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षट्षष्टितमः सर्गः
वंशस्थवृत्तम्
प्रतापवश्या खिलराजके नृपे प्रशासति क्ष्मातलमुप्रशासने । जरत्कुमारे जनितादराः प्रजाः प्रकाममापुः प्रमदं धरातले ॥ १ ॥ कलिङ्गराजस्य नृपस्य देहजा जरत्कुमारस्य वधूर्वधूत्तमा । सुखेन लेभे जगतः सुखावहं वसुध्वजं राजकुलध्वजं सुतम् ॥ २ ॥ स तत्र यूनि व्यवसायिनि क्षितिं जरत्कुमारो हरिवंशशेखरे । निधाय यातस्तपसे वनं सतां कुलवतं तीव्रतपोनिषेवणम् ॥३॥ सुतोऽभवच्चन्द्र इव प्रजाप्रियो 'वसुध्वजाख्यात्सुवसुर्वसूपमः । स मीमवर्मास्य कलिङ्गपालकस्तदन्वयेऽतीयुरनेकशो नृपाः ॥ ४ ॥ कपिष्टनामान्वयभूषणस्त्वभूदजातशत्रुस्तनय स्ततोऽभवत् । स शत्रुसेनोऽस्य जितारिरङ्गजस्तदङ्गजोऽयं जितशत्रुरीश्वरः ॥ ५ ॥ भवान्न किं श्रेणिक वेत्ति भूपतिं नृपेन्द्रसिद्धार्थ कनीयसी पतिम् । इमं प्रसिद्धं जितशत्रुमाख्यया प्रतापवन्तं जितशत्रुमण्डलम् ॥ ६ ॥ जिनेन्द्रवीरस्य समुद्भवोत्सवे तदागतः कुण्डपुरं सुहृत्परः । सुपूजितः कुण्डपुरस्य भूभृता नृपोऽयमाखण्डलतुल्यविक्रमः ॥७॥ यशोदयायां सुतया यशोदया पवित्रया वीरविवाहमङ्गलम् । अनेक कन्यापरिवारयारुहत्समीक्षितुं तुङ्गमनोरथं तदा ॥ ८ ॥
तदनन्तर प्रतापके द्वारा समस्त राजाओंको वश करनेवाला, उग्रशासनका धारक राजा जरत्कुमार जब पृथिवीका शासन करने लगा तब उसके प्रति प्रजाने बहुत आदर किया और पृथिवीतलपर अधिक हषं प्राप्त किया ॥ १ ॥ कलिंग राजाकी पुत्री जरत्कुमारकी उत्तम पट्टरानी थी, उससे उसने जगत्को सुख देनेवाला एवं राजकुलकी ध्वजास्वरूप वसुध्वज नामका पुत्र प्राप्त किया || २ || व्यवसायी तथा हरिवंशके शिरोमणि उस युवापर पृथिवीका भार रख जरत्कुमार तपके लिए वनको चला गया सो ठीक ही है क्योंकि तीव्र तपका सेवन करना सत्पुरुषोंका कुलव्रत है || ३ || वसुध्वजके चन्द्रमाके समान प्रजाको आनन्द देनेवाला कुबेरतुल्य सुवसु नामका पुत्र हुआ । सुवसुके कलिंग देशकी रक्षा करनेवाला भीमवर्मा नामका पुत्र हुआ और उसके वंशमें अनेक राजा हुए ||४|| तदनन्तर उसी वंशका आभूषण कपिष्ट नामका राजा हुआ, उसके अजातशत्रु, अजातशत्रुके शत्रुसेन, शत्रुसेनके जितारि और जितारिके यह जितशत्रु नामका पुत्र हुआ है || ५ || हे राजन् श्रेणिक ! क्या तुम इस जितशत्रुको नहीं जानते ? जिसके साथ भगवान् महावीर के पिता राजा सिद्धार्थंकी छोटी बहनका विवाह हुआ है, जो अत्यन्त प्रतापी और शत्रुओंके समूहको जीतनेवाला है || ६ || जब भगवान् महावीरका जन्मोत्सव हो रहा था तब यह कुण्डपुर आया था और कुण्डपुरके राजा सिद्धार्थने इन्द्रके तुल्य पराक्रमको धारण करनेवाले इस परम मित्रका अच्छा सत्कार किया था ॥ ७ ॥ इसकी यशोदया रानीसे उत्पन्न यशोदा नामकी पवित्र पुत्री थी। अनेक कन्याओंसे सहित उस
१. वसुध्वजाच्चासुवसु म । २. यन्त्रितशत्रु - म. ।
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