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छक्खंडागम
५. प्रकृति-अनुयोगद्वार- इसमें प्रकृतिनिक्षेप आदि सोलह अधिकारोंके द्वारा कर्मोंकी उत्तर प्रकृतियोंके स्वरूप और भेदादिका विस्तारसे वर्णन है।
६. बन्धन-अनुयोगद्वार- इसके बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्ध-विधान ये चार अधिकार हैं। उनमेंसे बन्ध-अधिकारमें जीव और कर्म-प्रदेशोंके सादि और अनादिरूप बन्धका वर्णन है । बन्धक अधिकारमें कर्म-बन्ध करनेवाले जीवोंका स्वामित्व आदि ग्यारह अनुयोगद्वारोंसे विवेचन है । प्रस्तुत ग्रन्थका दूसरा खण्ड खुद्दाबन्ध इसी अधिकारसे सम्बन्ध है। बन्धनीय अधिकारमें कर्म-बन्धके योग्य पुद्गलवर्गणाओंका विस्तारसे विवेचन किया गया है, जिसके कारण वह प्रकरण वर्गणाखण्डके नामसे प्रसिद्ध हुआ है। इस खण्डका विशेष परिचय आगे दिया जा रहा है। बन्धविधान अधिकारके प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध ये चार भेद हैं । इनका विस्तारसे वर्णन महाबन्ध नामके छठे खण्डमें किया गया है ।
७. निबन्धन-अनुयोगद्वार- इसमें मूलकर्मों और उनकी उत्तर प्रकृतियोंके निबन्धनका वर्णन है। जैसे चक्षुरिन्द्रिय अपने विषयभूत रूपमें निबद्ध है, श्रोत्रेन्द्रिय शब्दमें निबद्ध है उसी प्रकार ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म सर्व द्रव्योंमें निबद्ध है, सर्व पर्यायोंमें निबद्ध नहीं है, वेदनीयकर्म सुख-दुःखमें निबद्ध है, मोहनीयकर्म सम्यक्त्व-चारित्ररूप आत्म-स्वभावक घातनेमें निबद्ध है, आयुकर्म भवधारणमें निबद्ध है, नामकर्म पुद्गलविपाकनिबद्ध है, जीवविपाकनिबद्ध है, और क्षेत्र विपाक निबद्ध है, गोत्रकर्म ऊंच-नीच रूप जीवकी पर्यायसे निबद्ध है और अन्तराय कर्म दानादिके विघ्न करनेमें निबद्ध है। इसी प्रकार उत्तर प्रकृतियोंकेभी निबन्धनका विचार इस अनुयोगद्वारमें किया गया है ।
८. प्रक्रम-अनुयोगद्वार- जो वर्गणास्कंध अभी कर्मरूपसे परिणत नहीं हैं, किन्तु आगे चलकर जो मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृतिरूपसे परिणमन करनेवाले हैं, तथा जो प्रकृति, स्थिति और अनुभागकी विशेषतासे वैशिष्टयको प्राप्त होते हैं ऐसे कर्मवर्गणास्कन्धोंके प्रदेशोंका इस अनुयोगद्वारमें वर्णन किया गया है ।
९. उपक्रम-अनुयोगद्वार- इसमें बन्धनोपक्रम, उदीरणोपक्रम, उपशामनोपक्रम और विपरिणामोपक्रमरूप चार प्रकारके उपक्रमका वर्णन किया गया है । बन्धनोपक्रममें कर्मबन्ध होनेके दूसरे समयसे लेकर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशरूप ज्ञानावरणादि आठों कर्मोके बन्धका वर्णन है । उदीरणोपक्रममें प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंकी उदीरणाका वर्णन है । उपशामनोपक्रममें प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंकी प्रशस्तोपशामनाका कथन है । विपरिणामोपक्रममें प्रकृति, स्थिति अनुभाग और प्रदेशोंकी देशनिर्जरा और सकलनिर्जराका कथन है।
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