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भूमिका १. आगमों का वर्गीकरण
जैन साहित्य का प्राचीनतम भाग आगम है । समवायांग मे आगम के दो रूप प्राप्त होते हैंद्वादशांग गणिपिटक' और चतुर्दश पूर्व। नन्दी में श्रुत-ज्ञान (आगम) के दो विभाग मिलते हैं-- अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य। आगम-साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पूर्वो से संबंधित हैं । जैसे--
१. सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने वाले---'सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, प्रथम वर्ग) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य गौतम के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, पंचम वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि की शिष्या पद्मावती के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जई' (अंतगड, अष्टम वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् महावीर की शिष्या काली के विषय में प्राप्त है ।
'सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ' (अंतगड, षष्ठ वर्ग १५वां अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान महावीर के शिष्य अतिमुक्तककुमार के विषय में प्राप्त है।
२. बारह अंगों को पढ़ने वाले--'बारसंगी' (अंतगड, चतुर्थ वर्ग, प्रथम अध्ययन)। यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य जालीकुमार के विषय में प्राप्त है।
३. चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले--चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ (अंतगड, तृतीय वर्ग, नवम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य सुमुखकुमार के विषय में प्राप्त है।
'सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ' (अंतगड, तृतीय वर्ग, प्रथम अध्ययन) । यह उल्लेख भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य अणीयसकुमार के विषय में प्राप्त है।
१, समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू० ८५। २, वही, समवाय १४, सू० २ । ३. नन्दी, सू०४३।
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