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वनगार
. प्रचुरतया पाये जानेवाले क्रूर सिंह व्याघ्र आदिक जीवोंके द्वारा जहांपर दूसरे प्राणी अथवा उनके प्राण नष्ट करदिये जाते हैं ऐसे दुर्गम अरण्य में, तथा जिसके जलमें कुटिलता और बहुलतासे दूसरोंको खिन्न करनेवाले नक्रादिक भयंकर जीव इधर उधर घूम रहे हैं ऐसे समुद्रमें, एवं वायुके वेगके निमित्तसे जिसकी ज्वालाएं खुब ऊपरको उठ रही हैं ऐसी अग्निमें, और शत्रओंका प्रतियन जिसमें निरंकुशतासे फैला हुआ है ऐसे संग्राममें, तथा कष्टके साथ जिनको लांघा जा सके ऐसी शिलाओंके द्वारा जिनका चारों तरफका भाग ग्रन्थिल-निम्नोत्रत हो रहा है ऐसे पर्वतपर, इत्यादि और भी अनेक दुर्गम स्थानोंमें जहांपर कि इस जीवका कोई भी शरण नहीं हो सकता; यह धर्म ही उसकी रक्षा करता है। ... यह धर्म नाना प्रकारकी दुरवस्थाओंसे ग्रस्त जीवका उद्धार करता है। यह बात दिखाते हैं: -
क्षुत्क्षामं तर्षतप्तं पवनपरिधुतं वर्षशीतातपात, । रोगाघातं विषात ग्रहरुगुपहतं मर्मशल्योपतप्तम् । दुराध्वानप्रभग्नं प्रियविरहबृहद्भानुदूनं सपत्न,
व्यापन्नं वा पुमांस नयति सुविहितः प्रीतिमुद्धृत्य धर्मः॥ ५० ॥ . क्षुधा-बुभुक्षासे क्षीण हुए, तृषा-पिपासासे संतप्त हुए, वायुमंडल में पडजानेके कारण चारो तरफको उडते हुए, वर्षा शीत या आतप-धूपसे आतुर हुए, जरा आदि व्याधियोंसे ग्रस्त हुए, विष अफीम आदि जहरीले पदार्थोसे पीडित हुए, ब्रह्मराक्षसादिक अथवा शनैश्चरादिक ग्रहोंकी पीडासे उपहत हुए, मार्मास्तिक पीडा उपस्थित करनेवाली शल्यसे अत्यंत व्यथित हुए, सुदूर मार्गमें चलनेके कारण अत्यंत श्रांत हुए, अपने प्रिय पुत्र मित्र कलत्र बन्धु बान्धवादिकोंके विरहरूपी अग्निसे झुलसते हुए, शत्रओंके द्वारा विविध प्रकारकी
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यध्याय
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