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________________ इसके ३७ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १३।। इंच लम्बा, ५ इंच चौड़ा है। पक्तियां १७ तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ तक अक्षर हैं। अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैशुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥छ।। संवत् १५७३ वर्षे १० मंगलवार समत्तं ॥छ। ॥छ।। श्री॥छ।। प्रति के दीमक लगने से अनेक स्थानों पर छिद्र होगए हैं। (च.) आचारांग मूलपाठ दोनों श्रु तस्कन्ध, यह प्रति भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर, अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ७८ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४७ तक अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। बीच में बावड़ी है। (छ.) आचारांग दोनों श्रुतस्कन्ध, वृत्ति सहित (त्रिपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से गोठीजी द्वारा प्राप्त है । इसके २६० पत्र हैं। प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है मूलपाठ की पंक्तियां १ से १७ तथा ४५ से ४७ तक अक्षर हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैं संवत् १८६६ वर्षे श्रावणशुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथौ श्रीविक्रमपुरमध्ये लिपिकृतं ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । शुभं भूयादिति ।। (ब.) आचारांग द्वितीय श्रु तस्कन्ध टब्बा (पंचपाठी) यह प्रति गधैया पुस्तकालय सरदारशहर से मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त हुई है। इसके ८४ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा १०३ इंच चौड़ा है। मूलपाठ की पंक्तियां ४ से १३ हैं। प्रत्येक पंक्ति में २८ से ३३ तक अक्षर हैं। बीच-बीच में बावड़ियां हैं । अन्तिम प्रशस्ति निम्नोक्त हैसंवत् १७५२ वर्षे भादपदमासे पंचम्यां तिथौ ओरसगच्छे भट्टारक श्रीकक्चसूरि तत्पट्टे वर्तमान भट्टारकदेवगुप्तसूरिभिहीता नागोरी तपागच्छीय पं० श्री दयालदास पार्वात् पंचचत्वारिंशत् ४५ वर्षोत्तरात् महतोद्यमेन । (व), (वृपा) मुद्रित, प्रकाशिका-श्रीसिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति विक्रम संवत् १६६१। (चू), (चूपा) मुद्रित-श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी, रतलाम, वि १६६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003551
Book TitleAngsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages1108
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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