरें', मघवं, सणकुमारे, संती, कुंथू, अरे, महापउमे, हरिसेणे, जयणा ॥
मंदर - पदं
२९. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, धरणितले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उवरि दसजोयणसयाई विक्खभेणं, दसदसाई जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥
दिसा-पदं
३०. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए मट्ठल्ले खुडुगपतरेसु, एत्थ णं अट्टपएसिए' रुयगे पण्णत्ते, जओ णं माओ दस दिसाओ पवहंति, तं जहा -- पुरत्थिमा, पुरत्थिमदाहिणा, दाहिणा, दाहिणपच्चत्थिमा, पच्चत्थिमा, पच्चत्थिमुत्तरा, उत्तरा, उत्तरपुरत्थिमा, उड्डा, अहा ।
३१. एतासि णं दण्हं दिसाणं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा
संग्रहणी - गाहा
इंदा अग्गेइ जम्मा य, णेरती वारुणी य वायव्वा । सोमा
लवण समुद्द-पदं
३२. लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयणसहस्साइं गोतित्थविहरिते खेत्ते पण्णत्ते ॥ ३३. लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयणसहस्साइं उदगमाले पण्णत्ते ॥
१. चंपं ( ग ) ।
२. चंद त ( ग ) ।
ईसाणी य, विमलाय तमा य बोद्धव्वा ॥ १॥
३. सातेतं (क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० - भवेत्ता जाव पव्वतिता ।
८०१
५. सागरी ( ख ) ।
६. ० पते सिते (क, ख, ग ) ।
७. अग्गीयी ( ख ) ।
o
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८०२
पायाल - पदं
३४. सव्वेवि णं महापाताला दसदसाइं जोयणसहस्साइं उव्वेहेणं पण्णत्ता, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ता, बहुमज्झदेस भागे एगपएसियाए सेढीए दसदसाई जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ता, उवरि मुहमूले दस जोयणसहसाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता । तेसि णं महापातालाणं कुड्डा सव्ववइरामया सव्वत्थ समा दस जोयणसयाइं बाहल्लेणं पण्णत्ता ॥
३५. सव्वेवि णं खुद्दा पाताला दस जोयणसताई उव्वेहेणं पण्णत्ता, मूले दसदसाई जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता, बहुमज्भदेसभागे एगपएसियाए सेढीए दस जोय सताइं विक्खंभेणं पण्णत्ता, उवरि मुहमूले दसदसाइं जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । तेसि णं खुड्डापातालाणं कुड्डा सव्ववइरामया सव्वत्थ समा दस जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ता ॥
पव्वय-पदं
३६. धायइसंडगा णं मंदरा दसजोयणसयाई उव्वेहेणं, धरणीतले देसूणाई दस जोयणसहस्साइं विक्खभेणं, उवरिं दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ||
३७. पुक्खरवरदीवड्डगाणं मंदरा दस जोयणसयाई उब्वेहेणं, एवं चेव || ३८. सव्वेविणं वट्टवेयड्ढपव्वता दस जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाई उव्वेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता, दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
खेत्त-पदं
३६. जंबुद्दीवे दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा - भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवस्से, पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा ॥
ठाणं
पव्यय-पदं
४०. माणुसुत्तरे णं पव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४१. सव्वेविणं अंजण-पव्वता दस जोयणसयाई उब्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उवरि दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
४२. सव्वेवि णं दहिमुहपव्वता दस जोयणसताई उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठिता,' दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
४३. सव्वेविणं रतिकरपव्वता दस जोयणसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, दसगाउयसताई उब्वेहेणं, सव्वत्थ समा झल्लरिसंठिता, दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं
पण्णत्ता ॥
१. खुद्दापोताला ( ग ) ।
२, ३. संठाणसठिता (क्व) ।
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दसमं ठाणं
८०३
४४. रुयगवरे णं पव्वते दस जोयणसयाई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई
विक्खंभेणं. उरि दस जोयणसताइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४५. एवं कुंडलवरेवि ॥ दवियाणुओग-पदं ४६. दसविहे दवियाणुओगे पण्णत्ते, तं जहा-दवियाणुओगे, माउयाणुओगे,
एगट्ठियाणुओगे, करणाणुओगे, अप्पितणप्पिते', भाविताभाविते, बाहिराबाहिरे,
सासतासासते, तहणाणे, अतहणाणे ।। उप्पातपव्वय-पदं ४७. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिछिकडे उप्पातपव्वते मूले दस
बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४८. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो सोमप्पभे
उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं,
मूले दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ४६. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारण्णो जमप्पभे
उप्पातपव्वते एवं चेव ।। ५०. एवं वरुणस्सवि ।। ५१. एवं वेसमणस्सवि ।। ५२. बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिदे उप्पातपव्व
बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ५३. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्स
लोगपालाणं तं चेव बलिस्सवि" ॥ ५४. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो धरणप्पभे उप्पातपव्वते दस
जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसताई
विक्खंभेणं ।। ५५. धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो कालवालस्स महारण्णो काल
वालप्पभे उप्पातपव्वते जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं एवं चेव ॥
१. अप्पिणप्पिते (क)। २. तेगिच्छि ° (क)। ३. ओव्वे° (क)। ४. द्रष्टव्यम्-ठा० ४।१२२ ।
५. ठा० १०१८४-५१ । ६. महाकालप्पभे (क, ख, ग); आदर्शषु
'महाकालप्पभ' पाठो लभ्यते, किन्तु 'सव्वेसि उप्पायपव्वया भाणियव्वा सरिनामगा'
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८०४
ठाणं
५६. एवं जाव' संखवालस्स ।। ५७. एवं भूताणंदस्सवि॥ ५८. एवं लोगपालाणवि से, जहा धरणस्स ॥ ५६. एवं जाव' थणितकुमाराणं सलोगपालाणं' भाणियव्वं, सव्वेसि उप्पायपव्वया
भाणियव्वा सरिणामगा। ६०. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सक्कप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसहस्साई
उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई
विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ६१. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो। जधा सक्कस्स तधा
सव्वेसि लोगपालाणं, सव्वेसिं च इंदाणं जाव अच्चुयत्ति । सव्वेसि पमाणमेगं ।। ओगाहणा-पदं ६२. बायरवणस्सइकाइयाणं उक्कोसेणं दस जोयणसयाइं सरीरोगाहणा पण्णत्ता॥ ६३. जलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं दस जोयणसताइं सरीरोगाहणा
पण्णता॥ ६४. उरपरिसप्प-थलचर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं "दस जोयण
सताइं सरीरोगाहणा पण्णत्ता ॥ तित्थगर-पदं ६५. संभवाओ णं अरहातो अभिणंदणे अरहा दसहि सागरोवमकोडिसतसहस्सेहि
वीतिक्कतेहिं समुप्पण्णे ॥ अणंत-पदं ६६. दसविहे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा –णामाणंतए ठवणाणंतए, दवाणंतए,
गणणाणंतए, पएसाणंतए, एगतोणतए, दुहतोणंतए, देसवित्थाराणंतए,
सव्ववित्थाराणंतए सासताणंतए । पुव्ववत्थु-पदं ६७. उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता । ६८. अत्थिणत्थिप्पवायपुव्वस्स" णं दस चूलवत्थू पण्णत्ता ।
इति नियामकपाठेन 'कालवालप्पभ' इति ५. द्रष्टव्यम्-ठा० ४।१२२ । पाठो युज्यते । वृत्तौ कालवालस्य कालवाल- ६. सरिसणामगा (क्व)। प्रभः' इत्युल्लिखितमस्ति । एतत् समी- ७. द्रष्टव्यम् ठा० ४।१२२ ।
क्षयास्माभिः 'कालवालप्पभ' पाठः स्वीकृतः। ८. ठा० २।३८०-३८४ । १. ठा० ४।१२२ ।
६. सं० पा०-एवं चेव । २. ठा० १०॥५४ ।
१०. अणंतते (क, ख, ग)। ३. लोगपालाणंपि (क, ख, ग)।
११. ०प्पवात (क, ख, ग)। ४. ठा० १११४४-१५० ।
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दसमं ठाणं
डिसेवणा-पदं
६६. दसविहा पडि सेवणा पण्णत्ता, तं
संगहणी - गाहा
जहा
दप्प पमायणाभोगे, आउरे आवतीसु य । संकिते
सहसक्कारे, भयप्पओसा य वीमंसा ॥ १ ॥
आलोयणा-पदं
७०. दस आलोयणादोसा पण्णत्ता, तं जहा
आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता, जं दिट्ठ बायरं च सुहुमं वा । छष्णं सद्दाउलगं, बहुजण अव्वत्त तस्सेवी ॥ १ ॥
७१. दसहि ठाणेहिं संपण्णे अणगारे अरिहति अत्तदोसमालोएत्तए, तं जहाजाइ संपणे, कुलसंपण्णे, "विणयसंपण्णे, णाणसंपण्णे, दंसणसंपण्णे, चरितसंपण्णे, ° खंते, दंते, अमायी', अपच्छाणुतावी ॥
७२. दसहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, तं जहा -- आयारखं, आहारवं', ववहारखं, ओवोलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, णिज्जावए, अवायसी, पियधम्मे दधमे ॥
o
पायच्छित्त-पदं
७३. दसविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा - आलोयणारिहे", "पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउसग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे, मूलारिहे", अणवट्टप्पारि, पारंचियारिहे ||
मिच्छत्त-पदं
७४. दसविधे मिच्छत्ते पण्णत्ते, तं जहा - अधम्मे धम्मसण्णा, धम्मे अधम्मसण्णा, उमग्गे' मग्गसणा, मग्गे उम्मग्गसण्णा, अजीवेसु जीवसण्णा, जीवेसु अजीवसण्णा,
१. सं० पा० - एवं जधा अट्ठट्ठाणे जाव खंते । २. अमाती (क, ख, ग ) ।
३. अवहारवं ( ख, ग, वृ); ८११८ सूत्रे 'आधारखं' पाठो विद्यते । भगवत्या ( २५ । ५५४) मपि 'आहारव' पाठो लभ्यते । अष्टमस्थानेपि वृत्तिकारेणास्यार्थः 'अवधारणावान्' कृतः अत्रापि स एवार्थः कृतोस्ति । भगवतीवृत्तावपि एष एवार्थोस्ति । अत्र 'आधारवान्'
८०५
इत्यर्थोभिप्रेतोस्ति, तेन 'आधा [हा] रवं' इत्येव पाठः समीचीनः प्रतिभाति । सं० पा० - आहारवं जाव अवातदंसी । ४. वित° ( क ) ; पित ° ( ख, ग ) । ५. सं० पा०--- आलोयणारिहे जाव अणवट्टप्पारिहे ।
६. अमग्गे ( ख ) ।
७. अमग्गसण्णा (वृ) ।
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८०६
ठाणं
असाहुसु साहुसण्णा, साहुसु असाहुसण्णा, अमुत्तेसु मुत्तसण्णा, मुत्तेसु
अमुत्तसण्णा ॥ तित्थगर-पदं ७५. चंदप्पभे णं अरहा दस पुव्वसतसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ०प्पहीणे ।। ७६. धम्मे णं अरहा दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख पहीणे ।। ७७. णमी णं अरहा दस वाससहस्साइं सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। वासुदेव-पदं ७८. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता छट्ठीए तमाए
पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे ॥ तित्थगर-पदं ७६. मी णं अरहा दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस य वाससयाइं सव्वाउयं पालइत्ता ___ सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख प्पहीणे ॥
वासुदेव-पदं
८०. कण्हे णं वासुदेवे दस धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस य वाससयाइं सव्वाउयं
पालइत्ता तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे ।। भवणवासि-पदं ८१. दसविहा भवणवासी देवा पण्णत्ता, तं जहा–असुरकुमारा जाव' थणियकुमारा॥ ८२. एएसि णं दसविधाणं भवणवासीणं देवाणं दस चेइयरुक्खा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
अस्सत्थ सत्तिवण्णे, सामलि उंबर सिरीस दहिवण्णे।
लास-वग्घा', तते य कणियाररुक्खे ॥१॥
१,२,३. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे ।
शब्दोत्र उपयूक्तोस्ति। पाइयसद्दमहण्णवे ४. वाससहस्साइं (क, ख, ग)।
'व्याघ्र' शब्दस्य वृक्षवाचि अर्थद्वयं विद्यते५. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे।
रक्तएरण्ड का पेड़, करंज का पेड़। ६. ठा० ११४३-१५० ।
आप्टेमहोदयस्य संस्कृतइंगलिशशब्दकोषे ७. असत्थ (ख); अस्सत्त (ग)।
'व्याघ्र' शब्दस्यार्थः रक्तएरण्डवृक्षः कृतोस्ति५. द्वयोरादर्शयोः मुद्रितपुस्तकेषु च 'वप्पा, 'The red variety of the castor. Oil
वप्पो, वप्पे' इति पाठा लभ्यन्ते । किन्तु 'वप्र' plant. शब्दस्य वृक्षवाचित्वं नोपलभ्यते । 'वग्ध' ६. कणितार ° (क,ख, ग)।
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दसमं ठाणं
८०७
सोक्ख-पदं ८३. दसविधे सोक्खे पण्णत्ते, तं जहा
आरोग्ग दीहमाउं, अड्ढेज्जं काम भोग संतोसे।
अत्थि सुहभोग णिक्खम्ममेव तत्तो अणावाहे ॥१॥ उवधात-विसोहि-पदं ८४. दसविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा-उग्गमोवघाते, उप्पायणोवधाते, "एसणो
वघाते, परिकम्मोवघाते°, परिहरणोवघाते, णाणोवघाते, दंसणोवघाते,
चरित्तोवघाते, अचियत्तोवघाते, सारक्खणोवघाते ।। ८५. दसविधा विसोही पण्णत्ता, तं जहा-उग्गमविसोही, उप्पायणविसोही', 'एसण
विसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही, णाणविसोही, दसणविसोही,
चरित्तविसोही, अचियत्तविसोही , सारक्खणविसोही । संकिलेस-असंकिलेस-पदं ८६. दसविधे संकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-उवहिसंकिलेसे, उवस्सयसंकिलेसे, कसाय
संकिलेसे, भत्तपाणसंकिलेसे, मणसंकिलेसे, वइसंकिलेसे, कायसंकिलेसे, णाण
संकिलेसे, दंसणसंकिलेसे, चरित्तसंकिलेसे ।।। ८७. दसविहे असंकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा-उव हिअसंकिलेसे', 'उवस्सयअसंकिलेसे,
कसायअसंकिलेसे, भत्तपाणअसंकिलेसे, मणअसंकिलेसे, वइअसंकिलेसे, काय
असंकिलेसे, णाणअसंकिलेसे, दंसणअसंकिलेसे°, चरित्तअसंकिलेसे ॥ बल-पदं ८८. दसविधे बले पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदियबले', 'चक्खिदियबले, घाणिदियबले,
जिभिदियबले °, फासिदियबले, णाणबले, दंसणबले, चरित्तबले, तवबले,
वीरियबले ॥ भासा-पदं ८६. दसविहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहासंगहणी-गाहा
जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमे ओवम्मसच्चे य॥१॥
१. सं० पा०-जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोव- ३. सं० पा०-उवहिअसंकिलेसे जाव चरित्त । घाते।
४. सं.पा०-सोतिदितबले जाव फासिदित २. सं० पा०-उप्पायणविसोही जाव सारक्ख- बले।
णविसोही।
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८०८
ठाणं
६०. दसविधे मोसे पण्णत्ते, तं जहा
कोधे माणे माया, लोभे पिज्जे तहेव दोसे य।
हास भए अक्खाइय, उवघात णिस्सिते दसमे ॥१॥ ६१. दसविधे सच्चामोसे पण्णत्ते, तं जहा-उप्पण्णमीसए, विगतमीसए, उप्पण्ण
विगतमीसए, जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजीवमीसए, अणंतमीसए, परित्त
मीसए, अद्धामीसए, अद्धद्धामीसए॥ दिट्ठिवाय-पदं ६२. दिट्टिवायस्स णं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-दिट्टिवाएति वा, हेउवाएति
वा, भूयवाएति वा, तच्चावाएति वा, सम्मावाएति वा, धम्मावाएति वा, भासाविजएति वा, पुव्वगतेति वा, अणुजोगगतेति वा, सव्वपाणभूतजीवसत्त
सुहावहेति वा ॥ सत्थपदं ६३. दसविधे सत्थे पण्णत्ते, तं जहासंगह-सिलोगो
सत्थमग्गी विसं लोणं, सिणेहो खारमंबिलं ।
दुप्पउत्तो मणो वाया, काओ भावो य अविरती ॥१॥ दोस-पदं १४. दसविहे दोसे पण्णत्ते, तं जहा
तज्जातदोसे मतिभंगदोसे, पसत्थारदोसे परिहरणदोसे ।
सलक्खण-कारण-हेउदोसे, संकामणं णिग्गह-वत्थुदोसे ।।१।। विसेस-पदं ६५. दसविधे विसेसे पण्णत्ते, तं जहा
वत्थु तज्जातदोसे य, दोसे एगट्ठिएति य। कारण य पडुप्पण्णे, दोसे णिच्चेहिय अट्ठमे ।।
अत्तणा' उवणीते' य, विसेसेति य ते दस ॥१॥ सुद्धवायाणुओग-पदं ६६. दसविधे सुद्धवायाणुओगे पण्णत्ते, तं जहा-'चंकारे, मंकारे, पिंकारे", सेयंकारे, एगत्ते, पुधत्ते', संजू हे, संकामिते, भिण्णे ।।
४. चकारे मिकारे पिकारे (ख, ग)। २. 'अत्तण' त्ति आत्मना कृतमिति शेषः (वृ)। ५. सुद्धन्ने (क); सुधन्ने (ग)। ३. उपनीत-प्रापितं परेणेति शेषः (वृ)।
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दसमं ठाणं
८०६
दाण-पदं
१७. दसविहे दाणे पण्णत्ते, तं जहासंगह-सिलोगो
अणुकंपा संगहे चेव, भये कालुणिएति य । लज्जाए गारवेणं च, अहम्मे उण सत्तमे ।।
धम्मे य अट्ठमे वुत्ते, काहीति य कतंति य ।।१।। गति-पदं १८. दसविधा गती पण्णत्ता, तं जहा–णिरयगती, णिरयविग्गहगती, तिरियगती,
तिरियविग्गहगती, "मणुयगती, मणुयविग्गहगती, देवगती, देवविग्गहगती,
सिद्धिगती, सिद्धिविग्गहगती ॥ मुंड-पदं ह. दस मुंडा पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियमुंडे', 'चक्खिदियमुंडे, घाणिदियमंडे,
जिभिदियमुंडे , फासिंदियमुंडे, कोहमुंडे', 'माणमुंडे मायामुंडे ° लोभमुंडे,
सिरमुंडे ॥ संखाण-पदं १००. दसविधे संखाणे पण्णत्ते, तं जहासंगहणी-गाहा
परिकम्मं ववहारो, रज्जू रासी कला-सवण्णे य । जावंतावति वग्गो, घण्णो य तह वग्गवग्गोवि ॥१॥
कप्पो य० ॥ १०१. दसविधे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा
अणागयमतिक्कतं, कोडीसहियं णियंटितं चेव । सागारमणागारं, परिमाणकडं णिरवसेसं ॥
संकेयगं चेव अद्धाए, पच्चक्खाणं दसविहं तु ॥१॥ सामायारी-पदं १०२. दसविहा सामायारी पण्णत्ता, तं जहा
१. सं० पा०-एवं जाव सिद्धिगती।
दितमुंडे जाव फासिंदित ° । २. सोतिदित° (क, ख, ग); सं० पा०–सोति- ३. सं० पा०-कोहमुंडे जाव लोभमंडे ।
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८१०
ठाणं
संगह-सिलोगो
इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया' य णिसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य णिमंतणा ॥
उवसंपया य काले, सामायारी' दसविहा उ ।।१।। महावीर-सुमिण-पदं १०३. समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे
पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा१. एगं च णं 'महं घोररूवदित्तधरं" तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे । २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइल' सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं भुयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ८. एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । ६. एगं च णं महं हरि-वेरुलिय-वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । १०. एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उरि सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं समिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समजेणं भगवता महावीरेणं मोहणिज्जे कम्मे मूलओ उग्घाइते । २. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं 'पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सुक्कज्झाणोवगए विहरइ।
१. आवस्सिती (क)। २. सामायारी भवे (क, ग)। ३. महाघोररूवदित्तधरं (क, ख, ग, वृ)। ४. पूस० (क, ख, ग)।
५. उम्मीसहस्स ° (वृपा)। ६. एगेण (वृ); एग (वृपा)। ७. सं० पा.----सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे।
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दसमं ठाणं
११
३. जणं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं' 'पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे ससमय-परसमयियं चित्तविचित्तं दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पण्णवेति परूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति, तं जहा-आयार', 'सूयगड, ठाणं, समवायं, विवा [आ ? ]हपण्णत्ति, णायधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाई, विवागसुयं ° दिट्ठिवायं ।। ४. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणा' 'मयं सुमिणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे दुविहं धम्म पण्णवेति, तं जहा-अगारधम्म च, अणगारधम्म च । ५. जण्णं समणे भगवं महावोरे एगं च ण महं सेत गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं° पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स चाउव्वण्णाइण्णे संघ, तं जहा-समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ। ६. जण्णं समणे भगवं महावोरे एगं च णं महं पउमसर' 'सव्वओ समंता कुसमित सुमिणे पासित्ता ण° पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे चउविहे देवे पण्णवेति, तं जहा-भवणवासी, वाणमंतरे, जोइसिए, वेमाणिए। ७. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सागरं उम्मी-वोची - सहस्सकलितं भयाहिं तिण्णं सुमिणे पासित्ता ण° पडिबुद्धे, तं णं समणेणं भगवता महावीरेणं अणादिए अणवदग्गे दीहमद्धे चाउरते संसारकंतारे तिण्णे । ८. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दिणयरं 'तेयसा जलंत समिणे पासित्ता णं पडिबुद्ध, तण्णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अणते अणत्तरे' •णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे ° समुप्पण्ण । १. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं हरि-वेरुलिय" 'वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणुसुत्तरं पव्वतं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सदेवमणुयासुर लोगे उराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगा परिगुव्वंति"-इति खलु समणे भगव महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे।
१. सं० पा०-चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे । ८. सं० पा०-दिणयरं जाव पडिबुद्धे । २. सं० पा०-आयारं जाव दिद्विवायं । ६. सं० पा०-अणुत्तरे जाव समुप्पण्णे । ३. सं० पा०-सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे । १०.२० पा०-हरिवेरुलित जाव परिबुद्धे । ४. सं० पा०-सुमिणे जाव पडिबुद्धे । ११. परिब्भमंति(वृपा);परिभमंति(भ० १६।६१); ५. सं० पा०-पउमसरं जाव पडिबुद्धे । 'परिगुव्वंति' परिगुप्यन्ति व्याकुलीभवन्ति ६. सं० पा०-उम्मीवीची जाव पडिबुद्धे । सतत भ्रमन्तीत्यर्थः, अथवा परिगूयन्ते७. अणातीते (क, ख, ग)।
गूधातोः शब्दार्थत्वात् संशब्द्यते (वृ)।
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८१२
रुचि - पदं
१०४. दसविधे सरागसम्मदंसणे पण्णत्ते, तं जहासंग्रहणी - गाहा
0
१०. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उवरि' 'सीहासणवरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धे, तण्णं समणे भगवं महावीरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगते केवलिपण्णत्तं धम्मं आघवेति पण्णवेत्ति रूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति ॥
सिग्गुवसरुई,
आणारुई सुत्तबीयरुइ मेव । अभिगम वित्थाररुई, किरिया संखेव धम्मरुई || १ ||
सण्णा-पदं
१०५. दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा', 'माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, 'लोगसण्णा,
ओहसण्णा' ।।
१०६.
रइयाणं दस सण्णाओ एवं चेव ।
१०७. एवं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ॥
aaणा-पदं
ठाणं
१०८. रइया णं दसविधं वेयणं पञ्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा - सीतं, उसिणं, खुधं पिवास, कंडु, परज्भं, भयं, सोगं, जरं, वाहि ॥
छउमत्थ- केवलि-पदं
१०६. दस ठाणाई छउमत्थे' सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति तं जहा - धम्मत्थिकार्य", "अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद, गंध, वातं, 'अयं जिणे भविस्सति वाण वा भविस्सति', अयं सव्वदुक्खामंत करेस्सति वा ण वा करेस्सति ।
१. सं० पा० उर्वारि जाव पडिबुद्धे । २. सं० पा० पण्णवेति जाव उवदंसेति । ३. ० वतेसरुती ( क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० - आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा । ५. कोव° (ग); सं० पा० - कोहसण्णा जाव लोभसण्णा ।
६. ओघसण्णा लोगसण्णा (वृ); लोगसण्णा ओघ
ताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा" " जिणे केवलो सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा -- धम्मत्थिकायं अधम्मत्थिकार्य आगासत्थिकायं, जीवं असरीर
(T
७ ठा० १।१४२-१६३ ।
८. छउमत्थे ण (क, ख, ग ) ।
६. सं० पा० - धम्मत्थिगातं जाव वातं । १०. अजिणा भविस्संति वा ण भविस्सति ( ग ) । ११. सं० पा० - अरहा जाव अयं ।
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दसमं ठाणं
८१३
पडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंध, वातं, अयं जिणे भविस्सति वाण वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा ण वा करेस्सति ॥
दसा-पदं
११०. दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोववाइयदसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ ||
१११. कम्मविवागदसाणं दस अज्भयणा पण्णत्ता, तं जहा
संग्रह - सिलोगो
अंडे सगडेति यावरे |
सोरिए' य उदुंबरे ॥ कुमारे लेच्छई इति ॥ १ ॥ ११२. उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - आणंदे कामदेवे आ, गाहावतिचूलणीपिता । सुरादेवे चुल्लसतए, गाहावतिकुंडको लिए | सद्दालपुत्ते महासतए, मंदिणीपिया लेइयापिता ॥ १ ॥ ११३. अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
मि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव । जमाली य भगाली य, किंकसे चिल्लए' ति य ॥ फाले अंबडपुत्ते य एमेते दस आहिता ॥ १ ॥
मियापुत्ते य गोत्तासे, माहणे दिसेणे, सहसुद्दा हे आमलए,
१. सूरिते ( क, ख, ग ) ।
२. सालितियापिता ( क ग ); सालेतितापिता (ख); हस्तलिखितवृत्तौ 'लेइकापितृ० ' इत्यपि लभ्यते - लेइयापियत्ति लेयिकापितृनाम्नः श्रावस्तीनिवासिनो गृहमेधिनो भगवतो बोधिलाभिनोऽनंतरं तथैव सौधर्म्मगामिनो वक्तव्यतानिबद्धं लेयिका पितृनामकं दसममिति । तदाधारेणसौ पाठः स्वीकृतोस्ति । 'उवा सगदसाओ' सूत्रेपि 'लेइयापिता' पाठः स्वीकृतोस्ति, यथा — एवं खलु जम्बू | समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
आणंदे कामदेवे य, गाहावति चुलणीपिता । सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावतिकुंडकोलिए । सद्दालपुत्ते महासतए,
नंदिणीपिया लेइयापिता । ( उवसगदाओ १।६) ।
३. समणगुत्ते ( क ) । ४. किंकम्मे (क्व ) । ५. पिल्लते ( ख ) ।
६. फले (क, ग ); काले ( ख ) । ७. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र -- एतानि च नमीत्यादिकान्यन्तकृतसाधुनामानि अन्तकृद्दशाङ्गप्रथमवर्गेध्ययनसंग्रहे नोपलभ्यते, यतस्तत्राभिधीयते
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८१४
ठाणं
११४. अणुत्तरोववातियदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
इसिदासे य धण्णे य, सुणक्खत्ते कातिए ति य । संठाणे सालिभद्दे य, आणंदे तेतली ति य ।।
दसण्णभद्दे अतिमुत्ते, एमेते दस आहिया ॥१॥ ११५. आयारदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं
सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्ठविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमाओ, बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं
मोहणिज्जट्ठाणा, आजाइट्ठाणं । ११६. पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -उवमा, संखा, इसिभा
सियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासिआई, खोमगपसिणाई, 'कोमलपसिणाइं, अद्दागपसिणाई", अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई।
"गोयम समुद्द सागर,
'इसिदासे' त्यादि, तत्र तु दृश्यतेगंभीरे चेव होइ थिमिए य ।
धन्ने य सुनक्खत्ते, इसिदासे य आहिए। अयले कंपिल्ले खलु, अक्खोभ पसेणई विण्हू ॥"
पेल्लए रामपुत्ते य, चंदिमा पोट्टिके इय ॥१॥ ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति संभावयामः,
पेढालपुत्ते अणगारे, अणगारे पोट्टिले इय । न जन्मान्तरनामापेक्षयतानि भविष्यन्तीति
विहल्ले दसमे वुत्ते, एमे ए दस आहिया ॥२॥ वाच्यं, जन्मान्तराणां तत्रानभिधीयमानत्वादिति
तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग
उक्तो न पुनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति (वृत्ति (वृत्ति पत्र ४८३); तत्त्वार्थराजवार्तिके अन्त
पत्र ४८३); तत्त्वार्थराजवातिके अनुत्तरोकृतदशाया अध्ययनानां नामानि इत्थं
पपातिकदशाया अध्ययनानां नामानि इत्थं सन्ति-संसारस्यान्तः कृतो यैस्तेन्तकृतः
सन्ति-''अनुत्तरेष्वौपपादिका अनुत्तरोपनमिमतंगसोमिलरामपूत्रसूदर्शनयमलीकबली
पादिकाः ऋषिदासधन्यसुनक्षत्रकातिकनन्दनकनिष्कंबलपालांबष्ठपुत्रा इत्येते दस वर्धमान
दनशालिभद्रअभयवारिषेणचिलातपुत्रा इत्येते तीर्थकरतीर्थे" (तत्त्वार्थराजवार्तिक १।२०)। दस वर्धमानतीर्थकरतीर्थे (तत्त्वार्थराजवातिक एषु कानिचिद् नामानि सदृशानि कानिचिच्च २०); ० कार्तिकेयानन्दनन्दन (षट्खण्डाभिन्नानि । अत्र भेदो लिपिकारणेन स्यादथवा गमधवलावृति १।१।२)। वाचनान्तरापेक्षया। स्थानाङ्गवत्तिकारेण ३. अजाइ° (क, ग)। अज्जाइ° (ख)। 'वाचनान्तरापेक्षाणि इमानि'-इति लिखितम् । ४. खोमाग° (ख)। तत्त्वार्थराजवातिके इमानि लभ्यन्ते । दिग- ५. अद्दागपसिणाई कोमलपसिणाई (क)।
म्बरपरंपरैव वाचनान्तरमत्र विवक्षितम् ? ६. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र–प्रश्नव्याकरणदशा १. संठाण (क, ग)।
इहोक्तरूपा न दृश्यन्ते दृश्यमानस्तु पञ्चाश्रव२. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र-इह च त्रयो वर्गा
पञ्चसंवरात्मिका इति इहोक्तानां तूपमादी• स्तत्र तृतीयवर्गे दृश्यमानाध्ययनैः कैश्चित्
नामध्ययनानामक्षरार्थः प्रतीयमान एवेति सह साम्यमस्ति न सवः, यत इहोक्तम्- (वृत्ति पत्र ४८५)।
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दसमं ठाणं
११७.
बंध साणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा --
बंधे य मोक्खे य देवढि, दसारमंडलेवि' य ।
आयरियविपडिवत्ती, उवज्झायविप्पडिवत्ती, भावणा, विमुक्त्ती, सातो',
कम्मे ॥
११८. दोगेद्धिदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा --वाए, विवाए, उववाते, सुखेत्ते, सिणे, बायाली सुमिणा, तीसं महासुमिणा, बावर्त्तारं सव्वसुमिणा, हरे रामगुत्ते य, एमेते दस आहिता ॥
११६. दीहदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
८१५
चंदे सूरे य सुक्के य, सिरिदेवी पभावती । दीवस मुद्दोववत्ती बहूपुत्ती मंदरेति थेरे संभूतिविजए य, थेरे पम्ह ऊसासणीसासें ॥१॥
य ॥
१२०. संखेवियदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - खुड्डिया विमाणपविभत्तो, महल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाते, 'वरुणोववाते, गरुलोववाते", वेलंधरोववाते, वेसमणोववाते ॥ कालचक्क - पदं
१२१. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणीए ॥
१२२. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणीए ||
अनंतर परंपर-उववण्णादि-पदं
१२३. दसविधा णेरड्या पण्णत्ता, तं जहा- अनंत रोववण्णा, परंपरोववण्णा, अनंतरावगाढा, परंपरावगाढा, अणंतराहारगा, परंपराहारगा, अणंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जत्ता, चरिमा, अचरिमा ।
एवं णिरंतरं जाव" वेमाणिया ||
१. ० मंडलेति ( ग ) । २. सासते ( ख ) ।
३. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र - बन्धदशानामपि बन्धाद्यध्ययनानि श्रौतेनार्थेन व्याख्यातव्यानि ( वृत्ति पत्र ४८५) ।
४. वृत्तिकारेण संसूचिमत्र - द्विगृद्धिदशाश्च स्वरूपतोप्यनवसिताः (वृत्ति पत्र ४८५) । ५. वृत्तिकारेण संसूचितमत्र – दीर्घदशाः स्वरूपतोऽनवगता एव तदध्ययनानि तु कानिचिन्न
कावलिकाश्रुतस्कन्धे उपलभ्यन्ते ( वृत्ति पत्र ४८५)।
६. आयारचूलिता ( क ) ; अंगारचूलिया ( ग ) । ७. वंग (क, ग ) ।
o
८. गरुलोववाते वरुणोववाए ( क, ख, ग ) । ९. वृत्तिकारण संसूचितमत्र-संक्षेपिकदशा अप्यनवगतस्वरूपा एव ( वृत्ति पत्र ४८६ ) । १०. ठा० १।१४२-१६३ ।
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ठाणं
णरय-पदं १२४. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस णिरयावाससतसहस्सा पण्णत्ता ॥ ठिति-पदं १२५. रयणप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ।। १२६. चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती
पण्णत्ता। १२७. पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती
पण्णत्ता ।। १२८. असुरकुमाराणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। एवं जाव' थणिय
कुमाराणं ।। १२६. बायरवणस्सतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता॥ १३०. वाणमंतराणं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता ।। १३१. बंभलोगे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं दस सागरोवमाइंठिती पण्णत्ता ।। १३२. लंतए कप्पे देवाणं जहण्णेणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता ।। भाविभद्दत्त-पदं १३३. दसहि ठाणेहिं जीवा आगमेसिभद्दत्ताए' कम्मं पगरेंति, तं जहा-अणिदाणताए,
दिट्रिसंपण्णताए, जोगवाहिताए', खंतिखमणताए, जितिदियताए, अमाइल्ल
ताए, अपासत्थताए, सुसामण्णताए, पवयणवच्छल्लताए, पवयणउब्भावणताए ।। आसंसप्पओग-पदं १३४. दसविहे आसंसप्पओगे पण्णत्ते, तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे,
दूहओलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामासंसप्पओगे,
भोगासंसप्पओगे, लाभासंसप्पओगे, पूयासंसप्पओगे, सक्कारासंसप्पओगे ॥ धम्म-पदं १३५. दसविधे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-गामधम्मे, णगरधम्मे, रदुधम्मे, पासंडधम्मे,
कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे ॥ थेर-पदं १३६. दस थेरा पण्णत्ता, तं जहा—गामथेरा, णगरथेरा, रटुथेरा, पसत्थथेरा,
कुलथेरा, गणथेरा, संघथेरा, जातिथेरा, सुअथेरा, परियायथेरा॥ १. ठा० १११४३-१५०।
४. अत्थिगातधम्मे (क, ख, ग)। २. भद्दगताए (क, ग)।
५. पत्थारथेरा (क); पासत्थेरा थेरथेरा (ग); ३. जोगवाहियत्ताते (क, ग); जोगवाहित्ताते पसत्थारथेरा (क्व) । (ख)।
६. परिताग° (क, ख, ग)।
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दसमं ठाणं
८१७
पुत्त-पदं
१३७. दस पुत्ता पण्णत्ता, तं जहा–अत्तए, खेत्तए, दिण्णए, विण्णए, उरसे, मोहरे,
___ सोंडोरे', संवुड्ढे, उवयाइते, धम्मंतेवासी ।। अणुत्तर-पदं १३८. केवलिस्स णं दस अणुत्तरा पण्णत्ता, तं जहा-अणुत्तरे णाणे, अणुत्तरे दंसणे,
अणुत्तरे चरित्ते, अणुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए, अणुत्तरा खंती, अणुत्तरा मुत्ती,
अणुत्तरे अज्जवे, अणुत्तरे मद्दवे, अणुत्तरे लाघवे ।। कुरा-पदं १३६. समयखेत्ते णं दस कुराओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंच देवकुराओ पंच
उत्तरकुराओ। तत्थ णं दस महतिमहालया महादुमा पण्णता, तं जहा -जम्बू सुदंसणा, धायइरुक्खे, महाधायइरुक्खे, प उमरुकवे, महाप उमरुक्खे, पंच कूडसामलीओ। तत्थ णं दस देवा महिड्डिया जाव' परिवसंति, तं जहा-अणाढिते जंबुद्दीवा
धिपती, सुदंसणे, पियदंसणे, पोंडरीए, महापोंडरीए, पंच गरुला वेणुदेवा ।। दुस्समा-लक्खण-पदं १४०. दसहि ठाणेहि ओगाढं दुस्सम जाणेज्जा, तं जहा-अकाले वरिसइ, काले ण
वरिसइ, असाहू पूइज्जति, साहू ण पूइज्जति, गुरुसु जणो मिच्छं पडिवण्णो, अमणुण्णा सद्दा', 'अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा,
अमणुण्णा ° फासा॥ सुसमा-लक्खण-पदं १४१. दसहि ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा-अकाले ण वरिसति, "काले
वरिसति, असाहू ण पूइज्जति, साहू पूइज्जति, गुरुसु जणो सम्म पडिवणो,
मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा,° मणुण्णा फासा ।। रुक्ख-पदं १४२. सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, तं जहा
१. सोडीरे (क, ख, ग)। २. उववातिते (ग)। ३. ठा० २।२७१ । ४, साहु (ग)।
५. सं० पा०-अमणुण्णा सद्दा जाव फासा । ६. सं० पा०-तं चेव विवरीत जाव मणुण्णा
फासा।
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८१८
ठाणं
संगहणी-गाहा
मतंगया' य भिंगा', तुडितंगा दीव जोति चित्तंगा'। चित्तरसा मणियंगा, गेहागारा अणियणा य ॥१॥
कुलगर-पदं
१४३. जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा हुत्था, तं जहासंगहणी-गाहा
सयंजले सयाऊ य, अणंतसेणे य अजितसेणे य । कक्कसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥१।।
दढरहे दसरहे, सयरहे ॥ १४४. जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमीसाए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति,
तं जहा-सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमुती, पडिसुते, दढधणू, दसधणू, सतधणू ॥
१. मत्तंगता (क, ग); द्रष्टव्यम्-७।६५ पाद- मुद्रितप्रती 'कज्जसेणे' तथा हस्तलिखिताटिप्पणम् ।
दर्शषु 'कक्कसेणे' पाठोस्ति । प्रतीयते २. सिंगा (क)।
स्थानाङ्ग समवायाङ्ग 'च' 'अजियसेणे' ३. चितंगा (ख)।
'कक्कसेणे' पाठ आसीत् किन्तु लिपिदोषेण ४. सयज्जले (क, ग)।
पाठविपर्ययो जातः । ५. अतितसेणे (क, ग); स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ ६. तक्कसेणे (क, ग)।
(आगमोदयसमिति पत्र ५१८ सूत्रांक ७. समवायाङ्ग (पइण्णगसमवाय सू० २१७) ७३७) चतुर्थकुलकरस्य नाम 'अमितसेणे' नाम्नां क्रमो भिन्नोस्तिविद्यते । किन्तु पाठशोधनप्रयुक्तयोः 'क' सयंजले सयाऊ य, अजियसेणे अणंतसेणे य । 'ग' प्रत्योः 'ख' प्रतौ च क्रमश; 'अतितसेणे' कक्कसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ।। 'अजितसेणे' पाठो विद्यते। समवायाङ्ग दढरहे दसरहे सतरहे। (श्रोष्ठि माणेकलाल चुन्नीलाल श्रेष्ठि ८. अगामी॰ (ग)। कान्तिलाल चुन्नीलाल द्वारा प्रकाशित पत्र ६. समवायाङ्ग (पइण्णगसमवाय सू० २५०) १३६ सूत्रांक १५७) तृतीयकुलकरस्य नाम नाम्नां क्रमो भिन्नोस्ति'अजितसेणे' विद्यते। पाठशोधनप्रयुक्तयोः विमलवाहणे सीमंकरे, 'क' 'ख' प्रत्योरपि एष एव पाठोस्ति ।
सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे। स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ पञ्चमकुलकरस्य दढधणू दसधणू, - नाम 'तक्कसेणे' विद्यते । 'क' 'ग' प्रत्योरपि
सयधणू पडिसूई संमुइ त्ति ॥ एष एव पाठो लभ्यते। समवायाङ्गस्य
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दसम ठाणं
८१६
वक्खारपव्वय-पदं १४५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सीताए महाणईए उभओकूले दस
वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे', 'णलिणकूडे,
एगसेले, तिकूडे, वेसमणकडे, अंजणे, मायंजणे, ° सोमणसे ।। १४६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महाणईए उभओकूले
दस वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-विज्जुप्पभे', 'अंकावतो, पम्हावतो,
आसीविसे, सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपन्वते, णागपव्वते, देवपव्वते °, गंधमायणे ।। १४७. एवं धायइसंडपुरथिमद्धेवि' वक्खारा भाणियवा जाव' पुक्खरवर
दीवड्डपच्चत्थिमद्धे ।। कप्प-पदं १४८. दस कप्पा इंदाहिद्विया पण्णता, तं जहा-सोहम्में', 'ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे,
बंभलोए, लंतए, महासुक्के,° सहस्सारे, पाणते, अच्चुते ।। १४६. एतेसु णं दससु कप्पेसु दस इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सक्के, ईसाणे', 'सणंकुमारे,
माहिदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे, पाणते °, अच्चुते ॥ १५०. एतेसि णं दसण्हं इंदाणं दस परिजाणिया विमाणा" पण्णत्ता, तं जहा–पालए,
पुप्फए', 'सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे °
विमलवरे, सव्वतोभद्दे ॥ पडिमा-पदं १५१. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेण रातिदियसतेणं अद्धछटेहि य भिक्खासतेहि
अहासुत्तं 'अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्म काएणं फासिया
पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया° आराहिया यावि भवति ।। जीव-पदं १५२. दसविधा संसारसमवण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमयएगिदिया,
अपढमसमयएगिदिया, ११ पढमसमयबेइंदिया, अपढमसमयबेइंदिया, पढमसमयतेइंदिया, अपढमसमयतेइंदिया, पढमसमयचउरिदिया, अपढमसमयचरिदिया, पढमसमयपंचिदिया, अपढमसमयपंचिदिया ।।
१. बंभकूडे (क, ख, ग); सं० पा०.. -पम्हकूडे ६. सं० पा०-ईसाणे जाव अच्चुते । जाव सोमणसे ।
७. जाणविमाणा (वृ); विमाणा (वृपा)। २. सं० पा०-विज्जूप्पभे जाव गंधमातणे । ८. सं० पा०--पुप्फए जाव विमलवरे । ३. ठा० १०.१४५,१४६ ।
६. भिक्खायतेहिं (ख)। ४. ठा० ३१०८।
१०. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया । ५. सं० पा०-सोहम्मे जाव सहस्सारे । ११. सं० पा०-- एवं जाव अपढमसमयपंचिंदिता।
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८२०
ठाणं
१५३. दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया', 'आउकाइया, तेउकाइया,
वाउकाइया,° वणस्सइकाइया, बेदिया', 'तेइंदिया, चउरिदिया, पंचेंदिया, अणिदिया। अहवा--दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया', 'पढमसमयतिरिया, अपढमसमयतिरिया, पढमसमयमणया, अपढमसमयमणुया, पढमसमयदेवा °, अपढमसमयदेवा, पढमसमय
सिद्धा, अपढमसमयसिद्धा ।। सताउय-दसा-पदं १५४. वाससताउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंगह-सिलोगो
बाला किड्डा मंदा, बला पण्णा हायणी।
पवंचा पब्भारा, मुम्मुही सायणी तधा ॥१॥ तणवणस्सइ-पदं १५५. दसविधा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा--मूले, कंदे', 'खंधे, तया, साले,
पवाले, पत्ते °, पुप्फे, फले, बीये । सेढि-पदं १५६. सव्वाओवि णं विज्जाहरसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥ १५७. सव्वाओवि णं आभिओगसेढीओ दस-दस जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। गेविज्जग-पदं १५८. गेविज्जगविमाणा णं दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ तेयसा भासकरण-पदं १५६. दसहिं ठाणेहिं सह तेयसा भासं कुज्जा, तं जहा
१. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते
१. सं० पा०-पूढविकाइया जाव वणस्सइका
इया। २. सं० पा० -बेदिता जाव पंचेंदिता। ३. सं० पा०-अपढमसमयणेरतिता जाव
अपढ़मसमयदेवा । ४. बंभारा (ग)। ५. द्रष्टव्यम्- दशवकालिकनियुक्ति १० :
बाला किड्डा मंदा बला
य पन्ना य हायणि पवंचा पब्भार मम्मुही सायणी
य दसमा उकालदसा ।।१०॥ ६. सं० पा०-कंदे जाव पुप्फे । ७. तेतसा (क, ख, ग)। ८. कति (ग)।
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दसमं ठाण
८२१ समाणे परिकुविते तस्स तेयं णिसि रेज्जा । से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। २. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । से तं परितावेति, से तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कूज्जा। ३. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते समाणे परिकविते देवेवि य परिकूविते ते दहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा। ते तं परिताति, ते तं परितावेत्ता तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ४. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा', से य अच्चासातिते [समाणे ?] परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति', ते फोडा भिज्जति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ५. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे?] देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ६. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ? ] परिकुविए देवेवि य परिकुविए ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा। तत्थ फोडा संमुच्छंति, "ते फोडा भिज्जति, ते फोडा भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ७. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ?] परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा। तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ८. "केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ?] देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुला भिज्जति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा। ६. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा, से य अच्चासातिते [समाणे ? ] परिकुविए देवेवि य परिकुविए ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं
१. तेतं (क, ख, ग)। २. 'तामेव' ति तमेव ..."दीर्घत्वं प्राकृतत्वात
(वृ)। ३. परिकुन्विते (क, ग)। ४. तं (क, ख)।
५. अच्चासाएज्जा (क, ख, ग)। ६. समुप्पज्जंति (वृ)। ७. सं० पा...- सेसं तहेव जाव भासं। ८. सं० पा०-एते तिण्णि आलावगा भाणि
तव्वा
।
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८२२
णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छंति, ते पुलाभिज्जंति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । १०. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेमाणे तेयं णिसिरेज्जा, से य तत्थ णो कम्मति, णो पकम्मति, अंचिअंचियं करेति, करेत्ता आयाहिणपयाहिणं करोति, करेत्ता उड्ढं वेहासं उप्पतति, उप्पतेत्ता से णं ततो पsिहते पडिणियत्तति, पडिणियत्तित्ता तमेव सरीरंगं अणुदहमाणे- अणुदहमाणे सह तेयसा भासं कुज्जा -- जहा वा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेतेए || अच्छे रग-पदं
१६०. दस अच्छेरगा पण्णत्ता, तं जहा
संग्रहणी - गाहा
कण्हस्स अवरकंका, हरिवंस कुलुप्पत्ती, अस्संजतेसु पूआ,
उवसग्ग गब्भहरणं, इत्थीतित्थं अभाविया परिसा । उत्तरणं चंदसूराणं ॥१॥ चमरुप्पातो य अट्ठसयसिद्धा । दसवि अणतेण कालेन ||२||
कंड-पदं
१६१. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणे कंडे' दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १६२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे' दस जोयणसताइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १६३. एवं वेरुलिए, लोहितक्खे, मसारगल्ले, हंसगब्भे, पुलए, सोगंधिए, जोतिरसे, अंजणे, अंजणपुलए, रतयं, जातरूवे, अंके, फलिहे, रिट्ठे । जहा रयणे तहा सोलसविधा भाणितव्वा ॥
उव्वेह-पदं
१६४. सव्वेवि णं दीव-समुद्दा दस जोयणसताई उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥ १६५ सव्वेवि णं महादहा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥ १६६. सव्वेवि णं सलिलकुंडा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता ||
१६७. सीता-सीतोया णं महाणईओ मुहमूले दस-दस जोयणाई उब्वेहेणं पण्णत्ताओ ।। णक्खत्त-पदं
१६८. कत्तियाणक्खत्ते सव्वबाहिराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति ॥ १६९. अणुराधाणक्खत्ते सव्वब्भंतराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरति ॥ णाणविद्धिकर-पदं
१७०. दस णक्खत्ता णाणस्स विद्धिकरा पण्णत्ता, तं जहा
१. अच्च अच्चि (क); अचि अचि ( ग ) । २. कंदे (क, ग) ।
ठाण
३. वतिरे (क, ख, ग ) । ४. कंदे (क, ग) ।
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दसमं ठाणं
८२३
संगहणी-गाहा
मिगसिरमद्दा पुस्सो, तिण्णि य पुव्वाइं मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता य तहा, दस विद्धिकराई' णाणस्स ॥१॥
कुलकोडि-पदं
१७१. चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह
सतसहस्सा पण्णत्ता॥ १७२. उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह
सतसहस्सा पण्णत्ता॥ पावकम्म-पदं १७३. जीवा णं दसठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा
चिणिस्संति वा, तं जहा-पढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए', 'अपढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए, पढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, पढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, पढमसमयचरिदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयचरिदियणि व्वत्तिए, पढमसमयपंचिदियणि व्वत्तिए, अपढमसमय पंचिदियणिव्वत्तिए।
एवं- चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १७४. दसपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता ॥ १७५. दसपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ १७६. दससमयठितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता । १७७. दसगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। १७८. एवं वण्णेहि गंधेहि रसेहिं फासेहिं दसगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।।
ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर १६५४४८ अनुष्टुप् श्लोक ५१७०, अक्षर ८
१. वुद्धिकराई (क, ग); विडिकराई (ख)। २. सं० पा०-पढमसमयएगिदिणिव्वत्तिए जाव
पंचिंदियणिव्वत्तिए; पाठसंशोधनप्रयुक्तादर्शषु 'जाव फासिदितनिव्वत्तिते' इति पाठो लभ्यते, किन्तु वृत्तौ नैष व्याख्यातोस्ति,
नास्यार्थोप्यत्र घटते । तेन प्रतीयते लिपिप्रमादोसो जातः । अस्य स्थाने 'जाव पचिदियणिव्वत्तिए'। समतठितीता (क, ख, ग)।
३.
