________________
४६२
ठाण
७७. एगे दुब्भिगंधे ॥ ७८. एगे तित्ते॥ ७६. एगे कडुए॥ ८०. एगे कसाए। ८१. एगे अंबिले ॥ ८२. एगे महुरे॥ ८३. एगे कक्खड़े ॥ ८४. 'एगे मउए॥ ८५. एगे गरुए। ८६. एग लहुए। ८७. एगे सीते। ८८. एगे उसिणे ।। ८६. एगे णिद्धे ॥ ६०. एगे° लुक्खे॥ अट्ठारसपाव-पदं ६१. एगे पाणातिवाए। ६२. 'एगे मुसावाए। ६३. एगे अदिण्णादाणे ॥ ६४. एगे मेहुणे ॥ ६५. एगे परिग्गहे ॥ ६६. एगे कोहे॥ ६७. 'एगे माणे॥ ६८. एगा माया० ॥ ६६. एगे लोभे ॥ १००. एगे पेज्जे॥ १०१. एगे दोसे ।। १०२. 'एगे कलहे॥ १०३. एगे अब्भक्खाणे॥ १०४. एगे पेसुण्णे ॥
१. कक्कडे (क, ग); सं० पा०—कक्खडे जाव
लुक्खे । २. सं० पा०—पाणातिावए जाव एगे।
६. सं० पा० -कोहे जाव एगे। ४. सं० पा०-दोसे जाव एगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org