Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 955
________________ चित्रकूट ( भो) पूर्व विदेहका वक्षारगिरि ५। २२८ चित्रकेतु (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२/३० चित्रगुप्त (व्य) आगामी तीर्थकर ६०१५६० चित्राङ्गद (व्य) चित्रचूल और मनोहरीका पुत्र सुभानुका जीव ३३।१३२ चित्राङ्गद (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२।३३ चित्रचूल ( व्य ) नित्या लोक नगरका राजा ३३।१३२ चित्रबुद्धि ( व्य ) प्रीतिभद्रका मन्त्री २७।९८ चित्रमाला (व्य ) चक्रायुधकी स्त्री २७।९० चित्रमाली (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२।३१ चित्ररथ (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५|२८ चित्ररथ (व्य) गिरिनगरका राजा ३३।१५० चित्रलेखिका (व्य) बाण विद्याधरकी पुत्री उषाको सखी ५५।२४ चित्रवसु (व्य) राजा वसुका पुत्र १७१५८ चित्रवाहन (व्य) आगामी चक्र ६०१५६५ चित्रसमालमन=अनेक प्रकारके विलेपन ५५।५४ चित्रा (or) रुचिकगिरिके विमल कूटपर रहनेवाली देवी ५।७१९ चित्रा (व्य ) रुचिकगिरिके सुप्रतिष्ठ कूटपर रहनेवालो देवी ५।७१० चित्रा (भो) मेरु पर्वतसे एक Jain Education International शब्दानुक्रमणिका हजार योजन विद्यमान चित्रा नामकी पृथिवी ४।१२ चित्रा (भी) रत्नप्रभाके खर भागका पहला पटल ४|५२ चूडामणि (व्य) विनमिका पुत्र २२।१०५ चूडामणि (भो) वि. उ. नगरी २२।९१ चूतपुर (आम्रपुर ) ( भौ) आम्र देवका निवास स्थान ५।४२८ चूतवन (आम्रवन ) ( भी ) विजयदेवके नगरसे २५ योजन दूर उत्तर में स्थित एक वन ५।४२२ चूलिक (व्य) चूलिका नगरीका राजा ४६।२६ चूलिका (पा) दृष्टिवाद अंगका एक भेद १०।६१ चूलिका (पा) अंगप्रविष्ट श्रुतका एक भेद २।१०० चूलिका (भौ) एक नगरी ४६/२६ चेटक (व्य) वैशालीका राजा राजा सिद्धार्थका श्वसुर २।१७ चेदिराष्ट्र ( भी ) अभिचन्द्रके द्वारा विन्ध्यपृष्ठपर बसाया देश १७/३६ वैश्यालय = जिन मन्दिर ४।६१ चोदना वाक्य = 'अजैर्यष्टव्यम्' इस वेदवाक्य में १७।१२५ [ छ ] छायासंक्रामिणी एक विद्या २२/६३ छिन्न (पा) अष्टांग निमित्त ज्ञानका एक अंग १०।११७ छेद (पा) अहिंसाणुव्रतका अतिचार ५८।१६४ For Private & Personal Use Only छेदन = विद्यास्त्र २५/४९ छेदोपस्थापना (पा) चारित्रका एक भेद ६४।१६ [ ज ] जगत् ( भी ) सौधर्म युगलका उनतीसवाँ इन्द्रक ६०४७ जगती (भी) जम्बूद्वीपको चारों ओरसे घेरे हुए वज्रमयी भित्ति ५।३७७ जगकुसुम (भी) रुचिकगिरिका पश्चिम दिशासम्बन्धी कूट ५।७१२ जगत्स्थामा ९१७ व्य) कपिष्टलका पुत्र ४५।४६ जघन्यपात्र ( पा ) अविरत सम्यग्दृष्टि ७ १०९ जघन्य शातकुम्भविधि व्रतविशेष ३४।८७ जघन्य सिंहनिष्क्रीडित उपवासव्रत ३४।७८ जननाभिषव ८/२३७ जनपद सत्य (पा) दश प्रकारके सत्यों में से एक सत्य १०।१०४ जनार्दन व्य) श्रीकृष्ण ४३।७६ जन्मदन्त (व्य ) आगामी चक्र वर्ती ६०।५६४ जमदग्नि (व्य) कामधेनुका धनी एक तपस्वी २५।९ जम्बू (व्य) जम्बूस्वामी नामक केवली १६० जम्बूद्वीप ( भो ) आद्यद्वीप २१ = = = एक एक जन्माभिषेक जम्बूद्वीप ( भी ) असंख्यात द्वीप समुद्रोंको उल्लंघन करने के बाद स्थित द्वीपविशेष ५।१६६ www.jainelibrary.org

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