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समवायो
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पढमो समवाओ १. सुयं मे आउस ! तेणं भगवया एवमक्खायं
'इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावएणं' तिण्णेणं तारएणं बुद्धणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वष्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपावि उकामेणं इमे दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णत्ते, तं जहा-आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विवा[आ ? ] हपन्नत्ती नायधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुए दिट्ठिवाए । तत्थ णं जे से चउत्थे अंगे समवाएत्ति आहिते, तस्स णं अयमद्वे, तं जहा'२
एगे आया ॥ ५. एगे अणाया॥ ६. एगे दंडे ॥ ७. एगे अदंडे । ८. एगा किरिआ॥ ६. एगा अकिरिआ ॥ १०. एगे लोए॥
mi
१. जाणएणं (क)। २. कस्याञ्चिद् वाचनायामपरमपि सम्बन्धसूत्र-
मुपलभ्यते 'इह खलु समणेणं भगवया... अयमढे, तंजहा' (वृ) ।
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८२८
समवाओ
११. एगे अलोए । १२. एगे धम्मे॥ १३. एगे अधम्मे॥ १४. एगे पुण्णे ॥ १५. एगे पावे ॥ १६. एगे बंधे। १७. एगे मोक्खे ।। १८. एगे आसवे ।। १६. एगे संवरे ॥ २०. एगा वेयणा ॥ २१. एगा णिज्जरा॥ २२. जंबुद्दीवे दोवे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २३. अप्पइट्ठाणे नरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २४. पालए जाणविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २५. सव्वदसिद्धे महाविमाणे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २६. अद्दानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २७. चित्तानक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २८. सातिनक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते ।। २६. 'इमोसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई
पण्णत्ता॥ ३०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई
पण्णत्ता ।। ३१. दोच्चाए णं पुढवोए नेरइयाणं जहन्नेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ॥ ३२. असुरकुमाराणं 'देवाणं अत्थेगइयाणं" एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता ।। ३३. असुरकुमाराणं देवाणं उक्कोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ।। ३४. असुरकुमारिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं
ठिई पण्णत्ता ॥ ३५. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अत्थेगइयाणं एगं
पलिओवमं ठिई पण्णत्ता॥
१. अपुण्णे (क)। २. चक्कवालविक्खंभेणं (क, ग, वृपा)। ३. इमीसे (क, ग); हस्तलिखितवृत्तौ 'इमीसेणं'
पाठोस्ति मद्रितवृत्तौ 'इमीसे' इति विद्यते । ४. अत्थेगइयाणं देवाणं (क, ख, ग)।
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बीओ समवाओ
८२६
३६. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियसण्णि मणयाणं अत्थेगइयाणं एगं पलिओवमं
ठिई पण्णत्ता ॥ ३७. वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एग पलिओवमं ठिई पण्णत्ता॥ ३८. जोइसियाणं देवाणं उक्कोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई
पण्णत्ता ॥ ३६. सोहम्मे कप्पे देवाणं जहन्लेणं एग पलिओवमं ठिई पण्णत्ता ।। ४०. सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता ।। ४१. ईसाणे कप्पे 'देवाणं जहण्णेणं साइरेगं एग पलिओवम ठिई पण्णत्ता ।। ४२. ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता॥ ४३. जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंतं भवं' मणुं माणसोत्तरं लोगहियं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । ४४. ते णं देवा एगस्स अद्धमासस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ ४५. तेसि णं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारट्टे समुपज्जइ॥ ४६. संतेगइया भवसिद्धिया 'जीवा, जे एगेणं भवग्गहणणं सिज्झिस्सति बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
बीओ समवाओ १. दो दंडा पण्णत्ता, तं जहा–अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव ।। २. दुवे रासी पण्णत्ता, तं जहा—जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव ।। ३. दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा–रागबंधणे चेव, दोसबंधणे चेव ।। ४. पुव्वाफग्गुणीनक्खत्ते दुतारे' पण्णत्ते ॥ ५. उत्तराफग्गुणीनक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते । ६. पुव्वाभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ७. उत्तराभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पण्णत्ते ।। ८. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। ६. दुच्चाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
१. जहणेणं देवाणं (क, ख, ग)। २. भुवं (ग)। ३. ते जीवा जे एगेण (क)। ४. रोसबंधणे (क)।
५. पुव्व ° (क)। ६. दुत्तारे (ख, ग)। ७. उत्तर° (ग)। ८. पुढवीए णं (क)
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समवाओ
१०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ११. असुरिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं देवाणं उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ॥ असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचेंदियतिरिक्खजोणिआणं अत्थेगइयाणं दो पलिओव
माई ठिई पण्णत्ता। १३. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियसण्णिमणुस्साणं अत्थेगइयाणं दो पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ १४. सोहम्मे कप्पे अत्थगइयाणं देवाणं दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. ईसाणे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६. सोहम्मे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १७. ईसाणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साहियाइं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १८. सणंकुमारे कप्पे देवाणं जहण्णेणं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १९. माहिंदे कप्पे देवाणं जहण्णेणं साहियाइं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २०. जे देवा सुभं सुभकंतं सुभवणं सुभगंधं सुभलेसं सुभफासं सोहम्मवडेंसगं
विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। २१. ते णं देवा दोण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा॥ २२. तेसि णं देवाणं दोहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुपज्जइ ॥ २३. अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे दोहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
तइओ समवाओ १. तओ दंडा पण्णत्ता, तं जहा–मणदंडे व इदंडे कायदंडे ।। २. तओ गुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती ।। ३. तओ सल्ला पण्णत्ता, तं जहा-मायासल्ले णं नियाणसल्ले णं मिच्छादसण
सल्ले णं॥ ४. तओ गारवा पण्णत्ता, तं जहा -इड्डीगारवे रसगारवे सायागारवे ।। ५. तओ विराहणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-नाणविराहणा दंसणविराहणा चरित्तविराहणा ॥ मिगसिरनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।।
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तइओ समवाओ
८३१
७. पुस्सनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। ८. जेट्टानक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। ६. अभीइनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ १०. सवणनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ ११. असिणिनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ १२. भरणीनक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ।। १३. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं तिण्णि पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ १४. दोच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १५. तच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं तिण्णि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।। १७. असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओव
माई ठिई पण्णत्ता ।। १८. असंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियसण्णिमणुस्साणं' उक्कोसेणं तिण्णि पलिओव
माइं ठिई पण्णत्ता॥ १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ २०. सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तिणि सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ जे देवा आभंकरं पभंकरं आभंकरपभंकरं चंदं चंदावत्तं चंदप्पभं चंदकंतं चंदवणं चंदलेसं चंदज्झयं चंदसिंगं चंदसिटुं चंदकूडं चंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ २२. ते णं देवा तिण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीस
संति वा॥ २३. तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिहिं वाससहस्से हिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। २४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तिहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।।
१. पुस्से (क); पुक्ख ° (ग)।
सूवानुसारेण, 'गब्भवक्कंतिय' पाठात् परतो २. समण ° (क, ग); सवणे° (ख)।
युज्यते । तेनात्र तथा स्वीकृतः । ३. अत्र सर्वासु प्रतिषु 'सण्णि' शब्द: 'गब्भवक्कं- ४. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
तिय' पाठात् पूर्वं लभ्यते, किन्तु (१।३६)
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८३२
समवाओ
चउत्थो समवाओ १. चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए माणकसाए मायाकसाए
लोभकसाए । २. चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा अट्टे झाणे रोद्दे झाणे धम्मे झाणे सुक्के झाणे॥ ३. चत्तारि विगहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इत्थिकहा भत्तकहा रायकहा देसकहा ।। ४. चत्तारि सण्णा पण्णत्ता, तं जहा-आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गह
सण्णा ॥
चउविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा- पगडिबंधे ठिइबंधे 'अणुभावबंधे पएसबंधे" ॥ ६. चउगाउए जोयणे पण्णत्ते । ७. अणुराहानक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ।। ८. पूव्वासाढनक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ।। ६. उत्तरासाढनक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते ॥ १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ ११. तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता॥ १४. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ १५. जे देवा किट्टि सुकिदि किट्ठियावत्तं किढिप्पभं किट्टिकंत किट्ठिवण्णं किट्ठिलेसं
किट्ठिज्झयं किट्ठिसिंगं किट्ठिसिटुं किटिकूडं किठ्ठत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६. ते णं देवा चउण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा। १७. तेसि देवाणं चउहि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १८. अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चउहि भवग्गणेहि सिज्झिस्संति 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
१. अणुभाग० (क, ख)।
वन्तीति (वृत्ति पत्र ६) वृत्तिगतोल्लेखेन 'कंत' २. पएसबंधे अणुभागबंधे (ग)।
इति पाठः स्वीकृतः। व ग. कष्टिसकष्टयादीनि ४. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण " द्वादशविमानानि पूर्वोक्तविमाननामानुसार
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पंचमो समवाओ
पंचमो समवाओ
१. पंच किरिया पण्णत्ता, तं जहा–काइया अहिगरणिया पाउसिआ पारियावणिआ
पाणाइवायकिरिया ॥ २. पंच महव्वया पण्णत्ता, तं जहा:-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ
मुसावायाओ' 'वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ
वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।। ३. पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा -सद्दा रूवा रसा गंधा फासा ॥ ४. पंच आसवदारा पण्णत्ता, त जहा -मिच्छत्तं अविरई 'पमाया कसाया' जोगा। ५. पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा सम्मत्तं विरई अप्पमाया' अकसाया'
अजोगा। ६. पंच निज्जरढाणा' पण्णता, तं जहा-पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ
वेरमणं, अदिन्न दाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिगहाओ वेरमणं ।। ७. पंच समिईओ पण्णत्ताओ, तं जहा–इरियासमिई भासासमिई एसणासमिई
आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिद्वा
वणियासमिई॥ ८. पंच अत्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा --धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थि
काए जीवत्थिकाए पोग्गलत्थिकाए ।। ६. रोहिणीनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १० पुणव्वसुनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते॥ ११. हत्थनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १२. विसाहानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १३. धणिट्ठानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ।। १४. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं पंच पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता। १५. तच्चाए णं पुढवीए अत्येगइया नेरइयाणं पंच सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्यंगइयाण पंच पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
१. सं० पा०-मुसावायाओ जाव सव्वाओ। २. पडि० (ग)। ३. पमाए कसाए (क, ग)। ४. अप्पमाए (क); अप्पमादो (ग)। ५. अकसाए (क); अकसायया (ख, ग)।
६. अजोगया (ग)। ७. निज्जराट्ठाणा (ग)। ८. हत्थे° (ग)। ६. X (क, ख, ग)।
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८३४
समवाओ
१७. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पंच पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १८. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पंच सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १६. जे देवा वायं सुवायं वातावत्तं वातप्पभं वातकंतं वातवणं वातलेसं वातज्झयं
वातसिंगं वातसिटुं वातकूडं वाउत्तरवडेंसगं सूरं सुसूरं सूरावत्तं सूरप्पभं सूरकंतं सूरवण्णं सूरलेसं सूरज्झयं सूरसिंगं सूरसिटुं सूरकूडं सूरुत्तरवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पंच सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ २०. ते णं देवा पंचण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा।। २१. तेसि णं देवाणं पंचहि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। २२. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पंचहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ।।
छ8ो समवायो १. छल्लेसा पण्णत्ता, तं जहा - कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा
सुक्कलेसा॥ २. छज्जीवनिकाया पण्णत्ता, तं जहा-पुढवीकाए' आउकाए तेउकाए वाउकाए
वणस्सइकाए तसकाए । ३. छविहे बाहिरे तवोकम्मे पण्णत्ते, तं जहा-अणसणे ओमोदरिया' वित्ति
संखेवो रसपरिच्चाओ कायकिलेसो' संलीणया ॥ ४. छव्विहे अभिंतरे तवोकम्मे पण्णत्ते, तं जहा-पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं
सज्झाओ भाणं उस्सग्गो।। ५. छ छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्धाए
मारणंतियसमुग्घाए वेउब्वियसमुग्घाए तेयसमुग्घाए आहारसमुग्घाए । ६. छविहे अत्थुग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियअत्थुग्गहे चक्खिदियअत्थुग्गहे
घाणिदियअत्थुग्गहे जिभिदियअत्थुग्गहे फासिंदियअत्थुग्गहे नोइंदिय
अत्थुग्गहे ॥ ७. कत्तियानक्खत्ते छतारे पण्णत्ते । ८. असिलेसानक्खत्ते छतारे पण्णत्ते ।।
१. सं० पा०—सिज्झिस्संति जाव अंत। २. °काइया (ग)। ३. उनोदरिया (ग)। ४. वित्ती° (ख, ग)।
५. कायकिलेसं (क)। ६. अंतरए (क)। ७. तेया ° (क, ख)।
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सत्तमो समवाओ
८३५
६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छ पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १०. तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं छ पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १२.
सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं छ पलिओवमाइं ठिई पण्णता।। १३. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं छ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १४. जे देवा सयंभु सयभुरमणं घोसं सुघोसं महाघोसं किट्ठिधोसं वीरं सुवीरं वीर
गतं वीरसेणियं वीरावत्तं वीरप्पमं वीरकंत वीरवण्णं वीरलेसं वीरभयं वीरसिंगं वीरसिटुं वीरकूडं वीरुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं उक्कोसेणं छ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. ते णं देवा छण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमति वा ऊससंति वा नीससंति
वा॥ १६. तेसि णं देवाणं छहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जई ॥ १७. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे छहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
सत्तमो समवाओ
१. सत्त भयट्ठाणा पण्णत्ता, जहा—इहलोगभए परलोगभए आदाणभए अकम्हा__ भए आजीवभए मरणभए असिलोगभए । २. सत्त समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्घाए मारणंतिय
समुग्धाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयसमुग्घाए' आहारसमुग्घाए केवलिसमग्याए । ३. समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।।। ४. सत्त' वासहरपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-चुल्लहिमवंते महाहिमवंते निसढे नील
वंते रुप्पी सिहरो मंदरे ॥ ५. सत्त* वासा पण्णत्ता, तं जहा -भरहे हेमवते हरिवासे महाविदेहे रम्मए हेरण्ण
वते' एरवए ॥ ६. खीणमोहे णं भगवं मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ वेएई॥ ७. महानक्खते सत्ततारे पण्णत्ते ।।
१. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ५. एरण्णवए (क्व)। २. तेया (क, ख)।
६. एरावते (क, ग)। ३,४, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे सत्त (क्व) ।
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८३६
८. 'कत्तिआइया सत्त नक्खत्ता पुव्वदारिआ पण्णत्ता" ॥ महाझ्या सत्त नक्खत्ता दाहिणदारिआ पण्णत्ता ॥
ε.
१०. अणुराहाइया सत्त नक्खत्ता अवरदारिआ पण्णत्ता ॥
११. धणिट्टाइया सत्त नक्खत्ता उत्तरदारिआ पण्णत्ता ॥
१२. इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं सत्त पलिओ माई
ठिई पण्णत्ता ॥
१३. तच्चाए णं पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. चउत्थीए णं पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १५. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्त पलिओ माई ठिई पण्णत्ता || १६. सोहम्मोसाणे कप्पे सु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्त पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १७. सणकुमारे कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
समवाओ
१८. माहिदे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १६. बंभलोए कप्पे देवाणं जहणेणं' सत्त सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
२०. जे देवा समं समप्पभं महापभं पभासं भासुरं विमलं कंचणकूडं सणकुमारवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ||
२१. ते णं देवा सत्तहं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊसरांति वा नीससंति वा ।।
२२. तेसि णं देवाणं सत्तहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ॥
२३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्भिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्सति ॥
.
१. ख, ग प्रत्योः पाठान्तरेण 'अभियाइया [ अभिईया ] सत्त नक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता' मूलपाठेप्यसौ पाठभेदो लभ्यते । अभिजिदादीनि सप्त नक्षत्राणि पूर्वद्वारिकाणि - पूर्वदिशि येषु गच्छतः शुभं भवति, एवमश्विन्यादीनि दक्षिणद्वारिकाणि पुष्यादीन्यपरद्वारि काणि स्वात्यादीन्युत्तरद्वारिकाणीति सिद्धान्तमतमिह तु मतान्तरमाश्रित्य कृतिकादीनि सप्त सप्त पूर्वद्वारिकादीनि भणितानि चन्द्र
प्रज्ञप्तौ तु बहुतराणि मतानि दर्शितानीहार्थ इति (वृ) |
२. जहन्नेणं साहियं ( ग ); प्रज्ञापनायाञ्चतुर्थपदे सप्तसागरोपमाणामेव स्थितिः प्रतिपादितास्ति तेन 'साहियं' अशुद्ध प्रतिभाति 1 ३. भासर (क, ग ) । ४. जेणं (क, ख, ग ) ।
५. सं० पा० - सिज्भिस्संति जाव अंत ।
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अट्ठमो समवाओ
अट्टमो समवायो
१. अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा–जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए
सुयमए लाभमए इस्सरियमए॥ २. अट्ट पवयणमायाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-इरियासमिई भासासमिई
एसणासमिई आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणजल्ल-पारिढावणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती॥ वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ कडसामली णं गरुलावासे अट्ट जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।।
'जंबहीवस्स णं जगई अट्र जोयणाई उडढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ ७. अट्ठसामइए' केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते, तं जहा-पढमे समए दंडं करेइ, बीए
समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ, पंचमे समए मंथंतराइं पडिसाहरइ, छ? समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, तत्तो पच्छा सरीरत्थे भवइ॥ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा
सुंभे य सुंभघोसे य, वसिटे बंभयारि य ।
सोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इ य ॥१॥ ६. अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धि पमई जोगं जोएंति, तं जहा-कत्तिया रोहिणी
पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणुराहा जेट्ठा ।। १०. इमीसे णं रणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। ११. च उत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ट पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ट पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ' सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १५. जे देवा अच्चि अच्चिमालि वइरोयणं पभंकरं चंदाभं सूराभं सुपइट्टाभं अग्गि
च्चाभं रिट्ठाभं अरुणाभं अरुणुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
३. अ सुरवरे (क); सिरिवरे(ख); सिरिदरे (ग)।
१. जम्बुद्दीवियाणं (क)। २. समतिए (क, ख)।
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समवाओ
१६. ते णं देवा अट्टहं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा ॥
१७. तेसि णं देवाणं अट्ठहिं वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ॥
१८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ॥
१.
२.
नवमी समवाओ
नव बंभचेरगुत्तीओ, तं जहा
नो इत्थी -सु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ ।
नो इत्थी कहं कहित्ता भवइ ।
इत्थी ठाणाई' सेवित्ता भवइ ।
इत्थी इंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्भाइत्ता भवइ । नो पणीयरसभोई भवइ ।
न पाणभोयणस्स अतिमायें आहारइत्ता भवइ' ।
नो इत्थी पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सुमरइत्ता भवइ ।
सवाई नोरूवाणुवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो लोगाणुवाई |
न सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ ||
नव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा --
इत्थी - पसु -पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता' 'भवइ ।
इत्थी कहं कहित्ता भवइ ।
इत्थी ठाणाई सेवित्ता भवइ ।
इत्थti इंदियाई मोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ ।
पणीयरसभोई भवइ ।
पाणभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ ।
इत्थी पुरयाई पुव्वकीलियाई सुमरइत्ता भवइ ।
सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई रसाणुवाई फासाणुवाई सिलोगाणुवाई ० । सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ ॥
नव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा
३.
१. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव अंतं । २. गणान् (वृ ) ।
३. X ( क, ख, ग ) ।
४. अतिमायं आहार ( क ) ।
५. X ( क, ख, ग ) ।
६. सं० पा० - सेवणया [सेवित्ता ] जाव सायासोक्ख 1
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नवम समवाओ
संगहणी - गाहा
४.
५.
६.
७.
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नव जोयणसए उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ ॥
८.
जंबुद्दीवेणं दीवे नवजोणिया मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा ॥ विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पण्णत्ता ॥
ε.
१०. वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुधम्माओ नव जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ताओ ॥
सत्थपरिण्णा लोगविजओ, सीओसणिज्जं सम्मत्तं । आवंती धुतं विमोहायणं, उवहाणसुयं महपरिणा ॥१॥ पासे णं अरहा` नव रयणीओ उड्ढ उच्चत्तेणं होत्था ॥ अभी जनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चंदेणं सद्धि जोगं जोएइ || अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा - अभीजि सवणो' 'धणिट्ठा सर्याभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तरापोट्ठवया रेवई अस्सिणी • भरणी ॥
११. दंसणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स नव उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- निद्दा पयला निद्दानिद्दा पयलापयला थी गिद्धी चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंसवरणे ओहिदंसणावरणे केवलदंसणावरणे ॥
१२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं नव पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ॥
१३. चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं नव सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं नव पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं नव पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १६. बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं नव सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १७. जे देवा म्हं सुपम्हं पम्हावत्तं पम्हप्पहं पम्हकंतं पम्हवण्णं पम्हलेसं "पहज्भयं पम्हसिंगं पम्हसि पम्हकूडं पम्हुत्तरवडेंसगं सुज्जं सुसुज्जं सुज्जावत्तं सुज्जपभं सुज्जकतं' 'सुज्जवण्णं सुज्जलेसं सुज्जज्भयं सुज्जसिंगं
१. सीओसिणिज्ज ( क ) ।
२. अरहा पुरिसादाणीए ( क्व ) ।
३. सं० पा० - सवणो जाव भरणी ।
४. चन्द्रप्रज्ञप्ती ( १०।११)
८३६
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती ( वक्ष ७) च चन्द्रस्योत्तरेणं योगं युञ्जानानां द्वादशनक्षत्राणामुल्ले खोस्ति । अत्र तु नवमसमवायानुरोधेन नवैव गृहीतानि ।
o
५. थीद्धी (क्व ) ।
६. 'क' प्रतौ अस्मिन् सूत्रान्तर्गत 'पम्ह' शब्दस्य स्थाने सर्वत्र 'वह' शब्दस्तथा 'रुइल्ल' शब्दस्य स्थाने सर्वत्र 'रुयल' इति पाठो विद्यते । ७. सं० पा०० – पम्हलेसं जाव पम्हुत्तरवडेंसगं । ८. सं० पा०—– सुज्जकंतं जाव सुज्जुत्तरवडेंसगं ।
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समवाओ
सुज्जसिटुं सुज्जकूडं° सुज्जुत्तरवडेंसगं रुइल्लं रुइल्लावत्तं रुइल्लप्पभं' 'रुइल्लकंतं रुइल्लवण्णं रुइल्ललेसं रुइल्लज्झयं रुइल्लसिंगं रुइल्लसिटुं रुइल्लकूडं° रुइल्लुत्तरवडेसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
[उक्कोसेणं ? ] नव सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १८. ते ण देवा नवण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा॥ १६. तेसि णं देवाणं नवहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ॥ २०. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे नवहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झिस्संति
मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमतं करिस्संति ॥
दसमो समवाओ १. दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा-खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे ___ संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे ॥ २. दस चित्तसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
धम्मचिंता वा से असमुप्पण्णपुव्वा समुप्पज्जिज्जा, सव्वं धम्मं जाणित्तए। सुमिणदसणे वा से असमुप्पण्णपुवे समुप्पज्जिज्जा, अहातच्चं सुमिणं पासित्तए। सण्णिनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, पुव्वभवे सुमरित्तए। देवदंसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पासित्तए। ओहिनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, ओहिणा लोग जाणित्तए । ओहिदसणे वा से असमुप्पण्णपुवे समुप्पज्जिज्जा, ओहिणा लोगं पासित्तए। मणपज्जवनाणे वा से असमुप्पण्णपुवे समुप्पज्जिज्जा, मणोगए' भावे जाणित्तए। केवलनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, केवलं लोगं जाणित्तए। केवलदसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, केवलं लोयं पासित्तए। केवलिमरणं वा मरिज्जा, सव्वदुक्खप्पहीणाए ।
१. सं० पा०-रुइल्लप्पभं जाव रुइल्लुत्तरवडेंसगं। ४. सुजाणं (वृण) । २. एतत तुल्येषु सूत्रेषु सर्वत्रापि 'उक्कोसेणं' पाठो ५. जाणेज्जा (क)।
विद्यते । नायं पाठोत्र प्रतिषु लभ्यते, किन्तु ६. जाव मणोगए (क, ख, ग); वृत्ती 'जाव'
तथा विधान्यसवपद्धत्यनुसारेण युज्यते। शब्दो नास्ति व्याख्यातः । नावश्यकोपि प्रति३. सं० पा०-सिज्झिरसंति जाव सव्वदुक्खाण °। भाति तेन न स्वीकृतः ।
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दसमो समवाओ
८४१
३. मंदरे णं पव्वए मूले दसजोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ।। ४. अरहा णं अरिट्ठनेमी दस धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ५. कण्हे णं वासूदेवे दस धणई उडढं उच्चत्तेणं होत्था । ६. रामे णं बलदेवे दस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
७. दस नक्खत्ता नाणविद्धिकरा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
मिगसिरमद्दा पुस्सो, तिण्णि अ पुव्वा य मूलमस्सेसा।
हत्थो चित्ता य तहा, दस वुद्धिकराइं नाणस्स ॥१॥ ८. अकम्मभूमियाणं मणुआणं दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए उवत्थिया पण्णत्ता, तं जहा
मत्तंगया य. भिंगा, तुडिअंगा दीव जोइ चित्तंगा।
चित्तरसा मणिअंगा, गेहागारा अणिगणा' य ॥१।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं' जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई
पण्णत्ता॥ १०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ।। ११. चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्सा' पण्णत्ता ।। १२. चउत्थीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. पंचमाए पुढवीए ने रइयाणं जहण्णणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १४. असुरकुमाराणं देवाणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ।। १५. असुरिंदवज्जाणं भोमेज्जाणं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता॥ १६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १७. बायरवणप्फतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ॥ १८. वाणमंतराणं देवाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ।। १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। २०. बंभलोए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । २१. लंतए कप्पे देवाणं जहण्णणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
१. अणियणा (ग); अणिगिणा (क्व)। २. अत्थेगइयाणं नेरइयाणं (क, ख, ग)।
३. ° सहस्साई (क्व) ।
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समवाओ
२२. जे देवा घोसं सुघोसं महाघोसं नंदिघोसं सुसरं मणोरमं रम्मं रम्मगं रमणिज्जं
मंगलावत्तं बंभलोगवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्को
सेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ २३. ते णं देवा दसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति
वा ॥ २४. तेसि णं देवाणं दसहि वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ॥ २५. संतेगइया' भवसिद्धिया जीवा, जे दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति 'बुझि___ स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण ° मंतं करिस्संति ॥
एक्कारसमो समवाओ १. एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–१. दंसणसावए २. कयव्वय
कम्मे ३. सामाइअकडे ४. पोसहोववास-निरए ५. दिया बंभयारी रत्ति' परिमाणकडे ६. दिआवि राओवि बंभयारी असिणाई वियडभोई मोलिकडे ७. सचित्तपरिणाए ८. आरंभपरिणाए ६. पेसपरिणाए १०. उद्दिट्ठभत्त
परिणाए ११. समणभूए" यावि भवइ समणाउसो! २. 'लोगंताओ णं 'एक्कारस एक्कारे जोयणसए'' अबाहाए जोइसंते पण्णत्ते ।। ३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स ‘एक्कारस एक्कवीसे जोयणसए'" अबाहाए
___ जोइसे चारं चरइ। १. अत्थेगइया (क, ख, ग)।
(क, ख, ग); २, ३ सूत्रयोरादर्शेषु २. सं० पा०-सिज्झिस्सति जाव अंतं ।
सप्तम्यन्तः पाठो लभ्यते, किन्तु ३. राति (क)।
वृत्तावसौ पाठः द्वितीयान्तत्वेन व्याख्यातो४. अनिसाई (वृपा)।
स्ति-जम्बूद्वीपे द्वीपे मदरस्य पर्वतस्य एका५. पुस्तकान्तरेत्वेवं वाचना-१. दंसणसावए दश 'एगवीस' त्ति एकविंशतियोजनाधिकानि
२. कयवयकम्मे ३. कयसामाइए ४. पोसहोव- एकादशयोजनशतानि 'अबाहाए' त्ति अबाधया वासनिरए ५. राइभत्तपरिणाए ६. सचित्त- व्यवधानेन कृत्वेति शेषः ज्योतिष-जोतिपरिणाए ७. दियाबंभयारी राओ परिमाणकडे श्चक्रं चार-परिभ्रमणं चरति-आचरति, ८. दियावि राओवि बंभयारी असिणाणए तथा लोकान्तात् णमित्यलङ्कारे एकादश यावि भवति वीसी केसरोमनहे ६. आरंभ
'एकारे' त्ति एकादशयोजनाधिकानि अबाधया परिणाए पेसणपरिणाए १०. उद्दिट्ठभत्त
-व्यवहिततया कृत्वेति शेषः 'ज्योतिसंते' ति
ज्योतिश्चक्रपर्यन्तः प्रज्ञप्तः (व) । वज्जए ११. समणभूए । क्वचित्त आरंभपरिज्ञात इति नवमी, प्रेष्यारम्भपरिज्ञात इति ८. असो शब्द: आदर्शषु नोपलभ्यते, केवलं दशमी, उद्दिष्टभक्तवर्जकः श्रमणभूतश्चैका- वृत्तावेव सुरक्षितोस्ति 'चंदपण्णत्ति' सत्रे दशीति (वृ)।
(पाहुड १८)ऽप्येष शब्दो लभ्यते-'एक्कारस ६. एक्कारसहिं एक्कारेहिं जोयणसएहि (क,
एक्कवीसे जोयणसए अबाहाए जोइसे चार ख, ग)।
चरई'। ७. एक्कारसहि एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं ६. जंबुद्दीवे चरइ । लोगंताओ''पण्णत्ते । इदं
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बारसमो समवाओ
४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स एक्का रस गणहरा होत्था, तं जहा-इंदभूती
अग्गिभूती वायुभूती विअत्ते सुहम्मे मंडिए मोरियपुत्ते अकंपिए अयलभाया
मेतज्जे पभासे ।। ५. मूले नक्खत्ते एक्कारसतारे पण्णत्ते ॥ ६. हेट्टिमगे विज्जयाणं देवाणं एक्कारसुत्तरं गेविज्जविमाणसतं भवइत्ति मक्खायं ॥ ७. मंदरे णं पव्वए धरणितलाओ सिहरतले एक्कारसभागपरिहीणे उच्चत्तेणं
पण्णत्ते ॥ ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ ६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कारस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता।
लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. जे देवा 'बंभं सुबंभं बंभावत्तं बंभप्पभं बंभकंतं बंभवण्णं बंभलेसं बंभज्झयं'
बंभसिंगं बंभसिट्ट बंभकूडं बंभुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं [उक्कोसेणं' ? ] एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. ते णं देवा एक्कारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १५. तेसि णं देवाणं एक्कारसण्हं वाससहस्साणं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कारसहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति"
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
१२. लतए
बारसमो समवाओ १. बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मासिआ भिक्खुपडिमा,
दोमासिआ भिक्खुपडिमा, तेमासिआ भिक्खुपडिमा, चाउमासिआ भिक्खुपडिमा, पंचमासिआ भिक्खुपडिमा, छम्मासिआ भिक्खुपडिमा, सत्तमासिआ भिक्खु
च वाचनान्तरं व्याख्यातम्, अधिकृतवाचनायां २. पम्हज्जुयं (ग)। पुनरिदमनन्तरं व्याख्यातमालापकद्वयं व्यत्यये- ३. द्रष्टव्यं ।।१७ टिप्पणम् । नापि दृश्यते (व)।
४. अत्थे ° (क, ख, ग)। १. पम्हं"पम्हलेस (ग)।
५. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण।
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समवाओ
पडिमा, पढमा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तराइंदिआ भिक्खुपडिमा, अहोराइया भिक्खुपडिमा, एगराइया
भिक्खुपडिमा । २. दुवालसविहे संभोगे पण्णत्ते, तं जहा-- संगहणी-गाहा
उवही सुअ भत्तपाणे, अंजलीपग्गहेत्ति य। दायणे' य निकाए अ, अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे ।।१।। कितिकम्मस्स य करणे, वेयावच्चकरणे इ अ।
समोसरणं संनिसेज्जा य, कहाए अ पबंधणे ॥२॥ ३. दुवालसावत्ते कितिकम्मे पण्णत्ते, [तं जहा ....
दुओणयं जहाजायं, कितिकम्मं बारसावयं ।
चउसिरं तिगुत्तं च, दुपवेसं एगनिक्खमणं ॥१॥] ४. विजया णं रायहाणी दुवालस जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ५. रामे णं बलदेवे दुवालस वाससयाइं सव्वाउयं पालित्ता देवत्तं गए । ६. मंद रस्स णं पव्वयस्स चूलिआ मूले दुवालस जोयणाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ७. जंबदीवस्स णं दीवस्स वेइया मुले दुवालस जोयणाइं विक्खंभेणं पण्णत्ता। ८. सव्वजण्णिआ राई दुवालसमुहुत्तिआ पण्णत्ता ।। ६. सव्वजण्णिओ दिवसो दुवालसमुहुत्तिओ पण्णत्तो ॥ १०. सव्वट्ठसिद्धस्स णं महाविमाणस्स उवरिल्लाओ थूभिअग्गाओ दुवालस जोयणाई
उड्ढं उप्पतिता ईसिपब्भारा नाम पुढवी पण्णत्ता ।। ११. ईसिपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-ईसित्ति वा
ईसिपब्भारत्ति वा तणूइ वा तणुयतरित्ति' वा सिद्धित्ति वा सिद्धालएत्ति वा मत्तीति वा मुत्तालएत्ति वा बभेत्ति वा बंभवडेंसएत्ति वा लोकपडिपूरणेत्ति वा
लोगग्गचूलिआइ वा ॥ १२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बारस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥
१. दायणा (क, ख)।
सम्भाव्यते, तेन नास्माभिर्मले स्वीकृता। २. °साइए (क)।
४. देवत्ति (क); देवत्ति (ख); देवत्तिए (ग)। ३. एषा आवश्यकनियुक्ति (१२१६) गता गाथा ५. सं० पा०--एवं दिवसोवि नायव्वो।
कृतिकर्मव्याख्यानपरा वर्तते, न तु द्वादशावर्त- ६. तणूयतरिति (क); तणयरुत्ति (ग)। व्याख्यानपरा। इयं प्रासङ्गिकरूपेण लिखिता
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तेरसमो समवाओ
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१३. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं बारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं बारस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १६. लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १७. जे देवा महिंदं महिंदज्झयं कंबुं कंबुग्गोवं पुंखं सुपखं महापुखं पुंडं सुपुंडं महा
पुंडं नरिंदं नरिंदकंतं नरिंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १८. ते णं देवा बारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १६. तेसि णं देवाणं बारसहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। २०. संतेगइआ' भवसिद्धिया जीवा, जे बारसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
तेरसमो समवाओ १. तेरस किरियाठाणा पण्णता, तं जहा -अट्ठादंड अगट्ठादंडे हिंसादंडे अकम्हादंडे
दिदिविप्परिआसिआदंडे मुसावायवत्तिए अदिण्णादाणवत्तिए अज्झथिए माण
वत्तिए मित्तदोसवत्तिए मायावत्तिए लोभवत्तिए ईरियावहिए नाम तेरसमे ।। २. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु तेरस विमाणपत्थडा पण्णता ।। ३. सोहम्मवडेंसगे णं विमाणे णं अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं
पण्णत्ते ॥ ४. एवं ईसाणवडेंसगे वि ।। ५. जलयरपंचिंदिअतिरिक्खजोणिआणं अद्धतेरस जाइकुलकोडोजोणीपमुह
सयसहस्सा' पण्णत्ता ॥ ६. पाणाउस्स णं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता ।। ७. गब्भवक्कंतिअपंचेंदिअतिरिक्खजोणिआणं तेरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-.
सच्चमणपओगे मोसमणपओगे सच्चामोसमणपओगे असच्चामोसमणपओगे सच्चवइपओगे मोसवइपओगे सच्चामोसवइपओगे असच्चामोसवइपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउव्विअसरीरकायपओगे वेउव्विअमोससरोरकायपओगे कम्मसरीरकायपओगे।।
१. अत्थेगइया (क, ख, ग) । २. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
३. सहस्साइं (क्व)।
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८४६
समवाओ
८. सूरमंडले जोयणेणं तेरसहिं एगसट्ठिभागेहिं जोयणस्स ऊणे पण्णत्ते ।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेरस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १०. पंचमाए णं पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेरस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्यंगइयाणं देवाण तेरस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. जे देवा वज्ज सुवज्जं वज्जावत्तं वज्जप्पभं वज्जकंतं वज्जवण्णं वज्जलेसं
वज्जज्झयं वज्जसिंगं वज्जसिटुं वज्जकूडं वज्जुत्तरवडेंसगं वइरं वइरावत्तं' 'वइरप्पभं वइरकंतं वइरवण्णं वइरलेसं वइरज्झयं वइरसिंगं वइरसिटुं वइरकूडं° वइरुत्तरवडंसगं लोगं लोगावत्तं लोगप्पभं 'लोगकतं लोगवण्णं लोगलेसं लोगज्झयं लोगसिंग लोगसिटुं लोगकूडं° लोगुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तेरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १५. ते णं देवा तेरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नोससंति वा॥ १६. तेसि णं देवाणं तेरसहि वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥ १७. संतेगइया' भवसिद्धिया जीवा, जे तेरसहिं भवग्गहगेहि सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्संति ॥
चउद्दसमो समवाओ
१. चउद्दस भूअग्गामा पण्णत्ता, तं जहा-सुहमा अपज्जत्तया, सूहमा पज्जत्तया,
बादरा अपज्जत्तया, बादरा पज्जत्तया, बेइंदिया अपज्जत्तया, बेइंदिया पज्जत्तया, तेइंदिया अपज्जत्तया, तेइंदिया पज्जत्तया, चरिदिया अपज्जत्तया, चरिदिया पज्जत्तया, पचिदिया असण्णिअपज्जत्तया, पचिदिया असण्णिपज्जत्तया. पचिदिया
सण्णिअपज्जत्तया, पचिदिया सण्णिपज्जत्तया ।। २. चउदस पुव्वा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
उप्पायपुव्वमग्गेणियं च तइयं च वीरियं पुव्वं । अत्थीनत्थिपवायं, तत्तो नाणप्पवायं च ॥१॥
१. सं० पा०-वइरावत्तं जाव वइरुत्तरवडेंसग। २. सं० पा०-लोगप्पभं जाव लोगुत्तरवडेंसगं।
३. अत्थेगइया (क, ख)। ४. सं० पा०-सिज्झस्संति जाव अंतं ।
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चउद्दसमो समवाओ
८४७ सच्चप्पवायपुव्वं, तत्तो आयप्पवायपुव्वं च । कम्मप्पवायपुव्वं, पच्चक्खाणं भवे नवमं ॥२॥ विज्जाअणुप्पवायं, अबंझपाणाउ बारसं पुव्वं ।
तत्तो किरियविसालं, पुव्वं तह बिंदुसारं च ।।३।। ३. अग्गेणीअस्स णं पुव्वस्स चउद्दस वत्थू पण्णत्ता ।। ४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चउद्दस समणसाहस्सोओ उक्कोसिआ समण
संपया होत्था । कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउद्दस जीवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा–मिच्छदिट्टी, सासायणसम्मदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी, अविरयसम्मदिट्ठी, विरयाविरए', पमत्तसंजए, अप्पमत्तसंजए, नियट्टिबायरे, अनियट्टिबायरे, सुहुमसंपराए-उवसमए'
वा खवए वा, उवसंतमोहे, खोणमोहे, सजोगी केवली, अजोगी केवली ॥ ६. भरहेरवयाओ णं जीवाओ चउद्दस-चउद्दस जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगुत्तरे ___ जोयणसए छच्च एकूणवीसे भागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ। ७. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउद्दस रयणा पण्णत्ता, तं जहा
इत्थीरयणे सेणावइरयणे गाहावइरयणे पुरोहियरयणे वड्ढइरयणे आसरयणे हत्थिरयणे असिरयणे दंडरयणे चक्करयणे छत्तरयणे चम्मरयणे मणिरयणे
कागिणिरयणे। ८. जंबुद्दीवे णं दीवे चउद्दस महानईओ पुवावरेणं लवणसमुई समप्पति', तं जहा--
गंगा सिंधू रोहिआ रोहिअंसा हरी हरिकता सीआ सीओदा नरकंता नारिकता
सुवण्णकूला रुप्पकूला रत्ता रत्तवई ।। ६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस पलिओवभाई
ठिई पण्णत्ता ॥ १०. पंचमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।। ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं च उद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चउद्दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १३. लंतए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १४. महासुक्के कप्पे देवाणं जहण्णेणं चउद्दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
जे देवा सिरिकंतं सिरिमहियं सिरिसोमनसं लंतयं काविट महिंदं महिंदोकतं महिंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चउद्दस
सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १. विरयाविरयसम्मदिट्टी (क, ख, ग)। ४. समुप्पेंति (ग)। २. उवसामए (क)।
५. महिंदकंतं (क्व)। ३. खमए (ग)।
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८४८
समवाओ
१६. ते णं देवा चउद्दसहिं अद्धमासेहिं आणति वा पाणमंति व ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १७. तेसि णं देवाणं चउद्दसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥ १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चउद्दसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति ° सव्वदुक्खाणमंत करिस्संति ।।
पण्णरसमो समवाओ ५. पण्णरस परमाहम्मिआ पण्णत्ता, तं जहा--- संगहणी-गाहा
अंबे अबरिसी चेव, सामे सबलेत्ति यावरे'। रुद्दोवरुद्दकाले य, महाकालेत्ति यावरे ।।१।। असिपत्ते धणु कुम्भे, वालुए वेयरणीति य।
खरस्सरे महाघोसे, एमेते पण्णरसाहिआ ।।२।। २. णमी णं अरहा पण्णरस धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। ३. धुवराहू णं बहुलपक्खस्स पाडिवय' पण्णरस इ' भागं पण्णरसइ भागेणं चंदस्स
लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठति, तं जहा -पढमाए पढमं भागं' 'बीआए बीयं भागं तइआए तइयं भागं च उत्थीए चउत्थं भागं पंचमीए पंचमं भागं छट्ठीए छटुं भागं सत्तमीए सत्तमं भागं अट्ठमीए अट्ठमं भागं नवमीए नवमं भागं दसमीए दसमं भागं एक्कारसीए एक्कारसमं भागं बारसीए बारसमं भागं तेरसीए तेरसमं भाग चउद्दसोए चउद्दसमं भागं ° पण्णरसेसु पण्णरसमं भाग। तं चेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा-पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु
पण्णरसमं भागं । ४. छ णक्खता पण्णरसमुहुत्तसंजुत्ता पण्णत्ता, त जहासंगहणी-गाहा
सतभिसय भरणि अद्दा, असलेसा साइ 'तह य जेट्टा य ।
एते छण्णक्खत्ता, पण्णरसमुहुत्तसंजुत्ता ॥१॥ १. सं० पा०—सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण- ५. पडिवाते (ग)। मंतं ।
६. पन्नरस (क्व)। २. वावरे (क)।
७. सं० पा०-भागं जाव पण्णरसेसु । ३. एते (क, ग)।
८. तधव (क)। ४. निच्चराहू (ग)।
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पण्णरसमो समवाओ
५. चेत्तासोएसु मासेसु सई' पण्णरसमुहुत्तो दिवसो भवति, सइ पण्णरस मुहुत्ता राई भवति ॥
६. विज्जाअणुष्पवायस्स णं पुव्वस्स पण्णरस वत्थू पण्णत्ता ||
७. मणूसाणं पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा - सच्चमणपओगे मोसमणपओगे सच्चामोसमणपओगे असच्चामोसमणपओगे सच्चवइपओगे मोसवइपओगे सच्चामोसवइपओगे असच्चामोसवइपओगे ओरालिअसरीरकायपओगे ओरालिअमीससरीरकायपओगे वेउव्विअसरीरकायपओगे वेउव्विअमीससरीरकायपओगे आहारयतरीरकायपओगे आहारयमीससरीरकायपओगे कम्मयसरीरकायपओगे ||
८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
६. पंचमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं पण्णरस पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं पण्णरस पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता ॥
१२. महासुक्के कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
१३. जे देवा णंदं सुणंदं णंदावत्तं णंदप्पभ्रं णंदकंतं णंदवण्णं णंदलेसं नंदज्भयं नंदसिंगं णंदसिद्धं णंदकूडं गंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवा उक्को सेण पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
१४. ते णं देवा पण्णरसहं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१५. तेसि णं देवाणं पण्णरसहि वाससहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ॥
८४६
१६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पण्णरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' "बुज्झिसंति मुच्चिसंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणं • मंतं करिस्सति ॥
o
१. x (क, ग ) । २. सईय ( ग ) ; एवं चेत्तमासे (चेत्त सोए मासेसु ) ( क्व ); अष्टादशे समवाए ( 5 ) वृत्तिकृता 'सई' शब्दो व्याख्यातः । अत्र तु नास्ति व्याख्यातः । नासौ पाठः इति प्रतीयते ।
उपलब्ध
३. अणुप्प ० ( क, ख, ग ); नंदी ( सू० ११३ ) 'विज्जाणुष्पवाय' इति विद्यते ।
४. सं० पा० कंतं वण्णं लेसं जाव णंदुत्तरवडें
सगं ।
५. सं० पा० सिज्झिस्संति जाव अंतं ।
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समवाओ
सोलसमो समवाओ
१. सोलस य गाहा-सोलसगा पण्णत्ता, तं जहा-समए वेयालिए उवसग्गपरिणा
इत्थिपरिण्णा निरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए वीरिए धम्मे
समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए' गंथे जमईए गाहा॥ २. सोलस कसाया पण्णत्ता, तं जहा-अणंताणुबंधो कोहे, "अणंताणुबंधी माणे,
अणंताणुबंधी माया, अणंताणुबंधी लोभे°, अपच्चक्वाणकसाए कोहे, “अपच्चक्खाणकसाए माणे, अपच्चक्खाणकसाए माया, अपच्चक्खाणकसाए लोभे°, पच्चक्खाणावरणे कोहे, "पच्चक्खाणावरणे माणे, पच्चक्खाणावरणा माया, पच्चक्खाणावरणे लोभे°, संजलणे कोहे "संजलणे माणे, संजलणे माया
संजलणे लोभे ॥ ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेया पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
'मंदर-मेरु-मणोरम', सुदंसण सयंपभे य गिरिराया। रयणच्च पियदंसण, मज्झे लोगस्स नाभी य ॥१॥ अत्थे अ सूरियावत्ते, सूरियावरणेत्ति य।
उत्तरे य दिसाई य, वडेंसे इअ सोलसे ॥२॥ ४. पासस्स णं अरहतो पुरिसादाणीयस्स सोलस समणसाहस्सीओ उक्कोसिआ
समण-संपदा होत्था ॥ ५. आयप्पवायस्स णं पुव्वस्स सोलस वत्थू पण्णत्ता ॥ ६. चमरबलीणं ओवारियालेणे सोलस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं
पण्णत्ते ।। ७. लवणे णं समुद्दे सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेहपरिवुड्ढीए" पण्णत्ते । ८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सोलस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥
१. अहातहिए (ग, वृ)।
७. मंदरे मेरु मनोरमे (क)। २. गाहा सोलसमे (ख); गाहा सोलसए (ग); ८. सोलस (ख)। गाहा सोलसमे सोलसगे (क्व)।
६. उवातिया लेणा (क); उवारिया लेणे (ग,व) । ३,४,५,६. सं० पा० --एवं माणे माया लोभे। १०. उच्छेह ° (ग)।
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सत्तरसमो समवाओ
८५१
९. पंचमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ ११. सोहम्मीसाणे कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सोलस पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १३. जे देवा आवत्तं वियावत्तं नंदियावत्तं महाणंदियावत्तं अंकुसं अंकुस पलंबं भद्द सुभद्दं महाभद्दं सव्वओभद्दं भदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवा उक्कोसेणं सोलस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१४. ते णं देवा सोलसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नोससंति वा ॥
१५. तेसि णं देवाणं सोलसवास सहस्सेहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ॥
१६. संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा, जे सोलसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुज्झिसंति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण मंतं करिस्सति ॥
सत्तरसमो समवाओ
१. सत्तरसविहे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा - पुढवीकायअसंजमे आउकाय असंजमे ते उकायअसंजमे, वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंज मे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिदियअसंजमे पंचिदियअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसं जमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणाअसंजमे मणअसंजमे वइअसंजमे काय असं मे ||
२. सत्तरसविहे संजमे पण्णत्ते, तं जहा - पुढवीकायसंजमे' 'आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेडुंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चरिदियसंजमे पंचिदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपेहासंजमे अवहट्टसंजमे पमज्जणासं जमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंज मे ॥
३. माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस- एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चतेणं पण्णत्ते ॥ ४. सवेसिपि णं वेलंधर- अणुवेलंधर - णागराईणं आवासपव्वया सत्तरस - एक्कवीसाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
५. लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ||
६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सातिरेगाई सत्तरस जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरियं गति पवत्तति ॥
१. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव अंतं ।
२. सं० पा० - पुढवीकायसंजमे एवं जाव काय
संजमे ।
३. माणसुत्तरे ( क ) ; माणुसत्तरे ( ग ) ।
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८५२
समवाओ
७. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुर [कुमार ? ] रण्णो तिगिछिकूडे उप्पायपव्वए
सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ॥ ८. बलिस्स णं' 'वतिरोयणिदस्स वतिरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पायपव्वए सत्तरस
एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।। ६. सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा-आवीईमरणे ओहिमरणे आयंतियमरणे
वलायमरणे वसट्टमरणे' अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडितमरणे छउमत्थमरणे केवलिमरणे वेहासमरणे गिद्धपट्टमरणे
भत्तपच्चक्खाणमरणे इंगिणीमरणे पाओवगमणमरणे । १०. सुहमसंपराए णं भगवं सुहुमसंपरायभावे वट्टमाणे सत्तरस कम्मपगडीओ
णिबंधति, तं जहा-आभिणिबोहियणाणावरणे सुयणाणावरणे ओहिणाणावरणे मणपज्जवणाणावरणे केवलणाणावरणे चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंसणावरणे
ओहीदसणावरणे केवलदसणावरणे सायावेयणिज्ज जसोकित्तिनाम उच्चागोयं
दाणंतरायं लाभंतरायं भोगंतरायं उवभोगंतरायं वीरिअअंतरायं ।। ११. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तरस पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ १२. पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १३. छट्ठीए पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १४. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १५. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ १६. महासुक्के कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १७. सहस्सारे कप्पे देवाणं जहण्णणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १८. जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं पउमं महापउमं कुमुदं महाकुमुदं नलिणं
महानलिणं पोंडरीअं महापोंडरीअं सुक्कं महासुक्कं सीहं सोहोकतं सीहवी भाविअं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरो
वमाइं ठिई पण्णत्ता । १९. ते णं देवा सत्तरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीस
संति वा ।।
१. सं० पा०-बलिस्स ...।
२॥३६६)। २. सयाई साइरेगेणं (क); °सयाइं साइरेगाई ५. वसह (क); वस? ग)।
___६. गद्धपट्ट ° (क); गिद्धिपट्ट ° (ग); गिद्धपिट्ठ ३. अंतित° (क)।
(क्व)। ४. वलय ° (भ० २।४६); वलात ° (स्थानांग ७. सीहकतं (क्व) ।
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अट्ठारसमो समवाओ २०. तेसि णं देवाणं सत्तरसहि वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ॥ २१. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' 'बुझि
स्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
अट्ठारसमो समवाओ अट्ठारसविहे बंभे पण्णत्ते, तं जहा -ओरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ', नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं 'सेवंतं पि' अण्णं न समणुजाणाई। ओरालिए कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंत पि अण्ण न समणजाणाइ। ओरालिए कामभोगे णेव सयं कायेणं सेवइ, नोवि अण्णं कारणं सेवावेइ, काएणं सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ। दिव्वे कामभोगे णेव सयं कारणं सेवइ, नोवि अण्णं काएणं सेवावेइ, काएणं
सेवंतं पि अण्णं न समणुजाणाइ । २. अरहतो णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया
होत्था ॥ ३. समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं सखुड्डयविअत्ताणं अट्ठारस ठाणा
पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
वयछक्कं कायछक्क, अकप्पो गिहिभायणं ।
पलियंक निसिज्जा य, सिणाणं सोभवज्जणं ॥१॥ ४. आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई। ५. 'बंभीए णं लिवीए अट्रारसविहे लेखविहाणे पण्णत्ते, तं जहा–१. बंभी
२. जवणालिया' ३. दोसऊरिया ४. खरोट्ठिया ५. खरसाहिया ६. पहाराइया
१. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण°। ५. भाएणं विबीए (क); बंभए णं लिविए (ग)। २. सेवेइ (क, ख)।
६. जवणाभिलिया (ख)। ३. सेवते पि (ख); सेवंते वि (ग) । ७. दासऊरिया (क); दसाऊरिया (ग)। ४. जाणइ (ख, ग)।
८. पुक्करसाविया (क)।
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८५४
समवाओ
७. उच्चत्तरिया' ८. अक्खरपुट्टिया है. भोगवइया १०. वेणइया ११.निण्हइया १२. अंकलिवी १३. 'गणियलिवी १४. गंधव्वलिवी" १५. आयंसलिवी
१६. माहेसरी १७. दामिली १८. पोलिंदी । ६. अत्थिनत्थिप्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पण्णत्ता ।। ७. धूमप्पभा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ता ॥ ८. पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइ उक्कोसेणं
अट्ठारसमुहुत्ता राती भवइ ।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। १०. छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णता ॥ ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठारस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १३. सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १४. आणए कप्पे देवाणं जहण्णणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १५. जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिटुं सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं
सुसाल पउमं पउमगुम्म कुमुदं कुमुदगुम्म नलिणं नलिणगुम्म पुंडरीअं पुंडरीयगुम्मं सहस्सारवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं [उक्कोसेणं?]
अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १६. ते णं देवाणं अट्ठारसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १७. तेसि णं देवाणं अट्ठारसहि वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठारसहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति
'बज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
१. चुच्चत्तरिया (क)।
६. माहेसरलिवी (क, ख, ग)। २. भोगवयता (क, ख, ग)।
७. दामिलिवी (क, ख, ग)। ३. वेणणिया (ग)।
८. वोलिदिलिवी (क, ख, ग)। ४. गणियलिवी गंधव्वलिवी भूयलिवी (ख); ६. द्रष्टव्य (६।१७) टिप्पणम् ।
गंधव्वलिवी गणियलिवी भूयलिवी (ग)। १०. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ५. आदंसलिवी (ग)।
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एगूणवीसमो समवाओ
एगूणवीसमो समवाओ १. एगूणवीसं णायज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
उक्खित्तणाए संघाडे, अंडे कुम्मे य सेलए। तुंबे य रोहिणी मल्ली', मागंदी चंदिमाति य ॥१॥ दावद्दवे उदगणाए, मंडुक्के तेतलीइ य । नंदीफले अवरकंका, आइण्णे 'सुसुमाइ य' ।।२।।
अवरे य पोंडरीए, णाए एगूणवीसइमे ॥ २. जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एकूणवीसं जोयणसयाई उड्ढमहो तवंति ।। ३. सुक्केणं महग्गहे अवरेणं उदिए समाणे एकूणवीसं णक्खत्ताइं समं चारं चरित्ता
अवरेणं अत्थमणं उवागच्छइ ।। ४. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलाओ एकूणवीसं छेयणाओ पण्णत्ताओ ।। ५. एगूणवीसं तित्थयरा अगारमज्झा' वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ
अणगारिअं पव्वइआ।। ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणवीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता॥ ७. छट्ठीए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णता॥ ८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगणवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ६. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एगणवीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १०. आणयकप्पे देवाणं उक्कोसेणं एगणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ ११. पाणए कप्पे देवाणं जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १२. जे देवा आणतं पाणतं णतं विणतं घणं सुसिरं इंदं इंदोकतं इंदुत्तरवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १३. ते णं देवा एगूणवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १४. तेसि णं देवाणं एगूणवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ॥
१. मल्ले (क)। २. सुंसुसमातिय (ग)। ३. एकूणविंसतेमे (ग)।
४. तवयम्मि (ग)। ५. मज्झे (क्व)।
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८५६
समवाओ
१५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एगणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
१.
