Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 954
________________ चन्द्रानन्द (व्य ) एक राजा ५०११२५ चन्द्राभ (भौ) रत्नप्रभाके खर भागका चौदहवाँ पटल ४।५४ चन्द्राम (व्य) अभिचन्द्रका पुत्र ४८.५२ चन्द्राभ (व्य) ग्यारहवाँ कुलकर ७।१६३ चन्द्राभ (व्य) एक विद्याधर २७।१२० चन्द्राम (भौ) ब्रह्मस्वर्गका एक विमान २७।११७ चन्द्रामा (व्य) वटपुरके वीरसेन राजाकी स्त्री ४३११६५ चपलगति (व्य) सूर्याभ और धारिणीका पुत्र ३४।१७ चमर (व्य)सुमतिनाथका गणधर ६०।३४७ चमर चम्पा (भौ) वि. उ. नगरी २२३८५ चम्पक (व्य) कंसका एक हाथी ३६।३३ चम्पकपुर (भौ) चम्पक देवका निवास स्थान ५।४२८ चम्पकवन (भौ) विजयदेवके नगरसे २५ योजन दूर पश्चिममें स्थित एक वन ५।४२२ चम्पा(भौ) अंगदेशकी राजधानी चम्पापुरी वर्तमान नाम नाथनगर(भागलपुर) १।८१ चम्पा (भो) धानक खण्डके भरत क्षेत्रकी एक नगरी ५४।५६ चम्पा (भौ) वि. उ. नगरी २२१८८ चर्चिका (पा) चौरासी लाख हस्त प्रहेलिकाओंकी एक चचिका होती है ७.३० हरिवंशपुराणे चरम (व्य) पुलोमका पुत्र १७।२५ चर्या (व्य) राजा प्रचण्डवाहनको पुत्री ४५।९८ चाणूर (व्य) कंसका एक मल्ल ३६।४० चान्द्रायणविधि = व्रतविशेष ३४।९० चाप (पा) धनुष ( चार हाथ ) ४।३४२ चार = गुप्तचर ५०।११ चारण (भौ) मेरुके नन्दनवनको दक्षिण दिशामें स्थित एक भवन ५।३१५ चारित्र (पा) सामायिक, छेदोप स्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म साम्पराय और यथाख्यान-ये चारित्रके पाँच भेद हैं २।१२९ चारित्रमोह (पा) मोहनीय कर्मका एक भेद ३३१४५ चारित्र शुद्धि = व्रतविशेष (अहिंसामहावत) ३४।१०० चारु (व्य) कुरुवंशी एक राजा ४५।२३ चारुकृष्ण (व्य) कृष्णका पुत्र ४८७१ चारुकृष्ण(व्य) एक राजा५०८३ चारुचन्द्र(व्य) चन्दनवनके राजा अमोघदर्शनके चारुमति स्त्रीसे उत्पन्न पुत्र २९।२५ चारुदत्त (व्य)सम्भवनाथके प्रथम गणधर ६०॥३४६ चारुदत्त (व्य) बलदेवका पुत्र ४८६६ चारुदत्त (व्य) चम्पानगरीका प्रसिद्ध सेठ १९।१२२ चारुदत्त (व्य) श्रीकृष्णका हितैषी एक राजा ५०७२ चारुपद्म (व्य) कुरुवंशी एक राजा ४५।२३ चारुमति (व्य) चन्दनवन नगर के राजा अमोघदर्शनकी स्त्री २९।२५ चारुरूप (व्य) कुरुवंशी एक राजा ४५।२३ चारुलक्ष्मी (व्य) मेघ सेठ और अलका सेठानीकी पुत्री ४६.१५ चारुहासिनी (व्य) भद्रिलपुरके राजा पौण्ड्रकी पुत्री जिसे वसुदेवने वरा २४॥३१ चारुहासिनी (व्य) वसुदेवकी स्त्री ११८४ चालन = एक दिव्य औषधि २१११८ चित्तवेग ( व्य) स्वर्णाभपुरका राजा विद्याधर २४।६९ चित्तेन्द्रिय निरोध (पा) मुनियों का एक मूल गुण-पांच इन्द्रियों तथा मनको वश करना २।१२८ चिन्तागति ( व्य) सूर्याभ और धारिणीका पुत्र ३४।१७ चित्र (भौ) नील कुलाचलकी दक्षिण दिशा और सीतानदीके पूर्व तटपर स्थित एक कूट' ५।१९१ चित्र (व्य) कुरुवंशका एक राजा ४५।२७ चित्रक (भौ) मेरुके नन्दनवनकी उत्तर दिशामें स्थित एक भवन ५।३१५ चित्रक (व्य) समुद्रविजयका पुत्र ४८०४४ चित्रकारपुर (भो) भरतक्षेत्रका एक नगर २७४९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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