Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 979
________________ सुप्रभ कूटका निवासी देव ५।६९२ महापद्म ( भी ) महाहिमवत् कुलाचलका हृद ५।१२१ महापद्म (व्य) आगामी चक्रवर्ती ६०।५६५ महापद्म (व्य) आगामी तोर्थ कर ६० ५५८ महापद्मा ( भी ) पूर्वविदेहका एक देश ५।२४९ महापुण्डरीक (भौ) रुक्मिकुला - चलका हृद ५।१२१ महापुण्डरीक (पा) अंगबाह्यश्रुतका एक भेद २।१०४ महापुर ( भी ) विं. उ. नगरी २२।९१ महापुर ( भी ) एक नमर, जहाँ वसुदेव गये थे २४।३७ महापुरी (भौ) विदेहकी एक नगरी ५।२६१ महाप्रभ (व्य) क्षीरवर द्वीपका रक्षक देव ५।५४२ महाप्रभ ( भी ) कुण्डल परिका दक्षिण दिशाका कूट ५।६९२ महाबळ (व्य ) एक विद्याधर ६०।१८ महाबळ (व्य) भगवान् ऋषभदेवका पूर्वभव ९।५८ महाबल ( व्य ) एक राजा ५०।१२५ महाबल (व्य) सोमयशका पुत्र १३।१६ महाबल (व्य ) सुबलका पुत्र १३॥८ महावक ( व्य ) ऋषभदेवका गणधर १२।६६ महाबल (व्य ) आगामी नारायण ६०१५६६ Jain Education International शब्दानुक्रमणिका महाबाहु (व्य) विनमिका पुत्र २२।१०५ महाबाहु (व्य जरासन्धका पुत्र ५२।३४ महामानु (व्य) कृष्णका पुत्र ४८६९ महाभुज (व्य ) कुण्डलगिरिके कनकप्रभकूटका निवासी देव ५।६९० महाभीम (व्य ) दूसरा नारद ६०१५४८ महामालिन् (य) जरासन्धका पुत्र ५२४० महारथ (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५|२८ महारथ ( व्य ) वसुदेव और अवन्तीका पुत्र ४८ ६४ महारथ (व्य ) ऋषभदेवका गणधर १२।६६ महाराज (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।१५ महारुद्र ( व्य ) चौथा नारद ६०/५४८ महारौरव (भौ) सातवीं पृथिवीके अप्रतिष्ठान इन्द्रककी उत्तरदिशामें स्थित महानरक ४१५८ महालता (पा) चौरासी लाख महालतांगों की एक महालता होती है ७१२९ महालताङ्ग (पा) चौरासी लाख लताओंका एक महालतांग होता है ७२९ महावरा ( भी ) पूर्वविदेहका एक देश ५।२४७ महाप्रा (भी) पश्चिम विदेहका एक देश ५/२५१ महावसु (व्य ) जरासन्धका पुत्र ५२।३२ For Private & Personal Use Only ९४१ महावसु (व्य) राजा वसुका पुत्र १७५८ महाविन्ध्य ( भी ) दूसरी पृथिवी - के प्रथम प्रस्तारसम्बन्धी इन्द्रककी उत्तर दिशामें स्थित, महाभयानक नरक ४१५३ महाविमर्दन ( भी ) पाँचवीं पृथिवीके प्रथम प्रस्तारसम्बन्धी तम इन्द्रककी उत्तर दिशामें स्थित महानरक ४।१५६ महावीर (व्य) अन्तिम तीर्थंकर २।१८ महावेदन (भौ) तीसरी पृथिवी के प्रथम प्रस्तारसम्बन्धी तप्त नामक इन्द्रक विलकी उत्तर दिशामें स्थित महानरक ४।१५४ महावत (पा) हिंसा आदि पाँच पापोंका सर्वदेश त्याग करना, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहये पाँच महाव्रत हैं २।११७ महाशिरस (व्य) कुण्डलगिरिके कनककूटपर रहनेवाला देव ५।६९० महाशुक्र (भौ) दसवाँ स्वर्ग ४ । २५ महाशुक्र (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२/३३ महाशुक्र ( भी ) दसवाँ स्वर्ग ६/३७ महाश्वेता - एक विद्या २२/६३ महासर (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।२९ महासर्वतोभद्र : = एक उपवास व्रत ३४।५७-५८ महासेन (व्य) भोजकवृष्णि और पद्मावतीका पुत्र १८१६ www.jainelibrary.org

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