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________________ एवं जइ मणुस्स कि गम्भवक्कंतिय समुच्छिम गो गम्भवक्कतिय णो संमुच्छिम जइ गम्भ वक्कंतिय किं कम्मभूमग अकम्मभूमग गो कम्मभूमग णो अकम्मभूमग जइ कम्मभूमग कि संवेज्जवासाज्य असंखेज्जवासाठय गो संखेज्जवासाउय णो असंखेज्जवासाउय जद संवेज्जवासाउय कि पज्जत्तय अपज्जत्तय गोयमा पज्जत्तय णो अपज्जत्तय जइ पज्जत्तय कि सम्म मिच्छ सम्मामिच्छ को सम्मदिट्टि नो मिच्छदिति नो सम्मामिच्छदिट्टि जय सम्मविट्टि कि संजतं असंजत संजता संजय गो संजय णो असंजय णो संजतासंजत जति संजय किं पमत्तसंजय अपमत्तसंजय गो पमत्तसंजय णो अपमतसं जइ पमतसंजय कि डिपत्त क्षणिपित्त गोपित मो अनिपित्त वयणावि भतिपस्या एवं मेरे वि अज्जम्मे एवं दक्खिणिल्लाओ उत्तरे एवं दिवसोऽवि नायव्वो एवं पणू नालिया जुगे अनले मुसले वि एवं पंचवि एवं पंचवि इंदिया एवं पंचवि रसा एवं पविणा एवि एवं मंदरस्त पच्चत्विमिल्तिाओं परिमंताओ संखस्स पुरथिमिले च एवं माणे माया लोभे एवं संतिस्तवि एवं सगरे वि राया चाउरंतचक्कवट्टी एकसरि पुब्ब जाव पव्वदए कंतं वण्णं ले जाव गंदुत्तरवडेंसगं कालगए जाव सब्वदुरखप्पहीने कालगाई जोव सव्यदुक्त० कीयं 'आहट्टु जाव अभिक्खणं Jain Education International ३८ प० १६४ १००१५ KIR १२६ ६६।४-८ २७॥१ २५।१ २२।६ प० १३२ ८७।३ १६।२:२१।२ ६०१३ ७१.४ १५।१३ ८६।२ प० ६३ २१।१ For Private & Personal Use Only १० १६४ १००/४ CTR १२ ब ६६।३ ५।२ पण्ण० १५।१ ठा० १७८-८२ प० १३२ ८७।१ अस्य पूतिः अत्रैव १०/२ ७१।३ ३।२१ =218 ६१।१ दसा० २ www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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