वीसइमो समवाओ वीसं असमाहिठाणा पण्णत्ता, तं जहा–१. दवदवचारि यावि भवइ २. अपमज्जियचारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ४. अतिरित्तसेज्जासणिए ५. रातिणियपरिभासी' ६. थेरोवघातिए ७. भूओवघातिए ८. संजलणे ६. कोहणे १०. पिट्ठिमंसिए ११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ १२. णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओसवियाण' पुणोदोरेत्ता भवइ १४. ससरक्खपाणिपाए १५. अकालसज्झायकारए यावि भवइ १६. कलहकरे १७. सद्दकरे १८. झझकरे
१६. सूरप्पमाणभोई २०. एसणाऽसमिते आवि भवइ ।।। २. मुणिसुव्वए णं अरहा वीसं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ३. सव्वेवि णं घणोदही वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ता ॥ ४. पाणयस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वीसं सामाणिअसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ५. णपुंसयवेयणिज्जस्स णं कम्मस्स बोसं सागरोवमकोडाकोडीओ बंधओ बंधठिई
पण्णत्ता॥ ६. पच्चक्खाणस्स णं पुव्वस्स वीसं वत्थू पण्णत्ता ।। ७. 'ओसप्पिणि-उस्सप्पिणि-मंडले वोसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो।। ८. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवाए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता। ६. छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। १०. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं वीस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. पाणते कप्पे देवाणं उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १३. आरणे कप्पे देवाणं जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १४. जे देवा सात विसातं सुविसातं सिद्धत्थं उप्पलं 'रुइलं तिगिच्छं दिसासोवत्थिय
वद्धमाणयं पलंब पुप्फ सुपुप्फ पुप्फावत्तं पुप्फपभं पुप्फकंतं पुप्फवण्णं पुप्फलेसं
१. स. पा.-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ५. विउसमियाण (ग)। २. पारिभासी (क)।
६. उस ओस (क); उस° उस ° (ग)। ३. कोवणे (क)।
७. भित्तिलं तिगिच्छ दिसासोवत्थियं पलंबं रूइलं ४. पिट्ठिमंसए (ग)।
(क्व)।
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एक्कवीसइमो समवाओ
८५७
पुप्फज्झयं पुप्फसिगं पुप्फसिटुं पुप्फकूडं' पुप्फुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए
उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं वीस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १५. ते णं देवा वीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १६. तेसि णं देवाणं वीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १७. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुझिस्सति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंत करिस्सति ।।
एक्कवीसइमो समवाओ १. एक्कवीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा--१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले। २. मेहुणं'
पडिसेवमाणे सबले । ३. राइभोयणं भुजमाणे सबले । ४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले। ५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले । ६. उद्देसियं, कीयं, आह? 'दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले । ७. अभिक्खण पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाण सबले। ८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गण संकममाणे सबले । ६. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले । १०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले । ११. रायपिंड भुंजमाणे सबले । १२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले । १३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले । १४. आउट्टिआए अदिण्णादाणं गिण्हमाणे सबले। १५. आउट्टिआए अणंतरहिआए पुढवीए ठाण वा निसोहियं वा चेतेमाणे सबले। १६. आट्टियाए ससणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए पूढवीए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १७. आउट्रिआए चित्तमंताए पुढवीए, चित्तमंताए सिलाए, चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए [अण्णयरे वा तहप्पगारे ?] जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउत्तिगे पणग-दगमट्टी-मक्कडासंताणए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले। १८. आउट्टिआए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा खंधभोयणं वा तयाभोयणं वा पवालभोयणं वा पत्तभोयणं वा पुप्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरियभोयणं वा भुंजमाणे सबले। १६. अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले । २०. अंतो संवच्छरस्स दस माइठाणाई सेवमाणे
१. X (क्व)। २. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण °। ३. मेहुणे (क)। ४. अत्र पाठपूर्तिदशाश्रु तस्कन्धतः कृता किन्तु
क्रमो वृत्त्यनुसारी स्वीकृतः। सं० पा०
कोयं आहटु जाव अभिक्खणं । ५. वृत्त्यनुसारेणासौ पाठो युज्यते ।
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८५८
समवओ
सबले । २१. 'अभिक्खणं-अभिक्खणं सीतोदय-वियड-वग्घारिय-पाणिणा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता भुंजमाणे सबले" ॥ णिअट्टिबादरस्स णं खवितसत्तयस्स मोहणिज्जस्स कम्मस्स एक्कवीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा-अपच्चक्खाणकसाए कोहे "अपच्चक्खाणकसाए भाणे अपच्चक्खाणकसाए माया अपच्चक्खाणकसाए लोभे० पच्चक्खाणावरणे' कोहे "पच्चक्खाणावरणे माणे पच्चक्खाणावरणा माया पच्चक्खाणावरणे लोभे संजलणे कोहे "संजलणे माणे संजलणे माया संजलणे लोभे इत्थिवेदे
पुंवेदे नपुंसयवेदे हासे अरति रति भय सोग दुगुंछा ॥ ३. एकमेक्काए णं ओसप्पिणीए पंचमछट्ठाओ समाओ एक्कवीसं-एक्कवीसं __ वाससहस्साइं कालेणं पण्णत्ताओ, तं जहा-दूसमा दूसमदूसमा य ॥ ४. एगमेगाए णं उस्सप्पिणीए पढमबितियाओ समाओ एक्कवीसं-एक्कवीसं
वाससहस्साइं कालेणं पण्णत्ताओ, तं जहा-- दूसमदूसमा दूसमा य ।। ५. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकवीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ ६. छट्रीए पूढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ७. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ८. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कवीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ ६. आरणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १०. अच्चुते कप्पे देवाणं जहण्णेणं एकवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. जे देवा सिरिवच्छं सिरिदामगंडं मल्लं किट्टि चावोण्णतं आरण्णवडेंसगं विमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १२. ते णं देवा एक्कवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १३. तेसि णं देवाणं एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ॥ १४. संतेगइआ भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
१. असौ पाठांशो वृत्त्यनुसारी स्वीकृतः दशाश्रुत- ३. पचक्खाणकसाए (ग)।
स्कन्धेसौ किञ्चिद्भेदेन लभ्यते, यथा- ४,५. सं० पा०-एवं माणे माया लोभे । 'आउट्टियाए सीतोदगवग्घारिएण हत्थेण वा ६. किट्ठ (ग)।
मत्तेण वा दविए भायणेण वा असणं वा"। ७. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । २. सं० पा०–एवं माणे माया लोभे।
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बावीसइमो समवाओ
८५६
बावीसइमो समवाओ १. बावीसं परीसहा पण्णता, तं जहा-दिगिछापरीसहे पिवासापरीसहे सीतपरी
सहे उसिणपरीसहे दंसमसगपरीसहे' अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जापरीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे' जल्लपरीसहे
सक्कारपरक्कारपरीसहे 'नाणपरीसहे दंसणपरीसहे पण्णापरीसहे" ॥ २. दिट्टिवायस्स ण बावीसं सुत्ताई छिण्णछेयणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए ।
बावीसं सुत्ताइ अछिण्णछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडोए । बावीसं सुत्ताइं तिकणइयाइं तेरासिअसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए । ३. बावीसइविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णपरिणामे नीलवण्ण
परिणामे लोहियवण्णपरिणामे हालिद्दवण्णपरिणामे सुक्किल्लवण्णपरिणामे सुब्भिगंधपरिणामे दुब्भिगधपरिणामे तित्तरसपरिणामे "कडुयरसपरिणामे कसायरसपरिणामे अंबिलरसपरिणामे महुररसपरिणामे ° कक्खडफासपरिणामे मउयफासपरिणामे गरुफासपरिणामे लहुफासपरिणामे सीतफासपरिणामे उसिणफासपरिणामे णिद्धकासपरिणामे लुक्खफासपरिणामे 'गरुलहुफासपरिणामे
अगरुलहुफासपरिणामे ॥ ४. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ५. छट्ठीए पुढवीए ने रइयाणं उक्कोसेणं बावोसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ६. अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ७. असुरकूमाराणं देवाणं अत्थेगइया णं बावीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
अत्थगइयाणं देवाणं बावीसं पलिओमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ६. अच्चुते कप्पे देवाणं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १०. हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेवेज्जगाणं देवाणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥
१. दंसमसगफासप० (क)। २. तणपरीसहे (क, ग)। ३. अण्णाण° सण ° पण्णा° (क, ख, वृपा);
अन्नाणादसण° पण्णा' (ग); पन्ना
अन्नाण ° दंसण° (उत्तरा० २ सू० ३)। ४. समय° (ग)।
५. कालय ° (क, ग)। ६. सं० पा०--एवं पंचवि रसा। ७. गरुयलय ० अगरुलहुय ० (क); गरुलह ०
रुयलहुय ° (ख), गरुलहुय ° अगरुलह
८. गेवेज्जाणं (क, ग)।
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८६०
समवाओं
११. जे देवा महितं विसुतं विमलं प्रभासं वणमाल अच्चुतवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
१२. ते णं देवा बावीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१३. तेसि णं देवाणं बावीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ||
१४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे बावीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' • बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
तेवीसइमो समवाओ
१. तेवीसं सूयगडज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा समए वेतालिए उवसग्गपरिणा थोपरिण्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए गंथे जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा आहारपरिण्णा अपच्चक्खाणकिरिया अणगारसुयं अद्दइज्जं णालंदइज्जं ॥ २. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए तेवीसाए' जिणाणं सूरुग्गमणमुहुत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे ।।
३. जंबुद्दीवे णं दोवे इमीसे ओसपिणो तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो होत्था, तं जहा - अजिए संभवे अभिनंदणे" "सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्प सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्व णमी अरिट्ठणेमी पासे' वद्धमाणे यौं । उसमे णं अरहा कोसलिए चोपुवी होत्था ||
४. जंबुद्दीवे णं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थगरा पुव्वभवे मंडलियरायाणी होत्या, तं जहा - अजिए संभवे अभिणंदणे" "सुमती पउमप सुपासे चदप सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अणते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुणिसुव्व णमी अरिट्ठणेमी • पासे" वद्धमाणे य" । उसमे णं अरहा कोस लिए चक्कवट्टी" होत्था ॥
१. विस्सुतं ( क, ख ) ; विसूहियं ( क्व ) । २. पभातं ( क ) ।
३. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ४. समोसरिणे (क); समोसरिए ( ग ) । ५. अधत्तधे ( क ) ।
६. तेवीसं (क, ग) 1
७. सं० पा० - अभिनंदण जाव पास ।
८. पासो ( क, ख, ग ) । ६. त्ति ( ख ) ।
। १०. सं० पा० - अभिनंदण जाव पास । ११. पासो (क, ख, ग ) ।
१२. ति ( ख ) ।
१३. पुव्वभवे चक्कवट्टी (क्व ) ।
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चउबीसइमो समवाओ
८६१
___ इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ ६. अहेसत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ ७. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
सोहम्मीसाणाणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ६. हेट्ठिम-मज्झिम-गेविज्जाणं' देवाणं जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. जे देवा हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेण तेवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. ते णं देवा तेवीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १२. तेसि णं देवाणं तेवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तेवोसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
चउव्वीसइमो समवाओ १. चउव्वीसं देवाहिदेवा पण्णत्ता, तं जहा-उसभे अजिते' 'संभवे अभिणंदणे
सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले अणंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिट्ठणेमी पासे '
वद्धमाणे ॥ २. चुल्ल हिमवंतसिहरीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ चउव्वीसं-चउव्वीसं
जोयणसहस्साइं णवबत्तीसे जोयणसए एगं च अट्ठत्तीसई भाग जोयणस्स
किंचिविसेसाहिआओ आयामेणं पण्णत्ताओ॥ ३. चउवीसं देवदाणा सइंदया पण्णत्ता, सेसा अहमिदा अनिंदा अपुरोहिआ ॥ ४. उत्तरायणगते णं सूरिए चउवीसंगुलियं पोरिसियछायं णिव्वत्तइत्ता णं
णिअट्टति ।। ५. गंगासिंधूओ णं महाणईओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे वित्थारेणं
पण्णत्ताओ॥
१. गेवेज्जगाणं (ख)।
३. सं० पा०—अजित जाव वद्धमाणे । २. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ४. अट्ठतीस (क, ग)।
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८६२
समवाओ
६. रत्तारत्तवतीओ णं महाणदीओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे वित्थारेणं पण्णत्ताओ ||
७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउवीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चउवीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चउवीसं पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता ||
११. हेट्ठिम-उवरिम-गे वेज्जाणं देवाणं जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२. जे देवा हेमि-मज्झिम- गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१३. ते णं देवा चवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१४. तेसि णं देवाणं चउवीसाए वाससहस्सेहि' आहारट्ठे समुप्पज्जइ || १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चउवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' • बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ||
पणवीसइमो समवाओ
१. पुरिमपच्छिमताणं' तित्थगराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१. इरियासमिई २. मणगुत्ती ३ वयगुत्ती ४. आलोय - भायण भोयणं ५. आदाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई ।
१. अणुवीति - भासणया २ कोहविवेगे ३. लोभविवेगे ४. भयविवेगे ५. हासविवेगे ।
१. उग्गह' - अणुण्णवणता २. उग्गह सीमजाणणता ३ सयमेव उग्गहअणुगेण्हणता ४. साहम्मियउग्गहं अणुण्णविय परिभुजणता ५. साधारणभत्तपाणं अणुवि परिभुंजणता " ।
१. वास सहस्ताणं ( क, ख, ग ) ।
२. सं० पा० - सिज्भिस्संति जाव सव्वदुक्खाण | ३. पच्छिमंताणं ( ग ); ० पच्छिमंगाणं ( क्व ) । ४. पणुवी ( क, ख ) प्रायः सर्वत्रापि ।
५. आलोयण ( क, ख ) ।
६. उग्गहाणं (वृ) ।
७. पड़ि ० ( क, ख, ग ) ।
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पणवीसइमो समवाओ
८६३
१. इत्थी-पसु-पंडग-संसत्तसयणासणवज्जणया २. इत्थी-कहविवज्जणया ३. इत्थीए इंदियाण आलोयण-वज्जणया ४. पुव्वरय-पुवकोलिआणं अणणुसरणया ५. पणीताहारविवज्जणया। १. सोइंदिय रागोवरई २. "चक्खिदियरागोवरई ३. घाणिदियरागोवरई ४.
जिभिदियरागोवरई ५. फासिदियरागोवरई ॥ २. मल्ली णं अरहा पणवीसं धणुइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । ३. सव्वेवि णं दीहवेयड्डपव्वया पणवोसं-पणवीसं जोयणाणि उड्ढे उच्चत्तेणं,
पणवीसं-पणवीसं गाउयाणि उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। ४. दोच्चाए ण पढवीए पणवीस णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ५. आयारस्स णं भगवओ सचूलियायस्स पणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता' ।। ६. मिच्छादिदिविगलिदिए णं अपज्जत्तए' संकिलिट्ठपरिणामे नामस्स कम्मस्स
पणवीसं उत्तरपयडीओ णिबंधति, तं जहा—तिरियगतिनाम विगलिंदियजातिनामं ओरालियसरीरनाम तेअगसरीरनामं कम्मगसरीरनामं हुंडसंठाणनामं
१. सं० पा०-एवं पंचवि इंदिया ।
जे सद्दरूवरसगंधमागए, २. वाचनान्तरे आवश्यकानुसारेण दृश्यन्ते (व)।
फासे य सपप्प मणुण्णपावए । आवश्यकनियुक्तेरवचूर्णी पंचविशंति भावनानां गिहीपदोसं न करेज्ज पंडिए, विवरणमित्थं लभ्यते--
स होइ दंते विरए अकिंचणे ॥५॥ इरियासमिए सया जए,
-आवश्यकनियुक्तेरवचूर्णि : पृ० १३४ उवेह भंजेज्ज व पाणभोयणं । ३. सत्थपरिण्णा लोग- आवाणनिक्खेवदुगंछ संजए,
विजओ सीओसणीअ सम्मत्तं । समाहिए संजमए मणोवई ॥१॥
आवंतिधुयविमोह, अहस्ससच्चे अणुवीइ भासए,
उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥१॥
२. पिंडेसण सिज्जिरिआ, जे कोहलोहभयमेव वज्जए।
भासज्झयणा य वत्थ पाएसा। स दीहरायं समुपेहिया सिया,
उग्गहपडिमा सत्तिक्क, मुणी हु मोसं परिवज्जए सया ॥२॥
सत्तया भावण विमुत्ती ॥२॥ सयमेव उ उग्गहजायणे घडे,
निसीहज्झयण पणवीसइम । मतिमं निसम्म सह भिक्खु उपाहं । प्रयुक्तप्रतिषु गाथे इमे नोपलभ्येते । वृत्तावपि अणुण्णविय भुंजिज्ज पाणभोयणं,
न स्त इमे व्याख्याते । मुद्रितप्रतिषु च जाइत्ता साहमियाण उग्गहं ॥३॥ लभ्येते । तथाऽनयोः पुरतः 'निसीहज्झयणं आहारगुत्ते अविभूसियप्पा,
पणवीसइम' इत्यपि पाठो विद्यते । अयमनाइत्थिं निझाइ न संथवेज्जा।
वश्यकोस्ति । पंचविंशतिरध्ययनानि द्वयोबुद्धो मुणी खुड्डकहं न कुज्जा,
राचाराङ्गयोरेव सन्ति । धम्माणुपेही संधए बंभचेरं ॥४॥ ४. अपज्जत्तए णं (ख) ।
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८६४
समवाओ
ओरालि यसरी रंगो वंगनामं सेवट्टसंघयणनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं तिरियाणुपुव्विनामं अगरुयलहुयनामं उवघायनामं तसनामं बादरनामं अपज्जत्तयनामं पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुभनामं दुभगनामं अणादेज्जनामं अजसोकित्तिनामं निम्माणनामं ॥
७. गंगासिंधूओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएण मुत्तावलिहार-संठिएणं पवातेणं पवडंति ॥
८. रत्तारत्तवतीओ णं महाणदीओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ मकरमुहपवित्तिएण मुत्तावलिहार-संठिएणं पवातेणं पवडंति ॥
६. लोगविदुसारस्य णं पुव्वयस्स पणवीसं वत्थू पण्णत्ता ॥
१०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पणवीमं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥
११. असत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
१२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं पणवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं पणवीसं पलिओ माई ठिई
पण्णत्ता ॥
१४. मज्झिम हेट्टिम - वेज्जाणं देवाणं जहणेणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १५. जे देवा हेट्ठिम उवरिम - गेवेज्जगविमाणेसु देवत्ताए उबवण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१६. ते णं देवा पणवीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१७. तेसि णं देवाणं पणवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुपज्जइ ॥
१८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पणवीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति 'बुझिसंति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ॥
छव्वीसइमो समवाओ
१. छव्वीसं दस- कप्प - ववहाराणं उद्देसणकाला पण्णत्ता, तं जहा - दस दसाणं, छ कप्पस्स, दस ववहारस्स ॥
२. अभवसिद्धियाणं जीवाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स छव्वीस कम्मंसा संतकम्मा
१. छेव° (क्व ) ।
२. अगरु लहु ० ( ख, ग ); अगुरुलहु ( क्व ) ।
३,४. पुहत्तेणं (क, ख, ग ) ।
५. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
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सत्तावीसइमो समवाओ
८६५
पण्णत्ता, तं जहा—मिच्छत्त मोहणिज्जं सोलस कसाया इत्थीवेदे पुरिसवेदे नपुंसकवे हा अरति रति भयं सोगो दुगंछा' ।।
३. इमी से णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता ||
४. असत्तमाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरइयाणं छव्वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
५. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ६. सोहम्मीसाणे कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं छव्वीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
७. मज्झिम-मज्झिम- गेवेज्जयाणं देवाणं जहणणेणं छव्वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
८. जे देवा मज्झिम हेट्टिम - गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
६. ते णं देवा छव्वीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ॥
१०. तेसि णं देवाणं छव्वीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ॥
११. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे छब्वीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति* "बुझिसंति मुच्चिसंति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
सत्तावीसइमो समवाओ
o
१. सत्तावीसं अणगारगुणा पण्णत्ता, तं जहा - पाणातिवायवेरमणे" "मुसावायवेरमणे अदिण्णादाण वेरमणे मेहुणवेरमणे परिग्गहवेरमणे • सोइंदियनिग्गहे " चक्खिदिनिग्गहे घाणिदियनिग्गहे जिम्भिदिय निग्गहे फासिंदियनिग्गहे कोहविवेगे' 'माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे भावसच्चे करणसच्चे जोग - सच्चे खमा विरागता मणसमाहरणता वतिसमाहरणता कायसमाहरणता णाणसंपण्णया दंसणसंपण्णया चरित्तसंपण्णया वेयणअहियासणया " मारणंतियअहियासणया ||
१. मच्छो ० ( क ) ।
२. सोगं ( क ) ।
३. दुगुंछं ( क ) ।
४. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण | ५. वेरमणा (क) ।
o
६. सं० पा० एवं पंचवि ।
७. सं० पा० - सोइंदियनिग्गहे जाव फासिदिय ° । ८. स० पा०—कोहेविवेगे जाव लोभ° ।
C.
१०.
समन्नाहरणया ( वृपा ) |
० अधेया ० ( क ) |
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८६६
समवाओ
२. जंबद्दीवे दीवे अभिइवज्जेहि सत्तावीसाए णक्खत्तेहिं संववहारे वट्टति ॥ ३. एगमेगे णं णक्खत्तमासे 'सत्तावीसं राइंदियाई" राइंदियग्गेणं पण्णत्ते ।। ४. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी सत्तावीसं जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ता॥ ५. वेयगसम्मत्तबंधोवरयस्स णं' मोहणिज्जस्स कम्मस्स सत्तावीसं 'कम्मंसा संत
कम्मा पण्णत्ता॥ ६. सावण-सुद्ध-सत्तमीए णं सुरिए सत्तावीसंगुलियं पोरिसिच्छायं णिव्वत्तइत्ता णं
दिवसखेत्तं निवड्ढेमाणे रयणिखेत्तं अभिणिवड्ढेमाणे चारं चरइ ।। ७. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता । ८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तावीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥ ६. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तावीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता॥ १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
मज्झिम-उवरिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ १२. जे देवा मज्झिम-मज्झिम-गेवेज्जयमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १३. ते णं देवा सत्तावीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १४. तेसि णं देवाणं सत्तावीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तावीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
१. सत्तवीस रातिदियाइं (ख); सत्तावीसं राइंदियं शब्दार्थः सत्तावस्थं कर्म कृतोस्ति। अत्र (ग)।
'उत्तरप्रकृतिः' शब्दो मूलपाठे समागतस्तथा २. X (क, ग)।
'संतकम्म' शब्दस्य स्थाने 'सतकम्मसा' इति ३. उत्तरपगडीओ संतकम्मंसा (क, ख, ग, वृ); पाठो जातः । एतत् परिवर्तन किमर्थजात
एकविंशतितमे समवाये 'कम्मंसा संतकम्मा' मितिकारणं न ज्ञायते । प्रतीयते व्याख्यांश एवं पाठो विद्यते । षड्विंशतितमे अष्टा- एव मूले स्थान प्राप्तोस्ति । तेनास्माभिर्मूलविंशतितमे समवाये चापि एवमेव । एक- पाठः पूर्वपाठानुसारी स्वीकृतः । त्रिंशतितमे समवाये वृत्तिकृता 'कम्मस' ४. णिव्वड्ढे ° (ग)। शब्दस्यार्थ उत्तरप्रकृतिस्तथा 'संतकम्म' ५. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ।
मा
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अट्ठावीसइमो समवाओ
८६७ अट्ठावीसइमो समवाओ १. अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे' पण्णत्ते, तं जहा
मासिया आरोवणा, सपंचरायमासिया आरोवणा, सदसरायमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायमासिया आरोवणा, सवीसइरायमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायमासिया आरोवणा। "दोमासिया आरोवणा, सपंचरायदोमासिया आरोवणा, सदसरायदोमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायदोमासिया आरोवणा, सवीसइरायदोमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायदोमासिया आरोवणा। तेमासिया आरोवणा, सपंचरायतेमासिया आरोवणा, सदसरायतेमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायतेमासिया आरोवणा, सवीसइरायतेमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायतेमासिया आरोवणा। चउमासिया आरोवणा, सपंचरायचउमासिया आरोवणा, सदसरायचउमासिया आरोवणा, सपण्णरसरायचउमासिया आरोवणा, सवीसइरायचउमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायचउमासिया आरोवणा° । उग्घातिया आरोवणा, अणुग्घातिया आरोवणा, कसिणा आरोवणा, अकसिणा आरोवणा।
एत्ताव ताव आयारपकप्पे एत्तावताव आयरियव्वे ॥ २. भवसिद्धियाणं जीवाणं अत्थेगइयाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मंसा
संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मत्तवेअणिज्ज मिच्छत्तवेयणिज्जं सम्ममिच्छत्त
वेयणिज्ज" सोलस कसाया णव णोकसाया ।।। ३. आभिणिबोहियणाणे अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तं जहा
सोइंदियत्थोग्गहेर चक्खिदियत्थोग्गहे घाणिदियत्थोग्गहे जिभिदियत्थोग्गहे फासिदियत्थोग्गहे णोइंदियत्थोग्गहे। सोइंदियवंजणोग्गहे घाणिदियवंजणोग्गहे जिभिदियवंजणोग्गहे फासिदियवंजणोग्गहे।
१. अट्ठावीसइविहे (ख, ग)।
७. आयारकप्पे (क)। २. आयारकप्पे (क)।
८. इत्ताव (क, ग)। ३. सं० पा०-एवं चेव दोमासिया आरोवणा ६. आया ° (क, ख)।
संपंचरायदोमासिया आरोवणा एवं तेमा- १०. सतकम्म (क); संतकम्मं (ग)। सिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा। ११. सम्मा० (ख); सम्मत्त ° (ग)। ४. उवघातिया (ग)।
१२. सोतिदियत्थोवग्गहे (ग)। ५. अणुवघातिया (ग)।
१३. चक्खंदियत्थोग्गहे (ख); चक्खं दिय स्थावग्गहे ६. इत्ताव (क, ग)।
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८६८
समवाओ सोतिदियईहा' चक्खिदियईहा धाणिदियईहा जिभिदियईहा° फासिंदियईहा णोइंदियईहा। सोतिदियावाते' चक्खिदियावाते घाणिदियावाते जिभिदियावाते फासिंदियावाते ° णोइंदियावाते। सोइंदियधारणा' 'चक्खिदियधारणा घाणिदियधारणा जिभिदियधारणा
फासिदियधारणा० णोइंदियधारणा॥ ४. ईसाणे णं कप्पे अट्ठावोसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। ५. जीवे णं देवगति णिबधमाणे नामस्स कम्मस्स अट्ठावीसं उत्तरपगडोओ णिबंधति,
तं जहा-देवगतिनामं पंचिदियजातिनामं वेउव्वियसरीरनामं तेययसरीरनाम कम्मगसरीरनामं समचउरससंठाणनामं वेउव्वियसरीरंगोवंगनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं देवाणुपुग्विनाम अगरुयलहुयनाम उवधायनाम पराघायनाम ऊसासनामं पसत्थविहायगइनामं तसनामं बायरनामं पज्जत्तनाम पत्तेयसरीरनाम थिराथिराणं' दोण्हमण्णयरं एगं नाम णिबंधइ, सुभासुभाणं दोण्हमण्णयरं एगं नामं णिबंधइ, सुभगनामं सुस्सरनामं, आएज्ज-अणाएज्जाणं
दोण्हं अण्णयरं एगं नामं णिबंधइ, जसोकित्तिनामं निम्माणनामं ॥ ६. एवं चेव नेरइयेवि', नाणत्तं अप्पसत्थविहायगइनामं हुडसंठाणनामं अथिरनामं
दुब्भगनामं असुभनामं दुस्सरनाम अणादेज्जनामं अजसोकित्तीनामं॥ ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ ८. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ १. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ११. उवरिम-हेट्ठिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ १२. जे देवा मज्झिम उवरिम-गवेज्जएसु विमाणेसु देवताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।।
१. सं० पा०-सोतिदिथईहा जाव फासिदियईहा। ६. अजसोकित्तीनामं निम्माणनाम (क, ख, ग); २. संपा०-मोतिदियावाते जाव णोइंदियावाते। एष पाठोऽनावश्यको भाति । वृत्तावपि एतत् ३. सं० पा०-सोइंदियधारणा जाव णोइंदि- संवादी उल्लेख: प्राप्यते-'नारकसूत्रे विंशतिधारणा।
स्ता एव प्रकृतयोऽष्टानां तु स्थाने अष्टावन्या ४. थिरमथिराण (क)।
बध्नाति' (वृत्ति, पत्र ४७) । ५. णेरइयावि (ख, ग)।
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greatest समवाओ
६६६
१३. ते णं देवा अट्ठावीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।।
१४. तेसि णं देवाणं अट्ठावीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ ||
१५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे अट्ठावीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति' "बुज्भिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
o
तीस मोसमवाम्रो
१. एगूणतीसइविहे पावसुयपसंगे गं पण्णत्ते, तं जहा - भोमे उप्पाए सुमिणे अंतलिक्खे अंगे सरे वंजणे लक्खणे ।
भो तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुत्ते वित्ती वत्तिए, एवं एक्केक्कं तिविहं । विकहाणुजोगे विज्जाणुजोगे मंताणुजोगे जोगाणुजोगे अण्णतित्थियपवत्ताणुजोगे ॥
२. आसाढे णं मासे एकूणतीसराइंदिआई राइदियग्गेणं पण्णत्ते ॥ ३. भद्दवए णं मासे एकूणतीसराइदिआई राइदियग्गेणं पण्णत्ते || ४. कत्तिए णं मासे एकूणतीसराइदिआई राईदियग्गेणं पण्णत्ते || ५. पोसे णं मासे एकूणतीसराइदिआई राईदियग्गेणं पण्णत्ते ॥
६. फग्गुणे णं मासे एकूणतीसराइदिआई राइदियग्गेणं पण्णत्ते || ७. वइसाहे णं मासे एकूणतीस राइदिआई राइदियग्गेणं पण्णत्ते || ८. चंददिणे णं एगूणतीसं मुहुत्ते सातिरेगे मुहुत्तग्गेणं' पण्णत्ते ॥
६. जीवे णं पसत्थज्भवसाणजुत्ते भविए सम्मदिट्ठी 'तित्थकरनामसहियाओ नामस्स कम्मस्स" णियमा एगूणतीसं उत्तरपगडीओ निबंधित्ता वेमाणिएसु देवेसु देवत्ताए उववज्जइ ॥
१०. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
११. असत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाई ठिई
पण्णत्ता ॥
१२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ॥
१. सं० पा० - सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण ● |
२. भोमे उप्फर ( क ) ।
३. ० पवत्तणाणुयोगे ( क ) ।
४. सं० पा० भद्दवए णं मासे कित्तिए णं पोसे फग्गुणं वइसाहेणं मासे ।
५. पोसिए ( ग ) ।
६. मुहत्तेणं ( ग ) ।
७. तित्थकरसहिताओ नामस्स ( क ) ; तित्थकर - नामस्य ( ग ) ।
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६७०
समवाओ
१३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ १४. उवरिम-मज्झिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता। १५. जे देवा उवरिम-हेट्ठिम-गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १६. ते णं देवा एगूणतीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १७. तेसि णं देवाणं एगूणतीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ॥ १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एगूणतीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
तीसइमो समवाओ १. तीसं मोहणीयठाणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी-गाहा
जे यावि तसे पाणे, वारिमझे विगाहिया। उदएण क्कम्म मारेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥१॥ सीसावेढेण' जे केई, आवेढेइ अभिक्खणं । तिव्वासुभसमायारे', महामोहं पकुव्वइ ॥२॥ पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं । अंतोनदंतं मारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥३॥ जायतेयं समारब्भ, बहुं ओलंभिया जणं । अंतोधूमेण मारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥४॥ सिस्सम्मि जे पहणइ, उत्तमंगम्मि चेयसा। विभज्ज मत्थयं फाले, महामोहं पकुव्वइ ॥५॥
१. सं० पा०–सिज्झिस्संति जाव सव्व- ४. यावत्करणात् केषुचित्सूत्रपुस्तकेषु शेषमोहदुक्खाण° ।
नीयस्थानाभिधानपरा: श्लोकाः सूचिताः, २. सीसो० (ग)।
केषुचित् दृश्यन्त एवेति ते व्याख्यायन्ते (वृ)। ३. तिव्वे असुभ° (क, ग)।
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तीसइमो समवाओ
८७१
पुणो पुणो पणिहिए, हणित्ता उवहसे जणं'। फलेणं अदुव दंडेणं, महामोहं पकुव्वइ ।।६।। गूढायारी निगृहेज्जा, मायं मायाए छायए । असच्चवाई णिण्हाई', महामोहं पकुव्वइ ॥७॥ धसेइ जो अभूएणं, 'अकम्मं अत्तकम्मुणा' । अदुवा' तुम कासित्ति, महामोहं पकुव्वइ ॥८॥ जाणमाणो' परिसओ, सच्चामोसाणि भासइ । अज्झीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वइ ।।६।। अणायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया। विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चा णं पडिबाहिरं ॥१०॥ उवगसंतंपि झपित्ता, पडिलोमाहि वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥११॥ (युग्मम् ) अकुमारभूए जे केई, कुमारभूएत्तहं वए। इत्थीहिं गिद्धे वसए, महामोहं पकुव्वइ ॥१२॥ अभयारी जे केई, बंभयारीत्तहं वए । गद्दभेव्व गवां मज्झे, विस्सरं नयई नदं ॥१३॥ अप्पणो 'अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे । इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वइ ॥१४॥ (युग्मम् ) जं निस्सिए उव्वहइ, जससाअहिगमेण वा। तस्स लुब्भइ वित्तम्मि, महामोहं पकुव्वइ ॥१५॥ ईसरेण अदुवा गामेणं, अणिस्सरे ईसरीकए"। तस्स (संपग्गहीयस्स, सिरी अतुलमागया ॥१६।। ईसादोसेण आइटे, कलुसाविलचेयसे२ । जे 'अंतरायं चेएइ, महामोहं पकुव्वइ ॥१७॥ (युग्मम् ) 'सप्पी जहा अंड उडं, भत्तारं जो विहिंसइ ।
सेणावई पसत्थारं, महामोहं पकुव्वइ ॥१८॥ १. जणा (क)।
८. त्तिहं (क, ग)। २. णिगिण्हाई (ग)।
६. बंभयारिहं (क)। ३. कम्मं असत्त ° (ग)।
१०. अहियाले (क); अहियं बाले (ग)। ४. अहवा (क)।
११. इस्सरे° (क)। ५. °माणओ (क)।
१२. ° उलचेवसा (ग)। ६. दारं (क, ख, ग)।
१३. अंतराइं चेति (ग)। ७. भोग (क):
१४. सप्पेजहाअंडपुडं (ग)।
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८७२
समवाओ
जे नायगं व रटुस्स, नयारं निगमस्स वा। सेट्टि बहुरवं हंता,' महामोहं पकुव्वइ ।।१९।। बहुजणस्स णेयारं, दीवं ताणं च पाणिणं । एयारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वइ ।।२०॥ उवट्ठियं पडिविरयं, 'संजयं सुतवस्सियं' । वोकम्म धम्माओ भंसे', महामोहं पकुव्वइ ॥२१॥ तहेवाणतणाणीणं, जिणाणं वरदंसिणं । तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वइ । नेयाउअस्स मग्गस्स, दुढे अवयरई' बहुं ॥२२॥ तं तिप्पयंतो भावेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥२३॥ आयरियउवज्झाएहि, सुयं विणयं च गाहिए। ते चेव खिसई बाले, महामोहं पकुव्वइ ॥२४॥ आयरियउवझायाणं, सम्मं नो पडितप्पइ । अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वइ ॥२५।। अबहुस्सुए य जे केई, सुएण पविकत्थइ । सज्झायवायं [ सब्भाववायं? ] वयइ,महामोहं पकुव्वइ ॥२६॥ अतवस्सीए य जे केई, तवेण पविकत्थई । सव्वलोयपरे तेणे, महामोहं पकुव्वइ ।।२७।। साहारणट्ठा जे केई, गिलाणम्मि उवट्ठिए । पभू ण कुणई किच्चं, मज्झपि से न कुव्वइ ॥२८॥ सढे नियडीपण्णाणे, कलुसाउलचेयसे । अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुव्वइ ॥२६॥ (युग्मम्)
१. हत्ता (क)।
दशाश्रुतस्कन्धस्य (सू० २६) वृत्तौ 'सद्भाव२. सजयं सुतवस्सिणं (क); जे भिक्खं जगजीवनं
वादं' इति व्याख्यातमस्ति । तेन प्रतीयते (ग, वृपा)।
'सब्भाववायं' इति पाठः आसीत् । प्राचीन३. भंस (क); भंसेइ (ख)।
लिप्यां संयुक्त 'भकारस्य' तथा संयुक्त ‘झका४. अवण्णिम (क); अवण्ण (ग)।
रस्य' प्रायः सादृश्यमेव । तेन 'सब्भाव' इत्यस्य ५. अवग्गरई (क); अवहरई (वृपा)। ६. पिप्प° (ग)।
स्थाने 'सज्झाय' इति परिवर्तनं जातम् । ७. परिकथई (ग)।
अर्थसमीक्षया 'सब्भाववायं' इति पाठः समी८. समवायाङगेसु आदर्शषु 'सज्झायवाय' इति चीनः प्रतिभाति ।
पाठो लभ्यते। वृत्तावपि अभयदेवसूरिणा ६. उ (ग)। 'स्वाध्यायवाद' इति व्याख्यातम् । किन्तु अर्थ- १०. परिकथई (ग)। मीमांसया मीमांसनीयोसौ पाठः प्रतिभाति । ११. ०चेयसा (ग)।
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तीसइमो समवाओ
८७३
जे कहाहिगरणाई, संपउंजे' पुणो पुणो । सव्वतित्थाण भेयाय', महामोहं पकुव्वइ ॥३०॥ जे य आहम्मिए जोए, संपउंजे पुणो पुणो । सहाहेउं सहीहेडं, महामोहं पकुव्वइ ॥३१॥ जे य. माणुस्सए भोए, अदुवा पारलोइए । तेऽतिप्पयंतो' आसयइ, महामोहं पकुव्वइ ॥३२॥ इडी जुई जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।। तेसि अवण्णव बाले, महामोहं पकव्वइ ॥३३।। अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे।
अण्णाणि जिणपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वइ ॥३४।। २. थेरे णं मंडियपुत्ते तीसं वासाइं सामण्णपरियायं पाउणित्ता सिद्ध बुद्धे 'मुत्ते ___ अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ३. एगमेगे णं अहोरत्ते 'तीसं महत्ता महत्तग्गेणं पण्णत्ता 'एएसि णं तीसाए
मुहुत्ताणं तीसं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-रोद्दे सेते मित्ते वाऊ सुपीए' अभियंदे माहिंदे पलंबे बंभे सच्चे आणंदे विजए वीससेणे वायावच्चे उवसमे ईसाणे तिट्टे भावियप्पा वेसमणे वरुणे सतरिसभे गंधव्वे अग्गिवेसायणे आतवं
आवधं तद्ववे" भूमहे रिसभे" सव्वदृसिद्धे रक्खसे ।। ४. अरे णं अरहा तीसं धणुइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । ५. सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरण्णो तीसं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ६. पासे णं अरहा तीसं वासाइं अगारमज्झे वसित्ता [मुंडे भवित्ता ? ] अगाराओ __ अणगारियं पव्वइए। ७. समणे भगवं महावीरे तीसं वासाइं अगारमज्झे वसित्ता [मुडे भवित्ता ?]
अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।
१. संपउंजिय (ग)। २. भेयाणं (ग)। ३. °तप्पि° (ग)। ४. अवण्णिय (ग)। ५. स० पा०-बुद्धे जाव सव्वदुक्ख । ६. तीसमुहुत्ते (क्व)। ७. तेसिणं (ख)। ८. तीसे (ख)। ६. सुविए (ग)।
१०. अभिइंदे (ग); अभिचंदे (क्व) । ११. पलंबं (ख, ग)। १२. तट्टे (क्व)। १३. आवत्ते (क्व)। १४. तट्ठवं (ख, ग)। १५. रिसवे (ग)। १६. ° मज्झा (क, ख); आगारमझा (ग);
अगारवासमझे (क्व)। १७. अगारमझा (क, ख, ग)।
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८७४
समवाओ
८. रयणप्पभाए णं पुढवीए तीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ६. इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता ।। १०. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ ११. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥
[सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं तीसं पलिओवमाइं ठिई
पण्णत्ता'?] । १२. उवरिम-उवरिम-गेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १३. जे देवा उवरिम-मज्झिम-गवेज्जएसु विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १४. ते णं देवा तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा उससंति वा नीससंति
वा॥ १५. तेसि णं देवाणं तीसाए वाससहस्से हिं आहारट्टे समुप्पज्जइ॥ १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति' 'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
एक्कतीसइमो समवाओ १. एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, तं जहा-खीणे आभिणिबोहियणाणावरणे',
खीणे सुयणाणावरणे, खोणे ओहिणाणावरणे, खीणे मणपज्जवणाणावरणे, खीणे केवलणाणावरणे, खीणे चक्खुदंसणावरणे, खीणे अचक्खुदंसणावरणे, खीणे ओहिदसणावरणे, खीणे केवलदसणावरणे, ‘खीणा निद्दा, खीणा णिहाणिद्दा, खीणा पयला, खीणा पयलापयला, खोणा थोणगिद्धो", खीणे सायावेयणिज्जे, खीणे असायावेयणिज्जे, खीणे दंसणमोहणिज्जे, खोणे चरित्तमोहणिज्जे, खीणे नेरइयाउए, खीणे तिरियाउए, खीणे मणुस्साउए, खीणे देवाउए, खीणे उच्चागोए, खीणे नियागोए, खीणे सुभणामे, खीणे असुभणामे, खीणे दाणंतराए, खीणे लाभंतराए, खीणे भोगंतराए, खोणे उवभोगंतराए, खीणे
वीरियंतराए॥ २. मंदरे णं पव्वए धरणितले एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च' तेवीसे जोयणसए
किंचिदेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ १. पूर्वक्रमानुसारेणष पाठोत्रयुज्यते ।
थीणगद्धी (ग); ° थीणद्धी (क्व) । २. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण । ५. छच्चेव (क्व)। ३. ०णाणावरणिज्जे (ख)।
६. देसूणं (क)। ४. निदा पयला निद्दा २ पयला २ खीणे
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बत्तीसइमो समवाओ
८७५
३. जया णं सूरिए सव्वबाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ता णं चार चरइ तया णं
इहगयस्स मणुस्सस्स एक्कतीसाए जोयणसहस्सेहिं अट्ठहि य एक्कतीसेहि जोयण
सएहि तीसाए सट्ठिभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुप्फास हव्वमागच्छइ ।। ४. अभिवड्डिए णं मासे एक्कतीसं सातिरेगाणि राइंदियाणि राइंदियग्गेण
पण्णत्ताइ॥ ५. आइच्चे णं मासे एक्कतीसं राइंदियाणि किंचि विसेसूणाणि राइंदियग्गेणं
पण्णत्ताई॥ ६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं ने रइयाणं एक्कतीसं पलिओवमाई
ठिई पण्णत्ता॥ ७. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ ८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। है. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एक्कतीसं पलिओवमाई ठिई
पण्णत्ता॥ विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं देवाणं जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ ११. जे देवा उवरिम-उवरिम-गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए । उववण्णा, तेसि णं देवाणं
उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १२. ते णं देवा एक्कतीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १३. तेसि णं देवाणं एक्कतीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जोवा, जे एक्कतीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति ° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
बत्तीसइमो समवाओ १. बत्तीसं जोगसंगहा पण्णत्ता, तं जहा
आलोयणा निरवलावे, आवईसु दढधम्मया। अणिस्सिओवहाणे य, सिक्खा निप्पडिकम्मया ॥१॥ अण्णातता अलोभे य, तितिक्खा अज्जवे सूती। सम्मदिट्ठी समाही य, आयारे विणओवए ॥२॥
१.
X (क, ग)।
२. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण।
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समवा
धिईमई य संवेगे, पणिही सुविहि संवरे । अत्तदोसोवसंहारे, सव्वकामविरत्तया ॥३॥ पच्चक्खाणे विउस्सग्गे, अप्पमादे लवालवे । झाणसंवरजोगे य, उदए मारणंतिए ।।४।। संगाणं च परिणा', पायच्छित्तकरणेत्ति य ।
आराहणा य मरणंते, बत्तीस जोगसंगहा ।।५।। २. बत्तीसं देविदा पण्णत्ता, तं जहा-चमरे बली धरणे भूयाणंदे' 'वेणुदेवे वेणुदाली
हरि हरिस्सहे अग्गिसहे अग्गिमाणवे पुन्ने विसिट्टे जलकते जलप्पभे अमियगती अमितवाहणे वेलंबे पभंजणे ° घोसे महाघोसे चंद सूरे सक्के ईसाणे सणंकुमारे
'माहिदे बंभे लंतए महासुक्के सहस्सारे पाणए अच्चुए ।। ३. कुंथुस्स णं अरहओ बत्तीसहिया बत्तीसं जिणसया होत्था ॥ ४. सोहम्मे कप्पे बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता॥ ५. रेवइणक्खत्ते बत्तीसइतारे पण्णत्ते ॥ ६. बत्तीसतिविहे णट्टे पण्णत्ते ॥ ७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता ।। ८. अहेसत्तमाए पुढवोए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता ॥ है. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। १०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ ६१. जे देवा विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं
देवाणं अत्थेगइयाणं बत्तीसं सागरोवमाइंठिई पण्णत्ता ।। १२. ते णं देवा बत्तीसाए अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा॥ १३. तेसि णं देवाणं बत्तीसाए वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पज्जइ ।। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे बत्तीसाए भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति'
'बुझिस्संति मुच्चिस्संति, परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।।
१. परिणाया (ख); परिणाए (ग)। २. सं० पा०-भूयाणदे जाव घोसे । ३. समवायाङ्गवृत्ती 'हरि' स्थाने 'हरिकते' पाठोस्ति । स्थानाङ्गपि लाकपाल-प्रकरणे (४११२२) 'हरिकंतस्स' पाठो विद्यते । 'हरि' अस्यैव संक्षेपः प्रतीयते।
४. समवायाङ्गवृत्ती 'वसिडे' पाठोस्ति । ५. सं० पा०-सणंकुमारे जाव पाणए । ६. समवायाङ्गवृत्ती 'सुक्के' पाठोस्ति । ७. बत्तीसं जिणा (क, ख);X (ग)। ८. सं० पा०-सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण°।
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तेत्तीसइमो समवाओ
८७७
।
तेत्तीसइमो समवाओ १. तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गता भवइ—'आसायणा सेहस्स"।
सेहे राइणियस्स परओ गंता भवइ-आसायणा सेहस्स। ३. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ-आसायणा सेहस्स। ४. सेहे राइणियस्स आसन्नं ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स' । ५. 'सेहे राइणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स। ६. सेहे राइणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ-आसायणा सेहस्स । ७. सेहे राइणियस्स आसन्न निसीइत्ता भवइ-आसायणा सेहस्स । ८. सेहे राइणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ--आसायणा सेहस्स । ६. सेहे राइणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ-आसायणा सेहस्स । १०. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खंते समाणे पुवामेव
सेहतराए आयामेइ पच्छा राइणिए-आसायणा सेहस्स ।। - ११. सेहे राइणिएण सद्धि बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खंते
समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए आलोएति पच्छा राइणिए-आसायणा
सेहस्स। १२. सेहे राइणियस्स रातो वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो के सूत्ते ? के
जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे राइणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति
आसायणा सेहस्स। १३. केइ राइणियस्स पुव्वं संलवित्तए सिया, तं सेहे पुव्वतरागं आलवेति पच्छा
राइणिए-आसायणा सेहस्स । १४. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुव्वमेव
सेहतरागस्स आलोएइ, पच्छा राइणियस्स-आसायणा सेहस्स। १५. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुत्वमेव
सेहतरागस्स उवदसेति, पच्छा राइणियस्स-आसायणा सेहस्स ।
१. X (क, ख, ग)। २. सं० पा०-सेहस्स जाव सेहे राइणियस्स ।
अस्मिन् सूत्रे पच आशातनाः प्रत्यक्षमुल्लिखिताः सन्ति, शेषाश्च जाव शब्देन सूचिताः । वृत्तिकृता समर्पणस्य पूर्तिकृते दशाश्रतस्कन्धस्य निर्देशः कृतः, यथा-"यावत्करणादशाश्रुत कन्धानुसारेणान्या इह) द्रष्टव्याः” ।
तथा अर्थरूपेण सर्वासामप्याशातनानामुल्लेखो वत्तिकृता कृतः। वृत्तिकृतः क्रमो दशाश्रतस्कन्धप्राप्तक्रमाद् भिन्नोस्ति । संभाव्यते वृत्तिकर्तुः समक्षे दशाश्रु तस्कन्धस्य काचिदन्या वाचनासीत् । अस्माभिः पाठपूतिर्दशाश्रु तस्कन्धमनुसृत्य कृता, क्रमश्च वृत्त्यानुसारी स्वीकृतः ।
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८७८
समवाओ
१६. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुव्वमेव सेहत रागं उवणिमंते, पच्छा राइणिय - आसायणा सेहस्स ।
१७. सेहे राइणिएण सद्धि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं राइणियं अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स - तस्स खर्द्ध-खद्धं दलय -- आसायणा सेहस्स ।
१८. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता राइणिएण सद्धि आहरेमाणे तत्थ सेहे खद्ध-खद्धं डायं-डायं ऊसढं - ऊसढं रसितं - रसितं मणुण्णं-मणुण्णं मणामं-मणामं निद्धं निद्धं लुक्खं लुक्ख आहरेत्ता भवइआसाणा सेहस्स ।
१६. सेहे राइणियस्स वाहरमाणस्स अपडिसुणेत्ता भवइ - आसायणा सेहस्स । २०. सेहे राइणियस्स खद्ध-खद्धं वत्ता भवति - आसायणा सेहस्स ।
२१. सेहे राइणियस्स 'किं' ति वइत्ता भवति आसायणा सेहस्स । २२. सेहे राइणियं 'तुम' ति वत्ता भवति - आसायणा सेहस्स ।
२३. सेहे राइणियं तज्जाएण-तज्जाएण पडिभणित्ता भवइ - आसायणा सेहस्स । २४. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स ' इति एवं' ति वत्ता न भवति - आसाणा सेहस्स |
२५. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स 'नो सुमरसी'ति वत्ता भवति आसाणा सेहस्स |
२६. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवति - आसायणा सेहस्स |
२७. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवति - आसायणा सेहस्स ।
२८. सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्ठिताए अभिन्नाए अच्छिन्नाए अन्वगडाए दोच्चं पि तमेव कहं कहित्ता भवति - आसायणा सेहस्स |
२६. सेहे राइणियस्स सेज्जा - संथारगं पाएणं संघट्टित्ता, हत्थेणं अणणुण्णवेत्ता गच्छति - आसायणा सेहस्स ।
३०. सेहे राइणियस्स सेज्जा-संथारए चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवइ - आसाणा सेहस्स ।
३१. सेहे राइणियस्स उच्चारणे चिट्ठित्ता वा निसीहत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति - आसायणा से हस्स ।
३२. सेहे राइणियस्स समासणे चिट्टित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति - आसाणा सेहस्स° ।
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चोत्तीसइमो समवाओ
८७६ ३३. सेहे राइणियस्स आलवमाणस्स तत्थगते चिय पडिसुणित्ता "भवइ
आसायणा सेहस्स॥ २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो चमरचचाए रायहाणीए एक्कमेक्के वारे
तेत्तीसं-तेत्तीसं भोमा पण्णत्ता । ३. महाविदेहे णं वासे तेत्तीसं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ४. जया णं सुरिए 'बाहिराणं अंतरं" तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ, तया
णं इहगयस्स पुरिसस्स तेत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं किंचिविसेसूणेहिं चक्खुप्फासं
हव्वमागच्छइ॥ ५. इमीसे णं रयप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेत्तीसं पलिओवमाइं
ठिई पण्णत्ता॥ ६. अहेसत्तमाए पुढवीए काल-महाकाल-रोरुय-महारोरुएसु नेरइयाणं उक्कोसेणं
तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ ७. अप्पइट्ठाणनराए नेरइयाणं अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई
पण्णत्ता॥ ८. असुरकुमाराणं अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ ६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ १०. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु विमाणेसु उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई
ठिई पण्णत्ता ॥ ११. जे देवा सव्वदसिद्धं महाविमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं
अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ १२. ते णं देवा तेत्तीसाए अद्ध मासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा
नीससंति वा ॥ १३. तेसि णं देवाणं तेत्तीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तेत्तीसाए भवग्गहहिं सिज्झिस्संति
'बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति° सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥
चोत्तीसइमो समवाओ १. चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे ।
२. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए ।
१. इति खलु एतातो तेत्तीसं आसायणाओ ३. बाहिराणं (क); वाहिराणंतर (क्व) । (क, ख, ग)।
४. सं० पा०-मिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाण२. मेक्क (ग)।
मंतं ।
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८८०
समवाओ
४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे । ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अहिस्से मंसचक्खणा। ६. 'आगासगयं चक्क"। ७. आगासगयं छत्तं । ८. आगासियाओ सेयवरचामराओ। ६. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं । १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरिमंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ । ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिटुंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव' संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउड ठाणमि तेयमंडलं 'अभिसंजायइ', अंधकारेवि य णं दस दिसाओ पभासेइ । १३. बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे। १४. अहोसिरा कंटया भवति । १५. उडुविवरीया सुहफासा' भवंति । १६. सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुएणं जोयणपरिमंडलं सव्वओ समंता संपमज्जिज्जति । १७. 'जुत्तफुसिएण य मेहेण निय-रय-रेणुयं कज्जइ । १८. जल-थलय-भासुर-पभूतेणं बिटट्ठाइणा दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणमित्ते पुप्फोवयारे कज्जई। १६. अमणुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं अवकरिसो भवइ । २०. मणुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं पाउब्भावो भवइ । २१. पच्चाहरओवि य ण हिययगमणोओ 'जोयणनोहारी सरो"१ २२. भगवं च णं अद्धमागहोए२ भासाए धम्ममाइक्खइ । २३. सावि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणो तेसि सव्वेसिं आरियमणारियाणं दुप्पय-चउप्पय-मिय-पसु-पक्खि-सिरीसिवाणं अप्पणो 'हिय-सिवसुहदाभासत्ताए" परिणमइ । २४. पुवबद्धवेरावि य णं देवासुर-नाग-सुवण्णजक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगा अरहओ पायमूले
१. आगासत चक्खु (क); आगासत्थं चक्कं (ग); ६. 'कालागुरुपवरकुंदुरुक्कधूवमघमघंतगधुद्धया___ आगासगं चक्कं (वृपा)।
भिरामे भवई' 'उभयो पासिं च णं अरहंताणं २. आगासगं (क, वृ)।
भगवंताणं दुवे जक्खा कडयतुडियर्थभियभुया ३. आगासगयाओ (ग)।
चामरुक्खेवणं करंति' बृहद्वाचनायामनन्तरोक्त४. तक्खणे ° (क)।
मतिशयद्वयं नाधीयते (वृ)। ५. समजायति (ग)।
१०. हियणतय° (क)। ६. 'अभि..."भासेइ' एतावान् पाठो वृत्तौ ११. °णीहारो भरो (क)। नास्ति व्याख्यात:।
१२. अद्धमागधाए (क, ख, ग)। ७. सुहु ° (क)।
१३. अद्धमागहा (ख); अद्धमागधा (ग) । ८. जुत्तफासएण य मेहेण (क); जुत्तिफुसिएण य १४. ° सुहदाय ° (ग)।
मेहेण य (ग)।
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पणतीसइमो समवाओ
८८१
पसंतचित्तमाणसा धम्म निसामंति। २५. 'अण्णउत्थिय-पावयणियावि' य ण मागया वंदति । २६. आगया समाणा अरहओ पायमूले निप्पडिवयणा हवंति। २७. जओ जओवि य णं अरहंतो भगवंतो विहरंति तओ तओवि य णं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ। २८. मारो न भवइ । २६. सचक्कं न भवइ । ३०. परचक्कं न भवइ । ३१. अइवटी न भवइ । ३२. अणावती न भवइ ३३. दुब्भिक्खं न भवइ। ३४. पुव्वुप्पण्णावि य णं' उप्पाइया वाही
खिप्पमिव उवसमंति ॥ २. जंबूद्दीवे णं दोवे चउत्तीसं चक्कवट्टिविजया पण्णत्ता, तं जहा-बत्तीसं
महाविदेहे, दो भरहेरवए॥ ३. जंबुद्दीवे णं दीवे चोत्तीसं दीहवेयड्ढा पण्णत्ता। ४. जंबुद्दोवे णं दोवे उक्कोसपए चोत्तोस तित्थंकरा समुप्पज्जंति ॥ ५. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो चोत्तीसं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता॥ ६. पढमपंचमछट्ठोसत्तमासु-चउसु पुढवोसु चोत्तोसं निरयावाससयसहस्सा
पण्णत्ता॥
पणतीसइमो समवाओ १. पणतीसं सच्चवयणाइसेसा' पण्णत्ता ॥ २. कुंथ णं अरहा पणतीसं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ३. दत्ते णं वासुदेवे पणतीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ४. नंदणे णं बलदेवे पणतीसं धणूइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
१. पावयणीवि (ख, ग)। २. x (वृ) बृहद्वाचनायामिदमन्यदतिशयद्वय
मधीयते, यदुत-अण्ण ...."वदंति । आगया
...."हवंति । (वृ)। ३. णं न भवइ (ग)। ४. X (ख, ग)। ५. सत्यवचनातिशया आगमे न दृष्टाः, एते तु
ग्रन्थान्तरदृष्टाः सम्भाविताः, वचनं हि गुणवद्वक्तव्यं, तद्यथा-संस्कारवत् १. उदात्तं २. उपचारोपेतं ३. गम्भीरशब्दं ४. अनुनादि ५. दक्षिणं ६. उपनीतरागं ७. महार्थं ८. अव्याहतपौर्वापर्यं ६. शिष्टं १०. असंदिग्धं ११. अपहृतान्योत्तरं १२.
