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सातावेदनीयके बन्धक मिथ्यादृष्टिसे लेकर तेरहवें सयोगिकेवली गुणस्थान तक के जीव होते हैं । अयोगिकेवली अबन्धक हैं ।
प्रस्तावना
जिस प्रकारसे गुणस्थानोंकी अपेक्षा यह बन्धके स्वामियोंका विचार किया है, इसी प्रकारसे मार्गणास्थानों की अपेक्षा उनमें सम्भव गुणस्थानोंके आश्रयसे सभी कर्म प्रकृतियोंके बन्धक स्वामियोंका विचार बहुत विस्तार के साथ प्रस्तुत खण्ड में किया गया है ।
महाकर्मप्रकृति प्राभृत [ वेदनाखण्ड ]
बारहवें दृष्टिवाद' अंकके पांच भेदोंमें जो पूर्वगत नामका चौथा भेद है, उसके भी चौदह भेद हैं । उनमें दूसरे पूर्वका नाम अग्रायणी पूर्व है । उसके वस्तुनामक चौदह अधिकारों में सें पांचवें का नाम चयनलब्धि है । उसके बीस प्राभृतोंमेंसे चौथा प्राभृत महाकर्म प्रकृति प्राभृत है । उसके चौबीस अधिकार हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- १ कृति, २ वेदना, ३ स्पर्श, ४ कर्म, ५ प्रकृति, ६ बन्धन, ७ निबन्धन, ८ प्रक्रम, ९ उपक्रम, १० उदय, ११ मोक्ष, १२ संक्रम, १३ लेश्या, १४ लेश्याकर्म, १५ लेश्यापरिणाम, १६ सातासात, १७ दीर्घ ह्रस्व, १८ भवधारणीय १९ पुद्गलात्त ( पुद्गलात्म) २० निवत्त-अनिधत्त, २९ निकाचित-अनिकाचित, २२ कर्मस्थिति २३ पश्चिमस्कन्ध और २४ अल्पबहुत्व । इन अधिकारोंका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
१. कृति - अनुयोगद्वार - इसमें औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीरोंकी संघातन, परिशातन और संघातन - परिशातनरूप कृतियोंकी, तथा भवके प्रथम, अप्रथम और चरम समय में स्थित जीवोंकी कृति, नोकृति और अवक्तव्यरूप संख्याओं का वर्णन है ।
२. वेदना - अनुयोगद्वार - इसमें वेदना संज्ञावाले कर्मपुद्गलोंकी वेदनानिक्षेप आदि सोलह अधिकारोंसे प्ररूपणा की गई है । इसी अधिकारका आ. भूतबलिने विस्तार के साथ वर्णन किया है । इसीसे इसका ' वेदनाखण्ड ' यह नाम प्रसिद्धिको प्राप्त हुआ है । आगे इसका कुछ विस्तार से परिचय दिया जायगा ।
३. स्पर्श- अनुयोगद्वार - इसमें स्पर्शगुणके सम्बन्धसे प्राप्त हुए स्पर्शनाम, स्पर्श निक्षेप आदि सोलह अधिकारोंके द्वारा ज्ञानावरणादिके भेदसे आठ भेदको प्राप्त हुए कर्म-पुद्गलोंका वर्णन है ।
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४ कर्म-अनुयोगद्वार - इसमें कर्मनिक्षेप आदि सोलह अधिकारोंके द्वारा ज्ञान, दर्शनादि गुणोंके आवरण आदि कार्योंके करने में समर्थ होनेसे ' कर्म ' इस संज्ञाको प्राप्त पुद्गलोंका विवेचन है ।
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