Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 1010
________________ ९७२ सौदास ( व्य ) एक राजा ११८३ सौदास ( व्य ) कांचनपुरके राजा जितशत्रुका २४|१३ पुत्र सौदामिनी = बिजली ५९/४० सौधर्म (भी) पहला स्वर्ग६।३६ सौधर्म (भी) पहला स्वर्ग८ । १४८ सौन्द कृष्णकी तलवार = ५३।४९ सौमनसकूट ( भी ) सौमनस्य पर्वतका एक कूट ५।२२१ सौमनस (भौ) रुचिकगिरिका पश्चिम दिशासम्बन्धी कूट ५।७१३ सौमनस (भौ) मेरुका एक ५/३०८, सौमनसवन (भौ) मेरु पर्वतका एक वन ५।२९५ सौमनस्य (भौ) मेरुकी पूर्वदक्षिण दिशामें स्थित एक रजतमय पर्वत ५।२१२ सौमनस्य (भौ) उपरिमग्रैवेयकका द्वितीय इन्द्रक ६।५३ सौमनस ( भी ) वि. उ. नगरी २२।९२ सौराज्य = उत्तम राज्य ५४१३ सौरूप्य = सौन्दर्य २१।४२ सौम्य (भौ ) अनुदिश ६ | ६३ सौम्यरूपक (भौ ) अनुदिश ६।६३ सौवीर (भौ) देशविशेर्ष ३५ सौवीर ( भी ) देशका नाम ११।६७ सौवीरी = मध्यमकी एक मूर्च्छना १९।१६३ सौर्पक (व्य ) एक विद्याधर राजा २५।६३ सौहित्य = तृप्ति-सुख १६।४५ Jain Education International हरिवंशपुराणे स्कन्धावार = सेनाका निवेशपड़ाव ११।२७ स्कन्ध (पा) आग्रायणी पूर्वके चतुर्थ प्राभृतका योगद्वार १०१८६ स्तनक ( भी ) शर्करा प्रभा पृथिवीके द्वितीय प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।१०६ स्तनलोलुप (भौ) शर्कराप्रभा पृथिवीके एकादश प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।११५ स्तनित = मेघकी गर्जना ३।२३ स्तनितकुमार=भवनवासी देवों का एक भेद ३।२३ स्तम्भन = विद्यास्त्र २५।४८ स्तरक (भी) शर्कराप्रभा पृथिवी के प्रथम प्रस्तारका इन्द्रक विल ४|१०५ स्तिमितसागर (व्य ) अन्धकवृष्णि और सुभद्राका पुत्र १८|१३ स्तुति = चौबीस तीर्थंकरोंका स्तवन ३४।१४३ स्तेनप्रयोग (पा) अचौर्याणुव्रत व्रतका अतिचार ५८।१७१ स्तेनाहृतादान (पा) अचौर्याणु व्रतका अतिचार ५८।१७१ स्तोक (पा) सात प्राणोंका एक स्तोक होता है ७/२० स्थलगता (पा) दृष्टिवाद अंगके चूलिकाभेदका उपभेद १०।१२३ स्थापनासथ्य (पा) दश प्रकारसे सत्यों में से एक सत्य १०।१०० स्थान = शारीरस्वरका भेद १९।१४८ स्थानाङ्ग (पा) द्वादशांगका एक भेद २९२ For Private & Personal Use Only - स्थाने (अ) युक्त — ठीक ३।१९६ स्थिति = ध्रौव्य पूर्व और आगामी दोनों पर्यायों में रहना ३९/७ स्थितिबन्ध (पा) बन्धका एक भेद ५८।२०३ स्थितिभुक्ति (पा) मुनियोंका एक मूलगुण, खड़े-खड़े आहार लेना २।१२८ स्थिर हृदय (व्य) कुण्डलगिरिके अंककूटका निवासी देव ५/६९३ स्नातक (पा) मुनिका एक भेद ६०/५८ स्पर्श (पा) आग्रायणी. के चतुर्थ प्राभृतका योगद्वार १०१८२ स्पर्श- क्रिया (पा) एक क्रिया ५८।७० स्फटिक (भौ) सौधर्मयुगलक अठारहवाँ इन्द्रक ६।४६ स्फटिक (भौ) रत्नप्रभाके खरभागका तेरहवाँ पटल ४/५४ स्फटिक ( भी ) रुचिकगिरिका उत्तर दिशासम्बन्धी कूट ५।७१५ स्फटिकक्कूट (भी) मानुषोत्तर की उत्तर दिशाका कूट५/६०९ स्फटिककूट ( भी ) गन्धमादन पर्वतका एक कूट ५/२१८ स्फटिक, स्फटिकप्रभ ( भी ) कुण्डलगिरिकी उत्तर दिशासम्बन्धी कूट ५। ६९४ स्फटिकसाल (पा) स्फटिकमणि से बना हुआ समवसरणका तीसरा कोट ५७/५६ स्फुट (व्य ) जरासन्धका पुत्र ५२।३३ स्फुटिक (भी) अनुदिश ६ | ६४ www.jainelibrary.org

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