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________________ ३४ सभी अंग मौलिक रूप में भगवान महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा ग्रन्थरूप में प्रणीत हैं। फिर केवल प्रस्तुत आगम का ही सूत्रकृत नाम क्यों ? इसी प्रकार दूसरा नाम भी सभी अंगों के लिए सामान्य है। प्रस्तुत आगम के नाम का अर्थस्पर्शी आधार तीसरा है। क्योंकि प्रस्तुत आगम में स्वसमय और परसमय की तुलनात्मक सूत्रता के सन्दर्भ में आचार की प्रस्थापना की गई है। इसलिए इसका संबंध सूचना से है। समवाय और नंदी में यह स्पष्टतया उल्लिखित है-'सूयगडे णं ससमयासूइज्जंति परसमया सूइज्जति ससमय-परसमया सूइज्जति' । जो सूचक होता है उसे सूत्र कहा जाता है। प्रस्तुत आगम की पृष्ठभूमि में सूचनात्मक तत्त्व की प्रधानता है, इसलिए इसका नाम सूत्रकृत है। सूत्रकृत के नाम के सम्बन्ध में एक अनुमान और किया जा सकता है। वह वास्तविकता के निकट प्रतीत होता है । दृष्टिवाद के पांच प्रकार हैं—परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयो।, पूर्वगत और चूलिका। आचार्य वीरसेन के अनुसार सूत्र में अन्य दार्शनिकों का वर्णन है। प्रस्तुत आगम की रचना उसी के आधार पर की गई इसलिए इसका सूत्रकृत नाम रखा गया। सूत्रकृत शब्द के अन्य व्युत्पत्तिक अर्थों की अपेक्षा यह अर्थ अधिक संगत प्रतीत होता है। सूत्तगड' और बौद्धों के 'सूत्तनिपात' में नामसाम्य प्रतीत होता है। अंग और अनुयोग द्वादशांगी में प्रस्तुत आगम का स्थान दूसरा है । अनुयोग चार हैं - १. चरणकरणानुयोग, २. धर्मकथानुयोग, ३. गणितानुयोग। ४. द्रव्यानुयोग। चूर्णिकार के अनुसार प्रस्तुत आगम चरणकरणानुयोग (आचार शास्त्र) है' । शीलांकसूरि ने इसे द्रव्यानुयोग (द्रव्य शास्त्र) की कोटि में रखा है। उनके अनुसार आचारांग प्रधानतया चरणकरणानुयोग तथा सूत्रकृतांग प्रधानतया द्रव्यानुयोग है। १. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू०६०। (ख) नंदी, सू० ८२ । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३४ । ३. सूत्रकृतांगचूणि पृ०५। इह चरणाणुयोगेण अधिकारी। ४. सूत्रकृतॉग वुत्ति, पत्र १ तत्राचाराङ्ग चरणकरणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुना अवसरायातं द्रव्यप्राधान्पेयसूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्ग व्याख्यातुमारभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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