Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 942
________________ ९०४ इला (व्य) राजा दक्षकी स्त्री १७१३ इलाकूट (भी) हिमवत् कुला चलका चौथा कूट ५।५३ । इलावर्धन (भौ) राजा दक्षकी इला रानीके द्वारा बसाया हुआ नगर १७११८ इलावर्धनपुर (भौ) एक नगर __ जहाँ वसुदेव पहुँचे २४।३४ इष्वाकार (भो) धातकीखण्ड और पुष्कराध द्वीपमें स्थित, पूर्व और पश्चिम भागके विभाजक पर्वत ५।४९४ इष्वाकार पर्वत (भौ) पुष्कर द्वीपके दक्षिण और उत्तर में स्थित पूर्व और पश्चिम भागका विभाग करनेवाले पर्वत ५१५७८ हरिवंशपुराणे [उ ] उग्रसेन (व्य) मथुराका राजा ११९३ उग्रसेन (व्य) श्रीकृष्णके पक्षका राजा ५०१६९ उग्रसेन (ग) भोजकवृष्णि और पद्मावतीका पुत्र १८०१६ उच्छ्वास-निश्वास(पा) संख्यात आवलियोंका समूह ७।१९ उज्जयिनी (भौ) नगरी६०।१०५. उज्ज्वलित (भौ) बालुकाप्रभा पृथिवीके समस्त प्रस्तरका इन्द्रक विल ४।१२४ उत्कीलन = एक दिव्य ओषधि २१११८ उस्कृष्ट शातकुम्भ = व्रतविशेष ३४४८७-८९ उस्कृष्टसिंह निष्क्रीडित =एक उपवास व्रत ३४६८० उत्तमपात्र (पा) रत्नत्रयसे युक्त मुनि आदि ७।१०८ उत्तमवर्ण (भौ) देशविशेष १११७४ उत्तरकुरु (भौ) नील कुलाचल और मेरुके बीच में स्थित प्रदेश, जहाँ भोगभूमिकी रचना है ५।१६७ उत्तरकुरु (भौ) नीलपर्वतसे साढ़े पाँच सौ योजन दूर, नदीके मध्यमें स्थित हद ५।१९४ उत्तरकुरु कूट (भो) माल्यवान् पर्वतका कूट ५।२१९ उत्तरकुरु कूट (भी) गन्धमादन पर्वतका एक कूट ५।२१७ उत्तरमन्द्रा = षड्ज स्वरकी मूर्च्छना १९।१६१ उत्तरश्रेणी (भौ) विजयापर्वत की उत्तर कगार, जिसपर साठ नगर स्थित है ५।२३ उत्तराध्ययन (पा) अंगबाह्य श्रुतका एक भेद २।१०३ उत्तराफाल्गुनी-एक नक्षत्र २।२३ उत्तरायता = षड्जस्वरकी मूर्च्छना १९।१६१ उत्तरार्ध (भौ) विजयार्धका आठवाँ कूट ५।२७ उत्तरार्ध कूट (भौ) ऐरावतके विजयाधका दूसरा कूट ५।११० उत्तानशय = चित्त सोनेवाला बालक ४२।१६ उत्पला (भौ) मेरुकी आग्नेय दिशामें स्थित एक वापी ५।३३४ उत्पलगुल्मा (भौ) मेरुपर्वतकी आग्नेय दिशामें स्थित वापी ५।३३४ उत्पलोज्ज्वला (भौ) मेरुकी आग्नेय दिशामें स्थित एक वापी ५।३३५ उत्पाद (पा) नवीन पर्यायका उत्पन्न होना ११ उत्पादपूर्व (पा) पूर्वगत श्रुतका एक भेद २।९७ उत्पातिनी = एक विद्या २२१६८ उत्सर्पिणी (पा) दस कोडाकोड़ी अद्धा सागरोंकी एक उत्स पिणी ७।५६-५७ उदक (व्य) आगामी तीर्थ ६०१५५९ उदक, उदवास (भौ) लवण समुद्रमें दक्षिण दिशाके कदम्बुक पातालके दोनों ओर स्थित दो पर्वत ५।४६१ उदक, उदवास (व्य) लवण समुद्र में शंख और महाशंख पर्वतके निवासी देव५।४६२ ईति-अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषक, शलभ, शुक और निकटवर्ती राजाओंके उत्पात, ये छह उपद्रव १११८ ईर्यापथ (पा) आस्रवका भेद ५८१५९ ईर्यापथ क्रिया (पा) एक क्रिया ५८।६५ ईर्यासमिति (पा) प्रमादरहित हो चार हाथ जमीन देख कर चलना २।१२२ ईश्वर (व्य) नेमिनाथ भगवान् ५५।१०६ ईषत्प्राग्मार पृथिवी ( आठवीं पृथिवी ६१४० ईहापुर (भौ) एक नगर ४५।९३ ईहा (पा) मतिज्ञानका भेद १०।१४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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