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________________ आचार्य अकलंक के अनुसार आचारांग का समग्र विषय चर्या-विधान' तथा अपराजित सूरि के अनुसार रत्नत्रयी के आचरण का प्रतिपादत है। जैन-परम्परा में 'आचार' शब्द व्यापक अर्थ में व्यवहृत होता है । आचारांग की व्याख्या के प्रसंग में आचार के पांच प्रकार बतलाए गए हैं-१. ज्ञानाचार, २. दर्शनाचार, ३. चरित्राचार, ४. तपाचार और ५. वीर्याचार' । प्रस्तुत सूत्र में इन पांचों आचारों का निरूपण है सूयगडो नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशांगी का दूसरा अंग है। इसका नाम 'सूयगडो' है। समवाय, नंदी और अनुयोग द्वार-तीनों आगमों में यही नाम उपलब्ध होता है । नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने प्रस्तुत आगम के गुण-निष्पन्न नाम तीन बतलाए हैं १. सूतगड-सूतकृत २. सूत्तकड-सूत्रकृत ३. सूयगड-सूचाकृत प्रस्तुत आगम मौलिक दृष्टि से भगवान महावीर से सूत (उत्पन्न) है तथा यह ग्रन्थरूप में गणधर के द्वारा कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूतकृत' है । इसमें सूत्र के अनुसार तत्त्वबोध किया जाता है, इसलिए इसका नाम 'सूत्रकृत' है। इसमें स्व और पर समय की सूचना कृत है, इसलिए इसका नाम 'सूचाकृत' है। वस्तुतः सूत, सुत्त और सूय-ये तीनों सूत्र के ही प्राकृत रूप हैं। आकार भेद होने के कारण तीन गुणात्मक नामों की परिकल्पना की गई है। १. तत्बार्थ राजवार्तिक, १२०: आचारे चर्याविधानं शुद्धयष्टकपंचसमितित्रिगुप्तिविकल्पं कथ्यते । २. मूलाराधना, आश्वास २, श्लोक १३०, विजयोदयाः रत्नत्रयाचरणनिरूपणपरतया प्रथमभंगमाचारशब्देनोच्यते । ३. समवाओ, पइण्णग समवाओ, सू० ८९: से समासमो पंचविहे पं० तं--णाणायारे दसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे । ४. (क) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ८८ (ख) नंदी, सू०८०। (ग) अणुप्रोगदाराई, सू०५० । ५. सूत्रकृतॉगनियुक्ति, गाथा २ : सूतगडं सुत्तकडं सूयगडं चेव गोण्णाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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