SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ सूयगडो१ २४. जो परिभवई परं जणं संसारे परिवत्तई महं। अदु इंखिणिया उ पाविया' इह संखाय मुणी ण मज्जई ॥ २५. जे यावि अणायगे सिया जे वि य पेसगपेसगे सिया। इद मोणपयं उवट्टिए णो लज्जे समयं सया चरे । २६. 'सम अण्णयरम्म संजमें" संसुद्धे समणे परिव्वए। जा आवकहा समाहिए दविए कालमकासि पंडिए । २७. दूर अणुपस्सिया मुणी तीयं धम्ममणागयं तहा। पुढे फरसेहिं माहणे अवि हण्णू 'समयंसि रीयइ ॥ समता-धम्म-पदं २८. पण्णसमत्ते९ सया जए समता२ धम्ममुदाहरे२ मुणी। सुहुमे" उ सया अलूसए ‘णो कुज्झे" णो माणि" माहणे ॥ २६. बहुजणणमणम्मि संवुडे 'सव्वद्वेहिं णरे१८ अणिस्सिए । 'हरए व सया अणाविले' धम्म पादुरकासि कासवं ॥ ३०. बहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं 'समयं समीहिया'२१ । ___जे मोणपयं उवट्ठिए विरई२२ तत्थ अकासि" पंडिए ।। १. परियत्तती (च)। व्या० वि०-समतयाः। २. महे (क); चिरे (ख, चू, वृपा)। १३. ° मुदाहरेज्ज (चू)। ३. पातिका (चूपा)। १४. सुहमे (क)। ४. संखाए (चू)। १५. कुप्पे (चू)। ५. अणातए (चू)। १६. व्या०वि०-विभक्तिरहितपदम् -माणी। ६. पेस्सग° (चू)। १७. कधयंतो ण परं [णु] कोवये (चूपा)। ७. जे (क, ख, वृ)। १८. सव्वढेसु सदा (च)। ८. समे० (क, ख); समयन्नरम्मि° (चू); १६. हरदे वतुमे [पतुमे ?] अणाउले (च); समयण्णतरम्मि वा सुते (चपा)। °अणाउरे (चूपा); ° अणाइले (क, चूपा)। ६. जे (क, ख)। २०. प्रादु° (चू)। १०. समयाधियासए (वृपा, चपा)। २१. ° उवेहिया (क, वृपा); समियं उवेहाए (च); ११. समत्थे (क, ख); पण्हसमत्थे (चु, वृपा); समिया उवेहिता (चपा)। पण्हसमत्ते (चपा)। २२. विरयं (क)। १२. समिया (क); समिता (च); २३. मकासि (चू)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy