SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीअं ठाणं (तइओ उद्देसो) . महग्गह-पदं ३२५. 'दो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सणिच्चरा, दो आहुणिया, दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कणकणगा, दो कणगविताणगा', दो कणगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कब्बडगा, दो अयकरगा', दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो 'रुप्पी, दो रुप्पाभासा", दो णीला, दो णीलोभासा, दो भासा, दो भासरासी, दो तिला, दो तिलपुप्फवण्णा, दो दगा, दो दगपंचवण्णा, दो काका, दो कक्कंधा, दो इंदग्गी, दो धूमकेऊ, दो हरी, दो पिंगला, दो बुद्धा, दो सुक्का, दो बहस्सती, दो राहू, दो अगत्थी, दो माणवगा, दो कासा', दो फासा, दो धुरा', दो पमुहा, दो विगडा, दो विसंधी, दो णियल्ला, दो पइल्ला, दो जडियाइलगा, दो अरुणा, दो अग्गिल्ला, दो काला, दो महाकालगा, दो सोत्थिया, दो सोवत्थिया, दो वद्धमाणगा", दो पलंबा, दो णिच्चालोगा, दो णिच्चुज्जोता, दो सयंपभा, दो ओभासा, दो सेयंकरा, दो खेमंकरा, दो आभंकरा, दो पभंकरा, दो अपराजिता, दो अरया, दो असोगा, दो विगतसोगा, दो विमला, 'दो वितता, दो वितत्था', दो विसाला, दो साला, दो सुव्वता, दो अणियट्टी, दो एगजडी, दो दुजडी, दो करकरिगा, दो रायग्गला, दो पुप्फकेतू, दो भावकेऊ, [चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा ? ] ॥ जंबुद्दीव-वेइआ-पदं ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता ॥ १. अङ्गारकादयोऽष्टाशोतिर्ग्रहाः सूत्रसिद्धाः, ६. क्काकंधा (ख)। केवलमस्मद्दष्टपुस्तकेषु केषुचिदेव यथोक्त- ७. कसा (क, ग)। संख्या संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्त्यनुसारेणासाविह ८. मधुरा (ग)। संवादनीया (वृत्ति पत्र ७४)। १. जडियाइला (क, ग)। २. स्थानांगवृत्तौ उद्धृतसूर्यप्रज्ञप्ति (पाहुड २०) १०. वद्धमाणगा दो पूसमाणगा दो अंकुसा (ग)। पाठे किञ्चिद् भेदो दृश्यते ११. दो वितत्ता दो वितव्वा (क); दो विमुहा दो कणवियाणए कणसंताणए णीले णीलोभासे वितत्ता (ग)। रुप्पी रुप्पोभासे । १२. असौ पाठः प्रस्तुतसूत्रे साक्षाल्लिखितो नास्ति, ३. अतिकरगा (क, ग); अंतकरगा (ख) । किन्तु चन्द्रप्रज्ञप्ति (पाहुड १६) पाठानुसारे४. रुप्पा दो रुप्पो° (ख)। णासौ युज्यते । पाठसंक्षेपपद्धतौ नास्य क्रिया५. नीला (क, ग)। पदं लिखितमिति प्रतीयते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy