Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 997
________________ शब्दानुक्रमणिका शाक (व्य) नेमिनाथके शंखका नाम ५११२० शाङ्ग (व्य) श्रीकृष्ण ५५०६१ शाङ्ग = कृष्णकाएकनाम५३।४९ शातकुम्भमय (वि) स्वर्णनिर्मित २।४२ शाखामृग = वानर २७१५३ शारदी(वि) शरद्ऋतुसम्बन्धिनी २।७८ शारीर = स्वरका एक भेद १९।१४६ शाहपाणि = कृष्ण ४२१९७ शान्त (व्य) शान्तिषेण नामक आचार्य १।३६ शान्ति (व्य) सोलहवें तीर्थंकर, पंचम चक्रवर्ती ४५११८ शान्ति (व्य) पंचम चक्रवर्ती ६०।२८६ शान्ति (व्य) सोलहवें तीर्थंकर १११८ शान्तिचन्द्र (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।९९ शान्तिमद (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।३० शान्तिवर्धन (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।१९ शान्तिषेण (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५/३० शार्दूल (व्य) समुद्र विजयका मन्त्री ५०॥४९ शाल (व्य) राजा मूलका पुत्र । १७१३२ शालगुहा(भौ) एक नगरी जहाँ वसुदेव गये २४॥२९ शालिग्राम (भी) मगधदेशका एक गांव ४३।९९ शालिग्राम (भौ) वसुदेवके भवा न्तरसे सम्बन्ध रखनेवाला एक ग्राम १८।१२७ शालिग्राम (भौ) एक गाँवका शिवनन्द (व्य) समुद्र विजयका नाम ६०६२ पुत्र ४८।४४ शाल्मलोखण्ड (भौ) एक ग्राम शिवमन्दिर (भो) वि. द. नगरी ६०।१०९ २२।९४ शाल्मली स्थल (भो) मेरुकी शिवमन्दिर (भी) विजयाकी नैऋत्य दिशामें सीतोदा दक्षिण श्रेणीका एक नगर नदीके दूसरे तटपर निषधा २११२२ चलके समीप स्थित स्थल- शिवा (व्य) राजा समुद्रविजयविशेष, जहाँ शाल्मली वृक्ष की स्त्री होता है ५।१८७ शिवि (व्य) उग्रसेनके चाचा शासन (पा) मत, सिद्धान्त १११ शान्तनुका पुत्र ४८।४० शिक्षावत (पा) जिनसे मुनिव्रत- शिविका = पालकी २५० की शिक्षा मिले। इसके शिशुपाल (व्य) चेदी देशका चार भेद हैं-सामायिक, राजा ४२।५६ प्रोषधोपवास, भोगोपभोग शीता (व्य) रुचिकगिरिके यश:परिमाण और अतिथि कूटपर रहनेवाली देवी संविभाग २।१३४ ५।७१४ शिखण्डिन् (व्य) एक राजा शीतल (व्य) दशम तीर्थकर ५०१८४ १३।३२ शिखरिकूट (भौ) शिखरिकूला- शीरायुध-बलभद्र ३५।३९ ___ चलका दूसरा कूट ५।१०५ ।। शीरी (व्य) बलदेव ४२।९७ शिखरिन् (भौ) जम्बूद्वीपका । शीलायुध (व्य) श्रावस्तीका सातवाँ कुलाचल ५।१५ एक राजा जो शान्तायुधका शिखिकण्ठ (व्य) आगामी प्रति- पुत्र था २९४३६ नारायण ६०५७० शीलायुध (व्य) वसुदेव और शिरःप्रकम्पित. (पा) चौरासी प्रियंगुसुन्दरीका पुत्र ४८०६२ लाख महालताओंका एक शीलवतेष्वनतीचार = भावना शिरःप्रकम्पित ७.३० ___३४।१३४ शिखिन् % मयूर ३६१ शुक्र (भी) नौवां स्वर्ग ६१३७ शिव = कल्याण ३८०२ शुक्र (भो) महाशुक्र स्वर्गका शिव (पा) स्फटिक सालका इन्द्रक ६५० दक्षिण गोपुर ५७१५७ शुक्तिमती (भी) शुक्तिमती शिव, शिवदेव (व्य) लवण- नदीके तटपर राजा अभि समुद्र में उदक और उदवास चन्द्रके द्वारा बसायी हुई पर्वतके निवासी देव नगरी १७॥३६ ५।४६१ शुक्तिमती (भौ) एक नदी शिवचन्द्रा (व्य) वि. द. के १७।३६ जम्बूपुर नगरके राजा शुक्लध्यान (पा) प्रशस्तध्यानका जाम्बवकी स्त्री ४४।४ एक भेद ५३३५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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