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________________ एक आगम के लिए एक संकलनकार के द्वारा दो प्रकार के विवरण (समवायांग तथा नंदी में) दिए गए—यह विचित्र बात है। माधूरी और वल्लभी--ये दो मुख्य वाचनाएं थीं। गौण वाचनाए अनेक थीं। इसीलिए अनेक वाचनान्तर मिलते हैं। ये वाचनान्तर संभवतः व्याख्यांश या परिशिष्ट जोड़ने से हो जाते। समवायांग में द्वादशांगी का उत्तरवर्ती भाग उसका परिशिष्ट भाग है -ऐसी कल्पना की जा सकती है। परिशिष्ट का विवरण समवायांग के विवरण में परिवर्धित किया गया, इसलिए उसकी विषयसूची नन्दीगत समवायांग की विषय-सूची से लम्बी हो गई। परिशिष्ट भाग में प्रज्ञापना के ग्यारह पदों का संक्षेप है, ये किस हेतु से यहां जोड़े गए, यह अन्वेषण का विषय है। कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनकी कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधु-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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