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चतुर्थः सर्गः
पचत्रिंशद्धनंध्यारे द्वौ हस्तावङ गुलान्यपि । विंशतिः सप्तभागाश्च चत्वारः संप्रकीर्तितः ॥ ३३६ ॥ ranरिंशतथा तारे दण्डा सप्तदशाङ्गुली । एकः सप्तमभागः स्यादुत्सेधो नारकाश्रयः || ३२७|| चत्वारिंशचतुर्भिश्च दण्डा हस्तौ त्रयोदश । अङ्गुलानि मतो मारे सप्तभागैः स पञ्चभिः ॥ ३२८ ॥ धनूंष्ये कोनपञ्चाशदुत्सेधः स दशाङ्गुली । द्वौ च सप्तमभागौ तौ वर्चस्के वर्णितो बुधैः ॥३२९॥ धनूंषि सत्रिपञ्चाशद्स्तौ चापि षडङ्गुली । षट् च सप्तमभागास्ते तमके परिकीर्तितः ॥ ३२० ॥ अष्टापचाशदुत्सेधो धनूंषि व्यङ्गुलानि च । त्रयः सप्तमभागाश्च षडेऽपि प्रकटस्थितः ।। ३३१ ॥ द्विषष्टिस्तु धनूंषि द्वौ हस्ती षडपडे मतः । उत्सेधः सुप्रसिद्धो यश्चतुर्थे नरके सताम् ॥ ३३२ ॥ तमोनामनि चोरलेधः कोदण्डाः पञ्चसप्ततिः । सप्ताशीतिरसौ दण्डा द्वौ हस्तौ भवति भ्रमे ॥ ३३३॥ वपुषो नारकोयस्य - शषे शतधनूंषि सः । अन्धे द्वादशमिश्राणि तानि हस्तद्वयं मतम् ||३३४ || मित्रेऽपि च तान्येव पञ्चविंशतिदण्डकैः । उत्सेधो वर्णितो योऽसौ पञ्चमे नरके बुधैः || ३३५|| षट्षष्टया शतकोदण्डा द्वौ हस्तौ षोडशाङ्गुली । उत्सेधो वर्णितः पूर्णो हिमनामनि चेन्द्रके ।। ३३६ ॥ द्विशत्यष्टौ च कोदण्डा हस्तोऽष्टावङ्गुलान्यपि । उत्सेधः शास्त्र नेत्राड्यैर्वर्दलेऽपि विलोकितः ॥ ३३४॥ शतद्वयं च पञ्चाशद्धनूंष्येव स मासितः । लल्लके नरके षष्ठे निष्ठितार्थैर्यं इष्यते ||३३८||
एक हाथ प्रमाण कहा जाता है। इस प्रकार तीसरी पृथिवीमें नारकियोंकी ऊँचाईका वर्णन किया || ३२५ ॥
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चौथी पृथिवीके आर नामक प्रथम प्रस्तारमें पैंतीस धनुष, दो हाथ, बीस अंगुल और एक अंगुल सात भागों में चार भाग प्रमाण ऊँचाई कहो गयी हैं || ३२६ || तार नामक दूसरे प्रस्तारमें चालीस धनुष, सत्रह अंगुल और एक अंगुलके सात भागों में एक भाग प्रमाण नारकियोंकी ऊँचाई है || ३२७|| मार नामक तीसरे प्रस्तार में चवालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुलके सात भागों में पांच भाग प्रमाण ऊंचाई मानी गयी है || ३२८ || वर्चस्क नामक चौथे प्रस्तारमें विद्वानोंने शरीर की ऊँचाई उनचास धनुष, दश अंगुल और एक अंगुलके सात भागों में दो भाग प्रमाण बतलायी है || ३२९|| तमक नामक पाँचवें प्रस्तारमें त्रेपन धनुष, दो हाथ, छ: अंगुल और एक अंगुलके सात भागों में छः भाग प्रमाण ऊँचाई कही गयी है || ३३० || षड नामक छठवें प्रस्तारमें अठावन धनुष, तीन अंगुल और एक अंगुलके सात भागों में तीन प्रमाण ऊँचाई प्रकट की गयी है ||३३१|| और षडबड नामक सातवें प्रस्तारमें बासठ धनुष, दो हाथ ऊँचाई प्रसिद्ध है । इस प्रकार चौथी पृथिवी में विद्यमान नारकियोंकी ऊंचाईका वर्णन किया है ||३३२ ॥
पाँचवीं पृथिवीके तम नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियोंके शरीरकी ऊँचाई पचहत्तर धनुष बतलायी है । भ्रम नामक दूसरे प्रस्तार में सत्तासी धनुष और दो हाथ है ||३३३ || झष नामक तीसरे प्रस्तार में नारकियोंके शरीर की ऊँचाई सो धनुष कही गयी है । अन्ध नामक चौथे प्रस्तारमें एक सौ बारह धनुष तथा दो हाथ है ||३३४|| और तमिस्र नामक पाँचवें प्रस्तार में एक सौ पच्चीस धनुष है । इस प्रकार पांचवीं पृथिवो में विद्वानोंने ऊंचाईका वर्णन किया है ||३३५ ||
छत्रपृथिवीके हिम नामक प्रथम प्रस्तार में नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई एक सौ छयासठ धनुष, दो हाथ तथा सोलह अंगुल बतलायी है ||३३६ || वर्दल नामक दूसरे प्रस्तार में शास्त्ररूपी नेत्रोंके धारक विद्वानोंने नारकियोंकी ऊँचाई दो सौ आठ धनुष, एक हाथ और छ: अंगुल प्रमाण देखी है ||३३७|| और लल्लक नामक तीसरे प्रस्तार में नारकियोंको ऊँचाई दो सौ पचास धनुष बतलायी है । इस प्रकार कृतकृत्य सर्वज्ञ देवने छठवीं पृथिवीमें ऊँचाईका वर्णन किया ||३३८ || सातवीं
१. शती म. ।
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