हृदयग्राहि १३. देशकालाव्यतीतं १४. तत्त्वानुरूपं १५. अप्रकीर्णप्रसृतं १६. अन्योऽन्यप्रगृहीतं १७. अभिजातं १८. अतिस्निग्धमधुरं १६. अपरमर्मविद्धं २०. अर्थधर्माभ्यासानपेतं २१. उदारं २२. परनिन्दात्मोत्कर्षविप्रयुक्तं २३. उपगतश्लाघ २४. अनपनीतं २५. उत्पादिताच्छिन्नकौतूहलं २६. अद्भुतं २७. अनतिविलम्बितं २८. विभ्रमविक्षेपकिलिकिञ्चितादिविमुक्तं २६. अनेकजातिसंश्रयाद्विचित्रं ३०. आहितविशेष ३१. साकारं ३२. सत्त्वपरिग्रहं ३३. अपरिखेदितं ३४. अव्युच्छेदं ३५. चेति वचनं महानुभावैर्वक्तव्यमिति(व)।
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८९२
समवाओ
५. सोहम्मे कप्पे सुहम्माए सभाए माणवए चेइयक्खंभे हेट्ठा उवरिं च अद्धतेरस
अद्धतेरस जोयणाणि वज्जेत्ता मज्झे पणतीस' जोयणेसु वइरामएमु गोलवट्ट
समुग्गएसु जिण-सकहाओ पण्णत्ताओ॥ ६. बितियचउत्थीसु-दोसु पुढवीसु पणतीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥
छत्तीसइमो समवाओ १. छत्तीसं उत्तरज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा–विणयसुयं परीसहो' चाउरंगिज्ज
असंखयं अकाममरणिज्जं पुरिसविज्जा उरब्भिज्जं काविलिज्ज' नमिपव्वज्जा दुमपत्तयं बहुसुयपूया हरिएसिज्ज चित्तसंभूयं उसुकारिज्जं सभिक्खुगं समाहिठाणाइं पावसमणिज्ज संजइज्जं मिगचारिया अणाहपन्वज्जा समुद्दपालिज्जं रहनेमिजं गोयमकेसिज्ज समितीओ जण्णइज्जं सामायारी खलकिज्जं मोक्खमग्गगई अप्पमाओ तवोमग्गो चरणविही पमायठाणाई कम्मपगडी लेसज्झयणं
अणगारमग्गे जीवाजीवविभत्ती य॥ २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा छत्तीसं जोयणाई उड्ढं
उच्चत्तेणं होत्था ॥ ३. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स छत्तीसं अज्जाणं साहस्सीओ होत्था । ४. चेत्तासोएसु णं मासेसु सइ छत्तीसंगुलियं सूरिए पोरिसीछायं निव्वत्तइ ।।
सत्ततीसइमो समवाओ १. कुंथुस्स णं अरहओ 'सत्ततीसं गणा, सत्ततीसं गणहरा होत्था । २. हेमवयहेरण्णवइयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणसहस्साई छच्च
चोवत्तरें जोयणसए सोलसयएगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणाओ
आयामेणं पण्णत्ताओ॥ ३. सव्वासु णं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियासु रायहाणीसु पागारा सत्ततीसं
सत्ततीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ४. खुड्डियाए णं विमाणप्पविभत्तीए पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥
१. पणतीसाए (क)। २. परीसहा (क, ख); परीसह (ग)। ३. काविलियं (क्व)। ४. ° पुज्जा (क, ख, ग)।
५. पण्णत्ता (क, ग)। ६. X (क)। ७. बोहत्तरे (ख); बावत्तरे (ग); चउसत्तरे (क्व)।
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चत्तालीसइमो समवाओ
५५३
५. कत्तियबहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततीसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वत्तइत्ता णं चार चरइ॥
अट्ठतीसइमो समवाओ १. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणोयस्स अट्ठतीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया
अज्जियासंपया होत्था। २. हेमवतेरण्णवतियाणं जीवाणं धणुपट्टे अद्रुतीसं' जोयणसहस्साइं सत्त य चत्ताले
जोयणसए दस एगूणवीस इभागे जोयणस्स किंचिविसेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। ३. अत्थस्स णं पव्वयरण्णो बितिए कंडे अद्रुतीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ते ॥ ४. खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तोए बितिए वग्गे अट्ठतीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥
एगूणचत्तालीसइमो समवाओ १. नमिस्स णं अरहओ एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था ॥ २. समयखेत्ते णं एगूणचत्तालीसं कुलपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-तीसं वासहरा,
पंचमंदरा, चत्तारि उसुकारा॥ दोच्चचउत्थपंचमछट्ठसत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणचत्तालीसं निरयावास
सयसहस्सा पण्णत्ता ।। ४. नाणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स आउस्स-एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ॥
चत्तालीसइमो समवाओ १. अरहओ णं अरिटुनेमिस्स चत्तालीसं अज्जियासाहस्सीओ होत्था । २. मंदरचलिया' णं चत्तालीसं जोयणार्ड उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । ३. संती अरहा चत्तालीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ४. भूयाणंदस्स णं नागरण्णो' चत्तालीसं भवणावाससयसहस्स पण्णत्ता ॥ ५. खड़ियाए णं विमाणपविभत्तोए तइए' वग्गे चत्तालोसं उद्देसणकाला पण्णत्ता॥ ६. फग्गुणपुण्णिमासिणीए' णं सूरिए चत्तालोसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वट्टइत्ता
णं चारं चरइ॥
१. अद्रुतीसं अट्ठतीस (क)। २. मंदरस्स ° (ख)। ३. नागकुमारस्स नागरन्नो (क्व)। ४. विमाणविभत्तीए (क)।
५. ततिय (ग)। ६. ° पुण्णमासिणीए (ख); ° पुन्निमासीए (ग);
'वइसाहपूणिमासिणीए'त्ति यत्केषुचित् पुस्तकेषु दृश्यते सोऽपपाठः (व)।
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८५४
७. एवं कत्तियाएवि पुण्णिमाए ॥
८. महासुक्के कप्पे चत्तालीसं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता ॥
एक्कचत्तालीसइमो समवाओ
१. नमिस्स णं अरहओ एक्कचत्तालीसं अज्जिया साहस्सीओ होत्था ॥ २. चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालीसं निरयावाससय सहस्सा पण्णत्ता, तं जहा
रयणप्पभाए पंकप्पभाए तमाए तमतमाए ॥
३. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पढमे वग्गे एक्कचत्तालीसं उद्देसणकाला
पण्णत्ता ॥
बायालीसइमो समवाओ
१. समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाई साहियाई सामण्णपरियागं पाउणित्त सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे' सव्वदुक्खप्पही ||
२. जंबुद्दोवस्स णं दोवस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस पथिमिले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते' अंतरे' पण्णत्ते ||
समवाओ
३. एवं चउद्दिसि पि दओभासे संखे दयसीमे य ॥
४. कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइति वा जोइस्संति वा, बायासंसूरिया पभासिसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा ।।
६.
५. संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता ॥ कम्मे बयालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा - गइनामे जातिनामे सरीरनामे सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वण्णनामे गंधना मे रसनामे फासनामे अगरुयलहुयनामे उवघायनामे पराधायनामे आणुपुव्वीनामे उस्सासनामे आतवनामे उज्जोयनामे विहगगइनामे तसनामे थावरनामे सुहुमनामे बायरनामे पज्जत्तनामे अपज्जत्तनामे साधारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुभनामे सुभगनामे दूभगनामे सुसरनामे दुसरनामे आएज्जनामे अणाज्जनामे जसोकित्तिनामे अजसोकित्तिनामे निम्माणनामे तित्थकरनामे ||
७. लवणे णं समुद्दे बायालीसं नागसाहस्सीओ अभितरियं वेलं धारेंति ॥
१. सं० पा० - सिद्धे जाव सव्वदुक्ख • ।
२. आबाहते ( ख ) ; आबा हाते ( ग ), आबाधाते आबाहाए - अग्रे पिप्राय एवमेव लभ्यते ।
३. अंतकरे ( क ) ।
४. X ( क ) ।
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पणयालीसइमो समवाओ
८८५
८. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' बितिए वग्गे बायालीसं उद्देसणकाला
पण्णत्ता ॥ ६. एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचमछट्ठीओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं
पण्णत्ताओ॥ १०. एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ ।।
तेयालीसइमो समवाओ १. तेयालीसं कम्मविवागभयणा पण्णत्ता॥ २. पढमचउत्थपंचमासु-तीसु पुढवीसु तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।
जंबद्दीवस्स णं दोवस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए
अंतरे पण्णत्ते॥ ४. एवं चउद्दिसिपि दोभासे संखे दयसीमे [य ? ] । ५. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' ततिये वग्गे तेयालीसं उद्देसणकाला
पण्णत्ता ।।
३
चोयालीसइमो समवानो १. 'चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुयाभासिया पण्णत्ता ॥ २. विमलस्स णं अरहतो चोयालीसं पुरिसजुगाइं अणुपढेि सिद्धाई 'बुद्धाइं
मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुयाइं सव्वदुक्ख °प्पहीणाई ॥ ३. धरणस्स णं नागिदस्स नागरण्णो चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ ४. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए' चउत्थे वग्गे चोयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता ॥
पणयालीसइमो समवाओ २. समयखेत्ते णं पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ।। २. सीमंतए णं नरए पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
१. विमाणवि ° (क)।
(वृपा)। २. विमाणवि° (क)।
५. सं० पा०-सिद्धाइं जाव प्पहीणाई। ३. देवलोयचुयाणं इसीणं चोयालीसं इसिभा- ६. विमाणवि ° (क)। सियज्झयणा प० (वृपा)।
७. नरएण (ख)। ४. अणुपुट्टि (ग); अणुपिट्टि (क्व); अणुबंधेण
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८८६
समवाओ
३. एवं उडुविमाणे पण्णत्ते ॥ ४. ईसिपब्भारा णं पुढवी पण्णत्ता एवं चेव ।। ५. धम्मे णं अरहा पणयालीसं धणइं उड़ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिपि पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साई
अबाहाते अंतरे पण्णत्ते ।। ७. सव्वेवि णं दिवड्डखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोइंसु
वा जोइंति वा जोइस्संति वासंगहणी-गाहा
तिन्नेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य ।
एए छ नक्खत्ता, पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥१॥ ८. महालियाए णं विमाणपविभत्तीए पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता।
छायालीसइमो समवाओ १. दिट्टिवायस्स णं छायालीसं माउयापया पण्णत्ता॥ २. बंभीए णं लिवीए छायालीसं माउयक्खरा पण्णत्ता ।। ३. पमंजणस्स णं वातकुमारिंदस्स' छायालीसं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता॥
सत्तचालीसइमो समवाओ १. जया णं सूरिए सव्वभंतरमंडलं उवसंकमित्ता णं चारं चरइ तया णं इहगयस्स
मणसस्स सत्तचत्तालीसं जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवहिं जोयणसएहि एक्क
वीसाए य सट्ठिभागेहिं जोयणस्स सूरिए चक्खुफासं हव्वमागच्छइ । २. थेरे णं अग्गिभूई सत्तालीसं' वासाइं अगारमज्झा' वसित्ता मुंडे भवित्ता' अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।
अडयालीसइमो समवाओ १. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा पण्णत्ता ॥ २. धम्मस्स णं अरहओ अडयालीसं गणा अडयालीसं गणहरा होत्था ॥ ३. सूरमंडले णं अडयालीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पण्णत्ते ।।
१. वातस्स ° (ग); वाउ० (क्व)। २. सत्तयालीसं (क, ख)।
३. °मज्झे (क्व)। ४. भवित्ता णं (क, ख)।
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एगपण्णासइमो समवाओ
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एगणपण्णासइमो समवाओ १. सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एगूणपण्णाए राइदिएहिं छन्नउएणं' भिक्खा
साणं अहासत्तं 'अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म क
सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए ° आराहिया यावि भवइ ।। २. देवकुरुउत्तरकुरासु णं मणुया एगूणपण्णाए राइदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति ॥ ३. तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगूणपण्णं राइंदिया ठिई पण्णत्ता ॥
पण्णासइमो समवायो १. मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पंचासं अज्जियासाहस्सीओ होत्था । २. अणंते' णं अरहा पण्णासं धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ३. पुरिसोत्तमे णं वासुदेवे पण्णास धणूई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था । ४. सव्वेवि णं दीहवेयड्ढा मूले पण्णासं-पण्णासं जोयणाणि विक्खंभेणं पण्णत्ता । ५. लतए कप्पे पण्णासं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता ॥ ६. सव्वाओ णं तिमिस्सगुहाखंडगप्पवायगुहाओ' पण्णासं-पण्णासं जोयणाई
आयामेणं पण्णत्ता ।। ७. सब्वेवि णं कंचणगपव्वया सिहरतले पण्णासं-पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं
पण्णत्ता॥
एगपण्णासइमो समवाओ १. नवण्हं बंभचेराणं एकावण्णं उद्देसणकाला पण्णता ।। २. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुधम्मा एकावण्णखंभसयसंनिविट्ठा
पण्णत्ता ॥ ३. एवं चेव बलिस्सवि ॥, ४. सुप्पभे" णं बलदेवे एकावण्णं वाससयसहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे
__ 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ५. दसणावरणनामाणं-दोण्हं कम्माणं एकावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। १. ° पडिमाए (ग)।
६. सव्वातोवि (ग)। २. छन्न उइतेण य (ख, ग); छन्नउइ (क्व); ७. तिमिस्सगुहं खंडप्पवाया ० (क); तिमिस्स
स्थानाङ्ग (७१) 'एगेण य छण्णउएणं' गुहं ° (ख)। पाठोस्ति ।
८. असुरा (क); असुर (ख, ग)। ३. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया । ६. ° सयणिविट्ठा (ग)। ४. एकूणपण्णत्ताए (क)।
१०. सुप्पहे (वृ)। ५. अणंतस्स (ग)।
११. सं० पा०—बुद्ध जाव सव्वदुक्ख ° ।
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समवाओ
बावण्णइमो समवाओ १. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा–कोहे कोवे
रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे' विवाए। माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे' गव्वे परपरिवाए उक्कोसे' अवक्कोसे उन्नए उन्नामे। माया उवही नियडी वलए गहणे णमे कक्के कुरुए दंभे कूडे जिम्हे किब्बिसिए अणायरणया गृहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे। लोभे इच्छा मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा
जीवियासा मरणासा नंदी रागे॥ २. गोथभस्स णं आवासपव्वयस्स परथिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामहस्स महा
पायालस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए
अंतरे पण्णत्ते ॥ ३. एवं दओभासस्स णं केउकस्स [य ? ], संखस्स जूयकस्स [य ? ], दयसीमस्स
ईसरस्स [य ?] ॥ ४. नाणावरणिज्जस्स नामस्स अंतरातियस्स–एतासि णं तिण्हं कम्मपगडीणं
बावन्नं उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ। ५. सोहम्म-सणंकुमार-माहिंदेसु तिसु कप्पेसु बावन्न विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता॥
तेवण्णइमो समवाओ १. देवकुरुउत्तरकुरियातो णं जीवाओ तेवन्न-तेवन्न जोयणसहस्साइं साइरेगाई
आयामेणं पण्णत्ताओ॥ २. महाहिमवंतरुप्पीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ तेवन्नं-तेवन्नं जोयणसहस्साइं नव ___ य एगतीसे जोयणसए छच्च एक्कूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ।। ३. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवन्नं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु
अणुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना ॥ ४. संमुच्छिमउरपरिसप्पाणं उक्कोसेणं तेवन्नं वाससहस्सा ठिई पण्णत्ता ।।
१. भडिणे (ख)। २. अत्तुक्कासे (क, ख, ग)। ३. उक्कासे (क, ग)। ४. अवकासे (क); अवकासे (ख); अचक्कासे
५. बंभणया (क); ६. ° सीमयस्स (क)। ७. अंतरावियस्स (ग)। ८. ° उत्तरयातो (ग);° उत्तरकुरुयाओ (क्व०)।
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छप्पण्णइमो समवाओ
८८६
चउवण्णइमो समवाओ १. भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पिणीए चउप्पण्णं
चप्उप्पण्णं उत्तमपुरिसा उप्पज्जिसु वा उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा,
तं जहा-चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्क बट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा ॥ २. अरहा णं अरिट्ठनेमी चउप्पण्णं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जिणे
जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी॥ ३. समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए' च उप्पण्णाइं वागरणाई
वागरित्था ॥ ४. अणंतस्स णं अरहओ 'चउप्पण्णं गणा' चउप्पण्णं गणहरा होत्था ।।
पणपण्णइमो समवाओ १. 'मल्ली णं अरहा" पणपण्णं वाससहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे 'मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे ॥ २. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ विजयदारस्स पच्चत्थि
मिल्ले चरिमंते, एस णं पणपण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ३. एवं चउद्दिसिपि वेजयंत-जयंत-अपराजियंति ॥ ४. समणे भगवं महावीरे अंतिमराइयंसि पणपण्णं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई,
पणपण्णं अज्झयणाणि पावफलविवागाणि वागरिता सिद्धे बुद्ध 'मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° प्पहीणे ॥ ५. पढमबिइयासु-दोसु पुढवीसु पणपण्णं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। ६. सणावरणिज्जनामाउयाणं -तिण्हं कम्मपगडीणं पणपन्नं उत्तरपगडीओ
पण्णत्ताओ॥
छप्पण्णइमो समवाओ १. जंबुद्दीवे णं दीवे छप्पण्णं नक्खत्ता चंदेण सद्धि जोगं जोएंसु वा, जोएंति वा,
जोइस्संति वा ॥ २. विमलस्स णं अरहओ छप्पण्णं गणा छप्पण्णं गणहरा होत्था ।।
१. • निसाते (ग)। २. वागरित्ता (ग)। ३. x(क, ग)।
४. मल्लिस्स णं अरहओ (ग)। ५. पालित्ता (ग)। ६,७. सं० पा०-बुद्ध आव प्पहीणे ।
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८६०
समवाओ
सत्तावण्णइमो समवाओ १. तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावण्णं अज्झयणा' पण्णत्ता,
तं जहा-आयारे सूयगडे ठाणे ॥ २. गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महा
पायालस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं सत्तावण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते॥ ३. एवं दओभासस्स [णं ? ] केउयस्स य, संखस्स' यकस्स य दयसीमस्स'
ईसरस्स य॥
मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावण्णं मणपज्जवनाणिसया होत्था ।। ५. महाहिमवंतरूप्पीणं वासधरपव्वयाणं जीवाणं धणुपट्ठा सत्तावण्ण-सत्तावण्णं
जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ता॥
अट्ठावण्णइमो समवाओ १.. पढमदोच्चपंचमासु-तिसु पुढवीसु अट्ठावण्णं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ २. नाणावरणिज्जस्स वेयणिज्जस्स आउयनामअंतराइयस्स' य-एयासि णं पंचण्हं ____ कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। ३. गोथ्भस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामूहस्स
महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥ एवं 'दओभासस्स णं केउकस्स [य ?], संखस्स जूयकस्स [य ?], दयसीमस्स ईसरस्स [य ? ] ° ॥
एगूणसट्ठिमो समवाओ १. चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उदू एगूणसर्टि राइंदियाणि राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। २. संभवे णं अरहा एगूणसट्ठि पुव्वसयसहस्साई अगारमझावसित्ता मुंडे भवित्ता ____णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए ॥
३. मल्लिस्स णं अरहओ एगूणसट्टि ओहिनाणिसया होत्था । १. अज्झीणे (क)।
६. चरमंताओ (क)। २. संखस्स य (ख, ग)।
७. सं० पा०-एवं च उदिसिपि नेयव्वं । ३. दयसीमयस्स (क)।
८. आगारमज्झे ° (क, ग); ° मज्झे ° (ख) । ४. वेयणिय (क, ख)।
६. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइए। ५. आउनाम° (ख)।
१०. पव्वतित्ति (क)।
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८९१
तेवट्ठिमो समवाओ
सट्ठिमो समवाओ १. एगमेगे णं मंडले सरिए सदिए-सट्रिए महत्तेहिं संघाएइ॥ २. लवणस्स णं समुदस्स सढि नागसाहस्सीओ' अग्गोदयं धारेति ॥ ३. विमले णं अरहा सढेि धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ४. बलिस्स णं वइरोयणिदस्स सर्टि सामाणियसाहस्सीओ' पण्णत्ताओ॥ ५ बंभस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सर्टि सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ६. सोहम्मीसाणेसु-दोसु कप्पेसु सटुिं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।
___ एगसट्टिमो समवाओ १. पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स रिदुमासेणं मिज्जमाणस्स एगढि उदुमासा
पण्णत्ता॥ मंदरस्स णं पव्वयस्स पढमे कंडे एगसट्ठिजोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ते ॥ ३. चंदमंडले णं एगसट्ठिविभागविभाइए' समंसे पण्णत्ते ।। ४. एवं सूरस्सवि ॥
बावट्टिमो समवाओ १. पंचसंवच्छरिए णं जुगे बावट्ठि पुण्णिमाओ बावट्ठि अमावसाओ पण्णत्ताओ॥ २. वासुपुज्जस्स णं अरहओ बावट्ठि गणा बाट्टि गणहरा होत्था ।। ३. सुक्कपक्खस्स णं चंदे बावट्टि भागे दिवसे-दिवसे परिवड्डइ, ते चेव बहुलपक्खे
दिवसे-दिवसे परिहायइ ।। ४. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु पढमे पत्थडे पढमावलियाए' एगमेगाए दिसाए बावर्टि
बावट्टि विमाणा पण्णत्ता ॥ ५. सव्वे वेमाणियाणं बावढि विमाणपत्थडा पत्थडग्गेणं पण्णत्ता ॥
तेवटिमो समवाओ १. उसभे णं अरहा कोसलिए तेसट्टि पुव्वसयसहस्साई महारायवासमभावसित्ता'
मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। १. ° सहस्साई (क); ° सहस्साओ (ख)। ५. पढमावलिया (वृपा)। २. ° सहस्सीओ (क); ° सहसाओ (ग)। ६. ° मज्झे ° (ख); महारायमझा ° (ग); ३. विभागहाइएविभइए (क)।
महारायमझे ° (क्व)। ४. सवत्सरि (क)।
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८६२
समवाओ हरिवासरम्मयवासेसु मणुस्सा तेवट्ठिए राइदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति ॥ ३. निसेहे णं पव्वए तेवट्टि सूरोदया पण्णत्ता ॥ ४. एवं नीलवंतेवि ।।
चउसट्ठिमो समवाओ १. अट्टमिया णं भिक्खुपडिमा चउसट्ठीए राइंदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खा
सएहिं अहासुत्तं' अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए ° आराहिया यावि भवइ ।।
चउसट्ठि असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। ३. चमरस्स णं रण्णो चउसद्धिं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ॥
सव्वेवि णं दधिमहा पव्वया पल्ला-संठाण-संठिया सव्वत्थ समा 'दस जोयण
सहस्साई' 'विक्खंभेणं, उस्सेहेणं" चउसढ़ि-चउसढि जोयणसहस्साइं पण्णत्ता ॥ ५. सोहम्मीसाणेसु बंभलोए य-तिसु कप्पेसु चउसटुिं विमाणावाससयसहस्सा
पण्णत्ता॥ ६. सव्वस्सवि य णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउसट्ठिलट्ठीए महग्घे मुत्तामणि
मए हारे पण्णत्ते ॥
पणसट्ठिमो समवाओ १. जंबुद्दीवे णं दीवे पणसटुिं सूरमंडला पण्णत्ता ।। २. थेरे णं मोरियपुत्ते पणसट्ठिवासाई अगारमज्झावसित्ता' मुंडे भवित्ता अगाराओ
अणगारियं पव्वइए॥ ३. सोहम्मवडेंसयस्स णं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए पणसट्ठि-पणसटुिं भोमा
पण्णत्ता ॥
छावट्ठिमो समवाओ १. दाहिणडमणस्सखेत्ताणं छावढेि चंदा पभासेंसु वा पभासें ति वा पभासिस्संति
वा, छावट्टि सूरिया तर्विसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ॥
१. हरिवरस्स° (क, ख); हरिवरस (ग)। २. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया। ३. X (क, ख, ग)। ४. विक्खंभुस्सेहेणं (क, ख, ग); क्वचित्तु 'विक्खं
भूस्सेहेणं' ति पाठस्तत्र तृतीयकवचनलोप
दर्शनाद्विष्कम्भेनेति (वृ)। ५. मज्झे (क, ख, ग)।
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अट्ठसट्ठिमो समवाओ
८९३ २. उत्तरड्डमणुस्सखेत्ताणं छावट्टि चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा,
छावर्द्वि सूरिया तविसु वा तवेति वा तविस्संति वा ॥ ३. सेज्जंसस्स णं अरहओ छावट्टि गणा छावढेि गणहरा होत्था ।। ४. आभिणिबोहियनाणस्स णं उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।।
सत्तसट्ठिमो समवाओ १. पंचसंवच्छरियस्स णं जुगस्स नक्खत्तमासेणं मिज्जमाणस्स सत्तसट्टि नक्खत्त
मासा पण्णत्ता॥ २. हेमवतेरण्णवतियाओ णं बाहाओ सत्तसट्ठि-सत्तसट्टि जोयणसयाइं पणपण्णाई
तिण्णि य भागा जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ। ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ ‘गोयमस्स णं" दीवस्स
पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तसटुिं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ॥ ४. सव्वेसिपि णं नक्खत्ताणं सीमाविक्खंभेणं सत्तसटुिं 'भागं भइए' समंसे
पण्णत्ते ।।
अट्ठसट्ठिमो समवाओ १. धायइसंडे णं दीवे अट्ठसट्टि चक्कट्टिविजया अट्टसट्टि रायहाणीओ पण्णत्ताओ ।। २. धायइसंडे णं दीवे उक्कोसपए अट्ठस४ि अरहंता समुप्पज्जिसु वा समुप्पजेति
वा समुप्पज्जिस्संति वा ॥ ३. एवं चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा ।। ४. पुक्खरवरदीवड्ढे णं अट्ठसर्टि "चक्कवट्टिविजया अट्ठढेि रायहाणीओ
पण्णत्ताओ॥ ५. पुक्खरवरदीवड्ढे णं उक्कोसपए अट्ठसढि अरहंता समुप्पज्जिसु वा समुप्पज्जेति
वा समुप्पज्जिस्संति वा ।। ६. एवं चक्कवट्टी बलदेवा° वासुदेवा ।। ७. विमलस्स णं अरहओ अट्ठसट्टि समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया
होत्था॥
१. गोयम (क, ख); यद्यपि सूत्रपुस्तकेषु द्वीपान् विना द्वीपान्तरस्याश्रयमाणत्वादिति ।
गौतमशब्दो न दृश्यते तथाप्यसौ दृश्यः, २. भाग भयते (ग)। जीवाभिगमादिषु लवणसमुद्रे गौतमचन्द्ररवि- ३. सं० पा०-विजया एवं चेव जाव वासुदेवा।
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६६४
गुणसत्तरिमो समवाओ
१. समयखेत्ते णं मंदरवज्जा एगुणसत्तरि वासा वासधरपव्वया पण्णत्ता, तं जहापणतीसं वासा, तीसं वासहरा, चत्तारि उसुयारा ॥
२. मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोयमदीवस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं एगूणसर्त्तारं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ३. मोहणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं कम्माणं' एगूणसत्तर उत्तरपगडीओ' पण्णत्ताओ ॥
सत्तरिमो समवाओ
१. समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वोतिक्कंते सत्तरिए राइदिएहि सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ' ।।
२. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरि वासाई बहुपडिपुण्णाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख हीणे || ३. वासुपुज्जेणं अरहा सतरि धणूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥
४. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स सतरि सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मणिसे पण्णत्ते ॥
५. माहिदस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सतरि सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ||
एक्सत्तरिमो समवाओ
१. चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स हेमंताणं एक्कसत्तरीए राइदिएहिं वीइक्कतेहि सव्वबाहिराओ मंडलाओ सूरिए आउट्टि करेइ ||
२. ' वीरियप्पवायस्स णं" एक्कसर्त्तारं पाहुडा पण्णत्ता ॥
३. अजिते णं अरहा एक्कसरि पुव्वसयसहस्साइं अगारमज्भावसित्ता" मुंडे भवित्ता'' अगाराओ अणगारिअं पव्वइए ॥
१. कम्मपगडीणं ( ख, ग ) ।
२. कम्मप्पगडीतो ( क ) ।
समवाओ
४. सगरे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एक्कसत्तरि पुव्व सयसहस्साइं अगारमज्झासत्ता मुंडे भवित्ताणं अगाराओ अणगारिअं • पव्वइए ||
o
३. पज्जोसविए ( क, ख, ग ) ।
४. सं० पा० – बुद्धे जाव प्पहीणे । ५. एक्कसत्तरी ( क ) ; एक्कसत्तरीतेहिं ( ग ) । ६. वीरियपुव्वस्स णं पुव्वस्स (क, ख ) ; वीरियप्प -
o
वायस्स णं 'पुव्वस्स (क्व ) ।
७.
• मज्भे (क, ख, ग ) । ८. सं० पा० - भवित्ता जाव पव्वइए । ६. सं० पा० एवं सगरेवि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसतर पुव्व जाव पव्वइए ।
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बावत्तरमा समवाओ
बावत्तरिमो समवाओ
१. बावतरं सुवण्णकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥
२. लवणस्स समुद्दस्स बावन्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति ॥ ३. समणे भगवं महावीरे बावर्त्तारं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख •प्पहीणे ||
४. थेरे णं अयलभाया बावर्त्तारं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख प्पही ||
५. अब्भंतरपुक्खरद्धे णं बावतरि चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा बावर्त्तारं सूरिया तविसु वा तवेंति वा तविस्संति वा ।।
८६५
६. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावर्त्तारि पुरवरसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ७. बावर्त्तरि कलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४. नट्टं
५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११ जण - वायं' १२. पोरेकव्वं १३. अट्ठावयं १४. दगमट्टियं १५. 'अण्णविहिं १६. पाणविहि" १७. लेणविहि १८. सयणविहि १६. अज्जं ' २०. पहेलियं २१. मागहियं २२. गाहं २३. सिलोगं २४. गंधजुत्ति २५. मधुसित्थं २६. आभरणविहि २७. तरुणीपडिकम्मं २८. इत्थीलक्खणं २६. पुरिसलक्खणं ३०. हयलक्खणं ३१. गयलक्खणं ३२. गोणलक्खणं ३३. कुक्कुडलक्खणं ३४. मिंढयलक्खणं ३५. चक्कलक्खणं ३६. छत्तलक्खणं ३७. दंडलक्खणं ३८. असिलक्खणं ३६. मणिलक्खणं ४०. काकणिलक्खणं ४१ चम्मलक्खणं ४२. चंदचरियं ४३. सूरचरियं ४४. राहुचरियं ४५. गहचरियं ४६. ' सोभाकरं ४७. दोभाकरं " ४८. विज्जायं ४६. मंतगयं ५०. रहस्सगयं ५१. ' सभासं ५२. चारं " ५३. पडिचारं ५४. वूहं ५५. पडिवूहं ५६. बंधावारमाणं ५७. नगरमाणं ५८. वत्थुमाणं ५६. खंधावारनिवेस ६०. निगरनिवेस ६१. वत्थुनिवेस ६२. ईसत्थं ६३. छरुप्पगयं" ६४. आससिक्खं ६५. हत्थिसिक्खं ६६. धणुव्वेयं ६७. 'हिरण्णपागं सुवण्णपागं मणिपागं धातुपागं ६८. बाहुजुद्धं दंडजुद्धं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं
- बुद्धे जाव प्पहीणे ।
१. सं० पा०२. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीणे ।
३. जाणवयं ( क ) ; जाणवायं ( ख, ग ) ।
८. सोभाग ० ४७. दोभाग ० ( क्व ) ।
६. सभावं ५२. चरं ( क ); सभावं ५२. चारं (ख); सभास्ना ५२. चारं ( ग ) ।
४. अन्नविधं पाणविधं ( क ) ।
१०. ० मामणं ( ग ) ।
५. लोणविहि ( क ); लोहविहिं ( ग ); वत्थविहि ११. छरुपवायं ( क्व ) ।
(क्व) । ६. पज्जं (ग) ।
७. चंद लक्खणं ( ख, ग ) ।
१२. हिरण्णवयं सुवण्णवयं ( क ); हिरण्णवाय सुवणवा ( ख, ग ) ।
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समवाओ
जुद्धं निजुद्धं जुद्धातिजुद्धं ६६. सुतखेडं 'नालियाखेड्ड वट्टखेड्डु" ७०. पत्तच्छेज्जं
कडगच्छेज्ज पत्तगछेज्जं ७१. सजीवं निज्जीवं ७२. सउणरुयं । ८. सम्मुच्छिमखयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं बावतरि वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता।
तेवत्तरिमो समवाओ १. हरिवासरम्मयवासियाओ णं जीवाओ तेवत्तरि-तेवतरि जोयणसहस्साइं नव
य एक्कुत्तरे जोयणसए सत्तरस य एकूणवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च
आयामेणं पण्णत्ताओ। २. विजए णं बलदेवे तेवतरि वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीण ॥
चोवत्तरिमो समवाओ १. थेरे णं अग्गिभूई गणहरे चोवत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध 'बुद्धे __ मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। २. निसहाओ णं वासहरपव्वयाओ तिगिछिदहाओ सीतोतामहानदी चोवत्तरि
जोयणसयाइं साहियाइं उत्तराहुत्ति पवहित्ता वतिरामतियाए जिभियाए चउजोयणायामाए पण्णासजोयणविक्खंभाए' वइरतले कुंडे महया
घडमहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठाणसंठिएणं पवाएणं महया सद्देणं पवडइ । ३. एवं सीतावि दक्खिणहुत्तिभाणियव्वा ॥ ४. चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवतरि निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।
पण्णतरिमो समवाओ १. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ" पण्णतरि जिणसया होत्था । २. सीतले णं अरहा पण्णत्तरि पुव्वसहस्साई अगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता"
•णं अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए॥
१. नालियाखेड्डु वट्टखेड्डु धम्मखेड्डु चम्मखेड्डु ७. पण्णासं जोयण ° (ख);पण्णासं जोयणं ० (ग)।
(ख); वट्टखेड्डु नालियाखेड्डु धम्मखेड्डु (ग)। ८. 'दुहओ' त्ति क्वचित् दृश्यते तदपपाठः (वृ) । २. कणंगच्छेज्ज (ग)।
६. दक्खिणाहिमुही (क्व)। ३. अज्जीवं (ख); अजीवं (ग)। सजीवं (क्व)। १०. नरया ° (ग)। ४. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे। ११. अरहतो पण्णत्तरि जिणा (ख, ग)। ५. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे। १२. ° मज्झे • (क, ख, ग)। ६. दहाओ णं दहाओ (ख, ग)। १३. सं० पा०-भवित्ता जाव पव्वइए।
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असत्तरिमो समवाओ
३. संती णं अरहा पण्णत्तरि वाससहस्साई अगारवासमज्भावसित्ता' मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥
छावत्तरिमो समवाओ
१. छावतरं विज्जुकुमारावाससय सहस्सा पण्णत्ता ॥ २. एवं -
संग्रहणी - गाहा
दीवदिसा उदहीणं, विज्जुकुमारिदथणियमग्गीणं । छहंपि जुगलयाणं, छावत्तरिमो' सयसहस्सा ॥१॥
सत्तत्तरिमो समवाओ
१. भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टो सत्ततरं पुण्वसय सहस्साइं कुमारवा समज्झावसित्ता 'महारायाभिसेयं संपत्ते ॥
२.
अंगवसाओ णं सत्तत्तरि रायाणो मुंडें भवित्ता णं अगाराओ अणगारिअं • पव्वइया ॥
३. गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्तत्तरि देवसहस्सा परिवारा पण्णत्ता || ४. एगमेगे णं मुहुत्ते स तत्तरि लवे" लवग्गेणं पण्णत्ते ॥
अट्ठसतरिम समवाओ
१. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वेसमणे महाराया अट्ठसत्तरीए सुवण्णकुमारदीवकुमारावास सय सहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं भट्टित्तं सामित्तं महारायत्तं आणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥
२. थेरे णं अंकपिए अदुसर्त्तारं वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्ख होणे ॥
३. उत्तरायणनियट्टे णं सूरिए पढमाओ मंडलाओ एगूणचत्तालीसइमे मंडले अहर्त्तारं एगसभा दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता णं चारं चरइ ॥
४. एवं दक्खिणायण नियट्टेवि ॥
O
१. अगार मज्भे ० ( क ); अगारमज्झा ° (ग)।
२. छात्र (क्व ) ।
३. ०भिसियपत्ते ( क ) ।
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४. स० पा०- - मुंडे जाव पव्वइया । ५. लवा ( ग ) ।
६. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीणे ।
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८६८
समवाओ
एगूणासीइमो समवाओ १. वलयामुहस्स णं पायालस्स हेट्ठिलाओ चरिमंताओ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए __हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।।
एवं केउस्सवि जयस्सवि ईसरस्सवि ॥
छट्ठीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस ___णं एगूणासीति जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ४. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बारस्स य बारस य, एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साई साइरेगाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
असीइइमो समवाओ १. सेज्जसे णं अरहा असोइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । २. तिविठ्ठ णं वासूदेवे असीइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ३. अयले णं बलदेवे असीइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ ४. तिविठू णं वासुदेवे असीइं वाससयसहस्साई महाराया होत्था । ५. आउबहुले णं कंडे असीइं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ ६. ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरणो असीइं सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ७. जंबुद्दीवे णं दीवे असोउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्ठोवगए पढम
उदयं करेई ॥
एक्कासीइइमो समवाओ १. नवनवमिया' णं भिक्खुपडिमा एक्कासीइ राइदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहिं
भिक्खासएहिं अहासुत्तं' 'अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासिया
पालिया सोहिया तीरिया किदिया आणाए आराहिया यावि भवति । २. कुंथुस्स णं अरहओ एक्कासीति मणपज्जवनाणिसया होत्था । ३. विआहपण्णत्तीए' एकासीति महाजुम्मसया पण्णत्ता॥
बासीतिइमो समवाओ १. जंबुद्दीवे दीवे बासोतं मंडलसयं जं सूरिए दुक्खत्तो संकमित्ता णं चारं चरइ,
तं जहा - निक्खममाणे 'य पविसमाणे" य ॥ २. समणे भगवं महावीरे बासीए राइंदिएहिं वीइक्कतेहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए।
१. णवणम्मया (क)। २. सं० पा०-अहासुत्तं जाव आराहिया।
३. विवाह ° (ग)। ४. पविसतिमाणे (क)।
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चउरासीइइमो समवाओ
८६६
३. महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स ___ कडस्स हेढिल्ले चरिमंते, एस णं बासीइं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ४. एवं रुप्पिस्सवि ॥
तेयासीइइमो समवाओ १. समणे भगवं महावीरे बासीइराइदिएहिं वोइक्कतेहिं तेयासोइमे राइदिए
वट्टमाणे गब्भाओ गब्भं साहरिए। २. सीयलस्स णं अरहओ तेसीति गणा तेसीति गणहरा होत्था । ३. थेरे णं मंडियपुत्ते तेसीइं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे॥ ४. उसभे णं अरहा कोसलिए तेसीइं पुव्वसयसहस्साई अगारवासमझावसित्ता'
मुंडे भवित्ता ण' अगाराओ अणगारिअं° पव्वइए ।। ५. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी तेसोइं पुव्वसयसहस्साई अगाारमज्झावसित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी ।।
चउरासीइइमो समवाओ १. चउरासीइं निरयावाससयसहस्साइं पण्णत्ता ।। २. उसभे णं अरहा कोसलिए चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे
बुद्धे 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे।। ३. एवं भरहो बाहबली 'बंभी संदरी ।। ४. सेज्जसे णं अरहा चउरासीइं वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे 'बुद्धे
मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुड़े सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। ५. तिविठू णं वासुदेवे चउरासीई वाससयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता अप्पइ
ट्ठाणे नरए नेरइयत्ताए उववण्णे ॥ ६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो चउरासीई सामाणियसाहिस्सीओ पण्णत्ताओ॥ ७. सव्वेवि णं बाहिरया" मंदरा चउरासीई-चउरासीइं जोयणसहस्साई उड्ढं
उच्चत्तेणं पण्णत्ता । ८. सव्वेवि णं अंजणगपव्वया चउरासीइं-चउरासीइं जोयणसहस्साइं उड्ढं
उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
१. सं० पा०—सिद्धे जाव प्पहीणे । २. ° मज्झे ° (क)। ३. सं० पा०-भवित्ता ण जाव पव्वइए। ४. सं० पा.--बुद्धे जाव प्पहीणे ।
५. बंभिसुंदरि (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे । ७. परमाउं (क, ग)। ८. बाहिरिया (ग)।
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६००
समवाओ
६. हरिवासरम्मयवासियाणं जीवाणं धणुपट्टा' चउरासीइं-चउरासीइं जोयण
सहस्साइं सोलस जोयणाइं चत्तारि य भागा जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ता । १०. पंकबहुलस्स णं कंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेटिल्ले चरिमंते, एस णं
चोरासीइं जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ११. वियाहपण्णत्तीए णं भगवतीए चउरासीइं पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता॥ १२. चोरासीइं नागकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।।। १३. चोरासीइं पइण्णगसहस्सा पण्णत्ता ।। १४. चोरासीइं जोणिप्पमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ।। १५. पुव्वाइयाणं सीसपहेलियापज्जवसाणाणं सट्टाणट्ठाणंतराणं चोरासीए गुणकारे
पण्णत्ते ॥ १६. उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीइं गणा चउरासीइं गणहरा होत्था ॥ १७. उसभस्स णं कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीइं समणसाहस्सीओ
होत्था ।। १८. चउरासीइं विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाणा
भवंतीति मक्खायं ।।
पंचासीइइमो समवाओ १. आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइं उद्देसणकाला पण्णत्ता ।। २. धायइसंडस्स णं मंदरा पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता ।। ३. रुयए णं मंडलियपव्वए पंचासीइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ॥ ४. नंदणवणस्स णं हेट्ठिलाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं पंचासीइं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
छलसोइइमो समवाओ १. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स अरहओ छलसीइं गणा छलसीइं गणहरा होत्था । २. सुपासस्स णं अरहओ छलसीइं वाइसया होत्था ॥ ३. दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागाओ दोच्चस्स घणोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, ___एस णं छलसीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।।
सत्तासीइइमो समवाओ १. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स
१. धणुपिट्ठा (क्व)।
२. विवाह ° (ग)।
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६०१
पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
२. मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ संखस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते, "एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
४. मंदरस्सर णं पव्वयस्स उत्तरिल्लाओं चरिमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स दाहिणिले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ५. छण्हं कम्मपगडीओ आतिम उवरिल्ल - वज्जाणं सत्तासीइं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ ॥
अट्ठासइइमो समवाओ
६. महाहिमवंत कूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते | ७. एवं रुप्पिकूडस्सवि ॥
अट्ठासीइइमो समवाओ
८.
१. एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीइं अट्ठासीइं महग्गहा परिवारो पण्णत्तो ॥ २. दिट्टिवायरस णं अट्ठासोइं सुत्ताई पण्णत्ताई, तं जहा - १. उज्जुसुयं २. परिणयापरिणयं ३. बहुभंगियं ४. विजयचरियं ५. अनंतरं ६ . परंपरं ७. सामाणं संजूह ६. संभिण्णं १०. आहच्चायं ११. सोवत्थियं घंट १२. नंदावत्तं १३. बहुलं १४. पुट्ठापुढं १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुयावत्तं १८. वत्तमाणुष्प १६. समभिरूढं २०. सव्वओभद्दं २१. पण्णासं २२. दुप्पडिग्गहं । इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइं छिण्णच्छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । इच्चेइयाइं बावीसं सुत्ताइं अच्छिण्णच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए । इच्याई बावीस सुत्ताइं तिगनइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडाए । इच्याई बावीस सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडोए । एवमेव सव्वावणं अट्ठासीइ सुत्ताइं भवंति त्ति मक्खायं ० ॥ ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
१. सं० पा० एवं मंदरस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिताओ संखस्न पुरथिमिल्ले च ।
२. सं० पा० — एवं चेव मंदरस्स ।
३. सं० पा० - एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणि - यव्वाणि जहा नंदीए ।
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६०२
समवाओ
४. "मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ दओभासस्स आवासपव्व
यस्स दाहिणिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते॥ ५. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ संखस्स आवासपव्वयस्स
पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे
पण्णत्ते ।। ६. मंदरस्स णं पव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स
उत्तरिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठासीइंजोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ° ।। ७. 'बाहिराओ णं उत्तराओ कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमीणे चोयालीसइमे
मंडलगते अट्ठासीति इगसट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवस खेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणि
खेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता सूरिए चारं चरइ ।। ८. दक्खिणकट्ठाओ णं सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमीणे चोयालीसतिमे मंडलगते
अट्ठासीई इगसट्ठिभागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चार चरइ ।।
एगणणउइइमो समवाओ १. उसभे णं अरहा कोसलिए इमीसे ओसप्पिणीए ततियाए समाए पच्छिमे भागे __एगूणण उइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कते 'समुज्जाए छिण्णजाइ
जरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ २. समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउत्थीए समाए पच्छिमे भागे
एगूणणउइए अद्धमासेहिं सेसेहिं कालगए' 'वीइक्कते समुज्जाए छिण्णजाइ
जरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ ३. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगूणणउई वाससयाई महाराया होत्था ।। ४. संतिस्स णं अरहओ एगूणणउई अज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जासंपया
होत्था ।
णउइइमो समवाओ १. सीयले णं अरहा नउइं धणूइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ॥ १. सं० पा० – एवं चउसुवि दिसासु नेयध्वं । षणेभ्योतिरिक्तमस्ति, तेनास्य पूर्तिर्जम्बूद्वीप२. X (क, ग)।
प्रज्ञप्ति (वक्षस्कार २) मनुसृत्य कृता सम३. अयमाणे (क्व)।
वायांगसूत्रस्य वृत्तिकृतास्य सूत्रस्य पूर्तिरेवं ४. अयमाणे (क्व)।
कृतास्ति-'जाव' तिकरणात् 'अंतगडे सिद्धे ५. सं० पा०, वीइक्कते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। बुद्धे मुत्ते' त्ति दृश्यम् ।
अत्र 'वीइक्कते' इति विशेषणं पूर्वागतविशे- ६. सं० पा०-कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे।
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चउणउइइमो समवाओ
१०३
२. अजियस्स णं अरहओ नउइं गणा नउइं गणहरा होत्था ।। ३. "संतिस्स णं अरहओ नउइं गणा नउइं गणहरा होत्था° ॥ ४. सयंभुस्स णं वासुदेवस्स णउइवासाइं विजए होत्था । ५. सव्वेसि णं वट्टवेयड्डपव्वयाणं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ सोगंधियकंडस्स हेटिल्ले चरिमंते, एस णं नउइं जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
एक्काणउइइमो समवाओ १. एक्काणउई परवेयावच्चकम्मपडिमाओ पण्णत्ताओ॥ २. कालोए णं समुद्दे एक्काणउई जोयणसहस्साइं साहियाई परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ३. कुंथस्स णं अरहओ एक्काणउई आहोहियसया होत्था ।। ४. आउय-गोय-वज्जाणं छण्हं कम्मपगडीणं एक्काणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ॥
बाणउइइमो समवाओ १. बाणउइं पडिमाओ पण्णत्ताओ॥ २. थेरे णं इंदभूती बाणउई वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते अंतगडे
परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे° ॥ ३. मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागाओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पच्चत्थि
मिल्ले चरिमंते, एस णं बाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ४. एवं चउण्हपि आवासपव्वयाणं ।।
तेणउइइमो समवाओ. १. चंदप्पहस्स णं अरहओ तेणउई गणा तेणउई गणहरा होत्था ॥ २. संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दसपुव्विसया होत्था ॥ ३. तेणउइं मंडलगते णं सूरिए अतिवट्टमाणे निवट्टमाणे वा समं अहोरत्तं विसमं
करेइ॥
चउणउइइमो समवाओ १. निसहनीलवंतियाओ णं जीवाओ चउणउइं-चउणउई जोयणसहस्साइं एक्कं
छप्पण्णं जोयणसयं दोण्णि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ॥ २. अजियस्स णं अरहओ चउणउई ओहिनाणिसया होत्था ।
१. सं० पा०-एवं संतिस्सवि। २. साहितेणं (क)।
३. सं० पा०-बुद्धे । ४. अनियट्टमाणे (क)।
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६०४
समवाओ
पंचाणउइइमा समवाओ १. सुपासस्स णं अरहओ पंचाणउई गणा पंचाणउइं गणहरा होत्था । २. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चरिमंताओ चउद्दिसिं लवणसमुदं पंचाणउई-पंचाणउई
जोयणसहस्साई ओगाहित्ता चत्तारि महापायाला' पण्णत्ता, तं जहा-वलयामहे
केउए जूवते ईसरे ॥ ३. लवणसमुदस्स उभओपासंपि पंचाणउई-पंचाणउइं पदेसाओ उव्वेहुस्सेहपरि
हाणीए पण्णत्ताओ॥ ४. कुंथू णं अरहा पंचाणउइं वाससहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे 'मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ।। ५. थेरे णं मोरियपुत्ते पंचाणउइवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध 'बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे सव्वदुक्ख ° पहीणे ॥
छण्णउइइमो समवाओ १. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स छण्णउइं-छण्णउई गामकोडीओ
होत्था ॥ २. वाउकुमाराणं छण्णउइं भवणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।। ३. ववहारिए णं दंडे छण्ण उई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं॥ ४. “ववहारिए णं धणू छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ॥ ५. ववहारिया णं नालिया छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणणं ।। ६. ववहारिए णं जुगे छण्णउइं अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ।। ७. ववहारिए णं अक्खे छण्णउइं अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ।। ८. ववहारिए णं मुसले छण्णउई अंगुलाई अंगुलपमाणेणं ।। ६. अभंतराओ आतिमुहुत्ते छण्णउइ-अंगुलछाए पण्णत्ते ॥
सत्ताणउइइमो समवाओ १. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स णं आवास .
१. महापायालकलसा (क्व)। २. केऊते (ग)। ३. जूयए (क्व)। ४. ववुस्सह° (क); वहुस्सेह° (ग)। ५. सं० पा०-बुद्धे जाव प्पहीणे ।
६. सं० पा०-सिद्धे जाव प्पहीणे। ७. वावहारिए (क, ख)। ८. सं० पा० -एवं धणू नालिया जुगे अक्ख
मुसलें वि। ६. छण्णउई (क, ख, ग)।
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narasइमो समवाओ
है०५
पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं सत्ताणउई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
२. एवं चउदिसिपि ॥
३. अट्ठण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ ||
४. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउई वाससयाई अगारमज्झासत्ता' मुंडे भवित्ताणं अगाराओ' 'अणगारिअं पव्वइए ||
अट्ठाण उइइमो समवाओ
१. नंदणवणस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंडयवणस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस गं उई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
२. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
३. एवं चउदिसिपि ॥
४. दाहिणभरहद्धस्स णं धणुपट्टे अट्ठाणउई जोयणसयाई किंचूणाई आयामेणं पण्णत्ते ॥
५. उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमीणे एगूणपंचासति मे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसट्टिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुत्ताणं सूरिए चारं चरइ ॥
६. दक्खिणाओ णं कट्ठाओ सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमीणे एगूणपण्णासइमे मंडलअट्ठाइ एकसट्टिभाए मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुत्ताणं सूरिए चारं चरइ ।!
७. रेवईपढमजेदृपज्जवसाणाणं' एगूणवीसाए नक्खत्ताणं अट्ठाणउई ताराओ तारग्गेणं पण्णत्ताओ ॥
वणउइइमो समवाओ
१. मंदरे णं पव्वए णवणउइं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ॥ २. नंदणवणस्स णं पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, वणउई जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
१. अगारवासमज्झा° (क, ग) ।
२. सं० पा० - अगाराओ जाव पव्वइए ।
३. ० भरहस्स ( ख, ग ); 'वेयड्ढस्स ण' मित्यादि य केषुचित्पुस्तकेषु दृश्यते सोऽपपाठ: (वृ) ।
एस णं
४. धणुपट्टे (क्व ) ।
५. ए गुणपन्नासति मे ( ग ); 'एकतालीसइमे' इति केचित्पुस्तकेषु दृश्यते सोऽपपाठ: (वृ) ।
६. ० जेट्टा ० ( क्व ) ।
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६०६
समवाओ
३. नंदणवणस्स णं दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्ले • चरिमंते, एस णं व उई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
४. पढमे सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साइं साइरेगाई आयाम विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
५. दोच्चे सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साई साहियाई' आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
६. तइए सूरियमंडले णवणउई जोयणसहस्साइं साहियाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
७. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अंजणस्स कंडस्स हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ वाणमंतर भोमेज्ज - विहाराणं उवरिल्ले चरिमंते, एस णं णवणउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
सततमो समवाओ
१. दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइदियसतेणं अद्धछट्ठेहिं भिक्खासते हि अहासुत्तं" "अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए आराहिया यावि भवइ ॥
o
२. सर्याभिसयानक्खत्ते एक्कसयतारे पण्णत्ते ॥
३. सुविही पुप्फदंते णं अरहा एगं धणुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥
४. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए एक्कं वासस्यं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे' 'बुद्धे अंडे परिणिडे सव्वदुक्ख • हीणे ||
५. थेरे णं अज्जसुहम्मे, "एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सव्वदुक्खपही
॥
६. सव्वेवि णं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥
७. सव्वेवि णं चुल्लहिमवंत सिहरी वासह रपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥
८. सव्वेवि णं कंचणगपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड़ढं उच्चत्तेणं, एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं, एगमेगं जोयणसयं मूले विक्खंभेणं पण्णत्ता ॥
१. सं० पा० एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे । २. पढम (वृ) ।
३. सातिरेगाई ( क ) ।
४. सं० पा० - अहासुत्तं जाव आराहिया । ५. सं० पा० - सिद्धे जाव प्पहीणे ।
६. सं० पा०—एवं थेरे वि अज्जसुहमे ।
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पइण्णगसमवाओ
१. चंदप्पभे णं अरहा दिवढं धणुसयं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। २. आरणे कप्पे दिवड्ढं विमाणावाससयं पण्णत्तं ॥ ३. एवं अच्चुएवि ॥ ४. सुपासे णं अरहा दो घणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ५. सव्वेवि णं महाहिमवंत-रुप्पी-वासहरपव्वया दो-दो जोयणसयाइं उडढं ___ उच्चत्तेणं, दो-दो गाउयसयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता ।। ६. जंबुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपव्वयसया पण्णत्ता । ७. पउमप्पभे गं अरहा अड्डाइज्जाइं धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ८. असुरकुमाराणं देवाणं पासायवडेंसगा अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता॥ ९. सुमई णं अरहा तिण्णि धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।। १०. अरिट्ठनेमी णं अरहा तिण्णि वाससयाई कुमार[वास ?] मज्झावसित्ता मुंडे
भवित्ता [अगाराओ अणगारिअं ?] पव्वइए। वेमाणियाणं देवाणं विमाणपागारा तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता ॥ १२. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तिण्णि सयाणि चोद्दसपूवीणं होत्था । १३. पंचधणुसइयस्स णं अंतिमसारीरियस्स सिद्धिगयस्स सातिरेगाणि तिण्णि धण
सयाणि जीवप्पदेसोगाहणा पण्णत्ता ।। १४. पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्ठसयाइं चोद्दसपुव्वीणं संपया होत्था । १५. अभिनंदणे णं अरहा अद्भुट्ठाइं धणुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। १६. संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था ।
९०७
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६०८
समवाओ
१७. सव्वेविणं णिसढ-नीलवंता वासहपब्वया चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं, चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उब्वेहेणं पण्णत्ता ॥
१८. सव्वेवि णं वक्खारपव्वया णिसढ - नीलवंतवासह रपव्वयंतेणं चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उब्वेहेणं पण्णत्ता ॥ १६. आणय - पाणएसु—दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पण्णत्ता ।। २०. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुयासु रम्मि लोग वा अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ||
२१. अजिते णं अरहा अद्धपंचमाई धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।।
२२. सगरे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी अद्धपंचमाई धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।। २३. सव्वेविणं वक्खारपव्वया सीया- सीतोयाओ महानईओ मंदरं वा पव्वयं पंचपंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच-पंच गाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णत्ता ॥ २४. सव्वेविणं वासहरकूडा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाई विक्खंभेण पण्णत्ता ॥
२५. उसमे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ।
२६. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंच धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था ॥ २७. सोमणस - गंधमादण-विज्जुप्पभ-मालवंता णं वक्खारपव्वया णं मंदरपव्वयं णं पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच-पंच गाउयसयाई उव्वेहेणं
पण्णत्ता ||
२८. सव्वेविणं वक्खारपव्वयकूडा हरि हरि सहकूडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं पण्णत्ता || २९. सव्वेविणं नंदणकूडा बलकूडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता
३०. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ३१. सणकुमार- माहिदेसु कप्पेसु विमाणा 'छ-छ" जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं
पण्णत्ता ॥
३२. चुल्लहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स समे धरणितले, एस णं छ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ३३. एवं सिहरीकूडस्सवि ॥
३४. पासस्स णं अरहओ छ सया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं उक्कोसिया' वाइसंपया होत्था ॥
१. सव्वेवि य (क, ग ) ।
२. मंदिरे ( क ) ।
३. छ (क, ग) ।
४. उक्को (क); उक्कोसा ( ग ) ।
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पइण्णगसमवाओ
९०६
३५. अभिचंदे णं कुलगरे 'छ धणसयाई" उडढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ३६. वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससएहिं सद्धि' मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं
पव्वइए। ३७. बंभ-लंतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त-सत्त जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ ३८. समणस्स ण भगवओ महावीरस्स सत्त जिणसया होत्था । ३६. समणस्स भगवओ महावीरस्स सत्त वेउब्वियसया होत्था । ४०. अरिद्वनेमी णं अरहा सत्त वाससयाइं देसूणाई केवलपरियागं पाउणित्ता सिद्धे
बुद्धे 'मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्ख °प्पहीणे । ४१. महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ महाहिमवंतस्स वासहर
पव्वयस्स समे धरणितले, एस णं सत्त जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ४२. एवं रुप्पिकूडस्सवि ।। ४३. महासुक्क-सहस्सारेसु-दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ठ-[अट्ठ ?] जोयणसयाई
उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥ ४४. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएसु वाणमंतर-भोमेज्ज
विहारा पण्णत्ता॥ ४५. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइ
कल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभदाणं उवकोसिआ अणुत्तरोववाइयसंपया'
होत्था॥ ४६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अहिं
जोयणसएहिं सूरिए चारं चरति ॥ ४७. अरहओ णं अरिटुनेमिस्स अट्ठ सयाई वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए
अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था ।।। ४८. आणय-पाणय-आरणच्चुएसु कप्पेसु विमाणा नव-नव जोयणसयाई उड्ढं
उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ४६. निसहकूडस्स' णं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ णिसढस्स वासहरपव्वयस्स समे
धरणितले, एस णं नव जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।. ५०. एवं नीलवंतकूडस्सवि ।। ५१. विमलवाहणे णं कुलगरे णं नव धणुसयाइं उडढं उच्चत्तेणं होत्था ।। ५२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नवहिं
जोयणसएहिं सव्वुपरिमे तारारूवे चारं चरइ ।।
१. षट् धनुः शतानि पंचाशदधिकानि (वृ)। २. X(क, ग)। ३. सं० पा०-बुद्धे जाव प्पहीणे ।
४. अणुत्तरोववाइयाणं संपया (ग)। ५. निसभ° (क, ख, ग)।
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११०
समवाओ
५३. निसढस्स णं वासधरपव्वयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्प
भाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं नव जोयणसयाई
अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ५४. एवं नीलवंतस्सवि॥ ५५. सव्वेवि णं गवेज्जविमाणा दस-दस जोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ।। ५६. सव्वेवि णं जमगपव्वया दस-दस जोयणसयाइं उडुढं उच्चत्तेणं, दस-दस गाउय
सयाइं उव्वेहेणं, मूले दस-दस जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ५७. एवं चित्त-विचित्तकडा वि भाणियव्वा।। ५८. सव्वेवि णं' वट्टवेयड्डपव्वया दस-दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दस-दस
गाउयसयाइं उव्वेहेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया, मूले दस-दस
जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ५६. सव्वेवि णं हरि-हरिस्सहकूडा वक्खारकूडवज्जा' दस-दस जोयणसयाइं उड्ढं
उच्चत्तेणं, मूले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता ।। ६०. एवं बलकूडावि नंदणकूडवज्जा ।। ६१. अरहा वि अरिट्ठनेमो दस वाससयाई सव्वाउयं पाल इत्ता सिद्धे बुद्धे' 'मुत्ते
अंतगडे परिणिव्वुडे ° सव्वदुक्खप्पहीणे ॥
पासस्स णं अरहओ दस सयाई जिणाणं होत्था ।। ६३. पासस्स णं अरहओ दस अंतेवासिसयाई कालगयाई वीइक्कंताई समुज्जयाई
छिण्णजाइजरामरणबंधणाई सिद्धाइं बुद्धाइं मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुयाइं°
सव्वदुक्खप्पहीणाई॥ ६४. पउमद्दह-पुंडरीयद्दहा य दस-दस जोयणसयाई आयामेणं पण्णत्ता ।। ६५. अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं
पण्णत्ता॥ ६६. पासस्स णं अरहओ इक्कारससयाइं वेउव्वियाणं होत्था । ६७. महापउम-महापुंडरीयदहाणं दो-दो जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता ।। ६८. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ
लोहियक्खस्स कंडस्स हेडिल्ले चरिमंते, एस णं तिण्णि जोयणसहस्साई
अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ६६. 'तिगिच्छ-केसरिदहा ण चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता ।।
१. य णं (ग)। २. वक्खारपवयकूड ° (क)। ३. सं० पा० - बुद्धे जाव सव्वदुक्ख ° ।।
४. सं० पा०-कालगयाइं जाव सव्वदुक्ख । ५. ° दहा णं दहा (क,ग); दहा णं दहा (ख)।
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पइण्णगसमवाओ
७०. धरणितले मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्भदेसभाए ' रुयगनाभीओ' चउदिसिं पंच-पंच जोयणसहस्साई अबाहाए मंदरपव्वए पण्णत्ते ॥
७१. सहस्सारे णं कप्पे छ विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता ॥
७२. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ पुलगस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं सत्त जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
७३. हरिवास - रम्मया णं वासा अट्ठ- [ अट्ट ? ] जोयणसहस्साई साइरेगाई वित्थरेण
पण्णत्ता ॥
७४. दाहिणड्डूभरहस्स ण जीवा पाईणपडीणायया दुहओ समुद्दं पुट्ठा नव जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता ||
७५. मंदरे णं पव्वए धरणितले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥
७६. जंबूदीवेणं दीवे एवं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ ७७. लवणे णं समुद्दे दो जोयणसय सहस्साई चक्कवालविवखंभेणं पण्णत्ते ॥
७८. पासस्स णं अरहओ तिण्णि रायसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्साइं उक्कोसिया साविया - संपया होत्या ।।
७६. धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसय सहस्साइं चक्कवाल विक्खंभेणं पण्णत्ते ॥ लवणस्स णं समुद्दस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं पंच जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
८०.
