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३. द्वादशांग गणिपिटक का वर्णन' ।
समवायांग के अनुसार समवाओ की विषय सूची इस प्रकार है१. जीव - अजीव, लोक- अलोक और स्वसमय परसमय का समवतार । २. एक से सौ तक की संख्या का विकास ।
३. द्वादशांग-गणिपिटक का वर्णन ।
४. आहार
५. उच्छ् वास
६. लेश्या
७. आवास
८. उपपात
६. च्यवन
१०. अवगाह ११. वेदना
१२. विधान
१३. उपयोग
१४. योग
१५. इन्द्रिय
१६. कथाय
१७. योनि
१८. कुलकर
१९. तीर्थकर
२०. गणधर
२१. चक्रवर्ती २२. बलदेव वासुदेव ।
दोनों विषय-सूचियों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समवायांग की नदि - त, विषय-सूची संक्षिप्त है जौर समवाओ गत विषय-सूची विस्तृत । विषय-सूची के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का आकार भी छोटा और बड़ा हो जाता है ।
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दोनों विवरणों में 'सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती है' इसका उल्लेख है । अनेकोत्तरिका वृद्धि का दोनों में उल्लेख नहीं है । नन्दीचूर्णी, हारिभद्रीयावृत्ति तथा मलयगिरीयावृत्ति - इन तीनों में अनेकोत्तरिका वृद्धि का कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने अनेकोतरिका वृद्धि की चर्चा की है। उनके अनुसार सौ तक एकोत्तरिका वृद्धि होती हैं और उसके पश्चात् अनेकोत्तरिका वृद्धि होती है।
वृत्तिकार का यह उल्लेख समवायांग के विवरण के आधार पर नहीं, किन्तु उपलब्ध पाठ के आधार पर है ऐसा प्रतीत होता है।
१. नन्दी, सू० ८३ :
से कि तं समवाए ? समाए गं जौवा समासिज्जति, भजीवा समासिवनंति जीवाजीवा समासिज्यंति। ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय परसमए समासिज्जइ । लोए समासिज्जइ, श्रलोए समाजिद, लोपालोए समासिव समाएवं एमाइयाणं एगुतरियाणं ठाणसयं निवाणं भावाणं पवणा विदुवालसहित य गणिपिनस्वयम् समासिवजइ ।
२. समवायो, पण माओ०१२ ।
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३. समवायांग, वृत्ति, पत्र १०५ :
'च शब्दस्य चान्यत्र सम्बन्धादेकोत्तरिका अनेकोत्तरिका च तत्र शतं यावदेकोत्तरिका परतोऽनेकोत्तरिकेति ।'
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