Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 1000
________________ ર सत्यवान् (व्य) ऋषभदेवका गणधर १२।६२ सत्यवेद (व्य) ऋषभदेवका गणधर १२१६२ सत्रशाला = दानशाला २५।२१ सरसमा = सज्जनोंका समूह ११४४ सप्तम प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।१३५ षडावश्यक (पा) मुनियोंके मूल गुण-समता, वन्दना, स्तुति, प्रतिक्रमण,स्वाध्याय और कायोत्सर्ग....ये छह आवश्यक हैं २।१२८ षड्ज = स्वरका एक भेद १९।१५३ षड्जकैशिकी = षड्ज स्वरसे सम्बद्ध जाति १९।१७४ षड्जमध्या षड्जस्वरसे सम्बद्ध जाति १९।१७४ षड्जीव निकाय-पृथिवीकायि कादि पाँच स्थावर और एक त्रस २।११७ षष्ठ-वेला-दो दिनका उपवास २०५८ पाडूजी = षड्जस्वरसे सम्बद्ध जाति १९।१७४ षाडव= चौदह मूर्च्छनाओंका एक स्वर १९।१६९ षोडशार्द्ध = आठ २।८३ हरिवंशपुराणे सचित्तनिक्षेप (पा) अतिथिका अतिचार ५८।१८३ सचित्तावरण (पा) अतिथिका अतिचार ५८।१८३ सचित्ताहार (पा) भोगोपभोग का अतिचार ५८।१८२ सचित्तसंबन्धाहार (पा) भोगोप भोगका अतिचार५८।१८२ सचित्त संमिश्राहार (पा) भोगोपभोगव्रतका अति चार ५८।१८२ सञ्जयन्त (व्य) विदेहक्षेत्रके एक मुनि २७।३ सञ्जय (व्य) राजा चरमका पुत्र १७१२८ सञ्जय (व्य) एक राजा ५०।१३० सम्ज्वलित (भौ) बालुकाप्रभाके अष्टम प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।१२५ सरकल्याण = विवाह १९६२ सत्यक (व्य) कृष्णके पक्षका एक योद्धा ५२।१४ सत्यक (व्य) एक राजा ५०११२४ सत्यक (व्य) शिविका पुत्र ४८०४१ सत्यप्रवाद (पा) पूर्वगत श्रुतका एक भेद २।९८ सत्यदेव (व्य) ऋषभदेवका गणधर १२१६२ सत्यनेमि (व्य) यादव५०।१२० सत्यनेमि (व्य) समुद्रविजयका पुत्र ४८४३ सत्यभामा (व्य) कृष्णकी स्त्री १।९३ सत्यमहाव्रत (पा)रागद्वेष मोह पूर्वक परतापकारी वचनोंका त्याग २।११८ सत्यसत्त्व (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२१३२ सत्संख्यादि (पा) सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व ये आठ अनुयोग-द्वार २।१०८ सत्ययशस् (व्य) ऋषभदेवका गणधर १२।६५ सस्या (व्य) सत्यभामा ४३।१३ सद्भद्रिलपुर (भो) एक नगर १८।११२ सिद्धार्था = एक विद्या २२१७० सानत्कुमार (भौ) तीसरा स्वर्ग [स] सककापिर (भौ) देशका नाम १११६९ सकन्दर्पप्रिय = कामीजनोंको प्रिय ४२।२१ सकलभूतदया (पा) सातावेद नीयका आस्रव ५८।९४ सक्ति = लगाव ३१९ सङ्घ (व्य) एक मुनि १८।१३३ सगर (व्य) एक राजा २३३५० सगर (व्य) द्वितीय चक्रवर्ती ६०।२८३ सगर (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२।३६ सङ्घ = भीड़ १९।११ सनत्कुमार(व्य) अकृत्रिम चैत्या लयोंकी प्रतिमाओंके समीप स्थित यक्ष ५।३६३ सनत्कुमार (व्य) चौथा चक्रवर्ती ६०१२८६ सनत्कुमार ( व्य) कुरुवंशमें उत्पन्न चौथा चक्रवर्ती ४५।१६ सनिकाचित (पा) आग्रायणी पूर्वके चतुर्थ प्राभृतका योगद्वार १०८५ सन्निपात = तालगत गान्धर्वका एक प्रकार १९।१५० सन्तान = कल्पवृक्ष विशेष८।१८९ सन्दरार्य ( व्य) विमलनाथका प्रथम गणधर ६०।३४८ सन्ध्याकार (भो) विन्ध्याचलका एक नगर ४५।११४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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