८१. भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्वसयसहस्साइं रायमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ||
८२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ धायसंडचक्कवालस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, [एस णं ? ] सत्त जोयणसय सहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८३. माहिंदे णं कप्पे अट्ठ विमाणावाससय सहस्साइं पण्णत्ताई ||
११
८४ अजियस्स णं अरहओ साइरेगाई नव ओहिनाणिसहस्साइं होत्था || ८५. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वासस्यसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए नरएसु ने रइयत्ताए उववण्णे ||
८६. समणे भगवं महावोरे तित्थगरभवग्गहणाओ
छट्ठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं
१. ० भागाओ उ ( क ) ।
२. स्वगणाभीतो ( क ) 1
३. ० द्दिसं ( क ); द्दिसि ( ग ) ।
४. सतसहस्साई ( ग ); अमितस्यार्हतः साति
रेकाणि नवावधिज्ञानिसहस्राणि, अतिरेकश्च -
त्वारि शतानि इंद च सहस्रस्थानकमपि लक्षस्थानकाधिकारे यदधीतं तत् सहस्रशब्दसाधर्म्याद्विचित्रत्वाद्वा सूत्रगतेर्लेखकदोषाद्वेति
(दृ) ।
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१२
समवाओ
वासकोडं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठे विमाणे देवत्ताए
उaaणे ||
८७. उसभसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोवमArtists बहाए अंतरे पण्णत्ते ॥
दुवाल संग-पदं
८८. दुवालसंगे गणिपिडगे पण्णते, तं जहा - आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विपण्णत्ती णाया धम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुए दिट्टिवाए ||
८. से किं तं आयारे ?
आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार- गोयर - विणय-वेणइय - द्वाण-गमणचकमण- पमाण - जोगजुंजण भासा समिति-गुत्ती - सेज्जो वहि भत्तपाण- उग्गमउपायण सणाविसोहि - सुद्धासुद्धग्गहण वय नियम- तवोवहाण - सुप्पसत्थमाहिज्जइ । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - णाणायारे दंसणायारे चरितायारे तवायारे वीरियायारे ।
-
-
आयास्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ ।
से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे दो सुयक्खंधा पणवीसं अज्झयणा पंचासीई उद्देणकाला पंचासोई समुद्दे सणकाला अट्ठारस पयसहस्साइं पदग्गेणं', संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा बिद्धाणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जं ति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
से एवं आया' एवं णाया एवं विष्णाया एवं चरण-करण - परूवणया आघविज्जति पण विज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं आयारे ॥ ६०. से किं तं सूयगडे ?
सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति 'लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सुइज्जति" ।
सूयगडे णं जीवाजीव- पुण्ण-पावासव संवर-निज्जर-बंध - मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय - मोह मोह - मइमोहियाणं संदेहजा-सहजबुद्धि- परिणाम- संसइयाणं पावकर - मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं
१. पयग्गेणं प ( ग ) प्रायः सर्वत्र ।
२. आवा (क); आए ( ग ); इदं च सूत्रं पुस्तकेषु न दृष्टं, नन्द्यां तु दृश्यते इतीह व्याख्यात
मिति (वृ) ।
३. लोगो० अलोगो • लोगालोगो ० ( ग ) ।
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पइण्णगसमवाओ
९१३ 'आसीतस्स किरियावादिसतस्स" चउरासीए अकिरियवाईणं', सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं-तिण्हं तेसट्ठाणं' अण्णदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति । णाणादिटुंतवयण-णिस्सारं सुट्ठ दरिसयंता विविहवित्थराणुगम-परमसब्भाव-गुण-विसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव सिद्धिसुगइघरुत्तमस्स णिक्खोभ-निप्पकंपा सुत्तत्था । सूयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ। से णं अंगठ्ठयाए दोच्चे अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तेत्तीसं उद्देसणकाला तेत्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पदसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति ° उवदंसिज्जति । 'से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति
उववंसिज्जति° । सेत्तं सूयगडे ॥ ६१. से किं तं ठाणे? .
ठाणे णं ससमया ठाविज्जति परसमया ठाविज्जति ससमयपरसमया ठाविज्जति जीवा ठाविज्जति अजीवा ठाविज्जति जीवाजीवा ठाविज्जति लोगे ठाविज्जति अलोगे ठाविज्जति लोगालोगे ठाविज्जति ।
ठाणे णं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव पयत्थाणंसंगहणी-गाहा
सेला सलिला य समुद्द-सूरभवणविमाण आगर' णदीओ। णिहओ" पुरिसज्जाया", सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥१॥
१. असीति सयस्स किरियावादिणं (ग)। ६. से एवं णाते एवं विण्णाते (क, ग)। २. अकिरियादीणं (ग)।
७. सं० पा०-आषविज्जति । ३. तेअट्टाणं (ग)।
८. सूरा भवन विमाणा (क)। ४. सं० पा०--अक्खरा तं चेव जाव परित्ता। ६. आगर। (ख)। ५. सं० पा०-आपविज्जति जाव उवदं- १०. णिवहो (क); णिधओ (ग)। सिज्जति ।
११. पुस्सजोय (वृपा)।
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११४
समवाओ
एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण 'य लोगट्ठाइणं च" परूवणया आघविज्जति । ठाणस्स णं परित्ता वायणा' 'संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा° संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अगट्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्कवोसं उद्देसणकाला एक्कवीसं समुद्देसणकाला बावतरि पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं ठाणे॥ ६२. से किं तं समवाए ?
समवाए णं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइज्जति अलोगे सइज्जति लोगालोगे सूइज्जति। समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्डीय', दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य णाणाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग - तिरिय-मणुय - सुरगणाणं अहारुस्सास - लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयण-ओर यण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय', विविहा य जीवजोणी विक्खंभुस्सेह-परिरय-प्पमाणं विधिविसेसा य मंदरादीण महीधराणं कुलगर-तित्थगर-गणहराणं समत्तभरहाहिवाण चक्कीणं चेव चक्कहरहलहराण य वासाण य निग्गमा य समाए।
१. लोगट्ठाई च णं (क, ख, ग); प्रतिषु ५. समाते (ख, वृ)। 'लोगट्ठाइं च णं' पाठो लभ्यते । किन्तु वृत्त्य- ६. ° परिवुड्ढिय (ख, वू)। नुसारेण 'लोगट्ठाइणं च' एवं पाठो युज्यते। ७. समणुवाइज्जइ (क)। लिपिदोषेण वर्णविपर्ययो जात इति प्रतीयते । ८. कषाया:-क्रोधादयः आहारश्चोच्छवासश्चेत्या२. सं० पा०-वायणा जाव संखेज्जा।
दिर्द्वन्द्वस्ततः कषायशब्दात्प्रथमाबहवचनलोपो ३. सं० पा०-अक्खरा जाव चरण-करण । द्रष्टव्यः (वृ)। ४. सं० पा०-आघविज्जति ।
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पइण्णगसमवाओ
६१५ एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेणं अत्था समासिज्जंति'। समवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तोओ संखेज्जाओ संगहणीओ । से णं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे एगे उद्देसणकाले एगे समुद्देसणकाले एगे चोयाले पदसयसहस्से पदग्गेणं, 'संखेज्जाणि अक्खराणि 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं समवाए। से किं तं वियाहे ? वियाहे णं ससमया वियाहिज्जति परसमया वियाहिज्जति ससमयपरसमया वियाहिज्जति जोवा वियाहिज्जति अजीवा वियाहिज्जति जीवाजीवा वियाहिज्जति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ। वियाहे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-रायरिसि-विविहसंसइय-पुच्छियाणं जिणेणं' वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिणाम-जहत्थिभावअणुगम-निक्खेव-णय-प्पमाण-सुनिउणोवक्कम-विविहप्पगार -पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगासियाणं संसारसमुद्द-रुंद-उत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरय-'विद्धसणाणं सुदिट्ठ-'दीवभूय-ईहामतिबुद्धि-वद्धणाणं'५९ छत्तीससहस्समणणयाणं वागरणाणं दंसणार सूयत्थबहुविहप्पगारा सीसहियत्थाय गुणहत्था । वियाहस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तोओ संखेज्जाओ संगहणीओ।
१. समाहिज्जति (क, ग)।
८. पगारा (क)। २. सं० पा०-वायणा जाव से णं ।
६. वयंसियाणं (क)। ३. पदसहस्से (ग)।
१०. विद्धंसणाणसुदिट्ट° (वृ); विद्धंसणाणं ४. पूर्ववर्तित्रिषु सूत्रेषु 'संखेज्जा अक्खरा' इति सुदिट्ट (वपा)।
विद्यते । सं० पा०-अक्खराणि जाव सेत्तं । ११. दीवभूयाणं (वृपा)। ५. जिणाण (क)।
१२. दंसणाओ (ग)। ६. वित्थार (क); वित्थर (ख)।
१३. सं० पा०-वायणा जाव अंगट्ठय ए।" ७. सुणिउणउवक्कम (क) ।
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९१६
समवाओ
से णं° अंगट्टयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झयणसते दस उद्देसगसहस्साई दस समुद्देसगसहस्साइं छत्तीसं वागरणसहस्साई चउरासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाइं अक्खराइं अणंता गमा' 'अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा° सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति। से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया ° एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं वियाहे ॥ १४. से किं तं 'नाया-धम्मकहाओ" ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्रिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । नाया-धम्मकहासु णं 'पव्वइयाणं विणयकरण-जिणसामि-सासणवरे" संजमपइण्ण-पालण-धिइ-मइ - ववसाय - दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण"दुद्धरभर'-'भग्गा-णिसहा"-णिसट्ठाणं", घोरपरीसह-पराजिया-सह-पारद्धरुद्ध-सिद्धालयमग्ग - निग्गयाणं, 'विसयसुह - तुच्छ'-आसावस-दोस-मुच्छियाणं विराहिय-चरित्त-नाण-दसण-जइगुण-विविह-प्पगार-निस्सार-सुण्णयाणं संसारअपार-दुक्ख-दुग्गइ-भव-विविहपरंपरा-पवंचा"।
१. सं० पा०-अणंता गमा जाव सासया। १०. चरण (ग)। २. सं० पा०-आघविज्जति जाव एवं । ११. दुद्धारभर (ख, ग)। ३. सं० पा०-आषविज्जति ।
१२. भग्गाणं (क)। ४. णया (क); प्रायः सर्वत्र । नाय ° (ग)। १३. इह च प्राकृतत्वेन ककारलोपसन्धिकरणाभ्यां ५. सं० पा०-आपविजंति जाव नाया। भग्ना इत्यादौ दीर्घत्वमवसेयम् (व) । ६. समणाणं विनयकरणजिणसासणंमि पवरे १४. निविदाणं (वृपा)। (वृपा)।
१५. पराजियाणं (वृपा)। ७. पतिण्णा (ग)।
१६. विसयसुहमहेच्छतुच्छ (वृपा)। ८. पायाल (); पालण (वृपा)।
१७. पवंधा (क)। ६. दुब्बलाणं (क, ख, वृपा)।
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पइण्णगसमवाऔ
६१७ धीराण य जिय-परिसह-कसाय-सेण्ण-धिइ-धणिय-संजम-उच्छाह-निच्छियाणं आराहिय - नाण - दसण-चरित्त - जोग-निस्सल्ल-सुद्ध-सिद्धालयमग्ग-मभिमुहाणं सुरभवण-विमाण-सुक्खाइं अणोवमाइं भुत्तूण चिरं च भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि ततो य काल-क्कम-च्चुयाणं जह य पुणो लद्धसिद्धिमग्गाणं अंतकिरिया। चलियाण य सदेव-माणुस्स-धीरकरण-करणाणि बोधण-अणुसासणाणि गुणदोस-दरिसणाणि । दिटुंते पच्चए य सोऊण लोगमुणिणो 'जह य ठिया" सासणम्मि जर-मरणनासणकरे। आराहिय-संजमा य सुरलोगपडिनियत्ता ओति जह सासयं सिवं सव्वदुक्खमोक्खं। एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेण य । नाया-धम्मकहासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ° संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए छठे अंगे दो सुअक्खंधा एगूणतीसं अज्झयणा, 'ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-चरिता य कप्पिया य"। दस धम्मकहाणं वग्गा । तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच-पंच अक्खाइयासयाई। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच-पंच उवक्खाइयासयाई। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई-एवामेव सपुत्वावरेणं अद्धट्ठाओ अक्खाइयकोडीओ भवंतीति मक्खायाओ। एगूणतीसं उद्देसणकाला एगूणतीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साइ पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं° चरण-करण-परूवणया आघ
१. जह ठिय (क); जह य ठिय (ग)। 'ग' प्रतिगतवृत्तौ 'एक्कूणतीसमन्झयण' त्ति २. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ। पाठांशो लभ्यते । अध्ययनानां सामान्य३. एकूणवीसं (क); एक्कूणवीसं (ग); यत्र निरूपणे असौ सम्यक् प्रतिभाति । 'नातज्झयणा' तत्र 'एगृणवीसं' इति पाठः ४. असौ पाठो वृत्ती नास्ति व्याख्यातः। सम्यक् स्यात्। किन्तु यत्र केवलं 'अज्झयणा' ५. पयसहस्साई (ख)। इति तत्र 'एगूणतीसं' पाठो युज्यते। प्रयुक्त ६. सं० पा०--अक्खरा जाव चरण ।
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समवाओ
विज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं णाया-धम्मकहाओ ।। से किं तं उवासगदसाओ ? उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराइं उज्जाणाई चेइआई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्डिविसेसा, उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवज्जणयाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति । उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुणउत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमाभिग्गहग्गहण-पालणा उवसग्गाहियासणा णिरुवसग्गा य, तवा य विचित्ता, सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासा, अपच्छिममारणंतियाजयसंलेहणा-झोसणाहिं अप्पाणं जह य भावइत्ता, बहूणि भत्ताणि अणसणाए य छेयइत्ता उववण्णा कप्पवरविमाणुत्तमेसु जह अणुभवंति सुरवरविमाणवरपोंडरीएसु सोक्खाइं अणोवमाइं कमेण भोत्तूण उत्तमाइं, तओ आउक्खएणं चुया समाणा जह जिणमयम्मि बोहिं लळूण य संजमुत्तमं तमरयोघविप्पमुक्का उवेंति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं । एते अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य ।। उवासगदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाइं अक्खराइं 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया° एवं चरण-करण-परूवणया आघ
१. सं० पा०-आघविज्जति । २. भत्तपाण ° (वृ)। ३. अभिगमणं (ग)। ४. चित्ता (क, ख, ग)।
५. गुण वेरमण (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ। ७. पयसहस्साइं (क, ख)। ८. सं० पा०-अक्खराइं जाव एवं चरण ।
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हरह
विज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं उवासगदसाओ ॥
६. से किं तं अंतगडदसाओ ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणारं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इडविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभ, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तह' अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाई |
पंगवा
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ' मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेत्ता अंतगडो मुणिवरो तमरयोघविप्पमुक्कों, मोक्खसुहमणुत्तरं
च पत्ता ।
एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थारेणं परूवेई ।
● अंत गडदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संग्रहणीओ° ।
सेणं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा सत्त वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्दे सणकाला संखेज्जाई पयसय सहस्साई' पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा' अनंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति ।
से एवं आया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चरण- करण- परूवणया आघ
o
१. सं० पा० - आघविज्जति । २. चियातो किरियाओ (क); किरियाओ ( ख ) ; चाओ किरियाओ ( ग ) ।
३. तह य ( ग ) ।
४. परिपालिओ ( ग ) ।
५. ० मुक्का ( ख, ग ); अत्र प्रस्तुतपाठस्य क्रमेण 'अंतगडा मुणिवरा तम-रयोघ - विप्पमुक्का' इति पाठ युज्यते, किन्तु वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'अंतगडो मुणिवरो तम - रयोघ - विप्पमुक्कों'
इति पाठ आसीत् तेन वृत्तिकारेण अनेकवचनं व्याख्यातम्, 'पत्ता' अत्र च बहुवचनम् । १२८ सूत्रे 'अंतगडा मुणिवरूत्तमा तम-रओघ - विप्पमुक्का' इति पाठो लभ्यते, ततः पूर्वोक्तानुमानस्य पुष्टिर्जायते । ६. पत्तो ( ग ) ।
७. सं० पा० परूवेई जाव से णं । ८ पयसहस्साइं ( ख ) ।
६. सं० पा० – अक्खरा जाव एवं चरण ।
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१२०
समवाओ विज्जति', 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं अंतगडदसाओ॥ से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा' संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविजंति।। 'अणुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परममंगलजगहियाणि जिणातिसेसा य बहुविसेसा जिणसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं 'तव-दित्त-चरित्त-णाण-सम्मत्तसार-विविहप्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ, उत्तमवरतव-विसिट्ठणाण-जोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा य रिद्धिविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउब्भावा य जिणसमीवं, जह य उवासंति जिणवरं, जह य परिकहेंति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं', सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्म"-विसयविरत्ता नरा जह अब्भुवेति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं, जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहिय-नाण-दसण-चरित्त-जोगा 'जिणवयणमणुगय-महियभासिया जिणवराण हियएणमणुणेत्ता, जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता लद्धण य समाहिमुत्तमं झाणजोगजुत्ता उववण्णा मुणिवरोत्तमा"जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं, तत्तो य चुया कमेणं काहिंति संजया जह य अंतकिरियं । एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण । अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा" संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ° संखेज्जाओ संगहणीओ।
१. सं० पा०-आघविज्जति । २. पडिमाओ (क, ख, ग)। ३. भत्तपाण° (क्व)। ४. अणुत्तरोववाओ (क्व)। ५. अणुत्तरोववाइयदसाणं (क)। ६. थेर° (क); विर° (ग)। ७. दवदित्त (वृ); तवदित्त (वृपा)।
८. ज्झयाणं (ग, वृपा)। ६. °नरासुरा° (क)। १०. ° कम्मा (क, ख, ग)। ११. जिणवयणानुगइसुभासिया (वृपा)। १२. मुणिपवरुत्तमा (क)। १३. सं० पा०-अणुओगदारा संखेज्जाओ।
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पइण्णगसमवाऔ
६२१
सेणं अंग या नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा तिण्णि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि 'अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति ।
से एवं आया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चरण-करण - परूवणया आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परुविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ||
६८. से किं तं पण्हावागरणाणि ?
पण्हावागरणेसु अट्टुत्तरं पसिणसयं अट्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । पहावागरणदसासु णं ससमय - परसमय पण्णवय- पत्ते यबुद्ध - विविहत्य -भासाभासियाणं अतिसय-गुण-उवसम - णाणप्पगार- आयरिय- भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं' विविहवित्थर भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणिखोम - आतिच्चमातियाणं विवि महापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा-देवयपओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव - नरगणमइ-विम्हयकारीणं " अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण -कारणाणं दुरहिगमदुरवगाहस्स' सव्वसव्वण्णुसम्मयस्स बुहजणविबोहक रस्स" पच्चक्खय-पच्चयhi पहा विविगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आघविज्जति । पण्हावागरणेसु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा" "संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ' संखेज्जाओ संगणीओ ।
से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे 'एंगे सुयक्खंधे [पणयालीसं अज्झयणा' ? ] पणयालीसं उद्देसणकाला पणयालीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि
१. पयसहस्साइं ( ख, ग ) ।
२. सं० पा० - अक्खराणि जाव एवं चरण ।
३. सं० पा० - आघविज्जति ।
४. विवित्था ( क ) ।
५. थिर (वृ); वीर ° (वृपा) । ६. ० विविहगुण ० ( वृपा );
७.
८. थिति
करीणं ( ख ) ।
दुगुण० (क्व ) ।
( क ); थिर ० ( ग ) ।
C. दुरोवगाहस्स ( क ) ।
१०. ० विबोधन० ( वृ) ।
११. सं० पा० अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ । १२. यद्यपि समवायांगादर्शेषु नैष पाठो लभ्यते,
किन्तु उद्देशनकालात्पूर्वं अध्ययनानां संख्या निर्दिश्यते, नन्दी सूत्रेऽपि प्रश्नव्याकरणविवरणे पाठोऽसौ लभ्यते, तेनात्रासौ युज्यते । १३. पयसहस्साणि ( ख ) ।
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१२२
समवाओ
१६.
पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा' 'अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति ।। से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं० चरण-करण-परूवणया आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदसिज्जति उवदंसिज्जति ° । सेत्तं पण्हावागरणाई ।। से किं तं विवागसुए ? विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति। से समासओ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव । तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि। से कि तं दुहविवागाणि ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई 'उज्जाणाई चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाई संसारपबंधे दहपरंपराओ य आघविज्जति । सेत्तं दुहविवागाणि। से कि तं सुहविवागाणि? सहविवागेसु सुहविवागाणं नगराई 'उज्जाणाइं चेइयाई वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया° धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इडिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जति। दहविवागेस णं पाणाइवाय-अलियवयण-चोरिक्क-करण-परदार-मेहुण-संसग्गयाए० महतिव्वकसाय-इंदियप्पमाय-पावप्पओय-असुहझवसाण-संचियाणं'२ कम्माणं पावगाणं पाव-अणुभाग-फलविवागा णिरयगति-तिरिक्खजोणिबहविह-वसण-सय-परंपरा-पबद्धाणं, मणुयत्तेवि आगयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होति फलविवागा। वहवसणविणास -नासकण्णोद्वंगुट्ठकरचरणनहच्छेयण -जिब्भछेयण"- अंजण-कड
१. सं० पा०-गमा जाव चरण । २. सं० पा०-आघविज्जति । ३. ° सुयं (क)। ४. ४ (क, ख)। ५. चेइयाइं उज्जाणाई (क, ख, ग)। ६. णरगगमणाई (क, ख)। ७. ° पवंच (क, ख)।
८. सं० पा०-नगराइं जाव धम्मकहाओ। ६. पडिमाओ (ग)। १०. गताओ (क)। ११. ०प्पवाद (क)। १२. संट्ठियाणं (ग)। १३. णरय° (क, ग)। १४. जति ° (ग)।
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पइण्णगसमवाओ
ग्गिदाहण-गयचलण-मलणफालणउल्लंबण'-सूललयाल उडलट्रिभंजण-तउसीसगतत्ततेल्लकलकलअभिसिंचण -कभिपाग-कंपण - थिरबंधण - वेह - वज्झ - कत्तणपतिभयकर-करपलीवणादिदारुणाणि दुक्खाणि अणोवमाणि बहुविविहपरंपराणुबद्धा ण मुच्चंति पावकम्मवल्लीए । अवेयइत्ता हु णत्थि मोक्खो तवेण धिइधणिय-बद्ध-कच्छेण सोहणं तस्स वावि होज्जा। एत्तो य सुहविवागेसु सील-संजम-णियम-गुण-तवोवहाणेसु सासु सुविहिएसु अणुकंपासयप्पओग-तिकाल-मइविसुद्ध-भत्तपाणाइं पयतमणसा हिय-सुहनीसेस-तिव्वपरिणाम-निच्छियमई पयच्छिऊणं पओगसुद्धाइं जह य निव्वत्तेति उ बोहिलाभं, जह य परित्तीकरेंति नर-निरय-तिरिय-सुरगतिगमण-विपुलपरियट-अरति-भय-विसाय-सोक-मिच्छत्त-सेल-संकडं अण्णाणतमंधकार-चिक्खिल्लसदत्तारं जर-मरण-जोणि-संखभियचक्कवालं सोलसकसाय-सावय-पयंड-चंडं अणाइयं अणवदग्गं संसारसागरमिणं, जह य निबंधति आउगं सुरगणेसु, जह य अणुभवंति सुरगणविमाणसोक्खाणि अणोवमाणि, ततो य कालंतरच्चुआणं इहेव नरलोगमागयाणं आउ-वउ-वण्ण-रूव-जाति-कुल-जम्म-आरोग्ग-बुद्धि-मेहाविसेसा मित्तजण-सयण-धण-धण्ण-विभव-समिद्धिसार-समुदयविसेसा बहुविहकामभोगुब्भवाण सोक्खाण सुहविवागोत्तमेसु । अणुवरयपरंपराणुबद्धा असुभाण सुभाण चेव कम्माण भासिआ बहुविहा विवागा विवागसुयम्मि भगवया जिणवरेण संवेगकारणत्था। 'अण्णेवि य एवमाइया, बहुविहा वित्थरेणं अत्थपरूवणया आघविज्जति" । विवागसुअस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ° संखेज्जाओ संगहणीओ।
१. °चलपरिमलण° (ग)।
अर्थसापेक्षत्वेनेदं कृतमस्ति अथवा लिपिदोषेण २. सुगति ° (क, ग)।
जातमिति वक्तुं न शक्यम् । सर्वत्रापि ३. सू० ६२. एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेणं आख्यायन्ते इति क्रियाशेषो ज्ञातव्यः । अत्था समासिज्जति ।
वृत्तिकृता 'अण्णे वि एवमाइया' इति पाठः सू० १४. एए अण्णे य एवमादित्थ वित्थरेण या
बहवचनत्वेन व्याख्यातः । शेषपाठ एकवचनसू० ६५. एते अण्णे य एवमाइअत्था
त्वेन व्याख्यातः । तथा च वृत्तिः-अन्येपि वित्थरेण य।
चैवमादिका: आख्यायन्त इति पूर्वोक्तक्रियया सू० ६६. एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण ।
वचनपरिणामाद्वोत्तरक्रियया योगः एवं च सू०६७. एए अण्णे य एवमाइअत्था वित्थारेणं ।
बहुविधा विस्तरेणार्थप्ररूपणता आख्यायत सू० ६६. अण्णे वि एवमाइया, बहुविहा वित्थरेणं अत्थपरूवणया आघविज्जति ।
इति (वृ)। एतेषु पाठेषु किञ्चित् परिवर्तनं दृश्यते। ४. सं० पा०- अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ।
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६२४
समवाओ से णं अंगट्टयाए एक्कारसमे अंगे वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि 'अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविज्जति पण्णविनंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया ° एवं चरण-करण-परूवणया आघविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं विवागसुए। १००. से कि तं दिट्ठिवाए ?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते,
तं जहा–परिकम्म सुत्ताइं पुव्वगयं अणुओगे चूलिया ॥ १०१. से कि तं परिकम्मे ?
परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मणुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुटुसेणियापरिकम्म ४. ओगाहणसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरि
कम्मे ॥ १०२. से कि तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. माउयापयाणि २. एगट्ठियपयाणि ३. 'अट्ठपयाणि ४. पाढो" ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ह. दुगुणं १०. तिगुणं ११. केउभूयपडिग्गहो १२. संसारपडि
ग्गहो १३. नदावत्तं १४. सिद्धावत्तं । सेत्तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ॥ १०३. से कि तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे ?
मणुस्ससेणियापरिकम्मे चोद्दस्सविहे पण्णत्ते, तं जहा- १. माउयापयाणि २. एगट्ठियपयाणि ३. अट्ठपयाणि ४. पाढो ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ६. दुगुणं १०. तिगुणं ११. केउभूयपडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो° १३. नदावत्तं १४. मणुस्सावत्तं । सेत्तं मणुस्ससेणिया परिकम्मे ॥
१. पयसहस्साई (क, ख, ग)।
६. केउव्वयं (ग)। २. सं० पा०-अक्खराणि जाव एवं । ७. सिद्धावद्धं (क)। ३. सं० पा०-आघविज्जति ।
८. सं० पा०-ताई चेव माउयापयाणि जाव ४. वुद्धा (क)।
नंदावत्तं। ५. पादो अद्धपयाणि (क); पढो अट्ठापयाणि ६. मणुस्सावटै (क); मणुस्सबद्धं (ग)।
(ख); पाढो अट्ठपयाणि (ग)।
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पइण्णगसमवाओ
६२५ १०४. “से किं तं पुटुसेणियापरिकम्मे ?
पुटुसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा -१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो
६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. पुट्ठावत्तं । सेत्तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ।। १०५. से किं तं ओगाहणसेणियापरिकम्मे ?
ओगाहणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. ओगाहणावत्तं । सेत्तं ओगाहण
सेणियापरिकम्मे ॥ ०६. से कि तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ?
उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा–१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. उवसंपज्जणावत्तं ।
सेत्तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे ॥ १०७. से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ?
विप्पजहणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. विप्पजहणावत्तं । सेत्तं विप्प
जहणसेणियापरिकम्मे ॥ १०८. से किं तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ?
चुयाचुयसेणियापरिकम्मे एक्कारसंविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. पाढो २. आगासपयाणि ३. केउभूयं ४. रासिबद्धं ५. एगगुणं ६. दुगुणं ७. तिगुणं ८. केउभूयपडिग्गहो ६. संसारपडिग्गहो १०. नंदावत्तं ११. चुयाच्यावत्तं । सेत्तं चुयाचुय
सेणियापरिकम्मे ॥ १०६. इच्चेयाइं सत्त परिकम्माई छ ससमइयाणि सत्त 'आजीवियाणि, छ चउक्क
णइयाणि सत्त तेरासियाणि । एवामेव सपुव्वावरेणं सत्त परिकम्माई तेसीति' भवंतीति मक्खायाइं । सेत्तं परिकम्मे ।
१. सं० पा०-अवसेसाई परिकम्माइं पाढाइ- ३. ४ (क, ग)। याइं एक्कारसविहाई पण्णत्ताई।
४. परियम्माणि (क): परिकम्माणि (ग)। २. x (क)।
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६२६
११०. से किं तं सुत्ताई ?
सुत्ताई अासीतिभवतीति मक्खायाई, तं जहा - १. उज्जुगं' २. परिणयापरिणयं ३. बहुभंगियं ४. विजयचरियं ५. अनंतरं ६ परंपरं ७ सामाणं ८. संजू हं ६. भिण्णं १०. आहच्चायं ११. सोवत्थियं घंटं १२. नंदावत्तं १३. बहुलं १४. पुट्ठापुट्ठे १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुआवत्तं १८. वत्तमाणुप्पयं १६. समभिरूढं २०. सव्वओभद्दं २१. पण्णास २२. दुपहिं ॥ १११. इच्चेयाई बावीसं सुत्ताइं छिण्णछेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । इच्चेयाइं बावीस सुत्ताइं अछिण्णछेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए । इच्याई बावीस सुत्ताइं तिकनयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए । इच्याई बावीस सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए । एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीति सुत्ताई भवतीति मक्खायाणि' । सेत्तं सुत्ताई ॥ ११२. से किं तं पुव्वगए ?
पुव्वगए चउदसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. उप्पायपुव्वं २. अग्णीयं ३. वीरियं ४. अत्थिणत्थिप्पवायं ५. नाणप्पवायं ६. सच्चप्पवायं ७ आयप्पवायं ८. कम्मप्पवायं ६. पच्चक्खाणं १०. विज्जाणुप्पवायं" ११. अवंभं १२. पाणाउं १३. किरियाविसालं १४. लोगबिंदुसारं ॥
११३. उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू, चत्तारि चुलियावत्थू पण्णत्ता ॥
११४. अग्गेणियस्स णं पुव्वस्स चोट्स वत्थू, बारस चूलियावत्थू पण्णत्ता ॥
११५. वीरियस्स णं पुव्वस्स अट्ठ वत्थू, अट्ठ चूलियावत्थू पण्णत्ता ॥ ११६. अत्थिणत्थिष्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू, दस चूलिया वत्थू पण्णत्ता ॥ ११७. नाणप्पवायस्स णं पुव्वस्स बारस वत्थू पण्णत्ता ॥
११८. सच्चप्पवायस्स णं पुव्वस्स दो वत्थू पण्णत्ता ॥ ११६. आयप्पवायस्स णं पुव्वस्स सोलस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२० कम्मप्पवायस्स णं पुव्वस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता ॥ १२१. पच्चक्खाणस्स णं पुव्वस्स वीसं वत्थू पण्णत्ता ॥ १२२. विज्जाणुष्पवायस्सर णं पुव्वस्स पनरस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२३. अवझस्स णं पुव्वस्स बारस वत्थू पण्णत्ता ॥ १२४. पाणाउस्स णं पुब्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता ॥
१. उज्जगं (क, ग) ।
२. विपच्चवियं ( क ग ) ।
३. समाणं ( ख ) ।
४. संभिण्णं ( क्व ) | ५. अहच्चायं ( ख ) । ६. पुढपुट्ठे ( क ) ।
७. वत्तमाणुपयं ( ख ) ।
८. पसणं (क); पणसं ( ग ) ।
६. मक्खाइयाई (ग) |
१०. पच्चक्खाणप्पवायं ( ग ) ।
समवाओ
११. अणुवा ( ग ) । १२. अणु ० ( क, ख, ग ) ।
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पइण्णगसमवाओ
१२५. किरियाविसालस्स णं पुव्वस्स तीसं वत्थू पण्णत्ता ॥ १२६. लोयबिंदुसारस्स णं पुव्वस्स पणुवीसं वत्थू पण्णत्ता ॥
१२७.
दस चोद्दस अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा, पण्णरस अणुप्पवामि ||१|| बारस एक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोदसमे पण्णवीसाओ || २ || चत्तारि दुवाल अट्ठ, चेव दस चेव चूलवत्थूणि । अतिल्लाण चउन्हं, सेसाणं चूलिया णत्थि ||३||
-सेत्तं पुव्वगए ।।
किं तं अणुओगे ?
अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य' ।। ६२८. से किं तं मूलपढमाणुओगे ?
मूलपढमाणुओगे - एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चवणाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवाय भत्ता, केवलणाणुप्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो', सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ - संघस्स चव्विहस्स जं वावि परिमाणं, 'जिण मणपज्जव - ओहिनाणी", सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य 'जत्तिया, जत्तिया" सिद्धा, 'पातोवगता य" जे "जहिं जत्तियाई भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा" मुणिवरुत्तमा ४ तम - ओघ - विमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं " च पत्ता ।
१४
एए अण्णेय एवमादी भावा मूलपढमाणुओगे कहिया आघविज्जंति पण्णविज्जति परूविज्जंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । सेत्तं मूलपढमाणुओगे || १२६. से कि त गंडियाणुओगे ?
I
गंडियाणुओगे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा -कुलगरगंडियाओ, तित्थगरगंडियाओ,
१.
वीस ( ग ) ।
२. पुव्वगय ( क ग ) ।
३. X ( क ) ।
४. सा ( ग ) ।
५. चयणाणि (क, ख ) ।
६. ०णुपातपा ( ग ) ।
७. आउं ( क ) ।
८. अण्ण° ( क ) ।
६.
पज्जयतोहि णि ( क ) ; ० पव्वज्जा तोहि
णाणि ( ग ) ।
१०. जित्तिया जित्तिया ( ग ) ।
११. ० गतो (क); ° गतोय ( ख ) ।
६२७
१२. जो (क, ख, ग ) ।
१३. अंतकडो (क, ख); अंतगडो ( ग ) । १४. ० त्तमो (क, ख, ग ) । १५. सिद्ध ° (ग) ।
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१२८
समवाओ गणधरगंडियाओ चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, चित्तंतरगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणगंडियाओ, अमर-नरतिरिय-निरय-गइ-गमण-विविह-परियट्टणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति
उवदंसिज्जंति । सेत्तं गंडियाणुओगे ॥ १३०. से कि तं 'चलियाओ?
चूलियाओ"-आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाइं पुव्वाइं
अचूलियाई । सेत्तं चूलियाओ॥ १३१. दिढिवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा' 'संखेज्जाओ
पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा • संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए बारसमे अंगे एगे सुयखंधे चोद्दस पुवाई संखेज्जा वत्थू संखेज्जा चूलवत्थू खेज्जा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुडा संखेज्जाओ पाहुडियाओ संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति । से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आधविज्जति' 'पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति
उवदंसिज्जति ° । सेत्तं दिट्ठिवाए । सेत्तं दुवालसंगे गणिपिडगे। १३२. इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अणंता जीवा आणाए विराहेत्ता
चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिसु । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियर्सेति । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं अणुपरियट्टिस्संति । इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अणंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकतारं विइवइंसु ।
१. चूलियाणुओगे जामं (ग)। २. चूलियाओ एवं विण्णाते (ग)। ३. सं० पा०-अणुओगदारा जाव संखेज्जाओ।
४. चुल्ल ° (ग)। ५. सं.पा.---आपविज्जति ।
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पण माओ
इच्चेतं दुवाल संगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विश्वयंति ।
इच्तं दुवासंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं विश्वइस्संति ° ॥
१३३. दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयाइ णासी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्स । भुवि च भवति य, भविस्सति य । धुवे णितिए सास अक्खए अव अवट्टिए णिच्चे ।
२६
से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण काइ ण भविस्संति । भुवि च भवंति य, भविस्संति य । धुवा णितिया "सासया अक्खया अव्वया अवट्टिया • णिच्चा । एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण
v
कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ । भुवि च, भवति य, भविस्सइ यो । धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे ॥
o
१३४. एत्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अनंता भावा अनंता अभावा अनंता हेऊ अनंता
अऊ अनंता कारणा अनंता अकारणा अनंता जीवा अणंता अजीवा अनंता भवसिद्धिया अनंता अभवसिद्धिया अनंता सिद्धा अनंता असिद्धा आघविज्जंति पण विज्जति परुविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति ||
रासि - पदं
१३५. दुवे रासी पण्णत्ता, तं जहा - जीवरासी अजीवरासी य ।। १३६. अजीवरासी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - 'रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासी" य ॥ १३७. से किं तं अरूविअजीवरासी ?
१३८. जाव' -
विजीवरासी दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - धम्मत्थिकाए', 'धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अम्मत्थि कायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थि कायस्स देसे, आगासत्थि - कायस्स पदेसा, अद्धासमए ॥
१. सं० पा० - एवं पवि अणागवि । २. सं० पा०-- णितिया जाव णिच्चा । ३. सं० पा० - भविस्सइ य जाव अर्वाट्ठिए ।
४. ०रासी ( क ) ।
५. रूवी० अरूवी० (ग) 1
६. सं० पा० - धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए । ७. इहु च प्रज्ञापनायाः प्रथमपदं प्रज्ञापनाख्यं सर्व
तदक्षरमध्येतव्यं किमवसानमित्याह - 'जाव से किं त' मित्यादि, केवलमस्य प्रज्ञापनासूत्रस्य चायं विशेष:, इह 'दुवे रासी पण्णत्ता' इत्यभिलापसूत्रं तत्र तु 'दुविहा पण्णवणा पण्णत्ता - जीवपण्णवणा अजीवपण्णवणा य' त्ति (वृ) ।
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१३०
समवाओ
१३६. से किं तं अणुत्तरोववाइआ ?
अणुत्तरोववाइओ पंचविहा, पण्णत्ता, तं जहा-विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजितसव्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अणुत्तरोववाइआ। सेत्तं पंचिदियसंसारसमावण्ण
जीवरासी॥ पज्जत्तापज्जत्त-पदं १४०. दुविहा रइया पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य । एवं दंडओ
भाणियव्वो जाव वेमाणियत्ति ।।
आवास-पदं १४१. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्सा' भवंतीति मक्खायं । तेणं णरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा' 'अहे खुरप्प-संठाण-संठिया णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूरणक्खत्त-जोइसपहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा°
असुभा णिरया असुभातो णरएसु वेयणाओ। १४२. एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासु जुज्जइसंगहणी-गाहा
आसीयं बत्तीसं, अट्ठावीसं तहेव वीसं च । अट्ठारस सोलसगं, अद्रुत्तरमेव बाहल्लं ॥१॥ तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव सयसहस्साई।
तिण्णगं पंचूर्ण, पंचेव अणुत्तरा नरगा ॥२॥ [दोच्चाए णं पुढवीए, तच्चाए णं पुढवीए, चउत्थीए पुढवीए, पंचमीए पुढवीए, छट्ठीए पुढवीए, सत्तमीए पुढवीए-गाहाहि भाणियव्वा] ॥
१. • सिद्धया (क, ग)। २. 'दंडओ' त्ति नेरइया १ असुराई १० पुढवाइ
५ बेइंदियादओ ४ मणया १। वंतर १ जोइस
१ वेमाणिया य १ अह दंडओ एवं ॥१॥ ३. ठा० १।१४०-१६३ । ४. अट्ठठ्ठहत्तरे (क)।
५. निरयवास ° (ख); नरयावास (ग)। ६. सं० पा०-चउरंसा जाव असुभा। ७. कोष्ठकान्तर्गतः पाठः पनरावत्तिरूपो विद्यते । 'एवं सत्तवि भाणियव्वाओ' इत्यनेन गाथाभ्याञ्च गतार्थत्वात् । 'सत्तमाए णं पुढवीए' इति सूत्रस्य पथक्करणं सप्रयोजन
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पइण्णगसमवाओ
१४३. सत्तमाए ण पुढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णता ?
गोयमा ! सत्तमाए पुढवीए अठ्ठत्तरजोयणसयसहस्साइं बाहल्लाए उवरि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुत्तरा महइमहालया महानिरया पण्णत्ता, तं जहा--काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए । ते णं नरया' वट्टे' य तंसा य अहे खुरप्पसंठाण-संठिया 'णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चद-सूर-णक्खत्त-जोइसपहा मेट. वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणु लेवणतला असुई वीसा परमब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभाओ नरएस
वेयणाओ॥ १४४. केवइया णं भंते ! असुरकुमारावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं' एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मझे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसद्धि असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं भवणा बाहि वट्टा अंतो चउरसा अहे पोक्खरकण्णिया-संठाण-संठिया उक्किण्णतर-विपूल-गंभीर-खात-फलिया अट्रालयचरिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुढि -सतग्घिपरिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकंदुरुक्कतुरुक्क-उज्झंत-धूव-मघमत-गंधुद्धयाभिरामा 'सुगंधि-वरगंध-गंधिया गंधवट्टियाभूया अच्छा सहा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा
सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। १४५. एवं 'जस्स जंकमती तं तस्स, जं-जं गाहाहि भणियं तह चेव वण्णओ
मस्ति । अत्र पूर्ववणितात् किञ्चिद्विशेषो वृत्तः शेषास्त्र्यस्रा इति (वृ)। विद्यते । प्रतिषु संग्रहगाथा एकत्रैव ४. अधे (क, ग)। विद्यन्ते । किन्तु तेन क्रमेण पाठस्य ५. उवरि (क, ग)। जटिलता जायते । तेनास्माभिर्गाथानां यथा- ६. चउरय (ग, वृपा)। वश्यकमायोजना कृता । भगवती (११२१२) ७. मुसंढि (ग)। सूत्रेष्वेवं विभाति ।
८. अवोज्झा (क); अजोहाणि (ग)। १. सं० पा०–सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा। ६. गंधुद्धराभि (ख, वृ)। २. णिरया (क)।
१०. सुगंधवरगंधिया (क)। ३. वट्टा (क); 'वट्टे य तंसा य' त्ति मध्यमो ११. जं जस्स (व)।
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समवाओ संगहणी-गाहा
चउसट्ठी असुराणं, चउरासीइ च होइ नागाणं । बावत्तरि सुवन्नाण, वायुकुमाराण छण्णउति ॥१॥ दीवदिसाउदहीणं, विज्जुकुमारिदथणियमग्गीणं ।
छण्हपि जुवलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा ॥२॥ १४६. केवइया णं भंते ! पुढवीकाइयावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा पुढवीकाइयावासा पण्णत्ता ।। १४७. एवं जाव' मणुस्सत्ति ॥ १४८. केवइया णं भंते ! वाणमंतरावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरि एगं जोयणसयं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसयं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ते णं भोमेज्जा नगरा बाहि वडा अंतो चउरंसा, एवं जहा भवणवासीणं तहेव नेयव्वा, नवरं-पडागमालाउला' सुरम्मा पासाईया
दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ १४६. केवइया णं भंते ! 'जोइसियाणं विमाणावासा'' पण्णत्ता ?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउयाइं जोयणसयाइ उड्ढे उप्पइत्ता, एत्थ णं दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेज्जा जोइसियविमाणावासा पण्णत्ता। ते णं जोइसियविमाणावासा अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया विविहमणिरयण-भत्तिचित्ता वाउद्धय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्तातिछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयण'-पंजरुम्मिलितव्व मणि-कणग-थूभियागा
विगसित-सयपत्त-पुंडरीय-तिलय-रयणड्डचंद-चित्ता अंतो बहिं च सहा तवणिज्ज१. ठा० १११५३-१६० ।
प्रस्तुतसूत्रवर्तीपाठः पठ्यते तदा १४४ २. प्रज्ञापनायां द्वितीये स्थानपदे वाणमंतर- सूत्रवर्तिनः 'गंधवट्टिभूया' पाठस्यानन्तरं देवानां वर्णने 'गंधवट्टिभूता' इति पाठस्या- 'पडागमालाउला' प्रभृति विशेषणानि नन्तरं निम्नप्रकार: पाठो विद्यते
युज्यन्ते । 'अच्छा' प्रभृति विशेषणानि प्रज्ञा'अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वडितसहसंप- पनायां विद्यन्ते, किन्तु अत्र सूत्रकृता नापेणादिता पडागमालाउलाभिरामा सव्वरयणा- क्षितानीति प्रतीयते। मया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया ३. जोतिसिया वासा (क, ख)। निम्मला निप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा ४. भित्ति ° (ग)। समरीइया सउज्जोता पासातीता दरसणिज्जा ५. इह प्रथमाबहुवचनलोपो द्रष्टव्यः (द)। अभिरूवा पडिरूवा।' एतस्य पाठस्य संदर्भ ६. सण्ह (वपा)।
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पइण्णगसमवाओ
बालुगा-पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा
पडिरूवा ।। १५०. केवइया णं भंते ! वेमाणियावासा पण्णत्ता?
गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं वीइव इत्ता बहूणि जोयणाणि बहुणि जोयणसयाणि बहूणि जोयणसहस्साणि बहूणि जोयणसयसहस्साणि बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ उडढं दुरं वीइवइत्ता, एत्थ णं वेमाणियाणं देवाणं सोहम्मीसाण-सणंकुमारमाहिंद-बंभ-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरणच्चुएस गेवेज्जमणुत्तरेसु य चउरासीइं विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणउई सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते ण विमाणा अच्चिमालिप्पभा भासरासिवण्णाभा अरया नीरया णिम्मला वितिमिरा विसुद्धा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्टा णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया' सउज्जोया पासाईया दरिस
णिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥ १५१. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ॥ १५२. एवं ईसाणाइसु--अट्ठावीसं बारस अट्ठ चत्तारि–एयाइं सयसहस्साइं, पण्णासं
चत्तालीसं छ–एयाई सहस्साई, आणए पाणए चत्तारि, आरणच्चुए तिण्णि
एयाणि सयाणि । एवं गाहाहि भाणियव्वं--- संगहणी-गाहा
बत्तीसट्ठावीसा, बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा, छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥१॥ आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिन्नि । सत्त विमाणसयाई, चउसुवि एएसु कप्पेसु ॥२॥ एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए।
सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥३॥ ठिइ-पदं १५३. नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
१. वेमाणियाणं ० (क)। २. सत्ताणउइंच (ग)। ३. वण्णप्पभा (क)। ४. X(क)।
५. समिरिया (क, ख)। ६. पडिरूवा सूरूवा (क)। ७. ° सुत्तरसय (ग)।
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९३४
समवाओ
१५५.
गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ अपज्जत्तगाणं भंते ! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ।। पज्जत्तगाणं' भंते ! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ° ! जहण्णणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं
सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।। १५६. इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए, एवं जाव' विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं
भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा ! जहण्णणं 'बत्तीसं सागरोवमाई" उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ।। १५७. सव्वटे अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ सरीर-पदं १५८. कति णं भंते ! सरीरा पण्णत्ता?
गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए
कम्मए॥ १५६. ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियओरालियसरीरे जाव' गब्भ
वक्कंतियमणुस्सपंचिदियओरालियसरीरे य ।। १६०. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं ।। १६१. एवं जहा ओगाहणासंठाणे' ओरालियपमाणं तहा निरवसेसं । एवं जाव
मणस्सेत्ति उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाइं॥ १६२. कइविहे णं भंते ! वेउव्वियसरीरे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते-एगिदियवेउव्वियसरीरे य पंचिदियवेउव्वियसरीरे य॥ १६३. एवं जाव ईसाणकप्पपज्जतं सणकुमारे आढत्तं जाव' अणुत्तरा भवधारणिज्जा
तेसिं रयणी-रयणी परिहायइ ॥
१. सं० पा०-पज्जत्तगाणं ।
५. एवं सर्वार्थसिद्धिस्थितिरपि त्रिभिर्गमर्वाच्येति २. पण्ण ० ४।
(व); पण्ण° ४ । ३. इह च विजयादिषु जघन्यतो द्वात्रिंशत्सागरो- ६. पण्ण ° २१ ।
पमाण्युक्तानि गन्धहस्त्यादिष्वपि तथैव ७. ओगाहणं संठाणे (ग); अवगाहनासंस्थानादृश्यते, प्रज्ञापनायां त्वेकत्रिंशदुक्तेति मतान्त- भिधानं प्रज्ञापनाया एकविंशतितमं पदम् । रमिदम् (वृ)।
८. पण्ण ° २१ । ४. पर्याप्तकापर्याप्तकगमद्वयमिह समूह्यम् (वृ)। ६. पुस्तकान्तरेत्विदं वाक्यमन्यथा दृश्यते (वृ)।
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पइण्णगसमवाओ
१६४. आहारयसरीरे णं भंते ! कइविहे पणते ?
गोयमा ! एगाकारे पण्णत्ते । जइ एगाकारे पण्णत्ते, कि मणुस्सआहारयसरीरे ? अमणुस्सआहार यसरीरे ? गोयमा ! मणुस्सआहारगसरीरे, णो अमणुस्सआहारगसरीरे। "जइ मणुस्स आहारगसरीरे, किं गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारगसरीरे ? संमुच्छिममणुस्सआहारगसरीरे ? गोयमा! गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे नो समुच्छिममणुस्सआहारयसरीरे । जइ गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं कम्मभूमग-गब्भवक्कं तियमणुस्सआहारयसरीरे? अकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, कि संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा! संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, कि पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिमणुस्सआहारयसरीरे, नो अपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे। जइ पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं सम्मद्दिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणस्सआहारयसरीरे ? मिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? सम्मामिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठि - पज्जत्तय - संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणस्सआहारयसरीरे, नो मिच्छदिद्वि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो सम्मामिच्छदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे।
१. सं० पा०-एवं जइ मणुस्स किं..."वयणावि भतियव्वा ।
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૨૬
जइ समद्दिट्टि - पज्जत्तय संखेज्जवासाउय कम्मभूमग - गब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, किं संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्स आहार यसरीरे ? असंजय - सम्मद्दिट्ठि- पज्जत्तय संखेज्जवासाउयकम्मभूमग - गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे ? संजया संजय - सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग- गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे ? गोयमा ! संजय - सम्मद्दिट्टि पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग - गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे, नो असंजय सम्मद्दिट्टि पज्जत्तय संखेज्जवासाउय-कम्मभूम-भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे, नो संजया संजय - सम्मद्दिट्टि - पज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्स आहार यसरीरे ।
-
इ संजय - सम्मद्दिट्ठि - पज्जत्तय संखेज्जवासाज्य - कम्मभूमग गव्भवक्कंतियमणुस्स आहार यसरीरे, किं पमत्तसंजय - सम्मद्दिट्टि पज्जत्तय संखेज्जवासाउयकम्मभूमग - गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे ? अपमत्तसंजय सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय - कम्मभूमग-गब्भवक्कं तियमणुस्स आहारयसरीरे ? गोयमा ! पमत्तसंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तय - संखेज्जवासाउ • कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अपमत्तसंजय - सम्मद्दिष्ट्ठि - पज्जत्तयसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे । जइ पमत्तसंजय-सम्मद्दिष्ट्ठि-पज्जत्तय संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतियमस्सआहार यसरीरे, किं इड्डिपत्त- पमत्तसंजय - सम्मद्दिट्टि - पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कतियमणुस्स आहारयसरीरे ? अणिड्डिपत्त-पमत्तसंजय - सम्मद्दिट्टि - पज्जत्तय संखेज्जवासाउय कम्मभूमग गव्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे ?
