SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ वैदिक साहित्य में वेद-पुरुष की कल्पना की गयी है । उसके अनुसार शिक्षा वेद की नासिका है, कल्प हाथ, व्याकरण मुख, निरुक्त श्रोत्र, छन्द पैर और ज्योतिष नेत्र है। इसीलिए ये वेदशरीर के अंग कहलाते हैं। ___ पालि-साहित्य में भी, 'अंग' शब्द का उपयोग किया गया है । एक स्थान में बुद्धवचनों को नवांग और दूसरे स्थान में द्वादशांग कहा गया है। नवांग-- १. सुत्त-भगवान् बुद्ध के गद्यमय उपदेश । २. गेय्य-गद्य-पद्य मिश्रित अंश । ३. वैय्याकरण-व्याख्यापरक ग्रन्थ । ४. गाथा-पद्य में रचित ग्रन्थ । ५. उदान-बुद्ध के मुख से निकले हुए भावमय प्रीति-उद्गार। ६. इतिवृत्तक- छोटे-छोटे व्याख्यान, जिनका प्रारम्भ 'बुद्ध ने ऐसा कहा' से होता है। ७. जातक-बुद्ध की पूर्व-जन्म-सम्बन्धी कथाए। ८. अब्भुतधम्म' - अद्भुत वस्तुओं या योगज-विभूतियों का निरूपण करने वाले ग्रन्थ । है. वेदल्ल-वे उपदेश जो प्रश्नोत्तर की शैली में लिखे गए हैं। द्वादशांग १. सूत्र, २. गेय, ३. व्याकरण, ४. गाथा, ५. उदान, ६. अवदान ७. इतिवृत्तक, ८. निदान, 8. वैपुल्य, १०. जातक, ११. उपदेश-धर्म और १२. अद्भुत-धर्म' । जैनागम बारह अंगो में विभक्त हैं-१. आचार, २. सूत्रकृत, ३. स्थान, ४. समवाय, ५. भगवती, ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपासकदशा, ८. अन्तकृतदशा, ६. अनुत्तरोपपातिकदशा, १०. प्रश्न व्याकरण, ११. विपाक और १२. दृष्टिवाद। 'अंग' शब्द का प्रयोग भारतीय दर्शन की तीनों प्रमुख धाराओं में हुआ है। वैदिक और बौद्ध साहित्य में मुख्य ग्रन्थ वेद और पिटक हैं। उनके साथ 'अंग' शब्द का कोई योग नहीं है। जैन साहित्य में मुख्य ग्रन्थों का वर्गीकरण गणिपिटक है। उसके साथ 'अंग' शब्द का योग हुआ है । गणिपिटक के बारह अंग हैं-'दुवालसंगे गणिपिडगे" । १. पाणिनीयशिक्षा, ४१।१२ । २. सद्धर्मपुडरीक सूत्र, पृ० ३४ ३. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ 'अभिसमयालंकार' की टीका' पृ० ३५ : सूत्रं गेयं व्याकरणं, गाथोदानावदानकम् । इतिवृत्तकं निदानं, वैपुल्यं च सजातकम् । उपदेशाद्भुतौ धर्मो, द्वादशांगमिदं वचः ।। ४. समवाओ पइण्णगसमवाओ, सूत्र ८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy