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स्मितयशस् (व्य) अर्ककीर्तिका पुत्र १३ ॥७
स्मृत्यनुपस्थान (पा) सामायिक व्रतके अतिचार ५८|१८० स्मृत्यन्तराधान (पा) दिग्वतका अतिचार ५८।१७७ स्त्रोतोऽन्तर्वाहिनी (भौ) विदेह की
एक विभंगा नदी ५।२४१ स्वपाक = दिति देवीके द्वारा प्रदत्त विद्या निकाय
२२।५९ स्वप्न (पा) अष्टाग निमित्तज्ञानका एक भेद १०।११७ स्वयंप्रभ ( भौ) रुचिकगिरिका पश्चिम दिशासम्बन्धी एक विशिष्ट कूट ५।७२० स्वयंप्रभ (व्य) आगामी तीर्थंकर ६०१५५८ स्वयंप्रभविमान (भौ ) सोमलोकपालका विमान ५।३२३ स्वयंप्रभा (व्य) धनद = कुबेर की स्त्री ६०/५०
स्वयंप्रभा (व्य ) सत्यभामाकी माता ६०।२२
स्वयंप्रभा (पा) समवसरण के आम्रवनकी वापिका५७।३५ स्वयंप्रभा (व्य) स्तिमितसागरकी स्त्री १९।३
स्वयंभू (व्य) कुन्थुनाथ का प्रथम गणधर ६०।३४८
स्वयंभू (व्य) पार्श्वनाथका प्रथम गणधर ६०।३४९ स्वयंभू (व्य) आगामी तीर्थंकर ६०१५६१
स्वयंभू (व्य) तीसरा नारायण
६०।२८८
स्वयंभू ( व्य ) विदेह के एक तीर्थंकर २०१७ स्वयंभूरमणद्वीप (भी) अन्तिम
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शब्दानुक्रमणिका
सोलह द्वीपों में सोलहवाँ द्वीप ५६२५ स्वयंभूरमणसमुद्र (भी) सबसे अन्तिम समुद्र ५।६२६ स्वयंप्रभ (व्य) विदेहके एक तीर्थंकर ३४१३६ स्वयंप्रभगिरि (भौ) स्वयम्भूरमण
द्वीप मध्य में स्थित वलयाकार एक पर्वत ५७३० स्वर = वैणस्वरका एक भेद १९।१४७
स्वर = शारीर स्वरका भेद
१९।१४८
|स्वर = पदगत गान्धर्वको विधि १९।१४९
स्वर (पा) अष्टांगनिमित्त ज्ञान
का एक अंग १०।११७ स्वरित= वेद में प्रयुक्त होनेवाला स्वरविशेष ( समाहारः स्वरितः ) १७१८७ स्वर्गी = देव १८११७० स्वर्णनाभ (हिरण्यनाभ) (व्य)
राजा रुधिरका पुत्र ३१।६२ स्वर्णनाम (व्य ) पद्मावतीका
पिता ६०।१२१
स्वर्णनाभ ( भौ) वि. द. नगरी २२/९५
स्वर्णबाहु (व्य) जरासन्धका पुत्र
५२/३६
स्वर्णाभपुर (व्य ) विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर २४/६९ स्वस्तिकनन्दन ( भौ) रुचिक
गिरिका कूट ५।७०६ स्वस्तिक (भौ) रुचिकगिरिकी दक्षिण दिशाका कूट ५।७०२
स्वस्तिक (भौ) मेरुसे दक्षिणकी ओर सीतोदा नदीके पूर्व
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तटपर स्थित एक कूट ५२०६
स्वस्तिक (व्य ) कुण्डलगिरिके मणिप्रभ कूटका निवासी देव ५१६९३ स्वस्तिक कूट ( भी ) विद्युत्प्रभ
पर्वतका एक कूट ५२२२ स्वस्तिमती (व्य ) क्षीर कदम्ब - की स्त्री १७।३८
स्वस्थ (व्य ) उग्रसेनके चाचा
शान्तनका पुत्र ४८ ४० स्वस्त्रीय = बहनका लड़का,
भानजा ४८७३
स्वहस्तक्रिया (पा) एक क्रिया
५८।७४
स्वहस्तिन् (व्य ) रुचिकगिरिके स्वस्तिक कूटपर रहनेवाला
देव ५७०२ स्वहिण्डवाख्यानं परिभ्रमणका १।१०३
=
अपने
वृत्तान्त
स्वाङ्गुल (पा) अपना-अपना अंगुल ७४४ स्वाति (व्य) मानुषोत्तर के तप
नीयक कूटपर रहनेवाला देव ५६०६ स्वाति (व्य ) हैमवत क्षेत्रके नाभिगिरिपर रहने वाला व्यन्तर देव ५।१६४ स्वाध्याय = शास्त्राध्ययन करते
हुए अपनी आत्माका
अध्ययन करना १।६९ स्वायम्भुव (व्य ) ऋषभदेवका
गणधर १२।६४
स्वार्थसम्पन्न (वि) आत्महितसे
युक्त १९ स्वस्थिता (व्य) रुचिकगिरिके
अमोघ कूटपर रहनेवाली देवी ५।७०८
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