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१. सं० पा० - आहारयसरीरे संठाणसंठिते ।
१६६. आहारयसरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
०
गोमा ! जहणणं देसूणा रयणी उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी ॥ १६७. तेयासरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
-
गोयमा ? इडिपत्त - पमत्तसंजय सम्मद्दिट्टि पज्जत्तय संखेज्जवासाउय-कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सआहारयसरीरे, नो अणिड्ढिपत्त - पमत्तसंजय - सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तय-संखेज्जवासाउय - कम्मभूमग गब्भवक्कंतियमणुस्स आहारयसरीरे ॥ १६५. "आहारयसरीरे णं भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! समचउरंस संठाणसंठिए पण्णत्ते ||
o
समचउरंस
समवाओ
-
२. सं० पा० - आहारय जह देसूणा रयणि उ पडिपुण्णा रयणी ।
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पइण्णगसमवाओ
६३७ गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते-एगिदियतेयासरीरे य' 'बंदियतेयासरीरे य तेंदिय
तेयासरीरे य चउरिदियतेयासरीरे य पंचेंदियतेयासरीरे य° ॥ १६८. एवं जाव'१६६. गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स मारणंतियसमुग्घातेणं समोहयस्स तेयासरीरस्स'
केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ती' विक्खंभबाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीओ', उक्कोसेणं अहे जाव अहोलोइया गामा, तिरियं जाव मणुस्स
खेत्तं, उड्ढं जाव सयाई विमाणाई॥ १७०. एवं अणुत्तरोववाइया वि ॥ १७१. एवं कम्मयसरीरं पि भाणियव्वं ।। ओहि-पदं संगहणी-गाहा
भेदे विसय संठाणे, अब्भंतर बाहिरे य देसोही।
ओहिस्स वड्डि-हाणी, पडिवाती चेव अपडिवाती ॥१॥ १७२. कइविहे णं भंते ! ओही पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते-भवपच्चइए य खओवसमिए य। एवं सव्वं ओहिपदं
भाणियव्वं ॥ वेयणा-पदं संगहणी-गाहा
सीता य दव्व सारीर, साय तह वेयणा भवे दुक्खा। अब्भुवगमुवक्कमिया, णिदाए' चेव अणिदाए ॥१॥
१. सं० पा०-बे ते चउ पंच। २. पण्ण० २१ । ३. प्रयुक्तादर्शषु 'समाणस्स' पाठः प्राप्यते, किन्तु
अर्थमीमांसया नासौ समीचीनः प्रतिभाति । तेनात्र प्रज्ञापनाया एकविंशतितमपदस्थः
'तेयासरीरस्स' इति पाठः स्वीकृतः । ४. ० मेत्ता (क्व)। ५. ° सेढी (क, ख)। ६. प्रतिषु पूर्व 'उड्ढं जाव सयाइं विमाणाई'
पश्चाच्च 'तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं' इति
पाठो विद्यते । ७. एवं जाव (क, ख, ग) । अत्र 'जाव' शब्दोऽनावश्यकः प्रतिभाति । प्रज्ञापनायामपि (पद २१) 'अणुत्तरोववाइयस्स वि एवं चेव' इति पाठो लभ्यते । ८. पण्ण० ३३ । ६. णीताई (क, ग); णिताए तहा (ख) ।
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९३८
समवाओ १७३. नेरइया णं भंते ! कि सीतवेयणं वेदंति ? उसिणवेयणं वेदंति ? सीतोसिण
वेयणं वेदंति ? गोयमा ! नेरइया 'सीतं वि वेदणं वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेदेति, णो सीतो
सिणं वेदणं वेदेति । एवं चेव वेयणापदं भाणियव्वं ।। लेसा-पदं १७४. कइ णं भंते ! लेसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! छ लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-किण्ह लेस्सा नीललेसा काउलेसा
तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा । एवं लेसापयं भाणियव्वं ।। आहार-पदं संगहणी-गाहा
'अणंतरा य आहारे" आहाराभोगणाऽवि य ।
पोग्गला नेव' जाणंति, अज्झवसाणा य सम्मत्ते ।।१।। १७५. नेरइया णं भंते ! अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया तओ परियाइयणया तओ
परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विकूव्वणया! हंता गोयमा ! 'नेरइया णं अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया ततो परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विकुव्वणया° । एवं आहार
पदं भाणियव्वं ॥ आउगबंध-पदं १७६. कइविहे णं भंते ! आउगबंधे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे आउगबंधे पण्णत्ते, तं जहा-जाइनामनिधत्ताउके गतिनामनिधत्ताउके ठिइनामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके
ओगाहणानामनिधत्ताउके ° ॥ १७७. नेरइयाणं भंते ! कइविहे आउगबंधे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा--जातिनाम निधत्ताउके गइनामनिधत्ताउके १. सीत वेयणं (ख)।
६. ति (क)। २. सं० पा०-नेरइया० ।
७. मेव (क, ख, ग)। ३. पण्ण ° ३५।
८. ° साणे (ग)। ४. पण्ण° १७।
६. सं० पा०-हता गोयमा! ५. (क) 'अणतरा य आहारे' त्ति अनन्तराश्च- १०. पण्ण०३४ । अव्यवधानाश्चाहारविषये अनन्तराहारा ,
। ११. सं० पा०--एवं गतिनाम...'ओगाहणाजीवा वाच्या इत्यार्थः (वृ० पत्र १३५)। (ख) 'अणंतरागयाहारे' इत्यादि, प्रथमम
नाम । नन्तरागताहारको नैरयिकादिर्वक्तव्यः १२. सं० पा०-जातिनाम जाव ओगाहणा
[पन्नवणा पद ३४ वृत्ति। नाम ° ।
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पइण्णगसमवाओ
९३६
ठिइनामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके अणुभागनामनिधत्ताउके ओगाहणा
नामनिधत्ताउके ।। १७८. एवं जाव' वेमाणियत्ति । उववाय-उव्वट्टणा-विरह-पदं १७६. निरयगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं बारसमुहुत्ते ॥ १८०. एवं तिरियगई मणस्सगई देवगई। १८१. सिद्धिगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणयाए पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासे ॥ १८२. एवं सिद्धिवज्जा उव्वणा ।। १८३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केवइयं कालं विरहिया
उववाएणं' 'पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहत्ता । एवं उववायदंडओ भाणियव्वो, उव्वट्टणादंडओ वि।।
आगरिस-पदं १८४. नेरइया णं भंते ! जातिनामनिहत्ताउगं कतिहिं आगरिसेहिं पगरेंति ?
गोयमा ! 'सिय एक्केण सिय दोहिं सिय तोहिं सिय चउहि सिय पंचहि सिय
छहि सिय सत्तहि" सिय अट्ठहिं, नो चेव णं नवहिं । १८५. 'सेसाणि वि' आउगाणि जाव वेमाणियत्ति ॥ संघयण-पदं १८६. कइविहे णं भंते ! संघयणे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे संघयणे पण्णत्ते, तं जहा-वइरोसभनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयणे नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे खालियासंघयणे छेवट
संघयणे ॥ १८७. नेरइया णं भंते ! किंसंघयणी ?
१. ठा० १२१४२-१६३ । २. सं० पा०-उववाएणं एवं । ३. य (क, ग)। ४. सिय १ सिय २,३,४,५,६,७ (क, ख, ग)। ५. सेसाणवि (क, ख, ग) अशुद्धम् ।
६. ठा० ११४२-१६३। ७. उसभ ° (क)। ८. कीलिया (क्व)। ६. सेवट्ट ° (क्व)।
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३४०
समवाओ गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी-णेवट्ठी' णेव छिरा ‘णेव हारू', जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुण्णा अमणामा ते तेसिं
असंघयणत्ताए परिणमंति ॥ १८८. असुरकुमारा णं भंते ? किसंघयणी पण्णत्ता ?
गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी–णेवट्ठी णेव छिरा णेव हारू, जे पोग्गला
इट्ठा कंता पिया सुभा' मणुण्णा मणामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति ॥ १८६. एवं जाव थणियकुमारत्ति। १६०. पुढवीकाइया णं भंते ? किसंघयणी पण्णत्ता ?
गोयमा ! छेवट्टसंघयणी पण्णत्ता ॥ १६१. एवं जाव संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणियत्ति ॥ १६२. गब्भवक्कंतिया छव्विहसंघयणी ॥ १६३. संमुच्छिममणुस्सा णं छेवट्टसंघयणी ॥ ११४. गब्भवक्कंतियमणस्सा छव्विहसंघयणी पण्णत्ता॥ १६५. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया य ।। संठाण-पदं १६६. कइविहे णं भंते ! संठाणे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छविहे संठाणे पण्णत्ते, तं जहा-समचउरंसे णग्गोहपरिमंडले साती
खुज्जे वामणे हुंडे ॥ १६७. णेरइया णं भंते ! किंसं ठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! हुंडसंठाणा" पण्णत्ता ॥ १६८. असुरकुमारा किसंठाणसंठिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता जाव थणियत्ति। १६६. पुढवी मसूरयसंठाणा पण्णत्ता । २००. आऊ थिवुयसंठाणा" पण्णत्ता ॥
१. णेतट्ठि (क)।
७. ठा० १११४३-१५० । २. णवि हारु (क, ग)।
८. सेवट्ट ° (क, ख)। ३. ४ (क); अणाएज्जा असुभा (क)। ६. ठा० १५३-१५६ । ४. अमणा वा (क); अमणामा अमणाभिरामा १०. किंसंठाणी (क्व) ।
११. ° संठाणे (क); ° संठाणी (क्व) । ५. X (क, ग)।
१२. किसंठाणी (क, ख)। ६. मणामा भिरामा (क); मणामा मणाभि- १३. ठा० १११४३-१५० । रामा (ग)।
१४. संठाणे (क)।
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पइण्णगसमवाओ
१४१
२०१. तेऊ सूइकलावसंठाणा पण्णत्ता ।। २०२. वाऊ पडागसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०३. वणप्फई नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता ।। २०४. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खा' हुंडसंठाणा पण्णत्ता । २०५. गब्भवक्कंतिया छव्विहसंठाणा पण्णत्ता ॥ २०६. सम्मुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता । २०७. गब्भवक्कंतियाणं मणुस्साणं छव्विहा संठाणा पण्णत्ता ।। २०८. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया । वेय-पदं २०६. कइविहे णं भंते ! वेए पण्णत्ते ?
गोयमा ! तिविहे वेए पण्णत्ते, तं जहा- इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए । २१०. नेरइया णं भंते ! 'किं इत्थीवेया पुरिसवेया णपुंसगवेया पण्णत्ता ?
गोयमा ! णो इत्थिवेया णो वेया, णपुंसगवेया पण्णत्ता ॥ २११. असुरकमाराणं भंते ! किं इत्थिवेया परिसवेया नपुंसगवेया ?
गोयमा ! इत्थिवेया पुरिसवेया, णो णपुंसगवेया जाव थणियत्ति ॥ २१२. पुढवि - आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चउरिदिय - संमुच्छिमपंचिदियतिरिक्ख
संमुच्छिममणुस्सा णपुंसगवेया॥ २१३. गब्भवक्कंतियमणुस्सा 'पंचेंदियतिरिया य" तिवेया ॥ २१४. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि' । समवसरण-पदं २१५. तेणं कालेणं तेणं समएणं कप्पस्स समोसरणं णेयव्वं जाव गणहरा सावच्चा
निरवच्चा वोच्छिण्णा ।।
कुलगर-पदं
२१६. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था,
तं जहा
१. पठातिया० (क); पडातिया० (ग)। २. तिरिय (क, ख)। ३. किं वेए पण्णत्ते (ग)। ४. ठा० ११४३-१५० । ५. ०तिरिक्खिजोणिया (ग)।
६. °याय (ख)। ७. पज्जुसणाकप्पस्स (वृपा); द्रष्टव्यं परिशिष्टम्,
संख्याङ्क २। ८. णातव्वं (ग)। ६. निरवच्चा य (ग)।
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६४२
समवाओ
संगहणी-गाहा
मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे ।
विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ।।१।। २१७. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए उस्सप्पिणोए दस कुलगरा होत्था, तं जहा
सयंजले सयाऊ य, अजियसेणे' अणंतसेणे य । कक्कसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥१।।
दढरहे दसरहे सतरहे ।। २१८. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए' सत्त कुलगरा होत्था, तं जहा
पढमेत्थ विमलवाहण, चक्खुम जसमं चउत्थमभिचंदे ।
तत्तो य पसेणइए, मरुदेवे चेव नाभी य॥१।। ११६. एतेसि णं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारिआ होत्था, तं जहा--
चंदजस चंदकता, सुरूव-पडिरूव चक्खुकंता य ।
सिरिकता मरुदेवी, कुलगरपत्तीण णामाई ॥१॥ तित्थगर-पदं २२०. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणोए चउवीसं तित्थगराणं पियरो
होत्था, तं जहा_ 'णाभी य जियसत्तू य", जियारी संवरे इ य । मेहे धरे पइ? य, महसेणे य खत्तिए ॥१॥
१. सतज्जले (ग)।
नाम 'तककसेणे' विद्यते । 'क' 'ग' प्रत्योरपि २. सताहू (ग)।
एष एव पाठो लभ्यते । समवायाङ्गस्य ३. स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ (आगमोदयसमिति मुद्रितप्रतौ 'कज्जसेणे' तथा हस्तलिखितादर्शषु
पत्र ५१८ सूत्राङ्क ७६७) चतुर्थकुलकरस्य 'कक्कसेणे' पाठोस्ति । प्रतीयते स्थानाङ्ग नाम 'अमितसेणे' विद्यते । किन्तु पाठशोधन- समवायाङ्ग च 'अजियसेणे' 'कक्कसेणे' पाठ प्रयुक्तयोः 'क' 'ग' प्रत्योः 'ख' प्रतौ च आसीत् किन्तु लिपिदोषेण पाठ-विपर्ययो क्रमशः 'अतितसेणे' 'अजितसेणे' पाठो विद्यते। समवायाङ्ग (श्रेष्ठि माणेकलाल चुन्नीलाल ४. महासेणे (ख) । श्रेष्ठि कान्तिलाल चुन्नीलाल द्वारा प्रकाशित ५. ओसप्पिणीए समाए (ग)। पत्र १३६ सूत्राङ्क १५७) तृतीयकुलकरस्य ६. पसेणइ (ख)। नाम 'अजितसेणे' विद्यते । पाठशोधन-प्रयु- ७. णाभी जियसत्तू राया (ग-हस्तलिखित क्तयोः 'क' 'ख' प्रत्योरपि एष एव पाठोस्ति। वृत्ति )। स्थानाङ्गस्य मुद्रितप्रतौ पञ्चमकुलकरस्य
वधता
जातः ।
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पइण्णग समवाओ
इय ॥२॥
सुग्गीवे दढरहे विण्हू, वसुपुज्जे य कयवम्मा सीसेणेय, भाणू विस्ससेणे सूरे सुदंसणे कुंभे, सुमित्तविजए समुद्द्विजये य । राया य आससेणे, सिद्धत्थेच्चिय खत्तिए ॥ ३ ॥ उदितोदितकुलवंसा', विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । तित्थप्पवत्तयाणं', एए पियरो जिणवराणं ॥४॥
२२१. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो
होत्था, तं जहा
खत्तिए ।
पुहवी लक्खण रामा, 'सुजसा सुव्वय अइरा, पउमा वप्पा सिवाय
मरुदेवा विजया सेणा, सिद्धत्था मंगला सुसीमा नंदा विण्हू जया सिरिया देवी
१. ० कुलवंस ( क ); ° कुलदसा ( ग ) ।
२. ० पवत्तणायाणं ( ख ) ; ०प्पवत्तणयाणं ( ग );
वामा तिसला देवी य जिणमाया ॥२॥
२२२. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहा - उसमे अजिते 'संभवे अभिनंदणे सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्प सुविही सीतले सेज्जसे वासुपूज्जे विमले अणते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्व णमी अरिट्ठणेमी पासे • वद्धमाणे य ॥
२२३. एएसि चवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पुण्त्रभविया णामधेज्जा होत्था, तं जहा -
संग्रहणी - गाहा
( 'ख' प्रती अग्रेपि एवम् ) ।
३. सुजसा सुव्वय अइरा, सिरि देवी य पभावइ । पउमावती य वप्पा, सिव वंमा तिसलाइय
य ॥ १ ॥ य ।
चेव ॥२॥
पढमेत्थ वइरणाभे, विमले तह विमलवाहणे चेव । तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्ते तह धम्ममित्ते सुंदर बाहू तह दीहबाहू, जुगबाहू लट्ठबाहू दिण्णे य इंददत्ते, सुंदर माहिंद रे" सीह रहे रुप्पी य सुदंसणे य सीहगिरी चेव सुदंसणे नंदणे य
मेहरहे, तत्तोय नंदणे खलु, अदी सत्त
संखे, एए,
ओप्पणी
तित्थकराणं तु
य ।
सामा ॥ १ ॥
भावई ।
13
बोद्धव्वे ।
वीसइमे ॥ ३॥ बोद्धव्वे |
पुन्वभवा ||४||
( ग - हस्तलिखित वृत्ति) ।
४. सं० पा० -अणित जाव वद्धमाणे ।
६४३
५. महिमंदरे ( क ) ।
६. ओसप्पिणीय ( क ) 1
७. X (ग) ।
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समवाओ
२२४. एएसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउवीसं सीया होत्था, तं जहा
सीया सुदंसणा सुप्पभा य, सिद्धत्थ सुप्पसिद्धा य । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया चेव ॥१॥ अरुणप्पभ चंदप्पभ', 'सूरप्पह अग्गिसप्पभा चेव । विमला य पंचवण्णा, सागरदत्ता तह णागदत्ता य ॥२॥ अभयकर णिव्वुतिकरी, मणोरमा तह मणोहरा चेव । देवकुरु उत्तरकुरा, विसाल चंदप्पभा सीया ॥३॥ एयातो सीयाओ, सव्वेसिं चेव जिणवरिदाणं । सव्वजगवच्छलाणं, सव्वोतुयसुभाए छायाए ॥४॥ पूवि उक्खित्ता, माणुसेहि साहटुरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥५॥ चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । सुरअसुरवंदियाण, वहति सीयं जिणिंदाणं ॥६॥ पुरओ वहति देवा, नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । पच्चत्थिमेण असुरा, गरुला पुण उत्तरे पासे ॥७॥ उसभो य विणीयाए, बारवईए अरिटुवरणेमी ।
अवसेसा तित्थयरा, निक्खंता जम्मभूमीसु ॥१॥ २२६.
सव्वेवि एगदूसेण, णिग्गया जिणवरा चउवीसं ।
ण य णाम अण्णलिंगे, ण य गिहिलिंगे कुलिंगे व ॥१॥ २२७.
एक्को भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहि-तिहि सएहि। भयवंपि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहिं निक्खंतो ॥१॥ उग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खत्तियाणं च ।
चउहि सहस्सेहिं उसभो, सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥२॥ २२८.
समइत्थ णिच्चभत्तेण, णिग्गओ वासपुज्जो जिणो चउत्थेणं ।
पासो मल्ली वि य, अट्टमेण सेसा उ छट्टेणं ॥१॥ २२६. एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा
२२५.
१. ४ (ख)।
४. X (ख)। २. X (ख); ओदप्पह (ग)।
५. X (ख, ग)। ३. सूरप्पभ संकप्पभ अग्गिसप्पभा (ख); सूरप्पह ६. जिणंदाणं (ग)। सुंदरप्पह अग्गिप्पभा (ग)।
७. ० दायरो (ख);० देया (ग); दायारो (क्व)।
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पइण्णगसमवाओ
६४५
सेजसे बंभदत्ते, सुरिंददत्ते य इंददत्ते य । 'तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्ते तह धम्ममित्ते य" ॥१॥ पुस्से पुणव्वसू पुण्णणंद', सुणंदे जये य विजये य। 'पउमे य सोमदेवे, महिंददत्ते य सोमदत्ते य" ॥२॥ अपरातिय वीससेणे, वीसतिमे होइ उसभसेणे य। दिण्णे वरदत्ते, धन्ने बहुले य आणुपुवीए ॥३॥ एते विसुद्धलेसा, जिणवरभत्तीए पंजलिउडा य ।
तं कालं तं समय, पडिलाभेई जिणवरिदे ॥४॥ २३०.
संवच्छरेण भिक्खा, लद्धा उसभेण लोगणाहेण । सेसेहिं बीयदिवसे, लद्धाओ पढमाभक्खाओ ॥१॥ उसभस्स पढमभिक्खा, खोयरसो आसि लोगणाहस्स। सेसाणं परमण्णं. अमयरसरसोवमं आसि ॥२॥ सव्वेसिपि जिणाणं, जहियं लद्धाओ पढमभिक्खातो।
तहियं वसुधाराओ, सरीरमेत्तीओ वुढाओ ॥३॥ २३१. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं चेइयरुक्खा होत्था, तं जहा
णग्गोह-सत्तिवण्णे, साले पियए पियंगु छत्ताहे। सिरिसे य णागरुक्खे, माली' य पिलखुरुक्खे य॥१॥ तेंदुग पाडल जंबू, आसोत्थे खलु तहेव दधिवण्णे । णंदी रुक्खे तिलए य. अंबयरुक्खे असोगे य ॥२॥ चंपय वउले य तहा, वेडसिरुक्खे" धायईरुक्खे । साले य वड्डमाणस्स, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥३॥ बत्तीसइं१२ धणूइं, चेइयरुक्खो य वद्धमाणस्स । णिच्चोउगो असोगो, ओच्छण्णो सालरुक्खेणं ॥४॥ तिण्णे व गाउयाई, चेइयरुक्खो जिणस्स उसभस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥५॥
१. सेज्जंस (क)।
६. भत्तीय (क, ग)। २. पउमे य सोमदेवे, माहिंदे तह सोमदत्ते य ७. अमिय ° (क्व)। (क्व)।
८. पियाले (क)। ३. °णंदे (ग)।
६. साली (ख)। ४. तत्तो य धम्मसीहे, सुमित्त तह वग्गसीहे अ १०. ४ (क)। (क्व)।
११. वडेस ° (क्व)। ५. धम्मे (क)।
१२. बत्तीसं (ग)।
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६४६
सच्छत्ता
सपडागा, सवेइया तोरणेहिं उववेया । सुर असुर गरुल महिया, चेइयरुक्खा विराणं ॥ ६ ॥
पढमेत्थ
चारू
य
२३२. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवोसं पढमसीसा होत्या, तं जहाउसभसेणे, बीए पुण होइ सीहसेणे उ । वज्जणाभे, चमरे तह सुव्वते' विदब्भे ॥ १ ॥ पुण, आणंदे गोथुभे सुहम्मे य । चक्काउह संयंभु कुंभे य ॥ २ ॥ वरदत्ते दिण्ण इंदभूती य । विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । पढमा सिस्सा जिणवराणं ॥ ३॥
दिण्णे वाराहे मंदर जसे अरिट्ठे, 'भिसए य इंद कुंभे, उदितोदितकुलवंसा, तित्थप्पवत्तयाणं,
२३३. एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्था, तं जहाअतिराणी कासवी रई सोमा । धारिणि धरणी य धरणिधरा ॥ १ ॥ भावियप्पा य रक्खया । अज्जा धणिला ' य आहिया || २ || चंदणऽज्जा य आहिया विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । पढमा सिस्सी जिणवराणं ॥ ३ ॥
बंभी फग्गू सम्मा, सुमणा वारुणि सुलसा, पउमा सिवा सुई अंजू, बंधू - पुप्फवती चेव, जक्खिणी पुप्फचूला य, उदितोदितकुलवंसा, तित्थष्पवत्तयाणं,
चक्कवट्टि -पदं
२३४. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टिपियरो होत्था
तं जहा
उसभे
विस्ससे
१. सुज्जय ( ग ) ।
२. आनंदे पुण ( ख ) ।
३. इंदे कुंभे य सुभे (क्व ) ।
४. फग्गुण ( ख ) ।
५. सामा (क्व ) ।
६. अजिया ( क्व ) ।
७. बंधूवती (क, ख ) ।
८.
समवाओ
वणिला ( ग ); अमिला (क्व ) ।
सुमित्तविजए, समुद्दविजए य 'अस्ससेणे य" । सूरे, सुदंसणे कत्तवीरिए
य
य ॥। १॥
६. X ( क, ख, ग ); सर्वेषु प्रयुक्तादर्शेषु 'अस्ससेणे' पाठो नास्ति 'ख' प्रतौ पाठान्तररूपेणासो लिखितोऽस्ति । किन्तु 'विस्ससेण' पंचम चक्रवतिश्री शान्तिनाथस्य पितुर्नामास्ति । यदि 'अस्ससेणे' पाठो न स्वीक्रियते तदा ‘विस्ससेणे' चतुर्थचक्रवर्तिनः पितुर्नाम भवेत् । आवश्यक निर्युक्तावपि 'अस्ससेणे' पाठो लभ्यते तेनासौ पाठः स्वीकृतः । आवश्यक निर्युक्तो
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पइण्णगसमवाओ
९४७
पउमुत्तरे महाहरी, विजए राया तहेव य ।
बम्हे बारसमे वुत्ते, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥२॥ २३५. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टिमायरो होत्था,
तं जहा___सुमंगला जसवती, भद्दा सहदेवी अइर सिरि देवी।
'तारा जाला" मेरा, वप्पा चुलणी अपच्छिमा ॥१॥ २३६. जंबुद्दोवे ण दोवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणोए बारस चक्कवट्टो होत्था, तं जहा
भरहो सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसद्लो । संती कुंथू य अरो, हवइ सुभूमो य कोरव्वो ॥१॥ नवमो य महापउमो, हरिसंणो चेव रायसददूलो।
जयनामो य नरवई, बारसमो बंभदत्तो य ॥२॥ २३७. एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टोणं बारस इत्थिरयणा होत्था, तं जहा
पढमा होइ सुभद्दा, भद्दा सुणंदा जया य विजया य । कण्हसिरी सूरसिरी, पउमसिरी वसुंधरा देवी ॥१॥
लच्छिमई कुरुमई, इत्थिरयणाण नामाइं॥ बलदेव-वासुदेव-पदं २३८. जंबुद्दोवे णं दोवे भरहे वासे इमोसे ओसप्पिणोए नव बलदेव-वासुदेवपितरो
होत्था, तं जहा
गाथाद्वयमित्थमस्ति
उसभे सुमित्तविजए, समुद्दविजए अ अस्ससेणे य। तह वीससेण सूरे, सुदंसणे कत्तविरिए अ॥३६६।। पउत्तरे महाहरि, विजए राया तहेव बंभे य।
ओसप्पिणी इमीसे, पिउनामा चक्कवट्टीणं ॥३४०।। आदर्शगतं गाथाद्वयं चेत्थम् -
उसभे सुमित्तविजए, समुद्दविजए य विस्ससेणे य । सूरिए सुदंसणे पउमुत्तर कत्तवीरिए चेव ॥ महाहरी य विजए य, पउमे राया तहेव य ।
बम्हे बारसमे वुत्ते, पिउनामा चक्कवट्टीणं ।। १. जाला तारा (क, ख, ग)। आदर्शषु नाम- २. सुहद्दा (क) । विपर्ययो विद्यते।
३. भद्द (ग)।
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६४८
पयावती य बंभे, रोद्दे सोमे महसि अग्गिसिहे, दसरहे नवमे य
२३. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमोसे ओसप्पिणीए णव
तं जहा
-
मियावई उमा चेव, पुहवी सीया य लच्छिमती सेसवती, केकई देवई २४०. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव
तं जहा
भद्दा तह सुभद्दा य, सुप्पभा य विजया य वेजयंती, जयंती णवमिया' रोहिणी, बलदेवाण
१. एषा गाथा स्थानाङ्गस्य नवमस्थानात् स्वीकृतास्ति । समवायाङ्गहस्तलिखितवृत्तौ निम्नप्रकारासौ वर्तते - पावई य बंभो सोमो,
रुद्दो सिवो महसिरो य । अग्गिसिहो य दसरहो,
नवमो भणिओ य वसुदेवो ॥ अस्यां गाथायां 'रोद्दे सोमे' नाम्नोविपर्ययोस्ति । अवश्यक निर्युक्तावपि स्थानाङ्गस्य समर्थनं लभ्यतेहवइ पयावर बंभो,
रुदो सोमो सिवो महासिवो य ।।
सिवेति य ।
२४१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला' होत्या, तं जहा - उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा' सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-णयण-कंता ओहबला अतिबला महाबला अणिहता अपराइया सत्तुमद्दारिपुसहस्स-माण - महणा साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल - पलाव - हसिया गंभीर - मधुर- पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय- वच्छला सरण्णा लक्खण- वंजण- गुणोववेया माणुम्माण- पमाण- पडिपुण्ण-सुजात- सव्वंगसुंदरंगा ससि - सोमागार कंत पिय- दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीरदरिसणिज्जा तालद्धओव्विद्ध-गरुल- केऊ महाधणु - विकड्डगा' महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्ध - कित्तिपुरिसा विउलकुल - समुब्भवा महारयण -
वसुदेवे ॥१॥
वासुदेवमायरो होत्था,
सुदंसणा । अपराइया ॥ १ ॥ मायरो ॥
अम्मया ।
इय ॥ १ ॥ बलदेवमायरो होत्था,
असी अदसरहे,
समवाओ
८. विगरसगा ( ग ) ।
६. महारण (वृपा) ।
नवमे भणिए अ वसुदेवे ॥ ४१ ॥
२. नवमिया य ( ग ) |
३. दसारमंडणा (वृपा) । ४. जोयसी ( ग ) ।
५. सुदंसणा ( ग ) । ६. सुत्तवा ( क ) ।
७. अमरिसणा (क्व ) ।
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पइण्णगसमवाओ
६४६
विहाडगा अद्धभ रहसामी सोमा रायकुल- वंस - तिलया अजिया अजिय रहा हलमुसल - कणग- पाणी संख-चक्क-गय- सत्ति- नंदगधरा पवरुज्जल- सुक्कंत' - विमलगोथुभ-तिरीडधारी कुंडल - उज्जोइयाणणा पुंडरीय - णयणा एकावलि - कंठलइयवच्छा सिरिवच्छ-सुलंछणा वरजसा सव्वोउय सुरभि - कुसुम-सुरइत- पलंबसोभंतकंत-विकसंत-चित्त' - वरमाल - रइयवच्छा अट्ठसय - विभत्त- लक्खण-पसत्थ-सुंदरविरइयंगमंगा मत्तगयवरिंद-ललिय- विक्कम विलसियगई सारय-नवथणियमधुरगंभीर कोंच निग्घोस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तगनील-पीय- कोसेयवाससा पवरदित्ततेया' नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मरुयवसभकप्पा अब्भहियं राय-तेय - लच्छी दिप्पमाणा नीलग-पीतग- वसणा दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो होत्था, तं जहा
संग्रहणी - गाहा
तिविट्ठू यदुविट्ठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे । पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे • कण्हे ॥१॥ अयले" "विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे । आणंदे णंदणे पउमे, रामे यावि' अपच्छिमे ॥२॥
२४२. एतेसि णं णवण्हं बलदेव - वासुदेवाणं पुव्वभविया नव-नव नामधेज्जा होत्था,
तं जहा
पव्वयए,
एयाई
एत्तो
विस्सभूई पियमित्त' ललियमित्ते नामाई, बलदेवाणं, विसनंदी सुबंधू य, धम्मसेणे, २४३. एतेसि णं नवहं वासुदेवाणं पुव्वभविया' नव धम्मायरिया होत्था, तं जहासंभूत' सुभद्दे" सुदंसणे, य सेयंसे कण्ह गंगदत्ते य ।
वाराह
सागरसमुद्दनामे,
दुमसे
य णवमए ॥१॥
१. सुक (वृपा) ।
२. विचित्त ( ग ) ।
३. कोसेयज्ज ० ( ग ) ।
४. सं० पा० - तिविट्ठू य जाव कण्हे ।
५. सं० पा० - अयले जाव रामे ।
धणदत्त समुहदत्त सेवाले । पुणव्वसू गंगदत्ते य ॥१॥ पुव्वभवे आसि वासुदेवाणं । जहक्कमं कित्तइस्सामि ॥ २ ॥ सागरदत्ते असोगललिए य । अपराइय रायललिए य ॥३॥
६. य ( ख ) ।
७. पियमेत्त ( क ) ; पियमित्ते ( ग ) । 5. पुब्वभविया ( क ); पुव्वभवे ( ग ) ।
६. संभूते ( ख, ग ) ।
१०. सुभद्द ( ग ) ।
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समवाओ
एते धम्मायरिया, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं ।
पुत्वभवे आसिण्ह', जत्थ निदाणाई कासी य ॥२॥ २४४. एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं पुव्वभवे नव निदाणभूमिओ होत्था, तं जहा
महुरा य' 'कणगवत्थू, सावत्थी पोयणं च रायगिहं।
कायंदी कोसंबी, मिहिलपुरी हथिणपुरं च ।।१।। २४५. एतेसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव नियाणकारणा होत्था, तं जहा
गावी जुवे' 'य संगामे इत्थी पराइयो रंगे ।
भज्जाणुराग गोट्ठी, परइड्ढी° माउया इय ॥१॥ २४६. एएसि णं नवण्हं वासुदेवाणं नव पडिसत्तू होत्था, तं जहा
अस्सग्गीवे 'तारए, मेरए महुकेढवे निसुंभे य । बलिपहराए (रणे? )तह रावणे य नवमे° जरासंधे ॥१॥ एए खल पडिसत्त', 'कित्तीपरिसाण वासदेवाणं।
सव्वे वि चक्कजोही, सव्वे वि हया सचक्केहिं ॥२॥ २४७. एक्को य सत्तमाए, पंच य छट्ठीए पंचमा एक्को ।
एक्को य चउत्थीए, कण्हो पुण तच्चपुढवीए ।।१।। अणिदाणकडा रामा, सव्वेवि य केसवा नियाणकडा। उड्ढंगामी रामा, केसव सव्वे अहोगामी ॥२॥ अटुंतकडा रामा, एगो पुण बंभलोयकप्पमि ।
एक्का से गब्भवसही, सिज्झिस्सइ आगमेस्साणं ॥३॥ एरवय-तित्थगर-पदं २४८. जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहा
चंदाणणं सुचंदं च, अग्गिसेणं च नंदिसेणं च । इसिदिण्णं वयहारि', वंदिमो सामचंदं च ॥१॥ वंदामि जुत्तिसेणं', अजियसेणं तहेव सिवसेणं" ।
बुद्धं च देवसम्म, सययं निक्खित्तसत्थं" च ॥२॥ १. आसिनवण्हं (ख)।
८. वयहारिं च (वृपा)। २. सं० पा०-महरा य जाव हत्थिणपुरं । 8. क्वचिदयं दीहबाहं, दीहसेणं वोच्यते (७)। ३. सं० पा०-जुवे जाव माउया। १०. सयाउं (वृपा)। ४. सं० पा०-अस्सगीवे जाव जरासंधे । ११. सच्चसेणं, सच्चइ (वृपा)। ५. सं० पा०-पडिसत्तू जाव सचक्केहिं । १२. देवसेणं (वृपा)। ६. आगमिस्सेणं (वृ); आगमेस्साणं (वृपा)। १३. सिद्धं (ग)। ७. अत्तसेणं (वृपा)।
१४. निक्खित्तसत्तं (ग); सेज्जसं (वृपा)।
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पइण्णगसमवाओ
६५१ असंजल' जिणवसह, वंदे य अणंतयं अमियणाणि । उवसंतं च धुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥३॥ अतिपासं च सपासं, देवेसरवंदियं च मरुदेवं ।। णिव्वाणगयं च धर', खीणदुहं सामकोट्ठ' च ॥४॥ जियरागमग्गिसेणं, वंदे खीणरयमग्गिउत्त च ।
वोक्कसियपेज्जदोसं, च वारिसेणं गयं सिद्धि ॥५॥ भावि-कुलगर-पदं २४६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति,
तं जहा
मित्तवाहणे' सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे।
दत्ते सुहुमे सुबंधू य, आगमेस्साण होक्खति ॥१॥ २५०. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए ओसप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा
विमलवाहणे सीमंकरे, सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे।
दढधणू दसधणू, सयधणू पडिसूई संमुइत्ति ॥१॥ भावि-तित्थगर-पदं २५१. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा
भविस्संति, तं जहा
महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । सव्वाणुभूई अरहा, देवउत्ते" य होक्खति ॥१॥ उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सतएति५ य । मुणिसुव्वए य अरहा, सव्वभावविदू जिणे ॥२॥ अममे णिक्कसाए य, निप्पुलाए य निम्ममे । चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्साए होक्खइ ॥३॥ संवरे अणियट्टी य, विजए विमलेति य । देवोववाए अरहा, अणंतविजए ति य ॥४॥
१. सयंजलं (वृपा)। २. सीहसेणं (वृपा)। ३. वर (ग)। ४. सामकोहं (ग)। ५. सित्तवाहणे (ग)। ६. होक्खंति (ग)।
७. उस्सप्पिणीए एरवए वासे (क्व) । ८. अट्टधणु (ग)। ६. सुमइत्ति (क्व)। १०. देवस्सुए (क्व)। ११. सत्तकित्ति (क्व)।
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६५२
समवाओ
एए वुत्ता चउवीसं, भरहे वासम्मि केवली ।
आगमेस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा ॥५॥ २५२. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वभविया चउवीसं नामधेज्जा भविस्संति', तं जहा
सेणिय सुपास उदए, पोट्टिल अणगारे तह दढाऊ य । कत्तिय संखे य तहा, नंद सुनंदे सतए य बोद्धव्वा ॥१॥ देवई च्चेव सच्चइ, तह वासुदेव बलदेव।। रोहिणि सुलसा चेव, तत्तो खलु रेवई चेव ॥२॥ तत्तो हवइ मिगाली, बोद्धव्वे खलु तहा भयाली य। दीवायणे य कण्हे, तत्तो खलु नारए चेव ॥३॥ 'अंबडे दारुमडे य", साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे ।
'उस्सप्पिणी आगमेस्साए, तित्थगराणं तु पुत्वभवा" ॥४॥ २५३. एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पियरो भविस्संति, चउवीसं मायरो
भविस्संति, चउवीसं पढमसीसा भविस्संति, चउवीसं पढमसिस्सिणीओ
भविस्संति, चउवीसं पढमभिक्खादा भविस्संति, चउवीसं चेइयरुक्खा भविस्संति ॥ भावि-चक्कवट्टि-पदं २५४. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए बारस चक्कवट्टी
__ भविस्संति, तं जहासंगहणी-गाहा
भरहे य दीहदंते, गूढदंते य सुद्धदंते य । सिरिउत्ते सिरिभूई, सिरिसोमे य सत्तमे ॥१॥ पउमे य महापउमे, विमलवाहणे विपुलवाहणे चेव ।
रिट्रे बारसमे वुत्ते, आगमेसा . भरहाहिवा ॥२॥ २५५. एएसि णं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस पियरो भविस्संति, बारस मायरो
भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ।। भावि-बलदेव-वासुदेव-पदं २५६. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव
पियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति
१. होत्था (ख)। २. मिमाली (क); सयाली (क्व)। ३. तत्तो दारुपडिया (क); अंबडे दारुपडे
या (ख)। ४. भावीतित्थगराणं णामाई पूवभवियाई
(क्व)।
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पइण्णगसमवाओ
नव दसारमंडला भविस्संति, तं जहा-उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसो एवं सो चेव वण्णओ भाणियन्वो जाव' नीलग-पीतग
वसणा दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, तं जहासंगहणी-गाहा
नंदे य नंदमित्ते, दीहबाहू तहा महाबाहू । अइबले महाबले, बलभद्दे य सत्तमे ॥१॥ दुविठू य तिविठ्ठ य, आगमेसाण वण्हिणो। जयंते विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे ।
आणंदे नंदणे पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥२॥ २५७. एएसि णं नवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया णव नामधेज्जा भविस्संति, नव
धम्मायरिया भविस्संति, नव नियाणभूमीओ भविस्संति, नव नियाणकारणा भविस्संति, नव पडिसत्तू भविस्संति, तं जहा
तिलए य लोहजंघे, वइरजंधे य केसरी पहराए। अपराइए य भीमे, 'महाभीमे य सुग्गीवे ॥१॥ एए खलु पडिसत्तू, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं ।
सव्वेवि' चक्कजोही, हम्मिहिंति सचक्केहि ॥२॥ एरवय-भावि-तित्थगर-पदं २५८. जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थकरा भविस्संति, तं जहा
सुमंगले ‘य सिद्धत्थे", णिव्वाणे य महाजसे। धम्मज्झए य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥१२॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ, महाचंदे य केवली। सूयसागरे य अरहा, आगमिस्साण होक्खइ ॥२॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य, महाघोसे य केवली।
अरहा, 'आगमिस्साण होक्खइ ॥३॥
अरहा, महासेणे" य केवली । सव्वाणंदे य अरहा, देवउत्ते य होक्खइ ॥४॥
१. प० सू० २४१ । २. महाभीमसेणे य सुग्गीवे य अपच्छिमे (ग)। ३. सव्वेय (ग)। ४. सच्चकेणं (ग)।
५. अत्थ सिद्धे य (ग)। ६. अणंत विजए इय इय सूरसेणे महासेणे
देवसेणे (ग)। ७. देवदत्ते (ग)।
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हं५४
सुव्वए अरहा, 'अरहे य अतविजए, आगमिस्साण
सुपा अरहा विमले उत्तरे अरहा, अरहा 'देवाणंदे य अरहा, आगमिस्साण एए वृत्ता चउव्वीसं, एरवयम्मि' आगमिस्साण होक्खंति, धम्मतित्थस्स
य
एरवय- भावि चक्कवट्टि -बलदेव वासुदेव-पदं २५६. बारस चक्कवट्टी भविस्संति, बारस चक्कवट्टिपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ।
नव बलदेव - वासुदेवपियरो भविस्संति, णव वासुदेवमायरो भविस्संति, णव बलदेवमायरो भविस्संति, णव दसारमंडला भविस्संति, उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव' दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, नव पुव्वभवणामधेज्जा, णव धम्मायरिया, णव णियाणभूमीओ, वणियाणकारणा, आयाए, एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा || २६०. एवं दोसुवि आगमिस्साए भाणियव्वा ॥
निक्खेव - पदं
१. ए महासुक्के य सुकोसले । देवाणंदे अरहा अनंत विजय ( ग ) ।
२. देवोववाए ( ग ) ।
३. एरवतवासंमि ( ग ) ।
२६१. इच्चेयं एवमाहिज्जति', तं जहा --- कुलगरवंसेति य एवं तित्थगरवसेति य चक्कवट्टिवसेति व दसारवंसेति य गणधरवंसेति य इसिवंसेति य जतिवंसेति य मुणिवंसेति य सुतेति वा सुतंगेति वा सुयसमासेति वा सुयखंधेति वा समाएति' वा संखेति वा । समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ।
-त्ति बेमि ॥
ग्रन्थ-परिमाण
कुल अक्षर ७१७२० । अनुष्टुप् श्लोक २२४१, अक्षर ८ ।
समवाओ
कोसले ।
होक्खई" ||५|| महाबले। होक्ख ||६|| केवली ।
देगा ||७||
४. प० सू० २४१ ।
५. ० हिज्जेति (क, ख, ग ) ।
६. सामाएति ( ग ); समवाएइ (क्व ) ।
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परिशिष्टः
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११३
परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति प्राधार-स्थल
आयारो संक्षिप्त-पाठ,
पूर्त-स्थल
पूर्ति प्राधार-स्थल अहमसी जाव अण्णयरीओ
१११ आगममाणे जाव समत्तमेव
८।६५,६६,१२३,१२४
८७८,८० एवं जं परिघेतव्वं ति, मन्नसि जं ५।१०१
५।१०१ एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए नहाए हारुणीए अट्ठीए अट्ठिमिंजाए अट्ठाए अणट्ठाए १११४०
१।१४० गाम वा जाव रायहाणि ८।१२६
८।१०६ जाएज्जा जाव एवं
८।६४-६७
८।४४-४८ धारेज्जा जाव गिम्हे
८८८-६२
८।४६-५० परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था ८.२३
८।२१ समारब्भ जाव चेएइ ८.२४
पा२३
४।१० २।२२
आयारचुला अंतलिक्खजाए जाव णो
५।३७,३८ अकिरियं जाव अभूतोवघाइयं
४।११ अक्कोसंति वा जाव उद्दवंति अक्कोसंति वा तहेव तेल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि णिगिणाइ य जहा सिज्जाए आलावगा णवरं ओग्गहवत्तव्वया ७।१६-२० अक्कोसेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज
३६ अणु वयंति तं चेव जाव णो सातिज्जति बहुवयणेणं भाणियव्व
५१४७
२०५१-५५
२।२२
Page #1057
--------------------------------------------------------------------------
________________
३।१२
११४ १४ ११४
११४ २।२२ १।१५५ ७।२७,२८
१।१७ १।१७,११४
१११७
१११७
२।८ १११२ १०२
अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए ३।१३ अणेसणिज्जं जाव णो
१।१७,६३,१०६,१३६ अणेसणिज्ज जाव लाभे
१११०८,१२१ अणेसणिज्ज"णो
११२१ अणेसणिज्ज'लाभे
११८५,६७,८।१६।१ अणेसणिज्ज'लाभे संते जाव' णो
१।१३५ अण्णमण्णमक्कोसंति वा जाव उद्दति २०५१ अण्णयरं जहा पिंडेसणाए
७१५६ अतिरिच्छच्छिन्नं तहेव तिरिच्छच्छिन्नं तहेव ७३४,३५ अपूरिसंतरकडं जाव अणासेवितं
१।२१,५।१२ अपुरिसंतरकडं जाव णो
११२४ अपूरिसंतरकडं जाव बहिया अणीहडं वा... अन्नयरंसि
१०६ अपूरिसंतरकडे जाव अणासे विए (ते) २।१०,१२ अपूरिसंतरकडे जाव णो
२।१४,१६ अपुरिसंतरकडे वा जाव अणासे विते
२।३ अप्पंडए जाव संताणए
१११३५ अप्पंडं जाव पडिगाहेज्जा अतिरिच्छच्छिन्नं तिरिच्छच्छिन्नं तहेव
७१३७,३८ अप्पंडं जाव मक्कडा अप्पड जाव संताणगं (यं) २।५८-६१,६६,५।२६,३०,७४२७,२८,३०,३१,३४ अप्पंडा जाव संताणगा
१।४३,३१५ अप्पंडे जाव चेतेज्जा
२०३२ अप्पापाणं जाव संताणगं
२।२ अप्पपाणंसि जाव मक्कडा
१०।२८ अप्पबीयं जाव मक्कडा अप्पुस्सुए जाव समाहीए
३।२६,५६,६१ अफासुयं जाव णो
१।१२,६४,८२,८३,८७,६२,६६, १०७,११०,१११,१२८,१३३; २।४८,२२,२३,२५,२८,२६;
६।२६,४६;७।२६,२७,२६,३० अफासुयं जाव लाभे
१११०६ अफासुयं 'लाभे
११८४,१०२,१०४,१२३ अफासुयाई जाय णो
६।१३,१४ १. अत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते।
७।३०,३१
हा२
श२
-
१२
१०३
१२
३१२२
Page #1058
--------------------------------------------------------------------------
________________
५।२३-२५
५।२३ १५।४४
११८८ ३।६,१०
६०२२-२५ ५।२४ १५॥४७,४८ २।१६,४६ ३।११ ६।१४ ११६२ १९० ११३६,४१,८८,६१ ११११३,११५-११६ ४।२२
१२९७ ११४
१६४ १४९२,११४
४।११
अब्भंगेत्ता वा तहेव सिणाणाइ तहेव सीओदगादि कंदादि तहेव अभिकंखसि सेसं तहेव जाव णो अभिहणेज्ज वा जाव उद्दवेज्ज अभिहणेज्ज वा जाव ववरोवेज्ज अयं तेण तं चेव जाव गमणाए अयबंधणाणि वा जाव चम्मबंधणाणि असणं वा ४ अफासुयं असणं वा ४ जाव लाभे असणं वा ४ लाभे असत्थपरिणयंजाव णो असावज्जं जाव भासेज्जा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियसमुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स अस्सिपडियाए बहवे समणमाहण पगणियपगणिय समुद्दिस्स पाणाई ४ जाव उद्देसियं चेतेति, तहप्पगारं थंडिलं पुरिसंतरकडं वा अपरिसंतरकडं वा जाव बहिया णीहडं वा अणीहडं वा आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि आगंतारेसु वा जाव परियावसहेसु आगंतारेसु वा जावोग्गहियंसि आमज्जेज्ज वा जाव पयावेज्ज आयरिए वा जाय गणावच्छेइए इक्कडे वा जाव पलाले ईसरे जाव एवोग्गहियं सि उवज्झाएण वा जाव गणावच्छेइएण एवं अतिरिच्छच्छिन्ने वि तिरिच्छच्छिन्ने जाव पडिगाहेज्जा एवं आउतेउवाउवणस्सइ
१०१४-८ ३२५५ ३१४७ २।३४,३५ ७।४६,४७ ३।३६६४८ १११३१ २।६५७१५४ ७.३२,३३ २०७२
१११२-१६
३२५४ २।३६
२३३ ७।२३,२४
११५१ १११३०
२०६३ ७।२५,२६
१।१३०
७.४४,४५ २०४१
७।३०,३१
२।४१
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--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं णायव्वं जहा सह-पडियाए सव्वा वाइत्तवज्जा रूव-पडियाए वि एवं तसकाए वि
एवं पादणक्ककण्णउच्छिन्नेति वा एवं बहवे साहम्मियया एगं साहम्मिणि
साहि
एवं बहवे साहम्मिया एवं साहम्मिणि बहवे साहमणीओ बहवे समणमाहणस्स तहेव, पुरिसंतरं जहा पिंडेसणाए एवं बहवे साहम्मिया एवं साहम्मिणि बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स चत्तारि आलावा भाणियव्वा
एवं बहिया विचारभूमिं वा विहारभूमि वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा अहपुणेवं जाणेज्जा तिव्वदेसियं वा वासं वासमाणं पेहाए जहा पिंडेसणाए णवरं सव्वं चीवरमायाए
एवं वहिया बियारभूमिं वा विहारभूमि वा गामाणुगामं दृइज्जेज्जा । तिव्वदेसि - यादि जहा बिइयाए वत्थेसणाए णवरं एत्थ डिग्ग
एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगपसूयाइं ति
एवं सेज्जागमेणं णेयव्वं जाव उदगप्पसूयाइंति
एवं हिट्टिमो गमो पायादि भाणियव्वो
एसणिज्जं जाव पडिगाहेज्जा
एसणिज्जं जाव लाभे
एसणिज्जं लाभे
एस पइन्ना जं
ओवयं हि य जाव उप्पजलगभूए
कंदाणि वा जाव बीयाणि
कंदाणि वा जाव हरियाणि कसाव समुप
१२।२-१७
१६८
४|१६
२४, ५, ६
५।६-११
१।१३-११
५।४३-४५
६।५१-५८
८१२-१५
हा३-१५
१३१४०- ७५
१।१८,२३,२।६४
१७, १४३
२/६३; १२
६।२८,४५
१५/४०
. १०।१५
५।२५
१५/४०
१११५-२०
१२
४|१६
२३
१।१३-१८
१।१२
१३८-४०
५१४३-५०
२२-१५
२।३-१५
१३।३-३८
१५
१५
१५
१५६
१५।६
२।१४
२।१४
१५।३८
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--------------------------------------------------------------------------
________________
कुट्ठीति वा जाव महुमेहणी कुलियंसि वा जाव णो
खंसि वा अण्णयरे वा तहप्पगारे जाव णो
खलु जाव विहरिस्सामो
गंड या जाय भगंद
गच्छेज्जा जाव अप्पुस्सुए "तओ
गच्छेज्जा जाव गामाणुनामं
गच्छेज्जा तं चैव अदिण्णादाणवत्तव्वया
भाणियव्या जाव वोसिरामि
गामं वा जाव गामं वा जाव रायहाणि गामंसि वा जाव रायहा णिसि गामे वा जाव रायहाणी गाहावई वा जाव कम्मकर गाहावइ-कुल जान पविट्टे गाहाव - कुलं जाव पविसितुकामे गाहावइ - कुलं पविसितुकामे गाहावई वा जाव कम्मकरीओ
गोलेति वा इत्थी गमेणं त
छत्तए वा जाव चम्मछेदणए छत्तगं वा जIव चम्मछेयणगं जवसाणि वा जाव सेणं जहा पिंडेसणाए जाव संचारगं
जाएजा जाव पडिगाज्जा जाएजा जाय विहरिरसामो जावज्जीवाए जाव वोसिरामि
जीवपट्टियंसि जाव मक्कदा
झामथंडिलंसि वा जाव अण्णयरंसि
भामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय
ठाणं तेज्जा
ठाणं वा जाव चेतेज्जा
जगरं वा जाव रायहाणि
५
४/१६
७/१२
७।१३
७२५
१३।३०-३३
५/४८
५४६
१५/६४
७२
१।३४, १२२:२११:३२२६१
१३४,१२२:३२
३१४५, ५७
१६३, ५११८६६।१७
१/१६,१७
११८,४४
१।३७
१।१२१, १२२, १४३
२/२२,३६,५१:७/१६
४|१४
७/२४
३।२४
३।५६
२।१२
१।१४५: ५।१६:६।१६,१७
७१४६
१५।५७
१०।१४
१५।१:५।३९
१।१३५
२२८, २६
२१२७, ५१-५५
८1१
आयारो ६८
५। ३७
५।३८
७।२३
१३।२८
३।५६
३।५६
१५।५७
१।२८
१।२८
१।२८
११२८
१।२५
११
१११६
१।१६
१४६
४।१२
२।४६
२।४६
३।४३
१।२६
१।१४१
७/२३
१५४३
१५१
१३
१।३
२।१
२।१
१।२८
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--------------------------------------------------------------------------
________________
नगरस्स वा जाव रायहाणीए णिक्खमणपवेसाए जाव धम्माणुओग
तं चैव भाणियव्वं णवरं चउत्थाए तं से भिक्खु वा जाव समाणे सेज्जं पुण पाणग-जाय जाणेज्जा तंजा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा अस्सि खलु परिगहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तव
पडिगाज्जा
तहप्पगारं जाव णो
तहप्पगाराई णो
तहप्पगाराई "सद्दाई णो
तव तिन्निवि आलाधगा णवर ल्हसुणं दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं दस्सुगायतणाणि जाव विहारखत्तियाए दुब्बद्धे जाव णो
देज्जा जाव पडिगाहेज्जा
देज्जा जाव' फासूयं पडिगाहेज्जा
देज्जा जाव' फासूयं लाभे दोहिं जाव सणिहिण्णिचयाओ निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु० निक्खिवाहि जहा इरियाए णाणत्तं वत्थपडियाए
पइण्णा जाव जं
पगिज्भिय जाव णिज्झाएज्जा पक्किमामि जाव वोसिरामि
डिमं जहा पिंडेसणाए परिमाणं जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जाव परगहियतरागं पडिवज्ज माणे तं चैव जाव अण्णोष्णसमाहीए
१२. प्रत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते ।
६
३।५८
७।१४
१।१४८ - १५४ १।११४
११।१२- १४,१६
११७-११,१५
७।३६-४२
७३
३६
७। ११
१।१४४
१।१४७
५।१८
१२४
३।२
५।५०
२।१६,२२६।२८,४५
३१४८, ४९
१५/५०
६।२०
५।२१
८२१-३०
२।६७
११२८
१४२
१।१४१-१४७
११४, ६२
११/५
११.५
७ २५-२८
२०४६
३१८
५।३६
१।१४१
१।१४१
१।१४१
१२१
१४२
३।६१
१।५६
३।४७
१५।४३
१।१५५
१ । १५५ २।६७-७६
१।१५५.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
पण्णस्स जाव चिंताए २।५०-५६;७।१५,२१
११४२ पमज्जेत्ता जाव एगं ३।३४
३।१५ परक्कमे जाव णो ३१७
३।६ पागाराणि वा जाव दरीओ ३२४७
३।४१ पाडिपहिया जाव आउसंतो ३३५७
३३५४ पाणाइं जहा पिंडेसणाए
१२१२ पाणाइजहा पिंडेसणाए चत्तारि आलावगा । पंचमे बहवे समणमाहणा पगणिय-पगणिय तहेव से भिक्खू वा २ अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमहणा वत्थेसणालावओ ६१४-१२
१११२-१८,५२५-१३ पाणाणि वा जाव ववरोवेज्ज २०७१
१८८ पायं वा जाव इंदिय २१४६
११८८ पायं वा जाव लूसेज्ज २७१
११८८ पिहयं वा जाव चाउलपलंब
१७,१४४ पुढविकाए जाव तसकाए १५।४२
२१४१ पूढवीए जाव संताणए १११०२५।३५,७।१०
११५१ पुरिसंतरकड जाव आसे वियं
१।१८ पुरिसंतरकडं जाव पडिगाहेज्जा
५।१३ पूरिसंतरकडं जाव बहिया णीहडं अण्णयरंसि १०११०
११८ पुरिसंतरकडे जाव आसे विए २।६,११,१३
१११८ पूरिसंतरकडे जाव चेतेज्जा
२।१५,१७ पुव्वोवदिट्ठा जाव चेतेज्जा २०३०
२।२७ पूव्वोवदिट्ठा जाव जं १९१२।२३,२४,२५,२७,२८,२९,३।६,१३,४६,५।२७ ११५६ पुवोवदिट्ठा जाव णो ११९५
११६१ पेहाए जाव चिताचिल्लडं ३।५६
११५२ फलिहाणि वा जाव सराणि
१११५
नि० १७११४१ फासिए जाव आणाए १५५६
१५२४६ फासिए जाव आराहिए १५७०
१५४६ फास्यं जाव पडिगाहेज्जा १।२२,२५,८१,१००,१४६;५।२०,३०,७२८,३१ फासुयं पडिगाहेज्जा १११४१
११५ फासुयं "लाभे संते जाव पडिगाहेज्जा १।१०१,१२८,५।१८ बहुकंटगं लाभे संते जाव' णो १।१३४
११४
११२२
५।११
राह
११५
१.२. अत्र 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते।
Page #1063
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहुपाणा जाव संताणगा बहुबीया जाव संताणगा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब
भगवंतो जाव उबरया भिक्खुणी वा जाव पविट्टे
भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा असणं ४ आउकापट्ठियं तह चेव । एवं अगणिकापट्टियं लाभे भिक्खु वा जाव पग्गहिय ०
भिक्खु वा जाव पविट्टे
भिक्खु वा २ जाव सद्दाई भिक्खू वा जाव समाणे
भिक्खु वा २ जाव सुणेति भिक्खु वा सेज्जं
मणी वा जाव रयणावली
मस्सं जाव जलरं
मत्ते तहेव दोच्चा पिंडेसणा
महद्वण मोल्लाइं· · लाभे
महव्वए
मासेण वा जहा वत्थेसणाए
मूलाणि वा जाव हरियाणि
रज्जमा जाव विणिग्घाय रज्जेज्जा जाव णो
लढे जाव णो
वएज्जा जाव परोक्खवयणं
वाणि
वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि
वायण जाव चिंताए
वित्ती जाव रायहाणि सअंडं जाव णो
८
३४
३।१
१/८२
२।२५
१५,६,७,११,१२,४२,६२, ६२, ६६,६६, १०१, १०४, १०५, १०७-१०६,१११
११९३,६४
१।१४६
१।२३,४६,५०,५२
११।१६
१५३,५५,५८,६१,८३,८४,८७,८६,
६०,६७, १०२, १०६, ११०,११२ ११६, १२४,१२५,१२६,१३५,१३६,
१४५,१४७,१५१
११ ।१४, १५
१८२,१२८,१३३, १३४, १४४
५।२७
४२६
१।१४२
५।१४
१५।५६,६३,८४,९१
६।२१
१०।१२
१५।७३,७४
१५।७३,७४
३।१२
४|४
५।१५
४२१
२४६
३।३
७/३३
१२
१२
१६
१।१२१
१1१
१/२ १।१४५
१।१
११।२
११
११।२
११
२।२४
४/२५
१।१४१
१४
१५/४६
५।२२
२।१४
१५।७२
१५।७२
३८
४३
१४
३।४७
१४२
११४३;३।२
७।२६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
७।२६ १२ १२
५।२८-३६
१२ १५।६५ १५६५ १५६५
११५ १५।४५ १५७२ १२७२
सअंड जाव णो
७.३६,४३ सअंडं जाव मक्कडा
८।१६।१ सअंडं जाव संताणयं (गं)
२।१,५७,६८,५।२८,७।२६,२६ सअंडादि सव्वे आलावगा जहा वत्थेसणाए णाणत्तं तेल्लेण वा घएण वा णवणीएण वा वसाए वा सिणाणादि जाव अण्णयरंसि वा ६।२६-४२ सअंडे जाव संताणए
२०३१ संतिभेया [दा] जाव भंसेज्जा
१५।६७,६८,६६,७५ संतिविभंगा जाव धम्माओ
१५।६६ संतिविभंगा जाव भंसेज्जा
१५७३,७४ संथारगं"लाभे
२०५७,५८,५६,६० संथारयं जाव लाभे
२०६१ सकिरिया जाव भूओवघाइया
१५।४६ सज्जमाणे जाव विणिग्याय
१५७५,७६ सज्जेज्जा जाव णो
१५/७५ सत्ताई जाव चेएइ तहप्पगारे उवस्सए अपूरिसंतरकडे जाव अणासे विए
२।७,८ सपाणं जाव मक्कडा
१०१२ सपाणे जाव संताणए समण जाव उवागया
३।३,४ समणमाहण जाव उवागमिस्संति
११४३ समणुजाणिज्जा जाव वोसिरामि
१५७१ समारंभेणं जाव अगणिकाए
२०४२ सम्म जाव आणाए
१५॥६३ सयं वा जाव पडिगाहेज्जा
६।१८ सयं वा णं जाव पडिगाहेज्जा
६।१६ ससिणिद्धेण सेसं तं चेव एवं ससरक्खे मट्टिया ऊसे, हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे गेरुय वण्णिय सेडिय, पिट्ठ कुक्कस उक्कुट्ठ संसटेण १०६५-८० सामग्गिय
११४८,६०,८६,१०३,१२०,१२६,१३७;
२।२६,४३ सामग्गियं
३।४६,५४४०,५१,७।२२,५८ सामग्गियं जाव जएज्जासि
८।३१।१०।२६,११।२०
११५१
१।१६,१७
११२ श२ ३१२ ११४२ १५।४३
२।४१ १५६४६ १३१४१ १६१४१
११६४
श२० २।७७ २२७७
Page #1065
--------------------------------------------------------------------------
________________
४।२१ ५।२३ ५।३१
४।१० २।२० २१२१
सावज्ज जाव णो सिणाणेण वा जाव आघंसित्ता सिणाणेण वा जाव पघंसेज्ज सिणाणेण वा तहेव सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा आलावओ सिया जाव समाहीए सिलाए जाव मक्कडासंताणए सिलाए जाव संताणए सीओदग-वियडेण वा जाव पधोएज्ज सीलमंता जाव उवरया से आगंतारेसु वा जाव सेसं तं चेव, एयं खलु० जइज्जासि हत्थं जाव अणासायमाणे हत्थं वा जाव सीसं हत्थिजुद्धाणि वा जाव कविजल हत्थिट्राणकरणाणि वा जाव कविजल
५।३३,३४ ३१४४ ११८२ ११८३ ५॥३२ २३८ ७.६८ १४।३-८० ३१५०,५२ २०१६ ११:१२ १११११
५।३१,३२
३।२६ ११५१ ११५१ २।२१ १।१२१
७४ १३।३-८०
२०७४ श८८
१०।१८ १०११८
२१३२ २०५८
श८ ७/२०
३२
अकेवले जाव असव्वदुक्ख० अकोहे जाव अलोभे अखेत्तण्णा जाव परक्कमण्णू अगाराओ जाव पव्वइत्तए अज्झारोहसंभवा जाव कम्माणियाणेण अणारिए जाव असव्वदुक्ख० अणारिया वेगे जाव दुरूवा अणिटुं जाव णो सुहं अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ अणिढे जाव णो सुहे अणिढे जाव दुक्खे अणपुवट्ठिए जाव पडिरूवे अणुपुवट्टियं जाव पडिरूवं अणुपुव्वेणं जाव सुपण्णत्ते अणेगभवणसयसण्णिविट्ठा जाव पडिरूवा अपच्छिम जाव विहरित्तए
सूयगडो
२०५७,६२ ४।२४ ११६,१० ७।२१ ३७,८,६ २१७५ ११४६ ११५१ ११५१ ११५१ ११५१ १२५
३।३२ ११३ ११५० २५० ११५० ११५०
०
श३
११७,८,६
११२३-२५ ७।२ ૭૨૯
१२६ १११३-१५
७.५ ७।२१
Page #1066
--------------------------------------------------------------------------
________________
११
१९
११६ २०५८ २।७२ २।२४
७।४
२१५८
अपत्ते जाव अंतरा
१।१० अपत्ते जाव सेयंसि अप्पडिविरया जाव जे यावण्णे
२०७१ अभिगयजीवजीवे जाव विहरइ अवहरइ जाव समणुजाणइ
२।२५,२६,३० अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिग्गहाओ
७।२२ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता तेहिं चेव (१) पुढविजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहिं (३) रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (४) रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहि (५) अज्भोरुहजोणिएहिं अज्झोरुहेहिं (६) अज्झोरुहजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीएहिं (७) पुढविजोणिएहि तणेहि (८) तणजोणिएहिं तणेहि (६) तणजोणिएहिं मूलेहि जाव बीएहिं (१०-१२) एवं ओसहीहि वि तिण्णि आलावगा' (१३-१५) एवं हरिएहि वि तिण्णि आलावगा (१६) पुढविजोणिएहि वि आएहिं जाव कूरेहिं । (१) उदगजोणिएहिं रुक्खेहि (२) रुक्खजोणिएहिं रुक्खेहि (३) रुक्खजोणिएहि मुलेहिं जाव बीएहिं (४-६) एवं अज्झोरहेहिं वि तिण्णि (७-६) तणेहिं वि तिण्णि आलावगा (१०-१२)
ओसहीहिं वि तिण्णि (१३-१५) हरिएहि वि तिण्णि (१६) उदगजोणिएहिं उदएहिं अवएहिं जाव पुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउटैति । ते जीवा तेसिं पुढविजोणियाणं, उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं
१. येषां चत्वारइचत्वार पालापकास्तेषां तृतीय पालापको न ग्राह्यः ।
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________________
हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्भोरुहाणं तणाणं ओसहीण हरियाणं मूलाणं जाव बयाणं आयाणं कायाणं जाव कूरवाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेंति - ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं । अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं अज्भोरुहजोणियाणं तणजोणियाणं ओस हिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरवजोणियाणं उदगजोणियाणं अवगजोणियाणं जाव पुक्खल च्छिभगजोणियाणं तसपाणाणं सरीरा नाणावण्णा जाव मक्खायं । अही जाव मोहरगाणं
आतोडिज्माणस्स वा जाव उवद्द्विज्ज०
आयउ वा जाव परिवारहेडं
आयाणं जाव कूराणं
आया जाव दिट्टिवाओ
आरिए जाव सव्वदुक्ख ०
अट्टसालाओ वा जाव गद्दभ०
उदगजोणिया जाव कम्म०
उदगसंभवा जाव कम्म० उदाहु....... संतेगइया उस्साणं जाव सुद्धोदगाणं
ऊसियं जाव पडिरूवं
एगखुराणं जाव सणफयाणं एवं उदगबुब्बुए भणियव्वे
एवं ओसहीण विचत्तारि आलावगा
एवं जहा मणुस्साणं जाव इत्थि
एवं जाव तसकाए त्ति भाणियव्व एवं त जोणिसुतणेसु तणत्ताए विउट्टंति तणजोणियंत पसरीरं च आहारेंति
जाव मक्खाय
१२
३।४४-७५
३७६
४/२१
२६
३।२२
१।३५
२७०, ७५
२२८
३१५७,८८
३।२३,४३,८६
७/२०
३।८५
१६
३।७८
१।३४
३।१४-१७
३।७८
४।११-१५
३।१२
३।२-४३
३१७६
१५६
२३
३।२२
नंदी सू० ८०
२३२
२।२३
३।८६
३२
७।१७
३।८५
१३
३७८
११३४
३।२-५
३।७६
४|१०,३
३।४
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________________
एवं वणजोगिएसुतणेमु मूलत्ताए जाव बीताए विउ ति ते जीवा जाव मनस्वायं एवं दुरूव संभवत्ताए एवं खुरदगत्ताए एवं पुढविजोगिएसुतणेमु तत्ताए विट्टति जाव मक्वायं एवं विणू वेदा
एवं सद्दहमाणा जाव इति
एवं हरियाण वि चत्तारि आलावगा
एवमाक्खति जाव परूर्वेति
एवमेव जाव सरीरे
एसो आलोवगो तहा नवव्यो जहा पोंडरीए जाय सब्बोवसंता सव्वत्ताए परिणिति ि
कच्छंसि वा जाव पव्वयविदुग्गसि कण्डुरहस्सिया जाव तओ
कम्म जाव मेहुणवत्त कम्म तव जाव तओ किंचिवि जाव आसंदीपेडियाओ किब्बिसियाई जाव उववत्तारो किरिया इ वा जाव अणिरऐ किरिया इ वा जाव णिरए इ वा
जाव च
कुसले जाव पउमवरपोंडरीय
के जाय सरीरे
केवले जाव सव्वदुक्ख ०
कोहाओ जाव मिच्छा ० कोहे जाव मिच्छा
सेत्तणे जाव परक्कमण्णू गाहावइपुताण वा जाव मोतियं
गाहावइस्स जाव तस्स
गोहाणं जाव मक्लायं
चम्मपरखीणं जाव मक्लायं
चाउदसमुद्दिपुण्ण मासिणीसु जाव अणुपालेमाणा
m
३।१३
३८३,८४
??
