Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 988
________________ ९५० वरदत्त (व्य) नेमिनाथ भगवान् का प्रथम गणधर ५८ २ बराङ्गचरित (व्य ) जटासिंहनन्दोका एक काव्य ग्रन्थ १।३५ बराङ्गना - वेश्या १।३५ वर्धक (भी) रत्नप्रभाके खरभागका पन्द्रह पटल ४१५४ वर्चस्क (भी) पंकप्रभा पृथिवी के चतुर्थ प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।१३२ वराट (व्य) एक राजा ५०।८३ वर्ण - पदगत गान्धर्वको विधि १९।१४९ वर्ण = शारीरस्वरका भेद १९।१४८ वर्ण (य) कोशिका नगरीका राजा ४२।६१ वर्ण वैणस्वरका एक भेद = १९।१४७ वर्णाश्रम-त्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ये चार वर्ण, ब्रह्मचारी, शूद्र गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी ये चार आश्रम ५४१३ वरुण (व्य) देवविशेष ( लोकपाल ) ५।३१७ वरुण ( व्य ) जरासन्धका पुत्र ५२/३९ वरुण (व्य) ऋषभदेवका गणधर १२।६५ वरुण (व्य ) वारुणीवर द्वीपका रक्षक देव ५।६४० वरुण (व्य) कंसका हितैषी एक निमित्तज्ञ ३५।३७ वरुण (य) एक मुनि ६४।१२ वरुण (पा) स्फटिक सालका पश्चिम गोपुर ५७/५९ वरुण (भौ) भरतक्षेत्रसम्बन्धी Jain Education International हरिवंशपुराणे विजयापके दक्षिण भागके समीपमें स्थित एक पर्वत २७॥२ वरुणप्रभ (व्य) वारुणीवर द्वीपका रक्षक देव ५।६४० वरुणाभिस्य (व्य जरासन्धका पुत्र ५२।३८ वर्तना (पा) पदस्थानपतित हानिवृद्धिरूप परिणमन ७।१ वरतनु (व्य) दक्षिण लवण समुद्रका वासी देव ११।१३ वरद (पा) स्फटिक सालका पश्चिम गोपुर ५७/५९ वरदा ( भौ) एक नदी १७।२३ वरदत्त (य) एक मुनि ६०।१०६ वरदा (व्य) नेमिनाथका प्रथम गणधर ६०/३४९ वर्दल ( भी ) तमः प्रभा पृथिवीके द्वितीय प्रस्तारका इन्द्रकबिल ४१४६ वर्धक ( भी ) भरतक्षेत्र कोशल देशका एक गांव २७।६१ वरथमं (य) एक मुनिराज ३३।१११ वर्धमान (भौ) रुचिकगिरिकी उत्तर दिशाका एक कूट ५।७०२ वर्धमान (व्य) अन्तिम तीर्थंकर महावीर २०४६ वर्धमान जिनेन्द्र (व्य) अन्तिम तीर्थंकर वधमान जिनेशिने (पा) चौबीसवें तीर्थकर १२ वर्धमानपुराण एक ग्रन्थ १।४१ वराह (भौ) वि. उ. नगरी २२।८७ वराह (व्य) चारुदत्तका मित्र २१।१३ = अज्ञातकविका For Private & Personal Use Only वराहक (व्य) वसुदेवका सम्बन्धी एक विद्याधर ५१२ वरिष्ठ (पा) स्फटिक सालका दक्षिण गोपुर ५७/५८ वर्ष (पा) दो अयनका एक वर्ष होता है ७२२ लाह (भौ) राजगृहीका एक पर्वत ३।५५ वाहक (व्य) कृष्णके सेनापति अनावृष्टिके शंखका नाम ५१।२१ वाहक (भौ) वि. उ. नगरी २२।९१ वलि (व्य) मेघनाद की छठी पीढ़ीका एक राजा जो प्रतिनारायण था २५|३४ चलि (व्य) सुपार्श्वनाथका गण धर ६०।३४७ वळि (व्य) छठा प्रतिनारायण वस्तु ( भी ) सौधर्म युगलका चौथा इन्द्रक ६।४४ वप्रभविमान (भी) कुबेर लोकपालका विमान ५।३२७ वल्लरी (व्य) एक भीलनी ६९।१६ • वशिष्ठ (व्य) मथुराका एक तापस, जो बादमें वाराणसी जाकर जैन मुनि हो गया ३३।४७ वसन्त (व्य) मनोयोगका वैरी एक विद्याधर ४७४० वसन्तभद्र = एक उपवासव्रत ३४।५६ वसन्त सुन्दरी (व्य ) राजा विन्ध्यसेन और नर्मदाकी पुत्री ४५/७० वसन्तसेना (व्य) चम्पापुरीकी कलिंग सेना गणिकाकी पुत्री २१।४१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017