Book Title: Harivanshpuran
Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 959
________________ तुङ्गीगिरि (भी) मांगीतुंगी नाम का पर्वत ६३।७२ तुक्य (पा) चौरासी लाख तुट्यांगों का एक तुट ७१२८ तुव्याङ्ग (पा) चौरासी लाख कमलोंका एक तुट्याङ्ग ७।२८ तुलिङ्ग ( भी ) देशका नाम ११।६४ तुषित (व्य ) लौकान्तिक देवका एक भेद ५५।१०१ तूर्याङ्ग : = एक कल्पवृक्ष ७८० तृणबिन्दु (व्य ) चन्द्रवंशी एक राजा २३१४७ तृतीय काळ (पा) सुषमादुःषमा काल १।२६ तोक = पुत्र २७।११९ तोमर (व्य) एक राजा ५०।१३० तोयधारा (व्य) नन्दनवनमें रहनेवाली दिक्कुमारी ५।३३३ त्रसरेणु (पा) आठ त्रुटिरेणुओंका एक त्रसरेणु होता है ७७३८ त्रसित ( भी ) रत्नप्रभा पृथिवीके दशवें प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।७७ त्रस्त (भी) रत्नप्रभा पृथिवीके नौवें प्रस्तारका इन्द्रक विल ४।७७ त्रुटिरेणु (पा) आठ संज्ञा संज्ञाओंका एक त्रुटिरेणु होता है ७/३८ त्रिकूट ( भी ) पूर्व विदेहका वक्षार गिरि ५।२२९ त्रिगर्त्त ( भी ) देशविशेष ३।३ त्रिगिन्छ (भौ) निषध कुलाचलका ह्रद ५।१२१ त्रिगुप्ति, त्रिसमितिव्रत = व्रत विशेष ३४ । १०६ ११६ Jain Education International शब्दानुक्रमणिका त्रिदश = देव १८ १२ त्रिदिव = स्वर्ग २१।१६३ त्रिपद (व्य) एक ढीमर ६० । ३३ त्रिपर्वा = एक विद्या २२।६७ त्रिपातिनी = एक विद्या २२।६८ त्रिपृष्ठ (व्य ) पहला नारायण ६०।२८८ त्रिपुर (भौ) देशविशेष ११।७३ त्रिपृष्ठ (व्य ) आगामी नारायण ६०१५६७ त्रिलक्षण (वि) उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य रूप तीन लक्षणोंसे सहित २०१०८ त्रिलोकसार विधि एक उपवास व्रत ६४।५९-६१ त्रिवर्ग = धर्म, अर्थ, काम २१।१८५ त्रिविष्टपपुर = स्वर्गपुरी ५।२३ त्रिश्टङ्ग (भी) एक नगर४५।९५ त्रिशिरस् (व्य) कुण्डलगिरिके वज्रकूटपर रहनेवाला देव ५।६९० त्रिशिरस् (व्य ) रुचिकगिरिके स्वयंप्रभ कूटपर रहनेवाली देवी ५१७२० त्रिशिखर (व्य) नभस्तिलक नगरका राजा* २५/४१ त्रिशिरस् (व्य) जरासन्धका पुत्र ५२/३७ त्रिषष्टि पुरुष (पा) शठ शलाका पुरुष, २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र १।११७ विष्= कान्ति १।११ [द] दक्ष = चतुर १७।२ दक्ष (व्य ) सुव्रतका पुत्र १७ २ For Private & Personal Use Only ९२१ दक्षप्रजापति (व्य) राजा दक्ष १1७८ दक्षिण = निपुण ३|१९३ दक्षिण = उदार ५४/३८ प्रकृतिवाला दक्षिणश्रेणी ( भो) विजयार्धपर्वतकी दक्षिण दिशावर्ती कगार जिसपर ५० नगर स्थित हैं ५।२३ दक्षिणार्धकूट (भौ ) ऐरावत के विजयार्धका आठवाँ कूट ५।१११ दक्षिणा ककूट ( भौ) विजयार्ध - का दूसरा कूट ५।२६ दण्ड (पा) लोकपूरण समुद्घात का प्रथम चरण ५६।७४ दण्ड (पा) दो किष्कुओंका एक दण्ड ७१४६ दण्डभूतसहस्रक २२/६५ = एक विद्या दण्डाध्यक्षगण = एक विद्या ! २२/६५ दत्त (व्य ) सातवाँ नारायण ६०१२८९ दत्तक (व्य) चन्द्रप्रभका प्रथम गणधर ६०।३४७ दत्तवती (व्य ) एक आर्यिका २७१५६ दत्तवस्त्र (व्य ) एक राजा ३१।९६ दन्तमलमार्जन वर्जन (पा) मुनियोंका एक मूलगुण - दातौन नहीं करना २।१२९ दधिमुख ( व्य ) इस नामका विद्याधर २४१८४ दधिमुख (व्य ) एक विद्याधर जो रोहिणीके स्वयंवरके समय होनेवाले युद्ध में वसुदेवका सारथिथा ३१ । १०३ www.jainelibrary.org

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