१।५१
१।३७,३८
३।१८-२१
२७८,७१७१११
१।१७
२।३३-५४
२६
२१५६
३।७८
३।७७
७।२१
७।२५
१।२९,३६
१।४५-४७
१/७
१।१७
२०५५
२५८
४३
११६, १०
२२६
४६
३।८०
३।८१
७२१
३५
३८२, चूर्णि वृत्ति
३३
१।५१
१।२१.२२
३।२-५
२४१
१।१७
११४६-७०
२४
२।१४
३/७६
३।७६
७/२०
२।१४
१।२०
१।२६-३१
१६
१/७
२३२
वृत्ति
२५८
२।६
२।२४
४।५
३२५०,२
३६१.२
७/२०
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________________
१४
जहा अगणीण तहा भाणिया बतारिंगमा ३।१३-१६
जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव
सारूविक
जहा उरपरिसप्पाणं नातं
जहा पुढविजोणियाणं रुक्खाणं चलारिंगमा अन्भारोहणावि तहेब, तणाणं ओसहीणं हरियाणं चत्तारि आलावगा
भाणियव्वा एक्केक्के
जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते जावज्जीवाए जाव जे यावणे जावज्जीवाए जाव सव्वाओ
जीवणिकाएहिं जाव कारवेइ
झामेइ जाव झामेतं
भामेइ जाव समणुजाणइ णाणागंधा जाव णाणाविह०
णाणापण्णा जाव णाणाज्भवसाण०
णाणापणे जाव णाणाज्भवसाण ०
पाणावण्णा जात ते जीवा
णाणावण्णा णाव भवंति
णाणावण्णा जाव मक्खायं
जाणाविजोणिया जाव कम्म० णो पाराए जाय सेयंसि
तं चैव जाव अगारं वएज्जा तं चैव जाव उवट्टावेत्तए तालिज्जमाणा वा जाव उह विज्जमाणा ते तसाने चिर जाव अपि भेदे से...
दंडगं वा जाव चम्मछेयणगं
दंडणाणं जाव नो बहूणं दंडेण वा जाव कवालेण दुक्खइ वा जाव परितत्पइ दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु दुक्खामि या जान परितप्यामि
धम्माणं जाव णाणाज्भवसाण०
३१८०
३।८१
३।२४-४२
२५८
२/६३
२५८
४१६
२।२६
२२८
३५
२७७
२।७७
३/४
३।७६
३६-६,२२,२३,४३, ७७-७८,
८२,८५६१,१७
३८५,८६,६३,६७
१८
७।१६
७|१६
४२१
७/२६
२।३०
२१७६
११५६४।२१
११४२,४३
१।५१
१४३
२।७७
३८६-६२
BE
३०७८
३1३-२१
२।१२
२५८
ओ० सू० १६३
४।१६
२।२१
२।२३
३।२
२।७७
२।७७
३२
३।२
३२
३८२
두
७ १८
७।१८
१।५६
७/२०
२।२५
२२७८
१।५६
१४२
११४२
१४२
२१७७
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________________
१
२१७१ ओ० सू० १६१
२६३ ओ० सू० १६१
धम्माणुया जाव एग्गच्चाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया
२४ धम्माणुया जाव धम्मेणं
२०७१ धम्माणुया जाव सव्वाओ
७.२३ धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं
२०६३ पउमवरपोंडरीयं जाव सव्वं परिग्गहं १।१० पच्चक्खाइस्सामो जाव सव्वं परिग्गह ७।२१ पत्तियमाणा जाव इति
१।३०,३१ परियाए जाव णो णेयारए
७.३० पवालाणं जाव बीयाणं
३२५ पाईणं वा जाव सुयक्खाते
११३२-३४,३६-४१ पाणाइवाए जाव परिग्गहे
४१३ पाणाइवायाओ जाव विरए
१९५६ पाणा जाव सत्ता
११५६,५७,२१७८ पाणा जाब सव्वे
४।२१ पाणाणं जाव सत्ताणं
४।१७ पाणाणं जाव सव्वेसि
४१५,६,१७ पाणावि जाव अयं...
७२६ पाणावि जाव अयं पिभे......
७।२६ पाणा वि जाव अय पिभेदे....
७.२६ पासादिए जाव पडिरूवे पासादीया जाव पडिरूवा
७१५ पुढविकाइया जाव तसकाइया
४।३,२१ पूढविकाइया जाव वणस्सइकाइया
४।१७ पुढविकाए जाव तसकाए
११५६ पुढविकाए जाव पुढविमेव
१३४ पुढविसंभवा जाव कम्म
३।२२ पुढविसंभवा जाव णाणाविह.
३।१० पुढविसरीरं जाव संतं
३।२२.२३,४३,७७-७६
८१,८२,८५-८६,६७ पुढविसरीरं जाव सारूविकड
३।६,७,८,७६ पुढवीणं जाव सूरकताणं पुरिसत्ताए जाव विउति
३१७८ पूरिसस्स जाव एत्थ णं मेहणे एवं तं चेव नाणत्तं ३१७६
७।२० १।२१,२२ ७१६
३३५ १।२३-२५
११५६ ओ० सू० १७१
११४७ ११४७ ११४७ १२४७ ७।२० ७२० ७।२०
११३
११
१११
१५६
ठाणं ७७३
११३४
३।२
३१६७
३।२
३३२ ३।६७ ३१७६ ३७६
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________________
१
६
११३४ ११३४
१२३४ ११३४ १।३४ ७।२७ ७१३४ ७।२६ २।१६ ३७७
७१६ ७।३४ ७।२०
२०१६ पण्ण०१
२०७३,७४ २०६६ ७।२० २।२५,३० ७.२८ २।२२,२३,२४,२६ ३१६ ३६
२०६९,७०
२०६६ ७.१६ २०१६ ७.१६ १११६ ३१५ ३।५
पुरिसादिया जाव अभिभूय पुरिसादिया जाव चिट्ठति पुरिसादिया जाव पुरिसमेव बहुयरगा जाव णो णेयाउए बोहिए जाव उवधारियाणं भवित्ता जाव पव्वइत्तए भेत्ता जाव इति मच्छाणं जाव सुंमुमाराणं महज्जुइएसु जाव महासोक्खेस सेसं तहेव जाव एस ट्ठाणे आयरिए जाव एगतसम्मे महज्जुइया जाव महासोक्खा महया""जं णं तुब्भे वयह तं चेव जाव अयं महया जाव उवक्खाइत्ता महया जाव णो णेयाउए मया जाव भवति मूलत्ताए जाव बीयत्ताए मूलाणं जाव बीयाणं रुइला जाव पडिरूवा वुच्चंति जाव अयं बुच्चंति जाव णो णेयाउए वुच्चंति ते तसा ए महा ते चिर ते बहतरगा आयाणसो इती से महता जेणं तुब्भे णो णेयाउए समणुजाणइ""" समणोवासगस्स जाव णो णेयाउए सरीरं जाव सारूविकडं सव्वपाणेहि जाव सत्तेहिं सव्वपाणेहि जाव सव्वसत्तेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्व० सिणेहमाहारेंति जाव अवरे सिणेहमाहारेति जाव ते जीवा सिया जाव उदगमेव सिया जाव पुढविमेव सेए जाव विसण्णे
१२४
१२२
७।२१ ७।२३,२४,२५
७।२० ७.२०
७.२२ २।२७ ७।२६ ३१५ ७.१८, ७।१८,२६ २१७६
७/२० २।१६ ७।१६ ३२ १२४७ १४७ २१८० ३।२ ३२ ११३४ १।३४
३९
३।१० ११३४ १३४ शक्ष
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________________
सेए जाव सेयंसि सेसा तिण्णि आलावणा जहा उदगाणं सोयण जाव परितप्पण सोयाओ जाव फासाओ सोयामि वा जाव परितप्पामि हंतव्वा जाव ण उद्दवेयव्वा हंतव्वा जाव कालमासे हंता जाव आहारं हंता जाव उवक्खाइत्ता
शक ३१६०-६२,६८-१०० ४।१७ ११५२ ११५६ ४।२१ ७।२५ २०१६ २।१६,२०
३३८६-८८
४।१७ ११५२ १२४२ ११५६ २।१४ २।१६ २।१६
ठाणं
७।२६ ४।४५०
७।२८ ३३५२३ ८६५
वृत्ति
अइवाइत्ता भवति जाव जधावाती अगारातो जाव पव्वतिते अट्ठ एवं चेव अड्डाइं जाव बहुजणस्स अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे अणत्तरे जाव केवलवर० अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुत्तरे जाव समुप्पणे अणुसोतचारी जाव सव्वचारी अत्थि जाव समुप्पणे अपढमसमयणेरतिता एवं जाव अपढम० अपढमसमयणेरतिता जाव अपढमसमयदेवा अब्भोवगमिओ जाव सम्म अमणुण्णा सद्दा जाव फासा अमणण्णे जाव साइमे अमुच्छिए ते] जाव अणज्झोववण्णे अयगोलसमाणे जाव सीसगोल० अरहंतेहिं तं चेव अरहा जाव अयं अवट्टिते जाव दव्वओ अवलेहणित जाव देवेसु अविसेस जाव पुव्वविदेहे
८।१० ४१४५१ ५२९७ ६।१०५ १०।१०३ ५।१६६ ७।२ ८।१०५
।१०१०।१५३ ४।४५१ १०।१४० ८४२ ३।३६२,४१४३४ ४।५४६ ३८५ १०।१०६ ५।१७४ ४।२८२ २।२७०
४।४५० ५२८४
५९४ १०।१०३ ५।१६६
७२ ५।१७५ ५।१७५ ४१४५१
८४२ ३।३६२ ४१५४६
३८१ ५।१६५:१०।१०६
५।१७० ४।२८२ २।२६८
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________________
१८
२।२७२ ७।१३१ ४१५४८ २।१०२
अविसेसमणाणत्ता जाव सद्दावाती
२।२७४ असावज्जे जाव अभूताभिसंकणे
७.१३३ असिपत्तसमाणे जाव कलंबचीरिया० ४।५४८ असुयणिस्सिते वि एमेव
२।१०३ असुरकुमाराणं वग्गणा चउवीसं दंडओ जाव एगा
१११४३-१६३ असोगवणं जाव चूयवणं
४।३४० अहासुत्तं जाव अणुपालित्ता
८।१०४ अहासुत्तं जाव आराहिया
७।१३;६।४११०.१५१ अहीणस्सरे जाव मणामस्सरे
८।१० आउकाइओगाहणा जाव वणस्सइकाइओगाहणा ६।११ आउक्खएणं जाव चइत्ता
८।१० आगमे जाव जीते
५।१२४ आगमेणं जाव जीतेणं
५१२४ आघवइत्ता जाव ठावतिता
३१८७ आढाति जाव बहुं
८।१० आधाकम्मितं वा जाव हरितभोयणं हा६२ अभिणिबोहियणाणावरणिज्जे जाव केवल० ५।२१६ आभिणिबोहिय [त] णाणी जाव केवल० ६।११;८।१०६ आमलग महुरफलसमाणे जाव खंडमहुर० ४।४११ आयारं जाव दिट्रिवायं
१०।१०३ आरंभिता जाव मिच्छादसणवत्तिता ५।११७ आलोएज्जा जाव अत्थि
८।१० आलोएज्जा जाव पडिवज्जेज्जा
३।३४२,३४३;८।१० आलोयणारिहे जाव अणवठ्ठप्पारिहे १०७३ आलोयणारिहे जाव मूलारिहे
હi૪૨ आवत्ते जाव पुक्खलावती
८६६ आसपुरा जाव वीतसोगा
८७५
२।३५४-३६२,४१३६६
४।३३६ ७।१३ वृत्ति ८।१० ७।१३ ८।१० ५१२४ ५।१२४ ३८७ ८।१० ६।६२ ५।२१८ ५।२१८
४।४११ समवाओ ११२
५।११२
८.१० ३।३३८ ६।४२ ८.२० २।३४० २।३४१
१. वृत्तो किञ्चद् भेदने लभ्यते-७।१३-ग्रहासुत्तं यावत्करणात अहाअत्यं अहातच्च अहामगां अहाकप्पं सम्म
काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया त्ति (पत्र ३६८) । ८।१०४---'अहासुत्ता प्रहाकप्पा अहामरगा अहातच्चा सम्म का एण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया' इति यावत्करणात् दृश्य अणुपालिय' त्ति (पत्र ४१७) । ६।१४१-यथासूत्रं यथाकल्प यथामार्ग" यथातत्त्वं सम्यक् कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीत्तिता पाराधिता चापि भवतीति । (पत्र ४३०) १०.१५१-ग्रहासुत्त... "यावत्करणात् अहाअत्थं अहातच्चं अहामन्गं अहाकप्पं सम्यक्कायेन, फासिया पालिया शोधिता शोभिता वा तीरिया कीर्तिता अराधिता भवति (पत्र ४६२) ।
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________________
१६
४।४५० ४।४५० ४।४५०
८।१८ ४।५७८ ५।२२३
४।४५० ४।४५० ४।४५० १०।७२ १०।१०५ १०।२६ ६४ ५।२० ५।१०५,१०६ ४।४३४ १०।१४ १०।१४६ ६।६२ ४।६५६ ४।४
५।१६ ५२१०४ ४।४३४
१०११३ २।३८०-३८४
वृत्ति ४।६५४
४।४
आसाएइ [ति जाव अभिलस ति आसाएमाणे जाव अभिलसमाणे आसाएमाणे जाव मणं आहारवं जाव अवातदंसी आहारसण्णा जाव परिग्ग हसण्णा इदा जाव महाभोगा इदियाईजाव णिज्झाइत्ता इदेथावरकाताधिपती जाव पातावच्चे इच्चेतेहिं जाव णो धरेज्जा इच्चेतेहि जाव संचातेति इरिताऽसमिती जाव उच्चार० ईसाणे जाव अच्चुते उज्जलं जाव दुरहियासं उत्तरासाढा एवं चेव उण्णए णाम उण्णत्तावत्तसमाणं माणं एवं चेव गूढावत्तसमाणं मातमेवं चेव उप्पण्णाण जाव जाणति उप्पायणविसोहि जाव सारक्खणविसोहि उम्मीवीची जाव पडिबुद्धे उरगजाति पुच्छा उवचिण जाव णिज्जरा उरिं जाव पडिबुद्धे उवहिअसंकिलेसे जाव चरित्त० एगिदितेहिंतो वा जाव पंचिदिय० एगिदियत्ताते वा जाव पंचिंदियत्ताते एगिदियअसंजमे जाव पंचिदिय० एगिदियणिवित्तिते जाव पंचिदिय० एगिदियसंजमे जाव पंचिंदिय० एगिदिया जाव पंचिदिया एते चेव एते तिण्णि आलावगा भाणितव्वा
४।६५३ ७७८ १०१८५ १०११०३ ४।५१४ ८१२६;६।७२ १०।१०३ १०।८७ ५।२०५ ५।२०५ ५।१४५ ५।२३८ ५।१४४ ५।१८०,२०४;६।११ ५।१७६ १०।१५६ २।१६८ २।२५६
४।६५३ ५।१६५ १०१८४ १०।१०३ ४।५१४
३३५४० १०।१०३
१०१८६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६ भ० २।१३६
५।१७८ १०।१५६ २।१६७ २।२५५
एवं
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________________
२०
२१४६२ ३३३२२ ३१४७५
एवं
२१४६१ ३।३२१ ३२४७४ ६.३८ ६।३५ २।१० ३।४२२
४।१६६-२१०
२८४
एवं अग्गिच्चावि एवं रिट्ठावि
६३६,३७ एवं अजोगिभवत्थकेवलणाणे वि
२।६१ एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए
३१४२३,४२४ एवं अज्जरूवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपण्णे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्जविती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसंवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अज्जेण वि भाणियव्वा ।
४।२१३-२२७ एवं अणभिग्गहितमिच्छादसणे वि
२०५५ एवं असंकिलेसे वि एवमतिक्कमे वि वइक्कमे वि अइयारे वि अणायारे वि ३।४३६-४४३ एवं असंयमो वि भाणितव्वो
१०१२३ एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीतेगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति ३.१९५-१९७ एव उवसंपया एवं विजहणा
३।३५३,३५४ एवं एएणं अभिलावेणं-- संगहणी-गाहा गंता य अगता य, आगंता खलु तहा अणागंता । चिद्वित्तमचिद्वित्ता', णिसितित्ता' चेव णो चेव ॥१॥ हता य अहंता य, छिदित्ता खलु तहा अछिदित्ता। बुतित्ता अबूत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ।।२।। 'दच्चा य अदच्चा"य, मुंजित्ता खलु तहा अभंजित्ता। लभित्ता अलभित्ता, पिबइत्ता' चेव णो चेव ।।३।।
३।४३८ १०१२२
३।१८६-१६१
१. चिट्ठित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. णिसिंतत्ता (क, ख)। ३. दत्ता अदत्ता (क)। ४. पिवइत्ता (क, ग); पिइता (क्व)।
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________________
२१
संगहणी-गाहा; ३।१८६-१९४
संगहणी-गाहा
३।१०६ २।२३२
४।४७१-४७३
सुतित्ता असुतित्ता, जुज्झित्ता खलु तहा अजुज्झिता। जतित्ता अजयित्ता य, पराजिणित्ता चेव णो चेव ॥४॥ सहा रूवा 'गंधा, रसा य" फासा तहेव ठाणा य । णिस्सीलस्स गरहिता, पसत्था पुण सीलवंतस्स ।।५।। एवमिक्केक्के तिण्णि उ तिण्णि उ आलावगा भाणियब्वा।
३।११८-२८४ एवं एसा गाहा फासेतव्वा, जाव-ससरीरी चेव असरीरी चेव सिद्धसइंदियकाए, जोगे वेए कसाय लेसा य । णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी ॥१॥ २१४१० एवं ओस प्पिणीए नवरं पण्णत्ते आगमिस्साते उस्सप्पिणीए भविस्सति
३।११०,१११ एवं कंता पिया मणुण्णा मणामा
२।२३३ एवं कुलसंपण्णेण य बलसंपण्णेण य कूलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य कूलसंपण्णेण य जयसंपण्णेण य
४।४७४-४७६ एवं कुलेण य रूवेण य कुलेण य सुतेण य कुलेण त सीलेण य कुलेण य चरित्तेण य
४।३६७-४०० एवं गंधाइं रसाइं फासाइं जाव सव्वेण वि १०३ एवं गंधा रसा फासा एवमिक्किक्के छ-छ आलावगा भाणियव्वा
२।२३०-२३० एवं चउभंगो तहेव
४।२५० एवं चक्कवट्रिवंसा दसारवंसा
२।३१०,३११ एवं चक्कवट्टी एवं बलदेवा एवं वासुदेवा जाव उप्पज्जिस्संति
२।३१३-३१५ एवं चिणंति एस दंडओ एवं चिणिस्संति एस दंडओ एवमेतेणं तिण्णि दंडगा
४।६३,६४ एवं चेव
३।४८४ एवं चेव
४।४२७ एवं चेव
४।६१७ एवं चेव
४।६१६ एवं चेव
५:१६१
३।३६६ १०।३२।२०३,२०४
२।२३४ ४।२५० २।३०४
२।३१२
४।६२ ३१४८३ ४।४२६ ४१६१७ ४।६१८ ५।१५६
१. रसा गंधा (क, ग)।
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--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं चेव एव चेव
५।१५६ ६।२५ ८४८ ८.१२३ १०।६३ ४।४५३ ६१८१
५२८४ ६।२५
छच्च
एवं चेव
५।१६२ ६।२६
८।४६,५० एवं चेव
८।१२४ एवं चेव
१०।६४ एवं चेव एवं तिरियलोए वि
४।४८४,४८५ एवं चेव एवं फासामातो वि
६८१ एवं चेव एवमेतेणं आभिलावेणं इमातो गाहातो अणुगंतव्वातो-- पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुप्फदंतस्स । पुव्वाइं आसाढा, सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ रेवतित अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य ॥२॥ मुणिसुव्वयस्स सवणो, आसिणी णमिणो य णेमिणो चित्ता। पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्थूत्तरे वीरो ॥३॥ ५८६-६६ एवं चेव जाव छच्च
६२७ एवं चेव णवरं खेत्तओ लोगालोग्गपमाणमिते गुणतो अवगाहणागुणे सेसं तं चेव
५।१७२ एवं चेव णवर गुणतो ठाणगुणे
५।१७१ एवं चेव णवरं दव्वओणं जीवत्थिगाते अणंताई दव्वाइं अरूवि जीवे गुणतो उवओगगुणे सेसं तं चेव
५१७३ एवं चेव मणस्सावि एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव दूसमदूसमा
३९० एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव सुसमसुसमा
३।६२ एवं जधा अट्टाणे जाव खते
१०७१ एवं जधा छटाणे जाव जीवा
८।१४ एवं जधा पंचट्ठाणे जाव आयरिय एवं जधा पंचट्टाणे जाव बाहिं
७८१ एवं जहण्णोगाहणगाणं उक्कोसोगाहणगाणं अजहणुक्कोसोगाहणगाणं जहण्णठितियाणं उक्कस्सट्ठितियाणं अजहण्णुक्कोस ठितियाणं
५।१७० ५।१७०
५।१७० ४।६१४
१।१२८-१३३
१४१३५-१४०
८.१६
५।४८ ५।१६६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
२३
१।२३८-२४६
११२३५.२३७
४।१२-२१
४।२-११
३।२७
३१२६
४।३७६-३७८
४।३७२-३७४
४।४४२-४४६ ७१११३ ३७१
३७६-८६
५२५७ ३७०
जहण्णगुणकालगाणं उक्कस्सगुणकालगाणं अजहण्णुक्कस्सगुणकालगाणं एवं जहा उण्णत पणतेहिं गमो तहा उज्जु वंकेहि वि भाणियव्वो जाव परक्कमे एवं जहा गरहा तहा पच्चक्खाणे वि दो आलावगा एवं जहा जाणेण चत्तारि आलावगा तहा जूग्गेणवि पडिवेक्खो तहेव पूरिसजाया जाब सोभेति एवं जहा तिट्राणे जाव लोगंतिता देवा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छेज्जा तं जहा अर हंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु एवं जहा पंचट्टाणे जाव किण्णरे एवं जहा विज्जुतारं तहेव थणियसपि एवं जहा हयाणं तहा गयाणं वि भाणियब्वं पडिवेक्खो तहेव पुरिसजाया एवं जाइस्सामीतेगे सुमणे भवति एवं जातीते य रूवेण य चत्तारि आलावगा एवं जातीते य सुएण य एव जातीते य सीलेण य एवं जातीते य चरित्तेण य एवं जाव अपढमसमयपंचिंदिता एवं जाव एगा एवं जाव कम्मगसरीरे एवं जाव काउलेसाणं एवं जाव केवलणाणं एवं जाव घोसमहाघोसाणं णेयव्वं एवं जाव जहा से एवं जाव तिणिस० एवं जाव दुविहा एवं जाव पच्चुप्पणाणं एवं जाव फासाई एवं जाव फासामतेणं एवं जाव फासामातो एवं जाव फासामातो
४।३८५-३८७ ३।१६१
४।३८१-३८३
३।१८६
४।३६२-३६५ १०।१५२ ११२१६-२२६ ५।२७-३० १११६८ २१५३-६२,३।१६३-१७२ ७.११७,११८ ५।१२४ ४।२८३ २।१२४-१२६ ७७ १०।४ १०१२२ ८.३३
४१३६० ५।१४५ पण्ण०१ ५।२५,२६
१११६२ २।४२-५१ ५।६२,६३
५।१२४ ४।२८२,२८३
७७३
१०१३ ८।३३ ६८१ ६८२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
२।५३-६१ ४१७५,७६ ४१७५,८० ४७५,८४ ४७५,८८
२।१२४-१२७
१०।३
५।१७५ समवाओ ६१
४।३५४
४१३७२-३७४
४१५८
एवं जाव मणपज्जवणाणं
२।४०४ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४७७-७६ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४।८१-८३ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४१८५-८७ एवं जाव लोभे वेमाणियाणं
४१८६-६१ एवं जाव वणस्सइकाइया
२।१२६-१३२,१३४-१३७
१३०-१४३ एवं जाव सव्वेण वि
१०१५ एवं जाव सिद्धिगती
१०१६६ एवं जाव सुक्कलेसाणं
१११६३-१६५ एवं जाव सेलोदग०
४।३५५ एवं जुत्तपरिणते जुत्तरूवे जुत्तसोभे सन्वेसि पडिवेक्खो पुरिसजाता
४१३८१-३८३ एवं णिरयाउअंसि कम्मसि अक्खीणंसि जाव णो चेव
४।५८ एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं एवं जाव मिच्छादसणसल्लाणं
२१४०७ एवं सत्थियावि
२।२८ एवं णो केवलं बभचेरवासमावसेज्जा णो केवलं संजमेणं संजमेज्जा णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा एवं सुयणाणं ओहिणाणं मणपज्जवणाणं केवलाणं
२१४४-५१ एवं तिरियलोगं उड्वलोगं केवलकप्पं लोगं २०१९४-१९६ एवं तिरियलोग उड्डलोगं केवलकप्पं लोगं २।१६८-२०० एवं तेइ दियाणं वि चउरिदियाणं वि
१११८१-१८४ एवं थावरकाए वि
२।१६६ एवं दसणाराहणा वि चरित्ताराहाणा वि ३।४३६,४३७ एवं दीणजाती दीणभासी दीणोभासी ४।२०५-२०७ एवं दीणमणे दीणसंकप्पे दीणपण्णे दीणदिट्टी दीणसीलाचारे दीणववहारे ४।१६७-२०२ एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाए एवं दीणे णाममेगे दीणपरियाले सव्वत्थ चउभंगो ४।२०६,२१०
१९७-१०७,२१४०६
२।२७
२।४३
२।१६३
२।१६७ १११७६,१८०
२।१६५ ३।४३५ ४।१९५
४११६५
४।१६५
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--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं देवंधगारे देवज्जोते देवसण्णिवाते देवक्कलिता देवकहकहते एवं देवाणं भाणियव्वं
एवं देवलिया देवकहकहए एवं दोग्गतिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ माओ अविद्धाओ विसुद्धाओ अपसत्थाओ सत्थाओ सीतलुक्खाओ णिगुहाओ
एवं पडिसति विद्धसंति
एवं परिणते जाव परक्कमे
एवं परिग्गहिया वि
एवं पासे वि
एवं पुट्ठियावि
एवं पुव्वफग्गुणी उत्तराफग्गुणी
एवं रित्ताणं एवं फुडित्ताणं एवं संवट्ट
इत्ताणं एवं णिवट्टतित्ताणं
एवं बलसंपणेण य रूवसंपणेण य
बलसंपणेण य जयसंपण्णेण य सव्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो
एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण
य एवं बलेण य चरितेण य
एवं मणुस्सावि
एवं मोहे मूढा
एवं मोहे मूढा
एवं रज्जति मुच्छंति गिज्भंति अज्झोववज्जंति
एवं रुवाई गंधाई रसाइ फासाई एक्केक छ छ आलावगा भाणियव्वा
एवं रुवाइ पास गंधाइ अग्घाति रसाइ आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति
एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितेण य
एवं वइकमाणं अतिचाराणं अणायाराणं एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ
·
२५
४।४३७-४४१
२।१५४
३७७,७८
३।५१७,५१८
२।२२४, २२५
५।३६-४४
२।१६
३।५३३
२।२२
२/४४५, ४४६
२।३६६-४०२
४/४७७,४७८
४१४०२-४०४
३।६५,६६
२४२२,४२३
३।१७८, १७६
५।७-१०
३।२१-३१४
२२०२-२०५
४१४०६,४०७
३।४४५-४४७
४।११२
_४।४३५, ४३६
२।१५३
३।७६
३।५१५, ५१६
२/२२३
४।३-११
२।१५
३।५३२
२।२१
२।४४३
२३६८
४/४७२,४७३
४४० १
३।६३,६५ २४०१
३।१७६
५।६
३।२८५ - २६० २।२०२-२०५
२/२०१
४/४०५
३।४४४
४१११
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--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं वाणमंतराणं एवं विततेवि
एवं विसोही
एवं वेदेति एवं णिज्जरेंति
एवं वेयावच्चे अणुग्गहे अणुसट्ठी उवालंभे एवमेके तिणि- तिणि आलावगा जहेव उवक्कमे
जोइसियाणं
एवं कप्पे पणे दिट्ठी सीमाचारे
हारे रक्कमे एगे पुरिसजाए पfsaral afte
एवं सकाइ सम्माति पूएइ वाएइ पच्छिति पुच्छ वागरेति
एवं सम्मद्दिट्ठ परित्ता पज्जत्तग सुहुमसण भविया य
एवं सव्वेसि चउभंगो भाणियव्वो
एवं सामंतोवणिवाइयावि
एवं सुंदरी वि
एवं सुत्णय चरित्तेण य
एवं मज्भोवज्जणा परियावज्जणा एवमणारंभे वि एवं सारंभे वि एवमसारंभ वि एवं समारंभे वि एवं असमारंभे वि जाव अजीवकाय असमारंभ एवमणुणवत्त उवातिणित्तते
एवमभेज्जा अडज्मा अगिज्झा अड्डा
अमज्झा अपएसा
एवमाधारातिणिताते
एवमासणाई चलेज्जा सीहणातं करेज्जा चेलुक्खेवं करेज्जा
एवमिट्ठा जाव मणामा
एवमिमी ओसप्पिणीए जाव पण्णत्ते एवं आगमिस्साए उस्सप्पिणीए जाव भविस्सति
एवमेगसमयठितिया
२६
७ १०७,१०८
२।२१७
३।४३३
२३६, ३६७
६।४१२-४१५
४।६-११
४।११३-११६
३।३१८
४२०३
२।२५
५।१६३
४/४०६
३ ५०६, ५१०
७१८५-८६
३।४२०, ४२१
३१३२६-३३४
५/४६
३१८२-८४
२।२३४,२३५
२।३१०,३११
१।२५५
७ १०६
२।२१६
३।४३२
२३६५
३/४११
४/५
४।१११
३।३१८
४१६५
२।२४
५।१५६
४|४०८
३।५०८
७/८४
३/४१६
३।३२८
५/४८
३८१
२।२३३
२३०६
१।२५४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३।४१८
३।३६-६८
५१०८
एवमेतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा - सवणं णाणे य विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्णहते तवे चेव वोदाणे अकिरिय णिव्वाणे॥ जाव से णं भंते !
३१४१८ एवमेतणं अभिलावेणं उरपरिसप्पावि भाणियव्वा भुजपरिसप्पा वि भाणियव्वा एवं चेव
३।४२-४७ एवमेतेणं गमएणं दित्तचित्ते जक्खाति? उम्मायपत्ते
५।१०८ एवमेतेणमभिलावेणं चत्तारि कसाया पंतं कोहकसाए ४ पंचकामगुणे पं तं सद्द ५ छज्जीवनिकाता पं तं पूढविकाइया जाव तसकाइया एवामेव जाव तसकाइया
६।६२ कते जाव मणामे
८।१० कंदे जाव पुप्फे
१०।१५५ कक्खडे जाव लुक्खे
११८४-८४ कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेसा
६।४७,४८,७७३ कालोभासे जाव परमकिण्हे
६२ किण्हा जाव सुक्किला
५।२३,२२५ किण्हे जाव सुक्किले
५।२६,२२८ किरियावादी जाव वेणइयावादी
४१५३१ कुंडला चेव जाव रयणसंजया
८.७४ कुलमतेण वा जाव इस्सरिय०
१०।१२ केवली जाणइ पासइ जाव गंधं
८.२५ कोहअपडिसंलीणे जाव लोभ०
४।१६१ कोहकसाई जाव लोभकसाई
५२०८ कोहणिव्वत्तिए जाव लोभ०
४।६२५ कोहमुंडे जाव लोभमुंडे
१०६६ कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्ल. १।११५-१२५ कोहसण्णा जाव लोभसण्णा
१०।१०५ कोहे जाव एगे
१२९७,१८ खिप्पमवेति जाव असंदिद्ध० खेमपुरी जाव पुंडरीगिणी
८७३
६।६२ ८।१० ८.३२
८।१३ समवाओ ६१
वृत्ति
५।३
५।३ ४१५३० २।३४४ ८।२१
७१७८ ४।१६०
४/७५ ४।७५
५।१७७ १९७-१०७
४/७५ ४/७५
२।३४१
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--------------------------------------------------------------------------
________________
२८
७.५२ पइण्णगसमवाय सू० ४५
७।१३५ ४।२८२ ३।३३८
४।३ ४११२ ४।२४
४।४६८
४१६११
गंगा जाव रत्ता
७।५६ गतिकल्लाणं जाव आगमे०
८।११५ गमणं जाव अणाउत्तं
७।१३६ गोमुत्ति जाव कालं
४१२८२ गरहेज्जा जाव पडिवज्जेज्जा
३१४४४ चउभंगो
४।३ चउभंगो
४।१२ चउभंगो
४।४५ चउभंगो
४।४६८ चउभंगो
४।६११ चउभंगो एवं जहेव सुद्धेणं वत्थेणं भणितं तहेव सुतिणा वि जाव परक्कमे
४१४५-५४ चउभंगो एवं परिणतरूवे वत्था सपडिवक्खा ४१२४-२६ चउभंगो एवं संकप्पे जाव परक्कमे
४।२७-३३ चक्खुदंसणे जाव केवलदसणे
८.३८ चिण जाव णिज्जरा
७।१५३ चित्तविचित्तपक्खगं जाव पडिबुद्धे
१०११०३ चूल्ल हिमवंते जाव मंदरे
७१५५ जधा सालीणं जाव केवतितं
५।२०६ जह पंचट्ठाणे जाव परिहरणोवघाते
१०१८४ जहा दोच्चा णवरं दीहेणं परितातेणं ४११ जहेव सत्थियाओ
२।३०,३१ जाणइ जाव हे
५७७ जाणइ (ति) जाव हेउणा
५७६,७८ जाणइ जाव अहेउ
५१७६,८१ जाणति जाव अहेउणा
५८०,८२ जातिणामणिहत्ताउते जाव अणुभाग० ६।११७ जातिसंपण्णे जाव रूवसंपण्णे
४।२२६ जायमाणेहि जाव तं चेव
३८१ जाव केवलणाणंउप्पाडेज्जा
२०६४-७३ जाव चउरिदियाणं
१२।१५७,१५८ जाव दवा
२।१४६-१५० जिणे जाव सव्वभावेणं जीवणिकाएहिं जाव अभिभव इ
३३५२३
४।२४-३३
४।२-४ ४।५-११
७७६ ३१५४० १०।१०३
७१५१ ३।१२५ ५।१३१
४१ २०२८ ५७५ ५७५ ५७५ ५७५ ६।११६ ४।२२६
३७६
२०४२-५१ १११५८,२।१५६ २।१४०-१४४
५।१६५ ३३५२३
६१४
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________________
२९
ठाणं वा जाव णातिक्कमंति
५।१०७ ठाणाइं जाव अब्भणुण्णायाई
५।३७-४२ ठाणाइजाव भवंति
५।४२,४३ ठाणेहिं जाव णातिक्कमंति
५.१०७ ठाणेहिं जाव धरेज्जा
५।१०३ ठाणेहिं जाव णो खंभातेज्जा
५।२२ ठाणेहिं जाव णो धरेज्जा
५१०४ णगरंसि वा जाव रायहाणिसि
५।१०७ णग्गभावं जाव लद्धावलद्धवित्ती
६।६२ णमसामि जाव पज्जुवासामि
३१३६२ णाणत्तं जाव विउव्वित्ता
७।२ णासि जाव णिच्चे
५१७४ णिक्कंखिए जाव परिस्सहे
३१५२४ णिग्गंथीण वा जाव णो समुप्प.
४।२५४ णिग्गंथीण वा जाव समुप्प०
४।२५५ णिग्गंथे जाव णातिक्कम
५।१०२ णियमं जाव पगरेंति
६।१२२ णिस्संकिते जाव णो कलुससमावण्णे ३१५२४ णिस्संकिते जाव परिस्सहे.
३१५२४ णेरइयत्ताए वा जाव देवत्ताए
४।६१४ णेरइया जाव देवा
५।२०८ रतिआउते जाव देवाउते
४।२८६ णेरतिते जाव णो चेव
४।५८ णेरतियणिव्वत्तिते जाव देवणिव्वत्तिते ७।१५३ णेरतिय भवे जाव देवभवे
४।२८७ रतियसंसारे जाव देवसंसारे
४।२८५ णो आलोएज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा ३।३४०८।१० णो आसाएति जाव अभिलसति
४।४५१ णो चेव णं जाव करिस्सति
४/५१४ णो पडिक्कमेज्जा जाव णो पडिवज्जेज्जा ६।३३९८९ णो महिड्दिए जाव णो चिरट्ठितिते ८।१० णो महिड्डिएसु जाव णो दूरंगतितेसु ८.१० तं चेव
४।२३८ तं चेव
४।२३६
५।१०७ ५।३४
५१३४ ५।१०७ ५१०३
५।२२
५११०४ आयारचूला १२८
६।६२ ३।३६२
७।२ ५११७० ३१५२४ ४।२५४ ४।२५५ ५।१०२ ६।११६ ३१५२३ ३१५२४ ४।६१४ ४.६०८ ४१६०८
४।५८ ७७१ ४।६०८ ४।६०८ ३।३३८ ४।४५० ४।५१४
८।१० २।२७१
४।२३०
४।२३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
४।२४० १०।१४० ५।११२ ५।१०७
तं चेव जाव संकिण्णे
४।२४० तं चेव विवरीतं जाव मणुण्णा फासा १०।१४१ तंजहा जाव मिच्छादसणवत्तिया
५।११३ तत्थेगओ जाव णातिक्कमति
५।१०७ तयक्खायसमाणे जाव सारक्खायसमाणे ४१५६ तलवर जाव अण्णमण्णं
६।६२ तहेव
४।४२८ तहेव
४/५६३ तहेव
४१५६४ तहेव चउभंगो
४।४ तहेव चत्तारिगमा
४।४२६ तहेव जाव अवहरति
५७३,७४ तहेव जाव पणते
४।२ तहेव जाव हलिद्द०
४।२८४ तित्ता जाव मधुरा
५१४,३३ तित्ते जाव मधु (हु) रे
५।२६,२२८ तिरियगती जाव सिद्धिगती
८.५५ दरिसणावरणिज्जे कम्मे एवं चेव
२।४२५ दिणयरं जाव पडिबुद्धे
१०।१०३ दुब्भिक्खंसि वा जाव महता
५९६ दुस्समदुस्समा जाव एगा
१११३६-१३६ ढुस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा
६।२४ देवलोगे [ए] सु जाव अणज्झोववणे ३१३६२,४।४३४ दो अहाओ एवं भाणियव्वं-- संगहणी-गाहा कत्तिया रोहिणिमगसिर 'अद्दा य" पुणव्वसू अ पूसो य । ततोऽवि' अस्सलेसा महा य दो फग्गुणीओ य ॥१॥ हत्थो चित्ता साई विसाहा तह य होति अणुराहा। जेट्टा मूलो पुव्वाऽऽसाढा तह उत्तरा चेव ॥२॥
६।६२ ४१४२६ ४।५६३ ५१५९४
४१४ ४।४२६ ५७३
४।२ ४।२८४,२८२
११७६-८१
५४
५।१७५ २।४२४ १०।१०३
५२६८
वृत्ति १।१३६-१३६
१. कत्तिय (कग)। २. अदाओ (क, ग)। ३. तत्तो य (क, ग)। ४. साई य (क, ख, ग)।
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३१
संगहणीगाहा
वृत्ति चंद० १०।११
५।१६५
६।४
ভাও;
८।२५ १०।१०३
६।६२ ६।६२ ३।३३८
अभिई सवणे धणिट्ठा, सयमिसया दो य होंति भद्दवया । रेवति अस्सिणि भरणी, णेयव्वा अणुपुवीए ॥३॥ एवं गाहाण सारेणं णेयव्वं जाव दो भरणीओ। २।३२३ दोसे जाव एगे
१११०२-१०४ धणिट्ठा जाव भरणी
६।१६ धम्मत्थिकांतं जाव परमाणपोग्गलं
५।१६५ धम्मत्थिकातं जाव सदं
६१४ धम्मत्थिकायं जाव गंध
७७८,८२५ धम्मत्थिगातं जाव वातं
१०।१०६ पउमसरं जाव पडिबुद्धे
१०।१०३ पचमहव्वतितं जाव अचेलगं
६।६२ पंचाणुव्वतितं जाव सावगधम्म
६।६२ पडिक्कमज्जा जाव पडिवज्जेज्जा
३।३४१ पढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए जाव पंचिंदियणिव्वत्तिए
१०।१७३ पढमसमयणेरतितणिव्वत्तिते जाव अपढम० ८.१२६ पणगसुहुमे जाव सिणेहसुहुमे
१०।२४ पण्णवेति जाव उवदंसेति
१०११०३ पण्णवेहिति..........
