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हरिवंशपुराणे
पृथ्वीच्छन्दः विषादविषदूषितं मगधराजसैन्यं ततो निवेशमगर्मन्निजं लघु दिवाकरेऽस्तङ्गते । नितान्तपृथुहर्षपूर्णमतिघूर्णमानार्णव-प्रमाणमरिमङ्गतो यदुयबलं जिनश्रीयुतम् ॥४५॥
इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतो हिरण्यनाभवधवर्णनो
नामैकपञ्चाशत्तमः सर्गः ॥५१॥
भेदनेवाले महापराक्रमो नेमिनाथ अर्जुन और अनावृष्टिका आलिंगन किया ॥४४॥ तदनन्तर उधर सूर्यास्त होनेपर विषादरूपी विषसे दूषित जरासन्धकी सेना शीघ्र ही अपने निवासस्थानपर चली गयी और इधर जिनराज श्री नेमिनाथ भगवान्की लक्ष्मीसे युक्त यादवोंकी सेना, शत्रुके नाशसे अत्यधिक हर्षित एवं लहराते हुए समुद्रके समान झूमतो हुई अपने निवासस्थानपर आ गयो॥४५॥
इस प्रकार अरिष्टनेमिपुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराणमें हिरण्यनाभके
वधका वर्णन करनेवाला इक्यावनवाँ सर्ग समाप्त हुआ ॥५१॥
१. मगमं निजे म.।
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