________________
बनगार
गर्भावतारादिक कल्याणोंकी आश्चर्यकर विभूति भी सम्यक्त्वके सहचारी पुण्यविशेषसे ही प्राप्त होती है। यही बात दिखाते हैं।
घोरेष्यन्विश्वपूज्यौ जनयति जनको गर्भगोऽतीव जीवो, जातो भोगान् प्रभुङ्क्ते हरिभिरुपहृतान्मन्दिरान्निष्क्रमिष्यन् । ईतें देवर्षिकीर्चि सुरखवरनूपैः प्रनजत्याहितेन्यः,.
प्राप्यार्हन्त्यं प्रशास्ति त्रिजगदृषिनुतो याति मुक्तिं च धर्मात् ॥ ४७ ॥ धर्मके प्रतापसे- सम्यक्त्वसहचारी पुण्यकी सामर्थ्यसे यह जीव स्वर्गसे उतरकर माताके गर्नमें आनेसे पहले ही माता और पिता दोनोंको समस्त संसारसे पूज्य बनादेता है । बल्कि गर्भ में आनेपर तो अ. त्यंत ही पूज्य बनादेता है। क्योंकि तीर्थकरके उत्पन्न होनेसे छह महीना पहले ही उनके पुण्यके माहात्म्यसे माता और पिता जगत्पूज्य हो जाया करते हैं-देव और देवियां भी उनकी पूजा किया करती हैं । इसी प्रकार यह जीव उत्पन्न होनेपर उस धर्मके माहात्म्यसे सौधर्मादि स्वर्गके इन्द्रोंके द्वारा लाये हुए भोगोपभोगके इष्ट विषयोंको भोगता है । तथा द्रव्य और भावरूप महलसे निकल कर जानेकी इच्छा करनेपर-तप करनेकी भावना करते ही इस जीवकी देवर्षी-नियोगी लोकांतिक देव स्तुति करते हैं । और देव विद्याधर तथा राजा महाराजाओंके द्वारा पूजित होनेपर दीक्षा ग्रहण करता। एवं आर्हन्त्य-केवलज्ञानको प्राप्त कर यह जीव उसी धर्मके माहात्म्यसे तीनो लोकोंको-समस्त संसारके हितका उपदेश देता है जिससे कि उसकी ऋषि-गणधर देवादिक भी स्तुति करते हैं। अंतमें यह जीव उसी धर्मके प्रतापसे परमपद-मोक्षस्थानको प्राप्त करलेता है। क्योंकि पहले मुख्य धर्मका जो स्वरूप बताया गया है उसमें ऐसी सामर्थ्य है कि जिससे समस्त कर्मोंका नाश होकर निवृति पदकी प्राप्ति हो सके।
जिस प्रकार धर्म-पुण्यके उदय होनेपर संपत्तियोंका उपभोग और अनुदय होनेपर अनुपभोग हुआ
अध्याय