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पष्टितमः सर्गः
विंशतिश्चैव वर्षाणि राज्यमत्यन्तमूर्जितम् । पुरुषोत्तमतां भूमौ भूम्ना तस्येह बिभ्रतः ||२५|| कौमार्य त्रिशती पञ्चविंशत्या शतमीरितम् । मण्डलैश्यं हि विजयः सप्ततिः प्रतिपादितः ।। ५२६॥ नवलक्षा सहस्राणि नवर्निव च स्मृता । राज्यं पुरुषसिंहस्य पञ्चभिः पञ्चशत्यपि ।। ५२७|| पञ्चाशता शते द्वेत कौमार्य मण्डलेशता । विजयः षष्टिवर्षाणि विजयोजिततेजसः ||५२८|| चत्वारिंशश्च वर्षाणि स्याच्चत्वारि शतान्यपि । चतुःषष्टिसहस्राणि पुण्डरीकस्य राजता ।। ५२९|| शते दत्तस्य कौमार्य पञ्चाशत्कालयोऽयम् । एकत्रिंशत्सहस्राणि सप्तशत्यापि राजता ।। ५३०|| शतं लक्ष्मणकौमार्य चत्वारिंशद्विजेतृता । एकादश सहस्राष्टशतषष्ट्यब्दराजता ।।५३१|| कुमारकालः कृष्णस्य षोडशाब्दानि षट्युता । पञ्चाशन्मण्डलेशत्वं विजयोऽष्टाब्दकं स्फुटम् ||५३२॥ शतानि नव विंशत्या कृष्णराजस्य संमितिः । तथैकादशरुद्राणां कालसंख्या निरूप्यते || ५३३॥ तीर्थे भीमावर्जाितो वृषमस्याजितस्य तु । जितशत्रुरिति ख्यातो रुद्राख्यः सुविधेः पुनः || ५३४|| विश्वानलस्तु दशमे श्रेयसः सुप्रतिष्टकः । अचलो वासुपूज्यस्य पुण्डरीकस्तु बैमले ।।५३५।।
लाख सन्तानबे हजार नौ सौ बीस वर्षं पृथिवीतलपर नारायणपद धारण करते हुए राज्य अवस्था में व्यतीत हुए ।।५२३-५२५ ॥
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पुरुषसिंह नारायणकी कुल आयु दस लाख वर्षकी थी। उसमें तीन सौ वर्षं कुमार अवस्था में, एक सौ पचीस वर्ष मण्डलीक अवस्थामें सत्तर वर्ष दिग्विजय में और नो लाख निन्यानबे हजार पाँच सौ पाँच वर्षं राज्य अवस्था में व्यतीत हुए पुण्डरीक नारायणकी कुल आयु पैंसठ हजार वर्षकी थी। उनमें दो सौ पचास वर्ष कुमार अवस्था में, इतने ही मण्डलीक अवस्थामें, साथ वर्षं दिग्विजय में, और चौंसठ हजार चार सौ चालीस वर्षं राज्य अवस्थामें व्यतीत हुए ।।५२८-५२९ ॥
||५२६-२२७।।
दत्त नारायणकी कुल आयु बत्तीस हजार वर्षकी थी । उसमें सो वर्षं कुमार अवस्था में पचास वर्षं मण्डलीक अवस्था में, पचास वर्ष दिग्विजयमें और इकतीस हजार सात सौ वर्ष राज्य अवस्था में व्यतीत हुए ||५३०||
लक्ष्मण नारायणकी कुल आयु बारह हजार वर्षकी थी । उसमें सौ वर्ष कुमार अवस्था में, चालीस वर्ष दिग्विजयमें और ग्यारह हजार आठ सौ साठ वर्षं राज्य अवस्थामें व्यतीत | हुए ||५३१ ।।
कृष्ण नारायणकी कुल आयु एक हजार वर्षकी है । उसमें सोलह वर्ष कुमार अवस्थामें, छप्पन वर्षं मण्डलीक अवस्थामें, आठ वर्ष दिग्विजय में और नौ सौ बीस वर्ष राज्य अवस्था में व्यतीत होंगे। इस प्रकार नारायणोंके कालका वर्णन किया। अब ग्यारह रुद्रोंके काल और संख्याका वर्णन करते हैं ।। ५३२-५३३||
रुद्र ग्यारह होते हैं । उसमें भगवान् वृषभदेव के तीर्थमें भीमावलि, अजितनाथ के तीर्थ में जितशत्रु, पुष्पदन्तके तीर्थंमें रुद्र, शीतलनाथके तीर्थ में विश्वानल, श्रेयांसनाथके तीर्थमें सुप्रतिष्ठक, वासुपूज्यके तीर्थ में अचल, विमलनाथके तीर्थंमें पुण्डरीक, अनन्तनाथके तीर्थंमें
★ ति प में पुरुषसिंह नारायणका मण्डलीककाल १२५० वर्ष तक और राज्यकाल नो लाख अंठानबे हजार तीन सौ अस्सी वर्ष बतलाया है ।
+ ति प में लक्ष्मणका मण्डलीककाल तीन सौ वर्ष और राज्यकाल ग्यारह हजार पाँच सौ साठ वर्ष बतलाया है ।
५. ति. प. में 'वैश्वानर' नाम आया है ।
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