Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 1002
________________ ९६४ सर्वतोभद्र = श्रीकृष्णका भवन जो अठारह खण्डका था ४१।२७ सर्वतोभद्र = एक उपवासव्रत ३४१५२-५५ सर्वात्मभूत (व्य ) आगामी तीर्थकर ६०।५५९ सर्वदेव (व्य) भगवान् ऋषभ - देवका गणधर १२।६० सर्वप्रिय (व्य) भगवान् ऋषभदेवका गणधर १२।६० सर्वरत्न (पा) चक्रवर्तीकी एक निषि ११।११० सर्वरत्न (भी) रुचिकगिरिको नैर्ऋत्य दिशा में स्थित एक कूट ५७२६ सर्वरत्न कूट ( भी ) | मानुषोत्तरके पूर्वोत्तर कोणमें निषधाचलसे लगा हुआ एक कूट ५।६०८ सर्वरत्नमय ( भी ) मेरुकी एक परिधि ५।३०५ सर्वार्थ (व्य) राजा सिद्धार्थके पिता ( भगवान् महावीरके बाबा ) २।१३ सर्वार्थं (व्य) चारुदत्तका मामा २१।३८ सर्वार्थसिद्धा २२/७० सर्वार्थकल्पक (पा) आग्रायणी पूर्वकी वस्तु १०१७९ सर्वार्थसिद्धि (भो अनुत्तरविमानोंका इन्द्रक ६१५४ सर्वार्थसिद्धि (भौ) अनुत्तर विमान ६।६५ सर्वार्थसिद्धि स्तूप (पा) समव सरण के स्तूप ५७।१०२ सर्वविद्याप्रकर्षिणी = एक विद्या २२६२ Jain Education International - एक विद्या हरिवंशपुराणे सर्वविद्याविराजिता = एक विद्या २२।६४ सर्वयशा (व्य) राजा तृणबिन्दुकी स्त्री २३।५२ वर्षावधि (पा) अवधिज्ञानका एक भेद १०।१५२ सर्वविदे (वि) सर्वज्ञाय १३ सर्वसह (व्य) भगवान् ऋषभदेवका गणधर १२।५९ सर्वाच्छादन विद्यास्त्र २५।४९ सर्वश्री (व्य) मेघपुरके राजा धनंजयकी स्त्री ३३।१३५ सर्वश्री (व्य) वीतशोका नगरी के वैजयन्त राजाकी स्त्री २७६ सल्लेखना (पा) कषायको कृश कर शक्तिसे मरण करना ५८१६० सवर्णकारिणी २२।७१ = एक विद्या सवस्तुक = तालगत गान्धर्वका एक प्रकार १९।१५० सवाच्यस्य = सापराधैनिन्दनीय = ५४/४७ सवित्री = कृष्णको माता देवकी ३५/४९ सल्य (व्य ) एक राजा ३१।९८ ससारस्वत (भी) देशका नाम ११।७२ सहदेव (व्य) पाण्डव ४५/२ सहदेव (व्य ) जरासन्धका पुत्र ५२।३० सहदेव (व्य) एक राजा५०।७१ सहस्रग्रीव (व्य) बलि प्रति नारायणके वंशका एक राजा २५/३६ सहस्रार (वि) हजार आरोंवाला ३।२९ For Private & Personal Use Only सहस्रार ( भी ) बारहवाँ स्वर्ग ४।१५ सहस्रार ( भी ) बारहवाँ स्वर्ग ६।३८ सहस्त्रदिक् (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२।३९ सहस्रपर्वा = एक विद्या २२।६७ सहस्रानीक (व्य) विनमिका पुत्र २२।१०५ सहस्ररश्मि (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२।४० सा (व्य) अचलका पुत्र४८१४९ संक्रम (पा) आग्रायणी पूर्वके चतुर्थ प्राभृतका योगद्वार १०१८३ संगमक (व्य) पातालवासी एक देव जिसकी राजा पद्मनाभने आराधना की ५४/१२ संग्रह (पा) एक नय ५८ ४१ संघाट (भौ) शर्कराप्रभा पृथिवीके षष्ठ प्रस्तारका इन्द्रक विल ४|११० संघात (पा) श्रुतज्ञानका भेद १०।१२ संजय (व्य) विनमिका पुत्र २२१०४ संजयन्त (व्य ) वीतशोका नगरीके वैजयन्त राजाका पुत्र २७/६ संज्ञासंज्ञा (पा) आठ अवसंज्ञाओंकी एक संज्ञासंज्ञा होती है ७/३८ संप्रज्वलित (भौ) बालुकाप्रभाके नवम प्रस्तारका इन्द्रक विल ४|१२६ संयम (पा) पाँच इन्द्रियों और मनको वश करना तथा छह कायके जीवोंकी हिंसा न करना २।१२९ www.jainelibrary.org

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