Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 945
________________ शब्दानुक्रमणिका ९०७ कनक कूट (भौ) रुचिकगिरिका कन्दर्प (पा) अनर्थदण्डव्रतका कमला (व्य) चित्रबुद्धि मन्त्रीकी एक कूट ५।७०५ अतिचार ५८।१७९ स्त्री २७।९८ कनक (भौ) कुण्डलगिरिकी पूर्व- क्षपक श्रेणी (पा) जिसमें चारित्र- कमलाङ्ग (पा) चौरासी लाख दिशाका एक कूट ५।६९० मोह कर्मका क्षय होता है नलिनोंका एक कमलांग कनकचित्रा (व्य) रुचिकगिरिके ५६४८८ ७।२७ नित्यालोक कूटपर रहने- कपाट (पा) लोकपूरण समुद्- कम्बल (व्य) जरासन्धका पुत्र वाली देवी ५।७१९ घातका दूसरा चरण५६।७४ ५२।३७ कनकध्वज (व्य) आगामी चौथा कपिल (व्य) एक राजा ५०1८२ कर%D Vड २१३७ मनु ६०१५५५ कपिल (व्य) धातकीखण्डके कराल ब्रह्मदत्त (व्य) एक मुनि कनकपुङ्गव (व्य) आगामी भरतक्षेत्रका नारायण २३॥१५० पांचवाँ मनु ६०५५५ ५४।५६ कर्करिका = झारी १५।११ कनकप्रभ (भौ) कुण्डलगिरिकी कपिल (व्य) वसुदेव और कर्कोटक (व्य) धरणका पत्र पूर्व दिशाका एक कूट कपिलाका पुत्र २४।२७ ४८।५० ५।६९० कपिला (व्य) वेदसामपुरके कर्कोटक (भौ) कुम्भकण्टक द्वीपकनकप्रम (व्य) आगामी दूसरा राजा कपिलश्रुतिकी पुत्री का एक पर्वत २१११२३ मनु ६०१५५५ २४।२६ कर्कोटक (व्य) जरासन्धका पुत्र कनकप्राकार (पा) समवसरणका ___कपिल (व्य) वसुदेव और मित्र- . ५२।३६ स्वर्ण निर्मित कोट ५७।२४ श्रीका पुत्र ४८५८ कर्ण (व्य) राजा पाण्डुका कन्या कनकमञ्जरी (व्य) नमिकी कपिला (व्य) सत्यभामाके. __ अवस्था में कुन्तीसे उत्पन्न पुत्री २२।१०८ भवान्तर वर्णनसे सम्बद्ध पुत्र ४५।३७ कनकमाला (व्य) राजा काल एक स्त्री ६०११ कर्णसुवर्ण(भौ)जहाँ राजा कर्णने संवरकी स्त्री ४३।४९ कपिलश्रुति (व्य) वेदसामपुरका ___कर्णकुण्डल छोड़े थे ५२।९० कनकमाला (व्य) महेन्द्र और राजा २४।२६ कबुक (भौ) देशका नाम ११७१ सानुधरीकी पुत्री ६०८१ कपिष्टल (व्य) वामदेवका शिष्य कर्मक्षयविधि = व्रतविशेष कनकमालिनी (व्य) गिरिनगरके ४५।४६ ३४।१२१ राजा चित्ररथकी स्त्री क्षपक (पा) क्षपकश्रेणीवाला कर्मन् (पा) आग्रायणी पूर्वक ३३।१५० चारित्रमोहका क्षय करने- चतुर्थ प्राभृतका योगद्वार कनकमेखला (व्य) मेघदल वाला मुनि ३।८२ १०८२ नगरके राजा सिंहकी स्त्री कवल (पा) एक हजार चावल- कर्मप्रवाद (पा) पूर्वगत श्रुतका ४६।१४ का एक कवल-ग्रास होता एक भेद २।९८ कनकराज (व्य) आगामी है ११।१२५ कमभूमि (पा) जहाँ असि, तीसरा मनु ६०१५५५ कमल (पा) चौरासी लाख मषी आदि छह कर्मोसे कनकावलीविधि = एक उपवास कमलांगोंका एक कमल आजीविका होती है ३।११२ व्रत ३४।७३-७७ ७।२७ कर्मारवी-मध्यमग्रामके आश्रित कनकावर्त (व्य) सिंह और कमला (पा)समवसरणके चम्पक जाति १९:१७७ कनकमेखलाकी पुत्री वनकी वापिका ५७१३४ कर्मस्थिति (पा) आग्रायणी ४६।१५ कमला (व्य) उज्जयिनीके पूर्वके चतुर्थ प्राभृतका कनीयस् (भी) देशविशेष ३४ . वृषभध्वज राजाकी स्त्री योगद्वार १०१८६ । कन्दर्प - देवविशेष ३।१३६ ३३।१०३ कलत्र-स्त्री ११११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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