६।६२ पमिलायति जाव जोणी
७।१० पमिलायति जाव तेण परं
५।२०६ पम्हकूडे जाव सोमणसे
१०।१४५ पम्हे जाव सलिलावती
८७१ परिताले जाव पूतासक्कारे पल्लाउत्ताणं जाव पिहियाणं
७६० पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमण १।११०-११२ पाणातिवाए जाव एगे
११६२-६४ पाणातिवातवेरमणे जाव परिग्गह०
५।१७,१२६ पाणातिवाते जाव परिग्गहे
१०।१४ पाणातिवातेणं जाव परिग्गहेणं
५।१६,१२८ पाणातिवायाओ जाव सव्वातो
५।१ पातीणाते जाव अधाते
६।३८ पायत्ताणिते जाव उसभाणिते
५।६४
१०।१५२ ८.१०५
८.३५ १०।१०३
६।६२ ३।१२५
३।१२५ ५।१५०,१५१
२।३४०
६।३२ ३।१२५ १०११३ १०।१३ १०११३ १०११३ १०।१३ १०११३ ६।३७
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--------------------------------------------------------------------------
________________
५४५८ ७।१३४
५१५७ ७।१३२ ७७३ ६७ ६७
६८ ६।१२
७
६।१२८
७७३
६७२ ६।६,८ ४७;१०११५३ ७।८३ ५।१४१ ७८४
६९
पायत्ताणिते जाव रधाणिते पावते जाव भूताभिसंकणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव तस० पुढविकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो पुढविकाइएत्ताए जाव पंचिंदियत्ताए पुढविकाइएत्ताए वा जाव पंचिंदियत्ताते पुडविकाइयणिव्वत्तिमे जाव तस० पुढविकाइयणिव्वत्तिते जाव पंचिदियणिव्वत्तिते पुढविकाइया जाव तसकाइया पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया पुढविकातितअसंजने जाव तस० पुढविकातितअसंजमे जाव वणस्सति० पुढविकातितआरंभे जाव अजीव० पुढविकातितत्ताते वा जाव तस० पुढविकातितसंजमे जाव तस० पुढविकातित [य] संजमे जाव वणस्सति० पुप्फए जाव विमलवरे पुरिसे जाव अवहरति पुव्वासाढा एवं चेव पोतगत्ताते वा जाव उब्भिगताते पोतगत्ताते वा जाव उववातितत्ताते पोतगा जाव उब्भिगा पोतजेहिंतो वा जाव उब्भिगेहितो पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहितो फरिस जाव गंधाई फुसित्ता जाव विकुव्वित्ता बहुमीहति जाव असंदिद्धमीहति बेइंदिया जाव पंचिंदिया बेंदिता जाव पंचेंदिता भरहे जाव महाविदेहे भवति जाव फासामतेणं भवित्ता जावं पव्वइए [तिते] भवित्ता जाव पव्वयाहिति
६७ ७७३ ७७३ ७७३ ७७३ ७८२ ७७३ ७७३ ७७३ ८।१०३ ५७३ ४१६५४
७१३ ८२
७८२ ५।१४०,१०८ १०।१५० ५।७४ ४।६५५
७४
८.३
७१३
८२ ७४ ८३
७१३
८२
१०७
७।२
१०७ ७२ ६।६२ ६७ १०।१५३ ७१५४ ६।८२ ३१५३२,४।१,४५०:५९७६।६२ ६।६२
६।६१ ६।११ ६।११ ७.५० ६।८१ ३१५२३ ३३५२३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३१५२३
भवेत्ता जाव पव्वतिता भाषासमिती जाव पारिद्रावणियासमिती भिण्णे जाव अपरिस्साई मंडुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा मणअपडिलंलीणे जाव इंदिय० मण दुप्पणिहाणे जाव उवकरण मणसुप्पणि हाणे जाव उवगरण० मणुस्सजाति पुच्छा मणुस्साणं वि एवं चेव मणस्सा भाणियव्वा
१०१२८ ५।२०३ ४१५६५ ४।५१४ ४।१६३ ४।१०६ ४।१०५ ४१५१४ २११६० ४।३२३,३२४,३२५,३२६
८.१७ ४।५६५ ४।५१४ ४।१६२ ४।१०४ ४११०४ ४।५१४
२।१५६ ४।३२२,३२३, ३२४,६२५,३२६
२।४११ ५।३४ ८।१० ८।१० २।२७१
वृत्ति सुय०१२।२७
७२
मरणाई जाव णो णिच्चं महावीरेणं जाव अब्भणण्णायाई महिड्डिए जाव चिरट्ठितिते महिड्डिएसु जाव चिरट्ठितिएसु महिड्डियं जाव महासोक्खं महिड्डिया जाव महासोक्खा माताति वा जाव सुण्हाति माहणस्स वा जाव समुप्पज्जति मुंडा जाव पव्वतिता मुंडे जाव पव्वइए [तिते] मुच्छिते जाव अज्झोववण्णे मुत्ते जाव सव्वदुक्ख० मुसावाते जाव परिग्गहे रत्ताओ जाव अट्ठ उसभकूडा रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा रूवा जाव मणुण्णा लोगविजओ जाव उवहाणसुयं वंजण जाव सुरूवं बंदामि जाव पज्जुवासामि बंशीमूलकेतणासमाणा जाव अवलेह०
२।४१३ ५॥३५ ८।१० ८.१० ५२१ २।२७१९६१ ३।३६२,४१४३४ ७२ ५२३४ ४/४५०,४५१,६७६,१०४ ३।३६१ ११२४६ हा२६ ८८४ ८।१०८ ७।१४३ ६२ ६।६२ ४।४३४ ४।२८२
३१५२३ ३३५२३
वृत्ति
१०।१३ ८८२ ७।२४ ५१५
वृत्ति
ओ०सू० १४३
३।३६२ ४।२८२
स्थानाङ्गवृत्ती-'पिपा इ वा भज्जा इ वा भाया इ वा भगिणी इ वा पुत्ता इ वा धूया इवे ति यावच्छब्दाक्षेपः (पन्न १३४) । 'भाया इ वा मज्जा इ वा भदणी इ वा पुत्ता इ वा धूया इवे' त्ति यावच्छताक्षेपः (पन्न २३३)।
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________________
':४११
१०१८ ५।१३३
६।६२ ५।१५२,१५३ ओ०सू० १४४
२।३४१ है।४३
३१५२३
४१
४।१
४।४५० २।३८०-३८३
७२७
वणियाइं जाव अब्भणुण्णायाई
२१४१४ वणस्सतिकातितअसंजामे जाव अजीवकाय० १०६ वदमाणे जाव विवक्कतव०
५।१३४ वसित्ता जाव पव्वाहिती
४६२ विज्जुप्पभे जाव गंधमातणे
१०।१४६ वीइक्कते जाव बारसाहे
६।६२ वेजयंति जाव अउज्झा
८७६ वेयड्डा....
81५३ वेरमणं जाव सव्वतो
४।१३७ संकिते जाव कलुसमावण्णे
३१५२३ संजमबहुले जाव तस्स णं संवच्छराई जाव बावत्तरिवासाई
६।६२ संवरबहले जाव उवहाणवं
४।१ संवाहण जाव गातु
४।४५० सक्के जाव सहस्सारे
८१०२ सत्त भयट्ठाणा पं तं
है।६२ सदं सुणेत्ताणामेगे सुमणे भवति ३ एवं सूणमीति'३ एवं सूणेस्सामीति ३ एवं असुणेत्ताणामेगे सु ३ ण सुणमीति ३ ण सुणिस्सामीति
३।२८५-२६० सद्द जाव अवहरिंसु
१०१७ सद्द जाव अवहरिस्सति
१०७ सद्द जाव उवहरिंसु
१०१७ सद्द जाव उवहरिस्सति
१०७ सद्द जाव गंधाई
१०७ सद्दहति जाव णो से
३१५२३ सद्दा जाव फासा
५।१२-१५,१२५-१२७ सद्दा जाव वतिदुहता
७।१४४ सद्देहि जाव फासेहिं
५।६,११ सभासुहम्मा जाव ववसातसभा
५२२३६ समणस्स जाव समुप्पज्जति समणेणं जाव अब्भणुण्णायाई सव्वरयणा जाव पडिबुद्धे
१०।१०३ १. सुणेमाणे (ख); सुणेमीति (ग)।
३११८९-१९४
१०७ १०७
१०७ १०७ ३।५२३
७।१४३
७२
५।२३५
७.२
५१३४ १०।१०३
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________________
३५
११२४८ ४।४५१ ५७३ ५७४ श७३,७४ ७१५७
ज०२ ४।४५१ ५।७२ ५७३ ५७३ ७१५३ ४।१
४१
४।१
४।१
४१
सव्वदीवसमुद्दाणं जाव अद्धंगुलगं सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स सहिस्संति जाव अहियासिस्संति सहेज्जा जाव अहियासेज्जा सिंधू जाव रत्तावती सिज्झति जाव मंतं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाण सिज्झिहिंति जाव अंतं सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाण. सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाण सिद्धसुग्गता जाव सुकुल. सिद्धाइं जाव सव्वदुक्ख० सिद्धाओ जाव सव्वदुक्ख० सिद्धे जाव प्पहीणे सिद्धे जाव सव्वदुक्ख० सुंबकडसमाणे जाव कंबलकड० सुक्किलपक्खगं जाव पडिबुद्धे सुभाते जाव आणुगामियत्ताए सुमिणे जाव पडिबुद्धे सुवच्छे जाव मंगलावती सुवप्पे जाव गंधिलावती सुसमसुसमा जाव एगा सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा से जहाणामते....... सेलथंभसमाणे जाव तिणिस० सेसं जहा पंचट्ठाणे एवं जाव अच्चुतस्स वि णेतव्वं सेसं तं चेव जाव करिस्संति सेसं तहेव जाव भवणगिहेसु सेसं तहेव जाव भासं
४१ ६।६१ ६।६२
६२ ४१४१ ८।३६ ८.५३ १०७५,७६,७८,७६ ६।१०६ ४।५४६ १०।१०३
४।१ ४।१३६ ११२४६ १।२४६ ११२४६ ११२४६
४१५४६ १०।१०३
५।१२ १०११०३ २०३२६ २।३२६
१०११०३ ८.७० ८७२ १२१२६-१३२ ६।२३ ६।६२ ४।२८३
वृत्ति
१।१२६-१३२
६।६२ ४।२८३
७।१२१,१२२ ४।५१४ ५।२२ १०।१५६
५॥६६,६७ ४१५१४
५२२ १०।१५४
१. वत्तो अस्य पाठस्य पूति निम्नप्रकारा विद्यते-यावदुग्रहणादेव सूत्रं द्रष्टव्यम्-सव्वभंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापुयसंठाणसंठिए एगें जोयण सयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयणसयसहस्साई सोलससहस्साई दोन्नि सयाई सत्तावीसाई तिन्नि कोसा अट्टावीसं धणुसयं तेरस अंगलाई (पन ३३)।
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________________
सोइंदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोइंदियत्थोग्गहे जाव णोइंदिय० सोइंदियपडिसंलीणे जाव फासिं दिय० सोइंदियसंवरे जाव फासिंदिय ० सोतिदितअसंवरे जाव सूचीकुसग्ग० सोतिदितबले जाव फासिदितबले सोतिदितमुंडे जाव फासिदित. सोतिदियअपडिसंलीणे जाव फासिदिय० सोतिंदियअसंजमे जाव फासिदिय० सोतिंदियअसंवरे जाव कायअसंवरे सोतिदियअसंवरे जाव फासिदिय० सोतिदियअसाते जाव णोइंदियअसाते सोतिंदियत्थे जाव फासिदियत्थे सोतिंदियमुंडे जाव फासिदिय० सोतिंदियसंजमे जाव फासिदिय० सोतिंदियसंवरे जाव फासिंदिया सोतिंदियसाते जाव णोइंदियसाते सोहम्मे जाव सहस्सारे हरिवेरुलित जाव पडिबुद्धे हव्वमागच्छति........... हिताते जाव आणुगामित[य]त्ताते हिरण्णगोलसमाणे जाव वइरगोल. हेमवए"
६।१४ ६।१८ ५।१३५ ८.११ १०।११ १०१८८ १०१६६ ५।१३६ ५।१४३ ८।१२ ५।१३८,६।१६ ६।१८ ५।१७६ ५।१७७ ५।१४२ ५।१३७,६।१५,१०।१० ६१७ ८।१०१:१०११४८ १०११०३ ३८० ३१५२४६।३३ ४१५४७ ३।६३
पण्ण० १५॥१ समवायाओ २८३
पण्ण० १५१ पण्ण० १५१
१०।१० पण्ण० १५१ पण्ण० १५१ पण्ण० १५१ पण्ण० १५०१
८।११ पण्ण० १५१
६।१४ पण्ण० १५११ पण्ण० १५॥१ पण्ण० १५१ पण्ण० १५१
६.१४ २०३८०-३८४ १०।१०३
३७६ ३३५२३ ४१५४७ ६।८३
समवाओ
अक्खराइं जाव एवं चरण अक्खरा जाव एवं चरण अक्खरा जाव चरण-करण अक्खराणि जाव एवं चरण अक्खराणि जाव सेत्तं
'प०६५ प०६६ प० ६१,६४ प० ६७,६६ प०६२
१. पइण्णगसमवाय-सूत्न ।
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________________
प० ८६
१६५ अ० सू० २२७
प० ८६ प० ८६ प० ८६
प०६१ अ० सू० २२७
वृत्ति
प० १०१,१०२
वृत्ति
वृत्ति
अखरा तं चेव जाव परित्ता
प०१० अगाराओ जाव पव्वइए
६७४ अजित ज व वद्धमाणे
२४।१;प० २२२ अणंतागमा जाव चरण-करण
प०६८ अणंतागमा जाव सासया
प०६३ अगुओगदारा जाव संखेज्जाओ
प०६४,६५,९८,६६,१३१ अणुओगदारा संखेज्जाओ
प०६७ अभिणंदण जाव पास
२३।३,४ अयले जाव रामे
प० २४१ अवसेसाई परिकम्माई पाढाइयाई एक्कारसविहाइं पण्णताई
प० १०४-१०८ अस्सगीवे जाव जरासंधे
प० २४६ अहासुत्तं जाव आराहिया
४६।१६४।१८१।११००१ आधविज्जति जाव उवदंसिज्जंति
प०६० आघविज्जति जाव एवं
प०६३ आघविज्जति जाव नाया०
प०६४ आघविज्जति
प० ६०,६१,६३-६६,१३१ आहारय जह देसूणारयणि उ पडिपुण्णारयणी प० १६६ आहारयसरीरे समचउरंससंठाण सठिते प० १६५ उववाएणं
प० १८३ एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियवाणि जहा नंदीए
८८२ एवं गतिनाम''ओगाहणानाम
प० १७६ एवं चउदिसिपि नेयव्वं
५८।४ एवं चउसुवि दिसासु नेयव्वं
८८४,५,६ एवं चेव दोमासिया आरोवणा सपंचराय दोमासिया आरोवणा एवं तेमासिया आरोवणा एवं चउमासिया आरोवणा २८१ एवं चेव मंदरस्स
८७४
प० ८६
प० ८६ वृत्ति; प० ८६
प० ८६ पण्ण० २१ पण्ण० २१ पण्ण०६
नंदी १०२
प० १७६ ५८।३,५२।३
८८३
२८१ ८७११
१. वृत्तौ किञ्चिद् भेदेन लभ्यते, यथा -६४।१ यावत्करणात् 'महाकप्पं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया सम्म आणाए पाराहियावि भवति । ८१1१ 'जाव' त्तिकरणाद्यथाकल्पं यथामार्ग यथातत्त्व समग्य
कायेन स्पृष्टा पालिता शोभिता तीरिता कीर्तिता आज्ञयाऽऽराधितेति । २. नायव्यं (क); नातव्वं (ख, ग)।
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________________
एवं जइ मणुस्स कि गम्भवक्कंतिय समुच्छिम गो गम्भवक्कतिय णो संमुच्छिम जइ गम्भ वक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग णो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग कि संवेज्जवासाज्य असंखेज्जवासाठय गो संखेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जद संवेज्जवासाउय कि पज्जत्तय अपज्जत्तय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ को सम्मदिट्टि नो मिच्छदिति नो सम्मामिच्छदिट्टि जय सम्मविट्टि कि संजतं असंजत संजता संजय गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं पमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो पमत्तसंजय णो अपमतसं जइ पमतसंजय कि डिपत्त क्षणिपित्त गोपित मो अनिपित्त वयणावि भतिपस्या
एवं मेरे वि अज्जम्मे
एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे
एवं दिवसोऽवि नायव्वो
एवं पणू नालिया जुगे अनले मुसले वि एवं पंचवि
एवं पंचवि इंदिया
एवं पंचवि रसा
एवं
पविणा एवि
एवं मंदरस्त पच्चत्विमिल्तिाओं परिमंताओ
संखस्स पुरथिमिले च एवं माणे माया लोभे
एवं संतिस्तवि
एवं सगरे वि राया चाउरंतचक्कवट्टी
एकसरि पुब्ब जाव पव्वदए कंतं वण्णं ले जाव गंदुत्तरवडेंसगं
कालगए जाव सब्वदुरखप्पहीने
कालगाई जोव सव्यदुक्त० कीयं 'आहट्टु जाव अभिक्खणं
३८
प० १६४
१००१५
KIR
१२६
६६।४-८
२७॥१
२५।१
२२।६
प० १३२
८७।३
१६।२:२१।२
६०१३
७१.४
१५।१३
८६।२
प० ६३
२१।१
१० १६४
१००/४
CTR
१२ ब
६६।३
५।२
पण्ण० १५।१
ठा० १७८-८२
प० १३२
८७।१
अस्य पूतिः अत्रैव
१०/२
७१।३
३।२१
=218
६१।१
दसा० २
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________________
३६
कोहविवेगे जाव लोभ
२७।१ चउरंसा जाव असुभा
प० १४१ जातिनाम जाव ओगाहणानाम
प०१७७ जुवे जाव माउया
प० २४५ णितिया जाव णिच्चा
प० १३३ ताइं चेव माउया पयाणि जाव नंदावत्तं प० १०३ तिविठ्ठ य जाव कण्हे
प० २४१ धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए
प० १३७ नेरइया०
प० १७३ पज्जत्तगाणं०
प० १५५ पडिसत्तू जाव सचक्केहि
प० २४६ पढभाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु १५३ पम्हलेसं जाव पम्हुत्तरवडेंसगं
६।१७ परूवेई जाव से णं
प०६६ पुढवीकायसंजमे एवं जाव कायसंजमे १७१२ बलिस्स णं.......
१७१८ बुद्धे.........
१२।२ बुद्धे जाव प्पहीणे
५५।१,४,७२।३,८४१२,६५१४;प० ४० बुद्धे जाव सव्वदुक्ख०
३०१२,५११४;प०६१ बे ते चउ पंच
प० १६७ भद्दवए णं मासे कित्तिए णं पोसे णं फग्गुणे णं वइसाहे णं मासे भवित्ता जाव पव्वइए
७१।३,७५०२ भवित्ता णं जाव पव्वइए
८३३४ भविस्सइ य जाव अवट्टिए
प० १३३ भूयाणंदे जाव घोसे
३२२ महुरा जाव हत्थिणपुरं
प० २४४ मुंडे जाव पव्वइए
५६२ मुंडे जाव पव्वइया
७७।२ मुसावायाओ जाव सव्वाओ रुइल्लप्पभं जाव रुइल्लुत्तरवडेंसग
हा१७ लोगप्पभं जाव लोगुत्तरवडेंसगं
१३।१४ वइरावत्तं जाव वइरुत्तरवडेंसगं
१३।१४ वायणा जाव अंगठ्ठयाए
प०६३
४।१
वृत्ति प० १७६
वृत्ति प० १३३ प० १०२
वृत्ति पण्ण०१ पण्ण० ३५ प० १५४
वृत्ति केवलं संख्यापूरिता
३।२१ प०६५
१७१ ठा० ४।१५१
४२११ ४२।१
४२११ प० १६७
२६।३-७
२६२ १६०५
१६५
प० १३३ ठा० २।३५५-३६१
वृत्ति १६५
१६.५
५।६ ३।२१ ३।२१
३।२१ प०६१
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________________
वायणा जाव संखेज्जा
वायणा जाव से णं विजया एवं चेव जाव वासुदेवा वीइक्कंते जाय सव्वदुक्खप्पहीणे
सकुमारे जाव पाणए
सत्तमाए णं पुढवीए पुच्छा
सवणी जाब भरणी
सिज्भिस्संति जाव अंतं
सिस्सिति जाव सब्वदुक्खाण
सिद्धाई जाव प्पहीणाई सिद्धे जाव प्पहीणे
सिद्धे जाव सव्वदुक्ख • सुज्जतं जाव सुज्जुत्तरवर्ड सगं सेवण्या [सेविता] जाव सायासोक्व० सेहस्स जाव सेहे राइणियस्स सोइदियधारणा जाव णोदियपारणा सोइ दियनिम्गहे जाव फासिदिय० सोतिदिवईहा जान फासिंदिया सोति दयावा जाव णोइंदियावाते हंता गोयमा !
४०
प० ६१
प० ६२
६८।४-६
८ह १
३२।२
प० १४३
१६
५।२२; ७१२३६११६१०१२५
१३ । १७,१५ । १६; १६।१६ ३।२४;४।१५; ६।१७; २०;११।१६; १२/२०१४ | १८; १७।२१; १८१८; १६।१५:२०।१७:२१।१४; २२।१७; २३।१३; २४।१५:२५ १८२६।११; २७ १५; २८ । १५; २६ १८; ३०।१६; ३१।१४, ३२।१४:३३।१४
४४।२
७२।४;७३।२;७४।१; ७८|२; ८३ । ३;
८४ ४९५५ १०० १४
४२।१
१।१७
हार
३२।१
२८/३
२७।१
२८/३
२८३
प० १७५
-देन लभ्यते यथा
४२ ।१ जातिकरणात् 'बुद्धे मुत्ते अंतगड परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे' त्ति दृश्यम् ।
४४२ जातिकरण 'बुढाई मुताई' अंतयबाई' सम्बदुख पहीलाई 'ति दृश्यम् । किरण अंतरा सिद्धे बुद्धे मुझे' ति दृश्यम् ।
प० ८६
प० ६१
६८।१-३ जं० २
ठा० २।३८१-३८४
प० १४१ चंद० १०।११
१४६
१४६
४२।१
જા
वृत्ति'
३।२१
६।१
दसा० ३
२८/३
२८३
२०१३
२८/३
प० १७५
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परिशिष्ट २
आलोच्य पाठ तथा वाचनान्तर
आलोच्य पाठ
परियावेणं [आया २२, पृ० १७ ]
यद्यपि चूर्णो वृत्तौ च 'परियावेणं' इति पाठो व्याख्यातोऽस्ति, आदर्शेष्वपि एष एव पाठो लभ्यते । तथापि 'माया मे, पिया मे' इत्यादि पदानां अर्थप्रसंगतया 'परियारेणं' इति पाठस्य परिकल्पना सहजमेव जायते । प्राचीनलिप्यां रकारवकारयोः सादृश्यात् एतत् परिवर्तनं नास्वाभाविकमस्ति ।
मानवा [आया ५६३, पृ० ४३ ]
वृत्तिकृता 'मानवा' मनुजाः इति विवृतम् । चूर्णिकृता च नैतत् पदं विवृतम् । किन्तु ' एवं थंभे मायाए वि लोभे वि जोएयव्वं' इति निर्देशः कृतः । तेन 'माणवा' इति पदस्य स्थाने 'माणओ' इति पाठस्य परिकल्पना जायते ।
अचिरं [आया
२०, पृ० ७१]
चूर्णो वृत्तौ च 'अचिरं पदं स्थानार्थे व्याख्यातमस्ति । यद्येतत् स्थानावाची स्यात् तदा 'अइर' मिति पाठ: संगच्छते । 'अजिरं प्रांगणम्' इति तस्यार्थो भवेत् । 'अइर' इति अतिरोहितार्थवाची देशीशब्दोपि विद्यते । केनापि कारणेन इकारस्य चकारो जात इति प्रतीयते । अथवा चूर्णिकारेण वैकल्पिकरूपेण कालार्थे अचिरशब्दस्य प्रयोगो निर्दिष्टः, सोपि युक्तः स्यात् । एस खलु भगवया सेज्जाए अक्खाए [आयारचूला १।२६, पृ० ६० ]
आयारचूलाया: पाठ- संशोधने षड् आदर्शाः प्रयुक्ताः, चूर्णिवृत्तिश्च । तत्र पञ्चादशेषु उक्त पाठस्य ये पाठ-भेदास्ते तत्रैव पादटिप्पणे प्रदर्शिताः सन्ति । वृत्ती ( पत्र ३०० ) 'एस विलुंगयामो सेज्जाए' इति पाठो व्याख्यातोस्ति - " गृहस्थश्चानेनाभिसन्धानेन संस्कुर्याद्यथैष साधुः शय्यायाः संस्कारे विधातव्ये 'विलुंगयामो' त्ति निर्ग्रन्थः अकिञ्चन इत्यतः स गृहस्थः कारणे संयतो वा स्वयमेव संस्कारयेदिति ।" अस्माभिः 'घ' प्रत्यनुसारी पाठ: स्वीकृत: । चूर्णावपि (पू० ३३२) 'एस खलु भगवया' इति पाठो लभ्यते । 'सेज्जाए अक्खाए'
४१
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४२
अंत्र दोषशब्द: अध्याहर्तव्यः । वस्तुतः उक्तपाठः व्याख्यागतः प्रतीयते । 'संथरेज्जा' इति पाठस्यानन्तरं 'तम्हा से संजए' इत्यादि पाठः स्यात्तदानीमपि स खण्डितो न प्रतिभाति । वत्तिकृता उक्तपाठस्य या व्याख्या कृता, तथापि पूर्वानुमानस्य पुष्टिर्जायते । वृत्तिकारस्य सम्मुखे 'विलुंगयामो' पाठ आसीत् स केषुचिदेव आदर्शेषु उपलभ्यते, नतु सर्वेषु ।
कप्पस्स [पइण्णगसमवाय सू० २१५, पृ० ६४१]
अत्र 'कप्पस्स' इति पाठस्याशयो वृत्तिकृता कल्पभाष्यत्वेन सूचितः, वाचनान्तरे च पर्यषणाकल्पत्वेन सुचितः, यथा--'कप्पस्स समोसरणं नेयव्वं' ति इहावसरे कल्पभाष्यक्रमेण समवसरणवक्तव्यताऽध्येया, सा चावश्यकोक्ताया न व्यतिरिच्यते, वाचनान्तरे तु पर्युषणाकल्पोक्तक्रमेणेत्यभिहितम् (वृत्ति, पत्र १४४)।
पर्युषणाकल्पे समवस रणवक्तव्यता इत्थमस्ति--तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥२०१।।
से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ--समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ? समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे इंदभूई अणगारे गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाइ वातेइ, मज्झिमे अणगारे अग्गिभूई नामेणं गोयमे गोतेणं पंच समणसयाइवाएइ, कणीयसे अणगारे वाउभूई नामेणं गोयमे गोत्तेणं पंच समणसयाइ वाएइ, थेरे अज्ज वियत्ते भारदाये गोत्तेणं पंच समणसयाइवाएइ, थेरे अज्जसुहम्मे अग्गिवेसायणे गोतेगं पंच समणसयाइवाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिठे गोत्तेणं अधुट्ठाइ समणसयाई वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवगोत्तेणं अधुढाई समणसयाई वाएइ, थेरे अकंपिए गोयमे गोत्तेणं थेरे अयलभाया हारियायणे गोत्तेणं ते दुन्नि वि थेरा तिन्नि तिन्नि समणसयाई वाइंति, थेरे मेयज्जे थेरे य प्पभासे एए दोन्नि वि थेरा कोडिन्ना गोतेण तिन्नि तिन्नि समणसयाइं वाएंति, से एतेणं अटेण अज्जो ! एवं वच्चइ-समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा एक्कारस गणहरा होत्था ॥२०२॥
सव्वे एए समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्का रस वि गणहरा दुवालसंगिणो चोद्दसपुग्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्तिएणं अपाणएणं कालगया जाव सव्व दुक्खप्पहीणा। थेरे इंदभूई थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोन्नि वि परिनिव्वुया ॥२०३।।
जे इमे अज्जत्ताते समणा निग्गंथा विति एए णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना ।।२०४।। कल्पसूत्र, पृ० ६०,६१
प्रस्तुताङ्गस्य उपसंहारसूत्रे ऋषि-यति-मुनि-वंशानां वर्णनस्योल्लेखोस्ति । वृत्तिकृतास्य संबन्धः पर्युषणाकल्पगतसमवसरणप्रकरणेन सहयोजितः, यथा-गणधरव्यतिरिक्ताः शेषा जिनशिष्या ऋषयस्तद्वंशप्रतिपादकत्वादषिवंश इति च तत्प्रतिपादनं चात्र पर्यषणाकल्पस्य ऋषिवंशपर्यवसानस्य समवसरणप्रक्रमेण भणितत्त्वादत एव यतिवंशो मुनिवंशश्चैतदुच्यते, यतिमुनिशब्दयोः ऋषिपर्यायत्वात्। वृत्ति, पत्र १४७, १४८
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४३
पूर्वोक्तसमर्पणेन पर्युषणाकल्पस्य २०१ सूत्रात् २०४ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणं जायते, किन्तु वृत्तिकृता ऋषिवंशस्य यद् व्याख्यानं कृतं तेन २०१ सूत्रात् २२३ पर्यन्तानां सूत्राणां ग्रहणामावश्यकं भवति । अत्र महती समस्या वर्तते । यदि पुर्ववति समर्पणं मान्यं क्रियेत तदा ऋषिवंशस्य वर्णनं नान्यत्र क्वापि समुपलभ्यते । यदि च ऋषिवंशस्य वर्णनं समवसरणप्रक्रमेण सह संबध्यते तदा पूर्वोक्तसमर्पणस्याप्रयोजनीयता सिध्यति । वृत्तिकारेण नास्या असंगतेः कापि चर्चा कृता । किम रहस्यमिति निश्चयपूर्वकं वक्तुं न शक्यते, तथापि संभाव्यते समवसरणस्य संक्षेपीकरणसमये किंचित् परिवर्तनं जातम् ।
ऋषिवंशवर्णनम् -
समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अज्जम्मे थे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोते । थेरस्स णं अज्जसुहम्मस्स अग्गिवेसायणसगोत्तस्स अज्जजंबुनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते । थेरस्स णं अज्जजंबुनामस्स कासवगोत्तस्स अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायणसगोते । थेरस्स णं अज्जप्पभवस्स कच्चायणसगोत्तस्स अज्जसेज्जंभवे थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसेज्जंभवस्स मणगपिउणो वच्छसगोत्तस्स अज्जजसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगिया यणसगोते ॥ २०५ ॥
संखित्तवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया, तं० - थेरस्स णं अज्जजसभइस्स तुंगियायणसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा - थेरे अज्जसंभूयविजए माढरसगोते, थेरे अज्जभद्दबाहु पाइणसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोते । थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा - थेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोते थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्ठसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थे - सुट्टियसुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा वग्धावच्चसगोत्ता । थेराणं सुट्टियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदगाणं वग्धावच्चसगोत्ताणं अंतेवासी थेरे अज्जइददिन्ने कोसियगोत्ते । थेरस्स णं अज्जइददिन्नस्स को सियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते । थेरस्स णं अज्जसीह गिरिस्स जातिसरस्स को सियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयमसगोतस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले थेरे अज्जपोगिले थेरे अज्जजयंते थेरे अज्जतावसे । थेराओ अज्जनाइलाओ अज्जनाइला साहा निग्गया, थेराओ अज्जपोगिलाओ अज्जपोगिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताओ अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥ २०६॥
वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभद्दाओ परओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, तं जहा -थेरस्सणं अज्जजसभद्दस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं जहा - थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जभ बाहुस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्या, तं० थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोत्ते णं । थेरेहिंतो णं गोदासेहिंतो कासवगोत्तेहितो
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४४
एत्थ णं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्स ण इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहातामलित्तिया कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासी खब्बडिया ॥२०७।।
थेरस्स णं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा
नंदणभद्दे उवनंदभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे ।। थेरे य सुमिणभद्दे मणिभद्दे य पुन्नभद्दे य ॥१॥ थेरे य थूलभद्दे उज्जुमती जबुनामधेज्जे य ।
थेरे य दीहभद्दे थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥ थेरस्स णं अज्जसंभूइविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमाओ सत्त अंतेवासिणीओ अहावच्चाओ अभिन्नाताओ होत्था, तं जहा
जक्खा य जक्खदिन्ना भूया तह होइ भूयदिन्ना य ।
सेणा वेणा रणा भगिणीओ थूलभद्दस्स ॥१॥ ॥२०॥ थेरस्स णं अज्जथूलभद्दस्स गोयगोत्तस्स इमे दो थेरा अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहाथेरे अज्जमहागिरी एलावच्छसगोत्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्ठसगोत्ते । थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोत्तस्स इमे अट्ट थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं०-थेरे उत्तरे थेरे बलिस्सहे थेरे घणने थेरे सिरिड्ढे थेरे कोडिन्ने थेरे नागे थेरे नागमित्त थेरे छलए रोहगत्ते कोसिए गोत्तेणं। थेरेहितो णं छलुएहितो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगोत्तेहितो तत्थ णं तेरासिया निग्गया। थेरेहितो णं उत्तरबलिस्सहेहितो तत्थ णं उत्तरबलिस्सहगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तं जहा-कोसंबिया सोतित्तिया कोडवाणी चंदनागरी ॥२०६।।
थेरस्स णं अज्जसुहत्थिस्स वासिसगोत्तस्स इमे दुवालस थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं जहा
थेरे त्थ अज्जरोहण भद्दजसे मेहगणी य कामिड्ढी। सुट्ठियसुप्पडिबुद्धे रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते गणी य बंभे गणी य तह सोमे ।
दस दो य गणहरा खलु एए सीसा सुहत्थिस्स ॥२॥ ॥१०॥ थेरेहितो णं अज्जरोहणेहितो कासवगत्तेहितो तत्थ णं उद्देहगणे नामं गणे निग्गए । तस्सिमाओ चत्तारि साहाओ निग्गयाओ छच्च कुलाइएवमाहिज्जति । से कि तं साहाओ ? एवमाहिज्जंति-उदंबरिज्जिया मासपूरिया मतिपत्तिया सुवन्नपत्तिया, से तं सहाओ। से कि तं कुलाइ ? एवमाहिज्जति, तं जहा
पढमं च नागभूयं बीयं पुण सोमभूइयं होइ । अह उल्लगच्छ तइयं चउत्थयं हथिलिज्जं तु ॥१॥ पंचमगं नंदिज्जं छटुं पुण पारिहासियं होइ । उद्देहगणस्सेते छच्च कुला होति नायव्वा ॥२॥ ॥२११।।
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४५
थेरेहितो णं सिरिगुत्तेहितो णं हारियसगोत्तेहितो एस्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ सत्त य कुलाई एवमाहिज्जति । से कि तं साहातो? एवमाहिज्जति, तं जहा -- हारियमालागारी संकासिया गवेधूया वज्जनागरी, से तं साहाओ। से कि तं कुलाइं? एवमाहिज्जंति, तं जहा
पढमेत्थ वत्थलिज्ज बीयं पुण वीचिधम्मक होइ । तइयं पुण हालिज्जं चउत्थगं पूसमित्तेज्जं ॥१॥ पंचमगं मालिज्जं छद्रं पूण अज्जवेडयं होइ ।
सत्तमगं कण्हसह सत्त कुला चारणगणस्स ॥२॥ ॥२१२।। थेरेहितो भट्ट जसे हितो भारहायसगोत्तेहितो एत्थ णं उड़वाडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स माओ चत्तारि साहाओ तिन्नि कुलाई एवमाहिज्जति । से कि तं साहाओ ? एवमाहिज्जति. तं० - चंपिज्जिया भद्दिज्जिया काकंदिया मेहलिज्जिया, से तं साहाओ। से किं तं कूलाई ? एवमाहिज्जंति
भहज सियं तह भद्द गुत्तियं तइयं च होइ जसभई ।
एयाइं उड़वाडियगणस्स तिन्नेव य कुलाई॥१॥ ॥२१३॥ थेरेहितो णं कामिडिढहितो कुंडिलसगोत्तेहिंतो एत्थ णं वेसवाडियगणे नामं गणे निग्गए। तस्स णं इमाओ चत्तारि सहाओ चत्तारि कुलाइ एवमाहिज्जति । से किं तं साहाओ ? एव०सावत्थिया रज्जपालिया अन्तरिज्जिया खेम लिज्जिया, से तं साहाओ। से कि तं कुलाई? एव0
गणियं मेहिय कामड्ढियं च तह होइ इदपुरगौं च ।
एयाइवेसवाडियगणस्स चत्तारि उ कुलाई॥१॥ ॥२१४।। थेरोहतो णं इसिगोत्तेहितो णं काकंदएहितो वासिट्टसगोत्तेहितो एत्थ णं माणवगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ तिण्णि य कुलाइ एव० । से कि तं साहायो? साहाओ एवमाहिज्जति-कासविज्जिया गोयमिज्जिया वासिट्रिया सोरट्रिया, से तं साहाओ। से किं तं कुलाई ? २ एवमाहिज्जति, तं जहा
इसिगोत्तियऽत्थ पढम, बिइयं इसिदत्तियं मुणेयध्वं ।
तइयं च अभिजसंत तिन्नि कुला माणवगणस्स ॥१॥ ॥२१॥ थेरेहिंतो णं सुट्टियसुप्पडिबुद्धेहितो कोडियकाकदिएहितो वग्घावच्चसगोत्तेहिंतो एत्थ णं कोडियगणे नामं गणे निग्गए । तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ चत्तारि कुलाइएव० । से कि तं साहाओ ? २ एवमाहिज्जंति, तं जहा
उच्चानागरि विज्जाहरी य वइरी य मज्झिमिल्ला य ।
कोडियगणस्स एया, हवंति चत्तारि साहाओ ॥१॥ से किं तं कुलाइ ? २ एव० तं जहा
पढमेत्थ बंभलिज्जं बितियं नामेण वच्छलिज्ज तु । ततियं पुण वाणिज्ज चउत्थयं पन्नवाहणयं ॥१॥ ॥२१६।।
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थेराणं सुट्रियसुपडिबुद्धाणं कोडियकाकंदाणं वग्यावच्चसगोत्ताणं इमे पंच थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था तं जहा---थेरे अज्ज इंददिन्ने थेरे पियगंथे थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्ते ण थेरे इसिदत्ते थेरे अरहदत्ते। थेरेहितो णं पियगंथेहितो एत्थ णं मज्झिमा साहा निग्गया । थेरेहितो णं विज्जाहरगोवाले हितो तत्थ णं विज्जाहरी साहा निग्गया ॥२१७।।
थेरस्स णं अज्जइंददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्ज दिन्ने थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया वि होत्या, तं०-थेरे अज्जसंतिसेणिए माढरसगोते थेरे अज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते । थेरेहिंतो अज्जसंतिसेणिएहितो णं माढरसगोत्तेहितो एत्थ णं उच्चानागरी साहा निग्गया ॥२१८॥
थेरस्स ण अज्ससंतिसेणियस्स माढरसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं०-थेरे अज्जसेणिए थेरे अज्जतावसे थेरे अज्जकूबेरे थेरे अज्जकूबेरे थेरे अज्जइसिपालिते । थेरेहिनो णं अज्जसेणितेहितो एत्थ णं अज्जपेणिया साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जतावसेहितो एत्थ णं अज्जतावासी साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जकबेरेहिंतो एत्थ णं अज्जकुबेरा साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जइसिपालेहिंतो एत्थ णं अज्जइसिपालिया साहा निग्गया ॥२१॥
थेरस्स णं अज्जसीहगिरिस्स जातीसरस्स कोसियगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं०-थेरे धणगिरी थेरे अज्जवइरे थेरे अज्जसमिए थेरे अरहदिन्ने । थेरेहितो णं अज्जसमिएहितो एत्थ णं बंभदेवीया साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जवइरेहितो गोयमसगोत्तेहिंतो एत्थ णं अज्जवइरा साहा निग्गया ।।२२०॥
थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोत्तमसगोत्तमस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तं० ----थेरे अज्जवइरसेणिए थेरे अज्जपउमे थेरे अज्जरहे । थेरेहिंतो गं अज्जवहरसेणिहितो एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया । थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्जपउमा साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जरहेहितो एत्थ णं अज्जजयंती साहा निग्गया ॥२२१॥
थेरस्स णं अज्जरहस्स वच्छसगोत्तस्स अज्जपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते । थेरस्स णं अज्जपुसगिरिरस कोसियगोत्तस्स अज्जफरगुमिते थेरे अंतेवासी गोयमस गुत्ते ।।२२२॥
वंदामि फग्गुमितं च गोयपं धणगिरि च वासिढें । कोच्छि सिवभूइ पि य कोसिय दोज्जितकंटे य ॥१॥ तं वंदिऊण सिरसा चित्तं वंदामि कासवं गोत्त । णक्खं कासवगोत्तं रक्खं पि य कासवं वदे ।।२।। वंदामि अज्जनागं च गोयम जेहिलं च वासिदें। विण्हं माढरगोत्तं कालगमवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तभारं सप्पलयं तह य भइयं वंदे । थेरं च संघवालियकासवगोत्तं पणिवयामि ॥४॥ वंदामि अज्ज हत्थिं च कासवं खंतिसागरं धीरं । गिम्हाण पढममासे कालगयं चेतसुद्धस्स ॥५॥
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४७
वंदामि अज्जधम्म च सूव्वयं सीसलद्धिसंपन्न। जस्स निक्खमणे देवो छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥६॥ हत्थं कासवगोत्तं धम्म सिवसाहगं पणिवयामि । सीहं कासवगोत्तं धम्म पि य कासवं वंदे ॥७॥ सुतत्यरयणभरिए खमदममद्दवगुणेहिं संपन्ने । देविडिढखमासमणे
कासवगोत्ते पणिवयामि ॥८॥
॥२२३||
कल्पभाष्ये समवसरणवक्तव्यता--
गाथा ११७७-१२१७ बृहतुकल्पसूत्र, भाग २, पृ० ३६६-३७७ आवश्यकनियुक्तौ समवसरणवक्तव्यता-गा० ५४५-६५८ आवश्यकनियुक्तिमलयगिरीया वृत्ति, पत्र ३०१-३३६
वाचनान्तर [आयारचूला १५।३५ के पश्चात् प० २४०]
स्थानाङ्गसूत्रे महापद्मप्रकरणे (६।६२) वृत्तिकारप्रदर्शिते वाचनान्तरे "कंसपाईव मक्कतो जहा भावणाए जाव सुहुयहुयास गेतिव तेयसा जली" इति पाठे आयारचूलाया भावनाध्ययनस्य समर्पण सचितमस्ति। वृत्तिकृता श्रीमदभयदेवरिणाऽपि एत[ संवादि समल्लिखितम-"यथा भावनायामाचाराङ्गद्वितीयश्रुतस्कन्ध-पञ्चदशाध्ययने तथा अयं वर्णको वाच्य इति भावः, कियदरं यावदित्याह-'जाव सुहुये' त्यादि" (वृत्ति, पत्र ४४०) ।
औपपातिकसूत्रे (सूत्राङ्क २७, वृत्ति पृष्ठ ६६) “वक्ष्यमाणपदानां च भावनाध्ययनाद्युक्ते इमे संग्रहगाथे
कसे सखे जीवे, गयणे वाए य सारए सलिले। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारडे ।। कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे ।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए।" इति वृत्तिकृता भावनाध्ययनगतसंग्रहगाथयोः सूचनं कृतमस्ति ।
एतयोर्द्वयोः समर्पण-सूचनयोः सन्दर्भे भावनाध्ययनं दृष्टं तदा क्वापि समर्पितः पाठो नोपलल्वः । भावनाध्ययनस्य वृत्तिरत्यन्तं संक्षिप्ताऽसि, तत्र तस्य पाठस्य नास्ति कोपि संकेतः आदर्शषु चापि तस्यानपलब्धिरेव । चूर्णी उक्तपाठस्य व्याख्या समुपलब्धा तेनेति निर्णयः कर्तुं शक्यते--चणिव्याख्यातात पाठात् आदर्शतः पाठो भिन्नोस्ति । अयं वाचनाभेदः चूर्णिकारस्य समक्षमासीन्नवेति नानुमानं क किञ्चित् साधनं लभ्यते।
स्थानाङ्गस्य वाचनान्तर-पाठे भावनाध्ययनस्य समर्पणमस्ति तस्यं सम्बन्धः चण्यंनूसारीपाठेनव विद्यते, तथैव औपपातिकवृत्तेः सूचनस्यापि सम्बन्धस्तेनैव ।
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४८
स्थानाङ्ग महापद्मप्रकरणे एव स्वीकृतपाठेपि 'जहा भावणाते' इति समर्पणमस्ति । तस्यापि सम्बन्धश्चूर्ण्यनुसारिपाठेन विद्यते ।
आलोच्यमानपाठः किञ्चिद् भेदेनानेकेषु आगमेषु लभ्यते । तस्य तुलनात्मकमध्ययनमत्र प्रस्तूयते। आचाराङ्गचूर्णी पूर्णः पाठो विवृतो नास्ति । स. स्थानाङ्गस्य, कल्पसूत्रस्य, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः, आचाराङ्गचूर्णेश्च सम्बन्ध-समीक्षा-पूर्वकं संयोजितः । स च इत्थं सम्भाव्यते--
संयोजित पाठः
तए णं से भगवं अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए जाव गुत्तबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नसोते निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए संखो इव निरंगणे जीवो विव अप्पडिहयगई जच्चकणगं पिव जायरूवे आदरिसफलगे इव पागडभावे कुमो इव गुत्तिदिए पुखरपत्तं व निरुवले वे गमणमिव निरालंबणे अणिलो इव निरालए चंदो इव सोमलेसे सूरो इव दित्ततेए सागरो इव गंभीरे विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के मंदरो इव अप्पकंपे सारयसलिलं व सुद्धहियए खग्गविसाणं व एगजाए भारुडपक्खी व अप्पमत्ते कंजरो इव सोंडीरे वसभे इव जायत्थामे सीहो इव दुद्ध रिसे वसुंधरा इव सव्व भासविसहे सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलंते।
[कंसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पृक्खरपत्ते कूम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे ।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥] नस्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधे भवइ। से य पडिबंधे चउबिहे पण्णत्ते, तंजहा-- अंडए वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणुप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुतरेणं दसणेणं अणुतरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंतीए मुत्तीए सक्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोवचिय-फलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ।
तए णं से भगवं अरहे जिणे जाए केवली सव्दन्नू सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जेव जाणइ पासइ, तं जहा-आगति गतिं ठिति चयणं उववायं तक्कं मणोमाणसियं भुत्तं कर्ड परिसेवियं आवीकम्म रहोकम्म अरहा अरहस्स भागी, तं तं कालं मणसवयसकाएहि जोगेहिं वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सब्वभावे अजीवाण य जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।
तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुयासुरं लोग अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं पंचमहव्वयाई सभावणाई छजीवनिकाए धम्म अक्खाइ [देसमाणे विहरइ], तंज हा---पुढविकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए ।
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४६
स्नानाङ्ग (६२):
तस्स णं भगवंतस्स साइरेगाई दुवालसवासाई निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जिहिंति त दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते सव्वे सम्म सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्स इ अहियासिस्सइ।।
तए णं से भगवं अणगारे भविस्सइ इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंड
बेवासमा उच्चारपासवणखेलजल्लसिंधाणपारिट्रावणियासमिए, मणगूते, वयगृत्ते, कायगत्ते. गुत्ते, तिदिए गृत्तबंभयारी अममे अकिंचणे छिन्नगंथे [७० पा० किन्नगंथे] निरुपलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुययासणे तिव तेयसा जलंते ।
कसे संखे जीवे, गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कुंजर वसहे सीहे, नगराया चेव सागरमखोहे।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए ॥२॥ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधे भविस्सइ, सेय पडिबधे चउविहे पन्नत्ते, तंजहाअंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं जं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अणत्तरेणं नाणेण अणत्तरेण दंसणेणं अणत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं खंतिए मुत्तीए गुत्तोए सच्च-संजम-तव-गुण-सुचरिय-सोय-विय-[चिय?]-फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुतरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिहिति ।
तए णं से भगवं अरहे जिणे भविस्सति, केवली सव्वण्णसव्वदरिसी सदेवमणआसूरस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए सव्व जीवाणं आगई गति ठियं चयणं उववायं तक्क मणोमाणसियं भूत्तं कडं परिसेवियं आवीकम रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सव्वलोहे सबजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ ।।
तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदंसणेणं सदेवमणुआसुरं लोगं अभिसमिच्चा समणाणं निग्गंथाणं सरइए जाव पंचमहव्वयाई सभावणाई छजीवनिकाया धम्म देसेमाणे विहरिस्सति । कल्पसूत्र :
तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए इरियासभिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए, मणसमिए, वइसमिए, कायसमिए, मणगुत्ते, वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोभे, संते, पसंते, उवसंते परिनिव्वुडे, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगंथे निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडिहयगई ३, गगणं पिव निरालंबणे ४,
१. अस्य स्थाने से णं भगवं' युज्यते ।
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५०
वायुरिव अप्पडिबद्धे ५, सारयसलिलं व सुद्धहियए ६, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे ७, कुम्मो इव गुत्तिदिए ८, खग्गि विसाणं व एगजाए ६, विहग इव विप्पमुक्के १०, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते ११, कुंजरो इव सोंडीरे १२, वसभो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकंपे १५, सागरो इव गंभीरे १६, चंदो इव सोमलेसे १७, सूरो इव दित्तनेए १८, जच्चकणगं व जायरूवे १६, वसुंधरा इव सब्वभासविसहे २०, सुययासणो इव तेयसा जलते २१ । एतेसि पदाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहाओ
कंसे संखे जीवे, गगणे वायू य सरयसलिले य। पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारंडे ॥१॥ कंजरे बसभे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ।।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥ नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधो भवति । से य पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा--दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु । खेत्तओ णं गामे वा नगरे वा अरण्णे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । कालओ णं समए वा आवलियाए वा आणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालसंजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अब्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा। तस्स णं भगवंतस्स नो एवं भवइ।
से णं भगवं वासावासवज्ज अट्ट गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराईए वाचीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेठुकचणे समदुवखसुहे इहलोगपरलोगअपडिवद्ध जीवियमरणे रिवकंखे संसारपागामी कम्पसंगनिग्घायणट्टाए अब्भुट्ठिए एवं च णं विपरइ ।
तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेरेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुत्तरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं वीरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं महवेणं अणत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणुत्तराए मुत्तीए अणु त्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुट्ठीए अणत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचिरियसोवचइयफलपरिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणरस दुवालस संबच्छराइ' विइक्कंताई। तेरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पवखे वइसाहसुद्धे तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीए पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरिसीए अभिमिवट्टाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स बहिया उजवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्स चेईयस्स अदूरसामंते सामागस्स गाहावइस्स कट्रकरणंसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडुयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छठेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुन्ने केवलवरनाणदंसणे समुन्पने। '
तए णं से भगवं अरहा जाए जिणे केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणयासुररस लोगरस परियायं जाणइ पासइ, सव्वलोए सव्वजीवाणं आगई गई ठिइ चवणं उववायं तवक मणो
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माणसियं भुत्तं कडं पडिसेवियं आविकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे माणाणं सव्वलोए सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरइ ।
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष २ ( पत्र १४६ )
तणं से भगवं समणे जाए इरिआसमिए जाव परिद्वावणिआसमिए मणसमिए वयसमिए कायसमिए मगुत्ते जाव गुत्तबंभयारी अकोहे जाव अलोहे संते पसंते उवसंते परिणिबुडे छिण्ण सोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे जच्चकणगं व जायरूवे आदरिसपडिभागे इव पागडभावे कुम्मो इव गुतिदिए पुवखरपत्तमिव निरुवलेवे गगणमिव निरालंबणे अणिले इव णिरालए चंदो इव सोमदंसणे सूरो इव तेअंसी विहग इव अपडिबद्धगामी सागरो इव गंभीरे मंदरो इव अकंपे पुढवी विव सव्वासविस हे जीवो विव अप्पडियगइत्ति । णत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्धइ पडिबंधे, से बिंबे चव्विहे भवति, तंजहा - दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ, दव्वओ इह खलु माया मे माया में भगिणी में जाव संगंथसंधुआ मे हिरण्णं मे सुवण्णं मे जाव उवगरणं मे अहवा समासओ सचित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दब्वजाए सेवं तस्स ण भवइ, खित्तओ गामे वा नगरे वा अर वाखेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगणे वा एवं तस्स ण भवइ, कालओ थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोर वा पक्खे वा मासे वा उऊए वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा अन्नयरे वा दीहकाल
बंधे एवं तस्स ण भवइ, भावओ कोहे वा जाव लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स ण भवइ, से णं भगवं वासावासवज्जं हेमंत गिम्हासु गामे एगराइए नगरे पंचराइए ववगयहा ससोगअरइभवपरित्ता से णिम्ममेणिरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणं अट्ठठे चंदणाणुलेवणे अरते लेटठुमि कंचमि असमे इह लोए अपविद्धे जीवियमरणे निरवकखे संसारपारगामी कम्मसंगणिग्घायणाए अभुट्टिए विहरइ । तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे वाससहस्से विक्कते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिआ सगडमुहंसि उज्जाणंसि णिग्गोहवरपायवस्स अहे भाणंतरिआए वट्टमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कारसिए पुव्वण्ह कालसमयंसि अटुमेणं भत्तेणं अपाणएणं उत्तरासाढणक्खत्ते जोगमुवागएणं अणुत्तरेणं ताणेणं जाव चरित्तेणं अणुत्तरेणं तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीए मुत्तीए तुट्ठीए अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं सुचरिअसोवचिअफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अणुत्तरे णिव्वाधाए णिरावरणे कसिणे पडिपुणे केवल वरनाणदंसणे समुप्पण्णे जिणे जाए केवली सव्वन्नू सव्वदरिसी सरइअतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणइ पासइ, तंजहा- आगई गई ठिई उववायं भुत्तं कडं पडिसेविअं आवीकम्मं रहोकम्मं तं तं कालं मणवयकायजोगे एयमादी जीवाणवि सव्वभावे अजीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स विसुद्ध तराए भावे जाणमाणे पासमाणे एस खलु मोक्खमग्गे मम अण्णेसि च जीवाणं हियसुहणिस्सेसकरे सव्वदुक्खविमोक्खणे परम सुहसमाणणे भविस्सइ । तते णं से भगवं समणाणं निम्गंथा य णीग्गंथीय पंच महव्वयाइ सभावणगाई छच्च जीवणिकाए धम्मं देसेमाणे विहरति, तंजहापुढविकाइए भावणागमेणं पंच महव्वाइ सभावणागाइ' भाणि अव्वाईति ।
सूत्रकृतांगे ( २/६४-६६ ) प्रश्नव्याकरणे ( संवरद्वार ५ । ११) रायपसेणइयसूत्रे (सूत्रांक ८१३८१६) औपपातिकसूत्रे ( सूत्र २७ - २६, १५२, १५३, १६४,१६५) चालोच्यमानपाठनांशिकी क्वचिच्च तदधिकापि तुलना जायते । किन्तु एतेषां सूत्राणां पाठाः अनगार-वर्णन संबद्धाः सन्ति, ततः पूर्णा तुलना प्रस्तुतपाठेन न नाम जायते ।
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Em x ww x
पृष्ठ
१३
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१६
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४२
४५
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२६६ ३१०
३२०
३२१
४००
४३५
HAARA
पंक्ति
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#22222
"
२७
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१५
७
३
६
१
१
१५
१५
१०
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२१
११
१८
१२
५
३
१५.
पा० २६
२
१२
१२
१७
११
२३
" २१
७
१
शुद्धि-पत्र
अशुद्ध
मंदस
सत्थ
नियंति
जाणे
पाव
समण०
णियाणाओ
णिज्भोसडता
णियद्वंति
तितिक्खा ०
X
X
भुज्जियं अणासेविय
पट्टणसि
जाणज्आ
उवाणिमतेज्जा
ज
अणसणिज्जं
विडण
पहाए
पण
सोसं
परक्कमण्ण
गंधमंत
मारत्धा
मच्छा-पदं
अलमंथ
निगर०
पाठान्तर
विधीत
समक्खाय
आय
तेज
अतोमतेण
घृत
शुद्ध
मंदस्स
सत्यं
वयंति
जाण
पावं
समणु० णियाणओ
णिज्मोस इता
नियति
तितिक्खा
उवगरण-पदं
पाओवगमण-पदं
भुज्जियं
अणा से वियं
पट्टसि जाणेज्जा उवणिमंतेज्जा
जं
अणेस णिज्जं
वियडेण
पेहाए
पुण
सीसं
परक्कमण्णू
गंधमंत
गारत्था
मुच्छा-पदं अलमंत्र
मुंडे
नगर०
विधंति समखातं
आयं
तेउ
अतोमतेणं
घृतं
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